सत्यप्रकाश पाण्डेय

मुझ ईश्वर का अस्तित्व भूलके
की है मानव ने जो भूल
प्रकृति का स्वरुप बिगाड़ कर
करली है अपने प्रतिकूल


मैंने प्रदान किये थे अतुल भोज
सुमिष्टान्न फल और मेवा
भक्ष्याभक्ष्य को अपनाया तूने
जीव जंतु का करे कलेवा


दिया मृत्यु को खुद ने आमंत्रण
अब घिरा है महामारी से
दोष दे रहा मुझ परमब्रह्म को
जब जूझ रहा बीमारी से


संस्कृति संस्कार पहचान नर
मुझ ईश्वर पर कर विश्वास
तेरी सारी विपदा हर लूंगा मैं
मेरा स्मरण कर मेरी आस


सत्य करें है आव्हान जगत से
करो न आचरण प्रतिकूल
श्रीराधे कृष्ण को हिय बसा लो
सबकुछ हो जाए अनुकूल।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मोहब्बत"


करता हूँ मैं मोहब्बत कहता नहीं किसी से,
दुनिया नहीं समझती कहता नहीं इसी से।


ये दिल की बात सुन्दर दुनिया को क्या पता है,
यह राज-ए-मोहब्बत मोहक नहीं खता है।


पुष्पक विमान बनकर दिल घूमता रहता,
यह सर्व को बिठाता फिर भी ये रिक्त रहता।


इसमें भरा मोहब्बत भरपूर गमकता,
सबके लिए बना है सबके लिए उमड़ता।


यह चीज व्यक्तिगत है पर दे रहे जगत को,
सीने में रखकर इसको जाता हूँ मैं स्वगत को।


जो चाहे लेले इसको मैँ दान कर रहा हूँ,
सारे जगत का हरदम सम्मान कर रहा हूँ।


करबद्ध है निवेदन प्रतिकारना न इसको,
सन्देह है अगर तो स्वीकारना न इसको।


ईश्वर का दिया तोहफा है दान के लिए,
सिखला रहा मनुष्यता यह ज्ञान के लिए।


शुल्क इसका कुछ नहीं निःशुल्क वितरण हेतु यह,
अनमोल मेरे प्यार का अभिज्ञान होना चाहिए।


मैँ निरंकुश आत्ममोही दूत बनकर हूँ खड़ा,
आजाद भारत वर्ष को परिधान सुन्दर चाहिए।


मैँ भरत हूँ भारती का पूत प्रेमी मोहमय,
हर किसी को सत्य सात्विक प्रीति पाना चाहिए।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना"


हल्के में मत लीजिये परम भयंकर जन्तु।
हत्यारा यह मनुज का कोरोना विष-तंतु।।


लॉकडाउन को समझ यह  कवच  सुरक्षा-जाल।
मानव जीवन के लिये यही सुरक्षा चाल।।


एक कोरोना से हुए कई कोरोना आज।
हर मानव संदिग्ध है देख कोरोना राज।।


खतरे में है पड़ गया मानव का अस्तित्व।
कोरोनामय लग रहा हर कोई व्यक्तित्व।।


धड़कन बढ़ती जा रही मन होता बेहाल।
होता अब महसुस यह कोरोना है काल।।


यह कोरोना काल है अथवा है भूचाल।
पहुँच रहा क्रमशः मनुज सतत काल के गाल।।


नहीं समझ में आ रहा क्या है इसका काट।
दहशत में सारे मनुज देख काल की खाट।।


कोरोना की मार को झेल रहे मजदूर।
लाले पड़े हैं अन्न के मन मलीन सुख चूर।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


-डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


परमानंद निषाद*

 


