सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"लाँक डाउन"*
"लाँक डाउन का करो सम्मान,
जीवन है अमूल्य-
रक्षा करें इसकी हर इन्सान।
विश्व की दशा देख कर भी,
क्यों- समझ नहीं रहा-
यहाँ इन्सान।
मजाक का नहीं है-ये समय साथी,
देखो समझों और मानो बात-
घर में रहना तुम हो नहीं मेहमान।
दिशा-निर्देशों का पालन करे,
दूरी रख कर मिले-
स्वच्छता का रखे ध्यान।
रोग प्रतिरोधक शक्ति बढे़,
नित ऐसा लो आहार-
रहो सावधान।
लाँक डाउन का करो सम्मान,
जीवन है-अमूल्य-
रक्षा करें इसकी हर इन्सान।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता


राजेन्द्र रायपुरी

🚩 🚩 आस और विश्वास 🚩🚩


है *उम्मीद* कि विपदा अपनी,
                     जल्दी ही टल जाएगी।
सिंह वाहिनी आने को हैं,
                         उससे ये घबराएगी।


*आशा* क्या विश्वास सभी को,
                       दुर्गा मां जब आएंगी।
कोरोना पर कर प्रहार वो,
                       तत्क्षण दूर भगाएंगी।


करें *भरोसा* जो माता पर, 
                   उनका होता है कल्यान।
वही *आसरा* और *सहारा*,
                       हैं बंदे तू इतना जान।


*आस* लगाकर बैठे हैं सब, 
                    मां काली जब आएंगी।
काट गला इस "कोरोना" का,
                       अपना हार बनाएंगी।


माॅ॑ से करें *अपेक्षा* क्यों ना,
                       वही जन्म देने वाली।
पालन पोषण वो हीं करती, 
                    वो ही करती रखवाली।


            ।। राजेन्द्र रायपुरी।।


संदीप कुमार बिश्नोई दुतारांवाली अबोहर पंजाब

नमन मंच
सादर समीक्षार्थ


ये नज़र भी मिल गई जो आज की महफ़िल में है
चाँद सा मुखड़ा तुम्हारा बस गया इस दिल में है


रो रही है रूह तेरे इश्क में मेरे खुदा 
ढूंढ आँखें ये थकी तू कौन सी महफ़िल में है


लूटता है आबरू जो मारता है जीव भी
आज बैठा रो रहा वो आदमी मुश्किल में है


ढा रही कुदरत कहर ये देख कर हैरान सब
ख़ून के तू हाथ लेके छुप रहा क्यों बिल में है


बो दिए कांटे जहां में बन गये दानव सभी
सर उठाकर चल सके ये होश किस कातिल में है


संदीप कुमार बिश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब


आशा त्रिपाठी       सहारनपुर

*समय की विवशता पर सामयिक रचना*।


शाश्वत दीप्ति अलौकिक जन-भय,
आत्म नीति अनुशासन की जय।
मानव -जाति विदीर्ण जन्म पर,
महा-विनाश कोरोना संशय।।


भयभीत धरा निःशब्द मानव मन,
काल भाल पर कातर क्रन्दन।
अखिलविश्व त्रय ताप पराभव,
कण-कण द्रवित मृत्यु का नर्तन।।


जीवन कठिन आत्म चिन्तन मे,
मजबूर समर्थ हुआ तन मन से।
चारो ओर वीरानी छायी,
अद्भूत कठिन घड़ी है आयी।


संयम ,संकल्प का अंकन कर ले।
 नयनो में उजियारा भर ले।
अनुशासित रह स्वप्न सजाये।
कोरोनों को भारत से दूर भगाये।


परिस्थितियों का दास है जीवन,
शब्द स्फूर्ति परिहास है जीवन।
जीवन शाश्वत सकल भास सम,
विश्व सृज्य आभास है जीवन।।


जीवन अनुशासन का अंकुर।
स्वप्न रुप तृण सा क्षण भंगुर।
अमर आत्म नश्वर शरीर है,
सहज भाव मन सा है प्रॉकुर।


