आभा दवे*

सभी को मेरा सादर नमस्कार🙏🙏


सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ🙏🙏



हाइकु- करोना वायरस पर
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1)  पवन चले
लिए करोना संग
डरे सभी ही ।


2) मुक्त जीवन
भय के साए छुपा
साँसे ले रहा ।


3) प्रकृति कहे
न करो खिलवाड़ 
 प्रभु से डरो ।



4) फैलता रोग
   अपनो से बचते
    फिरते लोग ।


5)विकट स्थिति
 द्वार बंद सभी के
  पुकारें किसे ?


6)जीवन दीप
  जलता रहे सदा
   सभी का यहाँ ।


7) जीवन आस
    बस उसी के पास 
    वह है प्रभु ।



*आभा दवे*


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ चंद्रघंटा"*(कुण्डलिया छंद)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
*कल्याणी फल दायिनी, तृतीय रूप महान।
सरला शांति सुरूपिणी, काया कंचन भान।
काया कंचन भान, चंद्रघंटा नाम कहो।
मन में रख विश्वास, परम पूजन भाव गहो।।
कह नायक करजोरि, करे पावन मन-वाणी।
हरती हर संताप, कृपा करती कल्याणी।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


नूतन लाल साहू

विनती
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू, मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार, मेरी मइया
मां के दरबार में
जो भक्त सर झुकाते है
वो रोते रोते, आते हैं, और
हंसते हंसते जाते है
तेरे चरण में,मेरी जिंदगी
उजियार, मेरी मइया
बिगड़ी बनाने, आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
मां के दरबार में, जो
सच्चे मन से,आते है
मां के दरबार में, जो
हाजिरी लगाते है
कर दे करम,तू मुझमें
इक बार मेरी मइया
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
इक बार मेरी मइया
चार दिन की,जिन्दगी
कहीं देर न,हो जाये
कब आओगी,मइया
हम विदा न हो जाये
कहां है,अंबे मइया
यही सब,पूछते है
तेरे बिन,मन घबराये
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू,मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
नूतन लाल साहू


       डा.नीलम

*लक्ष्मण रेखा*


मानकर स्वयं को लक्ष्मण
बना लो सुरक्षा कवच
स्वयं ही अपने इर्द-गिर्द
मानकर लक्ष्मण रेखा


है मांग समय की कर लो
अपने आप को थोड़े दिन
अपने लोगों के लिए ही
अपने घर में बंद


है कलियुग रावण नहीं है
मगर है कोरोना निशाचर असूर ,अदृश्य होकर कर रहा हर जगह वो वार


देवघरों के करके पट सब बंद,देव भी सब आ गये
करने सुरक्षा और रक्षा धरा की,अपने गणों के संग


आ गये सब धरती पर
पहन के वरदियां कर्म की
कर रहे मुस्तैदी से 
दिन रात सेवा देशवासियों की


पर सीमाओं में वो भी बंधे पहुँच ना सकते हर ओर हमको ही करने पड़ेंगे
बचने के चंद उपाय


राम और लक्ष्मण सरीखे
कर रहे हैं युद्ध कोरोना असूर से अपनी-अपनी हद में
अब अपने लिए स्वयं ही खींच लें लक्ष्मण-रेखा आप


       डा.नीलम


सुनीता असीम

हो मुहब्बत से भरी दुनिया मगर होगी नहीं।
बिन अंधेरे से लड़ें अब तो सहर होगी नहीं।
***
तब खुदा भी साथ होगा जब भरोसा खुद पे' हो।
गर नहीं विश्वास तो उसकी नज़र होगी नहीं।
***
हो रहा इम्तिहान अपना सोच लो ऐसा सभी।
बात सोचे यूँ बिना अपनी गुजर होगी नहीं।
***
जंग जीते हैं कई भारत के वासी हम सदा।
इस महामारी से जीते बिन बसर होगी नहीं।
***
जब खुदा भी साथ औ राजा भी अपने साथ हैं।
वक्त पे ऐसे हमें अपनी फिकर होगी नहीं।
***
हाथ भी धोलो सभी कर लो नमस्ते दूर से।
रोक लेंगे गर इसे फिर ये सफर होगी नहीं।
***
गर नहीं बढ़ने दिया कर तंग इसका रास्ता।
हम रहेंगे खुश तभी ये भी अमर होगी नहीं।
***
सुनीता असीम
27/3/2020


