निशा"अतुल्य"

कैसे बचें
22.3.2020


जिंदगी की जद्दोजहद बे शुमार है 
बोलो कैसे बचें साथ कौन दिलदार है
रात दिन रोना इस कोरोना का 
बोलो कैसे बेड़ा होए अब पार है ।


हाथ बार बार धोएं नही किसी को छुएं
नमस्ते को अपनाएं जिसे भूले हम यार हैं।


आँख नाक न छुएं रखना ख्याल है 
बचने का एक तरीका जनता कर्फ्यू आज है ।


भीड़भाड़ में जाना नही,कोई कार्यक्रम करना नही
रहे सुरक्षित तो हर दिन त्यौहार है ।


टूटेगी जो चेन ये सुरक्षित होंगे सभी 
बस नियम पालन करो देश सब साथ है।


कोरोना को हराना है देश को बचाना है 
सब ऐसे बोल रहे बोलो कैसे बचें भाई।


आज बस घर मे रहो जाना नही बाहर है
मान ली जो ये बात तभी होगा बेड़ा पार है ।


घबरना नही है विषाणु भले ही भीषण घातक है 
मिल कर कोरोना हराएंगे संस्कृति बचाएंगे 
सब जन जनता कर्फ्यू निभाएंगे।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"मन"*
"मन की पीड़ा को साथी,
जग में मन ही जाने।
कोई न जगत में तेरा,
जो इसको पहचाने।।
सच्चे संबंधों को भी,
कोई अपना न माने।
स्वार्थ की धरा पर तो,
हर कोई पहचाने।।
मैं-ही-मैं बसा मन जो,
अपनत्व को न माने।
जीवन है-अनमोल यहाँ,
इसे भी न पहचाने।।
दे शांति तन-मन जो यहाँ,
ऐसा गीत न जाने।
भक्ति रस में डूबे तन मन,
तब प्रभु को पहचाने।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupt
          22-03-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

भारत तो वह पावन वसुधा है
जहां लीन्हा प्रभु तुमने अवतार
सभी स्वस्थ्य और रहें निरोगी
कर दो कन्हैया ऐसा चमत्कार


जन्म समय ही काट के बंधन
कारावास कौ कियो  बहिष्कार
सावचेत कान्हा कियो कंस को
बहुत कर लियो तूने अत्याचार


हे भव बंधन को काटने वाले
काटो कोरोना का भीषण जाल
सभी जगह हाहाकार मचा है 
चहुओर शान्ति करो नन्दलाल


जगतपिता प्रभु पीताम्बर धारी
सकल जगत कौ हुओं बेहाल
करो स्वीकार प्रार्थना सत्य की
कष्ट हरो जग करो खुशहाल।


श्री जगन्नाथाय नमो नमः💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🌹सुप्रभात🌹
🌴🌻☘✨🥀🌿
सभी सुखी हो, और निरोगी,
 जीवन में आनंद हो।
स्नेहामृत अविरल छलकाएं,
शीतल मन्द सुगन्ध हो।
सेवा से हर क्षेत्र संवारे,
सभी के दुखों का अंत हो।
सहज भाव से निर्मित बनकर,
हमें निरंतर चलना है।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई)

*बंटाधार की करनी*
विधा: गीत


मिली थी सत्ता मध्यप्रदेश की,
कांग्रेस को 15 सालो के बाद।
लूटा दी 15 महीने में ,
फिरसे लूटियाँ बंटाधार ने।
कितना मनहुस है ये,
अब कांग्रेस के लिए।
चलती हुई सरकार को,
डूबवा दिया  बंटाधार ने।
फिर से मध्यप्रदेश को,
बना दिया अभागा।
और मुख्यमंत्री दर्शक बनकर
देखता रहा पूरा तमासा।।


मेहनत जिसने की थी,
चुनावो को जीतवाने में।
उसी इंसान के खिलाप,
जहर उगलते रहे ये दोनों।
और उसके आत्म सम्मान को,
 ठेस पहुंचाते रहे अपनी चालो से।
पर शायद अपनी हद को पार,
इस बार ये दोनों कर गए।
और परिणाम कांग्रेसियों के,
दिगज्जो के सामने आ गया।।


इस बार सोये हुए शेर को, 
इन्होंने ज्यादा छेड़ दिया।
तभी उसकी दादी दिलमें, 
इस बार प्रवेश कर गई।
और फिर दोनों की पेंट,
पूरी गीली हो गई।
और फिर सुखाने को, 
यहां से वहां भागते रहे।
परन्तु अब कही पर भी,
ये सूखने वाली ही नहीं।।


