निशा"अतुल्य"

21.3.2020
कान्हा बने द्वारिकाधीश


कहाँ गए कान्हा छोड़ प्रेम नगरिया
बने द्वारकाधीश धर चक्र हाथ कृष्ण कनाही
मत हो उदास बोली सखी,सुन राधे बात हमारी
आएंगे तुमसे मिलने एक दिन कृष्ण मुरारी।


मोर मुकुट अभी शिश विराजे मत हो तू अधीर
तू उनके ह्रदय बसे है वो तेरी सांसो की डोर ।


माखन मिश्री अब ना भाता कर्म का पाठ पढ़ाया
बैरन मुरली तज दी उसने चक्र हाथ  घुमाया।


चल सखी जमुना के तीरे सुना उद्धव हैं आये
कुछ सन्देश भेजा कान्हा ने चल सुनले वहां पर जाय।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


ऋचा वर्मा

एक कप चाय


"कहिये क्या काम है",
लंच कर रहे सहायकों में से एक ने कहा।
"इनके पेंशन में सुधार करवाना है।"
आगंतुक ने अपने हाथ में लिए कागजातों की ओर इशारा किया।
"इसी कार्यालय में पदस्थापित थे?"
"जी, इसीलिए तो यहां आया हूँ।"
"अच्छा, इंतजार कीजिए, लंच करके देखता हूँ।"
लंच करने के बाद सहायक ने कागज उलट - पलट कर देखा, सब कुछ सही था।
" देखिए सभी कागजात तो सही हैं, लेकिन इस अॉफिस में काम इतनी आसानी से नहीं होता",
".... तो इसके लिए क्या करना होगा ",
" फिलहाल तो हम - सब को एक - एक कप चाय पिलवा दीजिए ",कुटिल मुस्कान के साथ सहायक ने कहा। आगंतुक ने खुशी - खुशी सहायक की फरमाईश पूरी कर दी और वहां से चला गया। चाय आ गई, लोग अभी चाय पी ही रहें थें कि सहायक के मोबाइल पर साहब का फोन आ गया, 
"जी सर", फोन पर साहब का नंबर देखते ही सहायक स्वचालित मशीन की तरह अपनी जगह पर उठ खड़ा हुआ। साहब ने फोन करके उसे अपने कक्ष में बुलाया था....।
   साहब के कक्ष में पहुंचकर उसने जो कुछ देखा उसे दिन में तारे दिखाने के लिए काफी था।... अभी - अभी जिस व्यक्ति से उसने एक कप चाय पिलाने की फरमाईश की थी, वह साहब के साथ बड़ी आत्मीयता के साथ बैठा चाय पी रहा था।
"अजय बाबू ये हैं हमारे परम मित्र, अभी हाल में अपने विभाग में पदभार ग्रहण किये हैं, और अब ये मेरे बॉस हैं, इनका काम...."
साहब की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि 
" जी सर अभी करता हूँ.. "
कहता हुआ सहायक. फुर्ती से कक्ष से निकला और आनन फानन में संचिका तैयार..... ।
 " क्या हुआ आज एक कप चाय में ही..."
 एक सहकर्मी ने चुटकी ली।
" आज के बाद यह भी नहीं"
एक हाथ में संचिका और दूसरे हाथ से कान पकड़े सहायक को देख उसके सारे सहकर्मी जोरों से हंस पड़े। 



ऋचा वर्मा


अवधेश रजत      वाराणसी

*निर्भया*
सात वर्ष और चार माह से
जिसकी उसे प्रतीक्षा थी,
न्याय व्यवस्था की खातिर भी
ये तो अग्नि परीक्षा थी।
दुष्ट भेड़ियों की फाँसी पर
वो भी मुस्काई होगी,
आज निर्भया की आँखों में
बदली फिर छाई होगी।
दृश्य भयावह स्मृतियों से
मिटे नहीं होंगे अब तक,
होगी ज्वाला शान्त न मन की
पूछ न लेगी वो जब तक।
आखिर क्या अपराध था मेरा
क्यों ये अत्याचार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


