निशा"अतुल्य"

कहाँ नही हो
19 .3 .2020


कहाँ नही हो प्रभु तुम बोलो
क्यों ढूंढ रही ये अंखिया प्यासी
मन क्यों मेरा भटक रहा है 
काहे बात ये समझ ना पाती ।


निर्गुण हो तुम कहीं सगुण हो
रूप तुम्हारे अलग यहां हैं
कोई तुम को राम कहे है
कोई ॐ का नाद करे है ।


बोलो मन क्यों समझ न पाये
प्रभु बोलो तुम कहाँ नही हो ?
मन अर्पित चरणों मे तुम्हारे
वास करो तुम ह्रदय हमारे ।


तुम हो अनन्त अविनाशी
हर कण में है वास तुम्हारा
रूप धरा बारिश सूरज तुम
चाँद सितारे तुमरे धाती ।


प्रकृति का रूप निराला
ये ही रूप है तुमको भाया
जग के पालन हार तुम्ही हो
तुम तो हो घट घट के वासी ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।बरेली

*बहुत ही लाजवाब है ये जिन्दगी।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।*


यूँ जियो कि जैसे कोई सुनहरा
सा  ख्वाब है  जिन्दगी।


हर   मुश्किल   सवाल  का  भी
जैसे जवाब है जिन्दगी।।


जो   दोगे    वही  तो लौट   कर 
आयेगा तेरी जिन्दगी में।


यूँ  समझ लो  तुम कि   बहुत ही
लाजवाब है ये जिन्दगी।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।बरेली

*बिखरी हैं खुशियाँ चारों*
*ओर।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


बहुत  सस्ती हैं  खुशियां
बसती  इसी जहान   में।


मत  खोजो     उन्हें  दूर
कहीं  किसी मुकाम  में।।


छोटी  छोटी  खुशियां ही
बन जाती जाकर   बडी।


बस  सोच   हो   आपकी 
अच्छी   हर   काम     में।।


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली

*कल कभी आता नहीं है।।।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


मन हार कर तो कभी  कोई
जीत पाता   नहीं है।


बिना संघर्ष के ख्याति कभी
कोई  लाता  नहीं  है।।


मत इंतज़ार करते  रहो  कुछ
अच्छा करने के लिए।


बात ये एक जान लो कि कल
कभी  आता  नहीं  है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे छोड़ू नटवर तुमको 
तुम जीवन धन हो मेरे
मेरे मन मंदिर में प्रभुवर
बस शोभित विग्रह तेरे


गो लोक हो या धरा लोक
मैं तो रहूंगी साथ तुम्हारे
मुझ राधा के नटवर नागर
मैं तो छोड़ू न दामन प्यारे


नाचो गाओ व रास रचाओ
पर अपनी राधा के संग
राधा नहीं है प्रेयसी केवल
पुरुषोत्तम का अर्ध अंग


सत्य करें आग्रह मुरलीधर
कभी अलग नहीं होना
बृषभानु सुता के संग नाथ
मुझे कृतार्थ करते रहो ना।


श्री युगलरूपाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"लौट आये मेरा बचपन "*
"मन करता फिर से मेरा,
लौट आये मेरा बचपन।
खेलू खेल खिलौनों संग,
भूल जाऊँ जीवन की तड़पन।।
स्वार्थ नहीं बसता यहाँ,
ऐसा ही है- ये बचपन।
सब अपने से लगते फिर,
कोई नहीं यहाँ दुश्मन।।
हर पल भटकन भरी मन में,
कैसे-बीते ये जीवन?
मन करता फिर से मेरा,
लौट आये मेरा बचपन।।"
ःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
      19-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

😔 भारी सबसे विपदा आई 😔


छीन लिया सुख-चैन सभी का।
है  जंजाल   लगे   ये  जी   का।
मारें     तो    कैसे   हम    मारें,
बना न अब  तक इसका टीका।


और   न    कोई   है   ये   भाई। 
कहें   चीन    से    है   ये  आई।
कोरोना    है    नाम    सुना   है,
करे   न    कोई   असर   दवाई।


इससे  है  बस   बचकर  रहना। 
मेरा   नहीं    वैद्य   का   कहना।
मानो  कहना   तुम   भी   यारो, 
अगर   तुम्हें   है   जिंदा   रहना।


नहीं  किसी  से  हाथ  मिलाओ। 
भीड़- भाड़ में  मत  तुम जाओ।
छोड़ो       मांसाहारी       खाना,
केवल       शाकाहारी     खाओ।


बार-बार    हाथों    को    धोना।
आएगा     न    पास    कोरोना।
इतना  तो   कर  ही  सकते   हो,
अगर   नहीं   है  जीवन   खोना।


