विष्णु असावा             बिल्सी ( बदायूँ )

कुण्डलिनी


1
माथा धुन रोता कृषक,कौन सुने फरियाद 
बारिश ओला वृष्टि से, फसल हुई बरबाद 
फसल हुई बरबाद, सुनाये किसको गाथा 
सभी भाग्य पर छोड़ ,पकड़कर बैठा माथा 


2
मानव तो हर ओर से,लिया आपदा घेर 
बारिश तो रुकती नहीं, ओलों के भी ढेर 
ओलों के भी ढेर,बना कोरोना दानव
सुन लो प्रभू पुकार,कहाँ अब जाये मानव


3
ईश्वर पर विश्वास तो,रखना होगा यार
सब कुछ उसके हाथ में ,पालेगा परिवार
पालेगा परिवार, सुनेगा फिर जगदीश्वर
बिनती करते लोग,आपदा हरना ईश्वर


              विष्णु असावा
            बिल्सी ( बदायूँ )


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" ऐतिहासिक नगरी हांसी , हिसार , हरियाणा ।

ग़ज़ल* 


छुप नहीं सकती हकीकत सूरत ये कैसी बना लें ।
फायदा दरियादिली का उनकी, बेशक से उठा लें ।।


मंदिरों में , मस्जिदों में , गर खुदा ये बस गया हो ,
हर कदम पर फिर ,नया मंदिर , नई मस्जिद बना लें ।


मत निहारो दूसरों की गलतियों को , दुख बढ़ेगा , 
ठीक है यह दूसरों से ले सबक , खुद को बचा लें ।


यह जगत होगा खफा , बाहों में आने से , सनम सुन ,
बेखबर हो एक दूसरे को निगाहों में बसा लें ।


"टेंपू" आंसू बहाने से बता , है फायदा क्या ? 
ख्वाब दिल में अब खुशी के , मुस्कुराकर हम सजा लें 


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो"
ऐतिहासिक नगरी हांसी ,
हिसार , हरियाणा ।


