कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

अभी गीत की पंक्तियां शेष हैं
******************
अभी उम्र वाकी बहुत है प्रिये,
तुम न रूठो, अभी ज्योति मेरे नयन में।


इधर कल्पनाओं के सपने  हम सजाते,
उधर भाव तेरे मुझे हैं बुलाते,
यहाँ प्राण , मेरी न नैया रूकेगी,
बहुत बात होंगी न पलकें झुकेंगी,
अभी राह मेरी न रोको सुहानी,
तुम्हीं रूठती हो, नहीं यह जवानी।


अभी गीत की पंक्तियाँ शेष हैं,
रागिनी की मधुर तान मेरे बयन में।


हँसी से न रूठो, हँसी में न जाओ,
विकल आज मानस न हमको रूलाओ,
कहीं तुम न बोलो, क़हीं मैं न बोलूं,
कहीं तुम न जाओ, कहीं मैं न डोलूं,
तुम्हीं रुपसी हो, तुम्हीं उर्वशी हो,
तुम्हीं तारिका हो, तुम्हीं तो शशी हो।


तुम्हें पूजता हूं लगाकर हृदय को,
तुम्हीं रशिम की ज्योति मानस गगन में।


तुम्हें भूलना प्राण सम्भव नहीं है,
तुम्हें पूजना अब असम्भव नहीं है,
प्रिये, तुम नहीं जिन्दगी रूठती है,
कलम रूक रही है, कल्पना टूटती है
न रूठो प्रिय, यह कसम है हमारी,
पुनः है बुलाती नयन की खुमारी।


सजनि, पास आओ हँसो मन मरोड़ो,
सभी साधना-तृप्ति तेरे नमन में।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


निशा"अतुल्य"

फ़ुरसत 
9.4.2020


ढूंढ रहा मन मेरा फिर से
फ़ुरसत के वो ही दिन रात 
खाना खेलना बस जीवन था
और सोने का था एक काम ।


जीवन कितना भला भला था
सब तो अपने लगते थे 
नही किसी से बैर कभी था
भले भले सब ही तो थे ।


संशय की ना बात कोई थी
प्यार विश्वास था भरा सब में 
काम आते थे एक दूजे के
रहते थे हर पल मिलकर खड़े ।


कहने को तो काम बहुत थे
फिर भी फ़ुरसत के पल थे
शामें बीतती साथ सदा थी
सुबह भी सब रहते सँग थे ।


अब तो सब खोए अपने में 
समय नही किसी के पास
दूर दूर हो गए सभी तो 
रिश्ते थे जो मन में बसे ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया, आसाम

मुक्तक-(विधान-1222*4)


हृदय में झाँक कर देखो,खड़े हनुमानजी होंगे,
हर इक बाधा बहुत छोटी,बड़े हनुमानजी होंगे,
मिली भक्ति से ही शक्ति,बढ़ी विश्वास की ताकत,
बचाने भक्त की नैया,लड़े हनुमानजी होंगे।।


स्वरचित-शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


      *" बजरंगबली"*


" राम भक्त हनुमान ही,
कहलाते जग में-
बजरंगबली।
अमर हैं जग में राम कृपा से,
सबके कष्ट हरते-
महावीर बजरंगबली।
महिमा उनकी अपार जग मे,
जो जन जाने-माने-
करते बेढ़ापार बजरंगबली।
संकटहरण मंगल मूरत रूप हैं,
जो शरण गया उनके-
नैया पार लगाते बजरंगबली।
हरे पीड़ा तन मन की,
राम भक्त हनुमान-
कहलाते वही बजरंगबली।
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता,
हरते जीवन का दु:ख-
बजरंगबली।
राम भक्त हनुमान ही,
कहलाते जग में-
बजरंगबली।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         09-04-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मंगल प्रार्थना
*****************
करूणानिधान दया करो
**********************
करूणानिधान दया करो
अपनी कृपा बनाए रखें
हम अज्ञानी  तेरी शरण में
हमें सही राह बताना प्रभु।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ प्रभु
हो  गई है भूल कोई तो
राह सही बताओ प्रभु ।


