सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर (हरियाणा )

लोग सतही रहे हैं.... 


वक़्त की मार से असि रहें हैं. 
गुजरते लम्हों में जी रहें हैं. 


बहुत दंश झेले हैं अब तलक, 
हर पल अपने अश्क़ पी रहें हैं. 


अब वो दूर से निकलते हैं, 
जो अपने करीब कभी रहें हैं. 


हम ही क्यों गुनहगार बन गए, 
गुनाह के साथी तो सभी रहें हैं. 


मौके पर लोग बदलने लगे, 
रिश्ते भी जैसे मौसमी रहे हैं. 


किस बात पर तनी पता नहीं, 
कुछ वाकये गलतफहमी रहे हैं. 


आदतों से पता नहीं चलता, 
कहने को तो आदमी रहे हैं. 


ऊपर से निगाह डाली तो क्या, 
वो स्वभाव से सतही रहे हैं. 


तुम ही गलत हुए हो "उड़ता ", 
बाकी तो लोग सही रहे हैं. 



स्वरचित मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जला नेह के दीप
दे दिया एक संदेश
अक्षुण व अखण्ड
अपना भारत देश


सीमाओं में न बंधे
और न अविभाज्य
राष्ट्रहित की बात में
जाति धर्म त्याज्य


जब आपद से घिरे
छोड़ सभी मतभेद
राष्ट्र प्रेम के जाल में
अनुभव हुए न खेद


हम सब मिल एक
एक है भारत देश
प्राण भी आहूत है
सबने दीन्हा संदेश


जीवन ज्योति बन
जले है राष्ट्र अनुराग
न देश से कोई बड़ा
हृदय एक ही राग


करें प्रकाशित भूमि
स्नेह आपूरित दीप
रहें समर्पित सर्वजन
सामान्य रंक महीप।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


- डाॅ.रेखा सक्सेना  मुरादाबाद उ. प्रदेश

9 मिनट की दिवाली


 मानवता से बढ़कर भाई
 नहीं धर्म  है कोई  दूजा ।
 तमसो मा ज्योतिर्गम हित
 दीप जला करले तू पूजा।।


 प्रकाश पर्व का शुभ संदेशा
भारत के जन-जन की शक्ति। 
एकजुटता से ही उबरेगी
महाविपत्ति में यह महाशक्ति।।


 ज्योति प्रक्रिया स्त्रोत संरचना 
आधारित  है सहृदयता  में । 
संवेदना की सजती  सरगम
 सौंदर्य बोध की महता में।।


जाति-धर्म, वर्ग-भेद भुलाकर
 ईश्वर के प्रतिरूप बनो तुम।
जन -जन के कल्याण हेतु तुम 
स्वयं दीप वन दीप धरो तुम।



