*"श्वास-सफर है जीवन जानो"*
(सार छंद गीत)
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विधान- १६ + १२ = २८ मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
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*माने कोई कैसे अपना? अपने करें किनारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
*जीवन भर जो धुन गाया था, क्या उसका अपना था?
माँगी आवाज सदा जिसने, क्या उसका सपना था??
जिसने जीती हर जंग यहाँ, क्यों अपनों से हारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
*दर्द गीत है जीवन का तो, क्यों न जमाना गाता?
एक अकेला गिरता चलता, क्यों हर बोझ उठाता??
साथ नहीं अपनों का मिलता, फिरता मारा-मारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
*देकर वसन सदा जो अपना, तन-तन ढँकता आया।
क्या अपकर्म किया उसने जो, बुन न कफन निज पाया??
ऐसे दानवीर को भी क्यों, नग्न कहे जग सारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
*बचपन-यौवन और बुढ़ापा, अपने कहाँ किसी के?
समय-सरित् में बह जायेंगे, सोचे स्वप्न सभी के।।
महासफर के सब हैं राही, है नाव-तेज-धारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
*श्वास-सफर है जीवन जानो, घड़ियाँ ही गिनना है।
काँटों के पथ पर ही चलकर, कलियाँ भी चुनना है।।
परम-पुण्य पद पाया उसने, जिसने जीवन वारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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