कभी किसी का बुरा न करुं
दया भाव हो हृदय में
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो
ऐसी बुद्धि दे दो प्रभु।


हे करूणानिधान दया करो
जग में न कोई किसी जीव को
पीड़ा कभी न पहुंचाएं प्रभु
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
**************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


सत्यप्रकाश पाण्डेय

परमज्योति परमेश्वर,
परम ब्रह्म परमात्म।
परमानन्द परमपिता,
परम प्रकाशक आत्म।।


प्रेम पुंज पुरुषोत्तम,
प्रीति प्यार की खान।
प्रज्ञा प्रदान करो प्रभु,
प्रजा प्राण भगवान।।


प्रजापालक प्रभावान,
प्रणपालक परमेश।
प्रण प्रतिष्ठितपरमात्मा,
पद्मनाभ पद्मेश।।


पावन भाव प्रदान कर,
प्रकटे पुण्य प्रभाव।
अर्पित प्रणय पुष्पांजलि,
पुलकित परसू पांव।।


ॐ श्री परमात्मने नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी।

😊 जीतेंगे हम इस विपदा से 😊


जीतेंगे हम इस विपदा से, 
                     कहना मानो भाई। 
बंद रहो  अपने  घर में ही,
                    इसकी यही दवाई।


कष्ट सहो कुछ कहना मानो,
                    करना नहीं ढिठाई। 
जिसने कष्ट सहा उसने ही,
                  यार विजय है पायी।


कष्ट बहुत है मान रहे हम,
                 पर हिम्मत मत हारो।
लड़ो लड़ाई  रहकर घर में,
                 इस विपदा को मारो।


अगर नहीं मानोगे कहना,
                      कष्ट बढ़ेगा मानो।
इस प्रकोप से बचना मुश्किल,
                   बात सही ये जानो।


है  अदृष्य  ये  दुश्मन भाई,
                मिलकर लड़ो लड़ाई।
कड़वी दवा अभी पी लो तुम,
                    खाना बाद मिठाई।


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मैँ धर्म हूँ"


     (वीर छंद)


मुझको जानो सुन्दर धर्म,नारी केवल नाम पड़ा है.,
मैँ ही दुर्गा काली रूप, सीता राधा सावित्री हूँ.,
मुझको ईश्वर का वरदान, मिला हुआ है इस दुनिया में.,
रचा विधाता ने अनमोल, रतन खजाना धर्म रूप में.,
मैँ  ही माता मैँ रति-शक्ति, प्रेम दीवानी पूर्ण कलाकृति.,
मुझमें रहता प्रेम मिठास,मैँ ही काया मैँ ही देही.,
वैदेही का असली रूप,निःस्पृह रामचरण अनुरागिनी.,
मैँ ही प्रकृति भाव विस्तार,सदा महकती मह मह मह मह.,
मुझको समझो सृष्टि समान, मुझमें ही है पुरुष-नारियाँ.,
जो करता मेरा सम्मान, और  पूजता देवि समझकर.,
करती हूँ उसका कल्याण, धारणीय मैँ सहज रूपसी.,
मुझमें मोहन शक्ति अपार, मुझपर मोहित सारी जगती.,
आदि शक्ति मैँ शिवा स्वरूप, मुझमें ही रहते शिवशंकर.,
ले मुझको कैलाश पहाड़, भजते रहते ब्रह्म रूप को.,
मैँ ही राधा का अवतार, मेरे संग थिरकते कृष्णा.,
पुरुष समाया है घनघोर, मेरे भीतर पैर तोड़कर.,
मैँ ही लक्ष्मी का अवतार, विष्णु साथ में क्षीरसागरे.,
सोची समझी हूँ रणनीति, रचा विधाता मुझ नारी को.,
मैँ ही धर्म कर्म सद्ज्ञान,नारी मेरा नाम जगत में.,
धर्म ध्वजा का मैँ विस्तार, करती रहती चलती फिरती.,
सर्वगुणी मैँ अपरंपार, मेरे बिन सूनी यह धरती.,
जो जपता है मुझको रोज, वही पुरुष है वही धर्म है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "झज्जर हरियाणा

मुक्त रचना... तू ही 


आधा सफर बीत गया सोकर ही. 
चले, तब से मिल रही ठोकर ही. 


