मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
*दिनांक - १३.०४.२०२०*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
           *संभव*
संभव सारे काज हैं,अथक परिश्रम हाथ।
निश्चित प्रतिफल पा रहे,दृढ़ निश्चय के साथ।
यह संभावना हो रही, लक्ष्य खड़ा मजबूर,
लक्ष्य भेद संभव करो,विजय तिलक हो माथ।।


 संभव है हर बात तब,सहज सफल व्यवहार।
बिना चाह के कार्य से, होता है उपकार।
सदा चाह हो राष्ट्र की,उत्तम पथ निर्माण,
यही वास्तविक जीत है, यही सदा आभार।


सदा करो निज सोच से, भारत का उत्थान।
जगत इसी से हो सुखी, यही परम संधान।
अब सब कुछ सम्भव करो, मन ले सच्ची आस,
आशा और विश्वास में, *मधु* जीवन का मान ।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


साज़े-दिल पर ग़ज़ल गुनगुना दीजिए
शामे-ग़म का धुँधलका हटा दीजिए


ग़म के सागर में डूबे न दिल का जहाँ
नाख़ुदा कश्ती साहिल पे ला दीजिए


एक मुद्दत से भटके लिए प्यास हम
साक़िया आज जी भर पिला दीजिए 


इल्तिजा कर रहा है ये रह-रह के दिल
*फ़ासला आज हर इक मिटा दीजिए* 


कर रही हैं बहारें भी सरगोशियाँ 
मन का  पंछी हवा में उड़ा दीजिए 


मुन्हसिर आपकी हम तो मर्ज़ी पे हैं
आपके दिल में क्या है  बता दीजिए


है ये मुमकिन कि दोनों ही घुट-घुट मरें
बात बिगड़ी हुई अब बना दीजिए 


अपनी मंज़िल की जानिब रहूँ गामज़न
मेरे जज़्बात को हौसला दीजिए 


इन अंधेरों में दिखने लगे रास्ता 
मेरे मुश्किलकुशा वो ज़िया दीजिए



मेरा महबूब ग़ज़लों में हो जलवागर 
मेरे लफ़्ज़ों में वो ज़ाविया  दीजिए


कट ही जायेगा ख़ुशियों से *साग़र* सफ़र 
आप रह-रह के बस मुस्कुरा  दीजिए 


🖋विनय साग़र जायसवाल


कालिका प्रसाद सेमवाल

🎍गौ माता🎍
🍃🎋🥀☘🍀
हरे हरे तिनकों पर 
अमृत घट छलकाती गौ माता,
जब जब कृष्ण बजाते मुरली,
लाड़ लड़ाती गौ माता।


तुम्हीं धर्म हो, तुम्हीं सत्य हो,
पृथ्वी सा सब सहती हो,
प्यासे जग में सदा दूध की, 
नदी बहाती गौ माता।


दूध पुकार रहा है तेरा,
आज दूध की लाज रहे,
अब न कहीं गौ वंश का कत्ल हो,
यह संकल्प रहे जन जन का।


अश्रु भरी आंखों में मौन पुकार ,
लगा रही है गौ माता,
जब जब कृष्ण बजाते मुरली,
लाड़ लड़ाती गौ माता।
🌹🌷🥀🎋🍁🍃
कालिका प्रसाद सेमवाल


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"वृक्ष बचाओं"*
" वृक्ष बचाओ -वृक्ष लगाओ,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहें वन।
प्रात: भ्रमण को मिले,
सार्थकता-
तृप्त हो नयन।
शुद्ध हो वातारण,
कम हो प्रदूषण-
शांतिपूर्ण हो शयन।
महकता रहे जीवन में,
उपवन सारा-
सुगन्धित हो सुमन।
मिलते रहे फल फूल औषधी,
सार्थक हो जीवन-
बलिष्ठ हो तन-मन।
भटके न नभचर,
आसरा मिले उनको-
सार्थक हो वन।
वृक्ष बचाये-वृक्ष लगाये,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहें वन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          13-04-2020


संजय जैन (मुम्बई)

