डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना को हराना है"
         
(वीर, छन्द)


कोरोना जायेगा हार, रहे एकता यदि समाज में.,
एक दूसरे से हो दूर, करें प्रताड़ित कोरोना को.,
दूरी में है शक्ति अपार, सब समझें दूरी का मतलब.,
मूर्ख वही जो रहे न दूर, समझदार दूर रहता है.,
कोरोना को ऐसे जान, छुआछूत की यह बीमारी.,
कभी बनो मत लापरवाह, लापरवाही में खतरा है.,
लापरवाही का परिणाम, मानव-कोरोना का बनना.,
अनुशासन को नियमित पाल, विपदाओं से मुक्ति मिलेगी.,
दिल से करो सभी से प्यार, बाहर-बाहर दूर रहो बस.,
बाहर से हों सभी अछूत, यह अत्युत्तम सहज कवच है.,
दूरी ही सेना का अस्त्र, लड़ो इक जगह से सैनिक बन.,
यह कितना है सरल उपाय, जो समझे वह बुद्धिमान है.,
कोरोना की मारो जान, नहीं फैलने दो विषधर को.,
समझो इसको विषधर नाग, डस लेने पर लहर न आये.,
इसके फन को दो अब कूच, एक-एक मीटर  दूर खड़ा हो.,
यह साला गन्दा शैतान, किन्तु मारना बहुत सहज है.,
मन को करो नियंत्रित शीघ्र, कुछ दिन घर में रहना सीखो.,
घर को ही समझो संसार, यहीं से मारो कोरोना को.,
इसे सैन्य अड्डा ही जान, तीर चलाओ कोरोना पर.,
महिषासुर का होगा अन्त, माँ दुर्गा जी विजयी होंगी।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*देशवासियों का साथ चाहिए*
विधा: कविता 


विपत्ति में सभी का साथ,
हम लोगो को चाहिए।
अपने धर्य का इन्तहान,
अब लोगो को देना है।
तभी तो कोरोना की जंग,
देश जीत पायेगा।
फिर अमन चैन की जिंदगी,
पुनः हम लोग जी पाएंगे।।


कलयुग में आना था,  
 महामारी का प्रकोप।
तबाह होना है दुनियाँ,
लिखा है ऐसा ग्रंथो में।
तभी तो विपत्तियां,
निरंतर आ रही है।
यही से हम सब को,
सभंल ने की जरूरत है।।


रहो घरों में तुम अपने,
परिवार वालो के संग।
करो मिलकर प्रार्थना,
उस ईश्वर से अब तुम ।
जिसने ये बनाई दुनियाँ,
उसी से मांगो रहमत तुम।
करेगा तुम सब पर वो,
रहमत कुछ दिनों में जरूर।।


जो खंड खंड हो गए थे,
लोगो के परिवार।
उन्हें जोड़ने का वक्त,
मानो आ गया है अब।
इसलिए परिवार के साथ,
हिल मिल कर रहो।
मिटाओ दिलकी कड़वाहटे,
मिल बैठकर तुम सब यारो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
26/03/2020


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

इक मतला दो शेर


कई  किरदार  थे  तेरे  मग़र  कुछ  कह नही पाए।
बिना  तेरे  कभी  तन्हां फ़क़त  हम रह नही पाए।


बहुत मजबूरियाँ थी जब रहें  तुमसे  जुदा हमदम।
हुए  हम  दूर  तुमसे  पर  जुदाई  सह  नही  पाए।



हमेशा  रास्ते  खुद  ही  बनाए  मंजिलों  तक  के।
सभी  के  साथ  हम ऐसे कभी भी बह नही पाए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


-सुरेंद्र सैनी बवानीवा छावनी झज्जर, हरियाणा

हे प्रभू !आप दो..... 


हे प्रभू ! कोई प्यार का आलाप दो. 
कठिन दौर, भाई -भाई का मिलाप दो. 


मेरे मुल्क के लोग बहुत परेशां हैं, 
और मत उन्हें कोई संताप ^दो.  (दुख, क्लेश )


जो डस सके देश के दुश्मन को, 
पल रहे ऐसे आस्तीन के सांप दो. 


गलत करने से पहले सौ बार सोचूं, 
मेरे बदन में ऐसी कांप दो. 


रह -रह के मुठियाँ जोश से भर रही, 
है क्रोध बड़ा, मत इतना ताप दो. 


पीछे रह जाता हूँ ज़माने की भीड़ में, 
"उड़ता "मुझे रफ़्तार औकात सी आप दो. 


 


स्वरचित व मौलिक रचना. 


