दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल         महराजगंज, उत्तर प्रदेश

शीर्षक - नशा 


 


नशा करे जो आह भरे,


लग जाये जीवन पे विराम


प्रेम पिलाया जो पिये


नशा करे हर सुबहे शाम।


 


कश लेने पे लगाओ विराम,


जप रघुपति राघव राजा राम।


 


क्यों करते हो नशा डटकर,


लिये हाथ में लिये साथ।


संकट जब बढ़ जायेगा


कैसे दोगे अपनों का साथ।


 


जीवन से मुक्त हो जाओगे,


साथ नहीं देंगे ऐसे में राम।


 


परिवारों पर दो तुम ध्यान, 


रटते रहो राम का नाम।


लेते रहोगे जब कश पर कश


नहीं मिलेगा कहीं सम्मान।


 


नहीं करोगे ढंग से काम,


बदहाली धायेगी हर सुबहे शाम।


 


जीवन है अनमोल तुम्हारा


बनो किसी का तुम सहारा


छोड़ो अपनी बुरी आदतें


नशा न हो अब तुमको प्यारा।


 


फ्री में हो जाओगे ऐसे बदनाम,


मिलेगा नहीं फिर कभी सम्मान।


 


रचना - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


 


        महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली

दिनांकः ३१.०५.२०२०


दिवसः रविवार


विधाः गज़ल


शीर्षकः कमसीन ख्वाव


तुम मेरी ख्वाईशें अरमान मेरे,


तुम नशा जीवन बनी गुल्फा़म मेरे,


कर मुहब्बत मुझी से इतरा रही हो,


बफाई मझधार में तरसा रही हो।  


 


पड़ी थी दिनरात प्रिय के विरह में,


बन चकोरी सावनी अश्रु भर नयन में,


बिन पानी मीन सम तड़पती रही हो,


प्यार की रुख्सार समझती नहीं हो।


 


 माना तुम कमसीन ख्वाव हो मेरे,


 कुदरती नूर दिली दिलदार हो मेरे,


 पिलाई नशीली जाम जानती हो,


 इश्क के शागिर्द हम तुम मानती हो। 


 


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद

*मुक्तक*


 


*ये बाट कौन सी*


 


भाव उर में प्रवर प्रेम शब्दों में भर, लेखनी तव गढ़े क्या श्रृंगार ये ।


दृग मदिर अधखुले नेह उर में पले, तिय अधर पिय पढ़े क्या उद्गार ये।।


स्वप्न दिन में दिखें गीत प्रणयन लिखें, अंध पथ पग बढ़े ये बाट कौन सी,


कोई सुने जो कहे प्रीत पिऊ संग बहे, हम विलोमित लड़े क्या प्रतिकार ये।।


 


*प्रखर दीक्षित*


*फर्रुखाबाद*


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

*नहा रही है चिड़िया*


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बरखा रानी जम कर बरसों


देखो नहा रही है चिड़िया


जोर जोर से चू चू करती


खुशियां मना रही है चिड़िया।


 


इस चिड़िया की यही कहानी


जब भी बरसे जरा सा पानी


उड़ कर जल्दी से छत पर जाती


झट से नहा कर तुरन्त आ जाती।


 


मेघ गरजे मोर भी नाचे


सब खुशियों के गीत भी गाए


चिड़िया भी अपना गान सुनाएं


झट पट -झट पट चिड़िया नहाएं।


 


आज प्यासी धरा भी खुश है


पेड़ पौधे सभी सभी खुश हैं


जब भी सब चिड़िया को देखें


सभी कहे नहा रही है चिड़िया।


 


कितनी सुन्दर लग रही है


यह धरती और अम्बर


काले काले मेघों में भी


देखो नहा रही है चिड़िया।।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


अविनाश सिंह* *लेखक*

🌱🌱 *हाइकु*🌱🌱


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*-----------------------------*


 


धरती माता


होती अन्न की दाता


क्यों बेच खाता।


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कोरोना युद्ध


परमाणु है फैल


प्रकृति खेल।


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सबने कहा


सब कुछ है पास


शांति विनाश।


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धन की भूख


तन से मिले सुख


रहना दूर।


******************


मन की शान्ति


खुले आसमान में


न शहर में।


******************


ट्रैन में मौत


सब ओढ़े चादर


है बेखबर।


******************


वर्षा का जल


दे मन को शीतल


जग निर्मल।


******************


दुर्गा पूजते


घर में है पीटते


मर्द बनते ₹।


******************


बेटी का जन्म


फैल गया सन्नाटा


चिंता सताता।


******************


दिया है सोना


फिर भी जोड़े हाथ


बेटी का बाप।


******************


दहेज भय


पिता को है सताये


उम्र घटाए।


******************


बेटी का दर्द


समझती है अम्मा


वह भी बेटी।


******************


मन मंदिर


होते है स्वच्छ द्वार


भर दो प्यार।


******************


 


*अविनाश सिंह*


*लेखक*


रवि रश्मि 'अनुभूति 'मुंबई

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


 


   🙏🙏


 


  श्रीपद छंद 


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परिचय --- द्वादशाक्षरावृत्ति ( जगती )


गण संयोजन ----


   न त ज य


यति ---- 4 , 8 


विशेष ---- प्रति दो चरण समतुकांत ।


111 2 , 21 121 122


 


जग सखा , आज सुनो विनती भी ।


कर सको , तो कर लो गिनती भी ।।


दर खड़े , लो अब आकर सारे ।


चख सकें , आज सुधा रस धारे ।।


 


सफ़र में , साथ सदा हम पायें ।


मन कहे , गीत सुनो हम गायें ।।


दुख करो , दूर कहें अब सारे ।


मिल सकें , आज सभी सुख न्यारे ।।


 


सुमन - सा , कोमल भाव जगायें ।


जगत में , प्यार सभी हम पायें ।।


सुन सुना , दें हम आज कहानी ।


सुख मिले , देख न दीप निशानी ।।


 


चमकते , देख न दीप हमारे ।


जल रहे , दीप सभी उजियारे ।। 


जगमगा , रात रही मतवाली ।


 चमकती , रात रहे अब काली ।।


####################


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


30.5.2020 , 7:49 पीएम पर रचित ।


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

परिचय डॉ अर्चना प्रकाश का जन्म ग्राम परौरी जिला उन्नाव में हुआ।गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से विद्यार्जन शुरू किया तो शिक्छा के उच्चस्तरो को प्राप्त करते हुए एम ए , बी एड , व एम डी एच् होम्यो की उपाधि प्राप्त की । ग्रहणी के दायित्वों के साथ कान्वेंट विद्यालयों में प्रधानाचार्या के पद को सुशोभित किया है । सार्थक लेखन सन 2000 से शुरू हुआ । पहली पुस्तक अर्चन करूँ तुम्हारा 2008 में प्रकाशित हुई ।अब तक आपकी कविता कहानी व भक्ति काव्य की सोलह किताबे प्रकाशित हो चुकी है।विभिन्न संस्थाओं से अब तक लगभग पैंतालीस पुरस्कार प्राप्त हो चुके है ।सन 2020 के चार पुरस्कार लॉक डाउन में रुके हुए है ।  


 


       कविताएँ -


 1- लॉक डाउन -; 


लॉक डाउन सुना रहा , मौन का सम्वाद हमें । सड़को पर बिखरे सन्नाटे , 


बाजार मॉल्स आहट को तरसे ! 


