डा.नीलम अजमेर

बैठे बैठे.......


मिली हमसे जिंदगी हमारी कभी
बिछड़ के हमसे उन्हें मिला क्या पूछेंगे


रुसवाई सरे बाजार हमारी हुई
पर्दे में रह कर उन्हें मिला क्या पूछेंगे


ना पूछ हाल ए दिल हमसे ए जिंदगी
हम क्यों न किसी के हो   सके क्या पूछेंगे


थे कई सवाल जुबां और ज़हन में मेरे भी
खामोश क्यों रहे हर मर्तबा क्या पूछेंगे


शिकवा ना शिकायत है कोई
दिल में हमारे
तोड़ के दिल मासूमों का मिला क्या पूछेंगे  ।


      डा.नीलम


जया मोहन प्रयागराज

लघु कथा
सबक
आज ड्राइवर नही आया था।ऑफिस खत्म होने के बाद मैंने चपरासी से घर जाने के लिए रिक्शा मंगवाया।वह एक कमजोर बूढ़े रिक्शेवाले को ले आया।उसे देख कर मुझे क्रोध आया।ये किसे पकड़ लाये ।ये ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा मुझे क्या पहुचाएगा।मैंने पर्स से बीस का नोट निकाल कर देते हुए कहा बाबा आप जाईये।वह बोला अगर आपको जाना नही तो आप मुझे पैसे क्यों दे रही है।मैंने कहा रख लीजिए।नही मैं भीख के नही मेहनत के पैसे लेता हूं।बेटी मैं बूढ़ा व कमज़ोर हो गया तो क्या मेरा स्वाभिमान ज़िन्दा है। आप पैसा दे कर दानवीर और मुझे भिखारी बनाना चाह रही है।उसने नोट मेरे हाथ मे रख दिया और चला गया।मैं आवाक थी वह मुझे सबक सिखा गया।मेरा मन आत्मग्लानि से भर उठा।सच अनजाने में सही एक मेहनतकश का अपमान करने का अपराध तो मुझसे हो गया।मन ही मन माफी मांगते हुए मैंने उसे नमन किया।



स्वरचित 
जया मोहन
प्रयागराज


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अद्भुत रूप युगलछवि कौ
न्यौछावर दुनियां सारी
मम हृदय में बसों निरन्तर
श्रीराधे व कुंजबिहारी


मोहिनी मूरत नाथ तुम्हारी
काटे भव की महामारी
प्राणी मात्र त्राहि त्राहि करे है
जग जीवन रहे सुखारी


आनन्दकन्द हे मधुसूदन प्रभु
सत्य तो शरण तुम्हारी
ऐसी तान छोड़ दो मुरलीधर
सुख से रहे प्रजा प्यारी।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


आओ जीवन अंग बना लें
श्री राम के आदर्श को
आओ हम हृदय में बसा लें
श्रीराम के रूप रंग को


पार करें हम भवसागर को
लेके राम नाम पतवार
मिट जायें दुःख दर्द सभी के
भज लेवें करुणावतार।


श्रीराम जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाओं के साथ, आपका जीवन मंगलमय हो🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


 



सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तन समर्पित मन समर्पित और समर्पित जीवन सारा
हे मुरलीधर प्यारे मनमोहन हमारे लिए तू प्राणों से प्यारा
तेरे चरणों में रहकर हम अक्षुण संस्कृति का गान करें
गंगा यमुना की तहजीब लिए नवयुग का निर्माण करें
एक ही जाति थी आर्यावर्त में आर्य ही थी पहचान
गुरु गौरव को प्राप्त किया और विश्व का किया कल्याण
प्रण पण से करें प्रतिज्ञा हम संकीर्णता का त्याग करेंगे
मानव है तो मानवता के लिए हम जियेंगे और मरेंगे।


श्री माधवाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चलते चलते


चलते चलते आज हम,किस मुकाम पै आ गये
सदियों की परम्परा छोड़ी, पाश्चात्य में समा गये


भूल गये संस्कार संस्कृति,हमें राग रंग भा गये
नानी दादी की कहानी भूले, चलचित्र अपना गये


लोकलाज की परवाह न,भूले वृद्धों का सम्मान
पत्तल का भोजन भूले,हुआ पशुओं सा खानपान


गाय बैल से रहा न रिश्ता,हुई कृषि यंत्र आधीन
मानवमूल्यों की बात करो,तो भैस के आगे बीन