आओ प्रण ले देशभक्ति का।
मानव कल्याण की दिव्य शक्ति का।
देशप्रेम से मर मिट जाये। 
समय पुकारे आत्म भक्ति का।।


कोरोना है अदृश्य बीमारी,
इससे हारी दुनिया सारी।
बड़े बड़े हुये नतमस्तक।
मानवता पर विपदा भारी।।


इसका नही मिला कोई तोड़,
प्रिय से प्रिय चले मुख मोड़।
अटल शक्ति बेहाल हो गयी।
विश्व नियन्ता पर सब छोड़।।
परीक्षा की इस कठिन घड़ी मे,
अपनों का मन सिंचन कर ले।
अनुशासित हो २हे घरों मे,,
मन भावो का अर्चन कर ले।


बच्चों के संग लाड़ लड़ाये।
मात पिता का मन बहलायें।
प्रीत पाँखुरी को जल देकर,
मम निकेत बगिया महकायें।


*"आश विपुल"* विश्वास नेह से,
विश्व विजेता भारत होगा।
कोरोना से देश  रक्ष-कर।
अखिल प्रणेता भारत होगा।।
✍आशा त्रिपाठी
      सहारनपुर
     25-03-2020 
     वुद्धवार


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 

कुछ ऐसे ही... 


दो हाथों की ज़द्दोज़हद. 
छूट गया संसार वृहद्. 
जंग छिड़ी मधुमखियों की, 
मिल ना  पाया कहीं शहद. 
बदल गए बातों के मायने, 
हाथ ना आया कुछ भी असद. 
दो बोलों की अनबन में, 
कौन किसे करे पसंद. 
साँसे शिलालेखों पर उकरी, 
दूर शहर में खड़ा गुबंद. 
भाई -भाई में बैर हुआ, 
बिगड़ा अपनों से सम्बन्ध. 
बैठा तो कलम घिसी "उड़ता ", 
हो गया लफ़्ज़ों का तुकबंद. 


✍ सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
#9466865227


कुमार कारनिक    छाल, रायगढ़, छग


  (मनहरण घनाक्षरी)
        🔅🔅🔅
डॉक्टर     है    भगवान,
बनों     तुम     बलवान,
तभी    होगा   बेड़ापार,
 समझ दिखाओ ना।१।
🔅
अगर  हो  सर्दी  खांसी,
अस्पताल जाओ वासी,
रखो  नित   सावधानी,
   बाय बाय कहोना।२।
🔅
जाग    चुकी   सरकारें,
बंद  हो  धार्मिक  स्थलें,
बंद  है   कॉलेज-स्कूलें,
     पग नही धरोना।३।
🔅
कोरोना   से  न  डरिये,
शंका आप  न  पालिये,
भागेगा   ये   दूर   देश,
    तुम नही डरोना।४।



🔅सरकार के निर्देशों
का पालन कीजिये🔅
                 *******


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. 288
दिनांकः 25.03.2020
वारः मंगलवार
विधाः दोहा
छंदः मात्रिक
शीर्षकः.💀 कैरोना से सावधान☝️


कोरोना  से  डरो ना , कोई   करो   उपाय। 
रहो  गेह दूरी अपर , घर में  रहो   सफाय।।


जनता कर्फ्यू वतन से,सुन पि एम आह्वान। 
एक बना जन मन वतन, कर्मवीर   सम्मान।।


कोरोना   शैतान से , जो  लड़ते  दिन  रात।
मोह तजे परमार्थ में , खुद   जीवन सौगात।।
  
ताली  थाली  घंटियाँ ,  बजे   नगाड़े  ढोल।
मुदित हृदय माँ भारती, एक राष्ट्र अनमोल।।


धन्यवाद उनका किया,मिलकर देश समाज।
कर्मवीर तुझको नमन , दिया एक   आवाज़।।


रक्तबीज   बन कर खड़ा , कोरोना   संसार।
लॉकडॉन    गंभीरता , करो   नहीं  तकरार।।


जीओगे  तुम  तभी  ना , करोगे  तुम    काम।
क्यों खतरा  बनते  स्वयं , बढ़े  रोग अविराम।।


