विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


जुस्तजू -ऐ-शौक लेकर दर ब दर फिरता रहा
मैं हथेली पर लिए ख़ून-ऐ -जिगर फिरता रहा 


यह मेरे अश्आर मेरी फ़िक्र की परवाज़ थी
मुद्दतों अखबार की बनकर ख़बर फिरता रहा 


जाने किस किस को थीं मेरे नाम में दिलचस्पियाँ
मेरे नक़्श-ऐ-पा लिये हर इक बशर फिरता रहा


हुस्न ने महफ़िल में आकर  क्या  दिये मुझको गुलाब
सबकी आँखों में मेरा ज़ौक़-ऐ-हुनर फिरता रहा


तंग नज़रों की सियासत ने किया रुसवा मगर
अंजुमन दर अंजुमन मैं बेख़बर फिरता रहा


सिर्फ़ तेरी याद तेरी आरज़ू होंठो पे थी
सारी दुनिया भूलकर शाम-ओ-सहर फिरता रहा 


जाने कितनी फूल सी आँखें मेरे चेहरे पे थीं
मैं दयार-ऐ-तशनगी में चश्मे-तर फिरता रहा


यह थी मेरे प्यार के अंदाज़ की *साग़र* कशिश 
मेरी यादों में मगन वो उम्र भर फिरता रहा 


🖋विनय साग़र जायसवाल


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"पर्यावरण"*
"पर्यावरण की रक्षा को साथी,
मिल कर जीवन में-
करते रहो जतन।
इतने लगाये वृक्ष,
बनी रहे हरियाली-
बढ़ते रहे वन।
प्रात: भ्रमण को मिले,
सार्थकता-
तृप्त हो नयन।
शुद्ध हो वातावरण,
कम हो प्रदूषण-
शांतिपूर्ण हो शयन।
महकता रहे जीवन में,
उपवन सारा-
सुगन्धित हो सुमन।
मिलते रहे फल-फूल औषधी,
सार्थक हो जीवन-
बलिष्ठ हो तन-मन।
भटके न नभचर,
आसरा मिले उनको-
सार्थक हो वन।
पर्यावरण की रक्षा को साथी,
मिलकर जीवन मेंं-
करते रहो जतन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "

दिनांकः २३.०४.२०२०
दिवसः गुरुवार
विधाः दोहा 
शीर्षकः🤔 मानव संदेश☝️
युगधारा निर्माण कर , नयी आश  नव  सोच।
वृक्ष लगा उन्नत धरा , मत निकुंज को   नोंच।।१।। 
चाह अगर है जिंदगी , चाहत मुख   मुस्कान।
बढ़ो साँच विश्वास पथ, पाओ सुख  सम्मान।।२।।
रखो लाज निज देश का , करो इतर उपकार। 
हो किसान या सैन्यबल, करो सदा   सत्कार।।३।।
छँटे कोराना  कालिमा , आए  खुशियाँ  भोर। 
करें प्रकृति से दिल्लगी , भू अम्बर खग शोर।।४।।
समझो निज कर्तव्य को , राष्ट्रधर्म अरु नीति।
मिटा लोभ मन कालिमा,गाओ परहित गीति।।५।। 
बचे   देश   की   संस्कृति , मर्यादा   सम्मान।
रोग शोक जन मुक्त  हो , हो जीवन अरमान।।६।।
जीवन जीना  तब  सफल, जीएँ   सेवा  देश।
मददगार   बन  दीन जन , दें   मानव  संदेश।।७।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "


एस के कपूर "श्री हंस", बरेली।*

*कॅरोना पर विजय का परचम लहरायेगा।*


कहीं जाना नहीं, कहीं आना नहीं,
बस घर में   बैठो   तुम  चुप चाप।
तभी धीरे  धीरे  यह  दशानन   सा,
कॅरोना      जा      पायेगा  भाग ।।
तोड़ना है इस वैश्विक महामारी की,
बढ़ती इस     श्रृंखला    कड़ी  को।
तोड़ दें कमर   इस दुष्ट  कॅरोना की,
और  ये  जंगल सी फैलती   आग।।


