सत्यप्रकाश पाण्डेय

पूर्ण करो...............


संकट आन पडों है कृष्णा
अब हर व्यक्ति है भयभीत
कृपा करो हे बृज ठकुरानी
या संकट से हम जायें जीत


मिलें अनुग्रह युगलछवि कौ
फिर कोरोना की क्या मजाल
उबर जायेंगे निश्चय पीड़ा से
श्रीबांकेबिहारी काटेंगे जाल


तुमसे बड़ा कौंन चिकित्सक
आप दवा नहीं किस रोग की
शमन करो कृष्णा कोरोना का
गोविंद दरकार है संयोग की


आज तेरे भक्त व्यथित हो रहे 
टूट न जाये मधुसूदन विश्वास
करे है सत्य प्रार्थना जगदीश्वर
पूर्ण करो हर मानव की आस।


युगलरूपाय नमो नमः💐💐💐💐🍁🍁🍁🍁🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ गई मां................


असुर मर्दनी मंगल करनी
सन्तजनों के संकट हरनी


जीवन रक्षक दुख भंजक
अपने भक्तों की  संरक्षक


मोहमाया से अलिप्त हिय
वात्सल्य भरा जीवन प्रिय


हर विपदा से देती हैं त्राण
निज भक्तों में बसते प्राण


नाम मात्र सेअमंगल भागें
सुप्त भाग्य मनुज के जागें


अपनी संतति की  खातिर
भीड़ गईं  देत्यों से जाकर


निरंकार है मां की ज्योती
भक्तहिय की अनुपम मोती


जिनके दर्श मात्र से व्यक्ति
पाते है वे अवर्चनीय शक्ति


ब्रह्मा व विष्णु करें अर्चना
व्यर्थ नहीं जाये अभ्यर्थना


भुवनेश्वरी हे मां बृजेश्वरी
गौरी शारदा मां परमेश्वरी


आ गई मां सुन कर पुकार
हर विपत्ति का होगा संहार


महिषासुर रक्तबीज बचेना
आ गई मां है क्या कोरोना?


जय माँ बृजेश्वरी🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर (हरियाणा

होता नहीं अमीर.... 


खाली हाथ ही रहे, 
बदली नहीं लकीर. 
दुआ देता रह गया, 
राह चलता फ़क़ीर. 
कैसे होगा आगे बसर, 
नैनों से गिरता नीर. 
इंतज़ार में गुजर गया, 
दिल से रहा मैं धीर. 
तालीम तो पूरी मिली, 
न मिली नौकरी अधीर. 
हाल चलता उम्र -रफ्ता, 
अनहोनी लगी हक़ीर^.   (छोटी )
हौसलों की कमी नहीं, 
पुरानी हुई तक़दीर.
रात गहरी छा गयी, 
होती नहीं सवीर ^.  (सुबह )
बेरंग हर होली लगे, 
ख़ुश्क लगे अबीर. 
कोई गलत कैसे करुँ, 
गवाही ना दे ज़मीर. 
तंगहाली का गरीब "उड़ता ", 
कभी होता नहीं अमीर. 



स्वरचित मौलिक रचना.



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )


डॉ० धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक'  अल्मोड़ा, उत्तराखंड ।

‌ विषय - देवी स्तुति 
विधा - शिखरिणी छंद


न जानूं मैं माता, नमन तव पूजा सुमिरना।
न जानूं मैं मुद्रा, कथन भव बाधा विधि मना। 
न जानूं मैं तेरा, अनुसरण माता विमलिनी। 
कलेशा, संकष्टा, सकल दुख हारी कमलिनी।।


सुकल्याणी माता, विरत सत पूजा विमुख मैं। 
न धर्मी-कर्मी मां, अलस कुविचारी अपढ़ मैं।
क्षमा प्रार्थी माता, विमल मन माता करुणिका।
सदा छाया देना, सकल दुखनाशी दयनिका।।