वेद पुराण अतीत की बातें,नहीं पढ़ना इतिहास
धर्म कर्म की बात करें तो,सहना पड़े हैं परिहास


वसन त्याग अर्धनग्नता अपनाई,ये गौरव की बात
भ्र्ष्टाचार बलात्कार  अशिष्टता की,चहुओर बर्षात


रथ बहली व बुग्गी छोड़ी,उड़ें हवा में वायुयान
ईमानदारी का सेहरा पहनें,रग रग से बेईमान


धरती पर बसना न सुहाये,चन्द्र मंगल के स्वप्न
नौकर गाड़ी बंगला चाहत,पर परिश्रम न अल्प


नित्य उपलब्धियों के ढोल पीट,न कहीं संतुष्ट
चलते चलते थक गये,फिर भी जता रहे कि पुष्ट।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


अर्चना द्विवेदी        अयोध्या

रामनवमी की बधाई🙏🙏


प्रकट हुए प्रभु राम मंगल गाओ री
गलियाँ हुई सुरधाम हर्ष मनाओ री


चैत्र महीना दिन नवमी का
धन्य हुआ जीवन जननी का
पावन हुआ हर ग्राम,हर्ष मनाओ री


रूप बिलोकि रहे नर नारी
कमल नयन लागे छवि प्यारी
शशि मुख रंग है श्याम,हर्ष मनाओ री


सुर नर मुनि के तारन हारे
कर में धनुष दैत्य जन मारे
मर्यादित सारे काम,हर्ष मनाओ री


अवधपुरी तन,मन हो चंदन
छोड़ दिखावा,कर लो वंदन
मिलता सुखद परिणाम,हर्ष मनाओ री


द्वेष कपट छल भाव न रखना
सांसारिक  माया  को  तजना
अंतस बने श्रीधाम,हर्ष मनाओ री


जाति पात का भेद न करते
अमित भक्ति से ही प्रभु मिलते
शत शत इन्हें प्रणाम हर्ष मनाओ री।।
       अर्चना द्विवेदी
       अयोध्या


संजय जैन बीना(मुम्बई)

पिता क्या होते है*
विधा: कविता


अंदर ही अंदर घुटता है।
पर ख्यासे पूरा करता है।
दिखता ऊपर से कठोर।
पर दिलसे नरम होता है।
ऐसा एक पिता होता है।।


कितना वो संघर्ष है करता।
पर उफ किसीसे नहीं करता।
लड़ता है खुद जंग हमेशा।
पर शामिल किसीको नहीं करता।
जीत पर सबको खुश करता है।
हार किसी से शेयर न करता।
ये एक पिता ही कर सकता।।


खुद रहे दुखी पर,  
घरवालों को खुश रखता है।
छोटी बड़ी हर ख्यासे,  
घरवालों की पूरी करता है।
फिर भी बीबी बच्चो की, 
सदैव बाते वो सुनता है।
कभी रुठ जाते मां बाप,  
तो कभी पत्नी रूठ जाती है।
इसलिए दोनों के बीच में,
बिना वजह वो पिसता है।
इतना सहन शील इंसान, 
एक पिता ही हो सकता है।।


समझ न सके उसे कोई।
इसलिए वो अंदर ही अंदर।
स्नेह प्यार को तरसता है।
पर पिता को ये सब, 
अब कहाँ पर मिलता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना(मुम्बई)
02/03/220


श्रीमती ममता वैरागी। तिरला धार

जिंदगी मे ली जब  पहली सांस।
ऊसमे होती रही  बडी  हमे आस।
जब से पहला बढाया कदम।
कही मिली खुशिया, कही हुए निराश।
 रोडे राहो मे थे, रोकने को बेताब।
बचपन के हम भी ठहरे नवाब।
माता,पिता की छांव थी।।
बगियां महक रही थी घर की।
तब तक सुखी बहुत ही रहतेः
जब तक देखी ना हमने दुनिया।
फिर एक मन उडने को कहता।
दूजा आकर पर है काटता।
कही सफलता, और विफलता।
इसमे बढ ग ई कितनी उलझने।
देखा कभी तो शांति ही दिखती।
पर कही तो टुट हम जाते।
ऐसा गम हमे.आकर घेर लेता।
आओ आज तक गम मे रहे हम।
अब इस गम को मार भगाए।
और बची जितनी.है.सांसे।
उनको बचाकर कुछ कर जाए।
श्रीमती ममता वैरागी। तिरला धार


