राहुल मिश्रा इंदौर

है समय संघर्ष का ये
और है सतर्कता का
हर कोई यह बात सुन लो
कस्ट है सम्पर्कता का


                 हर कोई सहमा हुआ है
                 हर तरफ विहवल सभी है
                 छूने से प्रतिपल है बढ़ता
                  कैसी ये हलचल अभी है
हर तरफ चर्चा यही की
घर से बाहर मत निकलना
हम सभी को स्वछ रहकर
हाथ साबुन से है धुलना


             है समय ने यह बताया
             सभ्यता जीवित अभी है
             है नमन मे जो नजाकत 
              हैण्ड शेक् मे नही है


सर झुका कर नमन् करने
का चलन बरसो पुराना
है नमस्ते का चलन जो
हर किसी को तुम बताना


               संग मिलकर स्वास्थ्य रहने
               का समय अब आ गया है
               स्वछ रहकर स्वस्थ्य रहने
               मे ही अब अपना भला है


हाथ धोकर आज मित्रों 
दूर कर दो यह कोरोना
दोनों कर को साथ करके
हाथ साबुन से है धोना


राहुल मिश्रा


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश

गीत नहीं कोई लिख पाती
भाव नहीं दे पाती हूँ।
देख विषम हालात जहाँ के
अंतस नीर बहाती हूँ।।


शस्य श्यामला सी ये धरती
वीराने  पर  रोती  है,
पाला जिसको निज आँचल में
अपने सम्मुख खोती है,
रो रोकर कहती हूँ सबसे
हिय का हाल सुनाती हूँ।।



कितने पापी नर पिशाच हैं
अंश ईश का खाते हैं,
संबल हैं जो इस अवनी के
उनको खूब सताते हैं,
ज्ञानी हो पर श्रेष्ठ नहीं तुम
गूढ़ भेद बतलाती हूँ।।


सार्स कभी कोरोना बनकर
प्रकृति क़हर बरसाती है,
खेल रही है खेल मृत्य का
मानो  प्रलय  बुलाती है,
आर्य संस्कृति मूल मंत्र है
सच की राह दिखाती हूँ।।
          अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


डॉ राजीव पाण्डेय  गाजियाबाद

*वर्तमान परिस्थितियों के एकादश दोहे* 


घर में बैठे अरु लिखें,कविताएं दो चार।
समय कटेगा प्यार से,बचे सकल संसार।(1)


बिना सुगर के ही पिये, हम कितनी भी चाय।
कविता में देते   रहें ,मीठी - मीठी राय। (2)


सुबह शाम योगा करें,दिन में देखें न्यूज।
बेमतलब की बात में,ना होवें कन्फ्यूज।(3)


हम बिल्कुल भी ना  छुएं, ताला कुंडी द्वार।
धोखे से यदि छू गए , धुलें  हाथ हर बार।(4)


इज्जत की अब बात है,बचे आँख मुँह नाक।
देव स्वरूपा मानकर,  इनको  रखना पाक।(5)


जीवन भर पिसते रहे ,  करते- करते काम।
मुश्किल से है अब मिला,इक्कीस दिन विश्राम।(6)


कठिन दिनों में हम करें,सृजन भरे कुछ काम।
जो सदियों तक दे सके  ,जग में अपना नाम।(7)


नव दुर्गा में हो सकें ,सेवा के  कुछ काम।
मानो संगम में उतर, कर लिए चारों धाम।(8)


घर मानें हिम कन्दरा  ,जहाँ  लगालें ध्यान।
मिली ऊर्जित शक्ति से,तोड़ें रिपु अभिमान।(9)


कर एकान्तिक साधना ,  होकर  सबसे   दूर।
फिर खुलके जीवन जियें,खुशियों से भरपूर।(10)


बाहर   जाने की  नहीं ,चले  भ्रात तरकीब।
घर केआँगन में जियें,खिलकर ज्यों राजीव।(11)
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻


 *डॉ राजीव पाण्डेय* 
       गाजियाबाद


डा0विद्यासागर मिश्र "सागर" लखनऊ उ0प्र0

हर आपदा से हम जीतकर आये सदा,
इस आपदा से जंग जीतकर आयेंगे।
हमने भगाया जैसे डेंगू, गुनिया चिकुन,
उसी भाति कोरोना को देश से भगयेंगे।
कभी नहीं घबराएँ आती जाती आपदाएं,
जल्द हम इससे भी छुटकारा पायेंगे।
कुछ दिन धीरज से रहो मेरे देशवासी,
देश जीतेगा हमारा कोरोना हरायेगे ।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र "सागर"
लखनऊ उ0प्र0


डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

1  *सुरभित आसव मधुरालय का*
ढुरे पवन हो मस्त फागुनी,
ऋतु ने ली अँगड़ाई है।
एक घूँट बस दे दे साक़ी-
आसव की सुधि आई है।।
           भरा हृदय है कड़ुवापन से,
            रीति भली नहीं लगती है।
            चिंतन-कर्म में अंतर लगता-
            उभय बीच इक खांई है।।
अमृत सम मधुरालय-आसव,
जिसको चख जग जीता  है।
व्यथित-विकल तन-मन की हरता-
आसव द्रव अकुलाई  है ।।
            मधुरालय को तन यदि मानो,
             साक़ी प्राण-वायु  इसकी।
             बिना प्राण के तन है मरु-थल-
             साक़ी,पर,भरपाई  है ।।
सागर-साक़ी का है रिश्ता,
प्रेमी-प्रेयसि के  जैसा ।
दोनों मिल बहलाते मन को-
जब-जब रहे जुदाई  है।।
            मधुरालय मन-शुद्धि-केंद्र,
            तो साक़ी पूज्य पुरोहित है।
            धुले हृदय की कालिख़ सारी-
             हाला सद्य  नहाई  है ।।
धारण कर लो पूज्य मंत्र यह,
यहीं से सुख का द्वार खुले।
अब विलम्ब मत करना भाई-
सुर-शुचिता यह  पाई  है।।
            डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372


डॉ. हरि नाथ मिश्र

सिलसिला ज़िंदगी का न थमता कभी,
ऊँचे अरमाँ अगर दिल में पलते रहें।
रात की कालिमा का न होगा असर-
दीप उम्मीदों  के गर जो जलते रहें।।
          जोश में होश को कभी खोना नहीं,
          पग में काँटे चुभें फिर भी रोना नहीं।
           प्यार काँटों से मिलता है अद्भुत मगर-
           प्रेम की धुन पे गर होंठ हिलते रहें।।
                                   रात की कालिमा....
प्रेम की डोर को कभी कटने न दो,
बोली-भाषा में अपने को बटने न दो।
कोशिशें दुश्मनों की भी शर्माएँगीं -
राहे उल्फ़त पे गर यूँ ही चलते रहें।।।
           ज़िंदगी ग़म-खुशी का है दरिया मग़र,
           पार करना इसे बड़ी हिकमत से है।
           चंद लम्हों में मंज़िल मलेगी ज़रूर-
           फूल जज़्बों के गर दिल में खिलते रहें।।
कौन कहता है यह काम मुमकिन नहीं,
जीत मिल जाये ऐसा तो हर दिन नहीं।
करना मुमकिन नामुमकिन को आसान है-
हौसले ज़िंदगी में गर पलते  रहें ।।
          एक अच्छी समझ दोस्त से कम नहीं
           ग़म का मारा वही जिसका हमदम नही।
           है यक़ीन ख़ुद पे करना इक अच्छी समझ-
           रब करे पल नासमझी के टलते रहें।।
अलविदा रात कह के सुबह देती है,
जूझ कर जोखिमों से फ़तह मिलती है।
धुंध का भी असर कभी होगा नहीं-
कण उजाले के गर उसमें घुलते  रहें ।।
                         रात की कालिमा का....
                                 डॉ. हरि नाथ मिश्र
                                   9919446372


हलधर

आज के हालात पर -छंद 
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घर बैठना ही काम ,युद्ध के समान भाई ,
काल की गति को आप ,ठीक ठीक जान लो ।


देव और दानवों में , जंग सी छिड़ी है आज ,
कोरोना को दानवों का, सेनापति मान लो ।।


जलती चितायें ये ,गवाही दे रही हैं रोज ,
फ्रांस ,रोम ,इटली की , हालत से ज्ञान लो ।


