ऑनलाइन काव्योत्सव 2077
भारतीय नव वर्ष विक्रम सम्वत २०७७ के शुभागमन पर आयोजित काव्य रंगोली काव्योत्सव प्रतियोगिता में निम्न रचनाायेे को बधाई। व्हाट्सएप्प 9919256950 के माध्यम से
टीम काव्यरंगोली
अध्यक्ष एवं संरक्षक आदरणीय अनिल गर्ग जी
काव्य- रंगोली काव्योत्सव 2077
डॉ0 शोभा दीक्षित 'भावना'
वंदना
वंदना उसी की अर्चना उसी की आठोंयाम,
मुझे दीन हीन को शरण जिसने लिया ।
सोचती हूंँ उस जननी की ममता के प्रति, जिसके लिए न आज तक कुछ भी किया।
वह एक जग में अनोखी अद्वितीय मांँ है ,
जिसका न कोई रदीफ़ है न काफ़िया।
जग का हलाहल स्वयं पान कर लिया ,
अमृत दया का मुझ बेटी को पिला दिया।।
बसंत
सूरज भी आज नए भाव से उदित हुआ,
उषा ने भी नई-नई चादर सजाई है ।
जाने कौन मंत्र वसुधा पे आज फूँक गया ,
चारों ओर प्रीति की नदी सी लहराई है ।
पवन में भी है ताप, छूट रहे शीत शाप,
भारत की भावना में खिली तरुणाई है।
नए-नए आगत का स्वागत करो कि आज, द्वार पर आपके बसंत ऋतु आई है।।
नववर्ष
पक गईं फसलें हैं झूमने लगे हैं गांँव ,
गली-गली बस नये अन्न का विमर्श है ।
दिन हो चले हैं बड़े रातें छोटी हो गई हैं,
नव पल्लवों से हुआ नव्य उत्कर्ष है ।
कोई नहीं कहता है किंतु लगता है शोभा,
भीतर भी हर्ष और बाहर भी हर्ष है ।
कूजती पिकी ने आम्र -मंजरी के बीच कहा, आज से हमारा भारतीय नव वर्ष है।।
नववर्ष पर मिले आपको सारा कुछ ,
जो भी मन अपने विचारते रहे हैं आप।
उनकी तो आपको अवश्य नजदीकी मिले जिन्हें छुप-छुप के निहारते रहें हैं आप।
वो भी नए वर्ष में मिलें हृदय से आ के फिर,
जिनपे समस्त सुख वारते रहें हैं आप।
उन जगदंब की असीम ममता भी मिले,
जिन मांँ की आरती उतारते रहें हैं आप।।
संपादक, अपरिहार्य/
निजी सचिव, उ0प्र0शासन
मो0 9454410576
काव्योत्सव 2077
"सरस्वती वन्दना"
माँ सरस्वती,
माँ भारती।
तेरी उतारें आरती,
माँ सरस्वती, माँ भारती।
1...
विद्या का हमको दान दे,
संगीत का वरदान दे,
तूँ शोक दुःख निवारती,
तेरी उतारें आरती...
माँ सरस्वती, माँ भारती
2...
हम दीन हम बालक तेरे,
अज्ञान तम से हम भरे
तू ही तो विपदा टारती
तेरी उतारें आरती...
माँ सरस्वती,माँ भारती।
3...
तू वीणा पुस्तक धारिणी,
अज्ञान अरि संहारिणी,
तेरी सन्तति है पुकारती
तेरी उतारें आरती...
माँ सरस्वती, माँ भारती।
4...
तू श्वेत शाटिका धारिणी,
शुभ कर्म सर्वदा कारिणी,
तू श्वेत कमल विराजती...
तेरी उतारें आरती...
माँ सरस्वती, माँ भारती।
......
नीलम पारीक, बीकानेर
💐💐💐💐💐
*काव्यरंगोली ऑनलाइन *काव्योत्सव प्रतियोगिता २०७७*
*मातृ शक्ति- तुम्हें प्रणाम*
सर्व मंगल मांगल्ये...
मौन कयूँ है अष्टभूजे !
दुष्टों का संहार कर तू...
विश्व का कल्याण कर तू...
सारे जनों को प्यार कर तू...
हाथ में तलवार ले तू...
रूद्र- रूप अवतार ले तू...
हर नारी को सम्मान दे तू...
बेटियों को मान दे तू...
हर जगह सम्मान हो...
काम ऐसा कर जा तू...
अस्तित्व में ही रह जा तू...
प्रकृति का मुख मोड़ दे तू...
हर नारी को स्वर दे तू...
ज़िन्दगी संभाब्य हो,
कुछ असंभव न आज हो...
तू सत्य पथ पर अग्रसर हो...
ज़िन्दगी कुछ मुख़्तसर हो...
सारे जहाँ को प्यार दे तू...
विश्व- शांति प्रसार दे तू...
है ये आग्रह तुझसे, ओ गौरी!
शरन्ये त्रयम्बिके, मातृ नारायणी नमोस्तुते ।।
*© डॉ मीरा त्रिपाठी पांडेय ।*
काव्योत्सव 2077
*देवी गीत*
*आ गई माँ*
जय जय माँ खप्परवाली,
आ गई माँ जोतांवाली....
तेरे ही गुण गावैं...मात री!
*मैया तेरे.............*
सिंहवाहिनी जय जगदम्बा, जयति शारदा माई।
चिंतपूर्णी जय चामुंडा, कालरात्रि महामायी।।
ऊँचे पहाड़ों वाली,
रखियो माँ जग रखवाली,
तेरी सब संतति ध्यावै, मात री!
*मैया तेरे.............*
उमा रमा ब्रह्माणी तुमहिं , वत्सल सुख दा माते।
पराशक्ति महिषासुर घाती, स्तुति आरति गाते।।
दुर्गुण हरने वाली ,
द्वारे माँ भक्त सवाली,
कामद सब मन भर पावैं, मात री!
*मैया तेरे.............*
शस्त्र निरुपित अष्टभुजा माँ, तारो भुवनतारिणी।
भव भय भंजन अलख निरंजनि, देवी तापहारिणी।।
दमके माँ चूनर लाली,
गूँजे घण्टा और लाली,
सुनियो सद्गुण माँ आवैं, मीत री!
*मैया तेरे.............*
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
काव्योत्सव 2077
"मेरी माँ मुझे देदो इतनी शक्ति "
मेरी माँ मुझे देदो इतनी शक्ति ,
दुनिया का दुख दूर कर सकूँ।
जिनके पेट में रोटी नहीं है,
उनको भरपेट भोजन दे सकूँ ।
जिनके सिर पर छत नहीं है,
उन्हे अपने यहाँ पनाह दे सकूँ।
जो नहीं गये कभी पाठशाला ,
उन्हें पढना-लिखना सिखा सकूँ।
जो कामचोर व निकम्मे घूमते,
मेहनत से जीना सिखा सकूँ ।
भ्रष्टाचारी और गद्दारी कर रहे ,
उनमें देशभक्ति जज्बा भर सकूँ।।
आशा जाकड़
9754969496
-- भागती जिंदगी --
इस भागती हूई
जिंदगी में नहीं मिलते
सुकून के पल
अब नहीं आते अपने नजर
अब सब खुद में ही गूम हैं
चारों ओर धूंध है
नहीं मिलता वह
भावना सा मार्मिक रिश्ता जो कभी परायो में ठहर
सा मिलता था ,
अब रिश्तो में दूरियां हो गई
नई जनरेशन हो या
पुरानी सब कहीं खो गई
अब वह लगाव नहीं रहा
जो दूसरों के दुख को
अपना समझता था,
अब रिश्ते बिखर से गए हैं
हमारी विडंबना है कि
हम नई तकनीक में
उलझ गए हैं ,
रिशतो को क्या हम
अपने में ही सिमट गए हैं ।
अब हम कहां सोचते
हैं दूसरों के लिए
अब हम खुद के लिए
ही नहीं सोच पा रहे हैं
हम अपने कर्तव्य को
भी नहीं निभा पा रहे हैं
हम समुचित और संकुचित
होकर सिमट गए हैं
कहां से चले कहां
निकल गए है
हम रोज तनाव भरी
जिंदगी जिए जा रहे हैं
क्या हम सही और
गलत को देख पा रहे हैं
हमे सोचने पर मजबूर
होना होगा
इस यूवा पीढ़ी को हम
क्या देकर जाएंगे
कुछ न दे भावनाएं ,
अहसास स्नेह दे पाए,
इस भागती जिंदगी में यही हमारी जीत होगी।
-कविता शरद विश्वकर्मा
- जसवाड़ी रोड खंडवा
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
स्मृतिया शेष है
==========
बचपन के वो दिन हमारें
कितने अछ्छे कितने सुहानें।
मेरी एक मुस्कान पर तब
चेहरे खिल खिल जाते थे।
मेरे रूठने मात्र से ही
मायुसी घर में छा जाती थी।
मेरी हर ख्वाहिस को तब
हर हाल में पुरा किया जाता था।
खेल खिलौनों का अक्सर
अम्बार लगाया जाता था।
मैं जब छोटा बच्चा था
शरारतो पर भी ठहाके लगते थे।
मेरी हर नादानी पर
प्यार दुलार उमड़ता था।
किन्तु यह क्या ? मैं तो
हौले हौले बढता जा रहा था।
मेरा बचपन समय के साथ
पिछे छुटता जा रहा था।
मेरे आस पास आज केवल
स्मृतिया बचपन की शेष है।
कुन्दन पाटिल देवास
(म•प्र•)
9826668572
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077
✒कविता राम पर..
लेखिका सरिता कोहिनूर
बालाघाट 💎
राम मेरे निर्मल बहती सी सरिता में
राम मेरे आखर आखर की कविता में
राम मेरे प्रकृति में कण कण के वासी
राम मेरे अरु मैं हूँ चरणों की दासी
राम अहिल्या को पत्थर से हैं तारे
राम अंधेरी अमावस के उजियारे
राम मिलें है पावन वाणी गीता में
राम बसें हैं लक्षमण माता सीता में
राम हैं राजा दशरथ के सुख नंदन
राम अयोध्या वीर पुरुष संग अभिनंदन
राम ने जूठे बैर है खाये सबरी के
राम चढ़े केवट की नैय्या डगरी के
राम पंचवटी प्रेम सहित है पधारे
राम सिया ने जंगल सुख दुख को धारे
राम सखा सुग्रीव बने बलि संहारा
राम विभीषण मित्र बने रावण मारा
राम गये जब चित्रकूट के घाटों पर
राम लखन का चित्रण तुलसी पाटों पर
राम बने हनुमान भक्त के मन प्यारे
राम जानकी जननी के संग पधारे
राम नाम है मोह माया,जग से तारी
राम नाम है वैभव सुख का भंडारी
राम नाम संसार सत्य का सहारा
राम नाम ने जग से बेडा पार उतारा
राम की महिमा सर्व जगत में न्यारी है
राम नरायण के परभव अवतारी है
राम नाम है वसुंधरा पे सत्य सनातन
राम नाम है जग माया में प्रेम रतन धन
राम की महिमा भू मंडल में बड़ी अनोखी
राम कथा है सतयुगी कलयुग चोखी चोखी
राम मिलेगें परम भक्त बजरंगी में
राम बजेगें सुर सरगम सारंगी में
राम हृदय में भज ले मन से ओ प्यारे
राम नाम ही भव सागर से पार उतारे
राम नाम ही भव सागर से पार उतारे।।
सरिता सिंघई कोहिनूर
बालाघाट म.प्र.
9425822665
काव्योत्सव 2077
मरहम
मां अब की नवरात्रि मे
तुम ऐसा कर जाओगी
जो मेरे हित में होगा
ऐसा निर्णय ले जाओगी
हर दम मेरे साथ ही रहना कभी दूर नहीं जाना तुम वरना तेरी यह पुत्री समर में अकेली रह जाएगी
संसार है दुख देने के लिए
कितनी ही हिलोरे उठती है
मन को यह विश्वास है मां
तुम मुझको धीर ब धा
ओ गी
विश्वास कभी कम ना होगा
यह मेरा तुझसे वादा है
शरीर चाहे निस प्राण हो जाए
आत्मा में बसेरा तेरा होगा
पीड़ा ए जब घाव करेगी
मरहम तुम ही लगाओ गी
जय श्री तिवारी
खंडवा मप्र
काव्य रंगोली ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077
आदरणीय श्री दादा अनिल गर्ग जी ,
बाल गीत
जाड़े की ऋतु
------------------
थर थर करती बदन कँपाती
ऋतु जाड़े की आयी रे ।।
जेठ असाढ़ गया सावन की
रिमझिम भी अब बीत गयी ।
काले काले मेघों की जल
भरी गगरिया रीत गयी ।।
जाड़े ने देखो गर्मी की
है दीवार गिरायी रे ।
थर थर करती बदन कँपाती
ऋतु जाड़े की आयी रे ।।
आँख मिचौली सूरज दादा
कभी बादलों से खेले ।
कभी लगा देते हैं बादल
नीले अम्बर में मेले ।
काले काले मेघों ने
सूरज की धूप चुराई रे ।
थर थर करती बदन कँपाती
ऋतु जाड़े की आयी रे ।।
सन्दूकों से स्वेटर मोजे
कोट पैंट बाहर आये ।
गरम चाय की बढ़ी जरूरत
जो थोड़ा तन गरमाये ।
गरम पकौड़े चाट मसाले
वालों की बन गयी रे ।
थर थर करती बदन कँपाती
ऋतु जाड़े की आयी रे ।।
ठंढी हवा तीर सी लगती
जब सन सन कर चलती है ।
ऐसी ठंढी ऋतु में यारों
बहुत पढ़ाई खलती है ।।
कैसे पढ़ें हमें सरदी में
अच्छी लगे रजाई रे ।
थर थर करती बदन कँपाती
ऋतु जाड़े की आयी रे ।।
--डॉ. रंजना वर्मा
**********
काव्य रंगोली आॅनलाईन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077 हेतु घनाक्षरी
अध्यक्ष अनिल गर्ग जी को समर्पित
फाग की उमंग रग, रग में है दौड़ गई, मन टेसू टेसू हुआ, प्रीत भीगे अंग है ।
मिलन का पर्व यह , मिल के मनाए हम , आओ एक दूजे को लगाए रस रंग है।
होठ साधते रहे, चुप्पियां हमेशा से ही, स्वपन बुनती प्रीत , आँखियों के संग है।
टूट गए देखो अब , संयम के सारे बंध , तन पर छाई आज , प्रेम की तरंग है।
वैष्णवी पारसे
छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश
काव्यरंगोली काव्योत्सव प्रतियोगिता वर्ष 2077 अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
अाया करिए -
दिन ढले रोशनी चिराग में अाया करिए।
सूने खंडहर में नहीं बाग में अाया करिए।
आप आते हो मेरे आंसुओं क्यों हरदम।
कभी सीने में दबी आग में अाया करिए।
राम के धनुष शिव के नाग में अाया करिए।
राधा के स्नेह व्रज के फाग में अाया करिए।
द्यूत में कौरवों के भूल से भी मत आना।
भरत के बन्धु प्रेम त्याग में अाया करिए।
घास की रोटी बिना साग में अाया करिए।
राणा के शीश सजी पाग़ में अाया करिए।
चेतक सवार को उड़ जाता था ले कर के।
तनिक हवा से हिली बाग में अाया करिए।
कान्ह की बंशी कर्ण दान में अाया करिए।
शिवा की असि में और म्यान में अाया करिए।
राजगुरु सुखदेव आजाद भगत सिंह बिस्मिल।
बाघा जतीन के बलिदान में अाया करिए।
महादेवी की घनी पीर में अाया करिए।
हुए निराला गजब फकीर में अाया करिए।
कभी मीरा के विष भरे प्याले में या।
कभी तुलसी कभी कबीर में अाया करिए।
जबाब न सही सवाल में अाया करिए।
इत्र की खुशबू हो रुमाल में अाया करिए।
आप तो आइए हुजूर अर्ज है इतनी।
पास नहीं न सही खयाल में अाया करिए।
शिवानन्द चौबे
मो.9554606070
काव्योत्सव 2077
प्रातः वंदन
15. 3. 2020
करें अर्चना प्रभु हम तेरी
हमको दो वरदान
हाथ जोड़ झुकाए शिश को
खड़ी तुम्हारे द्वार ।
प्रभु करो वंदन स्वीकार 2
पीर पड़ी जब भक्तन पर
किया तुमने बेड़ा पार
मैं अज्ञानी कुछ ना जानू
खड़ी तुम्हारे द्वार
प्रभु करो वंदन स्वीकार 2
फूल चढ़ाऊँ धूप दीप से
मन से करूँ पुकार
आओ प्रभु जी थामो मुझको
पड़ी तुम्हारे द्वार
प्रभु करो वंदन स्वीकार 2
भोग लगाऊं क्या मैं तुमको
बस मन के हैं भाव
अश्रु ले नैनो में मैं तो
आई तुम्हारे पास ।
प्रभु करो वंदन स्वीकार 2
प्रभु शरण मे रखो मुझको
करो भव से बेड़ा पार
डूबी रहूँ मैं नाम में तेरे
मुझको दो इतना ज्ञान ।
प्रभु करो वंदन स्वीकार 2
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
काव्यरंगोली आँनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता के लिए रामनवमी पर मेरी रचना
ऐसे राम कहाँ से लायें?