भवानी रुद्राणी, जगत दुख हारी मधुमना।
शिवानी कल्याणी, भव-विभव तारी सतमना।
नहीं मैं हूं माता, विमल मन धारी सरलता।
अधीरा कुंठा से, ग्रसित मन मेरा चपलता।।


शरण्या माता तू, सब विपति हारी कमलिनी।
दया आर्द्रा धारी, अधम मन मैं माँ विमलनी।
कुपूता मैं माता, सरल तुम माता शिवमयी।
न मोक्षापेक्षा मां, जगत जननी मां सुखमयी।।


जटाधारी शंभू, जगतपति संगी दुखहरी।
कपाली कुष्मांडा, सकल गुण धारी सुख करी।
अधर्मी अन्यायी गरल मन मैं हूं शरणिनी।
अज्ञानी हंकारी, चरण रज माता शिखरिणी।।


नवारात्री माता, नव नव रुपाणी नवधरी।
हिमाला पुत्री मां दुख विदलिनी मां मधुकरी।
अधीरा अन्यायी, शरण तव पावे दुखहरे।
दया तेरी पावे, सहज मन ध्यावे सुखधरे।।


शिवानी कौमारी, शशिमुखि सुशोभा सुधरिणी।
 सुशोभा धारी मां, सकल सुख कारी विचरणी।
अनेका रूपाणी, करुण मन रूपा शिवमयी।
शिवारूपा माता, निज चरण सेवा मधुमयी।।


 सुशांतीकारी मां, सुखदयिनि माता जगत मां।
नवारात्री पूजा, सुखदकर दात्री सुखद मां।
छिमा देना माता, मन थिर न अम्बा दुखमना।
भवानी शैलानी, भव-जलधि तारी सुखमना।।


डॉ० धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक'
 अल्मोड़ा, उत्तराखंड ।
मोबा० 9410700432


जया मोहन प्रयागराज

लघुकथा
मदद
शीनू का मकान बन रहा था।उसे यह देख करआश्चर्य होता कि महिला मज़दूर सिर पर एक साथ बारह ईट रख कर तिमंजिले तक पहुचाती है।
उसने देखा एक गर्भवती रेज़ा सिर पर बारह ईट रख कर उठने की कोशिश कर रही है।चाह कर भी उठ नही पा रही है।शरीर पसीने से तरबतर हो गया।शीनू को दया आ गयी।शीनू पास जा कर बोली चलो मैं मदद कर दू तुम्हे उठने में।वह ध्यान से शीनू को देखने लगी।उठाने के लिए शीनू ने हाथ आगे बढ़ाया।तभी उसने हाथ जोड़ कर कहा रहने दीजिए।आप दया दिखा कर मुझे बैशाखी पकड़ा रही है।हमे तो पेट पालने के लिये यही काम करना है।हर जगह मुझे कौन सहारा देगा।उसने पूरा जोर लगाया।वह उठ कर धीरे कदमो से आगे बढ़ गयी।उस मेहनतकश ओरत के स्वाभिमान के आगे शीनू नत मस्तक हो गयी।


स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज


आचार्य गोपाल जी बरबीघा शेखपुरा बिहार

सीताराम सीताराम , सीताराम कहिए
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए


मुख में मास्क तेरे, ग्लब्स तेरे हाथ में,
 दूरी बनाकर रखना, अपनों के साथ में,
 साबुन से बार-बार, हाथ धोते रहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए ।
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए ।।


किया जो गुमान तो फिर, जान तेरा जाएगा,
तू तो प्यारे जाएगा ही, सबको लेकर जाएगा,
मन को तू बांध प्यारे, बाहर ना निकलिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए,
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए ।।


जिंदगी की डोर देखो, है तेरे हाथ में,
चाहे चटकाओ इसको, या रखो पास में,
घर में रहो निर्विवाद, राजनीति ना करिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए,
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए ।।


नाता रख अकेले से, दूजा नाता तोड़ दे,
दूरी रख सबसे तू, जिद्द अपनी छोड़ दे,
घर में ही अपना काम, आप करते रहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए,
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए,
जब तक कोरोना है, घर ही में रहिए,



