भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ कुष्मांडा"*(कुणडलिया छंद)
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*पावन रूप चतुर्थ है, कुष्मांडा शुभ नाम।
आधि-व्याधि से मुक्ति दे, माता है सत्काम।।
माता है सत्काम, सदा कष्टों को हरती।
सहज सृजन ब्रह्मांड, मंद विहँसी में करती।।
कह नायक करजोरि, अष्ट भुजधारी भावन।
देती सुख-समृद्धि, नाम है माँ का पावन।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पेश ए ख़िदमत है इक नई ग़ज़ल


तिरे दर पर खिज़ा के अब कभी मौसम नही होते।
हमारे साथ  जब तुम हो कभी भी गम  नही  होते।


करो  इन्कार  चाहें  तुम  मग़र  ये बात  भी सच है।
बहुत  बेचैन  रहते  हो  कभी  जब  हम  नही होते।


बिछड़ने  का तसब्बुर  भी  बड़ा  तकलीफ  देता है।
तिरे  अहसास  के  साये  कभी  भी कम  नही होते।


कभी  फ़ुरसत  नही  मिलती  हज़ारों काम रहते हैं।
दिलों  में  प्यार  के  लम्हें  कभी  हरदम  नही होते।


बड़े  मग़रूर  है  फिर  भी  रवायत का हुनर भी है।
हमारे  अश्क़  साज़ों  की  कभी  सरगम नही होते।


बहारें  ही  नही  आती  कभी भी कोइ महफ़िल में।
हमारे  पास  जब  तक  अब मिरे हमदम नही होते।


हमेशा  बात  दिल  की  बोल   बेबाक़ी  से  देते  है।
हमारे   साफ़   ज़ेहन  में  तमाम  भरम  नही  होते।


ज़रूरत  गर  पड़े  तो  फिर  इशारों से समझ जाये।
सभी के  आँख के मोती 'अभय' शबनम नही होते।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


नूतन लाल साहू

आव्हान
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब, खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं,अपनी छाती में
छत्तीसगढ़ राज्य,बन गया है
छत्तीसगढ़ी भाषा को, सजाना है
हर खेत को,लहलहाना है
हर हाथ को,काम दिलाना है
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब,खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं,अपने छाती में
विज्ञान की चमत्कार को देखो
घर से निकलना, दुभर हुआ
बम चलाने वाले प्यारे
खुद मर जाते हैं, बेमौतो से
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
जो देश के खातिर मर मिटे
उसे कुर्बानी कहते हैं
पसीने में सुगन्ध,आती है
किसान जब,अन्न बांटते है दूसरों को
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
कुर्बानी देकर जो कुर्बान हुये
वे देश के निशानी,रहते हैं
ये नौजवानों,होश में आ जाओ
अन्नदाता बन जाता है,किसानी में
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो, अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
नूतन लाल साहू


निशा"अतुल्य"

परिवर्तन 
28.3.2020


क्या हुआ है फिज़ाओ को
क्यों कोई बाहर नही 
अपना को ख़ुद ही सवांर 
रही शायद प्रकृति ।


करते अतिक्रमण मानव
क्यों समझ तुम्हें आती नही
बहुत समझाया दिखा क्रोध 
अपना जब तब कभी कभी।


रहो कुछ दिन अब घरों में अपने
जब तक न कर लूं मैं श्रृंगार अपने
समझो ना बेड़ियां तुम इसे 
सम्भल जाओ सुनो मानव
रहना होगा घरों में तब तक 
पर्यावरण न हो जाए शुद्ध जब तक


ख़ुद को संभालो और दूसरों को भी
सिखलाया ये ही प्रकृति ने हमें
करो सम्मान सभ्यता, संस्कृति का 
संभल जाओ मानो बात सभी 
वरना हो जायेगा सारा विनाश यहीं ।



स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।

*कॅरोना संकट से बेदाग जीत कर*
*आना है।*
*कविता लेखक।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*


हे मित्र तू मत ही  कोशिश कर
बाहर  जाने    को।
कॅरोना बाहर  ही  खड़ा आतुर
अंदर   आने   को।।
हवा बाहर  जहरीली   कातिल
सी   हो   गई   है।
सब मिल कर   घर में  रहो बंद
कॅरोना भगाने को।।