मनुज नहीं अवतार हो
जीवन का आधार हो।
एक कला हो जीने की
भारत के संस्कार हो।
सत्य तुम्हारा नाम है
दशरथ जी का मान हो।
कौशल्या की ममता हो
अवध प्रजा की समता हो।
मात पिता की भक्ति हो
भ्राताओं की शक्ति हो।
हनुमत का विश्वास हो
सीता माँ की श्वास हो।
तुम दुष्टों का अंत हो
तुम ही महा मन्त्र हो।
राम कहाँ तुम लुप्त हुये??
भारत में विलुप्त हुये।
दुष्टों को जो मार गिराये
अब ऐसे राम कहाँ से लायें।
-कीर्ति प्रदीप वर्मा
ऑनलाइन काव्योत्सव 2077
काव्य रंगोली काव्योत्सव प्रतियोगिता
--------------तन्हाई का आलम ( गीत)----------------------
तन्हाई के आलम में , हर क्षण कुछ मन गुनता है।
दूर कहीं भी कलियाँ चटके , आवाज़ उनकी सुनता है।।
कान में होतीआहट जबभी,दिल मुश्किल से संभलता है।
जल्द ही उनसे दर्शन होगी , सोचकर मन मचलता है।।
आने पर हम रुठ जाएंगे , मन अपने में बुनता है।
तन्हाई के आलम में , हर क्षण कुछ मन गुनता है।।
पत्तों की सरसराहट से , सोच का धागा टूटता है।
वो अब तक क्यों ना आएं , मन बेचैन हो घुटता है।।
मिलन की प्यास बनी ही रहेगी , सोचकर सिर धुनता है।
तन्हाई के आलम में , हर क्षण कुछ मन गुनता है।।
रैन की काली अंधियारी में , नैन को कुछ न दिखता है।
उनपर कुछ विपत्ति आई , सोचकर दिल चीखता है।।
उनके बदले मेरी मौत आए , अंत में मन ये चुनता है।
तन्हाई के आलम में , हर क्षण कुछ मन गुनता है।।
----------------------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी "
मो 9038143940
काव्योत्सव2077
।। मुस्कान ।।
अंजूरी भरी मोहब्बत का खजाना है ज़िंदगी,
हम बेगाने लॉक डाउन में भी खुशियां ढूंढ लेते हैं।
ये धरा गगन ये फिजाएं कुछ बदली सी है,
चलो चिड़िया की चहचहाहट में गीत ढूंढ लेते हैं।
उल्लास उमंगों का सावन भी लौटकर आएगा,
चलो चांद सितारों में अपना अक्स ढूंढ लेते हैं।
उतर जाएगा यह खुमार भी मुसीबत का,
चलो आंखों से लिखे कुछ ख्वाब ढूंढ लेते हैं।
न जाने कब जिद्द हो गई बरगद सी हमारी ,
मधु हकीकत की धरा पर चलो मुस्कान ढूंढ लेते हैं।
मधु वैष्णव
जोधपुर राजस्थान
(द्वारा आदरणीया इला श्री जायसवाल)29,3,2020
काव्योत्सव 2077
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।
*करुणामयी हे जगकल्याणी*।
*आराधन स्वीकार करो*।।
जगत नियन्ता पालनहारा,
मातु तुम्ही हो जगत अधारा।
शक्ति रुप भव पार करो।।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।
सिंहवाहिनी जय जगदम्बा,
अखिल जगत कल्यानी अम्बा।।
महिष विमर्दिनी ज्योर्तिमयी माँ,
जगत अधारिणी कृपामयी माँ |
जगजननी खप्पर त्रिशुल से,
दुष्टो का संहार करो।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।
चण्ड-मुण्ड संहारिणी माता।
तुम्ही हो मेरी भाग्य विधाता।।
वैष्णवीं, काली तुम ज्वाला,
गल शोभित मुण्डों की माला।
ममतामयी ज्योत्सना माता,
अखिल विश्व भव भार हरो।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।
अष्टभुजा वारहिणी माता।
कात्यायिनी जगत विख्याता।
विंध्यवासिनी पर्वत वासिनी,
विध्नेश्वरी माँ शोकनासिनी,
दुर्गा क्षमा शिवा स्वधा माँ,
आराधन स्वीकार करो।।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।
ब्रहमचारिणी भव-भय हारिणी ,
शुम्भ-निशुम्भ समूल विदारिणी।
काल-कपाल सहज भव त्राता।
नव दुर्गे माँ भाग्य विधाता।।
लक्ष्मी रमणा ,हरिप्रिया माँ,
जन-जन का भंडार भरो।।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*
काली, कमला, ललिताम्बा माँ।
शक्तिस्वरुपा,कामाख्या माँ।।
शिवदूती,शिव-शक्ति स्वरुपा।
शाकुम्बरी ,भ्रामरी जग रुपा।।
शताक्षी माँ भय भव हारिणी।
दृष्टि-सृष्टि त्रय ताप हरो।
*आदि शाक्ति जगदम्ब भवानी*।
*भक्तों पर उपकार करो*।
करुणामयी जगधात्री अम्बे,
ताप हारिणी जय जगदम्बे।।
कालरात्री हे गौरी माता।
लक्ष्मी रुप जगत विख्याता।
मधु-कैटभ हन्त्री ,विध्नविनासिनी,
*आश* ज्योति संचार करो।।
*आदि शक्ति जगदम्ब भवानी*,
*भक्तों पर उपकार करो*।।
✍आशा त्रिपाठी
29-03-2020
रविवार।
बालगीत
माता का दरबार सजा है।
मिलता हमको बहुत मज़ा है।।
पूजा करती मुन्नी बिटिया।
जल चढ़ाती भर-भर लोटिया ।।
कहती टुन्नी तुम भी आओ ।
माता को परसाद चढ़ाओ ।।
देवी जी का रूप निराला ।
दूध चढ़ाओ भर-भर प्याला ।।
सरस्वती का रूप हैं माता ।
पूजा कर विद्या है पाता ।।
चुन्नू-मुन्नू तुम भी आओ।
हलुआ - पूरी भोग लगाओ ।।
दादी कहती कथा - कहानी ।
शक्तिस्वरूपा हैं भवानी ।।
महिषासुर को जिनने मारा ।
चण्ड- मुण्ड को घाट उतारा ।।
मुंडों की पहनी वह माला ।
रक्तबीज का वध कर डाला ।।
जितने रक्त भूमि पर गिरते ।
उतने दानव थे उठ पड़ते ।।
एक-एक कर सबको मारा ।
धरती का सब बोझ उतारा ।।
माता तुम हो अंतर्यामी ।
हम बालक ठहरे अज्ञानी ।।
शुंभ- निशुंभ महा अभिमानी।
वध समर में कीं महारानी ।।
माता आज यही वर दो ।
रोगमुक्त भारत कर दो ।।
डॉ प्रतिभा कुमारी पराशर
हाजीपुर बिहार
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
*जय माता दी**जय माता दी**जय माता दी*
*माता* के दरबार में आके,
करता *देव* पुकार।
सभी खुशी से जियें यहाँ,
विनती बारम्बार।।
सभी सुखी हों ,सभी निरोगी,
सबके घर हो खुशहाली।
अमन चैन और शान्ति से ही,
फैले जग में हरियाली।
माँ की कृपा सभी पर बरसे,
सबका हो बेडा पार।
सभी खुशी से जियें यहाँ,
विनती बारम्बार।।
आपस में कोई लडे भिडे न,
सबके मन सद्भाव हो।
मिलजुल कर सब रहें हमेशा,
ऐसा मधुर स्वभाव हो।
द्वेष भाव मिट जाये धरा से,
सबके मन में हो प्यार।
सभी खुशी से जियें यहाँ,
विनती बारम्बार।।
भ्रष्टाचार तनिक भी न हो,
सदाचार का राज हो।
घर घर में माँ आपकी पूजा,
पावन हर एक काज हो।
सारी धरा स्वर्ग बन जाये,
सबकी है मनुहार।
सभी खुशी से जियें यहाँ,
विनती बारम्बार।।
*माता* के दरबार में आके,
करता *देव* पुकार ।
सभी खुशी से जियें यहाँ,
विनती बारम्बार ।।
*जय माता दी**जय माता दी**जय माता दी*
देवेन्द्र कुमार शर्मा
मथुरा
मो.-9927254447
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
गीत - प्यार जगायें होली में
चलो दिलों में प्यार जगायें होली में ।
नफरत की दीवार गिरायें होली में ॥
बरसो से भीगी लकड़ी सा सुलगे मन ।
स्वार्थ ईर्ष्या द्वेष भरा सबका जीवन ॥
रीत नयी इस बार चलाई जाएगी ।
ऐसी हर इक आग बुझायी जाएगी ।
पाप पतन पाखंड जलायें होली में ।
खुशियों का अंबार लगायें होली में ॥
खून के रिश्ते तकरारों से टूटे हैं ।
घर आँगन के बिखरे बूटे बूटे हैं ॥
चलो नेह का रंग भरें मन पिचकारी ।
एहसासों से फिर महकाएँ फुलवारी ।
अपनों से हम खुद मिल आयें होली में ।
बचपन के नगमे दोहरायें होली में ॥
टेसू गुड़हल के संग पत्ते हरियाते ।
देख धरा के दृश्य हमें हैं समझाते ।
लाल गुलाबी पीत हरे और केसरिये ।
ये सब तो हैं इस रंगोत्सव के ज़रिये ।
केसरिया संग हरा मिलायें होली में ।
ध्वज अपना मिलजुल फहरायें होली में ॥
चलो दिलों में प्यार जगायें होली में ।
नफरत की दीवार गिरायें होली में ॥
अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
छिंदवाड़ा मप्र
9098902567
9424902567
माँ दुर्गा
रूप अनेको धारण करती,,असुरों की संहारक मां।।
नव दुर्गा ममता की मूरत ,,भक्तों की प्रति पालक मां।।
जिसकी महिमा देव न जाने ,कैसे हम बतलायेंगे।
उस अगाध शक्ति को सब जन प्रतिपल शीश नवाएँगे।
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ाते मन्नत पूरी होती है।
मां तेरे आँचल की छाया जन्नत जैसी होती है।।
धरती और गगन से बढ़कर तेरा रूप अलौकिक मां।
नव दुर्गा ममता की मूरत ,,भक्तों की प्रति पालक मां।।
रूप अनेक आप के माता हम बच्चे अज्ञानी है।
इस दुनिया मे आग, फसल, फल तुमसे मिलता पानी है।
रोग मुक्त रोगी हो जाता,गोदी भी भर जाती है।
जिस पर कृपा आपकी हो ,जिंदगी सफल हो जाती है।
नेह लगा चरणों से तेरे दर पर मुझे बुलाया ले माँ
नव दुर्गा ममता की मूरत ,,भक्तों की प्रति पालक मां।।
- रेणु शर्मा
जयपुर राजस्थान
परम आदरणीय,श्री अनिल गर्ग जी महोदय।
सादर सप्रणाम, नववर्ष(हिन्दु) एवं चैत्र नव-रात्रि की अशेष शुभकामनायें ।
"जागो नारी"
पतझड़ के उपरांत बसंती बनना होगा।
अब अबलाओं को भी सबला बनना होगा।।
सीता -सावित्री अनुसुया जैसी बन जाओ।
लक्ष्मीबाई,मदर टेरेसा इंद्रा जैसे बन जाओ
दुर्गा रूप अवतरित हो कर जगती में आई।।
भारत की भारत माता भी नारी परछाई
नारी को निज स्वाभिमान हित ,
चंडी बनना होगा।
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
भारत-माँ का गौरव देखो भारत की ही नारी है।
घर की लक्ष्मी कुल की देवी, युगो युगों से नारी है।
शक्ति स्वरूपा पूजा वाला रूप तुम्हे धरना होगा।।
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
कर्तव्यों-अधिकारों पर, तुम बढ़े रहो।
पढ़ो पढ़ाओ निज पथ पर तुम चले रहो।
साक्षरता का मिशन सफल करना होगा,
अब अबलाओं को भी सबला बनना होगा।।
पुरुषों से कम कोई काम नही करना।
मेहनत करना पर विश्राम नही करना।
चट्टानों से टकराने से मत डरना।
सदा प्रगति के रथ पर आगे ही बढ़ना।।
राम-कृष्ण, अर्जुन, ध्रुव को जनना होगा,
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
अरुणा अग्रवाल लोरमी
छग
श्री दादा अनिल गर्ग जी,
प्रतियोगिता अध्यक्ष एवम संरक्षक काव्य रंगोली(आनलाइन प्रतियोगिता)
निम्न कविता प्रेषित है.
. सनम
. -----------
जीवन के हर मोड़ पे मैने,
प्यार की सुगन्ध उड़ायी है।
लेकिन बोलो, खुशबू उसकी,
कब - कब तुम तक आयी है।
मैने मन की स्मृति रेखा पर,
अंकित तुमको कर रखा है।
तुम्ही बताओ याद हमारी,
तुमको कब - कब आयी है।
मैने चंदा की किरणों से,
स्वप्नों में तुमको बाँधा है।
क्या तुमको भी इस बन्धन की
पहुँची कुछ गहराई है।
तेरी साँसों की खुशबू तो,
साँसों में मेरी महकी है।
इस खुशबू ने प्रीत की भाषा
तुम तक क्या पहुँचाई है।
मन मन्दिर में तुम्हे बसाकर,
मैने तो जग भुला दिया।
फुर्सत के लम्हों में तुमको,
याद मेरी क्या आयी है।
तुम मेरे हो मैं तेरी हूँ,
मैने तो ये ठान लिया।
पर सनम तेरे इकरार बिना,
होगी मेरी रुसवाई है।
मुझको अपने सपनों में,
आने की, सनम इजाजत दो,
तुम से मिलकर अब न किसी से,
मिलने की पुरवाई है।
स्वरचित
अंजू अग्रवाल 'लखनवी'
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना !
देख दुर्दशा मातृ भूमि की , दृग पावस बन आया होगा ,
तब कवि ने गणतंत्र देश में , गीत करुण गाया होगा ,
देखा होगा एक ओर महलों के वंदन वारों को ,
एक ओर अवनी आँचल में रोते दीन दुखारों को ,
बाज़ारों में सुंदरियों के सौदों पर रोया होगा ,
बिफ़र पड़ा होगा अंतर्मन, युगों नहीं सोया होगा !
सिसक पड़ी होगी पीड़ा, लख रक्षक रूप कसाई को ,
बिना वस्त्र जब देखा होगा , ममता रूपी माई को ,
भीख मांगती अस्मत की , देखा होगा लाचारों को ,
देखा होगा तार तार, होते राखी के तारों को ,
अमिट उदासी होगी, उर में पछताया होगा ,
विकट वेदना में कवि ने तब गीत प्रथम गाया होगा !
-श्यामसागर (अनिल तिवारी)
रेउसा, सीतापुर (उ.प्र.)
