राजेंद्र रायपुरी

😌😌 कर्फ्यु 😌😌


कर्फ्यू,
होता तो है दुखदाई। 
पर,
क्या करें भाई।
सरकार ने इसे,
आपकी सेहत के लिए,
है लगाई।


रहोगे घर में,
तो "कोरोना' की चपेट में,
नहीं आओगे।
ख़ुद को,
और अपने परिवार को,
बचाओगे,
इस महामारी से।
जो लीलते जा रही है,
एक-एक को,
बारी-बारी से।


करो,
कर्फ्यू के नियमों का पालन।
लगना नहीं है इसमेें,
कोई धन।
कुछ दिन की ही तो बात है,
नहीं लम्बी और अॅ॑धेरी रात है।
दिखाओ समझदारी,
नहीं तो करनी पड़ेगी, 
शमशान जाने की तैयारी।


    ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां अम्बे
🔯🌹🌾🌷🥀🍀
हे मां अम्बे,
तू प्रज्ञामयी मां
चित्त में शुचिता भरो,
कर्म में सत्कर्म दो
बुद्धि में विवेक दो
व्यवहार में नम्रता दो।
🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
हम तिमिर से घिर रहे,
तुम हमें प्रकाश दो
भाव में अभिव्यक्ति दो
मां तुम विकास दो हमें।
🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
विनम्रता का दान दो
विचार में पवित्रता दो
व्यवहार में माधुर्य दो
मां हमें स्वाभिमान का दान दो।
 🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
लेखनी में धार दो
चित्त में शुचिता भरो,
योग्य पुत्र बन सकें
ऐसा हमको वरदान दो।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


आचार्य गोपाल जी            उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले

ये बीमारी भी एक दिन टल जाएगी


घर से बाहर निकलना ना यारों
जिंदगी फिर तुम्हारी सवर जाएगी
 बात मानो सभी का ओ प्यारों
यह बीमारी भी एक दिन टल जाएगी


बंद कर लो स्वयं को घरों में
वरना अर्थी सभी की निकल जाएगी
टास्क लेकर लगाओ तू मास्क
 अब कब तुझको अक्ल आएगी
 घर से बाहर....... 


कोई लक्षण दिखे जो यारा
 एक सौ बारह का ले लो सहारा
 अपने घर में रहो तुम अकेले 
टीम खुद घर तुम्हारी चली आएगी
घर से बाहर....... 


हाथ धो तू सेनेटाइजर लगाओ 
साफ सफाई की आदत बनाओ 
ये जंजीर टूटी जो इसकी 
फिर आजादी तुम्हारी आ जाएगी
घर से बाहर....... 


 केहुनी में खासा करो ना
न सताए किसी को कोरोना
तू आदत अच्छी धरो ना
 वरना तस्वीर तुम्हारी लटक जाएगी
घर से बाहर....... 


"आजाद" लगाओ ना सड़कों पर मेले
 अपने घर में रहो तुम अकेले
 जो दूरी सबूरी नहीं है
घर की क्यारी प्यारी बिखर जाएगी
घर से बाहर....... 


प्रधानमंत्री का यही है आश्वासन
बात तो सुन लो कहे जो प्रशासन
जरूरत मंद को देना तुम राशन
पुण्य है बस यही कब अक्ल आएगी
घर से बाहर....... 


 आचार्य गोपाल जी 
          उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


डॉ मनोज श्रीवास्तव (विद्यावाचस्पति)

27 मार्च 2020 लखनऊ
,********************


खुद से खुद को ही मिलने का अवसर यह पहली बार मिला


लॉक डाउन ने  मौका ये दिया जीवन को नया उपहार मिला
*


जीवन की कलम सच की स्याही कुछ हर्फ उभरते आते हैं


और नए फूल खिल जाते हैं जिनको ऐसा गुलजार मिला
*


कुछ लोग ढूढते हैं कमियां बस ये न मिला बस वो न मिला


हम खुश हैं जिस भी हाल में हैं सुंदर है जो संसार मिला


*
कविता लिखना कविता पढ़ना कविता का जीवन जी लेना


हम सोच नहीं पाए थे कभी हमको अच्छा किरदार मिला


*
जब नाम जमाना लिख देगाा कविता के कुछ दीवानों का


कविताएं बताएंगी जग को उनको जो अनोखा प्यार मिला


 


डॉ मनोज श्रीवास्तव (विद्यावाचस्पति)


******************************************


सुरेंद्र सैनी बावनिवाल

रिवाज क्या है..... 


