आशा त्रिपाठी

*मिलकर दीप जलाना होगा*
   तम को दूर भगाना होगा।।


सहज ,सत्य ,निर्मल तन मन से।
 प्रीति-रीति सिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


राग द्वेष नफरत की भाषा,
धर्म की कैसी ये परिभाषा।
विषम आपदा प्रहरी जन को,
सम्मान की है केवल अभिलाषा।
राम रहीम की पुण्य धरा पर,
एकत्व भाव दिखलाना होगा।।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


पग-पग सुमन धरा है सुरभित,
प्रकृति लुटाती मधुरिम सौरभ।
गंध-सिक्त परिवेश हमारा,
शुद्ध परिष्कृत परिमित वैभव।।
सुधा पूर्ण दैविक धरती पर,
विश्व सृजन सिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


अद्भूत ,अविकल प्रीति भाव से,
अधरों का अभिमंत्रित गुजंन।
देशभक्ति की ज्वाला लेकर,
हर लो अँधियारों का क्रन्दन।
वायु प्रकल्कित लौ की आभा,
घर-घर में दिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


विषम परिस्थिति विषम वेदना,
मानव विस्मृत मूढ़ चेतना।
घोर तिमिर घनघोर निराशा,
धैर्य ,संकल्प ही केवल आशा।
घोर घृणा, मन दंभ मिटाकर,
सर्वहित थाल सजाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


परहित अर्पित जीवन सुखमय,
त्याग,तेज,तपबल मन मधुमय।
दुखी मनुजता का आलम्बन,
उत्साह ,प्रदीप्ति का हो संचय।।
जन-जन के सूने आँगन में,
साहस की ज्योत जगाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


अधियांरा आकाश असीमित,
चहुँ ओर विरानी करती विस्मृत।
नियति नटी कर रही है नर्तन,
दिव्य कर्म से कर मन चंदन।
हर मानव को विषम घड़ी में,
मिलकर कदम बढ़ाना होगा,
*मिलकर दीप जलाना होगा*


कर्मवीर प्रहरी योद्धाओं,
मन आशीष हृदय है गर्वित,
ध्येय धरा पथ तुमसे शोभित,
दीपमालिका तुम्हे समर्पित,
संकल्प ,धैर्य की ध्वजा पताका
घर -घर में फहराना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*
✍आशा त्रिपाठी
      05-04-2020
      रविवार


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर .(हरियाणा )

सरकार कर दें तो... 


हम अपनी मोहब्बत का इकरार कर दें तो. 
अपनी आरज़ू उनके नाम,सरकार कर दें तो. 


छुप -छुप कर मिलना यहाँ मुनासिब नहीं, 
अपनी नज़रों से तुम्हें दूर यार कर दें तो. 


तेरे बिना जीने की तमन्ना ही नहीं होती, 
अब आगे इस ज़िन्दगी से बेज़ार^ कर दें तो. (नाखुश )


इश्क़ का रोग बड़ी मुश्किल से मिलता है, 
तुमको भी अपने प्यार में बीमार कर दें तो. 


वैसे तो तेरी सुबह-शाम का मालूम है सब, 
अपने बीच की रज़ामंदी से इंकार कर दें तो. 


अब ना कहेंगे तन्हा कभी भी  खुद को, 
चलो किसी मंदिर, तुम्हें सहदार ^ कर दें तो. (विवाहित )


कब तलक ऐसे खानाबदोशी में रहोगे, 
तुम्हारा भी अपना कोई घरबार कर दें तो. 


अब तक की ज़िन्दगी गुनहगारों सी रही, 
आज अपने हर गुनाह का इज़हार कर दें तो


रंगमंच सी दुनिया में नक़ाब^ ओढ़े हुए लोग, (पर्दा )
अपना भी कोई मुकम्मल सा किरदार कर दें तो. 


आए खाली हाथ थे इस जहाँ में एक दिन, 
पाकर तेरी मोहब्बत खुद को ज़रदार^ कर दें तो. (धनी )


 


स्वरचित मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर -124103.(हरियाणा )


संपर्क - 9466865227


कवि-धनंजय सिते(राही)

*आओ विश्वास का दीप जलाएँ*
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
आज रात को नौ बजे-नौ मिनट हम दीप जलाएँ!
मिलकर के हम एक साथ मे-तमसो मां ज्योतिर्गमय हो जाएँ!!


 प्रतिज्ञा है यह दीप नही-अखंडता के ताकत की!
क्षिण शक्ती हो जाएगी-ईससे मारक विषाणु की!!


जितनी भी है विचर रही-दृष्ट विनाशक शक्ती है!
प्रहार उसिपर यह दीपक-निष्ठापूर्वक एक भक्ती है!!


ईश्वर से बड़ी संसार मे-कोई शक्ती नही हूई!
जिसके बल पर जगत है सारा-मानो ना मानो बात सही!!


जब मानव किसी विपदा से-सब उपाय कर के हारा है!
तब सबने अपने मजहबी-ईश्वर को ही पुकारा है!!


जितनी दृढ़ हो जिसकी आस्था-उतना उसको होता लाभ!
शास्रो का निदान यही है-ईसको तो मानेंगे आप!!


