एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*विषय,,,,,,,,,,नारी सम्मान,,,,,,,,*
*शीर्षक,,,,,नारी, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक*
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
*रचयिता,,,,  एस के कपूर  "श्री हंस"*
*पता,,,,,, 06 , पुष्कर एनक्लेव*,
*टेलीफोन टावर के सामने*,
*स्टेडियम रोड, बरेली  243005*
*मोब ,,,,,,9897071046*
*,,,,,,,,8218685464*


*विधा,,,,,,,,,मुक्तक माला*


*1,,,,,,,,,*
माँ का आशीर्वाद जैसे कोई
खजाना होता है।


मंजिल की   जीत का   जैसे
पैमाना होता है।।


माँ   की   गोद   मानो  कोई
वरदान  है  जैसे।


चरणों   में  उसके  प्रभु   का
ठिकाना होता है।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


अहसासों का अहसास मानो
बहुत   खास है माँ।


दूर होकर भी लगता  कि बस
आस  पास   है   माँ।।


बहुत खुश नसीब होते  हैं जो
पाते माँ का आशीर्वाद।


हारते  को  भी  जीता  दे  वह
अटूट  विश्वास है  माँ।।


*।।।।।।।।।।।3।।।*


अच्छा    व्यवहार     बेटीयों     से
निशानी  अच्छे   इंसान  की।


इनसे  घर की  बढ़ती  शोभा जैसे
उतरी परियाँ  आसमान की।।


बेटी  को भी दें  आप  बेटे   जैसा
घर  में  प्यार   और  सम्मान।


जान लीजिए    बेटियों  के  जरिये
ही आती रहमते भगवान की।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब।।।।9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरा कोई न सहारा बिन तेरे
श्री राधे कृष्णा मेरे
दुःख दरिद्र कन्हैया मुझे घेरे
को कष्ट हरे प्रभु मेरे


क्लिष्टताओं भरा ये जीवन मेरा
स्वामी हिय डारो डेरा
कोई आये बनकर शुभ्र सवेरा
हो सुख संतोष घनेरा


कमलकांत कमलाक्षी मेरे कृष्णा
नहीं व्यापै मुझे तृष्णा
हे माधव निर्मल चित्त नारायणा
बनूं मैं धर्म परायणा


चन्द्रज्योत्सना सी उज्ज्वलता लिए
सृष्टिकर्ता भव बस किए
स्वामी विश्वबंधुत्व का भाव लिए
"सत्य"सद्भाव लिए जिए।


श्री युगलरूपाय नमो नमः🌹🌺💐🍁🌸🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"ऐसे दीप जलाना"*
"दूर हो अंधेरा मन का,
यहाँ ऐसे दीप जलाना।
भूले कटुता जीवन की फिर,
ऐसे गीत गुनगुनाना।।
दीप से दीप जला साथी,
ऐसा कर दे उजाला।
भटके न पथ से फिर,
साथी तुम साथ निभाना।।
दीप से दीप जला देखो,
ऐसा होगा उजाला।
छाया नहीं होगी तम की,
पग पग होगा उजाला।।
झूठ-फरेब की धरती पर,
सच का दीपक जलाना।मिटा अंधकार जीवन का,
उसे उज्ज़वल बनाना।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunil
ःःःःःःःःःःःःःःःः
       16-04-2020


राजेंद्र रायपुरी

😌😌    एक निवेदन    😌😌


मारिए पत्थर न उनको,
                     देश सेवा कर रहे।
आप तो हैं जानते ही, 
                  लोग कितने मर रहे।
देश सेवा में लगे जो,
                 मान उनका कीजिए।
ये सभी इंसान ही हैं,
             पशु समझ मत लीजिए।


छोड़कर घर-बार अपना,
                   आपकी  सेवा  करें।
क्या नहीं दायित्व अपना,
                  हाथ सिर उनके धरें।
हाथ धरना भी ज़रूरी,
                 हम  नहीं  हैं  मानते।
पर  सुरक्षा  है  ज़रूरी,
                    ये  बख़ूबी  जानते।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌞प्रार्थना🌞 
 प्रभु नाम जपने से नवजीवन मिलता है ।
तन मन का मुरझाया , उपवन खिलता है।
अन्तर के कोने में इक दीपक जलता है।
               प्रभु नाम जपने से .....