बाहर शीत अंदर जलन,
 मौसम का मिज़ाज़ क्या है. 
कोई हूक उठ रही, 
अंदर ये आवाज़ क्या है. 


वक़्त सरपट दौड़ रहा, 
क्या था कल आज क्या है. 
कुछ समूह एकसाथ, 
कुछ अलग, ये समाज क्या है. 


हर उलझन हमसे शुरू,
 समझ नहीं ये आगाज़ क्या है. 
 अपने ही देते हैं दग़ा अकसर,
  जाने ये रिवाज क्या है. 


पहले मतभेद, फिर मनभेद, 
आखिर इस मर्ज़ का ईलाज क्या है. 
वही दिनचर्या ज़िम्मेदारी चलाने की, 
और अपने पास काम -काज क्या है. 


ना कली रहा, ना फूल बन सका, 
ये पलाज ^ क्या है.                     (टेसू का फूल )
हालात दबा रहे सतत अनवरत, 
जाने ये साज़ क्या है. 


मेरा हुनर देख "उड़ता "मुश्किलों में भी मुस्कुराता हूँ, 
पूछते हैं लोग ये अंदाज़ क्या है. 


 


स्वरचित एवं मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बावनिवाल


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

*जरूरत क्या है*
==================
ये है कोरोना महामारी ,हाथ मिलाने की जरूरत क्या है ।
चारों ओर छाया है मोत का कोफ,
स्पर्श करने की जरूरत क्या है ।।


बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है ।
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है ।।


सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल ।
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ।।


ज़िन्दगी एक नियामत है, इसे सम्हाल के रख ।
श्मशानों को सजाने की ज़रूरत क्या है ।।


दिल बहलाने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी ।
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ।।


"बचाव ही उपाय है", समझ-ए-जिंदादिल इन्सान ।
फिर अस्पतालों के चक्कर लगाने की जरूरत क्या है ।।


"जीवन है तो जहान है",इसे बचा कर रख।
बेवजह मोत को गले लगाने की जरूरत क्या है ।।
(रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु) बाढ़ - पटना

नव्य वर्ष 


डाली - डाली महकेगी अब, हर पत्ता भी बोलेगा
हर  शजर तैयार है इतना, झूम - झूमकर डोलेगा।


नव्य वर्ष की वेला है ये, खुशियों और उल्लासों का
बागों में बहार है आयी,चमक- धमक उजासों का।


माटी  चंदन  सा  लगता  है,दिखता जैसे जन्नत है
सज जाती है धरा हमारी, जान उनकी शोहरत है।


रंग - बिरंगे  फूल  खिले  हैं, खेतों  में  हरियाली  है
इस देश का चमन है महका,कोयल धून निराली है।


देखो सारे पेड़ फल गये, अनाज भरे खलिहानों में
झूमे - नाचे  खुशी  मनाए, उमंग  भरा किसानों में।


वन - उपवन  में  म्यूरा  नाचे, मोरनी  ताल  लगावे
रंग-रंग के फुदक चिरैया, सब का ई दिल बहलावे।


हवा   वसंती  पुरवाई  में, अपना  ई  खेल  दिखावे
विरहिन की तो बात अलग है,दर्द देह में भर आवे।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
बाढ़ - पटना


डॉ सुरंगमा यादव     असि0 प्रो 0

मुश्किल बड़ी घड़ी है 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाये रखना 
एक फ़ासला बनाकर 
खुद को बचाये रखना 


है जिन्दगी नियामत 
असमय ये खो ना जाये 
इस देश पर कोरोना
हावी ना होने पाये 
ये वक्त कह रहा है 
घर से नहीं निकलना 


कुछ देर योगा करके 
निज शक्ति को बढ़ाना 
संकल्प से ही अपने 
इस रोग को भगाना
हाथों को अपने साथी 
कई बार धोते रहना 


उनको नमन करें हम 
सेवा में जो लगे हैं 
सब कुछ भुला के अपना 
दिन-रात जो जुटे हैं 
रहकर सजग हमेशा 
अफवाहों से भी बचना 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाये रखना 


       डॉ सुरंगमा यादव 
   असि0 प्रो 0
महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना लखनऊ


