स्नेहलता नीर रुड़की

गीत


सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
नव किसलय फूटे शाखों पर,


सिमटा-सिमटा पतझर अनंत।
1
ले हाथ तूलिका धरती के,रँगता मनभावन अंग-अंग।
अनुपम शोभा मंडित सुरम्य ,हतप्रभ विलोकता है अनंग।
पट घूँघट के कलियाँ खोलें,बह रही सुवासित पवन मंद।
खगकुल कलरव कर रहा मधुर,प्रमुदित सचराचर वृंद-वृंद।
स्वर मधुर सारिका का गूँजे,खुशियाँ छाई हैं दिग्दिगंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
2
कचनार खिला,महुआ महका,सेमल पलाश खिल गए लाल।
गुलमोहर सिंदूरी झूमे ,झूमे द्रुम-दल की डाल-डाल।
गुड़हल,गुलाब,गेंदा गमका, जूही,चंपा शत खिले फूल।
खिल गयी चमेली बेला भी,महके पीला पुष्पित बबूल।
सुषमा का वैभव लुटा रहा,दाता कुसुमाकर दयावंत ।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
3
कुसुमित फ्योंली, रक्तिम बुराँस, आह्लादित झूलें अमलतास।
चूलू ,बादाम ,खुबानी सँग ,केसरिया केसर  करे रास।
आड़ू ,पूलम ,दाड़िम, निम्बू,प्रस्फुटित  संतरे और सेब।
झींगुर के स्वर लगते  मनहर,ज्यों कोटि झनकतीं पायजेब।
मोनाल मगन हो नृत्य करें, लचकें पर्णी के वृन्त -वृन्त।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
4
आमों पर मंजरियाँ आईं,फैली मादक चहुँओर गंध।
तितलियाँ मस्त हो इठलातीं,अलि प्रेम- मगन तट तोड़ बंध।
सरसों  के पीले हाथ हुए,गेंहूँ की बालें हेम-वर्ण ।
मूली ,रहिला खिल गयी मटर ,हैं ओस-नहाए हरित- पर्ण।
 वासंती सुषमा की छवियाँ,अद्भुत आकर्षक कलावंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
5
पादप वल्लरियाँ पुष्प वृंत,वसुधा के सुंदर कंठहार।
कामिनी धरा की छवि निरखे,देवों दिग्पालों की कतार।
मकरंद भरी सुमनांजलियाँ,संदल साँसों में भरे भोर।
फागुन रंगों की पिचकारी,से रँग बरसाता है विभोर।।
जग झूम रहा अब मस्ती में,हैं नहीं अछूते साधु-संत।।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।


हलधर

कविता - तैयारीअभी अधूरी है 
--------------------------------------
लिखना मेरी मजबूरी है , 
सरकारी ध्यान जरुरी है ।
कोरोना से लड़ने वाली  , 
तैयारी अभी अधूरी है ।।


बच्चे बापू से रूठे हैं  , 
अब काम काज सब छूटे हैं  ।
अम्मा से पूछ रहे हैं वो  , 
क्यों  भाग्य हमारे  फूटे हैं ।
इस कोरोना ने क्यों अम्मा , 
छीनी तेरी मजदूरी है ।।
 कोरोना से लड़ने वाली, 
तैयारी अभी अधूरी है ।।1


नेता जी ताली बजा रहे , 
हँस हँस के थाली बजा रहे ।
आटा व दाल हुए महंगे  , 
व्यापारी हमको नचा रहे ।
भूखों की अंतड़ियों से क्यों ,
रोटी की इतनी दूरी है ।।
कोरोना से लड़ने वाली ,
 तैयारी अभी अधूरी है ।।2


 विज्ञापन में बजते गाने ,
 नर्सों पे मास्क न दस्ताने ।
है सुविधा हीन चिकित्सक भी ,
रोते बिन साधन के थाने।
सच्चा दो दिन से प्यासा है , 
झूंठे के पास अँगूरी है ।।
कोरोना से लड़ने वाली , 
तैयारी अभी अधूरी है ।।3