 ॥ जनता कर्फ्यू 22 मार्च ॥


बज गया है बिगुल जंग का,
भारत मे आज कोरोना का।
हर भारतवासी एक साथ है,
जनता कर्फ्यू के अभियान मे।
कोरोना आज चलेगा तुझे मालूम,
भारत से तेरा मुकाबला है।
सुबह-शाम जहां होता है,
देवी-देवताओं की पूजा।
 जिसकी आत्मशक्ति है,
भारत की पवित्र भूमि।
हर संकट टल जाता है,
भारत मे आने के बाद।
ऐसा ही यह संकट है,
कोरोना वायरस का।
जनता कर्फ्यू से घटाना है,
कोरोना की महामारी को।
जनता कर्फ्यू से हमे भगाना है,
कोरोना वायरस की संकट को।
आज हम सबको मिलकर,
जनता कर्फ्यू सफल बनाना है।
आज रहो सब घर के अंदर,
सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक।
भारत के साथ पूरा विश्व,
सफल हो कोरोना भगाने मे।
शाम 5 बजे से शुरू करो,
बजाना ताली और थाली।
यही हम सब विनती करते है,
मन मे कामना का ज्योत जलाते रहो।


   
     जय हिंद, जय भारत


*परमानंद निषाद*
ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव
तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)
मोबाइल- 7974389033
ईमेल- Sachinnishad343@gmail.com


कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


  (मनहरण घनाक्षरी)
       """""""""""'''''"
देश   के  वीर  जवान,
चरण    धूलि   महान,
आपसे ही  तो जहान,
     भारत के जान है।
🇮🇳💪🏼
बच्चे बच्चे के जुबानी,
आप दिये  है कुर्बानी,
बना   अमर   कहानी,
      वतन के शान है।
🇮🇳👌🏼
जब भी संकट  आया,
देश   पर  खरा  पाया,
हर   समय  दी  जान,
        सबसे महान है।
🇮🇳😭
जवाबी   उड़ान   भरे,
पाक  में   हुँकार  करे,
सबको    संघार   करे,
       ये वीर जवान है।
🇮🇳💪🏼



