सत्यप्रकाश पाण्डेय

आराधक


आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।
तेरी हवा बसी मेरी सांसों में,
तू आराध्य मेरे जीवन की।।
मैंने तुझ संग खिलवाड़ किया,
तेरा स्वरूप खूब बिगाड़ा।
प्राकृतिक सुषमा को छेड़ा,
दोहन कर संतुलन बिगाड़ा।।
जीवनदायिनी बनकर तुमने,
रक्षा की है नर जीवन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
शस्यश्यामला जग जननी तुम,
करती रहीं सदियों से उपकार।
 फल फूल और धन धान्य से,
खूब लुटाया मां तूने प्यार।।
हर दुःख को सहकर भी माता,
अतुलित छवि तेरे आनन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
मल मूत्र सब वहन कर रही,
काटा खोदा और खरोंचा।
तार तार मर्यादाएं किन्हीं,
शायद तुमने कभी न सोचा।।
धैर्यवान हे क्षमाशील मां,
मैं बलिहारी तेरे चरणों की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
वृक्ष काट वीरान कर दिया,
पर्वत काट छीन लिया श्रृंगार।
भ्रूण हत्या व बलात्कारी बन,
खूब किया कुत्सित व्यवहार।।
हर अपराध क्षमा तुन्हें किन्हें,
बन प्रत्याशा मम जीवन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना।
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।
निज कर्तव्यों से विगलित हो,
नहीं कर पाया मां तेरा सम्मान।
झूठ फरेब और छल कपट से,
निशदिन करता रहा अपमान।।
कैसे ऋण मुक्त करुं मैं खुद को,
यह पीड़ा है अब मेरे मन की।
आराधक बन मैं करुं आराधना,
हे!मातृभूमि तेरे चरणों की।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय🙏🙏


सुनीता असीम

चाँद में ही चाँदनी जिन्दा रही।
प्यार में दिल की लगी जिन्दा रही।
***
आज वीराना हुआ चाहे शहर।
पर अजब इक खामुशी ज़िन्दा रही।
***
मौत का आया हुआ है जलजला।
बस घरों में ज़िन्दगी जिन्दा रही।
***
यूं अंधेरे से भरा था आसमां।
चांद की पर रोशनी जिन्दा रही।
***
हो भले साया दुखों का खत्म हों।
शुष्क आंखों में नमी जिन्दा रही।
***
सुनीता असीम
१/४/२०२०


निशा"अतुल्य"

दुर्गा पूजन 
1.4.2020



सजी बेटियां
सुन्दर छबि न्यारी
बेटियाँ प्यारी ।


सजाये घर
बने हलवा पूरी
पूजित आज ।


पैर पखारे
लगाया टीका बैठा
शुद्ध आसन
 
बैठाएं कन्या
बना नौ देवी पूजे 
कराने भोज।


दुर्गा अष्टमी
ढूंढते कन्या सभी
लगाने भोग ।


कैसा पूजन
मारे कन्या गर्भ में
करें वंदन ।


सृष्टि निर्मात्री
चलाये जो संसार
वो ही बेचारी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई )  

*हवाओ पूंछ लेते है*
विधा : कविता


दूर है तुम्हारे घर से,
मेरे घर का किनारा।
पर हवाओ के झोके से,
पूंछ लेते है हाल तुम्हारा।
लोग कहते है की,
जिन्दा रहेंगे तो मिलेंगे।
पर में कहता हूं की,
मिलते रहने से जिन्दा रहेंगे।।


दर्द कितना खुश नसीब है।
जिसे पाकर अपनों को याद करते है।
दौलत कितनी वदनसीब है।
जिसे पाकर अपनों को भूल जाते है।।


छोड़ दिया सब को,
बिना वजह परेशान करना।
जब कोई अपना,
हमें समझता ही नहीं।
तो उसे याद दिलाकर,  मुझे क्या करना।
भूल जाते है बेटे भी,
इस दौर में मां बाप को।।


जिंदगी गुजर गई, 
सबको खुश करने में।
जो खुश हुए भी,
वो अपने नहीं थे।
और जो अपने थे,
वो भी खुश नहीं हुए।
ये कलयुग है भाई,
यहां कोई किसका नही।।


इसलिए संजय कहता है।
कर्मो से डरिये,
ईश्वर से नहीं।
ईश्वर माफ़ कर देता है।
परन्तु खुद के कर्म नहीं।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई )  
01/04/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मद में न भूल..........


