उत्तम मेहता 'उत्तम'

बह्र  २१२२ १२१२ २२
काफ़िया आर
रदीफ़ होता है


ऊंचा जिसका वकार होता है।
बेख़ुदी का शिकार होता है।


हो रही हर तरफ सियासत जब।
किस पे तब एतबार होता है।


खुद मुतासिर वो हुआ मुझसे।
फ़िर तू क्यूं बेकरार होता है।


झुक जाती जब नज़र नज़र से मिल।
तीर तब दिल के पार होता है


धडकने मुखबरी करे दिल की।
इश्क तब दागदार होता है।


साथ हो यार दोस्त जब भी तो।
वक्त वह शानदार होता है।


हौसला आजमा रहा उत्तम।
खुद पे जब इख़्तियार होता है।


©@उत्तम मेहता 'उत्तम'
       ०८/२०


निशा"अतुल्य"

माँ का सप्तम रूप कालरात्रि                       हाइकु
5,7,5


कालरात्रि माँ
शोक निवारिणी माँ
करूँ वंदन ।


श्याम वर्ण है
चीता चर्म साड़ी है
रूप कराली।


बुद्धि विदाता
जग कल्याणी माता
करो उद्धार ।


स्तुति पुकारे
चण्ड मुण्ड संहारे
हर्षित देव।


ध्यान लगाऊँ
धूप दीप जलाऊं
तुम्हे मनाऊँ ।


शक्ति की दाता
तू ही जग विधाता 
भव से तारो ।


भोग लगाऊँ
तेरे ही गुण गाऊँ
शरण पड़ी।


बेड़ा हो पार 
अज्ञानता से तार
दे दो माँ ज्ञान।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


रवि रश्मि 'अनुभूति '        मुंबई ।

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


🙏🙏


  हे मैया अम्बे 
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
हे जग जननी मैया अम्बे , ज्ञान का दीप जलाओ .....
आशीष अभी दे जाओ तुम , घर मेरे तो आ जाओ .....
नाचें - झूमें  सारे मिलकर , ढोल - मंजीरे बज रहे ..... 
रास रचायें मिलकर सारे , बीच सभी के अब आओ .... 


मंगलमयी , ममतामयी माँ , जग तारण वाली हो तुम ।
पापियों का करती संहार , शेरांवाली माता तुम ।।
पलकें बिछाये हम खड़े हैं , राह निहारें आ जाओ .....
आशीष अभी दे जाओ तुम , घर मेरे तो आ जाओ .....


प्यारा - सा सिंहासन सजाया , लाल ध्वज द्वार फहराया ।
तेरा पूजन हमको भाया , रूप सजीला है भाया .....
दर्शन देने अब आ जाओ , मैया अम्बे आ जाओ .....
आशीष अभी दे जाओ तुम , घर मेरे तो आ जाओ .....      


काटो बेड़ियाँ माँ दुखों की , पीड़ा का अब नाश करो ।
मेरे मन - आँगन में मैया , भक्ति का ही उजास भरो ।।
भोग बनाया मैया हमने , आके अब तो खा जाओ ......
प्यासे हैं दर्शन के मैया , आतुर हैं तुम आ जाओ .....


कोरोना से सब भक्तों पर , अब भीर पड़ी है भारी 
करते हैं दूर भगाने को , हम करते हैं तैयारी 
द्वारे तेरे सभी खड़े हैं , आज तो प्रकट हो जाओ .....
कष्ट दूर कर सारे मैया , नैया तो पार लगाओ .....


हे जग जननी मैया अम्बे , ज्ञान का दीप जलाओ .....
 आशीष अभी दे जाओ तुम , घर मेरे तो आ जाओ  .....
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
       मुंबई ।
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C++++
31.3.2020.
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सत्यप्रकाश पाण्डेय

कोई तो है................