स्वरचित - डाॅ.रेखा सक्सेना 
मौलिक- 05-04-2020
 मुरादाबाद उ. प्रदेश


बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मानस मराल

गोस्वामी जी द्वारा मां सीता जी की वन्दना


जनकसुता जगजननि जानकी।
अतिशय प्रिय करुनानिधान की।।
ताके जुग पद कमल मनावउँ।
जासु कृपा निरमल मति पावउँ।।
  ।श्रीरामचरितमानस।
  अब मैं श्रीजनकजी की पुत्री,जगत की माता, जानकी नाम वाली,
करुणानिधान प्रभुश्री रामजी की अतिशय प्रिया श्री सीताजी के दोनों चरणकमलों को मनाता हूँ,जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाऊँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  यहाँ श्रीसीताजी के विभिन्न नामों को कहने का भाव यह है कि किसी भी व्यक्ति की श्रेष्ठता चार प्रकार से देखी जाती है--
1--जन्मस्थान के आधार पर--
 यहाँ जनकसुता कहकर मिथिलेश जनक की राजधानी जनकपुर में जन्म लेना सिद्ध किया।यद्यपि जनकजी की एक अन्य पुत्री उर्मिला भी थीं।
2--जगजननि कहकर स्वभाव व तन की श्रेष्ठता सिद्ध की।श्रीसीताजी का स्वभाव व तन जगत की माता के समान है।बालकाण्ड मङ्गलाचरण में गो0जी ने माता सीताजी की वन्दना उत्पत्ति करने वाली, पालन करने वाली और सँहार करने वाली,
क्लेश हरने वाली तथा सभी प्रकार से कल्याण करने वाली जगतजननी के रूप में की है।यथा,,,
उद्भवस्थिति सँहारकारिणीम् क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीम् सीताम् नतो$हं रामबल्लभाम्।।
 मनुशतरूपा को वरदान देने के समय माता सीताजी को आदिशक्ति जगज्जननी के रूप में ही वर्णित किया गया है।यथा,,,
बाम भाग सोभति अनुकूला।
आदिशक्ति छबिनिधि जगमूला।।
जासु अंस उपजहिं गुन खानी।
अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी।।
भृकुटि बिलास जासु जग होई।
राम बाम दिसि सीता सोई।।
  उत्तरकाण्ड में भी भगवान शिवजी माता पार्वतीजी से कहते हैं कि हे उमा!जगज्जननी रमा(श्रीसीताजी) ब्रह्मादिक देवताओं से वन्दित और सदा अनिन्दित अर्थात सर्वगुणसम्पन्न हैं।देवता जिनका कृपाकटाक्ष चाहते हैं परन्तु वे उनकी ओर देखती भी नहीं,वे श्रीजानकीजी अपने महामहिम स्वभाव को छोड़कर प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में प्रीति करती हैं।यथा,,,
उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता।
जगदम्बा संततमनिंदिता।।
जासु कृपा कटाक्ष सुर चाहत चितव न सोइ।
राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
 उक्त चौपाई का शेष भावार्थ आगामी प्रस्तुति में।


राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-88
( लघु कथा पर आधारित कविता)
***********************
ये रिश्ता , प्रकृति और मानव का । 
************************। 
हे नागफनी ! 
   तूं रूप बदलकर, 
               क्यों हँसती है़ । 
तेरे तन पर कांटे हैं , 
            काँटों मेंं मस्ती है़ ॥ 


तेरी मस्ती मेंं रूप तेरा , 
                    न्यारा देखा । 
तुने पत्ते धारे , 
         पुष्प भी प्यारा देखा ॥ 


शायद मेरी नजरों मेंं, 
              कु़छ अंतर आया । 
शायद मेरा घर , 
             मेरा आंगन भाया ॥ 


कांटे फ़ूलों मेंं बदले , 
               या मौसम बदला ॥ 
क्या, कु़छ खुशियाँ आई, 
                   या गम बदला ॥ 


तेरा मेरा रिश्ता , 
      माना सच मेंं नाजुक था । 
शायद कुछ गलती की थी, 
       इस कारण भौचक था ॥ 


प्रकृति और मानव का, 
           रिश्ता बहुत पुराना है़ । 
मन की गहराई को  समझा, 
           यह पक्का याराना है़ ॥ 


यदि यह यारी, 
            फिर से कायम होगी । 
सच मानो , 
       सारी बीमारी गायब होगी ॥ 
     
राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 06-04-2020


गोविंद भारद्वाज, जयपुर

हिंसाचार बढ़ रहा घर-घर जाकर अलख जगाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर, महावीर के आने की।।


सिंहासन पर चोर चढ़ गए, हुई उपेक्षा संतों की,
भूल गए हैं लोग अहिंसा, शिक्षाएँ अरिहन्तों की,
पंच महाव्रत से जीवन को, फिर से सफल बनाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................


विश्वधर्म को छोड़ लोग अब, भोगवाद में उलझे हैं,
इसीलिए तो प्रश्न समूचे, तार-तार अनसुलझे है,
नहीं कवि अब करते कोशिश, जिन वाणियाँ सुनाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................


भारत का इतिहास बताता,  पंचशील जो साधेगा,
न्मोकार और क्षमा याचना से दुश्मन को बाँधेगा,
वही बनेगा सिद्ध, कला है यही मोक्ष तक जाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................