कब तक बंटाधार को,
ढोते रहोगे कांग्रेसियों।
और प्रदेश का बंटाधार,
दिग नाथ से करवाते रहोगें।
शीर्ष नेताओं का भी,
यही हाल है लोगो।
मां पुत्र और पुत्री को भी, 
चमचों की दरकार है लोगो।
तभी तो युवा नेताओ का,
कांग्रेस में बुरा हाल है।।


सभंल जाओ युवाओं तुम,
नहीं है भविष्य कांग्रेस में।
ये तो वंशवाद से शुरू हुई,
वही पर अब अंत हो जाएगी।
अभी भी वक्त है,
माँ बेटे और बेटी के पास।
हटाओ दरबारी चमचों को,
अपने आजू बाजू से।
वरना कांग्रेस का अंत 
अब आगे निश्चित है।।


कहते है युवा ही देश के, 
अब आगे भविष्य है।
कहने में तो मुंह से ये,
बहुत अच्छा लगता है।
परन्तु अमल कोई कांग्रेसी,
इस पर करता ही नहीं।
तभी तो युवाओं की शान,
निकल गये अब कांग्रेस से।
और अब मानो मध्यप्रदेश से,
कांग्रेस खत्म हो गई।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
21/03/2020


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

*"कोरोना का कहर"* (भाग १) (दोहे)
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
¶आया वुहान चीन से, कोरोना का रोग।
सावधान इससे रहो, रोकथाम कर लोग।।१।।


¶सर्दी-जुकाम-छींकना, हो सिरदर्द-बुखार।
हो सकती है यह सुनो, कोरोना की मार।।२।।


¶घातक सूक्ष्म विषाणु है, यह कोविड उन्नीस।
जान महामारी बना, असह्य इसकी टीस।।३।।


¶कोरोना का है कहर, छाया चारों ओर।
मचती हाहाकार है, है इसका ही शोर।।४।।


¶संक्रामक यह रोग है, इसका कोप प्रचंड।
मनुज विरोधी कर्मफल, कोरोना जनु दंड।।५।।


¶अफवाहों से तेज यह, रूप धरे विकराल।
कोरोना विषदंत सम, करता कवलित-काल।।६।।


¶नहीं बनी नाशक दवा, कोरोना-संत्रास।
इससे उपाय मुक्ति का, सतर्कता है खास।।७।।


¶सावधान-घर में रहो, आये मत दुर्योग।
बहुत जरूरी हो तभी, निकलो बाहर लोग।।८।।


¶मेलजोल से दूर ही, कोरोना से त्राण।
ध्यान स्वच्छता का रखो, रहे सुरक्षित प्राण।।९।।


¶अवसरवादी वायरस, करना तनिक विचार।
कोरोना सा मत करो, तुम विकलित व्यवहार।।१०।।
"""'""""""""""""''""""""""'''''''""""""'"'''''""''""
 *"कोरोना का कहर"* (भाग २) (दोहे)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
¶अभिशापित यह चीन का, है जैविक हथियार।
झेल रहा अब विश्व है, कोरोना की मार।।११।।


¶कोरोना है बन चुका, दहशत का पर्याय।
सूझ-बूझ से बंद हो, काला यह अध्याय।।१२।।


¶मास्क सुरक्षित मुख रखे, कर लेना उपयोग।
आत्मबोध से ही मिटे, कोरोना का रोग।।१३।।


¶है संस्कृति-पाश्चात्य का, कोरोना परिणाम।
हाथ मिलाना छोड़कर, करना नमन प्रणाम।।१४।।


¶तीन फीट तक दूर रह, कर आपस में बात।
कोरोना की घात से, रखो निरोगी गात।।१५।।


¶संस्कृति शुभ उन्नत अहो! कर लो अंगीकार।
प्रक्षालन कर-पाद का, कोरोना उपचार।।१६।।


¶बाइस मार्च दिनाँक है, सन् दो हजार बीस।
जनता-कर्फ्यू से मिटे, कोरोना की टीस।।१७।।


¶कर्मी स्वास्थ्य विभाग के, सेवारत दिन-रात।
कोरोना से मुक्त हों, सुधर सके हालात।।१८।।


¶मानव सेवा में सदा, जो हैं लगे विभाग।
धन्यवाद के पात्र हैं, सेवा भावी-त्याग।।१९।।


¶जीवन सबका हो सुखी, हो न कभी दुर्योग।
सीख गहो सब प्रकृति की, ग्रसे न कोई रोग।।२०।।
"""""""""'"""""""'''"""""'''"""""""""''"""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
"""'''''""'""""""""""""""""""""""""""""""""""