💐हिन्दुस्तान के वीर -
शहीदों को श्रद्धांजलि💐
                  *******


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

दिनांकः २३.०३.२०२०
वारः सोमवार 
विधाः कविता 
शीर्षकः सावधान बस कोरोना से
सावधान बस कोरोना से,
जागो रे मानव फ़ुफकार सुनो तुम,
महाप्रलय बन दावानल वह,
लपलपा रहा है जहरीली जिह्वा,
ग्रास त्रास उद्यत जनविनाश बन ,
सावधान बस इस महासर्प से
मरीज़ आंकड़ें कोरोना के, 
 विनती बस ,सब घर में ही रहो ना।
हाथ साफ तुम करो ना, 
दूर रहो तुम नित दूसरों से तुम 
अमूल्य तुम्हारा जीवन समझो,
पहन मास्क ख़ुद बचो ना,
डरो नहीं, बस यतन सुरक्षा,
जीने को इतना करो ना,
तुम बचोगे तो राष्ट्र बचेगा , 
रहे मनुज संसार बचेगा , 
करोना दानव से तुम डरो ना , 
सरकार से सहयोग करो ना,  
खुद की जीवन रक्षा करो ना , 
लॉक डाउन का उल्लंघन करो ना,
नाक मुँह को ढको ना , 
सब मिल कर लड़ो ना , 
करोना से सावधान रहो ना , 
खुद को एकान्त करो ना , 
साथ देश का  चलो ना , 
योग व्यायाम करो ना , 
खुद पे विश्वास करो ना , 
नियमों का पालन करो ना , 
जीवन रक्षा करो ना , 
मानवता रक्षक बनो ना।
हुआ डायनासूर फिर से जिंदा ,  
है दहशत में दुनिया सारी , 
वीर साहसी बनो ना ,  
दिक्कतें कुछ दिन सहो ना , 
घर बैठो जिंदा रहो ना, 
महामारी बना कोरोना , 
खुद की हिफ़ाजत करो ना , 
महाजंग का हथियार बनो ना।
खुद बच्चों की रक्षा करो ना , 
घर में कामों को करो ना,  
साथ खड़ी सरकार तुम्हारी , 
हौंसलों की नई उड़ानें भरो ना , 
कुछ दिन संघर्ष करो ना।
छींकों खाँसों ढँक कर कपड़े ,     
फैलाओ ना दुश्मन वायरस , 
कोरोना की हत्या करो ना , 
सब सावधानियाँ रखो ना , 
कुछ दिनों की बात है वन्दे , 
कदम मिला के चलो ना , 
बेकाबू होने से पहले , 
सब मिल कोरोना रोको ना, 
मौत खुला मुख ग्रास बनाने , 
धीर वीर योद्धा बनो ना ।
मन में पूजा करो ना, 
नमाज़, अर्ज़ , पूजन, प्रार्थना ,
घर में रहकर करो ना , 
अनुकूल चिन्तना करो ना , 
खुद का दुश्मन मत बनो ना , 
नीति प्यार पथ चलो ना , 
मज़बूत बनो दिल दिमाग मन , 
कर्मवीर तुम बनो ना , 
लड़ो लड़ाई धर्मयुद्ध का , 
शंखनाद तुम करो ना, 
कोरोना से मत मरो ना ।
पस्त करो इस महा असुर को , 
समझो तुम कर्तव्य स्वयं का , 
अब भी तो संभलो ना , 
रहो साथ इस जहरीले क्षण में , 
कुछ तो संजीदा बनो ना , 
निकलो मत तुम घर से बाहर , 
प्रधान मंत्री का अनुरोध सुनो ना , 
एहतिहात बरतो ना ,   
मार भगाओ कैरोना को , 
खुद जनता कर्फ्यू बनो ना।
जीवन है अनमोल धरोहर, 
खोओ मत रक्षा करो ना , 
मान रहा हूँ , ख़ौफ जटिल है , 
महामारी का आतंक विकटतम, 
सब मिलकर उससे लड़ो ना , 
गाओ सब जयगान राष्ट्र का , 
अनुशासन का पालन करो ना , 
आर पार सरकार स्वयं मिल, 
कोरोना से  रण  लड़ो ना।
तन मन धन अर्पण करो ना ,
निर्मल मति चिन्तन करो ना , 
एक राष्ट्र भक्ति पथ चलो ना , 
जीतेंगे हम महाकाल को , 
रोएगा,भागेगा, कोरोना पछताएगा ,    
महामृत्युंजय शिव सुन्दर जीवन, 
पावन संकल्पित बनो ना ।
नासमझों को विरोध करो ना , 
सरकारों, मॉफी करो ना, 
बरतो तुम अधिकाधिक सख़्ती , 
समझ रहे अधिकार आजादी 
घूम रहे पशुतुल्य बने जो ,
बेमतलब जो समझ रहे खल ,
लॉक डाउन का आदेश नासमझ,
सम्वाहक कोरोना को सम्बल ,
इन गद्दारों को बंद करो ना ।
आवाहन करता मन व्याकुल,
निकुंज जीवन वीरान करो ना,
अमन सुखद चैन तुम रहो ना , 
रफ़्तार कोरोना महारोग को ,
भारत से बाहर करो ना ,
जय मानव गान करो ना ,
विनती मेरी बस सुनो ना ,
रहो संयमित सावधान बस,
बंद कुछेक दिन घर रहो ना।
कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली


सत्यप्रकाश पाण्डेय

भगत राजगुरू सुखदेव सिंह
तुम्हें करता वतन प्रणाम
क्या है राष्ट्र आजादी के मायने 
फांसी चढ़ किया प्रमाण


राष्ट्रभक्ति की अलख जगाकर
कैसे सोता देश जगाया 
अब नहीं डरेंगे हम नहीं झुकेंगे
फिरंगियों को बतलाया


प्राणों की परवाह न करके
बोली इंकलाब की बोली
परतंत्रता की तोड़ेंगे श्रृंखलाएं
खानी पड़े सीने पै गोली


अनगिनत बलिदान तुम्हारे
कभी वतन नहीं भूलेगा
जब जब गाथाएं गाई जायेंगी
सुन सुनकर सीना फूलेगा


राष्ट्र के लिए देकर के कुर्बानी
तुमने सपने पूर्ण किए
स्वराज सुराज में बदल जाये अब
करें नमन सद्भाव लिए।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य"

बालगीत
23.3.2020


चलो चुन्नू हाथ धो ओ
आँख नाक मत छुओ
होगा नुकसान बड़ा
बात तुम मान जाओ


विषाणु है ये भयंकर
जिसे कहते हैं कोरोना
इसे मिल कर हराना
जिम्मेदारी ये निभाओ


आओ चुन्नू घर मे रहो
इधर उधर नही घूमों
तुम अच्छे बच्चें बनो
सबको ये समझाओ।


टूटेगी ये चेन तभी
नही मिलेगा मानव जब कोई 
बच कर होगा रहना
कोरोना को होगा हराना ।


चलो चुन्नू घर में रहो
घर के ही खेल खेलो
बचपन मेरा लौट आया
मस्ती करते देख तुम्हे 
आज मन मेरा हर्षाया ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


