भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कहे माँ अब क्या किसको?"*
(कुण्डलिया छंद)
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*तारा आँखों का बना, माता करे निहाल।
आँख दिखाये सुत वही, होगा तब क्या हाल??
होगा तब क्या हाल? लहू से सींचा जिसको।
माँ पर मढ़ता दोष, कहे माँ अब क्या किसको??
कह नायक करजोरि, सहारा करे किनारा।
गिरी मातु पर गाज, बुझा उसका हिय-तारा।।


*आएगा बेटा नहीं, जाने माँ हर बार।
फिर भी अपलक देखती, वृद्धाश्रम का द्वार।।
वृद्धाश्रम का द्वार, बोध मन को वह देती।
सपनो का संसार, सजा अपनो के लेती।।
कह नायक करजोरि, चैन मन कब पाएगा?
देखे उसकी राह, नहीं जो अब आएगा।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


कुमार🙏🏼कारनिक*  (छाल, रायगढ़, छग)

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   *भीम है मसीहा*
  (मनहरण घनाक्षरी)
  ^^^^^^^^^^^^^^^^
महान    समाज-शास्त्री,
है   महान  अर्थ-शास्त्री,
ज्ञाता   व   रचयिता  ये,
       विश्व में  महान है।
🙏🏼📙
संविधान    है    हमारा,
प्राणों से भी यह प्यारा,
भीमराव    है   मसीहा,
     दलितों का मान है।
🇮🇳🌼
मन  में  न  रखो  खोट,
ऊँच  नीच   सब  छोड़,
भीम की  यही  प्रतिज्ञा,
      दिलाए सम्मान है।
🤝🏻🌻
बुद्ध     रैदास    कबीर,
भीम     हुए    बलवीर,
मानवता   के    प्रतीक,
     दुनियां की शान है।
🌸🙏🏼



(बाबा साहब डॉ भीमराव 
अंबेडकर जी की १२९वीं 
जयंती की  हार्दिक बधाई 
एवं शुभकामनाएँ💐🙏🏼
*कुमार🙏🏼कारनिक*
 (छाल, रायगढ़, छग)
 मगसम-१८११/१८
                 ●●●●●


प्रिया सिंह

आँसू बहने लगा वक्त थमने लगा
साँस जोरों से मेरा भी चलने लगा


आधियां आ गई मेरे घर चल कर
बादलों में भी सूरज वो छिपने लगा


मन परेशान है किसी की सुनता नहीं
दर्द चहरे से मेरे आज दिखने लगा


वक्त गंभीर था मुझमें ढलता गया
हाल मेरा भी अब तो बिकने लगा


छल मेरे यार का मुझको छलता रहा
मैं जज्बात खुद से ही लिखने गया


दौर दिखावे का था मैं दिखाता ही क्या 
गवाही चाँद सितारों का मिलने गया


इश्क बदनाम था तेरी गली में सनम
मैं जाकर वहां पर अब मिटने लगा


इश्क अकेला सा था उसका कोई ना था
कागजी इश्क का भाव भी गिरने लगा


होना क्या था प्रिया हो क्या ये गया
नाम तेरा भी अब तो ये मिटने लगा



Priya Singh


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

पेश ए ख़िदमत हैं इक नई ग़ज़ल 


तुम   जुदा   हो   गए  चैन  आता  नहीं।
बिन  तिरे  अब  मुझे  कोइ  भाता नहीं।


दिल  हमारा  जुड़ा  इस  क़दर  आपसे।
एक  पल  भी   कभी  दूर  जाता  नहीं।


चोट  लगती   इधर  दर्द    होता  उधर।
प्यार   से   तो  बड़ा   कोइ नाता  नहीं।


हैं  लिखें  गीत,  ग़ज़लें  मनोरम  बहुत।
तुम  न  जिसमें  रहो  राग  गाता  नहीं।


ये चमन तो खिला हैं अभी कुछ कमी।
आपके  बिन महक़  कोइ लाता  नहीं।


हर  ख़ुशी अब  मुकम्मल तिरे साथ है।
बिन तिरे कोइ  खुशियाँ  मनाता  नहीं।


कोशिशें की बहुत पर कभी भी "अभय"।
प्रीत    कोई   मिरी   तोड़   पाता  नहीं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