नहीं दिखता कभी नया मंज़र ही. 
अपनों से ही मिलता रहा खंज़र ही. 


ज़मीन पर सोना पड़ा है अकसर ही.
हालात ने दिया नहीं मुनासिब बिस्तर ही. 


इस रात की होती नहीं सहर ही.
राह देखते पथरा गयी नज़र ही.  


रखा है सभी जख्मो को सीकर ही. 
रह जाते हैं अपने अश्क़ पीकर ही. 


कहाँ जाएँ अपना तो नहीं घर ही. 
बेरोजगार का नहीं होता दफ़्तर ही. 


"उड़ता" तू ना बन सकेगा सिकंदर ही.
तूने ख़ुश्क आँखों से गुजारा है समंदर ही. 



स्वरचित मौलिक रचना. 


 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
713/16, छावनी झज्जर (हरियाणा )


संपर्क -9466865227


हलधर

गीत - मौत और जिंदगी
-----------------------------
मौत और जिंदगी में सुलह हो गयी ।
नींद सपने सजाकर कलह बो गयी ।।


मोड़ पे हम मिलेंगे ये वादा किया ।
हमने पूरा नहीं सिर्फ आधा किया ।
सिलसिला भूख का यूँ शुरू हो गया,
जिंदगी की हमारी वजह खो गयी ।
मौत और जिन्दगी में सुलह हो गयी ।।1


उम्र स्वागत में उसके खड़ी हो गयी ।
हम को ऐसा लगा वो बड़ी हो गयी ।
देह गलती रही सांस  चलती रही ,
देख कर नित झमेले वो खुद रो गयी ।
मौत और जिंदगी में सुलह हो गयी ।।2


हम कहाँ हैं गलत सच हमें भी बता ।
सामने वार कर यूँ न  हमको सता ।
हौसलों का शजर है हमारा सफ़र ,
छोड़  दावे  पुराने कहाँ  सो गयी ।
मौत और जिंदगी में सुलह हो गयी ।।3


जो भी हमको  मिला हमने माना सिला ।
गालियां तक सुनीं पर न माना गिला ।
दर्द पीता रहे घाव सीते रहे ,
पाप "हलधर" हमारे कलम धो गयी ।
मौत और जिंदगी में सुलह हो गयी ।।4


           हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"पिया मिलन की आस"*
(सरसी छंद गीत)
****************************
विधान - १६ + ११ = २७ मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।
****************************
*पिया मिलन की आस लगी है, पिया मिलन की आस।
प्रीतम मेरे दूर देश हैं, यादें हैं बस पास।
पिया मिलन की आस।।


*बनी बावरी पिया बिना मैं, विरह-विकल का दौर।
उन्हें भूलने के भ्रम में तो, व्यथा बढ़ी है और।।
नैनों से नित नीर बहे पर, बढ़ती जाती प्यास।
पिया मिलन की आस।।


*भयी प्रेम में मैं दीवानी, भार लगे संसार।
फेर लगे हैं विरह-पीर के, मेरे मन के द्वार।
मिले साथ जो अब उनका तो, सदा रहूँगी पास।
पियामिलन की आस।।


*आना-जाना क्रम जीवन का , सका न कोई टाल।
मिलता है वह उसे यहाँ पर, लिखा रखा जो भाल।।
मैं नदिया हर जन्म उन्हीं की, वे सागर हैं खास।
पिया मिलन की आस।।


*फिरूँ भटकती इत-उत उनमत, चैन नहीं मन पाय।
विरही ज्वाला पल प्रतिपल है, और अधिक अकुलाय।।
मेरा तप हर लेगा आतप, मन में है विश्वास।
पिया मिलन की आस।।


*आकुल आत्मा ढूँढ़े सम्बल, समय सिंधु के तीर।
सींचें अब तो प्रीत पयस से, पिय हर लें हर पीर।।
मैं सरिता सिंधु-समाऊँ,
मिटे जन्मों की प्यास।
पिया मिलन की आस।।
*****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*****************************


