डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

विषय:- " आत्म मंथन करता, यात्रा करता मन... "


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         शीर्षक- " मन... "


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आत्म मंथन करता या 


लम्बी यात्रा करता मन.... 


जीवन के विविध रंगों को 


साथ लेकर चलता है 


कभी हास कभी अश्रु 


एक ही सिक्के के दो पहलू 


धूप-छाँव 


फूल और काँटे 


बाटते बराबर-बराबर। 


कभी रेत की आँधी 


तो कभी झरनों का मधुर ध्वनि 


साक्षात्कार कराते गहरे समुद्र से 


कल-कल बहती नदियों से 


हरियाली से 


पतझड़ से 


बिछुड़न. ...और 


फिर..... आलिंगन से। 


लम्बी यात्रा करता मन....


आँखों में तिरता 


प्रतिपल दिखाता अनोखे सपने 


कभी मंगलगान... 


तो कभी... अन्तहीन करुणा


कराह... चीत्कार 


वेदना... और


कल्पनाओं की ऊँची उड़ान।


आत्म मंथन करता मन.....


हँसता.. मनाता...रूठता 


जीवन के उतार-चढ़ाव 


शीत-गर्म का अनुभव 


अपना-पराया समझता 


छोड़ता अपनाता.. 


सँजोता जोहता 


और फिर... 


सम्बन्धों को परखता।


अन्तर्विभेद करता 


अन्तर्द्वन्द्व करता 


समर्थ और असमर्थ में 


लौकिक और अलौकिक में 


सदय और निर्दय में।


नापता अनन्ताकाश को 


प्रकृति के विराट को


अनुशीलन करता... 


और सोचता.. 


अकेले में 


यही तो है मोनेर दशा 


जे केऊ भापते पाड़े ना..... 


निरन्तर अथक।... ...


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर सी जी

आज गंगा दशहरा के उपलक्ष्य में


गंगा स्तुति


 


माँ गंगे तू पावनी, जग की पालनहार।


शिव ज टा में राजती, महिमा बड़ी अपार।


 


गंगा पर्वत वासिनी ,धरा बीच पर आय।


हरियाली बिखरायके,जग को हरा बनाय।


 


लाये भागीरथ तुम्हे,पितृमोक्ष धरी आस।


सारे जग को तारती बुझा जगत की प्यास।


 


गंगा धारा निर्मल है,लहर-लहर लहराय।


डोले सीने नाव जो,उसको पार लगाय।


 


चरण तेरे विनय करूँ,रखना मेरी लाज।


छोड़ हमे जाना नहीं,सुन लो गंगे आज।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अग्रणी ..............


 


अग्रणी अखण्डनीय


अग्रगण्य आप


अज्ञेय अगोचर अज्ञात


अजन्मा आप


अजर अमर अतुलनीय


अजात अच्युत


अकथनीय अकाट्य


अवर्चनीय अनुभूत


अदर्शनीय अद्वितीय


अधिनायक अजेय


अनुपम अदम्य अथाह


अतींद्रिय अनुपमेय


अनादि अपरिमेय अपूर्व


अनुकरणीय


अदृश्य आजानुबाहु


आशुतोष अनुसरणीय।


 


उपरोक्त सभी गुणों से अलंकृत श्रीकृष्ण आपकी मनोकामना पूर्ण करें🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डाॅ०निधि,*   *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*

.


*पतित पावनी माँ गंगा* 


 


हे महावेगा, सदा नीरा, 


तुम पतित पावनी माँ गंगा।


तुम शिव केशी धारा गंगा, 


हे सुखदायिनी प्रबल गंगा।। 


 


तुम मंदाकिनी,जाह्नवी हो तुम,


तुम देवनदी, तुम सुरसरिता। 


संताप जगत के हरने वाली, 


तुम ध्रुवनन्दा,तुम विष्णुपगा।। 


 


तुम ब्रह्म कमण्डल से निकली, 


तुम भागीरथ की तपस्या हो। 


दशमी तिथि ज्येष्ठ शुक्ल उतरी, 


तारन हेतु सगर के पुत्रों को।। 


 


तुम हुई अवतरित धरती पर, 


करने को वसुधा का उद्धार। 


पापों से मुक्त जगत को कर, 


स्नेह दिया अपना अपार।।


 


तेरे पावन तट पर माता, 


काशी, हरिद्वार, प्रयाग बसे। 


अन्तिम गति इस मानव तन की, 


होती सद्गति मिलकर तुझसे।। 


 


निज कर्मो से डर कर मानव, 


आकर तेरे घाट पे वास करे। 


तेरे जल से स्नान करे। 


पर मन का मैल नही उतरे।।


 


तेरा जल इतना निर्मल है, 


कोई रंग न इस पर चढ़ता है,


निज पापों को धो कर मानव, 


गंगा को मैली करता है।।


 


सतयुग, द्वापर, त्रुता युग से, 


तुम कलियुग में भी आयी हो।


तीन युगों की भयमोचिनी, 


आ कलियुग में पछतायी हो।। 


 