क्यों निजी चिकित्सक सोए हैं ,
 जो सरकारों ने बोए हैं ।
इनकी भी भागेदारी हो ,
 किस गफलत  में वो खोए हैं।
संयम से जीतेंगे "हलधर", 
सच्चा एलान जम्हूरी  है ।।


 कोरोना से लड़ने वाली ,
 तैयारी अभी अधूरी है ।।4


हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

जागो जागो मेरे भारतवासी
भारत के सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
लगा सको तो बड़ पीपल का
पेड़ लगा लो
गुलाब का फूल लगाने से
पर्यावरण क्या बदलेगा
तुलसी का बाग लगा कर देखो
कोरोना वायरस को
दुम दबाकर,भागना ही पड़ेगा
स्वर्ग से सुंदर,
देश है मेरा भारत
विदेशो में रहने से
तुम्हे क्या, सुख मिलेगा
विटामिनो से भरपूर है
भारतीय व्यंजन
विदेशो का मीठा जहर क्यों
तुम पी रहे हो
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
विदेशी कंपनी चाहते है
भारत में दवा चलती रहे
लोग बीमारी में पलता रहे
सुख  चैन और शांति के लिये
हमारे शरण में,पड़ा रहे
जागो जागो मेरे भारत वासी
मेरे भारत के भुइयां को चंदन कहव
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा"*
(कुकुभ छंद गीत)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
*आगे-आगे बढ़ते जाना, कदम न पीछे करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*राही! लंबा सफर तुम्हारा, मंजिल तुमको पाना है।
चलना ही तो जीवन जानो, रुकना ही मर जाना है।।
पंथ-भटक मत जाना पंथी, नव पथ तुमको गढ़ना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*प्रखर-धूप या ठंड-ठिठुरती, चाहे वर्षा या गर्मी।
कर्म-राह पर चलते रहना, बनकर नित निष्ठा धर्मी।।
तम-घेरों का जाल काटकर, पंथ-प्रभासित करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*अनंत यात्रा के तुम राही, इसका अंत न होना है।
अग्नि परीक्षा पग-पग पर है, कब हँसना कब रोना है।।
तजकर चिंता चिंतन करना, गिरकर साथ सम्हलना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


रीतु प्रज्ञा    दरभंगा , बिहार

लाकडान का स्वागत


दिल से करें लाकडान का स्वागत,
बेवजह न हो कुछ दिन सड़क पर आगत।
परिवार संग खुशी के पल बिताईए,
अपना और समाज, राष्ट्र सूरक्षित कीजिए।
कोरोना वायरस भागे , मुहीम से जुड़िए
सड़कार के आदेश का सिर आँखों पर लीजिए।
सुखमय संसार सर्वत्र बसाईए,
इस  घड़ी मत घबराईए।
आवश्यकता होने  पर ही घर से पग निकालिए
दृढ़ संकल्पित हो कोरोना भगाईए।
          रीतु प्रज्ञा   
दरभंगा , बिहार


निशा"अतुल्य"

कोरोना को हराना है 
24.3.2020


दिल में दबी एक आग है
क्यों सुनता नही इंसान है
खतरा मंडरा रहा है चारों ओर
फिर भी बना ख़ुद से अंजान है।


मान लो अब तो बात खैरख़्वाह की
ये दुश्मन तुम्हारा नही यार है।


गलतियाँ निकालने को पड़ी है उम्र सारी
मिला लो हाथ,हराना कोरोना को हर हाल है।


जीवन रहेगा सुरक्षित तो देखेगें दोस्ती दुश्मनी
मानो बात सरकार की ये तुम्हारे लिए ही खास है।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

एक भजन आज के परिपेक्ष्य में....


