भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"श्वास-सफर है जीवन जानो"*
(सार छंद गीत)
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विधान- १६ + १२ = २८ मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
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*माने कोई कैसे अपना? अपने करें किनारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*जीवन भर जो धुन गाया था, क्या उसका अपना था?
माँगी आवाज सदा जिसने, क्या उसका सपना था??
जिसने जीती हर जंग यहाँ, क्यों अपनों से हारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*दर्द गीत है जीवन का तो, क्यों न जमाना गाता?
एक अकेला गिरता चलता, क्यों हर बोझ उठाता??
साथ नहीं अपनों का मिलता, फिरता मारा-मारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*देकर वसन सदा जो अपना, तन-तन ढँकता आया।
क्या अपकर्म किया उसने जो, बुन न कफन निज पाया??
ऐसे दानवीर को भी क्यों, नग्न कहे जग सारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*बचपन-यौवन और बुढ़ापा, अपने कहाँ किसी के?
समय-सरित् में बह जायेंगे, सोचे स्वप्न सभी के।।
महासफर के सब हैं राही, है नाव-तेज-धारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*श्वास-सफर है जीवन जानो, घड़ियाँ ही गिनना है।
काँटों के पथ पर ही चलकर, कलियाँ भी चुनना है।।
परम-पुण्य पद पाया उसने, जिसने जीवन वारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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नूतन लाल साहू

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
चारो खुट,छाय हे, कुलूप अंधियार
तभो ले संगी,हिम्मत झन हार
सबले अलग हे,छत्तीसगढ़ के रीत
सबले सुग्धर हे,हमर धरम नीति
भुइंया म हावय, दान दया धरम
तियाग तपस्या अरपन ऊंचा करम
जग म हिंसा घिरना के,खेल चलत हे
सुर दुर्लभ,मानव तन पा के
भाई भाई कटत मरत हे
छत्तीसगढ़ ह,अन्न बाटिस जग ल
अब जग ल बाटना है,मानव धरम ल
चल उठ एक ठिन,दिया ल तो बार
चारो खुट छाय हे, कूलुप अंधियार
तभो ले संगी, तै हिम्मत झन हार
सबो दिन एके सही, नइ होय
मनखे के चिन्हारी, विपत म होथे
समे के खेल आय, सहि ले विपत पीरा
कोरोना वायरस ह,फइलत हे
संकट ह, एकदिन टर जा ही
हिम्मत झन हार,भरोसा ल राख
रतिहा कूलूप अंधेरी हे, त का होइस
बिहनिया सुरुज आ ही, धीर धर
छत्तीसगढ़िया,सबले बढ़िया
चल उठ एक ठिन,दिया ल तो बार
चारो खुट छाय हे, कुलूप अंधियार
तभो ले संगी,तै हिम्मत झन हार
नूतन लाल साहू


अतिवीर जैन पराग मेरठ

 


 दहशत :-


दहशत में सारा विश्व आया हुआ है, 
कोरोना से हर कोई घबराया हुआ है.


पेहले किडे मकोडो को मार खाते रहे, 
सूप पीकर स्वाद जीभ का बढ़ाते रहे.


इन जीवों के ज़हर ने,
बीमार सबको बना दिया,
कोरोना वाइरस ज़हर भरा बना दिया.


पेहले हम जीवों को खाते रहे,
अब जीव हमें खाने लगे, मौत के डर से सब दहशत में आने लगे. 


प्रक्रति के विरुद्ध जब भी मानव जायेगा, कोरोना जैसा वाइरस हमें दहशत में लायेगा . 


प्रक्रति भी लेती है बदला,
सबको समझना होगा, दहशत से बचना है तो,
प्रक्रति के साथ चलना होगा. 


अतिवीर जैन पराग 
पूर्व उपनिदेशक,रक्षा मंत्रालय,मेरठ 
मोबाइल :9456966722


 . स्वरचित


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

बदलना मत.... 


मेरी किसी बात पर उछलना मत. 
कभी जरुरत पड़े तो बदलना मत. 



तेरे आगोश की कबसे तमन्ना है, 
बाँहों में आओ तो संभलना मत. 


जनता हूँ तुझे मैं इतना पसंद नहीं, 
बस तू कभी मेरे साथ अकड़ना मत. 


तुझे मैंने चाहा सदा हमसाया बनकर, 
साथ रहना, बेशक़ हाथ पकड़ना मत. 