ईस पावन धरा पर जब -किसी विपदा का आतंक हूआँ!
पालनहार ने नया रुप धर-उस विपदा का अंत किया!!


श्रीराम श्रीकृष्ण प्रमाण उसिके-शास्रो मे अंकित है!
क्यो मानव तु सुक्ष्म विषाणु से-फिर ईतना भयभित है!!


 अंत समय जब आए दृष्ट का-वो अती आतंक फैलाता है!
दीप जला ईसको भी मारो-जैसे वो मारा जाता है!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
*दिनांक-05.04.2020*
*स्वरचित मौलिक रचना*
*कवि-धनंजय सिते(राही)*
*mob-9893415829*
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अवनीश त्रिवेदी "अभय"

मुक्त छंद गीत


घर मे आओ दीप जलाएं।
रोशनी की खुशियाँ फैलाएं।


रहे हमेशा  घर के  अंदर।
तभी बनेगा उपवन सुंदर।
जीवन के सन्ताप मिटेंगे।
बना रहे ये उच्च  पुरंदर।
तन मन को हर्षित कर जाएं।
घर  मे  आओ  दीप जलाएं।


हुआ अंधेरा धैर्य न छोड़ो।
हर तूफाँ को वापस मोड़ो।
जो भी आये पथ बाधक।
उसको तुम बिल्कुल तोड़ो।
मिलकर ये संकल्प उठाएं।
घर मे आओ दीप जलाएं।


कठिन दौर से मत घबराओ।
मन को ऐसे मत भरमाओं।
जहाँ चाह हैं वहीं राह हैं।
कुछ करने में मत शर्माओ।
जीवन को खुद सरल बनाएं।
घर में आओ  दीप जलाएं।


रात के बाद दिन खिलता है।
जैसा करोंगे वैसा मिलता हैं।
निडर व्यक्ति हर संकट में भी,
अपने पथ से न  हिलता हैं।
हम भी आगे बढ़ते जाएं।
घर में  आओ दीप जलाएं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हलधर

गीत -- एक दीप राष्ट्र के नाम
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कोरोना से मत घबराओ , घर के द्वारे दीप जलाओ ।
तम से जगत बचा लेगा ये ,सारे कष्ट उठा लेगा ये ।।


सूरज के आने तक पूरी ,रात निभायेगा यह वादा ।
लड़ते लड़ते अंधियारे से ,बेसक रह जाएगा आधा ।
चाहे पथ में आंधी आये , चाहे मेघ नीर बरसाये ,
अपना सारा तेल जलाकर , खुशियों से नहला देगा ये ।।
कोरोना से मत घबराओ ,घर के द्वारे दीप जलाओ ,
तम से जगत बचा लेगा ये , सारे कष्ट उठा लेगा ये ।।1


इसके कुछ भाई सरहद पर ,प्रहरी बनकर खड़े हुए हैं ।
दूजे भाई बने चिकित्सक , कोरोना से भिड़े हुए हैं ।
घोर तिमिर को छल देगा ये , आने वाला कल देगा ये ,
मसल मसल अपनी बाती को ,पूरी रात चला लेगा ये ।।
कोरोना से मत घबराओ ,घर के द्वारे दीप जलाओ ,
तम से जगत बचा लेगा ये ,सारे कष्ट उठा लेगा ये ।।2


जग को अपना राग सुनाकर ,तमसोमाज्योतिर्मय गाकर ।
प्रातः प्रभात हमें दिखलाकर, जग में भाई चारा लाकर ।
इसकी लौ से मिले सहारा  ,सूरज का बेटा यह प्यारा ,
बैठ चिता की छाती पर भी , नई रोशनी ला देगा ये  ।।
कोरोना से मत घबराओ ,घर के द्वारे दीप जलाओ  ,
तम से जगत बचा लेगा ये , सारे कष्ट उठा लेगा ये ।।3


आओ गीत दीप के गायें ,नापेगा यह दसों दिशायें ।
हलधर " हारेगा कोरोना , पास न आयें बुरी बलायें ।
अपनी राह नहीं छोड़ेगा , पीछे कदम नहीं मोड़ेगा ,
रोग व्याधि को खा लेगा ये ,उजियारा फैला देगा ये ।।
कोरोना से मत घबराओ ,घर के द्वारे दीप जलाओ ,
तम से जगत बचा लेगा ये , सारे कष्ट उठा लेगा ये ।।4


             हलधर -9897346173


अर्चना कटारे       शहडोल (म,प्र)

*एक दिया जलाएं*


आओ हम सब भारतीय एक हो जायें
अंधकार को दूर भगायें
सारी दुनियां में मिशाल बना जायें
बस एक दिया जलाएं


फैल रहा है चंहूं ओर अंधियारा
 डर हुआ घबराया घबराया
आशा की कोई किरण न दिखाये
तब एक हम दिया जलाएं


जब अखिल विश्व में संकट गहराया हो
जब कोई न आस मिले
मन से संकल्पित हो कर 
आओ हम एक दिया जलायें


नफ़रत की हर दीवार मिंटायें
जांत पांत का भेद न लायें
देश की हर विपदा को हर जायें
आओ हम एक दिया जलाएं


आओ हम आव्हान कर जायें
संक्रमण को दूर भगायें
अपनी पुरातन संस्कृति आपनायें
आओ एक दिया जलाएं