अणुव्रत साध-साध कर जो नर, संयम को अपनायेगा,
विश्वमैत्री के बल से वह शीघ्र सफलता पायेगा,
मुनियों की जीवन शैली को जन जन तक पहुँचाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


डॉ शिव शरण श्रीवास्तव  (एस्ट्रो _अमल)

कोरो ना बनाम जमात _


तब गीली जामात नहीं यह,
देश द्रोह चिंगारी है ।
सेवा में जो जुटे रात,दिन,
उन सबसे गद्दारी है ।।
शुक्र करो तुम भारत में हो,
अगर दूसरे मुल्क में होते ।
तो चौबिस घंटे के भीतर,
फांसी पर लटके होते ।।


डॉ शिव शरण श्रीवास्तव 
(एस्ट्रो _अमल)


कोरो ना और मरकज _


को रो ना अब गुजर रहा है,
गांव, शहर, चौबारों से ।
इसको पानी, खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।।
सीमाएं तो सील हो गई,
भीड़ हटी बाजारों से ।
लेकिन खतरा बना हुआ है,
छिपे, लुके गद्दारों से ।।


 डॉ शिव शरण श्रीवास्तव 
(एस्ट्रो _अमल)


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्मदर्शन संघ काशी"


        (वीर छंद)


कितना सुन्दर है यह नाम, चैत रामनवमी को जन्मा.,
जिस दिन जन्में श्री रघुनाथ, उसी शुभ मुहुर्त में यह आया.,
करने को जन का कल्याण, यह धार्मिक -दार्शनिक संगठन.,
जहाँ धर्म दर्शन का मेल, वह अति पावन तीर्थ क्षेत्र है.,
यह प्रयागराज का देश, मोक्षप्रदाता यह प्रिय शुचिकर.,
रचनाएँ होतीं अनमोल,एक-एक से कलमकार हैं.,
सभी दार्शनिक ऊँची ख्याल, रखनेवाले यहाँ खड़े हैं.,
सबके सुन्दर स्वच्छ विचार, पावन मेघ बने सब बरसत.,
सबके दिल में नेक विचार, धर्म धुरंधर एक एक से.,
चाह रहे सब हो संसार, स्वर्ग सदृश अति रघुमय शिवमय.,
सबमें हो अतिशय उत्साह, लिये लेखनी धर्म उकेरें.,
सबमें छाया रहे उमंग, सदा दार्शनिक गंग बहे नित.,
भीतर बाहर स्वच्छ समाज, दॄश्यमान हो इस पृथ्वी पर.,
धर्म और दर्शन का विश्व, कितना प्यारा सुघर सलोना.,
डॉक्टर पाण्डेय जी आशीष, के दर्शन की पृष्ठभूमि यह.,
प्रथम उन्हीं का यह उद्घोष,अति प्रिय दृढ़ संकल्प उन्हीं का.,
डॉक्टर नाथ मिश्र हरि नाथ, का यह पावन मंच ज्ञानमय.,
डॉक्टर सम्पूर्णानन्द मिश्र, डॉक्टर नित्यानन्द मिश्र अरु.,
डॉक्टर आद्या प्रसाद मिश्र, एक-एक से ज्ञानीजन हैं.,
सभी विलक्षण सब विद्वान, एक एक से बढ़ चढ़कर सब.,
सब रुचिकर अति मधुर बयार, सदा बहाने को अति विह्वल.,
काशी का यह पटल महान, कर में धर्म-दर्शन का ध्वज ले.,
फहराएगा चारोंओर,अति अनन्त आकाश -गंग तक.,
रहत जहाँ अति शुचिता भाव, वहीं धर्मदर्शन की नगरी.,
इस नगरी में रहते लोग, लोकातीत मूल्य रक्षक जो.,
सबके शुद्ध पवित्र विचार, अंतस में बहतीं नित गंगा.,
मंद-मंद मीठी मुस्कान, लिये थिरकाते सकल नागरिक.,
यह देवों-देवियों का देश, हरिहरपुर है नाम इसी का.,
हरिहरपुर है स्वर्ग समान, धर्म और दर्शन की खेती.,
यही पटल है सुन्दर मंच, आओ बोयें बीज सुन्दरम।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"गुरु दर्शन"


गुरु दुर्लभ इस जगत में, पाते जो बड़भाग।
श्री गुरु चरणों से करो आजीवन अनुराग।।


सच्चे गुरु के संग रह कर गुरुवर से प्रीति।
गुरु की संगति अति सुखद कहते वेद सुनीति।।


गुरु महिमा जो जानता वह पाता सद्ज्ञान।
रामचन्द्र भी हैं किये गुरु वशिष्ठ का मान।।


गुरु संदीपनी ने दिया है कान्हा को ज्ञान।
गुरु बिन किसने है किया कभी ज्ञान रसपान।।


