*"समर्पण"*(वर्गाकृत दोहे)
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*सहज समर्पण से मिले, कर्ता को आनंद।
काज सिद्ध करता सदा, काल-कर्म पाबंद।।१।।
(१६गुरु, १६लघु वर्ण, करभ दोहा)
*ईश्वर को अर्पित करो, भाव-सुमन शुचि सार।
जीवन में जो भी मिला, है उसका उपकार।।२।।
(१४गुरु, २०लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)
*पड़कर लालच में कभी, करो न अनुचित कर्म।
अर्पण सुखकर सर्वदा, परमारथ का धर्म।।३।।
(११गुरु, २६लघु वर्ण, बल दोहा)
*लक्ष्य-समर्पित जो रहो, सदा मिलेगी सिद्धि।
शील-सुभग निज कर्म से, होगी सुख की वृद्धि।।४।।
(१५गुरु, १८लघु वर्ण, नर दोहा)
*सच्चा सैनिक कर्म पर, सदा समर्पित होय।
सेवा करते देश की, प्राण भले ही खोय।।५।।
(१६गुरु, १६लघु वर्ण, करभ दोहा)
*अर्पण-अमल मिले नहीं, संबंधों में आज।
शुद्ध नहीं है आचरण, करें घृणित जन काज।।६।।
(१४गुरु, २०लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)
*धर्म सड़क पर बिक रहा, मंदिर बने दुकान।
धर्मी करते मोल हैं, स्वार्थ चढ़ा परवान।।७।।
(१३गुरु, २२लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)
*कर्म कृषक का है बड़ा, करे स्वेद से स्नान।
उपजाता वह अन्न है, बचती सबकी जान।।८।।
(१५गुरु, १८लघु वर्ण, नर दोहा)
*नारी अपने त्याग से, सुखी रखे परिवार।
मर्म समर्पण का महा, जीवन का आधार।।९।।
(१६गुरु, १६लघु वर्ण, करभ दोहा)
*साथ समर्पण के सदा, करना विमल प्रयास।
चलकर आयेगी स्वयं, पल-पल मंजिल पास।।१०।।
(१२गुरु, २४लघु वर्ण, पयोधर दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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