कोई तो है जो चुपके चुपके
मेरे करीब आता है
कोई तो है जो धीरे धीरे से
दिल में समाता है


होता सुखद अहसास मुझे
मन मेरा मुस्काता है
उसके दीदार मात्र से क्यों
रोमांस भर जाता है


वही धड़कन व पुलकन मेरी
नाद उभर आता है
होता है जब स्मरण उसका
हर्ष सा भर जाता है


कौंन है वो अप्रत्यक्ष अनुभूति
मृदुलता दे जाती है
सो गये थे जो भाव हृदय के
उन्हें आ जगाती है


अब न रह पाऊंगा दूर उससे
कौंन कह जाता है
अब प्रतीक्षा है उस पल की
कब गले लगाता है


क्या उसका व हमारा कोई
प्रारब्ध का नाता है
उसका सौम्य व पावन रुप
हॄदय में समाता है


अब त्याग भी दो निष्ठुरता प्रिय
सत्य तुम्हें बुलाता है
नहीं होना कभी अलग मुझसे
विनती ये सुनाता है।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन (मुम्बई ) 

*मुस्कराते रहो*
विधा: गीत


जिन्दगी में सदा, 
मुस्कराते रहो।
फासले कम करो, 
दिल मिलते रहो।
जिन्दगी में सदा, 
मुस्कराते रहो..….।।


दर्द कैसा भी हो, 
आँख नम ना करो।
रात कली सही,
कोई गम न करो।
एक सितारा बनो, 
जग मगाते रहो।
फासले कम करो, 
दिल मिलते रहो।।
जिन्दगी में सदा, 
मुस्कराते रहो..….।।


जिन्दगी में सदा,
मुस्कराते रहो।
बाँटना है अगर,
बाँट लो हर खुशी।
गम ना जाहिर करो, 
तुम किसी से कभी।
दिल गहराई में,
गम छुपाते चलो।
फासले कम करो, 
दिल मिलते रहो।।
जिन्दगी में सदा, 
मुस्कराते रहो..….।।


आसू अनमोल है, 
खो न देना कही।
इनकी हर बूंद है,
मोतियों सी हंसी।
इन को हर आँख से,
तुम चुराते रहो।
फासले कम करो, 
दिल मिलते रहो।।
जिन्दगी में सदा 
मुस्कराते रहो....।।


जय जिनेन्द्र देव की, आप सभी स्वस्थ्य और प्रसन्न रहे 
संजय जैन (मुम्बई ) 
31/03/2020


सुरेन्द्र चतुर्वेदी

अभी हौंसला मत छोड़ो,
अपना घौंसला मत छोड़ो।


अपना ज़ाप्ता मत छोड़ो,
कल पे फ़ैसला मत छोड़ो।


बेहतर है के दूर रहो,
रखा फाँसला मत छोड़ो।


जिसके दम पर ज़िन्दा हो,
उसका आसरा मत छोड़ो।


फिर लौटेंगे अच्छे दिन,
अब ये सोचना मत छोड़ो।


तूफ़ानो का मौसम है,
अपना किनारा मत छोड़ो।
         *सुरेन्द्र चतुर्वेदी*


डा एन लक्ष्मी  पोर्ट ब्लेयर

 


"बहना कोरोना" 


दो जोडे कपडे बस काफी है 
घर में रहने की अब मजबूरी है 
भूल गए थे सब रिश्ते जो सारे 
फिर निभाने की उन्हें अब बारी है।  


काम काम के इस चक्कर में 
सूनेपन में बच्चे बंद है घर में। 
सुख सुविधा के साधन सब हैं 
ना ही बहना ना भाई है घर में। 


पप्पा- मम्मी लडते ही झगडते 
मेरी कभी भी फिकर न करते 
नौकर वाली करती रखवाली 
बेल्ट लगा घूमा करता चार दिवारी। 


भूख लगी तो खाना खाओ 
नहीं भूख तो चुप सो जाओ 
हुकूमत अब बदली है घर की 
राजा रानी का सुशासन फिर से। 


पप्पा मम्मी का अब लाडला बेटा 
घूमें भवन में मजे से संग सब लेटा 
भूख लगी तो खिलाती अब माता  
हाथ बढाए पप्पा, खाए सब मिल बांटा ।


दुहाई दूं कोरोना महामारी तुमको 
प्यार की राह दिखाई हम सब को 
समझ गए अब जीना धरती पर कैसे
स्वारथ छोड प्रेम बांट निरीह पशु से। 


कोरोना तुम हो मेरी प्यारी बहना 
जान न लेना अब माफ कर देना 
रखेंगे अब इस धरती को बचाकर 
पशु पक्षी पेड परबत मनुज बराबर ।


जियो और जीने दो का सीखा 
हमने पाठ बराबर सबको देखा 
सागर जीवों संग न करेंगे धोखा 
माँ अवनी से खिलवाड़ को रोका 