छुपा   करो   ना देश  में , करो   उसे आबाद।
बंद    रहो   निज  गेह में , करो  उसे   बर्बाद।।


डरो  नहीं  उससे  बचो , बार   बार   धो हाथ।
खाँस छींक ढक नाक को , दो सरकारी साथ।।


चाह अगर है जिंदगी , करो नहीं खिलवार।
महाकाल यह विश्व का, सबमिल करो प्रहार।।


बंद गेह रख दूरियाँ , ढको  मुँह को मास्क।
करो योग सहयोग दो, बहुत कठिन है टास्क।।


कोरोना  से संक्रमित ,  बनो  नहीं   अवसाद।
जाँच   कराओ निडर बन, रखो राष्ट्र आबाद।।


तीन   तिहाई   विश्व  है,  महाव्याधि से ग्रस्त। 
कैरोना  है  मौत    बन , मानवता   है   त्रस्त।।


सावधान सह स्वच्छता , रखो मनसि विश्वास।
परामर्श   ज्वर   डॉक्टरी , देह  दर्द  अहसास।।


धीर  वीर बन साहसी , लड़ें कठिन मिल संग।
कोरोना   राक्षस प्रबल , करें   नाश अरि जंग।।


ठानो   मन   विश्वास  से , धोने   को   तैयार।
कैरोना    पापी   असुर , जीतें   कर   संहार।।


कोराना    आतंक  से , दूरी    बने   विकल्प।
सावधान   रख   स्वच्छता , रहें  गेह संकल्प।।


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

नव संवत्सर २०७७ एवं नवरात्रि की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺
****************************
*"नव संवत्सर आया है।"*
(ताटंक छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
****************************


*शोभित शरिष्ठ शारित शुभकर, खुशियों का पल लाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
नव हर्षित पल नयी उमंगें, नव विश्वास जगाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।


*नवल भोर की सुखद घड़ी है, नव संवत मनुहारें हैं।
सुरभित सुमन सुशोभित शाखें, भृंग भरें गुंजारें हैं।।
मौसम महका लहका बहका, मानस मद भर आया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।


*भेदभाव की भित्ति ढहाकर, मन अवगुंठन को खोलो।
मन-मन मधुर मधु मदमाया, मधुर-मधुर सब ही बोलो।।
समशीतोष्ण भया मौसम है, दिग्दिगंत चहकाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।


*जग की सृष्टि विधाता ने की, अद्य दिवस को ही जानो।
भारत अपना है जग का गुरु, अपनी संस्कृति को मानो।।
हम सब आर्यों की संतति हैं, मन को क्यों भरमाया है?
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।


*'विक्रम' के विक्रम का दिन है, 'राम-राज्य' दिन है आया।
स्थापित 'आर्यसमाज' हुआ है, ताज 'युधिष्ठिर' ने पाया।।
चैत्र शुक्ल की पहली तिथि है, वैदिक नव दिन आया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।


*रीति नहीं भूलो अपनी तुम, तज दो पश्चिम-धारा को।
हवन आरती करके तोड़ो, कलुषित विचार-कारा को।।
शीत सुवासित बहे समीरण, सुख का शुभ-घन छाया है।
पावन नव संवत्सर आया, सारा जग सरसाया है।।


*हिन्दी वर्ष सुमंगल हितकर, स्नेह सुधा सरसाया हो।
प्रमुदित हों पल-पल सब जग में, प्रेमभाव मन भाया हो।।
स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा, हरेक हिय हर्षाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


नूतन लाल साहू

अपील
बस कुछ दिनों की बात है
आफत की बरसात है
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
विदेशो से जो कोरोना वायरस आया
पुरे देश में हड़कंप मचाया
हम नहीं माना सावधानी तो
परिवार के लिये,जी का जंजाल बना
बस कुछ दिनों की बात है
आफत की बरसात है
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
घर की हिफाजत
हरेक दिल को राहत
रास्ता खुद ही बनाना होगा
देखना फिर,रात रानी की महक
चहुं ओर होगी,चहुं ओर होगी
बस कुछ दिनों की बात है
आफत की बरसात है
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
मेरा भारत देश,सबसे प्यारा
मेरा भारत देश है,सबसे न्यारा
मेरे देश की एकता महान है
मेरे देश की संस्कृति महान है
मेरे देश की सभ्यता महान है
मेरे देश में बसता,इंसान है
हम नहीं माने सावधानी तो
परिवार के लिये,जी का जंजाल है
बस कुछ दिनों की बात है
आफत की बरसात है
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
नूतन लाल साहू


डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"

मां वीणापाणि चरणों में मेरा एक गीत समर्पित है ।(संशोधित)


सुखद ज्ञान का दीप जलाने, सुखमय जीवन लाया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।


बहुत समय था खर्च हो गया, जीवन जीते जीते ही।
 संस्कारों का साथ मिल गया, अमिय हलाहल पीते ही ।
जीवन के वंचित कर्मो का  ,लेखा देने आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूँ।


देखो प्रिय! पहले बतला दो , प्रारब्ध का लेखा जोखा।
 कहीं  मुझे तुम भूल न जाना, देकर इस हिय को धोखा। 
प्रेम मिलन के इस बंधन को जोड़, यहाँ तक आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को संचित करने आया हूँ।


 क्या खोया? क्या पाया? मैंने, कर्मों का प्रतिफल लेकर ।
क्या बोया ?क्या काटा ?मैंने, जन्मों का प्रतिक्षण देकर ।
जनम जनम के इस बंधन को, जोड़ तोड़ कर पाया हूं। 
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं।


स्नेह युक्त बंधन जब पाया, देर हो चुकी थी तब तक।
 जलधारा के मध्य भंवर में ,कश्ती डूब गयी जब तक
भीषण झंझावातों को मैं ,टक्कर देने आया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।


सुखद ज्ञान का दीप जलाने, सुख मय जीवन लाया हूं।


डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"नौ -रात्र मिटायेगा कोरोना"
           (वीर छंद)
जब होता है अत्याचार, असुरों की जब फौज खड़ी हो.,
जब मानवता संकट -ग्रस्त,सन्तों का जब हो उत्पीड़न.,
जब जब बढ़ता पापाचार, हत्यारे आजाद घूमते.,
मतवाले हाथी की भाँति, हो मदान्ध कामान्ध पतित जब.,
होता तब दुर्गा अवतार,कोरोना का वध करने को.,
पीतीं माँ असुरों का खून, बनी कालिका रणक्षेत्र में.,
चंड-मुंड का करतीं नाश, चामुण्डा बन सहज मचलतीं.,
तुम्ही सृष्टि स्थिति संहार, हे माँ दुर्गे सिंहवाहिनी.,
आया है पावन नौरात्र, कोरोना-राक्षस को वध दो.,
अब विलम्ब मत करो हे मातृ, रक्षा कर मानवता की अब.,
असुर-कोरोना को अब काट,रहने मत दो उसको जिन्दा.,
लेकर अपने कर में खड्ग, हत्या कर माँ कोरोना का.,
रच दो सुन्दर स्वस्थ समाज, वर दे वर दे हे माँ दुर्गे.,
भक्तों की विनती स्वीकार, कर लो मातेश्वरीकृपालू.,
कोरोना को कभी न छोड़, टूट पड़ो अब उसके ऊपर.,
हम मानव अब हैं भयभीत, बनी सुरक्षा कवच आइये।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


 विष्णु कान्त मिश्र,लखनऊ

मौत के तमाशबीन हो! 


महा शक्तिमान !
अब कहां तुम्हारा अभिमान !
बनाये थे भीषण विनाश के हथियार ,,
करने चले थे दुनिया का संहार !
 ओ भौतिकता के श्रेष्ठ विधाता !
तुम्हे तो मौत से लडना ही नहीं आता !
बस एक अदना सा ,अदृश्य वायरस---
भारी है तुम्हारी मिसाइलो पर ,,,
शब्द से तेज उडते वायुयानो पर,,,
आर्तनाद कर रहे हो बस ! बस!बस !
नही बनाये तुमने मास्क ,,,,
नही है तुम्हारे पास वेंटीलेटर
बस विनाश का ही था एक्सीलेटर ,,,,
कौन सा सम्बोधन दू ,,
तुम्हारी क्या पहचान है,,,
तुम शायद अमरीका हो ,,ईरान हो ,,,!
या फिर इटली या चीन हो !
नही तुम कोई नही
बस----
मौत के तमाशबीन हो !
मौत के तमाशबीन हो!  विष्णु कान्त मिश्र,लखनऊ। 24-03-2020.समय 5.50PM


