सुनीता असीम

तीरगी ऐसी भरी के हो सबेरा भी नहीं।
सोचती हूँ फिर यही इतना अंधेरा भी नहीं।
***
यूँ समझ ले कोई खुद फनकार अपने को यहाँ।
पर बड़ा भगवान से कोई चितेरा भी नहीं। 
***
खूबसूरत घर मेरा हमने रचा जो प्यार से।
पर बया के घर से सुंदर ये बसेरा भी नहीं।
***
ये करोना नाग सा डसता चला है जिंदगी।
रोक ले इसको यहाँ ऐसा सपेरा भी नहीं।
***
हाथ सभी कामों से पहले हम भले धोते रहें।
वक्त पर मिलता सभी को यम लुटेरा भी नहीं।
***
सुनीता असीम
17/3/2020


निशा"अतुल्य"

सँग
17.3.2020


अरे छोड़ दे मनवा सारे राग
मन बैरागी कर ले आज 
सँग ना कुछ भी जाएगा
मंदिर मंदिर ढूंढ रहा जिसे
झांक ले अपने मन में आज ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान


भूखे को  तू खिला दें खाना
और प्यासे को पानी दान
मिल जाएंगे भगवन तुझ को
करले दर्शन भगवन जान ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान


प्रेम की गंगा में तू नहा कर 
दूर सभी कर अपने पाप
ख़ुद ईश्वर लेने आएंगे
तुझको अपने बैकुंठ धाम ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान।


जीवन आना जाना फेरा
दुनिया तो दो पल का डेरा
कर्म करे वो सँग जाएंगे
नही रहे कुछ अपने पास 


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

ख्वाहिश


मेरे जीवन को कृष्णमय बना दीजिए
दुःख दर्द को जिंदगी से भगा दीजिए


हो सबके प्रति मुहब्बत मेरे दिल में
प्यार प्रीति अपनाने की कला दीजिए


बेरुखी न घेरे न घृणा का भाव हो मन में
सद्भावों की पूंजी से दिल सजा दीजिए


हर पल हो कुर्बान परोपकार के लिए
लुटा सकूं खुशियां जग में दुआ दीजिए


बहुत आये धरा पर बहुत चले भी गये
मरकर भी याद रहूँ ऐसा करवा दीजिए


ख्वाहिश पाली मैंने जीऊं दूसरों के लिए
मेरी ख्वाहिश प्रभु साकार बना दीजिए।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *" सुनीति"*
"राजनीति में साथी  सुनीति वहीं,
जो दे जन जन को सुख-
स्वास्थ और रोज़गार सही।
विपक्ष हो या सत्ता पक्ष ,
जो सबको संग लेकर चले-
वही राजनीति में सुनीति सहीं।
शिक्षा का अधिकार मिले सबको,
साक्षर हो सभी-
अँगूठा टेक रहे न कहीं।
पर्यावरण हो मधुर अन्न जल हो भरपूर,
अहिंसा के पथ पर-
देश की प्रगति हो सही।
सार्थक हो संबंध पड़ौसी से,
हो न तनाव-
भाई-चारा हो वही।
राजनीति में साथी सुनीति वही,
जो दें जन जन को सुख-
स्वास्थ और रोज़गार सही।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः कविता:-
         *"सखियाँ"*
"जब-जब मिलती हैं जीवन में,
बिछड़ी हुई सखियाँ-
गले मिल रो लेती करती देर तक बतियाँ।
कभी हँसती कभी रोती,
सुन कर कही-अनकही-
जीवन की बतियाँ।
याद कर खुशी के पल साथी,
गुनगुनाने लगती गीत-
संग मिलकर सखियाँ।
सखी सखी संग चली जो,
भूली न वो कभी -
सुख देने वाली रतियाँ।
मिल कर बिछड़ने का दर्द,
कहती रही-
संग बैठ सखियाँ।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता 17-03-2020


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

................टूटे ख्वाब...................