आचार्य गोपाल जी 
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


कैलाश सोनी उर्फ सोनू कामा भरतपुर राजस्थान 

चीख रही दीवारें सारी रोता कोना-कोना है
हाहाकार मचा धरा पर हे प्रभु क्या होना है
सन्नाटा सा पसर गया है गली मोहल्ला सड़कों पर
क्या अब भी विश्वास नहीं है धर्म ग्रंथ के पन्नों पर
अहिंसा परम धर्म का नारा वेदों की सच्ची वाणी है
पर जल्लादों की करनी ऐसी खुद की रची कहानी है
इंसा की करतूत देख कर दानव भी हैरान हुए
नोचने वाले इस कुदरत को सबसे बड़ी शैतान हुए
 मौत कर रही नाच भयंकर  अभी तो तांडव होना है
 मायूस जिंदगी ना हो जाए ये शैतान कोरोना है


चमक उड़ी है चांदी की सोने पर भी काई है
अर्थव्यवस्था  जग की बिगड़ी कैसी आग लगाई है
गरीब बेचारा घर में ढूंढे आना पाई आलों में
बंद पडे हैं लंगर भी अब मंदिर और दीवालों में
मानवता की आवाज उठाओ भर के पूरे जोश में
भूखा ना सो जाए कोई अपने आस पड़ोस में
अभी तूफ़ान शुरू हुआ है खौफ का मंजर बाकी है
साहिल बहुत दूर है सोनू अभी समंदर बाकी है
पुलिस डॉक्टर हेल्पर दिल में इनको हमें संजोना है
मायूस जिंदगी ना हो जाए यह शैतान कोरोना है


संकट में जो आगे आता देशभक्त कहलाता है
भला देश का जिसमें हूं होता राग वही वो गाता है
 नजर बंद हो जाओ घर में बाहर भूल के जाओ ना
घर में हो प्रवेश तो पहले  सैनिटाइज करवाओ ना
 उपाय मात्र बचाव है इसका तुमको  ज्ञात कराता हूं
बारम्बार हाथ का धोना तुमको याद कर आता हूं
 हे कुदरत के देव तुम्हारी करें प्रार्थना हम लाचार
शांत करो प्रकोप तुम्हारा रहे निरोगी सब संसार
केवल राम सहारा है अब जो चाहेंगे वो होना है
मायूस जिंदगी ना हो जाए ये शैतान करोना है



आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मैं कवि एवं साहित्यकार कैलाश सोनी उर्फ सोनू कामा भरतपुर राजस्थान 


बाबू लाल शर्मा *विज्ञ* बौहरा - सिकंदरा, दौसा, राजस्थान,

काव्य रंगोली काव्योत्सव २०७७
 प्रतियोगिता हेतु रचना...
आ. दादा अनिल गर्ग जी🙏
विधा.. छंद गीत १६ मात्रिक
रचना कार.... बाबू लाल शर्मा बौहरा
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान


🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
. *जीत हुई पर रामानुज की*
.     १६ मात्रिक छंद गीत 
.             🤷🏻‍♀🦅🤷🏻‍♀
काल चाल  कितनी भी खेले,
आखिर होगी जीत मनुज की
इतिहास लिखित पन्ने पलटो,
हार  हुई  है  सदा दनुज की।।


विश्व पटल पर काल चक्र ने,
वक्र तेग जब भी दिखलाया।
प्रति उत्तर  में तब तब मानव,
और  निखर नव उर्जा लाया।
बहुत   डराये  सदा   यामिनी,
हुई  रोशनी  अरुणानुज  की।
काल चाल कितनी  भी  खेले,
आखिर,......................।।


त्रेता में तम बहुत  बढा जब,
राक्षस  माया  बहु  विस्तारी।
मानव  राम  चले  बन प्रहरी,
राक्षस  हीन  किये  भू सारी।
मेघनाथ  ने   खूब   छकाया,
जीत हुई  पर  रामानुज की।
काल........... ....   ,...,...।।