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*दूर रहो भाई*
विधा: गीता


किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।


कहाँ हम मेल मिलाप की,
बाते करते थे।
अब उन्ही से दूर रहने को,  
हम ही कह रहे है।
सचमुच में लोगो ये,
कैसा दौर आ गया है।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।


कभी सोचा न होगा लोगे ने,
मंदिरों पर भी रोक लगाई जाएगी।
संकट में याद आने वाले,
भगवानको भी रोका जाएगा।
कर न सके अब पूजा प्रार्थनाएं,
संकटमोचन के दरबार में।
अब कलयुगमें क्या क्या होगा,
आने वाले इस दौर में।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।


लगता है ईश्वर रूठ गये,
इन पापीयों की करने से।
कितना अत्याचार कर रहे,
उनकी बनाई दुनियाँ पर।
तभी स्वंय भी दूर हो रहे,
मानो वो अपने भक्तों से।
नही करानी पूजा भक्ति,
अब इन डोंगी इंसानों से।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरा रहा।


किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
27/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

विश्व हताहत जिससे सारा
नहीं सूझ रहा है कोई उपाय
महामारी घोषित कर दीन्ही
खो गया है सबका उत्साह
समझ के नजाकत वक्त की
लॉकडाउन कर दीन्हा देश
हर नुकसान उठाने को उद्यत
व्यक्ति मात्र का न उखड़े केश
फिर भी बनकर के अज्ञानी
क्यों लोग उड़ा रहे उपहास
क्या जब लाशों के ढ़ेर लगेंगे
मानव सभ्यता का होगा ह्रास
तब सुधरे तो क्या सुधरे तुम
जब अपनों को ही खो देंगे
अपनी ही लापरवाही से तुम
राष्ट्रीय स्वरूप ही बिगाड़ देंगे
राष्ट्रीय अध्यक्ष शत्रु नहीं जो
रखना चाहते घर मैं तुम्हें कैद
रहें सुरक्षित और स्वस्थ्य तुम
कर रहे है व्यवस्था वो वैदय
बार बार कर रहे अपील वह
मत जाओ तुम घर से बाहर
बनाओ परस्पर दूरियां तुम
नहीं रहे खतरा नहीं रहे डर।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


अंकिता जैन ' अवनी' (लेखिका/ कवयित्री) अशोकनगर मप्र

"परिचय देना होगा"


परिस्थिति विकट है,
खड़ा बड़ा संकट है।
खौफ छाया ज़हान पर,
आन पड़ी है,जान पर।
सब मुरझाये चेहरे लेकर,
 सहमें- सहमें रहते हैं।
धीरज बांध इस स्थिति में,
एक दूजे से कहते हैं।
गर जीतना है ये जंग हमें,
तो सावधान रहना होगा।
अपने धैर्य और संयम का,
अब परिचय देना होगा।
आज जो कुछ दिन,
घर में बिताए जायेंगे,
यही दिन हमें,
इस महामारी से बचायेंगे।
स्वंय सुरक्षित रहने को,
थोड़ा आर्थिक संकट सहना होगा।
समय की मांग कहती हैं,
हमें अपने हौसले का,
 बस परिचय देना होगा।


अंकिता जैन ' अवनी'
(लेखिका/ कवयित्री)
अशोकनगर मप्र


एस के कपूर श्री* *हंस ।बरेली।*

*कॅरोना से बचो और बचाओ*
*क्योंकि बचाव ही जिन्दगी है।*
*कविता।छन्द मुक्त(तुंकान्त)*


बाहर जायोगे तो जिंदगी
भी   चली   जायेगी।
फिर तेरी पहुंच के बाहर
निकली   आयेगी।।
अंदर जीवन  पर   बाहर
तो   मौत  खड़ी   है।
फिर जिंदगी  दुबारा तुझे
नहीं  मिल   पायेगी।।


एक ही टास्क हो तुम्हारा
मास्क का लो सहारा।
खाँसी , सांस, बुखार  के
लक्षण करें बेसहारा।।
सामाजिक   दूरी  में  ही
छिपी  है  जिन्दगी।
धोते रहो  हाथ  हर बार
फिर तुम   दुबारा।।