पेड़ रहा  सलामत तो पत्ते फिर
से   निकल   आयेंगे।
मिल कर फिर से  ही दुनिया में
भारत के गुण आयेंगे।।
यह दौर   गुज़र   जायेगा बहुत 
कुछ सिखा कर हमें।
बहुत   सावधानी से  कॅरोना से
हम जीत ही जायेंगें।।


हमारी कोशिश और ईश्वर मिल
कर रास्ता निकालेंगे।
पाँव थाम  कर घरों  में मुसीबत
को    जरूर  टालेंगे।।
आप अकेले   नहीं जुड़ा है पूरा
परिवार       आपसे।
इस विकराल  स्तिथि  में जरूर
खुद   को   संभालेंगे।।


पूरी दुनिया  देख  रही   हमको 
हसरत की  निगाहों से।
कैसे बचाते 130   करोड़   उस
अचरज की निगाहों से।।
असफल हो रहे अग्रणी देश इस
विषाणु कॅरोना के आगे।
हमारी नीति नियति को देख रहे
भरसक    निगाहों   से ।।


सफल होंगें अवश्य हम   बन कर
दुनिया के विश्व   गुरु।
विकसित देश भारत के पदचिन्हों
पर करेंगें चलना शुरू।।
भारत की जीवन शैली खान पान
बचायेगा इस दुर्जन से।
कहलायेंगे  सम्पूर्ण  विश्व  में  एक
उदाहरण  श्रेष्ठ   गुरु।।


ये समय है अपनों के संग ही वक्त
बिताने      का।
कुछ नया  सोचने  करने  और कर
दिखाने    का।।
जो अभिरुचियां थी अधूरी  उनको
पूरा  करने का।
इस  कॅरोना  संकट  से बेदाग जीत
कर  आने का।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे मोहन प्यारे हर जीवन के रखवारे
प्राणी मात्र की किस्मत के लेखनहारे
कोरोना का कहर आज बरस रहा है 
मुरलीधर इस आपदा से आप उबारै


दो सदबुद्धि तुम पगलाये मानव को
लक्ष्मणरेखा का कोई न करे उलंघन
समझें जीवन का मूल्य आज अज्ञानी
कि जीवन से बढ़कर नहीं कोई धन


जगतपिता जगदीश नाथ जगभूषण
जगतनारायण जग जन के आभूषण
सत्य हृदय के ज्योति पुंज श्रीनारायण
उज्ज्वल हों भाव मिटें मन के दूषण।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🍁🍁🍁🍁🍁🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
  *"आम लड़कियों की कहानी"*
"शिक्षा के लिए झगड़ती,
अपने माँ-बाप से देखी-
ये आम लड़कियों की कहानी।
लड़का-लड़की के अंतर को,
परवरिश में ही पहचानी-
ये आम लड़कियों की कहानी।
दहेज़ में बिकते लड़के,
जलती लड़कियाँ-
ये आम लड़कियों की कहानी।
लड़कियाँ लड़को से कम नहीं,
फिर भी चाह लड़के की-
ये आम लड़कियों की कहानी।
होगा न मान सम्मान लड़की का घर में,
अपमानित होगी जग में -
ये आम लड़कियों की कहानी।
लड़की ही आधार घर परिवार का,
फिर भी उपेक्षित है-
ये आम लड़कियों की कहानी।
शिक्षा के लिए झगड़ती,
अपने माँ बाप से देखी-
ये आम लड़कियों की कहानी।।"
सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

😌😌 'कोरोना' का रोना 😌😌


मचा हुआ है विश्व में, 
                    देखो     हाहाकार। 
'कोरोना' चहु-दिश रही,
                   अपना  पैर  पसार।


दवा नहीं इसकी अभी,
                    है  बचाव  उपचार। 
हमें   मानना   चाहिए,
                   कहती जो सरकार।


दूर  सभी  से  ही  रहें, 
                   नहीं  मिलाएॅ॑  हाथ।
कुछ दिन घर पर ही रहें,
                  हम अपनों के साथ।


विपदा बड़ी कहें सभी,
                    आयी अबकी बार।
मिलकर लड़ने की सुनो,
                  आज  हमें  दरकार।


