प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(000)           प्रतिभा प्रभाती


विषम घड़ी में सम भाव हो ।
जीने का उत्साह नया हो ।
इक दूजे पर प्यार बढ़ा हो ।
कर्त्तव्य सदा कांधे रखता हो ।
अधिकार मिले कभी न लड़ा हो ।
ऐसा व्यक्ति ही राम है ।
जीवन का वह संग्राम है ।
दिशा समाज को दे जाता है ।
मात तात का जीवन दर्शन ।
कुट कुट मम अंतस भरा है ।
ऐसा व्यक्ति स्वयं प्रभाती ।
आचरण से गढ़ता कहता है ।
आओ प्रभाती गीत सुनाएं ।
आचरण से इसे गढ़ जाएं ।
प्रतिभा प्रभाती नाम बन जाएं ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  8.4.2020......


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निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार

कैसा हो मेरा स्वदेश
समवेत स्वरों में दो संदेश,
कैसा हो मेरा स्वदेश।


 सकल विश्व में ध्वज लहराऐ,
भारत की यश कीर्ति गाएं।
 मिटे ,भव , भय, तम,रोग क्लेश,
ऐसा हो मेरा स्वदेश।


सकल विश्व में नेता बनकर,
उभरे विश्व प्रनेता बनकर।
कण कण में बसे गीता संदेश,
ऐसा हों मेरा स्वदेश।


हर पुत्र में राम बसे,
हर पिता में दशरथ लखे।
मानवता का हो राज्याभिषेक,
ऐसा हों मेरा स्वदेश।


स्वदेशी बनने की इच्छा,
आज निकेश फैलाएगा।
हर युवा में भारत मां की,
स्वर्ण छवि दिखलाएगा।


निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार


आशुकवि नीरज अवस्थी


श्री हनुमान जयंती
श्री राम दूत हनुमान महा प्रभु तेरी जैजैकार करूँ।
सुबह जन्मदिवस अंजनी पुत्र की पूजा बारम्बार करूं।
मंदिर में तेल चमेली का सिंदूर मिला चोला अर्पित,
करके आरति कर्पूर युक्त निज जीवन का उद्धार करूँ।।
आशुकवि नीरज अवस्थी


राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-90
( लघु कथा पर आधारित कविता)
***********************
मानवता जीवन का वास्तविक मूल्य 
************************।
काव्य कथा ने पूछा मुझसे , 
        मानवता का मतलब क्या है । 
मैने अन्तर्मन से पूछा ,  
        बोलो इसका उत्तर क्या है ॥ 


मन बोला जाकर के पूछो, 
            तुम  साहित्यिक दर्शन से । 
इसका उत्तर मैने पाया , 
          " स्वामी" के जीवन  से ॥


मानव धन पैदा करता है, 
        धन मानव को नही जन्मता । 
मानव नियमो को है बनाता  
     पर  नियम ना उन्हें बनाता ॥ 


मानव यश पैदा करता है, 
      यश मानव को जन्म न देता । 
मानवता करुणा की जननी, 
          इससे बड़ा धर्म ना होता ॥ 


जिसको तुम दीन समझते  
         वह सबसे  धनवान हुआ है । 
मिट्टी का मोल उसे है मालूम , 
        इस कारण महान हुआ है ॥ 


करुणा और दया के संग 
   जो कण्टक मार्ग  पर चलता है । 
वह कर्मयोगी कहलाता है, 
     मानव का मूल्य समझता है ॥ 


(*स्वामी का तात्पर्य स्वामी विवेकानंद जी से है )  


राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 08-04-2020


नरेश मलिक

दोस्तो, मेरी कही एक ग़ज़ल का लुत्फ़ लीजिएl उम्मीद है आपको पसंद आयेगी - - - ---


वो  मेरे  ख्वाब  में  आते  जाते  रहे,
याद अपनी वो मुझको  दिलाते रहेl


नींद में, ख्वाब  में, भूल  जाऊं  न  मैं, 
अक्स अपना वो हर पल दिखाते रहेl


साथ मेरे है वो हर कठिन दौर में,
ज़हन में आ के वो ये बताते रहेl


आइने में भी वो अब तो दिखने लगे,
ये  पता  था  मगर  हम छुपाते  रहेl


मैंने पूछा कि क्यों ख़्वाब में आए तुम
कुछ न  बोले  वो, बस  मुस्कुराते  रहेl


हार कर एक दिन उसने ये कह दिया,
हम  मलिक  हैं  तुम्हारे  जताते  रहेl


- - आपका मित्र नरेश मलिक
Copyright@naresh malik


हलधर

गीत - यह संभव नहीं है
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मान लें कठिनाइयों से हार यह संभव नहीं है ।
रोग  कोरोना  करे  लाचार यह संभव नहीं है ।।


मौत देखो आँख से काजल चुराती घूमती है ।
नित नई कोशिश हमारी जिंदगी को चूमती है ।
सांस अब भी चल रही है ,दीपकों सी बल रही है ,
छोड़ दें हम हाथ से तलवार यह संभव नहीं है ।।
मान लें कठिनाइयों से हार यह संभव नहीं है ।।1


राह के हम वो मुसाफिर जो कभी थकना न जाने ।
 रोग  हो  या  युद्ध  होवे हम कभी  हटना न जाने ।
देश सारे रो रहे हैं  , आत्म संयम खो रहे हैं,
 फेंक दें हम नाव से  पतवार यह संभव नहीं है ।
मान लें कठिनाइयों से हार यह संभव नहीं है ।।2


व्याधि की गति भी यहां पल भर नहीं आराम पाती ।
काल की रति  भी यहां पर नित नए पैगाम लाती ।
पर चिकित्सक लड़ रहे ,मौत  सम्मुख अड़ रहे हैं ,
चेतना के  बंद होवें    द्वार यह संभव नहीं है ।
मान लें कठिनाइयों से हार यह संभव नहीं है ।।3


चार दिन का है अंधेरा फिर उजाले ही उजाले ।
शांति  संयम  से  मरेंगे  रोग के यह नाग काले  ।
प्रश्न का उत्तर यही है ,बात "हलधर"की सही है ,
 कुछ जमातें रोक दें उपचार यह संभव नहीं है ।
मान लें कठिनाइयों से हार यह संभव नहीं है ।।4


                           हलधर -9897346173


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर हरियाणा

ज़िंदगानी ले जाओ... 


मुझपर जो गिरी वो दमानी^ ले जाओ. (बिजली )
मेरे प्यार की कोई निशानी ले जाओ. 


मेरे हरफों की क्या क़ीमत तय करते हो, 
यकीन के साथ मेरी ज़ुबानी ले जाओ. 


तुम्हें देने को मेरे पास बाकी कुछ नहीं, 
बस, कुछ अच्छे वक़्त की कहानी ले जाओ. 


चढ़ता आफ़ताब^ सभी की सलामी का सबब^.(सूर्य, बहाना )
तुम भी चलते कारवां की रवानी ले जाओ. 


अब तक की ज़िन्दगी अरबदा^ में गुजरी.  (संघर्ष )
चलो मेरे हिस्से की शामदानी^ ले जाओ.  (ख़ुशी )


तेरे साथ रहते वक़्त तभी गुजर जाता है, 
दरमियाँ की उजली सुबह, शाम सुहानी ले जाओ. 


मुझे नयी-नयी नज़्म कहने का शौक है, 
मेरे लफ़्ज़ों में बँधी मेरी बयानी ले जाओ. 


कभी-कभी तन्हाई में मुझे याद किया करना, 
लाया हूँ संभालकर शराब पुरानी ले जाओ. 


जाति-बिरादरी का तो कभी ध्यान ही न रहा, 
बस इंसानियत में डूबी अदानी^ ले जाओ.  ( बहुत पास वाले )


तू जा रहा है तो दिल मेरा उदास है बहुत, 
जाते -जाते मेरी आँख का पानी ले जाओ. 


तमाम उम्र मोहब्बत को तरसते निकल गयी, 
"उड़ता "मेरी ख्वाहिशों भरी ज़िंदगानी ले जाओ. 