रचित **** 03 08 2010 
मो. 09992318583


मां संकलन सूची फायनल

मां मां मां मेरी मां रचनाकार सूची फायनल


प्रदीप भट्ट 7
नितेश कुमार अवस्थी 8
डॉ आभा माथुर 9
डॉ पूर्णिमा मंडलोई 10
अवधेश कुमार ‘रजत’ 11
ममता पटेल टीचर 12
रजनी रामदेव 13
हेमलता गोलछा 14
अनन्तराम चैबे ‘अनन्त’ 15
डॉ सारिका शर्मा 16
लकी निमेष 18
रवि रश्मि ‘अनुभूति’ 19
मणि बेन द्विवेदी 20
सूर्य करण सोनी ‘सरोज’ 21
कालिका प्रसाद सेमवाल 22
डॉ रमा ‘रश्मि’ 23
पंडित दुर्गादास पाठक ‘अनुराग’ 24
अजय जैन ‘विकल्प’ 25
मंजु लंगोटे 26
डॉ. सरला सिंह 27
डा. नीना छिब्बर 28
सुवर्णा परतानी 29
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय 30
रश्मि सक्सेना 31
अशोक बाबू माहौर 32
डाॅ अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’ 33
आशा जाकड़ 34
अनिल जाँगड़े ‘गौंतरिहा’ 35
चाँदनी सेठी कोचर 36
कंचन साहू ‘कृतिका’ 37
बाबू लाल शर्मा 38
दुर्गाप्रसाद नाग 39
आचार्य गोपाल जी 40
गायत्री जैन 41
मुन्नालाल मिश्र अनुज 42
मनीष कुमार रंजन 43
पूनम 44
अलका पांडेय 45
राजकिशोर मिश्र 46
रेनू सिंघल 47
राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ 48
सरोज सिंह सूरज 49
सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ 50
डॉ विद्यासागर मिश्र 51
आकांक्षा ‘अक्ष’ शंखधर 52
ब्रजेश कुमार शंखधर 53
गणेश मादुलकर ‘मुसाफिर’ 54
मधु शंखधर ‘स्वतंत्र’ 55
प्रदीप बहराइची 56
डाॅ. माधवी कुलश्रेष्ठ 57
डाॅ चन्देश्वर यादव 58
रचना सक्सेना 59
अनिता मंदिलवार सपना 62
अंजुमन मंसूरी ‘आरजू’ 63
डाॅ भारती वर्मा 64
ब्रह्मदेव शास्त्री ‘पंकज’ 65
बसंत कुमार शर्मा 66
गरिमा पटेल 67
काशवी दत्ता पुत्री पुलकित दत्ता 68
वीना श्रीवास्तव 69
नरेंद्र पाल जैन 70
नीतेन्द्र सिंह परमार ‘भारत’ 71
नौशाद वारसी 72
निरुपमा मिश्रा 73
प्रतिभा रामकृष्ण श्रीवास्तव 74
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा 75
राजेन्द्र कुमार टेलर ‘राही’ 76
रोहिणी शर्मा 77
रामगोपाल शर्मा 78
सुविधा पंडित 79
सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ 80
कवि शरद अजमेरा ‘वकील’ 81
शशि रंजना शर्मा 82
सुनीता असीम 83
विदुषी शर्मा 84
विनोद ओमप्रकाश गोयल 85
सैयद वसीम नकवी 86
ख्याति शिल्पी मौर्या 87
आनन्द वर्धन शर्मा 88
अरुणा अग्रवाल 89
सन्तोष कुमार राजपूत 90
अखिलेश तिवारी ‘डाॅली’ 91
सुनीता सिंह झज्झर 92
सारिका त्रिपाठी 93
डॉ मीतू सिन्हा 94
डॉ राजमती पोखरना सुराना 95
श्रीमती वैष्णो खत्री 96
मृदुल शरण 97
बृजेश कुमार अग्निहोत्री ‘पेण्टर’ 98
रजनी सैनी सहर 99
पुष्पा अवस्थी ‘स्वाती’ 100
शशि दीपक कपूर 101
रेखा भटनागर जैन 102
जय प्रकाश सूर्यवंशी 103
डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’ 104
देवेन्द्र सिंह राजपुरोहित 105
प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’ 106
ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’ 107
उर्मिला श्रीवास्तव 108
विनोद कुमार दवे 109
इलाश्री जायसवाल 110
डाॅ विनीता प्रजापति वेदांशी 111
सुधा मोदी “तरू” 112
डॉ नीरज अग्रवाल 113
डॉ उमा कटियार 114
डॉ सुधा चैहान ‘राज’ 115
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति 116
डॉ सरोज गुप्ता 117
डाॅ सुशीला सिंह 118
डॉ. स्वदेश मल्होत्रा ‘रश्मि’ 119
डॉ. राधाबल्लभ पांडेय ‘आलोक’ 120
आशुकवि नीरज अवस्थी 121
मनोज शर्मा 122
सीमा निगम 123
रत्ना वर्मा 124
शायर हिमाँशु 125
सविता बरई 126
एन एल एम त्रिपाठी पीताम्बर 127
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’ 128
सीमा गर्ग ‘मंजरी’ 129
डॉ. मृदुला शुक्ला ‘मृदु’ 130
डाॅ विजय कुमार सिंघल 131
आलोक शुक्ला 132
कवि डॉ रवीन्द्र प्रसाद 134
शेषाद्रि त्रिवेदी 135


प्रीति शर्मा "असीम"  नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

कविता 


शीर्षक- किताबें भी एक दिमाग रखती है


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के,
अनगिनत हिसाब रखती है।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती हैं।


किताबें जिंदगी में,
बहुत ऊंचा ,
मुकाम रखती है ।
यह उन्मुक् ,
आकाश में,
ऊंची उड़ान रखती है।


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं ।
जिंदगी के,
 अनगिनत हिसाब रखती हैं।


हमारी सोच के ,
एक -एक शब्द को ,
हकीकत की ,
बुनियाद पर रखती है।


किताबें जिंदगी को ,
कभी कहानी ,
कभी निबंध ,
कभी उपन्यास ,
कभी लेख- सी लिखती है ।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती है ।
जिंदगी के ,
अनगिनत हिसाब रखती है।


यह सांस नहीं लेती ।
लेकिन सांसो में ,
एक बसर रखती है।
जिंदगी की ,
रूह में बसर करती है।


स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम"
 नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


डॉ राजीव पाण्डेय 1323/भूतल,सेक्टर 2 वेबसिटी, गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

कोरोना पर केंद्रित एक गीत
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जीवन के हर मोड़ पे देते,
            गुरुजन निशिदिन राय।
मिले सफलता निश्चित हमको,
                  करलो सही उपाय।
बाद में क्यों रोना----


अनायास मत छुओ किसी को,
                     मिले न वैरी हाथ।
सभी असम्भव सम्भव कर लें, 
                   ना पकड़ें हम साथ।
मल मलकर हम हाथ रगड़ लें,
बाद में क्यों धोना--------