खुद को खुदा समझ  इंसान
मदहोश हुआ भूला भगवान


गिरी सरिता अरु सागर सारे
ध्वज फहरा कर हुए मतबारे


जब बरसा कुदरत का कहर
निकल गया मानव का जहर


हुआ ईश्वरीय सत्ता का भान
परमब्रह्म की शक्ति का ज्ञान


ईश प्रकृति से बड़ा न कोई
ईश्वर जो चाहेगा होगा सोई


किस घमंड से बौराया है नर
क्यों अहम कंकर पत्थर पर


अब समझ तू ईश का संकेत
नींद छोड़ तू हो जा सावचेत


सत्य आग्रह कर रहा मानव
मद में न भूल प्रकृति व रब।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"मरीचिका"*
"पतझड़ के मौसम में साथी,
मधुमास का अहसास-
मृग मरीचिका है जीवन में।
स्वार्थ की धरती पर साथी,
अपनत्व का अहसास-
मृग मरीचिका है-जीवन में।
स्नेंह मिले जीवन में साथी,
नफ़रत हो मन में-
सुख मृग मरीचिका है जीवन में।
सुख मुठ्ठी में रेत की भाँति साथी,
सरकता है रहा सुख-
बाँधना मृग मरीचिका है जीवन में।
तपती धूप में मरूस्थल में साथी,
पानी का अहसास-
मृग मरीचिका है जीवन में।
मंज़िल की तलाश में भटकता मन,
मंज़िल का पाना-
मृग मरीचिका हैं जीवन में।।"
ःः     सुनील कुमार गुप्ता
     01-04-2020


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*।अष्ट भुजा धारी माँ दुर्गा।।।।*
 *चैत्र नवरात्री।।महिमा।।।।।।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*
अष्ट भुजा   धारी   माँ   दुर्गा
लेकर नौ महिमा के अवतार।


प्रकट   हुई   हैं     देवी   मैया
हम   भक्त   जनों   के   द्वार।।


कलश  कसोरा जौ ओ  पानी
पुष्प दीप संग करें  अगवानी।


करें प्रार्थना माँ कृपा बरसाये
हो हम भक्त जनों का उद्धार।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मो   9897071046 ।।।।।
8218685464  ।।।।।।।।।


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

नवरात्र के अष्टमी पर विशेष
हे मां महागौरी सबको सुमति दो
******************
हे मां महागौरी
वृष वाहिनी शांति स्वरूपा,
शिव शंकर की अति प्रिय प्यारी,
तेरे आठ कन्या रूप अति प्यारे,
मां तुम ही ज्ञान दायिनी सुमति दायिनी हो।


 हे मां महागौरी
जिसका मन शिशु जैसा,
तुम करती हो रखवाली,
तेरे चरणों शीश झुकाओ,
मिट जायेगा जन्मों का फेरा।


हे मां महागौरी
भक्तों की तुम करती रक्षा,
सबके कष्टों को तुम हरती,
द्वार तुम्हारे आये है मां,
सबकी नैया पार लगा दो।


हे मां महागौरी
तुम हो घट-घट वासी,
ममता की मूरत तुम हो,
ज्ञान दायिनी मेधा प्रज्ञा तुम से मिलती,
शरण तुम्हारे आये है हम नादान,
हे मां महागौरी सबको सुमति दो।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
246171
*********************


अवनीश त्रिवेदी "अभय

कुण्डलिया


लॉकडाउन बहुत सही, अब तक उचित उपाय।
पूरा  पालन  कीजिये,  तन  मन  से   अपनाय।
तन  मन  से  अपनाय, न निकलो घर के बाहर।
पुलिस  बड़ी  मुस्तैद,  करेगी  जमकर  ख़ातिर।
कहत अभय समझाय, सही  हो  प्रॉपर  नाउन।
बहुत   जरूरी   आज,   रहें  स्वयं  लॉकडाउन।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