 


स्वरचित मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर -124103.(हरियाणा )


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*" ज्योति "* (दोहे)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
¶होता सूर्य-प्रकाश से, जगमग जगत उजास।
परम-प्रभा पत-पुंज से, प्रगटे सृष्टि-सुहास।।१।।


¶दिव्य-चित्त की ज्योति से, उन्नत जीवन-पंथ।
होता कर्म महान है, बन जाता सद्ग्रंथ।।२।।


¶हरपल रखना दीप्त ही, ज्ञान-ज्योति भरपूर।
घन-तम तब अज्ञान का, मन से होगा दूर।।३।।


¶दीपक बन जा धैर्य का, भरकर पावन-स्नेह।
ज्योति जले सद्भाव की, मिटे तमस मन-गेह।।४।।


¶आडंबर से लोक में, अहंकार का राज।
सज्जन सुकर्म-ज्योति से, द्योतित करे समाज।।५।।


¶सतत् प्रभासित जो रखे, कर्म-ज्योति-प्रतिमान।
दिव्य-चक्षु भव-भान से, मानव बने महान।।६।।


¶परमारथ के पंथ पर, पनपे पुण्य-प्रकाश।
ज्योतिर्मय धरती रहे, कलुष कटे घन-पाश।।७।।


¶ज्योति मिले जब ज्योति से, ज्योति-परम कहलाय।
जग-जीवन जगमग करे, धरा स्वर्ग बन जाय।।८।।


¶ज्योतिर्मय हर प्राण हो, ज्योतिर्मय हो कर्म।
ज्योति-परम हरपल जले, रहे यही बस धर्म।।९।।


¶प्रेम-प्रकाश प्रदीप्त कर, करना जग-आलोक।
'नायक' सार्थक कर्म हो, मन में रहे न शोक।।१०।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


नूतन लाल साहू

सुन लो ये दुनिया वालों
एक है भारत,नेक है भारत
हमे मिटाने सोचा है, जो
वो खुद ही मिट जायेगा
दुश्मनों के हम हैं, दुश्मन 
यारो के हम, यार है
जिस किसी में,हौसला हो तो
आजमा कर, देख ले
एक है भारत,नेक है भारत
हमे मिटाने सोचा है, जो
वो खुद ही,मिट जायेगा
बहुत सह लिया,अब न सहेंगे
नश नश में,बिजली जाग उठी है
सीने भड़क उठे है, अब
दुश्मन खाक हो जायेगा
एक है भारत, नेक है भारत
हमे मिटाने सोचा है, जो
वो खुद ही मिट जायेगा
हंसती आंखो को,जिसने आंसू दिये है
उसे माफ कभी न करना
तुम कौम की,तकदीर हो
मालिक हो,अपने वतन के
आज खड़े हो जाना है, जरा सीने तान के
एक है भारत,नेक है भारत
हमे मिटाने सोचा है, जो
वो खुद ही मिट जायेगा
जिस धरती में हम,पला बढ़ा है
वो मां,मुश्किल में पड़ी है
हम हिन्द के सिपाही है,कभी मर नहीं सकते
मिल जाये अवसर,जमाने में तो
क्या क्या कर नहीं सकते
एक है भारत,नेक है भारत
हमे मिटाने सोचा है, जो
वो खुद ही मिट जायेगा
नूतन लाल साहू


 


अंकिता जैन'अवनी अशोकनगर

"महावीर और हम"
आज भगवान महावीर की कमी तब बहुत खलती है, जब हम अपने चारों ओर देखते हैं और बड़ी तादाद में हिंसा और व्यभिचार का माहौल पाते हैं।
मानव जीवन में झूठ बोलना, किसी का दिल दुखाना, किसी  व्यक्ति से ईष्या भाव रखना बहुत आम बात कही जाती है।
पर यही आम बात हम इंसानों के जीवन पर अच्छा-खासा प्रभाव डालती है।
जब बढ़ती हुई तृष्णा व्यक्ति को सुकून से बैठने नहीं देती,हर क्षण हमारा जीवन मोह-माया में फंसा रहता है।
बिना अच्छा-बुरा सोचे हम निरंतर एक ऐसी दिशा में जा रहें हैं, जहां केवल निराशा, अकेलापन और असंतुष्टि है, वहीं यदि हम भगवान महावीर के संदेशों को समझें तो निश्चित तौर पर एक खुशहाल और खूबसूरत जीवन जी सकते हैं।
महावीर के सत्य, ब्रह्मचार्य, अहिंसा, अपरिग्रह,अस्तेय के सिद्धांत और उनका दिया गया प्यारा सा संदेश"जियो और जीने दो"को हम आत्मसात कर लें तो सच में हमारे जीवन और हमारी दुनिया में सदा प्रेम, शांति, परस्पर सहयोग, भाईचारा और सदाचार के गुण सदा विद्यमान रहेंगे।
जय जिनेन्द्र🙏🙏🙏
😊अंकिता जैन'अवनी'😊


