देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

................ करोना.................


पड़ोसी मुल्क से आया है करोना।
पहले की तरह सत्कार  करो ना।।


ये जितना भी चाहे मचाए आतंक;
इससे कोई भी  जरा भी डरो ना।।


खुद को,आसपास को रखो साफ;
इसमें एकदम  कोताही  करो ना।।


खानपान पर रखो समुचित ध्यान;
शारीरिक क्षमता  कम  करो  ना।।


इसके लिए जागरूकता फैलाकर;
इसको  एकदम ही  बढ़ने दो ना।।


इस बीमारी को निर्मूल करने हेतु ;
अपनी बीमारी को छिपाओ  ना।।


इस लड़ाई में हम जीतेंगे"आनंद";
आत्मविश्वास को  कम करो ना।।


- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


रीतु प्रज्ञा      करजापट्टी , दरभंगा, बिहार

दिनांक-18-03-2020
विषय-सावधान


रहो सावधान हरदम प्राणि,
पढ़, लिखकर बनो ज्ञानी।
स्वच्छता का रखो ध्यान,
दीर्घायु होगा आपका प्राण।
समझकर निकालो शब्द म्यान,
मधुर वाणी बनाए महान।
मत बहाओ फिजूल पानी,
होगी तुम्हें ही परेशानी।
नियम याद रखना यार,
दाएं-बाएं देख सड़क पार।
रहो सर्वत्र हरपल चौकन्ना,
पूरी होगी सब तमन्ना।
मत बनना उल्लू कभी,
सबकी बचाना संपत्ति सभी।
हर क्षेत्र लाओ वसंत,
दुश्मनों को करो पस्त,
सत्संग करो हमेशा संत,
आँगन आएगी खुशियाँ अनंत। 
           रीतु प्रज्ञा
     करजापट्टी , दरभंगा, बिहार
स्वरचित एवं मौलिक


आशीष पान्डेय जिद्दी

दोहा मुक्तक


मचा हुआ है विश्व में,देखो हाहाकार।
कोरोना का वायरस,चीनी आविष्कार😀।
कहें महामारी बना,घातक है यह रोग,
स्वास्थ्य संगठन कर रहे,बचने हेतु प्रचार।


कोरोना के नाम की,ऐसी चली बयार।
सकल विश्व है ढूँढ़ता,एक मात्र  उपचार।
जीवन पर इस रोग का,ऐसा हुआ प्रभाव,
मंद हुये धंधे सभी,गूँजे हाहाकार।


अपनों से भी दूरियाँ,गैरों से अलगाव।
हैं सतर्क सब लोग अब,ऐसा हुआ प्रभाव।
मासाहारी कर रहे,शाकाहारी भोज,
कोरोना का श्रेय है,संस्कृति में बदलाव।
             आशीष पान्डेय जिद्दी।
9826278837    १८/०३/२०२०


सत्यप्रकाश पाण्डेय

इश्क ने जलाया इस कदर कि राख हो गये
देखे थे जो सपने वह जलकर खाक हो गये


तुम्हारी सूरत ने लुभाया हम पास आते गये
तुमको याद रखा और सबको हम भुलाते गये


समझकर बफा खुशियां तुम पर लुटाई हमने
करोगी बेबफाई न सोच थी नहीं थे ऐसे सपने


इश्क ईश्वर है रब है खुदा और न जाने है क्या
कर बैठे बिना समझे इश्क के मायने है क्या


मत करना कोई इश्क वरना शलभ बन जलेगा
पछतायेगा सत्य और जीवन भर वह खलेगा।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निरुपमा मिश्रा 'नीरू' - रनापुर,हैदरगढ़ - बाराबंकी

दोहे- कोरोना का कहर


कोरोना के खौफ से, सहमा हुआ समाज |
वैज्ञानिक हर देश के, खोजें अभी इलाज||


ज्वर,खाँसी, सिरदर्द भी,लगे कष्टमय साँस|
अविलंब जाँच के लिए, रहें चिकित्सक पास||


बीमारी के नाम से , मत रहिये भयभीत|
भेद तीन पहचानिये,ज्वर,खाँसी अरु शीत||


रखें संक्रमित व्यक्ति से, खुद को निश्चित दूर|
अपने मुख अरु नासिका, ढकिये आप जरूर||