आशा जाकड़,इन्दौर

"कोरोना कहर पर दोहे"


 कोरोना का वायरस, दियो ऐसो बुखार।
 पूरे जग में मच गया, भीषण हाहाकार।।


 करोना के आने से, सीख रहे संसकार। अधुनिकता की दौड़ में भुला दिए आचार।


 कोई आवे जब घरै ,जोड़ें हँस के हाथ।
 फिर हाथन कूँ धुलावै ,तब बैठेंगे साथ ।।


लोग -लुगाई ना मिले ,दुर से ही मुसकाय।
करोना भयभीत किए ,कर रहे बाय-बाय।।


घर में घुसत ही पहले, हाथ धोय सब लोग।    साफ - सफाई से रहे ,फिर लगावत भोग ।।


 करोना ने  दई सजा , घर बन गइ है जेल।
 बालक -बूढ़े भूल गए, सब बाहर के खेल।।


कालिज-आफिस बंद भये,पसरौ सर्वत्र मौन। आवा -जाही रुक गई ,आवेगो अब कौन ?


सिनिटाइजर खतम भये, धोए-धोए के हाथ। अब घरै ही बना रहे , निजपरिजन के साथ।।


देश की हालत देखो , दया करो भगवान।
कोरोना के कहर से त्रस्त हुआ इनसान।।
 
स्वरचित
आशा जाकड़,इन्दौर
 9754969596


सुनीता असीम

मिल रही ये..... सजा कैसी।
डर दिखाता अदा कैसी।
***
दूर तक है यहां अंधेरा ही।
जल रही फिर वहां शमा कैसी।
***
इंतिहा हो गई सितम की भी।
अब सुकून की हो इब्तिदा कैसी।
***
जिन्दगी छीन ले किसी की जो।
मौत उसपर करे दया कैसी।
***
मैं सुकूँ और चैन से जीऊँ।
ये दी तुमने दुआ कैसी।
***
मौसमों से मिलीं बहारें जब।
आ गई थी तभी घटाकैसी।
***
एक हम और तुम हुए थे तो।
बीच में आ गई अना कैसी।
***
सुनीता असीम
१५/४/२०२०


निशा"अतुल्य"

चलने का नाम जिंदगी 
15 .4.2020


चल मन चले दूर कहीं
जहाँ कुछ पल हो मेरे अपने
कुछ बीती बातें कुछ छूटी यादें
जो है अंतर्मन में दफ़न कहीं ।
वो सुखी सी गुलाब की पंखुरी 
बन्द है किसी किताब में आज भी कहीं
छोड़ आई थी जिसे गुजरे पल की तरह
आज फिर याद आई उसकी बड़ी।
चल मन चलने का नाम जिंदगी 
उमड़ते घुमड़ते यादों के बादल 
आज बरस जाएं शायद कहीं
सूख गए थे जो बीते बरसों में 
आँखों में कहीं।
वो वहीं ठिठके खड़े हैं अब भी 
उसी चौराहे पर 
जिसे अकस्मात बिन बताये
छोड़ आई थी मैं युहीं ।
चल मन चलने का नाम जिंदगी
आज ढूंढ लूं उन्हीं गुजरे लम्हों को 
जो खड़े हैं अब भी इंतजार में वहीं 
चल मन चलने का नाम जिंदगी।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


निधि मद्धेशिया कानपुर

प्रेम


प्रेम एक लोचा है
कब किससे हो 
किसी ने सोचा है
हुआ मुझ से था 
रोग को 
न छोड़ा साथ अभी तक
जैसे राधा में कृष्ण घुले
मुझमें रहे रोग मनचले
विवाह उपराँत औषधि 
से हुआ गठबंधन
पवित्र भावो को घिस 
कर किया चंदन
उसी चंदन से जला 
भविष्य का आँचल
निकट भय के हुई, 
सिसकता रहा प्रांजल...