गुरु को केवल चाहिये श्रद्धा अरु विश्वास।
सद्गति किसको है मिली बिना बने गुरुदास।।


गुरु ईश्वर का रूप है जानत विरला कोय।
गुरु को जो पहचानता वह सद्ज्ञानी होय।।


गुरुवर के अपमान से होता सत्यानाश।
गुरुवर के सम्मान से रहत शिष्य हरि पास।


गुरु स्वभाव नवनीत सम रहो उन्हीं क़े संग।
बन चेतन प्राणी सहज देख ज्ञान का गंग।।


गुरु इक सुन्दर भाव है गुरु पावन सुविचार।
गुरु ही खेवनहार है गुरु ही तारनहार।।


गुरु इक दर्शन दिव्य है कर गुरु दर्शन रोज।
जीवन  में बनना अगर है शिव पुष्प सरोज।।


गुरु दर्शन इक शास्त्र है पढ़ो इसी को नित्य।
जीवन अतिशय सुखद हो अरु  समाज में स्तुत्य।।


गुरु दर्शन प्रिय चिन्तना अति पावन आराध्य।
कठिन नहीं है साधना चाह रखो तो साध्य।।


पाया जिसने गुरु नहीं उसे मिला कुछ नाहिं।
व्यर्थ गयी सब जिन्दगी अति असफल जग माहिं।।


गुरु महिमा अनमोल है मधु अमृत के तुल्य।
इसे जान समझो इसे यह महान शिव मूल्य।।


गुरु द्रोही बनना नहीं कभी भूलकर मित्र।
गुरु के कृपा-प्रसाद से गमकोगे जिमि इत्र।।


गुरु का नित सम्मान कर खत्म करो सब दर्प।
दर्प जंगली हिंस्र है दर्प भयंकर सर्प।।


विष की हाला त्याग दे कर अमृत का पान।
गुरु प्रत्यक्ष त्रिदेव हैं गुरु अमृत रस खान।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


सत्यप्रकाश पाण्डेय

घिरा आज चारों ओर अंधेरा
हम तनिक न उससे घबराएं
हम सब  लड़ेंगे अंधकार से
आओ एक एक दीया जलाएं


त्याग हताशा और निराशा
आओ स्फूर्ति का राग जगाएं
कुंठित है जो जन मानस अब
उनका मन हर्षित कर जाएं 


चलना है हमें आगे बढ़ना है
घबराएं न कैसे भी आघातों से
मंजिल तो अभी भी बाकी है
लड़ेंगे मिलकर झंझावातों से


छाया कुहासा आज जगत में
आओ मिल कर उसे भगाएं
करें हृदय की ज्योति प्रज्वलित
आओ एक एक दीया जलाएं


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

🌞    दीप जलाओ     🌞


दीप जलाओ, दीप जलाओ।
मन में तुम  विश्वास जगाओ।
हम निकलेंगे  इस  विपदा से, 
भैया   कोई   मत   घबराओ।


मिलकर हम जो साथ चलेंगे।
सबके  मन  के  दीप  जलेंगे।
हो   घनघोर  अॅ॑धेरा   तो  भी,
बाधाओं    को    पार   करेंगे।


मन में  तुम संशय मत लाना।
कहने  दो  जो  कहे  ज़माना।
करो प्रतिज्ञा आज सभी मिल,
हमको  तो  है  दीप   जलाना।


द्वार-द्वार  जब   दीप  जलेगा। 
वृक्ष  आस  का  तभी  फलेगा।
तभी    न    कोई    पछताएगा,
और  न   कोई    हाथ   मलेगा।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।*

*कॅरोना महामारी का उपचार*।
*जनजागरण ही है कारगार।।।।।।।।।।।।।।।।।*


एक दिया रोशन  विश्वास   का
हमें   जलाना    है।
इस दुष्ट   दानव    कॅरोना   को
निश्चित भगाना  है।।
इस जन जागृति के प्रकाश ओ
एकता के उजाले से।
मिलकर महासंकट चक्रव्यूह से
निकल कर आना है।।


इस दुष्चक्र  की  मिल  कर  हमें
जंजीर     तोड़नी     है।
बाहर निकलने की  जिद तो हमें
बिलकुल    छोड़नी   है।।
केवल एक और एक रास्ता  महा
विनाश   से बचाव  का।
सामुदायिक फैलाव की  धारा ही
हमें    मोडनी         है।।