कैसे   कटेगी  जिंदगी , बिन  तुम्हारे  ।
अब जीना पड़ेगा , ख्वाबों  के सहारे।।


अब तक थे ख्वाब , दिल  से अज़ीज़ ;
अब  पड़  गई  है  , दिल  में   दरारें  ।।


दिल था किसीका ,आज अपना हुआ;
लूट गई है  फ़िज़ां से , मन की बहारें।।


मन की व्याकुलता , की हद  हो  गई ;
खामोशी  ओढ़   ली , चन्दा-सितारे ।।


जिंदगी हुई तबाह,आरज़ू हुए खामोश;
मौसम-ए-खिज़ा , ये करती है इशारे।।


उल्फ़त की जहाँ से, हुए जब रुसवा ;
अब ख़ुदा ही,बिगड़ी तक़दीर सँवारे।।


लौट  आ  तू  मेरे , उजड़े   चमन  में  ;
गले  लगाने  बैठा  हूँ , बाहें  पसारे  ।।


खिज़ां की जगह,आएगी बहार कभी;
पड़ा दर पे"आनंद",उम्मीद के सहारे।।


-------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हो मेरे जीवन सुमन तुम,
क्यों मुरझाये से लगते हो।
छोड़ के अपना सौंदर्य,
क्यों अलसाये से रहते हो।।


तेरी सुरभि से सुरभित,
मैं महक खुशी की फैलाता।
जब तुम ही बिखर गए तो,
कैसे गीत खुशी के गाता।।


तेरी कलियां खिलती थीं,
देख मेरा आनन मुस्काता।
जीवन ज्योति प्रखरता से,
मकरन्द हृदय पर छा जाता।।


ललचायी तितली सा मन,
यौवन पराग तेरा पाने को।
मदहोश किये मांसल तन,
व्याकुल रहता तुझे पाने को।।


कोई कुदृष्टि का झौंका,
कैसे बदन जला गया तेरा।
तू सृजा था सत्य चमन को,
चुरा लेगया को आश्रय मेरा।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*विश्वास*
विधा: कविता


मुसीबत का पहाड़, 
कितना भी बड़ा हो।
पर मन का विश्वास,
उसे भेद देता है।
मुसीबतों के पहाड़ों को, 
ढह देता है।
और अपने कर्म पर,
जो भरोसा रखता है।।


सांसारिक उलझनों में,     
उलझा रहने वाला इंसान।
यदि कर्म प्रधान है तो,
सफलता से जीयेगा।
और हर कठनाईयों से
बाहर निकल आएगा।
अपने पुरूषात से।।


कहानियाँ सफलता की
इंसान ही लिखता है।
बड़े बड़े पहाड़ो को
इंसान ही गिरता है।
और उसी में से ही
हीरा को निकलता है।
ये सब काम इंसान ही
अपने हाथों से करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
17/03/2019


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*शादी,,,,विवाह(हाइकु)*


शादी मेल है
दो व्यक्ति परिवार
प्रेम  बेल  है


शादी बंधन
निभेगी जब शादी
मन   नंदन


शादी का रिश्ता
दिया बाती सरीखा
तभी खिलता


शादी संबंध
विश्वास आधारित
ये अनुबंध


विवाह धर्म
बस समझदारी
एक ही मर्म


शादी अर्पण
सात वचनों का है
ये समर्पण


विवाह स्वर्ग
आप स्वयं बनाते
विवाह नर्क


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विश्व्यापी महामारी*
*कॅरोना(हाइकु)*


तुम डरो ना
नमस्ते को करो हाँ
ऐसे बचना


यह कॅरोना
बचाव ही तरीका
हाथ का धोना


एक ही टास्क
बाहर  निकलें  तो
लगा हो मास्क


सात्विक खाना
शुद्ध हो शाकाहारी
माँस कहो ना


ये महामारी 
मिल कर लड़ना
बीमारी हारी


छींक से दूर
दूरी एक मीटर
रखो जरूर


भीड़भाड़ न
घर से बाहर  तो
मत ही जाना


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*संघर्ष ही एक सफलता मंत्र*
*मुक्तक*