संसार समुन्दर गहरा,हां हां गहरा,
 कर्मो का हर ओर लगा है पहरा।
सब छोड़ जगत की माया, हां हां माया,
ले लो तुम प्रभु शरण की  छाया
तन मन का मुरझाया उपवन......


प्रभु सुमरन से, संताप सभी टल जाएं।
तूफां में भी पार भी, भव सागर से पार पाते है,
सब बंधन से मुक्त ,हो जाते  है
तन मन  का मुरझाया उपवन...
🌹🌹🌹🌻🌻🌻🌷🌷🌷
     कालिका प्रसाद सेमवाल
🌴🥀🔔🌸🌾🏵🚩🍂💦


आचार्य गोपाल जी  उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले 


 कैसा है आदमी


आदमी को आज मारता है आदमी
आदमी की पगड़ी उछालता है आदमी
आदमी को भ्रम मे डालता है आदमी
आदमी की उन्नति से जलता है आदमी
आदमी को सदा छलता है आदमी
आदमी से ही तो पलता है आदमी
आदमी की धैर्य को परखता है आदमी
आदमी को भ्रम मे भी रखता है आदमी
आदमी की धैर्य से डरता है आदमी
आदमी के रुप पर मरता है आदमी
देखो जग मे क्या क्या करता है आदमी
आपनी करनी का फल भुगतता है आदमी
बिधाता की अजीब रचना है आदमी
कैसा है आदमी हॉ कैसा है आदमी



बेबस न्याय की देवी


है यह न्याय की देवी, मत समझो बेकार
आंखों पर पट्टी बांधे, खड़ी न्याय के द्वार
अपना पराया देखे ना, करे उचित व्यवहार
 दोषी को ये देती सजा, सच्चे पर उपकार 
अंधा ये कानून नहीं , अंधी है सरकार
अंधे सारे लोग वो, जो इसके ठेकेदार
लूट रहे नित दिन इसको , बनकर वो गद्दार 
कहते हैं खुद को सदा , जो इसके पहरेदार
हाथ तराजू लिए खड़ी, बेबस और लाचार 
देख रही है मूक बन , वो होते अत्याचार
निर्दोषी को सजा मिले, दोषी को सत्कार 
करे क्या न्याय की देवी , जब फैला भ्रष्टाचार
अजब देश की विधि है, किंचित करें विचार
अधिवक्ता सब मौज करे, यही विधि आधार
बिकते हैं न्याय शिरोमणि, सत्य की होती हार 
कब तक ऐसी चलन रहेगी,प्रभु तू ही इसे सुधार


आचार्य गोपाल जी 
           उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले 
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"विकास',


विकसित तन मन विकसित उर हो,
विकसित परिजन विकसित पुर हो,
विकसित पास- पड़ोस आवरण,
विकसित समता अन्तःपुर हो।


विकसित बुद्धि और आत्मालाय,
दिखें हर जगह  प्रिय शिव-आलय
वातावरण सुगन्ध सृजनमय,
विकसित ज्ञान सुगम विद्यालय।


विकसित भाव विचार विविध हों,
विकसित चिन्तन मनन सुहृद हों.
हो विकास अन्तिम मुकाम पर,
विकसित जनमानस हर विध हो।


विकसित भूमि पताल गगन हो,
विकसित वारिधि विकसित जड़ हो,
हो विकास का काम चतुर्दिक,
विकसित जननायक सज्जन हों।


विकसित लेखक और लेखनी,
विकसित योग और योगिनी,
हों अवतरित शव्द सुन्दर सत,
विकसित जगती विश्व मोहिनी।


नारायण को क्षीर चाहिये,
इस दुनिया को वीर चाहिये,
सुन्दर मूल्यों का विकास हो.
सबको प्यारा पीर चाहिये।


निर्मलता अरु कोमलता हो,
लिखा भाग्य में प्रेमलता हो,
हो बयार शीतल सरगम का,
सबमें विकसित मानवता हो।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


स्नेहलता नीर रुड़की

गीत
****
 *मापनी -16/16(मत्त सवैया छंद)* 
अनुबंध न टूटें रिश्तों के ,आओ कुछ पल संवाद करें ।
इस रंग बदलती दुनिया में, कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
1
छल-दंभ-स्वार्थ,विद्वेष-भाव, रिश्तों में कटुता घोल रहे।
सिक्कों के बदले सच्चाई,क्यों रोज तराजू तोल रहे।।