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अवधी घनाक्षरी


हिय  धड़कति   हइ,  तन   फड़कति  हइ, 
जब  से  ये  नैनन  ने,  उनको  निहारो  है।
सुध  बुध गवाँई  के, शीश निज  नवाई के, 
अपनो   ये  तन  मन,  उनपे  ही  वारो  है।
जैसे खिलो गुलाब हो, खुशबू बेहिसाब हो,
रावरे  के   रुप  ऐसो,  ईश  ने  सँवारो  है।
दरपन   निहारति,   केश    लट   सँवारति, 
कोमल  अधर  बीच,  हँसी  को  दरारो  है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हलधर

ग़ज़ल (हिंदी) ( वायरस)
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संक्रमण का आक्रमण दमदार होता जा रहा है ।
वायरस यह विश्व की सरकार होता जा होता है ।


लग रहा था आदमी ही सृष्टि का श्रृंगार होगा ,
किंतु जौविक युद्ध का अभिसार होता जा रहा है ।


आदमी जो खा रहा है भोग में कीड़े मकोड़े ,
इसलिए ही रोग का अधिकार होता जा रहा है ।


योग की ताकत दिखाकर मौत को हमने हराया ,
क्यों हमारा ज्ञान यह बेकार होता जा रहा है ।


आदमियत ताक पर कमजोर अंतस हो गया है ,
साधनों में लीन अब व्यवहार होता जा रहा है ।


लोक मंगल के लिए विज्ञान के रथ पर चढ़े थे ,
ज्ञान यह अब आणविक हथियार होता जा रहा है ।


खोजने को चल पड़े हम अस्त्र अब तो वायरस में ,
कृत्य यह  संघार  का  उपहार होता जा रहा है ।


चीन अमरीका भले आरोप आपस में लगाएं ,
ध्येय जन कल्याण का निस्सार होता जा रहा है ।


साधना गिरवी पड़ी है साधनों की कोठरी में ,
विश्व कोरोना समुख लाचार होता जा रहा है ।


यदि सभी का साथ हो तो रोक पाएं वायरस को ,
मंत्र "हलधर"रोग का उपचार होता जा रहा है ।


हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

कविता
जिंनगी म मधुरस घोरथे
पीरित डोरी ल जोरथे
रददा भटके मनखॆ मन ल
सत के मारग रेंगा देथे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
सपना ल हरियर, बना दे थे
मनखे के तकदीर ल,संवार दे थे
अड़हा ल ग्यानी,बना दे थे
परबत म रददा,दिखा दे थे
जिनगी म मधूरस घोरथे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके मनखॆ,मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
अपन अपन गोठ, सबो गोठियाथे
जिनगी ल भला, कोन समझ पा थे
संग छोड़थे, सबो आरी पारी
रहि जा थे, रतिहा अंधियारी
कविता ह दिखाथे, अंजोर
जिनगी म, मधूरस घोर थे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके, मनखे मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
अंधियार ल तै झन,बखान
मोर गोठ ल त मान
रतिहा पहाही, हाेही बिहान
घुरूवा के दिन,घलो बहुरथे
कविता म भरे हे, ये ग्यान
जिनगी म मधूरस घोरथे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके मनखे,मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
नूतन लाल साहू


मुक्ता तैलंग, बीकानेर

अपना किसी को बनाना नहीं।
हमदर्दी का अब ये जमाना नहीं।


पुकारे कोई पास जाना नहीं।
पड़ोसी से भी बतियाना नहीं।।


गिरके उठेंगे,संभल जाएंगे खुद। 
पकड़के किसी को उठाना नहीं।। 


दौरे-मुश्किल किसी को देना तसल्ली। 
कभी सच्चाई थी यह फसाना नहीं।।


देख बाहरी जमाने की रंगीनियां,
दिल को तुम अपने जलाना नहीं।


घर में रहे जो सुरक्षित रहोगे। 
महामारी है ये आजमाना नहीं।। 


कुछ दिन तो टालो सम्मेलन  सभाएं। 
मान लो शौक होगा पुराना नहीं।। 


जो हो संक्रमित तो छुओ ना किसी को। 
पास जाकरके जग को लुभाना नहीं।। 


ईमान कायम तू रखना अभी भी। 
मुसीबत में रब को भुलाना नहीं।।


अगर खा चुके हो ये मीठा जहर तुम। 
स्वाद इसका किसी को चखाना नहीं।। 


जान तेरी भी हो गर कहीं इसमें शामिल।
मरके रिश्ता यह झूठा निभाना नहीं।।


हमने सजाई जो दुनिया की महफिल। 
अब हमारा ही इसमें ठिकाना नहीं।।


        मुक्ता तैलंग, बीकानेर।


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी

 वीरछन्द आल्हा


अब कोरोना हदस रहा है"