द्वारा -सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
713/16, छावनी झज्जर, 
नज़दीक सैनी धर्मशाला, 
पिन -124103.हरियाणा. 


संपर्क - 9466865227.


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ ब्रह्मचारिणी"*(कुण्डलिया छंद)
.............................................
*माता है तपचारिणी, द्वितीय दुर्गा-रूप।
सदाचार-वैराग्य का, संयम सार स्वरूप।।
संयम सार स्वरूप, कमंडल कर-वाम धरे।
दायें कर जयमाल, सदा ही कल्याण करे।।
कह नायक करजोरि, रूप यह पावन भाता।
देती है वरदान, सुफल वरदात्री माता।।
...............................................
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
...............................................


हलधर

आव्हान गीत -कठिन परीक्षा का क्षण 
----------------------------------------------


कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।
ख़तरे  में  जीवन  आया  इंसान  का ।।


तुच्छ नहीं यह बात बड़ी है ,घर के बाहर मौत खड़ी है ।
लड़ना होगा युद्ध सभी को , कोरोना  से जंग छिड़ी है ।


निकला आज जनाजा सकल जहान का ।।
कठिन  परीक्षा  का  क्षण  हिंदुस्तान  का ।।1


बात हमारी मानो भाई ,बंद करो सब आवा जाई ।
प्राण गवा दोगे भगदड़ में ,रोयेँ मैया  चाची  ताई ।


हाल बुरा  है  इटली, रोम  ,ईरान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।2


उनकी भी समझें मजबूरी ,जिनपर काम नहीं मजदूरी ।
मदद  सभी  को  करनी  होगी , तभी लड़ाई होगी पूरी ।


समझो  यही  इशारा है  भगवान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।3


कुछ लोगों का मन मैला है , भरा हुआ जिनका थैला है ।
खास जरूरत की चीजों पर ,बिना बात का भ्रम फैला है ।


मान रखो कुछ रोग मुक्त अभियान का ।।
कठिन परीक्षा  का  क्षण हिंदुस्तान का ।।4


मौत मुहाने आये सब हैं ,  ये सब मानव के करतब हैं ।
कीट पतंगे पक्षी खाये , गायब  चिड़ियों के कलरब हैं ।


काम किया क्यों हमने खुद शैतान का ।।
कठिन परीक्षा  का क्षण हिंदुस्तान का ।।5


नेता जी हों या व्यापारी , हम सब की यह जिम्मेदारी ।
मजबूरों की अंतड़ियों तक ,पहुंचे दाल भात तरकारी ।


हलधर" मान बढ़ाओ देश महान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।6


हलधर -9897346173


निशा"अतुल्य"

हाइकु
26.3.2020


दुर्गा पूजा 


विरोधाभास
करते देवी पूजा
क्यों मारे कन्या ।


भूर्ण की हत्या
करते जान कन्या
भ्रमित मति ।


देवी दो ज्ञान
करें सब विचार
होय उद्धार ।


समझ जाओ
बंद हो जीव हत्या
आया कोरोना ।


साफ सफाई
विचारों की जरूरी
नवरात्रि में ।


दोगे अगर
बेटियों को सम्मान
पाओगे मान ।


पूजा देवी की 
सार्थक नवरात्रि 
जब हो बेटी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


 डा.नीलम

*नवसंकल्प*


सब की मुराद हो पूरी 
सब के भंडार भरे रहें
सब की झोली में हो खुशियां
सबके दिन खुशहाल रहें


नव वर्ष मंगलमय हो
नव संकट से दूर रहें
मजबूरी नहीं घर बैठना
है जरुरी देश स्वस्थ रहे


कोरोना को कराने का दृढ़ संकल्प करें
व्यर्थ और अफवाह के
मैसेज कतई न प्रेषित करें


स्वच्छ रहें,थोड़ा दूर रहें
स्पर्श की चाहत का निषेध करें
हाथ जोड़ सबका अभिवादन करें।


