कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज

💐🌅सुप्रभातम्🌅💐


 


दिनांकः २९.०५.२०२०


दिवसः शुक्रवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा


शीर्षकः नया सबेरा जिंदगी


पुलकित है पा अरुणिमा ,निर्मल चित्त निकुंज।


उठी कलम नवलेख को , देश प्रेम की गुंज।। 


देश बने जीवन कला , देश बने अरमान।


राष्ट्र प्रगति समझें प्रगति, देश आत्म सम्मान।।


बिना राष्ट्र नौका समा, जीवन बिन पतवार।


दिशा दशा निर्भर वतन , एक राष्ट्र परिवार।।


जीएँ हरपल जिंदगी , मानव जन कल्याण।


देशभक्ति अर्पण वतन, सदा राष्ट्र निर्माण।।  


ध्वजा तिरंगा शान हो , हो जीवन सम्मान। 


नया सबेरा जिंदगी , रोग शोक अवसान।।


हरी भरी धरती रहे , स्वच्छ प्रकृति संसार।


रोग मुक्त जन मन वतन, सकल विश्व परिवार।।


भारत हमारी आत्मा , हम भारत शृङ्गार।


सौ जन्म बलिदान भी , कम भारत उद्धार।।


कवि निकुंज अभिलाष मन,अर्पण जीवन देश। 


फैले खुशियाँ चहुँदिशा , समरसता संदेश।। 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नई दिल्ली


संजय जैन (मुम्बई

*टूट गये परिवार*


विधा : कविता


 


मान अभिमान के चक्कर में,


उजड़ गए न जाने कितने घर।


हंसते खिल खिलाते परिवार,


इसकी भेंट चढ़ गये।


फिर न मान मिला, 


न ही सम्मान मिला।


पर पैदा हो गया अभिमान,


जिसके कारण टूट गये परिवार।।


 


हमें न मान चाहिए,


न सम्मान चाहिए।


बस अपास का,


प्रेम भाव चाहिए।


मतभेद हो सकते है,


फिर भी साथ चाहिए।


क्योंकि अकेला इंसान,


कुछ नही कर सकता।


इसलिए आप सभी का,


हमें साथ चाहिए।।


 


यदि आप सभी आओगे,


एक साथ एक मंच पर।


तो मंच पर चार चांद,


निश्चित ही लग जायेंगे।


अनेक भाषाओं और जाती, 


होने के बाद भी।


जब एक साथ मिलेंगे,


तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


29/05/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम ही जीवन रवि........


 


ये नक्शेकदम मुझको रिझाते है।


आकर्षक चितवन मुझे बुलाते है।।


 


हैं लोल कपोल लिए गात सौम्यता।


अनुपम सौंदर्य अपरिमेय दिव्यता।।


 


कजरारी आँखों का मोहक काजल।


केश पुंज लगें जैसे घने बादल।।


 


तुमसे बतरस का आनन्द अनौखा।


गोरे वदन प्रिया शोभित तिल चोखा।।


 


आहें भरें देखकर दिलवर तुमको।


बलात खींच रही हो सत्य हृदय को।।


 


मधुमास की मधुर मकरन्द प्रियतमा।


तुम मेरे बदन में हो बसी आत्मा।।


 


डाल गले में बाहों का बंधन सजनी।


तुम ही जीवन रवि वरना तो रजनी।।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त

एक कविता... "पुनर्मिलन"


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कुछ असर नहीं करती


ज्येष्ठ की दुपहरी 


तर नहीं करती...


पूस की शीतलता 


क्षण-प्रतिक्षण 


स्मृति में वो....और उनकी छाया


उनका प्रिय सम्भाषण 


खिल-खिलाकर हँसना।...


कौन जानेगा? 


गुप-चुप नयनों की भाषा 


घुटी-घुटी सी 


संचित अभिलाषा .....


तनहा मन... 


अपनी आकुलता... 


अपनी अनुरक्तता 


व्यक्त नहीं करता


किन्तु 


हाय रे.. भावनाओं का प्रवाह 


थकता ही नहीं। 


फिर भी.... 


संयम नहीं टूटता 


चेतना बेसुध नहीं होती 


व्याकुल नहीं होती साँसें.... 


नेत्र यात्रा नहीं करते 


धड़कनें आतुर नहीं होतीं.... 


जीने का साहस नहीं छूटता.. 


क्योंकि....


निश्चित है उनका पुनर्आगमन 


पुनर्मिलन।......


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


प्रिया सिंह

बहर:- 1222122212221222


 


 


मज़ा परदेश में क्या है उसे समझा नही सकता


सुकूँ जो घर में मिलता है कहीं वो पा नही सकता


 


सुनो ऐ बाग़बाँ गुलशन पे अपने तुम नजर रखना


ये मत समझो खिला जो फूल वो मुर्झा नहीं सकता


 


बुढ़ापे की थकन कर लो जवानी मे ज़रा महसूस


जो लम्हा बीत जाता है वो वापस आ नहीं सकता


 


मेरे कदमों में गिर कर आज मुझ से कह रहे थे वो


मेरे दिल में फक़त है प्यार जो दिखला नहीं सकता 


 


खता क्या हो गई मुझ से जो लोगों से वो कहता है


मै उस की बात को दिल में कभी दफना नहीं सकता


 


वो बुज़दिल हैं लडाई से जो पहले हार जाते हैं


अगर है अज्म दिल में फिर कोई सर्का नहीं सकता


 


मुकद्दर में लिखा था जो वो प्रिया हमने पाया है


है गुत्थी ज़ुल्फों सी उलझी कोई सुलझा नही सकता


 


प्रिया सिंह


कालिका प्रसाद सेमवाल

*प्यार जीवन की धरोहर है*


*******************


प्यार जीवन का सार है


इसकी अनुभूति


किसी योग साधना


से कम नहीं है,


इसके रूप अनेक हैं


लेकिन


नाम एक है प्यार।


 


प्यार रिश्तों की धरोहर है


और इस धरोहर


को बनाये रखना


हमारी संस्कृति


और जीवन का सार है,


यह मानवता का अंश है


इसी से जीवन में


आनन्द की अनुभूति होती है


यह अनमोल है।


 


प्यार जीवन की धरोहर है


निर्झर झरनों की तरह


हमारे दिलों में


बहता रहे,


एक दूसरे के निकट लाता है


यही जीवन की


सच्ची धरोहर है। 


 


जिस प्रभु की कृपा से 


हमें यह जीवन मिला है,


उस परम पिता परमात्मा


को हमेशा प्यार से


सुमिरन करें,


जिसने हमें 


जीवन दिया है,


इस धरा धाम 


पर हमें प्यार से लाया है।


 


प्यार सब प्राणियों से करे


उन बेसहारा


बच्चों से करें


जो अभाव में अपना 


जीवन यापन कर रहे है,


उन नन्हे-नन्हे बच्चों से भी


प्यार करो


जो कुपोषण के शिकार हैं


और जो अनाथ है।


 