निधि मद्धेशिया
कानपुर


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मूल्यांकन
********
सोने वालोंं जागो,
जाग जाओ।
यह जीवन
यूं ही न खोओ,
इसका मूल्य समझो
इसकी कीमत जानो
अपना विवेक जगाओ।
तुम्हारा धन गया 
तो क्या गया
कुछ  भी नहीं,
तुम्हारा स्वास्थ गया
तो समझो कुछ नहीं गया,
किन्तु 
यदि चरित्र ढहा
तो समझना
जीवन धन ही गया,
सब कुछ निकल गया,
क्यों कि
चरित्र ही धर्म है,
सबसे बड़ा।
चरित्र जीवन की कुंजी है।
जीवन में
चरित्र ही अमूल्य निधि है,
जहां कहीं
जिस किसी
गली -कूचे 
गांव शहर से गुजरेगो
तो, इसी से होगा
तुम्हारा मूल्यांकन।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई)

*भक्ति में शक्ति*
विधा : गीत भजन


भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।
दुनियाँ के पालन हारी,
करते है कृपा तुमसब पर।।
जयबोलो जयबोलो जयबोलो,
आचार्यश्री की जय बोलो।।


जो पूर्व में है पूर्व वाले,
पश्चिम वाले उन्हें नमन करे।
देख ये उत्तर और दक्षिण वाले,
भक्ति रस का आनदं ले,
भक्ति रस का आनदं ले।
भक्तोंकी भक्ति पर कृपा करते,
दुनियाँ के पालन हारी,
दुनियाँ के पालन हारी।।
भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।


कलयुग के भगवान ने हमे,
कितने ज्ञानी मुनिश्री दिये।
जो चारो दिशाओं में घूमकर,
जैनधर्म की पताका फेहरा रहे, 
धर्म की पताका फेहरा रहे।।
भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।
जयबोलो जयबोलो जयबोलो,
आचार्यश्री की जय बोलो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
15/04/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जीवन एक अनबूझ पहेली
मत गहराई में जाओ
दुःख सुख लिखे जो भाग्य में
सहर्ष उन्हें अपनाओ


जिस पर नहीं है बस तुम्हारा
क्यों बार बार दोहराओ
वही मिलेगा जो कर्म किया है
न बार बार पछताओ


जीवन रूपी इस छकड़ा में
कर्मभाग्य के चक्र लगे
कहीं शिखर कहीं गहरी खाई
कहाँ सुलाये कहाँ जगे


समझ उसे तू प्रसाद प्रभु का
नर जीवन अंग बना ले
वहीं है हानि लाभ के दाता
उन्हें हृदय से अपना ले


पुरुषार्थ चतुष्टय का लक्ष्य ले
मूरख दे धर्म पर ध्यान
सब कुछ तेरा यहीं रहना है
धर्म ही मोक्ष सोपान


दुःख सुख तो मन की अवस्था
मन से कभी नहीं हार
कर्म अनल से तपा ले जीवन
कर नारायण से प्यार


डाल के दृष्टि देखा जग सारा
नहीं और कोई आधार
तुझे मिले सुफल व सफलता
तुम भजो"सत्य"करतार।


श्री त्रिलोकनाथाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली

मैं   हिन्द हिंदुस्तान       हूँ।
मैं ऋषि मुनियों  का    ज्ञान   हूँ।
मैं पुरातन मूल्यों का गुणगान हूँ।
मैं  इस पुण्य माटी  की  शान हूँ।।


मैं रामायण की यज्ञ  शाला  हूँ।
मैं गीता   की   पाठ  शाला  हूँ।
मैं महाभारत की भी  हाला  हूँ।।