*रूठ गये भगवान*
विधा : कविता


आशा निराशा के,
इस दौर में लोगो।
कितना कुछ अब,
मानो बदल रहा।
कलयुग में अब,
सब कुछ बदल गया।
और कलयुग का अर्थ,
अब सार्थक हो गया।।


सोचा भी नही होगा लोगों ने, 
की ऐसे दिन भी आएंगे।
भगवान भी अपनो से, 
मानो रूठ जाएंगे।
और अपने द्वार भी
भक्तों को बंद कर देंगे।
न देंगे खुद दर्शन और 
न पूजन करवाएंगे।।


भगवान खुद एकांत,
वास में चले गए है।
और एकचित होकर, 
खुद भी चिंतित है।
मानव के पापो का
ये परिणाम है।
जो भर चुका था तो
उससे फूटना ही था।।
और अपने कर्मो को
भोगना भी तो है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/04/2020


सुनीता असीम

यार एक बनाकर देखो।
दिल का राग सुनाकर देखो।
***
मिट जाएंगे दिल के छाले।
मरहम प्रेम लगाकर देखो।
***
माया मोह सभी छूटेंगे।
गीता सार सुनाकर देखो।
***
सुख के अब बादल बरसेंगे।
दुख को सिर्फ भुलाकर देखो।
***
मन को चैन अनोखा मिलता।
बस इक जान बचाकर देखो।
***
दर्द मिलेगा नित नूतन ही।
दिल का रोग लगाकर देखो।
***
इक धोखा हम भी खाएंगे।
इक धोखा तुम खाकर देखो।
***
सुनीता असीम
१३/४/२०२०


प्रवीण शर्मा ताल*

*अनदेखी*



लापरवाही का तांडव खड़ा मत कर
लक्षमण रेखा बाहर खिंची है 
इसे जरा पार मत कर ,,,
सावधानी अपना ले तेरा ही भला
इसे अब इतना अनदेखा मत कर ।


रोम -रोम में सुरक्षा का ढाल बिछा
मिला है जीवन तुझे अब 
इसे बेहाल मत कर
संभल जा अब जरा
इसे अब अनदेखा मत कर।।



हाथो की लकीरों में 
सूक्ष्म वायरस का पड़ा है घेरा
हाथों को साफ नीर से धो लेना
बचेगा इस वायरस से परिवार ही तेरा।
जान जोखिम में मत कर
छोटी भूल को अनदेखी मत कर।


सड़क पर देश के रखवाले खड़े
राष्ट्र की सुरक्षा के लिए कदम से 
कदम मिला के आगे बढे।
अदृश्य शक्ति से बचाने 
तुम्हें ही बचाने के लिए लड़े।


ठहर जा अब कुछ ही दिनों की बात है
मर जाएगा यह अदृश्य चीन का राक्षस
बस थोड़ा घर मे विश्राम कर 
देश ही आन बान शान है 
इसे अनदेखा मत कर।



*✒️प्रवीण शर्मा ताल*
*स्वरचित मौलिक रचना*


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
काव्य रंगोली 


जलियां वाला बाग
14.4.2020


बैसाखी का त्यौहार 
सुख समृद्धि पावन पर्व
नव जीवन का संचार
देता ज्ञान और ऊर्जा 


आज का ही दिन था 
हुआ जालियां वाला कांड था
निहत्थों का कर संहार 
अपने को शूरवीर का दिया नाम था।


साहस का ज्वार फिर उमड़ पड़ा
जिसे तोड़ने का अंग्रेजों ने था काम किया
खाई थी मुँह की फ़िर ख़ुद ही
अपने ही पैरों पर वार किया।
 
ना हो कोई जलियांवाला कांड कभी
शत शत नमन उन वीरों को 
देश के लिए जो तब बलिदान हुए 
अब बैसाखी शुभ सदा देश को ।


पक गई गेहूँ की बाली 
भर गए खेत खलियान सभी
थके किसान मनाये उत्सव
बजे ढोल नाचें नर नार सभी ।


खुशहाली के मंगल गान 
रहे सदा भरे हमारे खलियान
नमन किसानों को शत शत
करते अन्नदाता सबको जीवन दान