यह वैश्विक महामारी है
बहुत दुराचारी है।
एक वायरस से  दुनिया
की   लाचारी  है।।
साफ   सफाई    अच्छा
भोजन नींद हैं मंत्र।
संकल्प   संयम   से  ही
भागेगी बीमारी है।।


लॉक डाउन, कर्फ्यू  को
को मानें पूरा देश।
ये अजब  बीमारी आई
लेकर दानव भेष।।
घर के  बाहर खींच लो
एक लक्ष्मण रेखा।
पार जो   करोगे उसको
रहे न जीवन शेष।।


इक्कीस दिन के विराम
से टूटेगा चक्र।
स्तिथि होगी नियंत्रण में
न  होगी  वक्र।।
केवल एक  ही  उपाय है
बचाने मानवता को।
अन्यथा अवशेष में मिलेगा
हर तर्क वितर्क।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस ।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


संजय जैन मुंबई

*सच्चे माता-पिता बनो*
विधा : लेख  


आज का विषय बहुत ही संवेदनशील है। जिसकी आज हर परिवारों को बहुत ही जरूरत है ।की आप कैसे सच्चे और अच्छे माता पिता बने। जिससे
आपके परिवार का वातावरण आपके घर के अनुकूल रहे।
 पुत्र नाटक में जाए, सिनेमा में जाए, गलत रास्ते पर चल पडे,भक्ष्य-अभक्ष्य का खयाल न करे तो आज लोग रोकते तक नहीं हैं और कहते हैं कि समय की हवा है। यदि पुत्र पूजा नहीं करे, उपाश्रय में नहीं जाए तो कहेंगे कि इस पर अध्ययन का बोझा अधिक है। आप सम्यग्दृष्टि माता-पिता हैं न? आप हितैषी संरक्षक होने का दावा करते हैं न? आप कैसे उनके हितैषी हैं? कैसे संरक्षक हैं? आपने कभी यह जांच की है कि आज उनके कानों में कितना पाप-विष भरा गया है? आधुनिक वातावरण,दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा आपकी संतान में आज कितने कुसंस्कार पैदा किए जा रहे हैं? यदि इन सब बातों का ध्यान न रखो, इनकी जांच न करो तो आप कैसे उनके हितैषी हैं?


संप्रति राजा, राजा बनकर हाथी पर सवारी कर के माता को प्रणाम करने आए। तब उनकी माता ने कहा, ‘मेरे संप्रति के राजा बनने की मुझे खुशी नहीं है, परन्तु यदि वह धर्म की प्रभावना करे तो मुझे अपार हर्ष होगा।’ ऐसी होती है माता। और इसी राजा संप्रति ने सवा लाख मन्दिरों का निर्माण करवाया। आज की माताएं क्या कहती हैं? माता-पिता तो सब बनना चाहते हैं, बच्चों की अंगुली पकडकर सबको चलना है। अपनी आज्ञा भी सब मनवाना चाहते हैं, लेकिन ऐसी इच्छा करने वालों को स्वयं में पितृत्व एवं मातृत्व के गुण तो लाने चाहिए न? माता-पिता यदि सही मायने में माता-पिता नहीं बनेंगे तो पुत्र कभी सुपुत्र नहीं बन सकते। मैं उन्मत्त पुत्रों का पक्षधर नहीं हूं, परन्तु जैसे पुत्रों को सचमुच सुपुत्र बनना चाहिए, उसी तरह माता-पिता को भी सच्चे माता-पिता बनना चाहिए।


*जय जिनेन्द्र देव की*
संजय जैन (मुंबई )
27/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कर्म पथ पर आगे बढ़ तू मैं हूं मानव साथ तुम्हारे
परिणाम नहीं बस में तेरे वह दूंगा मैं तुमको प्यारे


नर ही नर का दुश्मन विष वृक्ष का करके रोपण
प्रकृति से खिलबाड़ कर मुझ पर करे दोषारोपण


मैं जीवन का रखवाला हूँ जीव मात्र है मेरी संतान
जिनका अटल विश्वास है मैं रखता हूँ उनका मान