कुमार🙏🏼कारनिक

सुबह🙏🏼सबेरे
प्रेम सोहार्द
                     """""""""""""""
●द्वेश नही मन मे रखो,सदा रहो खुश यार।
 इस जग मे है व्यस्तता,सबको दीजे प्यार।।
💫🌼
●मन मे रंजिश नही रखो,बनों सभी के मीत।
 आपस मे मिलकर रहो, सुबह शाम गा गीत।
💫🍁
●प्यार कभी बिकता नही,यारी करके देख।
 होती है अनजान मे, लिखते है आलेख।।
💫🌷
●बाते सुन लो साधु की ,देते  मधुर सँदेश।
 आपस मे मिलजुल रहो,राखो नहीं क्लेश।
💫🍀
●जगमे क्यों हो बहकते,करना नहीं घमंड।
 ऊपर वाला देखता,सबके लिखता दंड।।
💫🌼


      *कुमार🙏🏼कारनिक*
                                      **********


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

"छोड़ दूँ संसार..."


छोड़ दूँ संसार यदि तू प्यार कर,
छोड़ दूँ परिवार यदि तू प्यार कर,
है रखा क्या जिन्दगी में ये बता,
छोड़ दूँ घर-द्वार यदि तू प्यार कर।


प्यार करना भी गलत है क्या प्रिये?
प्यार का मकसद समझना क्या बुरा?
प्यार बिन इस जिन्दगी का अर्थ क्या?
प्यार का मतलब समझ कुछ सीखकर।


प्यार हो तो जिन्दगी भी पार है,
प्यार बिन यह जिन्दगी दुश्वार है.
प्यार के भावार्थ में है रस छिपा,
प्यार में निःस्वार्थ ही स्वीकार है।


प्यार करना सीखना है आप से,
शिष्य बनकर जानना है आप से,
गुरु बने उपदेश दें बस प्यार के.
प्यार के निहितार्थ को बस आप से।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आशा करना सिर्फ राम से"


          (वीर छंद)


भिक्षुक यह सारा संसार, केवल दाता रामचन्द्र हैं.,
सभी चलाते अपना पेट, अपने में ही परेशान सब.,
सदा दूसरों से ही आस, नजर गड़ाये सब बैठे हैं.,
अपना पैसा होय न खर्च, खर्च हुआ तो मृत्यु तुल्य वह.,
कैसे सुखी होय संसार, बहुत संकुचित मनःस्थिती.,
मन-दरिद्रता कभी न जाय, बनते फिर भी धनी-खरबपति.,
मची हुई जग में लूट, भाग रहे सब धन के पीछे.,
हाय हाय पैसे की बात, होती रहती जागत-सोवत.,
पैसे में ही बसता प्राण, पैसा गया तो प्राण भी गायब.,
पैसे से क्यों इतना मोह, करता रहता सदा दनुज मन.,
यह अतिशय पैशाचिक वृत्ति,अन्त समय में छूट जात सब.,
केवल साथी है सत्कर्म, सत्संगति कर अच्छा सीखो.,
करो राम से केवल प्रेम, सदा उन्हीं से आशा करना.,
त्याग और संतोष महान, सदा सिखाते श्री रामेश्वर.,
उनके चरणों की ही धूल, दे देती है विपुल सम्पदा.,
करते रहना उन्हीं से स्नेह,सारी कमियाँ पूरी होंगी.,
आशा में रहते हैं राम, कर आशा नित सिर्फ राम से.,
बन जाओगे बड़ धनवान, कर विश्वास उन्हीं पर मित्रों.,
तृष्णा हो जायेगी दूर,मित्र बनाओ सिर्फ राम को।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "

हनुमान जयन्ती  मुक्तक
मुक्त करो जग मारुतिनन्दन


जय   जगवन्दन  जय  केशरीनंदन,
रोग शोक  मोह   जग   खलभंजन,
जय महाबली जय अलख निरंजन,
नित करूँ नमन  जय  मारुतिनंदन।