अभी रोग उपचार का, नही सटीक साधन|
सही नियम ,आचार का, करें पूरा पालन||


करबद्ध अभिवादन से,संयमित हो मिलाप|
व्यक्तिगत संबंधों में, सतर्क रहिये आप||


संक्रमण के प्रसार से,करिये सभी बचाव|
साफ रखिये हाथ सदा, अपनाइये सुझाव||


जनसमूह ज्यादा जहाँ, रहें वहाँ से दूर|
व्यर्थ भ्रमण करिये नही, रखिये ध्यान जरूर||


निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - रनापुर,हैदरगढ़ जिला- बाराबंकी
मोबाइल - 8756697686


परमानंद निषाद* ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)

प्यार के मौसम में


दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
तेरे लिए दिल बेकरार है,
तुझसे एक बार मिलने को।
मन और दिल मेरा करता है,
झूठ बोल के मै आता हूं।
तुझसे मिलने के लिए,
गुलाब का फूल बहाना है।
कैसे बताऊं दिल का हाल,
हरपल तेरी याद आता है।
सबके जुदाई से रह सकता हूं,
तेरे जुदाई से नही सकता हूं।
दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
दिल की बेचैनी बढ़ रहा,
हरपल तेरी याद मे।
तेरी चूड़ी खनक रहा है,
मचा रहा दिल मे हलचल।
नजराना है तेरे प्यार का,
तेरी याद सताने लगा है।
दीवाना हुआ प्यार के मौसम में,
तु मेरा पहला प्यार है।
****************************
*परमानंद निषाद*
ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव
तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)
मोबाइल- 7974389033
ईमेल- Sachinnishad343@gmail.com


निशा"अतुल्य"

मन बंजारा
18. 3.2020


मन बंजारा भटक रहा है करने को अपनी पहचान
कहाँ कहाँ मैं ढूँढू तुमको पार करूँ कैसे व्यवधान


प्रभु बहाओ ज्ञान की गंगा हो जाऊं मैं भव से पार
जानूँगी मैं स्वयं को कैसे,करवाओ इसकी पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


राम नाम का जपना मुझको अब भाता है सुबह शाम 
ध्यान लगा स्वयं को जानु करवाओ स्वयं से पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


धूप दीप मैं कुछ ना जानू फूल चढ़ाऊँ कैसे श्याम 
चंदन तिलक लगाऊं कैसे बतलाओ मुझको घनश्याम


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


नंगे भूखे दिखते मुझको मन विचलित है सुबह शाम
कर्म परिभाषा सिखाऊं कैसे,प्रभु देदो मुझको ये ज्ञान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


आ जाओ अब एक बार प्रभु दे दो फिर गीता का ज्ञान
कर्म क्षेत्र है जीवन सबका फल की इच्छा हो न प्रधान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।।।बरेली

स्वच्छता
मुक्तक माला
1..............
हर किसी को  स्वच्छता के लिए 
हिस्सेदारी निभानी होगी।


सफाई घर सड़क दफ्तर की भी
स्वयं ही  करानी  होगी ।।


न कचरा फेंके और न ही  किसी
को  दें  कहीं  फेंकने ।


ये जिम्मेदारी मिल कर हम सब
को ही दिखानी होगी।।


2............
यूँ  बढ़ता जा रहा है  हर जगह
अम्बार  पॉलिथीन  का।


हम सब को  जरा भी एहसास
नहीं है जुर्म संगीन का।।


यदि यूँ ही करते रहे  हम दोहन
प्रक्रति   का    प्रतिदिन ।


कदापि  स्वप्न  साकार  न  होगा
दुनिया    रंगीन     का ।।


3...........
वृक्ष   होते   हैं अमृत पुत्र  मानो
धरती  के  श्रृंगार ।


पर्यावरण   की  रक्षा   करते यह
वर्षा के   आधार ।।


प्रक्रति से न करें   हम   सब  यूँ
खिलवाड़     अधिक।


अन्यथा रहेगा  केवल   बाढ़ ओ
सुनामी से ही सरोकार।।


4...............
स्वच्छजल शुद्धवायु साफ़ जगह
ही सबका जवाब है।


निरोगी काया का तो स्वच्छभारत
से   ही   ख्वाब    है।।


आओ सब  मिल कर  रखें  अपने
आस  पास  को  साफ।


हज़ार  लाभों  वाला  यह स्वच्छता           अभियान  नायाब है।।


*रचयिता।।।।। एस के कपूर श्री हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब।।।। 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*कोरोना*
विधा : गीत


जान ले रहा है कोरोना,
अब हिंदुस्तान में।
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