नमस्ते जयपुर से - डॉ. निशा माथुर

सोजत सू मँगवाई मेहंदी,प्रेम शीला बटवाई जी,
इन मेहंदी की महक सू महके,म्हारो यो घरवार जी
मनन्डा रा मोती नैना री ज्योति,साहिब चितचोर जी
घूँघट में जो चाँद छिपो हैं,उकी नायरी बात जी
..................................
व्रत गणगौर का है बहुत ही मधुर प्यार का,दिल की श्रद्धा और सच्चे विश्वास का!
माँ पार्वती आप पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखे,आपको गणगौर की हार्दिक शुभकामनायें!💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹💃💃💃💃💃🥀🥀🌺🌸🌷🌼🌻
नमस्ते जयपुर से - डॉ. निशा माथुर🙏🙂


सीमा शुक्ला अयोध्या।

भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।
वेदना का अंत खुशियों 
का हृदय उद्गार होगा।


है निमिष भर की तपिस ये
जल रहा पथ पांव हैं।
किन्तु कर विश्वास आगे,
सुखभरी तरु छांव है।
फिर सुगंधी ये पवन, 
महका हुआ संसार होगा।
वेदना का अंत .......


नेह के घनघोर बादल, 
प्रीत की बरसात होगी
सो सके तू चैन से फिर से
 हंसी ओ रात होगी।
फिर मधुर संगीत सुन 
झंकृत हृदय का तार होगा।
वेदना का अंत .........


कोटिश:कर हैं उठे दिन
रात करते हैं दुआये।
दूर हो गमगीनियां तू,
फिर मुदित मन मुस्कुराये
फिर धरा पर एक नवयुग
का नया अवतार होगा
वेदना का अंत ......


फिर बहेंगी स्वच्छ शीतल,
 ये सरस पुरवाईयां,
फिर न घेरेंगी तुम्हें ये 
गम़जदा तन्हाईयां।
कवि हृदय की लेखनी में 
फिर सरस श्रृंगार होगा।


वेदना का अंत खुशियों 
का हृदय उद्गार होगा।
भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।


सीमा शुक्ला अयोध्या।


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

*कोरोना महामारी और विश्व* 


ईश्वर की कुदरत का,एक अंदाज निराला देखा।
पंछी खुले आसमान में उड़े, घरों में कैद जमाना देखा।।
मानव जाति में मचा हाहाकार, प्रकृति के बदलते रूप को देखा।।
भय फेला चीन में था,कब्रिस्तान खोदते ईरान को देखा।
अमेरिका लापरवाह बना था, इटली फूट-फूट कर रोते देखा।।
स्पेन में भी मचा हाहाकार,ब्रिटेन खुद को बचाता  देखा।।
फ्रांस में भी जा रही थी महामारी,जाने पाक ने नाकाम अंजाम देखा।।
दुनिया जैसे थम सी  गई ,बड़े शहरों  को सुनसान देखा।
न्यूयॉर्क मुंबई हुई लाॅकडाउन, रोम‌ का इतिहास बदलते देखा।।
कोराना की फैल गई महामारी, मानव जाति को संकट में देखा।
 अमेरिका चीन पर आरोप लगाए, महाशक्ति बनने की होड़ में देखा।।
एक देश ने भरी हुंकार,मानव जाति को जागृत करते देखा।
उभरते हुए कदमों से विश्व ने, भारत को विश्व गुरु बनते देखा।।।
     (रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)