वही बचेगा जो  अनुशासन  पालन,
करते    घर    पर ही     बैठता   है।
देखते हैं कि यह हठी  कॅरोना  कब,
तक    यूँ       ही         ऐंठता     है ।।
अथक  परिश्रम  इस  मानवता  का,
कदापि     जायेगा    नहीं       व्यर्थ।
देखने योग्य होगा कि हमारे मनोबल,
को ये कब     तक        फैंटता    है।।


सामाजिक दूरी, टेस्टिंग, ट्रेसिंग, और
आइसोलेशन हमारे  हथियार   बनेंगें।
फिर से वही   शहरों के     आवागमन
और   गॉंवों   के   खलिहान   सजेंगें।।
होगा फिर गुलज़ार हर इक   गुलशन
बगिया  और प्रत्येक कोना   घर द्वार।
विश्वास   है   कि   कॅरोना पर  विजय 
के    परचम     अवश्य     ही    लगेंगें।।



*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस", बरेली।*
मो।               9897071046
                    8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम बिन चेन पड़े ना
मेरे मनमोहन कृष्णा
रोम रोम में बसे तुम
हमसे अलग रहो ना


पशु पक्षी भी तुमको
पल भर भूल न पाते
स्व मोहिनी से कृष्णा
निशदिन उन्हें रिझाते


आनन्द कन्द भगवन
तुम बिन पात हिले ना
बना रहे अनुग्रह तेरा
प्रभु दृष्टि पात करोना


"सत्य"के आराध्य देव
गोविंद सब गुनखानी
वरदहस्त रहे सिर पर
सदा ही रहे मेहरबानी।


श्रीमनमोहनाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

🤣    तालाबंदी में हालात   🤣


मियां बहुत शरमा रहे, 
                       कहने में ये बात। 
बीबी पोछा दिन करे, 
                   हम  करते  हैं  रात।


तालाबंदी  हो   गया, 
                    जब से अपने देश।
हर दिन रहा सॅ॑वार अब,
                    मैं  बीबी  के  केश।


बेगम  बीबी  हो  गई, 
                    मैं बन गया गुलाम। 
दारू  के  पैसे  मिलें,
              झुक जब करूॅ॑ सलाम।


कह न पाएॅ॑ आज नहीं, 
                  ठीक  बनी  है  दाल।
ध्यान  उन्हें  है  बंद  हैं, 
                   सारे   होटल, माल।


बोर हो गए कह रहे, 
                  बीबी  करें  न  प्यार।
क्योंकि जेब से अब नहीं,
                    मिलते रोज हज़ार।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🙏 शुभ प्रभात🙏
***************
*दोहे*
🌹🕉️🎋🍃🌿🌲
कैंची नहीं सुई बनो,
क्षण क्षण सिलती कन्थ,।
टूटे दिल जो जोड़ दे,
वही सन्त का पन्थ।


वन में देखा वृक्ष को,
जिस पर फल ना फूल।
ऐसे भी कुछ नर दिखें,
जिनका जीवन शूल।


मन की पीड़ा मन रखो,
मुख से कहो न मीत।
सुनकर इस संसार में,
लोग हंसे विपरीत।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