सदाचरण का करो पालन कोई न व्याध सतायेगी
कर्तव्यमार्ग पै बढ़ मनुज मंजिल तुम्हें मिल जायेगी।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🍁🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"देश-प्रेम"*
"देश प्रेम में ही साथी,
शहीद हुए-
वीर अनेक।
देश प्रेम में ही तो साथी,
सीमा पर बैठे-
सैनिक अनेक।
देश पर आये जब जब ,
विपत्ति कोई-
हम सभी हो जाते एक।
कोई भी जाति धर्म का,
भेद नहीं-
हम सब भारत वासी है-एक।
अनेकता में एकता ही तो,
हमारी हैं पहचान-
सदा मिल जुल कर रहे एक।
मिल जुल कर रहना साथी,
नफरत का नहीं-
कोई काम।
देश प्रेम में हीं जीना ,
देश के लिये मरना-
यही है-पैग़ाम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

😌😌 कर्फ्यु 😌😌


कर्फ्यू,
होता तो है दुखदाई। 
पर,
क्या करें भाई।
सरकार ने इसे,
आपकी सेहत के लिए,
है लगाई।


रहोगे घर में,
तो "कोरोना' की चपेट में,
नहीं आओगे।
ख़ुद को,
और अपने परिवार को,
बचाओगे,
इस महामारी से।
जो लीलते जा रही है,
एक-एक को,
बारी-बारी से।


करो,
कर्फ्यू के नियमों का पालन।
लगना नहीं है इसमेें,
कोई धन।
कुछ दिन की ही तो बात है,
नहीं लम्बी और अॅ॑धेरी रात है।
दिखाओ समझदारी,
नहीं तो करनी पड़ेगी, 
शमशान जाने की तैयारी।


    ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां अम्बे
🔯🌹🌾🌷🥀🍀
हे मां अम्बे,
तू प्रज्ञामयी मां
चित्त में शुचिता भरो,
कर्म में सत्कर्म दो
बुद्धि में विवेक दो
व्यवहार में नम्रता दो।
🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
हम तिमिर से घिर रहे,
तुम हमें प्रकाश दो
भाव में अभिव्यक्ति दो
मां तुम विकास दो हमें।
🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
विनम्रता का दान दो
विचार में पवित्रता दो
व्यवहार में माधुर्य दो
मां हमें स्वाभिमान का दान दो।
 🙏🕉🙏
हे मां अम्बे,
लेखनी में धार दो
चित्त में शुचिता भरो,
योग्य पुत्र बन सकें
ऐसा हमको वरदान दो।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


आचार्य गोपाल जी            उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले

ये बीमारी भी एक दिन टल जाएगी


घर से बाहर निकलना ना यारों
जिंदगी फिर तुम्हारी सवर जाएगी
 बात मानो सभी का ओ प्यारों
यह बीमारी भी एक दिन टल जाएगी


बंद कर लो स्वयं को घरों में
वरना अर्थी सभी की निकल जाएगी
टास्क लेकर लगाओ तू मास्क
 अब कब तुझको अक्ल आएगी
 घर से बाहर....... 


कोई लक्षण दिखे जो यारा
 एक सौ बारह का ले लो सहारा
 अपने घर में रहो तुम अकेले 
टीम खुद घर तुम्हारी चली आएगी
घर से बाहर....... 


हाथ धो तू सेनेटाइजर लगाओ 
साफ सफाई की आदत बनाओ 
ये जंजीर टूटी जो इसकी 
फिर आजादी तुम्हारी आ जाएगी
घर से बाहर....... 


 केहुनी में खासा करो ना
न सताए किसी को कोरोना
तू आदत अच्छी धरो ना
 वरना तस्वीर तुम्हारी लटक जाएगी
घर से बाहर....... 


"आजाद" लगाओ ना सड़कों पर मेले
 अपने घर में रहो तुम अकेले
 जो दूरी सबूरी नहीं है
घर की क्यारी प्यारी बिखर जाएगी
घर से बाहर....... 


प्रधानमंत्री का यही है आश्वासन
बात तो सुन लो कहे जो प्रशासन
जरूरत मंद को देना तुम राशन
पुण्य है बस यही कब अक्ल आएगी
घर से बाहर....... 