काव्यरंगोली आनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता-2077
गीत
फूल सजाकर इन अंगों में ,
सजनी लगे सजीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो ।।
मीठी लगती तेरी बोली ,
तू है सबकी हमजोली ।
रसिक भाव की बनी स्वामिनी ,
मन मति की निश्छल भोली ।।
.......संग सहेली झूमझूम कर,
लगती छैल ,छबीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो ।।
आयी है तू लेकर टोली ,
मस्ती की होगी होली ।
हर मनसूबे अब हों पूरे ,
खा लें हम भांग नशीली ।।
इठलाती सदा हंँसी देकर,
लगती बड़ी हठीली हो ,
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।
खुशियों से भर दो तुम झोली ,
आँखों से मारो गोली ।
तुम हो जाओ मेरे प्रियतम ,
आज सजे सपने डोली ।।
हाथ अपने सारंगी लेकर ,
गाती बड़ी सुरीली हो ।।
रंग भरि पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
काव्य रंगोली ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077के लिए हमारी रचना ....
गीतिका
आग जिसने लगाई है ,
वो मेरा ही भाई है ।।
बात ये खुद से भी छुपाई है ।।
मेरे आँखो से आँसू टपका,
मुसीबत की घडी आई है।।
वक़्त दिखाता है आईना मुझे,
बात क्यूं न समझ में आई है।।
हाले दिल किसे सुनाऊँ,
इसमें ही दोनों की भलाई है। ।
कौंन अपना है, जिससे दुःख बांटे,
जिंदगी भी यहाँ पराई है ।।
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
धनबाद -झारखंड
काव्य रंगोली ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077 के लिए मेरी रचना
कविता
युवाओं के देश में फिर एक मसीहा चाहिए
सबको एक सूत्र में पिरोये वो मंझा चाहिए
बनकर विवेकानंद जो विश्व पटल पर चमके
इस देश को फिर से ऐसा कोहिनूर हीरा चाहिए
सब युवा समझे अपनी अपनी जरूरत को
रोज़गार रोटी कपड़ा मकान को
ये देश मज़हबी लड़ाइयों का नहीं
ये देश राजनीति के दंगों का नही
ये देश मोहब्बत की निशानी है
ये देश की नीति विश्व बखानी है
सब साथ रहो हमें विश्व गुरु बनना है
चार दिन के इन सरकारों की बातों में मत आना
हमको है हमेशा साथ रहना इनको है जाना
खाओ कसम इस मिट्टी की साथ रहेंगे
हम एक थे एक है एक रहेगें।
नाम शुभम पांडेय गगन
पता अयोध्या फैज़ाबाद
काव्यरंगोली ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077
आया नवरात्रि का त्यौहार
देखो आया नवरात्रि का त्यौहार
लाया खुशियाँ अपने संग हजार
देखो सज रहा मैया का दरबार
आया आया नवरात्रि का त्यौहार
झुमों नाचो गाओ सब मिलकर
मैया का स्वागत करो जी भरकर
सबका कष्ट मिटाने मैया आई है इसबार
देखो सज रहा मैया का दरबार
आया आया नवरात्रि का त्यौहार
माँ की महिमा न्यारी
हम बच्चों की प्यारी
अपना चैत्र नवबर्ष है शानदार
आया आया नवरात्रि त्यौहार
अछत चंदन धूप बाती
पूजन को चली सखियाँ सारी
पूजा अर्चना वंदना आरती
शाम सवेरे करते रहो बारबार
आया आया नवरात्रि का त्यौहार
"दीनेश" हम सबका प्यारा त्यौहार
देखो सजा है मैया का दरबार
आया नवरात्रि का त्यौहार
देखो आया नवरात्रि का त्यौहार
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
फ़ेसबुक का संसार फेसबुक का आभासी संसार
जहाँ मिले ज्ञान का खजाना अपार।।
सारा दिन बैठे इसको लेकर
अपनों से सब कुछ खोकर
मिलती है ठोकर हजार
ये फेसबुक का संसार बहुत अपरंपार।।
कहते है इसको आभासी दुनिया ।
ये आभास के साथ अपनापन करती।
कही कही आपको अपनों से मिलाती।
भूले बिसरे रहते इसके साथ
ये फेसबुक का संसार है अपरंपार।
आजकल अपनों से दूर रहते
माध्यम बना इसको हॄदय में बस जाते।
दूर ही सही रहते अपनों के पास ।
ये फेसबुक का संसार है अपरंपार।।
आज़ादी कुछ करने की रहो इसके साथ।
बिना वजह ना करो किसी से बात।
अपने दिमाग़ का करो सही इस्तेमाल।
ये फ़ेसबुक का संसार है अपरंपार।। 【डॉ मोनिका शर्मा】
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
हार न मानूंगी
जीवन का बोझ सहर्ष उठाती हूँ।
तेरे लिए तो ज़माने से लड़ जाती हूँ।
माथे पे मेहनत का पसीना बहा कर।
तेरी खुशियों को सजाती हर पल हूँ
होट सूरज की तपन से सूखे है तो क्या ?
तेरी मुहब्बत में हर इम्तिहान पार कर जाती हूँ।
तेरा और मेरा साथ है कीमती ।
इसके लिए आग का दरिया भी पार कर जाती हूँ।
रोज कमाती हूँ अपना घर खुद चलाती हूँ।
किसी दिन रोटी तो किसी दिन भूखे भी सो जाती हूँ
हाँ में रोज कमाती हूँ ,तूझे खिलाती हूँ।
बोझ उठाने वाले के कंधे कमजोर निकल गए।
तब से मेरे कमजोर कंधे मजबूत हो गए।
हार न मानी है ,हार न मानूंगी
सम्मानित महोदय
काव्य रंगोली काव्योत्सव २०७७ हेतु मेरी उक्त👆रचना स्वीकार करने की कृपा करना आदरणीय अनिल गर्ग जी
प्रेम की कविता
किसी का जिया दुखाना नहीं है
रहो तुम सुखी जिन्दगी भर प्रिये,
मैं हँसूगा कहीं भी तुम्हें जानकर।
दिया प्यार का अब जलाना नहीं है,
किसी को हँसाकर रूलाना नहीं है ,
विरह गीत गाकर भुलाना नहीं है ,
किसी का जिया अब दुखाना नहीं है,
मुझे फिर कभी , प्राण,आना नहीं है,
सही कह रहा हूँ बहाना नहीं है,
तुम्हारी हँसी जिन्दगी भर रहे ,
मैं लिखूंगा इसे नित्य ही मानकर।
पर मुझे प्रेम पथ का निभाना रहा,
प्रेम करके हिया का जलाना रहा ,
जल रहा है दिया अब बुझाना रहा,
प्राण , तेरे बिना यह जलाना रहा,
औ ,विरह के लिए गीत गाना रहा,
छोड़ तुमको, कहीं आज जाना रहा,
मिलेगा विरह का गरल यदि मुझे,
तो बढूँगा इसे भी सदा पान करके।
हाय , कैसे कहूं आज रोना नहीं,
है, तुम्हारे बिना, प्राण सोना नहीं,
यदि सरल हो निठुर आज होना नहीं,
पर पलक को विवश हो भिगोना नहीं,
पीर कण कण जगी शेष कोना नहीं,
मैं विकल रो रहा आज, टोना नहीं,
कदम को उठाये बढ़ाते चलो ,
मैं चलुँगा निरन्तर तुम्हें जानकर।।
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
काव्य रंगोली 2077 प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री दादा अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
* नारी हूँ मैं *
किन शब्दों में दूँ मैं परिचय अपना
कहीं गृहलक्ष्मी हूँ तो कहीं पराया धन
कहीं देवी स्वरूपा हूँ तो कहीं पैर की जूती
कहीं जीने का संबल तो कहीं दर्द का समंदर
कहीं हँसती हुई तो कहीं रोती सदा
कहीं अपनी सी तो कहीं अबूझ पहेली
कहीं तन्हा उदास तो कहीं बसंत बहार
कहीं समस्या सुलझाते तो कहीं सिहरती सहमी
कहीं दाम्पत्य सहेजती तो कहीं बिखरता दाम्पत्य
कहीं पिता पति के नाम तो कहीं जगमग व्यक्तित्व
कहीं कुशल गृहिणी हुँ तो कहीं कैरियर वुमन
कहीं अर्धांगनी हूँ तो कहीं वस्तु स्वरूप मेरा
कहीं बेसहारा हूँ तो कहीं आज की आवाज
कहीं कथा बांचती हूँ तो कहीं होंठ सीले मेरे
कहीं ममतामयी माँ तो कहीं गर्भ में खत्म मातृत्व
नियति के अकाट्य मंच पर परिचय यही मेरा
झंझावतों से लड़ती सम्हलती संघर्ष करती,
जीवन के दो राहे पर खड़ी आज की नारी हूँ मैं ।
सीमा निगम रायपुर , मो-7869458122
काव्य रंगोली आॅन लाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2077 हेतु प्रेषित।....
नव संवत्सर
______________
हे पुण्य श्लोक नव संवत्सर
समय - शिखर से झरते निर्झर,
कर ऊर्जा से वसुधा पूरित
क्षण - क्षण अविरल गति को संचर।
सौंदर्य प्रकृति का उर में भर
जाए जग - जीवन और निखर,
युग - अंध तमस को दूर करे
उगते दिनकर की किरण प्रखर।
हैं खिले फूल कितने सुन्दर
चूमें लतिका उन्नत तरुवर,
बह शीतल मन्द हवा भीनी
करती हिल्लोरित जन - मन - सर।
यह चैत्र मास यह कुसुमाकर
है जीव सृष्टि का पुलकित हर,
यह समय नवल निर्माणों का
है बीत चुका कबका पतझर।
हैं मनुज सभी अंतः निर्भर
सुख दुःख ग्रंथित सभी परस्पर,
फिर भी भर स्वप्न - उड़ानों को
हर बाधा का लाँघें भूधर।
यह शक्ति रूप पूजित घर - घर
नश्वरता में भरता नव स्वर,
लेकर आया नव चेतनता
करने मानवता और मुखर।
यह समय न रुकता कहीं ठहर
चलता निश दिन ही आठ पहर,
हम लक्ष्य - प्राप्ति तक थमें नहीं
कहता यह आकर संवत्सर।
******
- सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"
3 फ 22 विज्ञान नगर,
कोटा - 324005 (राज.)
मोबाइल 9928539446
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष दादा अनिल गर्ग जी को समर्पित आप सभी के अवलोकनार्थ
बीता फाग चैत है आई
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है भाई
पावन अवसर नव छटा है आई
प्रकृति ने मंडप खूब रचाई
सृष्टि की करनी है अगुवाई
फिर से नूतन सुबह है आई
नई-नई है आस जगाई
नव प्रीत भाव नई हे लाई
नववर्ष की करने अगुवाई
सबने पथ में पुष्प बिछाई
फलों में देखो मंजर आई
दिखती है हर जगह तरुणाई
झूलेलाल का जन्मोत्सव आई
देखो सजी है अयोध्या भाई
माता पूजन की तिथि आई
मधुमास है हर्ष बढ़ाई
फिर देखो नववर्ष है आई
आचार्य गोपाल जी
उर्फ
आजाद अकेला बरबीघा वाले
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार
*रामनवमी विशेष - जय श्री राम*
बस एक शब्द बसे जिसमें सभी तीरथ व चारों धाम
सभी संताप मिट जाते जो हृदय से ले लो उनका नाम
वो रक्षक है मर्यादा के और भक्तों के वत्सल हैं
कहो श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
उन्हीं के नाम से कायम यहां आधार सदियों से
उनके नाम से जग का हुआ उद्धार सदियों से
कई महिमा दिखाए हैं उनके नाम ने सुन लो
जग को राह मर्यादा की दी है राम ने सुन लो
उनके नाम ने जग का किया आसान है हर काम
कहो श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
जग की हर एक बात हरेक अंदाज उनसे है
जिसने मोहा सबका मन राम राज उनसे है
उन्हीं का नाम लगता है चारों धाम सा जग में
हुआ कोई न, होगा न अपने राम सा जग में
उन्हें ही जपता हूं सुबह उन्हीं को जपता हूं मैं शाम
कहो श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
विक्रम कुमार
मनोरा
वैशाली
काव्योत्सव2077
मेरी मां तुझसे विनती।
हम सब को दे तु सुमति।
आज तेरी जरुरत आन पडी।
भक्तो को बचाओ, ये घडी आई।
सुंदर सा मुखडा, सुंदर सी साडी।
सुंदर से रथ मे मां तेरी सवारी।
आओ हम.सबको आशीष दे दो।
हंसते खेलते मिले सब बच्चे तेरे।
सुन लो करूण पुकार ओ माता।
कुछ तो वर दो आज है दाता।
नौ दिन ही नही हम रोज करे पुजा।
हमको समझ बच्चा, नही कोई दूजा।
उपकार कर दे यही बस इतना।
मैय्या आकर पार लगा देना।
श्रीमती ममता वैरागी
तिरला धार
काव्योंत्सव 2077
आदरणीय अनिल गर्ग एवम ककाव्य रँगोली को समर्पित
*विषय- फागुन के सतरंगी*
*शीर्षक- होली*
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
हर रंग कुछ कहता ही है,
हर रंग मे हंसी ठिठोली है।
जीवन रंग को महकाती आनंद उल्लास से,
जीवन महक उठता है एक-दूसरे के विश्वास से।
प्रकृति की हरियाली मधुमास की राग है,
नव कोपलों से लगता कोई लिया वैराग है।
हर गले शिकवे को भूला दो,
फैलाओं प्रेम रूपी झोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
आग से राग तक राग से वैराग्य तक,
चलता रहे यूँ ही परम्परा ये फ़ाग तक।
होलिका दहन की आस्था,
युगों-युगों से चली आ रही है।
आग मे चलना राग मे गाना,
प्रेम की गंगा जो बही है।
परम्परा ये अनूठी होती है,
कितनी हंसी ठिठोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
सपनों के रंग मे रंगा ये संसार सारा,
सतरंगी लगता इंद्रधनुष सबको है प्यारा।
बैगनी रंग शान महत्व और
राजसी प्रभाव का प्रतीक।
जामुनी रंग दृढ़ता नीला विस्तार
और गहराई का स्वरूप।
हरा रंग प्रकृति शीतलता,
स्फूर्ति और शुध्दता लाये।
पीला रंग प्रसन्नता आनंद से घर द्वार महकाये।
रंग नारंगी आध्यात्मिक सहन शक्ति सिखाये।
लाल रंग उत्साह साहस,
जीवन के खतरे से बचाये।
रंग सात ये जीवन मे रंग ही रंग घोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
नाम- परमानंद निषाद*
*राज्य- छत्तीसगढ़*
श्री दादा अनिल जी गर्ग प्रतियोगिता अध्यक्ष एवं संरक्षक काव्य रंगोली हेतु कविता सादर प्रस्तुत-
पर कोरोना को भगाएंगे।
--------------------------------
मैं भारत हूं, तुम भारत हो।
हम भारत हैं, सब भारत हो।
मैं बचूंगा, तुम बचोगे।
हम बचेंगे, सब बचोगे।
सब बचेंगे, देश बचेगा।
भारत का परिवेश बचेगा।
त्यागी तपस्वी संत हैं हम।
जीवन आदि अंत हैं हम।
शील शक्ति शौर्य हैं हम ही।
सत्य अहिंसा धैर्य हैं हम ही।
रोकेंगे खुद को इक्कीस दिन।
घर तो क्या आहार के बिन।
चौदह साल वन में बिताए।
घास की रोटी भी हम खाए।
वर्ष भर तप भी करते हम।
छह माह पेट न भरते हम।
समझेंगे कि नवरात्रा आए।
नौ नहीं इक्कीस कहलाए।
तीस दिवस किए रमजान।
इक्कीस के ही जिन्हें मान।
बुद्ध के उपदेश भी पाए।
यीशु के चालीस निभाए।
फिर कहां कठिनाई है।
संकट की घड़ी जो आई है।
एक थे, एक हैं, एक रहेंगे।
भारत मां की जय कहेंगे।
चटनी लगाकर, सूखी खाकर।
जिएंगे पानी ही पिलाकर।
भूख हो या प्यास हो।
जहां जीने की आश हो।
हम हर हद गुजर जायेंगे।
पर कोरोना को भगाएंगे।
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बुद्धि प्रकाश महावर "मन"
मलारना, दौसा (राजस्थान)
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
★ जिंदगी को करीने से सजाकर देखो..★
एक बार जिंदगी करीने से सजाकर देखो,
कभी कभी अपनों को गले लगाकर देखो।
मानता हूँ वक़्त नहीं है अब किसी के पास,
पर कभी दूजों के ग़म में हाथ बटाकर देखो।।
महलों की कहानियाँ तो बहुत लिखी होंगी,
इश्क़ की रवानियाँ तूने बहुत लिखी होंगी।
फुटपाथों पर भूखे सोकर गुजारते जो रात,
उन्हें रोटी का निवाला खिला कर भी देखो।।
पत्नी के हर काम में ही निकालते हो कमी,
कभी दाल में नमक कम कभी रोटी में नमी।
सुबह से देर रात रसोई में जूझती रहती वह,
कभी खाना बना तुम उसे खिला कर देखो ।।
मुहब्बत की शायरी से डायरी भर दिए हो,
मंचों से चुटकुला सुना के वाहवाही लूटते हो।
बड़ी बड़ी क़िताबों के लेखक तुम बन चुके,
अनाथ एक बच्चे की जिंदगी संवार के देखो।।
जन्म देकर अँगुली पकड़ के चलना सिखाया,
कर्ज़ में भी डूबे रहे पर तुम्हें क़ाबिल बनाया।
अब वृद्ध और अशक्त हो गए हैं मात पिता,
उनके पास भी कभी जाकर बैठ कर देखो।।
★★★★★★★★★★★★★
स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित
★★★★★★★★★★★★★
सादर
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती [उत्तर प्रदेश]
मोबाइल 7355309428
काव्य रंगोली काव्योत्सव 2077
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी
अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
मेला
———
आज मना ले बाबू को माँ
देखा नहीं है कब से मेला
गोलू भोलू मिल सब जाते हैं
बस मैं रह जाता एक अकेला
कुछ भी लूँगा नहीं वहाँ पर
देखूँगा बैठ कर रेलम पेला
साफ पुराने कपड़े पहनूँगा
हाथ में होगा बस एक थैला
हाथ पकड़ रखूँगा बाबू का
घूमूँगा मेले में बन कर छैला
और कहूँगा तब खुश होकर
कल देखा माँ बाबू संग मेला!