मैं राम   कृष्ण  की   धरा   हूँ।
मैं एक शान्ति दूत सा खरा हूँ।
मैं इतिहासों  से   भी   भरा हूँ।।


मेरी  विश्व में ऊंची   शान है।
सहयोग   ही मेरा   ईमान है।
पर पराक्रम पर अभिमान है।।


मैंने दुश्मन को  धूल   चटाई है।
बस तिरंगे  की शान   बढ़ाई है।
शत्रु पर  भी   करी    चढ़ाई  है।।


मैं   दुनिया  भर    से      निराला  हूँ।
हर किसी की सहायता में दिलवाला हूँ।
हर रंग समेटे अपने में मैं इक रंगशाला हूँ।।


हर   भाषा  जाति   धर्म और वर्ग है।
जैसे बसता धरती पर कोई  स्वर्ग है।
विविधता में एकता ही हमारा तर्क है।।


गुलशन हरियाली और बाग बगीचे।
झीलें   नदिया   पर्वत   ऊपर  नीचे।
गंगा यमुना इस मिट्टी को       सींचें।।


मेरे मस्तक पर हिमालय सिरमौर है।
तीन  ओर     सागर   का    छोर  है ।
सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं कोई और है।।


मेरे भारत वासी सारी दुनिया में नाम
कमाते हैं।
अपने कौशल और कुशलता का डंका
बजवाते हैं।
हर बड़े पद पर    धाक वह जमाते हैं।।



मैं कॅरोना महामारी में भी विश्व को राह दिखाता हूँ।
मैं 130 करोड़ भारतवासियों की जान
भी बचाता हूँ।
मैं अनुशासन में रह कर कॅरोना को 
हराता हूँ।।


मैं संस्कार संस्कृति का वाहक वान हूँ।
मैं तुलसी, गौतम ,गांधी गौरव गान हूँ।
मैं  अपना हिन्द भारत   देश    महान  हूँ।।


*मैं    हिन्द हिंदुस्तान           हूँ।।।।।।।।।।।।।।।*


*मैं हिन्द हिंदुस्तान हूँ।।।।।।।।।।।।।।।।।*


*रचयिता।।।।।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"मटका"*
"माटी का मटका साथी,
देता सुख-
जीवन में अपार।
देता रोज़गार कुम्हार को साथी,
पाता शीतल जल-
यहाँ सारा संसार।
फ्रिज़ से भी ठंडा जल साथी,
असीम गुण भरे इसमें-
देता सुखद आभास।
मटके का पानी मिले साथी,
पी कर शांत हो मन-
खुशी मिले अपार।
याद आती मटके की कुल्फी साथी,
देती तन मन को ठंडक-
पाता मन सुख अपार।
माटी का मटका साथी,
देता सुख-
जीवन में अपार।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta     15-04-2020


राजेंद्र रायपुरी।

😌😌  बंदी बन घर में रहो  😌😌


बंदी बन घर में रहो, करो नहीं उत्पात।


कहती जो सरकार है,मानो उसको तात।


मानो उसको तात, बात मत काटो कोई।


जस के तस हालात, बनी ना रोटी लोई।


कहता है कविराय, बात है कितनी गंदी।


विपदा में भी अगर, रहें ना घर बन बंदी।


   ‌‌           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल  रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🌹🙏🏻मां शारदे🙏🏻🌹
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
हे मां शारदे
रोशनी  दे ज्ञान की
तू  तो ज्ञान का भंडार है
हाथों में वीणा पुस्तक 
 हंस वाहनी ,कमल धारणी
ओ ममतामयी मां
इतनी कृपा मुझ पर करना
मैं सदाचारी बनूं
सत्य पथ पर ही चलूं
विरोध क्यूं अन्याय का
मुस्किलों में भी न घबराओ
हे मां शारदे
दूर कर अज्ञानता
उर में दया का वास हो
ज्योति से भर दे वसुंधरा
यही मेरी नित्य प्रार्थाना
यही मेरी कामना
यही मेरी वंदना
हे मां मुझे रोशनी दे ज्ञान दे
विद्या विनय का दान दें
हे मां शारदे 
हे मां शारदे।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
📚  कालिका प्रसाद सेमवाल
          मानस सदन अपर बाजार
             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
                  246171