🥀विषय भूख🥀



विधा मनहरण घनाक्षरी छंद


🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
कौन रहे अनजान, भूख पेट की ये आग।
जीव-जन्तु मनु सब,सम भूख होते हैं।।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
कोई भूख जताकर,कोई भूख दबाकर।
कोई करे जोर-शोर,जैसे मुख होते हैं।।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
कोई खाए रोज-रोज,मीठ पकवान खोज।
कोई आधे पेट रहे, ऐसे दुख होते हैं।।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
जैसी घड़ी रही चल,रुके नहीं एख पल।
आगे यश दुख पीछे, सदा सुख होते हैं।।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃


 



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


कुमार कारनिक   छाल, रायगढ़, छग


    *विपदा हरो मां*
   मनहरण घनाक्षरी
   °°°°°°°°°°°°°°°
मेरी  विपदा  हरो  मां,
संकट  से  उबारो  मां,
करें   जय  - जयकार,
       तेरी मंदिरवां मे।
🏵
सुन  ले  मेरी  पुकार,
हो   सबका  उपकार,
जग - जननी मेरी मां,
       तेरी मंदिरवां मे।
🌸
हां संकट  की घड़ी है,
विपदा आन  पड़ी  है,
घंटियाँ  बज   रही  है,
       तेरी मंदिरवां मे।
🌼
शेरों मे बैठ आजा मां,
क्रोना संघार  करो मां,
अब  दर्शन दे  दो  मां,
       तेरी मंदिरवां मे।



                 *******


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”

-लॉक डाउन-
☆दिल्ली घटना☆
वो धर्म स्थल से धर्म का प्रचार कर दिया।
अपने जाति-धर्म को दाग़दार कर दिया।
कहता है ऊपर वाला सबका ख़ैर करेगा
जो आज धर्म को भी गुनहगार कर दिया।
-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”
सम्पर्क सूत्र-9415911010
KRS


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

मत्तगयन्द सवैया


नेह भरे उर भीतर  शोभित, होंठन  पे  मुसकान  बड़ी  हैं।
नैन  नचाइ  निहारति  खूबइ, चौखट पे  चुपचाप खड़ी हैं।
खूब  मनोहर राशि लटें अरु, गाल ढके निज केश लड़ी हैं।
रूप  बखान  करें  कइसे हम, देखत ही उर  बीच अड़ी हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

 मेरे राम
बहुत    प्रतीक्षा   आप   की , आओ मेरे राम।
कोराना  रावण   विकट , हरो  करो  सत्काम।।१।।
मातम  है    फैला   हुआ , आर्तनाद  चहुँओर।
खर- दूषण  मारीच  बहु , विपदा  है  घनघोर।।२।।
पतित   पावन   पाप  हर , करो जगत् उद्धार।
निर्भय    कपटी  घूमते , धर्म     नाम    गद्दार।।३।।
पुरुषोत्तम   रघुकुलतनय ,कृपा करो सियराम।।
करुणाकर संताप हर , फिर जग हो सुखधाम।।४।।
रामलखन सियधाम में , लगी   दानव  कुदृष्टि।
कौशलेय  हे   दाशरथि , करो  कृपा की  वृष्टि।।५।।
करने   को   आतुर  पुनः , रामराज्य  विध्वंश।
कोरोना  बन   तारिका ,  कुटिल मृत्यु  दे दंश।।६।।
आर्त नैन अभिलाष मन , देख रहा तुझ भक्त।
कमलनैन परित्राण कर,तज निद्रा अरि ध्वस्त।।७।।
राम  राम अविराम  मन , सियाराम अभिराम।
रमारमण  रम  आमरण , रम्य  जयतु श्रीधाम।।८।।
रमो राम  रमणीय वन , सुरभित मन मकरन्द।
मुख सरोज सिय चन्द्रिका,निर्भय  रम आनंद।।९।।
रोग शोक मद मोह सब ,घृणा द्वेष मिथ लोभ।
भजो लखन सियराम को,कटे पाप सब क्षोभ।।१०।।
भरत भूमि   काली घटा , मचा लोक कोहराम।
दुखहर्ता   रघुवर   पुनः , आओ   मेरे       राम।।११।।
तजो मोह श्रीधाम का ,   रखो  लाज   भूधाम।
पुनः पधारो लखन  सह,  रघुपति  राघव  राम।।१२।।
हरे  राम घनश्याम  तनु ,जयतु अयोध्या धाम।
हरो सकल बाधा विविध, तारक   राजा  राम।।१३।।
सुर नर मुनि वन्दन करें,हरि हर विधि अविराम।
भज रे मन  श्रीराम को , मिले   मोक्ष  श्रीधाम।।१४।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"माँ महागौरी"*(कुण्डलिया छंद)
••••••••••••••••••••••••••••••••••
¶सोहे पावन रूप है, कुंद-कुसुम सम भान।
देती शक्ति अमोघ है, अष्टम् मातु महान।।
अष्टम् मातु महान, महागौरी जग जाने।
करती है कल्याण, हृदय से जो भी माने।।
कह नायक करजोरि, वृषारूढ़ा मन मोहे।
देती शुभ वरदान, चतुर्भुज देवी सोहे।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
•••••••••••••••••••••••••••••••••••