ऑफिस चौराहे सुनसान ,


हर तरफ पुलिस परेशान !


गोमती लेती उबासियां ,


नावों पतवारों का इंतजार !


पार्क स्टेडियम भी वीरान,


रेल पटरियां पूछे स्टेशन से ,


कब गूंजे गी रेल सीटियां ?


हो गा कब मुसाफिरों का आगाज ? 


सुनहली सांझ में भी ,


प्रेमियों की जिंदादिली क्यू मौन ।


  ये सब करते मुखर सम्वाद ,


सन्नाटे देते है नई उम्मीदें. 


 ये जगाते है नए विश्वास ,


 दौड़ेगा फिर से ये देश ,  


 विजय की हो गी झंकार !


 देश का हर कोना गुलशन हो गा ,


कोई न कहीं बंदिश हो गी ! 


गाँव शहर फिर दौड़ेगा ,


हर चेहरे पर खुशियां होंगी । 


अर्चना प्रकाश


 


कविता -2 


सैन्य वेदना ; 


तपती रेती सा मन ,


दहके अंगारो सा मन ! 


कब तक सहते रहेंगे , 


जेहादी के थप्पड़ !


सैनिक हम भारत माँ के ,


सत्ता ने दी है लाचारी !


हाथों में शस्त्र लिए , पत्थरबाजों से पिटते ।


दो कौड़ी के आतंकी ,


वर्दी अपमानित करते ।


अजब वेदना सेना की ,


मजबूरी मर मर जीने की ।वीर जवानों की निराशा ,


 फूटेगी बन कर ज्वाला ।


जागेगा जब शूर वीर देश का ,


जेहादी बच न पाएंगे ।


सत्ता के भूखे जेहादी कश्मीर न तुम पाओगे ,


ये सैनिक है भारत माँ के ,


 कश्मीर है इनकी आन!


 कश्मीर है भारत की शान ।


 अर्चना प्रकाश लखनऊ


 


कविता -3


युद्ध के अभियान में ;


 


नारियां अब चल पड़ी हैं यद्ध के अभियान में ।           


हौसलों के तरकश धरे ,         


रूढ़ियों पर सर सन्धान है बन्दिशों की ओढ़नी ले ,       


सुलगते प्रश्न मन मे भरे ।।        


बेड़ियों के जख्म है पाँव में ।


ठोकरों से हो निडर अब ,  


बढ़ रहीं मान के संग्राम में ! 


नारियां अब चल पड़ी है , युद्ध के अभियान में ।।             


अस्मिता के दंश गहरे ,    


दर्द देते कुटिल चेहरे ।             


जीवन के इस हिसाब में ,   


बदले नियम गुणा भाग के,


रुके गा नहीं अब ये समर ,


सपनों की बुलन्द कमान में ।


नारियां अब चल पड़ी है , 


युद्ध के अभियान में ।              


साथ कोई हो न हो ,                   


रिश्तों की सांकल न हो ।  


छल छद्मद्वेष व्यूह तोड़े ,    


राहें कठिन से मुँह न मोड़े,


त्योरियों पर सिंहनी की शान है ,


कोमल उमंगें ढली चट्टान में । 


नारियां अब चल पड़ी है ,


युद्ध के अभियान में !


 


     डॉ. अर्चना प्रकाश


 


कविता - 4, 


अभावों में ;        


अभावों में भाव बहुत हैं , निर्धनता में आस बहुत है । निम्न मलिन बस्तियों में , स्वप्निल पंख उड़ान बहुत है। सोने चांदी के सिक्कों में , अपनेपन का राज़ बहुत है । फ़टे चीथड़ों में पलने वाले , इस युग में गोपाल बहुत है ।जर्जर वृद्ध अस्थियों में , अतीत का अभिमान बहुत है ।पीड़ाओं के सागर में , खुशियों की आस बहुत है । उजड़े वीरान खण्डहरों में , सुन लो तो चीत्कार बहुत है ।बच्चों की अटपट बोली में , सच्चे मन का प्यार बहुत है ।मैली अधनंगी नारी में , सुंदरता का सार बहुत है । अर्चना प्रकाश लखनऊ


 


कविता 5 -


दिल वालों की बस्ती में -; दिल वालो की बस्ती में , 


ऊँचे लोगों का काम नहीँ । सरस् विनोदी बतकही में , कसमें वादों का नाम नहीँ । सीधी सरल जिंदगी में , सोने चांदी का काम नहीँ । प्यार के हर पैमाने पर, ऊँची हस्ती नाकाम रही । 


 टूटे सपनों की बस्ती में , उम्मीद की नन्हीं आस रही । कुछ बातें लोगों से आयीं , इन बातों के सिर पैर नहीँ । मुद्दतों में दिल मिलते है ,   


 ये मंजिल आसान नहीँ । जिस जग में रहते हम , छल प्रपंच बिन शाम नहीँ ।  


अर्चना प्रकाश लखनऊ ,


मो 9450264638 ।


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


अपनों से मेरा अब तो रहा सिलसिला नहीं


मुझको तो एक ख़त भी कोई भेजता नहीं


 


भटका कहाँ कहाँ मुझे ख़ुद पता नहीं


इस ज़ीस्त के नसीब में इक रहनुमा नहीं 


 


पहुँचा हूँ मैं कहाँ कि जहाँ रास्ता नहीं 


मेरा ही मुझसे अब तो कोई वास्ता नहीं


 


अब तो मेरे ख़याल में आजा मेरी ग़ज़ल


कमरे में मैं ही मैं हूँ कोई दूसरा नहीं


 


इतना करम न मुझपे करो मेरे दोस्तो


मैं भी तो आदमी हूँ कोई देवता नहीं


 


काँटों से अपने घर को सजाने की आरज़ू


फूलों की बात क्यों ये बशर सोचता नहीं 


 


ऐसे जले चराग़ कि दुनिया ही जल उठी 


हँसते हुए किसी को कोई देखता नहीं 


 


मेरी हँसी उड़ाओ न ऐसे भी दोस्तो


तुम बादशाहे-वक़्त हो लेकिन ख़ुदा नहीं


 


इतना चला हूँ धूप में चेहरा झुलस गया 


साये का दूर दूर भी कोई पता नहीं


 