परमब्रह्म की भूल के सत्ता,
हुआ नर को अभिमान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


भय व्याकुल हुआ इतना मानव,
दीखें न कोई राह।
भूल गया सब धमा चौकड़ी,
बस जीवन की परवाह।।
उन्नति की डींग हांकते जाकी,
रुकती नहीं थी जवान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


धरती छोड़ चांद की राह ली,
चाहे मंगल पर आवास।
पेड़ काट बनाये कारखाने,
अंतरिक्ष में हो वास।।
पाश्चात्य सभ्यता अपना कर,
भौतिकता बनी शान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


अर्धनग्नता और अश्लीलता,
धर्माचरण से हीन।
फटे वसन पहन कर वे लगते,
सबकुछ होते भी दीन।।
प्रकृति आज विपरीत हुई तो,
अब पढ़ने लगा अजान।।
हुआ हताहत के प्रकृति हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*चाह नही*
विधा: कविता


दिल की चाह सम्मान,
पाने की कभी नहीं रही।
लिखा मेरा शौक है,
और हिंदी मेरी माँ हैं।
इसलिए विश्व की ऊंचाइयां,
मां को दिलाना चाहता हूँ।
और माँभारती की सेवा करना,
अपना फर्ज समझता हूँ।।


इसलिए में साफ शुद्ध,
बिना चापलूसी के लिखता हूँ।
और माँ भारती के चरणों में,
दिलसे नत मस्तक रहता हूँ।
और हिंदी के उथान के लिए,
गीत कविताएं लिखता हूँ।
और मां की सेवा करना,
अपना कर्तव्य समझता हूँ।।


मिले मानसम्मान या नहीं मिले,
इसकी परवाह नहीं करता।
लेखक हूँ ,काम है लिखना।
इसलिए पाठको के लिए,
दिल से सही लिखता हूँ।
और समाजकी बुराइयों को,
लेखनी से प्रगट करता हूँ।
कभी सरहाया जाता हूँ,
तो कभी ठुकराया जाता हूँ।
पर पाठको के दिल में,
अपनी जगह बना लेता हूँ।।


लोगों के दिलको छू जाए,
तो लेखक को खुशी होती है।
और किसीका दिल दुख जाए,
तो उसकी सुनना पड़ती है।
लेखक के जीवन में, 
ये निरंतर चलता रहता है।
इसलिए माँ भारती के प्रति,
कभी समझौता नहीं करता।
चाहे मान सम्मान,
मिले या न मिले।
इससे मेरी लेखनी पर,
असर पड़ता नहीं।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
24/03/2020


एस के कपूर "श्री हंस"।* *बरेली

*कॅरोना पर पानी विजय संकल्प*
*और संयम से।*


*कॅरोना   के    खिलाफ  जारी है*
*बहुत   बडी  लड़ाई।*
*जितनी जल्दी    समझ लें  इसी*
*में है   बहुत  भलाई।।*
*देहांत से ज्यादा तोअच्छा है हम*
*सब का एकांत वास।*
*इसी सावधानी में   ही  छिपी  है*
*जिंदगी की सुनवाई।।*


*यदि   जिंदा  रहना  चाहते  हो तो*
*डरना  जरूरी  है।*
*घर में   ही हमेशा  रहना    हमारी*
*समझो मजबूरी है।।*
*इटली की   गलती से   सीख  कर*
*जरूरी    है      दूरी।*
*पर अगर बरती  हमने  लापरवाही*
*तो हमारी मगरूरी है।।*


*आँखों से आँखें चुराते  रहो और  गले* 
*मत    लगाते    रहो।*
*हर   किसी  को   भी ये   बात  जरूर*
*तुम   बताते     रहो।।*
*मास्क   लगाना और   सनेटाइज़र का*
*प्रयोग   है  जरूरी।*
*भीड़  भाड़ से  भी   हमेशा खुद   को*
*बचते  बचाते  रहो।।*


*अब हाथ   धो  कर इस महामारी के*
*पीछे पड़ जाना है।*
*स्टेज थ्री   में  जाने से पहले  देश  को* 
*रोका     जाना   है।।*
*प्रभु से प्रार्थना और  घर में ही करनी* 
*है   पूजा   अर्चना।*
*संकल्प और संयम से  कॅरोना को*
*दूर   भगाना     है।।*


*जान है तो जहान है और यह  जीवन*
*बहुत   महान    है।*
*घर से बाहर निकले तो सामने ही बस*
*कॅरोना की खान है।।*
*लॉक डाउन , कर्फ्यू का  पूर्ण  पालन*
*है बहुत ही जरूरी।*
*बचाव ही इलाज बस वही अब तो*
*सच्चा   इंसान  है।।*


