रीतु प्रज्ञा      करजापट्टी ,दरभंगा , बिहार

लघु कथा
दिनांक-19-03-2020
शीर्षक:-कोरोना से बचाव


बारह साल की गुड़िया बाहर से खेलकर आयी और रसोईघर में जाकर पापड़ खाने लगती है ।
   "गुड़िया तुम हाथ साबुन से साफ की हो?" उसकी माँ इन्दु जी पूछी।
    "नहीं ,पर क्यों?"गुड़िया बोली।
    जब तक उसकी माँ उसे कुछ बताती ,वह पापड़ खाकर फ्रिज से पानी का बोतल ले आती है।वह गिलास में पानी पीने के लिए डालती है।
      "रूको , ठंडा पानी नहीं पियो। पूरे विश्व में कोरोना वायरस चीन से फैल गया है।इसके कारण लाखों व्यक्ति बीमार  हो गए हैं।हजारों  व्यक्ति मौत की नींद में सो गए हैं। हमें इससे बचने के लिए सावधान रहना होगा।" इंदु जी बोली
    "माँ क्या -क्या सावधानी बरतनी होगी"गुड़िया पूछी।
   " खाने से पहले,किसी अनजानी वस्तुओं ,गंदी वस्तुओं को छूने के बाद हाथ साबुन से अच्छी तरह साफ करें। गुनगुना पानी पीए।किसी से भी हाथ नहीं मिलाए। भीड़भाड़ वाली जगहों में नहीं जाएं।खांसते समय रूमाल को मुँह पर रखें।जिस व्यक्ति को सर्दी, खाँसी ,बुखार और साँस लेने में दिक्कत है तो एक मीटर की दूरी बनाए रखें।ऐसे व्यक्ति को डॉक्टर के पास जाने की सलाह दें।स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।सावधानी बरतने से यह बीमारी नहीं फैलेगी।" इंदु जी समझाते हुए बोली।
   " ठीक है माँ, मैं इन सावधानियों को  अपनाकर स्वस्थ रहूँगी।इसके बारे में सहेलियों को भी बताऊँगी।" गुड़िया मुस्कुराते हुए बोली। वह साबुन से हाथ साफ करती है।उसके पापा खाँस रहे हैं।वह उन्हें रूमाल देकर मुँह पर रखने के लिए कहती है।
            रीतु प्रज्ञा
     करजापट्टी ,दरभंगा , बिहार
स्वरचित एवं मौलिक


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


      *जल/नीर*
   मनहरण घनाक्षरी
       --------------
जल   बिन  मिले  पीर,
जल  बिन   हो  अधीर,
जग   सारा  जलता  है,
      समझ भी जाईये।
💧
जीवन   दायिनी   यही,
शीतल  जो  धार  बही,
सबकी  बुझाये  प्यास,
        व्यर्थ न बहाईये।
💦
जल   बिन  सुना  जग,
कष्ट   मिले   पग - पग,
जल  से  ही  जीवन  है,
        भूल मत जाइये।

संरक्षण   करो     जल,
तभी     सुनहरा   कल,
भावी पीढ़ियों के लिए,
      जल को बचाइये।


        💧💦
                 *******


कुमार कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)


हलधर

ग़ज़ल (हिंदी)
-----------------


उतर आयी  ग़जल  देखो  हमारे  गांव  शहरों  से ।
अदब हमको सिखाएगी निकलकर मूक वहरों से ।।


गरीबी भुखमरी भी देखकर सजदा करेंगी अब ,
मिटेगी प्यास जब उनकी नवेली आब नहरों से ।


परिंदे  भी  तसल्ली  से  करेंगे  लूट पानी की ,
अभी तक ले रहे थे आसरा जो कूप ढहरों से ।


सिसकती जिंदगी भी खिलखिलाकर बोल पाएगी ,
निकलआएगी वो  बाहर कड़े गुरबत के पहरों से ।


जहां बचपन बिलखता भूख से देखा जमाने ने ,
बचाएगी ग़जल मेरी उन्हें जालिम के कहरों से ।


सही मुद्दे पे लिखता हूँ ग़जल को आम भाषा में ,
नहीं है दुश्मनी मेरी अरब  फारस  की  बहरों से ।