जो  दर्द ओ  गम   में  भी
रहता मुस्कराता है।


छाले हों   पाँव में  पर वो
चलता    जाता   है।।


संघर्ष से   ही   व्यक्ति  छू
सकता नई ऊँचाइयाँ।


वही अँधेरों में भी उजालों
को ढूंढ   लाता     है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*समस्या का हल।आज नहीं तो कल*
*मिलता है।मुक्तक।*


जान लो कि  फल    मेहनत  का
हमें जरूर   मिलता  है।


देर से ही   सही पर  जरूर आज
नहीं तो कल मिलता है।।


कोई मुश्किल नहीं  ऐसी  जिससे
हम पार  ना   पा  पायें ।


खोजोगे तो हर समस्या का जरूर
हमें   हल   मिलता  है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो      9897071046
          8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चिंतन चरित्र व्यवहार का मुरलीधर कैसे हो परिष्कार।
आत्म मूल्यांकन का ज्ञान नहीं न आध्यात्म से प्यार।।


न तत्वबोध न साधना नहीं जिनका श्रेष्ठ व्यक्तित्व।
झूठे दंभ की बेहोशी में जिनके सुंदर नहीं कृतित्व।।


नियोजन नहीं पुरुषार्थ का नहीं कोई जीवन लक्ष्य।
बौद्धिक विकास का प्रयास नहीं भोजन भक्ष्याभक्ष्य।।


हे माधव ऐसे जन को दीजिए जीवन जीने का ज्ञान।
बौद्धिक क्षितिज का विस्तार कर मेंटों तुम अज्ञान।।


व्यक्तित्व के हर आयाम को जाँचो परखो भगवान।
कृपा बनी रहे सदा सत्य पर रहे कृष्ण तेरा ध्यान।।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 यही तो चाहत है 😊😊


दो वक्त की रोटी,
   उमर हो न छोटी।
      यही तो चाहत है,
         मिले तो राहत है।


हो छोटा सा आशियाना।
      बेघर न कहे ज़माना।
            यही तो चाहत है, 
                 मिले तो राहत है।


तन पे हो लॅ॑गोटी,
   बड़ी हो या छोटी।
      यही तो चाहत है,
         मिले तो राहत है।


भूखे को देकर कुछ खाएॅ॑,
  इतना तो धन रोज़ कमाएॅ॑।
        यही तो चाहत है,
            मिले तो राहत है।


संतों की सेवा हो जाए,
   दें आशीष सदा वो जाएॅ॑।
      यही तो चाहत है,
          मिले तो राहत है।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


विवेक दुबे"निश्चल

एक अश्क़ समंदर सा ।
 छलका हालतों अंदर सा ।
 मचला पलकों की कोर में,
 उम्मीदों के मंजर सा । 
"विवेक दुबे"निश्चल"@...


श्याम कुँवर भारती [राजभर]   कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

भोजपुरी निर्गुण – माया मे लोभाई |
नईहर के छोड़ी आइलू ससुरा के  घर मे |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
झूठ साँच बोली पपवा बसवलु अपना मन मे |
सोन पिंजरवा छोड़ी सुगना उड़ी जईहे गगन ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
पियावा के छोड़ी नेहिया लगवलु देवर ये राम |
जनिहे जे भेदवा सजना निकली न मूहवा बचन ये राम |
 कईलु ना दान धरमवा जिनगी फसवलु भवर ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
जाई ससुरवा नरक मे डलिहे झर झर बहिहे नयन ये राम |
सास ससुरवा लतवा लगवलु ननद भसूरवा झाड़ू ये राम | 
सजना से कईलू दगाबाजी मटिया मिलवलु जनम ये राम |
मुंहवा भजन ना कईलू गईलू न गोड़वा तीरथ ये राम |
परान जब निकसीहे मुंह से थर थर काँपी  बदन ये राम | 
लोगवा कहे सुना भाई भारती गुरुजी से नेहिया लगावा ये राम |
सद्गुरु करीहे पार भवरिया मिलिहे परमगति जनम ये राम |
माया लोभाई भुलइलू आपन सजन ये राम |
 