मानो     कहना     मेरा     भाई।
सबकी    इसमें    यार    भलाई।
नहीं    सुनो     ये    छोटी- मोटी,
भारी    सबसे     विपदा    आई।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

सरस्वती वंदना
************ 
हे मां सरस्वती
तुम प्रज्ञा रूपी किरण पुंज है,
हम तो निपट अंधेरा है मां।
हर दो मां अंधकार तन -मन का,
मां सबकी नयै पार कर दो।


मां हमरे अन्दर  ऐसा भाव जगाओ,
हर जन का उपकार करे।
हममें  जो भी कमियां हैं मां,
उनको हमसे दूर करो मां।


पनपें ना दुर्भाव कभी  हृदय में,
घर -आंगन उजियारा करो मां।
बुरा न देखें बुरा कहें  ना,
ऐसी सद् बुद्धि हमें दे दो मां।


मां हम तो निपट अज्ञानी है,
हमको सुमति तुम दे दो मां।
निर्मल करके तन-मन सारा,
सकल विकार मिटा दो मां।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कैसे लगे मन"


तुम्हारे बिना मन लगे भी तो कैसे,
तुम्हीं हो सितारे नयन के हमारे,
कसम खा के कहता हुआ बेसहारा,
तड़पता है दिल बिन तुम्हारे बेचारा।


बहुत दिन हुए इंतजारी में तेरे,
नहीं सुध तुझे है हो कैसे गुजारा,
हुए इतने निष्ठुर तुम कैसे बता तो,
देगा मुझे कौन अब वो सहारा।


पथरा गयी हैं ये आँखें हमारी,
यादें तुम्हारी सताती हैं प्यारी,
चले आओ प्यारे उदासी की बस्ती,
चमन में खिले पीत रंगों की क्यारी।


बरस जाओ बादल हरष जाये मनवा,
उदासीन मुखड़े से निकले अब गनवाँ,
पुरुवा हवा अब बहो बन के खुशबू,
मिले जिन्दगानी में सुन्दर सवनवां।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


,


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आत्म मंथन "


अंतस्थल ही सिन्धु सरीखा,
भीतर बैठा रत्न समुच्चय,
मथते रहना मथना सीखो,
मंथन से ही सबकुछ संभव।


जिसने खोजा मिला उसी को,
चुप जो बैठा पाया वह क्या?
करो परिश्रम मन से मित्रों!
बुद्धि -योग से मिल जाता सब।


करना अपना ही विश्लेषण,
चलते रहना करते चिन्तन,
कभी न थकना पार्थ नित्य बन,
आजीवन करना अन्वेषण।


आत्म विवेचन करते जाना,
मन में चाह स्वयं को पाना,
इधर-उधर मत भटको वन्दे,
एक राह पर जाना-आना।


अपनी त्रुटियाँ नित्य ढूढना,
बाहर से अच्छाई लेना,
सुन्दरता में रत्नाकर हैं,
रत्नाकर को ईश समझना।


रहना सीखो अन्तःपुर में,
अन्तःपुर के हरिहरपुर में,
हरिहरपुर में क्षीर-सिन्धु है,
अमृत खोजो क्षीरेश्वर में।


ज्ञानार्थी यह भंडारण है,
इसमें लक्ष्मीनारायण हैं,
यह पुरुषार्थ चतुष्ठय आतम,
काम मुक्त यह शिव गायन है।


ध्यान मग्न हो चित्त लगाओ,
शुक्ष्म रूप धर रच -बस जाओ,
बन विदेह आत्म का वासी,
देख रत्न रत्न बन जाओ।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


कवि परमानंद निषाद ग्रा0- निठोरा, पो थरगांव ,कसडोल, बलौदा बाजार(छग)

नव्या


नव्या मेरी प्यारी बहना।
घर रोशन करने आ गई ।
मान बढ़ाने माता-पिता का।
प्यारी बहना तु आ गई।
सूरज जैसे चमकता चेहरा।
चांद की तु वो लाली हो।
मुस्कुराते हो जब तु बहना।
बहुत प्यारी तुम लगती हो।
नव्या मेरी प्यारी बहना।
 तु है गंगा,तु है जमुना।
तु दिखाती निर्मल धारा।
सिंधु,साइना जैसी तु।
मान बढ़ाने आई है।
नव्या मेरी प्यारी बहना।
 हौसलों की उड़ान है तु।
तेरे चेहरे को देखकर।
दिल मे सकुन आ गया ।
नव्या है माता-पिता का।
मान,अभिमान और सम्मान।
अपने भैया परमानंद निषाद के।
कलाई मे राखी बांधने आ गई।
तु माँ बाप की इज्जत ईमान है।
तु है अपने भैया के। 
मान और जान।