कितना सुखद वातावरण होगा
दीपमालाओं के हार पहनेगा
सारा भारत एकजुट होगा
आओ हम एक दिया जलाएं


भारत माता जगमग होंगी
देखकर अपने भारत को खुश होंगी 
हम मिलकर साक्षी बन जायें
आओ एक दिया जलाएं
 
सूना न रहे कोई घर आंगन
हर घर रोशन हो जाये
हर घर  दिवाली सा जगमग हो जाये
आओ एक दिया जलाएं


       अर्चना कटारे
      शहडोल (म,प्र)


नूतन लाल साहू

जागरूकता अभियान
महामारी मांग लाया दान में
छेड़ दी लड़ाई,भारत मां के मैदान में
जाग गया,देश का बच्चा बच्चा
आ गया होश तो,हम भी भनभनाने लगे जोश में
फौज से लड़ना तो,आसान है
ये तो इंसानियत को रौंद रही है
देश पर बिजली,कौंध रही है
विपत्ति में एकता,हमारी पहचान है
जागरूकता अभियान चलाने और
बंदूक चलाने में अंतर है,जमीन आसमान का
महामारी मांग लाया दान में
छेड़ दी लड़ाई,भारत मां के मैदान में
जाग गया देश का बच्चा बच्चा
आ गया होश तो,हम भी भनभनाने लगे जोश में
ये तो राम कृष्ण और गौतम गांधी का देश है
संकट के समय,कर्तव्य पुकार रहा है
वक्त है बाहर नहीं,घर अंदर से लडने का
बहादुरी नहीं,हमे समझदारी दिखाना है
अकारण ही भारत पर,कर दी चढ़ाई
बिना हथियार के ही,विजय श्री पाना है
महामारी मांग लाया दान में
छेड़ दी लड़ाई,भारत मां के मैदान में
जाग गया देश का बच्चा बच्चा
आ गया होश तो,हम भी भनभनाने लगे जोश में
वक्त बहस करने का नहीं है
वक्त है,हौसला अफजाई का
किसी को कमजोर मत समझो
बच्चे बूढ़े और जवान
सभी कूद पड़े हैं,इस लड़ाई में
महामारी मांग लाया दान में
छेड़ दी लड़ाई,भारत मां के मैदान में
जाग गया देश का बच्चा बच्चा
आ गया होश तो,हम भी भनभनाने लगे जोश में
नूतन लाल साहू


अमित कुमार दवे, खड़गदा

©”अर्थ”


तू तो जीवन जी ले जग में,
अर्थ-अर्थ की बात है प्यारे।
कोई हारे अर्थ के मारे
कोई तारे अर्थ सहारे।।1।।


अपने अपने अर्थ गढ़ लिए
जग में अब जनता ने न्यारे।
अर्थ जीवन का खो बैठा है
निरर्थक व्यर्थ अर्थ बनाने में।।2।।


अर्थ की व्यवस्था में अब तुम
कितने अर्थ यहाँ गढ़वाओगे ?
अपने ही अर्थ तंत्र के खातिर
कितने अर्थ जग के दबवाओगे ?।।3।।


अब तो अर्थ की बात कर ले
जान व्यर्थ सब निर्णय कर ले।
अर्थ व्यर्थ है बस अर्थ सत्य है,
बस इतना ही तू अर्थ समझ ले।।4।।


संग सत्य है बस स्नेह अर्थ है,
दिखता जग में सब शेष व्यर्थ है,
कर्म अर्थ है बस मर्म अर्थ है,
अर्थ ही भरा सच जीवन व्यर्थ है।।5।।



सादर प्रस्तुति
© अमित कुमार दवे, खड़गदा


आभा दवे

क्षणिकाएँ
-------------


1) क्षण
     -----
जीने के लिए कुछ क्षण भी काफी है
चींटियों को मिलता  जीवन छोटा 
 पर जीने की आस में जुटाती 
रहती खाने का  सामान  है ।                   


2) सूर्य
   ------
सूर्य के निकलते ही
भरोसा होता आज का
और उसके डूबते ही    
एहसास होता आने वाले 
कल का ।


3) छाया 
    --------
पथिक  को मिलती छांव
पेड़ की जब ,वह विश्राम पाता
जीवन का सच्चा सुख  
तभी छाया में नजर आता ।


4) शाम
    -------
    जीवन की शाम आते ही
    जिंदगी बचपन की यादों  
    में खो जाती
   चूल्हे की रोटी और माँ
   बहुत याद आती ।


5) चाँदनी
-  - -------
चाँद के निकलते ही
चाँदनी धरती पर बिखर जाती 
नौका विहार करते लोग
नाविक के चेहरे पर चाँदनी खिल जाती ।


6)आकाश
   ----------
फैला नीला वितान है
छूना सब को आसमान है
अपनी -अपनी मंजिल सबकी
आकाश ही सपनों का जहान है।


7) धरती
    ---------
खामोश हो सब कुछ सहती
आंचल में  सभी को भरती 
जब सह न पाती दर्द  अधिक 
भूकंप मचा देती धरती ।