न्यायालय की चौखट पर मैं
आस लगाए खड़ी रही,
बदले मौसम साल महीने
किन्तु वहीं पर अड़ी रही।
नाम निर्भया मिला मुझे पर
निर्भय हो कर रही नहीं,
धारा थी उन्मुक्त नदी की
लेकिन खुल कर बही नहीं।
पापा मम्मी के पैरों से 
छाले फट कर बहते हैं,
दुनिया वालों के तानों को
चुप रह कर वो सहते हैं।
बूढ़े कंधों पर क्यों तुमने
असह्य वेदना भार दिया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


सोचा था मैं बन कर डॉक्टर
सबकी पीड़ा हर लूँगी,
जिस आँचल में बीता बचपन
उसमें खुशियाँ भर दूँगी।
पेट काट कर मुझे पढ़ाया
कष्ट झेल कर पाला था,
दी मुझको आज़ादी पूरी
नहीं स्वप्न पर ताला था।
जब उड़ने की बारी आई
तुमने मुझे दबोच लिया,
फैले थे जो पंख हवा में
तुमने उनको नोच दिया।
मर्यादा की सीमाओं को
तुम सबने क्यों पार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


दुनिया के न्यायालय से जो
न्याय मिला वो थोड़ा है,
नीच कर्म की सजा सरल दे
संविधान ने छोड़ा है।
बेटी बन कर आई जग में
क्या उसका परिणाम मिला ?
जगदम्बा के पुण्य रूप को
भक्तों से ईनाम मिला।
हुई दुर्दशा दैहिक जितनी
उतना ही सब जान रहे,
मन पर मेरे घाव लगे जो
उससे सब अनजान रहे।
अधिवक्ताओं के तीखे
प्रश्नों ने प्रबल प्रहार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


©अवधेश रजत
     वाराणसी
सम्पर्क#8887694854


अखंड प्रकाश कानपुर

आज अकेले लड़ना मुश्किल,
सबको यह समझना होगा।।
आपदाओं से बचना हो तो,
मिल कर कदम बढ़ाना होगा।।
डरो नहीं डरवाना मत बस ।
एक राह अभिव्यक्ति की है।
आज जरूरत हर शरीर में।
बढ़ी आत्मशक्ति की है।।
सुभग स्वक्षता कण कण की हो।
सबको यह बतलाना होगा।।
आपदाओं से बचना हो तो।
मिल कर क़दम बढाना होगा।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे बचें


विश्व संक्रमण ग्रस्त हुआ,सब जगह दिखे प्रभाव।
कैसे बचें महामारी से,इसका न कोई बचाव।।


बढ़ रही दिनों दिन संख्या, रोग ग्रस्त इंसानों की।
ईजाद न कोई उपचार हुआ, आई सामत प्राणों की।।


गर चाहते हो बचें इससे,अलर्ट खुद को कीजिए।
शीतल वस्तुएं त्यागकर, गर्म काढ़ा औषधि पीजिए।।


अनर्गल न घर से निकलो,भीड़ भाड़ से दूर रहो।
स्वच्छता का ध्यान रखो,ताजगी से भरपूर रहो।।


दूरी बनाकर रखो तुम,इंसान या संक्रमित स्थान से।
मॉल सिनेमा बाजार त्यागो,वरना जाओगे जान से।।


जनता कर्फ्यू की पालना, लापरवाही को छोड़ दें।
रख सजगता थोड़ी सी, आओ दिशा हम मोड़ दें।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।

*व्यर्थ ना जाये, कि बहुत खास*
*है ज़िंदगी।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