आलोक मित्तल

बस खुशी ही खुशी चाहिए।
ऐसी ही ज़िन्दगी चाहिए ।


मुस्कुराहट रहे होठ पर,
दिल में बस ताज़गी चाहिए।


आदमी आदमी से मिले
दिल में  उसके ख़ुशी चाहिए।


प्यार से बात कर लो कभी,
आप से आशिकी चाहिए।


दूर से दे दिखाई हमें ,
हर जगह रौशनी  चाहिए ।


चाँद हो आसमाँ में खिला,
रात में चाँदनी चाहिए।


** आलोक मित्तल **


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"आध्यात्मिक दोहे"


मन के कलुषित भाव का, सदा करो प्रतिकार।
सुन्दर भाव विचार भर, कर मन का उद्धार।।


मैले मन को साफ कर, देख सदा सियराम।
योगशास्त्र के नियम से,मन पाये विश्राम।।


सीताराम चरण रज, धरकर अपने शीश।
भजन करो गुणगान कर, लेते रह आशीष।।


सुन्दर शिव सत्कर्म से, खुश होते सियराम।।
निष्कामी सियराम से, मिलत अयोधया धाम।।


अवधपुरी अन्तःपुरी हरिहरपुरी महान।
यही क्षेत्र सियराममय,पावन रम्य जहान।।


एक जगह पर बैठकर, करो राम का ध्यान।
तपोभूमि इस अवध में,जन्मेंगे भगवान।।


सात्विकता की ओढ़कर, चादर चलो सुपंथ।
सन्तों के इस पंथ पर, चल लिख पावन ग्रन्थ।।


पावन अमृत भाव से , रच सुन्दर संसार।
आयेंगे श्री राम जी, निश्चित ले अवतार।।


नहीं अवध से राम हैं, राम अयोध्या देश।
राम नाम गुरु मंत्र जप,देखो अवध नरेश।।


राम धर्म दर्शन वही, ज्ञानामृतमय खान।
विश्व विजेता राम प्रिय,सम्मोहक भगवान।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जिन्दगी"


(वीर छंद)


जीना कठिन और आसान, चाहे जैसा इसे बना लो.,
लौकिकता के भागमभाग, को यदि अच्छा समझ रहे हो.,
जाओ कूप में गिर मर आज, मत तब रोना मत पछताना.,
तृष्णामय यह सब संसार, मार रही जग की मरीचिका.,
प्यास लगे तो जल के पास, जाना सीखो सरित किनारे.,
मत देखो बालू की ढेर, चमक रही जो जल सरिता सी.,
वहाँ नहीं पानी की बूंद, केवल आभासी  मायावी.,
जिसे हो गया सच का ज्ञान, उसका जीवन बहुत सरल है.,
लिया जिन्होंने मन को साध, वही जिये हैं आत्मतुष्ट हो.,
मन की इच्छाओं को छोड़, देना ही है सुख का मारग.,
जब तक मन-घोड़ा बेलगाम, तबतक दुःख की स्थायी बेला.,
जीवन को करना आसान,यदि इच्छा है मन में प्यारे,.,
गीता का पढ़ना उपदेश, मन की इच्छाओं को मारो.,
जितनी होगी इच्छा न्यून, उतना ही आसान जिओगे.,
यह सारा मनजनित प्रपंच, मन को मारो मन को साधो.,
हो जायेगा मृतक समान, जब मन तब अति शान्ति मिलेगी.,
कामरोग का होगा नाश, सकल वासना जल जायेगी.,
कठिन लगेगा अति आसान, मुक्त कामना जीवन सरिता.,
यही तपस्या का प्रतिदान, सदा साधना मन असाध्य को.,
सध जायेगा मन इक रोज, सतत साधनारत रहने से।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"प्यार बिन जीवन अधूरा रह गया"