'कोरोना'  ने  कर  दिया,
                    चौपट  सारा काम।
क्या खाएॅ॑ मजदूर अब, 
                    चर्चा  है  ये  आम।


ध्यान हमारा है इधर, 
                   कहती  है  सरकार। 
घबराने  की  आपको,
                 तनिक नहीं  दरकार।


जो सक्षम वो भी करें, 
                  इसमें कुछ सहयोग।
जिससे भूखे मत मरें, 
                  जो  गरीब  हैं  लोग।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


* कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां जगदम्बा दया करो
********************
हे मां जगदम्बा दया करो,
हमें सत्य की राह बताओ,
कभी किसी को सताये नहीं,
ऐसी सुमति हमें देना मां।



हे मां जगदम्बा दया करो,
अपनी कृपा वर्षा करो,
हम अज्ञानी  तेरी शरण में,
हमें सही राह बताना मां।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ मां
हो  गई है भूल कोई तो,
राह सही बताओ मां।


कभी किसी का बुरा न करुं,
दया भाव से हृदय भरो,
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,
ऐसी बुद्धि  हमें दे दो मां।


हे मां जगदम्बा  दया करो,
जग में न कोई किसी जीव को,
पीड़ा कभी न पहुंचाएं मां,
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता

श्री हनुमत चरित्र


प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गत दो दिनों में इस दोहे का भावार्थ लिखा जा चुका है परन्तु गो0जी ने श्रीहनुमानजी जी को ही अपना गुरू कहा है।
श्रीहनुमानचालीसा में गो0जी कहते हैं---
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
 श्रीहनुमानजी की कृपा से ही उन्हें प्रभुश्री रामजी के चित्रकूट में दर्शन हुए थे।इस घटना का उल्लेख "गोसाईंचरित" नामक खण्डकाव्य में गो0जी के समकालीन कवि श्री वेणीमाधव जी ने किया है जो गो0जी को अपना गुरू मानते थे।यद्यपि गो0जी ने किसी को भी दीक्षा या मन्त्र नहीं दिया था।
 "गोसाईंचरित"में श्रीवेणीमाधव जी ने उस घटना का कविता के रूप में बड़ा सुन्दर वर्णन किया है जब चित्रकूट में प्रभुश्री रामजी ने गो0जी को दर्शन देकर उनके मस्तक पर तिलक लगा दिया था।यथा,,,
हठि ठानि तेहि पहिचानि मुनिवर,विनय बहु बिधि भाषेऊ।
पद गहि न छाड़उँ पवनसुत, कह कहउ जो अभिलाषेऊ।।
रघुबीर दर्शन मोहि कराइअ,मुनिवर कहेउ गदगद बचन।
तुम जाहु सेवहु चित्रकूट,
तहाँ दरस पैहहु चखन।।
श्री हनुमन्त प्रसंग यह विमल चरित विस्तार।
लहेउ गोसाईं दरस रस बिदित सकल संसार।।
चित चेति चले चित्रकूट चितय,मन मांहि मनोरथ को उपचय।।
जब सोंचहिं आपन मंद कृती,पग पाछे पड़े जु रहै न धृती।।
सुधि आवत राम स्वभाव जबै,तब धावत मारग आतुर ह्वै।।
एहि भाँति गोसाईं तहाँ पहुँचे,किय आसन राम सुघाटहिं पै।।
एक बार प्रदच्छिन देन गये, तँह देखत रूप अनूप भये।।
जुग राजकुमार सुअश्व चढ़े, मृगया बन खेलन जात कढ़े।।
छवि सो लखि कै मन मोहेहु पै,अस को तनु धारि जो जानि सकै।।
हनुमन्त बतायउ भेद सबै, पछिताय रहे ललचाइल ह्वै।।
तब धीरज दीन्हेउ वायुतनय,पुनि दर्शन पैहहु प्रात समय।।
सुखद अमावस मौनिया बुध सोरह सै सात।
जा बैठे तिस घाट पर बिरही होत प्रभात।।
प्रगटेउ राम सुजान कहेउ लेहु बाबा मलय।
सुक बपु धरि हनुमान पढ़ेउ चेतावनि दोहरा।।
चित्रकूट के घाट पर भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसैं तिलक देत रघुबीर।।
रघुबीर छबि निरखन लगे बिसरी सबै सुधि देह की। 
को घिसै चन्दन दृगन ते बहि चली सरित सनेह की।।
प्रभु कहेउ पुनि सो नाहि चेतेउ स्वकर चंदन लै लिये।
दै तिलक रुचिर ललाट पै निज रूप अन्तर्हित किये।।
बिरह ब्यथा तलफत पड़े मगन ध्यान इक तार।
रैन जगाये पवनसुत दीन्हीं दसा सुधार।।
।।सियावर रामचन्द्रजी की जय।।
।।पवनसुत हनूमानजी की जय।।
।।उमापति महादेवजी की जय।।
।।जय जय श्री राधे।।