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां वीणा धारणी
***************
हे मां शुभ्र वस्त्रधारिणी,
दिव्य दृष्टि निहारिणी,
 हे मां वीणा धारणी ,
पाती में वीणा धरै,
तू कमल विहारिणी।


पवित्रता की मूर्ति तू,
सद् भाव की प्रवाहिनी,
हे मां सुमति दायनी,
ज्ञान का वरदान दे,
मैं प्रणाम कर रहा हूँ।।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सीमा शुक्ला अयोध्या।

चलों जलाएं एक दिया फिर
मानवता का दें संदेश।
आशा की किरणें बिखेरकर,
जगमग कर दें पूरा देश।


एक दिया भारत माता का
एक दिया मां की ममता का
एक दिया जो राह दिखाए,
मन के तम को दूर भगाए।
एक दिया ईश्वर से विनती
दूर करें सब मानव क्लेश,
चलो जलाएं एक दिया फिर
मानवता का दें संदेश।


एक दिया हो बुद्धि- शुद्धि का,
जाति धर्म इंसान भुलाए।
एक दिया जो मानव मन में,
प्रेम, दया की ज्योति जलाए।
एक दिया  जो ये बतलाए
देश से बड़ा न धर्म विशेष।
चलो जलाएं एक दिया फिर
मानवता का दें संदेश।


एक दिया हौंसला बढ़ा दे
भारत के हैं कर्म वीर जो।
एक दिया हो उस किसान का
अन्न उगाते धरा चीर जो।
एक दिया यादों में उनकी
जिनकी है स्मृति बस शेष।
चलो जलाएं एक दिया फिर
मानवता का दें संदेश।


एक दिया हो दुआ हमारी,
फिर महके जग की फुलवारी।
एक दिया गम धुंध मिटा दे।
अंतस मन उम्मीद जगा दे।
एक दिया हो देश प्रेम का
है अखंड भारत हम एक
चलो जलाएं एक दिया फिर
मानवता का दें संदेश।


आशा की किरणें बिखेरकर
जगमग कर दें पूरा देश।


सीमा शुक्ला अयोध्या।


आचार्य गोपाल जी          उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले 

देश हित में यारों , जो मर जाएगा , 
वो अमर नाम दुनिया में कर जाएगा ।


है जन्म लेते यहीं , और है पलते यहीं ,
 मां की उंगली पकड़ के , हैं चलते यहीं ,
 गिरे जो कभी फिर, हैं संभलते यहीं ,
इस धरा का मोल कोई, क्या दे पाएगा ?
 देश हित में यारों , जो मर जाएगा ,
वो अमर नाम दुनिया में कर जाएगा ।


जो कुछ है मेरा , सब पाए यहीं ,
जीवन में हर करतब, दिखाए यहीं ,
 हैं गम में भी आंसू , छुपाए यहीं ,
इससे बचकर भला कोई , क्या रह पाएगा ?
देश हित में यारों , जो मर जाएगा , 
वो अमर नाम दुनिया में कर जाएगा ।


ज्ञान की है ज्योति , है जननी यही ,
 जग से है पावन , है यह स्वर्णिम मही, मृदुल, मधुदाता, मुदित, मनभावन यही ,
 ऐसी ममतामई फिर कोई, कहां पाएगा ?
देश हित में यारों , जो मर जाएगा , 
वो अमर नाम दुनिया में कर जाएगा ।


आचार्य गोपाल जी 
        उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले 
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' (सहायक अध्यापक, पू० मा० वि० बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उ० प्र०)

एक ग़ज़ल 
--------//-------------//--------------


जीवन को हर पल सजाया करो 
मुहब्बत की नदियाँ बहाया करो।


सूख जाने न पायें ये नदियाँ सभी 
बे-मतलब न पानी बहाया  करो। 


न जंगल में जाओ कुल्हाड़ी लिये 
कभी गमलों में पौधे लगाया करो।


हो न जाये रेतीली ज़मीं ये कहीं 
परिन्दों को पानी पिलाया  करो। 


तुम तो इंसान हो  'विवश' तो नहीं 
इस तरह से न आँसू बहाया करो। 


रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' (सहायक अध्यापक, पू० मा० वि० बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उ० प्र०)


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"नेहनीय हैं माँ सरस्वती"