       डा.नीलम


डॉ0हरि नाथ मिश्र

कर्म के दीप यदि तुम जलाते रहो,
कष्ट के सब तिमिर लुप्त हो जाएँगे।
होगा दर्शन त्वरित एक सुप्रभात का,
बंद पंकज भ्रमर मुक्त हो जाएँगे।।
   कर निरीक्षण तनिक तू अखिल विश्व का,
धरती, अंबर व सरिता सप्त  सिंधु   का।
सबके आधार में तम ही प्रच्छन्न  है,
ज्योति-दाता परंतु सूर्य प्रसन्न   है।
धैर्य से पथ पे यदि तुम निरंतर चलो-
आपदाओं के क्षण लुप्त हो जाएँगे।।
   रात्रि चाहे कुहासों से आच्छन्न हो,
 चाँदनी का गगन क्षेत्र आसन न हो।
धुंध का ही चतुर्दिक प्रहर क्यों न हो?
 कंटकाकीर्ण आपद डगर क्यों न हो?
चेत मस्तिष्क मानव का चैतन्य नहीं-
स्वप्न-सरगम के सुर सुप्त हो जाएँगे।।
   स्वार्थ-लोलुप न हो कर्म-साधक बनो,
कर्म ही ईष्ट है,कर्मोपासक बनो।
सृष्टि का धर्म बस कर्म ही कर्म है,
कर्म ही धर्म है,कर्म ही धर्म है।
कर्म की यष्टि से यदि करो पथ-भ्रमण-
लक्ष्य जीवन के सब तृप्त हो जायेंगे।।
             कर्म के दीप यदि तुम जलाते रहो....।।
              डॉ0हरि नाथ मिश्र
         9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*लेखनी के यशस्वी पुजारी*
कालिदास की उपमा उत्तम,बाणभट्ट की भाषा,
तुलसी-सूर-कबीर ने गढ़ दी,भक्ति-भाव-परिभाषा।
मीर व ग़ालिब की गज़लों सँग,मीरा के पद सारे-
"प्रेम सार है जीवन का",कह,ऐसी दिए दिलासा।।
                      बाणभट्ट की.........।।
सूत्र व्याकरण के सब साधे,अपने ऋषिवर पाणिनि,
वाल्मीकि,कवि माघ सकल गुण, पद-लालित्य में दण्डिनि।
कण्व-कणाद-व्यास ऋषि साधक,दे संदेश अनूठा-
ज्ञान-प्रकाश-पुंज कर विगसित,हर ली सकल निराशा।।
                   बाणभट्ट की.............।।
गुरु बशिष्ठ,ऋषि गौतम-कौशिक,मानव-मूल्य सँवारे,
औषधि-ज्ञानी श्रेष्ठ पतंजलि,रोग-ग्रसित जन तारे।
ऋषि द्वैपायन-पैल-पराशर,कश्यप-धौम्य व वाम-
सबने मिलकर धर्म-कर्म से,जीवन-मूल्य तराशा।।
                बाणभट्ट की.............।।
श्रीराम-कृष्ण,महावीर-बुद्ध थे,पुरुष अलौकिक भारी,
महि-अघ-भार दूर करने को,आए जग तन धारी।
करके दलन सभी दानव का,ये महामानव मित्रों-
कर गए ज्योतिर्मय यह जीवन,जला के दीपक आशा।।
              बाणभट्ट की...............।।
किए विवेकानंद विखंडित,सकल खेल-पाखंड,
जा विदेश में कर दिए क़ायम, भारत-मान अखंड।
श्रीअरविंदो ने भी करके,दर्शन का उद्घोष-
भ्रमित ज्ञान-पोषित-मन-जन की,दूर भगाया हताशा।।
              बाणभट्ट की...............।।
भारतेंदु हरिचंद्र हैं,हिंदी-कवि-कुल के गौरव,
उपन्यास-सम्राट,प्रेम ने दिया,कहानी को इक रव।
आचार्य शुक्ल,आचार्य हजारी,भाषा-मान बढ़ाए-
पंत-प्रसाद-निराला भी हैं,हिंदी-बाग-सुवासा।।
               बाणभट्ट की.............।।
यात्रा के साहित्य-पितामह,बहुभाषाविद राहुल,
बौद्ध-धर्म के अध्येता वे,पंडित महा थे काबिल।
सांकृत्यायन राहुल जी भी,ज्ञान-ध्वज फहराए-
ज्ञान-ज्योति-नव दीप जलाकर,दीप्त किए जिज्ञासा।।
            बाणभट्ट की............ ।।
गुप्त मैथिली-दिनकर-देवी,महावीर जी ज्ञानी,
सदानंद अज्ञेय प्रणेता-मुक्त छंद-विज्ञानी।
नीरज-बच्चन गीत-विधाता,सब जन को हैं प्यारे-
प्रखर लेखनी श्री मयंक की,अद्भुत वाग-विलासा।।
           बाणभट्ट की...............।।
नग़मा निग़ार चलचित्र-जगत के,सबने नाम किया है,
राही-हसरत-कैफ़ी-मजरुह ने,रौशन पटल किया है।
बख़्शी-अख़्तर-कवि प्रसून-अंजान सहित इंदीवर-
साहिर-शकील-गुलज़ार सभी ने,नूतन गीत तलाशा।।
         बाणभट्ट की................।।
धन्य धरा यह भारत है,जो जन्म दिया इन लोंगो को,
अध्यात्म-ध्यान,कर्तव्य-ज्ञान का,धर्म सिखाया लोंगो को।
ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी,सबने मान बढ़ाया माटी का-
"जीवन है अनमोल"तथ्य का,सबने किया खुलासा।।
            बाणभट्ट की............।।
                  