जब दिखता हो सामने संकट,
                    दो मीटर दूर रहें।
हैं दुर्गन्धों के घने कोहरे,
                   उनको बाय कहें।
समय शेष रहते ही कर लें,
 बाद क्यों खोना--------


खांसी खुल्लड और स्वांस के, 
                     हैं जीवन के रोग।
घण्टे एक परिश्रम के संग,
                    प्राणायामी योग।
उचित समय पर फसल उगालें,
 बाद में क्यों बोना---------


विषम परिस्थिति पड़े नअपनी,
                    कभी कुंद भी धार।
लोग हमारी बातें मानें, 
                 ज्यों ताज़ा अखबार।
शत प्रतिशत जीवन को जीलें,
बाद में क्यों पोना-------


डॉ राजीव पाण्डेय
1323/भूतल,सेक्टर 2
वेबसिटी, गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
मो0 09990650570
ईमेल-kavidrrajeevpandey@gmail.com


डाॅ विजय कुमार सिंघल

*अपनी हिन्दू संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है*


इस समय जब सारा संसार कोरोना वायरस जैसी भयावह समस्या से जूझ रहा है तो सभी यह अनुभव कर रहे हैं कि पाश्चात्य जीवन शैली और संस्कृति के बजाय हमारी प्राचीन हिन्दू जीवन शैली और संस्कृति ही स्वस्थ और सुखी रहने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसके कई कारण हैं जिनकी हम संक्षेप में यहाँ चर्चा करेंगे। 


1. अभिवादन करने की हमारी पद्धति ‘नमस्ते’ इस समय सारे संसार द्वारा अपनायी जा रही है। इसमें दोनों हाथ जोड़कर और हृदय के सामने रखकर कुछ सिर झुकाकर प्रणाम किया जाता है। इससे दूर से ही और एक साथ ही हजारों व्यक्तियों का अभिवादन किया जा सकता है। दोनों हाथ सामने रहने से किसी प्रकार के छल की कोई संभावना नहीं है। सिर झुकाने से विनम्रता का भाव आता है। हमारी संस्कृति में बड़ों का अभिवादन भी हाथ मिलाकर नहीं बल्कि पैर छूकर किया जाता है। विशेष अवसरों पर गले भी लगाया जा सकता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है।


2. अपने निवास और विशेष रूप से रसोई घर में जूते चप्पल उतारकर घुसना भी हमारी संस्कृति का अंग है। इससे बाहर के वातावरण के हानिकारक तत्व हमारे घर में प्रवेश नहीं करते और भोजन शुद्ध रहता है। वर्तमान में इस नियम में शिथिलता आ जाने के कारण बहुत हानि हो रही है।


3. हाथ पैर मुँह धोकर भोजन करना भी हमारी प्राचीन परम्परा रही है। इस परम्परा से हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता की कल्पना की जा सकती है। हाथ-पैर-मुँह आदि धोने से शरीर की गर्मी शान्त होती है और व्यक्ति आनन्दपूर्वक भोजन करने के लिए तैयार हो जाता है। इसके अनेक लाभ होते हैं। 


4. शाकाहार हमारी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण अंग रहा है। मुख्य रूप से पेड़ों के फलों का ही भोजन हमारे पूर्वज किया करते थे, जो प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते थे। बाद में अन्न भी उगाया जाता था और उससे भोजन बनाया जाता था। इसीकारण पेड़-पौधों-वनस्पतियों की पूजा करना हमारे धर्म का अंग बनाया गया। हमारी संस्कृति में कभी माँसाहार का प्रचलन नहीं रहा। हमेशा पशुओं के पालन और उनके दुग्ध आदि के सेवन पर बल दिया जाता था। गोहत्यारों को मृत्युदंड भी दिया जाता था। पशुओं पर दया करने का पाठ हमें बचपन में ही सिखा दिया जाता है। हर घर में पहली रोटी गाय की और अन्तिम रोटी कुत्ते की अवश्य बनायी जाती है। हमारी संस्कृति में चींटी से लेकर हाथी तक के कल्याण की कामना और व्यवस्था की गयी है।