नश्वरता का चक्कर छोड़ो।
अविनाशी से रिश्ता जोड़ो।।


जग नश्वर में मोह निशा है।
कभी नहीं यह उचित दिशा है।।


जग में फँस मत खुद को मारो।
उचित उपाय से खुद को तारो।।


पार उतरना बहुत जरूरी।
श्री माँ से कर इच्छा पूरी।।


चतुर विवेकी विज्ञ सुहृद बन।
अर्पित कर माँ चरणों में मन।।


माँ के साथ सदा जो रहता।
भव-कूपों में कभी न गिरता।।


माँ सहाय अति सरल कृपालू।
नित रखती भक्तों पर ख़्यालू।।


देतीं भक्तों को विद्या वर।
अपने ही उर में नित रखकर।।


भक्तों को सम्मान दिलातीं।
मधुर ज्ञान विज्ञान पिलातीं।।


साथ निभातीं सदा प्रेम कर।
भक्तों के सर पर कर रखकर।।


दिव्य धाम है श्री माता का।
ज्ञानदायिनी सुखदाता का।।


निराकार अतिशय शुभदाई।
विद्या विनय विभूषण माई।।


बन सपूत नित करो साधना।
आराधना और वंदना।।


पाया मधुरामृत फल भाई।
जिसने की माँ की सेवकाई।।


मीठा फल है अमी समाना।
जो चाखत वह होत सयाना।।


मीठे फल का यह मतलब है।
तेरी ही दुनिया यह सब है।।


माँ चरणों में पड़े रहो नित।
अपना सबका साध सदा हित।।


मेरा सबसे यही निवेदन।
करते रहना माँ पर लेखन।।


सदा साधते लिखते रहना।
भव सागर से पार उतरना।।


जो उतरा वह विज्ञ बहादुर।
पहुँचा माँ के ही अन्तःपुर।।


सबकुछ पाया क्या बाकी है।
बना विश्व का मधु साकी है।।


पाया तो खो गया स्वयं में।
विचरण करत अलौकिक धम में।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
983845380


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्म निराला दिव्य पर्व है"


पावन भाव ज्योति सर्व है,
धर्म महोत्सव सहज पर्व है।


सत्य सत्व सत्कर्म सुहावन,
परहितवाद रुचिर मनभावन।


धारण हो नित शुद्ध कामना,
मन में बैठे प्रिया भावना।


कभी अनिष्ट न सोचो प्यारे,
रहना सदा प्रीति के द्वारे।


मनसा वाचा और कर्मणा,
बन पावन उर नित्य विचरना।


लोगों में ही लगा रहे मन,
पर हित हेतु न्योछावर तन धन।


एक तत्व एकेश्वरवादी,
बनकर चलना प्रिय संवादी।


श्वेताम्बरी भारती देखो,
आदर्शों में जीना सीखो।


सद्विवेकमय बुद्धिमान बन,
शिव कर्मों में लगा रहे मन।


गुण गायन हो मधु भावों का,
मधुर मिलन शीतल छांवों का।


जागे उर में नित मानवता,
सदा वृद्धिमय हो नैतिकता।


कपट कुरंग-चाल नष्ट हो,
पारदर्शिता सहज स्पष्ट हो।


साथ रहो अरु साथ निभाओ,
धर्म पंथ रच वृक्ष उगाओ।


करो सहज मानव का वंदन,
सर्व जनाय बन शीतल चंदन।


सेवा कर बनकर निष्कामी,
उड़ बन पवन सदा ऊर्ध्वगामी।


सकल जगत को उर में धरना,
इसीलिए बस जग में रहना।


सम्मोहित होना अपने पर,
स्व को न्योछावर कर सब पर।


धर्म पर्व है सत्कृतियों का,
धर्म सर्व शान्त मुनियों का।


सदा धर्म को सफल बनाओ,
एक सूत्र का विश्व रचाओ।


भेदभाव का वंधन तोड़ो,
मानव-धर्म से नाता जोड़ो।


मानव-धर्म सर्वोच्च धर्म है,
अति पुनीत सुन्दर सुकर्म है।


इस रहस्य को जानो भाई,
आजीवन कर जग सेवकाई।


जो बनता है सेवाकर्मी,
वही विश्व का उत्तम धर्मी।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"राम विश्वजन के कल्याणी"