                  डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*संकट की घड़ी*
हुई कोरोनामय यह दुनिया,
जीवन पड़ गया ख़तरे में।
सजग नहीं यदि,झट जाओगे-
खूँखार मौत के जबड़े में।।


धरना और प्रदर्शन छोड़ो,
राजनीति से मुख मोड़ो।
प्राण-सुरक्षा,राष्ट्र-सुरक्षा-
पड़ो न आपसी झगड़े में।।


इस विपदा से लड़ो सभी,
मिल जाति-धर्म का भेद तजो।
तजो आपसी राग-द्वेष को-
पड़ो न ज़िद के रगड़े में।।


जीवन-घातक,मारक वायरस,
विश्व को कंपित कर है दिया।
संकल्प-नियंत्रण,संयम-नियमन-
सकेगा रोक दैत्य को तगड़े में।।


दृढसंकल्पित होकर हमको,
इस संकट से लड़ना है।
स्वयं को रखकर स्वच्छ,न पड़ना-
खींच-तान के लफड़े में।।


कर-प्रक्षालन विधिवत करके,
तन-मन स्वच्छ सभी रखना।
उत्तम बूटी-जड़ी मान, पड़ो न-
नीम-हक़ीम के पचड़े में।।


छींको सदा बना के दूरी,
ढक कर मुँह को कपड़े से।
दक्ष चिकित्सक से सलाह ले-
साथ निभाओ दुखड़े में।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372


सीमा शुक्ला अयोध्या संवत 2077

नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
खड़ी है मौत राहों में,
दिखाई दे रही पल-पल।
उदासी हर तरफ फैली ,
नहीं कोई कहीं हलचल।
विकट, विकराल मंजर है,
अचंभित विश्व है सारा।
निलय में निज ससंकित है,
विषम हालात से हारा।
बहाते नीर दृग अविरल,
इसे उल्लास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे........
धरा से खूब खेला है,
मनुज ले रूप दानव का।
मिला प्रतिफल विनाशक ये,
मिटा अस्तित्व मानव का।
जमीं से उस फलक तक का,
सकल विज्ञान है हारा।
न धन बल कामआया कुछ,
बना इंसान बेचारा।
न कुछ जग में असंभव है
इसे विश्वास क्या लिख दें
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास.............
क़दम पर जल रहे शोले,
सकल जग आपदा भारी।
स्वयं निज भूल से मानव,
बना वेबस है लाचारी।
किसी भी हाल में जीतें,
छिड़ा जग युद्ध है भारी।
पुनः धरती पे ले आए,
पुरातन रीति हम सारी।
शिकन है आह अधरों पर,
इसे मृदुहाश क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
सीमा शुक्ला अयोध्या।


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*ज़िंदगी*
अगर ज़िंदगी हम जिएँ हो निडर,
घड़ी मुश्किलों की भी टल जाएगी।
चूमकर हर क़दम तब ये तूफ़ाँ कहे-
अब बता,नाव तेरी किधर जाएगी??


आसमानों से बातें हवाएँ करें,
भहरें पर्वत भले,वृक्ष उखड़ें सभी।
धार सरिता की तीखी बहे क्यूँ नहीं-
खुद ब खुद चल के मंज़िल इधर आएगी।।


नभ में सूरज अडिग हो के रहता सदा,
चित्त स्थिर किए, हो परम शांत वो।
रात की चाँदनी  छिन है जाती भले-
चाँदनी को मग़र रात फिर पाएगी।।


कर्म करने में रखता है विश्वास जो,
मन में उसके न चिंता का डेरा रहे।
लक्ष्य पाना ही मन में रहे मात्र यदि-
एक दिन यश-पताका भी लहराएगी।।


चींटियाँ अपनी राहें बदलतीं नहीं,
टूट जातीं मग़र वे बिखरतीं नहीं।
इस तरह लक्ष्य के प्रति यदि रहें हम सजग-
धैर्य को कोई चिंता न दहलाएगी।।