अदीबों की नयी पीढ़ी से "हलधर "की गुजारिश है ,
मुखौटे  जो  बदलते  हैं  बचो  उन  फेक  चहरों से ।


        हलधर -------9897346173


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*सुप्रभातम्*
(कन्नौजी रस रंग)
*याचना प्रभु से.....*


संकट टारौ संकट मोचन, बजरंग सहाय होवहु प्रभुवर।
अखिल विश्व मँह घन संकट कै, भ़य व्यापक कज़ा टरै सत्वर।।
हे रामदूत हनुमंत लाल , विपदा को ओर न छोर कहूँ,
हौं सरन तुम्हारी प्रणति प्रखर, सुख चैन निरोग रहें घर-घर।।


तुमनै सुरसा कै पत राखी , गए लांघि जलघि शत योजन धर।
सुधि लीन्ह जानकी लंक जारि, अति भयाक्रांत खल दशकंधर।।
द्रोणागिरि  जाय संजीवनि लई, सौमित्र कै प्रान पचास लीन्ह,
सोई कृपा करौ विपदाहारी, निष्कंटक जीवन जय हरिहर।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


श्याम कुँवर भारती [राजभर]  कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

हिन्दी कविता- हिन्द को नमन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
धरती और गगन वंदे मातरम है वतन |
गंगा यमुना सरस्वती करे पाप को समन |
खिले फुले राष्ट्र विविध रंग है सुमन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
बिहार बंगाल यूपी झारखंड है वतन |
महाराष्ट्र आंध्र तमिल गुजरात है वतन |
केरल कर्नाटका गोवा दमन दीप है वतन |
जम्मू कश्मीर लद्दाख अरुणाचल है वतन |
उड़ीसा आसाम मिजोरम तेलांगना है वतन |
मध्य प्रदेश छतिसगड़ उत्तराखंड है वतन |
गांधी शुभाष तिलक पटेल जिंदा है वचन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
महाराणा लक्ष्मी बाई विक्रमादित्य 
सम्राट अशोक है वतन |
आजाद भगत खुदीराम बिस्समिल वीर विरसा है वतन |
वीर शिवाजी चौहान पृथविराज है वतन |
नानक कबीर रहीम सूरदास तुलसीदास है वतन |
रैदास वेदब्यास बाल्मीकी प्र्हलाद है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
पुरोसोत्तम श्रीराम सावरे घनश्याम है वतन |
मीराबाई सुभद्रा निराला परशुराम है वतन |
प्रेमचंद बच्चन टेगौर वकीमचंद है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
मिर मिर्जा खुसरो ज्ञान विज्ञान इसरो है वतन |
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई जैन बौद्ध है वतन |
हिन्दी उर्दू बांग्ला भोजपुरी संस्कृत भाषा है वतन | 
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
पंजाबी मराठी खोरठा संथाली भाषा तमिल है वतन |
विश्वन्नाथ पार्श्वनाथ केदारनाथ बैदनाथ है वतन |
माता वैष्णो कामख्या तारापीठ
 बिंधयाचल छिन्नमस्ता है वतन |
दक्षिणेश्वर कालीघाट बालाजी महाकाल
अमरनाथ सारनाथ गौरीनाथ साईनाथ है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
मोदी योगी साह अमित खिलाया है चमन |
दुश्मनों मार गिराया पहनाया है कफन |
बच्चे बुजुर्ग नारियो जवानो का वतन |
हर खासो आम सारी आवाम का वतन |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"गुमनाम शहर में"
""""""""""""""""""""""""
गुमनाम शहर में
कुछ सपने लेकर आया हूँ
अपने नही है यहाँ
मैं अपने ढूँढने आया हूँ


चारो तरफ खामोशी है
तूफानों का बसेरा है
रख कलेजा ख़ंजर में
मैं हिम्मत जुटाने आया हूँ