मजबूरियों के बोझ से बिकता रहा हूँ मैं 


*साग़र* ज़मीर मेरा बिका है मरा नहीं 


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


 


 


जुलाई 1996


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जाड़े में ठिठुरता, तपिस तपन झुलसन बरसात कि मार ।   


 


आंधी हो या तूफ़ान लोक तंत्र का चौथा स्तम्भ प्राण ।।


                                               जन ,जन तक पहुँचता पल, प्रहर कि सूचना खबर का ब्रह्माण्ड ।                         


 


 जज्बा जवान राष्ट्र के स्वाभिमान कि पहचान ।।                      


 


इरादे बुलंद चाहे देश कि सीमा हो या खतरों का बवाल ,जंजाल ।।   


 


हर जगह प्रथम उपस्थिति ,स्तिति परिस्तिति कि बाज दृष्टि का जाबांज़।                           


 


भाषा कि मर्यादा हिंदी हिंदुस्तान का सत्कार ।।                      


 


चली जाए चाहे जान बिकने नहीं देता ईमान।


                  


खतरों में भी सयंम संकल्प कि परिभाषा सम्मान ।।


 


साहस शौर्य ,हिम्मत कवच दृढता का अडिग चट्टान।             


 


झुकता नहीं ,टूटता नहीं ,नहीं करता विश्राम ।।                   


 


सच का साथी अन्याय,अत्यचार का प्रतिकार ।     


 


 मजबूर ,मज़लूमो ,का दुःख ,दर्द बांटता हिंदी का संस्कृति संस्कार।।      


                       


 ओजस्वी तेजस्वी हिंदुस्तान का पत्रकार।।                           


 


हिंदी पत्रकारिता दिवस पर ढेर सारी बढ़ाई एवम् शुभ कामनाएं


 


           


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


 


 


डॉ. सुषमा कानपुर

*अक्षयपात्र*


घर में बांस की खटिया पर बैठी भाभी के हाथ की कटहल की पकौड़ी खाते हुए याद आया कि बेटे ने कुछ खाया होगा या नही!यही सोचकर फोन मिला दिया।


फोन बेटे की जगह उसके सहपाठी मित्र ने उठाया,"आंटी जी अभी वो पकौड़ी बना रहा है,और हम तीनों खा रहे हैं, आज पकौड़ा पार्टी हो रही है।


हमने फोन काट दिया और शकून से खाने लगी।


थोड़ी देर बाद बेटे का फोन आया।


मम्मी ये बेसन डिब्बे में तो थोड़ा सा दिख रहा था,पानी डालने के बाद बहुत हो गया,चार प्याज डाली तो पता ही नही चला फिर हमने छः प्याज हरी धनिया जीरा और मिर्च और डाल लिया।आधी परात भर गई ।


इतने पकौड़े बनते गए कि जैसे परात न होकर #अक्षयपात्र हो।


इसीलिए तीनों दोस्तो को बुला लिया। पकौड़ी हमने बनाई बर्तन इन लोगों ने धोया और किचन भी साफ कर दिया।


हमको कोई काम नही करना पड़ा।


"बेटा वो एक किलो बेसन था जिसमे से केवल एक दिन कढ़ी बनाई गई थी।"


हँय🤔


@


*अक्षयपात्र*


घर में बांस की खटिया पर बैठी भाभी के हाथ की कटहल की पकौड़ी खाते हुए याद आया कि बेटे ने कुछ खाया होगा या नही!यही सोचकर फोन मिला दिया।


फोन बेटे की जगह उसके सहपाठी मित्र ने उठाया,"आंटी जी अभी वो पकौड़ी बना रहा है,और हम तीनों खा रहे हैं, आज पकौड़ा पार्टी हो रही है।


हमने फोन काट दिया और शकून से खाने लगी।


थोड़ी देर बाद बेटे का फोन आया।


मम्मी ये बेसन डिब्बे में तो थोड़ा सा दिख रहा था,पानी डालने के बाद बहुत हो गया,चार प्याज डाली तो पता ही नही चला फिर हमने छः प्याज हरी धनिया जीरा और मिर्च और डाल लिया।आधी परात भर गई ।


इतने पकौड़े बनते गए कि जैसे परात न होकर #अक्षयपात्र हो।


इसीलिए तीनों दोस्तो को बुला लिया। पकौड़ी हमने बनाई बर्तन इन लोगों ने धोया और किचन भी साफ कर दिया।


हमको कोई काम नही करना पड़ा।


"बेटा वो एक किलो बेसन था जिसमे से केवल एक दिन कढ़ी बनाई गई थी।"


हँय🤔


@


डॉ0 सुषमा


 कानपुर


डॉ. हरि नाथ मिश्र

बाँसुरी-


बाँसुरी बेसुरी हो गयी है।


पंखुरी खुरदुरी हो गयी है।।


         ऐसी घड़ियाँ न थीं कभी पहले,


         ऐसी बातें न थीं कभी पहले।


          बात कैंची-छुरी हो गयी है।।


                           बाँसुरी बेसुरी...


प्रेम के बोल थे तब सुहावन,


नाते-रिश्ते भी थे बहु लुभावन


दोस्ती अब बुरी हो गयी है।।


                बाँसुरी बेसुरी....


आबो-हवा से सँवरती थी सेहत,


करती नफ़रत नहीं थी यह कुदरत।


अब वही आसुरी हो गयी है।।


                  बाँसुरी बेसुरी....


आस्था की शिला की वो मूरत,


जिसकी मजबूत थी हर परत।


रेत सी भुरभुरी हो गयी है।।


                  बाँसुरी बेसुरी....


ठोस थी नीवं इल्मो-हुनर की,


अपनी तहज़ीब की ,हर चलन की।


आज वो बेधुरी हो गई है।।


                  बाँसुरी बेसुरी....


अपनी धरती जो थी स्वर्ग जैसी,


पाप बोझिल जहन्नुम-नरक की-


अब मुक़म्मल पुरी हो गयी है।।


                बाँसुरी बेसुरी....


हो जाती थी नम आँख जो तब,


ग़ैर की हर ख़ुशी-ग़म में वो अब-


किस क़दर कुरकुरी हो गयी है।।


                    बाँसुरी बेसुरी....


                                      ©डॉ. हरि नाथ मिश्र


                                           9919446372


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' 


           30 मई पर एक कविता 


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आज ही का शुभ दिन जब 


पहला हिन्दी अखबार छपा, 


हिन्दी भाषी लोगों में जब 


जुगुल किशोर का प्यार छपा। 


 


हिन्दी पत्रकारिता दिवस की 


हिन्दी जगत् को बहुत बधाई, 


हिन्दी के दुर्दिन काल में तब 


हिन्दी का सूरज दिया दिखायी। 


 


पराधीन उस काल खण्ड में 


जन-जन का उद्गार छपा।....... 