फ़िक्र करने से ढीला रहे संतुलन,
मन नहीं संतुलित तो न मंज़िल-मिलन।
ध्यान में,दृष्टि में यदि रहे संतुलन-
बिंदु तक साधना हमको पहुँचाएगी।।


होकर निश्चिंत यदि हम जिएँ ज़िंदगी,
ज़िंदगी भी करेगी हमें वंदगी।
मुश्किलों में अगर मुस्कुराते रहें-
मौत भी अंत में मात खा जाएगी।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*अद्भुत सोच*
दिवस एक का जनता- कर्फ्यू,
अद्भुत सोच निराली है।
नहीं बीमारी कोरोना की-इससे बढ़ने वाली है।।


सब जन मिलकर करें अनुसरण,
रोकें विपदा जो आई है।
दुनिया के हर कोने में यह,
दुखद कहर बरपाई है।
खतरा इसका टल जाता है, बजती जब करताली है।।


घर से नहीं निकलना कुछ दिन,
नित्य सफ़ाई है करना।
घर-आँगन-चौबारा-कपड़ा,
स्वच्छ-साफ-सुथरा रखना।
कीट विषैले मर जाते घर, जब-जब बजती थाली है।।


यही सनातन संस्कृति अपनी,
सदा रक्षिका जीवन की।
योग-ध्यान,पद-कर-प्रक्षालन,
औषधि प्रथम रुग्ण तन की।
होते लुप्त कीटाणु शीघ्र सुन जो ध्वनि शंख निराली है।।


कर उद्घोषित नायक प्रधान ने,
सब जन को है किया सजग।
दिवस एक रह कर निज गृह में,
सकेंगे कर विपदा को विलग।
छुआछूत का रोग भयंकर,होता बहुत बवाली है।।


सकेंगे रोक रोग को कुछ हद,
करके हम सब अनुपालन।
परमावश्यक यही घोषणा,
एकमात्र इसका साधन।
स्वस्थ-स्वच्छ-निर्मल सलाह करती जीवन-रखवाली है।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

कोरोना-दोहे
कोरोना के जाल में,फँसा सकल संसार।
मुक्ति मिलेगी किस तरह,दिखे नहीं आसार।।


खाँसी-सर्दी साथ ले,जब भी चढ़े बुख़ार।
ढँककर मुख को जाइए, किसी चिकित्सक-द्वार।।


सादा भोजन कीजिए, कर प्रक्षालन हाथ।
अभिवादन भी कीजिए, जोड़े कर दो साथ।।


साफ-सफाई ही दवा,कोरोना संपूर्ण।
संभव हो सेवन करें,तुलसी-अदरक-चूर्ण।।


नहीं एकत्रित होइए,भारी संख्या संग।
छुआछूत का रोग यह,नहीं करेगा तंग।।


चला चीन से वायरस,पहुँचा थाईलैंड।
अमरीका में छा गया,बचा नहीं इंग्लैंड।।


अति घातक इस रोग की,त्वरित करें उपचार।
दे निवास-परिवेश को,शुद्ध पवन-संचार।।
                   डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

समझ जिसने ली है किताबों की भाषा,
दरख़्तों की भाषा,परिंदों की भाषा।
वही असली प्रेमी है क़ुदरत का मित्रों-
उसे ज़िंदगी में न होती  निराशा।।
                 समझ जिसने ली है........।।
बहुत ही नरम दिल का होता वही है,
नहीं भाव ईर्ष्या का रखता कभी है।
बिना भ्रम समझता वो इंसाँ मुकम्मल-
सरिता-समंदर-पहाड़ों की  भाषा।।
              समझ जिसने ली है..........।।
जैसा भी हो, वो है जीता ख़ुशी से,
न शिकवा-शिकायत वो करता किसी से।
ज़िंदगी को ख़ुदा की अमानत समझता-
लिए दिल में रहता वो अनुराग-आशा।।
                 समझ जिसने ली है............।।
खेत-खलिहान,बागों-बगीचों में रहता,
सदा नूर रब का अनूठा है  बसता।
यही राज़ जिसने है समझा औ जाना-
मुश्किलों से भी उसको न मिलती हताशा।।
               समझ जिसने ली है...........।।
हरी घास पे पसरीं शबनम की बूँदें
एहसास मख़मल का दें आँख मूँदे।
रवि-रश्मियों में नहायी सुबह तो-
होती प्रकृति की अनोखी परिभाषा।।
             समझ जिसने ली है............।।
हक़ मालिकाना है क़ुदरत का केवल,
बसाना-गवांना बस अपने ही संबल।
गर हो गया क़ायदे क़ुदरत उलंघन-
ज़िंदगी तरु कटे बिन कुल्हाड़ी-गड़ासा।।
           समझ जिसने ली है..............।।
प्रकृति से परे कुछ नहीं है ये दुनिया,
प्रकृति से ही बनती-बिगड़ती है दुनिया।
नहीं होगा सम्मान विधिवत यदि इसका-
जायगा यक़ीनन थम, ये जीवन-तमाशा।।
      समझ जिसने ली है किताबों की भाषा।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372