तुम्हारे साथ ख़्वाब में मचलता हूँ, 
लेकिन तुम, मेरी नींद जकड़ना मत. 


कितना, कबसे दौड़ रहे हो "उड़ता ", 
होके नासाज़ मेरे पंख कतरना मत. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

साफी है 


कैसे मानूं तेरी माफ़ी है. 
तेरा साथ आना काफ़ी है. 


तुझे नक़ाब का शौक है, 
मेरे हाथ में साफी है. 


तुम मेरा इश्क़ हो गहरा, 
ना मानो ये सराफी है. 


हरदिन अनगिनत ख़्वाब है, 
इनकी कहाँ हराफी है. 


बस तू मिल जाए "उड़ता ", 
ज़िन्दगी में यही ट्रॉफी है. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

जीव विज्ञान.... 


परमात्मा ने बनाई एक दुनिया. 
ये ऊँचे पहाड़, कल -कल बहती नदियाँ. 
मानव जीवन का विकास, 
हर- पल बदलती सदियाँ. 


ये जीव-विज्ञान क्या है, 
मर कर ये अक्स जाता है कहाँ?
उसके बारे में जानना था, 
यों उठा जज़्बात -ए -जोश यहाँ. 


हुआ रंगीन कैसे ये जहाँ?
दूर तक फैला आसमां. 
नहीं हाथ आया ये मौसम, 
ना रुकी रोकने से हवा. 


कैसे बढ़ी रफ़्तार हौसलों की, 
हमने संघर्ष बहुत सहा. 
खुद को ढाला है सांचे में, 
तब जाकर हुआ कुछ नया. 


सोच कर देखो ये धरा, 
चाँदनी रात, तारों भरी वसुंधरा. 
सेहरा में पिरोये मोती -तारे, 
धूप का टुकड़ा कहाँ जाकर गिरा. 


तरक्की हुई है विज्ञान से, 
ये सब तभी जाकर हुआ. 
मन किया सबकुछ जानने का "उड़ता ", 
सब में जगा दी तुमने इच्छा. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


अनुरंजन कुमार "अंचल"                अररिया, बिहार

ग़ज़ल


तेरी मोहब्बत में मैं उम्र भर मरना सीख रहा हूं
दिन - रात मैं तेरी इबादत करना सीख रहा हूं।


तेरी याद मुझे आती किसी को क्या बताऊं मैं
 मैं पागल हूं,तेरा दिल में उभरना सीख रहा हूं।


दर्द - ए - दिल के कारण से मैंने सबको भूल गया 
 अपनी मंजिल की राह से उतरना सीख रहा हूं।


तेरी मोहब्बत में मेरा परिवार रुस्वा हो गया
अपनी आंसू से मैं रूमाल भरना सीख रहा हूं।


तेरी फितरत थी कैसी, ये तो  मुझे  पता नहीं था
ये इश्क़ में मैं तन्हा होकर गुजरना सीख रहा हूं।


इश्क की रोचक कहानी मुझे पल-पल याद रहेगी
तेरा इश्क़ के मस्तूल से मैं तैरना सीख रहा हूं।


 


          अनुरंजन कुमार "अंचल"
               अररिया, बिहार
             7488139688


गीता चौबे "गूँज"                  राँची झारखंड

कोरोना गीत 
**********
कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है, 
इसको दूर भगाने खातिर, इक अभियान निरंतर है।


भीड़भाड़ से दूर रहें सब, नहीं किसी से हाथ मिले,
सिर्फ नमस्ते करना भइया, भले किसी की नाक छिले।
सबसे पहले देह बचाना, शेष सभी तदनंतर है,
कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है।


घड़ी-घडी हाथों को धोना, बिन धोए कुछ खाना मत,
चाहे कोई कितना पड़ ले, फिर भी गले लगाना मत।
दूर देश से चलकर आयी, बड़ी बेशर्म छछूंदर है, कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है ।
                   ©️®️
                गीता चौबे "गूँज"
                 राँची झारखंड


परमानंद निषाद निठोरा*

 