नूतन लाल साहू

दुर्गाष्टमी के अवसर पर समर्पित
             भजन
जरा फूल बिछा दो,आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की पायल लेे आओ
कोई मइया की बिछिया ले आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की कंगन ले आओ
कोई मइया की चूड़ी लेे आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की साड़ी लेे आओ
कोई मइया की लहंगा ले आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की कुंडल लेे आओ
कोई मइया की झुमका लेे आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की बिंदिया लेे आओ
कोई मइया की फीता ले आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
कोई मइया की चोली ले आओ
कोई ध्वजा नारियल लेे आओ
सब मइया की जय जयकार करो
मेरी मइया आने वाली है
जरा फूल बिछा दो आंगन में
मेरी मइया आने वाली है
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"मर्यादा पुरुषोत्तम राम"*
..................................
वर्गीकृत दोहे
..................................
*आदि-अनादि अनंत हैं,
          अवतारी श्री राम।
पुरुषोत्तम सुखसार हैं,
           मर्यादा के धाम।।१।।


(१६गुरु१६लघु वर्ण करभ दोहा।)


*धरम सिखाने राम ने,
      लिया मनुज अवतार।
भक्त तारने को किया,
            दुष्टों का संहार।।२।।


(१६गुरु१६लघु वर्ण करभ दोहा।)


*संस्कृति की पहचान हैं,
     भव-अनुभव के धाम।
धरम-करम की प्रेरणा,
          रघुवंशी श्री राम।।३।।


(१३गुरु२२लघु वर्ण गयंद/मृदुकल दोहा।)


*भक्तों पर संसार में,
           बढ़ता अत्याचार।
करने दानव-दल दलन,
         लेते प्रभु अवतार।।४।।


(१४गुरु२०लघु वर्ण हंस/मराल दोहा।)



*भू पर अति जब-जब हुआ,
            दुष्टों का पाखंड।
तब-तब प्रभुजी अवतरे,
            देने उनको दंड।।५।।


(१३गुरु २२लघु वर्ण गयंद/मृदुकल दोहा।)


*महिमा-मंडित राम हैं,
            लीला अपरंपार।
मानव-दर्शन आप ही,
        सद्गुण के भंडार।।६।।


(१६गुरु१६लघु वर्ण करभ दोहा।)


*सत्कर्मों के पुंज हैं,
       साध्य सदा श्री राम।
उन्नायक हैं सत्य के,
     कृपासिंधु-सुखधाम।।७।।


(१८गुरु१२लघु वर्ण मर्कट दोहा।)



*कारण निज पुरुषार्थ के,
          राम हुए प्रभु राम।
परिणति हैं आदर्श की,
     भव-भंजन भगवान।।८।।