जनसंख्या को स्थिर देख, हदस रहा है आज कोरोना.,
 हो गयी उसकी धीमी चाल,वृद्धि रुक रही नालायक की.,
जनता में है शक्ति अपार, इसके आगे रोता विषधर.,
नतमस्तक कोरोना आज, देख एकता जनसंख्या की.,
जनता के कर्फ्यू को देख,लगा कांपने कोरोना है.,
सामाजिक दूरी का भाव, खटक रहा कोरोना को है.,
जनता है कितनी चालाक, नहीं पता है कोरोना को.,
पात-पात पर जनता आज,  अगर डाल पर कोरोना है.,
सामाजिक दूरी का अर्थ, नहीं जानता कोरोना है.,
सामाजिक दूरी की शक्ति, के आगे बौना कोरोना.,
दृढ़ इच्छा की शक्ति महान, के आगे मर जाते मरियल.,
डटी रहे जनता इक स्थान, हतप्रभ होगा अब कोरोना.
बहुत एकता में है जान,है समक्ष निर्जीव कोरोना .,
जहाँ खड़ा सहयोगी भाव, कोरोना तहँ मरा पड़ा है।


       (आल्हा शैली में प्रस्तुति)


रचनाकार... डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म व्याख्याता

गोस्वामी तुलसीदास कृत लक्ष्मण वन्दना श्री रामचरित मानस


बन्दउँ लछिमन पद जल जाता।
सीतल सुभग भगत सुख दाता।।
रघुपति कीरति बिमल पताका।
दंड समान भयउ जस जाका।।
सेष सहस्रसीस जग कारन।
जो अवतरेउ भूमि भय टारन।।
सदा सो सानुकूल रह मो पर।
कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  वन्दना प्रकरण के क्रम में गो0जी कहते हैं कि अब मैं श्रीलक्ष्मणजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ जो शीतल,सुन्दर और भक्तों को सुख देने वाले हैं।श्रीरघुनाथजी की कीर्तिरूपी विमल पताका में जिनका यश पताका को ऊँचा करके फहराने वाले दण्ड के समान हुआ।
  जो हजार सिर वाले और जगत के कारण अर्थात पृथ्वी को अपने सिरों पर धारण करने वाले शेषजी हैं,जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिए अवतार लिया, वे गुणों की खान कृपासिन्धु सुमित्रानन्दन श्रीलक्ष्मणजी मुझ पर सदा प्रसन्न रहें।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
   शीतल,सुभग,भगत सुखदाता कहने का भाव यह है कि श्रीलक्ष्मणजी प्रभुश्री रामजी के सुयश को भक्तों के सामने प्रकाशित करने वाले हैं जिससे भक्तों का हृदय शीतल हो जाता है और उन्हें बहुत ही सुख प्राप्त होता है।एक अन्य भाव यह भी हो सकता है कि जब महाप्रलय के बाद भगवान शेषशय्या पर विश्राम करते हैं तभी उनका सँहार करने का श्रम शीतल होता है।
  यहाँ गो0जी ने प्रभुश्री रामजी की कीर्ति को पताका व श्रीलक्ष्मणजी के यश को दण्ड कहा।इसका तात्पर्य यह है कि पताका और दण्ड दोनों साथ ही रहते हैं।क्योंकि दण्ड के बिना पताका फहरायी नहीं जा सकती है।श्रीलक्ष्मणजी ने अनेक अवसरों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।जैसे सुबाहु व मारीच युद्ध में सेना का सँहार, सूर्पनखा के नाक कान काटना, जनकपुर में महराज जनक के साथ सम्वाद,धनुषभंग के समय दिक्पालों को सचेत करना,परशुरामजी के साथ वार्तालाप,सुक सारन के हाथ रावण को पत्र भेजना,मेघनाथ वध,आदि।
  श्रीलक्ष्मणजी को हजार सिरों वाले शेषजी का अवतार माना जाता है।यथा,,,
ब्रह्मांड भुवन बिराज जाके एक सिर जिमि रजकनी।
तेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुवन धनी।।
  मेघनाथ वध के पश्चात देवताओं ने प्रभुश्री रामजी के यशगान के साथ श्रीलक्ष्मणजी का भी जयघोष किया था।यथा,,,
बरषि सुमन दुंदभी बजावहिं।
श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं।।
जय अनन्त जय जगदाधारा।
तुम्ह प्रभु सब देवन्ह निस्तारा।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना वायरस के नाते"