——————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
9759252537
कार्यरंगोली काव्योत्सव2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना..
* होली *
द्वेष, अपराध मिटे दुनियां से,
मानवता की अलख जगाये।
होली के इसअवसर पर सब,
आओ हम गीत,खुशी के गाये।।
मन का,हर मन से नाता जोड़े,
खुशियों के हम फूल खिलाये।
रहे प्रेम से,आपस में मिलकर,
ऐसी, मंगलमय होली मनाये।।
मां से बढ़कर, है भारत माता,
संस्कृति का हम, मान बढ़ाये।
दुश्मन का भी सिर चकराजाये,
देश भक्ति का,रंग हम बरसाये।।
राग-द्वेष ना रहे, भारत भू पर,
हिल-मिल के सब खुशी मनाये,
अपनों से हरगिज़ हमसब यारों,
कभी किसी को, नहीं बिसराये।।
रंगों की पावन मस्ती मे,डूबकर,
जो हो ली उसको अब, भुलाये।
हिल-मिल कर हम सब साथ रहे,
" राजस्थानी " यह,राज बताये।।
©®
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
मो. 9351297613
आदरणीय दादा श्री अनिल गर्ग जी एवं श्री नीरज अवस्थी जी को सादर ...🙏🏻🙏🏻
काव्योत्सव २०७७ की प्रतियोगिता हेतु...
एक छोटा सा गीत...
सदा तेरी गलियों से आता रहा हूँ,
नज़म भी वफ़ा ही के गाता रहा हूँ,
मग़र तेरी नज़रों ने तब भी जाना,
तेरी आशिक़ी को निभाता रहा हूँ।
कभी कभी जो याद में तेरी न आई नींद तो,
रातों में तकिये को अश्क़ों से अपने,
मेरी जां मै हरदम भिगाता रहा हूँ।
तेरी आशिक़ी को ......
सुनो सनम यूँ ख़ाब में आना मेरे तो छोड़ दो,
सपने जो देखे थे संग में तुम्हारे,
तब से में उन्हीं को सजाता रहा हूँ।
तेरी आशिक़ी को ......
तेरे लिये ये ज़िंदगी तेरे बिना ये ज़िंदगी
तेरे बिना जीना ऐसे कि जैसे,
मैं ख़ुद को ही ख़ुद से जिलाता रहा हूँ।
तेरी आशिक़ी को ......
आपका अपना
अश्क़ बस्तरी
(विनोद ओमप्रकाश गोयल)
उरमाल..छ.ग.
४९३८९१
परम आदरणीय,श्री अनिल गर्ग जी महोदय।
सादर सप्रणाम, नववर्ष(हिन्दु) एवं चैत्र नव-रात्रि की अशेष शुभकामनायें ।
"जागो नारी"
पतझड़ के उपरांत बसंती बनना होगा।
अब अबलाओं को भी सबला बनना होगा।।
सीता -सावित्री अनुसुया जैसी बन जाओ।
लक्ष्मीबाई,मदर टेरेसा इंद्रा जैसे बन जाओ
दुर्गा रूप अवतरित हो कर जगती में आई।।
भारत की भारत माता भी नारी परछाई
नारी को निज स्वाभिमान हित ,
चंडी बनना होगा।
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
भारत-माँ का गौरव देखो भारत की ही नारी है।
घर की लक्ष्मी कुल की देवी, युगो युगों से नारी है।
शक्ति स्वरूपा पूजा वाला रूप तुम्हे धरना होगा।।
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
कर्तव्यों-अधिकारों पर, तुम बढ़े रहो।
पढ़ो पढ़ाओ निज पथ पर तुम चले रहो।
साक्षरता का मिशन सफल करना होगा,
अब अबलाओं को भी सबला बनना होगा।।
पुरुषों से कम कोई काम नही करना।
मेहनत करना पर विश्राम नही करना।
चट्टानों से टकराने से मत डरना।
सदा प्रगति के रथ पर आगे ही बढ़ना।।
राम-कृष्ण, अर्जुन, ध्रुव को जनना होगा,
अब अबलाओं को सबला बनना होगा।।
अरुणा अग्रवाल लोरमी
छग
होली के शुभ अवसर पर:-
मिरधिंग बजे,
और नाल बजे,
नर नारी का देखो
भाल सजे,
रंग बिरंगे चेहरे देख,
हंस हंस कर सब ले मजे ।
मिरधिंग बजे- - - -
रंग उरे ,गुलाल उरे,
इक दूजे से देखो
सब जुड़े,
रंग बिरंगी रंगों से
देखो ऊर्जा मिलता है,
मुरझाया हुआ पुष्प भी
देखो कैसा खिलता है,
जिस पर लगे ये रंग,
प्रेम हिलोरे लेता है,
इक नये रिश्तो को
ये रंग जन्म ,जन्म देता है,
मदमस्त रंगों से,
हम सब के देखो
पैर खूब नचे ।
मिरधिंग बजे---
रंग भी तब चढ़ता है,
जो जितना जब डरता है,
पकड़ पकड़ के,जकड़ जकड़ के,
रंग भी खूब लगाते है,
चेहरे को पोले के,
बैल की तरह सजाते है,
कपड़े लत्ते सब फट जाते है,
भंग चढ़ा जहाँ वहां डट जाते है,
रंग बिरंगी चेहरों में,
देखो ये तो खूब जचे ।
मिरधिंग बजे- - -
रंग लगाये चाव से,
चढ़े रंग सदभाव से,
भाँती भाँती के रंग यहां,
सब मिलके रहे संग यहां,
यहां की होरी याद करे,
हमरा ये सारा जहाँ,
यहाँ के त्यौहारों ने
विश्व में इतिहास है रचे।
मिरधिंग बजे
और नाल बजे
नर नारी के देखो भाल सजे,
हंस हंस के सब ले मजे ।
---सुनील चौरे"उपमन्यु"
व्यंग्यकार/हास्य कवि
रामेश्वर रोड़, खण्डवा(म0प्र0)
कार्यक्रम अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी की सेवा में विक्रम संवत 2077 की शुभकामनायों सहित।
फसल चक्र ऋतु परिवर्तन का
संकेत है हिन्दी नव वर्ष।
नव रात्री के जयकारों से होता
व्याप्त सब में भक्ति हर्ष।।
सूर्य चंद्रमा दिशा परिवर्तन और
जुड़ी कृषकों की ख़ुशहाली।
विक्रमादित्य भगवान झूले लाल
से भीजुड़ा ऐतिहासिक स्पर्श।।
हिन्दी नव वर्ष नव संवत्सर तो
नये मौसम का आगाज है।
देवी मां औरआर्यसमाज कृपा व
मिला संस्कारों का साज़ है।।
क्या जनवरी अंग्रेजी वर्ष में है
कोई भी ऐसा परिवर्तन।
नव संवत्सर तो ५७ वर्षों की
लिए अधिक आवाज़ है।।
जनवरी नव वर्ष के साथ मनाये
अवश्य हिंदी नव वर्ष भी।
बधाई दें सबको नव संवत्सर
की अवश्य और सहर्ष भी।।
अपने पुरातन मूल्यों का हो
अधिक से अधिक प्रसार।
कभी भूल नहीं पाये कोई इस
का महत्व और दर्श भी।।
हिंदी नव वर्ष की अनंत।असीम।अपार शुभकामनायों सहित।
एस के कपूर "श्री हंस"बरेली
मोब 9897071046
8218685464
काव्य रंगोली काव्योत्सव 2077
काव्योत्सव अध्यक्ष आदरणीय अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना।
जिन सपनों ने गांव गली घर छुड़वाया,
भूख ने तोड़ा तो वे सारे टूट गये।।
दूर से चंदा जैसा लगता था लेकिन,
पास गये तो पाया जुगनू मरा हुआ।
जाते वक्त उमंग भरी थी दिल में पर,
लौट रहे हैं मन को लेकर डरा हुआ।।
जो अम्बर तक को छूने को कहतीं थी,
उन्हीं ख्वाहिशों के घट देखो फूट गये।।
चाकर बनकर सूरज के ताउम्र रहे,
किंतु कभी मुट्ठी भर धूप नहीं पायी।
जिन्हें समय पर हम देवर से लगते थे,
आज समय पर रहीं नहीं वे भौजाई।।
जिनकी आंखों में अपनापन ढूँढ़ा वे,
आशाओं का सकल शहर ले लूट गये।।
अब दोष किसे दें हम आखिर बतलाओ,
दुनिया को, खुद को या, फूटी किस्मत को।
करें प्रार्थना किससे किसको पत्र लिखें।
अपने ही सब नोच रहे जब अस्मत को।।
समय ने करवट बदली तो अगले पल में,
सब रिश्ते सब नाते पीछे छूट गये।
प्रदीप कुमार "दीप"
सुजातपुर, सम्भल(उ०प्र०)
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077, आदरणीय प्रतियोगता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
गीत : नयन की झील में
क्यों हृदय के तार फिर बजने लगे हैं,
कौन है संगीत जो यह दे गया है?
डूबता है मन नयन की झील में अब,
पर कमल-सा और खिलता आ रहा है।
बांसुरी की तान में सरगम भरी है,
दूर बंजारा कहीं पर गा रहा है।
लग रहा है गीत वह कोई पुराना,
फिर मधुर नव कण्ठ से गा के गया है।
घेरती उस पल हमें है गहन पीड़ा,
स्नेह के बंधन कभी जब टूटते हैं।
स्वयं को उस पल कठिन होता मनाना,
स्वयं ही जब स्वयं से हम रूठते हैं।
क्यों मुझे एहसास ऐसा हो रहा है,
भाव कुछ कोई चुरा कर ले गया है।
फिर अकेले में हँसी आने लगी है,
प्रीत की छाया घनी छाने लगी है।
चाहता है मन उसी से बात करना,
फिर वही तस्वीर मुस्काने लगी है।
छोड़ आया था मुझे उस मोड़ पर जो,
थामने को हाँथ आ फिर से गया है।
@ अभिषेक ठाकुर,
शाहजहांपुर,
8127817822
काव्य रंगोली काव्योत्सव 2077 प्रतियोगिता हेतु मेरी रचना
क्या इसीलिए माँ ने जाया
जो तपकर दुःख की अग्नि में
सुख रूपी नीर पिलाती है
कुछ भी खाने से पहले ही
जो पहला कौर खिलाती है।
क्यों इस ममता की मूरत का
तुमको न प्यार तनिक भाया
किलकारी सुनकर जो तेरी
क़िस्मत पर ही इतराती है
ये लाल बुढ़ापे की लाठी
हर्षित हिय को बतलाती है
ठुकराते हो इस देवी को
जिससे पाई पावन काया
क्यूँ दुखा रहे दिल जननी का
जो तुझ पर जान छिड़कती है
तेरी हल्की सी सिसकी से
जो सौ सौ बार तड़पती है
किंचित टूटा ये बंधन तो
फिर नहीं मिलेगी ये छाया
संवाद विषैला क्यों माँ से
क्यूँ तिरस्कार है माते का
हो बहुत स्वार्थी भावशून्य
जो मोल नहीं इस नाते का
ऐश्वर्य सँजो कर क्या करना
जब साथ न हो माँ का साया
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
************
🙏🙏श्री दादा अनिल गर्ग जी
प्रतियोगिता अध्यक्ष एवं संरक्षक काव्य रंगोली📙
आनलाइन काव्योत्सव २०७७
🚩🚩भारतीय नव वर्ष विक्रम संवत् २०७७ के शुभागमन पर आयोजित
काव्य रंगोली काव्योत्सव प्रतियोगिता हेतु रचना।
🌹(नवरात्रि - गान)🌹
अबकी नवरातों में मइया, भर दो सबकी झोली ।
फैले सुख और शांति हृदय में,जग में काव्य रंगोली।।
तुम हो ममता की सागर मां, तुम ही जग की दाती,
मेरे मन मंदिर की मैया, तुम ही दीपक बाती ।
शक्ति स्वरूपा,आदिशक्ति हो फिर भी दिल की भोली,
फैले सुख और शांति हृदय में, जग में काव्य रंगोली।।
भक्ति तुम्हीं हो, शक्ति तुम्हीं हो,तुम हो भाग्यविधाता,
हम सब तेरी संतानें हैं,तुम हम सबकी माता ।
तेरी ज्योति में ' दीवाली है फूलों की है होली,
फैले सुख और शांति हृदय में, जग में काव्य रंगोली।।
अबकी नवरातों में मइया भर दो सबकी झोली ।
फैले सुख और शांति हृदय में, जग में काव्य रंगोली।।
दुर्गा प्रसाद नाग
ग्राम व पोस्ट नकहा
लखीमपुर खीरी
मो. 9839967711
------/////--💐💐
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को सादर समर्पित मेरी रचना....🙏
गीत : ढाई आखर बांचो तो
पँख जलें तो जल जाने दो, लौ के ऊपर नाचो तो।
जीने का आनंद मिलेगा, ढाई आखर बांचो तो।
हमने चाहा तो ये सारी
दुनिया ही अनुकूल लगी।
और हटाया मन इससे तो
बिल्कुल हमें फिजूल लगी।
लगन पपीहे की कहती है, अपनी चाहत जाँचो तो।
प्यार जहां है वहां कभी
शंकाएं जन्म नहीं लेतीं।
जीत-हार की दुविधाएं भी
हैं तकलीफ नहीं देतीं।
जिस जूनून में जला पतंगा, उस जुनून में झाँको तो।
मैंने जितना प्यार दिया है
उससे ज्यादा पाया है।
इसीलिये कहता हूँ तुमसे
प्यार सदा रंग लाया है।
दीवानेपन की हद तक तुम, अपना मकसद आँको तो।
-ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
👌👌👌👌👌👌
काव्य रंगोली काव्य उत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना।
स्वर्ग से सुंदर
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प्यार की शमा हर एक दिल में जलाना है हमें,
यह धरा स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है हमें।
अपने तो अपने हैं गैरों को भी अपना कर दे,
प्यार का राग कोई ऐसा सुनाना है हमें।
राह में कोई मिले हमको अगर गिरता हुआ,
अपने हाथों से उसे बढ़कर उठाना है हमें।
दिल भी मिल जाएंगे हाथों को मिलाते रहना,
आज जन-जन को गले अपने लगाना है हमें।
किसी की आंख में आंसू ना आने पाए,
आज हर आंख के आंसू को चुराना है हमें।
प्यार की शमा हर एक दिल में जलाना है हमें,
यह धारा स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है हमें।
ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली।
03, ऑफिसर्स कॉलोनी, नकटिया, बरेली, पोस्ट पी0ए0सी0, बरेली।
9837753290.