लोग परेशान है
हर द्वार पे सन्नाटा है
चारो तरफ है गम के बादल
ऐसे मे मुश्कान ढूँढने आया हूँ
गुमनाम शहर में
कुछ सपने लेकर आया हूँ ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कंटक जाल हटाना है"* (गीत)
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*माना कि सफर कुछ लंबा है, पर चलते ही जाना है।
पथ पर अविचल चलकर  ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
चाहे जितने अटकल आयें, मंज़िल को तो पाना है।
पथ पर अविचल चलकर  ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*ऋतुएँ भी तो बदलेंगी ही, शरद-उष्ण भी आना है।
सहकर मौसम की मारों को, समरस-सुमन खिलाना है।।
हर्षाकर हिय भारत भू का, अमन-चमन लहकाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*नवल-शोध, नित नव उन्नति से, कर्म-केतु फहराना है।
हम हैं पावक-पथ के पंथी, लोहा निज मनवाना है।।
हार-हराकर हर हालत में, पंथ प्रशस्त कराना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*मानवता के जो हैं रोधी, उनको सबक सिखाना है।
आस्तीनों के साँपों का भी, फन अब कुचला जाना है।।
लिख साहस से इतिहास नया, अपना धर्म निभाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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नूतन लाल साहू

भजन
दुनिया से, मै जो हारा
तो आया,तुम्हारे द्वार
यहां पे भी,मै जो हारा
तो कहा जाऊं, मै भगवान
सुख में कभी न तेरी
याद जो है, आई
दुःख में सवरिया तुमसे
मैंने है,प्रीत लगाई
सारा दोष है, मेरा
मै करता हूं,स्वीकार
यहां पे भी, जो हारा
कहा जाउ,मै भगवान
सब कुछ,मै गवाया
बस लाज,बाकी है
तुझ पे,कन्हैया मेरी
अब आस टिकी हुई है
सुना है,तुम सुनते हो
हम जैसो की पुकार
यहां पे  भी,मै जो हारा
तो कहां जाउ,मै भगवान
मेरा तो क्या है
मै तो पहले से ही,हारा हूं
तुमसे ही पूछेगा, सब
संसार सारा, है
डूबता हुआ,मेरा नईया
तेरे रहते,खेवनहार
यहां पे भी,मै जो हारा
तो कहां जाउ,मै भगवान
जिनको भी,सुनाया कभी
मै, अपना फसाना
सबने बताया है, मुझे
तेरा ही ठिकाना
सब कुछ,छोड़ के आखिर
मै आया,तेरे दरबार
दुनिया से मै जो हारा
तो आया,तुम्हारे द्वार
यहां पे भी,मै जो हारा
तो कहां जाउ,मै भगवान
नूतन लाल साहू


अवधेश रजत      वाराणसी

#कोरोना #छन्द #कविता #कवि_रजत


काल विकराल रूप ले खड़ा है आज द्वार,
जिन्दगी को आप कश्मकश में न डालिये।
मानवीय इतिहास में है त्रासदी का दौर,
भीषण विभीषिका को हँस के न टालिये।
सावधानी ही है उपचार एक मात्र बन्धु,
संक्रमण का विषाणु तन में न पालिये।
सरकार के सुझाव की हो अनदेखी नहीं,
साथ मिल आपदा से देश को निकालिये।।
©अवधेश रजत
     वाराणसी
सम्पर्क # 8887694854


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी

....................शराब........................


सब कहते हैं , शराब  एक  बुरी  चीज है।
मैं कहता  हूँ , ये  बड़ी अजीब  चीज है ।।


कोई पिता है इसे , गम  भुलाने   के  लिए,
कोई पिता है इसे , दिल बहलाने के लिए।
कोई पिता है इसे , जान  लुटाने  के  लिए,
कोई पिता है इसे, खुशी जताने के लिए।।


है  दुनियाँ  में  इसके , बराबर  कुछ  नहीं,
क्योंकि दोनों ही हालतों में , लगे वो सही।
मगर मेरे दोस्त , इसकी  लत  ठीक  नहीं,
जिसे लत  लग  जाती , गिरते  वो  कहीं।।


पीकर इसे खुद को , समझते हैं बादशाह,
कर लेते हैं लड़ाई , दूसरों से  खा मखाह।
नहीं  मानते  हैं  वो , हमदर्दों  की  सलाह,
प्यार करते हैं वो , मयखाने को बेपनाह।।


गैरों  की  नहीं अपनी , सुनाता  हूँ  दास्ताँ,
कभी   पी   थी   मैंने , छोड़कर  ये  जहाँ।
लेकिन  कैसे करूँ , बदसलूकी  की वयां,
थी  होश   मुझे   दुनियादारी  की  कहाँ।।