स्नेहलता नीर रुड़की

गीत


सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
नव किसलय फूटे शाखों पर,


सिमटा-सिमटा पतझर अनंत।
1
ले हाथ तूलिका धरती के,रँगता मनभावन अंग-अंग।
अनुपम शोभा मंडित सुरम्य ,हतप्रभ विलोकता है अनंग।
पट घूँघट के कलियाँ खोलें,बह रही सुवासित पवन मंद।
खगकुल कलरव कर रहा मधुर,प्रमुदित सचराचर वृंद-वृंद।
स्वर मधुर सारिका का गूँजे,खुशियाँ छाई हैं दिग्दिगंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
2
कचनार खिला,महुआ महका,सेमल पलाश खिल गए लाल।
गुलमोहर सिंदूरी झूमे ,झूमे द्रुम-दल की डाल-डाल।
गुड़हल,गुलाब,गेंदा गमका, जूही,चंपा शत खिले फूल।
खिल गयी चमेली बेला भी,महके पीला पुष्पित बबूल।
सुषमा का वैभव लुटा रहा,दाता कुसुमाकर दयावंत ।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
3
कुसुमित फ्योंली, रक्तिम बुराँस, आह्लादित झूलें अमलतास।
चूलू ,बादाम ,खुबानी सँग ,केसरिया केसर  करे रास।
आड़ू ,पूलम ,दाड़िम, निम्बू,प्रस्फुटित  संतरे और सेब।
झींगुर के स्वर लगते  मनहर,ज्यों कोटि झनकतीं पायजेब।
मोनाल मगन हो नृत्य करें, लचकें पर्णी के वृन्त -वृन्त।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
4
आमों पर मंजरियाँ आईं,फैली मादक चहुँओर गंध।
तितलियाँ मस्त हो इठलातीं,अलि प्रेम- मगन तट तोड़ बंध।
सरसों  के पीले हाथ हुए,गेंहूँ की बालें हेम-वर्ण ।
मूली ,रहिला खिल गयी मटर ,हैं ओस-नहाए हरित- पर्ण।
 वासंती सुषमा की छवियाँ,अद्भुत आकर्षक कलावंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
5
पादप वल्लरियाँ पुष्प वृंत,वसुधा के सुंदर कंठहार।
कामिनी धरा की छवि निरखे,देवों दिग्पालों की कतार।
मकरंद भरी सुमनांजलियाँ,संदल साँसों में भरे भोर।
फागुन रंगों की पिचकारी,से रँग बरसाता है विभोर।।
जग झूम रहा अब मस्ती में,हैं नहीं अछूते साधु-संत।।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।


हलधर

कविता - तैयारीअभी अधूरी है 
--------------------------------------
लिखना मेरी मजबूरी है , 
सरकारी ध्यान जरुरी है ।
कोरोना से लड़ने वाली  , 
तैयारी अभी अधूरी है ।।


बच्चे बापू से रूठे हैं  , 
अब काम काज सब छूटे हैं  ।
अम्मा से पूछ रहे हैं वो  , 
क्यों  भाग्य हमारे  फूटे हैं ।
इस कोरोना ने क्यों अम्मा , 
छीनी तेरी मजदूरी है ।।
 कोरोना से लड़ने वाली, 
तैयारी अभी अधूरी है ।।1


नेता जी ताली बजा रहे , 
हँस हँस के थाली बजा रहे ।
आटा व दाल हुए महंगे  , 
व्यापारी हमको नचा रहे ।
भूखों की अंतड़ियों से क्यों ,
रोटी की इतनी दूरी है ।।
कोरोना से लड़ने वाली ,
 तैयारी अभी अधूरी है ।।2