राजेंद्र रायपुरी

सरसी छंद पर एक रचना - -


😌 कोरोना वायरस और बचाव 😌


कोरोना अब धीरे- धीरे, 
                       बढ़ा रहा है पाॅ॑व। 
दे दो सब को ये संदेशा, 
                     रहें शहर या गाॅ॑व।
भीड़-भाड़ से दूर रहें वो, 
                     नहीं मिलाएॅ॑ हाथ।
हाथ जोड़कर कहें सभी से, 
                    खड़े आपके साथ।


धोएॅ॑ हाथ सदा साबुन से, 
                    कह दो उनसे यार।
नहीं दवा है कोरोना की,
                    है  बचाव  उपचार।
खाॅ॑सें छींकें जब भी कह दो,
                   मुॅ॑ह पर रखें रुमाल।
होगा नहीं तभी औरों का,
                    उनके  जैसा  हाल।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


 डॉ. शैल चन्द्रा

फुदकती चिड़िया देखकर आँगन सुनसान।
पूछती है सबसे कहाँ गया इंसान।
हो रही है वो बेहद हैरान।
ये क्या से क्या हो गया भगवान।
हमेशा भीड़ से घिरा  रहना चाहता था कामयाब इंसान।
अब एकदम अकेले रह गया है  चाहे वो बहुत धनवान।
कोरोना अस्त्र आया मारण यंत्र।
नहीं चल रहा उसके सामने कोई तंत्र।
भयानक मौत का तांडव करने वो आया।
सुनामी की लहर की तरह सबको डुबाया।
बचना है तो बच सको हे मानव।
वरना पल भर में  लील जाएगा ये दानव।
सुरक्षा अपने हाथ में है कर लो।
जीवन को  चाहो अपनी मुठ्ठी में भर लो।
मनुष्य में जिजीविषा है भारी।
हरा कर कोरोना को जीत रखेगा जारी।
घर पर रहो लोगों ,बाहर खतरा है।
दरवाजे पर सबके मौत का पहरा है।
नहीं जागे तो अब जाग जाओ।
हाथ धो कर पीछे पड़ कर कोरोना को भगाओ।
           डॉ. शैल चन्द्रा


विवेक दुबे"निश्चल

*कोरोना का घात बचा लें ।*


मानव की जात बचा लें ।
 अपनी औक़ात बचा लें ।


छोड जात धर्म के झगड़े,
अपना इतिहास बचा लें ।


शह  मिली है कुदरत से ,
हम अपनी मात बचा लें ।


 बजीर बने है हम प्यादे ही ,
 हम अपना  ताज बचा लें ।


 बहुत हुआ अब कहती वसुधा,
 दिन उजयरों में रात बचा लें ।


 कहलाये श्रेष्ठ प्राणी जग में हम ,
 मानव हम अपनी बात बचा लें ।


रहें सभी सावधान संक्रमण से ,
कुछ अपनी मुलाक़ात बचा लें ।


 आज रहे यही तब कल होगा ,
कल की खातिर प्रभात बचा लें ।


*न निकले घर से घर की ख़ातिर*
 *हम कोरोना का घात बचा लें ।*


 क्या होगा न निकले घर से तो ,
 मन मे थोड़ा सा एकांत बचा लें ।


 मानव की जात बचा लें ।
 अपनी औक़ात बचा लें ।


.... *विवेक दुबे"निश्चल"@*...


आशुकवि नीरज अवस्थी

 शहीदी दिवस पर आप सभी के श्री चरणों में उन अमर बलिदानियों के सम्मान में विनम्र श्रंद्धांजलि---💐💐💐


जवानी जिंदगी बलिदान कर्ता को नमन लाखों।
किया स्वीकार हंस कर मौत को उनको नमन लाखों।।
बदौलत आज हिंदुस्तान में"आजाद" हम जिनकी,
नयन में नीर भर नीरज नमन करते उन्हें लाखों।।