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मानस व्याख्याता

श्री रामचरित मानस में गोस्वामी जी द्वारा भरत वन्दना


प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना।
जासु नेम ब्रत जाइ न बरना।।
राम चरन पंकज मन जासू।
लुबुध मधुप इव तजइ न पासू।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  भाइयों में सर्वप्रथम मैं श्रीभरतजी के चरणों को प्रणाम करता हूँ जिनका नियम और व्रत वर्णन नहीं किया जा सकता है और जिनका मन प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में भौंरे की तरह लुभाया हुआ है जो उनका सामीप्य कभी नहीं छोड़ता।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  गो0जी ने श्रीरामचरित मानस व विनय पत्रिका में श्रीभरतजी के नियम व व्रत का अद्भुत वर्णन किया है।अयोध्याकाण्ड के अन्तिम भाग में वे श्रीभरतजी के विषय में कहते हैं कि श्री भरतजी के नन्दीग्राम में रहने का ढंग,समझ,करनी,भक्ति, वैराग्य,निर्मल गुण और ऐश्वर्य का वर्णन करने में सभी सुकवि भी संकोच करते हैं क्योंकि वहाँ औरों की तो बात ही क्या,स्वयं शेष,गणेश और सरस्वती में भी उसका वर्णन करने की क्षमता नहीं है।यथा,,,
भरत रहनि समुझनि करतूती।
भगति बिरति गुन बिमल बिभूती।।
बरनत सकल सुकबि सकुचाहीं।
सेस गनेस गिरा गमु नाहीं।।
 श्रीगो0जी कहते हैं कि श्रीसीतारामजी के प्रेमरूपी अमृत से परिपूर्ण श्री भरतजी का जन्म यदि न होता तो मुनियों के मन को भी अगम यम,नियम,शम, दम आदि कठिन व्रतों का आचरण कौन करता?दुःख,सन्ताप,दरिद्रता, दम्भ आदि दोषों को अपने सुयश के बहाने कौन हरण करता?तथा इस कलियुग में तुलसीदास जैसे शठों को हठपूर्वक कौन प्रभुश्री रामजी के सम्मुख करता?यथा,,,
सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनम न भरत को।
 मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को।।
दुख दाह दारिद दम्भ दूषन सुजस मिस अपहरत को।
 कलिकाल तुलसी से सठिन्ह हठि राम सन्मुख करत को।।
भरत चरित्र का शेष भाग कल।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


बलरामसिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक EX LTR B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT

गोस्वामी जी द्वारा मिथिलेश जनक जी की वन्दना एवम उनके प्रति कृतज्ञता


प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू।
जाहि राम पद गूढ़ सनेहू।।
जोग भोग महँ राखेउ गोई।
राम बिलोकत प्रगटेउ सोई।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि अब मैं परिवार सहित राजा जनकजी को प्रणाम करता हूँ जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणों में गूढ़ प्रेम था जिसको उन्होंने योग और भोग में छिपा रखा था।जो प्रभुश्री रामजी को देखते ही प्रकट हो गया।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  मिथिला नरेश महराज श्री जनकजी की समस्त प्रजा ब्रह्मज्ञानी थी,इसीलिए गो0जी ने परिजनों सहित श्री जनकजी की वन्दना की।श्री जनकजी का प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में गूढ़ अथवा गुप्त प्रेम था जबकि महाराज दशरथजी का प्रेम प्रकट रूप से था।इसी कारण महाराज दशरथजी ने राम के वियोग में अपने प्राण त्याग दिये थे जबकि महाराज जनकजी का प्रेम प्रभुश्री रामजी को मिथिला में देखकर प्रकट हुआ था।श्री जनकजी योगपूर्वक भोग में अनासक्त होते हुए सदैव जिस अनिर्वचनीय तत्व का अनुभव करते थे और जिस आनन्द को प्राप्त होते थे, वह उन्हें प्रभुश्री रामजी के दर्शनों से प्राप्त हो गया।तभी तो उन्होंने यह सन्देह किया कि ये नररूपधारी राजकुमार वही परब्रह्म तो नहीं हैं।इसीलिए उन्होंने महर्षि विश्वामित्रजी से यह कहा था कि ये दोनों सुन्दर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक हैं।मेरा वैरागी मन इन्हें देखकर मुग्ध क्यों हो रहा है।इन्हें देखकर मेरे मन ने बलात ब्रह्मसुख को त्याग दिया है।यथा,,,
कहहु नाथ सुन्दर दोउ बालक।
मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।।
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा।
उभय वेष धरि की सोइ आवा।।
सहज बिरागरूप मन मोरा।
थकित होत जिमि चंद चकोरा।।
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ।
कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ।।
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।
बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा।।
।।जय जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


विष्णु असावा             बिल्सी ( बदायूँ )