कैलाश , दुबे ,

न जाने कब मिले और कब बिछड़ गए हम ,


तेरी खातिर न जाने कहां कहां गए हम ,


ये दिल भी खामोश था हम भी खामोश थे ,


क्या करें ऐ दोस्त जिन्दगी यूं ही बसर कर रहे हम ,


*******************
यार इस तरहा खौफ खाता न कर ,


कुछ थोड़ी सी हिम्मत तो जुटाया कर , 


अकेला आया था जग में पगले ,


तू अकेला ही जग से जायेगा , 


अरे इस तरहा बुजदिली मत दिखाया कर ,


कैलाश , दुबे ,


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

स्वतंत्र रचना क्र. सं. ३०२
दिनांकः २१.०४.२०२०
दिवसः मंगलवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः प्रेम-धन 
दुनिया   ऐसी  है    समां , लुटा   मुहब्बत  शान।
दो पल    की  ये  जिंदगी , लुट   जाएगा   मान।।१।। 
प्यार बड़ा    अनमोल है , बढ़ता  जितना  खर्च।
दान मान सुख दे अमन , मंदिर  मस्ज़िद    चर्च।।२।।
दीन हीन   या  धनी हो , हो  पादप  खग  जन्तु।
दुनिया सिंचित प्रेम जल ,  प्रमुदित बिना परन्तु।।३।।
निर्भय   निच्छल है  सहज , प्रेम भाष     उद्गार।
मानव     दानव    देव   भी , प्रेमातुर     संसार।।४।।
जीतो मन रिपु प्रेम से , समझ   प्रेम    ब्रह्मास्त्र।
प्रकृति प्रेम जीतो जगत् , सबका नेह    सुपात्र।।५।।
प्रेम सिन्धु अति गह्वरित,पाओ जित माणिक्य।
गौण  प्रेमरस   सामने , सुख सम्पद  आधिक्य।।६।।
प्रेम नाम बलिदान का , अर्पण  तन  मन  चित्त।
राष्ट्रप्रेम  जननी   धरा ,  हो    परहित    आवृत्त।।७।।
कोमल मधुरिम चारुतम , क्षमा  हर्ष  अभिधान।
शीतल शशि सम चन्द्रिका , प्रेमामृत    मधुपान।।८।।
छल प्रपंच   मिथ्या   विरत , प्रेम  सृष्टि  वरदान।
दुर्जय   पावन   प्रेम धन , लालायित    भगवान।।९।।
अमर सत्य बस  प्रेम है , अमर    गीत    संगीत।
बाँटो  पाओ   प्रेम  को  , अमोल   प्रेम  नवनीत।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना :-- मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


सुनीता असीम

विषय-जीवन को बचाना है..



करोना के कहर से 
मौत को बांधकर
देहरी न लांघकर
जीवन को बचाना है...



सोच के विषांकुर को
जड़ से उखाड़ कर
भय को पछाड़कर
जीवन को बचाना है...



जात धर्म से ऊपर उठ
परहित को पालकर
मनुधर्म को ढालकर
जीवन को बचाना है...



मनभेद मतभेद को भूल
सबके साथ होकर
हाथों को धोकर
जीवन को बचाना है...



करोना के असर से
मास्क पहनकर
ले सैनिटाइजर
जीवन को बचाना है..



++++±+++++++++++
सुनीता असीम
21/4/2020


सुनीता उपाध्याय

सरे बाजार वीरानी       बहुत है।
हुई मायूस जिंदगानी   बहुत है। 
***
छिपे हैं रोग से डरकर सभी अब।
हुई अब तक वो नादानी बहुत है।
***
सफीना डूबता अक्सर वहीं पर।
समंदर में जहां पानी    बहुत है।
***
कि धोते हाथ तुम रहना  हमेशा।
परेशानी ये अनजानी    बहुत है। 
***
न देखें धर्म जाति ये     करोना।
इसे लेनी तो कुरबानी  बहुत है। 
***
जिसे हो जान की परवाह सुन लो।
कयामत की घड़ी आनी बहुत है।
***
सड़क पर जा रहे देखो संभलना।
मिलेगी मौत आसानी    बहुत है।
***
सुनीता उपाध्याय
21/4/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

संतों की हत्या हुई नहीं संस्कृति अनुरूप
देखो कैसे बिगड़ रहा अपना राष्ट्र स्वरूप


जो हो रहा वो कदाचित राजनीति का खेल
मानवता व संस्कारों से नहीं है इसका मेल


रक्षक खड़े हो देख रहे हैवानियत की जंग
निर्मम हत्या देखकर नहीं कोई हीन तरंग


देख राक्षसी प्रवृत्ति क्यों आता नहीं उबाल
अनैतिकता अनाचार की बना देश टकसाल


कहां है सौहार्द आपसी कहां मानवता प्रेम
व्यभिचारी वृत्ति हुई न कहीं कुशल व क्षेम


अपराध प्रवृतियों में भी जाति धर्म की आड़
हिंसा लूट अनैतिकता और अधर्म की बाढ़


दीन हीन को न्याय नहीं जीवन बना है भार
असंतोष अमानवीयता का चारों ओर प्रसार


व्यथित हृदय"सत्य"का अब देख कर्म विपरीत
मनमोहन कृपा करो कि निभा सकें जग प्रीति।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य"