मिल    कर    देखो     जरा  कि
प्यार का   अफसाना है ज़िंदगी।


हर      रंग   को     समेटे   कोई
रंगीन   तराना      है      जिंदगी।।


ज़िंदगी  इम्तेहान   लेती  है तुम्हें
ही   मजबूत  बनाने   के    लिये।


मिलकर जियो कि  खुशीयों गम
का  कोई     याराना   है जिंदगी।।
*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"दिल की किताब"*
"दिल की किताब पर साथी,
लिख दिया -
बस एक नाम तेरा।
हर एक पल जो बीता,
संग तेरे साथी-
यादों में बसा मेरा।
पलको की छाँव में  साथी,
तेरी बाहो में साथी-
बीते पल दर्ज़ दिल की किताब में मेरी।
मत खुलवाओं बंद पन्नों को,
बंद रहने दो दिल की किताब-
सह न पाओगे दर्द मेरा।
भूल जाओ कही- अनकही,
दिल से न लगाओं-
मत बनाने दो फसाना मेरा।
दिल की किताब पर साथी,
लिख दिया-
बस एक नाम तेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःः    
           21-03-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

राधे राधे बोल मानव जहां मरजी वहां डोल
नहीं व्यापेंगे जग बन्धन हिय कपाट तो खोल


जिस हृदय में बास है श्री राधे कुंजबिहारी का
कहां कष्ट है जग में दैहिक दैविक बीमारी का


सोते जगते जिव्हा जपती मोहन राधेरानी को
कौंन बखान करे भव में ऐसे नर की सानी को


हे माया व मायापति तुम्ही सत्य जीवन के साध
युगलछवि किंकर समझ क्षमा करियों अपराध।


युगलरूपाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😊😊  हुआ नहीं अंधेर। 😊😊


देर  हुई   है   मानिए,  
                    हुआ   नहीं  अंधेर। 
फाॅ॑सी पर चढ़े  ही गए, 
                    चारो    देर   सबेर।


नौटंकी  थी  हो  रही,
                   और न्याय उपहास।
मातु-पिता की सच कहूॅ॑, 
                  टूट  रही  थी  आस। 


सात साल ब्याकुल रहे, 
                  पर  था  ये  विश्वास।
होगी   देर   मगर  नहीं, 
                  कभी न्याय उपहास।


मन  मेरे   संतोष  है,  
                   कहते  हैं  वे  आज।
दुष्कर्मी  फाॅ॑सी  चढ़े, 
                 बची न्याय की लाज।


दुष्कर्मी अब तो डरो, 
                   करो नहीं तुम पाप।
होगी  देर  भले  सुनो, 
                   देंगे   गरदन   नाप।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


प्रखर दीक्षित*           *फर्रुखाबाद

*जय राम रमापति*
*============*


जय जय प्रतिपालक निशिचर घालक, दयानंद जय उर वासी।
जय अवध बिहारी भव भय हारी, प्रणति हरी जय अविनाशी।।
राजीव नयन जानकी कंत , शेषाशायी जय नारायण, 
जय जय वन माली जग खुशहाली, सरन प्रखर जय सुखराशी।।


जय रामलला जय करुनाकर, जय राम रमापति  रघुनंदन।
कर सायक  माल गरे सोहे, सिर मुकट भाल रक्तिम चंदन ।।
मुसकानि अधर बी मांग सिया, उपवास कांध पट पीत गरे, 
हे जगत्पति लक्ष्मीरमणा , अघ ताप हरौ  अंर्त क्रदन।।


         *प्रखर दीक्षित*
          *फर्रुखाबाद*


कुमार कारनिक (छाल,रायगढ़,छग)


*पथराई आँखें*
 (निर्भया की माँ)
  ^^^^^^^^^^^^
न्याय का खेल-
बहुत हो गया-
कानून बाजों ने,
भ्रमित कर मुझे तड़पाई।
हर पल-पल मै-
सुबह समाचार देखती-
अच्छी खबर मिलेगी,
गुहार लगाई।
लम्बी रास्तों में-
पथराई आँखें-
उम्मीद की किरण,
आँसू सूख गई।
सपने में निर्भया-
हर समय आती-
माँ,कब मिलेगा न्याय मुझे,
मै आस छोड़ गई।
झूठ का बोलबाला-
प्रतिदिन घटता यहां-
मौका देते बार बार,
लड़ते-लड़ते थक गई।
झरने जैसे-
रोज-रोज दलीलें-
देश का साथ मिला,
सबकी दुआएं जीत गई।


            🧕
                     *****


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर (हरियाणा )

निर्भया मन शांत हुआ... 