राम आगमन जन हितकारी।
कौशल्या पावन महतारी।।


सर्व श्रेष्ठ पुत्र दशरथ के।
निष्कामी तपसी इस जग के।।


अति पुनीत अवध अति पावन।
आये जहाँ राम मनभावन।।


त्रेता युग के राम कृपालू।
अतिशय त्यागी परम दयालू।।


है आदर्श राम का स्थापन।
बारह माह चैत  शिव भावन।।


हर्षित अवध विश्व के मानव।
आये राम दलन को दानव।।


चैत राम नवमी अति श्रेष्ठा।
सुर हितकारी सहज विशिष्टा।।


जब आये श्री राम अवध में।
हर्षोत्सव जन-जन कण-कण में।।


सुर नर मुनि प्रसन्न अति सुखमय।
जीव चराचर सकल हर्षमय।।


अष्ट सिद्धियाँ अरु नौ निधियाँ।
राम संग आयीं सब विधियाँ।।


त्याग सत्य आदर्श राम का।
जग कल्याण लक्ष्य राम का।।


रघुनन्दन श्री राम अनन्ता।
जग पूजित अज प्रिय भगवन्ता।।


निर्गुण सगुणी सकल रस खानी।
ब्रह्म अनामय सर्व सुज्ञानी।।


सकल विश्व को राम चाहिये।
श्रद्धा अरु विश्वास चाहिये।।


जिसके मन में नहिं सन्देहा।
वही राम का ससुर विदेहा।।


जो करता अति प्रीति राम से।
पाता शीतल छाँव राम से।।


भव सागर से पार उतरता।
हँसत -बोलते चलता रहता।।


सारे कष्ट दूर हो जाते।
जब श्री राम हृदय में आते।।


करो आसरा सिर्फ राम से।
जीना सीखो बहु आराम से।।


छोड़ कपट भज सदा राम को।
चलना सीखो राम धाम को।।


राम धाम ही विष्णुपुरी है।
यत्र कामना सब पूरी है।।


राम कामधेनु सम जानो।
स्वयं देखकर खुद पहचानो।।


पूर्ण करेंगे मनोकामना।
रखो राम प्रति प्रीति भावना।।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


आचार्य गोपाल जी  ‌‌‌‌‌      उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले

श्री राम जन्मोत्सव की बधाई
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


करके गुरु की वंदना , लेकर गणपति का नाम
 प्रारंभ करूं आराधना, आज करलूँ उत्तम काम
 कर लूं उत्तम काम ये, जप लूँ  मैं श्री राम का नाम 
मर्यादा पुरुषोत्तम वो, हां सब कष्ट हरेंगे राम
सब कष्ट हरेंगे राम, जग रचेंगें नया आयाम 
जन्मदिवस है पावन, चैत्र रामनवमी है नाम
हां रामनवमी है नाम, देखो सजी है अयोध्या धाम
मिलेगी खुशियां अपार, घर आए हैं मेरे श्री राम
 घर आए मेरे श्री राम, मगन नाचूँ सुबह शाम
नाथ दिन पे कृपा करो, तू निर्मल करो यह धाम
 निर्मल करो यह धाम, जग से मिटाओ इन्हें राम
पापाचार,प्रपंच, छल, मदांधता, उन्माद औ काम


आचार्य गोपाल जी 
‌‌‌‌‌      उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले


 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

*मेरे द्वारा लिखित"श्रीरामचरित बखान"नामक खंडकाव्य में वर्णित'प्रभु श्रीराम का प्राकट्य'से उद्धृत अंश*
 
चइत मास नवमी सुभ सुकुला।
दिवस-काल दुपहर तब कुसला।।


सिर पे मुकुट गरे बनमाला।
सोभित रह प्रभु बच्छ बिसाला।।


सोभा-सिंधु नयन अभिरामा।
आयुध कर गहि घन-तन रामा।।


प्रगटे प्रभू धारि भुज चारी।
रूप बिराट नाथ अवतारी।।


लखि माता कौसल्या बिस्मित।
करन लगीं स्तुति अस बिस्मृत।।


हे अनंत प्रभु तुम्ह गुन-धामा।
माया परे ग्यान-सुख-ग्रामा।।


लछिमी-पति ब्रह्मांड निकाया।
देवहु तुमहिं संत जन छाया।।


देखि मातु अस बिस्मित नाथा।
पूर्ब-जन्म कै कह सब गाथा।।


तासु हृदय बत्सल्यहि भावा।
मातु-पुत्र हिय स्नेह जगावा।।


कह कौसल्या तब भगवाना।
धारहु नाथ सिसुहि कै बाना।।


मातु बचन सुनि प्रभू अनूपा।
कीन्हा रुदन तुरत सिसु-रूपा।।


दसरथ- भवन भब्य संगीता।
होवन लगीं सुमंगल गीता।।


नृप दसरथ कहँ देहिं बधाई।
पुरवासी सभ धाई-धाई।।


दोहा-मागध-बंदी-सूत जन,लगे करन गुन-गान।
        कीन्ह बिदाई सभें कहँ, नृप दै धन-सम्मान।।
        सबिता तहँ ठाढ़े रहे,एक मास पर्यन्त।
        दिवस-निसा नहिं भान रह,महिमा नाथ अनंत।।
                     ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