कुण्डलिनी


1
माथा धुन रोता कृषक,कौन सुने फरियाद 
बारिश ओला वृष्टि से, फसल हुई बरबाद 
फसल हुई बरबाद, सुनाये किसको गाथा 
सभी भाग्य पर छोड़ ,पकड़कर बैठा माथा 


2
मानव तो हर ओर से,लिया आपदा घेर 
बारिश तो रुकती नहीं, ओलों के भी ढेर 
ओलों के भी ढेर,बना कोरोना दानव
सुन लो प्रभू पुकार,कहाँ अब जाये मानव


3
ईश्वर पर विश्वास तो,रखना होगा यार
सब कुछ उसके हाथ में ,पालेगा परिवार
पालेगा परिवार, सुनेगा फिर जगदीश्वर
बिनती करते लोग,आपदा हरना ईश्वर


              विष्णु असावा
            बिल्सी ( बदायूँ )


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" ऐतिहासिक नगरी हांसी , हिसार , हरियाणा ।

ग़ज़ल* 


छुप नहीं सकती हकीकत सूरत ये कैसी बना लें ।
फायदा दरियादिली का उनकी, बेशक से उठा लें ।।


मंदिरों में , मस्जिदों में , गर खुदा ये बस गया हो ,
हर कदम पर फिर ,नया मंदिर , नई मस्जिद बना लें ।


मत निहारो दूसरों की गलतियों को , दुख बढ़ेगा , 
ठीक है यह दूसरों से ले सबक , खुद को बचा लें ।


यह जगत होगा खफा , बाहों में आने से , सनम सुन ,
बेखबर हो एक दूसरे को निगाहों में बसा लें ।


"टेंपू" आंसू बहाने से बता , है फायदा क्या ? 
ख्वाब दिल में अब खुशी के , मुस्कुराकर हम सजा लें 


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो"
ऐतिहासिक नगरी हांसी ,
हिसार , हरियाणा ।