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

श्री हनुमान जी के चरणों में
********************
राम दूत तुम सबके रक्षक हो
तुम ही तो बल के धाम हो
हम सब तुमको वंदन करते है
तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


तुम ही प्रेम के सच्चे स्वरूप हो
तुम्ही दया के सागर हो
तुम कष्ट हरण नाशक हो
तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।


हे राम दूत बजरंगबली
तुम ही सबके रक्षक हो
जो भी तुम्हारा नाम जपे
उसकी  हर विपदा टली।


प्रभु श्रीराम के तुम अति प्रिय हो
केसरी नंदन सबको सुमति का दान दो
विद्या विनय का दान दो
तुम्हारे चरणों में एक फूल चढ़ाते है।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनील कुमार गुप्ता

कविता;-
         *"कौमी एकता"*
"कौमी एकता का देते रहे संदेश,
देश की विपत्ति मे भी-
माने न किसी की बात।
होते रहे इक्कठा मस्ज़िद और मदरसो में,
मानी न किसी बात-
दिया देश की सफलता को आघात।
विवाद पर विवाद बढ़ता रहा,
अपने हो कर भी अपने नही-
कैसे-बनेगी अब बात?
विकट परिस्थिति में भी,
होना न विचलित-
सुनो मन की बात।
कौमी एकता की बात करते,
देखा मस्ज़िद मदरसो का हाल-
मुश्किल घड़ी में बिगड़ी बात।
अब विवाद नही समाधान चाहिए,
कौमी एकता की-
मिशाल की हो बात।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी जब,
करें देश हित की बात-
सार्थक हो कौमी एकता की सौगात।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
    07-04-2020


राजेंद्र रायपुरी

😌😌   देश के दुश्मन   😌😌


कुछ की मंशा है यही, 
                   सफल न हो ये देश‌।
विपदा  ये  बढ़ती  रहे, 
                      सारे  देश  प्रदेश।


हर दिन करते देखिए,
                     ऐसे  ही  ये  काम। 
जिससे भारत हो सके,
                    दुनिया में बदनाम‌।


जिस थाली में खा रहे,
                    करें  उसी  में  छेद।
तनिक नहीं इंसानियत, 
                    देते  जख़्म  कुरेद।


दुश्मन  हैं  ये  देश  के,
                  कहती जनता आम। 
जिससे विपदा बढ़ सके, 
                  करते  वो  ही  काम।


हे प्रभु कुछ तो कीजिए, 
                    बनें   नेक   इंसान।
इनके  कारण  है  पड़ी,
                  सांसत सबकी जान।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


निशा"अतुल्य"

संकल्प 
7.4.2020
मनहरण घनाक्षरी 



स्वर्ग नर्क सब यहीं
कर्म हो सद्भाव सभी
परहित की भावना
अब मन रखिये।


कर्म बस जाए साथ 
रहे नही कुछ हाथ
करनी अपनी भोग
संसार से जाइये ।


वंश उनका ही चले  
बड़ो का जो मान करे 
रहे सभ्यता संस्कृति 
संकल्प ये धारिये ।


धरा बने स्वर्ग जैसी
न हो बात नर्क जैसी
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये
भावना ही रखिये ।


निशा"अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई)