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


डा.नीलम

*महकता हुआ गुलबदन देख लेना*


गिरते हैं पैसे पे कैसे इमान देख लेना
जुनून- ए-जिंदगी के परवान देख लेना


जगत पर पड़ी ये विपदा अति भारी
बंद है देश के सारे मकान देख लेना


इस भँवर में कितने फंसे  है पता नहीं
खिलकर मुर्झाते बागांन देख लेना


सितम हो रहे अब भी बेटियों पर
कानून पकड़ेगा गिरेबान देख लेना


हमारी बेबसी पे ठुकराकर जाने वाले
प्यारा था "नीलम" का मुकाम देख लेना


      डा.नीलम


राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-95
( लघु कथा पर आधारित कविता)
***********************
सो सच्ची सच्ची कहता हूँ । 
************************। 
काव्य कथा वीथिका मेंं , 
      जीवन का हर पुट रहता है । 
मैने उस भारत मेंं जन्म लिया, 
     जो भारत गावों मेंं रहता है ॥ 


मेरी लकड़ी की पटरी थी, 
      संग मेंं जूट का टाट भी था । 
सुन्दर सुलेख की कापी थी, 
       अच्छा खासा ठाट भी था ॥ 


बचपन मेंं पेन को क्या जानू , 
       सरकंडे से हम लिखते थे । 
दुनियाँ हम बना दिया करते, 
जिसे नक्शा भूगोल का कहते थे ॥ 


इतिहास और विज्ञान हमें, 
      हिन्दी मेंं पढ़ाया जाता था । 
वह शक्ति हमें दो दयानिधे , 
       प्रार्थना कराया जाता था ॥ 


इंगलिश का दर्शन हमको, 
         कक्षा छः मेंं ही हो पाया । 
इंगलिश मेंं अब भी कच्चा हूँ, 
           गई नही इसकी साया ॥ 


ऐसा मत समझो अज्ञानी था, 
 स्नातक विज्ञान का छात्र मै था । 
बलिया के टी डी कालेज का, 
        एक सुयोग्य पात्र मै था ॥ 


यद्यपि था ठेठ गांव वाला, 
   पर ला पढ़ने लखनऊ आया । 
तब नशा राजनीति का था, 
   कारण बलिया का मै जाया ॥ 


बचपन से कविता लिखता था, 
      पर नही कवि मै बन पाया । 
पांडुलिपियाँ बनी कई लेकिन, 
    लेकिन पुस्तक ना बन पाया ॥ 


चिकित्सा संवर्ग का छात्र बना, 
     फार्मेसी की खास पढ़ाई की । 
जीवन अर्पित इसके संग की, 
      इसके ही साथ सगाई की ॥ 


यह क्षेत्र प्रेम करुणा का है, 
      सेवा करने का अवसर है । 
साहित्य साधना अभिरुचि है, 
    पर स्वास्थ सेवा सर्वोपरि है ॥ 


था कंप्यूटर का ज्ञान नही, 
     पर चाहत अन्तर्मन की थी । 
अक्सर बेबस हो जाता था, 
      कारण उम्र बावन की थी ॥ 


एक मेल लिखाने के खातिर, 
         घंटो लाइन मेंं रहता था । 
आदर्श, शशांक ही सुनते थे, 
      भईया बाबू मै कहता था ॥ 


लेकिन नसीम ने सुन ली थी, 
   अब कंप्यूटर भी पहचान मेंं था । 
मै अपने फील्ड का मास्टर था, 
      केवल इसका ही ज्ञान न था ॥ 


जीवन मेंं मेहनत करके मैने, 
        काफी कु़छ शोहरत पाई है । 
पर इंगलिश, कंप्यूटर के कारण, 
             हर बार हुईं खिचाई है ॥ 


यह हास्य व्यंग्य सा लगता है़, 
        पर शतप्रतिशत सच्चाई है़ । 
चाहे कोई उपहास करे, 
       मेहनत के दम पर पाई है़ ॥ 


माँ सरस्वती ने शक्ति दी है़, 
      तॊ कथा वीथिका लिखता हूँ । 
अब असली सच सब देख रहे, 
        सो सच्ची सच्ची कहता हूँ ॥ 


राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 13-04-2020


संजय जैन (मुम्बई)

*अनुकूल सोच*
विधा: गीत


अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे,
भाव हृदय में पवित्र रखे।
जो भी ऐसा कर पाता है,
जीवन में आनंद पाता है।।


चुगल खोर चुगली करे,
और चोर चोरी से बाज़ न आवे
ऐसे लोगो को लोग ही, अपने आजू बाजू न बैठाए।
और आते ही ऐसे लोगो के, 
लोग हो जाते सावधान।
और यहां वहां खिसकाने की, 
कौशिश वो करने लगते।।
अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे,
भाव हृदय में पवित्र रखे।।


सदैव मिलने को व्याकुल रहते,
अच्छे और सच्चे लोगो से।
संगत का असर निश्चित पड़ता, 
हर किसी के जीवन पर।
तभी तो लोगो को शिक्षा प्रति,
करते है हम सजक।
जिससे हो जाएगा एक,
 सभ्य समाज का निर्माण।।
अनुकूल रहे प्रतिकूल रहे,
भाव हृदय में पवित्र रखे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
12/04/2020


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक (स्वरचित) नवदिल्ली

🙏सरस्वती काव्यकृतां महीयताम्🙏
दिनांकः १२.०४.२०२०
दिवसः रविवार
विधाः मुक्त
विषयः स्वच्छन्द
 शीर्षकः 🤔बस ✍️
खुद आबाद पथ पर चला बढ़ सच प्रेम ले मैं अनवरत,
यायावरित चलता हुआ बन अडिग पथ पल  सत्यव्रत, 
सिद्धान्त  रथ चढ़ सारथी ख़ुद शस्त्र  भी  बनके निरत, 
पतित अब स्वध्येय पथ नीलाभ से बर्बाद हूँ मैं हो गया। 


चाह   ले  सच  राह  पर   उड़ान   भरने    को चला,
पंख  उद्यम  का  लगा ले  ठान मन  कुछ   हो भला,
पुरुषार्थ मद परमार्थ  सज रथ नीतिपथ पे बढ़ चला,
विघ्न बहु रावण  बने कट  पंख  भू पर  हूँ  आ गिरा। 


अरमान  मन  अर्पण  वतन जीऊँ सदा मैं इस जमीं,
हों  उर्वरित   कुसमित फलित बंजर धरा में हो  नमी,
दीन  जो  बलहीन  नित  दुर्भाव   जन  अभिशप्त  है,
प्रभा बन शिक्षा किरण बस  चाह बन के हूँ रह  गया।


ध्वस्त सारी मंजिलें अरमान आहत छली खल भ्रष्ट से,
झूठ  नित मिथ्या  कपट जख़्मों   सितम  गम शस्त्र से,
छायी   घटा  विकराल  बन क्षत अपने बने अवसाद से,
लाचार बन आहत पड़ा निज ध्येय रथ से  हूँ गिर पड़ा।


लखि दुर्दशा कवि की  प्रभा उठ  लेखिनी  ढाढस बढ़ा,
माँ भारती पथ सारथी सेवा वतन  रत  रथ  फिर  चढ़ा,
अभिलाष तज मन स्वार्थ को परमार्थ लेखन को  गढ़ा,
हिन्दी बने गरिमा  वतन यश  सम्पदा  मत  हूँ ले खड़ा।


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नवदिल्ली


आलोक मित्तल *

--------- ग़ज़ल-------------


वो अकेला है मालिक यहाँ,
====================


दिल में मेरे ख़ुशी है तो है,
वो मेरी ज़िंदगी है तो है !
-
हर शिकायत उन्हें प्यार में,
अब दिखी जो कमी है तो है !
-
वो अकेला है मालिक यहाँ,
उसकी गर बंदगी है तो हैं !!
-
बात दिल में छुपाई सभी,
आँख में गर नमी है तो है !
-
है जवां दिल मेरा आज भी,
जिन्दा है आशिकी है तो है !
-
इक मुलाकात काफी नहीं,
वो अभी अजनबी है तो !
-
दोस्त में है बुराई तो क्या 
मेरी भी दोस्ती है तो है !
--
** आलोक मित्तल **