कैलाश दुवे होशंगाबाद

ख़ामोश रह ऐ जिन्दगी अभी वक्त लगेगा ,


तुझे मुझ जैसा बड़ी मुश्किल से मिलेगा ,


अभी तो तन्हाई का वक्त है ,


वरना तुझसा दोस्त मुझे कहां मिलेगा ,



Kailash , Dubey ,


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २९०
दिनांकः २५.०३.२०२०
वारः बुधवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः आराधन नवरात्र का 
चैत्रशुक्ल    शुभ   प्रतिपदा , विक्रम  संवत् वर्ष। 
सृष्टि   सृजन  प्रारब्ध दिन , हो  जीवन   उत्कर्ष।।१।।
प्रथम   विष्णु अवतार  यह, महर्षि गौतम जन्म।
आर्यसमाजी     स्थापना , रामराज्य       सद्धर्म।।२।।
विक्रम का  राज्याभिषेक , राजतिलक   रघुराम।
चैत्रमाह    नवरात्र   का , पुष्पित  चहुँ अभिराम।।३।।
हरित भरित पादप लता , कली  कुसुम   नवरंग।
मादक मन रोचक सुरभि, जीवन   खिले   उमंग।।४।।
खिली खिली सुष्मित प्रकृति, नयासाल चहुँओर।
भरा गेह  नव अन्न से , चहुँदिशि कोकिल    शोर।।५।।
लखि किसान मुखहास मन,आनन्दित कविलेख।
अन्नपूर्ण   माँ   भारती , पुलकित   मानव    देख।।६।।
मादक मन  अलिवृन्द  का , मधुमक्खी  अनुराग।
विहँसि रहे सुरभित कुसुम , चाहत   पुष्प  पराग।।७।।
चैत्रमास पावन दिवस , कवि  निकुंज अभिलास।
रोग शोक मद मोह सब, सर्वशान्ति सुख   भास।।८।।
हर   कोरोना   शैलपुत्रि , रामलला    हर   शोक। 
दैहिक    दैविक   भौतिकी , महारोग  को  रोक।।९।।
महिषासुर   बन कर  डँटा , कोरोना  फिर विश्व।
सुन्दरतम   प्रमुदित   धरा , खतरे में   अस्तित्व।।१०।।
कवलित मुख  मानव जगत , कोरोना   आतंक।
त्राण   करो   बह्मचारिणि, हर   कोरोना   कोप।।११।।
तारक बन फिर अवतरित, कोरोना  यह    पाप। 
चन्द्रघण्ट   जगदम्बिका , हर    तारक    संताप।।१२।।
महाकाल      मधुकैटभ   समा, कोरोना   दुर्जेय।
हर    कुष्माण्डे   शान्तिदे , धूमासुर    इस   हेय।।१३।।
स्कन्धमातु     करुणामयी,     कोरोना     नासूर।
चण्ड मुण्ड इस  कहर को , चामुण्डे  कर    दूर।।१४।।
रक्तबीज    प्रकटित   पुनः , कोरोना   बन काल।
जगतारिणि   कात्यायिनी , हरो दैत्य   विकराल।।१५।।
कालरात्रि   विकराल   बन ,  कोरोना अभिशप्त।
रत निशुम्भ जग ग्रास को , हर दावानल     तप्त।।१६।।
प्रकटित   हो  बहुरूपिणी , करो   शुम्भ   संहार।
कोराना   से   त्राण   कर   , दुर्गे   दे      उपहार।।१७।। 
रहें   दूर  हम  पाप  से , निर्मल    रह  घर   पूज।
सिद्धिदातृ   सुख  शान्ति दे ,  हो  कोरोना  दूज।।१८।।
दुर्गा   दुर्गति    नाशिनी ,  महाशक्ति    जगदम्ब।
रखो स्वस्ति मानव जगत् , तू  जीवन  अवलम्ब।।१९।।
निकुंज दग्ध लखि वेदना , दंशित कोरोना  सर्प।
कालविनाशनि कालिके , माँ कुचलो अहि  दर्प।।२०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक जेठरा खमरिया लखीमपुर-खीरी

