हे मां मनीषिणी हमें ज्ञान दे
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हे मां मनीषिणी
हमें विचार का अभिदान दो,
मां हम योग्य पुत्र बन सकें
हमें ज्ञान दो मां।
हे मां मनीषिणी
हमें स्वाभिमान का मान दो,
चित्त में शुचिता भरो
मां बुद्धि में विवेक दो।
हे मां मनीषिणी
कर्म में सत्कर्म दो,
हृदय में दया दो मां
वाणी में मिठास दो मां।
हे मां मनीषिणी
देवी तू प्रज्ञामयी है
सभी को सुमति दो मां
मैं बार बार तुम्हें प्रणाम कर रहा हूं।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
कविता:-
*"पीड़ा"*
"इस जीवन में साथी फिर,
कुछ तो ऐसा कर जाये।
अपनो की ख़ुशी को यहाँ,
अपनी पीड़ा भुल जाये।।
नित ध्यान लगे प्रभु संग,
सद्कर्म करते ही जाये।
मंज़िल मिले न मिले यहाँ,
कदम ये रूक न जाये।।
एक दीप ऐसा जलाये,
जो मन का तम हर जाये।
मन छाये ऐसे विचार,
अपनत्व बढ़ता ही जाये।।
जितना जीवन धरती पर,
उसको सार्थक कर पाये।
अपनो की ख़ुशी को यहाँ,
अपनी पीड़ा भुल जाये।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 16-05-2020
😌😌 दोहे राजेंद्र के 😌😌
याचक बनकर हैं खड़े,
दाता के दरबार।
कोई लाया है कनक,
कोई हीरा हार।
लगा तनिक विचित्र हमें,
लोगों का व्यवहार।
जब ख़ुद ही दाता बने,
माँगें क्यों दरबार।
मतलब इसका तो यही,
पाने लाख-हजार।
रिश्वत प्रभु को दे रहे,
पैसे ये दो चार।
(राजेंद्र रायपुरी)
*_सरस्वती वन्दना_*
हे! गणपति गणनायक तुझे कोटि - कोटि प्रणाम।
हे! गौरी सुत सुमरिन कर तेरा शुरू करूँ हर काम।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
हे आशिर्वचनों की वरदायिनी
मेरा मन प्रकाशित कर दे माँ,
तूँ व्याकुल को ऐसा वर दे माँ।
पाकर विद्या ज्योति मैं माँ तेरी,
कुबुद्धि अज्ञानता स्वाब कर मेरी।
मैं अबोध तेरी शरणों में आया,
तेरा पुजारी हूँ माँ बदलो मेरी काया।
काम, क्रोध, मोह, लोभ सब तेरी माया,
अवगुण मिटा, कर दे ज्ञान की छाया।
तूँ स्वर की देवी तुझसे गीत-संगीत माँ,
मेरे हर शब्द को परिपूर्ण कर दे माँ।
नहीं चाहिए धन धान्य यश सम्मान पाऊँ,
पाकर चरण रज माँ मैं तर तर जाऊँ।
बस यही कामना तेराभक्त कहलाऊँ,
करता रहे अभ्यास निरन्तर तेरी सेवा पाऊँ।
हे! माँ शारदे इतनी कृपा कर वर दायिनी ,
विद्या ज्योति जगाकर ज्ञान दे ज्ञान स्वामिनी।
*_रचना दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल_*
लक्ष्मीपुर महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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*मां का प्रतिरूप*
चल मां!! आज मैं तू और तू मैं बन जाऊं,
तेरी छबि हूं, तेरे हर गुण को पाऊं,
अपनी गोदी में तेरा सिर रखकर,
तुझे प्यार से सहलाऊं।
बिखरे से बाल तुम्हारे,
अस्त व्यस्त सी दिखती तुम,
घर को संवारती सजाती,
भूली अपना अस्तित्व तुम,
हर पल सबका संवारती हो,
कुछ पल तुम्हारे संवार दूं,
पल फ़ुरसत के देकर तुम्हें,
तुम्हारे सपनों को फिर से संवार दूं।
भविष्य हमारा संवारने में,
खो बैठी सुध बुध तुम अपनी,
चुनौतियों में बनी सहारा,
सुख चैन सब हम पर वारा,
रातों की खोई नींदों को,
फिर अपनी नींद सजा दूं,
मैं दूं थपकी तुझे,
लोरी गाकर सुला दूं।
खुद को बांध बंधनों में,
हमें दिया खुला आसमां,
हमारी चाहतों को पूरा करने,
सौंप दिया जीवन सारा,
चल मां!तेरी बिवाईयों पर मलहम लगा दूं,
तेरे शेष जीवन को प्यार से संवार दूं।
बहुत किया तुने अब तक,अब मैं तुझे आराम की छांह दूं।
मां मैं तेरी ममता बनकर
तेरा हर दुख बिसार दूं।।
ममता कानुनगो इंदौर
कृपा करो चितचोर....