 


तीस मई अट्ठारह सौ छब्बीस 


हिन्दी का परचम लहराया, 


"उद्दन्त मार्तण्ड " नाम पड़ा 


साप्ताहिक अखबार छपवाया। 


 


भ्रष्ट, क्रूर, व्यभिचारी, हिंसक 


अंग्रेजों का अत्याचार छपा।....... 


 


कोटि-कोटि नमन करता हूँ 


लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का, 


उस सत्य के सत्यार्थी का 


प्रहरी, अन्वेषक आलम्ब का।


 


विचार विनिमय सफल हुआ, 


स्वतंत्रता का संचार छपा।.... 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


सत्यप्रकाश पांडेय

गोविन्द मेटों शूल.....


 


रास रचैया कृष्ण कन्हैया


माँ यशोदा के लाल


गोप बधुओं की जीवन पूंजी


नन्दनन्दन गोपाल


 


पाकर के तेरा प्रेम आश्रय


छोड़ दई लोक लाज


कृष्ण रंग में रंगी सांवरे


तेरी हो गईं आज


 


डार मोहिनी चित्त हर लीन्हों


मनुवा हुओं बेहाल


बिन देखे जलें विरह अनल में


लता पता लगें काल


 


आलिंगन कर अधरपान करो


माधव बनो अनुकूल


गोप बाला हो गईं बाबरी


गोविन्द मेटों शूल।।


 


श्रीकृष्णाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


 


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बुझे दिए जला दे ,अंधेरों में कर दे उजियारा। दिशा ,दृष्टि,दृष्टिकोण बता दे समझो कवि कि कविता है।।


 


 जीवन कि आपा धापी मृग मरीचिका । जीवन का उद्देश्य बता दे। समझो कवि कि कविता है ।।   


                                          गिरते, उठाते ,उलझे ,सिमटे जीवन कि राहों का । अवरोध हटा दे । समझो कवि कविता है।।                    


 


कायर में पुरुषार्थ जगा दे हतोत्साहित में उत्साह जगा दे।


समझो कवि कि कविता है ।।


 


थके हुये में उमंग का तरंग जगा दे पराजित को पथ विजय बता दे। समझो कवि कि कविता है।।    


 


युवा ओज का तेज बना दे युग को मूल्य मूल्यवान बना दे ।समझों कवि कि कविता है।।


 


 


मरुस्थल में दरिया ,झरना ,झील बहा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


 


खुली आँखों के सोये मन में चेतना कि जागृति ,जागरण जगा दे।


 समझो कवि कि कविता है।।


 


 पत्थर को मोम् बना दे ,लोहे के शस्त्र पिघला दे । समझो कवि कि कविता है ।।   


 


रक्त रंजीत तलवारों फूलों की बारिस करवा दे । फुलों को शूल ,शूल बना दे ,शूलों को फूल बना दे।     


समझो कवि कि कविता है।।


 


नदियां ,झरने, प्रकृति, प्राणी पशु ,पक्षी को श्रृंगार के आभूषण का आवाहन कर दे। समझों कवि कि कविता है।।


 


मजबूर ,मजलूम को अंतर मन कि शक्ति का आभास करा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


भटके को उद्देश्य बता दे मानव को मानवता मूल्य मूल्यवान बना दे।                                  


समझो कवि कि कविता है ।।


 


युग, समाज का संस्कृति ,संस्कार अतीत के दर्पण में वर्तमान कि शक्ल दिखा दे ।                


 


समझो कवि कि कविता है।।


 


 आत्मा का परम् सत्य ,परमात्मा में विलय करा दे । सूर ,तुलसी ,मीरा ,कबीर,रासखान


 कि भक्ति का भाव जगा दे।


 सिद्धार्थ को बुद्ध बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


 साधारण को 


असाधारण वर्तमान कि चुनौती बना दे । इतिहास का निर्माण करा दे पृथ्वी ,बरदायी का राग सुना दे। समझो कवि कि कविता है ।    


 


सूने मन में प्रेम के भाव जगा गोपी,राधा, कान्हा के प्रेम जगत का सार बता दे । समझो कवि कि कविता है ।।


 


कृपण, क्रोध को दांनबीर और सौम्य बना दे । कुटिल ,कठोर में दया , छमाँ का भाव जगा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


जीवन के कुरुक्षेत्र के संग्रामो का विजयी का शत्र शास्त्र बना दे। समझो कवि कि कविता है ।।


 


अज्ञान में ज्ञान का प्रकाश जला दे काली को कालिदास, हुलसी के तुलसी को तुलसी दास बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


मानव मन ,मस्तिष्क, ह्रदय में स्वतंत्रता के अस्ति ,अस्तित्व का भाव जगा दे । समझो कवि कि कविता है ।।  


 


खंड ,खंड को अखंड बना दे चाणक्य का चंद्र गुप्त बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


 परतंत्रता से लड़ते स्वतंत्रता के महारथियों को धरती माँ के स्वाभिमान में । रंग बसंती चोला केशरिया बाना पहना दे । समझो कबि कि कविता है ।।


 


पराक्रम ,त्याग ,तपश्या ,बलिदानों के अतीत का वर्तमान जगा दे। समझो कवि कविता है।।      


 


उदासी ,गम मायूसी में हास्य्, परिहास ,व्यंग ,मुस्कान कि फुहार वर्षा दे ।


समझो कवि कि कविता है।।


 


रस ,छन्द ,अलंकार से गीत, ग़ज़ल संगीत समारोह कि अलख जगा दे ।                           


समझो कवि कि कविता है।।


 


काल को मोड़ दे ,राह सारे खोल दे ,विकट ,विकराल को बौना बना दे । बौने को कराल महाकाल बना दे । समझो कवि कि कविता हैं।।


                                    


 कल्पना का सत्यार्थ प्रकाश शब्द शिल्पी के शब्दों का चमत्कार । समझो कवि कि कविता है।। 


 


नीर ,नदी ,का निर्झर ,निर्मल अविरल ,प्रवाह । सागर कि गहराई से उठता ज्वार भाँटा तूफ़ान का समय समाज कवि के धर्म ,कर्म कि बान।                               


 


कर्तव्य दायित्व बोध के कवि का शंखनाद भाषा साहित्य का साहित्य कार।


 


 युग ,समय ,समाज का संचार संबाद । कवि कीमकर्तव्य बिमुड़ हुआ यदि समझो लूट ,मिट गया। 


 


युग, समय समाज वर्तमान इतिहास।।                         


 


 कवि समय युग समय कि आवाज़ त्रेता का वाल्मीकि द्वापर का वेदपव्यास कलयुग का सुर,कबीर ,मीरा,बिहारी,रहीम वरदायी तुलसीदास।।       