5. पृथ्वी को माता मानना हमारी संस्कृति की विशेषता है। पृथ्वी हमें सबकुछ देती है, माता की तरह हमारा पालन-पोषण करती है। इसलिए हम उसके शोषण में नहीं, बल्कि दोहन में ही विश्वास करते हैं। हमारी खेती भी इस प्रकार होती थी कि पृथ्वी की उर्वरा शक्ति हमेशा बनी रहे। उसमें हानिकारक खादों का नाम भी नहीं था, बल्कि गाय के गोबर को खेतों में डाला जाता था। ब्रह्मांड में उचित सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास करना हमारी संस्कृति की ही विशेषता है।


6. हमारी संस्कृति में शवों का दाह संस्कार करना अनिवार्य होता था। इससे शरीर के सभी रोग और उनके कीटाणु आदि वहीं समाप्त हो जाते थे। उनकी कब्र आदि के लिए किसी स्थान की भी आवश्यकता नहीं थी, केवल कुछ लकड़ी खर्च होती थी, जो हर जगह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। आज इस परम्परा का महत्व संसार में सभी स्वीकार कर रहे हैं।  


7. हमारी संस्कृति में दैनिक हवन पर बहुत जोर दिया जाता था। इसके द्वारा वातावरण की शुद्धि करना और रोगों से दूर रहना ही मुख्य उद्देश्य था। अपने प्रभु पर विश्वास अर्थात् आस्तिकता का निर्माण होना भी इसका एक अन्य उद्देश्य था। आजकल इसका उपहास किया जाता है, लेकिन इसकी महत्ता समय-समय पर सामने आ ही जाती है, चाहे वह खतरनाक गैसों के रिसाव के समय हो या कोरोना जैसे वायरस के समय। 


इन सब उदाहरणों से पता चलता है कि हमारे पूर्वज बहुत दूरदर्शी और महान् थे, जिन्होंने स्वस्थ और सुखी रहने के ये सूत्र अपनी संस्कृति में सम्मिलित किये थे और जिनका पालन करना प्रत्येक के लिए अनिवार्य होता था। जो इनका पालन करते थे उनको ही आर्य कहा जाता था और जो इनका पालन नहीं करते थे उनको अनार्य अर्थात् राक्षस जैसे नामों से पुकारा जाता था। संसार को पुनः इस संस्कृति  को पूर्ण रूप से अपनाना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने जो नारा दिया था- ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम्’ उसका भी उद्देश्य यही था। उनके स्वप्न को साकार करने का प्रयास करना हमारा परम कर्तव्य है।


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*


आशा जाकड़

मन्दिरों में हो रही जय- जयकार
प्रभुजी सुन लो भक्तों की पुकार।।


कोरोना का आया वायरस बुखार
पूरे संसार में मच रहा है हाहाकार।
हाथ धोओ, हाथ जोड़ो अपनाओ
हमारी भारतीयता के हैं ये संस्कार
इससे ही  होगा जगती का उद्धार।
प्रभुजी सुनलो  भक्तों की पुकार।।


स्कूल - कालेज सब  बन्द होगए
खेल के मैदान भी अब सूने होगए 
बाजार- आफिस तक बन्द  होगए
अपने ही घर में सब कैद से होगए
माताओं का बढ़ा कार्य - आकार।
प्रभुजी सुनलो भक्तों की पुकार ।।


गरीबों की छिन गई रोजी और रोटी
जरूरी काम की होरही बहुत खोटी
मांसाहारी अब  शाकाहारी बन गए
जानवरों की नहीं खायेंगे अब बोटी
कैसे चलायेंगे  अपना घर -परिवार।
प्रभु जी सुनलो भक्तों की  पुकार।।


 आशा जाकड़
9754969496


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

कोरोना।
तुम कुछ नही बिगाड सकती भारतीयो का।
तुम्हे मालुम नही यहां की देवी शक्तियो का।
तुम इट्ठलाकर चलना तो चाह.रही हो।
सामना नही कर  पाओगी,यहा की विभूतियो का।
आज तुम्हे पता नही शायद तुम चीन से हो।
या कही और किसी विदेशी धरातल से हो।
यह देव तुल्य देश है, यहा की रानी भारत मां है।
ऊसके आगे कोई न टीकता, है वे ऐसी कृतियो का।।
अनुपम यहां की रीत है, और  सबमे प्रीत है।
चाहे अलग रहते है धर्म, पर एक जीत है।
आज पूरे देश मे एक साथ एक दिन एक ही वक्त पर हो जायेगा हवन तो।
ऐसे ही मार तुझे देगे, ये देश है संस्कृतियों का ।
इसलिए अच्छा है कि तुम चली जाओ।
लौटकर कभी दोबारा यहां मत आओ।
जिंदगी मे ऊन्ही के आसपास रहना।
जो मेवा,सेवा ,छोडकर कुछ तो भी करते है।
और तुझ जैसी बीमारी सभी दूर फैलाते है।
देखोरीवाज आकर यहां की प्रकृतियो का।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