जिद है  कॅरोना   की   दुनिया  पर बिजली   गिराने  की।
हमारी भी   एक  जिद  है   अपना
आशियाना बचाने की।।
करने नहीं देंगें विनाशकारी कॅरोना
को      बर्बाद     हमें ।
देख रही  दुनिया   हमारी  कोशिशें
कर   दिखाने     की।।


इस  प्रलय कारी  शत्रु  कॅरोना  को
मुँह  नहीं  लगाना है।
न   ही दुर्जन से  हमें    कभी   हाथ 
को     मिलाना     है।।
दूर  दूर रह  कर ही  करना  है  वार
इस पापी   कॅरोना पर।
सम्पूर्ण दुनिया को भारत की सफल
रीति नीति को बताना है।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मोब   9897071046
         8218685464


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।*

*आओ हम एक दीप जलायें।।।।।।।।*


एक दिया रौशन विश्वास का हम
सबको  जलाना    है।
इस दुष्ट दानव   कॅरोना  को  हमें
निश्चित ही भगाना  है।।
इस जन जागृति के प्रकाश  और
एकता के उजाले  से।
मिलकर महा  संकट चक्रव्यूह से
निकल   कर आना है।।


हम सब  का   दीपक  प्रज्वलित
करेगा मन  में   प्रकाश।
लौ जलायेगा हर दिल  के  भीतर
देकर   इक  नई  आस।।
यह संकल्प ऊर्जा  ही  शक्ति देगी 
लड़ने को इस दानव  से।
इस महा युद्ध में विजयी करायेगा
केवल यही एक विश्वास।।


रविवार 5 अप्रैल रात्रि 9 बजे हम
सब को दीपक जलाना है।
ऊर्जा के अप्रतिम   स्त्रोत को हमें
भीतर अपने जगाना है।।
घोर अंधकार को चीर  कर करना
है   उज्ज्वल     प्रकाश।
130 करोड़ भारत   वासियों  की
एक जुटता दिखाना है।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मोब   9897071046
         8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"आत्मविश्वास"*
"आत्मविश्वास की धरती पर ही,
जीवन के सपने -
होते हैं-साकार।
विश्वास और आत्मविश्वास तो ठीक,
अतिविश्वास से ही-
उपजता है-विकार।
सत्य-पथ और सद्कर्मो से ही,
दृढ़ होता विश्वास-
बनी रहती आस।
टूटे न आस जीवन की,
साथी मिल-
नित करना यही प्रयास।
विश्वास से ही बढ़ता आत्मविश्वास,
टूटे न कभी आस-
बना रहे आत्मविश्वास।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता          05-04-2020


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली।*

*एक जुटता का दीप जलाया है*
*कॅरोना को दूर भगाने को।*


किया है संघर्ष   दीप प्रज्वलित
मन में ऊर्जा लाने को।
दीया जलाया है  संकल्प शक्ति
और   बढ़ाने    को ।।
अंधकार चीरने    को  किया  है
प्रकाश का आवाह्न।
एकजुटता का   दीप जलाया है
कॅरोना भगाने को।।


यह संकट का   काल  मुश्किल
की     घड़ी      है।
बाहर की एक  आफत   यूँ   ही
गले     पड़ी      है।।
ये वैश्विक महामारी   बस  मिल
कर   ही  है  लड़ना।
देखते कि एकजुटता   के  आगे
कितने दिन अड़ी है।।


इस दीप प्रज्वलन में वायरस को
भी   जलना   होगा।
संकल्प शक्ति व   संयम के आगे
बाहर चलना होगा।।
डॉक्टर्स केअथक परिश्रम से उस
का मरण निश्चित है।
हर परिस्थिति में कॅरोना  का अंत
हमें   करना  होगा।।


केवल दीप प्रकाश ही नहीं घर में
रहना  जरूर    है।
इसी में छिपी कॅरोना  दानव   की
मृत्यु   भरपूर   है।।
अपनी आंतरिक क्षमताऔर शक्ति
को हमें है बढ़ाना।
तोड़ना कॅरोना  श्रृंखला को   जिस
पर  इसे   गरूर है।।