आओ कुछ अच्छा करें


हम सब संकल्प लें,


हम सभी के प्रति


प्यार का भाव रखेंगे


किसी के प्रति


बुरे विचार गलत दृष्टि


नहीं रखेंगे,


तभी यह जीवन सफल हो सकता है।


*************************


कालिका प्रसाद सेमवाल


           प्रवक्ता


जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रतूड़ा


 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनीता असीम

हुए हैं रात के साए भले घनेरे भी।


चले चलो कि मिलेंगे तुम्हें सबेरे भी।


***


समझ नहीं पा रहे हम हिसाब तुम्हारा।


बनाए हमने तो थे प्यार के जजीरे भी।


***


ढली हुई ये जवानी लिए चलोगे जब।


तुम्हें ज़रा भी दिखेंगे नहीं सहारे भी।


***


निकल रहा ही नहीं नाग का जहर बिल्कुल।


लगे हुए हैं हजारों यहां सपेरे भी।


***


नहीं तुम्हें आ रही नींद क्यूं बताओ तो।


कि आसमाँ में सभी सो रहे सितारे भी।


***


सुनीता असीम


२९/५/२०२०


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः.....*बारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


दोहा-जदि अभ्यास न करि सकहु, करउ कर्म निःस्वार्थ।


        कर्म परायण होइ मम,पावहु सिद्धि गुढ़ार्थ।।


जदि करि पुनः अइस अभ्यासा।


समुझि सकेउ नहिं मर्म खुलासा।।


      तब मम ग्यान परोक्ष श्रेयस्कर।


      त्याग कर्म-फल इच्छा बेहतर।।


देवहि त्याग सांति तत्काला।


मोरि प्राप्ति कै नहीं निठाला।।


     सांत चित्त जन परम दयालू।


     मद अरु द्वेषयि रहित कृपालू।।


निर्मोही, सुख-दुख समभावा।


छिमासील अस जनहिं सुभावा।।


     ध्यानहिं योग युक्त जे योगी।


     तन-मन-इंद्रिय-बसी जे भोगी।।


निस्चय दृढ़ी व मन-बुधि-अर्पित।


भगत मोर अस मोंहि समर्पित।।


     अस मम भगत परम प्रिय मोरा।


      अति सहिष्णु सुनु कुंति-किसोरा।।


मम प्रिय भगतहि मन नहिं खिन्ना।


हर्ष-अमर्ष नहीं उद्बिगना ।।


      कर्तापन त्यागी प्रिय मोंहीं।


      भक्त अनिच्छ साँच सुनु तोहीं।।


सुभ अरु असुभ सकल फल त्यागी।


सोच-कामना रहित सुभागी ।।


      मम प्रिय भगत अहहि ऊ मोरा।


      करै भजन मम भाव-बिभोरा।।


मित्रइ- सत्रु,मान-अपमाना।


सरद-गरम सभ एक समाना।।


     सुख-दुख-द्वंद्वासक्ति बिहीना।


      भक्ति-भाव मन जासु न छीना।।


अस जन मोंहें बहु प्रिय लागहिं।


अस मम भगतहिं परम सुभागहिं।।


दोहा-जे निष्कामइ भाव से,करै अमृतइ पान।


        धर्ममयी रस जासु कै,अस मम भगत महान।।


        श्रद्धामय रह ततपरइ,मोरि प्राप्ति जे नर।


         पावै ऊ मम परम गति,औरु आश्रयइ घर।।


                        डॉ0हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


                   बारहवाँ अध्याय समाप्त।


डॉ0हरि नाथ मिश्र            

1 *सुरभित आसव मधुरालय का*


ढुरे पवन हो मस्त फागुनी,


ऋतु ने ली अँगड़ाई है।


एक घूँट बस दे दे साक़ी-


आसव की सुधि आई है।।


           भरा हृदय है कड़ुवापन से,


            रीति भली नहीं लगती है।


            चिंतन-कर्म में अंतर लगता-


            उभय बीच इक खांई है।।


अमृत सम मधुरालय-आसव,


जिसको चख जग जीता है।


व्यथित-विकल तन-मन की हरता-


आसव द्रव अकुलाई है ।।


            मधुरालय को तन यदि मानो,


             साक़ी प्राण-वायु इसकी।


             बिना प्राण के तन है मरु-थल-


             साक़ी,पर,भरपाई है ।।


सागर-साक़ी का है रिश्ता,


प्रेमी-प्रेयसि के जैसा ।


दोनों मिल बहलाते मन को-


जब-जब रहे जुदाई है।।


            मधुरालय मन-शुद्धि-केंद्र,


            तो साक़ी पूज्य पुरोहित है।


            धुले हृदय की कालिख़ सारी-


             हाला सद्य नहाई है ।।


धारण कर लो पूज्य मंत्र यह,


यहीं से सुख का द्वार खुले।


अब विलम्ब मत करना भाई-


सुर-शुचिता यह पाई है।।


            डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


अमायन भिंड मध्यप्रदेश 

राम की महिमा


राम की महिमा सबने गाई ।


वाल्मीक रामायण बनाई ।


सीता मां की कीन्ह सहाई ।


प्रथम कबि वाल्मीक कहाई ।


जग मे आदर्श नीति बनाई ।


राम चन्द्र को पात्र बनाई ।


सारे जग मे पुज गये भाई ।


उल्टे नाम से महिमा पाई ।


दया नाम ने दई दिखाई ।


डाकू से दये कबी बनाई ।


बालकृष्ण प्रभू महिमा गाई ।


हनुमंत रक्षा करते भाई ।


राम की महिमा जग को दिखाई ।


सागर ऊपर छलांग लगाई ।


लंका को बर्बाद कराई ।


रावण को दिए धूल मिलाई ।


धर्म की रक्षा जग मे कराई ।


राम की महिमा सबने गाई ।


     पंडित बालकृष्ण पचौरी 


  


अमायन भिंड मध्यप्रदेश 


मोबाइलनंबर 9926246192


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

श्रीमती आशा त्रिपाठी


पत्नी-श्री शशिकान्त त्रिपाठी


मूल निवासी-ग्राम अकबरपुर,पो० केराकत जिला जौनपुर उ०प्र०


कार्यरत- जिला कार्यक्रम आधिकारी,सहारनपुर।(वर्तमान)


दूरभाष-9412968923


परिचय-1999 की लोक सेवा आयोग से चयनित क्लास द्वितीय अधिकारी।


शिक्षा-एमए अर्थशास्त्र व अंग्रेजी,


       बी०एड०.


कृत्य-आशा के गीत पुस्तक का प्रकाशन।


रेडियो नजीबाबाद मे बक्तत्य ,


समाचार पत्रों मे नियमित सामाजिक लेखन,पत्र पात्रिकाओं मे कविताओ का प्रकाशन।


1999 से पूर्व कविसम्मेलन में भाग।


गोरखपुर रेडियो में लोकगीत गायन भोजपुरी मे (1995-1998 तक)


प्रशासनिक आयोजनो में मंच संचालन,


*कवितायें*


1-शाश्वत प्रेम रुप छवि निर्मल


 सकल जगत सुखदायक श्याम।।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


मृदुल बॉसुरी की धुन प्यारी।


राधा भूलें सुध वुद्ध सारी।


बरसाने का कण-कण पुलकित


रास रचैया हे गिरधारी।


भक्ति भाव से मीरा नाची।


त्यागा राज भोग सब काम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


कुँज बिहारी ,हे वनवारी


नटवर नागर हे गिरधारी।


माखनचोर,बने रण छोड़,


तुमने प्रभु सब बात विसारी।


तुम्हे ही ध्यायू तुम्हे पुकारूँ।


निशिदिन आठों याम।।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


नाग नथैया जगत खिवैया,


यशुमति प्रिय बलदाउ भैया।


कंस विदारे द्रोपदी को तारे।


मन मोहन तुम जगत रचैया।।


राधा-श्याम मोहक मनभावन,


युगल छवि नयन सुखधाम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।*


जन मन रंजन प्रभु भय भंजन,


प्रीत रीति रस मंगलकारी।।


मुरलीधर ,हे नटवर नागर,


गोपियन राधा कृष्ण मुरारी।।


राधा रमणा , मन ब्रजधाम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या*


*मीरा के घनश्याम*।।


2- 


*मेरे हमदम साथ निभाना*


मै दीपक तू नेह की बाती,


मै खूशबू तू गेह की थाती।


प्रीत जिया की ना विसराना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*।।


 