डॉ राजीव कुमार पाण्डेय*                 (प्रधानाचार्य) किसान आदर्श हॉयर सेकेंडरी स्कूल शाहपुर बम्हैटा, गाजियाबाद

_हम बचेंगे तो देश बचेगा_ 


    🙏🏻 *मार्मिक अपील* 🙏🏻


(विद्यार्थियों, अध्यापकों, कर्मचारियों, प्रधानाचार्यों एवं समस्त नागरिकों से)


 _जीवन अनमोल है इस पर अधिकार है हमारे परिवार का समाज का, देश का।_ 
 इस बहुमूल्य जीवन में कोरोना नामक  वायरस काल बनकर खड़ा है हमारी चौखट के सामने। यह हमें घर से बाहर निकलने को चुनौती दे रहा है, ललकार रहा रहा है, हमारी भुजाएं भी फड़क रही हैं बाहर जाकर उससे दो- दो हाथ करने के लिये, किन्तु इस बार के युद्ध के लड़ने का तरीका बदल गया है, इसे बाहर निकल कर वीरता दिखाने का नहीं बल्कि संयम रूपी अस्त्र की आवश्यकता है। जिसे लेकर 21 दिवस तक बैठना है लक्ष्मण रेखा के अन्दर। बाहर कोरोना आपके इंतजार में बैठा बैठा थक जायेगा भूखा मर जायेगा क्योंकि उसे भोजन इंसानों से ही मिलता है  इंसान  यदि बाहर ही नहीं जायेगा तो वह स्वतः अपनी मौत मर जायेगा।  *हम जब घर बैठकर उसे परास्त कर सकते हैं तो बाहर जायें ही क्यों।* 
हाँ जो लोग सेवा के कार्य में लगे है यदि उन्हें जाना भी पड़े तो हमारा ( *मास्क,सेनेटाइजर,सोशल डिस्टेंसिंग* ) आदि अस्त्रों का उचित उपयोग करते रहें ताकि कोरोना नामक अदृश्य शत्रु हम पर अटैक न कर सके।
इस संकट की घड़ी में हम अपने देश के प्रधानमंत्री जी, प्रदेश के मुख्यमंत्री जी की आज्ञा का शत प्रतिशत पालन करें। अपने घरों में रहते हुए कुछ रचनात्मक कार्य करें जिसमें में आपकी रुचि हो। अपने भाईयों, मित्रों परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करें कि जो समय मिला है घर में रहने का उसका उपयोग करें।
आजादी के समय हमारे क्रांतिकारियों ने महीने,वर्षों जेलों में गुजारे, कालापानी की सजा काटी, हमारी रक्षा के लिए । आज फिर देश पर 'कोरोना वार' का खतरा जिससे लड़ने की जिम्मेदारी सारे देश वासियों की है। हम सब भारतवासी  अपने प्रधानमंत्री जी के वचन का पालन  करते हुए घरों में रहें और इस युद्ध पर विजय को प्राप्त करते हुए इस कोरोना नामक दुश्मन को हरायें, और अपनी सम्पूर्ण मानवता को बचायें। 
 *ये हमेशा याद रखें हम बचेंगे तो देश बचेगा।* 
जयहिन्द
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻


 *डॉ राजीव कुमार पाण्डेय* 
               (प्रधानाचार्य)
किसान आदर्श हॉयर सेकेंडरी स्कूल शाहपुर बम्हैटा, गाजियाबाद