कैलाश , दुबे ,

मत हो परेशां आज तू ये अनोखी जंग है ,


कुछ समय और सह ले भले ही जेब तेरी तंग है ,


कर भरोसा यार अपने आप पर भी ,


यहां पर हर आदमी तो इससे तंग है ,


जीवन है इसी का नाम पगले ये अनोखी जंग है ,


खाने से हैं हम परेशां तो क्या हुआ ,


लाकडाऊन के चलते सब यहां पर तंग है ,


जीत ले कोरोना को तू भी क्यों मत भंग है ,


कैलाश , दुबे ,


मनोज श्रीवास्तव 

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


जो बलिदानों के गीत लिखे
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


जो बलिदानो के गीत लिखे


मैं उसी कलम की स्याही हूं


हर धर्म युद्ध में जनता का


अदना सा एक सिपाही हूं
*


जिसके हाथों में सिर्फ कलम


जो सत्य उकेरा करता है


इतिहास साक्षी है उसका


यह धर्म सवेरा करता है
*


शब्दों में सच कर्मों में सच


अंगार जनित यह ज्वाला है


माता का है आशीष लिए


सत्पथ पर चलने वाला है


*
तूफान चले आंधी आए


जिस में हिम्मत हो टकराये


हिमगिरी जैसी जो सोच लिए


होता व्यक्तित्व निराला है


*


मनोज श्रीवास्तव 
12 अप्रैल 2020 लखनऊ


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"छोड़ दुष्ट को रामचरण गह"


          (वीर छंद)


दुष्ट संग से लगता पाप, इनकी संगति बहुत बुरी है.,
सदा दंभ की करते बात,अहंकार जैसे रावण का.,
करते रहते निन्दित काम, फिर भी अपनी सतत प्रशंसा.,
नहीं सेटता है चाण्डाल, अपने आगे कभी किसी को.,
अपने को बनता विद्वान, मूर्ख क्रूर जाहिल मनरोगी.,
करता धोखे की ही बात, रचा-बसा नित नीच कर्म में.,
सुनता नहीं किसी की बात, सिर्फ सुनाने को व्याकुल वह.,
अच्छे अच्छे भी वर्वाद, हो जायें यदि चूक करें तो.,
जो भी आया उसके पास, हुआ विनष्ट समझ निश्चित ही.,
ऐसे नीच पतित का साथ,छोड़ चलो बस रामचरण गह.,
अवधपुरी में जीना सीख, दर्शन कर श्री रामचन्द्र का.,
सरयू मैया में नित स्नान, करते रहना राम भजन कर.,
वे ही सकल लोक के देव, भक्त हितैषी सहज कृपालू.,
सरल भक्तवत्सल भगवान, भक्तों की रक्षा में नित रत.,
यही एक है उनका काम, ऐसा राम कहाँ पाओगे.,
करो उन्हीं के पद से प्रीति, चाहत रख उनसे मिलने की.,
मिल जायेंगे निश्चित राम, श्रद्धा अरु विश्वास अटल कर।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा

अर्ज है...
       मात शारदे करो कृपा,
       मिले सभा में सम्मान।
       संदेश परक शब्दों का,
       करो आशीर्वाद प्रदान।।


      रचना ऐसी मैं रच पाऊं,
      जन -जन हितकारी हो।
      मात शारदे बस अब तो,
      वाणी में वासआपका हो।।


      वीणा के तारों से हमकों,
      थोड़ा सा ही दो मिठास।
      हे वरदानी देवी सरस्वती,
     मन से करता हूं अरदास।।
      रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा


हलधर

ग़ज़ल ( हिंदी)
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जीवन के सब चरण अटल हैं ,भीड़ पड़ी तो डरना कैसा !
जन्म हुआ तो मरण अटल है ,नाम करे बिन मरना कैसा !


रस हर कण का तू लेता चल कर्जा जन गण का देता चल ,
दुख सुख सिक्के के पहलू हैं ,फिर इसका ग़म करना कैसा !