*रचयिता व अनुरोध कर्ता।*
*एस के कपूर "श्री हंस"।*
*बरेली।*
*मो  9897071046*
      *8218685464*


दीपक शर्मा  जौनपुर उत्तर प्रदेश

कविता - सावधानी बहुत जरूरी 


कोरोना वायरस
दहशत में सारा देश
सड़कों पर सन्नाटा 
अजीब परिवेश।


मास्क लगाओ
धोओ हाथ
धोड़े दिन छोड़ो 
मित्रों का साथ


सावधानी बहुत जरूरी 
रहना है सबसे दूरी
बाहर से न कोई अंदर आये
अंदर से न बाहर जाये
हे प्रभु, कैसी मजबूरी


दुकाने बंद
कारखाने बंद
गाड़ी मोटर दफ़्तर बंद
घर में बैठो
लिखो कविता
लिखो छंद


-दीपक शर्मा 
जौनपुर उत्तर प्रदेश


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"मंज़िल"*
"मंज़िल नहीं अपनी तो ये,
इससे भी दूर जाना हैं।
थकना नहीं जीवन में तुम,
अभी बहुत कुछ पाना हैं।।
कह सके मन की बातें वो,
ऐसा साथी पाना हैं।
जीवन साथी सने साथी,
ऐसे कदम बढ़ना है।।
टूटे न डोर प्रीत की,
इतनी प्रीत बढ़ना है।
महके ख़ुशियों की फुलवारी,
इतना संग निभाना है।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता

ःःःःःःःःःःःःःःःः           
           24-03-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मूल्यांकन
********
सोने वालोंं जागो,
जाग जाओ।
यह जीवन
यूं ही न खोओ,
इसका मूल्य समझो
इसकी कीमत जानो
अपना विवेक जगाओ।
तुम्हारा धन गया 
तो क्या गया
कुछ  भी नहीं,
तुम्हारा स्वास्थ गया
तो समझो कुछ नहीं गया,
किन्तु 
यदि चरित्र ढहा
तो समझना
जीवन धन ही गया,
सब कुछ निकल गया,
क्यों कि
चरित्र ही धर्म है,
सबसे बड़ा।
चरित्र जीवन की कुंजी है।
जीवन में
चरित्र ही अमूल्य निधि है,
जहां कहीं
जिस किसी
गली -कूचे 
गांव शहर से गुजरेगो
तो, इसी से होगा
तुम्हारा मूल्यांकन।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

😊   मामा जी फिर आ गए   😊


मामा जी  फिर आ गए,
                 लिए कमल को हाथ।
कमल,नाथ से छिन गया,
                  अब हैं  केवल नाथ।


राजनीति अरु  प्रेम  में, 
               सब कुछ जायज़ यार।
जाने कब किसके गले, 
                  कौन  डाल  दें  हार।


छोड़ गए कुछ हाथ को, 
                और  नाथ  का  साथ।
भाया उनको कमल ही, 
                 नहीं कमल का नाथ।


जनसेवा के नाम पर, 
                   हुआ सियासी खेल।
लार बहुत टपका लिया, 
                    खाएॅ॑गे  अब  भेल।


कोरोना का भय दिखा, 
                  मामा के मुख साफ।
बढ़ा ग्राफ तो फिर उन्हें, 
                   कौन  करेगा  माफ़।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मुझ ईश्वर का अस्तित्व भूलके
की है मानव ने जो भूल
प्रकृति का स्वरुप बिगाड़ कर
करली है अपने प्रतिकूल


मैंने प्रदान किये थे अतुल भोज
सुमिष्टान्न फल और मेवा
भक्ष्याभक्ष्य को अपनाया तूने
जीव जंतु का करे कलेवा


दिया मृत्यु को खुद ने आमंत्रण
अब घिरा है महामारी से
दोष दे रहा मुझ परमब्रह्म को
जब जूझ रहा बीमारी से


संस्कृति संस्कार पहचान नर
मुझ ईश्वर पर कर विश्वास
तेरी सारी विपदा हर लूंगा मैं
मेरा स्मरण कर मेरी आस