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बरबुझे दिए जला दे ,अंधेरों में कर दे उजियारा। दिशा ,दृष्टि,दृष्टिकोण बता दे समझो कवि कि कविता है।।


 


 जीवन कि आपा धापी मृग मरीचिका । जीवन का उद्देश्य बता दे। समझो कवि कि कविता है ।।   


                                          गिरते, उठाते ,उलझे ,सिमटे जीवन कि राहों का । अवरोध हटा दे । समझो कवि कविता है।।                    


 


कायर में पुरुषार्थ जगा दे हतोत्साहित में उत्साह जगा दे।


समझो कवि कि कविता है ।।


 


थके हुये में उमंग का तरंग जगा दे पराजित को पथ विजय बता दे। समझो कवि कि कविता है।।    


 


युवा ओज का तेज बना दे युग को मूल्य मूल्यवान बना दे ।समझों कवि कि कविता है।।


 


 


मरुस्थल में दरिया ,झरना ,झील बहा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


 


खुली आँखों के सोये मन में चेतना कि जागृति ,जागरण जगा दे।


 समझो कवि कि कविता है।।


 


 पत्थर को मोम् बना दे ,लोहे के शस्त्र पिघला दे । समझो कवि कि कविता है ।।   


 


रक्त रंजीत तलवारों फूलों की बारिस करवा दे । फुलों को शूल ,शूल बना दे ,शूलों को फूल बना दे।     


समझो कवि कि कविता है।।


 


नदियां ,झरने, प्रकृति, प्राणी पशु ,पक्षी को श्रृंगार के आभूषण का आवाहन कर दे। समझों कवि कि कविता है।।


 


मजबूर ,मजलूम को अंतर मन कि शक्ति का आभास करा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


भटके को उद्देश्य बता दे मानव को मानवता मूल्य मूल्यवान बना दे।                                  


समझो कवि कि कविता है ।।


 


युग, समाज का संस्कृति ,संस्कार अतीत के दर्पण में वर्तमान कि शक्ल दिखा दे ।                


 


समझो कवि कि कविता है।।


 


 आत्मा का परम् सत्य ,परमात्मा में विलय करा दे । सूर ,तुलसी ,मीरा ,कबीर,रासखान


 कि भक्ति का भाव जगा दे।


 सिद्धार्थ को बुद्ध बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


 साधारण को 


असाधारण वर्तमान कि चुनौती बना दे । इतिहास का निर्माण करा दे पृथ्वी ,बरदायी का राग सुना दे। समझो कवि कि कविता है ।    


 


सूने मन में प्रेम के भाव जगा गोपी,राधा, कान्हा के प्रेम जगत का सार बता दे । समझो कवि कि कविता है ।।


 


कृपण, क्रोध को दांनबीर और सौम्य बना दे । कुटिल ,कठोर में दया , छमाँ का भाव जगा दे । समझो कवि कि कविता है।।


 


जीवन के कुरुक्षेत्र के संग्रामो का विजयी का शत्र शास्त्र बना दे। समझो कवि कि कविता है ।।


 


अज्ञान में ज्ञान का प्रकाश जला दे काली को कालिदास, हुलसी के तुलसी को तुलसी दास बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


मानव मन ,मस्तिष्क, ह्रदय में स्वतंत्रता के अस्ति ,अस्तित्व का भाव जगा दे । समझो कवि कि कविता है ।।  


 


खंड ,खंड को अखंड बना दे चाणक्य का चंद्र गुप्त बना दे। समझो कवि कि कविता है।।


 


 परतंत्रता से लड़ते स्वतंत्रता के महारथियों को धरती माँ के स्वाभिमान में । रंग बसंती चोला केशरिया बाना पहना दे । समझो कबि कि कविता है ।।


 


पराक्रम ,त्याग ,तपश्या ,बलिदानों के अतीत का वर्तमान जगा दे। समझो कवि कविता है।।      


 


उदासी ,गम मायूसी में हास्य्, परिहास ,व्यंग ,मुस्कान कि फुहार वर्षा दे ।


समझो कवि कि कविता है।।


 


रस ,छन्द ,अलंकार से गीत, ग़ज़ल संगीत समारोह कि अलख जगा दे ।                           


समझो कवि कि कविता है।।


 


काल को मोड़ दे ,राह सारे खोल दे ,विकट ,विकराल को बौना बना दे । बौने को कराल महाकाल बना दे । समझो कवि कि कविता हैं।।


                                    


 कल्पना का सत्यार्थ प्रकाश शब्द शिल्पी के शब्दों का चमत्कार । समझो कवि कि कविता है।। 


 


नीर ,नदी ,का निर्झर ,निर्मल अविरल ,प्रवाह । सागर कि गहराई से उठता ज्वार भाँटा तूफ़ान का समय समाज कवि के धर्म ,कर्म कि बान।                               


 


कर्तव्य दायित्व बोध के कवि का शंखनाद भाषा साहित्य का साहित्य कार।


 


 युग ,समय ,समाज का संचार संबाद । कवि कीमकर्तव्य बिमुड़ हुआ यदि समझो लूट ,मिट गया। 


 


युग, समय समाज वर्तमान इतिहास।।                         


 


 कवि समय युग समय कि आवाज़ त्रेता का वाल्मीकि द्वापर का वेदपव्यास कलयुग का सुर,कबीर ,मीरा,बिहारी,रहीम वरदायी तुलसीदास।।       


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज

💐🌅सुप्रभातम्🌅💐


 


दिनांकः २९.०५.२०२०


दिवसः शुक्रवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा


शीर्षकः नया सबेरा जिंदगी


पुलकित है पा अरुणिमा ,निर्मल चित्त निकुंज।


उठी कलम नवलेख को , देश प्रेम की गुंज।। 


देश बने जीवन कला , देश बने अरमान।


राष्ट्र प्रगति समझें प्रगति, देश आत्म सम्मान।।


बिना राष्ट्र नौका समा, जीवन बिन पतवार।


दिशा दशा निर्भर वतन , एक राष्ट्र परिवार।।


जीएँ हरपल जिंदगी , मानव जन कल्याण।


देशभक्ति अर्पण वतन, सदा राष्ट्र निर्माण।।  


ध्वजा तिरंगा शान हो , हो जीवन सम्मान। 


नया सबेरा जिंदगी , रोग शोक अवसान।।


हरी भरी धरती रहे , स्वच्छ प्रकृति संसार।


रोग मुक्त जन मन वतन, सकल विश्व परिवार।।


भारत हमारी आत्मा , हम भारत शृङ्गार।


सौ जन्म बलिदान भी , कम भारत उद्धार।।


कवि निकुंज अभिलाष मन,अर्पण जीवन देश। 


फैले खुशियाँ चहुँदिशा , समरसता संदेश।। 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नई दिल्ली