आलम्ब प्रीत हिय मंजुल दर्पण,


शिखर बंध मन आत्म समर्पण।


मै राधा तू मोहन मेरा


शाश्वत तन-मन लौकिक अर्पण।।


मधुर प्रीत रस गंग बहाना।।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


मधुरिम भाव सुरभित निज यौवन,


कुसुमित मन उपवन नव जीवन।


नवल रुप श्रीगाँर तुम्ही से।


पुलकित हृदय ,पल्लवित घर आँगन।।


गृह उलझन बहुविधि सुलझान।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


बंधन पूर्ण ,उर्मिल भव आशा।


 मर्यादा वंदित कुल भाषा।


 निखिल गेह की आभा तुमसे,


  पुण्य प्रेम की तुम परिभाषा।।


  कर्म योगी बनके दिरवलाना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


मै छाया तुम दर्पण प्रियतम,


विरत रहे जीवन से दुःख तम।


तुझ संग पार भँवर से जाऊँ।


एक पल तुझको ना विसराऊँ।।


सात जनम तक साथ निभाना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


3- 


*तेरी याद मुझको सताती बहुत है*।


ख्वाबों में मेरे खयालों मे तुम हो,


धड़कते दिलो की पनाहों में तुम हो।


तुम्ही मेरे आँखों के नूर प्रियतम।


छवि तेरी प्रीतम रुलाती बहुत है।।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


वो कागज कलम नेह की रोज पाती,


वो नीदें चुराना,दिल की अमिय थाती।


पलको की गहरी लरज रोज निरखूँ।


हृदय रुह मिलने को पल पल सताती।


अल्हड़ प्रेम पाती लुभाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


वो चोरी से मिलना,वो मिल के सताना,


निगाहों-निगाहों मे सब कुछ सुनाना।


मै हूँ बस तुम्हारी यही राग गाना।


 प्रति पल जिया मे तेरा ही तराना।


तेरी प्रीत आतुरता जगाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


तुम्ही प्रीत-संगीत जीवन सुधा हो,


तुम्ही भाव-धड़कन कवित की विधा हो।


तुम्ही मीत मोहन हरित नद्य मन में।


तुम्ही प्राण मेरे तुम सबसे जुदा हो।।


तुम्हारी अदा मुझको भाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


ये सावन सुहाना ये मधुरिम फिजांये।


रिमझिम सी बारिश ये शीतल हवाँए।


अमवा की डारी पे बोले कोयलियाँ,


चातक है चपल पपिहा मुस्कुराये।


ये सावन अगन भी लगाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है


 


4- भारत माँ मुसकाई है।


रीत गीत नवगीत की धरती,


राम-कृष्ण मधुप्रीत की धरती।


अखण्ड देश आर्याव्रत की,


  वीरों ने अलख जगाई है।


भारत मॉ मुसकाई है।।


 


सुमधुर-सुरभित कश्मीर की घाटी।


गुलमोहर केशर की माटी।


 संस्कृति सुभग सुगंधित परिपाटी,


  दुर्योधन की कुटिल चाल से,


  स्वर्ग ने मुक्ति पाई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  आजाद ,भगत सिंह की कुर्बानी,


  विवेकानन्द की अमृत वानी।।


  अमर शहीद झाँसी की रानी।


  अमर वीर गौरव गाथा की।


  मोदी ने शान बढ़ाई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  भारत भाल मुकुट अभिनन्दन,


  कश्मीर खण्ड वसुधा का चन्दन।


  हृदय कोर से शत शत वन्दन।


  नवल सुधारस से सिंचित हो,


  नवल चेतना आई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  5 अगस्त की अमर क्रान्ति,


  दो सिंहों ने इतिहास लिखा।


  एकता देश की खण्डित की


  उस धारा का ही नाश लिखा।


  यह धरती आज निहाल हुयी,


   केसर ने ली अँगड़ाई है,


भारत माँ मुसकाई है।


अद्भुत अलौकिक आल्हादित जन,


चहुँ ओर खुशी से पुलकित मन।


उत्साह चरम पर विजय प्रखर।


गौरव गरिमा से गर्वित तन।


डल का उपवन फ़िर महक उठा ।


घाटी फिर से हर्षायी है।


भारत माँ मुसकाई है


5-


भारत का अभिमान है हिन्दी।


 


सरस ,सहज,नवरस अभिलाषा,


जन-मन- गण की सुरभित भाषा।


शुभग कलश पूरित नव आशा।।


ओज परम् शुभ गान है हिन्दी।


सहज कण्ठ मृदु बान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


शुभग ,मुदित,मकरन्द यही है,


भाव,भक्ति,कवि छन्द यही है।


भारत भू की विस्तृत भाषा।


संपूर्ण धरा की गंध यही है।।


संस्कृति देश प्रतिमान है हिन्दी।।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


प्रेमचन्द्र की अद्भुत रचना,


अभिव्यक्ति की सरल संरचना।


गरल काव्य नव छ्न्द विपुल हो,


हिन्द प्राण प्रण शब्द अतुल हो।


प्रेम प्रीति रसगान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


मीरा के भावों की गागर,


महादेवी का अविरल सागर।


रामकथा शोभित तुलसी की।


नानक ,कबीर,रसखान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


हृदय कुंज ,भव पुंज सहजता,


अस्तित्व हिन्द, तम तेज सरसता।।


अमिय प्रीति से पूर्ण विधा यह,


मातृभूमि की प्राण सुधा यह।


आन बान और शान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


हिन्द देश की प्राण प्रिया यह,


वन्दनीय जन-मान जिया यह।।


काव्य ,ग्रन्थ,पुराण आत्म भव,


गीत ,रीत ,संगीत छन्द नव।


शारदा सृत वरदान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


विश्व पद्म पद पावन हिन्दी,


सरस,सहज मनभावन हिन्दी।


शाश्वत मृदुल लुभावन हिन्दी।।


जन मन रंजन गायन हिन्दी।।


"आशा" की पहचान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी


✍आशा त्रिपाठी


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राम कुमार झा "निकुंज"

कवि ✍️परिचयः डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "


राष्ट्रवादी कवि डॉ. राम कुमार झा ,पिता- विद्यावारिधि वैयाकरण कवि स्व. पं शिव शंकर झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास, अंकुर विहार लोनी(एन. सी. आर. दिल्ली),गाजियाबाद, (उ. प्र )में है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला,नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, कुरुक्षेत्र वि. वि.), एम. ए. ( संस्कृत,इतिहास,पटना वि. वि.) बी.एड.,एल.एल.बी. (पटना वि. वि.),पीएच-डी. (दि.वि. वि.)और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र -वरिष्ठ अध्यापक ,केन्द्रीय विद्यालय, पुष्पविहार,साकेत, नई दिल्ली (मा.सं.वि.मं.,भारत सरकार) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में २५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर माँ भारती सह हिन्दी भाषा साहित्य के महिमामंडन में अपनी चारुतम अनमोल लेखिनी के माध्यम से विगत चालीस वर्षों से सक्रिय हैं। सारस्वत काव्यमय परिवार प्रसूत डॉ. झा की लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में चार काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली, कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में "महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च" (समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं "सूक्ति-नवनीतम्" "काव्य-मंजरी" और मैथिली भाषा में "आउ बचाउ मिथिला के" भी आने वाली है। वर्तमान अंकूर, काव्यस्पदन, हरियाणा प्रदीप, साझा गीतिका संकलन, ,श्री सुदर्शनिका साहित्यिक मंच, हौंसलों की उड़ान, प्रभा श्री, म ग स म रविवार , साहित्य रचना गुजरात , काव्य कलश, साहित्य किरण मंच, प्रभा श्री मंच, दिल्ली कवि सम्मेलन , काव्यगंगा, साहित्य गंगा , साहित्य सुगम संस्थान, साहित्य सागर, काव्यांचल, भावांजलि ,हिन्दी भाषा.कॉम , निःशब्द, भावांजलि, काव्यांजलि, भावसरिता , बज़्म -ए -हिन्द , हंस, आराध्या, परख, साहित्यांकुर, नवांकुर, दोहा समीक्षा मंच, साहित्योदय, रचनाकार मंच दिल्ली, काव्य रंगोली पचास से अधिक काव्य संकलनों , बिहार नवभारत टाइम्स,अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका सूर्यप्रभा जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं और अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य , संरक्षक,मानद कवि साहित्य गौरव, देवल पुरस्कारों से पुरष्कृत और ख्यातिलब्ध संस्था "अन्तर्नाद" का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण सह कवि विद्यावारिधि स्व.पं. शिवशंकर झा और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। आपने पटना, जम्मू , गंगटोक सह कोलकाता आकाशवाणी केन्द्रों में प्रखर वार्ताकार ,कवि सह एकांकीकार के रूप में अपनी सक्रिय भागीदारी सह सम्मानित युवा लेखक, राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी साहित्यकार के रूप में सुकीर्ति अर्जित की है। डॉ. झा ने भंगिमा, अरिपण, साहित्य कला मंच, अंतरंग , विशाल जननाट्य मंच (मैथिली ,हिन्दी,और भोजपुरी भाषा से सम्बद्ध )अनेकों रंगमंच को अपने अभिनय से गौरवान्वित किया है। डॉ. झा एक प्रखर वक्ता, राष्ट्रवादी यथार्थ सह प्रगतिपरक कवि, लेखक कथाकार, एकांकीकार सह समालोचक रहे हैं। हिन्दी, संस्कृत,अंग्रेजी,बंगला, असमिया, नेपाली , मैथिली, भोजपुरी आदि भाषाओं के अबाध वाक्पटुता कवि डॉ.निकुंज के बहु आयामी व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है। मिथिलावासी श्रोत्रिय मैथिल द्विजश्रेष्ठ डॉ. झा पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता भी रह चुके हैं। छात्र जीवन से ही पठन-पाठन-वाचन में परम मेधावी स्वावलंबी संघर्षशील डॉ. झा एन.सी.सी, एन.एस.एस और भारत स्काउट्स एवं गाइड्स एवं अनेक सामाजिक , सांस्कृतिक कार्यों में पूर्ण सक्रिय रहे हैं। डॉ. झा वर्तमान में लीडर ट्रेनर (स्काउट संभाग) भी हैं। जीविका वृत्ति के क्रम में विगत २८ वर्षों से डॉ. झा ने सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपने शिक्षण द्वारा राष्ट्र निर्माण में अहं भूमिका का निर्वहण किया है। महाभारत की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति पर संस्कृत भाषा में दिल्ली वि.वि.से पी. एच. डी. करने वाले डॉ. झा इतिहास के प्रखर छात्र रहे हैं। धार्मिक व्यक्तित्व के धनी डॉ. झा भावात्मक संवेदनशील, सरस, सरल, मृदुभाषी, उदारचेता सिद्धान्तवादी स्वाभिमानी गुणों के सम्पूट संगम हैं। दो मेधावी अभियंता पुत्रात्मजा के जनक डॉ. झा की धर्मपत्नी डॉ. निशि कु. झा भी एक मेधावी विज्ञान छात्रा, सुधर्मिणी सह प्राध्यापिका के रूप में दायित्व निर्वहण कर रही हैं। डॉ.झा सदृश बहुगुणोपेत सारस्वत भारती पूत का परिचय देना किसी भी साहित्यकार, पत्रकार या संपादक वा संस्थाओं के लिए गौरव और सम्मान की बात है।


कवि डॉ. निकुंज की साहित्यिक प्रकाशित काव्य संग्रह और 


साझा काव्य संग्रह का विवरण लघु रूप में नीचे दिया जा


 रहा हैः --- 


 


१. युगान्तर- काव्यसंग्रह , काव्या प्रकाशन , इन्दौर 


२. उद्बोधन - काव्यसंग्रह , वर्तमान अंकुर प्रकाशन , नयी दिल्ली


३. शंखनाद- काव्यसंग्रह , नीलिमा प्रकाशन , दरियागंज , नयी दिल्ली 


 ४. नवांकुर - साझा काव्य संग्रह , वर्तमान अंकुर प्रकाशन , नयी दिल्ली


  ५. भाव सरिता , साझा काव्य संग्रह, भोपाल


 ६. भाव से कविता तक - साझा काव्यसंग्रह, पंख प्रकाशन ,मेरठ


 ७. मेरी कलम - सत्यम प्रकाशन , दिल्ली


 ८. नूर ए ग़ज़ल - साझा काव्यसंग्रह ,वर्तमान अंकुर प्रकाशन , नयी दिल्ली


  ९. कारगिल के शहीद - साझा काव्य संग्रह, चित्रगुप्त प्रकाशन,नयी दिल्ली


  १०. मातृ-पितृ विशेष काव्यसंग्रह, चित्रगुप्त प्रकाशन ,नयी दिल्ली


  ११. अश्क प्रीत के - साझा काव्य संग्रह , निखिल प्रकाशन , आगरा


१२. प्रीत मीत से- साझा काव्य संग्रह, निखिल प्रकाशन,आगरा


१३. अश्क मीत से - साझा काव्य संग्रह , निखिल प्रकाशन, आगरा


 


12. सम्मान(यदि हो तो अधिकतम 5)


     १. काव्य गौरव सम्मान , वर्तमान अंकुर ,नोयडा 


     २. साहित्य प्रज्ञ सम्मान , युगधारा प्रकाशन,लखनऊ


     ३. साहित्य देवल सम्मान , वर्तमान अंकुर, नोयडा


     ४. साहित्य काव्य गौरव सम्मान , हरियाणा प्रदीप, गुड़गांव 


     ५. शाश्वत शृङ्गारिक सम्मान - निखिल प्रकाशन ,आगरा 


     6. अनुभव साहित्य सम्मान - अश्क प्रीत से ,मेरठ 


     7. साहित्य गौरव सम्मान - पंख प्रकाशन, मेरठ


     8. काव्य सागर सम्मान,श्री सत्यम प्रकाशन,झुंझूनी     


      (हरियाणा)


प्रकाशनार्थ प्रेसगत ग्रन्थः 


 


१. कराहती सम्वेदनाएँ (काव्य संग्रह)