आज हम घर को साफ कर रहे हैं,
स्वच्छता दिवस मना रहे हैं।


लोग अपने-अपने घरों आनन्द ले रहे हैं,
मस्ती से जिन्दगी काट रहे हैं।


लोग मस्त हैं,
फ्रीज टीवी कूलर  आरो खिड़की दरवाजों आदि की सफाई में व्यस्त हैं।


बीबी बच्चों एवं परिजनों से बातें हो रही हैं,
सबकी आँखें एक दूसरे को देख रही हैं।


क्या बात है,
मनोरंजक मुलाकात है।


लोग कोरोना को भूल गये हैं,
मौज मस्ती में झूम गये हैं।


यह तो पर्व लग रहा है,
सुखद अनुभूति पर गर्व हो रहा है।


हमारे सुख को देखकर कोरोना जल रहा है,
जल-जल कर खाक हो रहा है।


कोरोना!तुम खूब जलो,
हमें थिरकने दो
मचलने दो।


मजा आ रहा है,
कोरोना सजा काट रहा है।


कोरोना साला भागेगा,
अब पूरा संसार जागेगा।


भारतीय संस्कृति अब जाग गयी है,
पवित्रता आ गयी है।


मानव मन मेँ अमन-चैन है,
कोरोना बेचैन है।।


दुर्योधन हार रहा है,
पाण्डव खूब मार रहा है।


रावण का अंत हो रहा है,
राम का शंख बज रहा है।


हम सावधान हैं,
जंगे -एलान है।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

*जनता कर्फ्यू*


खुद की जान बचाने के लिए साथी हो जाओ तैयार
जनता कर्फ्यू के बारे में अलख जगाना है


कोरोना को हरा जनता कर्फ्यू से दूर भगाना है
जनता के प्रधान सेवक की बात को मानना है


संकल्प और संयम से जनता कर्फ्यू लगाना है
वैश्विक माहमारी कोरोनो से जंग लड़ना है


रविवार को जनता कर्फ्यू खुद को लगाना है
स्वयं स्वस्थ रहने का विशेष संकल्प करना है


संयम रख कोरोनो से हम सबको बचना है
गली गली दस नये व्यक्तियों को जागरूक करना है


कोरोना जैसी वैश्विक माहमारी से हमे बचना है
न संक्रमित मैं हूँ न किसी को होने दूँगा ये प्रयास करना है ।
(रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)


प्रीति शर्मा "असीम"  नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

कोरोना को ....भगायें


 स्वच्छता को अपनायें
 कोरोना को भगायें।।
 धोए हाथ बार-बार,
जीवन को कीटाणु मुक्त बनायें।।


स्वच्छता को अपनायें।
कोरोना को भगायें।


ना मिलाए हाथ ,
एक दूसरे से ।
हाथ जोड़कर बस
आपसी भाईचारा अपनायें।।


स्वच्छता को अपनायें।
 कोरोना को भगायें।।


ना जाए भीड़ -भाड़ में,
घरों में रहकर ,
अपनों के साथ दिन बितायें।


स्वच्छता को अपनायें।
 कोरोना को भगायें।।


जिंदगी की कीमत,
 मौत से ना चुकायें।


 कितनी भागी थी जिंदगी,
 दिन-रात भूल ......!!!
जिस तरक्की की ओर ....???


अब 
घर बैठकर सोचे 
मानवता को ,
किस ओर ले जायें।


 स्वरचित रचना 
प्रीति शर्मा "असीम"
 नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


श्रीमती स्नेहलता 'नीर' रुड़की

गीत
*****
छंद--आल्हा


कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।
ढाता कहर निडर बन कर यूँ,मची हुई है चीख पुकार।
1
चीन देश वूहान शहर की,कोविड -उन्निस है संतान।
बना रहा जो घूम- घूम कर,सारी दुनिया को  शमशान।
नहीं नग्न आँखों से दिखता,छुप कर करता घातक वार ।
कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।
2
संक्रामक है रोग बाँटता,बना  हुआ शातिर शैतान।
श्वसन तंत्र पर हमला करके,पहुँचाता है यह नुकसान।
इंसानों में दिया दिखाई ,कोविड- उन्निस   पहली बार।
कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।
3
खाँसी ,ज्वर,सर्दी -जुखाम दे मर्स -सार्स  दे घातक रोग। 
घोषित हुआ  महामारी ये,रहा जगत  सारा है भोग।
निपटेंगे इससे सब मिलजुल, कमर कसी हम हैं तैयार।
कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।
4
सत्तर डिग्री तापमान भी,सकता नहीं इसे है मार।
दवा नहीं विकसित कर पाया,आज तलक तो यह संसार।
दिन पर दिन  आतंकी बनकर, करता बेलगाम विस्तार।
कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।
5
भीड़ -भाड़ से दूरी रक्खो, धोओ साबुन से तुम  हाथ।
आयी विकट आपदा जग में,काट ढूँढना मिलकर साथ।
धैर्य न खोना, मत घबराना,मिलकर देंगे इसको मार।
कोरोना ने पाँव पसारे,मचा विश्व में हाहाकार।