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

कुण्डलिया


क़ुदरत  के  इस  कहर  से,  सब  जन रहो सचेत।
जीवन   ये   अनमोल   हैं,   नही    बनाओ   रेत।
नही   बनाओ  रेत,  रहो   सब   घर    के   अंदर।
देश   रहे   खुशहाल,   बने    ये    उपवन   सुंदर।
कहत 'अभय' समुझाय, सुधारो खुद की फ़ितरत।
तन  मन  रखिये  साफ़, कष्ट  नहि   देगी  क़ुदरत।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

वारः शुक्रवार
दिनांकः २७.०३.२०२०
विषयः नवरात्रि
विधाः स्वेच्छिक
शीर्षकः 🌺🙏नवदुर्गे! जागो पुनः🙏🌺
नवदुर्गे   जागो   पुनः  अवतार  ले जग   त्राण कर,
घिरा   है  चहुँओर  से   आक्रान्त जग  उद्धार कर। 
दानव बहुत बहुरुप में जग भ्रमित हैं विकराल बन।
हैं  प्रलय  बन  संसार  फिर आतप्त  मानव तार दे। 
जगदम्ब  तू अवलम्ब बस  आतप हरो  संताप का,
वरुणास्त्र धर भू शान्त कर कोरोना दावानल बना।
जगतारिणी  ममतामयी  हाहाकार  है फैला जगत् ,
महामारी  है ये  संक्रमण,रक्तबीज बनकर फैलता।
हे  कालिके  कर  दीर्घतर  जिह्वा स्वयं आपद घड़ी,
मानव जिंदगी तू ही बचा महामारी है कपटी  खली।
महिमा तेरी करुणामयी चन्द्रघण्टा तुझे शत शत नमन।
सुन गर्जना तारक असुर हर रक्षण करो खुशियाँ चमन।
महाशक्ति माँ हे वैष्णवी शारदे शिव भाविनी रक्षा करो,
क्रन्दन सुनो आहत मनुज हर रोग जग जन राहत भरो।
कात्यायनी जगदम्ब   तू विकराल  तनु महाकाल बन,
हे शैलजे ब्रह्मचारिणी कर कृपाण धर रण संहार कर।
हे कामाक्षि माँ बगलामुखी रुद्राक्षि भव  जग  तार दे,
कमला शिवा माँ शीतले कोरोना कीटाणुओं को मार दे।
विन्ध्याचली  तारामुखी  हर क्लेश  मानव जाति का,
नवरात्रि में अर्चन भजन कीर्तन नमन करूँ हरिप्रिया।
गिरिजा भवानी सिंहवाहिनि जग मंगला स्वाहा स्वधा,
स्वस्ति कर अरि प्राण हर परित्राण गौरी पूज्या श्रिया।
दे रूप धन जन सौख्य को , यश धीर साहस मान दे,
माँ रिद्धि दे सब सिद्धि जग हो हरित जग वरदान दे।
रह   गेह  कर एकान्त में माँ नवरात्रि का पूजन करें,
फिर  से  जगत् आनंदकर सुख सम्पदा  फूले  फले।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


आभा दवे*

सभी को मेरा सादर नमस्कार🙏🙏


सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ🙏🙏



हाइकु- करोना वायरस पर
---------------------------------


1)  पवन चले
लिए करोना संग
डरे सभी ही ।


2) मुक्त जीवन
भय के साए छुपा
साँसे ले रहा ।


3) प्रकृति कहे
न करो खिलवाड़ 
 प्रभु से डरो ।



4) फैलता रोग
   अपनो से बचते
    फिरते लोग ।


5)विकट स्थिति
 द्वार बंद सभी के
  पुकारें किसे ?