---------- *गीत* ----------


पिता की आस है गीत।
मां का विश्वास है गीत।
मेरे घर की है नव किलकारी।
सबकी चहेती गीत दूलारी।
हौसलों की उड़ान है गीत।
भारत की पहचान है गीत।
प्रतिभा का सम्मान है गीत।
सिंधु,सायना का मान है गीत।
विकास का पहचान है गीत।
किसान की बेटी है गीत।
मेरी नहीं आस है गीत।
देश की आन,बान,शान है गीत।
देश की गर्व है गीत।
सौंदर्य का रूप है गीत।
परमानंद का गौरव है गीत।
गीत के कंधों मे उम्मीदों का विश्वास है।
प्रतिभा देश की आस है गीत।
संस्कार,समाज को बदल रहा है गीत।
देश की दिशा,राह तेज गति से चल रहा है।
स्वर संगीत का नाम है गीत।
मधुर वाणी का पहचान है गीत।


आशा जाकड़

विश्व गौरैया दिवस


गौरैया ः हाइकु 


चीची कर के 
सबको तू जगाती
खुश हो जाती 


फड़फड़ाती 
आती थी तू सुबह
शोर मचाती


मेरी गौरैया
रूठ गई मुझसे
खड़ी कब से


तेरा घोंसला
ठंडी आह सी भरे
प्रतीक्षा करे


रुई के फाये
याद करके रोयें
आजा चिड़िया


गाएँ गौरैया
खूब चहचहाएँ
गीत सुनाएँ


पेड़ बुलाते
सूनी हो गई शाखें
कहाँ हो पाखें?
 
लौट आओ न
गौरैया आजाओ न
रूठ गई हो?


तिनका लाती
बीन बीन करके
घर सजाती


कोलाहल से 
पक्षी उड़ गये हैं
निज डैनों से


 


आशा जाकड़
9754969496


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम'


वीणापाणी शारदा विद्या महा महान।
विपदाओं को भस्म कर हे माँश्री भगवान।।


करो भूमि-जगती को पावन।हो अवतरित दिखे तव आवन।।
पापाचार बढ़ गया है माँ।अत्याचार सब जगह है माँ।।
साधु-संत सब दुःखी यहाँ पर।महिषासुर की शक्ति यहाँ पर।।
गन्दे-मैले-कुत्सित दिखते।दानवता की हिस्ट्री लिखते।।
दुर्दिन दिखता आज यहाँ पर।भारी पड़ता दुष्ट सभी पर।।
करो कृपा हे मातृ सरस्वति।लाओ जग में शुभमय सद्गति।।
अब मत देर करो हे माता।शिव कल्याणी जगत विधाता।।
करो पापियों का वध माता।सन्तजनों से रख बस नाता।।
कोरोना को कुचलो माता।संकट काल भगा दो माता।।
साफ-स्वच्छ हो सारी जगती।पट जाये पुण्यों से धरती।।
शुभ सुकाल बन दर्शन दे माँ।हराभरा तन मन कर दे माँ।।


साफ-स्वच्छ वातावरण स्वस्थ सकल संसार।
विष से मुक्त करो जगत मिले अमी का प्यार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम'


प्रीति रहे उर में सदा मन हो उसका द्वार।
प्रीति अमृता पान से हो सबका उद्धार।।


प्रीति रसायन दिव्य शरद है।प्रीति सर्वदा सहज वरद है।।
सदा प्रीति का हो सम्माना।प्रीति गंग में नित्य नहाना।।
करो प्रीति पर कभी न शंका।सदा बजे प्रीति का डंका।।
करो प्रीति की नित्य वन्दगी।समझ उसी को प्रिया जिन्दगी।।
अपनाओगे प्रीति अगर तुम।बन जाओगे वुद्ध प्रवर तुम।।
छोड़ कपट अरु दंभ भगाओ।प्रीति पीत-अम्बरी पाओ।।
रहो उल्लसित हर्षित मन हो।रोमांचित तन का कण-कण हो।।
समझ प्रीति को स्वर्ग समाना।बिना प्रीति मन सूना-साना।।


प्रीति करो सबसे सहज समझ प्रीति आधार।
प्रीति धर्म सत्कर्म से खुद को सदा सुधार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"भावुकता में कवि बैठा है"