डॉ राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

*फ़र्ज़* -


लम्बी लम्बी डगें भरते हुए आज यथावत लाल कुछ बेचैनी की मुद्रा  में हाँफते हुए चले जा रहे थे। तभी एकाएक मेरी नजर उनकी मुख मुद्रा पर पड़ी पहचानने में देर नहीं लगी क्योंकि वो साप्ताहिक मंडली के जुझारू साथी जो हैं, मैंने राम-राम करते हुए पूछ ही लिया 
"भाई यथावत जी क्या हुआ, कैसे दौड़ लगाए जा रहे हो? कुछ परेशान कैसे दिख रहे हो।"
इतना कहते हुए मैंने हाथ बढ़ाया उनसे मिलाने के लिये।
यथावत जी दूर से ही हाथ जोड़कर बोले-
''भैया आज मुझसे दूर ही रहो। उसी चीनी राक्षस ने हमें घेर लिया है उसे ही टेस्ट कराने जा रहें हैं।' इतना कहते कहते दो तीन छींकें मार दी।
मैं भी घबराकर थोड़ा पीछे हटा 'सोसल डिस्टेंसिंग' करने के लिये और झट से अपना हैंकी मुँह पर बाँध लिया।
प्रक्टिकली तो मुझे भी दूरी बना लेनी थी किन्तु मित्र की इस कंडीशन को देखते हुए तरस आ रहा था। मन भागने को कर रहा था किन्तु दिल सहायता करने को और फ़र्ज़ निभाने को धड़क रहा था।
आखिर धड़कते हुए दिल की आवाज़ सुनी और पूछ लिया, "आख़िर बात क्या है, परेशान कैसे हो? घर से कोई साथ नहीं आया तुम्हें दिखाने के लिये?"
यथावत लाल यथार्थ की धरती पर आ ही गये यानी धम्म से जमीन पर बैठ गए, मैं भी सोशल डिस्टेंसिंग भूल गया और उनको संभालने लगा।
उन्होंने अपनी आँखों से आँसू पौंछते हुए कहा- "भैया तुम हमसे दूर ही रहो, काहे को आफत मोल ले रहे हो मुझे तो जाना ही है ।"
"कैसी बातें करते हो यार। हमारी तुम्हारी तो एक ही बात है। आपस मे सब सुख दुःख आपस में शेयर करते हैं आज जब तुम मुसीबत में हो तब तुम्हें छोड़ दूँ ऐसा हो सकता है क्या?" मैंने ढाँढस बंधाते हुए कहा।
सीरियस मोड़ पर आते हुए अपनी अश्रु धारा को रोकते हुए कुछ मन की बात कहने को हुए 
"भाई क्या बताएं ?" कहते कहते रुक गए।
मैंने कहा "बताओ,भाई क्या हुआ कुछ तो बोलो."
आखिर उनके मुख से वचन इस प्रकार निकले-
आज मेरी बहू ने मुझे बड़ी नेक सलाह दी है उसी का पालन कर रहा हूँ।" कहते कहते फिर रुक गए।
"बोलो बोलो मित्र यथार्थ जी।" मैं यथार्थ लाल को यथार्थजी ही बिल्ट था शुरू से ही।
रुंहासे स्वर में कहने लगे-
"बाबूजी आपको छींके भी आ रही हैं कुछ खाँसी भी है सिंप्टम्स कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं । अब आप तो जानते ही हो घर में बच्चे भी हैं 'वो' भी हैं मुझे तो सबका ध्यान रखना हैं कुछ दिन के लिए बाहर ही कहीं रह लो मतलब आश्रम बगैरह में कुछ हुआ तो सरकार वैसे भी इलाज कर ही रही है।  जब ये सब कुछ ठीक हो जाए तो फिर आ जाना।" कहते कहते फफकने लगे।
उनकी ये बातें सुनकर मेरी भी आँखे भर आयीं कहीं ये स्थिति मेरी भी न हो जाये किन्तु अपने बच्चो पर मुझे भरोसा था।
उनको उठाया रिक्शा बुलाया और अपने घर लाकर बाहर बैठक में लिटा दिया, सावधानीभी पूरी बरती सेनेटाइज भी किया अपने आपको।
फिर व्हाट्सएप पर मिले नम्बरों पर काल किया तो कुछ देर बाद टीम आयी चेक किया कोई सिंप्टम्स न दिखाई दिए फिर भी सैम्पल लिए।फिर भी हिदायत देकर चले गए इन्हें क्वारंटाइन में रखियेगा।
मैंने दस बारह दिन डॉक्टरों के अनुसार ही रखा। रिपोर्ट निगेटिव मेरी भी जान में जान आयीआयी । उन्हें केवल जुकाम खाँसी हुआ था  सो ठीक गया। 
आभार की मुद्रा में हाथ जोड़कर मुझे गले लगा लिया और बोले,
"मित्र इतना बड़ा संकट मोल लेकर तुमने जो मेरी सेवा की हैउसे कभी भी भूल नहीं सकता जब घर ने ठुकरा दिया हो तब मुझे सहारा दी इससे कभी उऋण नहीं हो सकता। केवल धन्यवाद ही कह सकता हूँ।"
"नहीं मित्र कैसी बात करते,हो ये तो मेरा फ़र्ज़ था" 
 लेकिन जाते -जाते  एक  लिफाफा मुझे थमाते हए  बोले -
 "इसे  इसे  डी एम कार्यालय भिजवा देना आज देश पर संकट की घड़ी है शायद  किसी वृद्ध के काम में आ जाये यदि घर वाले निकाल भी दें तो सरकार कुछ कर सके ये मेरा निवेदन पूरा अवश्य कर देना।"
 "निश्चिंत रहो मित्र आज ही भिजवा दूँगा।"
 लेकिन अगले दिन जब सोशल ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समाचार चला तो मैं दंग रहा गया कि यथावत लाल ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिये प्रधानमंत्री राहत कोष में डेढ़ करोड़ दान में दिए।
यथावत लाल वृद्धाआश्रम में लगे टी वी न्यूज सुन रहे थे ये समाचार आत्म संतोष के साथ देश हित कुछ फ़र्ज़ निभा सका ,वहीं उनकी पुत्र वधू सिर लटकाकर इस न्यूज़ को सुन रही थी कि काश मैंने अपने बाबूजी के प्रति फ़र्ज़ निभाया होता ! मैं  भी सगर्व सुन रहा था कि   मुझे  मित्रता का फ़र्ज़ निभाने का  अवसर  मिला।