 द्वापर  कंश   बना  अन्यायी,
अंत हुआ आखिर तो उसका।
कौरव  वंश   महा   बलशाली,
परचम लहराता  था जिसका।
यदु कुल की भव  सिंह दहाड़े,
जीत   हुई   पर  शेषानुज की।
काल....... ..... ....  .........।।


 महा  सिकंदर  यवन   लुटेरे,
अफगानी गजनी  अरबी तम।
मद मंगोल मुगल खिलजी के,
अंग्रेजों  का  जगती   परचम।
खूब  सहा  इस  पावन रज ने,
जीत  हुई  पर भारतभुज की।
काल................  ..........।।


नाग कालिया असुर शक्तियाँ,
प्लेग   पोलियो  टीबी  चेचक।
मरी    बुखार   कर्क   बीमारी,
नाथे   हमने   सारे   अनथक।
कितना  ही   उत्पात   मचाया,
जीत हुई  पर  मनुजानुज की।
काल.............  ..... ........।।


आतंक   सभी   घुटने   टेकें,
संघर्षों   के   हम   अवतारी।
मात   भारती   की   सेवा में,
मेटें   विपदा   भू   की सारी।
खूब   लड़े   हैं   खूब  लडेंगें,
जीत रहेगी  मानस भुज की।
काल........ ...... ...........।।


आज मची  है विकट  तबाही,
विश्व  प्रताड़ित  भी  है  सारा।
हे विषाणु अब शरण खोजले,
आने   वाला   समय   हमारा।
कुछ खो कर मनुजत्व बचाये,
विजयी  तासीर  जरायुज की।
काल........ ...................।। 
.          👀👀👀
✍©
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा - भवन   ३०३३२६
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान, ३०३३२६
🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞


राजेंद्र रायपुरी

😌 है हाथ जोड़ विनती यारो 😌


बाज़ार      गर्म     अफ़वाहों   का,
है    बाॅ॑ध   सब्र  का   तोड़    रहा।
संकल्प   लिया   था    हमने   जो,
जन   मुख  है  उससे  मोड़   रहा।


जब  प्रबल  उदर   की  चिंता  हो, 
तब   देश-धर्म   का  ध्यान   कहाॅ॑।
जो  भूख   न  पल  को  सह  पाए,
देगा   वो   फिर   बलिदान   कहाॅ॑।


कुछ   यज्ञ   भंग   को   आतुर  हैं।
भेज़ा    ही    जिनका   शातिर  है।
चाहत   प्रयास  मत  होय  सफल,
उठ   रहे   कदम  इस  ख़ातिर  हैं।


 समझो  -  समझो    ऐ   नादानों।
मुखिया  का   तुम   कहना  मानो।
मर     जाएॅ॑गे     सब    ऐसे     में,
तुम   देश   नाश   की  मत  ठानो।


अफ़वाहों   पर   दो   ध्यान  नहीं। जाएगी    बिल्कुल    जान   नहीं।
बस  धैर्य   तुम्हें   कुछ  रखना  है, 
तुम     होगे     हालाकान     नहीं।


तुम  चिंतित  हो  सब  जान   रहे।
कुछ  हुई   कमी   यह  मान   रहे।
पर   विपदा   है   ये  बहुत   बड़ी,
 इसका   भी   तुमको   ध्यान  रहे।


मत   लक्ष्मण   रेखा    पार  करो। 
मिल  सब  विपदा  पर  वार करो।
है    हाथ    जोड़    विनती   यारो,
न    देश    का    बंठाधार    करो।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"लग रहा कोरोना आज भयानक"


कई दिनोँ से यही सुन रहा
कोरोना का पैर पसर रहा 
चला चीन से इटली पहुँचा
अबतो वह सर्वत्र फल रहा।