इसलिए मेरे दोस्त,कसम खाओ ये अभी,
न होठों से लगाओगे , शराब अब  कभी।
जो  भी  अपने  भूले   बिसरे   हो   कहीं,
उन्हें  अपनों  से , मिलाओ  अब  सभी।।


----------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

इश्क बड़ा है रोग जमीं पर, इससे बचकर रहना।
पड़कर इसके चक्कर में, केवल दुःख ही सहना।।


जिस जिसने इश्क किया,पड़ा उसे तो यहां रोना।
हाथ लगा न कुछ उसके,सब कुछ पड़ा यहां खोना।।


कब समाज ने स्वीकारा,कब यहां पर मान दिया।
सदा खून के आंसू पिये,जिल्लत का जीवन जिया।।


कौंन समझेगा दर्द तुम्हारा,कर रहे हो किसकी आस।
जिससे इश्क किया तुमने,कितना है उसका विश्वास।।


कब बफा बेबफा बन जाए,कब टूटे ये दिल तुम्हारा।
स्वार्थ भरी है दुनियां सारी,सत्य कौंन है यहां तुम्हारा।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*जिंदगी क्या है*
विधा: कविता


फूल बन कर,
मुस्कराना जिन्दगी है l
मुस्करा के गम,
भूलाना जिन्दगी है l
मिलकर खुश होते है,
लोग तो क्या हुआ l
मिले बिना दोस्ती,
निभाना भी जिन्दगी है।।


जिंदा दिलो की, 
आस होती है जिंदगी।
मुर्दा दिल क्या,
खाक जीते है जिंदगी।
मिलना बिछुड़ जाना, 
तो लगा रहता है ।
जीते जी मिलते 
रहना ही जिंदगी है।।


जब तक जीये 
शान से जीये जिंदगी।
अपनी बातो पर,
अटल रहकर जीये ।
बोलकर मुकर जाने,
वाले बहुत मिलते है।
क्योंकि ऐसे लोगो का ही, आजकल जमाना है।।


खुद की पहचान बनाकर,
जीने वाले कम मिलते है।
प्यार से जीने वाले भी,  
 कम मिलते है।
वर्तमान में जीने वाले, 
 जिन्दा दिल होते है।।


जिंदगी को जो, 
प्यार से जीते है।
गम होते हुए भी,
खुशी से जीते है।
ऐसे ही लोगो की,
जीने की कला को।
लोग जिंदा दिली,
इसलिए कहते है।।


संजय ने लिख दी आज, जिंदगी की हकीकत को।
क्योकिं लेखक लिखकर,
कुछ व्या कर सकता है।
खुदकी जिंदगी को पढ़ना,
खुद ही बड़ी कला है।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
19/03/2020


निशा"अतुल्य"

कहाँ नही हो
19 .3 .2020


कहाँ नही हो प्रभु तुम बोलो
क्यों ढूंढ रही ये अंखिया प्यासी
मन क्यों मेरा भटक रहा है 
काहे बात ये समझ ना पाती ।


निर्गुण हो तुम कहीं सगुण हो
रूप तुम्हारे अलग यहां हैं
कोई तुम को राम कहे है
कोई ॐ का नाद करे है ।


बोलो मन क्यों समझ न पाये
प्रभु बोलो तुम कहाँ नही हो ?
मन अर्पित चरणों मे तुम्हारे
वास करो तुम ह्रदय हमारे ।


तुम हो अनन्त अविनाशी
हर कण में है वास तुम्हारा
रूप धरा बारिश सूरज तुम
चाँद सितारे तुमरे धाती ।


प्रकृति का रूप निराला
ये ही रूप है तुमको भाया
जग के पालन हार तुम्ही हो
तुम तो हो घट घट के वासी ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।बरेली

*बहुत ही लाजवाब है ये जिन्दगी।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।*


यूँ जियो कि जैसे कोई सुनहरा
सा  ख्वाब है  जिन्दगी।


हर   मुश्किल   सवाल  का  भी
जैसे जवाब है जिन्दगी।।


जो   दोगे    वही  तो लौट   कर 
आयेगा तेरी जिन्दगी में।


यूँ  समझ लो  तुम कि   बहुत ही
लाजवाब है ये जिन्दगी।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।बरेली