👍👍
*तलाक़ तलाक़ तलाक़*
कहूँ मैं किससे अपना हाल
कहूँ मैं किससे अपना हाल
1- घर में आई जब दूसरी बिटिया
बिखर गई तब मेरी दुनिया
माथे पर बल पड़े पिता के
दादी की चढ़ गईं भृकुटियाँ
तीन तलाक़ मुझे पकड़ा के
घर से दिया निकाल
कहूँ मैं किससे ..........
2- अब्बू का घर अब मेरी दुनिया
साथ हैं मेरी दोनों बेटियाँ
भैया गरमाते हर बात पे
बेबस हैं मेरे अम्मी अब्बा
मेरे बच्चे सहमे रहते
भाभी करें धमाल
कहूँ मैं किससे अपना हाल
3- अँधियारे में एक किरण सा
आया फ़ैसला न्यायालय का
तीन तलाक़ ग़लत बतलाये
बढ़ा हौसला अब औरत का
मनमानी मर्दों की अब नहीं
अब न गलेगी दाल
कहूँ मैं किससे अपना हाल
कहूँ मैं ..........
डॉ.आभा माथुर
चलभाष 9919577775
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077
आदरणीय,
प्रतियोगिता-अध्यक्ष,श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
सिंधु-वंदना*
हे महाशक्ति!हे महाप्राण!मेरा वंदन स्वीकार करो।
कर दो संभव मैं तिलक करूँ,मेरा चंदन स्वीकार करो।।
हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
युगों-युगों से इच्छा थी,कब तेरा दीदार करूँ?
नहीं पता चाहत थी कब से तेरा ख़िदमतगार बनूँ?
करूँ अर्चना तत्क्षण तेरी,मेरा क्रंदन स्वीकार करो।।
हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
ललित ललाम निनाद तुम्हारा महाघोष परिचायक है।
जलनिधि का नीलाभ आवरण चित-हर्षक-सुखदायकहै।
करो कृपा मैं आसन दे दूँ, मेरा स्यंदन स्वीकार करो।।
हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
पूनम का वो चाँद सलोना जब अंबर पे होता है,
तू ले अँगड़ाई ऊपर उठ कर बाहों में भर लेता है।
बंधू प्रेम-धागे से तुझ सँग, मेरा बंधन स्वीकार करो।।
हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
तू पयोधि-उदधि-रत्नाकर,जल-थल-नभ-चर पालक है।
प्रकृति-कोष. के निर्माता तू,जीवन-ज्योति-विधायक है।
चरण पखारू मैं भी तेरा,मेरा सिंचन स्वीकार करो।।
हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372
काव्योत्सव २०७७ प्रतियोगिता हेतु
(कविता)
===============
(क्षमादान)
=======
सूना-सूना आसमान है
सहमा-सहमा सा किसान है
अब तक अपनी कह न पाया
देखो कैसा बेजुबान है
मिला रहा में इक दिन मुझको
जो कहना खुद को महान है
लगा ख़ुदा बनने वो खुद ही
देखो कितना बदगुमान है
यहाँ जिधर भी देख रहा हूँ
हर सू दिखता घमासान है
यूँ दुनियां में दान बहुत है
सबसे अच्छा क्षमादान है
नाम-डाँ अजीत श्रीवास्तव (राज़)
पता- कृमोलशा मेडिकल्स
गांधी कला भवन के सामने
गांधी नगर बस्ती
उ०प्र० - 272001 मो०न०- 9336815954
--काव्य रंगोली काव्योत्सव २०७७
अध्यक्ष --- श्री अनिल गर्ग जी
को सादर समर्पित मेरी रचना---
---- गीतिका
फैला कैसा रोग,विश्व में है कोरोना।
देख सभी का हाल, आज आता है रोना।।
बैठे घर में लोग, बंद बाहर है जाना।
करते सारे काम ,पकड़ कर कोई कोना।।
दुष्ट देश है चीन, जहाँ से यह पनपा है।
जिसके प्रति है आज,सजग सबको ही होना।।
रखो स्वयं को स्वच्छ, सावधानी अपनाओ।
रहो भीड़ से दूर, हाथ साबुन से धोना।।
इसका अभी इलाज,नहीं है कोई आया।
इसका सिर्फ़ बचाव, करो तुम कभी डरो ना।।
सरकारी निर्देश, सदा तुम उनको मानो।
कोई हो अफ़वाह, उसे तुम कभी सुनो ना।।
जन जन का है युद्ध, महामारी से सीधा।
जायेंगे हम जीत ,धैर्य किंचित मत खोना।।
विनोद शर्मा "सागर"
हरगाँव- सीतापुर
उ0 प्र0
*काव्य रंगोंली काव्योत्सव 2077 प्रतियोगिता हेतु अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी के समक्ष कविता प्रेषित है कृपया स्वीकार करने की कृपा करें*
------------------- -------------------
गांव की मिट्टी में शोधी महक है।
पेड के है छांव चिडियों की चहक है।
संस्कारो से अभिसिंचित लोग है।
कार्य मे मिश्रित यहां पर योग है।
सादगी है मूलता है न बनावट,
मिल रहे है प्रेम से न है अदावत।
बोलियो मे अजब सी मिठास है,
गांव की मिट्टी जरा कुछ खास है।
प्राकृतिक हवा पानी शुद्ध है
कम है कीमत वस्तु की दर हाफ है।
मिलकर रहते कुटुम इकसाथ है
मेहनत होती है यहां दिन रात है।
कदम दर कदम बडो की सलाह
काश मिल जाता पुराना गांव नीम की छांह
शोधी महक मिट्टी की गांव मे बुलाती है
याद आती गांव की आंखे भर आती है
समाज है मिलकर मदद करता यहां
ढूंढता गांव सा मिलता कहां है।
आम पीपल नीम की घनी छांव मे
खेलते थे दिन दिन कई जब गांव मे
टूटे खिलौने से ही मिल जाती खुशी थी
आज वैसी खुशी मिलती नही है।
धऩ तो मिलजाता कृत्रिमता नगर मे
जहर है प्रदूषण बचकर रहो शहर मे।
नाम- विन्ध्य प्रकाश मिश्र
पता- नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उप्र
मो 9198989831
विषय -बेटी
हर किसी के नसीब में कहाँ होती है बेटियां,
वो बड़े खुशनसीब होते हैं जिनके यहाँ होती है बेटियां,,
जन्म लिया जब उसने सबको मतवाला कर दिया,
बिना चिरागों के जैसे घर में उजाला कर दिया,,
फूल सा चेहरा है जिसका, होठों पर मंद मंद मुस्कान है,
मेरा ही रूप है वो, और मेरी ही पहचान है,,
दुनिया में यह रीत है, कैसे बनाई,
एक बेटी हो जाती है अपनों से ही पराई,,
यूं तो हर घर की आन बान शान होती है बेटियां,
मगर एक अजनबी परिवार के पहचान भी होती है बेटियां,,
क्या करें उसके अपने थे हम,
आज बेगाने हो गये,
उसे देखकर ऐसा लगे जैसे देखो उसे जमाने हो गये,,
रचना वानिया
शिक्षिका, लेखिका,
जागृति विहार 50 /8
मेरठ, उत्तर प्रदेश,
मोबाइल नंबर-8449835355
मैने देखा यहाँ शोर भी बहुत है ।
आक्रोश भी है एकात भी है
अावेश भी है
अब वियोग मे रहने दो।
मै मौन हूँ ,
मै...............
कही शोर शराबे मे
कभी मानव की। भीड मे
नदियों की। कल कल धारा मे
कही पक्षियों की। चहचहाट मे
कहीं दरिनदो की आहट से
आतंकियो की। बरबरता से
अब कहीं दूर कहीं दूर रहने दो
मै मौन हूँ
मै ..............
आज कौन किसे सुनता है
अब कौन किसे समझता हे
शायद आतमा भी मर चुकी है
रुह को कहीं अौर कहीं अौर भटकने हो।
मै मौन हू
मै................
मै मौन हू मै मौन हू
मुझे मौन रहने दो,
निशब्द सा हो गया हू मै
अब मत कुछ कहने दो
मै मौन हू , मै मौन हू
मै मौन हू...........
मौन रहने हो।
जयप्रकाश सूर्य वंशी ,, किरण ,,
नागपुर साकेत नगर ९४२३१२६२११
सादर प्रस्तुत ।
🙏*काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी समर्पित मेरी रचना.
*सरहद*
सरहद से भैया का आया,
इस राखी पर पत्र मुझे।
लगता है मिल गया बिना,
माँगे सिंहासन-छत्र मुझे।
पिछली बार किसी कारणवश,
राखी उनको मिली नहीं।
सूनी रही कलाई उनकी,
मन की कलियाँ खिली नहीं।
मिल जाने से दिखते हरदम,
भैया ज्यों सर्वत्र मुझे।
सरहद से भैया काआया,
इस राखी पर पत्र मुझे।
पता लिखा था उसमें *सरहद*
जहाँ भेजनी थी राखी।
समय पूर्व भेजूँ कहना था,
नहीं लिखा था कुछ बाकी।
हँसी-खुशी लेकर आया था,
इस राखी का सत्र मुझे।
*सरहद* से भैया का आया,
इस राखी पर पत्र मुझे।
झट से राखी भेजी मैंने,
हो जाए न कहीं देरी।
हाथ जोड़कर करूँ प्रार्थना,
मिल जाए राखी मेरी।
मिली बहन की राखी; आया,
खत भैया का अत्र मुझे।
*सरहद* से भैया का आया,
इस राखी पर पत्र मुझे।
सुनीता मिश्रा 'सुनीत'
राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका जबलपुर (म.प्र)
मो.9479843702
श्री दादा अनिल गर्ग जी के समक्ष
प्रतियेगिता हेतु एक गीत प्रस्तुत है
"प्रेम गीत "
तुम जो अधरों पे अपने सजा लो मुझे
गीत बन जाऊँ मैं गुनगुना लो मुझे
जिन्दगी ये सुहानी तेरे साथ है
हो अगर साथ तुम गम की क्या बात है
तुमने ख्वाबों को मेरे है जीवन दिया
बन के सावन फिर आकर भिगा दो मुझे
तुम जो अधरों.........
राह मुस्किल थी तुम साथ मेरे रहे
गम हों खुशियाँ हो सब हमने मिल कर सहे
है बहुत प्यार तुम से ये इकरार है
कर सके प्यार का पर न इजहार हैं
खो गया हूँ मैं दुनिया की इस भीड़ में
दूर रह कर न अब यूँ सजा़ दो मुझे
तुम जो अधरों..........
हाथ में हाथ ले फिर ये वादा करें
गम हो या हो खुशी मिल के साँझा करें
तुम मेरा दिल मैं धड़कन रहूँगा सदा
राह में फूल बन मैं बिछूँगा सदा
हाथ थामो मेरा अपने फिर हाथ में
साथ चल मंजिलों से मिला दो मुझे
तुम जो अधरों ...........
प्रदीप भट्ट
काव्यरंगोली काव्योत्सव२०७७ प्रतियोगिता हेतु-
आदर्नजय दादा अनिल गर्ग जी के अवलोकनार्थ
नववर्ष की बेला में
****************
नववर्ष से जुड़ जाती है
जीवन में नव आशाएँ।
नये विचारों से प्रकट होती
जीवन की परिभाषाएँ।।
कर रही अभिवादन नववर्ष का
नव आकांक्षाएँ- नव जिज्ञासाएँ।
इनके बूते ही मिलती है
जीवन में अलौकिक सफलताएँ।।
गत वर्ष स्मृति में रख
भूलों को न दोहराएँ।
अवगुणों को त्यागकर
हम सद्गुण अपनायें।।
होता है दुःखों का अंत
सुख के हम बीज बोयें।
परोपकार का पथ चुन
नववर्ष में पग धरें।।
हमें देश पर गर्व हो
देशप्रेमी बन जाएँ।
कथनी-करनी एक हो अपनी
नववर्ष में स्वदेशी बन जाएँ।।
डाँ. जितेन्द्र"जीत"भागड़कर
ग्राम-कोचेवाही, (लाँजी)
जिला-बालाघाट, म.प्र.
#####
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित
कविता
स्कन्दमाता **
सर्वप्रथम मां तेरे पादपंकजों की पूजा करूं।
फिर मां तेरा हृदय देवालय में ध्यान धरूं।।
आज पंचमदिन स्कन्दमाता सहृदय तेरी वंदना करूं।
सर्वजन नीरोगी, सुरक्षित एवं स्वस्थ रहें प्रार्थना करूं।।
तेरे पंकजचरणों में पल पल बीते मेरा।
यही इच्छा हर जन्म मिले सहारा तेरा।।
अब निज सारा जीवन सौंपा मां तुझे।
पूर्व जग रक्षित बाद संभाल मुझे।।
शांति धैर्य साहस हिम्मत और सद्बुद्धि दो मां आवाम को।
हम सब तेरे ही प्रिय इकलौते लाल है भूलना ना मां आवाम को।।
नाम- पुरंदर शर्मा
वाया खूड़ जिला-सीकर राजस्थान
सम्पर्क सूत्र- 8432241964
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित
मेरा स्वाभिमान
मेरा स्वाभिमान मुझें
मदद माँगने से रोकता हैं।
डर है कहीं अहेर ना बन जाऊँ
डर भी उस पुरूष से
जिसे स्त्री ने ही जन्मा
स्त्री के उदर में नो माह रहा
स्त्री के रक्त से मिली जिसे पुष्टता
स्त्री के बदौलत जो हयात में आया
पुरुष तुम्हारा खुद का क्या वजूद है??
सृष्टि में …??
तुम्हे जन्मा स्त्री ने
तुम लोभि हो स्त्री के
कभी कभी लगता है
वनिता ही वनिता के शोषण का कारण है,
एक ने जन्मा दूसरी ने सहा
उदाहरण के अनेक स्वरूप प्रस्तुत है।
एक साक्षात उदाहरण रामायण
सूर्पणखा की करनी ओर
सीता ने दी अग्निपरीक्षा
आज नवरात्रि के पर्व में
माँ दुर्गा की प्रतिमा को एकटक निहारते
मैंने प्रश्न किया?
माँ तुम सती युग की दुर्गा
तुमने किये वध वहशियों के
तुमसे मिलती आयी
जगजननीयों को प्रेरणा
फिर सतयुग से लेकर आधुनिक युग तक
नारी की दुर्दशा क्यूँ?
उत्तर मिला…
की नारी सिर्फ मूरत बनकर ही पूजी जा सकती हैं
जिस दिन अपने शिलाखण्ड को असल जिंदगी में
लाती हैं, उसका घर टूट जाता हैं।
वह बेघर कर दी जाती हैं।
इन सब से ऊपर उठने के लिए, स्त्री को अपने असल,
स्वाभिमान पर अडिग रहना होगा।
लेखिका
कंचन झारखण्डे
भोपाल मध्यप्रदेश
आदरणीय अनिल गर्ग जी ,
प्रतियोगिता अध्यक्ष एवं
संरक्षक महोदय ,काव्यरंगोली
पोर-पोर ने पीर रची है कैसे गीत रचाऊं साथी
कैसा गीत सुनाऊं रे !