      (वीर छंद)


 प्यार बिना सब जीवन सून, जीवन का यह नामकरण है.,
सारी बस्ती गलियाँ छान, डाला फिर भी मिला नहीं यह.,
गाँव नगर में घुमा खूब, फिर भी पता नहीं लग पाया.,
खोजा इसको चारोंओर, मिला एक-एक मानव से.,
जो भी मिलता कहता जय, हम भी कब से ढूढ़ रहे हैं.,
हर मानव का यही सवाल, मिल जाये तो हमें बताना.,
मैं ही जग में नहीं अकेल, सारे जग को प्यार चाहिये.,
भूखे-प्यासे हैं सबलोग, सबका सिर्फ वही मकसद है.,
दिखते सब हैं यहाँ उदास, भावभंगिमा अति मलीन है.,
खोज रहे हैं सब आनन्द, छिपा हुआ जो प्रेम-त्वचा में.,
सब बोझिल सब जगह तनाव, सभी थकित अरु सभी व्यथित हैं.,
सबके भीतर हाहाकार, मचा हुआ है प्रेम रत्न बिन.,
सभी दिखे दुर्गति को प्राप्त,कोई नहीं आत्मतुष्ट सा.,
सब भीतर से हैं बेचैन, खोज रहे हैं सब कस्तूरी.,
पता नहीं है नहीं ठिकान,फिर कैसे संभव है पाना.,
कुंडल का कुछ नहीं है ज्ञान, खोज रहे सब बाह्य लोक में.,
बाह्य जगत के दुःख को देख, वापस आया स्वयं स्वयं में.,
किया आत्म का जीर्णोद्धार, मंदिर दिखा एक अद्भुत सा.,
उसमें बैठे सिताराम,जाप कर रहे थे अपना ही.,
नहीं द्वैत का नाम-निशान, एकाकार ब्रह्म-ब्रह्माणी.,
प्रकृति-पुरुष का भेद विलुप्त, हो जाता तब प्यार दीखता.,
यह जीवन का असली सार, खुद प्रवेश कर अन्तःपुर में.,
बाहर दुःखियों का संसार, कुछ भीबाहर नहीं है मित्रों.,
यदि पाना है असली प्यार, प्यार करो तुम खुद से नियमित.,
भीतर इक सुन्दर संसार, अति सुरम्य प्रिय परम मनोहर.,
करना विकसित यह संसार, प्यार भरा बस प्यार भरा है.,
कर लो जीवन को उजियार, खालीपन सब भर जायेगा.,
बन इक संस्कृति सहज महान,
बांटो प्यार स्वयं का सबको.,
आशा-तृष्णा के उस पार, जा आशा के दीप जलाओ.,
यह सारा संसार हताश, बनकर प्यार स्वयं वितरित हो.,
फूले-फले सकल संसार, आत्म-प्यार का मंत्र पढ़ा दो।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"माँ सरस्वती का वन्दन कर"


       (वीर छंद)


आदि शक्ति विद्या अवतार, माँ सरस्वती का वन्दन कर.,
विद्याओं का ही संसार,रचती रहतीँ सदा सहज मन.,
बुद्धि विधाता प्रिय साकार, लगा रहे मन माँ चरणों में.,
निराकार उनका विस्तार, कण-कण में हैं वही समायी.,
बुद्धिदायिनी हंस सवार, खोज खबर लेतीं घर घर की.,
लेकर पुस्तक का आकार,  पाठ पढ़ातीं ज्ञान सिखातीं,.,
धारण करतीं श्वेताकार, सात्विकता की सहज नींव हैं.,
सबमें भरतीं शुद्ध विचार,ब्रह्ममयी माँ अति शीतल हैं.,
धरकर चन्दन का आकार,करतीं दिव्य सुगन्धित जग को.,
लेकर दुर्गा का अवतार, करती रहती राक्षस वध हैं.,
दीन-दुःखी से करतीं प्यार, महा दयालू माँ कृपालु हैँ.,
चाह रहे हो अगर सुधार, माँ चरणों का नित वन्दन कर.,
चाह रहे हो यदि उद्धार,माँ सरस्वती का पूजन कर.,
माँ सरस्वती ही नित सार, लिखना पढ़ना करना वन्दन।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