संजय जैन (मुम्बई

*टूट गये परिवार*


विधा : कविता


 


मान अभिमान के चक्कर में,


उजड़ गए न जाने कितने घर।


हंसते खिल खिलाते परिवार,


इसकी भेंट चढ़ गये।


फिर न मान मिला, 


न ही सम्मान मिला।


पर पैदा हो गया अभिमान,


जिसके कारण टूट गये परिवार।।


 


हमें न मान चाहिए,


न सम्मान चाहिए।


बस अपास का,


प्रेम भाव चाहिए।


मतभेद हो सकते है,


फिर भी साथ चाहिए।


क्योंकि अकेला इंसान,


कुछ नही कर सकता।


इसलिए आप सभी का,


हमें साथ चाहिए।।


 


यदि आप सभी आओगे,


एक साथ एक मंच पर।


तो मंच पर चार चांद,


निश्चित ही लग जायेंगे।


अनेक भाषाओं और जाती, 


होने के बाद भी।


जब एक साथ मिलेंगे,


तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


29/05/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम ही जीवन रवि........


 


ये नक्शेकदम मुझको रिझाते है।


आकर्षक चितवन मुझे बुलाते है।।


 


हैं लोल कपोल लिए गात सौम्यता।


अनुपम सौंदर्य अपरिमेय दिव्यता।।


 


कजरारी आँखों का मोहक काजल।


केश पुंज लगें जैसे घने बादल।।


 


तुमसे बतरस का आनन्द अनौखा।


गोरे वदन प्रिया शोभित तिल चोखा।।


 


आहें भरें देखकर दिलवर तुमको।


बलात खींच रही हो सत्य हृदय को।।


 


मधुमास की मधुर मकरन्द प्रियतमा।


तुम मेरे बदन में हो बसी आत्मा।।


 


डाल गले में बाहों का बंधन सजनी।


तुम ही जीवन रवि वरना तो रजनी।।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त

एक कविता... "पुनर्मिलन"


"""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


 


कुछ असर नहीं करती


ज्येष्ठ की दुपहरी 


तर नहीं करती...


पूस की शीतलता 


क्षण-प्रतिक्षण 


स्मृति में वो....और उनकी छाया


उनका प्रिय सम्भाषण 


खिल-खिलाकर हँसना।...


कौन जानेगा? 


गुप-चुप नयनों की भाषा 


घुटी-घुटी सी 


संचित अभिलाषा .....


तनहा मन... 


अपनी आकुलता... 


अपनी अनुरक्तता 


व्यक्त नहीं करता


किन्तु 


हाय रे.. भावनाओं का प्रवाह 


थकता ही नहीं। 


फिर भी.... 


संयम नहीं टूटता 


चेतना बेसुध नहीं होती 


व्याकुल नहीं होती साँसें.... 


नेत्र यात्रा नहीं करते 


धड़कनें आतुर नहीं होतीं.... 


जीने का साहस नहीं छूटता.. 


क्योंकि....


निश्चित है उनका पुनर्आगमन 


पुनर्मिलन।......


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


प्रिया सिंह

बहर:- 1222122212221222


 


 


मज़ा परदेश में क्या है उसे समझा नही सकता


सुकूँ जो घर में मिलता है कहीं वो पा नही सकता


 


सुनो ऐ बाग़बाँ गुलशन पे अपने तुम नजर रखना


ये मत समझो खिला जो फूल वो मुर्झा नहीं सकता


 


बुढ़ापे की थकन कर लो जवानी मे ज़रा महसूस


जो लम्हा बीत जाता है वो वापस आ नहीं सकता


 


मेरे कदमों में गिर कर आज मुझ से कह रहे थे वो


मेरे दिल में फक़त है प्यार जो दिखला नहीं सकता 


 


खता क्या हो गई मुझ से जो लोगों से वो कहता है


मै उस की बात को दिल में कभी दफना नहीं सकता


 


वो बुज़दिल हैं लडाई से जो पहले हार जाते हैं


अगर है अज्म दिल में फिर कोई सर्का नहीं सकता


 


मुकद्दर में लिखा था जो वो प्रिया हमने पाया है


है गुत्थी ज़ुल्फों सी उलझी कोई सुलझा नही सकता


 


प्रिया सिंह


कालिका प्रसाद सेमवाल

*प्यार जीवन की धरोहर है*


*******************


प्यार जीवन का सार है


इसकी अनुभूति


किसी योग साधना


से कम नहीं है,


इसके रूप अनेक हैं


लेकिन


नाम एक है प्यार।


 


प्यार रिश्तों की धरोहर है


और इस धरोहर


को बनाये रखना


हमारी संस्कृति


और जीवन का सार है,


यह मानवता का अंश है


इसी से जीवन में


आनन्द की अनुभूति होती है


यह अनमोल है।


 


प्यार जीवन की धरोहर है


निर्झर झरनों की तरह


हमारे दिलों में


बहता रहे,


एक दूसरे के निकट लाता है


यही जीवन की


सच्ची धरोहर है। 


 


जिस प्रभु की कृपा से 


हमें यह जीवन मिला है,


उस परम पिता परमात्मा


को हमेशा प्यार से


सुमिरन करें,


जिसने हमें 


जीवन दिया है,


इस धरा धाम 


पर हमें प्यार से लाया है।


 


प्यार सब प्राणियों से करे


उन बेसहारा


बच्चों से करें


जो अभाव में अपना 


जीवन यापन कर रहे है,


उन नन्हे-नन्हे बच्चों से भी


प्यार करो


जो कुपोषण के शिकार हैं


और जो अनाथ है।


 


आओ कुछ अच्छा करें


हम सब संकल्प लें,


हम सभी के प्रति


प्यार का भाव रखेंगे


किसी के प्रति


बुरे विचार गलत दृष्टि


नहीं रखेंगे,


तभी यह जीवन सफल हो सकता है।


*************************


कालिका प्रसाद सेमवाल


           प्रवक्ता


जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रतूड़ा


 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनीता असीम

हुए हैं रात के साए भले घनेरे भी।


चले चलो कि मिलेंगे तुम्हें सबेरे भी।


***


समझ नहीं पा रहे हम हिसाब तुम्हारा।


बनाए हमने तो थे प्यार के जजीरे भी।


***


ढली हुई ये जवानी लिए चलोगे जब।


तुम्हें ज़रा भी दिखेंगे नहीं सहारे भी।


***


निकल रहा ही नहीं नाग का जहर बिल्कुल।


लगे हुए हैं हजारों यहां सपेरे भी।


***


नहीं तुम्हें आ रही नींद क्यूं बताओ तो।


कि आसमाँ में सभी सो रहे सितारे भी।


***


सुनीता असीम


२९/५/२०२०


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः.....*बारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