*आभा दवे*


बाँके बिहारी बरबीगहीया

विषय  - ग्राम जीवन 
शीर्षक-  अपना प्यारा गाँव 
विधा  -कविता 
रचनाकार- बाँके बिहारी बरबीगहीया 
राज्य  -बिहार बरबीघा (पुनेसरा) 



स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।



चिड़ियों के चहचहाने की कलरव ध्वनि
निम, पिपल,व बरगद के मिलते हैं छाँव
पेड़ो की झुरमुट से काली कोकिल की धुन
पंक्षियो के लिए हैं बनें ढेरों प्याव
सुबहों में  परतकाली की करतल ध्वनि 
और पनघट पे छोरियों के छमछम करते पाँव 
गंगा बहती जहाँ प्रेम की हर घड़ी 
ना किसी से कभी कोई करते छलाँव 
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यार लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।


गाँव के मंदिर में रोज होता कीर्तन 
और गाँव के दलान में फाग चैती की तान
मौजों में लहलहाते हर खेत मिलते
बैलों से दमाही जहाँ करते किसान
तालाब का अमृत जल और कुएँ का मिठास 
फूलों की हर कली पर भँवरो की मिठी गान
गाँव की सोंधी मिट्टी और कच्चे मकान
इंद्रधनुष की माला से रोज सजते आसमान 
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।


यहाँ बैलों से खेती करते हैं सभी 
और अरहर भी मस्ती में इठलाती है
यहाँ तीसी के फूल और सरसों की कली 
गाँव की गोरीयों को देख शर्माती हैं
यहाँ सावन की कजरी व रिमझिम फुहार 
रहटों की सुहानी लय अपने पास बुलाती है
रंग-बिरंग के हैं फूल पेड़ फल से लदे
हर मुसाफिर को देख नम्र  हो जातीं है
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।


यहाँ रातों की आहट में जुगनू की जुगजुगाहट
और साँझ को चिरैंयाँ भी करती है अनोर
यहाँ वारिश में मेंढक टरटराते हैं हो
साथ वायस व सियार भी मचाते हैं शोर 
चिड़ियों को मिट्टी में लोटपोट होता देख 
मन आनंदित होकर हो जाता विभोर 
जब भोर में रवि  निकलें सजकर 
तब गाँव में फिर से हो जाता अंजोर  
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे ।।


 


🌹सर्वाधिकार सुरक्षित 🌹


🙏बाँके बिहारी बरबीगहीया 🙏


🌹पवित्र प्रेम का दर्शन 🌹


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना क्र. सं. २९६
दिनांकः ०३.०४.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः 🤔नाशक हैं ये कुल वतन☝️
सारे    मन्दिर  बंद    थे , चलती  रही    ज़मात।
ज़ख़्म    बने  गद्दार  कुछ,किया   वतन   आघात।।१।।
दुश्मन   ये  इन्सानियत , लानत  इन   काफ़ीर।
खेले   जन   ज़ज़्बात से , कौमी  बेच    ज़मीर।।२।।
भूली  सब    सम्वेदना , नीति  प्रीति    आचार।
कोराना  का   यार   बन , माध्यम   है    संहार।।३।।
हाथ जोड़ करता वतन , बस। प्रधान अनुरोध।
स्वच्छ   गेह    रह  दूर  में , माने  नहीं  अबोध।।४।।
फैल रहा बन  संक्रमण ,अखिल राष्ट्र    गद्दार।
गज़ब धर्म मुल्ला वतन , तुला मनुज    संहार।।५।।
बनो सख्त खल दण्ड दो,दानवता    षडयन्त्र। 
शकुनी बन  भड़का  रहा, दुर्योधन अरु  तन्त्र।।६।।
खल कामी मतिहीनता, लोभ  झूठ रति कोप। 
नाशक  हैं  ये कुल वतन , करे मनुजता लोप।।७।।
कैसी  ये  हठधर्मिता , कैसा   ज्ञान  कुरान ।
मानवता का  नाश  हो , यह  कैसा   अरमान।।८।।
कसा शिकंजा तन्त्र का,खुलती दहशत चाल।
कोरोना  की   समस्या ,बनी  ज़माती    हाल।।९।।
कवि  निकुंज उद्घोषणा,कसो जमात नकेल।
देश-द्रोह  का  मुकदमा, ठोको   भेजो  जेल।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जन्मोत्सव, रामनवमीं एवं संत सिरोमणी संत सुन्दरदास जी की जयंती की आप सभी को हार्दिक,मंगलमय बधाई, शुभकामना...


              🚩 हाइकु 🚩
              ************
                       1
                है जन्मोत्सव
             मर्यादा पुरुषोत्तम
                 रामावतार ।
                       2
               नवमी  तिथि
            मधुमास  पुनिता
             वो शुक्ल पक्ष ।
                      3
                अभिनंदन
             हर  घर  पूजन
              सुखी  संसार ।
                     4 
            बाल्य अवस्था
           मनभावन दृश्य        
             गुरु की  सेवा  ।
                     5
            आज्ञा  पालक
            वे  श्रेष्ठ  धनुर्धर
               चमके तेज   ।
                     6
              शुरू परीक्षा
           आश्रम की सुरक्षा
              जन कल्याण ।
                      7
               वन  गमन
           प्राकृतिक चित्रण 
               मनभावन    ।
                      8
               जनक पुत्री
            सीता का स्वयंवर
              विवाहोत्सव  ।
                      9
              राज्याभिषेक
           लीला अपरम्पार
              पिता वजन   ।
                    10
               चौदह वर्ष
            सकल उजियारा
              जय श्रीराम   ।
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    ©®
           रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)