तुमने अपना काम किया है 
खुद की औकात हमें है दिखाई 
बहना कोरोना अब तुम जाओ, 
राह ताक रहे मांँ बाप हैं व्याकुल ।


देस अपने जाने का अब समय आ चुका 
खिडकी से कर दूं मैं तुम्हें अलविदा 
मत आओ कभी तुम इस धरती पर 
याद रखेंगे हम तुम्हें उम्र भर।।


चंचल पाण्डेय 'चरित्र'

*•••••••••••सुप्रभातम्••••••••••*
              *चौपइया छंद*
जय जय माँ अम्बे, जय जगदम्बे,  जय माँ अष्ट भवानी|
जय मंगल करणी, सब दुख हरणी, जय माँ जग कल्याणी||
जपुँ नाम तिहारो, काज सवाँरो, मैं बालक अज्ञानी|
हे शक्ति स्वरूपा, रूप अनूपा, अष्ट सिद्धि तू ज्ञानी||
मातंग पूजिता, तु भवप्रीता, भवमोचनि भयहारी|
सुभव्या अभव्या, माँ तू भाव्या, भक्तन  के हितकारी||
माँ दुर्गतिनाशिनि, कमल आसनी, नव दुर्गे सुखकारी|
पुनि पुनि करजोरी,अस्तुति तोरी, सकल सिद्ध गुणकारी||
                चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

* हाइकु *
       🐪 राजस्थान दिवस 🐪
        
                      1
                 मनभावन
           जय जय राजस्थान
               वीरा री धरा ।
       🏹🏹🏹🏹🏹🏹
                      
                      2
              वो हल्दी घाटी
            हमें याद दिलाती 
             प्राणों की बाजी ।
      ⚔⚔⚔⚔⚔⚔
                    
                      3
                कैर सांगरी
             लगती मनभावन
                है  तरकारी ।
       🌳🌳🌳🌳🌳🌳


                       4
                 हवामहल
            गुलाबी नगरी की
              शान निराली ।
       🛑🛑🛑🛑🛑🛑
   
                      5
               पन्ना सी माता
           वो ही भाग्य विधाता
              स्वामी की रक्षा ।
        🙏🙏🙏🙏🙏🙏  
                      
                       6
                रेतिले  टीले
             कण कण  चंदन
              बलिदानी वंदन ।
       🤺🤺🤺🤺🤺🤺


                       7
               तीज त्यौहार
            सावन की बोछार
             झूलों की मस्ती ।
       🌧🌧🌧🌧🌧🌧


                     8
              चेतक घोड़ा
          हमें याद दिलाता
           भाला की गाथा ।
     🐎🐎🐎🐎🐎🐎
                      
                    9
              जौहर रानी
           वीर हुई क्षत्राणी
           थी स्वाभिमानी ।
     🏇🏻🏇🏻🏇🏻🏇🏻🏇🏻🏇🏻


                   10
              मान बढाता
           दुनियां में सिरमौर
           राजस्थान हमारा ।
      🐪🐪🐪🐪🐪🐪
     ©®
              रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"परम तत्व को मित्र बनाओ"


            (वीर छंद)