२. पुकारे माँ भारती (काव्य संग्रह) 


३. गीत प्रीति के मधु मिलन 


 


संस्कृत मेंः 


 


१. महाभारते अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धः कूटनीतिश्च (आलोचनात्मक शोध ग्रन्थ।


 २. सुक्ति नवनीतम्  


 


 राष्ट्र भारत और हिन्दी भाषा प्रेम और भक्ति से ओत प्रोत कवि लेखक साहित्यकार डॉ. का सम्पूर्ण व्यक्तित्व देश और हिन्दी भाषा के प्रति उनके अधोलिखित विचार(दोहा) से प्रकटित हो रहा है --- 


स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।


जिसने दी है जिंदगी , बढ़ा शान दूँ जान॥


ऋण चुका मैं धन्य बनूँ ,जो दी भाषा ज्ञान।


हिन्दी मेरी रूह है , जो भारत पहचान॥


राजेश_कुमार_सिंह

#कविता_के_फूल - 15 


#जो_दर्द_जो_सबको_होता_है l


 


कौन कहता है  


कि आमिर के दिल में,


 दर्द नहीं होता है l 


उसका दिल भी अंतर्मन की पीड़ा से


नहीं रोता है ll


 


फर्क इतना है, कि वह कहता नहीं है 


तनाव तो लगभग बराबर ही रहता है l


भौतिक सुख भी,


कोई कम दुःख नहीं देता है ll


 


गरीब का बच्चा ,


भूख के कारण नहीं सोता l


होने के नशे में 


तनाव के कारण नहीं सोता ll


 


मांगता है ,महंगा ,सूट 


और महगी गाडी,


टूट जाती है ,बड़ी पूजी की कमर l


गरीब का बेटा ,बनियाइन क्या मांग बैठा,


मुश्किल कर दी गरीब बाप की डगर ll  


 


गरीबी के कारण ,


भोजन के लाले पड़ जाते है


अमीर अमीरयत की बीमारियो के चक्कर में ,


  निवाले निगल नहीं पाते हैं ll   


 


#राजेश_कुमार_सिंह


अविनाश सिंह

*हाइकु*


*--------------*


 


द्वार माँ के


खुले रहते रोज


लो आशीर्वाद।


 


माँ का उदर


गरीब या अमीर


रहता गर्म।


 


होंगे साकार


वो दिन के सपने


कर्म अपने।


 


माँ की ममता


दिव्य ज्योति के रूप


दे हमें सुख।


 


नव माह में


होता शिशु का जन्म


माँ क्यों दुश्मन?


 


माँ सूरज है


देती धूप समान


न अभिमान।


 


गले लगाती


गोद मे ही सुलाती


माँ कहलाती।


 


कन्या का दान


है सबसे महान


दहेज दान?


 


दुल्हन दुखी


विदाई वाले दिन


हो गमगीन।


 


तेरा मिलना 


दो फूल का खिलना


संग है जीना।


 


प्रेम का वास


चाहते हो घर में


तो रहो पास।


 


माँ बाप हैं


घर-घर के द्वीप


देव समीप।


 


स्वर्ग के द्वार


है माँ बाप के पास


रखों विश्वास।


 


*अविनाश सिंह*


बलराम सिंह यादव धर्म एवं अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कॉलेज खमरिया पंडित लखीमपुर खीरी

चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका।


भये नाम जपि जीव बिसोका।।


बेद पुरान संत मत एहू।


सकल सुकृत फल राम सनेहू।।


 ।श्रीरामचरितमानस।


  चारों युगों में,तीनों कालों में और तीनों लोकों में रामनाम को जपकर जीव शोकरहित हो गये।वेदों,पुराणों और सन्तों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल प्रभुश्री रामजी के नाम में प्रेम होना है।


।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।


  भावार्थः---


  चारों युगों अर्थात सत्ययुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग व कलियुग में, तीनों कालों अर्थात भूतकाल, वर्तमानकाल व भविष्यकाल में तथा तीनों लोकों अर्थात स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक व पाताललोक में प्राणियों का शोकरहित होना केवल रामनाम के जप करने से ही सम्भव हुआ है।वैसे तो तीन लोकों के अतिरिक्त चौदह लोकों का भी उल्लेख मिलता है।इनमें भूलोक,भुवर्लोक,स्वर्लोक,महर्लोक,जनलोक,


तपलोक और सत्यलोक ऊपर के लोक हैं तथा अतल, वितल,सुतल,तलातल,महातल,रसातल और पाताल लोक नीचे के लोक हैं।


 विशोक कहने का भाव यह है कि रामनाम के जप करने से सभी जीव जन्म,जरा,मृत्यु के त्रिताप से मुक्त हो गये।


  वेद,पुराण व सन्त मत कहने का भाव यह है कि ये सभी एक स्वर से इस बात को स्वीकार करते हैं कि सभी पुण्यों का फल रामनाम में प्रेम होना ही है।अर्थात समस्त पुण्यकर्म उसी परमब्रह्म को प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं।परमब्रह्म परमात्मा ही सच्चिदानन्द है अर्थात वही सत्य,चेतन और आनन्द स्वरूप है।शाश्वत सुख की प्राप्ति एवं दुःख का विनाश भगवान की भक्ति के बिना सम्भव ही नहीं है।गो0जी ने उत्तरकाण्ड में श्री काकभुशुण्डि जी के मुख से श्रीगरुड़जी को यही उपदेश देने की बात कही है।यथा,,,


सिव अज सुक सनकादिक नारद।


जे मुनि ब्रह्म बिचार बिसारद।।


सब कर मत खगनायक एहा।


करिअ रामपद पंकज नेहा।।


श्रुति पुरान सब ग्रँथ कहाहीं।


रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।।


  गुरु व सन्तजनों की सेवा करने से भजन करने की विधि प्राप्त हो जाती है।इससे हृदय में जो प्रकाश हो जाता है उसे ही सभी सुकृत्यों का फल कहा जा सकता है।वास्तव में यही रामस्नेह है।गुरुदेव वशिष्ठजी स्वयं यही बात कहते हैं।यथा,,,


जप तप नियम जोग निज धर्मा।


श्रुति सम्भव नाना सुभ कर्मा।।


ग्यान दया दम तीरथ मज्जन।


जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन।।


आगम निगम पुरान अनेका।


पढ़े सुने कर फल प्रभु एका।।


तव पद पंकज प्रीति निरन्तर।


सब साधन कर यह फल सुन्दर।।


********************


सोइ सर्वग्य तग्य सोइ पंडित।


सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित।।


दच्छ सकल लच्छन सुत सोई।


जाकें पद सरोज रति होई।।


।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।


।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


मनोज श्रीवास्तव

***.


आम आदमी


 


आम हो गयाआदमी जहां भी समझो उसे लगाओ


 


कच्चे की बन जाये खटाई या अचार बढ़िया बनवाओ


 


पक जाए तो मीठा इतना अमरस बनता और मिठाई


 


मैंगो शेक त्रप्त कर देता स्वाद न उसका याद दिलाओ


 


!


 


वैसा ही है आम आदमी चाहे उसको जहां बुला लो


 


मिल जायेगा आसानी से बस अपने नारे लगवा लो


 


दंगा भी भड़काने वाले मिल जाते हैं आसानी से


 


जगह जगह दारू मिलती है ठेके वाली ही करवा लो


 


!