---श्रीमती स्नेहलता 'नीर'


डी एस दधीचि

कविता** हराना है **


हर एक का यही तराना है।
अब कोरोना को हराना है।।


कुछ कुमति लोगों की है ये करनी।
पूरी दुनिया को पड़ेंगे इसे भरनी।।


जब तक ना हो कोरोनावायरस खत्म।
हमारी सेवाएं भी ना होगी कभी कम।।


अब देश संगठन एवं एकजुटता बारी आई।
22 मार्च देश में होगा कर्फू चैन रखना भाई।।


अब हर एक का यही तराना है।
बस अब कोरोना को हराना है।।


दुनिया में विकट आफत आई।
एकता से ही जीत मिलेगी भाई।।


सरकार और चिकित्सकों की मानें सर्वजन राय।
कोरोनावायरस से यही एक है बचाव उपाय।।


मास्क,हेंडवोस और साफ सफाई का रखना तुम पूरा ध्यान।
लापरवाही ना बरतें हर जान किमती ये रखो तुम ज्ञान।।


हर एक का यही तराना है।
अब कोरोना को हराना है।।


P.s.8432241964


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


संकट की इस घड़ी को काटो  माँश्री आज।
स्वस्थ करो वातवरण हो पवित्र का राज।।


अति संकट में सारे मानव।चढ़ा हुआ कोरोना दानव।।
अति बलशाली बहुत भयानक।किया आक्रमण आज अचानक।।
आक्रमण करता बढ़त निरन्तर।लगातार फैलता भयंकर।।
अलग-थलग पड़ गया मनुज है।गुर्राता चढ़ रहा दनुज है।।
मृत्यु खड़ी आसन्न दिखती।विष-कन्या बलवती पड़ती।।
पटक रही है कमजोरों को।भाग रहे सब स्वयं घरों को।।
इस दुर्दिन को शीघ्र मिटाओ।पावनता का मंत्र सिखाओ।।
पुस्तक ले हुंकार भरो माँ।कोरोना पर वार करो माँ।।
वीणा की झंकार भरो माँ।विषधर पर अब प्रहार करो माँ।।
बैठ हंस कोरोना काटो।इस दानव की गर्दन छांटो।।
भय से मुक्त करो मानव को।निर्विकार कर दो इस जग को।।
फूले फले सकल यह जगती।सुन्दर साफ बने यह धरती।।


रहें प्रसन्न सभी मनुज रहे स्वस्थ संसार।
माँ दयालु की पा कृपा सुखी रहे परिवार।।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना से अब भय लगने लगा है"


जिसको कोरोना हो जा रहा है,
वह खुद कोरोना बन जा रहा है।


अब कोरोना से नहीं,
कोरोना संक्रमित व्यक्ति से भय लगने लगा है,
मन डरने और मरने लगा है।


कोरोना से निजात पाने के लिए कबतक अलग-थलग रहना होगा,
कबतक जंग लड़ना होगा?


बहुत बड़ी महामारी आ गयी,
जिन्दगी असामान्य हो गयी।


यह संक्रमण है,
साक्षात मरण है।


चारों तरफ अफरातफरी है,
हर चीज के लिए मारामारी है।


अब मायूसी आ रही है,
उदासी छा रही है।


सामाजिक दुष्परिणाम भयंकर है,
दहाड़ता हुआ दुर्दांत विषंकर है।


क्या यह  प्रलय  का लक्षण तो नहीं?
सृष्टि का भक्षण तो नहीं?