6)जीवन दीप
  जलता रहे सदा
   सभी का यहाँ ।


7) जीवन आस
    बस उसी के पास 
    वह है प्रभु ।



*आभा दवे*


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ चंद्रघंटा"*(कुण्डलिया छंद)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
*कल्याणी फल दायिनी, तृतीय रूप महान।
सरला शांति सुरूपिणी, काया कंचन भान।
काया कंचन भान, चंद्रघंटा नाम कहो।
मन में रख विश्वास, परम पूजन भाव गहो।।
कह नायक करजोरि, करे पावन मन-वाणी।
हरती हर संताप, कृपा करती कल्याणी।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


नूतन लाल साहू

विनती
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू, मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार, मेरी मइया
मां के दरबार में
जो भक्त सर झुकाते है
वो रोते रोते, आते हैं, और
हंसते हंसते जाते है
तेरे चरण में,मेरी जिंदगी
उजियार, मेरी मइया
बिगड़ी बनाने, आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
मां के दरबार में, जो
सच्चे मन से,आते है
मां के दरबार में, जो
हाजिरी लगाते है
कर दे करम,तू मुझमें
इक बार मेरी मइया
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
इक बार मेरी मइया
चार दिन की,जिन्दगी
कहीं देर न,हो जाये
कब आओगी,मइया
हम विदा न हो जाये
कहां है,अंबे मइया
यही सब,पूछते है
तेरे बिन,मन घबराये
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू,मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
नूतन लाल साहू


       डा.नीलम

*लक्ष्मण रेखा*


मानकर स्वयं को लक्ष्मण
बना लो सुरक्षा कवच
स्वयं ही अपने इर्द-गिर्द
मानकर लक्ष्मण रेखा


है मांग समय की कर लो
अपने आप को थोड़े दिन
अपने लोगों के लिए ही
अपने घर में बंद


है कलियुग रावण नहीं है
मगर है कोरोना निशाचर असूर ,अदृश्य होकर कर रहा हर जगह वो वार


देवघरों के करके पट सब बंद,देव भी सब आ गये
करने सुरक्षा और रक्षा धरा की,अपने गणों के संग


आ गये सब धरती पर
पहन के वरदियां कर्म की
कर रहे मुस्तैदी से 
दिन रात सेवा देशवासियों की


पर सीमाओं में वो भी बंधे पहुँच ना सकते हर ओर हमको ही करने पड़ेंगे
बचने के चंद उपाय


राम और लक्ष्मण सरीखे
कर रहे हैं युद्ध कोरोना असूर से अपनी-अपनी हद में
अब अपने लिए स्वयं ही खींच लें लक्ष्मण-रेखा आप


       डा.नीलम


सुनीता असीम

हो मुहब्बत से भरी दुनिया मगर होगी नहीं।
बिन अंधेरे से लड़ें अब तो सहर होगी नहीं।
***
तब खुदा भी साथ होगा जब भरोसा खुद पे' हो।
गर नहीं विश्वास तो उसकी नज़र होगी नहीं।
***
हो रहा इम्तिहान अपना सोच लो ऐसा सभी।
बात सोचे यूँ बिना अपनी गुजर होगी नहीं।
***
जंग जीते हैं कई भारत के वासी हम सदा।
इस महामारी से जीते बिन बसर होगी नहीं।
***
जब खुदा भी साथ औ राजा भी अपने साथ हैं।
वक्त पे ऐसे हमें अपनी फिकर होगी नहीं।
***
हाथ भी धोलो सभी कर लो नमस्ते दूर से।
रोक लेंगे गर इसे फिर ये सफर होगी नहीं।
***
गर नहीं बढ़ने दिया कर तंग इसका रास्ता।
हम रहेंगे खुश तभी ये भी अमर होगी नहीं।
***
सुनीता असीम
27/3/2020


संजय जैन बीना(मुम्बई)

*दूर रहो भाई*
विधा: गीता


किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।


कहाँ हम मेल मिलाप की,
बाते करते थे।
अब उन्ही से दूर रहने को,  
हम ही कह रहे है।
सचमुच में लोगो ये,
कैसा दौर आ गया है।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।


कभी सोचा न होगा लोगे ने,
मंदिरों पर भी रोक लगाई जाएगी।
संकट में याद आने वाले,
भगवानको भी रोका जाएगा।
कर न सके अब पूजा प्रार्थनाएं,
संकटमोचन के दरबार में।
अब कलयुगमें क्या क्या होगा,
आने वाले इस दौर में।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।


लगता है ईश्वर रूठ गये,
इन पापीयों की करने से।
कितना अत्याचार कर रहे,
उनकी बनाई दुनियाँ पर।
तभी स्वंय भी दूर हो रहे,
मानो वो अपने भक्तों से।
नही करानी पूजा भक्ति,
अब इन डोंगी इंसानों से।।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरा रहा।