खुद की सुरक्षा को ही ,भारती की रक्षा मान ,
रोग की गंभीरता का , मूल पहचान लो ।।


हलधर -9897346173


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान*


हे देवी कृपा करिए अनुनय , चहुँ ओर विभीषिका छन्न परी ।
हिय आह कराह विपत्ति विषम , यह औचक ब्याधि की धन्न गिरी ।।
कछु सूझै नहीं किंकर्तव्यमूढ़, हा विधना लिखी लिलार कहा,
महादेवी चंड़िका रुप धरौ, विपदा हरियो आसन्न घिरी।।


महामायी वत्सला पीर उदधि, वरदा देवी जग अभयदान।
जय महिषमर्दनी रणचंड़ी , दुर्गेश्वरी उबरैं विपति त्रान।।
हे अष्टभुजा जगदम्ब आर्त, किम सौख्य सुखद जीवन होवै,
कर जोरि प्रखर विनती मैया, अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


प्रिया सिंह

तन्हाइयों के पन्नों को अश्कों से सजाया होगा
एक दीप को रात भर आँखों से जलाया होगा


बहुत संगदिली आ गई जाने क्यों उसके अंदर
उसे किसी ने खूब मोहब्बत से सताया होगा 
 
ये लहर आ आकर लौट जाती है वापस क्यों
समंदर पर उसका नाम अंगुली से बनाया होगा


तूर का फ़ितूर आखिर क्या था कठोर हो गया
जरूर उसका दिल पत्थर से सजाया होगा


बेसब्री का बांध दिल थाम ना पाता कभी भी
इसको किसी ने मोहब्बत से समझाया होगा


मैं तुम कभी हम कैसे बन पाते सोचा है जरा
जरूर इश्क बड़े जद्दोजहद से जताया होगा


खुश्क पत्ते की तरह अलग हो जाते शजर से
मैंने जमीर को अब इस खाक से उठाया होगा


बहुत सितमगर हो बात बात पर रूठ जाते हो
किसी ने बहुत खुफिया तदबीर से मनाया होगा


चाँद नींद आँखों में भर के देखता है छत पर
दिल ने छल कर शब-बे-दारी से जगाया होगा


 


Priya singh


सुनीता असीम

आना नहीं है मौत का आसान इस तरह।
ये मौत जिन्दगी की तरह नाम ही तो है।
***
नाकाम कर दिया है करोना ने आपको।
बाहर करो या घर का हुआ काम ही तो है।
***
कब चाहिए किसीको इजाजत भी प्यार की।
आँखों से जो पिया तो  पिया जाम् ही तो है।
***
हो प्यार में सुना या सुना  नौकरी में हो।
सुनना ज़लील शब्द का इल्ज़ाम ही तो है।
***
मेरे लिए हो प्यार कन्हैया तेरा सदा।
भक्ति तेरे  लिए मेरी बेदाम ही तो है।
***
 सुनीता असीम
26/3/2020


अखण्ड प्रकाश कानपुर

# अप्रतिम रचना#
          "सरस्वती-कवच"
           ************
विनियोग:-( घनाक्षरी )
अम्बे के कवच के ऋषि है हंस ओ मयूर।
देवता सरस्वती आकाश तत्व योग है।।
छन्द है घनाक्षरी ओ शक्ति शारदा भवानी।
मुदित "प्रकाश" ये अज़ब संजोग है।।
कर दो कृपा सुनो ओ भय भंजना भवानी।
काट दो विपत्ति आदि जो भी रोग भोग है।
उज्वल भविष्य बीज मंत्र आपका करेगा।
मैया की प्रसन्नता के हेतु विनियोग है।।
ध्यान:-
शारदे सुशीला सौम्य सरस सरस्वती जी।
ध्यान में हमारे सुख रुप दिखलाइये।।
कर में समायी वीणा दबी पग नीचे पीड़ा।
हंस पे विराज आज दौड़ी चली आइये।।
भक्त की पुकार अंगीकार कर लेना अम्बे।
मन के विकार आज दूर लौं हटाइए।।
करें गुणगान बुद्धिमान स्वाभिमान जग।
हृदय कमल मम आसन लगाइये।।
कवच:-
शीस की सुरक्षा करें शीतला सुरेश्वरी जी।
नेत्र की सुरक्षा नैनादेवी ही कराएंगी।।
कर्ण की कुमारी केश केशव पियारी जानें।
नासिका सुरक्षा को सुगंधिका जी आएंगी।।
मुख की मुदित मातु कंठ की कण्ठेश्वरीजी।
बाहु में तो बज्र बाहु माता सुख पाएंगी।।
हृदय की शारदे उदर की उदार अम्बे।
कटि भार कालिका तपस्वनी उठाएंगी।।
पग पाएंगे सुरक्षा भ्रामरी भवानी मां से।
जोड़ जोड़ तंत्रिकाओं को संवार दीजिए।
अस्थि मज्जा लोहू मांस सबसे हटा विकार।।
सुत को सुरक्षित कवच कर दीजिए।।
दो मयूर सा स्वरूप पोथी जैसा ज्ञान भरो।
हंस के समान न्यायकारी बुद्धि दीजिए।
जग में करा के कर्म जीव का बताके मर्म।
शारदे शरण ले चरण प्यार दीजिए।।
उपसंहार:- ( कुण्डली छंद )
कवच तुम्हारा शारदे , सारगर्भ मय जांन।
कृपा भवानी की मिले , मूढ़ बने संज्ञान।।
मूढ़ बने संज्ञान , बुद्धि संमार्गी होती।
बड़ी बड़ी बाधाएं , भगतीं रोती रोती।।
कह "अखण्ड" सौगंध, बचन यह सत्य हमारा।
भरे आत्म विश्वास ,  शारदे कवच तुम्हारा।।