ढूंढ-ढूंढ थक गया विकल मन अपनापन संबंधों में
उलझ रही है जीवन गति ही नित नूतन अनुबंधों में
आंखें पुरनम, सांसें गिरवी,
कहने को है आजादी
पग-पगपे रोड़े संकट के , सड़कें हैं प्रतिबंधों में
तड़के उठ बंसी टेरूं या खुदको ही भरमाऊं साथी।।
कैसा गीत सुनाऊं रे !
लाभ लोभ छल छंद प्रबल हैं, अप संस्कृति हो रही समर्थ
भौतिकता की भवबाधा में संस्कृति खोती जाती अर्थ
विज्ञापित चहुं दिशि विकास है,
पर परिणति सम्मुख विनाश है
आस्थाओं के अवमूल्यन में जिजीविषा ही लगती व्यर्थ,
मन मयूर झूमे जिसपे वो मेघ कहां से लाऊं साथी
कैसा गीत सुनाऊं रे !
आशाओं के महल ढह पड़े , मलबे में अरमान मिले
विश्वासोंं की बटमारी में छिन सारे सम्मान चले
अब क्या रहा शेष जीवनमें
मन भटका है उलझन में
मुंह की खा गिर गया अहं, अभिशापों में वरदान ढले
टूटे तारों में स्वर कैसे मन वीणा के लाऊं साथी
कैसा गीत सुनाऊं रे !
नन्दकुमार आदित्य ,कविवासर ,मालती मंडपम्
रानीपुर, चम्पारन ८४५४५०
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष सगरी अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
प्रबल हो आस तो विश्वास का संसार होता है|
तनिक -सी छाँव भी अक्सर बड़ा उपकार होता है|
न जाये व्यर्थ मानव जिंदगी भी यह समय कहता,
प्रफुल्लित हो जगत-जीवन समुन्नत अर्थ ही रहता,
सहज आशा नई उम्मीद होठों पर सदा आती,
सुबह का राग लेकर गान चिंतन गीत में सजता |
अधर पर रागिनी लेकर मधुर आभार होता है|
प्रबल हो आस तो विश्वास का संसार होता है|
मधुरता की लिए वाणी विनय को तौलना होगा,
हमें भी सभ्यता खातिर तनिक तो सोचना होगा,
कहाँ सुनता जमाना अनकही कहते सभी जिसको,
दया सागर कृपा करना यही आधार होता है|
प्रबल हो आस तो विश्वास का संसार होता है|
जुदा होकर जमाने से कहानी और लिखना है,
अभी तो फूल-कलियों से चमन को और खिलना है,
जमाने के किसी झूठे दिखावे में नही आना,
अलग पहचान सबसे खूबसूरत और दिखना है,
सही होता निशाना जब हृदय अंगार होता है|
प्रबल हो आस तो विश्वास का संसार होता है|
निरुपमा मिश्रा 'नीरू' मो.-8756697687
गीत
जय हो माता भारती तेरी जय हो माता भारती
अन्नपूर्णा तू है माता तू ही हमकू पारती
जय हो माता भारती......
धर्म जगत में मैया तूने एकी बनायो खातो
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सगते मां को नातो
अपने धर्म को चोला पहने सग कर रहे हैं आरती
जय हो माता भारती तेरी जय हो माता भारती
वीर सपूता या धरती कू शीश झुकामें में देवता
करे इबादत मौला तेरे नाम की तस्वी फेरता
कृष्ण कन्हैया बन के आयौ तेरे रथ को सारथी
जय हो माता भारती तेरी जय हो माता भारती....
आन बान और शान के खातिर कसमें हमकू खानी है
कुर्बान हुए जो वीर माँ उनकी गाथा फिर दोहरानी है
एक ते बढ़के एक खड़ो है रण में सोनू महारथी
जय हो माता भारती तेरी जय हो माता भारती...
अन्नपूर्णा तू है माता तू ही हमकू पारती
जय हो माता भारती तेरी जय हो माता भारती....
इस गीत में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है
कवि कैलाश सोनी उर्फ सोनू कामा भरतपुर राजस्थान
🙏👍
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित
मौसम ।
रास्ते वही हैं,
मौसम आते-जाते हैं,
कल तक सूखा था,
परछाइयाँ थीं,
तपती धूप थी,
तीखी रोशनी थी,
सन्नाटा था ।
आज घनेरे बादल हैं,
मूसलाधार बारिश है,
तेज़ बौछार है,
रिमझिम फुहार है,
राग मल्हार है।
कल तक हवा में हिचकोले खाते
बड़े दरख़्त थे,
आज पतझड़ में
गिर चुके हैं सारे,
सूखे, पीले पड़े पत्ते,
खड़े हैं दरख़्त सूने, शांत...
ग़म ना कर,
बहारें फिर आयेंगी,
खिलेंगी कोंपलें फिर से,
फिर लौटेगा चिड़ियों का कलरव,
फिर से हरा-भरा होगा दरख़्त,
फिर जीवन मुसकाएगा।
डॉ. विनीता अशित जैन.
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी यह रचना:-
हर्षोल्लासित डाल-डाल ने,सौरभ को मनमीत लिखा।
नववर्ष तुम्हारे स्वागत में है,मैंने भी इक गीत लिखा।।
अधरों को आनन्दित करके,
मधुर मंद मुस्कान भरे।
सूख न पाए स्रोत-स्नेह का,
प्रेम-सुधा निर्बाध झरे।
वैर-भाव,ईर्ष्या को तज कर,स्नेह भरा संगीत लिखा....
संचित रहें हृदय में हमारे,
गीता-वेद-पुराण सभी।
उच्चारित हो उन्मुक्त कण्ठ से,
ध्वनि ओम की कालजयी।
निष्क्रिय जीवटता को मैंने,चेतनसँग प्रणीत लिखा...
लायेंगे सन्देश शांति का,
बुध,अशोक महावीर सदा।
राष्ट्रप्रेम की ज्योति जले अब,
शंखनाद चहुँओर हुआ।
संचित बल को रामबाण ,संकल्पों वाली जीत लिखा.....
अंधियारे पथ को आलोकित,
करे रश्मियों का ओजस ।
स्वस्थ रहें, सानन्द रहें सब,
प्रतिपल हो नूतन उत्कर्ष।
चैत्र माह का घाम'नील' ने, शशि के जैसा शीत लिखा...
( नीलम मुकेश वर्मा)
Mob:- 8094699141
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
अभी तो हूँ जिन्दा, मैं मारा नहीं हूँ।
अभी ज़िन्दगी से मैं हारा नहीं हूँ।।
तू दिल की बुझा दे अगर रोशनी तो,
जहां में कभी फिर उजाला ना होगा।
अगर चाह ले तू दफा एक ये तो,
किसी का भी जीवन काला ना होगा।
मुझसे ना कर तू, अब कोई आशा,
दिया हूँ मैं एक, कोई तारा नहीं हूँ।।
तू चाहे डुबोना तो, क्या बचने की कोशिश,
तू चाहे तो नौका सभी पार कर लें।
यहाँ नफरतों के न हों फिर से सौदे,
हो तेरा इशारा सभी प्यार कर लें।
मैं किसको डुबोऊं? किसे पार कर दूँ?
मैं खुद ही भँवर हूँ, किनारा नहीं हूँ।।
अभिजित त्रिपाठी
पूरेप्रेम, अमेठी
मो. - 7755005597
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित
अकेला खड़ा हूँ चौराहों पर,
गली में कूचो में सँकरी राहों पर,
मस्जिद के बगल में, मंदिर के पास,
मन में लिए एक नन्हीं सी आस,
मेरा क्या है रहूँ या न रहूँ,
पर रहना चाहिए मेरा हिन्दुस्तान,
मेरे सपनो का हिन्दुस्तान।
यकीनन अकेला होकर भी अकेला नहीं हूँ मैं
सुनसान गलियाँ मेरी कर्मभूमि हैं,
रायफल मेरा शस्त्र मेरी सच्ची दोस्त है,
देश कि सेवा में
अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना,
रक्तिम हर बूँद से मातृभूमि को सिंचित कर देना,
यही मेरा अंतिम उद्देश्य
यही मेरा स्वर्णिम लक्ष्य है।
अकेला नहीं हूँ मैं
हजारो फर्ज लिए ये वर्दी मेरा संबल है,
मुझ अदना से बालक का बल है।
माँ भारती का सपूत हूँ मैं,
किसी माँ का पूत हूँ मैं,
किन्हीं हाथों में सजी मेंहदी का हरजाई हूँ मैं,
लरजती चूडियों का सौदाई हूँ मैं,
नन्हीं सी परियों, छोटे - छोटे भाईयों का बड़ा भाई हूँ मैं,
पिता कि आँखों का नयनतारा हूँ मैं,
निर्बल बेसहारो का संसार सारा हूँ मैं,
फिर कैसे
अकेला हो सकता हूँ साहब,
खुद में एक संसार सारा हूँ मैं।
हाँ तूफानो कि बस्ती में
एक दिया - सा जलता हूँ मैं,
मस्ती में जीता हूँ
जलता हूँ मचलता हूँ मैं,
लड़ता रहूँगा इन आँधियों से
जीवन के अंतिम सफर तक,
और अंत में
बुझ गया तो क्या हुआ ,
अमर हो जायेगी ये जीवन कि सद् गति
अमर हो जायेगी एक और अमर जवान ज्योति।
आशीष मोहन "देवनिधि"
सिवनी
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
मौन तुम्हारा
मौन तुम्हारा अल्हड़ सा।
मिट्टी के से कुल्हड़ सा ।।
सौंधी खुशबू नेह की प्यारी ;
चटख चाय की प्याली सा ।।।
मौन तुम्हारा अल्हड़ सा।।।
कितनी चंचल कितनी बातूनी।
नित नूतन सी अनकही कहानी ।।
झरती मोती हँसती अखियाँ
काजल रेख किनारी सी ।
पलको पर कोमल धारी सी ; सहज सरल हो जाती हैं.
अँखियाँ कितनी प्यारी सी।।
लेती खुशी हिलोरे जिनमे
दो नदियों की जोड़ी सी।।।
डूब ही जाता पल प्रतिपल में
लगती एक पहेली सी ।।।
जितना गुस्सा मुख पर होता
उतनी सरल बयानी सी।
गम्भीर कभी छोटे बच्चे की नादानी सी।।।
अल्हड़ मस्त बेबाकी सी
आँखे तेरी प्यारी सी।।।
सबके लिए सँजोती सपने
अलकों में बांधे उम्मीद कई ।।
कहीं बंधा सा खुद को पाता।
विस्मृत करती डोर नई ।।
विस्मृत करती डोर नई।।। “
नवीन नामदेव"निर्झर"
व्यख्याता अंग्रेजी उज्जैन
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
माँ गोरा बनीं दुल्हनिया और दूल्हे शिव त्रिपुरारी
शिव शंकर चले ब्याहने ले नंदी की असवारी
है अजब गजब बाराती दूल्हे का अजब वेश है
गले साँप बड़ा सा लटके और खुले पड़े केश है
पर फिर भी गुण विशेष है , वो तीन नेत्र के धारी
शिव शंकर चले ब्याहने ले नंदी की असवारी
है जटा जूट शिव शंकर मस्तक पर चाँद विराजे
गले नर मुंडो की माला संग हाथ में डमरू साजे
बज रहे है गाजे बाजे है , भूत प्रेत की यारी
शिव शंकर चले ब्याहने ले नंदी की असवार
कवि मंगल शर्मा
रेवाड़ी
9813185427
काव्यरंगोली काव्योत्सव २०७७,
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष एवं संरक्षक,
श्री दादा अनिल गर्ग जी.
कैसे किया पराया
जिन हाथों ने देकर सहारा,
चलना तुझे सिखाया।
जिन हाथों ने सबसे पहले,
प्यार से कौर खिलाया ।।
जिन हाथों के स्नेहाशीष से,
जीवन तेरा हर्षाया।
उन हाथों को पकड़ एकदिन,
क्यों बृद्धाश्रम पहुंचाया?
तुने कैसे किया पराया ?
जिन आंखों ने देखें सपने,
तेरे हर खुशीयाली के ।
हरपल , सजे घर-आंगन तेरा,
जैसे जगमग दीप दिवाली के।
अंधियारी उन आंखों को,
अब क्यों कर तुने रुलाया ?
पकड़ हाथ तू मात -पिता का,
क्यों बृद्धाश्रम पहुंचाया ?
तुने कैसे किया पराया ?
भूल गए क्या मां की लोरी,
नित गाकर तुझे सुलाया।
तू जागे तो जागे मैया,
निज पलकों पर तुझे बिठाया।
लाल -पीली ये तेरी आंखें,
अब ,क्यों कर उसे डराया?
तुने कैसे किया पराया ?
क्यों बृद्धाश्रम पहुंचाया ?
चंद्र किशोर चौधरी, कोलकाता
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
विधा -- मुक्तक
मात्राभार -- 28
अम्बे माँ
**********
जगजननी हे अम्बे माँ, करूँ आराधना तेरी।
मुझे लेलो शरण अपनी, सफल हो साधना मेरी।
मुझे तेरा सहारा है, न दूजी आस है कोई,
मेरी मैया जरा सुन लो, करूँ मैं वंदना तेरी।
खड़ी मँझधार में देखो, मेरे जीवन की नैया।
लिए पतवार हाथ में, तुम ही तो हो खेवैया।
लगा दो पार अब इसको, नहीं अब डगमगाने दो,
लगी है बस तुम्हीं से अब, सभी को आस हे मैया।
तुम्हीं हो ज्ञान का सागर, हरो अज्ञानता मेरी।
न सूझे राह अब दूजी, शरण हम आ गए तेरी।
हो तुमही आदिशक्ति माँ, तुम्हीं दुर्गा, तुम्हीं काली,
हरो संताप अब सारे, विपत्ति जो भी है मेरी।
निगाहें फेरकर देखो, यही है कामना मेरी।
कृपा दृष्टि जो पड़ जाए, मिले शुभकामना तेरी।
तेरे दर के सिवा दूजा, नहीं मेरा ठिकाना है,
करोगी पूर्ण है आशा, सभी मनकामना मेरी।
रूणा रश्मि
राँची , झारखंड
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
"प्राकृतिक दृश्य"
खुली हवा में देखो ये पत्ते कैसे लहरा रहे हैं,
मन्द-मन्द हवा में पूरे तन-मन को बहला रहे हैं।
पेड़ों के नीचे लहराती हरी-हरी प्यारी घास है,
खुद-ब-खुद बुलाये इशारों से अपने पास है।
ये खुद के आगोश में लेने को करती है,
मुझको हर तरफ से समेटने को करती है।
ये जो जगह-जगह जो पेड़ लगे हैं,
कुछ हरे-भरे, कुछ पर फल लगे हैं।
कभी कोई सूखा पत्ता टूटकर लहराता मेरे पास आ गिरता है,
फिर कोई फल मस्त अकेला इतराता दिखता है।
पेड़-पत्तियों की धूप-छांव से अद्भुत आकृति बन रही है,
कुछ किरणें छुप रहीं कुछ उन्हीं से पार हो रहीं हैं।
किनारे-किनारे प्यारी-प्यारी फुलवारियां लग रही हैं,
कुछ पर फूल लगे कुछ पर तितलियां मंडरा रहीं हैं।
इर्द-गिर्द कुछ पँछीयाँ चहचहा रहे हैं,
कुछ बैठे हैं कुछ आसमान में उड़ रहे हैं।
सब अद्भुत नज़ारे मेरी आँखों के सामने हो रहे हैं
मै एकांत बैठा देख रहा और मेरे हाथ इन्हें लिख रहे हैं।
इसी सिलसिले को मैं देखता जा रहा हूँ,
और मन-ही-मन खुश होता जा रहा हूँ।
-अनूप'बसर'
बुलंदशहर(उत्तरप्रदेश)
9870688757
काव्य रंगोली काव्योत्सव २०७७ प्रतियोगिता हेतु रचना..