जो मर कर हो गए जिंदा उन्हें आजाद कहते है।
फिंरँगी ख़ौफ़ खाते थे उन्हें आजाद कहते है।
बदन अपना नही छूने दिया पिस्तौल से अपनी,
शहादत की कथा लिख्खी उन्हें आजाद कहते है।
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


बलराम सिंह यादव मानस व्यख्याता धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

रामचरित मानस में गोस्वामी जी द्वारा शत्रुघ्न जी की वन्दना


रिपुसूदन पद कमल नमामी।
सूर सुसील भरत अनुगामी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  श्रीमद्गोस्वामी जी कहते हैं कि अब मैं श्रीशत्रुघ्नजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ जो बड़े वीर,सुशील और श्रीभरतजी के अनुगामी अर्थात उनके पीछे चलने वाले हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  श्रीरामचरितमानस में श्रीगो0जी ने श्रीशत्रुघ्नजी को लगभग मौन रखा है।यहाँ उनके चरणकमलों की वन्दना की है और नामकरण संस्कार में उल्लेख किया है।यथा,,,
जाके सुमिरन ते रिपु नासा।
नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।।
 विनय पत्रिका में गो0जी ने श्रीशत्रुघ्नजी की विशेष वन्दना की है जिसमें उन्होंने उनके स्वभाव, स्वरूप,वीरता आदि गुणों का उल्लेख किया है।यथा,,,
जयति जय शत्रु-करि-केसरी शत्रुहन,
शत्रुतम-तुहिनहर किरणकेतु।
देव-महिदेव-महि-धेनु-सेवक सुजन-सिद्ध-मुनि-सकल- कल्याण हेतु।।
जयति सर्वांगसुन्दर सुमित्रा-सुवन,
भुवन-बिख्यात-भरतानुगामी।
वर्मचर्मासि-धनु-बाण-तूणीर-धर
शत्रु-संकट-समय यत्प्रणामी।।
जयति लवणाम्बुनिधि-कुम्भसम्भव महा-दनुज-दुर्जनदवन,दुरतिहारी।।
लक्ष्मणानुज,भरत-राम- सीता-चरण-रेणु-भूषित-भाल-तिलकधारी।।
जयति श्रुतिकीर्ति-वल्लभ सुदुर्लभ सुलभ 
नमत नर्मद भुक्तिमुक्तिदाता।
दास तुलसी चरण-शरण सीदत विभो,
 पाहि दीनार्त्त-सन्ताप-हाता।।
 उपरोक्त पद का भावार्थ आगामी प्रस्तुति में।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(023)         प्रतिभा प्रभाती


देव भूमि में देव संस्कृति ।
सारे विश्व अपनाएं ।
शंखनाद कर देश जगाएं ।
कोरोना दूर भगाएं ।
नित नमन नित निजता नीति ।
वायरसों से होती दूरी ।
कर जोड़ कर वंदन करना ।
देव संस्कृति है भली ।
मात तात को वंदन करना ।
गुरु गुरुवर चरणन लागी ।
निस दिन उठकर प्रात: प्रात: में ।
चराचर  वंदन ‌क्यूँ त्यागी ।
पौधों को पानी देना ।
इन्हें बचाकर ही रखना ‌।
देश धरा बच जाएगा ।
संग संग हम तुम ।
जीवित रह पाएंगे ।।


 


🌷 प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
      दिनांक  23.3.2020......



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नूतन लाल साहू

भजन
तेरे बिन कोई न,हमारा है
श्याम तेरा ही,अब सहारा है
स्वाइन आया, कोरोना आया
आज आ जाओ मोहन
मुझ पे तुम उपकार करो
कष्ट हर लो,मेरे सारे
मेरा तुम,उद्धार करो
कन्हैया सुनो,आज अर्जी मेरी
करता हूं,अरदाज दिल से तेरी
कोई न आज मेरा सहारा
किसी से न ही,आस है
दिल तुमको ही पुकारा है
श्याम तेरा ही,अब सहारा है
तेरे बिन कोई न हमारा है
श्याम तेरा ही,अब सहारा है
तेरे दर पे, हम आये है
मन में ले कर,आशा लाये है
आज तक,तेरे ही कृपा से
काम सब होते, आये है
घनश्याम तेरी शरण में
आज आये है,हम सब
लुटा दे तू,सारी खुशियां
मिटा दे तू,हमारा गम
जिन्दगी की डोर,श्याम
तेरे ही,हाथो में है
मिलेगी, हमें सारी खुशियां
मिले जो, तेरा साथ है
मिले जो, तेरा साथ है
दश अंकुश तो, तू ही प्यारा है
श्याम तेरी ही,अब सहारा है
तेरे बिन कोई न,हमारा है
श्याम तेरा ही,अब सहारा है
नूतन लाल साहू


