*दूर रहो भाई*
विधा: गीता
किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।
कहाँ हम मेल मिलाप की,
बाते करते थे।
अब उन्ही से दूर रहने को,
हम ही कह रहे है।
सचमुच में लोगो ये,
कैसा दौर आ गया है।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।
कभी सोचा न होगा लोगे ने,
मंदिरों पर भी रोक लगाई जाएगी।
संकट में याद आने वाले,
भगवानको भी रोका जाएगा।
कर न सके अब पूजा प्रार्थनाएं,
संकटमोचन के दरबार में।
अब कलयुगमें क्या क्या होगा,
आने वाले इस दौर में।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।
लगता है ईश्वर रूठ गये,
इन पापीयों की करने से।
कितना अत्याचार कर रहे,
उनकी बनाई दुनियाँ पर।
तभी स्वंय भी दूर हो रहे,
मानो वो अपने भक्तों से।
नही करानी पूजा भक्ति,
अब इन डोंगी इंसानों से।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरा रहा।
किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
27/03/2020