 आचार्य गोपाल जी 
          उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


डॉ मनोज श्रीवास्तव (विद्यावाचस्पति)

27 मार्च 2020 लखनऊ
,********************


खुद से खुद को ही मिलने का अवसर यह पहली बार मिला


लॉक डाउन ने  मौका ये दिया जीवन को नया उपहार मिला
*


जीवन की कलम सच की स्याही कुछ हर्फ उभरते आते हैं


और नए फूल खिल जाते हैं जिनको ऐसा गुलजार मिला
*


कुछ लोग ढूढते हैं कमियां बस ये न मिला बस वो न मिला


हम खुश हैं जिस भी हाल में हैं सुंदर है जो संसार मिला


*
कविता लिखना कविता पढ़ना कविता का जीवन जी लेना


हम सोच नहीं पाए थे कभी हमको अच्छा किरदार मिला


*
जब नाम जमाना लिख देगाा कविता के कुछ दीवानों का


कविताएं बताएंगी जग को उनको जो अनोखा प्यार मिला


 


डॉ मनोज श्रीवास्तव (विद्यावाचस्पति)


******************************************


सुरेंद्र सैनी बावनिवाल

रिवाज क्या है..... 


बाहर शीत अंदर जलन,
 मौसम का मिज़ाज़ क्या है. 
कोई हूक उठ रही, 
अंदर ये आवाज़ क्या है. 


वक़्त सरपट दौड़ रहा, 
क्या था कल आज क्या है. 
कुछ समूह एकसाथ, 
कुछ अलग, ये समाज क्या है. 


हर उलझन हमसे शुरू,
 समझ नहीं ये आगाज़ क्या है. 
 अपने ही देते हैं दग़ा अकसर,
  जाने ये रिवाज क्या है. 


पहले मतभेद, फिर मनभेद, 
आखिर इस मर्ज़ का ईलाज क्या है. 
वही दिनचर्या ज़िम्मेदारी चलाने की, 
और अपने पास काम -काज क्या है. 


ना कली रहा, ना फूल बन सका, 
ये पलाज ^ क्या है.                     (टेसू का फूल )
हालात दबा रहे सतत अनवरत, 
जाने ये साज़ क्या है. 


मेरा हुनर देख "उड़ता "मुश्किलों में भी मुस्कुराता हूँ, 
पूछते हैं लोग ये अंदाज़ क्या है. 


 


स्वरचित एवं मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बावनिवाल


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

*जरूरत क्या है*
==================
ये है कोरोना महामारी ,हाथ मिलाने की जरूरत क्या है ।
चारों ओर छाया है मोत का कोफ,
स्पर्श करने की जरूरत क्या है ।।


बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है ।
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है ।।


सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल ।
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ।।


ज़िन्दगी एक नियामत है, इसे सम्हाल के रख ।
श्मशानों को सजाने की ज़रूरत क्या है ।।


दिल बहलाने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी ।
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ।।


"बचाव ही उपाय है", समझ-ए-जिंदादिल इन्सान ।
फिर अस्पतालों के चक्कर लगाने की जरूरत क्या है ।।


"जीवन है तो जहान है",इसे बचा कर रख।
बेवजह मोत को गले लगाने की जरूरत क्या है ।।
(रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु) बाढ़ - पटना

नव्य वर्ष 


डाली - डाली महकेगी अब, हर पत्ता भी बोलेगा
हर  शजर तैयार है इतना, झूम - झूमकर डोलेगा।


नव्य वर्ष की वेला है ये, खुशियों और उल्लासों का
बागों में बहार है आयी,चमक- धमक उजासों का।


माटी  चंदन  सा  लगता  है,दिखता जैसे जन्नत है
सज जाती है धरा हमारी, जान उनकी शोहरत है।


रंग - बिरंगे  फूल  खिले  हैं, खेतों  में  हरियाली  है
इस देश का चमन है महका,कोयल धून निराली है।


देखो सारे पेड़ फल गये, अनाज भरे खलिहानों में
झूमे - नाचे  खुशी  मनाए, उमंग  भरा किसानों में।


वन - उपवन  में  म्यूरा  नाचे, मोरनी  ताल  लगावे
रंग-रंग के फुदक चिरैया, सब का ई दिल बहलावे।