आपका व्यक्तित्व।
क्या आप पढ लिख जाने के बाद 
उस पढाई का सद्पयोग करते है।
क्या आप किसी बडे पद पर है।
और विनम्रता से रहते है।
क्या आपके मन मे किसी दिन दुखी व्यक्ति, पशु पक्षी के प्रति करूणा का भाव आता है।
क्या आप बात बात पर अंह ना लाकर चलो होगा, पर रहते है।
क्या आप तन से नही मन मस्तिष्क से अपने आप को स्वच्छ महसूस करते है।
क्या आप हमेशा सच का साथ देते है।
क्या आप ईमानदारी की कमाई ग्रहण करते है।
और क्या आपके मन मे ईषा और काम ,राग,और द्धेष की भावना नही है।
अगर उपरोक्त बाते आप मे है। तब आप स्वयं एक संत है। आपको फिर किसी अन्य बातो मे समय नष्ट नही करना है।
आप देव तुल्य है।
और यदि इसमे से एक दो भी अवगुण है तो तत्काल हटाने की कोशिश करे, समय कम है सांसो का साथ पता नही कब तक है। तो ईश्वर के सामने खडा होना है।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री प्रीति महिमामृतम"


प्रीति रसायन औषधी का कर नित रसपान।
आदि काल से अद्यतन यह मूलक सद्ज्ञान।।


करो सदा रसपान इसी का।नित्य करो गुणगान इसी का।
जिसके पास प्रीति रसधारा।वही जगत में सबसे प्यारा।।
जिसे प्रीति का ज्ञान नहीं है।जग में उसका मान नहीं है।।
समझ प्रीति को परम सुन्दरी।यह अति मादक तरल मनहरी।।
जिसके उर में प्रीति बरसती।वहीं सदा मानवता रहती।।
जिसे प्रीति से नहीं प्रीति है।उर में उसके घृणित नीति है।।
जहाँ प्रीति है तहँ परमेश्वर।प्रीति बिना यह जगत भयंकर।।
प्रितिपरक भावों में जीना।अति मनमोहक प्याला पीना।।
रहना सदा प्रीति के संगा।मिल जायेंगी पावन गंगा।।
प्रीति सरित में सदा नहाओ।प्रीति वन्दना प्रति दिन गाओ।।
खो जाओ अपने ही भीतर।रखा हुआ कुछ नहीं है बाहर।।


अन्तःपुर में बैठकर करो प्रीति का जाप।
इस प्रकाश की कोठरी में नहिं जड़-संताप।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना"


आज सब जगह कोरोना की चर्चा है,
लगता है मानो गधे के लिए गणित और भौतिकी का पर्चा है,
कुछ पढ़ रहे हैं कुछ रट रहे हैं,
कुछ डट रहे हैं कुछ कट रहे हैं,
सर्वत्र साफ-सफाई की बात हो रही है,
फिनायल का छिड़काव और दवाई चल रही है,
मुँह- नाक पर मास्क है,
अच्छा टास्क है,
 लॉक आउट -रेस्टोरेंट होटल स्कूल और सिनेमा हाल हैं,
कर्मकार और उपभोक्ता बेहाल हैं,
कोरोना पर रोना है,
अथवा खुद पर रोना है,
अलगाव बढ़ रहा है,
कोरोना कोसा जा रहा है,
कोरोना की फौज क्रमशः बढ़ रही है,
आबादी भयभीत हो रही है,
लोग तरह-तरह के घरेलू नुस्खे बतला रहे हैं,
भारतीय संस्कृति की याद दिला रहे हैं,
दहशत ज्यादा है,
मास्क बेचनेवालों का फायदा है,
महामारी फैलेगी,
भूखमरी बढ़ेगी,
यह दुर्योग है या संयोगा?
अथवा चीन का दूषित दानवी प्रयोग?
कोरोना!तुम कब मरोगे?
क्या उच्च तापमान पर जरोगे?
तुम चमगादड़ के जूस के  विष-जन्तु हो?
अथवा मांसाहार के परिणामी आगन्तु हो?
तुम्हें मारना है मारकर रहेंगे,
तुम्हें कुचलने के लिये आगे बढ़ेंगे,
तुम हारोगे भगोगे,
डरोगे मरोगे,
भारत की विजय होगी,
विषैली दरिंदगी पराजित होगी,
सत्यमेव जयते होगा,
विजयी भव का कमल खिलेगा।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सुंदरा"