भावों में कविता छिपी भावों में भगवान।
भावरहित पाषाण दिल में केवल शैतान।।


भावों के भण्डार में है कविता का देश।
अति मृदु कोमल भाव में कवि का हृदय-प्रदेश।।


सारस्वत साधक वही जिसके मधुर स्वभाव।
विश्व फलक पर कवि बना डालत स्वयं प्रभाव।।


कविता सुनना कठिन है लिखना बहुत सुदूर।
सत शिव सुन्दर भाव में कविता बहु भरपूर।।


कवि ही मानव योनि का सर्वोत्तम इंसान।
घूमा करता अहर्निश भर-भर भाव-उड़ान।।


सदा यान में तिष्ठ कर शिव शुभ भाव प्रसंग।
कभी देख चिन्तन करत लिखत लेखनी संग।।


मनन करत मंथन करत सोचत बारंबार।
गढ़त सतत निरखत सतत कविता की बाजार।।


भावों की बाजार में कविताएँ अनमोल।
क्रेता का दिल धड़कता सुन कविता के बोल।।


भाव नहीं कविता नहीं यह नहिं पूँजीवाद।
कलुषित दूषित वॄत्ति से कविता करत विवाद।।


पशु प्रवृत्ति की मारिका कविता दिव्य महान।
कविता को जो पूजता वही बड़ा धनवान।।


भावों से कविता बहत बन जाती है गंग।
 बनी आयुषी कर रही मानव मन को चंग।।


नहिं दुर्जन के हृदय में है कविता का वास।
महामानवों के दिलों में कवि का आवास।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मादकता"


रसाकार अति रम्य सुरम्या,
अति सुरभित आसवी अगम्या,
महा बोधिका हृदय अवस्थित,
तरला सरला दिव्या मन्या।


मह मह मह मह मह मह महकत,
चम चम चम चम चम चम चमकत,
नित्य नवेली नित नित्येश्वरि,
महा मुद्रिका दम दम दमकत।


मन्मथ मनसिज कामदेव रति,
मनोरमा मद मादकमय मति,
सहयोगिनि संयोगिनी सहचर,
महा -कामिनी मदना मनपति।


महा रूपसी सुन्दर देहा,
उत्पादित करती सुख स्नेहा,
सहज सुशोभित मन में बैठी,
तुम प्रसन्न अतिशय प्रिय गेहा ।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मानव खुद बन गया कोरोना"


मानवता से होअति  दूर ,मानव खुद बन गया कोरोना.,
मन में रखता घृणा व द्वेष, प्रेम नाम की चीज नहीं है,.
बना हुआ है तिकड़मबाज, क्षद्मवेश में घूम रहा है.,
सदा लूटने को तैयार, खोज करता है शिकार को.,
बना हुआ जहरीला जन्तु, कैसे प्राण बचे हे भगवन.,
करता रहता अत्याचार, कमजोरों पर टूट पड़त है,.
कोरोना दानव की जाति, ललकारो इस दनुज वंश को.,
करो प्रतिज्ञा पावन आज, छोड़ेंगे हम नहीं कोरोना.,
करना है संगठित प्रयास, डालो भून कोरोना-दानव.,
मन में रखना है विश्वास, हम जीतेंगे निश्चित समझो.,
शुचिता का रखना है ख्याल, ललकारेंगे दुर्गा बनकर.,
कभी न होना है भयभीत,दानव-कोरोना है मैला.,
साफ-स्वच्छता का रख ख्याल, मर जायेगा निपट दरिंदा.,
यज्ञ-हवन-पूजन का काम, अब तो कर प्रारंभ मित्रगण.,
मत चूको मत करो विलंब, दानव-कोरोना का वध कर।


(आल्हा शैली में प्रस्तुति)


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

वक्त ला रहा हे हमे, पुरातन की ओर।
जाग मुसाफिर क्या चाहता हे, तेरे यहां का छोर।
देख गगन को अकुलाता है, बार बार की गोली से।
और धरा भी धरासाई होती, यू ही खोद मोली से।
आज प्रकृति भी रूठी है, नर बोलती है बोल।
पर तू नही इनकी सुनता खुब मचाए शोर।
आज विधाता भी चाहता है, कर ले भजन जिंदगानी मे।
हर तरफ से तुझको जकडा, लेकर एक कहानी मे।
अब तो समझ ले, अब तो कर ले, थोडा सा है मोल।
और यहा जीवन जी जा खूद पर कर कंट्रोल।
बार बार आगाज है करते, हर समय सब कुछ बतलाते।
भागवत, गीता कह चुकी है, कुछ नही यू क्यो तुम रहते।
अब तो कर लो ,अपने आप का, और करो उद्धार।
वरना भूल जाओ तुम जाना है उस पार ।
आज अंह और धन मे रहते, करते फिजुल खर्ची।
देखा वो कैसा है बैठा, तिकडम बाज दर्जी।
उसके हाथो बच ना सकेगा, मनमानी जो तू करेगा।
आ आजा प्रभू शरण मे, यही बात  का सार।
बाकि सब बेकार है, माया जाल अपार।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