हवा   वसंती  पुरवाई  में, अपना  ई  खेल  दिखावे
विरहिन की तो बात अलग है,दर्द देह में भर आवे।


बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
बाढ़ - पटना


डॉ सुरंगमा यादव     असि0 प्रो 0

मुश्किल बड़ी घड़ी है 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाये रखना 
एक फ़ासला बनाकर 
खुद को बचाये रखना 


है जिन्दगी नियामत 
असमय ये खो ना जाये 
इस देश पर कोरोना
हावी ना होने पाये 
ये वक्त कह रहा है 
घर से नहीं निकलना 


कुछ देर योगा करके 
निज शक्ति को बढ़ाना 
संकल्प से ही अपने 
इस रोग को भगाना
हाथों को अपने साथी 
कई बार धोते रहना 


उनको नमन करें हम 
सेवा में जो लगे हैं 
सब कुछ भुला के अपना 
दिन-रात जो जुटे हैं 
रहकर सजग हमेशा 
अफवाहों से भी बचना 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाये रखना 


       डॉ सुरंगमा यादव 
   असि0 प्रो 0
महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना लखनऊ


नमस्ते जयपुर से - डॉ. निशा माथुर

सोजत सू मँगवाई मेहंदी,प्रेम शीला बटवाई जी,
इन मेहंदी की महक सू महके,म्हारो यो घरवार जी
मनन्डा रा मोती नैना री ज्योति,साहिब चितचोर जी
घूँघट में जो चाँद छिपो हैं,उकी नायरी बात जी
..................................
व्रत गणगौर का है बहुत ही मधुर प्यार का,दिल की श्रद्धा और सच्चे विश्वास का!
माँ पार्वती आप पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखे,आपको गणगौर की हार्दिक शुभकामनायें!💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹💃💃💃💃💃🥀🥀🌺🌸🌷🌼🌻
नमस्ते जयपुर से - डॉ. निशा माथुर🙏🙂


सीमा शुक्ला अयोध्या।

भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।
वेदना का अंत खुशियों 
का हृदय उद्गार होगा।


है निमिष भर की तपिस ये
जल रहा पथ पांव हैं।
किन्तु कर विश्वास आगे,
सुखभरी तरु छांव है।
फिर सुगंधी ये पवन, 
महका हुआ संसार होगा।
वेदना का अंत .......


नेह के घनघोर बादल, 
प्रीत की बरसात होगी
सो सके तू चैन से फिर से
 हंसी ओ रात होगी।
फिर मधुर संगीत सुन 
झंकृत हृदय का तार होगा।
वेदना का अंत .........


कोटिश:कर हैं उठे दिन
रात करते हैं दुआये।
दूर हो गमगीनियां तू,
फिर मुदित मन मुस्कुराये
फिर धरा पर एक नवयुग
का नया अवतार होगा
वेदना का अंत ......


फिर बहेंगी स्वच्छ शीतल,
 ये सरस पुरवाईयां,
फिर न घेरेंगी तुम्हें ये 
गम़जदा तन्हाईयां।
कवि हृदय की लेखनी में 
फिर सरस श्रृंगार होगा।


वेदना का अंत खुशियों 
का हृदय उद्गार होगा।
भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।


सीमा शुक्ला अयोध्या।


रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर

*कोरोना महामारी और विश्व* 


ईश्वर की कुदरत का,एक अंदाज निराला देखा।
पंछी खुले आसमान में उड़े, घरों में कैद जमाना देखा।।
मानव जाति में मचा हाहाकार, प्रकृति के बदलते रूप को देखा।।
भय फेला चीन में था,कब्रिस्तान खोदते ईरान को देखा।
अमेरिका लापरवाह बना था, इटली फूट-फूट कर रोते देखा।।
स्पेन में भी मचा हाहाकार,ब्रिटेन खुद को बचाता  देखा।।
फ्रांस में भी जा रही थी महामारी,जाने पाक ने नाकाम अंजाम देखा।।
दुनिया जैसे थम सी  गई ,बड़े शहरों  को सुनसान देखा।
न्यूयॉर्क मुंबई हुई लाॅकडाउन, रोम‌ का इतिहास बदलते देखा।।
कोराना की फैल गई महामारी, मानव जाति को संकट में देखा।
 अमेरिका चीन पर आरोप लगाए, महाशक्ति बनने की होड़ में देखा।।
एक देश ने भरी हुंकार,मानव जाति को जागृत करते देखा।
उभरते हुए कदमों से विश्व ने, भारत को विश्व गुरु बनते देखा।।।
     (रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर)