(१२गुरु२४लघु वर्ण पयोधर दोहा।)


*वचन निभाने के लिए,
      किया राज का त्याग।
त्यागा भार्या जानकी,
       प्रजापाल-अनुराग।।९।।


(१७गुरु१४लघु वर्ण मर्कट दोहा।)


*धर्म-कल्पद्रुम बीज हैं,
       सुखदायक श्री राम।
तारक ऋषि-मुनि-संत के,
         संवर्धक-सत्काम।।१०।।


(१४गुरु२०लघु वर्ण हंस/मराल दोहा।)


*नाथ अनाथों के तुम्हीं,
         कृपासिंधु-भगवंत।
'नायक' करे बखान क्या?
     तुम हो आदि-अनंत।।११।।


(१५गुरु१८लघु वर्ण नर दोहा।)


*राम नाम की आस है,
              माया है संसार।
शरणागत मैं प्रभुचरण,
          कर दो नैया पार।।१२।।


(१६गुरु१६लघु वर्ण करभ दोहा।)
................................
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
.................................


गौरव शुक्ल मन्योरा लखीमपुर खीरी

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के धरती पर अवतार ग्रहण के दिवस पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं सम्प्रेषित अपने दो घनाक्षरी छंदों के साथ-
(1)
प्राणों में समाए राम, कौशल्या के जाए राम,
राम राम राम राम राम गाते रहिए।
राम का जवाब राम, पुण्य का हिसाब राम,
राम की कथा को सुनते सुनाते रहिए।
मर्यादा पुरुष राम , मेटते कलुष राम,
भक्ति में सदैव उनकी नहाते रहिए।
बिगड़ी बनाते राम, क्या नहीं दिलाते राम,
जय राम जी की कहते कहाते रहिए।
(2)
तुलसी के प्यारे राम, सब के दुलारे राम,
यश गाते जिनका हृदय थकता नहीं।
अवध के भूप राम, शक्ति के स्वरूप राम,
हतभागी है जो राम राम भजता नहीं।
जो पुकारते हैं राम, उन्हें तारते हैं राम,
राम रटने से कोई काम रुकता नहीं।
धर्म के प्रतीक राम, देते हर सीख राम,
राम सा चरित्र दुनिया में दिखता नहीं।
- - - - - - - -
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(683)             *मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम*
___________________________________________
श्री गणेश को वंदन मेरा , पूर्ण करेंगे काम ।
विघ्न हरेंगे सारे ही वो , ले लो उनका नाम ।
मात् शारदे कृपा तुम्हारी, गढ़ देंगे आयाम ।
ले लो अपने मनोयोग से , प्रभू राम का नाम ।
मर्यादा पुरुषोत्तम हैं करते, जग का नित कल्याण। 
यही सत्य है कहते सारे, अपने वेद पुराण। 
प्रश्न उठा क्यूँ माँ सीता को, दिया गया वनवास ।
पालन का अधिकार दिया था, किसको है अहसास ।
बच्चों के पालन में था, निर्विरोध परिवार ।
प्रभू राम की यही व्यवस्था , सत्य जगत करतार।
सीता ने भी सहज लिया था , और सहज स्वीकार किया ।
प्रभू राम की थी ये लीला , उसको अंगीकार किया ।
लव कुश के पालन से जिसने , नारी का उत्कर्ष लिखा ।
एक अकेली नारी ने ही , जीवन का संघर्ष लिखा ।
संस्कार युत विकसित संतति , दिया  गुरू व नारी ने।
बच्चों को ममता से जोड़ा , प्रभू राम अवतारी ने ।
राजनीति की सारी शिक्षा, देनें से कब कतराए।
माँ की ममता देख देख कर, श्रीगुरुवर भी हर्षाए।
स्वस्थ सुदृढ सेवा हो निश्छल , ऐसी अनुपम शिक्षा थी ।
अंतस से स्वीकार करें ये, पावन पुण्य परीक्षा थी ।
राम की लीला राम हीं जाने , जो चाहे सो होय ।
माँ दुर्गा की पुण्यकृपा को, जान न पाया कोय।
सकल जगत की रक्षा का, जिसने कवच चढ़ाया था ।
लोक और परलोक हमारा, जिनसे शुभ हो पाया था। 
मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला , मिलती हमें अनेक ।
सभी रुप मे वंदन प्रभुवर, परमपिता हैं एक ।।


 


🌹(सर्वाधिकार सुरक्षित स्वरचित)
      *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  12.4.19......