*दिल की बेचैनी*
  विधा: गीत


न दिल मेरा लग रहा, 
न मन मेरा लग रहा।
एक अजब सी बेचैनी,
मेरे दिलमें हो रही है।
करु तो क्या करूँ में,
दिल की बेचैनी के लिए।
यदि हो कोई इलाज तो,
मेरे जान तुम बता दो।।


कब से तुम्हारे आने का,
में कर रहा यहां इंतजार।
न तुम आये न तुम्हारा,
आया कोई प्यार भरा पैगाम।
तभी तो नजरे झुक गई,
तेरा इन्जार कर कर के।
और कम होने लगी धड़कने,
तेरी एक झलक न देखने से।।


यदि है सच्चा प्यार तुम्हें,
तो मिलने को तुम आओगे।
और अपने दिल की बाते,
हम को तुम बताओगे।
हो सकता है यही बाते, 
सुनने को दिल तड़प रहा हो।
मिलेगा साथ जब तेरा तो,
सुकून भी दिलको मिल जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
07/04/2020


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

................टूटे ख्वाब...................


कैसे   कटेगी  जिंदगी , बिन  तुम्हारे  ।
अब जीना पड़ेगा , ख्वाबों  के सहारे।।


अब तक थे ख्वाब , दिल  से अज़ीज़ ;
अब  पड़  गई  है  , दिल  में   दरारें  ।।


दिल था किसीका ,आज अपना हुआ;
लूट गई है  फ़िज़ां से , मन की बहारें।।


मन की व्याकुलता , की हद  हो  गई ;
खामोशी  ओढ़   ली , चन्दा-सितारे ।।


जिंदगी हुई तबाह,आरज़ू हुए खामोश;
मौसम-ए-खिज़ा , ये करती है इशारे।।


उल्फ़त की जहाँ से, हुए जब रुसवा ;
अब ख़ुदा ही,बिगड़ी तक़दीर सँवारे।।


लौट  आ  तू  मेरे , उजड़े   चमन  में  ;
गले  लगाने  बैठा  हूँ , बाहें  पसारे  ।।


खिज़ां की जगह,आएगी बहार कभी;
पड़ा दर पे"आनंद",उम्मीद के सहारे।।


-------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर।बरेली।*

*विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अपने* 
*प्राण रक्षक डॉक्टर्स को*
*सलाम।*


चिकित्सक हमारे  प्राण रक्षक
शत  शत   नमन   बारम्बार।


उनके कारण ही इस  संकट  में
जीवित खुशियां अपरम्पार।।


देश भूल  नहीं    पायेगा   कभी
उनकी अनमोल सेवायों को।


सभी डॉक्टर्स हैं  हमारी दुआयों
के    वास्तविक   हकदार ।।


*शुभकामना संदेश प्रेषक।*
*एस के कपूर।बरेली।*


मो        9897071046
            8218685464


सुनीता असीम

वक्त से अपनी ये शिकायत है।
कर रहा खुद से ही बगावत है।
***
जा मिला साथ उसके है ये तो।
जिससे अपनी हुई अदावत है।
***
बस उसीपे पड़ा है ये भारी।
जिसने रब की नहीं जियारत है।
***
फिक्र मेरी रही यही है अब।
क्या नहीं इसकी कुछ जमानत है।
***
वश में उसके धरा गगन हैं सब।
देश क्या और क्या विलायत है।
***
सुनीता असीम
7/4/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जगतपिता व जगजननी का जिसने रूप निहारा
ऐसा बस गया अन्तर्मन में तन मन उस पर वारा


युगलछवि की अनुपम छवि को नयनों में बसाऊं
त्याग दूँ सारे मोह बंधन मैं तो उनके ही गुण गाऊं


हर विपत्ति हरेंगी जग की वृषभानु सुता बृजरानी
कौंन करेगा बाल बांका जब रक्षक बृज ठकुरानी।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सुन्दर सहज बहत नित चलना"