2+सुरभित आसव मधुरालय का+
वाह्याभ्यंतर शीतल होवे,
मात्र घूँट इक लेने से।
देती सुर सम शुचिता यह जो-
जीवन सकल  कमाई  है।।
            एक स्वाद,रस एक-केंद्र यह,
            समरसता का द्योतक है।
            रूप-रंग का ध्यान न देवे-
            क्या लघुता व बड़ाई है??
ज़मीं पे जन्नत अनुपम आलय,
लगता शिक्षा-आलय यह ।
एक भाव-व्यवहार की शिक्षा-
नीति सुष्ठ अपनाई  है।।
            यही है मंदिर, मस्ज़िद यह है,
             गिरजाघर-गुरुद्वारा भी ।
             कर लो सज़दा सब जन मिलकर-
             साक़ी सकल ख़ुदाई  है।।
राग-द्वेष से दूर यह आलय,
मात्र नेह की  शाला  है।
मेल-जोल का दे प्रसाद यह-
मधुर मिठास मिठाई  है।।
               नदी-धार सम अविरल बहता,
               इसका आसव अमृत इव।
                एक घूँट यदि गले से उतरे-
                अंतरमन  शीतलाई  है।।
शीतल चंदन इव सुगंध ले,
तन-मन यह महकाता है।
युगों-युगों से प्यासे मन की-
औषधि,यही दवाई  है।।
            डॉ0हरि नाथ मिश्र
             9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*माता-माहात्म्य के दोहे*
आया शुभ नव-रात्रि अब,करो मातु नित ध्यान।
भजो मातु हर रूप को,होगा शुभ कल्याण।।


शक्ति-ज्ञान-धन दायिनी,विविध रूप आगार।
भक्तवत्सला मात ही,है जीवन-आधार।।


पूजन-अर्चन-स्मरण,जो जन करते रोज।
उनका हित नित-नित करें,माता-चरणसरोज।।


यद्यपि माँ ममतामयी,पर माँ बने कठोर।
करे नाश रिपु शीघ्र ही,संकट जो दे घोर।।


सिंह-वाहिनी चंडिका,शीघ्र ग्रहण कर रूप।
भक्त निकट माँ पहुँचकर,बधे जो शत्रु कुरूप।।


हंस-वाहिनी रूप में,वीणा की झंकार।
ज्ञान-साधना-गीत-स्वर,को देती विस्तार।।


शक्ति-ज्ञान का स्रोत माँ, करुणा-सिंधु अथाह।
माँ-स्तुति-डुबकी करे,जीवन-स्वस्थ-प्रवाह।।


गिरिजा-पूजन से मिले,अनुपम वर श्रीराम।
धन्य मातु तू जानकी,तमको नमन-प्रणाम।।
               डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372


कुंती नवल मुंबई

चिड़िया बोली पेड़ों से
तुम भी ले लो खुल कर सांस
आक्सीजन पसर जाए
मानव के जीवन की बढ़ जाए आस
आत्म चिंतन कर ले मानव
कुदरत में तेरा अंश है जो
 प्राणों में भर ले।
समीर  बह रहा मंद मंद
उसको श्वासों में भर ले
परिंदों को खुलेआसमान में
बेख़ौफ़ विचरने दो
नन्ही चिड़िया को
चीं- चींं कर फुदकने दो
दाना पानी रख औसारे में
चहक- चहक चुगने दो।।
कुंती नवल
मुंबई


विष्णु असावा                     बिल्सी ( बदायूँ  )

गजल
212 212 212 212


हुस्न अपने का जलबा दिखाओ कभी
प्यार का दीप दिल में जलाओ कभी


देखकर आपको हम दिवाने हुए
आप भी देखकर मुस्कुराओ कभी


ख्याल आते रहे नींद आती नहीं
नींद आये तो ख्बाबों में आओ कभी


मिल गये राह में हम ठिठकने लगे
कुछ कदम तुम भी अपने बढ़ाओ कभी


लगना सीने से तो दूर की बात है
पहले नजरों से नजरें मिलाओ कभी


विष्णु कब तक अकेला भटकता रहे
थाम हाथों को रस्में निभाओ कभी


                      विष्णु असावा
                    बिल्सी ( बदायूँ  )


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा,(राज.