 


आम आदमी आम पार्टी आम सभा की बात निराली


 


कवि सम्मेलन खत्म हो गये घर पर ही बजवा लो ताली 


!


मनोज श्रीवास्तव


 


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी

"एक गीत की तरह"


                   एक कविता 


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एक गीत की तरह 


कोई आवाज़ आती है 


मीठी सी प्यारी सी 


कदाचित् वह कोयल है जो 


गीत गाती है 


हर सुबह हर शाम.........


 


जगाकर मेरे सुप्त हृदय को 


खो जाती है या 


छिप जाती है नीड़ में 


बस देखता रहता हूँ देर...तक 


उस छायादार बृक्ष को 


हर सुबह हर शाम...... ....


 


फिर जाती है नज़र 


सामने की खिड़की पर जो 


खुलती है ....फिर बन्द हो जाती है फिर खुलेगी जब......


मुझे नींद आने को होगी


देखता रहता हूँ उसी को 


हर सुबह हर शाम ...........


 


कितनी निष्ठावान है


वह कोयल वह चेहरा जो 


छिपाये हुए है हृदय में


कसक, वेदना और पीड़ा को 


और मैं.. ....चौंक पड़ता हूँ


ज़रा सी आहट पर 


कदाचित् वो.... आयें 


जोहता हूँ राह 


हर सुबह हर शाम..........


Q


रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग

जीवन नन्दन मंजुल मेला


********************


प्रिय तुम मुझसे दूर न जाओ,


मेरे मन में आज नशा है।


घूंघट खोल रही हैं कलियां,


झूम रही मतवाली अलियां।


नन्दन वन की वायु चली है,


सुरभित दिखी आज गली है।


लगती सुखमय मधुरिम बेला,


जीवन नन्दन मंजुल मेला।


उठती मन में मधुरिम आशा,


मिटती सारी थकित पिपासा।


 


तुम भी हंस दो मेरे, प्रियवर,


आज़ गगन में चांद हंसा है।


 


तुम कुछ लगती इतनी भोली,


जैसे कोयल की मधु बोली,


तुमको पाकर धन्य हुआ मैं,


औरों का तो अन्य हुआ मैं।


तुमसे सारा जीवन हंसता,


तुम पर मेरा मन है रमता।


मेरे मन की तुम्हीं कली हो,


तेरे मन का एक अली हूं।


 


घूम रहा हूं आज चातुर्दिक्


नयनों का यह बाण धंसा है।


 


मेरे मन में आज विवश लाचारी,


तुम पर मैं जाता बलिहारी।


कंचन सी यह तेरी काया,


मेरे मन की सारी माया।


खींच रही है बरबस मन को,


तोड़ रही है सारे प्रन को।


अंचल छोर तुम्हारा उड़ता,


मेरे मन में गान उमड़ता।


 


रिमझिम चलती मधुर बयारें,


मेरे मन में प्यार बसा है।


 


मोड़ चुका जो जीवन मन को,


उसके बिन सम्भव क्या जन को।


लोल लहरियां उर के कोने,


भाव रचाकर जाती सोने।


हंस हंस कर तुम मत मुड़ जाओ।


बिछुड़न की नित रीत निराली,


मिलना संभव दो दिन आली।


 


अंग अंग थिरक रही हैं माया,


वस्त्र सुसज्जित-रूप रूप तुम्हारा।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ हरि नाथ मिश्र

सुंदर सोच-


आँसुओं से भरी जिंदगी,


दर्दे दोज़ख़ से होती है बढ़कर।


बेसमय मौत इसकी दवा है-


करना ऐसा नहीं होता हितकर।।


   लोग कहते हैं फाँसी पे ख़ुद को,


   है चढ़ाना बहुत कायराना।


   ज़िंदगी खूबसूरत सफ़र है,


   ऐसे-तैसे में उसको गवाँना।


गिरना-उठना औ फिर उठ के गिरना, 


बस यही ज़िंदगी का तकाज़ा।


ज़िंदगी के हर इक पल को जीना-


होता सदा जग में सुख कर।।


    आते तूफ़ान जो ज़िंदगी में,


    उनको आना है, आते रहेंगे।


    काम है छोटे दीपक का जलना,


    उसको तूफाँ बुझाते रहेंगे।


ग़म नहीं चाँदनी को भले ढक लिया,


जो छाये रहे नभ में बादल।


देते मौक़ा उसे ही तो बादल-


निकलने का ख़ुद फिर से छट कर।।


   ज़िंदगी के कुरुक्षेत्र में,


   पाण्डु-कौरव सदा ही रहे हैं।


   पांडु साहस औ धीरज से अपने,


  दंड कौरव के सारे सहे हैं।


युद्ध होना था वो तो हुआ ही,


और लड़ना पड़ा अपने लोंगो से।


पर,सफलता मिले बस जरूरी-


सारथी कृष्ण सा होना बेहतर।।


   पतली धारा निकल पर्वतों से,


   करती संघर्ष है जब उतरती।


   धर के आकार विस्त्रित धरा पे,


   वो उमड़ती-घुमड़ती है बहती।


पिलाती जलामृत सभी जंतुओं को,


बहती-जाती अवनि पे निरंतर।


अंत में उसको मिलता मिलन-सुख-


संग सागर जो होता श्रेयस्कर।।


   मुश्किलों में तराशा मुसाफिर,


   अपनी मंज़िल का बनता चहेता।


   बस उसी को नहीं कुछ है मिलता,


   जोखिमों से जो मुँह मोड़ लेता।


लड़ते-लड़ते अखाड़े का अंतिम,


होता योद्धा ही उत्तम विजेता।


घिसते-घिसते शिला पे ही मेंहदी-


सुर्ख़ होती सुनो, मेरे प्रियवर।।


ज़िंदगी के हर इक पल को जीना, होता सदा जग में सुखकर।।


          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हालात है या हालत ,अवसर है या अवसान ।।                    


 


जिंदगी बन गयी पहेली है खो गया इंसान।।                             


 


 जिंदगी के बोझ में दब गया है इंसान।         


 


जिंदगी के इस दौर में थक गया है इंसान ।।                             


 


क्या करे ,क्या ना करे मध्य उलझ गया है इंसान।                             


 


कर्ज से फर्ज का किया निर्बाह् बेटे कि महंगी पढ़ाई से हो गया तबाह।।                          


 


बेटा बना इंजीनियर मिलता नहीं इंजीनियर को काम ।         


 


गर काम मिल गया तो मिलता नहीं है दाम ।                    


 


न्याय के मंदिर के पुजारी अंधे क़ानून का चौकीदार ।।              


 


 काला कोट पहने शुरू कि वकालत बीत गए दो चार साल।।


 


आमदनी नहीं जेब खाली बचाते अपनी लाज।                        


 


 गावँ ,शहर, कस्बों में ऐसे नौजवान गले में टाई खुबसूरत लिबास।।                     


 


पहचान देश में विक्रय का बादशाह । कुछ नहीं बचा है फिर भी नहीं गयी मुस्कान।।      


 


 रसूख उसका अब भी बरकरार


सुरक्षा बेचता जीवन कि खुद हैं असुरसक्षित ।                


 


अभिकर्ता खोज रहा खुद के लिये काम ऊब गया है हो रहा परेशान।।                          


 


 धोबी, नाई ,शहर कस्बे के छोटे कामगार ।                               


 


ना जन धन का खाता ना ही सरकारी कुछ दान ।             


 