डॉ राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

*फ़र्ज़* -


लम्बी लम्बी डगें भरते हुए आज यथावत लाल कुछ बेचैनी की मुद्रा  में हाँफते हुए चले जा रहे थे। तभी एकाएक मेरी नजर उनकी मुख मुद्रा पर पड़ी पहचानने में देर नहीं लगी क्योंकि वो साप्ताहिक मंडली के जुझारू साथी जो हैं, मैंने राम-राम करते हुए पूछ ही लिया 
"भाई यथावत जी क्या हुआ, कैसे दौड़ लगाए जा रहे हो? कुछ परेशान कैसे दिख रहे हो।"
इतना कहते हुए मैंने हाथ बढ़ाया उनसे मिलाने के लिये।
यथावत जी दूर से ही हाथ जोड़कर बोले-
''भैया आज मुझसे दूर ही रहो। उसी चीनी राक्षस ने हमें घेर लिया है उसे ही टेस्ट कराने जा रहें हैं।' इतना कहते कहते दो तीन छींकें मार दी।
मैं भी घबराकर थोड़ा पीछे हटा 'सोसल डिस्टेंसिंग' करने के लिये और झट से अपना हैंकी मुँह पर बाँध लिया।
प्रक्टिकली तो मुझे भी दूरी बना लेनी थी किन्तु मित्र की इस कंडीशन को देखते हुए तरस आ रहा था। मन भागने को कर रहा था किन्तु दिल सहायता करने को और फ़र्ज़ निभाने को धड़क रहा था।
आखिर धड़कते हुए दिल की आवाज़ सुनी और पूछ लिया, "आख़िर बात क्या है, परेशान कैसे हो? घर से कोई साथ नहीं आया तुम्हें दिखाने के लिये?"
यथावत लाल यथार्थ की धरती पर आ ही गये यानी धम्म से जमीन पर बैठ गए, मैं भी सोशल डिस्टेंसिंग भूल गया और उनको संभालने लगा।
उन्होंने अपनी आँखों से आँसू पौंछते हुए कहा- "भैया तुम हमसे दूर ही रहो, काहे को आफत मोल ले रहे हो मुझे तो जाना ही है ।"
"कैसी बातें करते हो यार। हमारी तुम्हारी तो एक ही बात है। आपस मे सब सुख दुःख आपस में शेयर करते हैं आज जब तुम मुसीबत में हो तब तुम्हें छोड़ दूँ ऐसा हो सकता है क्या?" मैंने ढाँढस बंधाते हुए कहा।
सीरियस मोड़ पर आते हुए अपनी अश्रु धारा को रोकते हुए कुछ मन की बात कहने को हुए 
"भाई क्या बताएं ?" कहते कहते रुक गए।
मैंने कहा "बताओ,भाई क्या हुआ कुछ तो बोलो."
आखिर उनके मुख से वचन इस प्रकार निकले-
आज मेरी बहू ने मुझे बड़ी नेक सलाह दी है उसी का पालन कर रहा हूँ।" कहते कहते फिर रुक गए।
"बोलो बोलो मित्र यथार्थ जी।" मैं यथार्थ लाल को यथार्थजी ही बिल्ट था शुरू से ही।
रुंहासे स्वर में कहने लगे-
"बाबूजी आपको छींके भी आ रही हैं कुछ खाँसी भी है सिंप्टम्स कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं । अब आप तो जानते ही हो घर में बच्चे भी हैं 'वो' भी हैं मुझे तो सबका ध्यान रखना हैं कुछ दिन के लिए बाहर ही कहीं रह लो मतलब आश्रम बगैरह में कुछ हुआ तो सरकार वैसे भी इलाज कर ही रही है।  जब ये सब कुछ ठीक हो जाए तो फिर आ जाना।" कहते कहते फफकने लगे।
उनकी ये बातें सुनकर मेरी भी आँखे भर आयीं कहीं ये स्थिति मेरी भी न हो जाये किन्तु अपने बच्चो पर मुझे भरोसा था।
उनको उठाया रिक्शा बुलाया और अपने घर लाकर बाहर बैठक में लिटा दिया, सावधानीभी पूरी बरती सेनेटाइज भी किया अपने आपको।
फिर व्हाट्सएप पर मिले नम्बरों पर काल किया तो कुछ देर बाद टीम आयी चेक किया कोई सिंप्टम्स न दिखाई दिए फिर भी सैम्पल लिए।फिर भी हिदायत देकर चले गए इन्हें क्वारंटाइन में रखियेगा।
मैंने दस बारह दिन डॉक्टरों के अनुसार ही रखा। रिपोर्ट निगेटिव मेरी भी जान में जान आयीआयी । उन्हें केवल जुकाम खाँसी हुआ था  सो ठीक गया। 
आभार की मुद्रा में हाथ जोड़कर मुझे गले लगा लिया और बोले,
"मित्र इतना बड़ा संकट मोल लेकर तुमने जो मेरी सेवा की हैउसे कभी भी भूल नहीं सकता जब घर ने ठुकरा दिया हो तब मुझे सहारा दी इससे कभी उऋण नहीं हो सकता। केवल धन्यवाद ही कह सकता हूँ।"
"नहीं मित्र कैसी बात करते,हो ये तो मेरा फ़र्ज़ था" 
 लेकिन जाते -जाते  एक  लिफाफा मुझे थमाते हए  बोले -
 "इसे  इसे  डी एम कार्यालय भिजवा देना आज देश पर संकट की घड़ी है शायद  किसी वृद्ध के काम में आ जाये यदि घर वाले निकाल भी दें तो सरकार कुछ कर सके ये मेरा निवेदन पूरा अवश्य कर देना।"
 "निश्चिंत रहो मित्र आज ही भिजवा दूँगा।"
 लेकिन अगले दिन जब सोशल ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समाचार चला तो मैं दंग रहा गया कि यथावत लाल ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिये प्रधानमंत्री राहत कोष में डेढ़ करोड़ दान में दिए।
यथावत लाल वृद्धाआश्रम में लगे टी वी न्यूज सुन रहे थे ये समाचार आत्म संतोष के साथ देश हित कुछ फ़र्ज़ निभा सका ,वहीं उनकी पुत्र वधू सिर लटकाकर इस न्यूज़ को सुन रही थी कि काश मैंने अपने बाबूजी के प्रति फ़र्ज़ निभाया होता ! मैं  भी सगर्व सुन रहा था कि   मुझे  मित्रता का फ़र्ज़ निभाने का  अवसर  मिला।