कैसी बीमारी ये आई,
जान पर आफत आई।
न कोई समझे न ही जाने,
बस हाँ में हाँ सबकी मिलने।
कैसे ले रही है,
जान इंसानों की।
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


किसी का पाप,
कही पर आया।
बेगुनाहों लोगो को,
इस ने रुलाया।
मर भी रहे है, 
बेहगुना इंसान जन।
कैसे बच इस से,
अब हम इंसान जन?
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


जान ले रहा है कोरोना,
अब हिंदुस्तान में,
अब संभाल कर रहो, 
अपने अपने घरों में।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
18/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जिस नर के मन में,यज्ञ करने का संकल्प।
आसक्ति से रहित,कर्मबन्धन नहीं अल्प।


चेतना ज्ञान की अवस्थिति,सदाचार युक्त।
सदभावों से प्रेरित,जीवन बन्धन से मुक्त।


अर्पण प्रक्रिया ब्रह्म,हवि योग्य द्रव्य ब्रह्म।
हवन कर्ता भी ब्रह्म,फल मिले वो ब्रह्म।


यज्ञ का आचरण,या जीवन का आधार।
हर आचरण यज्ञ,न हो आसक्ति अहंकार।


संयम की अग्नि,हों इंद्रियों की समिधाएं।
स्वार्थ से परे रहें,निश्चय पवित्र हो जाएं।


गीता में श्रीकृष्ण,समझाएं यज्ञ स्वरूप।
कृपा करो सत्य पै,समझे जीवन रूप।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"ख़्वाहिश"*
"ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनो का-
छूटता रहा।
अपनों के छल से साथी,
जीवन में मन-
टूटता रहा।
कटुता और टूटन मन की,
उससे जीवन-
बिखरता रहा।
बढ़ती रहीं आगे बढ़ने की ख़्वाहिश,
रूका न सफ़र जीवन का-
बस अपनों का संग छूटता रहा।
ख़्वाहिशें बन गई अभिशाप,
जीवन में घर -
ढूँढ़़ता रहा।
ख़्वाहिशें बढ़ती रही जीवन की,
संग अपनों का -
छूटता रहा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
 sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          18-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

😌😌   कोरोना कहर   😌😌


प्रश्न चिन्ह मन है सभी,
                  कल क्या होगा यार।
ये कोरोना वायरस, 
                   करे न हम पर वार।


चिंतित मन में हैं सभी, 
                 क्या जनता सरकार। 
मचा हुआ हर देश में, 
                       देखो  हाहाकार।


डरे हुए हैं लोग सभी, 
                      डरी हुई सरकार। 
अर्थव्यवस्था  का  किया, 
                        इसने  बंठाधार।


ख़ौफ़ ख़ुदा का है नहीं, 
                     डरे नहीं भगवान। 
ये करोना वायरस, 
                   लेगा सबकी जान।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌹🌹वाणी वन्दना🌹🌹
   निर्मल करके तन_ मन सारा,
   सकल विकार मिटा दो माँ,
    बुरा न कहे माँ किसी को भी
    विनय यह स्वीकारो  माँ।


      अन्दर  ऐसी ज्योति जगाओ
      हर  जन का   उपकार करें,
       मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय
       उनसे मुक्ति दिलाओ  माँ।


        प्रज्ञा  रूपी किरण पुँज तुम
        हम तो निपट  अज्ञानी है,
         हर दो अन्धकार तन_ मन का
          माँ सबकी नयै पार पार करो।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
🙏🏻🌹कालिका प्रसाद सेमवाल🌹🙏🏻


सुनीता असीम

तीरगी ऐसी भरी के हो सबेरा भी नहीं।
सोचती हूँ फिर यही इतना अंधेरा भी नहीं।
***
यूँ समझ ले कोई खुद फनकार अपने को यहाँ।
पर बड़ा भगवान से कोई चितेरा भी नहीं। 
***
खूबसूरत घर मेरा हमने रचा जो प्यार से।
पर बया के घर से सुंदर ये बसेरा भी नहीं।
***
ये करोना नाग सा डसता चला है जिंदगी।
रोक ले इसको यहाँ ऐसा सपेरा भी नहीं।
***
हाथ सभी कामों से पहले हम भले धोते रहें।
वक्त पर मिलता सभी को यम लुटेरा भी नहीं।
***
सुनीता असीम
17/3/2020


निशा"अतुल्य"

सँग
17.3.2020


अरे छोड़ दे मनवा सारे राग
मन बैरागी कर ले आज 
सँग ना कुछ भी जाएगा
मंदिर मंदिर ढूंढ रहा जिसे
झांक ले अपने मन में आज ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान


भूखे को  तू खिला दें खाना
और प्यासे को पानी दान
मिल जाएंगे भगवन तुझ को
करले दर्शन भगवन जान ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान


प्रेम की गंगा में तू नहा कर 
दूर सभी कर अपने पाप
ख़ुद ईश्वर लेने आएंगे
तुझको अपने बैकुंठ धाम ।


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान।


जीवन आना जाना फेरा
दुनिया तो दो पल का डेरा
कर्म करे वो सँग जाएंगे
नही रहे कुछ अपने पास 


मन बैरागी कर ले अपना
कर ले तू ख़ुद की पहचान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

ख्वाहिश


मेरे जीवन को कृष्णमय बना दीजिए
दुःख दर्द को जिंदगी से भगा दीजिए


हो सबके प्रति मुहब्बत मेरे दिल में
प्यार प्रीति अपनाने की कला दीजिए


बेरुखी न घेरे न घृणा का भाव हो मन में
सद्भावों की पूंजी से दिल सजा दीजिए


हर पल हो कुर्बान परोपकार के लिए
लुटा सकूं खुशियां जग में दुआ दीजिए


बहुत आये धरा पर बहुत चले भी गये
मरकर भी याद रहूँ ऐसा करवा दीजिए


ख्वाहिश पाली मैंने जीऊं दूसरों के लिए
मेरी ख्वाहिश प्रभु साकार बना दीजिए।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *" सुनीति"*
"राजनीति में साथी  सुनीति वहीं,
जो दे जन जन को सुख-
स्वास्थ और रोज़गार सही।
विपक्ष हो या सत्ता पक्ष ,
जो सबको संग लेकर चले-
वही राजनीति में सुनीति सहीं।
शिक्षा का अधिकार मिले सबको,
साक्षर हो सभी-
अँगूठा टेक रहे न कहीं।
पर्यावरण हो मधुर अन्न जल हो भरपूर,
अहिंसा के पथ पर-
देश की प्रगति हो सही।
सार्थक हो संबंध पड़ौसी से,
हो न तनाव-
भाई-चारा हो वही।
राजनीति में साथी सुनीति वही,
जो दें जन जन को सुख-
स्वास्थ और रोज़गार सही।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः कविता:-
         *"सखियाँ"*
"जब-जब मिलती हैं जीवन में,
बिछड़ी हुई सखियाँ-
गले मिल रो लेती करती देर तक बतियाँ।
कभी हँसती कभी रोती,
सुन कर कही-अनकही-
जीवन की बतियाँ।
याद कर खुशी के पल साथी,
गुनगुनाने लगती गीत-
संग मिलकर सखियाँ।
सखी सखी संग चली जो,
भूली न वो कभी -
सुख देने वाली रतियाँ।
मिल कर बिछड़ने का दर्द,
कहती रही-
संग बैठ सखियाँ।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता 17-03-2020


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

................टूटे ख्वाब...................


कैसे   कटेगी  जिंदगी , बिन  तुम्हारे  ।
अब जीना पड़ेगा , ख्वाबों  के सहारे।।


अब तक थे ख्वाब , दिल  से अज़ीज़ ;
अब  पड़  गई  है  , दिल  में   दरारें  ।।


दिल था किसीका ,आज अपना हुआ;
लूट गई है  फ़िज़ां से , मन की बहारें।।


मन की व्याकुलता , की हद  हो  गई ;
खामोशी  ओढ़   ली , चन्दा-सितारे ।।


जिंदगी हुई तबाह,आरज़ू हुए खामोश;
मौसम-ए-खिज़ा , ये करती है इशारे।।


उल्फ़त की जहाँ से, हुए जब रुसवा ;
अब ख़ुदा ही,बिगड़ी तक़दीर सँवारे।।


लौट  आ  तू  मेरे , उजड़े   चमन  में  ;
गले  लगाने  बैठा  हूँ , बाहें  पसारे  ।।


खिज़ां की जगह,आएगी बहार कभी;
पड़ा दर पे"आनंद",उम्मीद के सहारे।।


-------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हो मेरे जीवन सुमन तुम,
क्यों मुरझाये से लगते हो।
छोड़ के अपना सौंदर्य,
क्यों अलसाये से रहते हो।।


तेरी सुरभि से सुरभित,
मैं महक खुशी की फैलाता।
जब तुम ही बिखर गए तो,
कैसे गीत खुशी के गाता।।