जुगेश चंद्र दास कोरोना

मित्रों,
सादर सुप्रभात,🙏🙏🙏🙏
आप कैसे हैं? हां हमेशा स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए और घर में रहिए।एक महत्वपूर्ण सूचना आपके घर के बाहर एक अतिथि आया है बहुत दूर से लेकिन घर से मत निकलना छूत अतिथि उसे छूने आप संकट में आ जायेंगे। रहने दो 12 घंटे बाद खूद बखूद खत्म जायेगा।
     आइए उस अतिथि के बारे में कुछ जानकारी और......


        अतिथि


आपके घर के बाहर अतिथि
कोरोना आया है,
रेलिंग,ग्रील, नोट आदि में
आसन जमाया है।


ओ एक सूक्ष्म सा प्राणी है,
दुश्मन ओ जानी है।
आत्म सम्मान से भरा बड़े
ही स्वाभिमानी है।


जब तक आप घर से नहीं
निकलेंगे,
प्यार से सिर पर हाथ नहीं
फेरेंगे।
तब तक उसे आपका आतिथ्य
स्वीकार नहीं करना है,
इसीलिए जरुरी न हों तो घर से
नहीं निकलना है।


ऐसा न सोचना कि संडे को ही
घर में रहना है।
सूक्ष्म जीव से खतरे की गंभीरता
को समझना है।


ओ इंडिया संडे मनाने नहीं
दुश्मन अपना काम करने
आया है।
एक एक मानव को मार
विश्व विजेता नाम करने
आया है।


  ‌           जुगेश चंद्र दास


मासूम मोडासवी

सब्रो-करार दिलका बचाया न जा सका
उनको गलेसे अपने लगाया न जा सका


जब भी  मिले वो इतने उलजे हुवे मिले
अपने गमोंका हाल सुनाया न जा सका


रौशन रहा जहां मेरा जिनके खयाल से
रीश्ता हयात भर का निभाया न जा सका


कितने  लम्हे हमको  मयस्सर रहे  मगर
दिलका जख्म भी उनको बताया न जा सका


पीछा कभीन छुटा जलती रही अगनसी
मासूम सुलगते मनको बुजाया न जा सका


                        मासूम मोडासवी


रामनाथ साहू " ननकी "                                   मुरलीडीह

कुण्डलिया 


कविता मनकी  उपज है , जो देखा त्यों बोय ।
भाव कलम से बाँधते  , लेखन कला सँजोय ।।
लेखन कला सँजोय , चित्र जब लगे सुहाने ।
होवे मनः अधीर , ह्रदय हो  तब अकुलाने ।। 
कह ननकी कवि तुच्छ , बहे रस प्रवाह सहिता । 
गीत ग़ज़ल तट बद्ध , धार सी बहती कविता ।।


                         💐💐


कविता कवि की प्रेयसी , हृदय भाव का सार ।
व्योम दिशा बहु कल्पना , उडे़ पखेरू प्यार ।।
उड़े पखेरू प्यार , सत्य का  करता दर्शन ।
पाता मन विश्रांति , पुष्प दल करता अर्चन ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,शब्द प्रक्षालित सरिता ।
प्रगटे कर श्रृंगार , पटल पर प्यारी कविता ।।


                       💐💐💐


कविता सुंदर वृक्ष है ,भांति भांति फल फूल ।
गहरी हैं इनकी जड़ें , कहीं गन्ध अरु शूल ।।
कहीं गंध अरु शूल , काव्य को करे सुवासित ।
बनते प्रेरक भाव , कर्म पथ प्रखर प्रवाहित
कह ननकी कवि तुच्छ , ललित लय ललकित ललिता ।
कालजयी कमनीय , केलि कल करती कविता ।।



                     ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                                  मुरलीडीह


हलधर

कविता - कोरोना से लड़ना होगा 
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कोरोना से लड़ना होगा , भीड़ भाड़ से बचना  होगा ।
बीच राह में यह मत पूछो ,कितनी मंजिल और बची है ?