सुंदरा की चादरों पर नाम लिख,
त्याग का संदेश देते राम लिख,
कागजी संसार का क्या अर्थ है,
प्रेम का इजहार करते श्याम लिख।


चेतना के द्वार का विस्तार कर,
जटिल जड़ की वासना पर वार कर,
ज्ञान में ही रमण करना ध्येय हो,
बुद्ध के संमार्ग की रफ्तार धर।


पंथ पावन चिन्तना का अनुगमन,
छोड़ चल उसको करे जो विषवमन,
मत बनाना ताड़ तिल का  बन्धुओं,
ठहर जाओ देख प्रिय शिव आगमन।


हृदय को आकार दो इस जगत का,
सुन सदा संवाद प्यारे हृदय का,
पूजिये संसार को रख ह्रदय में,
गुनगुनाओ गीत गाओ प्रणय का।


हो अहर्निशं राम की ही भावना,
रात-दिन हो विश्व की शुभ कामना,
सुन्दरालय सा बने उरधाम- मन,
सुंदरा हो सुन्दरी सद्भावना।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

................ करोना.................


पड़ोसी मुल्क से आया है करोना।
पहले की तरह सत्कार  करो ना।।


ये जितना भी चाहे मचाए आतंक;
इससे कोई भी  जरा भी डरो ना।।


खुद को,आसपास को रखो साफ;
इसमें एकदम  कोताही  करो ना।।


खानपान पर रखो समुचित ध्यान;
शारीरिक क्षमता  कम  करो  ना।।


इसके लिए जागरूकता फैलाकर;
इसको  एकदम ही  बढ़ने दो ना।।


इस बीमारी को निर्मूल करने हेतु ;
अपनी बीमारी को छिपाओ  ना।।


इस लड़ाई में हम जीतेंगे"आनंद";
आत्मविश्वास को  कम करो ना।।


- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


रीतु प्रज्ञा      करजापट्टी , दरभंगा, बिहार

दिनांक-18-03-2020
विषय-सावधान


रहो सावधान हरदम प्राणि,
पढ़, लिखकर बनो ज्ञानी।
स्वच्छता का रखो ध्यान,
दीर्घायु होगा आपका प्राण।
समझकर निकालो शब्द म्यान,
मधुर वाणी बनाए महान।
मत बहाओ फिजूल पानी,
होगी तुम्हें ही परेशानी।
नियम याद रखना यार,
दाएं-बाएं देख सड़क पार।
रहो सर्वत्र हरपल चौकन्ना,
पूरी होगी सब तमन्ना।
मत बनना उल्लू कभी,
सबकी बचाना संपत्ति सभी।
हर क्षेत्र लाओ वसंत,
दुश्मनों को करो पस्त,
सत्संग करो हमेशा संत,
आँगन आएगी खुशियाँ अनंत। 
           रीतु प्रज्ञा
     करजापट्टी , दरभंगा, बिहार
स्वरचित एवं मौलिक


आशीष पान्डेय जिद्दी

दोहा मुक्तक


मचा हुआ है विश्व में,देखो हाहाकार।
कोरोना का वायरस,चीनी आविष्कार😀।
कहें महामारी बना,घातक है यह रोग,
स्वास्थ्य संगठन कर रहे,बचने हेतु प्रचार।


कोरोना के नाम की,ऐसी चली बयार।
सकल विश्व है ढूँढ़ता,एक मात्र  उपचार।
जीवन पर इस रोग का,ऐसा हुआ प्रभाव,
मंद हुये धंधे सभी,गूँजे हाहाकार।


अपनों से भी दूरियाँ,गैरों से अलगाव।
हैं सतर्क सब लोग अब,ऐसा हुआ प्रभाव।
मासाहारी कर रहे,शाकाहारी भोज,
कोरोना का श्रेय है,संस्कृति में बदलाव।
             आशीष पान्डेय जिद्दी।
9826278837    १८/०३/२०२०


सत्यप्रकाश पाण्डेय

इश्क ने जलाया इस कदर कि राख हो गये
देखे थे जो सपने वह जलकर खाक हो गये


तुम्हारी सूरत ने लुभाया हम पास आते गये
तुमको याद रखा और सबको हम भुलाते गये


समझकर बफा खुशियां तुम पर लुटाई हमने
करोगी बेबफाई न सोच थी नहीं थे ऐसे सपने


इश्क ईश्वर है रब है खुदा और न जाने है क्या
कर बैठे बिना समझे इश्क के मायने है क्या