*रचयिता।    एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।*
मो।            9897071046
                 8218685464


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"जैविक हथियार"*
"चीन से चला कोरोना,
फैला दुनियाँ में-
मचा है हा-हा कार।
मानो न मानो लगता यही,
ये तो जैविक हथियार का-
है एक प्रकार।
होगी प्रभु कृपा जीवन में,
मिटेगे धरती से-
सभी विकार।
होगे स्वस्थ सभी धरा पर,
करना प्रतीक्षा-
होगा नया अविष्कार।
अभी तो साथी सभी,
रहना स्वस्थ घर मे-
बढ़ने न देना विकार।
सार्थक होगे प्रयास सारे,
छोड़ना न आस-
देना साथ हर प्रकार।
चीन से चला कोरोना,
फैला दुनियाँ में-
मचा है-हा हा कार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           06-04-2020


राजेंद्र रायपुरी

😊 हम एक सभी हैं संकट में😊


अभिनंदन है उनका जिनने, 
आह्वान किये को सफल बनाया।
अभिनंदन है उनका जिनने, 
घर, अपने-अपने  दीप  जलाया।


उर्जा   है   मिली   इससे  हमको, 
     हम  आगे  बढ़ते  जाएॅ॑गे।
ये  दुष्ट "कोरोना"  चीज़  है  क्या,
      पर्वत भी  शीश झुकाएॅ॑गे।


हमने   सब    को   दिखलाया  है।
    ये कष्ट जो हम पर आया है।
 इसको    झेलेंगे     हॅ॑स - हॅ॑सकर,
  अब कदम से कदम मिलाया है।


संदेश     जगत      में     जाएगा।
      ना कोई आॅ॑ख दिखाएगा।
अब    चूर-चूर    हो    जाना    है,
      जो  भी  हमसे टकराएगा।


ये   दीप   जलाकर   हमको   तो,
       संदेश  मात्र  था ये देना।
हम   एक   सभी   हैं  संकट   में,
       हल्के में हमको मत लेना।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे अनन्त शक्ति के अक्षय भंडार
तेरी कृपा छांव में है सारा संसार
दुःख से रखो या सुख से रखो प्रभु
नाथ तुम ही इस जग के आधार


ऐसी मोहिनी  डालो जग स्वामी
कष्ट न घेरें और सुखी रहें प्राणी
हरलो मुरलीधर तुम विपद घनेरी
कृष्णा बस तेरे ही गुण गाये वाणी


अपने कुकृत्य से ज्ञानी बन करके
संकट में डाली अब दुनियां सारी
अरदास करे है सत्य श्री मधुसूदन
अब तुम्ही हरो यह पीड़ा बनबारी।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे नन्दनन्दन मोहन जगवंदन
गौ संरक्षक गौ पालक गोपाल
विधु हरि हर जाय स्वयं जपै
यशोदा नन्दन देवकी के लाल


अतुलनीय महिमा गिरिधर की
अवर्चनीयता लिए सुखधाम
हे मुरलीधर श्री बांकेबिहारी
तुम जग कष्ट हरो घनश्याम


मान मर्दन प्रभु कियो इंद्र कौ
बृजवासियों कौ संताप हरों
सकल जगत भयभीत नाथ
विपदा पयोधि से पार करों


सत्य हृदय की अद्वितीय मूर्ति
मन मन्दिर में सदा वास रहे
जग अनुरंजन भव भय भंजन
दीनों पर स्वामी अनुराग रहे।


गोपालाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल  मानस सदन अपर बाजार  रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🎍🌷शुभ प्रभात🌷🎍
  --------------------
प्यार ही धरोहर है
**************
प्यार अमूल्य धरोहर है
इसकी अनुभूति
किसी योग साधना
से कम नहीं है,
इसके रूप अनेक हैं
लेकिन
नाम एक है।


प्यार रिश्तों की धरोहर है
और इस धरोहर
को बनाये रखना
हमारी संस्कृति
एकता  और अखंडता है ,
यह अनमोल है।


प्यार 
निर्झर झरनों की तरह
हमारे दिलों में
बहता रहे
यही जीवन की
सच्ची धरोहर है। में


प्यार
उस परम पिता परमात्मा
से करें
जिसने हमें 
जीवन दिया है,
इस धरा धाम पर
हमें प्रभु ही लाते हैं।