मन के कपट-मैल को त्याग, मित्र बनाओ परम तत्व को.,
परम तत्व ही असली मीत,यही करेगा साफ-सफाई.,
इसको ही तुम साबुन जान, दूषित मन को स्वच्छ बनाता.,
मन के रहता जब ये संग, कभी न गर्दा पड़ने देता.,
करता रहता हरदम  साफ, मन के म्लेच्छ भाव का मारक.,
परम दिव्य यह दैवी शक्ति, पावन करता मनः क्षितिज को.,
पावन मन की स्थिति प्यार, करने लगती सकल भुवन से.,
नहीं किसी से कभी दुराव,सब हो जाते उसके अपने.,
करने लगता सबसे प्रीति, हाथ जोड़ नतमस्तक होकर.,
सत्संगति का दिव्य प्रभाव, मनोदशा को निर्मल करता.,
सकल लोक में सहज महान, परम तत्व प्रिय सर्वगुणी है.,
मानवता का व्याख्याकार, स्वर्गमयी संसार रचयिता.,
खुद का अपना रचनाकार, बना हुआ है स्वयं स्वयंभू.,
सर्वोपरि यह शक्ति महान, नव दुर्गा का विविध रूप यह.,
यह लेता रहता अवतार, राम कृष्ण शिवशंकर बनकर.,
यह सीता राधा का रूप, धारण करता समय समय पर.,
इसकी महिमा अपरंपार, नहीं समझ पाते सब इसको.,
ब्रह्म तत्व यह तत्व महान, इसे समझना बहुत सरल है.,
रख इसमें श्रद्धा विश्वास, कभी न तोड़ो इससे नाता.,
यह अतिशय है भावुक शक्ति, विनय भाव से सर्व सुलभ है.,
इससे जिसने किया है प्यार, वही बना है महा मनीषी.,
परम तत्व है धर्म समान, मन में इसको नित धारण कर.,
बन जाओगे सहज सुजान, इसमें कुछ सन्देह नहीं है.,
हो जायेगा रोशन नाम, याद करेगी दुनिया सारी.,
मिल जायेगा शिव अमरत्व, जीवन का अंतिम मुकाम यह.,
बचता नहीं है कुछ भी शेष, यह अंतिम सोपान अनन्ता.,
बन जाओगे विश्व महान, रच- बस जाओगे कण-कण में.,
कभी गगन में कभी पाताल, कभी भूमि के प्रति रज-अणु में.,
उच्च शिखर पर द्रष्टा भाव, चढ़ जायेगा बना ब्रह्म इव .,
सुन लो यह सन्देश महान, यह अनुभव अद्यतन निरापद.,
यह अनुभव मेरे अनुसार, अच्छा लगे तभी स्वीकारो.,
बुरा लगे तो चित से उतार, क्षमा याचना तव चरणों में.,
मैँ हूँ सकल विश्व का मित्र, निभा रहा हूँ मित्र धर्म यह.,
हर मानव का हो कल्याण, इससे अच्छा और नहीं कुछ.,
सुन्दर मानव का हो विश्व, यह पावन संकल्प पूर हो.,
सब मानव में हो सद्भाव, परम तत्व की कृपा दृष्टि हो।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


मासूम मोडासवी

अपना लगाव सारा तेरे आस्तां से है
किरदार  मेरा देख  तेरी दास्तां से है


उसने  की नहीं अभी  तर्के गुफतगु
हमको बडी उम्मिद उसी पासबां से है


इन पुर खतर रहे गुजर का डर नहीं हमें
इतना  मुजे  भरोसा  मेरे  रहेनुमां  से है


गुल्शन का गोशा गोशा महेकता है देखीये
फुलों की ताजगी का सबब बागबां से है


बढती  चली गइ हैं  गलत फहेमीयां मगर
रीश्ता अभी  भी जिंदा मेरा आशनां से है


उसने  किया  इलाज  गलत  मर्ज बताके
बचना हमें तो  अब ऐसे चाराहगरां से है


सारे  मकाम जिसने जमीं पर बना लिये
उसका निशाना मासूम अब आस्मां से है


                        मासूम मोडासवी


सत्यप्रकाश पाण्डेय

करदो माँ कोई..........


श्रीराधे रानी बृजठकुरानी
सत्य है शरण तुम्हारी
आज विपदग्रस्त है दुनियां 
कृपा करो माते प्यारी


जगतपिता बस में तुम्हारे
कोई काम कठिन ना
मेरी भी विनती करदो माँ
अब व्यापै न कोरोना


हे जगजननी मंगलकरनी
पीड़ा से मिले मुक्ति
आनन्द की अनुभूति होवे
करदो माँ कोई युक्ति।


बृषभानु सुता की जय🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌  दर्द किया महसूस  😌


दर्द किया  महसूस  सभी ने।
कैद पड़ा जब ख़ुद को होना।
खोल दिया पिंजरा देखो अब,
जो  था  बरसों  पहले  होना।  


दर्द    न   कोई   दूजा   जाने। 
और अक्ल  न आए  ठिकाने।
जब तक ख़ुद पर यार न बीते।
तब   तक    दौड़ें  जैसे   चीते।


जब  विपदा ख़ुद  पर है आई।
चेत    गए     हैं    सारे   भाई। 
बंद  न  पिंजरे  पंछी  अब  हैं।
 मुक्त  गगन  में  उड़ते  सब हैं।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां महाकाली मैं नित्य वन्दना तेरी करूं
🕉🔔🚩🌹🥀🍂🌲
हे मां महाकाली मैं नित्य वन्दना तेरी करूं,
तुम ही शुम्भ-निशुम्भ संहारे हो,
तुम ही जग की माता हो,
तुम ही सब की रक्षक हो,