एक कार्य क्रियाविन्त हुआ. 
निर्भया विचार अनंत हुआ. 
लम्बे संघर्ष से जीता है, 
एक बुरे अध्याय का अंत हुआ. 
कितना बड़ा सफ़र है झेला, 
कई बार विश्वास पर्यंत हुआ. 
पांच दरिंदो की टोली थी, 
चार का जीवन हलंत हुआ. 
चलो, न्याय की जीत हुई, 
"उड़ता "निर्भया मन शांत हुआ. 



✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
झज्जर (हरियाणा )
#9466865227


udtasonu2003@gmail.com


हलधर

गीत - महामारी( रोकथाम)
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(22मार्च एक दिन राष्ट्र के नाम)
---------------------------------------
लड़  रही  इस रोग से  दुनियां थकी है ।
विश्व भर की आश भारत पर टिकी है ।।


रोम इटली चीन भी तो लुट चुके हैं ।
पक्षियों के घोंसले तक मिट चुके हैं ।
देख लो क्या हाल है ईरान का अब ,
होंसले अमरीकियों के घट चुके हैं ।।


आप खुद संयम रखें बाहर न जायें ।
आश पर विश्वास की चादर बिछी है ।।1


मानवी गति और विधियां मंद होवें ।
आपसी मिलने की रश्में बंद होवें ।
बिन दिखे ही डस रहा ये नाग सबको ,
युद्ध जैसे अब कड़े परबन्ध होवें  ।।


सावधानी से रहे तो जीत पक्की ।
सभ्यता इस विश्व की हमसे सिंची है ।।2


मौत से अब ठन गई  सीधी लड़ाई ।
बंदिशें खुद पर रखो कुछ रोज भाई ।
यज्ञ में समिधा सरीखा दान है यह ,
यदि बचाना बाप बूढ़ा और माई ।।


अनगिनत लाशें बजुर्गों की जली है ।
मौत की यह चाल भारत आ रुकी है ।।3


ग्रीष्म की भीषण तपिश से ये मरेगा ।
सूर्य की किरणों का यह पानी भरेगा ।
आग ज़ब निकले दिवाकर रश्मियों से ,
रोग  कोरोना  हमारा  क्या  करेगा ।।


देश के प्रधान का आव्हान "हलधर"।
छंद नक्काशी नहीं कविता लिखी है ।।4


हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"श्वास-सफर है जीवन जानो"*
(सार छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १२ = २८ मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
****************************
*माने कोई कैसे अपना? अपने करें किनारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*जीवन भर जो धुन गाया था, क्या उसका अपना था?
माँगी आवाज सदा जिसने, क्या उसका सपना था??
जिसने जीती हर जंग यहाँ, क्यों अपनों से हारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*दर्द गीत है जीवन का तो, क्यों न जमाना गाता?
एक अकेला गिरता चलता, क्यों हर बोझ उठाता??
साथ नहीं अपनों का मिलता, फिरता मारा-मारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*देकर वसन सदा जो अपना, तन-तन ढँकता आया।
क्या अपकर्म किया उसने जो, बुन न कफन निज पाया??
ऐसे दानवीर को भी क्यों, नग्न कहे जग सारा?
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*बचपन-यौवन और बुढ़ापा, अपने कहाँ किसी के?
समय-सरित् में बह जायेंगे, सोचे स्वप्न सभी के।।
महासफर के सब हैं राही, है नाव-तेज-धारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।