तेरी कलियां खिलती थीं,
देख मेरा आनन मुस्काता।
जीवन ज्योति प्रखरता से,
मकरन्द हृदय पर छा जाता।।


ललचायी तितली सा मन,
यौवन पराग तेरा पाने को।
मदहोश किये मांसल तन,
व्याकुल रहता तुझे पाने को।।


कोई कुदृष्टि का झौंका,
कैसे बदन जला गया तेरा।
तू सृजा था सत्य चमन को,
चुरा लेगया को आश्रय मेरा।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*विश्वास*
विधा: कविता


मुसीबत का पहाड़, 
कितना भी बड़ा हो।
पर मन का विश्वास,
उसे भेद देता है।
मुसीबतों के पहाड़ों को, 
ढह देता है।
और अपने कर्म पर,
जो भरोसा रखता है।।


सांसारिक उलझनों में,     
उलझा रहने वाला इंसान।
यदि कर्म प्रधान है तो,
सफलता से जीयेगा।
और हर कठनाईयों से
बाहर निकल आएगा।
अपने पुरूषात से।।


कहानियाँ सफलता की
इंसान ही लिखता है।
बड़े बड़े पहाड़ो को
इंसान ही गिरता है।
और उसी में से ही
हीरा को निकलता है।
ये सब काम इंसान ही
अपने हाथों से करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
17/03/2019


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*शादी,,,,विवाह(हाइकु)*


शादी मेल है
दो व्यक्ति परिवार
प्रेम  बेल  है


शादी बंधन
निभेगी जब शादी
मन   नंदन


शादी का रिश्ता
दिया बाती सरीखा
तभी खिलता


शादी संबंध
विश्वास आधारित
ये अनुबंध


विवाह धर्म
बस समझदारी
एक ही मर्म


शादी अर्पण
सात वचनों का है
ये समर्पण


विवाह स्वर्ग
आप स्वयं बनाते
विवाह नर्क


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
       8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विश्व्यापी महामारी*
*कॅरोना(हाइकु)*


तुम डरो ना
नमस्ते को करो हाँ
ऐसे बचना


यह कॅरोना
बचाव ही तरीका
हाथ का धोना


एक ही टास्क
बाहर  निकलें  तो
लगा हो मास्क


सात्विक खाना
शुद्ध हो शाकाहारी
माँस कहो ना


ये महामारी 
मिल कर लड़ना
बीमारी हारी


छींक से दूर
दूरी एक मीटर
रखो जरूर


भीड़भाड़ न
घर से बाहर  तो
मत ही जाना


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*संघर्ष ही एक सफलता मंत्र*
*मुक्तक*


जो  दर्द ओ  गम   में  भी
रहता मुस्कराता है।


छाले हों   पाँव में  पर वो
चलता    जाता   है।।


संघर्ष से   ही   व्यक्ति  छू
सकता नई ऊँचाइयाँ।


वही अँधेरों में भी उजालों
को ढूंढ   लाता     है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस।* *बरेली।*

*समस्या का हल।आज नहीं तो कल*
*मिलता है।मुक्तक।*


जान लो कि  फल    मेहनत  का
हमें जरूर   मिलता  है।


देर से ही   सही पर  जरूर आज
नहीं तो कल मिलता है।।


कोई मुश्किल नहीं  ऐसी  जिससे
हम पार  ना   पा  पायें ।


खोजोगे तो हर समस्या का जरूर
हमें   हल   मिलता  है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस।*
*बरेली।*
मो      9897071046
          8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चिंतन चरित्र व्यवहार का मुरलीधर कैसे हो परिष्कार।
आत्म मूल्यांकन का ज्ञान नहीं न आध्यात्म से प्यार।।


न तत्वबोध न साधना नहीं जिनका श्रेष्ठ व्यक्तित्व।
झूठे दंभ की बेहोशी में जिनके सुंदर नहीं कृतित्व।।


नियोजन नहीं पुरुषार्थ का नहीं कोई जीवन लक्ष्य।
बौद्धिक विकास का प्रयास नहीं भोजन भक्ष्याभक्ष्य।।


हे माधव ऐसे जन को दीजिए जीवन जीने का ज्ञान।
बौद्धिक क्षितिज का विस्तार कर मेंटों तुम अज्ञान।।


व्यक्तित्व के हर आयाम को जाँचो परखो भगवान।
कृपा बनी रहे सदा सत्य पर रहे कृष्ण तेरा ध्यान।।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...