माधव तेरे रूप नें,लियों सकल जग मोह।
तेरी छवि नैनन बसी,सह न पाऊं विछोह।।
मुरलीधर तेरी शरण,हरो हमारे त्राण।
सुख से बीते जिंदगी, जग पालक भगवान।।
सदा मेरे हृदय बसों,श्री राधे बृजराज।
जीवन गाड़ी हाथ में,पूर्ण करो प्रभु काज।।
जीवन ज्योति प्रखर रहे, नटवर नन्द किशोर।
किंकर"सत्य"तुम्हारा,कृपा करो चितचोर।।
श्री माधवाय नमो नमः👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐
सत्यप्रकाश पाण्डेय
*विषय।प्रेम।।।।।।।।।।।।।।*
*शीर्षक।।।।प्रेम से परिवार*
*बनता स्वर्ग समान है।।।।।*
*दिनाँक । 15,,05,,2020*
*(विश्व परिवार दिवस।।।।।)*
परिवार छोटी सी दुनिया
प्यार का इक संसार है।
एक अदृश्य स्नेह प्रेम का
अद्धभुत सा आधार है।।
है बसा प्रेम तो स्वर्ग सा
घर अपना बन जाता ।
कभी बन्धन रिश्तों का तो
कभी मीठी तकरार है।।
सुख दुख आँसू मुस्कान
बाँटने का परिवार है नाम।
मात पिता के आदर से
परिवार बने है चारों धाम।।
आशीर्वाद,स्नेह,प्रेम ,त्याग
की डोरी से बंधे होते सब।
प्रेम गृह की छत तले तो
परिवार है स्वर्ग समान।।
तेरा मेरा नहीं हम सब का
होता है परिवार में।
परस्पर सदभावना बसती
है यहाँ हर किरदार में।।
नफरत ईर्ष्या का कोई भी
स्थान नहीं घर के भीतर।
प्रभु स्वयं हीआ बसते बन
प्रेम की मूरत घर संसार में।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री*
*हंस",,बरेली।*
मोब 9897071046
8218685464
*"मातु-महान"* (दोहे)
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^स्नेह सिक्त पीयूष को, मातु-पिला संतान।
अर्पित कर निज रक्त को, देती जीवन दान।।१।।
^पावन पय पीयूष पी, सुख सरसित संतान।
हुलसित माता अंक में, धन्य मातु-अवदान।।२।।
^उपजे पीकर क्षीर को, शिशु के मानस-मोद।
माता मन ममता महत, स्वर्गिक सुख माँ-गोद।।३।।
^मातु सकल ब्रह्मांड है, सरस-सुधा-संसार।
जीव-जगत जनु जान-जन, ममता-अपरंपार।।४।।
^अमिय-कलश है मातु-वपु, मानस ममता-मूल।
पान अमिय माँ का करे, सकल मिटे शिशु-शूल।।५।।
^होकर अति कृशगात माँ, श्रम साधित मन-क्लांत।
पान करा फिर भी अमिय, करे क्षुधा-शिशु शांत।।६।।
^मातु-सुधा-सद्भाव से, सरसे सुख-संसार।
प्रेम पले पीयूषपन, पातकपन-परिहार।।७।।
^स्नेह सजीवन सार शुचि, सरसित सुधा समान।
बोली माँ के नेह की, फूँके जग-जन-जान।।८।।
^माँ देती संतान को, ममता की सौगात।
अमिय-सरिस माँ-दूध पी, बढ़ता शिशु-नवजात।।९।।
^माता जीवन दायिनी, अमिय कराती पान।
शिशु का संबल है वही, जग में मातु-महान।।१०।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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👩🔧 *बेटी*🚶🏻♀
(मनहरण घनाक्षरी)
"""""""
भारत की प्यारी बेटी,
जैसे फुलवारी बेटी,
सब कुछ वारी बेटी,
जग में महान है।
👩🔧🚶🏻♀
नही कभी डरती है,
सब काम करती है,
देश पे भी मरती है,
तू भी शक्तिमान है।