रचित **** 03 08 2010 
मो. 09992318583


मां संकलन सूची फायनल

मां मां मां मेरी मां रचनाकार सूची फायनल


प्रदीप भट्ट 7
नितेश कुमार अवस्थी 8
डॉ आभा माथुर 9
डॉ पूर्णिमा मंडलोई 10
अवधेश कुमार ‘रजत’ 11
ममता पटेल टीचर 12
रजनी रामदेव 13
हेमलता गोलछा 14
अनन्तराम चैबे ‘अनन्त’ 15
डॉ सारिका शर्मा 16
लकी निमेष 18
रवि रश्मि ‘अनुभूति’ 19
मणि बेन द्विवेदी 20
सूर्य करण सोनी ‘सरोज’ 21
कालिका प्रसाद सेमवाल 22
डॉ रमा ‘रश्मि’ 23
पंडित दुर्गादास पाठक ‘अनुराग’ 24
अजय जैन ‘विकल्प’ 25
मंजु लंगोटे 26
डॉ. सरला सिंह 27
डा. नीना छिब्बर 28
सुवर्णा परतानी 29
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय 30
रश्मि सक्सेना 31
अशोक बाबू माहौर 32
डाॅ अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’ 33
आशा जाकड़ 34
अनिल जाँगड़े ‘गौंतरिहा’ 35
चाँदनी सेठी कोचर 36
कंचन साहू ‘कृतिका’ 37
बाबू लाल शर्मा 38
दुर्गाप्रसाद नाग 39
आचार्य गोपाल जी 40
गायत्री जैन 41
मुन्नालाल मिश्र अनुज 42
मनीष कुमार रंजन 43
पूनम 44
अलका पांडेय 45
राजकिशोर मिश्र 46
रेनू सिंघल 47
राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ 48
सरोज सिंह सूरज 49
सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ 50
डॉ विद्यासागर मिश्र 51
आकांक्षा ‘अक्ष’ शंखधर 52
ब्रजेश कुमार शंखधर 53
गणेश मादुलकर ‘मुसाफिर’ 54
मधु शंखधर ‘स्वतंत्र’ 55
प्रदीप बहराइची 56
डाॅ. माधवी कुलश्रेष्ठ 57
डाॅ चन्देश्वर यादव 58
रचना सक्सेना 59
अनिता मंदिलवार सपना 62
अंजुमन मंसूरी ‘आरजू’ 63
डाॅ भारती वर्मा 64
ब्रह्मदेव शास्त्री ‘पंकज’ 65
बसंत कुमार शर्मा 66
गरिमा पटेल 67
काशवी दत्ता पुत्री पुलकित दत्ता 68
वीना श्रीवास्तव 69
नरेंद्र पाल जैन 70
नीतेन्द्र सिंह परमार ‘भारत’ 71
नौशाद वारसी 72
निरुपमा मिश्रा 73
प्रतिभा रामकृष्ण श्रीवास्तव 74
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा 75
राजेन्द्र कुमार टेलर ‘राही’ 76
रोहिणी शर्मा 77
रामगोपाल शर्मा 78
सुविधा पंडित 79
सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ 80
कवि शरद अजमेरा ‘वकील’ 81
शशि रंजना शर्मा 82
सुनीता असीम 83
विदुषी शर्मा 84
विनोद ओमप्रकाश गोयल 85
सैयद वसीम नकवी 86
ख्याति शिल्पी मौर्या 87
आनन्द वर्धन शर्मा 88
अरुणा अग्रवाल 89
सन्तोष कुमार राजपूत 90
अखिलेश तिवारी ‘डाॅली’ 91
सुनीता सिंह झज्झर 92
सारिका त्रिपाठी 93
डॉ मीतू सिन्हा 94
डॉ राजमती पोखरना सुराना 95
श्रीमती वैष्णो खत्री 96
मृदुल शरण 97
बृजेश कुमार अग्निहोत्री ‘पेण्टर’ 98
रजनी सैनी सहर 99
पुष्पा अवस्थी ‘स्वाती’ 100
शशि दीपक कपूर 101
रेखा भटनागर जैन 102
जय प्रकाश सूर्यवंशी 103
डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’ 104
देवेन्द्र सिंह राजपुरोहित 105
प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’ 106
ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’ 107
उर्मिला श्रीवास्तव 108
विनोद कुमार दवे 109
इलाश्री जायसवाल 110
डाॅ विनीता प्रजापति वेदांशी 111
सुधा मोदी “तरू” 112
डॉ नीरज अग्रवाल 113
डॉ उमा कटियार 114
डॉ सुधा चैहान ‘राज’ 115
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति 116
डॉ सरोज गुप्ता 117
डाॅ सुशीला सिंह 118
डॉ. स्वदेश मल्होत्रा ‘रश्मि’ 119
डॉ. राधाबल्लभ पांडेय ‘आलोक’ 120
आशुकवि नीरज अवस्थी 121
मनोज शर्मा 122
सीमा निगम 123
रत्ना वर्मा 124
शायर हिमाँशु 125
सविता बरई 126
एन एल एम त्रिपाठी पीताम्बर 127
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’ 128
सीमा गर्ग ‘मंजरी’ 129
डॉ. मृदुला शुक्ला ‘मृदु’ 130
डाॅ विजय कुमार सिंघल 131
आलोक शुक्ला 132
कवि डॉ रवीन्द्र प्रसाद 134
शेषाद्रि त्रिवेदी 135


प्रीति शर्मा "असीम"  नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

कविता 


शीर्षक- किताबें भी एक दिमाग रखती है


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के,
अनगिनत हिसाब रखती है।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती हैं।


किताबें जिंदगी में,
बहुत ऊंचा ,
मुकाम रखती है ।
यह उन्मुक् ,
आकाश में,
ऊंची उड़ान रखती है।


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं ।
जिंदगी के,
 अनगिनत हिसाब रखती हैं।


हमारी सोच के ,
एक -एक शब्द को ,
हकीकत की ,
बुनियाद पर रखती है।


किताबें जिंदगी को ,
कभी कहानी ,
कभी निबंध ,
कभी उपन्यास ,
कभी लेख- सी लिखती है ।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती है ।
जिंदगी के ,
अनगिनत हिसाब रखती है।


यह सांस नहीं लेती ।
लेकिन सांसो में ,
एक बसर रखती है।
जिंदगी की ,
रूह में बसर करती है।


स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम"
 नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


डॉ राजीव पाण्डेय 1323/भूतल,सेक्टर 2 वेबसिटी, गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

कोरोना पर केंद्रित एक गीत
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जीवन के हर मोड़ पे देते,
            गुरुजन निशिदिन राय।
मिले सफलता निश्चित हमको,
                  करलो सही उपाय।
बाद में क्यों रोना----


अनायास मत छुओ किसी को,
                     मिले न वैरी हाथ।
सभी असम्भव सम्भव कर लें, 
                   ना पकड़ें हम साथ।
मल मलकर हम हाथ रगड़ लें,
बाद में क्यों धोना--------


जब दिखता हो सामने संकट,
                    दो मीटर दूर रहें।
हैं दुर्गन्धों के घने कोहरे,
                   उनको बाय कहें।
समय शेष रहते ही कर लें,
 बाद क्यों खोना--------


खांसी खुल्लड और स्वांस के, 
                     हैं जीवन के रोग।
घण्टे एक परिश्रम के संग,
                    प्राणायामी योग।
उचित समय पर फसल उगालें,
 बाद में क्यों बोना---------