सत्य करें है आव्हान जगत से
करो न आचरण प्रतिकूल
श्रीराधे कृष्ण को हिय बसा लो
सबकुछ हो जाए अनुकूल।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मोहब्बत"


करता हूँ मैं मोहब्बत कहता नहीं किसी से,
दुनिया नहीं समझती कहता नहीं इसी से।


ये दिल की बात सुन्दर दुनिया को क्या पता है,
यह राज-ए-मोहब्बत मोहक नहीं खता है।


पुष्पक विमान बनकर दिल घूमता रहता,
यह सर्व को बिठाता फिर भी ये रिक्त रहता।


इसमें भरा मोहब्बत भरपूर गमकता,
सबके लिए बना है सबके लिए उमड़ता।


यह चीज व्यक्तिगत है पर दे रहे जगत को,
सीने में रखकर इसको जाता हूँ मैं स्वगत को।


जो चाहे लेले इसको मैँ दान कर रहा हूँ,
सारे जगत का हरदम सम्मान कर रहा हूँ।


करबद्ध है निवेदन प्रतिकारना न इसको,
सन्देह है अगर तो स्वीकारना न इसको।


ईश्वर का दिया तोहफा है दान के लिए,
सिखला रहा मनुष्यता यह ज्ञान के लिए।


शुल्क इसका कुछ नहीं निःशुल्क वितरण हेतु यह,
अनमोल मेरे प्यार का अभिज्ञान होना चाहिए।


मैँ निरंकुश आत्ममोही दूत बनकर हूँ खड़ा,
आजाद भारत वर्ष को परिधान सुन्दर चाहिए।


मैँ भरत हूँ भारती का पूत प्रेमी मोहमय,
हर किसी को सत्य सात्विक प्रीति पाना चाहिए।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना"


हल्के में मत लीजिये परम भयंकर जन्तु।
हत्यारा यह मनुज का कोरोना विष-तंतु।।


लॉकडाउन को समझ यह  कवच  सुरक्षा-जाल।
मानव जीवन के लिये यही सुरक्षा चाल।।


एक कोरोना से हुए कई कोरोना आज।
हर मानव संदिग्ध है देख कोरोना राज।।


खतरे में है पड़ गया मानव का अस्तित्व।
कोरोनामय लग रहा हर कोई व्यक्तित्व।।


धड़कन बढ़ती जा रही मन होता बेहाल।
होता अब महसुस यह कोरोना है काल।।


यह कोरोना काल है अथवा है भूचाल।
पहुँच रहा क्रमशः मनुज सतत काल के गाल।।


नहीं समझ में आ रहा क्या है इसका काट।
दहशत में सारे मनुज देख काल की खाट।।


कोरोना की मार को झेल रहे मजदूर।
लाले पड़े हैं अन्न के मन मलीन सुख चूर।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


-डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


परमानंद निषाद*

 


 ॥ जनता कर्फ्यू 22 मार्च ॥


बज गया है बिगुल जंग का,
भारत मे आज कोरोना का।
हर भारतवासी एक साथ है,
जनता कर्फ्यू के अभियान मे।
कोरोना आज चलेगा तुझे मालूम,
भारत से तेरा मुकाबला है।
सुबह-शाम जहां होता है,
देवी-देवताओं की पूजा।
 जिसकी आत्मशक्ति है,
भारत की पवित्र भूमि।
हर संकट टल जाता है,
भारत मे आने के बाद।
ऐसा ही यह संकट है,
कोरोना वायरस का।
जनता कर्फ्यू से घटाना है,
कोरोना की महामारी को।
जनता कर्फ्यू से हमे भगाना है,
कोरोना वायरस की संकट को।
आज हम सबको मिलकर,
जनता कर्फ्यू सफल बनाना है।
आज रहो सब घर के अंदर,
सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक।
भारत के साथ पूरा विश्व,
सफल हो कोरोना भगाने मे।
शाम 5 बजे से शुरू करो,
बजाना ताली और थाली।
यही हम सब विनती करते है,
मन मे कामना का ज्योत जलाते रहो।