दोहा-जदि अभ्यास न करि सकहु, करउ कर्म निःस्वार्थ।


        कर्म परायण होइ मम,पावहु सिद्धि गुढ़ार्थ।।


जदि करि पुनः अइस अभ्यासा।


समुझि सकेउ नहिं मर्म खुलासा।।


      तब मम ग्यान परोक्ष श्रेयस्कर।


      त्याग कर्म-फल इच्छा बेहतर।।


देवहि त्याग सांति तत्काला।


मोरि प्राप्ति कै नहीं निठाला।।


     सांत चित्त जन परम दयालू।


     मद अरु द्वेषयि रहित कृपालू।।


निर्मोही, सुख-दुख समभावा।


छिमासील अस जनहिं सुभावा।।


     ध्यानहिं योग युक्त जे योगी।


     तन-मन-इंद्रिय-बसी जे भोगी।।


निस्चय दृढ़ी व मन-बुधि-अर्पित।


भगत मोर अस मोंहि समर्पित।।


     अस मम भगत परम प्रिय मोरा।


      अति सहिष्णु सुनु कुंति-किसोरा।।


मम प्रिय भगतहि मन नहिं खिन्ना।


हर्ष-अमर्ष नहीं उद्बिगना ।।


      कर्तापन त्यागी प्रिय मोंहीं।


      भक्त अनिच्छ साँच सुनु तोहीं।।


सुभ अरु असुभ सकल फल त्यागी।


सोच-कामना रहित सुभागी ।।


      मम प्रिय भगत अहहि ऊ मोरा।


      करै भजन मम भाव-बिभोरा।।


मित्रइ- सत्रु,मान-अपमाना।


सरद-गरम सभ एक समाना।।


     सुख-दुख-द्वंद्वासक्ति बिहीना।


      भक्ति-भाव मन जासु न छीना।।


अस जन मोंहें बहु प्रिय लागहिं।


अस मम भगतहिं परम सुभागहिं।।


दोहा-जे निष्कामइ भाव से,करै अमृतइ पान।


        धर्ममयी रस जासु कै,अस मम भगत महान।।


        श्रद्धामय रह ततपरइ,मोरि प्राप्ति जे नर।


         पावै ऊ मम परम गति,औरु आश्रयइ घर।।


                        डॉ0हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


                   बारहवाँ अध्याय समाप्त।


डॉ0हरि नाथ मिश्र            

1 *सुरभित आसव मधुरालय का*


ढुरे पवन हो मस्त फागुनी,


ऋतु ने ली अँगड़ाई है।


एक घूँट बस दे दे साक़ी-


आसव की सुधि आई है।।


           भरा हृदय है कड़ुवापन से,


            रीति भली नहीं लगती है।


            चिंतन-कर्म में अंतर लगता-


            उभय बीच इक खांई है।।


अमृत सम मधुरालय-आसव,


जिसको चख जग जीता है।


व्यथित-विकल तन-मन की हरता-


आसव द्रव अकुलाई है ।।


            मधुरालय को तन यदि मानो,


             साक़ी प्राण-वायु इसकी।


             बिना प्राण के तन है मरु-थल-


             साक़ी,पर,भरपाई है ।।


सागर-साक़ी का है रिश्ता,


प्रेमी-प्रेयसि के जैसा ।


दोनों मिल बहलाते मन को-


जब-जब रहे जुदाई है।।


            मधुरालय मन-शुद्धि-केंद्र,


            तो साक़ी पूज्य पुरोहित है।


            धुले हृदय की कालिख़ सारी-


             हाला सद्य नहाई है ।।


धारण कर लो पूज्य मंत्र यह,


यहीं से सुख का द्वार खुले।


अब विलम्ब मत करना भाई-


सुर-शुचिता यह पाई है।।


            डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


अमायन भिंड मध्यप्रदेश 

राम की महिमा


राम की महिमा सबने गाई ।


वाल्मीक रामायण बनाई ।


सीता मां की कीन्ह सहाई ।


प्रथम कबि वाल्मीक कहाई ।


जग मे आदर्श नीति बनाई ।


राम चन्द्र को पात्र बनाई ।


सारे जग मे पुज गये भाई ।


उल्टे नाम से महिमा पाई ।


दया नाम ने दई दिखाई ।


डाकू से दये कबी बनाई ।


बालकृष्ण प्रभू महिमा गाई ।


हनुमंत रक्षा करते भाई ।


राम की महिमा जग को दिखाई ।


सागर ऊपर छलांग लगाई ।


लंका को बर्बाद कराई ।


रावण को दिए धूल मिलाई ।


धर्म की रक्षा जग मे कराई ।


राम की महिमा सबने गाई ।


     पंडित बालकृष्ण पचौरी 


  


अमायन भिंड मध्यप्रदेश 


मोबाइलनंबर 9926246192


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

श्रीमती आशा त्रिपाठी


पत्नी-श्री शशिकान्त त्रिपाठी


मूल निवासी-ग्राम अकबरपुर,पो० केराकत जिला जौनपुर उ०प्र०


कार्यरत- जिला कार्यक्रम आधिकारी,सहारनपुर।(वर्तमान)


दूरभाष-9412968923


परिचय-1999 की लोक सेवा आयोग से चयनित क्लास द्वितीय अधिकारी।


शिक्षा-एमए अर्थशास्त्र व अंग्रेजी,


       बी०एड०.


कृत्य-आशा के गीत पुस्तक का प्रकाशन।


रेडियो नजीबाबाद मे बक्तत्य ,


समाचार पत्रों मे नियमित सामाजिक लेखन,पत्र पात्रिकाओं मे कविताओ का प्रकाशन।


1999 से पूर्व कविसम्मेलन में भाग।


गोरखपुर रेडियो में लोकगीत गायन भोजपुरी मे (1995-1998 तक)


प्रशासनिक आयोजनो में मंच संचालन,


*कवितायें*


1-शाश्वत प्रेम रुप छवि निर्मल


 सकल जगत सुखदायक श्याम।।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


मृदुल बॉसुरी की धुन प्यारी।


राधा भूलें सुध वुद्ध सारी।


बरसाने का कण-कण पुलकित


रास रचैया हे गिरधारी।


भक्ति भाव से मीरा नाची।


त्यागा राज भोग सब काम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


कुँज बिहारी ,हे वनवारी


नटवर नागर हे गिरधारी।


माखनचोर,बने रण छोड़,


तुमने प्रभु सब बात विसारी।


तुम्हे ही ध्यायू तुम्हे पुकारूँ।


निशिदिन आठों याम।।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।।* 


नाग नथैया जगत खिवैया,


यशुमति प्रिय बलदाउ भैया।


कंस विदारे द्रोपदी को तारे।


मन मोहन तुम जगत रचैया।।


राधा-श्याम मोहक मनभावन,


युगल छवि नयन सुखधाम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या* 


 *मीरा के घनश्याम।*


जन मन रंजन प्रभु भय भंजन,


प्रीत रीति रस मंगलकारी।।


मुरलीधर ,हे नटवर नागर,


गोपियन राधा कृष्ण मुरारी।।


राधा रमणा , मन ब्रजधाम।


 *राधा के प्रिय तुम्हे कहूँ या*


*मीरा के घनश्याम*।।


2- 


*मेरे हमदम साथ निभाना*


मै दीपक तू नेह की बाती,


मै खूशबू तू गेह की थाती।


प्रीत जिया की ना विसराना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*।।


 