विषम परिस्थिति पड़े नअपनी,
                    कभी कुंद भी धार।
लोग हमारी बातें मानें, 
                 ज्यों ताज़ा अखबार।
शत प्रतिशत जीवन को जीलें,
बाद में क्यों पोना-------


डॉ राजीव पाण्डेय
1323/भूतल,सेक्टर 2
वेबसिटी, गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
मो0 09990650570
ईमेल-kavidrrajeevpandey@gmail.com


डाॅ विजय कुमार सिंघल

*अपनी हिन्दू संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है*


इस समय जब सारा संसार कोरोना वायरस जैसी भयावह समस्या से जूझ रहा है तो सभी यह अनुभव कर रहे हैं कि पाश्चात्य जीवन शैली और संस्कृति के बजाय हमारी प्राचीन हिन्दू जीवन शैली और संस्कृति ही स्वस्थ और सुखी रहने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसके कई कारण हैं जिनकी हम संक्षेप में यहाँ चर्चा करेंगे। 


1. अभिवादन करने की हमारी पद्धति ‘नमस्ते’ इस समय सारे संसार द्वारा अपनायी जा रही है। इसमें दोनों हाथ जोड़कर और हृदय के सामने रखकर कुछ सिर झुकाकर प्रणाम किया जाता है। इससे दूर से ही और एक साथ ही हजारों व्यक्तियों का अभिवादन किया जा सकता है। दोनों हाथ सामने रहने से किसी प्रकार के छल की कोई संभावना नहीं है। सिर झुकाने से विनम्रता का भाव आता है। हमारी संस्कृति में बड़ों का अभिवादन भी हाथ मिलाकर नहीं बल्कि पैर छूकर किया जाता है। विशेष अवसरों पर गले भी लगाया जा सकता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है।


2. अपने निवास और विशेष रूप से रसोई घर में जूते चप्पल उतारकर घुसना भी हमारी संस्कृति का अंग है। इससे बाहर के वातावरण के हानिकारक तत्व हमारे घर में प्रवेश नहीं करते और भोजन शुद्ध रहता है। वर्तमान में इस नियम में शिथिलता आ जाने के कारण बहुत हानि हो रही है।


3. हाथ पैर मुँह धोकर भोजन करना भी हमारी प्राचीन परम्परा रही है। इस परम्परा से हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता की कल्पना की जा सकती है। हाथ-पैर-मुँह आदि धोने से शरीर की गर्मी शान्त होती है और व्यक्ति आनन्दपूर्वक भोजन करने के लिए तैयार हो जाता है। इसके अनेक लाभ होते हैं। 


4. शाकाहार हमारी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण अंग रहा है। मुख्य रूप से पेड़ों के फलों का ही भोजन हमारे पूर्वज किया करते थे, जो प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते थे। बाद में अन्न भी उगाया जाता था और उससे भोजन बनाया जाता था। इसीकारण पेड़-पौधों-वनस्पतियों की पूजा करना हमारे धर्म का अंग बनाया गया। हमारी संस्कृति में कभी माँसाहार का प्रचलन नहीं रहा। हमेशा पशुओं के पालन और उनके दुग्ध आदि के सेवन पर बल दिया जाता था। गोहत्यारों को मृत्युदंड भी दिया जाता था। पशुओं पर दया करने का पाठ हमें बचपन में ही सिखा दिया जाता है। हर घर में पहली रोटी गाय की और अन्तिम रोटी कुत्ते की अवश्य बनायी जाती है। हमारी संस्कृति में चींटी से लेकर हाथी तक के कल्याण की कामना और व्यवस्था की गयी है।


5. पृथ्वी को माता मानना हमारी संस्कृति की विशेषता है। पृथ्वी हमें सबकुछ देती है, माता की तरह हमारा पालन-पोषण करती है। इसलिए हम उसके शोषण में नहीं, बल्कि दोहन में ही विश्वास करते हैं। हमारी खेती भी इस प्रकार होती थी कि पृथ्वी की उर्वरा शक्ति हमेशा बनी रहे। उसमें हानिकारक खादों का नाम भी नहीं था, बल्कि गाय के गोबर को खेतों में डाला जाता था। ब्रह्मांड में उचित सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास करना हमारी संस्कृति की ही विशेषता है।


6. हमारी संस्कृति में शवों का दाह संस्कार करना अनिवार्य होता था। इससे शरीर के सभी रोग और उनके कीटाणु आदि वहीं समाप्त हो जाते थे। उनकी कब्र आदि के लिए किसी स्थान की भी आवश्यकता नहीं थी, केवल कुछ लकड़ी खर्च होती थी, जो हर जगह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। आज इस परम्परा का महत्व संसार में सभी स्वीकार कर रहे हैं।  