नीर सदृश चलते ही रहना।
एक जगह पर कभी न टिकना।।चरैवेति ही मूल मंत्र है।
यह जीवन का सुखद तंत्र है।।
स्थिरता मेँ जीवन नीरस।
गत्यात्मकता सहज दिव्य रस।।
स्थिरता में राजनीति है।
छिपी हुई अति कुटिल नीति है।।
जो गतिमान वही वैज्ञानिक।
बनत सकल भुवन का ज्ञानी।।
स्थिरता में मन मलीनता।
कुण्ठित मन जननी स्थिरता।।
द्वेष भाव का होत जागरण।
गुटवंदी का नव्य व्याकरण।।
गति में छिपी हुई ऊर्जा है।
तन मन हल्का नव ऊर्जा है।।
अति पावनी चिन्तना सहजा।
मनस्थिति निर्मला दिव्यजा।।
संचित होते पाप नहीं हैं।
पुण्योदय नित जाप वही है।।
पापाचार दूर भग जाते।
जब मनुष्य गतिमय हो जाते।।
स्थिरता क्या जीवन दर्शन?
इसमें संघर्षण का स्पर्शन।।
गति ही जीवन ज्ञान यज्ञ है।
गति में बैठा मनुज विज्ञ है।।
यहाँ सर्व शक्ति का नामा।
पाता मन सदैव विश्रामा।।
भजन भाव का यही क्षेत्र है।
धर्म हेतु यह कुरुक्षेत्र है।।
विजय पताका सदा सुरक्षित।
ज्ञान नयन विकसित संरक्षित।।
सुन्दर सहज बहत नित चलना।
निर्मल नीर बने नित बहना।।
बहते बहते दूर चला जा।
चलते चलते गंग सिन्धु पा।।
यहीं खड़े श्री रामेश्वर हैं।
हरिहरपुर के परमेश्वर हैं।।
यह जीवन का चरम लक्ष्य है।
सफल मनोरथ पूर्ण साक्ष्य है।।
यही जिन्दगी की अभिलाषा।
पावन गति गढ़ती परिभाषा।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्म वही जो धारणीय हो"


          (वीर छंद)


धारण कर बस वह आचार, जिससे जग में खुशियाँ फैलें.,
मन के गले में माला डाल, फिरे हितैषी बनकर सबका.,
दिल से हो सबका सत्कार, छूट न जाये कोई प्राणी.,
मीठा मधुरस हो उद्गार,उर में सबके प्रेम वृक्ष हो.,
सदाचार का हो संचार, शिष्ट भावना मन में आये.,
मन उर बुद्धि विवेक के तार, जुड़ जायें सब एक पंक्ति में.,
सब अंगों में शुचिर विचार, बहें अनवरत अनत क्षितिज तक.,
मानव मन का हो श्रृंगार, होय सुशोभित सकल लोक यह.,
हो नैतिक कर्तव्याधार, न्याय पंथ का अनुशीलन हो.,
मन को हो विधान स्वीकार, नियमित वंधन का आलम हो.,
सबका सबपर हो अधिकार, सभी प्रीति पुष्प बरसायें.,
जगती का करने उद्धार, चले मन-पवन हो अति हर्षित.,
पावन क्रिया का हो विस्तार, पारदर्शिनी बुद्धि-विवेचन.,
धारणीय हो सात्विक प्यार, मिलें परस्पर सभी मित्रवत.,
भीतर-बाहर एकाकार, हो मन नृत्य करे पृथ्वी पर.,
समरसता की पावन धार, बहे लोक में गंगा बनकर.,
यही धर्म के सच्चे द्वार, जिसके सम्मुख स्वर्गिक जग है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्म मूल है सृष्टि का"