🐆 हाइकु 🐆
              ************
                दुर्गा अष्टमी
               •~•~•~•~•
                      1
               दुर्गा अष्टमी
           महागौरी की पूजा
              कन्या पूजन ।
       🤹‍♂🤹‍♂🤹‍♂🤹‍♂🤹‍♂🤹‍♂
                      2
                शिवपुराण
             यही देता संदेश
               देवी पूजन ।
      📖📖📖📖📖📖
                      3
                आठ वर्षीय
            घटना का आभास
              करी तपस्या ।
       🕉🕉🕉🕉🕉🕉              
                     4
               पूजा विधान
            विशेष फलदायी
              शुद्ध  विचार ।
      🚩🚩🚩🚩🚩🚩
                    5
            शक्ति प्रतिका
          सांसारिक स्वरूपा
             हैं  चतुर्भुजा ।
     🙏🙏🙏🙏🙏🙏
                    6
              मधुर वाणी
           वैभव  वरदानी
           जग कल्याणी ।
     🐚🐚🐚🐚🐚🐚
                   7
             हलवा  पूड़ी
           यही महाप्रसादी
             करें  आरती । 
       🍎🥥 🔥🍒🍊
                    8
             गुलाबी रंग
         सदा ही हितकारी
          सुख की प्राप्ति ।
    🛑🛑🛑🛑🛑🛑
                    9
             घर  घर में
        सजती तेरी झांकी
            रक्षा  करती  ।
     🔱🔱🔱🔱🔱🔱
                   10
              हे मातेश्वरी
          हाथ जोड़ विनती
            दो आशीर्वाद ।
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    ©®
          रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा,(राज.)


श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार

बच्चो के घर रहने पर ना बढने दे तनाव।
फिर ऊन्हे कागज से बनाते सिखाए नाव।
एक टब मे डालकर चलाए उसे।
फिर कापी पेन.से चित्र बनवाए।
थोडी देर ऊनके साथ बैठकर खेले।
और सबके सब मिलकर बनाए मेले।
छुपाछाई खेल खेल मे बढाए घर मे मेल।
और कही चूटकूलो से.हंसाकर फूलाए पेट।
गाना टेप मे लगाकर नृत्य करे बच्चे।
फिर खूद बडे भी करे, यही है सच्चे।
जिंदगी मे देर तक सोने मत देना।
थोडा ऐसे थका देना ,जल्दी वे सो जाए।
और जल्दी ऊठाकर उनको काम पर भी लगाए।
भाई बहन झगडे ना इसका रखना ध्यान।
अगर झगडा होता है। अब समझाना तुम्हारा काम।
और किताबो की बाते.भी ज्ञान, 
बताना कहानी से।
देखो हंसकर सुन रही चुप बैठी रानी से।
यही उतम होगा जब बच्चे बोर ना होगे।
और झूमाझुमी ना करके पाठ शाला सा रहेगे।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार


सुशीला शर्मा  जयपुर

नव दुर्गा (भजन )
       -----------------
‌माता शेरावाली लो फिर ,
धरती पर अवतार 
रक्त बीज फैले हैं जग में 
आओ करो संहार।
         माता शेरावाली लो फिर 
         धरती पर अवतार ।


शैलपुत्री का जन्म लिया 
नंदी की करीब सवारी 
ब्रह्मचारिणी बनकर शिव की 
करी तपस्या भारी 
         माता शेरावाली लो फिर 
         धरती पर अवतार ।


शिव से किया विवाह और 
चन्द्र अपने शीश में पाया 
अष्टभुजी बन कर कुष्मांडा 
धरती रूप बनाया 
       माता शेरावाली लो फिर 
        धरती पर अवतार ।


कार्तिकेय की माता बन 
स्कंध रूप में आई 
जन्म लिया जब ऋषि के घर 
तब कात्यायनी कहलाई 
        माता शेरावाली लो फिर 
        धरती पर अवतार ।


कालरात्रि रूप धरा और
रक्तबीज को मारा 
गंगा स्नान किया गौरी बन 
शिव को तूने पाया 
         माता शेरावाली लो फिर 
         धरती पर अवतार 


सिद्धिदात्री जन्म लिया और 
शिवशक्ति बन आई 
असुरों का वध कर तू 
दुर्गा चंडी रूप में आई 
        माता शेरावाली लो फिर 
        धरती पर अवतार ।