भवबाधा  हर  आञ्जनेय  जग,
तन मन धन  अर्पण   रघुनन्दन,
लाल देह नित   पवनपुत्र  जय, 
जय वज्र देह  दानव अरिमर्दन।


रुद्रावतार एकादश कपीश जय ,
बजरंगबली  जग  संकट मोचन,
भूत प्रेत  भय  सब   दुःख भागे,
महावीर  जय  असुर  निकन्दन।


सिया राम   का   महादूत  बन
जलधि  पार   लंका  पुर आये,
राम नाम अभिराम  मनसि जो,
मिले विभीषण तन मन हर्षाए।


मातु सिया लखि छाँव अशोक द्रुम
रामभक्त  चढ़ि  कपि वृक्ष निहारे ,
गिरा  अंगूठी   सीता  माँ  आँचल ,
लखि हर्षित सिय जय राम उचारे।


जय जय जय हनुमान् महाप्रभु ,
संताप जगत भय शोक निवारो,
खर - दूषण  अहिरावण   रावण ,
इन्द्रजीत विष अहि पाप संहारो।


पहुँचे अन्वेषक प्रभु स्वर्णपुरी में ,
हरित फलित वन अशोक उजाड़े ,
रावणसुत प्रिय अक्षय खल मर्दन ,
बद्ध पाश दशमुख सम्मुख आये।


बाँध वसन कपि पूँछ जलाकर,
मेघनाद सम असुर   मन हर्षाए,
चले   वीर   बजरंग  बली  प्रभु,
कूद- कूदकर लंकापुरी जलाए। 


राम काज कर प्रभु शरण राम के,
धन्य धन्य प्रभु कपि हृदय लगाए,
भक्ति प्रेम अर्पण मन धन जीवन ,
बार बार   प्रभु    हनुमान्   निहारे।


परम मीत  प्रिय भाई भरत सम ,
राम नाम सह हनुमान्  महाबल ,
महाकाल विकराल  कपिध्वज ,
विघ्नेश्वर  शत्रुंजय  भज रे  मन।


श्रीराम नाम जीवन  अन्तस्तल,
कृपासिन्धु बन हर  संकट  हर,
वानरपति अतुलित बल स्वामी
जय हनुमान् ज्ञान गुण  सागर।


फिर कोरोना सुरसा बन जग में,
मानव जग भक्षण  मुख  खोली,
जनकसुता   दुःखहर्ता  लंका में ,
उद्धारो  प्रभु  कर  नाश .दानवी।


फिर  संजीवन  लाओ  महाप्रभु ,
मनुज पड़े  भू  काल  ग्रास बन ,
प्राण दान   दे  लखन लाल सम ,
आश पड़े  तव  कृपा सिन्धु  पर।।


अष्ट सिद्धि  बल  बुद्धि विधाता,
हितकारी जग  सब दुःख  त्राता,
कार्य निवारक  नित  रघुनायक,
जय जय  कपीश    सुखदायक।। 


सत्यं   शिव  मंगल   कपिनंदन ,
हनुमान  राममय  तुम जगवंदन,
विघ्नविनाशक भव  दुःखहारक,
हे आञ्जनेय केशरीसुखदायक।


मकरध्वज  सुत  महातेज  बल ,
शनि पूजन दिन  दे पूजनीय वर,
धन्य हुआ  मकरध्वज  कपिवर,
नाशक अहिरावण बना सूत्रधर।   


जय  हनुमान  अमर   जगतारक ,
जन्मदिन प्रभु  हो  सदा मुबारक,
हे करुणाकर    शरणागतवत्सल,
महातेज तपोबल शोकनिवारक।


जै  राम  राम   हनुमान्  महातम ,
नित कृपा करो बलपुंज  गदाधर,
महारुद्र   हर्ता   खल पशु  दानव,
रोको   कोराना  त्रासद  संहारक।


सुग्रीव  सखा  रक्षक किष्कन्धा,
बन सेतुबन्ध राम सुग्रीव मित्रता,
धीर वीर साहस अतिबल सुमेधा,
जय केशरीसुत अंजनि सुखदेया।