बुद्धि प्रकाश महावर "मन"                दौसा (राजस्थान)

जिस कोरोना के डर से (गीत विधा)
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जिस कोरोना के डर से, घबराई दुनिया सारी है।
हार गया वो जिसके आगे, वो एसएमएस भंडारी है।


डी एस मीणा, एस बनर्जी, प्रकाश केसवानी।
अभिषेक, रमन शर्मा से, सुनो सफल कहानी।
मानव की वो जान बचाए, घातक महामारी है।


जहाँ बन्द है देवालय और देवों के मठाधीश।
झाड़-फूंक और तंत्र-मंत्र, ढोंगी के सब आशीष।
जान हथेली पर लेकर खुद, करते रक्षा हमारी है।


ना हाथों में हाथ देना, ना ही गले से लगाना।
स्वच्छता का है रखना ध्यान, सबको है जगाना।
मुँह को ढ़क कर आगे बढ़ना, कैसे फैले बीमारी है।


हौसला रखना खुद और दूसरों को देना।
 दूरियां बनाकर रखना, जीवाणु मत लेना।
सावधानी से ही अब तक हम सब से ये हारी हैं।


जुकाम खाँसी और बुखार सिर दर्द में हो कोई।
कोरोना के लक्षण है ये, देख के दुनिया रोई।
तुरंत चिकित्सालय जाओ तब,कैसी सोच विचारी है।


धन्य-धन्य है डॉक्टर सारे, धन्य है उनकी माई।
ईश्वर को ना देखा "मन" ने, तुमने जान बचाई।
शत-शत वंदन और अभिनंदन करती दुनिया सारी है।


               बुद्धि प्रकाश महावर "मन"
               दौसा (राजस्थान)


संदीप कुमार बिश्नोई दुतारांवाली तह0 अबोहर पंजाब

गजल


जीयो और जीने दो


जीव मांगे भीख ये आदत नहीं
 सर उठाकर तू चले हिम्मत नहीं


क्यों बना मानव बता दानव यहाँ 
छोड़ने वाली तुम्हें कुदरत नहीं


क्यों कुल्हाड़ी से रहा तू काटता 
जीव तेरे बाप की दौलत नहीं


है इन्हें अधिकार जीने का सुनो
मिल यहां इनको रही इज़्जत नहीं


छोड़ जीवों को करो आज़ाद अब
प्राण से बढ़कर कहीं कीमत नहीं


संदीप कुमार बिश्नोई
दुतारांवाली तह0 अबोहर पंजाब


सुनीता असीम

सभी की फिक्र वाला आदमी हूँ।
न मतलब से भरा सा आदमी हूँ। 
***
नहीं रुतबा मेरा तुम तौलना बस।
बड़ा सीधा व  सच्चा आदमी हूँ।
***
कोई भी है नहीं मेरा जहाँ में।
रहा इससे मैं तन्हा आदमी हूँ।
***
मुहब्बत ही रहे मिट्टी में जिसकी।
मैं ऐसे इक वतन का आदमी हूँ।
***
यकीं मुझको नहीं है तोड़ने में।
मैं रिश्ते बस बनाता आदमी हूँ।
***
सुनीता असीम
20/3/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

निर्भया कांड 


एक अध्याय का समापन
निर्भया को इंसाफ मिला
अमानवीय कृत्य जिनका
उन्हें कुकृत्य का दंड मिला


सौ बार सोचेंगे अब दरिंदे
घिनोने कर्म करने के लिए
मिलेगी आत्मा को शान्ति
निर्भया की रूह के लिए


न्याय प्रति विश्वास जगेगा
बेटियों को संबल मिलेगा
संस्कृति की रक्षा होगी तो
संस्कारों को पोषण मिलेगा


काश सबक ले ले समाज
अंजाम न ऐसी वारदात को
मिले न राष्ट्र को शर्मिंदगी
कोई करे न घ्रणित काम को


नारी नहीं है भोग की वस्तु
अपितु सम्मान है राष्ट्र का
सृजेता है सकल सृष्टि की
यह गौरव हॄदय सम्राट का


बेटी है बहिन है माता यह
है देवी स्वरूपा पूजनीया
हुआ विध्वंस वसुंधरा पर
जब इसे अपमानित किया