डॉ राजीव पाण्डेय
(कवि,कथाकार,हाइकुकार,समीक्षक)
1323/ग्राउंड फ्लोर,सेक्टर 2
वेबसिटी ,गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल-09990650570
ईमेल- kavidrrajeevpandey@gmail.com


अंजना कण्डवाल 'नैना'

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       *"नव दुर्गा"*


नव दुर्गा भवानी, हे! शिवानी,
अपने भक्तों का कष्ट हरो माँ।
हाथ जोड़ के तेरे द्वार खड़े हैं,
ममता से अपनी झोली भरो माँ।


दैत्य दलों ने कैसा छल ये किया है,
रक्त बीज ने फिर अवतार लिया है,
हे दुःख हारणी, रक्तबीज नाशनी,
रक्त बीज का तुम नाश करो माँ।


दुश्मन ने कैसा ये प्रपंच रचा है,
दशों दिशाओं में हाहाकार मचा है।
हे! माता चण्डिका,पाप नाशनी,
तुम आ कर धरा से पाप हरो माँ।


कैसा ये दृश्य है कि समय थम गया 
दौड़ता हुआ नसों में रक्त जम गया
हे कष्ट हाराणी, सन्ताप तारणी,
अपने भक्तों का सन्ताप हरो माँ।


मिट्टी है विषैली, पानी है मैला
हवाओं में कैसा ये गरल है फैला,
हे सुख दायनी, संकट निवारणी
मानव जगत का कल्याण करो माँ।
©®


अंजना कण्डवाल 'नैना'


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