अपने को विष्णु कहता है
है विषाणु अति भयानकता है
डरे हुए सारे जग मानव
खतरनाक दानव लगता है।


दौड़-दौड़कर मार रहा है
मानव तन को काट रहे
तोड़ रहा जबड़े से हड्डी
रक्त जीभ से चाट रहा है।


घर में छिपा हुआ है मानव
अति भयभीत हुआ अब मानव
जान बचाना मुश्किल दिखता
कंपित दिल का लगता मानव।


जैविक युद्ध चला घनघोरा
दृश्य भयानक अति चहुँओरा
प्राण बचाना कठिन लग रहा
सब विह्वल व्याकुल हर ओरा।


संयम नियम यही आधारा
धरो धीर तो उतरो पारा
बनकर दीन पुकारो ईश्वर
अगर चाहते हो उद्धारा।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


कुमार नमन  लखीमपुर-खीरी

ये विश्व युद्ध लड़ना होगा!


शत्रु सामने खड़ा देखिए, 
हैं विकराल रूप धर कर।
ये महा युद्ध हमको सबको,
घर मे रहकर लड़ना होगा।


न शस्त्र काम कुछ आएंगे,
बल का भी कोई काम नही।
अपनी बुद्धि के बल से ही,
हमको शत्रु से लड़ना होगा।


हाथों को बार-बार धुलकर,
हम सबको दूर-दूर रहकर।
मोदी जी की हर बातों का,
हमको पालन करना होगा।


यह सारी पृथ्वी पर हमें पुनः,
इतिहास सुनहरा लिखना हैं।
इस महामारी से जीत युद्ध,
फिर विश्व गुरु बनना होगा।


-कुमार नमन
 लखीमपुर-खीरी


गीता चौबे "गूँज"                राँची झारखंड

कोरोना दोहे
**********
डर कोरोना का यहाँ, फैल गया चहुँ ओर।
ध्यान सजगता का रखें, मचा हुआ है शोर।।


भयाक्रांत होना नहीं, करें शांति से काम।
सावधान होकर रहें, तन को दें आराम।।


बाहर से आएं कभी, पहले धोएं हाथ। 
दूर वायरस को करें, दृढ़ इच्छा के साथ।। 


घर के अंदर ही रहें, रखना है यह ध्यान। 
सफल बनाएं हम सभी, कोरोना अभियान।। 


हो पूरा सहयोग तो, संकट होगा दूर। 
इस कोरोना की कमर, हो जाएगी चूर।। 
              गीता चौबे "गूँज" 
              राँची झारखंड


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"संकल्प में समाधि की तलाश"


आँसुओं से मधुर विश्व बनता रहे
विश्व में आत्म का बोध होता रहे
आत्म ही सत्यमय सच्चिदानंद है
विश्व में सत्य का वृक्ष उगता रहे।


शुष्क में भी सरसता की धारा बहे
पर्वतों में हिमालय की पिघलन रहे
आज का आदमी चेतना शून्य है
कल का मानव महाप्राण बनकर बहे।


हस्तियों का दनुज बह निकलता रहे
शक्तियों में क्षमा का विचरना रहे
आज का विश्व मानव भले हो दुःखी
कल का मानव चमकता चहकता रहे।


दुर्भाग्य मानव के पद-तल रहे
सबका सौभाग्य स्थिर अचल दल रहे
भाग्य ही कर्म अरु कर्म ही भाग्य है
विश्व के भाग्य में शुभ सुखद कल रहे।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


सुनीता असीम

चोट दिल पे तेरे पड़ी होगी।
जब रही हिज्र की घड़ी होगी।
***
जिस वजह से अलग हुए हो तुम।
बात बेहद रही बड़ी होगी।
***
जो अंगूठी पहन चुकी है वो।
वो नगों से रही जड़ी होगी।
***
धड़कनें तब ठहर गई होंगी।
जब भी उनसे नज़र लड़ी होगी।
***
दरमियाँ फासले हुए कैसे।
जोड़ती वो कड़ी -कड़ी होगी।
***
 सुनीता असीम
२८/३/२०२०


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर, (हरियाणा

कभी आओ तो सही.... 