डॉ राजीव पाण्डेय
(कवि,कथाकार,हाइकुकार,समीक्षक)
1323/ग्राउंड फ्लोर,सेक्टर 2
वेबसिटी ,गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल-09990650570
ईमेल- kavidrrajeevpandey@gmail.com


अंजना कण्डवाल 'नैना'

🔔
       *"नव दुर्गा"*


नव दुर्गा भवानी, हे! शिवानी,
अपने भक्तों का कष्ट हरो माँ।
हाथ जोड़ के तेरे द्वार खड़े हैं,
ममता से अपनी झोली भरो माँ।


दैत्य दलों ने कैसा छल ये किया है,
रक्त बीज ने फिर अवतार लिया है,
हे दुःख हारणी, रक्तबीज नाशनी,
रक्त बीज का तुम नाश करो माँ।


दुश्मन ने कैसा ये प्रपंच रचा है,
दशों दिशाओं में हाहाकार मचा है।
हे! माता चण्डिका,पाप नाशनी,
तुम आ कर धरा से पाप हरो माँ।


कैसा ये दृश्य है कि समय थम गया 
दौड़ता हुआ नसों में रक्त जम गया
हे कष्ट हाराणी, सन्ताप तारणी,
अपने भक्तों का सन्ताप हरो माँ।


मिट्टी है विषैली, पानी है मैला
हवाओं में कैसा ये गरल है फैला,
हे सुख दायनी, संकट निवारणी
मानव जगत का कल्याण करो माँ।
©®


अंजना कण्डवाल 'नैना'


राहुल मिश्रा इंदौर

है समय संघर्ष का ये
और है सतर्कता का
हर कोई यह बात सुन लो
कस्ट है सम्पर्कता का


                 हर कोई सहमा हुआ है
                 हर तरफ विहवल सभी है
                 छूने से प्रतिपल है बढ़ता
                  कैसी ये हलचल अभी है
हर तरफ चर्चा यही की
घर से बाहर मत निकलना
हम सभी को स्वछ रहकर
हाथ साबुन से है धुलना


             है समय ने यह बताया
             सभ्यता जीवित अभी है
             है नमन मे जो नजाकत 
              हैण्ड शेक् मे नही है


सर झुका कर नमन् करने
का चलन बरसो पुराना
है नमस्ते का चलन जो
हर किसी को तुम बताना


               संग मिलकर स्वास्थ्य रहने
               का समय अब आ गया है
               स्वछ रहकर स्वस्थ्य रहने
               मे ही अब अपना भला है


हाथ धोकर आज मित्रों 
दूर कर दो यह कोरोना
दोनों कर को साथ करके
हाथ साबुन से है धोना


राहुल मिश्रा


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश

गीत नहीं कोई लिख पाती
भाव नहीं दे पाती हूँ।
देख विषम हालात जहाँ के
अंतस नीर बहाती हूँ।।


शस्य श्यामला सी ये धरती
वीराने  पर  रोती  है,
पाला जिसको निज आँचल में
अपने सम्मुख खोती है,
रो रोकर कहती हूँ सबसे
हिय का हाल सुनाती हूँ।।



कितने पापी नर पिशाच हैं
अंश ईश का खाते हैं,
संबल हैं जो इस अवनी के
उनको खूब सताते हैं,
ज्ञानी हो पर श्रेष्ठ नहीं तुम
गूढ़ भेद बतलाती हूँ।।


सार्स कभी कोरोना बनकर
प्रकृति क़हर बरसाती है,
खेल रही है खेल मृत्य का
मानो  प्रलय  बुलाती है,
आर्य संस्कृति मूल मंत्र है
सच की राह दिखाती हूँ।।
          अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


डॉ राजीव पाण्डेय  गाजियाबाद

*वर्तमान परिस्थितियों के एकादश दोहे* 


घर में बैठे अरु लिखें,कविताएं दो चार।
समय कटेगा प्यार से,बचे सकल संसार।(1)