वक्षस्थल नित जय   रामसियावर,
जय दीनबन्धु जय    मारुतिनंदन ,
निशिवासर   हनुमान्  जपो  मन !
मुक्त करो जग मारुति जगवन्दन।।


डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"हर सुन्दर मानव इक योधा "


              (वीर छंद)


लिये करध्वज अरु उत्साह, चल देता है सुन्दर मानव.,
अपने धुन में रहता मस्त, बिना किये परवाह किसी की.,
सिर्फ देखता अपना लक्ष्य, चलता जाता उसे वेधने.,
कांटे और पुष्प इक भाँति, सुख-दुःख के उस पार खड़ा है.,
सुनता नहीं किसी की बात.,अपने में ही मस्त बहादुर.,
प्रतिकारों पर नहीं है ध्यान, मान और अपमान एक सम.,
सुन्दरता का है प्रतिमान, सहज अहिंसक अति विराट इव.,
चलता अत्युत्तम है चाल, सर्वजनों का बना हितैषी.,
स्थापित करता जग में नाम, यद्यपि यह है नहीं कामना.,
सदा ख्याति से कोसों दूर, सिर्फ कामना लोकमंगला.,
मन में आती कभी न ग्लानि, अति उल्लास -उमंग रगों में.,
दिल में सबके प्रति सम्मान, रखता चलता सुन्दर योधा.,
पावन भावों के संसार, का रचना-संकल्प हृदय में.,
रखता सदा है ऊँचा ख्याल,तुच्छ बुद्धिवाले जलते हैं.,
नयी-नयी चीजों की खोज, मेँ ही सदा लगा रहता है.,
पा लेता है पावन लक्ष्य, इक दिन सुन्दर सत शिव योधा.,
नहीं कभी मन में अभिमान, सबको सहभागी कहता है.,
सबके दिल पर करता राज, आता जग मेँ देवदूत बन.,
करने को सबक कल्याण, आतुर व्याकुल सुन्दर योधा।


रचनाकार:


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


आजाद अकेला बरबीघा वाले सम्पादक काव्यरंगोली

तुमको मैं निज उर से लगाऊं


विधि लिखा मैं मेट ना पाऊं
नयनो से नित नीर बहाऊ
जग की हालत बड़ी विकट है 
तुम पर ही निज अंबुधि लुटाओ
आ मेरे लाल तू पास मेरे
तुमको मैं निज उर से लगाऊं


 विपदा काल विकट है आई
दुनिया बन गई कैसी कसाई
सोच रही है मन में माई
 मैं आज अन्न कहां से लाऊं
आ मेरे लाल तू पास मेरे
तुमको मैं निज उर से लगाऊं



 अश्क व्यर्थ में तुम ना बहाना
बनकर तू धीर गंभीर
अपनी मां का मान बढ़ाना
ऐसी आशीष तुझे दे जाऊं
आ मेरे लाल तू पास मेरे
तुमको मैं निज उर से लगाऊं


आचार्य गोपाल जी 
        उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


आशा जाकड़

हनुमान जयन्ती की शुभकामनाएँ 



     हनुमानजी  : तांका  


पवन सुत 
तुम हो बजरंगी 
अंजनी सुत
महिमा अति भारी
संकट  सब हारी


जय जय हो 
तुम हो रणधीरा
संकट वीरा 
हे मारुति नन्दन
तुम जग वन्दन


तुम्हारी पूजा
संकट दूर करे
आरती करे
सत्य राह दिखाओ
धर्म पथ  सुझाओ


विनती करूं 
 हे संकट मोचन 
 मैं भक्ति करूँ 
 कारजसिद्ध करे
 प्रार्थना पूर्ण  करे।।


आशा जाकड़
9754969496


सुनीत बाजपेयी

श्री हनुमान जन्मोत्सव 2020


मुक्तक
जिनके आगे दुष्ट जनों की कभी न हरगिज दाल गली।
जिनकी चतुराई से रावण की लंका सम्पूर्ण जली।
विद्या, बुद्धि, और बल देते, संकट हर लेते पल में।
सभी प्रेम से मिलकर बोलो, जय जय जय बजरंगबली।