नोट:-मित्रो, मां की कृपा ही कहुंगा, कि यह रचना विगत कई वर्षों पहले नवरात्रि में मात्र दो घंटे में लिख गयी।
सच्चाई है कि यह मेरे वश की बात नहीं है।


परिचय डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

-डॉ0हरि नाथ मिश्र
पिता का नाम-स्मृति शेष श्री पंडित जगदीश मिश्र।
माता का नाम-स्मृति शेष श्रीमती रेखा मिश्रा।
शिक्षा-एम0 ए0 अँगरेजी, पीएच0 डी0।
पूर्व विभागाध्यक्ष-अँगरेजी, का0 सु0 साकेत सनारकोत्तर महाविद्यालय,अयोध्या,उ0प्र0।
उपलब्धियाँ-सेवा-काल में डॉ0राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से अँगरेजी विषय में शोध करने वाले लगभग 25 शोधार्थियों के पर्यवेक्षण का कार्य।अँगरेजी विषय के पाठ्यक्रम सम्बंधी पुस्तकों का।लेखन।
प्रकाशित रचनाएँ-श्रीरामचरितबखान(अवधी में)
श्रीकृष्णचरितबखान(अवधी में)
गीता-सार(अवधी में)
एक झलक ज़िंदगी की(कविता-संग्रह)
धूप और छाँव(कविता-संग्रह)
इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर लिखी हुईं सैकड़ों कविताएँ।
वर्तमान पता-7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी, देवकाली रोड, फैज़ाबाद,अयोध्या।उ0प्र0।
संपर्क-9919446372


आशा जाकड़

नवरात्रि के द्वितीय दिवस पर ब्रह्मचारिणी माँ की आराधना ः


"आई हू्ँ आपके द्वार"


☺आई हूँ  आपके  द्वार। ☺
जगदम्बे  मैया  सुन लो पुकार ।।


सब बिछुड़े कोई संग न साथी
छोड़ गये मेरे अपने ही ☺साथी । 
डूबत है  अब मंझधार , 
जगदम्बे मैया सुन लो पुकार ।


मैं बेटी  अग्यान तुम्हारी☺
मैं पुत्री नादान तुम्हारी 
दे दो ग्यान वरदान , 
जगदम्बे मैया सुन लो पुकार ।


तुमसे सहायक और कहाँ  है ?
संकट हारी और कहाँ है?
जिसकी शरण में जांय , ☺
 जगदम्बे मैया सुन लो पुकार 


बीच भंवर  में  नाव हमारी 
डूब रही है नैया  हमारी  
नैया लगादो मेरी पार , ☺
जगदम्बे मैया सुन लो पुकार
   
जीवन है कष्टों का उपवन
कहीं फूल  हैं कहीं चुभन
 फूलों की कर दो बहार,☺
 जगदम्बे मैया सुन लो पुकार 