शोकहर छंद


मल-मल कर धो, कर-मल तज दो,
                 बन जाओ फिर, तुम दानी।
दूरी धर लो , धीरज  कर लो,
                  हर सूरत हो, अनजानी।।
प्रेम बढ़ाओ , हृदय समाओ ,
                  गात बचा रह , हो ठानी।
घर में रहना , सबका कहना ,
                  मत करना प्रिय, मनमानी।।


कौशल कुमार पाण्डेय "आस"


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर सम्पादक काव्यरंगोली

2--कोरोना को हराना है----दहसत में है दुनियां ,दहल गई है दुनीयाँ ,बदल गई दुनियां,     दुनियां के  व्यवहार है।। 


                  
सड़के ,गलियां और मोहल्ले     होने लगे वीरान रौनक बाज़ारों की  गायब कोरोना का हाहाकार।।   


                   एक दूजे रखना दुरी है मजबूरी, बंद हुआ  हाथ गले  मिलने  की संस्कृति संस्कार।।    



                    खांसी सुखी तेज बुखार सांसो को परेशानी समझो  दस्तक दे रहे यमराज।। 


                         
 कहर यही कोरोना है अब तक नहीं इलाज़ ।।   


               धन्वन्तरि भी पिट रहे है माथा सूझे नहीं कोई नुख्सा उपाय ।।                          


    वैद्य सुखेंन भी सांसत में ना कोइ मूर्छा ना कोई शक्ति वाण।।


 कोरोना ऐसी आफत है सूखे जान जाय।।                          


हम है भारत वासी हमारे भाग्य है भगवान ।।                     


 हम सब लड़ना और निखरना जीवन जीने का अलग अंदाज़।।    
                    आओ सब मिलकर कोरोना को कहे बाय।। 


                        
 आँख,नाक  ना छुएं बारम्बार पश्चात का फैसन हाथ मिलाना त्यगेंगे हम सब भारत वासी नमस्कार का सुबह शाम दिन रात।।                  
                नाक  ढ़केंगे मुहँ ढ़केंगे स्वच्छ पर्यावरण का करेंगे सत्कार ।।                         



   हाथ स्वछ रखेंगे कोरोना को बतलायेंगे औकात।।                   


 ललकारा है  दस्तक देकर कोरोना ने कर देंगे कोरोना को परास्त।।                         


 कोरोना का क्या है रोना ,कोरोना को ही है रोना  विश्व विजेता होकर भी भारत में जायेगा हार।।            


 हमने दुनियां को दिखलाई है हर दहसत में नई राह ।।              


       जागृत हर भारत वासी होगा  कोरोना होगा साफ़ ।।          


दहसत का दंश अंश मिटेगा ना होगा हाहाकार।।                   


उठो संग अब लड़ते है कोरोना से बिना किसी हथियार।।              


 हम है भारत वासी हमारी जीवन शैली संस्कृति संस्कार कोरोना की आफत से लड़ने की शक्ति और हथियार।।                          


  नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सीमा शुक्ला अयोध्या

गज़ल
छुपाकर प्यार करतें हैं जिसे हम इस ज़माने से,
मिलें जब बीच महफ़िल में उसे कहतें हैं अंजाना।


बुझाकर प्यास मीठी जो करे बर्बाद दामन को,
जहां पीते पिलाते हैं उसे कहते हैं मैखाना।


नज़र में हम जिसे अपनी समझते हैं कि है अपना,
जमाने में वही अक्सर हुआ करता है वेगाना।