सौजन्य और सद्भावों से,अंतर्मन को आबाद करें।
2
कोमल जिह्वा को क्यों कटार,समझें क्यों रार-प्रहार करें।
मिलकर धरती को स्वर्ग-लोक ,हम सकल विश्व- परिवार करें।।


क्यों करें अपावन वचनों को,बोली को अनहद नाद करें।
3
पश्चिमी हवाएँ ललचातीं,पर साथ नहीं हमको बहना।
पुरखों की सीखों में ढलकर,सुखदायी- छाँव तले रहना।।


शुभ संस्कार से अभिमंत्रित,पक्की अपनी बुनियाद करें।
4
मनुहार करें हम प्यार करें,अंतर् को पारावार करें।
दूजे की राहों के कंटक,बनकर क्यों अत्याचार करें।।


अपनी अनुरागी कुटिया को,हम चलो राज-प्रासाद करें।
5
रिश्तों की क्यारी-क्यारी में, अपनेपन का अहसास भरें।
चाहत के फूल पिरोकर हम,जीवन को मोती-माल करें।।


कड़वी जहरीली यादों को,अंतर्घट से आजाद करें।


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*

(015)     🙏🏻 *प्रतिभा प्रभाती* 🙏🏻


तुम भले भूल जाओ , भूली नहीं प्रणामा ।
जो समझ के न समझे , उसे क्या बताना ।
मौसम न भूले आना , ले लो मेरा प्रणामा ।
मात तात के सर को , कभी न झुकाना ।
प्रतिभा प्रभाती का , सदा साथ निभाना ।
गुरुवर को है नित , चरण वंदन प्रणामा ।
सदा  प्यार अपना , है क्यूँ कर  जताना ।
मन भाव भंगिमा में , नेह स्नेह ही लुटाना ।
नमन प्रभाती ले लो , यह नित का प्रणामा ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  15.4.2020.....


______________________________________


सम्राट की कविताएं

कविता---शीर्षक ---क्रांति


लोगों की सोच बदली,
सब ने थामी एक एक मशाल,
एक लहर सी दौड़ी चारो ओर,
तन मन में हुआ हाहाकार,
जर्रा जर्रा थर्राया, कांप उठा आसमान,
एक चिंगारी जो फूटी,
कुछ मुर्दो में भी आई जान,
दबे कुचलों का साहस बढ़ा,
आखों में स्वप्न सुनहरे आए,
कुछ दबंग सहमे,
कुछ राजनेता भय खाये,
जन मन की आवाज बन,
वो मशाल बढ़ने लगा,
आतताइयों के आगे,
सिर उठा तनने लगा,
देख साहस उस मशाल की,
बड़े बड़े घबराए थे,
कुछ ऊची टोपी वाले,
सिर झुका उससे मिलने आए थे,
राह में कुछ प्रचंड आँधियों ने उसे ललकारा था,
पर वो कहाँ डरने वाला था,
उसे सच्चाई और ईमानदारी का सहारा था,
वो अविचल खड़ा था,
उन प्रचंड तूफानों में,
जैसे जुगनू टिमटिमाता,
अमावस्या के घोर अंधियारे में,
आखिर उसने विजय पाई,
कितनों को नव जीवन दान दिया,
एक अकेले ने न जाने,
कितने मुद्दों का समाधान किया,
भूख, गरीबी, बेरोजगारी मिटाई,
यहाँ तक कि भ्रूण हत्या का निदान किया,
एक बार जो जाली ज्वाला ,
सदियों तक बुझ न पाएगी,
जब भी जरूरत आन पड़ेगी,
फिर से नई क्रांति होगी,
फिर से नई मशाल जल जाएगी,
फिर से नई मशाल जल जाएगी।