हाइकु
21.4.2020
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन


नमन करो
नित माँ धरती को
देती जीवन।


क्षुधा मिटाती
है पोषण करती 
श्रम जननी।


किया दोहन
नही छोड़ी नदिया
रूष्ट प्रकृति।


वृक्ष भी काटे
बना नए भवन 
क्यों है लालसा।


हो संवर्धन
लगाओ नए वृक्ष
हो संतुलन।


वृक्ष से वायु
होती है निर्मल
मेघ बरसे।


बोझिल साँसे
दूषित है नदिया
फैकों ना कूड़ा।


शुद्ध विचार
शुद्ध हो व्यवहार 
जीवन शुद्ध।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


विनय साग़र जायसवाल

दोहे---


लोभ मोह उन्माद से ,क्यों विचलित हैं आप ।
राम नाम उच्चारिये ,मिटें सभी संताप ।।


जिसने एकाकार हो , किया राम का ध्यान ।
नमन उसे करने लगे, सुख वैभव सम्मान।।


हमने भी जब से किया ,राम नाम का जाप ।
धीरे-धीरे मिट गये ,मन के सब संताप ।।


🖋विनय साग़र जायसवाल


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:- 
        *"दर्प"*
"जब घर कर जाता दर्प मन में,
बिखरने लगते संबंध-
इस जीवन में।
मैं-ही -मैं में जीता जीवन,
अपनों का सम्मान नहीं -
साथी इस जीवन में।
दर्प के कारण ही माटी में
मिलती हस्ती,
देखी साथी हमने-
इस जीवन में।
दर्प तो राजा रावण का न रहा,
हमारा-तुम्हारा-
क्या -इस जीवन में?
दर्प न करना साथी कभी,
सब कुछ दिया प्रभु का-
भजते रहना जीवन में।
प्रभु शरण में रह कर ही,
मिटेगा दर्प मन से-
बढ़ेगा अपनत्व इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        21-04-2020


 डा.नीलम

*दहशत के साये हैं*


हर गली सन्नाटा है
हर मन में हलचल है
ये कैसा साया है जो
मौत बनकर आया है


माँ मजबूर नन्हें को
सीने से लगाने को
पिता मजबूर घर से
बाहर ही रह जाने को


दहशत के साये हैं
हवाओं में फैले हुए
आदमी आदमी से
हैं डरे- सहमे हुए


खौफ मन का शनैः शनै
शैतान बनता जा रहा है
मौत के मरकज़ से निकल
आदम आदमी को खा रहा है


अफवाहो ने इस कदर 
हवाओं में शरण ले ली है 
साधु-संत भी लोगों को 
बच्चा-चोर नज़र आ रहा है


भूख और बेरोजगारी ने भी
दहशत का रुप ले लिया
घबराया आदमी पैदल ही
कई योजन दूरी तै कर रहा


दरो दीवार भी अब 
डरे-सहमें से रहने लगे हैं
हवा भी खटखटाए दर तो
सहम कर सिमटने लगे हैं


गश्त गली- गली अब 
दहशत लगाने लगी है
आदमी भयभीत हो
जी रहा है दहशत के साये में।


           डा.नीलम


संजय जैन (मुम्बई)

*पास बुलाती है*
विधा : कविता


प्यार की चाह में हम,
कुछ ऐसा कर गए।
रोज देखने लगे तुम्हे हम,
मोहब्बत करने के लिए।
दिल खिलता जाता है,
तुम्हें मुस्कराते देख कर।
दिलमें उमंगे जग जाती है,
और धड़कने बड़ा देती है।
और दिल में प्यार की हलचल,
हमारे हृदय में जगा देती है।।