 विज्ञापन में बजते गाने ,
 नर्सों पे मास्क न दस्ताने ।
है सुविधा हीन चिकित्सक भी ,
रोते बिन साधन के थाने।
सच्चा दो दिन से प्यासा है , 
झूंठे के पास अँगूरी है ।।
कोरोना से लड़ने वाली , 
तैयारी अभी अधूरी है ।।3


क्यों निजी चिकित्सक सोए हैं ,
 जो सरकारों ने बोए हैं ।
इनकी भी भागेदारी हो ,
 किस गफलत  में वो खोए हैं।
संयम से जीतेंगे "हलधर", 
सच्चा एलान जम्हूरी  है ।।


 कोरोना से लड़ने वाली ,
 तैयारी अभी अधूरी है ।।4


हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

जागो जागो मेरे भारतवासी
भारत के सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
लगा सको तो बड़ पीपल का
पेड़ लगा लो
गुलाब का फूल लगाने से
पर्यावरण क्या बदलेगा
तुलसी का बाग लगा कर देखो
कोरोना वायरस को
दुम दबाकर,भागना ही पड़ेगा
स्वर्ग से सुंदर,
देश है मेरा भारत
विदेशो में रहने से
तुम्हे क्या, सुख मिलेगा
विटामिनो से भरपूर है
भारतीय व्यंजन
विदेशो का मीठा जहर क्यों
तुम पी रहे हो
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
विदेशी कंपनी चाहते है
भारत में दवा चलती रहे
लोग बीमारी में पलता रहे
सुख  चैन और शांति के लिये
हमारे शरण में,पड़ा रहे
जागो जागो मेरे भारत वासी
मेरे भारत के भुइयां को चंदन कहव
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को
हम सब भूल रहे है
तो कोरोना वायरस से
हमे रोना ही पड़ेगा
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा"*
(कुकुभ छंद गीत)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS, युगल पद तुकांतता।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
*आगे-आगे बढ़ते जाना, कदम न पीछे करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*राही! लंबा सफर तुम्हारा, मंजिल तुमको पाना है।
चलना ही तो जीवन जानो, रुकना ही मर जाना है।।
पंथ-भटक मत जाना पंथी, नव पथ तुमको गढ़ना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*प्रखर-धूप या ठंड-ठिठुरती, चाहे वर्षा या गर्मी।
कर्म-राह पर चलते रहना, बनकर नित निष्ठा धर्मी।।
तम-घेरों का जाल काटकर, पंथ-प्रभासित करना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।


*अनंत यात्रा के तुम राही, इसका अंत न होना है।
अग्नि परीक्षा पग-पग पर है, कब हँसना कब रोना है।।
तजकर चिंता चिंतन करना, गिरकर साथ सम्हलना है।
चलकर ही तो लक्ष्य मिलेगा, मन में साहस भरना है।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


रीतु प्रज्ञा    दरभंगा , बिहार

लाकडान का स्वागत


दिल से करें लाकडान का स्वागत,
बेवजह न हो कुछ दिन सड़क पर आगत।
परिवार संग खुशी के पल बिताईए,
अपना और समाज, राष्ट्र सूरक्षित कीजिए।
कोरोना वायरस भागे , मुहीम से जुड़िए
सड़कार के आदेश का सिर आँखों पर लीजिए।
सुखमय संसार सर्वत्र बसाईए,
इस  घड़ी मत घबराईए।
आवश्यकता होने  पर ही घर से पग निकालिए
दृढ़ संकल्पित हो कोरोना भगाईए।
          रीतु प्रज्ञा   
दरभंगा , बिहार


निशा"अतुल्य"

कोरोना को हराना है 
24.3.2020


दिल में दबी एक आग है
क्यों सुनता नही इंसान है
खतरा मंडरा रहा है चारों ओर
फिर भी बना ख़ुद से अंजान है।


मान लो अब तो बात खैरख़्वाह की
ये दुश्मन तुम्हारा नही यार है।


गलतियाँ निकालने को पड़ी है उम्र सारी
मिला लो हाथ,हराना कोरोना को हर हाल है।


जीवन रहेगा सुरक्षित तो देखेगें दोस्ती दुश्मनी
मानो बात सरकार की ये तुम्हारे लिए ही खास है।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

एक भजन आज के परिपेक्ष्य में....