आचार्य गोपाल जी            उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले


देश है शान मेरा, देश  ही ईमान है ।
देश ही है प्राण मेरा,  देश मेरी जान है ।
देश ही है ज्ञान मेरा, देश ही विधान है ।देश प्रेम है पूंजी मेरी, ये मेरी पहचान है ।
विश्व गुरु हो देश हमारा, ये मेरा अरमान है ।
 मर मिटे हम देश खातिर, ये मेरा ऐलान है ।



है हमें विश्वास स्वयं पर
 हम अपना फर्ज निभाएंगे
 मातृभूमि पर हंसते-हंसते 
हम अपना सर्वस्व लूट आएंगे
 जिसकी छाती पे पग धर
हमने उधम मचाए हैं
 जिसके हृदय के रक्त से 
अपना सुमन खिलाए हैं
 शांति की हर सीख हम
 जिस की कृपा से पाए हैं 
बाल वैभव रेनू जिसके 
पल हम सदा मुस्काए हैं 
उसके लिए प्राण अर्पण 
हम जो नहीं कर पाएंगे 
कृतज्ञ तो  कहो कैसे भला 
जग में नहीं कहलाएंगे 
आजाद कर स्वयं मोह से 
अकेला जगाके आत्म बल 
सर्वस्व समर्पण करके
 हम अपना कर्ज चुकाएंगे 


आचार्य गोपाल जी 
          उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले


 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहा।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सदा धैर्य को मित्र बनाओ"


          (वीर छंद)


जीवन में विपदा चहुँओर,बहुत कठिन है राह गुजरना.,
फैला चौतरफा अँधियार, राह दिखाई नहीं देत है.,
नहीं दिशा का कुछ भी ज्ञान, कैसे पहुँचेंगे हम मंजिल.,
कोई नहीं बताता पंथ, हो निरीह हम खड़े एकाकी.,
नहीं साथ देता है सूर्य, मुँह मोड़े भी चांद पड़ा है.,
तारागण की बात न पूछ,हँसते दिखते सब ऊपर से.,
पवन देव हो गये हैं मूक, सुखी लगती जल की नदिया.,
पावकमय हो गया है देह, बहरा जैसा सकल गगन है.,
सूना-सूना है हर कोन, अपने में खो गये सभी हैं.,
सन्नाटा लगता हर ओर, अति उदास सम्पूर्ण जगत है.,
पंछी छोड़ चले हैं क्षेत्र, कलरव नहीं सुनायी देता.,
वातावरण में नहिं है गूँज, मन अति व्याकुल बहुत दुःखी है.,
उर है आज बहुत उद्विग्न, धड़क रहा यह आज निरन्तर.,
बला बुलाये बिन है पास, कैसे कष्ट कटेगा मित्रों.,
फिर भी मन में एक उपाय, साधु-संत, सद्ग्रन्थ कहत हैं.,
जब सारा जग छोड़ दे साथ, सदा धैर्य को मित्र बनाओ.,
यही एक आयेगा काम, इसको मानो दिल से साथी.,
यही बहादुर योद्धा वीर,साथ निभयेगा आजीवन.,
यह निष्कामी पावन मीत, धर्मशास्त्र का मूल तत्व है.,
वफादार बलवान महान, नहीं स्वार्थ की बातें करता.,
इसे चाहिये केवल प्यार,जब भी बुलाओगे आयेगा.,
अगर नहीं इसपर विश्वास, जरा बुलाकर देखो भी तो.,
इंतजार में रहता नित्य,थोड़ा सा ही देख इसे तो.,
इसे नहीं कुछ का दरकार, आत्मनिवेदन सिर्फ चाहिये.,
यह अति भावुक सहज सुजान, परम सशक्त यह महावीर सम.,
राम भक्त का यह अवतार, देशज में धीरज कहलाता.,
कहीं नहीं रहता है दूर, अन्तःपुर का यह वासी है.,
विपदा में आता है काम,साथ निभाना खूब जानता.,
इसके जैसा सुन्दर मित्र, कहीं नहीं सारी दुनिया में.,
जो भी धरता इसकी बांह, पार उतर जाता निश्चित ही.,
हो जाते सारे अनुकूल, धैर्य अगर है साथ खड़ा तो.,
समझो इसको सच्चा पार्थ, जीवन का संग्राम विजेता.,
इसको कभी न जाना भूल, यह जीवन की असली पहिया.,
जो भी करता इससे प्रीति, रिद्धि-सिद्धियाँ पास उसी के.,
चेहरे पर रहती मुस्कान, आत्मतोष का बिगुल बजाता.,
जीवन हो जाता अति शान्त, सब चुनौतियां मुँह की खतीं।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


सुनील उपमन्यु

"वंदनीय है डॉक्टर"
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संकल्पित हो कर्म पथ पर,
अनवरत कर रहे कर्म,
सेवा में ही मिले सुख,
खुब निभा रहे धर्म ,
बुरा भला कितना भी,
कोई इन्हें कह दे,
कर रहे इलाज हो ये निडर ,
अभिनन्दनीय ,वंदनीय है-
स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर ।