  श्याम कुँवर भारती [राजभर]
  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
     भिलाई दुर्ग छग



🥀यश के दोहे🥀


➖➖➖➖♾️➖➖➖


समझे अपने आप को, गुरुवर विज्ञ महान।
अपनी करनी भूल यश,करे छोट अपमान।।


➖➖➖➖♾️➖➖➖


🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

एक छंद आपकी सेवा में...


उर की अपार  गहराई में  समायी  हैं  तू,
मेरी हर साँस की रवानी  बन  जाती  है।
दिल मे धड़कता हैं केवल  तुम्हारा  नाम,
रस भारी नेह की  कहानी  बन जाती हैं।
उपवन का खिला गुलाब  लगती हैं आप,
मन  लेने  देने  में  सयानी  बन जा ती हैं।
सुख-दुख,  वैर-प्रीत, हार-जीत  सहे साथ,
मन के विश्वास की  निशानी बन जाती हैं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


डॉ प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद (उ.प्र.)

*कोरोना: बचाव ही इलाज*


रोग विदेशी भयावह, कोरोना जी नाम ।
मित्रों करें बचाव बस, वर्ना काम तमाम ।।


परिजन पुर जन स्वच्छ ,हों, खुद भी रहिए साफ ।
परजीवी कीटाणु हैं, नहीं करेंगे माफ।।


जूडी खांसी शूल सिर नजला  आंखें लाल ।
अवरोधन कुछ श्वास का, लक्षण भारी भाल ।


नहीं हाथ मुँह पर रहे, छींकें जा एकांत ।
नमन करें दूरी रखें, जागें मीत नितांत । ।


उष्ण भोज्य हल्का तरल, घर दी रोटी दाल।
गर चूके चौहान तो, करना पड़े मलाल।।


रोग ग्रसित या शंकर वत, ढ़ूँढ़े वैद्य सुषैन।
परिचर्या उत्तम दवा, माने तद  प्रति बैन।।



डॉ प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद (उ.प्र.)


श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी

भोजपुरी देवी गीत-4-कहे भारती पुकार के 
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
आतंकियन मिटावा माई त्रिशूलवा के मार के |
देशवा दुशमनवा भारत अँखिया देखावेले |
जब देखा पीछे पिठवा बन्दुकिया चलावेले |
मरलु माई जईसे दइतवन मारा इनके संहार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
देशवा खुशहाली हरियाली अँखिया न सुहाला |
हंसत खेलत लोगवा देखी छतिया फटी जाला |
मारा माई मरलु जइसे दुरगवा गरदनिया उतार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
ऊंचा बा लीलार तोहरों अँखिया बा विशाल हो |
चंदरमा बा रूपवा माई काली केसिया कमाल हो |
दसभूजा शेरावाली चले तोहार शेरवा चिंघाड़ के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
तोहरी किरीपा जगवा तिरंगा झंडवा लहराला |
सबके पछाड़ भारत तीसरी शक्ति आज कहाला |
करे  लोगवा पूजनवा माई तोर रूपवा निहार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
छोडब न चरनिया माई भजनीया हम गाइब |
फेरा तू नजरिया माई हम नचनिया बन जाइब |  
भगावा देशद्रोहियन चलावा देशवा ललकार के |
हाथ जोड़ी पईया पड़ी कहे भारती पुकार के |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी ,मोब 9955509286


हलधर

ग़ज़ल ( हिंदी) ( कोरोना)
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पड़ौसी चीन से फैला ये विष कण नाम कोरोना ।
मुझे जैविक लड़ाई का  दिखे  आयाम  कोरोना ।