वही प्यार लाओ तो सही. 
तुमने वादा जो किया था, 
कभी आओ तो सही. 
वो एहसास फ़लक पर, 
कहीं लाओ तो सही. 
क्या गुजरा तेरे -मेरे दरमियाँ, 
मुझे कुछ बताओ तो सही. 
तेरी हर आरज़ू मेरे सर रही, 
एक बार मुझे सताओ तो सही. 
तेरा राज़दार बन जाऊंगा, 
ना मुझसे छुपाओ तो सही. 
मंजूर मुझे मरहम -ए -जख्म बनना, 
वो चोट -ए -दिल दिखाओ तो सही. 
माना ये शहर अंधेरों का है, 
उम्मीद -ए -शब बन जाओ तो सही. 
इस बेदर्द ज़माने की तवज़्ज़ो क्या, 
आईने के रूबरू रह जाओ तो सही. 
दिल से निकली आह शायरी "उड़ता ", 
लफ़्ज़ों में ढली ग़ज़ल बन जाओ तो सही. 



स्वरचित मौलिक रचना. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
झज्जर, (हरियाणा )


हलधर

छंद -कोरोना आघात पर
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चाल सारी थम गयी ,दुनियां ही जम गयी,
सिंधु में थिरकती जो ,कस्तियाँ उजड़ गयी ।


पैग सैग टूट गए ,लैग वैग छूट गए ,
मौज घट फूट गए , मस्तियाँ उजड़ गयी ।।


कोरोना विषाणु हुआ ,बम परवाणू हुआ ,
फ्रांस रोम इटली की , हस्तियाँ उजड़ गयी ।


ठप्प हुआ कारोवार , भूख प्यास की है मार ,
दिहाड़ी मजूरों की तो ,बस्तियां उजड़ गयी ।।


हलधर -9897346173


रेणु शर्मा  जयपुर  ( राजस्थान )

बेटी 
किस्मत वाले है वह लोग जगत में,,,
जिनके घर नन्ही सी जान रहे ।। 
 जिसकी प्यारी मुस्कान से,,,,
जगत में प्रकाश रहे।।
जिसके नन्हे कदमों से ,,
धरती भी खिल जाऐ।। 
बेटी लक्ष्मी रूप लिये ,,,
घर की शान बढ़ाऐ।।
बिन बेटी के ,,,
अपार धन भी कुछ न होय।।
बेटी संग बिना धन सब कुछ होय,,,
संस्कार मिले गुणी बेटी होय,,,
बिन बेटी तो राज भी मलिन होय।।
सौभाग्य लाती बेटी तो ,,,
रूप की धनी होय ।।
स्वाभिमान से जीवन जीती ,,,
आत्मा से भी नि: स्वार्थ होय।।
- रेणु शर्मा 
जयपुर  ( राजस्थान )


कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


      *हार-जीत*
 (मनहरण घनाक्षरी)
 ^^^^^^^^^^^^^^^^
मान लो  तो  हार होगी,
ठान लो तो जीत होगी,
जीत के  अधिकारी हो,
      फल तुम्हे मिलेगी।
💪🏼💐
राशियों  के  चक्कर  है,
मिला  तुम्हे  टक्कर  है,
कर्म  ही  पूजा  तुम्हारी,
       सफलता मिलेगी।
🏵💪🏼
डगर     खुद     बनाते,
लक्ष्य  को  हम मिटाते,
ये   हमारा   कर्तव्य  है,
      श्रेय तुम्हे मिलेगी।
💪🏼🌸
लक्ष्य दिल मे  बसाओं,
स्वयं को योग्य बनाओं,
सोच   से   बड़े   बनेंगे,
    तभी जीत मिलेगी।
🌼💪🏼


             🌸
                    *****


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सच्चा योद्धा"