मुफ़्त नहीं कुछ भी , मिलाता नहीं कुछ भो बिना कुछ दाम ।।     


 


भीख मांगना ,किसी के सामने हाथ फैलाना है इनका अपमान।     


 


 संघर्ष कर रहे है हालात से लड़ रहे बदलेगा हालात मन में है विश्वाश ।।             


मजदूर नहीं ये इनका अपना स्व रोजगार ।।                            


 


मजदूर से बदतर इनके हालात पंजाब मराठा हो या हो गुजरात।


 


 इनको तो चाहिये सिर्फ बेहतर हालात चैन की दो रोटी सुकून का अपना रोजगार।।


 


 संचार, संबाद ,के सिपाही पत्रकार वक्त के दौर का सबसे बड़ा जाँबाज।                       


 


लड़ रहा है वक्त से बदलने वक्त का मिज़ाज़ ।। खाली पेट है खाली जेब फिर भी जज्बे का जवाँ हिंदुदुस्तान जिंदाबाद ।          


 


 राष्ट्र शान स्वाभिमान के अंदाज़ है आवाज़ ।।                            


 


 राष्ट्र का मध्यम ,निम्न माध्यम वर्ग का यह समाज किसी मुक्त छूट का नहीं हकदार ।      


 


हर कहर, दहसत कि झेलता ये मार । खामोश जुबाँ चेहरे पे मुस्कान। दर्द ,घाव, ढकता अपने इज़्ज़त अभिमान के लिबास।।     


 


  नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"मन वह निर्मल"*


(गगनांगना छंद गीत)


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१६ + ९ = २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS, युगल पद तुकांतता।


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★मन वह निर्मल खिल जाता जो, फूल समान है।


जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


 


★खिल जाए तो प्रीत समझ लो, सुख-आभास है।


मिल जाए तो मीत समझ लो, मंजिल पास है।।


जो न मिले तो भूलो उसको, भूल समान है।


जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


 


★उदधि-अतल हो लहर प्रबल हो, पथ अति दूर हो।


राह न सूझे नैया जर्जर, तन थक चूर हो।।


बीच भँवर में थामे कर जो, कूल समान है।


जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


 


★साथ रहे जो संग चले जो, हितकर जान लो।


हरपल गूँजे गीत सरिस जो, धुन-मन मान लो।।


जो सहला दे हिय हर्षा दे, झूल समान है।


जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


 


★चहका दे जो चमन सही वह, सुख आधार है।


महका दे जो सुमन सही वह, मनु मधु सार है।।


महके-चंदन जान नहीं तो, धूल समान है।


जो न खिले तो जानो उसको, शूल समान है।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश

*_सूरज की तपिश_*


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चिलचिलाती गर्मियों के दरमियां


      इक बात कहनी है,


सूरज की तपिश से हैं परेशां


     इक बात कहनी है।।


 


चढ़ रहे पारे सा दिन धूप


नहीं है शीतल छाया कहीं


प्यासे हैं सब पंक्षी पथिक


कट रहे हैं वृक्ष सारे


इक बात कहनी है।


 


ऐ खुदा रहम कर तूँ


थोड़ी राहत अदा कर तूँ


पांव में छाले पड़े हैं


जीवन पथ में कांटे बड़े हैं


इक बात कहनी है।


 


ऐ मेरे मालिक सुन अरदास तूँ


सूर्य क्यों आग का गोला हुआ


जल रही धरा जल सूख रहा


हे! प्राणियों में प्राण देने वाले


रहें खुश सब इक बात कहनी है।


 


कर रहीं हैं नदियां अरदास तेरा


बरस जल जीवन भर जाए मेरा


लू चले या आग ऊगले


हो करम प्यास सबकी बुझती रहे


सूख रहीं नदियां भर जाए जल तेरा


व्याकुल हो यही इक बात कहनी है।


 


 मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


निशा"अतुल्य"

गीत 


धर्म


28.5.2020


 


मानवता का धर्म निभाओ


 


इंसान अब सच में बन जाओ


मानवता का धर्म निभाओ


जहाँ दिखे कोई भूखा तुमको


उसको तुम भोजन करवाओ।


 


मानवता का धर्म निभाओ


 


गर्मी की जब तपन बढ़े तो


और प्यास से व्याकुल हो मन


ढूंढे जब जल की कोई धारा


ठंडा जल उसको पिलवाओं।


 


मानवता का धर्म निभाओ ।


 


थका हुआ हो कोई पथिक जब


इधर उधर ढूंढे कोई छाँव


मन में तनिक संकोच करो मत


थोडा अपने पास बैठाओ


 


मानवता का धर्म निभाओ ।


 


मिट गया विश्वास जो जग से


उसको कैसे वापस लाएं


करें मंथन हम मिलकर 


चलो मिलकर कुछ वृक्ष लगाएं।


 


मानवता का धर्म निभाएं


 


ठंडी छाँव सड़क पर हो जब


कोई पथिक न फिर घबराएं 


पाकर जीवन ये बहुमूल्य


अपने हमें कर्तव्य निभाएं।


 


मानवता का धर्म निभाएं ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


डॉ सुषमा कानपुर

*मेरी प्यारी अम्मा जी*


 


*सुबह सबेरे जब चिल्लाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*नीम बबुर की दतुइन तोड़ के सुबह सुबह हम लाते थे।*


*एक बल्टी औ लोटिया लइ के कुआं किनारे जाते थे।*


*दुइ बल्टी पानी भरवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*चूल्हे में जब तवा चढ़ाती हम को पास बुलाती।*


 *आ जाओ सब भोजन करने,जोरों से चिल्लाती*।


*एक एक रोटी गरम खिलाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती ,मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*मोमफली औ शकरकंद को आग में भूंज के रखती थी।*


*माटी की दुधहंडिया में वो दूध मूंद के रखती थी।*


*सबको मीठा दूध पिलाती,मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*छोटी वाली भाभी ने कल वीडियो कॉल मिलाया था।*


*फोन कनेक्शन होते ही अम्मा जी को पकड़ाया था।*


*थोड़ा हो जाती जज़्बाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*बिटिया तोहरी खातिर हमने कल ही शहद लिया है।*


*तुरत पेड़ से तोड़ के छत्ता,उसने हमें दिया है।*


*कब अअबू कह कर मुस्काती,मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*बप्पा को पानी देने को जंगल भर में फिरती थी।कभी किसी भी जीव जंतु से,बिल्कुल भी ना डरती थी।*


*बिचखोपड़ी भी मार गिराती,मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*सत्तर की होने को आई,फिर भी मेहनत करती है।*


*हम सब भाई बहनों में वो भेद भाव न करती है।*


*अब भी कितना प्यार जताती,मेरी प्यारी अम्मा जी।*


*खाट खड़ी सबकी करवाती,मेरी प्यारी अम्मा जी।।*


@


*डॉ सुषमा*


*कानपुर*


10-5-2020


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार 28 मई 2020

प्रदीप कुमार पाण्डेय


              (प्रदीप बहराइची)


▪पता - बड़कागाँव, पयागपुर 


 जन- बहराइच (उ. प्र.) 271871


▪शिक्षा- एम.ए., बी. एड्.