प्यार
उन बेसहारा
बच्चों से करें
जो अभाव का जीवन जी रहे हैं
जो कुपोषण के शिकार हैं
और जो अनाथ है


आओ
हम सब संकल्प लें
हम सभी के प्रति
प्यार का भाव रखेंगे
किसी के प्रति
गलत नज़रिया
नहीं रखेंगे,
तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।
*************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
 मानस सदन अपर बाजार
 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


संदीप कुमार बिश्नोई दुतारांवाली अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब

जय माँ शारदे


वियोग श्रृंगार में एक गीत
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२


आपके बिन साजना रजनी मुझे अब खा रही , 
नैन से आँसू बहाती पीर उर से गा रही। 


छोड़ तुम जब से गये उर में लगी ये आग है , 
रस नहीं है जिंदगी में खो गए शुभ राग है। 
रात भी कटती नहीं सर पे खड़ी है काल बन ,
है विरह पावक लगी जलने लगा जो आज तन। 


चाँद की शीतल सुहानी चाँदनी शर्मा रही , 
नैन से आँसू बहाती पीर उर से गा रही। 


धूल जब उड़ती दिखे तो आस भी मन में जगे , 
बिन तुम्हारे साजना मम सेज कंटक सी लगे। 
द्वार पर नित मैं खड़ी पथ देखती हरपल रहूँ , 
अश्क बहती धार बढ़ती पीर कैसे मैं सहूँ। 


आ मिलो साजन गले से देह तज मैं जा रही , 
नैन से आँसू बहाती पीर उर से गा रही। 


स्वरचित 
संदीप कुमार बिश्नोई
दुतारांवाली अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर

कोरोना को हराना है।🔥
🕯️प्रकाश-पुञ्ज🕯️
🪔🪔🪔🪔🪔
जला सको असीम आस से भरा सुदीप तो,
घटे विषाद-यामिनी प्रभात भी समीप हो।
सुनो सपूत!क्या कहे वसुंधरा कराहती,
रहो सदैव प्रेम-सिक्त बुद्धि-युक्त चाहती।।


मनुष्य जीव-जन्तु आदि ना कहीं विलीन हों,
न वृक्ष पुष्प वाटिका सुगन्ध से विहीन हों।
न आपदा पड़े कभी मिटे अपार वेदना,
सुसुप्त प्राण में भरे सुधामयी सुचेतना।।


सुदीप्त लालिमा दिखी अतीव जो प्रकाश की,
विदीर्ण हो रही अकूत कालिमा विनाश की।
मिटे धरा न व्योम ये प्रयास हो रहा यहाँ,
अमर्ष में भरे विदग्ध जानते भला कहाँ?


अनर्थ के अमीत के अनेक रूप डोलते,
विरोध क्रोध दर्प में अधीर तीव्र बोलते।
प्रलाप का प्रभाव क्या विचार लो पड़ा कभी,
उदात्त भाव ही हरें विकार प्राण के सभी।।


प्रतीत हो रहा यही नरेन्द्र आज राम हैं,
विवेक से किये सदा प्रजा-हितार्थ काम हैं।
विरक्त भाव से रहे अनूप भोग त्यागते,
विपत्ति से बचाव हेतु रात-रात जागते।।


विलास के उपाय भी प्रदान ईश ने किये,
विनीत शुद्ध बुद्ध शांत साधु भाव भी दिये।
सुनीति सत्यता सुयोग की प्रभूत सम्पदा,
दया-क्षमा महानता सँवारती रही सदा।।


प्रणाम है विराट रूप धैर्य को प्रणाम है,
मिला प्रभो प्रसाद से कहाँ उन्हें विराम है?
कृतज्ञ विश्व हो सदा अगाध नेह प्राप्त हो,
दसों दिशा शुभा-प्रभा अथाह मोद व्याप्त हो।।


     शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कन्या"* ("क" आवृतिक आनुप्रासिक वर्गीकृत दोहे)
****************************
*कन्या कानन की कली, कल्प-कलित कुल-कंज।
कुहुकत कोकिल कुंज की, किलकत कुलक-करंज।।1।।
(11गुरु, 26लघु वर्ण, बल दोहा)