बेटी बचाएं व बेटी पढ़ाएं
अब रोपें सदभावों के चमन
नारी प्रति कुंठित भावों को
आज मिलकर कर दें दफन।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

सौदा बनी जिंदगी जग में
सबको पड़ता है मूल्य चुकाना
सम्बन्धों में भी सौदेबाजी
जबरन पड़ रहा आज निभाना


स्वारथ के फंदे में फ़सके
हो रही स्वांसों की भी सौदेबाजी
ममता समता प्रेम वात्सल्य
को करे याराना कौंन है राजी


पति पत्नी या पिता पुत्र
सौदे कहूँ या दूँ रिश्तों का नाम
जहां न आवश्यकता पूरी
टूट रहे रिश्ते इंसान है बदनाम


हर वस्तु की खरीद फरोख्त
सौदे सामाजिक मूल्यों पै भारी
कहीं न शांति सौहार्द यहां
लगी है बड़ा बनने की बीमारी


खरीद रहे है कन्या को वर
लगा रहे है मानवता की बोली
प्यार प्रीति बिके पैसों में
मारें रोज इंसानियत को गोली


जिसके पास धन है भाई
खरीद लो जग में ऐशो आराम
हर चीज का सौदा होता
मानवता नहीं बस चाहिएं दाम।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना (मुम्बई)

*वो अच्छे लगते है*
विधा: कविता


हँसता हुआ चेहरा,
प्यारा लगता है।
तेरा मुझे देखना,
अच्छा लगता है।
घायल कर देती है 
तेरी आँखे और मुस्कान।
जिसके कारण पूरा दिन, सुहाना लगता है।।


जिस दिन दिखे न
तेरी एक झलक।
तो मन उदास सा,
हो जाता है।
क्योंकि,
आदि सा हो गया है, 
तुम्हे देखने को जो।
कैसे समझाए दिल को
जो अब बस में नहीं है।।


तमन्ना है कि वो,
रोज दिखते रहे।
मेरे दिल में,
वो बसते रहे।
कभी तो हम, 
उन्हें पसंद आएंगे।
अलग अलग रास्ते, 
फिर एक हो जाएंगे।।


दिन जिंदगी का वो,
यादगार बन जायेगा।
प्यार का किस्सा,
अमर हो जाएगा।
जिस दिन इतिहास,
इसे दौहरायेगा।
तेरा मेरा प्यार,
दुनियां वालो को
समझ आयेगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
20/03/2020


निशा"अतुल्य"

हाल ए दिल
20.3.2020



हाल ए दिल क्या सुनाऊं तुम्हें
कोरोना का हाल समझाऊं तुम्हें
मांसाहार त्याग दो अब तो 
शाकाहार अपनाओ ये बताऊं तुम्हें।


डर डर कर जी रहें हैं सभी यहाँ
महामारी कोरोना है ये बताऊं तुम्हें।


हाथ धोना है बार बार सब को सुनो
घर से बाहर नहीं जाना ये बताऊं तुम्हें।


टूटेगी चैन विषाणु की तब ही 
नहीं मिलेगा गर कोई नया इंसान उसे।


रहो सुरक्षित करो सुरक्षित सबको
हराना कोरोना को है ये बताऊं तुम्हें।


हाल ए दिल नासमझ है बहुत
याद बार बार ये ही दिलाऊं तुम्हें।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*इक जंग बन गया है कॅरोना।*
*मुक्तक।*


जिन्दगी जीने  का  अब   इक
ढंग  बन     गया    है  कॅरोना।


अब   बचाव  ही   जीवन  का
अंग   बन   गया  है    कॅरोना।।


सावधानी हटी दुर्घटना घटी के
पीछे पड़ना है   हाथ  धो  कर।


हराना इस   महामारी  को  कि
इक जंग  बन गया है   कॅरोना।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मो      9897071046
          8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली

*जिन्दगी अभी बाकी है।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


साठ  के  पार हो  गये  जरूर
पर मानो कि नौजवान हैं।


एक भरी पूरी बगिया के आप
मुखिया     बागवान हैं।।


दूसरी पारी  शुरू  हुई  आपकी
पहली  पारी   के   बाद।
  
जान लो पूरे करने को     अभी 
बहुत  सारे   अरमान  हैं।।


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।
8218685464।।।।।।।।।।


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