किसी को क्या पता था,
की ऐसा भी दौर आएगा।
जिसमें इंसान इंसान से,
मिलने को कतरायेगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
27/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

विश्व हताहत जिससे सारा
नहीं सूझ रहा है कोई उपाय
महामारी घोषित कर दीन्ही
खो गया है सबका उत्साह
समझ के नजाकत वक्त की
लॉकडाउन कर दीन्हा देश
हर नुकसान उठाने को उद्यत
व्यक्ति मात्र का न उखड़े केश
फिर भी बनकर के अज्ञानी
क्यों लोग उड़ा रहे उपहास
क्या जब लाशों के ढ़ेर लगेंगे
मानव सभ्यता का होगा ह्रास
तब सुधरे तो क्या सुधरे तुम
जब अपनों को ही खो देंगे
अपनी ही लापरवाही से तुम
राष्ट्रीय स्वरूप ही बिगाड़ देंगे
राष्ट्रीय अध्यक्ष शत्रु नहीं जो
रखना चाहते घर मैं तुम्हें कैद
रहें सुरक्षित और स्वस्थ्य तुम
कर रहे है व्यवस्था वो वैदय
बार बार कर रहे अपील वह
मत जाओ तुम घर से बाहर
बनाओ परस्पर दूरियां तुम
नहीं रहे खतरा नहीं रहे डर।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


अंकिता जैन ' अवनी' (लेखिका/ कवयित्री) अशोकनगर मप्र

"परिचय देना होगा"


परिस्थिति विकट है,
खड़ा बड़ा संकट है।
खौफ छाया ज़हान पर,
आन पड़ी है,जान पर।
सब मुरझाये चेहरे लेकर,
 सहमें- सहमें रहते हैं।
धीरज बांध इस स्थिति में,
एक दूजे से कहते हैं।
गर जीतना है ये जंग हमें,
तो सावधान रहना होगा।
अपने धैर्य और संयम का,
अब परिचय देना होगा।
आज जो कुछ दिन,
घर में बिताए जायेंगे,
यही दिन हमें,
इस महामारी से बचायेंगे।
स्वंय सुरक्षित रहने को,
थोड़ा आर्थिक संकट सहना होगा।
समय की मांग कहती हैं,
हमें अपने हौसले का,
 बस परिचय देना होगा।


अंकिता जैन ' अवनी'
(लेखिका/ कवयित्री)
अशोकनगर मप्र


एस के कपूर श्री* *हंस ।बरेली।*

*कॅरोना से बचो और बचाओ*
*क्योंकि बचाव ही जिन्दगी है।*
*कविता।छन्द मुक्त(तुंकान्त)*


बाहर जायोगे तो जिंदगी
भी   चली   जायेगी।
फिर तेरी पहुंच के बाहर
निकली   आयेगी।।
अंदर जीवन  पर   बाहर
तो   मौत  खड़ी   है।
फिर जिंदगी  दुबारा तुझे
नहीं  मिल   पायेगी।।


एक ही टास्क हो तुम्हारा
मास्क का लो सहारा।
खाँसी , सांस, बुखार  के
लक्षण करें बेसहारा।।
सामाजिक   दूरी  में  ही
छिपी  है  जिन्दगी।
धोते रहो  हाथ  हर बार
फिर तुम   दुबारा।।


यह वैश्विक महामारी है
बहुत दुराचारी है।
एक वायरस से  दुनिया
की   लाचारी  है।।
साफ   सफाई    अच्छा
भोजन नींद हैं मंत्र।
संकल्प   संयम   से  ही
भागेगी बीमारी है।।


लॉक डाउन, कर्फ्यू  को
को मानें पूरा देश।
ये अजब  बीमारी आई
लेकर दानव भेष।।
घर के  बाहर खींच लो
एक लक्ष्मण रेखा।
पार जो   करोगे उसको
रहे न जीवन शेष।।


इक्कीस दिन के विराम
से टूटेगा चक्र।
स्तिथि होगी नियंत्रण में
न  होगी  वक्र।।
केवल एक  ही  उपाय है
बचाने मानवता को।
अन्यथा अवशेष में मिलेगा
हर तर्क वितर्क।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस ।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