मत करना कोई इश्क वरना शलभ बन जलेगा
पछतायेगा सत्य और जीवन भर वह खलेगा।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निरुपमा मिश्रा 'नीरू' - रनापुर,हैदरगढ़ - बाराबंकी

दोहे- कोरोना का कहर


कोरोना के खौफ से, सहमा हुआ समाज |
वैज्ञानिक हर देश के, खोजें अभी इलाज||


ज्वर,खाँसी, सिरदर्द भी,लगे कष्टमय साँस|
अविलंब जाँच के लिए, रहें चिकित्सक पास||


बीमारी के नाम से , मत रहिये भयभीत|
भेद तीन पहचानिये,ज्वर,खाँसी अरु शीत||


रखें संक्रमित व्यक्ति से, खुद को निश्चित दूर|
अपने मुख अरु नासिका, ढकिये आप जरूर||


अभी रोग उपचार का, नही सटीक साधन|
सही नियम ,आचार का, करें पूरा पालन||


करबद्ध अभिवादन से,संयमित हो मिलाप|
व्यक्तिगत संबंधों में, सतर्क रहिये आप||


संक्रमण के प्रसार से,करिये सभी बचाव|
साफ रखिये हाथ सदा, अपनाइये सुझाव||


जनसमूह ज्यादा जहाँ, रहें वहाँ से दूर|
व्यर्थ भ्रमण करिये नही, रखिये ध्यान जरूर||


निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - रनापुर,हैदरगढ़ जिला- बाराबंकी
मोबाइल - 8756697686


परमानंद निषाद* ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)

प्यार के मौसम में


दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
तेरे लिए दिल बेकरार है,
तुझसे एक बार मिलने को।
मन और दिल मेरा करता है,
झूठ बोल के मै आता हूं।
तुझसे मिलने के लिए,
गुलाब का फूल बहाना है।
कैसे बताऊं दिल का हाल,
हरपल तेरी याद आता है।
सबके जुदाई से रह सकता हूं,
तेरे जुदाई से नही सकता हूं।
दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
दिल की बेचैनी बढ़ रहा,
हरपल तेरी याद मे।
तेरी चूड़ी खनक रहा है,
मचा रहा दिल मे हलचल।
नजराना है तेरे प्यार का,
तेरी याद सताने लगा है।
दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
****************************
*परमानंद निषाद*
ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव
तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)
मोबाइल- 7974389033
ईमेल- Sachinnishad343@gmail.com


निशा"अतुल्य"

मन बंजारा
18. 3.2020


मन बंजारा भटक रहा है करने को अपनी पहचान
कहाँ कहाँ मैं ढूँढू तुमको पार करूँ कैसे व्यवधान


प्रभु बहाओ ज्ञान की गंगा हो जाऊं मैं भव से पार
जानूँगी मैं स्वयं को कैसे,करवाओ इसकी पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


राम नाम का जपना मुझको अब भाता है सुबह शाम 
ध्यान लगा स्वयं को जानु करवाओ स्वयं से पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


धूप दीप मैं कुछ ना जानू फूल चढ़ाऊँ कैसे श्याम 
चंदन तिलक लगाऊं कैसे बतलाओ मुझको घनश्याम


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


नंगे भूखे दिखते मुझको मन विचलित है सुबह शाम
कर्म परिभाषा सिखाऊं कैसे,प्रभु देदो मुझको ये ज्ञान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


आ जाओ अब एक बार प्रभु दे दो फिर गीता का ज्ञान
कर्म क्षेत्र है जीवन सबका फल की इच्छा हो न प्रधान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।।।बरेली

स्वच्छता
मुक्तक माला
1..............
हर किसी को  स्वच्छता के लिए 
हिस्सेदारी निभानी होगी।