🚶🏻♀👩🔧
ममता की छाँव तू ही,
खुशियों की ठाँव तू ही,
समता की गाँव तू ही,
घर की तू शान है।
👩🔧🚶🏻♀
फिर भी तू चली गयी,
हर बार छली गयी,
कली भी मसली गयी,
संकट में जान है।
*कुमार🙏🏼कारनिक*
(छाल, रायगढ़, छग)
💐बहन निर्भया को
श्रद्धांजलि💐🙏🏼😢
"""""""""""
ग़ज़ल
क्या जुस्तजू करें भी यहाँ सुब्हो-शाम की
जब फिर गयीं हों नज़रें हीं माह-ऐ -तमाम की
जो कुछ था वो तो एक लुटेरा ही ले गया
जागीर रह गयी है फ़कत एक नाम की
ख़ुद आके देख ले तू जफ़ाओं का अब सिला
*शोहरत है आज शहर में किसके कलाम की*
खोली जो उस निगाह ने मिलकर किताबे-इश्क़
उभरीं हरेक हरफ़ से मौजें पयाम की
महफ़िल में दो घड़ी हुई क्या उनसे गुफ़्तगू
हैरान दिख रही है नज़र खासोआम की
ज़ुल्फ़ों का अपनी नूर अंधेरों को बख़्श दे
बेनूर लग रही है ये तस्वीर शाम की
*साग़र* फ़ज़ाएं आज हैं क्योंकर धुआँ-धुआँ
शायद लगी है आग कहीं इंतकाम की
🖋विनय साग़र जायसवाल
*अनुशासन*
16.5.2020
मन जरा संभालिए
अनुशासन राखिए
जीवन सरल रहे
मन में विचारिये।
हिलमिल रहें सब
धरा स्वर्ग रहे बन
सभ्यता को सँग रखे
प्रयत्न ये धारिये ।
है संस्कृति ये महान
करना सब सम्मान
विरासत ये अपनी
इसको संभालिये।
देश वीरों का महान
भारतीय पहचान
सिर रखे गर्व तान
स्वाभिमान राखिये ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
स्वतंत्र रचना क्र. सं. ३१२
दिनांकः १६.०५.२०२०
दिवसः शनिवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
विषयः आत्म निर्भरता
शीर्षकः आत्मनिर्भर हम बने
अपने को अपना कहें , स्वीकारें भी अन्य।
अच्छाई जिसमें दिखे, बनाये उसे अनन्य।।१।।
आत्म निर्भर हम बने , चलें देश के साथ।
उत्पादक जो देश का , स्वीकारें बढ़ हाथ।।२।।
कर्मवीर मजदूर हम , आत्म निर्भर समाज।
रनिवासर मिहनतकसी , स्वागत नव आगाज।।३।।
स्वाभिमान रक्षण स्वयं , बढ़े सुयश सम्मान।
हर्षित मन जीवन मनुज , निर्भर खु़द इन्सान।।४।।
सक्षम हम सर्वांग से , कर सकते उद्योग।
रखें अन्य से आश क्यों , करें स्वयं सहयोग।।५।।
मिलती ख़ुद मिहनत खुशी,खिलती मुख मुस्कान।
नयी सोच नव जोश से, पूर्ण करें अरमान।।६।।
संसाधन हैं जो सुलभ , करो नया आगाज।
मिले राह नव प्रगति का , नव भविष्य आवाज।।७।।
दीन हीन हम क्यों बने,जब सक्षम सब काम।
साधें हम निज लक्ष्य को , जीवन हो सुखधाम।।८।।
धीर वीर गंभीरता , संकल्पित अभिलास।
बड़ी शक्ति है आत्म बल , रखो स्वयं विश्वास।।९।।
सभी समुन्नत हो स्वयं , बने समुन्नत देश।
बढ़े मान यश सम्पदा , स्वावलंब संदेश।।१०।।
पर निर्भरता मरण है , नित जीवन अपमान।
करती पौरुषता हनन , हरे वतन सम्मान।।११।।
अपनापन आभास मन , निर्माणक खु़द ध्येय।
है निकुंज जीवन कथा , स्वावलम्ब बस गेय।।१२।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
कवि✍️डॉ.निकुंज
मेरी माँ शारदे वरदायिनी स्वेता मुझे वर दो