बिना सुगर के ही पिये, हम कितनी भी चाय।
कविता में देते   रहें ,मीठी - मीठी राय। (2)


सुबह शाम योगा करें,दिन में देखें न्यूज।
बेमतलब की बात में,ना होवें कन्फ्यूज।(3)


हम बिल्कुल भी ना  छुएं, ताला कुंडी द्वार।
धोखे से यदि छू गए , धुलें  हाथ हर बार।(4)


इज्जत की अब बात है,बचे आँख मुँह नाक।
देव स्वरूपा मानकर,  इनको  रखना पाक।(5)


जीवन भर पिसते रहे ,  करते- करते काम।
मुश्किल से है अब मिला,इक्कीस दिन विश्राम।(6)


कठिन दिनों में हम करें,सृजन भरे कुछ काम।
जो सदियों तक दे सके  ,जग में अपना नाम।(7)


नव दुर्गा में हो सकें ,सेवा के  कुछ काम।
मानो संगम में उतर, कर लिए चारों धाम।(8)


घर मानें हिम कन्दरा  ,जहाँ  लगालें ध्यान।
मिली ऊर्जित शक्ति से,तोड़ें रिपु अभिमान।(9)


कर एकान्तिक साधना ,  होकर  सबसे   दूर।
फिर खुलके जीवन जियें,खुशियों से भरपूर।(10)


बाहर   जाने की  नहीं ,चले  भ्रात तरकीब।
घर केआँगन में जियें,खिलकर ज्यों राजीव।(11)
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻


 *डॉ राजीव पाण्डेय* 
       गाजियाबाद


डा0विद्यासागर मिश्र "सागर" लखनऊ उ0प्र0

हर आपदा से हम जीतकर आये सदा,
इस आपदा से जंग जीतकर आयेंगे।
हमने भगाया जैसे डेंगू, गुनिया चिकुन,
उसी भाति कोरोना को देश से भगयेंगे।
कभी नहीं घबराएँ आती जाती आपदाएं,
जल्द हम इससे भी छुटकारा पायेंगे।
कुछ दिन धीरज से रहो मेरे देशवासी,
देश जीतेगा हमारा कोरोना हरायेगे ।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र "सागर"
लखनऊ उ0प्र0


डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

1  *सुरभित आसव मधुरालय का*
ढुरे पवन हो मस्त फागुनी,
ऋतु ने ली अँगड़ाई है।
एक घूँट बस दे दे साक़ी-
आसव की सुधि आई है।।
           भरा हृदय है कड़ुवापन से,
            रीति भली नहीं लगती है।
            चिंतन-कर्म में अंतर लगता-
            उभय बीच इक खांई है।।
अमृत सम मधुरालय-आसव,
जिसको चख जग जीता  है।
व्यथित-विकल तन-मन की हरता-
आसव द्रव अकुलाई  है ।।
            मधुरालय को तन यदि मानो,
             साक़ी प्राण-वायु  इसकी।
             बिना प्राण के तन है मरु-थल-
             साक़ी,पर,भरपाई  है ।।
सागर-साक़ी का है रिश्ता,
प्रेमी-प्रेयसि के  जैसा ।
दोनों मिल बहलाते मन को-
जब-जब रहे जुदाई  है।।
            मधुरालय मन-शुद्धि-केंद्र,
            तो साक़ी पूज्य पुरोहित है।
            धुले हृदय की कालिख़ सारी-
             हाला सद्य  नहाई  है ।।
धारण कर लो पूज्य मंत्र यह,
यहीं से सुख का द्वार खुले।
अब विलम्ब मत करना भाई-
सुर-शुचिता यह  पाई  है।।
            डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372