जीवन के सूने पन में मां,
मधुमास तुम्ही तो लाती हो,
मधु  कैटभ दोउ संहारे तुम हो,
शत बार नमन तुमको करता हूं,


हम तिमिर से घिर गए मां,
तुम हमें प्रकाश दो मां,
अवसादों से कभी न  विचलित हो,
हर भारतीय को ताकत दे मां।


हे मां महाकाली मैं नित्य वन्दना तेरी करूं,
तुम ही महिषासुर संहारे हो,
चित्त में शुचिता भरो, कर्म में सत्कर्म दो,
नित्य वन्दना तेरी करूं ऐसी विमल मति दे मां।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


आलोक मित्तल ** ** रायपुर **

है जंग ये लड़ा करो,
घर पर जरा रहा करो !!


गर बचानी है जिंदगी, 
अपने लिए दुआ करो !!


जीवन बना लो इक नदी
निर्मल हो के बहा करो !!


यूँ मत चला  दिमाग ये
दिल की कभी सुना करो !!


मत कर कभी इधर उधर,
कुछ पेट में रखा करो !!


आदत बना किताब की,
हर दिन जरा पढ़ा करो !!


अपनो के बीच रह के ही,
हर चाल मत चला करो !!


** आलोक मित्तल **
** रायपुर **


श्रीमती राधा चौधरी‌‌‌ जरेकेला

जय मां दुर्गे
_____________
तुम ही दूर्गा, तुम ही काली ।
तुम ही शेरा वाली।।


हर घर में ,वास करो मां।
लक्ष्मी स्वरुपा वाली।।


तेरे भक्तों ,पे आन पड़ी है।
आजा मेहरा वाली।।


शक्ति रूपा , शक्ति स्वरूपा।
तुम ही शक्तिशाली।।


मां तेरे ,भक्त खडे़ है।
दर्शन की अभिलाषी।।


सब की संकट दूर करो मां।
तु ही संकट नासिनी ।।


तु ही दूर्गा, तु ही काली।
तु ही शेरा वाली।।



श्रीमती राधा चौधरी‌‌‌
जरेकेला


डॉ० धाराबल्लभ पांडेय'आलोक' अल्मोड़ा, उत्तराखंड। 

कात्यायिनी माता
विधा- दोहा


तप कर  कात्यायन ऋषी, 
प्राप्त हुई बाला।।
सुंदर कन्या प्राप्त कर, 
स्नेह सहित पाला।।


छठी शक्ति के रूप में, 
जाने मां का रूप।
चहूं दिशि जयकार कर,
देखे सकल स्वरूप।।


ऋषि कन्या विद्या निपुण, 
युद्ध कला परिपूर्ण। 
हरित परिधानों में थी, 
सजी हुई संपूर्ण।।


सिंहासीना गरजती,  
कर मधुकैटभ नाश।
भक्तन को आशीष दे, 
दुर्जन करे विनाश।।


स्वर्णाभा दिव्या रुपा, 
चार भुजा धारी।  
अभयमुद्रा एक में,
द्वितीय खड्ग धारी।।


तृतीय हस्त वरदायिनी, 
चौथे कमलधरे।
चतुर्भुजा शुभ सोहनी,  
सिंह सवार करे ।।


महिषासुर वध करे जो, 
भक्तों की सुधि लेत।
माँ करुण वात्सल्यमयी, 
सारा दुःख हर लेत।।


माँ के चरणो में करूं, 
बारम्बार प्रणाम ।
जीवन सुख वैभव मिले, 
बनें सफल सब काम।।


डॉ० धाराबल्लभ पांडेय'आलोक'
अल्मोड़ा, उत्तराखंड। 
मो० 9410700432


  डॉ प्रताप मोहन "भारतीय बद्दी    (H P)