हमेशा जो हमारे प्रति करे ऐलान चाहत का,
वही बेचैन करता है हमें कहकर के दीवाना।


जिसे गम हो  न मरने का वफ़ा की राह पर चलकर,
मिटा दे जो स्वयं निज को वहीं होता है परवाना।


न सिर नीचा तुम्हारा हो जिओ तो शान से सीमा,
उसूलों से जो हट जाओ तो अच्छा है कि मर जाना।


सीमा शुक्ला अयोध्या


लता@कुसुम सिंह*अविचल*

कोरोनॉ-व्याधि-- संकट और चिंतन
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संकट की है घड़ी विकट,एक जुट होकर लड़ना होगा,
आपसी भेदभाव से उठकर,कोरोनॉ से भिड़ना होगा।
हो रहा विषैला पर्यावरण,यह सबसे बड़ी चुनौती है,
प्रकृति से छेड़छाड़ अनुचित,नितप्रति कर रही पनौती है।
क्रुद्ध हुई प्राकृतिक सृष्टि,प्रतिक्रियात्मक प्रकोप दिखाती है,
ऋतु चक्र,कालक्रम बदल बदल,मानव को लक्ष्य बनाती है।
अब भी हम संभले नहीं अगर,यह आफत कहर मचाएगी,
प्राकृतिक चक्र यूं ही टूटेगा,सृष्टि पर विपदा आएगी।
नित नई व्याधियों की आहट,नई नई विपदाओं की दस्तक,
वैज्ञानिक शोध पड़े चक्कर में,चिकित्सा शास्त्र ज्ञानप्रवर्तक
मानव बम,मानव जनित विषाणु,है सर्जक दानव का मानव
मानव मूल्यों को भुला दिया,स्वयंभू मानव बना महादानव।
उल्टी गिनती आरंभ हुई अब,बनना था विश्व की महाशक्ति,
विध्वंसक ज्ञान विज्ञान लेकर,हो रही सृष्टि की महाविनष्टि।
विज्ञान हमारा सहयोगी,पर हावी जब हम पर होता है,
तो दनुजों की दुर्जेय शक्ति से,निज अहंकार में खोता है।
मस्तिष्क संतुलन खो करके,अनुचित करने लग जाता है,
दैवीय योग,अस्तित्व छेड़, अपना प्रभुत्व समझाता है।
है समय अभी सचेत जो हम,त्यागे विनाश के सब हथियार,
विश्वपटल समग्र होगा समृद्ध,ले विज्ञान ज्ञान के चमत्कार।
है भले धर्म सम्प्रदाय पृथक ,है एक हमारा स्वर परचम,
मानव संस्कृति से एक हैं हम,भारत की शान न होगी कम।
स्वीकार करें हर एक चुनौती वरदान हमें नचिकेता सा,
जीवन अपना संघर्षशील,सौभाग्य अजेय विजेता का।
हम सजग रहें भयभीत नहीं,हम श्रेष्ठ,सहिष्णु,धैर्यवान,
वनवास नहीं,गृहवास मिला है,समझो हम हैं भाग्यवान।
डटकर टक्कर देंगे इसको,दुम दबा कोरोनॉ भागेगा,
स्वीकार चुनौती है हमको,विजयी भव अपना हिंदुस्तान।
#कोरोनॉ                         
लता@कुसुम सिंह*अविचल*


कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा छत्तीसगढ़

जनजाणरण में अमित की कुण्डलिया


कठिन  परीक्षा  की घड़ी, होता  अब  आरंभ।
अधिक कड़ाई और अब, मत भरिए दम दंभ।।
मत  भरिए  दम  दंभ, बैठकर  घर पर  रहिए।
तीन  मई  तक  बंद, लाकडाउन  को  सहिए।।
करे अमित अरदास, स्वयं कीजिए समीक्षा।
होवे  कहीं  न  चूक, ले  रहा समय  परीक्षा।।


कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़


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