जीव जंतु की नीति पुरातन , जन्म मृत्यु है सत्य सनातन ,
झर झर पात गिरें पतझड़ में , डर डर आँसू झरना कैसा !


भव सागर की सजी पालकी ,सब पर चलती छड़ी काल की ,
धन बल का अब छोड़ आसरा ,कालिख बीच विचरना कैसा !


ये तन है माटी का टीला , बसता इसमें मन रंगीला ,
पूरा डूब महा सागर में , उससे पार उतरना कैसा !


पैसा तूने खूब कमाया ,सच बतला क्या काम ये आया ,
साथ नहीं दमड़ी जा पाए , फिर इससे घर भरना कैसा ।


जिसके दम पर झूल रहा तू ,उसको ही क्यों भूल रहा तू ,
जिसका अंश उसी में मिलना ,"हलधर" टूट बिखरना कैसा ।


हलधर -9897346173


डॉ निशा माथुर

जीवन की दो सबसे प्यारी चीज़ एक वक़्त दूजे रिश्ते।
आज जब वक़्त मिला है तो क्यूँ न चुका दें वो किश्तें।
बहुत कठिन समय है आया काटें उनको हंसते हंसते।
धीरे धीरे खत्म हो जाएगी आपदा चली जायेगी अपने रस्ते।


तो यकीन कीजिये खुद पे, खुदा पे,और अपने अपनों की दुआ पे।
तो यकीनन हम सभी खुल के मुस्करायेंगे और इस मुसीबत से बाहर आएंगे।


अपने अपनों की हिफाजत कीजिये और घर रहिये और सबको रखिये, हम सभी इस मुसीबत के दिनों से जल्दी ही बाहर आ जाएं इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🌺🌺🌺🌺
नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर🙏🙂


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"सम्मान"*
"अपनत्व मिले अपनो से साथी,
अपनों को देते रहे सम्मान।
अपने-अपने संग चले न चले,
अपनों का कभी न करें अपमान।।
महकेगी जीवन बगिया अपनी,
जहाँ अपनत्व का होगा सम्मान।
मैं-ही-मैं में साथी कभी यहाँ,
जीवन में होगा नहीं कल्याण।।
त्यागमय हो जीवन अपना यहाँ,
सबका होगा जीवन में उत्थान।
अपनत्व की धरती पर साथी,
सबका करते ही रहे सम्मान।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः  
          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupt
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         11-04-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आ जाओ मेरे कृष्णा आज जरूरत तेरी
घोर कष्ट ने घेरा जग काटो विपद घनेरी


जैविक हथियार कोरोना करे जग व्याकुल
दीखें नहीं कोई उपचार हर मानव आकुल


हती पूतना और अघासुर
अब हतो कोरोना
करो कृष्ण चमत्कार नर में निडरता भरो ना


नाथों नाग कालिया प्रभु की कालिंदी पावन
सत्य करे अरदास दुःख दूर करो मनभावन।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नूतन लाल साहू

जीवन का सार
जीवन रथ के दो पहिया है
विज्ञान और अध्यात्म
विकास भी कर ले
भव पार भी हो जा
यही है,जीवन का सार
सुर दुर्लभ मानव जीवन तू पाया है
नहीं मिलेगा बारम्बार
सुख दुःख तो जीवन का अभिन्न अंग है
जीवन में मत होना उदास
प्रभु चरण,नौका है भव पार का
सीढ़ी है,माता पिता गुरु का आशीर्वाद
जीवन रथ के दो पहिया है
विज्ञान और अध्यात्म
विकास भी कर ले
भव पार भी हो जा
यही है जीवन का सार
लोभ सरिस,अवगुण नहीं प्यारे
तप नहीं सत्य समान
क्रोध हरे,सुख शांति को
अंतर प्रगटै आग
न धन तेरा,न धन मेरा
चिड़िया करत बसेरा है
सत्य धर्म से करो कमाई
भोगो सुख संसार
जीवन रथ के दो पहिया है
विज्ञान और अध्यात्म
विकास भी कर ले
भव पार भी हो जा
यही है जीवन का सार
तन भी जायेगा,मन भी जायेगा
जायेगा रुपयों का थैला
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी
संग चलेगा न अधेला
सुमिरन कर हरिनाम को प्यारे
मानुष जन्म सुधार लेे
जीवन रथ के दो पहिया है
विज्ञान और अध्यात्म
विकास भी कर ले
भव पार भी हो जा
यही है जीवन का सार
नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