** निर्भया को मिला न्याय **
कानून के हाथ 
लंबे होते है
आज समझ में आया
जब इतने समय
बाद निर्भया
को न्याय मिल पाया
         ***
फॉसी की सजा
मिलने पर
जनता में हर्ष की 
लहार आयी
और इस लहार ने
भारतीय न्याय
व्यवस्था में आस्था
जगायी
        ***
बलात्कारीयो को
फॉसी की सजा
मिलने पर् अपराधियो
में दहशत छायेगी
और उनकी आत्मा
अपराध करने से पहिले घबरायेंगे
           ***
अपराधी के
सारे हथकंडे
विफल हुए
और न्यायधीश
इनको फॉसी की
सजा देने में सफल रहे
  लेखक -
          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205      (H P)
  मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM


डॉ अखण्ड प्रकाश, कानपुर,

वन्दना
(विशेष-: किसी भी शब्द में मांत्राओं का उपयोग नहीं किया गया है)
कर वरद अब रख मम सर पर।
चरण कमल पर नमत भगत सर।।


कमल चढ़त जय कहत सकल नर।
नयन दरस कर झर झर झर झर।।
अटक रहत जब लखत रजत तन।
भगत कहत जय जय जय कर।।


उछल उछल कर भगत नचत सब।
करत भजन कर ढप ढप ढप धर।।
करत हवन तब उठत अगन नव।
लपट करत लप लप लप लप सर।।


आखर आखर मनतर बन कर।
उतरत मन नभ पर भगतन कर।।
लउकत भगवन तन मगन मगन।
उतरत भव बनधन कतर कतर।।


नमन चहत मन अब चरनन पर।
कर   करमन   कर  चरर चरर।।
हरत सकल कलमष कषनन कर।
उठत रहता जब धन बम बम हर।
  (स्वरचित डॉ अखण्ड प्रकाश, कानपुर,मो.9839066076)


डा. निशा माथुर जयपुर

राजस्थान दिवस की आप सभी को शुभकामनाये, आज के दिन पर मेरी ये रचना आप सभी की नजर
“एक शौर्य”
(विधा - छंदमुक्त -स्वतंत्र)


मैं खुद मिटटी राजस्थान की मेरा कण-कण है महामाया,
पूर्वजन्म का कोई पुण्य है मेरा, जो इस धरा पे जन्म पाया।


सिन्दूर सजाती सुबह यहां देखी रूप सजाती देखी संध्या,
एक एक दुर्ग का शिल्प सलोना, और मरूभूमि की सभ्या।


भोर सुहानी घर-घर मीरा गाती, पौरूष प्रताप सा यूं गरजे,
मेरी  धरती के वो नौनिहाल, कैसे रेतीली सीमाओं पर बरसे।


दोहे-सोरठे, दादू और रैदास सरीखे, कहीं अजमल अवतारी,
दुर्गादास, पन्ना की स्वामी भक्ति से, मेरी धरती महतारी।


पीथल, भामाशाह, मन्ना से  हम सब कैसे पानीदार हुये,
इन सब वतनपरस्तों के तो हम पल पल के कर्जदार हुये।


इकतारे, अलगोजे, बंसी, ढोलक और कंही पर चंग की थाप, 
तीज, गणगौर पे रंगीली गौरी, और ईसर की फाग पे अलाप।


खङी खेत में फसलें धानी, चातक, मोर, पपीहा पीहू पीहू बोले,
बातें हो गयी बरस पुरानी, आज भी ढोला-मारू का दिल डोले।


मैं मिटटी राजस्थानी मुझमें  देशभक्ति,  त्याग,प्रेम, सौन्दर्य 
मेरी काया की मिटटी धोरों में संवरे,  मै भी कहाऊं एक शौर्य!!


----------डा. निशा माथुर-(स्वरचित)


संजय जैन (मुम्बई)

*बेटियां*
विधा: कविता


घर आने पर,
दौड़कर पास आये।
और सीने से लिपट जाएं,
उसे कहते हैं बिटिया।।


थक जाने पर,
स्नेह प्यार से।
माथे को सहलाए,
उसे कहते हैं बिटिया।।


कल दिला देंगे,
कहने पर मान जाये।
और जिद्द छोड़ दे,
उसे कहते हैं बिटिया।।


रोज़ समय पर 
दवा की याद दिलाये।
और साथ खिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया।।


घर को मन से,
फूल सा सजाये।
और सुंदर बनाए।
उसे कहते हैं बिटिया।।


सहते हुए भी, 
दुख छुपा जाये।
और खुशियां बाटे,
उसे कहते हैं बिटिया।।


दूर जाने पर,
जो बहुत रुलाये।
याद अपनी दिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया।।