सतत प्रयासरत है ये,
"वश"में आये बीमारी,
हाहाकार मचा रही है,
ये वैश्विक महामारी ,
ऐसे में ये डॉक्टर,
मोह माया सब छोड़कर,
बन कर्म योद्धा -
निभा रहे अपनी जिम्मेदारी।
खाना पीना भूलकर,
नींद को कोसो दूर धर,
लोगो की जिंदगी बचा रहे है,
मुट्ठी भर कुछ लोग,
फिर क्यों इन्हें सता रहे है ?
इस वायरस का ये कर रहे,
मुकाबला डटकर ,
अभिनन्दनीय,वंदनीय है,
ये स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर ।


चिकित्सा के क्षेत्र में,
आप सब आन बान और शान है,
उस अजब गज़ब शक्ति को 
देखा है किसने ?
मैं तो देखूं आप में,
बसा भगवान है 
इसिलए तो,
आपके कर्म है सबसे हटकर,
अभिनन्दनीय है,
वंदनीय है,
स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर ।
---सुनील उपमन्यु-


निशा"अतुल्य"

इंतजार
4.4.2020


ये जागी सी रातें और तन्हाई
तुम ना आये
चिलमन पर लगी आँखे
चाँद ना दिखा।


परवाने की तलाश करती 
शम्मा बुझी 
कहर रात का हुआ
सुबह न हुई।


दर्द दिल का मेरे
क्यों दिखता नही
घड़ी इंतजार की 
क्या खत्म होगी कभी ।


रुकती साँसे मेरी
धड़कन रुकी नही
इंतजार है तेरा 
मुझे अभी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


जया मोहन प्रयागराज

लघुकथा
धर्म
सड़क के किनारे एक घायल बृद्धा तडप रही थी।आते जाते लोग कुछ देर तमाशबीन बनते फिर अपनी सलाह हवा में उछाल कर चले जाते।कोई कहता कैसे है इसके घर वाले इस उम्र में अकेला भेज दिया कोई कहता भैया ये बुढ़िया ही नही मानती होगी।कोई ऐसा नही था जो बुढ़िया का दर्द कम करने मे सहयोग करता।उसे अस्पताल पहुँचाता।लोग कहते बेटा अफसर है ।अपनी माँ के प्रति कर्तव्य भूल गया।अरे भैया लोग धर्म भूल गए।जबकि खुद इंसानियत का धर्म भूले थे।उधर से गुजर रहा रिक्शा वाला रुक गया। वह बिना किसी से बोले बिन सलाह दिए चुपचाप अस्पताल ले जाने के लिए बुढ़िया को रिक्शे पर लाद लिया और चल पड़ा।उसने अपना कर्तव्य पूरा कर बिन बोले ही मानवता का धर्म सीखा दिया।


स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज


राजा गुप्ता भैया

पहले करके  संक्रमित, देश  करें  बदहाल। 
बनी व्यवस्था ध्वस्त हो,यही शत्रु की चाल।।
यही शत्रु  की  चाल  आत्म  हन्ता  हैं  सारे।
कोरोना  हथियार  मिला   फिरते   हैं  धारे।।
कर न सके अरि घात बढ़ा कर गरदन गहले।
तभी  मिलेगी  जीत  दण्ड  जब  देंंगे  पहले।।
      -'राजाभ'


नूतन लाल साहू

आगे क्या होगा भगवान
दुनिया को हर वक्त
खुशी ही खुशी चाहिये
ग्लैमर की चाह में
सबका नींद हराम हो गया है
ये सुनामी का कहर
सबको हिला दिया है
जो कभी न रोया हो
उनको भी रुला दिया है
देश हित को छोड़ चले हम
स्वार्थ की भक्ति समाई है
भाई भाई में प्रेम नहीं
पैसा और वर्चस्व की लड़ाई है
अपना ही आदमी खुराफात की
जड़ बन रहा है
यह दृश्य देख,भारत माता के
आंखो में आंसू निकल रहा है
ये सुनामी का कहर
सबको हिला दिया है
जो कभी न रोया हो
उनको भी रुला दिया है
हमने एक इंसान से पूछा
देश के बारे में,तुम्हारा क्या ख्याल है
वो बोला,पर्सनालिटी का सवाल है
हर कानून को तोड सकता हूं
अदालत की कुर्सी का चेहरा
चाहे जिस ओर,मोड़ सकता हूं
भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हमारी ही देख रेख है
ये सुनामी का कहर
सबको हिला दिया है
जो कभी न रोया हो
उनको भी रुला दिया है
नूतन लाल साहू


चंचल पाण्डेय 'चरित्र'

*••••••••••••सुप्रभातम्•••••••••••••*
         *मनहरन घनाक्षरी छंद*
श्याम सरकार कर नाव भव पार तार|
                   कब से फँसा हूँ प्रभू बीच मँझधार में||
अब न अबार कर कृपा यक  बार कर|
                     सब कुछ छोड़कर आया तेरे द्वार में||
धूरि छायी अँधियार चहुँदिशि हाहाकार|
                       कोरोना के ताप आजुँ बढ़ा संसार में||
काटिये सभी वो फंद घनश्याम नंदनंद|
                       बाधक बने है जो भी सृष्टि के विस्तार में||
                  चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