हम सब एक डगर के राही ,साथ साथ सबको चलना है ।
तपती धरती की छाती पर ,  हमको गलना या जलना है ।
भीड़ भाड़ का कफनओढ़कर , दानव घूम रहा बन ठनकर ,
मौत सहेली से मत पूछो ,कितनी मलमल और बची है ?1


विष कण हमें डराने आया , छोटा मोटा कीट मान कर।
पूरी दुनियां में यह छाया   , डरे हुए सब देश जान कर।
शुरुआत के संक्रमण  में , बैठे रहे देश कुछ  भ्रम में ,
मरघट उनसे पूछ रहा अब,कितनी हलचल और बची है ?2


राजा आज बना बैठा है  , सकल विश्व का यह कोरोना ।
जीवन लीला के उपक्रम में , आदम भी दिखता है बौना।
अब भी मौका कर्म सुधारो ,आने वाला जन्म सुधारो ,
कीचड़ में घुस यह मत पूछो ,कितनी दलदल और बची है ?3


लख चौरासी जन्म हुए हैं ,तब यह मानस देह मिला है ।
अच्छे कर्मों के बदले में  , भारत माँ का नेह मिला है ।
भारत ही इससे जीतेगा  , "हलधर"बुरा समय बीतेगा ,
रात ठिठुरती से मत पूछो ,कितनी कम्बल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूछो ,कितनी मंजिल और बची है ?4


हलधर-9897346173


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु) बाढ़ - पटना

कोरोना


वायरस कोरोना 


जैविक  तत्वों से बना वायरस
अंदर  जब  घुस  जाता है
बारह      धंटे      पूरे      होते  
और  फिर  मर  जाता  है।
बारह  दिनों तक ऊपर - ऊपर
गला  नाक फंस जाता है
हल्की   बुखार   दर्द   देह   में 
खाँसी  से  लद  जाता  है।
महामारी   कितने   ही   आए 
अब   कोरोना   भारी   है
हैजा   प्लेग  न  जाने  कितने
आते  ये  बारा  -  बारी है।
बचपन   से  पचपन  तक  मैंने
बहुत  कुछ  ऐसे  देखे  हैं
षड्यंत्र  दवा  माफियाओं  का 
कुछ अलग इनके ठेके हैं।
अरबों   के   धंधा   हैं   चलते
जनता तो पागल अंधी है
गुमराह  में  हम सब रह जाते   
आदत  बड़ी  ये  गंदी  है।
पैंतिस   डिग्री  तापमान  तक
वह  जिंदा  रह सकता है
अगर  बढ़ा  यह तापमान  तो
कोरोना   मर  सकता  है।
आओ  जतन  करें हम अपना
देखे   फिर  सुंदर  सपना
साफ   सफाई   और  दूरी  से
सार्थक होगा अब बचना।
वायरस  वुहान  में  जन्मा था
चार  सौ माइक्रोन वाला
अमेरिका फ्रांस इटली जर्मनी
सबका  है हुआ दिवाला।
गुणांको  में  यह  फैल रहा है
कोई   है   नहीं   अछूता
होता  है  खिलवाड़  चीन  में
मारो  अब  उनको  जूता।
जागृत   है   सरकार  हमारी
हाथ  में  हाथ  दें  उनका
थोड़ा कष्ट मिलकर सह लेंगे
होगा  भला  फिर सबका।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
बाढ़ - पटना


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"स्वप्न देख सुन्दर चीजों का"


(वीर छंद में)