इशारों में हमें यह दे रहा पैगाम कोरोना ।
नमस्ते ही करेगी देश में नाकाम कोरोना ।


हमारी जीत पक्की है रखेंगे सावधानी यदि ,
नहीं तो सिर मुड़ा देगा बड़ा हज्जाम कोरोना ।


जरूरी है सभी को हाथ धोना गर्म पानी से ,
नहीं तो जिंदगी का मौत में अंजाम कोरोना ।


नमाजें भी अभी कुछ रोज सजदा हों अकेले में ,
नहीं तो कौम को कर जायगा नीलाम कोरोना ।


पुजारी जी  अभी भगवान को आराम करने दो ,
अयोध्या और काशी में न हो कुहराम कोरोना ।


घरों में नित हवन की अब पुरानी आदतें डालो ,
कपूरी गंध से होता सदा गुमनाम कोरोना ।


बचो जितना बचा जाये मगर डरना नहीं यारो ,
हकीकत है शराबी से डरे गुलफाम कोरोना ।


हमारी  वेद  परिपाटी  दिखाये  राह  दुनियां  को ,
जहां लिखता ग़ज़ल"हलधर"करे क्या काम कोरोना ।।


हलधर-9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*माँ का अस्तित्व* (रोला छंद)      -------------------------------------------
विधान- ११ एवं १३ मात्रा पर यति के साथ प्रतिपद २४ मात्रा, चार चरण, युगल पद तुकांतता। 
................................................


*माँ है जग-आधार, इसी में विश्व समाये।
माँ के बिन उपकार, जनम कोई कब पाये ??
पीकर माँ का दूध, छाँव ममता की पाये ।
जग में है विख्यात, किसे  माता न सुहाये ??


*माँ तो है वरदान, हरे वह विपदा सारी।
सृष्टि-वृष्टि हर दृष्टि, मातु की प्यारी-न्यारी।।
ऋद्धि-सिद्धि हर तुष्टि, अतुल है अपार है माँ ।
विश्व-विशद-प्रतिरूप, स्वयं ही विहार है माँ ।।


*माँ तो सतत दयालु, काज हर करती पूरा ।
करती है माँ पूर्ण, पिता का प्यार अधूरा ।।
बुरी बला दे टाल, लगाती काला टीका।
पूजा की है थाल, ऋचा वेदों-सम नीका।।


*साँसों का सुरताल, हृदय में बन रहती है।
निज संतान-शरीर, रुधिर बनकर बहती है।।
जग-उपवन में फूल, बनी है सुगंध भी माँ ।
भाले निज परिवार, नेक है प्रबंध भी माँ ।।


*माँ का जो है त्याग, सोच लो मन में अपना।
क्यों लेते हो छीन? मातु का सुंदर सपना।।
जो है निज भगवान, मान दो माँ को आओ ।
जानो जग का तीर्थ, मातु-पद माथ-झुकाओ ।।
------------------------------------
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
------------------------------------


नूतन लाल साहू

क्रोध न किजै
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगति में जाइये
विद्या सम धन,न आन
तेरा निर्मल रूप,अनूप है
नहीं हाड़ मांस की,काया
नाम रूप मिथ्या जग सारा
तू है,सत्य जगत से न्यारा
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
निराकार निर्गुण अविनाशी
चेतन अमल सहज सुखरासी
अलख निरंजन सदा उदासी
तू ब्यापक,ब्रम्ह स्वरूप है
क्रोध हरै,सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जा इये
विद्या सम धन न आन
समझ जा मन,मीठा बोल तू
वाणी का बाण,बहुत बुरा होता है
वाणी से प्रीत,होय बहुत गहरी
शब्दों से ही,हो जाय जग बैरी
क्रोध हरै, सुख शांति
अंतर प्रगटै, आग
सत संगत में जाइये
विद्या सम धन न आन
नूतन लाल साहू


 


बबली सिन्हा (गाज़ियाबाद)

मैं कहां कुछ लिख पाती हूँ
न कुछ देख पाती हूँ
न कुछ  समझ पाती हूँ


सच ही तो है
जिंदगी प्रेम में पड़ी है
फिर और कुछ कहां 
दुनिया, संसार.....