*किस-किस को कब-कब कहाँ, करना कन्यादान।
कैसे किस्मत को कहें, किस कर कहाँ कमान??2??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*करके क्यों कुविचार को,  करते करम-कुवेश?
काटो कालिख-कुटिलता, कुवचन कपट-कलेश।।3।।
(11गुरु, 26लघुवर्ण, बल दोहा)


*कन्या की कर कामना, काहे कन्या-काल?
कलुषित कसमें काटना, कन्या कर करवाल।।4।।
(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


*करके कम क्यों कोसते? कन्या कुल-कलद्यौत।
कपिला-कौस्तुभ-कौशिकी, कुंकुम-कलश-कठौत।।5।।
(13गुरु, 22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कोकिल-कूकना, कानन-किलक-कुरंग।
काट कपट कटु-कोर को, काटे कुटिल-कुसंग।।6।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कंचन कीमती, कल्याणी कलधाम।
काटे कुटिल-कलेश को, करती कितने काम।।7।।
(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कविता काव्य की, कुलकित कुलक करार।
कौशल-कौतुक-कौमुदी, कुहुकत कूल कछार।।8।।
(12गुरु, 24लघु वर्ण, पयोधर दोहा)


*कन्या कांता-कामिनी, कुल-केतन कनहार।
कुंजी-कांति-कुलेश्वरी, कामधेनु-करतार।।9।।
(16गुरु, 16लघुवर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कणिका कनक की, कोष-कुंभ-कलदार।
कंचन-कुंडल कर्ण का, कल-कल कुल-कासार।।10।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कजरी-काकली, क्वणन-कर्ण किलकाय।
कोकिल-कूजन कुटप की, क्यों कुलिंग कुम्हलाय??11??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कांक्षा-काशिका, कुल-कगार-किलवार।
कुसुमित केतक-कोकनद, कुसुम-कली-कचनार।।12।।
(12गुरु, 24लघुवर्ण, पयोधर दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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भुवन बिष्ट               रानीखेत (अल्मोड़ा)                    उत्तराखंड

*जय वीणावादनी*
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे  माँ  तेरा गुणगान करूँ।
        हंस सवारी मां कहलाती,
        वाणी में भी है बसती।
सदमार्ग मिले हे मातेश्वरी,
जब जब वीणा है बजती।
        वीणा की झंकार बजा दे,
        ज्ञान का तरकश हे मां भर दे।
रज तेरे चरणों की बनूँ,
विनती मैं बारम्बार करूँ,
        ज्ञानप्रदायनी वीणावादनी,
       माँ तेरी जयकार करूँ।
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे  माँ  तेरा गुणगान करूँ।।.....
               ........भुवन बिष्ट
              रानीखेत (अल्मोड़ा)
                   उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

एकता का संदेश
आओ हम सुमत का दीप जला ये
हम करोड़ों नहीं, एक भारतीय परिवार है
यह संदेश,सम्पूर्ण विश्व में पहुंचाये
मां भारती के धरती पर जन्म लिया है
राम कृष्ण और गौतम गांधी ने
अहिंसा प्रेम और त्याग पहचान है
मां भारती के
इसीलिये सुख शांति की सुगंध
आती है,मेरे भारत देश की माटी में
आओ हम सुमत का दीप जलाये
हम करोड़ों नहीं, एक भारतीय परिवार है
यह संदेश,सम्पूर्ण विश्व में पहुंचाये
दुनिया बम का इस्तेमाल करें या रखे अपने थाथी में
हवा और पानी नहीं निकलता यारो
ये बम और टोपो के धमाकों से
हिरोशिमा और नागासाकी की याद
आज भी बार बार आती है
सच्चा सुख मिलती है,भारत देश की माटी में
आओ हम सुमत का दीप जलाये
हम करोड़ों नहीं, एक भारतीय परिवार है
यह संदेश सम्पूर्ण विश्व में पहुंचाये
प्रीति से बढ़कर,बताओ कौन सी कृति है
गंगा जमुना सरस्वती की पावन जल धारा
भारत मां की चरण,पखारती है
हम उस मां, भारती के संतान है
जिनकी महिमा सबसे न्यारी है
आओ हम, सुमत का दीप जलाये
हम करोड़ों नहीं, एक भारतीय परिवार है
यह संदेश,सम्पूर्ण विश्व में पहुंचाये
नूतन लाल साहू


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