आशा जाकड़
9754969496


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

ये सुख भी नही भाया।
तडफ रही सबकी काया।
मचल रहा मन उडे कैसे
कैदी है पंछी पिंजरे जैसे।
पता चला,आजादी का मतलब।
पास नही रहे चाहे फुटी कोडी।
फिर भी घुमते बनकर नवाब।
सोचो कैसी विपदा आई।
अपने हाथो घर मे समाई।
सीख बहुत बडी देने लाई।
 खिलवाड  मत करो प्रकृति से भाई।
आज सभी कुछ बंद यहां पर।
देख गगन भी रोया यहां पर।
दूर से बैठा वह देख रहा है।
मालिक बनकर जो रह.रहा है।
कोप का भाजन.शायद अडे.है।
उसकी अदालत मे हम खडे.है।।
संभलना हमे हर हाल मे होगा।
वरना घर मे रहना यू पडेगा।
आओ आज भी संकल्प ले ले।
जीवन प्यारा सादगी से जी ले।।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।

"प्रीति अमृता"


तुम प्रयाग तीर्थ संगम पर
पर्व महोत्सव शिव जंगमधर
अति सहायिका दुःख-विपदा में
बनी प्रीतिका मानव मन पर।


अमृत ही अस्तित्व तुम्हारा
तुझपर आश्रित यह जग सारा
बनी विनायक षोडश गणपति
विघ्न विनाशक प्रेम अपारा।


मातृ शक्ति सम्पन्न सम्पदा
हर लेती दुःखियों की विपदा
मुस्कानें अमृत औषधिमय
हो तेरा यशगान सर्वदा।


तुम जिसपर खुश हो जाती हो
नेह सदा तुम बरसाती हो
जग में वही भाग्यशाली है
जिसको देख मचल जाती हो।


सर्वरूपिणी सर्वगुणी हो
वीरांगना सहज सगुणी हो
नृत्य करत नित पावन उर में
प्रीति अमृता मधुवन सी हो।


हृदय हिलोरें प्रेम सुधा हो
अति रमणीक रम्य वसुधा हो
आ बैठो संगीत गीत बन
सुन्दर स्वर लहरी सुखदा हो।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सच और झूठ"


सच कभी नहीं हारता
वह लड़ता और ललकारता है
अपनी सच्चाई की तीर से झूठ को वेधता दहाड़ता है।
झूठ हरदम गिरता
मुँह की खाता
फिर भी निर्लज्ज
झूठ के परिधान में सजधज
एक असभ्य अपसंस्कृति
घोर विकृति
क्रूर पाषाण
जीवित निष्प्राण
मरियल और सड़ियल
ऐंठा हुआ अड़ियल
नादान और बदनाम
पतितों जैसा काम
महा वाचाल
विशुद्ध गंदी चाल
मूर्ख अभिमानी
निकृष्ट अज्ञानी
वद से वदतर
दुर्गन्ध मारता असुन्दर
दिव्यता की दुहाई देता है
कड़ाके की गर्मी में रजाई ओढ़ता है।
फिर भी सत्य को आँखें दिखाता है
घड़ियाली आँसू बहाता है।
गलत एजेंडा लेकर चलता है
हाथ में टूटा हुआ डंडा लेकर घूमता है
दरिन्दगी की हद है
नापाक सरहद है
ऐ झूठ!कुटिल इंसान!
सत्य महान है
सच्चा इंसान है
मानव के वेश में भगवान है
चिरजीवी परम शक्तिमान है।
तुम उसे दबा नहीं सकते
खुद को बचा नहीं सकते।
सच अजर अमर है
झूठ!तू मृतक घर है
सच से उलझो नहीं,उसका सम्मान करो
उसपर अभिमान करो।
उससे जलो नहीं
अपना हाथ मलो नहीं।
सत्य अपराजित अविभाजित है
तू विखण्डित समाज द्रोही घटिया कुरूप त्याज्य वृत्त है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"भरभराकर कर गिर गया नाचीज वह"


सोचता था वह कभी सर्वोच्च खुद को,
जी रहा था जिन्दगी खुद दर्प बनकर,
पी रहा था गर्व  को खुद  मदहोश हो,
छोड़ता था व्यंग्य सबपर वाण तीखी।


हो गया सबसे अलग एकांतवासी,
आज कोई है नहीं उसका यहाँ पर,
घिर गया है स्वयं की क्रोधाग्नि में अब,
मर  रहा है आत्मघाती फँस गया है।