दोहे
   जो दाता इस जगत का उसे चढ़ायें नोट।
   ‌ भक्ति नहीं पैसा बड़ा चिन्तन में है खोट।
छोड़ राम मंदिर चले अब सांई के द्वार।
ईश्वर के मानव रचे नये नये अवतार।
गहन प्रेम विश्वास बिन पूजा है बेकार।
अक्षत चंदन आरती आडम्बर व्यापार।
ब्रम्हण के घर जन्म पर कर्म न विप्र समान।
आलस लोभ अपवित्रता नहिं विद्या नहिं ज्ञान।
दस इन्द्रिय संग तन दिया प्रभु की कृपा महान।
फिर भी मांगें रात दिन धन सम्पत्ति का दान।
घर में भूंखे मातु पितु प्रतिमा छप्पन भोग।
चिन्तन दूषित हो गया लोभ स्वार्थ का रोग।
मक्खी उड़ें प्रसाद पर गन्दे हाथ उठाय।
बासी घटिया माल सब ऊंचे भाव बिकाय।
 जो प्रसाद प्रभु के चरण लौटि दुकानन आय।
जूंठन बेचें रात दिन ताजा माल बताय।
सत्य शान्ति शुचिता क्षमा धारण ध्यान अक्रोध।
चोरी नहिं इन्द्रिय दमन बुधि धर्म के बोध।
लक्षण एक न धर्म के कर्म धर्म के नायं।
आडम्बर की आंड़ में वे धार्मिक कहलायं।
जाति पांति अरु जन्म कुल नहीं धर्म आधार।
पथ है यह चलकर मनुज पहुंचे प्रभु के द्वार।
  सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक जेठरा खमरिया लखीमपुर-खीरी


जया मोहन प्रयागराज

नैय्या पे चढ़ कर भवानी आयी है
भव से पार लगाने भवानी आयी है
असुरो ने जब जब उत्पात किया है
तब तब उनका संहार करने भवानी आयी है
कॅरोना असुर जो आया है
सारी विश्वजन को सताया है
उसकी विनाश लीला ने हाहाकार मचाया है
मानव ने दुखी हो तुझे पुकारा है 
सुन कर करुण पुकार भवानी आयी है
भक्तो को बचाने भवानी आयी है
पूजा के नियमो की तरह
तुम कहा मानना 
कुछ दिन के लिए खुद संयम धारना
टल जाएगी बिपदा बताने भवानी आयी है
सृष्टि को बचाने भावनी आयी है


माँ के चरणों मे जन कल्याण हेतु मनोभाव
नवबर्ष मंगल मय हो
सब सुखी सानंद हो
आयी विपदा का अंत हो
खुशियॉ का सुरभित बसंत हो
जया मोहन
प्रयागराज


नन्दकुमार मिश्र आदित्य कविवासर बाणेर , पुणे

 


              भारतीय नव संवत्सर
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सुखद मंगलकर  हितकर
नवदुर्गा  वन्दन अभिनन्दन  सिद्ध    सुअवसर
प्रथम शैलपुत्रीके वन्दन  ब्रह्मचारिणी तदनन्तर
चन्द्रघंटिका  कूष्मांडा  मातास्कंद   नमन कर
कात्यायनी कालरात्रि पूजन आराधन  सुखकर
अर्चन अष्ट महागौरीका शीष सिद्धिदात्रीको नवाकर
शिशिर शीर्ण संग वर्ष व्यतीतके प्रति आभार प्रकट कर
हम  करते  स्वागत तेरा  आगत   मधुमासके   सहचर
पाकर   नयी   प्रेरणा तुझसे  बढ़ें   प्रगतिके   पथपर
मां भारतीकी वीणाके स्वर भारतीय नव संवत्सर


नन्दकुमार मिश्र आदित्य
कविवासर ६०३/ए ,
बालाजी जेनरोशिया, बाणेर ,
पुणे-४११०४५


जय श्री तिवारी खंडवा

मां
सांसों की शहनाई बाजी
मन वीणा के तार हुए झंकृत
देख के तेरा रूप सलोना
दिल मेरा हो गया अलंकृत
छंद उपमा अलंकार ओं में
रूप तेरा ना बांध पाऊंगी
ना ताकत है लेखनी में
वर्णन तेरा कर पाऊंगी
प्रलय काल की इस बेला में
मां मुझको धीर बंधा देना
सृष्टि के इस हाहाकार में
गोद में मुझको उठा लेना
फूल से नाजुक दिल है मेरा
वेद ना सह पाएगा
करुणा मई तुम कहलाती
दृष्टि अपनी बरसा देना
फस जाऊं जो भवर में
मां मुझको तुम बचा लेना
विश्वास है मन को मा यह
तुम दौड़ी-दौड़ी आओगी
संकट में हो बालक तो
तुम कैसे रह पाओ गी
जय श्री तिवारी खंडवा


परमानंद निषाद

*गूगल प्रकाशित हेतु......*


चैत्र नवरात्र पर मां शेरोवाली पर आधारित मेरी कविता....