एक योद्धा लड़ रहा है झूठ से,
   सत्य की तलवार लेकर हाथमें.,
बढ़ रहा है युद्ध के मैदान में,
   है अकेला न्यायध्वज बस साथ में.,
तप रहा है प्रज्ज्वलित ज्ञानाग्नि में,
     यज्ञ वेदी पर खड़ा हो सन्त सा.,
दे रहा उपदेश सारे विश्व को,
    निडर नैतिक सा खड़ा है पास में.,
मौन होकर लड़ रहा है कह रहा-
    मत फँसो तुम मोह-माया जाल में.,
तोड़कर जंजीर सारे बंधनों की,
   चल निकल तू शान्ति-पथ की आस मेँ.,
थक गये हो शान्त कर लो,
   प्यास अपनी शान्ति से.,
दूर से चमको नहीं,
   चमको स्वयं की कांति से 


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मनचाहा साथ"


साथ तुम्हारा वैसा ही है,
वेगाने में मनचाहा.,
भाव अलौकिक देख रहा हूँ,
अनजाने में मनचाहा.,
लगत परायापन मिथ्या जिमि,
देख सवेरा मनचाहा.,
मेरे तेरे द्वंद्व भाव से,
मुक्त हुआ अब मनचाहा.,
तोड़ सकल माया वंधन को,
रचें स्वर्ग हम मनचाहा.,
त्याग रहे हो तुम अपना निज,
जैसा मेरा मनचाहा.,
सामूहिक पावन भावों की,
नीर बहे प्रिय मनचाहा.,
प्रीति परस्पर अनुदिन फैले,
अकथ नित्य नव मनचाहा.,
स्नेह रश्मियों से पट जाये,
 यह सारा जग मनचाहा।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ कुष्मांडा"*(कुणडलिया छंद)
••••••••••••••••••••••••••••••••••
*पावन रूप चतुर्थ है, कुष्मांडा शुभ नाम।
आधि-व्याधि से मुक्ति दे, माता है सत्काम।।
माता है सत्काम, सदा कष्टों को हरती।
सहज सृजन ब्रह्मांड, मंद विहँसी में करती।।
कह नायक करजोरि, अष्ट भुजधारी भावन।
देती सुख-समृद्धि, नाम है माँ का पावन।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
•••••••••••••••••••••••••••••••••••


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पेश ए ख़िदमत है इक नई ग़ज़ल


तिरे दर पर खिज़ा के अब कभी मौसम नही होते।
हमारे साथ  जब तुम हो कभी भी गम  नही  होते।


करो  इन्कार  चाहें  तुम  मग़र  ये बात  भी सच है।
बहुत  बेचैन  रहते  हो  कभी  जब  हम  नही होते।


बिछड़ने  का तसब्बुर  भी  बड़ा  तकलीफ  देता है।
तिरे  अहसास  के  साये  कभी  भी कम  नही होते।


कभी  फ़ुरसत  नही  मिलती  हज़ारों काम रहते हैं।
दिलों  में  प्यार  के  लम्हें  कभी  हरदम  नही होते।


बड़े  मग़रूर  है  फिर  भी  रवायत का हुनर भी है।
हमारे  अश्क़  साज़ों  की  कभी  सरगम नही होते।


बहारें  ही  नही  आती  कभी भी कोइ महफ़िल में।
हमारे  पास  जब  तक  अब मिरे हमदम नही होते।


हमेशा  बात  दिल  की  बोल   बेबाक़ी  से  देते  है।
हमारे   साफ़   ज़ेहन  में  तमाम  भरम  नही  होते।


ज़रूरत  गर  पड़े  तो  फिर  इशारों से समझ जाये।
सभी के  आँख के मोती 'अभय' शबनम नही होते।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