©️सम्राट की कविताएं


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः.....*पहला अध्याय*
संख युधिष्ठिर बिजय अनंता।
नकुल सुघोषय घोष दिगंता।।
    संखइ मणिपुष्पक सहदेवा।
     संख-नाद कीन्ह कर लेवा।।
दोहा-कासिराज-धृष्टद्युम्न अरु, सात्यकि औरु बिराट।
        द्रुपद-सिखण्डि-अभिमन्यु अपि,औरु सभें सम्राट।।
        कीन्ह भयंकर संख-ध्वनि,द्रोपदि पाँचवु पुत्र।
         संख-नाद, रन-भेरि तें, ध्वनित सकल दिसि तत्र।।
भय बड़ कम्पित मही-अकासा।
सुनतहि कुरु-दल भवा उदासा।।
     कर गहि निज धनु कह तब अर्जुन।
     हे हृषिकेश बचन मम तुम्ह सुन।।
लावव रथ दोउ सेन मंझारे।
हे अच्युत,श्री नंददुलारे।।
     चाहहुँ मैं देखन तिन्ह लोंगा।
      जे अहँ करन जुद्ध के जोगा।।
जे जन जुद्ध करन यहँ आये।
दुर्जोधन के होय सहाये।।
    तब रथ लाइ कृष्न किन्ह ठाढ़ा।
    मध्य सेन दोउ प्रेम प्रगाढ़ा।।
भिष्म-द्रोण सब नृपन्ह समच्छा।
सेनापति जे कुरु-दल दच्छा।।
     लखहु सभें कह किसुन कन्हाई।
     हे अर्जुन निज लोचन बाई।।
पृथापुत्र अर्जुन लखि सबहीं।
भ्रात-पितामह-मामा तहँहीं।।
     औरु ससुर-सुत-पौत्रहिं-मीता।
      सुहृद जनहिं लखि भे बिसमीता।।
लखि तहँ सकल बंधु अरु बांधव।
कुन्तीसुत कह सुनु हे माधव।।
दोहा-जुद्ध करन लखि अपुन जन,सिथिल होय मम गात।
      कम्पित बपु मुख सूखि गे, निकसत नहिं कछु बात।।
गाण्डिव धनु कर तें गिरै, त्वचा जरै जनु मोर।
सक न ठाढ़ि मम मन भ्रमित,सुनहु हे नंदकिसोर।।
               डॉ0हरि नाथ मिश्र
               9919446372      क्रमशः.......


कुमार🙏🏼कारनिक*  (छाल, रायगढ़, छग

°°°°°°°°💐💐💐
   *भीम है महान*
   मनहरण घनाक्षरी
   ^^^^^^^^^^^^^^
बाबा  भीम  है  महान,
शिल्पकार   संविधान,
मानवता  के   मसीहा,
    उन्हें याद कीजिये।
💫🌺
नव - भारत   निर्माता,
नारियों के मुक्तिदाता,
देश   सुधारक   भीम,
     जयभीम बोलिए।
💫🌸
तोड़े  वो   हर  दीवार,
छोड़   दिया  परिवार,
बाबा  के  कठिन राह,
        मिलकर रहिए।
💫🌷
दिया  हमें  अधिकार,
भूल    गये   उपकार,
करे   सबका  हिसाब,
    छुआछूत छोड़िए।



*कुमार🙏🏼कारनिक*
 (छाल, रायगढ़, छग)
                 °°°°°°°°°


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

मत्तगयन्द सवैया


रूप  बड़ो  मनमीत  लगें  यहु, होंठन  से  रस धार   बहाती।
प्रीत करें हिय को वह पावन, आँखिन को अब खूब सुहाती।
प्यार  पगी  बतियाँ  करके इस,भूमि मरू जल भी  बरसाती।
चाल  चले  हिरनी सम खूबइ, झाँपि सदा मुख वो मुसकाती।



डारति केश लटें मुख शोभित होंठन से मधु भी छलकाती।
देखत खोवइ होश  सबै अब वो  अइसे निज  नैन  नचाती।
रूप अनूप  लिये  मनमोहक ओट झरोखन  के  मुसकाती।
औरु  ख़यालु न आवति  हैं हिय रूप मनोरम नेह जताती।



पात्र लिए जल को निज हाथन, रूप अनूप बड़ो मन भाये।
चंचल नैन  करें बतियाँ  खुद, घूँघट  को  पट  खूब सुहाये।
नीर  बहाय  रही  घट से  वह,  नेह  सदा  उर बीच समाये।
देखति भान रहे कुछ  ना अब, काम सबै मन से बिसराये।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