   
     जय हिंद, जय भारत


*परमानंद निषाद*
ग्राम- निठोरा, पोस्ट- थरगांव
तहसील- कसडोल, जिला- बलौदा बाजार(छग)
मोबाइल- 7974389033
ईमेल- Sachinnishad343@gmail.com


कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


  (मनहरण घनाक्षरी)
       """""""""""'''''"
देश   के  वीर  जवान,
चरण    धूलि   महान,
आपसे ही  तो जहान,
     भारत के जान है।
🇮🇳💪🏼
बच्चे बच्चे के जुबानी,
आप दिये  है कुर्बानी,
बना   अमर   कहानी,
      वतन के शान है।
🇮🇳👌🏼
जब भी संकट  आया,
देश   पर  खरा  पाया,
हर   समय  दी  जान,
        सबसे महान है।
🇮🇳😭
जवाबी   उड़ान   भरे,
पाक  में   हुँकार  करे,
सबको    संघार   करे,
       ये वीर जवान है।
🇮🇳💪🏼



💐हिन्दुस्तान के वीर -
शहीदों को श्रद्धांजलि💐
                  *******


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

दिनांकः २३.०३.२०२०
वारः सोमवार 
विधाः कविता 
शीर्षकः सावधान बस कोरोना से
सावधान बस कोरोना से,
जागो रे मानव फ़ुफकार सुनो तुम,
महाप्रलय बन दावानल वह,
लपलपा रहा है जहरीली जिह्वा,
ग्रास त्रास उद्यत जनविनाश बन ,
सावधान बस इस महासर्प से
मरीज़ आंकड़ें कोरोना के, 
 विनती बस ,सब घर में ही रहो ना।
हाथ साफ तुम करो ना, 
दूर रहो तुम नित दूसरों से तुम 
अमूल्य तुम्हारा जीवन समझो,
पहन मास्क ख़ुद बचो ना,
डरो नहीं, बस यतन सुरक्षा,
जीने को इतना करो ना,
तुम बचोगे तो राष्ट्र बचेगा , 
रहे मनुज संसार बचेगा , 
करोना दानव से तुम डरो ना , 
सरकार से सहयोग करो ना,  
खुद की जीवन रक्षा करो ना , 
लॉक डाउन का उल्लंघन करो ना,
नाक मुँह को ढको ना , 
सब मिल कर लड़ो ना , 
करोना से सावधान रहो ना , 
खुद को एकान्त करो ना , 
साथ देश का  चलो ना , 
योग व्यायाम करो ना , 
खुद पे विश्वास करो ना , 
नियमों का पालन करो ना , 
जीवन रक्षा करो ना , 
मानवता रक्षक बनो ना।
हुआ डायनासूर फिर से जिंदा ,  
है दहशत में दुनिया सारी , 
वीर साहसी बनो ना ,  
दिक्कतें कुछ दिन सहो ना , 
घर बैठो जिंदा रहो ना, 
महामारी बना कोरोना , 
खुद की हिफ़ाजत करो ना , 
महाजंग का हथियार बनो ना।
खुद बच्चों की रक्षा करो ना , 
घर में कामों को करो ना,  
साथ खड़ी सरकार तुम्हारी , 
हौंसलों की नई उड़ानें भरो ना , 
कुछ दिन संघर्ष करो ना।
छींकों खाँसों ढँक कर कपड़े ,     
फैलाओ ना दुश्मन वायरस , 
कोरोना की हत्या करो ना , 
सब सावधानियाँ रखो ना , 
कुछ दिनों की बात है वन्दे , 
कदम मिला के चलो ना , 
बेकाबू होने से पहले , 
सब मिल कोरोना रोको ना, 
मौत खुला मुख ग्रास बनाने , 
धीर वीर योद्धा बनो ना ।
मन में पूजा करो ना, 
नमाज़, अर्ज़ , पूजन, प्रार्थना ,
घर में रहकर करो ना , 
अनुकूल चिन्तना करो ना , 
खुद का दुश्मन मत बनो ना , 
नीति प्यार पथ चलो ना , 
मज़बूत बनो दिल दिमाग मन , 
कर्मवीर तुम बनो ना , 
लड़ो लड़ाई धर्मयुद्ध का , 
शंखनाद तुम करो ना, 
कोरोना से मत मरो ना ।
पस्त करो इस महा असुर को , 
समझो तुम कर्तव्य स्वयं का , 
अब भी तो संभलो ना , 
रहो साथ इस जहरीले क्षण में , 
कुछ तो संजीदा बनो ना , 
निकलो मत तुम घर से बाहर , 
प्रधान मंत्री का अनुरोध सुनो ना , 
एहतिहात बरतो ना ,   
मार भगाओ कैरोना को , 
खुद जनता कर्फ्यू बनो ना।
जीवन है अनमोल धरोहर, 
खोओ मत रक्षा करो ना , 
मान रहा हूँ , ख़ौफ जटिल है , 
महामारी का आतंक विकटतम, 
सब मिलकर उससे लड़ो ना , 
गाओ सब जयगान राष्ट्र का , 
अनुशासन का पालन करो ना , 
आर पार सरकार स्वयं मिल, 
कोरोना से  रण  लड़ो ना।
तन मन धन अर्पण करो ना ,
निर्मल मति चिन्तन करो ना , 
एक राष्ट्र भक्ति पथ चलो ना , 
जीतेंगे हम महाकाल को , 
रोएगा,भागेगा, कोरोना पछताएगा ,    
महामृत्युंजय शिव सुन्दर जीवन, 
पावन संकल्पित बनो ना ।
नासमझों को विरोध करो ना , 
सरकारों, मॉफी करो ना, 
बरतो तुम अधिकाधिक सख़्ती , 
समझ रहे अधिकार आजादी 
घूम रहे पशुतुल्य बने जो ,
बेमतलब जो समझ रहे खल ,
लॉक डाउन का आदेश नासमझ,
सम्वाहक कोरोना को सम्बल ,
इन गद्दारों को बंद करो ना ।
आवाहन करता मन व्याकुल,
निकुंज जीवन वीरान करो ना,
अमन सुखद चैन तुम रहो ना , 
रफ़्तार कोरोना महारोग को ,
भारत से बाहर करो ना ,
जय मानव गान करो ना ,
विनती मेरी बस सुनो ना ,
रहो संयमित सावधान बस,
बंद कुछेक दिन घर रहो ना।
कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली


सत्यप्रकाश पाण्डेय

भगत राजगुरू सुखदेव सिंह
तुम्हें करता वतन प्रणाम
क्या है राष्ट्र आजादी के मायने 
फांसी चढ़ किया प्रमाण


राष्ट्रभक्ति की अलख जगाकर
कैसे सोता देश जगाया 
अब नहीं डरेंगे हम नहीं झुकेंगे
फिरंगियों को बतलाया


प्राणों की परवाह न करके
बोली इंकलाब की बोली
परतंत्रता की तोड़ेंगे श्रृंखलाएं
खानी पड़े सीने पै गोली


अनगिनत बलिदान तुम्हारे
कभी वतन नहीं भूलेगा
जब जब गाथाएं गाई जायेंगी
सुन सुनकर सीना फूलेगा


राष्ट्र के लिए देकर के कुर्बानी
तुमने सपने पूर्ण किए
स्वराज सुराज में बदल जाये अब
करें नमन सद्भाव लिए।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य"

बालगीत
23.3.2020


चलो चुन्नू हाथ धो ओ
आँख नाक मत छुओ
होगा नुकसान बड़ा
बात तुम मान जाओ


विषाणु है ये भयंकर
जिसे कहते हैं कोरोना
इसे मिल कर हराना
जिम्मेदारी ये निभाओ


आओ चुन्नू घर मे रहो
इधर उधर नही घूमों
तुम अच्छे बच्चें बनो
सबको ये समझाओ।


टूटेगी ये चेन तभी
नही मिलेगा मानव जब कोई 
बच कर होगा रहना
कोरोना को होगा हराना ।


चलो चुन्नू घर में रहो
घर के ही खेल खेलो
बचपन मेरा लौट आया
मस्ती करते देख तुम्हे 
आज मन मेरा हर्षाया ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


