*"कोरोना का कहर"* (भाग १) (दोहे)
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¶आया वुहान चीन से, कोरोना का रोग।
सावधान इससे रहो, रोकथाम कर लोग।।१।।
¶सर्दी-जुकाम-छींकना, हो सिरदर्द-बुखार।
हो सकती है यह सुनो, कोरोना की मार।।२।।
¶घातक सूक्ष्म विषाणु है, यह कोविड उन्नीस।
जान महामारी बना, असह्य इसकी टीस।।३।।
¶कोरोना का है कहर, छाया चारों ओर।
मचती हाहाकार है, है इसका ही शोर।।४।।
¶संक्रामक यह रोग है, इसका कोप प्रचंड।
मनुज विरोधी कर्मफल, कोरोना जनु दंड।।५।।
¶अफवाहों से तेज यह, रूप धरे विकराल।
कोरोना विषदंत सम, करता कवलित-काल।।६।।
¶नहीं बनी नाशक दवा, कोरोना-संत्रास।
इससे उपाय मुक्ति का, सतर्कता है खास।।७।।
¶सावधान-घर में रहो, आये मत दुर्योग।
बहुत जरूरी हो तभी, निकलो बाहर लोग।।८।।
¶मेलजोल से दूर ही, कोरोना से त्राण।
ध्यान स्वच्छता का रखो, रहे सुरक्षित प्राण।।९।।
¶अवसरवादी वायरस, करना तनिक विचार।
कोरोना सा मत करो, तुम विकलित व्यवहार।।१०।।
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*"कोरोना का कहर"* (भाग २) (दोहे)
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¶अभिशापित यह चीन का, है जैविक हथियार।
झेल रहा अब विश्व है, कोरोना की मार।।११।।
¶कोरोना है बन चुका, दहशत का पर्याय।
सूझ-बूझ से बंद हो, काला यह अध्याय।।१२।।
¶मास्क सुरक्षित मुख रखे, कर लेना उपयोग।
आत्मबोध से ही मिटे, कोरोना का रोग।।१३।।
¶है संस्कृति-पाश्चात्य का, कोरोना परिणाम।
हाथ मिलाना छोड़कर, करना नमन प्रणाम।।१४।।
¶तीन फीट तक दूर रह, कर आपस में बात।
कोरोना की घात से, रखो निरोगी गात।।१५।।
¶संस्कृति शुभ उन्नत अहो! कर लो अंगीकार।
प्रक्षालन कर-पाद का, कोरोना उपचार।।१६।।
¶बाइस मार्च दिनाँक है, सन् दो हजार बीस।
जनता-कर्फ्यू से मिटे, कोरोना की टीस।।१७।।
¶कर्मी स्वास्थ्य विभाग के, सेवारत दिन-रात।
कोरोना से मुक्त हों, सुधर सके हालात।।१८।।
¶मानव सेवा में सदा, जो हैं लगे विभाग।
धन्यवाद के पात्र हैं, सेवा भावी-त्याग।।१९।।
¶जीवन सबका हो सुखी, हो न कभी दुर्योग।
सीख गहो सब प्रकृति की, ग्रसे न कोई रोग।।२०।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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