असुरक्षित असंतुलित सबका विरोधी,
चाटता है धूल खटिया खड़ी है अब,
बात करना दूर कोई देखता तक नहीं,
भरभराकर गिर गया नाचीज वह अब।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कोरोना को हराना है"
         
(वीर, छन्द)


कोरोना जायेगा हार, रहे एकता यदि समाज में.,
एक दूसरे से हो दूर, करें प्रताड़ित कोरोना को.,
दूरी में है शक्ति अपार, सब समझें दूरी का मतलब.,
मूर्ख वही जो रहे न दूर, समझदार दूर रहता है.,
कोरोना को ऐसे जान, छुआछूत की यह बीमारी.,
कभी बनो मत लापरवाह, लापरवाही में खतरा है.,
लापरवाही का परिणाम, मानव-कोरोना का बनना.,
अनुशासन को नियमित पाल, विपदाओं से मुक्ति मिलेगी.,
दिल से करो सभी से प्यार, बाहर-बाहर दूर रहो बस.,
बाहर से हों सभी अछूत, यह अत्युत्तम सहज कवच है.,
दूरी ही सेना का अस्त्र, लड़ो इक जगह से सैनिक बन.,
यह कितना है सरल उपाय, जो समझे वह बुद्धिमान है.,
कोरोना की मारो जान, नहीं फैलने दो विषधर को.,
समझो इसको विषधर नाग, डस लेने पर लहर न आये.,
इसके फन को दो अब कूच, एक-एक मीटर  दूर खड़ा हो.,
यह साला गन्दा शैतान, किन्तु मारना बहुत सहज है.,
मन को करो नियंत्रित शीघ्र, कुछ दिन घर में रहना सीखो.,
घर को ही समझो संसार, यहीं से मारो कोरोना को.,
इसे सैन्य अड्डा ही जान, तीर चलाओ कोरोना पर.,
महिषासुर का होगा अन्त, माँ दुर्गा जी विजयी होंगी।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*देशवासियों का साथ चाहिए*
विधा: कविता 


विपत्ति में सभी का साथ,
हम लोगो को चाहिए।
अपने धर्य का इन्तहान,
अब लोगो को देना है।
तभी तो कोरोना की जंग,
देश जीत पायेगा।
फिर अमन चैन की जिंदगी,
पुनः हम लोग जी पाएंगे।।


कलयुग में आना था,  
 महामारी का प्रकोप।
तबाह होना है दुनियाँ,
लिखा है ऐसा ग्रंथो में।
तभी तो विपत्तियां,
निरंतर आ रही है।
यही से हम सब को,
सभंल ने की जरूरत है।।


रहो घरों में तुम अपने,
परिवार वालो के संग।
करो मिलकर प्रार्थना,
उस ईश्वर से अब तुम ।
जिसने ये बनाई दुनियाँ,
उसी से मांगो रहमत तुम।
करेगा तुम सब पर वो,
रहमत कुछ दिनों में जरूर।।


जो खंड खंड हो गए थे,
लोगो के परिवार।
उन्हें जोड़ने का वक्त,
मानो आ गया है अब।
इसलिए परिवार के साथ,
हिल मिल कर रहो।
मिटाओ दिलकी कड़वाहटे,
मिल बैठकर तुम सब यारो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
26/03/2020


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

इक मतला दो शेर


कई  किरदार  थे  तेरे  मग़र  कुछ  कह नही पाए।
बिना  तेरे  कभी  तन्हां फ़क़त  हम रह नही पाए।


बहुत मजबूरियाँ थी जब रहें  तुमसे  जुदा हमदम।
हुए  हम  दूर  तुमसे  पर  जुदाई  सह  नही  पाए।



हमेशा  रास्ते  खुद  ही  बनाए  मंजिलों  तक  के।
सभी  के  साथ  हम ऐसे कभी भी बह नही पाए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


-सुरेंद्र सैनी बवानीवा छावनी झज्जर, हरियाणा

हे प्रभू !आप दो..... 


हे प्रभू ! कोई प्यार का आलाप दो. 
कठिन दौर, भाई -भाई का मिलाप दो. 


मेरे मुल्क के लोग बहुत परेशां हैं, 
और मत उन्हें कोई संताप ^दो.  (दुख, क्लेश )


जो डस सके देश के दुश्मन को, 
पल रहे ऐसे आस्तीन के सांप दो. 


गलत करने से पहले सौ बार सोचूं, 
मेरे बदन में ऐसी कांप दो. 