विकास शर्मा

मखां आज सारी हद पार होगी,
लॉकडाउन म्ह गरीब मार होगी।


एक दम तै बैरण लड़ण लाग्गी,
जो काम नै माड़ी सी वार होगी।


मैं बोल्या भागवान थम बी ज्या,
इतनी सुनदे ऐ लत्तां तै बार होगी।


बोली पहल्यां दो कामां की हाँ भर,
भाइयों खड़ी ले कै तलवार होगी।


मैं बोल्या कर दयूंगा तू काम बता,
के करदा बात मेरे तै लाचार होगी।


बोली सांझ की रोटी तू ऐ पोवैगा,
काम करदे करदे मैं बीमार होगी।


दूसरा पानी के पतासे बना दिए,
देखै घराँ पड़ी इमली खटार होगी।


इतनी सुनकै बात समझ म्ह आई,
या क्यूँ न्यू लड़ण खातर त्यार होगी।


जीभ चटोरी इसकी डंक मारै थी र,
पानी के पतासे बनै तै बंद रार होगी।


"विकास" लॉकडाउन ना यू काल स,
मैं बना जोरू वा मेरी भरतार होगी।


©® विकास शर्मा


विकास शर्मा

घूरती हुई नजरों का ईलाज कर दो,
बस उनमें संस्कारों से लाज भर दो।
दामन दागदार होने से बच जाएंगे,
एक सिर कलम तुम आज कर दो।


खुद को तुम साबित बाज कर दो,
इस क्रांति का तुम आगाज कर दो।
वो अपना कहाँ जो नोच डाले रूह,
काट कर गर्दन दफन राज कर दो।


आज से तुम शुरू ये रिवाज कर दो,
मुंह से निकलें ना अल्फाज कर दो।
औरत ही दुश्मन है औरत की अब,
इनके नाम बुराई का ताज कर दो।


शर्म छोड़कर बुलंद आवाज कर दो,
बस पूर्ण तुम इतना सा काज कर दो।
"विकास" देगा तुम्हारा साथ हमेशा,
ऐसा ना हो रिश्तों का लिहाज कर दो।


©® विकास शर्मा


आचार्य गोपाल जी बरबीघा वाले

नदी


मैं नदी हूं 
बिना रुके चलती रहती हूं
बहना मेरा काम है
हां नदी ही तो मेरा नाम है
तुमने देखा होगा मुझे
ऊंची चोटी से धारा पर गिरते हुए
मैं कभी थकतीनहीं 
मैं कभी रुकती नहीं 
मैं कभी उबलती नहीं
देख किसी को जलती नहीं 
सदा मस्तानी चाल अपनी चलती रही
ना नाम की चिंता
ना चेहरे पर आती मलिलता
धरती को हरियाली की चुनरी उढ़ाती
कभी प्यासे को मैं पानी पिलाती
उन्मुक्त भाव से स्वयं मिटने को
सदा सागर की ओर बढ़ती ही जाती
मेरी जवानी
है मेरा यह पानी
रुकना मेरा है मौत की निशानी
रे मानव
तू भी तो मेरा ही प्रतिबिंब है
फिर क्यों मुझसे भिन्न है
क्यों तेरी आंखों की सुख गई है पानी
बोझिल क्यों हो गई तेरी जवानी
 
आचार्य गोपाल जी 
            उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


 


आचार्य गोपाल जी बरबीघा वाले

मगही लोकगीत  
चैतावर की तर्ज पर


घर में रहो ना


फइलल बीमार कोरोना 
हो रामा घर में रहो ना
शासन-प्रशासन के मानो कहनमां हो रामा
घर में रहो ना
फइलल बीमार कोरोना 
हो रामा घर में रहो ना


आइल चीन देश से ई बीमारी
बुहाना शहरबा से फइलल महामारी
फेफड़ा के करें नुकसानमा रामा हो
घर में रहो ना
फइलल बीमार कोरोना 
हो रामा घर में रहो ना


करबा परहेज तो जान बचजईतो
‌ई लापरवाही से सबके सतैतो
ले जाए तो सबके परनमा हो रामा
घर में रहो ना
फइलल बीमार कोरोना 
हो रामा घर में रहो ना


घरही रहो और मास्क लगाला
बार बार हाथ धोके सेनीटाइजर  लगा ला
राखो तो आपन ध्यानमा हो रामा
घर में रहो ना
फइलल बीमार कोरोना 
हो रामा घर में रहो ना