पृथ्वी पर फिर से फैला है 
भारी अत्याचार 
नवदुर्गा के रूप में आकर 
करो जरा उद्धार 
             हे माँ शेरावाली लो फिर 
             धरती पर अवतार 


स्वरचित 
सुशीला शर्मा 
जयपुर


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमान वन्दना 


।।हनुमत-स्तुति।।
 पूज्यपाद श्रीमद्गोस्वामीजी द्वारा विरचित विनय पत्रिका में राग गौरी में  श्रीहनुमानजी की स्तुति में अत्यन्त सरल भाषा में लिखा गया निम्न पद अत्यन्त लोकप्रिय है।प्रत्येक हनुमान भक्त को यह पद स्मरण कर इसका गान कर प्रभुश्री रामजी की भक्ति की कामना करनी चाहिए।---
मङ्गल-मूरति मारुत-नन्दन।
सकल अमङ्गल मूल निकन्दन।।
पवनतनय सन्तन हितकारी।
हृदय बिराजत अवधबिहारी।।
मातु-पिता,गुरु,गणपति सारद।
सिवा समेत संभु सुक नारद।।
चरन बंदि बिनवउँ सब काहू।
देहु रामपद नेह निबाहू।।
बन्दउँ रामलखन बैदेही।
जे तुलसी के परम सनेही।।
 अर्थ---
  पवनपुत्र श्रीहनुमानजी कल्याण की मूर्ति हैं।वे समस्त अमङ्गलों की जड़ काटने वाले हैं।वे पवनपुत्र सन्तों का सदैव हित करने वाले हैं।अवधबिहारी प्रभुश्री रामजी सदा इनके हृदय में विराजते हैं।इनके तथा माता-पिता,गुरूजी,श्री गणेशजी,श्रीसरस्वतीजी,माँ पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी,श्रीशुकदेवजी,श्री नारदजी इन सभी के चरणों में प्रणाम करके मैं यह विनती करता हूँ कि प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में मेरा प्रेम सदैव एक सा बना रहे,यह वरदान दीजिये।अब मैं प्रभुश्री रामजी, श्रीलक्ष्मणजी और माता श्रीसीताजी को प्रणाम करता हूँ जो इस तुलसीदास के परम स्नेही और सर्वस्व हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सकल अमङ्गल मूल निकन्दन कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार किसी विशाल वृक्ष की जड़ काट दी जाय तो वह वृक्ष धराशायी हो जाता है उसी प्रकार अमङ्गलों के समाप्त होने पर केवल मङ्गल ही मङ्गल रह जाते हैं।
 सन्तन हितकारी कहने का भाव यह है कि श्रीहनुमानजी सदैव सन्तजनों पर उपकार किया करते हैं।श्रीगो0जी स्वयं इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिन्होंने इन्हीं की कृपा से चित्रकूट में प्रभुश्री रामजी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त किया था।
  हृदय बिराजत अवधबिहारी कहने का भाव यह है कि जब रावण वध के पश्चात लँका में श्री विभीषणजी ने प्रभुश्री रामजी को एक बहुमूल्य मणियों की माला भेंट की तो प्रभु ने वह माला माँ सीताजी को दे दी।माँ सीताजी ने वह माला अपने पुत्र श्रीहनुमानजी के गले में डाल दी।तब श्रीहनुमानजी ने उस माला के एक एक दाने को अपने दाँतों से तोड़ना प्रारम्भ कर दिया।यह देखकर श्री विभीषणजी ने थोड़ा रोष जताया और कहा कि हनुमानजी आप रहे बन्दर के बन्दर ही।इन मणियों को तोड़कर क्या देख रहे हो।तब श्रीहनुमानजी ने कहा कि मैं तो इनमें अपने प्रभुश्री रामजी व माँ सीताजी को देख रहा हूँ।तब विभीषण जी बोले कि क्या पत्थर में भी कोई हो सकता है?तब श्रीहनुमानजी ने कहा कि हमारे प्रभु तो सर्वव्यापी हैं और तभी उन्होंने अपने नखों से अपने वक्षस्थल को चीरकर यह दिखा दिया कि प्रभुश्री रामजी माँ सीताजी सहित सदैव उनके हृदय में विराजमान रहते हैं।आज भी श्रीहनुमानजी के चित्रों में प्रभुश्री रामजी व माता सीताजी को दिखाया जाता है।इसी आधार पर गो0जी ने यह लिखा--
हृदय बिराजत अवधबिहारी।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...