शायद इसलिए कहते प्रेम अंधा होता 
पर प्रेम का तात्पर्य 
मन और देह का केवल
आनन्दमय सुखद मिलन एहसास नहीं


बल्कि इसमें समाहित है 
फूलों का चमन और 
आंसुओं का खारा समंदर भी


एक आवरण है प्रेम
जो प्रकृति पद्दत है
जज्बातों का घना संसार 


जिसमें भावनाएं वस्त्र की तरह
देह के रोमकूपों में सिंचित होती
सम्वेदनाओं से भरी ऊर्जा
हमें सम्मोहित, आकर्षित करती 


हम खुद को रोक नहीं पाते 
उसके लिए जीते 
और कभी मर भी जाते 


पर प्रेम जिंदा रहता सदैव
ऐसा समझो !
एक जादुई घरती का सच है प्रेम।


बबली सिन्हा
(गाज़ियाबाद)


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जीवन"


जीवन कैसा है, इस पर विचार मत कीजिये,
जैसे चल रहा है, वैसे ही इसे चलने दीजिये ।


सोचेंगे तो परेशान  होते रहेंगे,
सुख और दुःख में जीते रहेंगे।


न सोचना ही निर्वात है,
सोचना आत्मघात है।


सोचकर हम प्रपंची बन जाते हैं,
न सोचकर हम आजाद पंछी हो कर उड़ जाते हैं।


जो सोचा, वह फँसा.,
न सोचनेवाला हँसा।


जिसमें लाभ हो वही कीजिये,
सोचकर खुद को वर्वाद मत कीजिये।


सोचना हो तो आजादी की सोचो,
मत आपाधापी की सोचो।


सोच में आत्मोद्धार हो,
सबकुछ सहज स्वीकार हो।


अच्छे-बुरे की सोच ही वंधन है,
एक अनावश्यक क्रंदन है।


निर्लिप्त और उदास बनो,
स्वतंत्रता की आस बनो।


वंधनों से मुक्ति चाहिये,
मोक्ष की सूक्ति चाहिये।


परिन्दा सा विचरण करो,
उसके आदर्श का अनुगमन करो।


सुख-दुःख में लालच है,
हर दशा में अपच है।


निर्द्वंद्वता के लिये जीवन की सोच छोड़ दो,
कछुए की तरह हर तरफ से मूँह मोड़ लो।


सफलता मिलेगी,
जिन्दगी खिलेगी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


कविता का सागर बनी उर में बहो अथाह।
वीणावादिनि मातृ का जन्म-जन्म तक चाह।।


करो कृपा नित मातृ शारदे।सुन्दर वाणी का प्रिय वर दे।।
विश्वविजयिनी ध्यानावस्थित।कण-कण में हो नित्य उपस्थित।।
ताकतवर तुम महा शक्ति हो।सन्तहृदय में महा भक्ति हो।।
सार एक तुम महा असीमा।तीव्र- गामिनी तुम जग धीमा।।
गगन अनन्त सदृश तुम आँगन।सतत अहर्निशं तुम शिव सावन।।
रम्य परम साधिका मनोरम।आनन्दी अति सात्विक अनुपम।।
ज्ञानी ज्ञानमयी गुणबोधक।विज्ञानी विज्ञान सुशोधक।।
महापालिका सृष्टि रचयिता।विविधरूपिणी शिवमय कविता।।
वीणा-पुस्तक ले घर आओ।मंगलकारी भजन सुनाओ।।
सत्संगति का शुभमय वर दो।हे माता प्रिय!अपना घर दो।।


रहे शान्त यह सकल जग सबमें प्रिय संवाद।
कलुषित मन कोमल बने मिटे वाद-प्रतिवाद।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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