आचार्य गोपाल जी 
         उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


अभिलाषा देशपांडे    मुंबई

प्रकृती का अभिशाप 
वाह रे मानव! वाह रे मानव
शक्ती तेरी अपार मानव
उष्मा प्रचंड  हो रही! 
हिमखंड नष्ट हो रहे! १!
 वनस्पतिया लुप्त हो रही!
 सागर उबल उफल रहें! 
हरी-भरी वसुंधरा का
करदे अब संहार मानव!२!
वृक्षों  को तू काट मानव
कर उर्जा का उपहास मानव
तू सर्वशक्तीमान मानव 
दे सारा विधान मानव!३!
 रुदन का रहा हिमालय
जीव त्राही त्राही कर रहें
देख तेरा आत्मबल देवता
चकित हो रहें !४!
 धरापर अवतरण से देव 
अमरनाथ भी डर रहें
तू चलाचल अग्रेसर 
कर अपनी आँखे बंद मानव!५!
स्वरचित
-अभिलाषा देशपांडे 
  मुंबई


डॉ वसुधा कर्नाटक

माँ रोज मरती है 


माँ तो माँ होती है
फिर भी पराया 
धन कहलाती है
रोज रोज करती है
हँसते हँसते सबकी सेवा
सबके लिए जीती है
कभी ईच्छा जताती नही
अपमान सहन करती है
फिर भी मुखपर
स्मित हास्य रखती है
भूखे पेट सो जाती है
सुनती सबकी, कहा सुनी
फिर भी करती मिन्नते 
हजार सबके लिए
रहती सबके साथ
मगर जीती है अकेले में
माँ जी कर भी
रोज रोज मरती है.....।।


माँ तो माँ होती हैं
जीती हैं सबके लिए
करती हैं सारे काम
सुबह -शाम और रात
थकान उसके मुख पर
कभी झलकती नहीं
गम के आँसू पीकर
सदा स्मित हास्य रखती हैं
दिल किसी का ना तुटे
इसलिए सबके मनपसंद के
चीजें हमेशा बनाती रहती हैं
चाहे हो सर्दी या बुखार
फिर भी कमर कसके
रसोईघर में खड़ी रहती हैं
हार कभी  मानती भी नहीं
बड़ी सहनशिलता से भरी
ममतामयी - करुणामयी होती हैं
दूसरों के लिए जीती हैं 
माँ तो माँ होती
रोज रोज मरती ......।।
डॉ।। वसुधा


संजय जैन (मुम्बई)

*रूठ गये भगवान*
विधा : कविता


आशा निराशा के,
इस दौर में लोगो।
कितना कुछ अब,
मानो बदल रहा।
कलयुग में अब,
सब कुछ बदल गया।
और कलयुग का अर्थ,
अब सार्थक हो गया।।


सोचा भी नही होगा लोगों ने, 
की ऐसे दिन भी आएंगे।
भगवान भी अपनो से, 
मानो रूठ जाएंगे।
और अपने द्वार भी
भक्तों को बंद कर देंगे।
न देंगे खुद दर्शन और 
न पूजन करवाएंगे।।


भगवान खुद एकांत,
वास में चले गए है।
और एकचित होकर, 
खुद भी चिंतित है।
मानव के पापो का
ये परिणाम है।
जो भर चुका था तो
उससे फूटना ही था।।
और अपने कर्मो को
भोगना भी तो है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/04/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*आज में जीओ*
विधा: गीत 


जो इंसानों को सिर्फ, 
काम से ही जानते।
उनके नामो से वो,
नहीं रखते है मतलब।
काम से काम तक,
ही रखते है मतलब।
ऐसे इंसानों को,
आप क्या कहेंगे?
जो सिर्फ कामों को,
ही सराहते है।
और अपनी इंसानियत,
व्या तक नही करते।
फिरभी श्रेष्ठ समाज में,
ये ही गिने जाते है।।


कल से कल तक को,
जो न समझे आज को।
अपनी जिंदगी को,
व्यार्थ यू ही कर रहे।
आज में जीने की वजह,  
कल में जो देख रहा।
जबकि कल जीवन में,
कभी आता ही नहीं।
फिर क्यों अपने को,
इसमें उलझा रखा।
और आज के सुखको,
क्यों तू भोग नहीं रहा है।
और आने वाले कल के लिए,
अपने आज को खो रहा।
इसलिए संजय कहता है,
आज में जी कर देखो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
14/04/2020