*बिखरी हैं खुशियाँ चारों*
*ओर।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


बहुत  सस्ती हैं  खुशियां
बसती  इसी जहान   में।


मत  खोजो     उन्हें  दूर
कहीं  किसी मुकाम  में।।


छोटी  छोटी  खुशियां ही
बन जाती जाकर   बडी।


बस  सोच   हो   आपकी 
अच्छी   हर   काम     में।।


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।बरेली

*कल कभी आता नहीं है।।।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


मन हार कर तो कभी  कोई
जीत पाता   नहीं है।


बिना संघर्ष के ख्याति कभी
कोई  लाता  नहीं  है।।


मत इंतज़ार करते  रहो  कुछ
अच्छा करने के लिए।


बात ये एक जान लो कि कल
कभी  आता  नहीं  है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे छोड़ू नटवर तुमको 
तुम जीवन धन हो मेरे
मेरे मन मंदिर में प्रभुवर
बस शोभित विग्रह तेरे


गो लोक हो या धरा लोक
मैं तो रहूंगी साथ तुम्हारे
मुझ राधा के नटवर नागर
मैं तो छोड़ू न दामन प्यारे


नाचो गाओ व रास रचाओ
पर अपनी राधा के संग
राधा नहीं है प्रेयसी केवल
पुरुषोत्तम का अर्ध अंग


सत्य करें आग्रह मुरलीधर
कभी अलग नहीं होना
बृषभानु सुता के संग नाथ
मुझे कृतार्थ करते रहो ना।


श्री युगलरूपाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"लौट आये मेरा बचपन "*
"मन करता फिर से मेरा,
लौट आये मेरा बचपन।
खेलू खेल खिलौनों संग,
भूल जाऊँ जीवन की तड़पन।।
स्वार्थ नहीं बसता यहाँ,
ऐसा ही है- ये बचपन।
सब अपने से लगते फिर,
कोई नहीं यहाँ दुश्मन।।
हर पल भटकन भरी मन में,
कैसे-बीते ये जीवन?
मन करता फिर से मेरा,
लौट आये मेरा बचपन।।"
ःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
      19-03-2020


राजेंद्र रायपुरी

😔 भारी सबसे विपदा आई 😔


छीन लिया सुख-चैन सभी का।
है  जंजाल   लगे   ये  जी   का।
मारें     तो    कैसे   हम    मारें,
बना न अब  तक इसका टीका।


और   न    कोई   है   ये   भाई। 
कहें   चीन    से    है   ये  आई।
कोरोना    है    नाम    सुना   है,
करे   न    कोई   असर   दवाई।


इससे  है  बस   बचकर  रहना। 
मेरा   नहीं    वैद्य   का   कहना।
मानो  कहना   तुम   भी   यारो, 
अगर   तुम्हें   है   जिंदा   रहना।


नहीं  किसी  से  हाथ  मिलाओ। 
भीड़- भाड़ में  मत  तुम जाओ।
छोड़ो       मांसाहारी       खाना,
केवल       शाकाहारी     खाओ।


बार-बार    हाथों    को    धोना।
आएगा     न    पास    कोरोना।
इतना  तो   कर  ही  सकते   हो,
अगर   नहीं   है  जीवन   खोना।


मानो     कहना     मेरा     भाई।
सबकी    इसमें    यार    भलाई।
नहीं    सुनो     ये    छोटी- मोटी,
भारी    सबसे     विपदा    आई।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

सरस्वती वंदना
************ 
हे मां सरस्वती
तुम प्रज्ञा रूपी किरण पुंज है,
हम तो निपट अंधेरा है मां।
हर दो मां अंधकार तन -मन का,
मां सबकी नयै पार कर दो।


मां हमरे अन्दर  ऐसा भाव जगाओ,
हर जन का उपकार करे।
हममें  जो भी कमियां हैं मां,
उनको हमसे दूर करो मां।


पनपें ना दुर्भाव कभी  हृदय में,
घर -आंगन उजियारा करो मां।
बुरा न देखें बुरा कहें  ना,
ऐसी सद् बुद्धि हमें दे दो मां।


मां हम तो निपट अज्ञानी है,
हमको सुमति तुम दे दो मां।
निर्मल करके तन-मन सारा,
सकल विकार मिटा दो मां।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कैसे लगे मन"