आ.दादा अनिल गर्ग जी
विधा.रोला छंद
रचना कार.. बाबू लाल शर्मा बौहरा *विज्ञ*
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान ~~बाबूलालशर्मा
(रोला छंद)
चंद्र, इन्द्र ....हम
चंद्र इंद्र नभ देव, सदा शुभ पूज्य हमारे।
हम पर रहो प्रसन्न, रखो आशीष तुम्हारे।
लेकिन मन के भाव, लेखनी सच्चे लिखती।
देव दनुज नर सत्य, कमी बेशी जो दिखती।
.
क्षमा सहित द्वय देव, पुरानी बात सुनाऊँ।
लिखता रोला छंद, भाव कुछ नये बताऊँ।
शर्मा बाबू लाल, सुनी वह तुम्हे सुनाता।
बीत गया युग काल, याद फिर से आजाता।
.
ऋषि गौतम की पत्नि, अहल्या सुन्दर नारी।
मोहित होकर इन्द्र, स्वयं की नियति बिगारी।
आये गौतम वास, चन्द्र को संगी लेकर।
हुए कलंकित दोउ, सती को धोखा देकर।
.
भोले मातुल चंद्र, इन्द्र के वश में आकर।
मुर्गा बन दी बाँग, प्रभाती, आश्रम जाकर।
अपराधी थे इन्द्र, चंद्र तुम बने सहायक।
ढोते भार कलंक, मीत जब हो नालायक।
.
ऋषि गौतम दे शाप, संत थे वे तपकारी।
बने कलंकित चन्द्र, इंद्र सहस्त्र भगधारी।
पाहन हो अभिशप्त,अहल्या विधि स्वीकारी।
त्रेता युग जब राम, करेंगे भव अविकारी।
.
हुये चंद्र बदनाम, जगत तुम नारि विरोधी।
तब भी भारत भूमि, हमारी हुई न क्रोधी।
धरा भारती धीर, तुम्हे भाई सम माना।
मातुल कहते लोग, भारती रिश्ता जाना।
.
कैलाशी परमेश, शीश पर तुमको धारे।
कृष्ण चंद्र भगवान, जन्म ले वंश तुम्हारे।
इतना दें सम्मान, तुम्हे हम भारत वासी।
क्षमा किये अपराध, तुम्हारे चंद्र सियासी।
.
चंद्र तुम्हारा मित्र, इंद्र जब भी भरमाया।
नल राजा अरु कृष्ण, सभी से था शर्माया।
हम भारत के पूत, धरा मरु में रह लेते।
सुनें इंद्र अरु चंद्र, कष्ट सुख सम सह लेते।
.
होगी अब भी याद, तुम्हे जयंत की घटना।
सींक बाण की मार, भटकता चाहा बचना।
मिला नहीं वह देव, कहे शचि पुत्र बचालूँ।
शरण गये सिय राम, तभी दी क्षमा कृपालू।
.
रहे इन्द्र को याद, पार्थ के गुण उपकारी।
तजी अपसरा स्वर्ग, देख ऐसे व्रतधारी।
कैसे भी हो स्वर्ग, नहुष ने राज चलाया।
दैव शाप सम्मान्य,देख शचि धर्म निभाया।
.
वरना हम तो सिंह, नहुष के देश निवासी।
करें स्वर्ग प्रस्थान, शीघ्र बन चंदा वासी।
दसरथ अरु मुचुकंद, बने देवों के रक्षक।
लाते तुम्हे उतार, अहल्या के सत भक्षक।
.
डाल इन्द्र को कैद, सजा देते, तब भारी।
बच्चा बच्चा आज, सुनाता, तुमको गारी।
पर मर्यादित राम, अहल्या जन उद्धारी।
इन्द्र चंद्र अपराध, क्षमा दे दी शुभकारी।
.
सृष्टि संचलन हेतु,बचा अस्तित्व तुम्हारा।
मान धरा ने भ्रात, तुम्हारा मान सँवारा।
इसीलिए सम्मान, करें हम मातुल कहते।
धरामात परिवृत्त,भ्रमणरत जो तुम रहते।
.
सृष्टि संतुलन हेतु, जरूरत जान तुम्हारी।
देते तुमको मान, शंभू अरु कृष्ण मुरारी।
पावन प्रेम प्रकाश, धरा को तुम जो देते।
उसे चंद्रिका मान, सदा अमृत सम लेते।
.
चाल तुम्हारी देख, यहाँ त्यौहार मनाते।
करते व्रत उपवास, नये पंचांग बनाते।
धन्य भारती नारि, तुम्हे ईश्वर सम माने।
करती पूजन दर्श, सदा सौभाग्य सजाने।
.
पूनम बारह चौथ, यहाँ नारी, व्रत धरती।
भोजन से जो पूर्व, दर्श चंदा का करती।
तुम्हे कलंकी मान, चौथ भादों नर तजते।
शेष दिनों में चंद्र, तुम्हें ईश्वर सा भजते।
.
पर मत भूलो हे चंद्र, दिया सम्मान हमारा।
हमें ज्ञात कर्तव्य, तुम्हे दायित्व तुम्हारा।
जन्म नहुष के देश, स्वर्ग में तो है आना।
सतत चंद्र अभियान,नये हैं स्वप्न सजाना।
.
मिल कर होगी बात, इंद्र से, मातुल तुमसे।
होगा, गर्व गुमान, आपको मिल के हमसे।
पिछले भातइ, दंड, चुके मामा, से सारा।
स्वर्ग लोक मय चंद्र, प्रथम हो राज हमारा।
.
आप निभाओ नेह, निभाएँ हम भी नाता।
कभी दिखाओ आँख,हमें टकराना आता।
भूल गये क्या चंद्र, दक्ष का शाप सहारा।
रवि को ले मुख दाब,बली हनुमान हमारा।
.
हम भारत के लोग, निभावें नाते वादे।
रखते स्वअभिमान, नेक अरु अटल इरादे।
चंद्र इंद्र का मान, रखें हम भी मनभावन।
नेह मेह की प्रीत, आप भी रखना पावन।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा "विज्ञ"
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान,३०३३२६
मो.नं. ९७८२९२४४७९
🌍🌍🌍🌍
*नेता की अभिलाषा*
बन जाऊं नेता यदि,आपकी हो कृपा दृष्टि
पूरे इस नगर में ,ऊंची मेरी शान हो।
सैनिक जो कोई मरे,कड़ी निंदा करूँ फिर
रोज रोज पेपरों में,सिर्फ मेरा नाम हो।।
करूं मैं घोटाले खूब,पैसा खूब बटोरूँ मैं
मेरी ही हवेली पूरे,जग में महान हो।
रोज मैं सभाएं करूं,फीता काटने को मिले
शहर की गली गली,मेरा गुणगान हो।।
गिरगिट जैसा रंग,बदलूँ मैं पल पल
आम जनता के बीच,मेरा ही बखान हो।
आ जाये चुनाव जब, बड़े बड़े वादे करूं
चर्चाओं में चारों ओर,मेरा ही रुझान हो।।
सारे कार्यकर्ता रोज,कच्ची और पक्की पियें
मुर्गा मीट दावत का,रोज अनुष्ठान हो
जीत के चुनाव आऊं,फूल मालाओं से लदूं
सत्ता की मलाईदार,हाथ में कमान हो।
किसी बड़े नेता जी का,समधी मैं बन जाऊं
नेता जी की लाडली से,पुत्र का विवाह हो।
करोड़ों में शादी करूं,प्लाट भी दहेज मिले
चारों ओर नगर में,मेरी वाह वाह हो।।
सत्ता की मलाई चाटूँ,खूब गठजोड़ भिड़े
कोई भी सबूत न हो,न कोई गवाह हो।
साथ पा के नेता जी का,बन जाऊं सांसद मैं
लाल कारपेट युक्त,सजी मेरी राह हो।
दस बीस नौकर हों,कारों का हो काफिला भी
किसी बादशाह जैसा,मेरा राजकाज हो।
यात्राएं मैं खूब करूं,जहां चाहे घूमूं फिरूं
कैसी भी न चेकिंग हो,खुद का जहाज हो।।
आठ दस होटल हों,ट्रक हों पचास साठ
बैठे बैठे पैसा आये,ऐसा कामकाज हो।
करोड़ों हो आय मेरी,सैंकड़ों में टैक्स पड़े
अधिकारी कोई भी न,मुझ से नाराज हो।
नितिश भारद्वाज
हरदोई
8318772208
काव्य रंगोली काव्योतसव 2077 प्रतियोगिता हेतु मेरी रचना श्री दादा अनिल गर्ग के प्रति।
*विश्वास*
विधा: कविता
मुसीबत का पहाड़,
कितना भी बड़ा हो।
पर मन का विश्वास,
उसे भेद देता है।
मुसीबतों के पहाड़ों को,
ढह देता है।
और अपने कर्म पर,
जो भरोसा रखता है।।
सांसारिक उलझनों में,
उलझा रहने वाला इंसान।
यदि कर्म प्रधान है तो,
सफलता से जीयेगा।
और हर कठनाईयों से
बाहर निकल आएगा।
अपने पुरूषात से।।
कहानियाँ सफलता की,
इंसान ही लिखता है।
बड़े बड़े पहाड़ो को,
इंसान ही गिरता है।
और उसी में से ही,
हीरा को निकलता है।
ये सब काम इंसान ही,
अपने हाथों से करता है।
और सफल योध्दा भी,
इंसान ही कहलाता है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
29/03/2020
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना ।
सुखद ज्ञान का दीप जलाने,
सुखद ज्ञान का दीप जलाने, सुखमय जीवन लाया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।
बहुत समय था खर्च हो गया, जीवन जीते जीते ही।
संस्कारों का साथ मिल गया,
अमिय हलाहल पीते ही ।
जीवन के वंचित कर्मो का , लेखा देने आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूँ।
देखो प्रिय! पहले बतला दो , भाग्य कर्म का लेखा जोखा।
कहीं मुझे तुम भूल न जाना, देकर इस हिय को धोखा।
प्रेम मिलन के इस बंधन को, जोड़ यहाँ तक आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को संचित करने आया हूँ।
क्या खोया? क्या पाया? मैंने, कर्मों का प्रतिफल लेकर ।
क्या बोया ?क्या काटा ?मैंने, जन्मों में प्रतिक्षण देकर।
जन्म जन्म के इस बंधन को, जोड़ तोड़ कर पाया हूं।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं।
स्नेह युक्त बंधन जब पाया, देर हो चुकी थी तब तक।
जलधारा के मध्य भँवर में ,कश्ती डूब गयी जब तक ।
भीषण झंझावातों को मैं, टक्कर देने आया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।
सुखद ज्ञान का दीप जलाने, मय जीवन लाया हूं।
डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"//
काव्यरंगोली काव्योत्सव - 2077
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनील गर्ग जी को समर्पित
मेरी रचना
नव वर्ष
क़दीम काल बीता रे भाई
नवल देखो फिर आई।
हर्ष विषाद का पल गुजरा था
खुशियाँ नई फिर लाई।
बीस सदियों का बीस बर्ष है
क्या खोया और पाया
राजनीति के इस महफिलों में
कितना है रंग जमाया।
ज्ञान - विज्ञान की हुई तरक्की
पड़ी रोजगार भारी
पहले लूटा सभी ने मिलकर
अब देखो महामारी।
गरीब - वश्य - मजदूर मर रहे
किसान बैठ कर रोए
खादी - खाकी मौज में रहते
दबंग मजे में सोए।
कनक समान सुंदर था भारत
शासक इसे लूट लिया
लालच में कुछ लोग थे अपने
ऐसे उसने छूट दिया।
सभ्य समाज, सत, कहाँ रहा अब
भूले संस्कृति अपनी
छल,कपट,मद,मनुज में, भर गया
भूल गये प्रीति अपनी।
नव युग का अब निर्माण करें हम
इस नये वर्ष में आकर
जागृत हो भेद - भाव मिटाएं
हिय नया सवेरा लाकर।
भाईचारे की पाठ पढ़ना
प्रेम से मीठा बोलो
प्रीत की बगिया हरी - भरी हो
मन में मिश्री तो धोलो।
- बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - बिन्दु
बाढ़ - पटना
9661065930
कार्य रंगोली कावव्योत्सव २०७७
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष, 'सगरी अनिल गर्ग' जी को समर्पित।
🚩🚩माता रानी आईं द्वार🚩🚩
माता- रानी-आईं देखो,होकर सिंह सवार।
कानों में-सोने का झुमका,और गले में, हार।
हो, माता रानी आईं द्वार,देखो नवरात्रि त्यौहार। (२)
आओ आओ मिलकर सारे (२)
कर लें जय-जयकार।
हो, माता रानी आईं द्वार-----हो--ओ--ओ।
आईं माता रानी देखो,करके सिंह सवारी। (२)
पहन के आईं लाल चुनरिया, मुखड़ा दमके भारी। (२)
नैना दो कज़रारे उनके,
नैना दो कज़रारे उनके,और भुजा है चार।
हो आई माता रानी द्वार, हो---ओ-ओ।
भाला बर्छी साथ हाथ में, देखो गदा है भारी। (२)
एक हाथ में शंख लिए माॅ॑, करतीं सिंह सवारी। (२)
कानन कुंडल सोहे उनके,
कानन कुंडल सोहे उनके, और गले में हार।
हो, आईं माता रानी द्वार, देखो नवरात्रि त्यौहार।
आओ आओ मिलकर सारे,(२)
कर लें जय-जयकार।
हो आईं माता रानी द्वार, हो-ओ-ओ।
बाजूबंद कनक का देखो,चाॅ॑दी की पैजनिया।(२)
पहन के आईं माता रानी, छनक रही पैजनिया। (२)
धूप-दीप ले करो आरती, और करो जयकार।
आईं माता रानी द्वार,देखो नवरात्रि त्यौहार।
आईं माता रानी द्वार हो--ओ-ओ।
घर आॅ॑गन को लीप-पोतकर माता को बैठाओ। (२)
मेवा-मिश्री भोग लगाकर निश-दिन सेवा गाओ। (२)
नौ दिन पूजा करके भैया,
नौ दिन पूजा करके भैया, कर लेना मनुहार।
माता फिर से आना द्वार,अगले नवरात्रि त्यौहार।
आईं माता रानी द्वार, हो-ओ-ओ।
हाथ जोड़ विनती कर लेना,माता फिर से आना।(२)
माता हम दे रहे विदाई, हमको भूल न जाना। (२)
भूल न जाना माता आना,
भूल न जाना माता आना,निज़ भक्तन के द्वार।
हे माता विनय यही सौ बार,
माता भूल न जाना द्वार, हो-ओ-ओ।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित
जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,
वह भारत देश हमारा है,
जो हमारे प्राणों से भी प्यारा है,
जो हमें देती है प्रेरणा वह सीख है,
मातृभूमि की लाज के खातिर,
सर्वश अपना लुटाऊंगा,
इस माटी में जन्म लिया है,
इस माटी में मिल जाना है,
बदन को महकाने के सारी उम्र काट ली,
रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है,
वो मातृभूमि की रक्षा करते है,
हम मातृभाषा की कर लेते है,
मातृभूमि का बेटा हूं,
पर सोच हमारा संकीर्ण है,
मातृभूमि का मान लिए उग्र रूप को देखा है,
हर सेनानी इस जग में वीरभद्र को देखा है,
मातृभूमि की रक्षा करने में चाहे,
जीवन तेरा सौ बार आ जाए,
नमन नमन नमन है उनको,
जो मातृभूमि की रक्षा करते है,
जिस मातृभूमि पर हमने जन्म लिया है,
वह भारत देश हमारा है,
नाम- परमानंद निषाद
राज्य- छत्तीसगढ़
विधा- कविता
विषय- मातृभूमि
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
जीवन के रंगमंच की कठपुतलियां
कठपुतलियां है जीवन के,
रंगमंच की ।
जुड़ी हैं जिन धागों से ,
जो सभी के,
धागों को नचाता है ।
किसी को,
वो कठपुतली वाला ,
नजर नहीं आता है।
ढील देता है सबको ,
अपने-अपने किरदार में ,
परखता है हर इंसान को,
अपने दिए हुए संस्कार से ,
देखता रहता है सबको ,
उनके अदा किये किरदार में,
कैसे भटक रहे हैं ।
उलझे हैं किन ख्यालात में ।
भूल जाते हैं हम
है हम किसके हाथ में ,
सोचते हैं............... बस
हम ही हैं इस संसार में ,
सबको नचाते है।
कभी पैसों से,
कभी ताकत के अंहकार से।
लेकिन.........