बहुत ही पापनी हूँ हंश की देवी देवी दया करदो
भटकती हूँ मैं सदियो से तुम्हारा ही सहारा है
करो थोड़ी दयादृष्टि अकिंचन को भी मां स्वर दो
वंदना पाल
🌹परिवार 🌹
जहां सब एक-दूसरे का आदर सत्कार करते हैं ।
बड़ों- छोटों को समान सम्मान देते है ।
उसे परिवार कहते हैं ।
चेहरा देख कर ही समझ जाते हैं
सुख-दुख के भाव पढ लेते हैं
जहां अपनापन होता है
आत्मा से आत्मा का संबंध होता है
उसे परिवार कहते हैं
बिना कहे ही समस्याएं हल हो जाती हैं ।
कितनी ही बलाये टल जाती है
जहां मन में कभी नहीं मिलता राग द्वेष को स्थान ।
उसे परिवार कहते हैं ।
काव्य रंगोलीभी हमारा बहुत बढ़िया परिवार है ।
जहां वसुदेव कुटुंबकम की भावना का विस्तार है ।
इसे पाकर हम धन्य है ।
जहां एक दूसरे की भावनाओं का होता आदर है ।
हमारे अंदर आत्मीयता इतनी प्रबल है ।
हम जिस मंच से जुड़ते हैं उसे अपना परिवार समझते हैं । बड़ी ईमानदारी से निभाते हैं सारे रिश्ते ।
इसीलिए भारतवासी सबसे अच्छे अच्छे कहलाते ।
जय श्री तिवारी खंडवा
9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
अमीर छंद
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विधान ~
प्रति चरण 11 मात्राएँ , चरणांत जगण ( 121 ) , दो- दो चरण समतुकांत ।
विपदा खूब अपार ।
कर बेड़ा अब पार ।।
करना है अब योग ।
रहेंगे हम निरोग ।।
सादा हो अब भोज ।
पास आये न रोग ।।
मुट्ठी बंद उजास ।
हो दीर्घायु आस ।।
आये जीवन रास ।
रहे रोज़ उल्लास ।।
है जीवन वरदान ।
बनता आज महान ।।
मैं तो हूँ अब दास ।
रखो ही चरण पास ।।
प्रभु मेरी रख आन ।
बढ़े सदा अब शान ।।
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
दोहा
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बच्चे सब हैरान है, मातु- पिता के संग।
चलते रहते दूर से ,उड़ता मुख का रंग।।
कोरोना से लड़ रहा, विश्व बड़ा ही जंग।
खूनी इस उत्पात को, देख सभी हैं दंग।।
हम घर में अब बंद हैं ,रहे नियम के संग ।
आशा दीप जला रखें, जीतेंगे हम जंग।।
कैसी विपदा की घड़ी ,ट्रक में चढ़ते लोग।
जिसको जैसा बन पड़ा, न्योता देते रोग ।।
होड़ लगी पहले चढ़े, छूटे मत मजदूर ।
कोई भी साधन नहीं, जोखिम को मजबूर।।
अर्चना पाठक निरंतर
अम्बिकापुर
*किसानों के हालात*
विधा: गीत
जो दुनियाँ को खिलता है,
वो खुद भूखा रहता है।
बड़े मंचो से इन की,
मिसाले दुनियां को देते है।
परन्तु इन किसानों की,
कोई भी सूद नही लेते।
तभी तो ऋणमें पैदा होता है,
और ऋणमें ही मर जाता है।।
दुखो में जीने वाले,
गमो में डूबे रहते है।
दुखो को ही अपना,
नसीब वो समझते है।
दुखो के चलते हुए भी
निभाते अपना कर्तव्य वो।
और हर मौसम के त्यौहार,
बड़ी खुशी से मानते है।।
यदि मिल जाये दुखो से,
कभी छुटकारा उसे अगर।
तो भी वो अपने जिंदगी को,
बड़े ही शांत भाव से जीते है।