तुम्हारे बिना मन लगे भी तो कैसे,
तुम्हीं हो सितारे नयन के हमारे,
कसम खा के कहता हुआ बेसहारा,
तड़पता है दिल बिन तुम्हारे बेचारा।


बहुत दिन हुए इंतजारी में तेरे,
नहीं सुध तुझे है हो कैसे गुजारा,
हुए इतने निष्ठुर तुम कैसे बता तो,
देगा मुझे कौन अब वो सहारा।


पथरा गयी हैं ये आँखें हमारी,
यादें तुम्हारी सताती हैं प्यारी,
चले आओ प्यारे उदासी की बस्ती,
चमन में खिले पीत रंगों की क्यारी।


बरस जाओ बादल हरष जाये मनवा,
उदासीन मुखड़े से निकले अब गनवाँ,
पुरुवा हवा अब बहो बन के खुशबू,
मिले जिन्दगानी में सुन्दर सवनवां।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


,


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आत्म मंथन "


अंतस्थल ही सिन्धु सरीखा,
भीतर बैठा रत्न समुच्चय,
मथते रहना मथना सीखो,
मंथन से ही सबकुछ संभव।


जिसने खोजा मिला उसी को,
चुप जो बैठा पाया वह क्या?
करो परिश्रम मन से मित्रों!
बुद्धि -योग से मिल जाता सब।


करना अपना ही विश्लेषण,
चलते रहना करते चिन्तन,
कभी न थकना पार्थ नित्य बन,
आजीवन करना अन्वेषण।


आत्म विवेचन करते जाना,
मन में चाह स्वयं को पाना,
इधर-उधर मत भटको वन्दे,
एक राह पर जाना-आना।


अपनी त्रुटियाँ नित्य ढूढना,
बाहर से अच्छाई लेना,
सुन्दरता में रत्नाकर हैं,
रत्नाकर को ईश समझना।


रहना सीखो अन्तःपुर में,
अन्तःपुर के हरिहरपुर में,
हरिहरपुर में क्षीर-सिन्धु है,
अमृत खोजो क्षीरेश्वर में।


ज्ञानार्थी यह भंडारण है,
इसमें लक्ष्मीनारायण हैं,
यह पुरुषार्थ चतुष्ठय आतम,
काम मुक्त यह शिव गायन है।


ध्यान मग्न हो चित्त लगाओ,
शुक्ष्म रूप धर रच -बस जाओ,
बन विदेह आत्म का वासी,
देख रत्न रत्न बन जाओ।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


कवि परमानंद निषाद ग्रा0- निठोरा, पो थरगांव ,कसडोल, बलौदा बाजार(छग)

नव्या


नव्या मेरी प्यारी बहना।
घर रोशन करने आ गई ।
मान बढ़ाने माता-पिता का।
प्यारी बहना तु आ गई।
सूरज जैसे चमकता चेहरा।
चांद की तु वो लाली हो।
मुस्कुराते हो जब तु बहना।
बहुत प्यारी तुम लगती हो।
नव्या मेरी प्यारी बहना।
 तु है गंगा,तु है जमुना।
तु दिखाती निर्मल धारा।
सिंधु,साइना जैसी तु।
मान बढ़ाने आई है।
नव्या मेरी प्यारी बहना।
 हौसलों की उड़ान है तु।
तेरे चेहरे को देखकर।
दिल मे सकुन आ गया ।
नव्या है माता-पिता का।
मान,अभिमान और सम्मान।
अपने भैया परमानंद निषाद के।
कलाई मे राखी बांधने आ गई।
तु माँ बाप की इज्जत ईमान है।
तु है अपने भैया के। 
मान और जान।