रह -रह के मुठियाँ जोश से भर रही, 
है क्रोध बड़ा, मत इतना ताप दो. 


पीछे रह जाता हूँ ज़माने की भीड़ में, 
"उड़ता "मुझे रफ़्तार औकात सी आप दो. 


 


स्वरचित व मौलिक रचना. 


द्वारा -सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
713/16, छावनी झज्जर, 
नज़दीक सैनी धर्मशाला, 
पिन -124103.हरियाणा. 


संपर्क - 9466865227.


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ ब्रह्मचारिणी"*(कुण्डलिया छंद)
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*माता है तपचारिणी, द्वितीय दुर्गा-रूप।
सदाचार-वैराग्य का, संयम सार स्वरूप।।
संयम सार स्वरूप, कमंडल कर-वाम धरे।
दायें कर जयमाल, सदा ही कल्याण करे।।
कह नायक करजोरि, रूप यह पावन भाता।
देती है वरदान, सुफल वरदात्री माता।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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हलधर

आव्हान गीत -कठिन परीक्षा का क्षण 
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कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।
ख़तरे  में  जीवन  आया  इंसान  का ।।


तुच्छ नहीं यह बात बड़ी है ,घर के बाहर मौत खड़ी है ।
लड़ना होगा युद्ध सभी को , कोरोना  से जंग छिड़ी है ।


निकला आज जनाजा सकल जहान का ।।
कठिन  परीक्षा  का  क्षण  हिंदुस्तान  का ।।1


बात हमारी मानो भाई ,बंद करो सब आवा जाई ।
प्राण गवा दोगे भगदड़ में ,रोयेँ मैया  चाची  ताई ।


हाल बुरा  है  इटली, रोम  ,ईरान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।2


उनकी भी समझें मजबूरी ,जिनपर काम नहीं मजदूरी ।
मदद  सभी  को  करनी  होगी , तभी लड़ाई होगी पूरी ।


समझो  यही  इशारा है  भगवान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।3


कुछ लोगों का मन मैला है , भरा हुआ जिनका थैला है ।
खास जरूरत की चीजों पर ,बिना बात का भ्रम फैला है ।


मान रखो कुछ रोग मुक्त अभियान का ।।
कठिन परीक्षा  का  क्षण हिंदुस्तान का ।।4


मौत मुहाने आये सब हैं ,  ये सब मानव के करतब हैं ।
कीट पतंगे पक्षी खाये , गायब  चिड़ियों के कलरब हैं ।


काम किया क्यों हमने खुद शैतान का ।।
कठिन परीक्षा  का क्षण हिंदुस्तान का ।।5


नेता जी हों या व्यापारी , हम सब की यह जिम्मेदारी ।
मजबूरों की अंतड़ियों तक ,पहुंचे दाल भात तरकारी ।


हलधर" मान बढ़ाओ देश महान का ।।
कठिन परीक्षा का क्षण हिंदुस्तान का ।।6


हलधर -9897346173


निशा"अतुल्य"

हाइकु
26.3.2020


दुर्गा पूजा 


विरोधाभास
करते देवी पूजा
क्यों मारे कन्या ।


भूर्ण की हत्या
करते जान कन्या
भ्रमित मति ।


देवी दो ज्ञान
करें सब विचार
होय उद्धार ।


समझ जाओ
बंद हो जीव हत्या
आया कोरोना ।


साफ सफाई
विचारों की जरूरी
नवरात्रि में ।


दोगे अगर
बेटियों को सम्मान
पाओगे मान ।


पूजा देवी की 
सार्थक नवरात्रि 
जब हो बेटी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


 डा.नीलम

*नवसंकल्प*


सब की मुराद हो पूरी 
सब के भंडार भरे रहें
सब की झोली में हो खुशियां
सबके दिन खुशहाल रहें


नव वर्ष मंगलमय हो
नव संकट से दूर रहें
मजबूरी नहीं घर बैठना
है जरुरी देश स्वस्थ रहे


कोरोना को कराने का दृढ़ संकल्प करें
व्यर्थ और अफवाह के
मैसेज कतई न प्रेषित करें


स्वच्छ रहें,थोड़ा दूर रहें
स्पर्श की चाहत का निषेध करें
हाथ जोड़ सबका अभिवादन करें।


       डा.नीलम


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