घनाक्षरी
मातु अंजनी  के  लाल,  वायु   देव  के  सुपुत्र,
रुद्र     अवतार       भगवंत      हनुमान    जी।
भोग  वासना  न  छूने   पाई  कभी  तिल  भर,
बाल   ब्रम्हचारी,   सच्चे   संत   हनुमान   जी।
अपने   उपासकों   के    कष्ट  हर   लेते  सारे,
करते   मुसीबतों    का   अंत    हनुमान   जी।
राम जी के प्यारे भक्त , लाडले माँ जानकी के,
हैं    अनंत     वीर     बलवंत     हनुमान   जी।
सुनीत बाजपेयी
मो0- 95191 71111


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"ज्योत जले"*
"अपनत्व की धरती पर साथी,
नित सद्कर्मो की-
ज्योत जले।
सत्य-पथ हो जीवन का साथी,
मन में हो विश्वास-
फिर न किसी से डरे।
अग्नि पथ हैं -जीवन सारा,
प्रभु भक्ति संग-
सत्य की ज्योत जले।
जो भी कर्म करे साथी,
जीवन में उसे-
प्रभु को अर्पण करता चले।
हम की हो भावना मन में,
खुशियों से महके आँगन-
अपनत्व की ज्योत जले।
जब भी समय मिले साथी,
जपे प्रभु नाम-
प्रभु मूरत मन बसे।
अपनत्व की धरती पर साथी,
नित सद्कर्मो की-
ज्योत जले।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता      08-04-2020


मनोज श्रीवास्तव

ये पूरा भारत मना रहा जन्मोत्सव प्रभु हनुमान का
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 त्रेता युग में अवतरित हुए ललचाये देखकर सूरज को


उड़ चले निगलने वो उसको तब वज्र लगा और अकुलाये


बजरंगबली संकट मोचन सबके दुख हरने वाले खुद


माता ने उबारा मूर्छा से  हनुमान नाम तब वह पाए


*
हनुमान जयंती मानो या जन्मोत्सव इसे मना लो अब


बस मन से अपने नमन करो औ सारी पीर मिटा लो अब


दुख हर्ता शिव के दिव्य रूप कल्याण सदा करते आए


द्वापर से कलयुग तक सब संकट जो भी हरते  आए
*


सारे ही रूप है ईश्वर के हर नाम यहां भगवान का


ब्रह्मा विष्णु महेश मानो हर नाम जगत कल्याण का


यह सारे युग बतलाते हैं प्रभु लीला को दर्शाते हैं


इसलिए ये भारत मना रहा जन्मोत्सव प्रभु हनुमान का
!
*
!!
मनोज श्रीवास्तव 8 अप्रैल 2020 हनुमान जयंती पर


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री हनुमान जयंती"


जय श्री राम भक्त हनुमंता।
अति पावन महान प्रिय सन्ता।।


एक इष्ट देव श्री रामा।
उन्हें छोड़ दूजा नहिं नामा।।


आजीवन बस राम काज नित।
राम हेतु जगती में नियमित।।


एक काम बस रघु पद पूजा।
और अमान्य काज सब दूजा।।


परम ब्रह्मचारी रघुमय हो।
रघु उपकारी सिद्ध अमय हो।।


माँ सीता के तुम सपूत हो।
रामाश्रय प्रिय रामदूत हो।।


लंका जला दिया क्षण भर में।
सीता अन्वेषण पल भर में।।


तेरे हिय नित सितारामा।
अचल भाव प्रेम निष्कामा ।।


रामभक्त बस एक तुम्हीं हो।
वरद राम आसक्त तुम्हीं हो।।


बुद्धिविनायक महावीर हो ।
सहज सरल गंभीर धीर हो।।


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
विद्या सिन्धु विनम्र विधाता ।।


जय हो जय हो महाबला की।
पवन तनय अंजना लला की ।।


कष्ट मिटाओ हे प्रिय हनुमन।
महा शक्तिमान हे श्रीमन।।


भव वाधा को शीघ्र मिटाओ।
हे हनुमान ईश अब आओ।।


विपदाओं से मुक्ति दिलाओ।
संकटमोचन बन छा जाओ।।


जय जय जय हो सदा विजय हो।
राम हितैषी हनु अक्षय हों।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री हनुमान जयंती"