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मानस व्याख्याता

श्री रामचरित मानस में गोस्वामी जी द्वारा भरत वन्दना


प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना।
जासु नेम ब्रत जाइ न बरना।।
राम चरन पंकज मन जासू।
लुबुध मधुप इव तजइ न पासू।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  भाइयों में सर्वप्रथम मैं श्रीभरतजी के चरणों को प्रणाम करता हूँ जिनका नियम और व्रत वर्णन नहीं किया जा सकता है और जिनका मन प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में भौंरे की तरह लुभाया हुआ है जो उनका सामीप्य कभी नहीं छोड़ता।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  गो0जी ने श्रीरामचरित मानस व विनय पत्रिका में श्रीभरतजी के नियम व व्रत का अद्भुत वर्णन किया है।अयोध्याकाण्ड के अन्तिम भाग में वे श्रीभरतजी के विषय में कहते हैं कि श्री भरतजी के नन्दीग्राम में रहने का ढंग,समझ,करनी,भक्ति, वैराग्य,निर्मल गुण और ऐश्वर्य का वर्णन करने में सभी सुकवि भी संकोच करते हैं क्योंकि वहाँ औरों की तो बात ही क्या,स्वयं शेष,गणेश और सरस्वती में भी उसका वर्णन करने की क्षमता नहीं है।यथा,,,
भरत रहनि समुझनि करतूती।
भगति बिरति गुन बिमल बिभूती।।
बरनत सकल सुकबि सकुचाहीं।
सेस गनेस गिरा गमु नाहीं।।
 श्रीगो0जी कहते हैं कि श्रीसीतारामजी के प्रेमरूपी अमृत से परिपूर्ण श्री भरतजी का जन्म यदि न होता तो मुनियों के मन को भी अगम यम,नियम,शम, दम आदि कठिन व्रतों का आचरण कौन करता?दुःख,सन्ताप,दरिद्रता, दम्भ आदि दोषों को अपने सुयश के बहाने कौन हरण करता?तथा इस कलियुग में तुलसीदास जैसे शठों को हठपूर्वक कौन प्रभुश्री रामजी के सम्मुख करता?यथा,,,
सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनम न भरत को।
 मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को।।
दुख दाह दारिद दम्भ दूषन सुजस मिस अपहरत को।
 कलिकाल तुलसी से सठिन्ह हठि राम सन्मुख करत को।।
भरत चरित्र का शेष भाग कल।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


बलरामसिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक EX LTR B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT

गोस्वामी जी द्वारा मिथिलेश जनक जी की वन्दना एवम उनके प्रति कृतज्ञता


प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू।
जाहि राम पद गूढ़ सनेहू।।
जोग भोग महँ राखेउ गोई।
राम बिलोकत प्रगटेउ सोई।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि अब मैं परिवार सहित राजा जनकजी को प्रणाम करता हूँ जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणों में गूढ़ प्रेम था जिसको उन्होंने योग और भोग में छिपा रखा था।जो प्रभुश्री रामजी को देखते ही प्रकट हो गया।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  मिथिला नरेश महराज श्री जनकजी की समस्त प्रजा ब्रह्मज्ञानी थी,इसीलिए गो0जी ने परिजनों सहित श्री जनकजी की वन्दना की।श्री जनकजी का प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में गूढ़ अथवा गुप्त प्रेम था जबकि महाराज दशरथजी का प्रेम प्रकट रूप से था।इसी कारण महाराज दशरथजी ने राम के वियोग में अपने प्राण त्याग दिये थे जबकि महाराज जनकजी का प्रेम प्रभुश्री रामजी को मिथिला में देखकर प्रकट हुआ था।श्री जनकजी योगपूर्वक भोग में अनासक्त होते हुए सदैव जिस अनिर्वचनीय तत्व का अनुभव करते थे और जिस आनन्द को प्राप्त होते थे, वह उन्हें प्रभुश्री रामजी के दर्शनों से प्राप्त हो गया।तभी तो उन्होंने यह सन्देह किया कि ये नररूपधारी राजकुमार वही परब्रह्म तो नहीं हैं।इसीलिए उन्होंने महर्षि विश्वामित्रजी से यह कहा था कि ये दोनों सुन्दर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक हैं।मेरा वैरागी मन इन्हें देखकर मुग्ध क्यों हो रहा है।इन्हें देखकर मेरे मन ने बलात ब्रह्मसुख को त्याग दिया है।यथा,,,
कहहु नाथ सुन्दर दोउ बालक।
मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।।
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा।
उभय वेष धरि की सोइ आवा।।
सहज बिरागरूप मन मोरा।
थकित होत जिमि चंद चकोरा।।
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ।
कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ।।
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।
बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा।।
।।जय जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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