धर्म मूल है सृष्टि का, धर्म-कर्म विस्तार।
जिसके मन में धर्म है वही है खेवनहार।।


यही प्रथम पुरुषार्थ है यही जगत का मूल।
अर्थ काम अरु मोक्ष ये तीन धर्म अनुकूल।।


जीवन का यह मर्म है कर अति प्रिय सत्कर्म।
सत्कर्मी ही जानता सिर्फ धर्म का मर्म।।


जिसके मन में मधुरता अरु उपकारी भाव।
रचता रहता रात-दिन सतत धर्म का गाँव।।


उसको कुछ दुर्लभ नहीं जिसके शुभ्र विचार।
पावन हिय से रचत है अति पवित्र संसार।।


धर्म दिलाता मनुज को सहज मोक्ष वरदान।
बसे हुए हैं धर्म में शिवशंकर भगवान।।


सुन्दर कर्म महान ही असली जीवन पर्व।
सत शिव सुन्दर कर्म ही इस जगती में सर्व।।


जिस मानव ने पा लिया असल धर्म का ज्ञान।
उसके आगे  तुच्छ हैं सकल मान-सम्मान।।


धर्मपरायण बन बढ़ो रख सेवा की सोच।
दुःखी विश्व के आँसुओं को सीखो नित पोछ।।


दीन-हीन इंसान की सेवा धर्म महान।
ऐसे सेवक को सदा ढूढ़ रहे भगवान।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


सुखदा शुभदा दिव्य ज्ञानदा।
सकल मनोरथ पूर्ण कामदा।।


ध्यानी  ध्यान धन्य धान्य धन।
धर्मशालिनी धैर्य धाम मन।।


परम विशिष्ट स्वतंत्र समाख्या।
ज्ञान रत्न सम्मोहक व्याख्या।।


अति पवित्र मानस सुविवेकी।
बुद्धि प्रदात्री कृतिमय नेकी।।


अति सुन्दर सुकुमारी विद्या।
परम दयानिधि शिवा सी आद्या।।


अर्थ अनन्त अतुल्य अनामय।
अज अदृश्य अद्भुत अकाममय।।


ज्ञान अथाह समुद्र अनन्ता।
सर्वोपरि सत्यम भगवन्ता।।


कामविनाशिनी धर्माचारी।
साध्वी शिव विवेक आचारी।।


नयन नीर पीर हर्ता हो।
कामधेनु सदृश भर्ता हो।।


वरदानी बन आ माँ उर में।
ले उच्चासन अन्तःपुर में।।


हंसवाहिनी पुस्तकधारिणी।
विघ्नविनाशिनी बन कल्याणी।।


वर दे वर दे वरद शारदे।
शुभ ज्ञानामृतमय नित घर दे।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


आचार्य गोपाल जी               उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले

मगही लोकगीत


की कहूं हे सखी मनमा के बतिया



की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया 
रसे रसे हवा बहे गरजे बदरिया
 मन करे जैंतू हल पी के नगरिया
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


जहिया से गईलन सैया मोर विदेशवा
फोन नै कईलन  नै भेजलन संदेशवा
धक-धक करो है हमरो करेजवा
सैतिन से लड़लन की उनखर अखियां
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


जाड़ा में गेलन सैया हमरा ठिठुराके 
भर गर्मी रहलु हम तो कुम्हलाके
 छत पर निकलूं कैसे देबरा सब ताके
दिन कटे जैसे तैसे कटे नै रतिया
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


रही रही हम्मर फड़को है अखियां 
धक धक हम्मर धड़को है छतिया
 कतना बताऊं तो हे अंदर के बतिया
राहिया देख देख थक गेल अखियां
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


आचार्य गोपाल जी
              उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


हलधर

ग़ज़ल (हिंदी)
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करोना  के घने  साये  बताओ  कौन  छांटेगा ।
कराहती भारती के जख्म बोलो कौन पाटेगा ।


जमातें मज़हबी फैला रहीं है संकमण यारो ,
सियासत का बुना यह जाल बोलो कौन काटेगा ।


यहाँ दीपक जलाने पर सियासत रंग लायी है,
बहाना शक्ति ग्रिड होगा गधा भी ज्ञान बांटेगा  ।


जरा नजदीक आने दे समंदर अपनी लहरों को ,
अगर हम डर गये इनसे इन्हें  फिर कौन डांटेगा ।


चिकित्सक और नर्सों का किया अपमान है जिसने ,
कमीना थूक अपना जेल के अंदर वो  चाटेगा ।


 समूचे विश्व की आँखें लगी हैं आज भारत पर ,
सही निर्णय हमारे देश के  संकट  को  फांटेगा ।


अभी कुछ बुद्धिजीवी देश को गुमराह करते है ,
करेगा प्रश्न यदि "हलधर" तो नेता साफ नांटेगा।


हलधर  -9897346173


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