जय श्री राम भक्त हनुमंता।
अति पावन महान प्रिय सन्ता।।


एक इष्ट देव श्री रामा।
उन्हें छोड़ दूजा नहिं नामा।।


आजीवन बस राम काज नित।
राम हेतु जगती में नियमित।।


एक काम बस रघु पद पूजा।
और अमान्य काज सब दूजा।।


परम ब्रह्मचारी रघुमय हो।
रघु उपकारी सिद्ध अमय हो।।


माँ सीता के तुम सपूत हो।
रामाश्रय प्रिय रामदूत हो।।


लंका जला दिया क्षण भर में।
सीता अन्वेषण पल भर में।।


तेरे हिय नित सितारामा।
अचल भाव प्रेम निष्कामा ।।


रामभक्त बस एक तुम्हीं हो।
वरद राम आसक्त तुम्हीं हो।।


बुद्धिविनायक महावीर हो ।
सहज सरल गंभीर धीर हो।।


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
विद्या सिन्धु विनम्र विधाता ।।


जय हो जय हो महाबला की।
पवन तनय अंजना लला की ।।


कष्ट मिटाओ हे प्रिय हनुमन।
महा शक्तिमान हे श्रीमन।।


भव वाधा को शीघ्र मिटाओ।
हे हनुमान ईश अब आओ।।


विपदाओं से मुक्ति दिलाओ।
संकटमोचन बन छा जाओ।।


जय जय जय हो सदा विजय हो।
राम हितैषी हनु अक्षय हों।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।*

*भारत को दुनिया का सिर*
*मौर बनाना है।*


तुम  घर  के      अंदर  तो
जानो कॅरोना बाहर रहेगा।
एक श्रृंखला     धारा    में
वो    फिर   न     बहेगा ।।
तेरी     सावधानी   ही  तो
कॅरोना   की     मात     है।
फिर एक  दिन    जरूर ही
किला कॅरोना  का  डहेगा।।


घर के अंदर  ही  रहो  और
बाहर जाने   की   करो ना।
यूँ ही   बैठे  बिठाये     तुम
मुसीबत    में    पड़ो   ना।।
घर में बैठ  कर करो    कुछ
सकारात्मक   काम    तुम।
निकल कर बाहर कोई दंड 
तुम    यूँ    ही   भरो     ना।।


थाम लो   कदम  अपने  जो
पाँव कॅरोना  के   रोकना हैं।
डर कर ठहर जायो वहीं जो
दाँव  कॅरोना  के  रोकना है।।
लड़ाई लंबी   सामने से नहीं
पीछे से   है  तुम्हें      लड़नी।
वचाव ही   उपचार   है  यदि
छाँव  कॅरोना की  रोकना है।।


इस जंग में न रुकना है  न ही
थमना है  जीत कर  आना है।
सारी दुनिया को ही     जज्बा 
भारत    का    दिखलाना  है।।
बताना     संसार  को  क्यों है
भारत का स्थान विश्व गुरु का।
अपने  हिंदुस्तान को   दुनिया
का सिरमौर   हमें  बनाना  है।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मो      9897071046
          8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

राधे कहें श्री कृष्ण से
सुन लो मुरलीधर घनश्याम
व्यथित है सारा जगत
आज सर्वत्र मचा कोहराम


हे नटवर नागर गोविंद
प्रभु कोई चमत्कार करोना
तुम दूर करो भव त्रास
किसी को व्यापै न कोरोना


जन्म समय बंधन काटे
प्रभु दियौ पूतना कूँ सुरधाम
अघासुर बकासुर हते
तूने नन्दगाँव कियो अभिराम


कालिंदी पावन किन्ही
नाग नाथ नन्दनन्दन गोपाल
आर्यावर्त पर दया करो
भक्त वत्सल श्री नन्दलाल।


श्री बाँकेबिहारिणौ नमो नमः🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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