आलम्ब प्रीत हिय मंजुल दर्पण,


शिखर बंध मन आत्म समर्पण।


मै राधा तू मोहन मेरा


शाश्वत तन-मन लौकिक अर्पण।।


मधुर प्रीत रस गंग बहाना।।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


मधुरिम भाव सुरभित निज यौवन,


कुसुमित मन उपवन नव जीवन।


नवल रुप श्रीगाँर तुम्ही से।


पुलकित हृदय ,पल्लवित घर आँगन।।


गृह उलझन बहुविधि सुलझान।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


बंधन पूर्ण ,उर्मिल भव आशा।


 मर्यादा वंदित कुल भाषा।


 निखिल गेह की आभा तुमसे,


  पुण्य प्रेम की तुम परिभाषा।।


  कर्म योगी बनके दिरवलाना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


 


मै छाया तुम दर्पण प्रियतम,


विरत रहे जीवन से दुःख तम।


तुझ संग पार भँवर से जाऊँ।


एक पल तुझको ना विसराऊँ।।


सात जनम तक साथ निभाना।


*मेरे हमदम साथ निभाना*


3- 


*तेरी याद मुझको सताती बहुत है*।


ख्वाबों में मेरे खयालों मे तुम हो,


धड़कते दिलो की पनाहों में तुम हो।


तुम्ही मेरे आँखों के नूर प्रियतम।


छवि तेरी प्रीतम रुलाती बहुत है।।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


वो कागज कलम नेह की रोज पाती,


वो नीदें चुराना,दिल की अमिय थाती।


पलको की गहरी लरज रोज निरखूँ।


हृदय रुह मिलने को पल पल सताती।


अल्हड़ प्रेम पाती लुभाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


वो चोरी से मिलना,वो मिल के सताना,


निगाहों-निगाहों मे सब कुछ सुनाना।


मै हूँ बस तुम्हारी यही राग गाना।


 प्रति पल जिया मे तेरा ही तराना।


तेरी प्रीत आतुरता जगाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


तुम्ही प्रीत-संगीत जीवन सुधा हो,


तुम्ही भाव-धड़कन कवित की विधा हो।


तुम्ही मीत मोहन हरित नद्य मन में।


तुम्ही प्राण मेरे तुम सबसे जुदा हो।।


तुम्हारी अदा मुझको भाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है।


ये सावन सुहाना ये मधुरिम फिजांये।


रिमझिम सी बारिश ये शीतल हवाँए।


अमवा की डारी पे बोले कोयलियाँ,


चातक है चपल पपिहा मुस्कुराये।


ये सावन अगन भी लगाती बहुत है।


तेरी याद मुझको सताती बहुत है


 


4- भारत माँ मुसकाई है।


रीत गीत नवगीत की धरती,


राम-कृष्ण मधुप्रीत की धरती।


अखण्ड देश आर्याव्रत की,


  वीरों ने अलख जगाई है।


भारत मॉ मुसकाई है।।


 


सुमधुर-सुरभित कश्मीर की घाटी।


गुलमोहर केशर की माटी।


 संस्कृति सुभग सुगंधित परिपाटी,


  दुर्योधन की कुटिल चाल से,


  स्वर्ग ने मुक्ति पाई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  आजाद ,भगत सिंह की कुर्बानी,


  विवेकानन्द की अमृत वानी।।


  अमर शहीद झाँसी की रानी।


  अमर वीर गौरव गाथा की।


  मोदी ने शान बढ़ाई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  भारत भाल मुकुट अभिनन्दन,


  कश्मीर खण्ड वसुधा का चन्दन।


  हृदय कोर से शत शत वन्दन।


  नवल सुधारस से सिंचित हो,


  नवल चेतना आई है।


भारत माँ मुसकाई है।


 


  5 अगस्त की अमर क्रान्ति,


  दो सिंहों ने इतिहास लिखा।


  एकता देश की खण्डित की


  उस धारा का ही नाश लिखा।


  यह धरती आज निहाल हुयी,


   केसर ने ली अँगड़ाई है,


भारत माँ मुसकाई है।


अद्भुत अलौकिक आल्हादित जन,


चहुँ ओर खुशी से पुलकित मन।


उत्साह चरम पर विजय प्रखर।


गौरव गरिमा से गर्वित तन।


डल का उपवन फ़िर महक उठा ।


घाटी फिर से हर्षायी है।


भारत माँ मुसकाई है


5-


भारत का अभिमान है हिन्दी।


 


सरस ,सहज,नवरस अभिलाषा,


जन-मन- गण की सुरभित भाषा।


शुभग कलश पूरित नव आशा।।


ओज परम् शुभ गान है हिन्दी।


सहज कण्ठ मृदु बान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


शुभग ,मुदित,मकरन्द यही है,


भाव,भक्ति,कवि छन्द यही है।


भारत भू की विस्तृत भाषा।


संपूर्ण धरा की गंध यही है।।


संस्कृति देश प्रतिमान है हिन्दी।।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


प्रेमचन्द्र की अद्भुत रचना,


अभिव्यक्ति की सरल संरचना।


गरल काव्य नव छ्न्द विपुल हो,


हिन्द प्राण प्रण शब्द अतुल हो।


प्रेम प्रीति रसगान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


मीरा के भावों की गागर,


महादेवी का अविरल सागर।


रामकथा शोभित तुलसी की।


नानक ,कबीर,रसखान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


हृदय कुंज ,भव पुंज सहजता,


अस्तित्व हिन्द, तम तेज सरसता।।


अमिय प्रीति से पूर्ण विधा यह,


मातृभूमि की प्राण सुधा यह।


आन बान और शान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


हिन्द देश की प्राण प्रिया यह,


वन्दनीय जन-मान जिया यह।।


काव्य ,ग्रन्थ,पुराण आत्म भव,


गीत ,रीत ,संगीत छन्द नव।


शारदा सृत वरदान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी।


विश्व पद्म पद पावन हिन्दी,


सरस,सहज मनभावन हिन्दी।


शाश्वत मृदुल लुभावन हिन्दी।।


जन मन रंजन गायन हिन्दी।।


"आशा" की पहचान है हिन्दी।


भारत का अभिमान है हिन्दी


✍आशा त्रिपाठी


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