😊   कुछ तो भला किया है   😊


कुछ  तो  भला  किया  है इसने,
                        लाखों भले बुराई है।
कालिख नहीं दिखे अब छत पर,  
                     जब से विपदा आई है।


वायु   शुद्ध   है,  घटा   प्रदूषण, 
                   दिखती साफ-सफाई है।
पत्ते   हरे    नज़र   अब   आते,
                      धूल न उनपर छाई है।


नहीं   धूल   के   गुब्बारे   अब, 
                    पड़ते सड़क दिखाई हैं।
ज़हर  उगलते   वाहन  में  भी,
                   कमी बहुत कुछ आई है।


लाख   बुराई   हो   इसमें   पर,
                     इसमें कुछ अच्छाई है।
मौत   नहीं  होती  सड़कों  पर, 
                     जब से विपदा आई है।


हुआ  प्रदूषण  कम  नदियों में, 
                  साफ नज़र अब आई हैं।
ज़हर मुक्त  अब  जल  है सारा,
                   नहीं  कीट  या  काई  है।


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

तमसो मा ज्योतिर्गमय
*******************
बसुधा का कण कण प्रमुदित हो,
ज्ञान और विज्ञान उदित हो,
बने व्यवस्था ऐसी  भू पर
जिसमें जन का कल्याण निहित हो।


          क्षत विक्षत हो महिमण्डल
          विस्तृत जो अज्ञान अनय
          तमसो मा ज्योतिर्गमय।
प्रेम दया की ज्योति जगे,
द्वेष क्लेश दूर भगे,
हिंसा का हो सर्वनाश अब
मानव , मानव को न ठगे।


           तिमिर नष्ट हो भूमण्डल का
           मानव-उर हो ज्योतिर्मय
           तमसो मा ज्योतिर्गमय।


सुख समृद्धि सफलता जाए
कण कण में समरसता भाए
युग का बने प्रवर्तन ऐसा
जन जन में नव जीवन आए।
   
            जागे सब में दया भाव
            गूंज उठे संगीत मधुर मय
            तमसो मा ज्योतिर्गमय।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-94
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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हम समझ गये संकेतों से । 
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एक दिन मेरी प्यारी दुनियाँ, 
            मेरे सपनों मेंं आई थी । 
मै समझा कोई पास खड़ा, 
          जैसे  कोई परछाई थी ॥ 


हौले से मेरे कानों मेंं , 
          सागर की लहरें टकराई । 
झुर झुर बह रही हवाओं से, 
        मीठी मीठी सुगन्ध आई ॥ 


फिर देखा एक विहंगमाल , 
         मेरे वक्षस्थल से गुजरा । 
काले बादल के मध्य तभी, 
   सूरज सागर तट से निकला ॥ 


गुंजन करते भँवरे बोले, 
       देखो ये पुष्प खिल रहे हैं । 
वन जीव जंतु ,जलचर, नभचर, 
      देखो क्या कु़छ कह रहे हैं ॥ 


हम समझ गये संकेतों  को , 
      वे चाह रहे हैं क्या कहना । 
हमने भी आश्वासन दे दी, 
    हमको है नियमो मेंं रहना ॥ 


हम एकाकी जीवन जिएंगे, 
            दूरी पर्याप्त बनाएंगे । 
सद्भाव सुमन बरसाएंगे, 
    मुंह पर हम मास्क लगाएंगे ॥ 


स्वच्छता प्रकृति की है पसंद , 
     हम नियमित हाथ धुलायेगे । 
कर जोड़ कर  हम करते प्रणाम, 
     हम कभी ना हाथ मिलाएंगे । 


फिर दुनियाँ ने हमसे  बोला, 
      क्या तुने पक्का ठान लिया । 
तॊ प्यार करेगें फिर तुमसे, 
   यदि निर्देशो को  मान लिया ॥ 


राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 12-04-2020


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