संजय जैन मुंबई

*सच्चे माता-पिता बनो*
विधा : लेख  


आज का विषय बहुत ही संवेदनशील है। जिसकी आज हर परिवारों को बहुत ही जरूरत है ।की आप कैसे सच्चे और अच्छे माता पिता बने। जिससे
आपके परिवार का वातावरण आपके घर के अनुकूल रहे।
 पुत्र नाटक में जाए, सिनेमा में जाए, गलत रास्ते पर चल पडे,भक्ष्य-अभक्ष्य का खयाल न करे तो आज लोग रोकते तक नहीं हैं और कहते हैं कि समय की हवा है। यदि पुत्र पूजा नहीं करे, उपाश्रय में नहीं जाए तो कहेंगे कि इस पर अध्ययन का बोझा अधिक है। आप सम्यग्दृष्टि माता-पिता हैं न? आप हितैषी संरक्षक होने का दावा करते हैं न? आप कैसे उनके हितैषी हैं? कैसे संरक्षक हैं? आपने कभी यह जांच की है कि आज उनके कानों में कितना पाप-विष भरा गया है? आधुनिक वातावरण,दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा आपकी संतान में आज कितने कुसंस्कार पैदा किए जा रहे हैं? यदि इन सब बातों का ध्यान न रखो, इनकी जांच न करो तो आप कैसे उनके हितैषी हैं?


संप्रति राजा, राजा बनकर हाथी पर सवारी कर के माता को प्रणाम करने आए। तब उनकी माता ने कहा, ‘मेरे संप्रति के राजा बनने की मुझे खुशी नहीं है, परन्तु यदि वह धर्म की प्रभावना करे तो मुझे अपार हर्ष होगा।’ ऐसी होती है माता। और इसी राजा संप्रति ने सवा लाख मन्दिरों का निर्माण करवाया। आज की माताएं क्या कहती हैं? माता-पिता तो सब बनना चाहते हैं, बच्चों की अंगुली पकडकर सबको चलना है। अपनी आज्ञा भी सब मनवाना चाहते हैं, लेकिन ऐसी इच्छा करने वालों को स्वयं में पितृत्व एवं मातृत्व के गुण तो लाने चाहिए न? माता-पिता यदि सही मायने में माता-पिता नहीं बनेंगे तो पुत्र कभी सुपुत्र नहीं बन सकते। मैं उन्मत्त पुत्रों का पक्षधर नहीं हूं, परन्तु जैसे पुत्रों को सचमुच सुपुत्र बनना चाहिए, उसी तरह माता-पिता को भी सच्चे माता-पिता बनना चाहिए।


*जय जिनेन्द्र देव की*
संजय जैन (मुंबई )
27/03/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कर्म पथ पर आगे बढ़ तू मैं हूं मानव साथ तुम्हारे
परिणाम नहीं बस में तेरे वह दूंगा मैं तुमको प्यारे


नर ही नर का दुश्मन विष वृक्ष का करके रोपण
प्रकृति से खिलबाड़ कर मुझ पर करे दोषारोपण


मैं जीवन का रखवाला हूँ जीव मात्र है मेरी संतान
जिनका अटल विश्वास है मैं रखता हूँ उनका मान


सदाचरण का करो पालन कोई न व्याध सतायेगी
कर्तव्यमार्ग पै बढ़ मनुज मंजिल तुम्हें मिल जायेगी।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🍁🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"देश-प्रेम"*
"देश प्रेम में ही साथी,
शहीद हुए-
वीर अनेक।
देश प्रेम में ही तो साथी,
सीमा पर बैठे-
सैनिक अनेक।
देश पर आये जब जब ,
विपत्ति कोई-
हम सभी हो जाते एक।
कोई भी जाति धर्म का,
भेद नहीं-
हम सब भारत वासी है-एक।
अनेकता में एकता ही तो,
हमारी हैं पहचान-
सदा मिल जुल कर रहे एक।
मिल जुल कर रहना साथी,
नफरत का नहीं-
कोई काम।
देश प्रेम में हीं जीना ,
देश के लिये मरना-
यही है-पैग़ाम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता


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