डॉ. हरि नाथ मिश्र

सिलसिला ज़िंदगी का न थमता कभी,
ऊँचे अरमाँ अगर दिल में पलते रहें।
रात की कालिमा का न होगा असर-
दीप उम्मीदों  के गर जो जलते रहें।।
          जोश में होश को कभी खोना नहीं,
          पग में काँटे चुभें फिर भी रोना नहीं।
           प्यार काँटों से मिलता है अद्भुत मगर-
           प्रेम की धुन पे गर होंठ हिलते रहें।।
                                   रात की कालिमा....
प्रेम की डोर को कभी कटने न दो,
बोली-भाषा में अपने को बटने न दो।
कोशिशें दुश्मनों की भी शर्माएँगीं -
राहे उल्फ़त पे गर यूँ ही चलते रहें।।।
           ज़िंदगी ग़म-खुशी का है दरिया मग़र,
           पार करना इसे बड़ी हिकमत से है।
           चंद लम्हों में मंज़िल मलेगी ज़रूर-
           फूल जज़्बों के गर दिल में खिलते रहें।।
कौन कहता है यह काम मुमकिन नहीं,
जीत मिल जाये ऐसा तो हर दिन नहीं।
करना मुमकिन नामुमकिन को आसान है-
हौसले ज़िंदगी में गर पलते  रहें ।।
          एक अच्छी समझ दोस्त से कम नहीं
           ग़म का मारा वही जिसका हमदम नही।
           है यक़ीन ख़ुद पे करना इक अच्छी समझ-
           रब करे पल नासमझी के टलते रहें।।
अलविदा रात कह के सुबह देती है,
जूझ कर जोखिमों से फ़तह मिलती है।
धुंध का भी असर कभी होगा नहीं-
कण उजाले के गर उसमें घुलते  रहें ।।
                         रात की कालिमा का....
                                 डॉ. हरि नाथ मिश्र
                                   9919446372


हलधर

आज के हालात पर -छंद 
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घर बैठना ही काम ,युद्ध के समान भाई ,
काल की गति को आप ,ठीक ठीक जान लो ।


देव और दानवों में , जंग सी छिड़ी है आज ,
कोरोना को दानवों का, सेनापति मान लो ।।


जलती चितायें ये ,गवाही दे रही हैं रोज ,
फ्रांस ,रोम ,इटली की , हालत से ज्ञान लो ।


खुद की सुरक्षा को ही ,भारती की रक्षा मान ,
रोग की गंभीरता का , मूल पहचान लो ।।


हलधर -9897346173


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान*


हे देवी कृपा करिए अनुनय , चहुँ ओर विभीषिका छन्न परी ।
हिय आह कराह विपत्ति विषम , यह औचक ब्याधि की धन्न गिरी ।।
कछु सूझै नहीं किंकर्तव्यमूढ़, हा विधना लिखी लिलार कहा,
महादेवी चंड़िका रुप धरौ, विपदा हरियो आसन्न घिरी।।


महामायी वत्सला पीर उदधि, वरदा देवी जग अभयदान।
जय महिषमर्दनी रणचंड़ी , दुर्गेश्वरी उबरैं विपति त्रान।।
हे अष्टभुजा जगदम्ब आर्त, किम सौख्य सुखद जीवन होवै,
कर जोरि प्रखर विनती मैया, अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


प्रिया सिंह

तन्हाइयों के पन्नों को अश्कों से सजाया होगा
एक दीप को रात भर आँखों से जलाया होगा


बहुत संगदिली आ गई जाने क्यों उसके अंदर
उसे किसी ने खूब मोहब्बत से सताया होगा 
 
ये लहर आ आकर लौट जाती है वापस क्यों
समंदर पर उसका नाम अंगुली से बनाया होगा


तूर का फ़ितूर आखिर क्या था कठोर हो गया
जरूर उसका दिल पत्थर से सजाया होगा


बेसब्री का बांध दिल थाम ना पाता कभी भी
इसको किसी ने मोहब्बत से समझाया होगा


मैं तुम कभी हम कैसे बन पाते सोचा है जरा
जरूर इश्क बड़े जद्दोजहद से जताया होगा


खुश्क पत्ते की तरह अलग हो जाते शजर से
मैंने जमीर को अब इस खाक से उठाया होगा


बहुत सितमगर हो बात बात पर रूठ जाते हो
किसी ने बहुत खुफिया तदबीर से मनाया होगा


चाँद नींद आँखों में भर के देखता है छत पर
दिल ने छल कर शब-बे-दारी से जगाया होगा


 


Priya singh


सुनीता असीम

आना नहीं है मौत का आसान इस तरह।
ये मौत जिन्दगी की तरह नाम ही तो है।
***
नाकाम कर दिया है करोना ने आपको।
बाहर करो या घर का हुआ काम ही तो है।
***
कब चाहिए किसीको इजाजत भी प्यार की।
आँखों से जो पिया तो  पिया जाम् ही तो है।
***
हो प्यार में सुना या सुना  नौकरी में हो।
सुनना ज़लील शब्द का इल्ज़ाम ही तो है।
***
मेरे लिए हो प्यार कन्हैया तेरा सदा।
भक्ति तेरे  लिए मेरी बेदाम ही तो है।
***
 सुनीता असीम
26/3/2020