▪सम्प्रति- प्रा वि भूपगंज द्वितीय, वि.ख. पयागपुर,जनपद बहराइच में शिक्षक। 


▪लेखन विधा - गीत, कविता,दोहा मुक्तक व ग़ज़ल। 


▪प्रकाशित कृति - 'आ जाओ मधुमास में' (काव्य संग्रह)आकृति प्रकाशन, दिल्ली 


 ▪प्रकाशित साझा काव्य संग्रह- 'मेरी रचना', 'साहित्य संदल', 'नीलांबरा' व 'प्रांजल नवांकुर' प्रकाशित ।


▪रचना का प्रकाशन- 'पाखी', 'ककसाड़', 'कविकुंभ', 'हिचकी', 'स्रवंति', 'सरस्वती सुमन', 'गुफ्तगू', 'बाल प्रहरी', 'रूबरू', 'व्यंजना', 'काव्य रंगोली', 'डिप्रेस्ड एक्सप्रेस', 'हिमालिनी' (नेपाल देश) आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।


▪'अमर उजाला' व 'दैनिक राष्ट्र राज्य' (समाचार पत्र) में रचनाएँ प्रकाशित। 


 ▪'आकाशवाणी लखनऊ' व 'रेडियो रूबरू एफ एम' व 'रेडियो वागेश्वरी एफ एम' से रचनाओं का प्रसारण 


▪ दूरदर्शन लखनऊ पर प्रसारित कार्यक्रम 'साहित्य सरिता' व 'वन्स मोर' में काव्य पाठ। 


▪प्राप्त सम्मान---- 


 'सन्त शिरोमणी गोस्वामी तुलसीदास स्मृति सम्मान' अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल द्वारा 


'यू पी महोत्सव 2019' के सांस्कृतिक मंच से सम्मानित 


'अवध ज्योति रजत जयंती सम्मान' अवध भारती संस्थान द्वारा 


'साहित्य श्री सम्मान' अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, हजारीबाग झारखण्ड द्वारा 


'गुरु गोविन्द सम्मान 2019' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'पं रविन्द्र नाथ मिश्र सम्मान' अखिल भारतीय साहित्य उत्थान परिषद द्वारा 


'नीलाम्बरा रचनाकार सम्मान' आगमन साहित्यिक संस्था द्वारा 


'दोहा दिवस सम्मान' गुफ्तगू पत्रिका, प्रयागराज द्वारा। 


'मातृत्व ममता सम्मान 2019' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'काव्योत्सव २०७६ सम्मान' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'सृजन श्री सम्मान' साहित्य परिषद रा न इं कालेज, बहराइच द्वारा 


'साहित्य भूषण सम्मान 2018' काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'साहित्य दीप प्रतिभा सम्मान' साहित्य दीप परिवार द्वारा 


'जनचेतना सम्मान' साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा 


सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया उपाधि गीतकार साहित्यिक मंच द्वारा 


▪संपर्क सूत्र- 8931015684,9792357494


▪Email- pradeeppandey.payagpur@gmail.com


 


  1- कविता "विवशता"


 


 


उसकी मौत आज भी ज़िंदा है


 


मेरे जेहन में। 


 


 


उखड़ती सांसों के दरम्यान 


 


उसका स्वप्न 


 


उसका लक्ष्य


 


उसका प्यार 


 


उसका परिवार 


 


उसकी जिम्मेदारियां 


 


सब कुछ तार-तार हो रहीं थीं।


 


बेबसी उसके चेहरे पर साफ थी..


 


क्या देख पाऊंगा उस सूरत को 


 


जो पत्नी के गर्भ में है? 


 


और फिर.........उसकी मौत, 


 


आज भी जिंदा है मेरे जेहन में। 


 


 


        2- कविता 'अंतर्द्वंद्व' 


 


सन्नाटे को चीरता रहा


 


अंतर्मन का निःशब्द चीत्कार। 


 


 


बिना किसी आहट के 


 


देती रही दस्तक 


 


मन की विरक्त तरंगें 


 


उस प्रयोजन के लिए 


 


जो मेरे लिए स्वप्न था। 


 


 


बार- बार 


 


मेरे वर्तमान से 


 


टकराने के बाद भी 


 


दब नहीं पा रही थी मुझसे 


 


 अस्तित्व की गठरी। 


 


 


 


     3- 'गीत'


 


सुख सब को नहीं नसीब है। 


यह भूख बहुत अजीब है।।


 


भूख पेट की बढ़ती जाए, 


लोगों से क्या क्या करवाए। 


संबंधों पर दांव लगे हैं,


पल में अपने हुए पराए। 


समझ से बाहर के दृश्य में,


दूर है कौन करीब है। 


यह भूख....................।।


 


भूख बढ़ी है घटी कमाई, 


इससे घर पर विपदा आई। 


दिन ब दिन इस भूख की खातिर,


देह का दुख न दिया दिखाई । 


आखिर में जीवन की घड़ियां, दिखी कि कितनी गरीब हैं ।


यह भूख.......................।।


 


 


 


          4- गीत 


               


 खून धुल गए बारिश में,छींटे अब भी बाकी हैं। 


आग चिता की राख हो गई, चीखें अब भी बाकी हैं।।


 


सपनों का मर जाना तय था, 


अपना हो बेगाना तय था। 


परत जमीं जो उम्मीदों की 


इस तरहा धुल जाना तय था। 


माना कि सब चले गए पर उनका आना बाकी है। 


 


गांवों के सूने हैं रस्ते, 


जीवन देखा इतने सस्ते। 


बच्चों की आंखें अब सूनी 


एक किनारे लग गए बस्ते।


खुशी भरे दिन बीत गये अब दुख के कटने बाकी हैं। 


 


साथ तुम्हारे रंग हुए गुम,


हर पल तन्हा हर पल गुमसुम।


साख़ों के पत्तों सी टूटी, 


हो गई अबला अब तेरे बिन। 


आंखों से है दूर दिख रहा पर धूमिल होना बाकी है। 


 


                 


     5- कविता "धुंधला अतीत"


 


वक्त कितनी जल्दी सफर कर रहा है 


बगैर पंख के ही। 


गुजर गई आधी सदी....


इतनी तेजी से कि 


न तो इसकी भनक ही लगी 


और न ही वक्त ने अपनी कोई निशानी ही छोड़ी। 


 मगर अब तो एक एक पल


सदियों से भी लम्बा लगता है,, 


खुशियों को टटोलना पड़ता है,, 


यादों की हरियाली सूख न जाए


इसलिए सींचना पड़ता है। 


 


एक टूटी- फूटी बैलगाड़ी की तरह 


जीवन की गाड़ी को ढकेल रहा हूं,,,, 


जर्जर हो चुके इसके पुर्जे


आखिर कब तक संभले रहेंगे। 


 


वक्त बहुत ही निकट है.....


जब थम जाएगा मेरा घिसटता कारवां


ढह जाएगी सारी इमारत 


मिट जाएगी सारी इबारत 


न हम रहेंगे न हमारी यादें 


और न ही कोई अमानत.....


फिर कौन जानेगा कि मैं भी था 


इस नश्वर संसार में.....


जो जीवन को क्षणिक जानते हुए भी 


प्यार कर बैठा जिंदगी से


और कायरों की तरह रोता रहा


जब बिदा हो रहा था दुनिया से। 


 


कितना बदनसीब निकला.....


न जिंदगी खुशगवार रही


न मौत ही शानदार रही


फिर भी उम्मीद जिंदा है 


शायद मौत के बाद सुकून मिल ही जाए। 


     


प्रदीप बहराइची 


 ग्रा. बड़कागांव, पयागपुर 


जन. बहराइच, उ. प्र.(271871)


संपर्क 8931015684


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