सफाई घर सड़क दफ्तर की भी
स्वयं ही  करानी  होगी ।।


न कचरा फेंके और न ही  किसी
को  दें  कहीं  फेंकने ।


ये जिम्मेदारी मिल कर हम सब
को ही दिखानी होगी।।


2............
यूँ  बढ़ता जा रहा है  हर जगह
अम्बार  पॉलिथीन  का।


हम सब को  जरा भी एहसास
नहीं है जुर्म संगीन का।।


यदि यूँ ही करते रहे  हम दोहन
प्रक्रति   का    प्रतिदिन ।


कदापि  स्वप्न  साकार  न  होगा
दुनिया    रंगीन     का ।।


3...........
वृक्ष   होते   हैं अमृत पुत्र  मानो
धरती  के  श्रृंगार ।


पर्यावरण   की  रक्षा   करते यह
वर्षा के   आधार ।।


प्रक्रति से न करें   हम   सब  यूँ
खिलवाड़     अधिक।


अन्यथा रहेगा  केवल   बाढ़ ओ
सुनामी से ही सरोकार।।


4...............
स्वच्छजल शुद्धवायु साफ़ जगह
ही सबका जवाब है।


निरोगी काया का तो स्वच्छभारत
से   ही   ख्वाब    है।।


आओ सब  मिल कर  रखें  अपने
आस  पास  को  साफ।


हज़ार  लाभों  वाला  यह स्वच्छता           अभियान  नायाब है।।


*रचयिता।।।।। एस के कपूर श्री हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब।।।। 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*कोरोना*
विधा : गीत


जान ले रहा है कोरोना,
अब हिंदुस्तान में।
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


कैसी बीमारी ये आई,
जान पर आफत आई।
न कोई समझे न ही जाने,
बस हाँ में हाँ सबकी मिलने।
कैसे ले रही है,
जान इंसानों की।
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


किसी का पाप,
कही पर आया।
बेगुनाहों लोगो को,
इस ने रुलाया।
मर भी रहे है, 
बेहगुना इंसान जन।
कैसे बच इस से,
अब हम इंसान जन?
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


जान ले रहा है कोरोना,
अब हिंदुस्तान में,
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
18/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जिस नर के मन में,यज्ञ करने का संकल्प।
आसक्ति से रहित,कर्मबन्धन नहीं अल्प।


चेतना ज्ञान की अवस्थिति,सदाचार युक्त।
सदभावों से प्रेरित,जीवन बन्धन से मुक्त।


अर्पण प्रक्रिया ब्रह्म,हवि योग्य द्रव्य ब्रह्म।
हवन कर्ता भी ब्रह्म,फल मिले वो ब्रह्म।


यज्ञ का आचरण,या जीवन का आधार।
हर आचरण यज्ञ,न हो आसक्ति अहंकार।


संयम की अग्नि,हों इंद्रियों की समिधाएं।
स्वार्थ से परे रहें,निश्चय पवित्र हो जाएं।


गीता में श्रीकृष्ण,समझाएं यज्ञ स्वरूप।
कृपा करो सत्य पै,समझे जीवन रूप।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"ख़्वाहिश"*
"ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनो का-
छूटता रहा।
अपनों के छल से साथी,
जीवन में मन-
टूटता रहा।
कटुता और टूटन मन की,
उससे जीवन-
बिखरता रहा।
बढ़ती रहीं आगे बढ़ने की ख़्वाहिश,
रूका न सफ़र जीवन का-
बस अपनों का संग छूटता रहा।
ख़्वाहिशें बन गई अभिशाप,
जीवन में घर -
ढूँढ़़ता रहा।
ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनों का -
छूटता रहा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
 sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          18-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

😌😌   कोरोना कहर   😌😌


प्रश्न चिन्ह मन है सभी,
                  कल क्या होगा यार।
ये कोरोना वायरस, 
                   करे न हम पर वार।


चिंतित मन में हैं सभी, 
                 क्या जनता सरकार। 
मचा हुआ हर देश में, 
                       देखो  हाहाकार।


डरे हुए हैं लोग सभी, 
                      डरी हुई सरकार। 
अर्थव्यवस्था  का  किया, 
                        इसने  बंठाधार।


ख़ौफ़ ख़ुदा का है नहीं, 
                     डरे नहीं भगवान। 
ये करोना वायरस, 
                   लेगा सबकी जान।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌹🌹वाणी वन्दना🌹🌹
   निर्मल करके तन_ मन सारा,
   सकल विकार मिटा दो माँ,
    बुरा न कहे माँ किसी को भी
    विनय यह स्वीकारो  माँ।


      अन्दर  ऐसी ज्योति जगाओ
      हर  जन का   उपकार करें,
       मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय
       उनसे मुक्ति दिलाओ  माँ।


        प्रज्ञा  रूपी किरण पुँज तुम
        हम तो निपट  अज्ञानी है,
         हर दो अन्धकार तन_ मन का
          माँ सबकी नयै पार पार करो।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
🙏🏻🌹कालिका प्रसाद सेमवाल🌹🙏🏻


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