नूतन लाल साहू

आव्हान
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब, खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं,अपनी छाती में
छत्तीसगढ़ राज्य,बन गया है
छत्तीसगढ़ी भाषा को, सजाना है
हर खेत को,लहलहाना है
हर हाथ को,काम दिलाना है
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब,खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं,अपने छाती में
विज्ञान की चमत्कार को देखो
घर से निकलना, दुभर हुआ
बम चलाने वाले प्यारे
खुद मर जाते हैं, बेमौतो से
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
जो देश के खातिर मर मिटे
उसे कुर्बानी कहते हैं
पसीने में सुगन्ध,आती है
किसान जब,अन्न बांटते है दूसरों को
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
कुर्बानी देकर जो कुर्बान हुये
वे देश के निशानी,रहते हैं
ये नौजवानों,होश में आ जाओ
अन्नदाता बन जाता है,किसानी में
बम की दुनिया छोड़ चलो
काम करो, अब खेतो में
जय किसान और जय जवान
पसीना बहाते हैं, अपने छाती में
नूतन लाल साहू


निशा"अतुल्य"

परिवर्तन 
28.3.2020


क्या हुआ है फिज़ाओ को
क्यों कोई बाहर नही 
अपना को ख़ुद ही सवांर 
रही शायद प्रकृति ।


करते अतिक्रमण मानव
क्यों समझ तुम्हें आती नही
बहुत समझाया दिखा क्रोध 
अपना जब तब कभी कभी।


रहो कुछ दिन अब घरों में अपने
जब तक न कर लूं मैं श्रृंगार अपने
समझो ना बेड़ियां तुम इसे 
सम्भल जाओ सुनो मानव
रहना होगा घरों में तब तक 
पर्यावरण न हो जाए शुद्ध जब तक


ख़ुद को संभालो और दूसरों को भी
सिखलाया ये ही प्रकृति ने हमें
करो सम्मान सभ्यता, संस्कृति का 
संभल जाओ मानो बात सभी 
वरना हो जायेगा सारा विनाश यहीं ।



स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।

*कॅरोना संकट से बेदाग जीत कर*
*आना है।*
*कविता लेखक।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*


हे मित्र तू मत ही  कोशिश कर
बाहर  जाने    को।
कॅरोना बाहर  ही  खड़ा आतुर
अंदर   आने   को।।
हवा बाहर  जहरीली   कातिल
सी   हो   गई   है।
सब मिल कर   घर में  रहो बंद
कॅरोना भगाने को।।


पेड़ रहा  सलामत तो पत्ते फिर
से   निकल   आयेंगे।
मिल कर फिर से  ही दुनिया में
भारत के गुण आयेंगे।।
यह दौर   गुज़र   जायेगा बहुत 
कुछ सिखा कर हमें।
बहुत   सावधानी से  कॅरोना से
हम जीत ही जायेंगें।।


हमारी कोशिश और ईश्वर मिल
कर रास्ता निकालेंगे।
पाँव थाम  कर घरों  में मुसीबत
को    जरूर  टालेंगे।।
आप अकेले   नहीं जुड़ा है पूरा
परिवार       आपसे।
इस विकराल  स्तिथि  में जरूर
खुद   को   संभालेंगे।।


पूरी दुनिया  देख  रही   हमको 
हसरत की  निगाहों से।
कैसे बचाते 130   करोड़   उस
अचरज की निगाहों से।।
असफल हो रहे अग्रणी देश इस
विषाणु कॅरोना के आगे।
हमारी नीति नियति को देख रहे
भरसक    निगाहों   से ।।


सफल होंगें अवश्य हम   बन कर
दुनिया के विश्व   गुरु।
विकसित देश भारत के पदचिन्हों
पर करेंगें चलना शुरू।।
भारत की जीवन शैली खान पान
बचायेगा इस दुर्जन से।
कहलायेंगे  सम्पूर्ण  विश्व  में  एक
उदाहरण  श्रेष्ठ   गुरु।।


ये समय है अपनों के संग ही वक्त
बिताने      का।
कुछ नया  सोचने  करने  और कर
दिखाने    का।।
जो अभिरुचियां थी अधूरी  उनको
पूरा  करने का।
इस  कॅरोना  संकट  से बेदाग जीत
कर  आने का।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


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