परमब्रह्म की भूल के सत्ता,
हुआ नर को अभिमान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


भय व्याकुल हुआ इतना मानव,
दीखें न कोई राह।
भूल गया सब धमा चौकड़ी,
बस जीवन की परवाह।।
उन्नति की डींग हांकते जाकी,
रुकती नहीं थी जवान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


धरती छोड़ चांद की राह ली,
चाहे मंगल पर आवास।
पेड़ काट बनाये कारखाने,
अंतरिक्ष में हो वास।।
पाश्चात्य सभ्यता अपना कर,
भौतिकता बनी शान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


अर्धनग्नता और अश्लीलता,
धर्माचरण से हीन।
फटे वसन पहन कर वे लगते,
सबकुछ होते भी दीन।।
प्रकृति आज विपरीत हुई तो,
अब पढ़ने लगा अजान।।
हुआ हताहत के प्रकृति हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*चाह नही*
विधा: कविता


दिल की चाह सम्मान,
पाने की कभी नहीं रही।
लिखा मेरा शौक है,
और हिंदी मेरी माँ हैं।
इसलिए विश्व की ऊंचाइयां,
मां को दिलाना चाहता हूँ।
और माँभारती की सेवा करना,
अपना फर्ज समझता हूँ।।


इसलिए में साफ शुद्ध,
बिना चापलूसी के लिखता हूँ।
और माँ भारती के चरणों में,
दिलसे नत मस्तक रहता हूँ।
और हिंदी के उथान के लिए,
गीत कविताएं लिखता हूँ।
और मां की सेवा करना,
अपना कर्तव्य समझता हूँ।।


मिले मानसम्मान या नहीं मिले,
इसकी परवाह नहीं करता।
लेखक हूँ ,काम है लिखना।
इसलिए पाठको के लिए,
दिल से सही लिखता हूँ।
और समाजकी बुराइयों को,
लेखनी से प्रगट करता हूँ।
कभी सरहाया जाता हूँ,
तो कभी ठुकराया जाता हूँ।
पर पाठको के दिल में,
अपनी जगह बना लेता हूँ।।


लोगों के दिलको छू जाए,
तो लेखक को खुशी होती है।
और किसीका दिल दुख जाए,
तो उसकी सुनना पड़ती है।
लेखक के जीवन में, 
ये निरंतर चलता रहता है।
इसलिए माँ भारती के प्रति,
कभी समझौता नहीं करता।
चाहे मान सम्मान,
मिले या न मिले।
इससे मेरी लेखनी पर,
असर पड़ता नहीं।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
24/03/2020


एस के कपूर "श्री हंस"।* *बरेली

*कॅरोना पर पानी विजय संकल्प*
*और संयम से।*


*कॅरोना   के    खिलाफ  जारी है*
*बहुत   बडी  लड़ाई।*
*जितनी जल्दी    समझ लें  इसी*
*में है   बहुत  भलाई।।*
*देहांत से ज्यादा तोअच्छा है हम*
*सब का एकांत वास।*
*इसी सावधानी में   ही  छिपी  है*
*जिंदगी की सुनवाई।।*


*यदि   जिंदा  रहना  चाहते  हो तो*
*डरना  जरूरी  है।*
*घर में   ही हमेशा  रहना    हमारी*
*समझो मजबूरी है।।*
*इटली की   गलती से   सीख  कर*
*जरूरी    है      दूरी।*
*पर अगर बरती  हमने  लापरवाही*
*तो हमारी मगरूरी है।।*


*आँखों से आँखें चुराते  रहो और  गले* 
*मत    लगाते    रहो।*
*हर   किसी  को   भी ये   बात  जरूर*
*तुम   बताते     रहो।।*
*मास्क   लगाना और   सनेटाइज़र का*
*प्रयोग   है  जरूरी।*
*भीड़  भाड़ से  भी   हमेशा खुद   को*
*बचते  बचाते  रहो।।*