सपनो में भी अब, 
वो देखने लगे है।
सोते जागते भी समाने,
वो ही वो आने लगे है।
तभी तो रातभर करवटे बदलकर,
बिना सोये गुजार रहे है।
ये प्यार है या मोहब्बत उनसे,
ये हम नही जानते है।।
 
आंखों के मिलने मात्र से,
उनसे प्यार हो रहा है।
दिलदिमाग पर एक नशा सा,
छाये जा रहा है।
और उनका चेहरा दिल मे,
तरंगों की तरह दौड़ रहा है।
और उनकी धड़कनो को,
अपने पास बुला रहा है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
20/04/2020


सुनीता असीम

मिलन का भी जरिया दिखाई न दे।
किसी  को  खुदा  वो   जुदाई न दे।
***
कोई खुशी नहीं हो जबावों से जब।
तो ऐसे  जने  को        सफाई न दे।
***
जो आंखों पे पर्दा पड़ा     झूठ का।
उसे सच का चहरा     दिखाई न दे।
***
फरेबों से रिश्ता भरा        जो रहे।
मुहब्बत की उसको     दुहाई न दे।
***
बड़ा बेरहम जो   रहा  हो      उसे।
रहम की गुजारिश      सुनाई न दे।
***
सुनीता असीम
20/4/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:- 
        *"दर्प"*
"जब घर कर जाता दर्प मन में,
बिखरने लगते संबंध-
इस जीवन में।
मैं-ही -मैं में जीता जीवन,
अपनों का सम्मान नहीं -
साथी इस जीवन में।
दर्प के कारण ही माटी में
मिलती हस्ती,
देखी साथी हमने-
इस जीवन में।
दर्प तो राजा रावण का न रहा,
हमारा-तुम्हारा-
क्या -इस जीवन में?
दर्प न करना साथी कभी,
सब कुछ दिया प्रभु का-
भजते रहना जीवन में।
प्रभु शरण में रह कर ही,
मिटेगा दर्प मन से-
बढ़ेगा अपनत्व इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        20-04-2020


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---


सरकार ग़ज़ल सुन कर नाहक ही उछलते हैं 
हम जैसे सुखनवर ही ज़हनों को बदलते हैं


यह बात भी लिख देना सूरज की हथेली पर
शायर तो अंधेरों के उन्वान बदलते हैं


ऐ दोस्त सदाकत की बातें हैं किताबों में
इस दौर में कितनों से ईमान संभलते हैं


माहिर हैं सियासत के वो जानते हैं सब कुछ
यह लोग फ़कत नारे सुन सुन के बहलते हैं


यह कह दो सितमगर से कुछ खौफ़ नहीं हमको 
हम बदले ज़माने की रफ़्तार पे चलते हैं


मालूम नहीं है क्या यह अहले-चमन तुमको
तितली के कलेजे भी फूलों को मचलते हैं


यह सोच के ही हमने पत्थर के सनम पूजे
सुनते हैं मुहब्बत से पत्थर भी पिघलते हैं


यह बात दलीलों से आई है समझ *साग़र* 
कानून को पढ़ कर ही कानून निकलते हैं


🖋विनय साग़र जायसवाल
सुखनवर--कवि/शायर
उन्वान-शीर्षक
सदाकत--सच्चाई ,सत्यता


एस के कपूर  " श्री हंस*", *बरेली।*

*दूर दूर रहो कि कॅरोना को*
*चूर करना है।*


दूर    दूर   रहो   कि   तभी  ही
कॅरोना   दूर   होगा।
टूटेगी   इसकी  श्रृंखला    और
अभिमान चूर होगा।।
कड़ी को   तोड़ना और    अभी
थामना     है   इसको।
तब ही डॉक्टरी     प्रभाव    भी
इसमें  भरपूर     होगा।।


थाम लो कदम कि दुष्ट   कॅरोना
मौत   का  फरमान है।
दिखता नहीं  यह  और वार  भी
इसका   अनजान   है।।
ये रंग ,जाति, आयु  ,धर्म, शिक्षा
कुछ  नहीं    है  देखता।
गले न मिलें   इससे   कि    प्राण
लेना ही इसका काम है।।