वर्तमान भयावह है,
भविष्य अंधकारमय है।


यह विष-अपसंस्कृति का कुचक्र है,
समय वक्र है।


इस दुष्चक्र को कैसे कुचला जायेगा?
दानवी हरकतों को दला जायेगा?
विश्व किंकर्तव्यविमूढ़ है,
प्रश्न गूढ़ है।


आपदा के प्रबंधन होता रहेगा,
राम भरोसे सब चलता रहेगा।


कोरोना अब सामाजिक होता जा रहा है,
मानव समाज निरन्तर भय की ओर बढ़ता जा रहा है।


असुर से लड़ना ही होगा,
राम की सेना में शामिल होना ही होगा।


पवित्रता की विजय होगी,
विषैली प्रवृत्ति मरेगी।


यह सनातन सत्य है,
शाश्वत और स्तुत्य है।


अपवित्र हारा और मरा है,
शुचिता से सदा डरा है, जरा है।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'

कविता दिवस


वैसे तो हमारा हर दिन #कविता_दिवस है, किंतु फिर भी आप सभी को विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
🎉🎉🎉🙏🙏🙏


              
        #कविता_पर_कविता 


ये जीवन एक कविता सा या कविता है ये जीवन सी,
कभी तो मुक्त बहती है कभी छंदों के बंधन सी ।


मुझे जीवन की कविता का सदा हर रूप भाता है,
कभी ग़म की चुभन गाती कभी खुशियों के गायन सी ।


उड़ाने कल्पना की भर के वापस लौट आती है,
कभी ये मेघदूतम सी कभी वेदों के वाचन सी ।


युगों के बाद भी कविता दिलों में राज करती है,
कभी ग़ालिब की ग़ज़लों सी कभी मीरा के मोहन सी ।


रगों में ख़ून बन कर बह रही है अब यही सरिता,
बसी है 'आरज़ू' के मन में कविता देख धड़कन सी ।


    -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©®✍
21/03/2019
छिंदवाड़ा मप्र


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी

..............कविता(रचना)...............


कविता नहीं है सिर्फ शब्दों का खेल।
अच्छी रचना है भावनाओं का मेल।।


सही   रचना   वही   कर   सकते  हैं;
जो आगे बढ़ते परेशानियों को झेल।।


रचनाओं में पैदा,  दर्द तब  हो पाता ;
जब अनुभव हो परिस्थिति के जेल।।


जो  रचनाएं  पाठकों  को भा  जाए ;
उन्हें लोकप्रिय बना  देते हैं  वे ठेल।।


कुछ रचनाएं होते हैं स्वांतः सुखाय ;
कुछ भक्ति,देशभक्ति देते हैं उड़ेल।।


कल की रचना आज के लिए दर्पण;
आज की रचना कल के लिए बेल।।


रचना में जो गहरे डूबा है "आनंद" ;
अब अच्छा नहीं लगता कोई खेल।।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


निशा"अतुल्य"

21.3.2020
कान्हा बने द्वारिकाधीश


कहाँ गए कान्हा छोड़ प्रेम नगरिया
बने द्वारकाधीश धर चक्र हाथ कृष्ण कनाही
मत हो उदास बोली सखी,सुन राधे बात हमारी
आएंगे तुमसे मिलने एक दिन कृष्ण मुरारी।


मोर मुकुट अभी शिश विराजे मत हो तू अधीर
तू उनके ह्रदय बसे है वो तेरी सांसो की डोर ।


माखन मिश्री अब ना भाता कर्म का पाठ पढ़ाया
बैरन मुरली तज दी उसने चक्र हाथ  घुमाया।


चल सखी जमुना के तीरे सुना उद्धव हैं आये
कुछ सन्देश भेजा कान्हा ने चल सुनले वहां पर जाय।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