और खुशी और दुख की लहर,
नही आने देते चेहरे पर।
सदा ही समान भाव से,
वो जीते अपना जीवन।।
हजारों सालों से इनकी,
यही हालत बनी हुई है।
होकर आजाद भी हमने,
नही सुधारे इनकी हालात।
पहले भी शोषण इनका, जमीदार आदि करते थे।
और आज भी शोषण इनका,
देश की सरकारें कर रही है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
16/05/2020
ये मुहब्बत जो जमाने से छिपा ली मैंने।
तो जिगर और जुबाँ फिर तो संभाली मैंने।
****
जिन्दगी भर के लिए सिर्फ नहीं मरने तक।
ताजगी गुल ए दरीचाँ से .....निकाली मैंने।
****
ये ख़यालों में सदा सोच भरी रहती है।
मुश्किलों में तो नहीं जान फसाली मैंने।
****
रात दिन ख़ाक हुए आज तलक मेरे हैं।
प्यार की एक कली भी तो बचाली मैंने।
****
उम्र भर सिर्फ तेरा ही मैं रहूंगा बनकर।
ये कसम आज दिले जान उठाली मैंने।
****
सुनीता असीम
16/5/2020
"लॉक डाउन"
लॉक में रहते हुए अब हो चुकी उम्मीद डाउन,
कब खुला आकाश देखूँ,हो रही है दीद डाउन ।।
अब तो जूगनू पास आने से मेरे डरने लगे हैं,
जल रही आंखे हमारी लग रही है नींद डाउन ।।
छप्पनो पकवान बनते, घर अतिथियों से भरे थे,
आज उस चूल्हे की देखो, हो गयी है आँच डाउन ।।
जो हुलस करके लगाते थे, गले अनजान को भी,
काटकर कन्नी गुज़रते ,हो गए जज़्बात डाउन ।।
मौत बनकरके उड़नछू , जान की प्यासी हुई है,
आहटों से भी लगे डर ,हो रही है सांस डाउन ।।
गीता सिंह "शम्भुसुता"
प्रयागराज
सभी को मेरा सादर नमस्कार एवं सभी को उनकी रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई🙏🙏💐💐💐💐
*चिंता*
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मन में डेरा डाल कर चिंता ने फिर आ घेरा है
अपने साथ लाई है बेचैनी, दुख, परेशानी
विदा तो मैं उसे कर आई थी
अपने साथ खुशियों को ले आई थी और मुस्काई थी
पर चिंता हठी बालिका की तरह आकर बोली
क्यों खुशी के संग ही खुश रहती हो
खुशी तो पल भर ही रहती है
हरदम तो मैं ही सभी के संग रहती हूँ
हाँ, कुछ दिनों के लिए चली जरूर जाती हूँ
फिर नई सौगातें लेकर चली आती हूँ
मन से दिमाग तक फैला तो मेरा घर है
इस घर से कैसे बेघर हो जाऊँ?
मेरा कहा मानो तो मेरे साथ ही
जीवन जीना सीख लो
चिंता को चिंतन कर दो
चिंतन को अच्छे कर्मों से
जीवन को आनंद से भर दो ।
*आभा दवे*
•खुशियों का समन्दर•
अपने खुशियों का समन्दर तेरे हवाले कर दूँ।
सारे दुखों को आज से मौत के हवाले कर दूँ।
हार-जीत सुख-दुख ज़िन्दगी में आते जाते हैं
पर मैं खुद की ज़िन्दगी को तेरे हवाले कर दूँ।
-कबीर ऋषि "सिद्धार्थी"
सम्पर्क सूत्र-9415911010
KRS
#मुक्तक
बताओ जमाने से क्या पा रहें हैं,
मिलावट मिला आज हम खा रहें है,
जरा फायदे के लिए आदमी भी
मुनाफ़ा बहुत सा लिए जा रहें हैं !!
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** आलोक मित्तल **