अखण्ड प्रकाश कानपुर

# अप्रतिम रचना#
          "सरस्वती-कवच"
           ************
विनियोग:-( घनाक्षरी )
अम्बे के कवच के ऋषि है हंस ओ मयूर।
देवता सरस्वती आकाश तत्व योग है।।
छन्द है घनाक्षरी ओ शक्ति शारदा भवानी।
मुदित "प्रकाश" ये अज़ब संजोग है।।
कर दो कृपा सुनो ओ भय भंजना भवानी।
काट दो विपत्ति आदि जो भी रोग भोग है।
उज्वल भविष्य बीज मंत्र आपका करेगा।
मैया की प्रसन्नता के हेतु विनियोग है।।
ध्यान:-
शारदे सुशीला सौम्य सरस सरस्वती जी।
ध्यान में हमारे सुख रुप दिखलाइये।।
कर में समायी वीणा दबी पग नीचे पीड़ा।
हंस पे विराज आज दौड़ी चली आइये।।
भक्त की पुकार अंगीकार कर लेना अम्बे।
मन के विकार आज दूर लौं हटाइए।।
करें गुणगान बुद्धिमान स्वाभिमान जग।
हृदय कमल मम आसन लगाइये।।
कवच:-
शीस की सुरक्षा करें शीतला सुरेश्वरी जी।
नेत्र की सुरक्षा नैनादेवी ही कराएंगी।।
कर्ण की कुमारी केश केशव पियारी जानें।
नासिका सुरक्षा को सुगंधिका जी आएंगी।।
मुख की मुदित मातु कंठ की कण्ठेश्वरीजी।
बाहु में तो बज्र बाहु माता सुख पाएंगी।।
हृदय की शारदे उदर की उदार अम्बे।
कटि भार कालिका तपस्वनी उठाएंगी।।
पग पाएंगे सुरक्षा भ्रामरी भवानी मां से।
जोड़ जोड़ तंत्रिकाओं को संवार दीजिए।
अस्थि मज्जा लोहू मांस सबसे हटा विकार।।
सुत को सुरक्षित कवच कर दीजिए।।
दो मयूर सा स्वरूप पोथी जैसा ज्ञान भरो।
हंस के समान न्यायकारी बुद्धि दीजिए।
जग में करा के कर्म जीव का बताके मर्म।
शारदे शरण ले चरण प्यार दीजिए।।
उपसंहार:- ( कुण्डली छंद )
कवच तुम्हारा शारदे , सारगर्भ मय जांन।
कृपा भवानी की मिले , मूढ़ बने संज्ञान।।
मूढ़ बने संज्ञान , बुद्धि संमार्गी होती।
बड़ी बड़ी बाधाएं , भगतीं रोती रोती।।
कह "अखण्ड" सौगंध, बचन यह सत्य हमारा।
भरे आत्म विश्वास ,  शारदे कवच तुम्हारा।।


नोट:-मित्रो, मां की कृपा ही कहुंगा, कि यह रचना विगत कई वर्षों पहले नवरात्रि में मात्र दो घंटे में लिख गयी।
सच्चाई है कि यह मेरे वश की बात नहीं है।


परिचय डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

-डॉ0हरि नाथ मिश्र
पिता का नाम-स्मृति शेष श्री पंडित जगदीश मिश्र।
माता का नाम-स्मृति शेष श्रीमती रेखा मिश्रा।
शिक्षा-एम0 ए0 अँगरेजी, पीएच0 डी0।
पूर्व विभागाध्यक्ष-अँगरेजी, का0 सु0 साकेत सनारकोत्तर महाविद्यालय,अयोध्या,उ0प्र0।
उपलब्धियाँ-सेवा-काल में डॉ0राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से अँगरेजी विषय में शोध करने वाले लगभग 25 शोधार्थियों के पर्यवेक्षण का कार्य।अँगरेजी विषय के पाठ्यक्रम सम्बंधी पुस्तकों का।लेखन।
प्रकाशित रचनाएँ-श्रीरामचरितबखान(अवधी में)
श्रीकृष्णचरितबखान(अवधी में)
गीता-सार(अवधी में)
एक झलक ज़िंदगी की(कविता-संग्रह)
धूप और छाँव(कविता-संग्रह)
इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर लिखी हुईं सैकड़ों कविताएँ।
वर्तमान पता-7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी, देवकाली रोड, फैज़ाबाद,अयोध्या।उ0प्र0।
संपर्क-9919446372


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