अर्चना पाठक 'निरंतर'

कुण्डलियाँ


आजाद पंछी
----------------
पंछी चह चह कर रहे, हैं कितने आजाद। 
बड़े जाल में फँस गया, देखो अब सैयाद।।
देखो अब सैयाद, कैद में फँसता जाता। 
बीते दिन की याद, रहे वो हर दम गाता।। 
कहे निरंतर आज,घुटा बाँधे अब गमछी। 
कब आते हैं बाज, आजाद उड़ते पंछी।। 


अर्चना पाठक 'निरंतर'


हलधर

गीतिका (हिंदी)
----------------


इस जिंदगी की दौड़ पर भारी पड़ीं तनहाइयाँ।
इक रोग ऐसा आ गया घर में छिपी परछाइयाँ ।


इक्कीस दिन का बंद ये शदियों सरीखा लग रहा ,
बस दाल रोटी मिल रही  गायब सभी रानाइयाँ  ।


अब क्या करें मजबूर हैं आदेश सरकारी हुआ ,
किससे गिले शिकवे करें किससे रखें रूसवाइयाँ ।


सारी दुकानें बंद हैं विश्की नहीं सोडा नहीं ,
दो पैग बिन फीकी पड़ी हैं शाम की अँगड़ाइयाँ ।


सारे जहाँ का दर्द कोरोना बना है आज कल ,
पश्चिम हवा भी मंद है धीमी पड़ीं पुरबाइयाँ ।


बस एक ही चर्चा यहाँ सब लोग चिंतित दिख रहे ,
क्यों मज़हबों के नाम पर खुदने लगी हैं खाइयाँ ।


कुछ मरकजों में भीड़ कर इस रोग को फैला रहे ,
इन जाहिलों ने नीचता की पार की गहराइयाँ ।


शादी किसी की रुक गयी गौना किसी का रुक गया ,
अब शोकपत्रों में सिमटती दिख रहीं शहनाइयाँ ।


दीपक जलाओ द्वार पर यह रोग भागेगा तभी ,
"हलधर" पकी फसलें खड़ी बांगों सजी अमराइयाँ ।


हलधर-9897346173


बाबू लाल शर्मा बौहरा* विज्ञ *सिकंदरा,दौसा,राजस्थान*

🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞
~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
.            🌼 *दोहा छंद* 🌼
.              🌹 *रक्षक* 🌹
*सैनिक व सिपाही को अर्पित दोहा पच्चीसी*
.                 💥💥💥

बलिदानी पोशाक है, सैन्य पुलिस परिधान।
खाकी  वर्दी  मातृ  भू, नमन  शहादत मान।।

खाकी  वर्दी  गर्व  से, रखना स्व अभिमान।
रक्षण  गुरुतर  भार  है, तुमसे  देश महान।।

सत्ता शासन स्थिर नहीं, है स्थिर सैनिक शान।
देश  विकासी  स्तंभ है, सेना  पुलिस  समान।।

देश  धरा  अरु  धर्म हित, मरते  वीर  सपूत।
मातृभूमि   मर्याद    पर , आजादी  के  दूत।।

आदि काल से  हो रहे, ऐसे  नित  बलिदान।
वीर शहीदों को करें,नमन सहित अभिमान।।

आते  गिननें  में  नहीं, इतने    हैं   शुभ नाम।
कण कण में बलिदान की,गाथा करूँ प्रणाम।।

आजादी हित पूत जो, किए शीश का दान।
मात भारती,हम हँसे, उनके बल बलिदान।।

गर्व करें  उन पर  वतन, जो  होते कुर्बान।
नेह  सपूते  भारती, माँ  रखती   अरमान।।

अपना भारत हो अमर, अटल तिरंगा मान।
संविधान  की भावना, राष्ट्र  गान  सम्मान।।
१०
सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
कहते हम जाँबाज हैं, सच्चे   वीर  सपूत।।
११
रक्षित   मेरा   देश  है, बलबूते   जाँबाज।
लोकतंत्र  सिरमौर  है, बने विश्व सरताज।।
१२
विविध मिले  हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
ऐसे  अनुपम  देश  के, सभी सुहावन अंग।।
१३
जय जवान की वीरता,धीरज वीर किसान।
सदा सपूती भारती, आज  विश्व  पहचान।।
१४
संविधान  सिरमौर  है, संसद हाथ  हजार।
मात भारती के चरण ,सागर  रहा  पखार।।
१५
मेरे  प्यारे  देश  के, रक्षक   धन्य   सपूत।
करे चौकसी रात दिन, मात  भारती पूत।।
१६
रीत प्रीत  सम्मान  की, बलिदानी सौगात।
निपजे सदा  सपूत ही, धरा  भारती मात।।
१७
वेदों में  विज्ञान है, कण कण में भगवान।
सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।।
१८
आजादी  गणतंत्र की, बनी  रहे  सिरमौर।
लोकतंत्र फूले फले, हो विकास चहुँ ओर।।
१९
मेरे   अपने   देश  हित, रहना  मेरा  मान।
जीवन अर्पण देश को, यही  सपूती आन।।
२०
रक्षण  सीमा  पर  करे, सैन्य  सिपाही  वीर।
शान्ति व्यवस्था में पुलिस,रहे संग मतिधीर।।
२१
सोते  पैर  पसार  हम, शीत  ताप में  सैन्य।
कर्मशील को धन्य हैं, हम क्यों बनते दैन्य।।
२२
सौदा  अपने  शीश का, करता वीर शहीद।
मूल्य  तिरंगा  हो कफन, है आदर्श हमीद।।
२३
हिम घाटी मरुथल तपे, पर्वत शिखर सदैव।
संत  तुल्य  सैनिक  रहे, गिरि कैलासी शैव।।
२४
*रक्षक हिन्दी हिन्द के, तुम्हे नमन शत बार।*
*खाकी  वर्दी आपको ,पुण्य हृदय आभार।।*
२५
*शर्मा  बाबू लाल अब, दोहा  लिख  पच्चीस।*
*सैनिक वीर जवान हित, नित्य नवाए शीश।।*
.                   👀👀👀
✍©
*बाबू लाल शर्मा बौहरा* विज्ञ
*सिकंदरा,दौसा,राजस्थान*
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दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