प्रति पल रखना अच्छी सोच, देख स्वप्न सुन्दर चीजों का.,
कर अपना नैतिक उपचार, स्वप्न देख सुन्दर बनने का.,
बनने पाये कभी न ग्रन्थि, रखो हृदय को साफ हमेशा.,
मन के कलुषित भाव निकाल, हाथ जोड़कर मिलो सभी से.,
सेवा करने की ही सोच, चिन्तन मनन सदा हो पावन.,
सदा प्रीति से नाता जोड़, दिल दरिया में प्रेम वारि हो.,
सत्ताच्युत के प्रति सम्मान,रखना सबसे बड़ी बात है.,
सत्तासीनों का सम्मान,करते सब हैं स्वार्थ भाव में.,
सुन्दर बनने की यदि चाह, करो सुन्दरम का अन्वेषण.,
सुन्दर बनने का संकल्प, लेकर बढ़ते रहो निरन्तर.,
बन जाओगे सुन्दर विश्व, यदि संकल्प सदा सुद्रढ़ हो.,
मन में रखना पावन ख्वाब, चलो ख्वाब के संग हमेशा.,
जिन्दा दिल से करना काम,सुन्दर स्वप्न साकार दिखेगा.,
पूजेगा यह सारा विश्व, विश्व चाहता सर्वोत्तम है.,
सुन्दर है पहला सोपान, धीरे-धीरे पहुँच शिखर तक.,
खड़े शिखर पर हैं भगवान,हो जायेगा दर्शन निश्चित.,
निश्चित कर सुन्दर अभ्यास,सुन्दरता जीवन-अभीष्ट हो।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कविता बहती"


कविता कहती बहती चलती,
लिख ना लिखती उठती खुद ही,
परेशान न होवो सुनो कवि जी,
मैँ स्वयं उठती खुद ही बनती।


मैँ स्वतंत्र शिरोमणि नारि-कला,
मुझको मत जान कभी अबला,
मैँ सशक्त सहस्रभुजा प्रबला,
अमरावति अमृत -पय सबला।


जिसपर खुश होती हूँ जान उसे,
वह विश्व गुरू बन जात तभी,
मैँ छुपी रहती अति सज्जन में,
अति कोमल में अति भावुक में।


मैँ हूँ भाव स्वयं में विचार स्वयं,
मुझको समझो आवेश स्वयं,
बहती मैँ धरा पर देख दशा,
चलती रहती बहती हूँ स्वयं।


मैँ चतुर्दिक घूमत देखत सब,
लिखती खुद हूँ मैँ अनन्त शवद,
कुछ भी नहिं बचता है शेष यहाँ,
सब उड़ेलत जात स्वयं कविता।


मैँ बनी सरिता शुभ चिन्तक सी,
जग को रसपान कराती सदा,
चलती चल जात बिना रुकते,
बहती रहती कवि के उर में।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


साफ-स्वच्छता से समझौता कभी नहीं करता प्याला,
मन अरु उर की साफ-सफाई में रत रहती है हाला,
पर्यावरण को स्वस्थ बनाने को कटिवद्ध सदा साकी,
सुघर मनोहर दिव्य पावनी गंग बहाती मधुशाला।


दूषित जन अरु विषय-विषैला से अति दूर खड़ा प्याला,
शुद्ध आचरण हेतु बनी है अति  विशिष्ट संस्कृति हाला,
पावन संस्कृति का उपदेशक मेरा  श्रीमन साकी है,
सत सुबोधिनी परम पावनी शिष्ट भावनी मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"प्रीति मधुर मादक रस बरसत"


रस बरसत अतिशय मन हरसत
प्रीति मधुर मादक रस बरसत।


रस रस टपकत हिय मन महकत
गम गम गमकत अतिप्रिय हरकत।


बह बह बहक़त सतत चपल मन
सर सर सरकत घुमड़ घुमड़ घन।


फड़ फड़ फड़कत अंग अंग संग संग
दंग दंग होत देखि मन के उमंग गंग।


संग संग नृत्य करत उर संग मन मथ
उभय अभंग होय चढ़त मनज रथ।


करतल वीन बजत  मन उर मह
सहज सयन करत कामदेव रति सह।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ0 विद्यासागर मिश्र सीतापुर/लखनऊ

23 मार्च शहीदी दिवस
याद करता हूँ जब देश के सपूतों को तो,
राणा, भामा, शिवा जी का त्याग लिखता हूँ मैं।
भगत व राजगुरु और सुखदेव जी का,
क्रांतिकारी प्रेरणा का राग लिखता हूँ मैं।
सराबोर रक्त से हुई थी धरती जहाँ की,
वहाँ पर जलियांवाला बाग लिखता हूँ में।
डायर को फायर से मारा उधमसिंह ने था,
उसके ह्रदय में भरी आग लिखता हूँ में।
रचनाकार
डॉ0 विद्यासागर मिश्र
सीतापुर/लखनऊ
उत्तर प्रदेश


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