7. हमारी संस्कृति में दैनिक हवन पर बहुत जोर दिया जाता था। इसके द्वारा वातावरण की शुद्धि करना और रोगों से दूर रहना ही मुख्य उद्देश्य था। अपने प्रभु पर विश्वास अर्थात् आस्तिकता का निर्माण होना भी इसका एक अन्य उद्देश्य था। आजकल इसका उपहास किया जाता है, लेकिन इसकी महत्ता समय-समय पर सामने आ ही जाती है, चाहे वह खतरनाक गैसों के रिसाव के समय हो या कोरोना जैसे वायरस के समय। 


इन सब उदाहरणों से पता चलता है कि हमारे पूर्वज बहुत दूरदर्शी और महान् थे, जिन्होंने स्वस्थ और सुखी रहने के ये सूत्र अपनी संस्कृति में सम्मिलित किये थे और जिनका पालन करना प्रत्येक के लिए अनिवार्य होता था। जो इनका पालन करते थे उनको ही आर्य कहा जाता था और जो इनका पालन नहीं करते थे उनको अनार्य अर्थात् राक्षस जैसे नामों से पुकारा जाता था। संसार को पुनः इस संस्कृति  को पूर्ण रूप से अपनाना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने जो नारा दिया था- ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम्’ उसका भी उद्देश्य यही था। उनके स्वप्न को साकार करने का प्रयास करना हमारा परम कर्तव्य है।


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*


आशा जाकड़

मन्दिरों में हो रही जय- जयकार
प्रभुजी सुन लो भक्तों की पुकार।।


कोरोना का आया वायरस बुखार
पूरे संसार में मच रहा है हाहाकार।
हाथ धोओ, हाथ जोड़ो अपनाओ
हमारी भारतीयता के हैं ये संस्कार
इससे ही  होगा जगती का उद्धार।
प्रभुजी सुनलो  भक्तों की पुकार।।


स्कूल - कालेज सब  बन्द होगए
खेल के मैदान भी अब सूने होगए 
बाजार- आफिस तक बन्द  होगए
अपने ही घर में सब कैद से होगए
माताओं का बढ़ा कार्य - आकार।
प्रभुजी सुनलो भक्तों की पुकार ।।


गरीबों की छिन गई रोजी और रोटी
जरूरी काम की होरही बहुत खोटी
मांसाहारी अब  शाकाहारी बन गए
जानवरों की नहीं खायेंगे अब बोटी
कैसे चलायेंगे  अपना घर -परिवार।
प्रभु जी सुनलो भक्तों की  पुकार।।


 आशा जाकड़
9754969496


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

कोरोना।
तुम कुछ नही बिगाड सकती भारतीयो का।
तुम्हे मालुम नही यहां की देवी शक्तियो का।
तुम इट्ठलाकर चलना तो चाह.रही हो।
सामना नही कर  पाओगी,यहा की विभूतियो का।
आज तुम्हे पता नही शायद तुम चीन से हो।
या कही और किसी विदेशी धरातल से हो।
यह देव तुल्य देश है, यहा की रानी भारत मां है।
ऊसके आगे कोई न टीकता, है वे ऐसी कृतियो का।।
अनुपम यहां की रीत है, और  सबमे प्रीत है।
चाहे अलग रहते है धर्म, पर एक जीत है।
आज पूरे देश मे एक साथ एक दिन एक ही वक्त पर हो जायेगा हवन तो।
ऐसे ही मार तुझे देगे, ये देश है संस्कृतियों का ।
इसलिए अच्छा है कि तुम चली जाओ।
लौटकर कभी दोबारा यहां मत आओ।
जिंदगी मे ऊन्ही के आसपास रहना।
जो मेवा,सेवा ,छोडकर कुछ तो भी करते है।
और तुझ जैसी बीमारी सभी दूर फैलाते है।
देखोरीवाज आकर यहां की प्रकृतियो का।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

आपका व्यक्तित्व।
क्या आप पढ लिख जाने के बाद 
उस पढाई का सद्पयोग करते है।
क्या आप किसी बडे पद पर है।
और विनम्रता से रहते है।
क्या आपके मन मे किसी दिन दुखी व्यक्ति, पशु पक्षी के प्रति करूणा का भाव आता है।
क्या आप बात बात पर अंह ना लाकर चलो होगा, पर रहते है।
क्या आप तन से नही मन मस्तिष्क से अपने आप को स्वच्छ महसूस करते है।
क्या आप हमेशा सच का साथ देते है।
क्या आप ईमानदारी की कमाई ग्रहण करते है।
और क्या आपके मन मे ईषा और काम ,राग,और द्धेष की भावना नही है।
अगर उपरोक्त बाते आप मे है। तब आप स्वयं एक संत है। आपको फिर किसी अन्य बातो मे समय नष्ट नही करना है।
आप देव तुल्य है।
और यदि इसमे से एक दो भी अवगुण है तो तत्काल हटाने की कोशिश करे, समय कम है सांसो का साथ पता नही कब तक है। तो ईश्वर के सामने खडा होना है।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री प्रीति महिमामृतम"