*क्या मैं जीवित हूँ ?*


क्यों जी,
क्या मैं जीवित हूँ ?
कोरोना साढ़ेसाती योग के प्रकोप जोरों पर,
एक दिसम्बर को वुहान के विहान में रखा कदम,
सुना शोरगुल शैय्या से उठते ही
मैंने अपनी काया को कचोटकर देखा 
क्या मैं जीवित हूँ?


झटसे दर्पण में मुँह देखा
सर के बाल अपने स्थान पर सकुशल थे,
बाल उलझे जरूर थे पर घटे न थे,
खिड़की से झाँककर देखा,
लोग-बाग भाग रहे थे,
कई आ रहे थे तो कई जा रहे थे,
आश्चर्य, महान आश्चर्य !
कोरोना काल में मौत के ताडंव से चिल्ला रहे थे,
कहीं स्वप्न तो नहीं है यह ?
तभी सहसा पत्नी दिखी, पूछा
क्यों जी, क्या मैं जीवित हूँ???


हाँ - हाँ तुम जीवित हो
सब जीवित हैं,
कोरोना काल में घर में हो सुरक्षित हो
मर गये हम, कहानी करो खत्म।
यह सुनते ही,
आ गया दम में दम,
मिट जायेगा कोरोना की लेन,
निकल जायेगा वैश्विक महामारी की देन
धैर्य रखें घर में रहें "व्याकुल"
साढ़े साती निकल जायेगी,
फिर सब कुछ पटरी पर आ जायेगी ।


  *दयानन्द_त्रिपाठी*
        *व्याकुल*
संविलयत विद्यालय सोनवल, लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT

गोस्वामी जी द्वारा समस्त जीव जंतु सुर असुर राम भक्तों की वन्दना


रघुपति चरन उपासक जेते।
खग मृग सुर नर असुर समेते।।
बन्दउँ पद सरोज सब केरे।
जे बिनु काम राम के चेरे।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि पशु, पक्षी,देवता,मनुष्य, असुर सहित जितने प्रभुश्री रामजी के चरणों के सेवक हैं, मैं उन सभी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ जो प्रभुश्री राम के निष्काम सेवक हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  रघुपति चरण उपासक----
 इस पंक्ति से पूर्व गो0जी सुग्रीव,जाम्बवान,विभीषण आदि भक्तों की वन्दना कर चुके हैं।इन सभी की गणना प्रभुश्री रामजी के नित्य परिकरों में की जाती है अतः ये सभी अन्य उपासकों से श्रेष्ठ हैं।यहाँ अन्य उपासकों की वन्दना की गयी है जिनमें खग,मृग,देवता, मनुष्य और असुर प्रमुख हैं।सन्तों के मतानुसार श्रीजटायुजी, श्री काकभुशुण्डिजी,श्री गरुड़जी,सम्पातीजी आदि पक्षी, मृगों में वानर,भालु, मारीच,बाली आदि,
देवताओं में इन्द्र,बृहस्पति, अग्नि आदि,नर अर्थात मनुष्यों में मनु-शतरूपा, अयोध्यावासी,मिथिला वासी,चित्रकूट आदि धर्मस्थलों के निवासी, निषादराज गुह, केवट, कोलभील,असुरों में भक्त प्रहलाद, बलि,वृत्तासुर, खरदूषण आदि प्रमुख हैं।गो0जी ने इन सभी के चरणों को पद-सरोज कहा है।इसका कारण यह है कि गो0जी के मतानुसार प्रभुश्री की निष्काम भक्ति करने वाला किसी भी योनि का हो अर्थात वह पशु पक्षी, असुर किसी भी शरीर में जन्मा हो,तो वह श्रीरामजी का लोक और सारूप्य मुक्ति प्राप्त कर लेगा जिसके फलस्वरूप उसके चरण भी प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों की तरह वन्दनीय व पूज्यनीय हो जायेंगे।अतः यहाँ इन सभी के चरणों को पद-सरोज कहना उपयुक्त ही है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...