संजय जैन (मुम्बई)

*भक्ति में शक्ति*
विधा : गीत भजन


भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।
दुनियाँ के पालन हारी,
करते है कृपा तुमसब पर।।
जयबोलो जयबोलो जयबोलो,
आचार्यश्री की जय बोलो।।


जो पूर्व में है पूर्व वाले,
पश्चिम वाले उन्हें नमन करे।
देख ये उत्तर और दक्षिण वाले,
भक्ति रस का आनदं ले,
भक्ति रस का आनदं ले।
भक्तोंकी भक्ति पर कृपा करते,
दुनियाँ के पालन हारी,
दुनियाँ के पालन हारी।।
भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।


कलयुग के भगवान ने हमे,
कितने ज्ञानी मुनिश्री दिये।
जो चारो दिशाओं में घूमकर,
जैनधर्म की पताका फेहरा रहे, 
धर्म की पताका फेहरा रहे।।
भक्ति में शक्ति बहुत है,
भक्तों की सुनते है पुकार।
जयबोलो जयबोलो जयबोलो,
आचार्यश्री की जय बोलो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
15/04/2020


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर (हरियाणा )

कैसे आएगा... 


एक अंजुल में अंबर कैसे आएगा. 
एक कतरे में समंदर कैसे आएगा. 


जिसे मैं कबसे निकाल चुका हूँ, 
वो शक़्स,दिल के अंदर कैसे आएगा. 


जिसे सागर का रुख ना किया हो, 
उसके ज़हन में बवंडर कैसे आएगा. 


उसकी तो रब में आस्था ही नहीं, 
नाउम्मीदी की गली कलंदर^ कैसे आएगा. (सूफ़ी संत )


घुमाते रहे तुम मुझे मदारी की ज्यों, 
वक़्त बदला "उड़ता ", 
तेरे हाथ बंदर कैसे आएगा. 


स्वरचित मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )
संपर्क - 9466865227


हलधर

मुक्तिका ( ग़ज़ल)
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चाँद पथ से फिसलता है आपको मालूम क्या।
रोज  सूरज  पिघलता है आपको मालूम क्या ।


आदतें मेरी किसी के प्यार की मुहताज हैं ,
वो  मुखौटे बदलता है  आपको मालूम क्या ।


धूल खाये आइने सा आज का माहौल है ,
साफ दिखना सफलता है आपको मालूम क्या।


दिल हमारा हास्य का बस्ता सरीखा था कभी ,
आज रोकर बहलता है आपको मालूम क्या ।


भूख से घायल भिखारी हिंदु मुस्लिम हो गए ,
देख कर दिल दहलता है आपको मालूम क्या ।


अब हलाला पाप है कानून भी यह पास है ,
मौलबी क्यों मचलता है आपको मालूम क्या ।


निर्भया को न्याय में क्यों देर इतनी हो गयी  ,
तंत्र की ये विफलता है आपको मालूम क्या ।


मरकजों की हरकतों पे आज थोड़ा ध्यान दो ,
कौन नंगा  टहलता है आपको मालूम क्या  ।


क्या कभी सोचा किसी ने कैद खाना घर बने ,
वक्त की ये जटिलता है आपको मालूम क्या ।


इक विषाणू विश्व में"हलधर" पहेली बन गया ,
रोज मानस निगलता है आपको मालूम क्या ।


    हलधर -9897346173


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कहे माँ अब क्या किसको?"*
(कुण्डलिया छंद)
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*तारा आँखों का बना, माता करे निहाल।
आँख दिखाये सुत वही, होगा तब क्या हाल??
होगा तब क्या हाल? लहू से सींचा जिसको।
माँ पर मढ़ता दोष, कहे माँ अब क्या किसको??
कह नायक करजोरि, सहारा करे किनारा।
गिरी मातु पर गाज, बुझा उसका हिय-तारा।।


*आएगा बेटा नहीं, जाने माँ हर बार।
फिर भी अपलक देखती, वृद्धाश्रम का द्वार।।
वृद्धाश्रम का द्वार, बोध मन को वह देती।
सपनो का संसार, सजा अपनो के लेती।।
कह नायक करजोरि, चैन मन कब पाएगा?
देखे उसकी राह, नहीं जो अब आएगा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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