कब उसके हाथ के,
धागे खींच जाते हैं।
जीवन के रंगमंच से,
कितने किरदार निकलते ।
और कितने नए आ जाते हैं ।
कठपुतलियां नाचती रह जाती हैं
पर धागों से बंधी होकर भी,
उस धागे वाले तक,
नहीं पहुंच पाती हैं।
स्वरचित रचना
@प्रीति शर्मा "असीम" नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश
काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
" मैया शेरोवाली"
करती शेरो की सवारी ,
मैया अष्टभुजाओं वाली ।
भरती सबकी झोली खाली,
ओ मैया मेरी शेरोवाली ।
ममतामयी करुणावाली हो ,
दुष्टों के लिए चंडिका काली हो।
अंधकार में तुम ही प्रकाश हो ,
ज्ञानियों के ज्ञान का भंडार हो।
जो भी तेरे दर पर आता ,
भक्ति भावना से भर है जाता।
सच्चे मन से सर को झुकाता,
मनवांछित फल तुझसे पाता।
प्रेम भाव से जो तुझको बुलाए ,
एक पल भी तू रुक नही पाए।
झट बच्चो के पास दौड़ी आए,
सारे कष्टों को दूर भगाए ।
कोई बच्ची ना कोख में मारी जाय,
ना कोई भी जिंदा जलायी जाय ।
लाज किसी की ना लुटने पाये ,
दरिन्दगो की दरिन्दगी से बचाये।
सबको सद्बुद्धि तुम दे देना ,
बस इतनी अर्ज मेरी सुन लेना।
सुख , शांति देने वाली ,
ओ मैया मेरी शेरोवाली ।
शशि कुशवाहा
लखनऊ,उत्तर प्रदेश
काव्य रंगोली काव्योत्सव 2077
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
"नव संवत्सर आया है।"
(ताटंक छंद गीत)
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*शोभित शरिष्ठ शारित शुभकर, खुशियों का पल लाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
नव हर्षित पल नयी उमंगें, नव विश्वास जगाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
*नवल भोर की सुखद घड़ी है, नव संवत मनुहारें हैं।
सुरभित सुमन सुशोभित शाखें, भृंग भरें गुंजारें हैं।।
मौसम महका लहका बहका, मानस मद भर आया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
*भेदभाव की भित्ति ढहाकर, मन अवगुंठन को खोलो।
मन-मन मधुर मधु मदमाया, मधुर-मधुर सब ही बोलो।।
समशीतोष्ण भया मौसम है, दिग्दिगंत चहकाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
*जग की सृष्टि विधाता ने की, अद्य दिवस को ही जानो।
भारत अपना है जग का गुरु, अपनी संस्कृति को मानो।।
हम सब आर्यों की संतति हैं, मन को क्यों भरमाया है?
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
*'विक्रम' के विक्रम का दिन है, 'राम-राज्य' दिन है आया।
स्थापित 'आर्यसमाज' हुआ है, ताज 'युधिष्ठिर' ने पाया।।
चैत्र शुक्ल की पहली तिथि है, वैदिक नव दिन आया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
*रीति नहीं भूलो अपनी तुम, तज दो पश्चिम-धारा को।
हवन आरती करके तोड़ो, कलुषित विचार-कारा को।।
शीत सुवासित बहे समीरण, सुख का शुभ-घन छाया है।
पावन नव संवत्सर आया, सारा जग सरसाया है।।
*हिन्दी वर्ष सुमंगल हितकर, स्नेह सुधा सरसाया हो।
प्रमुदित हों पल-पल सब जग में, प्रेमभाव मन भाया हो।।
स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा, हरेक हिय हर्षाया है।
पावन नव संवत्सर सुखकर, सारा जग सरसाया है।।
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
मो. - 9340623421
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काव्यरंगोली काव्योत्सव 2077 आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष श्री अनिल गर्ग जी को समर्पित मेरी रचना
श्री माँ दुर्गा की वन्दना
दोहा-अति दुर्गम अति क्लिष्टमय
भावुक सहज महान।
वैश्विक विपदा दूर कर हे
माता भग्यवन।।
चौपाई-
दुःखी सकल जग में नर-नारी।बढ़े हुए हैं पापाचारी।।
महा भयानक दृश्य आज है।डरा रहा भविष्य आज है।।
सब कम्पित सब विह्वल व्याकुल।।राजा रंक सभी हैं आकुल।।
दुबके सब अपने निज घर में।भयाक्रांत सब अन्तःपुर में।।
चौखट पर विपदा का दस्तक।झुका हुआ मानव का मस्तक।।
थर थर कांप रहा है मानव।खड़ा आज महिषासुर दानव।।
असुर शक्तियाँ आज बलवती।चौतरफा से आग उगलतीं।।
मानवता में घोर निराशा।क्षीण होत जीने की आशा।।
सिंहवाहिनी हे माँ दुर्गे।चंड-मुंड राक्षस को वध दे।।
बनी चंडिका बनी कालिका।अतुलित बलशाली माँ दुर्गा।।
असुरों को अब मार गिराओ।माँ अब अपना रूप दिखाओ।।
मिट जायें सब दुष्ट शक्तियाँ।गल जाये सब असुर भ्रांतियां।।
कोरोना का अंत करो माँ।मानवता का कष्ट हरो माँ।।
दोहा-करो पाप का अंत अब हे
माँ दुर्गे आज।
स्थापित कर इस जगत में
मानवता का राज।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
काव्य रंगोली २०७७
आदरणीय प्रतियोगिता अध्यक्ष
श्री अनिल गर्ग जी
समर्पित मेरी रचना
अध्यात्म जीवन
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा
जीवन है, अध्यात्म
ना किसी से नफ़रत
ना किसी से बैर
हम मां की,संताने है
ना कोई स्यार,ना कोई शेर
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा
जीवन है, अध्यात्म
दुनिया की नकल करने वाले
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को
पढ़ना लिखना,सीखो
लोग कहते है,यह धरती मेरी है
लोग कहते है,यह कुर्सी मेरी है
न तेरी है, न मेरी है
बस समझने की,देरी है
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा
जीवन है,अध्यात्म
कहीं पर,मिलन है तो
कहीं पर जुदाई
दुनिया के विधि को है
विधि ने बनाई है
कहीं पर पर्वत है, तो
कहीं पर है, खाई
न किसी से नफ़रत
न किसी से,बैर
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा
जीवन है,अध्यात्म
नूतन लाल साहू
मो न ९७५५६८४६६५
आदरणीय दादा अनिल गर्ग जी अध्यक्ष
काव्य रंगोली
*बेटी*
ममता का अपना ठौर कहाँ है
ममता चल कर के आती है ।
प्यार की मीठी बोली से,
ममता बेटी बन जाती है ॥
मै भी बेटी जैसी ही हूँ ,
इन शब्दों मेंं ही शक्ति है ।
बेटी शक्ति की मूरत है,
बेटी ही सच्ची भक्ति है ॥
बेटी भारत की आत्मा है,
बेटी ने मान बढ़ाया है ।
बेटी ने जल, थल अम्बर मेंं,
अपना परचम लहराया है ॥
बेटी आंखो की आँसू है,
बेटी धमनी का रक्त भी है।
बेटी सीता, सावित्री है,
लक्ष्मी बाई की शक्ति भी है ॥
बेटी मान प्रतिष्ठा है ,
बेटी कविता कहलाती है ।
बेटी है प्यारी सरल सुमन
, दुश्मन पर कहर बन जाती है ॥
बेटी को मेरे भारत मेंं ,
देवी स्वरूप माना जाता ।
मेरे भारत मेंं बेटी के ,
पैरों को भी पूजा जाता ॥
बेटी माथे की चंदन है,
हम इसको माथे धरते हैं ।
अपनी प्यारी बेटी को हम ,
अपनी मर्यादा कहते हैं ॥
*राजेश कुमार सिंह "राजेश"*
(लखनऊ )
253 Suraksha Udyan
Eldeco Lucknow
Uttar Pradesh
Mo 9415254888
💐💐💐💐
नमन . काव्य रंगोली काव्योत्सव २०७७
दिनांक. २९/३/२०२०
प्रतियोगिता अध्यक्ष व संरक्षक . आदरणीय श्री दादा अनिल गर्ग
विधा. हरिगीतिका छंद
विषय . श्रृंगार
...........................
निज रूप राशि अनंत प्रियवर !
नित्य दर्पण देखती ।
कर सोलहो प्रिय! आभरण रस,
काम्य चितवन साजती।
मनुहार प्रेमिल आस दृढतर
और कातिल हैं नयन ।
निज रूप मुग्ध बिलोकती मद,
मस्त यौवन जिमि रतन।
मन प्राण ओष्ठ उछाह पुलकित
चित्त विरहा में जले ।
मन आस प्यास अशेष लेकर
चित्त भँवरा उड़ चले ।
शुचि रूप आसव का समर्पण
श्वास प्रियतम के लिए ।
मैं वारि बार हजार जाऊं
आस प्रियतम के लिए।।
कुमार शिवम
शिवानन्द चौबे
मो0+91 97949 36021
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फिर से आयी होली है
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नये निराले रंगों संग मिलकर , फिर से आयी होली है
संग कुछ बिखरे रिश्तों को समेटे , फिर से आयी होली है
बदला - बदला सा मौसम और हैं बदली - बदली हवाएँ
नारी की उलझी शिराओं को सुलझाने आयीं ऋचाएँ
दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है यह , हैं दुर्गा - काली देवियाँ
अब तो कृतित्व स्वीकार करो हैं कहतीं धरा की रश्मिकाएँ
नारी को मिले सम्मान यह कहने फिर से आयी होली है
नये निराले रंगों संग मिलकर , फिर से आयी होली है
संग कुछ बिखरे रिश्तों को समेटे , फिर से आयी होली है
सोशल मीडिया पे हैं रिश्ते पर असल ज़िन्दगी है खाली
एकांकिता के बुलबुले से ग्लास भरा औ कभी है खाली
बलि जब रिश्तों की चढ़ती तब अट्टहास करता है अंधेरा
सदियाँ सदियों को ढूँढ़तीं पर पिंजड़ा हरपल है खाली
नये - पुराने रिश्तों को सुलझाने , फिर से आयी होली है
नये निराले रंगों संग मिलकर , फिर से आयी होली है
संग कुछ बिखरे रिश्तों को समेटे , फिर से आयी होली है
गिराकर धर्म की दीवारें मानवता को मिलकर समझें
दम तोड़ती मनुष्यता को आओ परखें औ मिलकर निरखें
श्रद्धा और सबूरी से ही होते हैं दर्शन भगवान के
कुरान -गीता - रामायण -, बाइबल , एक हैं इनको सुपरखें
मानवता के नये दीप जलाने , फिर से आयी होली है
नये निराले रंगों संग मिलकर , फिर से आयी होली है
संग कुछ बिखरे रिश्तों को समेटे , फिर से आयी होली है
डॉ कुमुद बाला
हैदराबाद
8886220212
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कृष्णा अवतरण
आए कृष्णा जब धरा पर
रात काली वो बड़ी थी।
जिस घड़ी की राह तकते
खड़ी थी कब से देवकी
सो गए थे पहरेदार
बेड़ियां भी खुल गई थी
पहुंचा दो मुझे गोकुल तुम
आकाशवाणी कह रही थी।
ले चले वसुदेव देखो
फूलों वाली टोकरी में
गर्जना थी बादलों की
जोश छाया दामिनी में
आ रहा जग का रचैया
यमुना छूने पग बढ़ी थी।
देवताओं ने करी थी
पुष्प वृष्टि भी गगन से
हो रहे थे धन्य वह तो
पाप मिट जाएंगे जग से
लगते हैं अरे जब कन्हैया
सृष्टि सारी हंस रही थी।
आये कृष्णा जब धरा पर
रात काली वह बड़ी थी।
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर सी जी
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गीत
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16/14
फागुन में रँग लिए हाथ में,लगती प्रिये रसीली हो ।
नैनों से मदिरा छलकाती,सजनी बड़ी नशीली हो।
1
तन महुआ है भौंह कमानी साँसें लगतीं मलय पवन।
गाल गुलाबी बाँह बल्लरी कुंतल श्यामल घटा गगन।।
वाणी से तुम लगती सजनी ,कोयल सरिस सुरीली हो।
नैनों से मदिरा छलकाती,सजनी बड़ी नशीली हो।
2
लगती हो तुम स्वर्ग परी -सी ,ईश्वर ने खुद रचा तुम्हें।
एक झलक देखें तुमको तो,सुख मिलता अनमोल हमें।
पोर -पोर यौवन अँगड़ाई,लेता छैल- छबीली हो।
नैनों से मदिरा छलकाती,सजनी बड़ी नशीली हो।
3
कुसुमाकर के रंग प्रिये सब,फागुन में तुमने पाए।
आज जरा सा हम लेने को , पास तुम्हारे हैं आए ।
ना -ना करती दूर भागती,सचमुच बड़ी हठीली हो।
नैनों से मदिरा छलकाती,सजनी बड़ी नशीली हो।
4
झाँझर तुम झनकाकर गोरी
,बात इशारों में कहती।
कंगन भी खनकाती लेकिन,पलक झुकाये तुम रहती।
भोली -भाली प्रिये कामिनी,शर्मीली- सुकुचीली हो।
नैनों से मदिरा छलकाती,सजनी बड़ी नशीली हो।
------स्नेहलता 'नीर'
रुड़की
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सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक जेठरा खमरिया लखीमपुर-खीरी
मोबाइल नं--८८४०४७७९८३
नव रात्रि----नव वर्ष २०७७
सिंह वाहिनी मां जगदम्बे श्रद्धा भक्ति प्रेम का वर दे।
नव रात्रि पर्व के दिन मैया दया कृपा की वर्षा कर दे।
चैत्र मास तिथि शुक्ल प्रतिपदा है नवरात्रि पर्व अति पावन।
ब्रत उपवास भक्ति श्रृद्धा से ज्योति प्रज्वलन घट स्थापन।पूजन वन्दन विधिवत मां का कन्याओं का पूजन अर्चन।
शक्ति रूप दुर्गा मैया के नौ रूपों का वन्दन दरशन।
सबके मन मन्दिर से हे मां घृणा द्वैष निष्कासित कर दे।
सिंह वाहिनी मां जगदम्बे श्रद्धा भक्ति प्रेम का वर दे।
प्रारंभ हुआ था इस दिन से नववर्ष विक्रमी संवत् सर।
हमें कृतार्थ कर दिया माता इस पावन दिन तूने आकर।
मां तेरा शुभ सुखद आगमन नया वर्ष भी धन्य हो गया।
जन जन की आकांक्षाओं को सम्बल तेरा प्राप्त हो गया।
नव रात्रि पर्व पर विनती मां नये बर्ष की झोली भर दे।
सिंह वाहिनी मां जगदम्बे श्रद्धा भक्ति प्रेम का वर दे।
ये जग रंग विरंगा मेला भीड़ में खोये नर नारी।
कोई चले धर्म के पथ पर कोई अधर्मी व्यभिचारी।
कहीं स्वार्थ की अग्नि दहकती रिश्तों की जलती होली।
कहीं भक्ति का रस बरसाये मां के भक्तों की टोली।
दुष्ट विनाशि सकल धरती को निज करुणा से सिंचित कर दे।
सिंह वाहिनी मां जगदम्बे श्रद्धा भक्ति प्रेम का वर दे।
वर्षा ग्रीष्म शीत में खटता रहे कृषक वह नंगा भूंखा
जन जन की जो भूंख मिटाये उसे मिले बस रूखा सूखा।
भ्रष्ट चोर अपराधी खायें भांति भांति के छप्पन व्यंजन।
शयन हेतु है कोमल शय्या मनरंजन हित मदिरा नर्तन।
मिटे देश से करुण विषमता नवरात्रि पर्व मां ये वर दे।
सिंह वाहिनी मां जगदम्बे श्रद्धा भक्ति प्रेम का वर दे।
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