ग़ज़ल
जुस्तजू -ऐ-शौक लेकर दर ब दर फिरता रहा
मैं हथेली पर लिए ख़ून-ऐ -जिगर फिरता रहा
यह मेरे अश्आर मेरी फ़िक्र की परवाज़ थी
मुद्दतों अखबार की बनकर ख़बर फिरता रहा
जाने किस किस को थीं मेरे नाम में दिलचस्पियाँ
मेरे नक़्श-ऐ-पा लिये हर इक बशर फिरता रहा
हुस्न ने महफ़िल में आकर क्या दिये मुझको गुलाब
सबकी आँखों में मेरा ज़ौक़-ऐ-हुनर फिरता रहा
तंग नज़रों की सियासत ने किया रुसवा मगर
अंजुमन दर अंजुमन मैं बेख़बर फिरता रहा
सिर्फ़ तेरी याद तेरी आरज़ू होंठो पे थी
सारी दुनिया भूलकर शाम-ओ-सहर फिरता रहा
जाने कितनी फूल सी आँखें मेरे चेहरे पे थीं
मैं दयार-ऐ-तशनगी में चश्मे-तर फिरता रहा
यह थी मेरे प्यार के अंदाज़ की *साग़र* कशिश
मेरी यादों में मगन वो उम्र भर फिरता रहा
🖋विनय साग़र जायसवाल