लॉक  डाउन   का अनुपालन ही
अब धर्म, शिक्षा , ज्ञान  है।
आपको   कुछ  नहीं   होगा  यह
बस आपका अभिमान है।।
जिसने डर  कर   किया  विश्राम
वह   समझो   बच   गया।
यही    कॅरोना   से   बचाव   का
जानो परम  अभियान है।।


यह समय  है   धैर्य, विवेक और
आत्म    सुरक्षा     का।
इस जान  लेवा      महामारी  से
मानवता की  रक्षा  का।।
गलतियों से सीखें और  विश्वास
आशा को गवायें नहीं।
यह तो समय है  इस  दृढ़  इच्छा
शक्ति की परीक्षा का।।


सलाम करें अपने डॉक्टर्स नर्सेज
सफाई    कर्मियों   का।
जो हमको उपलब्ध करा रहे  उन
सभी सेवा धर्मियों  का।।
प्रणाम सभी मीडियाकर्मियों और
गर्व अखबारनवीसों पर।
अधिकारी है वो हर व्यक्ति हमारी
130 करोड़ तालियों का।।


*रचयिता।एस के कपूर  " श्री हंस*",
*बरेली।*
मोब  ।          9897071046
                    8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कंचन काया  कमल  कांत
कमलनयन  कमलाभरतार
करकमल करुणानिधि कृष्णा
कांतिमान  कोमल  करतार


करो कृपा कमलाक्षी कृष्ण
कोरोना   के   काटो   कष्ट
कलानाथ    कल्याणकारी
करणीय   कर्ता   कर्मनिष्ट


कृपाकांक्षी    करूणाहृदय
कारुनीक    कल्पान्तकारी
कपट कृत्य के  काटनहार
केहरि   कर्म   कल्मषहारी


कल्पनातीत     कंचनहृदय 
कलाकृतियां केशराशि की
कृतार्थ करती  कृष्णभक्ति
कन्हैया कौशल  कांत की।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"माँ"*
"दुनियाँ में नित-दिन देता रहे,
तुझे दुआएं पल-पल-
माँ जैसा कोई नहीं।
देखे जब भी तुझको,
खिलाएं पकवान-
माँ जैसा कोई नही।
छाए न कभी गम की बदली,
देती रहे आशीष-
माँ जैसा कोई नही।
मिलती जो शीतल छाँव,
माँ के आँचल सा-
कही कोई नही।
खुशियों से महके घर आँगन,
छाये मधुमास देती आशीष-
माँ जैसा कोई नहीं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          19-04-2020


राजेंद्र रायपुरी

😌  वंदना किसकी करूॅ॑  😌


वंदना किसकी करूॅ॑ मैं,
               राम  या घनश्याम की।
या कि जिसने की है रक्षा,
                आज  मेरे  प्राण  की।


है नहीं भगवान से कम,
                 आज  वो  मेरे  लिए।
प्राण  को   मेरे  बचाया,
                कर न चिंता प्राण की।


मन कहे तू  वंदना कर,
                 आज उस इंसान की।
जो   खड़ा  साक्षात  है,
              मूरत बना भगवान की‌।


है नमन भगवान रूपी,
                 आज उस इंसान की।
जो    बचाने    ज़िंदगी,
             चिंता न करता प्रान की।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

*हे करूणानिधान दया करो*
********************
हे दीनानाथ तुम बड़े दयालु हो
विश्व पर आया भारी संकट
इससे मुक्ति दिलाओ प्रभु
अब अपनी कृपा बरसाओं प्रभु
हे करूणानिधान हम पर कृपा करो।


हे दया के सागर
सब को सद् बुद्धि दो
मानवता पर आया संकट
इससे मुक्ति दिलाओ प्रभु
हे दीनानाथ हम पर कृपा करो।


मेरे प्रिय देश के तुम प्राणाधार हो
सब में स्नेह की भरमार कर दो
रहे सब आपस प्रेम से
ऐसी करूणा बरसाओं प्रभु
हे करूणानिधान हम पर दया करो।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


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