*श्वास-सफर है जीवन जानो, घड़ियाँ ही गिनना है।
काँटों के पथ पर ही चलकर, कलियाँ भी चुनना है।।
परम-पुण्य पद पाया उसने, जिसने जीवन वारा।
जानें सब सबको ही अपना, सबका बनें सहारा।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


नूतन लाल साहू

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
चारो खुट,छाय हे, कुलूप अंधियार
तभो ले संगी,हिम्मत झन हार
सबले अलग हे,छत्तीसगढ़ के रीत
सबले सुग्धर हे,हमर धरम नीति
भुइंया म हावय, दान दया धरम
तियाग तपस्या अरपन ऊंचा करम
जग म हिंसा घिरना के,खेल चलत हे
सुर दुर्लभ,मानव तन पा के
भाई भाई कटत मरत हे
छत्तीसगढ़ ह,अन्न बाटिस जग ल
अब जग ल बाटना है,मानव धरम ल
चल उठ एक ठिन,दिया ल तो बार
चारो खुट छाय हे, कूलुप अंधियार
तभो ले संगी, तै हिम्मत झन हार
सबो दिन एके सही, नइ होय
मनखे के चिन्हारी, विपत म होथे
समे के खेल आय, सहि ले विपत पीरा
कोरोना वायरस ह,फइलत हे
संकट ह, एकदिन टर जा ही
हिम्मत झन हार,भरोसा ल राख
रतिहा कूलूप अंधेरी हे, त का होइस
बिहनिया सुरुज आ ही, धीर धर
छत्तीसगढ़िया,सबले बढ़िया
चल उठ एक ठिन,दिया ल तो बार
चारो खुट छाय हे, कुलूप अंधियार
तभो ले संगी,तै हिम्मत झन हार
नूतन लाल साहू


अतिवीर जैन पराग मेरठ

 


 दहशत :-


दहशत में सारा विश्व आया हुआ है, 
कोरोना से हर कोई घबराया हुआ है.


पेहले किडे मकोडो को मार खाते रहे, 
सूप पीकर स्वाद जीभ का बढ़ाते रहे.


इन जीवों के ज़हर ने,
बीमार सबको बना दिया,
कोरोना वाइरस ज़हर भरा बना दिया.


पेहले हम जीवों को खाते रहे,
अब जीव हमें खाने लगे, मौत के डर से सब दहशत में आने लगे. 


प्रक्रति के विरुद्ध जब भी मानव जायेगा, कोरोना जैसा वाइरस हमें दहशत में लायेगा . 


प्रक्रति भी लेती है बदला,
सबको समझना होगा, दहशत से बचना है तो,
प्रक्रति के साथ चलना होगा. 


अतिवीर जैन पराग 
पूर्व उपनिदेशक,रक्षा मंत्रालय,मेरठ 
मोबाइल :9456966722


 . स्वरचित


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

बदलना मत.... 


मेरी किसी बात पर उछलना मत. 
कभी जरुरत पड़े तो बदलना मत. 



तेरे आगोश की कबसे तमन्ना है, 
बाँहों में आओ तो संभलना मत. 


जनता हूँ तुझे मैं इतना पसंद नहीं, 
बस तू कभी मेरे साथ अकड़ना मत. 


तुझे मैंने चाहा सदा हमसाया बनकर, 
साथ रहना, बेशक़ हाथ पकड़ना मत. 


तुम्हारे साथ ख़्वाब में मचलता हूँ, 
लेकिन तुम, मेरी नींद जकड़ना मत. 


कितना, कबसे दौड़ रहे हो "उड़ता ", 
होके नासाज़ मेरे पंख कतरना मत. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

साफी है 


कैसे मानूं तेरी माफ़ी है. 
तेरा साथ आना काफ़ी है. 


तुझे नक़ाब का शौक है, 
मेरे हाथ में साफी है. 