    *॥ मां शेरोवाली ॥*
          
आ रही मां शेरोवाली, 
सबकी दुख मिटाने को।


अन्नदायिनी,अन्नपूर्णा हो,
तू स्नेह भरी भवानी हो।


मां है मेरे शेरोवाली, 
शान है मां की बड़ी निराली।


किसी से क्या घबराना जब,
सर पर मां दुर्गा का हाथ हो।


जो मां दुर्गा का सच्चे मन से करे,
उपासना उसके कटे कलेश।


श्रध्दा भाव कभी कम ना करना,
दुःख में हंसना गम ना करना।


मां दुर्गा के कदम आएं,
आप खुशहाली से नहाएं।


आंसू भरी आंखों से मैं,
 कैसे तेरा दर्शन पाऊं मां


मां मेरे संताप भरा है,
 कैसे मैं मुस्काऊं मां।


आजा एक बार मां पुत्र ये पुकारता,
आने को तेरे मां नित बाट में निहारते।


आ रही मां शेरोवाली, 
सबकी दुख मिटाने को।


  *परमानंद निषाद*


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना से बच निकलो"


          (वीर छंद)


कोरोना से जो बच जाय, समझो वह इंसान चतुर है.,
जो इसको हलके में लेत, फँस जाना है उसे सुनिश्चित.,
तन को मन को दिल को साफ,करो घरेलू अन्य वस्तुएँ.,
गन्दी चीजों गन्दे लोग, से संपर्क तोड़ दो प्यारे.,
अलग-थलग मेँ कर विश्वास, सामाजिक दूरी आवश्यक.,
कोरोना की तोड़ो रीढ़, इसका चेन विखण्डित कर दो.,
इक्कीस दिन का है यह रोग, इतने में वह मर जायेगा.,
संयम से ही रहना सीख, और रखो चिन्तन को पावन.,
खुद को रखो सदैव प्रसन्न, नाचो गाओ हंसो खुश रहो.,
कर मनरंजन घर में बैठ, यही सिनेमा हाल सुन्दरम.,
घर के लोगों से कर बात,  सदा मस्त रह मेरे दोस्तों.,
ईश्वर को ही जपना मित्र, धर्म ग्रन्थ को पढ़ते रहना.,
धूप दीप का करो प्रयोग, करो सुगन्धित कोना-कोना.,
कोरोना के भय को भूल, मन में हो उत्साह निरन्तर.,
आशा को ही जीवन मान, सतत प्रफुल्लित रहे जिन्दगी।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सर्वार्थसाधिका"


दिव्य ज्ञान स्रोत सिंधुमय
आत्म ज्ञानिनी महा बोधमय
महा पराकाष्ठा सुबाहु शिव
परम विराट अमी सुध उरमय।


तुम्हीं चन्द्रमा दिव्य शीतला
अद्भुत अद्वितीय कोकिला
मानसरोवर हंसमयी नित
पयोधरी विद्यामृत कपिला।


सत्य सत्व सुन्दर शुभ सरबस
सत्यार्थी स्वामिनी सन्तवश
गगन विराट ब्रह्ममय मनसा
वागधीश्वरी शान्त सौम्य रस।


दिव्य वर्णनातीत अकथ नित
सहज साधिका माँ सबका हित
महा जननि यश-जीवन दात्री
माँ-अवतरण सरस्वति परहित।


चैत राम नवमी माँ तुम हो
शिवा स्वरूपिणि सज्जन तुम हो
पावन दिव्य भाव बन रहती
साधु हृदय में बैठी तुम हो।


महा अनन्ता सविता सागर
दृढ़  प्रतीज्ञ सुदृढ़ हिम नागर
ब्रह्म नियंता सर्वोपरि तुम
विश्व -पाणिनी संस्कृत आखर।


अतिशय शुचिता सर्व साधिका
वृंदावन में कान्हा-राधा
सम्मोहन के चरम कोण पर
तुम साहित्य सुगम्य नायिका।


मातृ शारदे का नित वन्दन
करें सभी माँ का अभिनन्दन
तुम्हीं शीतला शान्ता हिममय
प्रार्थनीय माँ अति आनंदन।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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