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रामनाथ साहू " मुरलीडीह "                             मुरलीडीह

आज की कुण्डलिया ~
02/04/2020


 
                ------- परिपाटी ------


                           🌲


परिपाटी  का मान रख , जो  भी हो  अनुकूल ।
ये हितकर हैं हर समय ,  सब सुख के शुभमूल ।।
सब सुख के शुभ मूल , जुड़े हैं संस्कारों में ।
समय व्यक्ति संबंध , बहे अविकल धारों में ।
कह ननकी कवि तुच्छ , आज जो मिली मुँहाटी ।
कारण कल्प विधान , यही  केवल परिपाटी ।।


                         🌲🌲
परिपाटी निर्माण कर ,जो हो अति नमनीय ।
सृष्टि प्रलय के बाद भी , बना रहे भवदीय ।।
बना  रहे  भवदीय , निरंतर  हो  अनुपालन ।
मन चित रहे प्रसन्न , नियम ऐसे मनभावन ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , पुकारे अपनी माटी ।
रचो विमल सुविधान , अमरता की परिपाटी ।।


                       🌲🌲🌲


परिपाटी  सब  तोड़कर , करते हैं  उपहास ।
नये जमाने की चमक , पश्चिम पंथ विलास ।।
पश्चिम पंथ  विलास , मशीनी  मानव गढ़ता ।
भाव  रंग से शून्य , निकटता  आहें  भरता ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , इसे जिसने भी काटी ।
अपमानित हर काल , छोड़ता जो परिपाटी ।।


               ~ रामनाथ साहू " मुरलीडीह "
                            मुरलीडीह


🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿


चन्द्रवीर सोलंकी "निर्भय"

गीत - अभिनंदन हे ! दशरथ नंदन..


अभिनंदन हे ! दशरथ नंदन,
दूर करें भक्तों का क्रन्दन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...1


नमन तुम्हें,अतुलित बलधारी,
जन्मभूमि के त्रास कटे।
संघर्षों के प्रतिफल पाए,
अब जाकर संत्रास छटे।।


हे ! हृद स्वामी, करुणा सागर,
दया करो, हम करते वंदन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...2


दिगदिगंत में तुम यशधारी।
तुमसे काँपे पापाचारी।
दानव नाशक,पुण्य प्रकाशक,
तुमको प्यारी जनक दुलारी।।


दीनानाथ, भक्त के रक्षक,
तुम हो भक्त भाल का चंदन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...3


चन्द्रवीर सोलंकी "निर्भय"


प्रिया सिंह

मैं बुरा नहीं तो मुझे बनाते क्यों हो
ऐ जमाने वालों मुझे सताते क्यों हो


फरेब बहुत भरा है तेरे अंदर मानव
नजर फिर खुद से भी हटाते क्यों हो


तुम्हे फर्क नहीं पड़ा मेरे चले जाने से
आज रूक कर राह में मनाते क्यों हो


मैं रूठते रूठते पत्थर का हो गया था
अब बेवकूफी पर अपने हंसाते क्यों हो


पाप संभाल कर गठरियों में रखे हो तुम 
फिर सारे पुण्य को नाले में बहाते क्यों हो


जग से परेशान हूँ और तेरे ताने-बाने से
स्वाद इश्क का चखा कर रूलाते क्यों हो


मुझे नहीं खबर दुनिया भर की बातें 
मुझे असलियत आखिर बताते क्यों हो


अदावत अदालत पहुंच जायेगी देखना
अदू पर अपना अधिकार जताते क्यों हो


जिन्दा थे तो तुम ने नींद पूरी नहीं होने दी
आज मेरे बिस्तर पर फूल चढाते क्यों हो



Priya singh


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती माँ प्रिय सौम्या"