तुम मेरा इश्क़ हो गहरा, 
ना मानो ये सराफी है. 


हरदिन अनगिनत ख़्वाब है, 
इनकी कहाँ हराफी है. 


बस तू मिल जाए "उड़ता ", 
ज़िन्दगी में यही ट्रॉफी है. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

जीव विज्ञान.... 


परमात्मा ने बनाई एक दुनिया. 
ये ऊँचे पहाड़, कल -कल बहती नदियाँ. 
मानव जीवन का विकास, 
हर- पल बदलती सदियाँ. 


ये जीव-विज्ञान क्या है, 
मर कर ये अक्स जाता है कहाँ?
उसके बारे में जानना था, 
यों उठा जज़्बात -ए -जोश यहाँ. 


हुआ रंगीन कैसे ये जहाँ?
दूर तक फैला आसमां. 
नहीं हाथ आया ये मौसम, 
ना रुकी रोकने से हवा. 


कैसे बढ़ी रफ़्तार हौसलों की, 
हमने संघर्ष बहुत सहा. 
खुद को ढाला है सांचे में, 
तब जाकर हुआ कुछ नया. 


सोच कर देखो ये धरा, 
चाँदनी रात, तारों भरी वसुंधरा. 
सेहरा में पिरोये मोती -तारे, 
धूप का टुकड़ा कहाँ जाकर गिरा. 


तरक्की हुई है विज्ञान से, 
ये सब तभी जाकर हुआ. 
मन किया सबकुछ जानने का "उड़ता ", 
सब में जगा दी तुमने इच्छा. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


अनुरंजन कुमार "अंचल"                अररिया, बिहार

ग़ज़ल


तेरी मोहब्बत में मैं उम्र भर मरना सीख रहा हूं
दिन - रात मैं तेरी इबादत करना सीख रहा हूं।


तेरी याद मुझे आती किसी को क्या बताऊं मैं
 मैं पागल हूं,तेरा दिल में उभरना सीख रहा हूं।


दर्द - ए - दिल के कारण से मैंने सबको भूल गया 
 अपनी मंजिल की राह से उतरना सीख रहा हूं।


तेरी मोहब्बत में मेरा परिवार रुस्वा हो गया
अपनी आंसू से मैं रूमाल भरना सीख रहा हूं।


तेरी फितरत थी कैसी, ये तो  मुझे  पता नहीं था
ये इश्क़ में मैं तन्हा होकर गुजरना सीख रहा हूं।


इश्क की रोचक कहानी मुझे पल-पल याद रहेगी
तेरा इश्क़ के मस्तूल से मैं तैरना सीख रहा हूं।


 


          अनुरंजन कुमार "अंचल"
               अररिया, बिहार
             7488139688


गीता चौबे "गूँज"                  राँची झारखंड

कोरोना गीत 
**********
कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है, 
इसको दूर भगाने खातिर, इक अभियान निरंतर है।


भीड़भाड़ से दूर रहें सब, नहीं किसी से हाथ मिले,
सिर्फ नमस्ते करना भइया, भले किसी की नाक छिले।
सबसे पहले देह बचाना, शेष सभी तदनंतर है,
कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है।


घड़ी-घडी हाथों को धोना, बिन धोए कुछ खाना मत,
चाहे कोई कितना पड़ ले, फिर भी गले लगाना मत।
दूर देश से चलकर आयी, बड़ी बेशर्म छछूंदर है, कोरोना से बचना भइया, यह तो बड़ी धुरंधर है ।
                   ©️®️
                गीता चौबे "गूँज"
                 राँची झारखंड


परमानंद निषाद निठोरा*

 