पति की होकर भी,
पिता को भूल पाये।
सुबह शाम बात करे,
उसे कहते हैं बिटिया।।


मीलों दूर होकर भी, 
जो पास होने का।
एहसास दिलाये, 
उसे कहते हैं बिटिया।।


इसलिए अनमोल "हीरा" बेटियां कहलाती है।
और घरों में संस्कार,
भर पूर फैलती है।।


इसलिए इन्हें सरस्वती,
दुर्गा और लक्ष्मी कहते है।
और ये कविता संजय,
सभी को समर्पित करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/03/2020


चंचल पाण्डेय "चरित्र"

*~~~~~सुप्रभातम्~~~~~*
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
            *घनाक्षरी छंद*
नित   नित   राम   नाम   जपा  कर  आठो  याम|
लोभ   मोह   मद   काम  मन  से  विसारिये||
भक्ति   भाव   हिय  भर   दीन  हीन   सेवा  कर|
मानवीय   धर्म    जन   जन   में   पसारिये||
कर्म  को ही  पूजा  जान  कहते  सभी  सुजान|
पथ   प्रभु   राम   चल   जीवन  निखारिये||
देश   प्रेम    प्यार   रहे   ज्ञान   रस     धार  बहे|
देश   हित   धन   मन   तन   भी निसारिये||
               चंचल पाण्डेय "चरित्र"


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*जिन्दगी(हाइकु)*


सवाल भी है
यात्रा ऊपर नीचे
जवाब भी है


जीवन भाषा
बिना रुके चलना
ये  परिभाषा


रूठो मनाना
कभी खुशी या गम
जोश जगाना


भागती दौड़
यहाँ अनेक मोड़
मची है होड़


जिंदगी जंग
बहुत निराली है
होते हैं दंग


घृणा ओ प्यार
हर  रंग  इसमें
हो      एतबार


रूप अजब
अद्धभुत है यह
है ये गज़ब


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो   9897071046
       8218685464


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

लिखते जाना  अमर कहानी"


चलते फिरते सोते उठते
खाते पीते गायन करते
हाथ जोड़कर बातें करते
लिखते रहना अमर कहानी।


धूप छाँव में नदी नाव में
स्वयं गाँव में दुःखित घाव में
थकित पाँव में व्यथित चाव में
लिखते जाना अमर कहानी।


हृदय-सून में अधिक-न्यून में
काव्य-धून में हनी-मून में
मधु जुनून में प्रिय प्रसून में
लिखते चलना अमर कहानी।


कल-कछार में नदी नार में
घर दुआर में सहज प्यार में
प्रीति-सार में मददगार में
यादगार में दर्दखार में
दिलशुमार में गंगधार में
इक कतार में निपुण न्यार में
लिखते जाना अमर कहानी।


घृणा-प्रीति में सकल रीति में
सहजासहज नीति-गीति में
कृतिकाकृति की सब संस्कृति में
लिखते जाना अमर कहानी।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*माता-माहात्म्य के दोहे*
आया शुभ नव-रात्रि अब,करो मातु नित ध्यान।
भजो मातु हर रूप को,होगा शुभ कल्याण।।


शक्ति-ज्ञान-धन दायिनी,विविध रूप आगार।
भक्तवत्सला मात ही,है जीवन-आधार।।


पूजन-अर्चन-स्मरण,जो जन करते रोज।
उनका हित नित-नित करें,माता-चरणसरोज।।


यद्यपि माँ ममतामयी,पर माँ बने कठोर।
करे नाश रिपु शीघ्र ही,संकट जो दे घोर।।


सिंह-वाहिनी चंडिका,शीघ्र ग्रहण कर रूप।
भक्त निकट माँ पहुँचकर,बधे जो शत्रु कुरूप।।


हंस-वाहिनी रूप में,वीणा की झंकार।
ज्ञान-साधना-गीत-स्वर,को देती विस्तार।।


शक्ति-ज्ञान का स्रोत माँ, करुणा-सिंधु अथाह।
माँ-स्तुति-डुबकी करे,जीवन-स्वस्थ-प्रवाह।।


गिरिजा-पूजन से मिले,अनुपम वर श्रीराम।
धन्य मातु तू जानकी,तमको नमन-प्रणाम।।
               डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372


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