प्रीति रसायन औषधी का कर नित रसपान।
आदि काल से अद्यतन यह मूलक सद्ज्ञान।।


करो सदा रसपान इसी का।नित्य करो गुणगान इसी का।
जिसके पास प्रीति रसधारा।वही जगत में सबसे प्यारा।।
जिसे प्रीति का ज्ञान नहीं है।जग में उसका मान नहीं है।।
समझ प्रीति को परम सुन्दरी।यह अति मादक तरल मनहरी।।
जिसके उर में प्रीति बरसती।वहीं सदा मानवता रहती।।
जिसे प्रीति से नहीं प्रीति है।उर में उसके घृणित नीति है।।
जहाँ प्रीति है तहँ परमेश्वर।प्रीति बिना यह जगत भयंकर।।
प्रितिपरक भावों में जीना।अति मनमोहक प्याला पीना।।
रहना सदा प्रीति के संगा।मिल जायेंगी पावन गंगा।।
प्रीति सरित में सदा नहाओ।प्रीति वन्दना प्रति दिन गाओ।।
खो जाओ अपने ही भीतर।रखा हुआ कुछ नहीं है बाहर।।


अन्तःपुर में बैठकर करो प्रीति का जाप।
इस प्रकाश की कोठरी में नहिं जड़-संताप।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना"


आज सब जगह कोरोना की चर्चा है,
लगता है मानो गधे के लिए गणित और भौतिकी का पर्चा है,
कुछ पढ़ रहे हैं कुछ रट रहे हैं,
कुछ डट रहे हैं कुछ कट रहे हैं,
सर्वत्र साफ-सफाई की बात हो रही है,
फिनायल का छिड़काव और दवाई चल रही है,
मुँह- नाक पर मास्क है,
अच्छा टास्क है,
 लॉक आउट -रेस्टोरेंट होटल स्कूल और सिनेमा हाल हैं,
कर्मकार और उपभोक्ता बेहाल हैं,
कोरोना पर रोना है,
अथवा खुद पर रोना है,
अलगाव बढ़ रहा है,
कोरोना कोसा जा रहा है,
कोरोना की फौज क्रमशः बढ़ रही है,
आबादी भयभीत हो रही है,
लोग तरह-तरह के घरेलू नुस्खे बतला रहे हैं,
भारतीय संस्कृति की याद दिला रहे हैं,
दहशत ज्यादा है,
मास्क बेचनेवालों का फायदा है,
महामारी फैलेगी,
भूखमरी बढ़ेगी,
यह दुर्योग है या संयोगा?
अथवा चीन का दूषित दानवी प्रयोग?
कोरोना!तुम कब मरोगे?
क्या उच्च तापमान पर जरोगे?
तुम चमगादड़ के जूस के  विष-जन्तु हो?
अथवा मांसाहार के परिणामी आगन्तु हो?
तुम्हें मारना है मारकर रहेंगे,
तुम्हें कुचलने के लिये आगे बढ़ेंगे,
तुम हारोगे भगोगे,
डरोगे मरोगे,
भारत की विजय होगी,
विषैली दरिंदगी पराजित होगी,
सत्यमेव जयते होगा,
विजयी भव का कमल खिलेगा।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सुंदरा"


सुंदरा की चादरों पर नाम लिख,
त्याग का संदेश देते राम लिख,
कागजी संसार का क्या अर्थ है,
प्रेम का इजहार करते श्याम लिख।


चेतना के द्वार का विस्तार कर,
जटिल जड़ की वासना पर वार कर,
ज्ञान में ही रमण करना ध्येय हो,
बुद्ध के संमार्ग की रफ्तार धर।


पंथ पावन चिन्तना का अनुगमन,
छोड़ चल उसको करे जो विषवमन,
मत बनाना ताड़ तिल का  बन्धुओं,
ठहर जाओ देख प्रिय शिव आगमन।


हृदय को आकार दो इस जगत का,
सुन सदा संवाद प्यारे हृदय का,
पूजिये संसार को रख ह्रदय में,
गुनगुनाओ गीत गाओ प्रणय का।


हो अहर्निशं राम की ही भावना,
रात-दिन हो विश्व की शुभ कामना,
सुन्दरालय सा बने उरधाम- मन,
सुंदरा हो सुन्दरी सद्भावना।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


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