ऋचा वर्मा

एक कप चाय


"कहिये क्या काम है",
लंच कर रहे सहायकों में से एक ने कहा।
"इनके पेंशन में सुधार करवाना है।"
आगंतुक ने अपने हाथ में लिए कागजातों की ओर इशारा किया।
"इसी कार्यालय में पदस्थापित थे?"
"जी, इसीलिए तो यहां आया हूँ।"
"अच्छा, इंतजार कीजिए, लंच करके देखता हूँ।"
लंच करने के बाद सहायक ने कागज उलट - पलट कर देखा, सब कुछ सही था।
" देखिए सभी कागजात तो सही हैं, लेकिन इस अॉफिस में काम इतनी आसानी से नहीं होता",
".... तो इसके लिए क्या करना होगा ",
" फिलहाल तो हम - सब को एक - एक कप चाय पिलवा दीजिए ",कुटिल मुस्कान के साथ सहायक ने कहा। आगंतुक ने खुशी - खुशी सहायक की फरमाईश पूरी कर दी और वहां से चला गया। चाय आ गई, लोग अभी चाय पी ही रहें थें कि सहायक के मोबाइल पर साहब का फोन आ गया, 
"जी सर", फोन पर साहब का नंबर देखते ही सहायक स्वचालित मशीन की तरह अपनी जगह पर उठ खड़ा हुआ। साहब ने फोन करके उसे अपने कक्ष में बुलाया था....।
   साहब के कक्ष में पहुंचकर उसने जो कुछ देखा उसे दिन में तारे दिखाने के लिए काफी था।... अभी - अभी जिस व्यक्ति से उसने एक कप चाय पिलाने की फरमाईश की थी, वह साहब के साथ बड़ी आत्मीयता के साथ बैठा चाय पी रहा था।
"अजय बाबू ये हैं हमारे परम मित्र, अभी हाल में अपने विभाग में पदभार ग्रहण किये हैं, और अब ये मेरे बॉस हैं, इनका काम...."
साहब की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि 
" जी सर अभी करता हूँ.. "
कहता हुआ सहायक. फुर्ती से कक्ष से निकला और आनन फानन में संचिका तैयार..... ।
 " क्या हुआ आज एक कप चाय में ही..."
 एक सहकर्मी ने चुटकी ली।
" आज के बाद यह भी नहीं"
एक हाथ में संचिका और दूसरे हाथ से कान पकड़े सहायक को देख उसके सारे सहकर्मी जोरों से हंस पड़े। 



ऋचा वर्मा


अवधेश रजत      वाराणसी

*निर्भया*
सात वर्ष और चार माह से
जिसकी उसे प्रतीक्षा थी,
न्याय व्यवस्था की खातिर भी
ये तो अग्नि परीक्षा थी।
दुष्ट भेड़ियों की फाँसी पर
वो भी मुस्काई होगी,
आज निर्भया की आँखों में
बदली फिर छाई होगी।
दृश्य भयावह स्मृतियों से
मिटे नहीं होंगे अब तक,
होगी ज्वाला शान्त न मन की
पूछ न लेगी वो जब तक।
आखिर क्या अपराध था मेरा
क्यों ये अत्याचार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


न्यायालय की चौखट पर मैं
आस लगाए खड़ी रही,
बदले मौसम साल महीने
किन्तु वहीं पर अड़ी रही।
नाम निर्भया मिला मुझे पर
निर्भय हो कर रही नहीं,
धारा थी उन्मुक्त नदी की
लेकिन खुल कर बही नहीं।
पापा मम्मी के पैरों से 
छाले फट कर बहते हैं,
दुनिया वालों के तानों को
चुप रह कर वो सहते हैं।
बूढ़े कंधों पर क्यों तुमने
असह्य वेदना भार दिया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


सोचा था मैं बन कर डॉक्टर
सबकी पीड़ा हर लूँगी,
जिस आँचल में बीता बचपन
उसमें खुशियाँ भर दूँगी।
पेट काट कर मुझे पढ़ाया
कष्ट झेल कर पाला था,
दी मुझको आज़ादी पूरी
नहीं स्वप्न पर ताला था।
जब उड़ने की बारी आई
तुमने मुझे दबोच लिया,
फैले थे जो पंख हवा में
तुमने उनको नोच दिया।
मर्यादा की सीमाओं को
तुम सबने क्यों पार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


दुनिया के न्यायालय से जो
न्याय मिला वो थोड़ा है,
नीच कर्म की सजा सरल दे
संविधान ने छोड़ा है।
बेटी बन कर आई जग में
क्या उसका परिणाम मिला ?
जगदम्बा के पुण्य रूप को
भक्तों से ईनाम मिला।
हुई दुर्दशा दैहिक जितनी
उतना ही सब जान रहे,
मन पर मेरे घाव लगे जो
उससे सब अनजान रहे।
अधिवक्ताओं के तीखे
प्रश्नों ने प्रबल प्रहार किया,
मैं भी तो एक बहन थी भइया
बोलो क्यों मुझको मार दिया।।


©अवधेश रजत
     वाराणसी
सम्पर्क#8887694854


अखंड प्रकाश कानपुर

आज अकेले लड़ना मुश्किल,
सबको यह समझना होगा।।
आपदाओं से बचना हो तो,
मिल कर कदम बढ़ाना होगा।।
डरो नहीं डरवाना मत बस ।
एक राह अभिव्यक्ति की है।
आज जरूरत हर शरीर में।
बढ़ी आत्मशक्ति की है।।
सुभग स्वक्षता कण कण की हो।
सबको यह बतलाना होगा।।
आपदाओं से बचना हो तो।
मिल कर क़दम बढाना होगा।।


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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