---------- *गीत* ----------


पिता की आस है गीत।
मां का विश्वास है गीत।
मेरे घर की है नव किलकारी।
सबकी चहेती गीत दूलारी।
हौसलों की उड़ान है गीत।
भारत की पहचान है गीत।
प्रतिभा का सम्मान है गीत।
सिंधु,सायना का मान है गीत।
विकास का पहचान है गीत।
किसान की बेटी है गीत।
मेरी नहीं आस है गीत।
देश की आन,बान,शान है गीत।
देश की गर्व है गीत।
सौंदर्य का रूप है गीत।
परमानंद का गौरव है गीत।
गीत के कंधों मे उम्मीदों का विश्वास है।
प्रतिभा देश की आस है गीत।
संस्कार,समाज को बदल रहा है गीत।
देश की दिशा,राह तेज गति से चल रहा है।
स्वर संगीत का नाम है गीत।
मधुर वाणी का पहचान है गीत।


आशा जाकड़

विश्व गौरैया दिवस


गौरैया ः हाइकु 


चीची कर के 
सबको तू जगाती
खुश हो जाती 


फड़फड़ाती 
आती थी तू सुबह
शोर मचाती


मेरी गौरैया
रूठ गई मुझसे
खड़ी कब से


तेरा घोंसला
ठंडी आह सी भरे
प्रतीक्षा करे


रुई के फाये
याद करके रोयें
आजा चिड़िया


गाएँ गौरैया
खूब चहचहाएँ
गीत सुनाएँ


पेड़ बुलाते
सूनी हो गई शाखें
कहाँ हो पाखें?
 
लौट आओ न
गौरैया आजाओ न
रूठ गई हो?


तिनका लाती
बीन बीन करके
घर सजाती


कोलाहल से 
पक्षी उड़ गये हैं
निज डैनों से


 


आशा जाकड़
9754969496


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम'


वीणापाणी शारदा विद्या महा महान।
विपदाओं को भस्म कर हे माँश्री भगवान।।


करो भूमि-जगती को पावन।हो अवतरित दिखे तव आवन।।
पापाचार बढ़ गया है माँ।अत्याचार सब जगह है माँ।।
साधु-संत सब दुःखी यहाँ पर।महिषासुर की शक्ति यहाँ पर।।
गन्दे-मैले-कुत्सित दिखते।दानवता की हिस्ट्री लिखते।।
दुर्दिन दिखता आज यहाँ पर।भारी पड़ता दुष्ट सभी पर।।
करो कृपा हे मातृ सरस्वति।लाओ जग में शुभमय सद्गति।।
अब मत देर करो हे माता।शिव कल्याणी जगत विधाता।।
करो पापियों का वध माता।सन्तजनों से रख बस नाता।।
कोरोना को कुचलो माता।संकट काल भगा दो माता।।
साफ-स्वच्छ हो सारी जगती।पट जाये पुण्यों से धरती।।
शुभ सुकाल बन दर्शन दे माँ।हराभरा तन मन कर दे माँ।।


साफ-स्वच्छ वातावरण स्वस्थ सकल संसार।
विष से मुक्त करो जगत मिले अमी का प्यार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम'


प्रीति रहे उर में सदा मन हो उसका द्वार।
प्रीति अमृता पान से हो सबका उद्धार।।


प्रीति रसायन दिव्य शरद है।प्रीति सर्वदा सहज वरद है।।
सदा प्रीति का हो सम्माना।प्रीति गंग में नित्य नहाना।।
करो प्रीति पर कभी न शंका।सदा बजे प्रीति का डंका।।
करो प्रीति की नित्य वन्दगी।समझ उसी को प्रिया जिन्दगी।।
अपनाओगे प्रीति अगर तुम।बन जाओगे वुद्ध प्रवर तुम।।
छोड़ कपट अरु दंभ भगाओ।प्रीति पीत-अम्बरी पाओ।।
रहो उल्लसित हर्षित मन हो।रोमांचित तन का कण-कण हो।।
समझ प्रीति को स्वर्ग समाना।बिना प्रीति मन सूना-साना।।


प्रीति करो सबसे सहज समझ प्रीति आधार।
प्रीति धर्म सत्कर्म से खुद को सदा सुधार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


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