सहज सरल शालीन सभ्य सत।
नित नवनीत नेति नव्य नत।।


सुघर शिरोमणि शान्त शिवा सम।
नीर नयन नव नजर न्याय नम।।


नीति नियामक नभ नर नारी।
प्रीति प्रेम प्रेमिका पियारी।।


शुभगा  शुभ शौभाग्य सौम्य सख।
सौजन्या सौहार्द सौर सच।।


सहजामृत सरलामृत सखिमय।
तरल तत्वमय त्वम तिय तदमय।।


स्वार्थरहित सर्वज्ञ सर्व सब।
रम्य रमण राधा रसमय रब।।


ज्ञान अथाह अनन्त अजेया ।
परम सुरम्य नमन नमनीया।।


कृपा करो हे दिव्य शारदे।
महा सरस्वति माँ शुभ वर दे।


नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सिद्धिदात्री माँ को सादर नमन"


सिद्धि प्रसिद्धि सुसिद्धि तुम्हीं।
सबका शुभ अंक सदा तुम ही।।


निज भावों की रक्षा सदा करती।
भक्त भाव मेँ प्रेम बनी बहती।।


रहती तपती तपसी बनकर।
सिद्धिदात्री बनी रचती भक्तवर।।


अष्टमी नवरात्रि सदा शुभदा।
सिद्धियोगिनी प्रीति दे मातृ सदा।।


तुम योद्धा बहादुर वीर सदा ।
प्रिय सिद्धि  सहाय सदा सन्त का।।


अति श्रेष्ठ सुधी शिव मानसमय।
खुश होती विनम्र बनी सुखमय।।


अति स्नेह स्वरूपिणि दिव्य सुधा।
करती मनमोहक जग-वसुधा।।


हो कृपालु दयालु सदा भक्त पर।
अब मेघ करुण बन खुश सबपर।।


तव रूप निराला है मातृ सदा।
अवतार सुखद शुभदा प्रियदा।।


बन संकट मोचन नित्य रहो।
सबको प्रिय पात्र सुबोध करो।।


करवद्ध निवेदन है तुझसे।
प्रिय मातृ का स्नेह सदा बरसे।।


करते नित वन्दन मातृ नमन।
सिद्धिदात्री का पायें  सदा  शिव सदन।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


कवि जसवन्त लाल खटीक

✍🏻  अप्रैल फ़ूल  


भरी सभा में नेताजी ,
                    अप्रैल फूल बनाते है ।
विकास का आश्वासन देकर ,
                   वोट खिंच ले जाते है ।।


आज के कलयुगी मानव ,
                    अप्रैल फूल मनाते है ।
दो-दो चेहरे लेकर चलते ,
              सबको बेवकूफ बनाते है ।।


भाई-भाई रोज लड़ते ,
                    अप्रैल फूल मनाते है ।
जमीन और दौलत के लिए ,
                   प्राण तक हर जाते है ।।


कलयुगी माँ-बाप देखो ,
                    अप्रैल फूल मनाते है ।
बेटी को जन्म से पहले ,
                  कोख में ही मरवाते है ।।


बेटे भी कम नही आज के ,
                     अप्रैल फूल मनाते है ।
बहु के आते ही माँ-बाप को ,
                   वृद्धाश्रम भिजवाते है ।।


दहेज लोभी सास ससुर भी ,
                     अप्रैल फूल बनाते है ।
बहु को मार देते है और  ,
           आत्महत्या दर्ज करवाते है ।।


भेड़िये रूप में वहसी दरिंदे ,
                     अप्रैल फूल बनाते है ।
बहला फुसला कर बच्चियो को  ,
            हवस का शिकार बनाते है ।।


" कवि जसवंत " करता है अर्जी ,
                 अप्रैल फूल मत बनाओ ।
अपनी क्षणिक ख़ुशी के लिए ,
        दुसरो को दुःख मत पहुँचाओ ।।


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