*मधु के मधुमय मुक्तक*
*दिनांक - १३.०४.२०२०*
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*संभव*
संभव सारे काज हैं,अथक परिश्रम हाथ।
निश्चित प्रतिफल पा रहे,दृढ़ निश्चय के साथ।
यह संभावना हो रही, लक्ष्य खड़ा मजबूर,
लक्ष्य भेद संभव करो,विजय तिलक हो माथ।।
संभव है हर बात तब,सहज सफल व्यवहार।
बिना चाह के कार्य से, होता है उपकार।
सदा चाह हो राष्ट्र की,उत्तम पथ निर्माण,
यही वास्तविक जीत है, यही सदा आभार।
सदा करो निज सोच से, भारत का उत्थान।
जगत इसी से हो सुखी, यही परम संधान।
अब सब कुछ सम्भव करो, मन ले सच्ची आस,
आशा और विश्वास में, *मधु* जीवन का मान ।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