राजेंद्र रायपुरी

सरसी छंद पर एक रचना - -


😌 कोरोना वायरस और बचाव 😌


कोरोना अब धीरे- धीरे, 
                       बढ़ा रहा है पाॅ॑व। 
दे दो सब को ये संदेशा, 
                     रहें शहर या गाॅ॑व।
भीड़-भाड़ से दूर रहें वो, 
                     नहीं मिलाएॅ॑ हाथ।
हाथ जोड़कर कहें सभी से, 
                    खड़े आपके साथ।


धोएॅ॑ हाथ सदा साबुन से, 
                    कह दो उनसे यार।
नहीं दवा है कोरोना की,
                    है  बचाव  उपचार।
खाॅ॑सें छींकें जब भी कह दो,
                   मुॅ॑ह पर रखें रुमाल।
होगा नहीं तभी औरों का,
                    उनके  जैसा  हाल।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


 डॉ. शैल चन्द्रा

फुदकती चिड़िया देखकर आँगन सुनसान।
पूछती है सबसे कहाँ गया इंसान।
हो रही है वो बेहद हैरान।
ये क्या से क्या हो गया भगवान।
हमेशा भीड़ से घिरा  रहना चाहता था कामयाब इंसान।
अब एकदम अकेले रह गया है  चाहे वो बहुत धनवान।
कोरोना अस्त्र आया मारण यंत्र।
नहीं चल रहा उसके सामने कोई तंत्र।
भयानक मौत का तांडव करने वो आया।
सुनामी की लहर की तरह सबको डुबाया।
बचना है तो बच सको हे मानव।
वरना पल भर में  लील जाएगा ये दानव।
सुरक्षा अपने हाथ में है कर लो।
जीवन को  चाहो अपनी मुठ्ठी में भर लो।
मनुष्य में जिजीविषा है भारी।
हरा कर कोरोना को जीत रखेगा जारी।
घर पर रहो लोगों ,बाहर खतरा है।
दरवाजे पर सबके मौत का पहरा है।
नहीं जागे तो अब जाग जाओ।
हाथ धो कर पीछे पड़ कर कोरोना को भगाओ।
           डॉ. शैल चन्द्रा


विवेक दुबे"निश्चल

*कोरोना का घात बचा लें ।*


मानव की जात बचा लें ।
 अपनी औक़ात बचा लें ।


छोड जात धर्म के झगड़े,
अपना इतिहास बचा लें ।


शह  मिली है कुदरत से ,
हम अपनी मात बचा लें ।


 बजीर बने है हम प्यादे ही ,
 हम अपना  ताज बचा लें ।


 बहुत हुआ अब कहती वसुधा,
 दिन उजयरों में रात बचा लें ।


 कहलाये श्रेष्ठ प्राणी जग में हम ,
 मानव हम अपनी बात बचा लें ।


रहें सभी सावधान संक्रमण से ,
कुछ अपनी मुलाक़ात बचा लें ।


 आज रहे यही तब कल होगा ,
कल की खातिर प्रभात बचा लें ।


*न निकले घर से घर की ख़ातिर*
 *हम कोरोना का घात बचा लें ।*


 क्या होगा न निकले घर से तो ,
 मन मे थोड़ा सा एकांत बचा लें ।


 मानव की जात बचा लें ।
 अपनी औक़ात बचा लें ।


.... *विवेक दुबे"निश्चल"@*...


आशुकवि नीरज अवस्थी

 शहीदी दिवस पर आप सभी के श्री चरणों में उन अमर बलिदानियों के सम्मान में विनम्र श्रंद्धांजलि---💐💐💐


जवानी जिंदगी बलिदान कर्ता को नमन लाखों।
किया स्वीकार हंस कर मौत को उनको नमन लाखों।।
बदौलत आज हिंदुस्तान में"आजाद" हम जिनकी,
नयन में नीर भर नीरज नमन करते उन्हें लाखों।।



जो मर कर हो गए जिंदा उन्हें आजाद कहते है।
फिंरँगी ख़ौफ़ खाते थे उन्हें आजाद कहते है।
बदन अपना नही छूने दिया पिस्तौल से अपनी,
शहादत की कथा लिख्खी उन्हें आजाद कहते है।
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


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