*अब हाथ   धो  कर इस महामारी के*
*पीछे पड़ जाना है।*
*स्टेज थ्री   में  जाने से पहले  देश  को* 
*रोका     जाना   है।।*
*प्रभु से प्रार्थना और  घर में ही करनी* 
*है   पूजा   अर्चना।*
*संकल्प और संयम से  कॅरोना को*
*दूर   भगाना     है।।*


*जान है तो जहान है और यह  जीवन*
*बहुत   महान    है।*
*घर से बाहर निकले तो सामने ही बस*
*कॅरोना की खान है।।*
*लॉक डाउन , कर्फ्यू का  पूर्ण  पालन*
*है बहुत ही जरूरी।*
*बचाव ही इलाज बस वही अब तो*
*सच्चा   इंसान  है।।*


*रचयिता व अनुरोध कर्ता।*
*एस के कपूर "श्री हंस"।*
*बरेली।*
*मो  9897071046*
      *8218685464*


दीपक शर्मा  जौनपुर उत्तर प्रदेश

कविता - सावधानी बहुत जरूरी 


कोरोना वायरस
दहशत में सारा देश
सड़कों पर सन्नाटा 
अजीब परिवेश।


मास्क लगाओ
धोओ हाथ
धोड़े दिन छोड़ो 
मित्रों का साथ


सावधानी बहुत जरूरी 
रहना है सबसे दूरी
बाहर से न कोई अंदर आये
अंदर से न बाहर जाये
हे प्रभु, कैसी मजबूरी


दुकाने बंद
कारखाने बंद
गाड़ी मोटर दफ़्तर बंद
घर में बैठो
लिखो कविता
लिखो छंद


-दीपक शर्मा 
जौनपुर उत्तर प्रदेश


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"मंज़िल"*
"मंज़िल नहीं अपनी तो ये,
इससे भी दूर जाना हैं।
थकना नहीं जीवन में तुम,
अभी बहुत कुछ पाना हैं।।
कह सके मन की बातें वो,
ऐसा साथी पाना हैं।
जीवन साथी सने साथी,
ऐसे कदम बढ़ना है।।
टूटे न डोर प्रीत की,
इतनी प्रीत बढ़ना है।
महके ख़ुशियों की फुलवारी,
इतना संग निभाना है।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता

ःःःःःःःःःःःःःःःः           
           24-03-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मूल्यांकन
********
सोने वालोंं जागो,
जाग जाओ।
यह जीवन
यूं ही न खोओ,
इसका मूल्य समझो
इसकी कीमत जानो
अपना विवेक जगाओ।
तुम्हारा धन गया 
तो क्या गया
कुछ  भी नहीं,
तुम्हारा स्वास्थ गया
तो समझो कुछ नहीं गया,
किन्तु 
यदि चरित्र ढहा
तो समझना
जीवन धन ही गया,
सब कुछ निकल गया,
क्यों कि
चरित्र ही धर्म है,
सबसे बड़ा।
चरित्र जीवन की कुंजी है।
जीवन में
चरित्र ही अमूल्य निधि है,
जहां कहीं
जिस किसी
गली -कूचे 
गांव शहर से गुजरेगो
तो, इसी से होगा
तुम्हारा मूल्यांकन।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

😊   मामा जी फिर आ गए   😊


मामा जी  फिर आ गए,
                 लिए कमल को हाथ।
कमल,नाथ से छिन गया,
                  अब हैं  केवल नाथ।


राजनीति अरु  प्रेम  में, 
               सब कुछ जायज़ यार।
जाने कब किसके गले, 
                  कौन  डाल  दें  हार।


छोड़ गए कुछ हाथ को, 
                और  नाथ  का  साथ।
भाया उनको कमल ही, 
                 नहीं कमल का नाथ।


जनसेवा के नाम पर, 
                   हुआ सियासी खेल।
लार बहुत टपका लिया, 
                    खाएॅ॑गे  अब  भेल।


कोरोना का भय दिखा, 
                  मामा के मुख साफ।
बढ़ा ग्राफ तो फिर उन्हें, 
                   कौन  करेगा  माफ़।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...