तुम चन्द्र ज्योति सी उज्ज्वल हो, 


शरणागत , दीन वत्सला हो।


कर कृपा सकल तिहुँ लोकों पर, 


तुम अभयदान नित देती हो।। 


 


तुम भय की काली रात मिटाती ,


यम के त्रास को हरती हो।


तेरी शीतल अविरल जल-धारा ,


युग-युग से सदा सफल बहती।।


 


 *स्वरचित-* 


 *डाॅ०निधि,* 


 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*


एस के कपूर " श्री हंस"* *बरेली।*

*जिन्दगी।।।।जीवन।।।।*


*हाइकु।।।।*


 


जीवन पस्त


मन से हार गए


जीवन त्रस्त


 


जिन्दगी प्यार


जन्म ये एक बार


प्रेम गुज़ार


 


मिले ये एक


सदुपयोग कर


कार्य अनेक


 


जीवन खेल


पटरी न उतरे


जीवन रेल


 


दुःख सहोगे


फले तभी जीवन


खुश रहोगे


 


जीवन मन्त्र


रहस्य नहीं कोई


जीवन तन्त्र


 


ईर्ष्या न करो


खुशी के लिए तुम


स्पर्धा ही करो


 


आबाद है ये


जीवन में दिखावा


बर्बाद है ये


 


*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस"*


*बरेली।*


मो 9897071046


             8218685464


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश

गंगा दशहरा के अवसर पर माँ गंगा को समर्पित कविता प्रस्तुत है।


 


यदि पुनीत हो लक्ष्य सभी का 


तो नभ भी झुक जाता है।


माँ गंगा का अवतरण 


धरा पर हो जाता है।


 


पावनी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ,


राजा भगीरथ सा परमार्थी नभ को छुआ।


 


अविरल, कोमल, निर्मल गंगा


ब्रम्ह कमंडल से प्रगट भये


रोकेगा उनका वेग कौन


यह सोच सभी जन सहम गये।


 


अश्वमेध से महाविजय को सगर सुत निकले, 


श्रृषि अपमान के तपअग्नि से भस्म हो चले।


 


भगीरथ ने की घोर तपस्या 


शिव जी का आशीष लिया


शिव ने जानी पुनीत मनोरथ 


जटा में गंगा के वेग रोक लिया।


 


कपिल मुनि के शरणागत हो उपचार लिया,


सुतों के उद्धार हेतु श्रृषि से मर्म जान लिया।


 


राजा भगीरथ की तपस्या का


फलीभूत होने का अवसर आया।


माँ गंगा के थमे वेग का,


धरा पे अमृत बहने का अवसर आया।


 


घोर तपस्या ब्रम्हा की सगर परपौत्र ने कर दिखाया,


भगीरथ से प्रसन्न ब्रम्ह ने वरदान दे समुचित पथ दिखाया ।


 


गंगा भी अपने मद में थीं


मद उनका भी चकनाचूर हुआ।


व्याकुल गंगा के अमृत जल से 


सगर सुत का तब उद्धार हुआ।


 


   मौलिक रचना :-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर

किसान कर्म और किस्मत


 


किसान, कर्म और किस्मत तीनों ही 'क'अक्षर से शुरू होते हैं किसान जो फसल बोता है उसे काटने में अन्य की मदद ले सकता है ,किंतु कर्मों द्वारा बोई गई फसल स्वयं ही काटनी पड़ती


है।उसमें किसी अन्य की मदद नही ली


जा सकती और किस्मत आपके कर्म के अनुसार ही निर्धारित होती है।


 


सुप्रभात।


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर


राजेंद्र रायपुरी

एक मुक्तक - - 


 


मन भरा है मैल तेरे, 


                 माॅ॑ज तन को क्यों रहा है।


माॅ॑ज पहले यार मन को,


                  काम उल्टा हो रहा है।


माॅ॑जना तन छोड़ मन को,


                    ठीक बंदे तो नहीं है,


बीज नफ़रत के यही तो, 


                  मन विषैला बो रहा है।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


 


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"दु:ख के साथी बन जाओ"*


"उदासी के पल बीते साथी,


फिर अब तो तुम मुस्कराओं।


छाया मधुमास जग में साथी,


फिर मधुर गीत गुनगुनाओं।।


जागे मन में विश्वास साथी,


फिर ऐसा कर्म कर जाओ।


महके जीवन बगिया साथी,


ऐसा स्नेंह जल बरसाओ।।


छाये न उदासी मन में यहाँ,


साथी ऐसा कुछ कर जाओ।


सुख के साथी हो न हो साथी,


दु:ख के साथी बन जाओ।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta


ःःःःःःःःःःःःःःःः


          01-06-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

*गंगा दशहरा पर विशेष*


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*मां गंगे*


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मां गंगा केवल नदी नहीं है


हमारी आस्था है


साक्षात देवी है


राजा भगीरथ के तप 


का प्रमाण है गंगा।


 


परन्तु आज हमारी


आस्था सूख गई है


और गंगा प्रदूषित


हो गई है


और जीवन हो गया ख़तरे में।


 


अमृतमयी जल को


कर दिया है हमने गन्दा


इसलिए बाजारों में अब


पानी बोतल में बिकता है।


 


गीता के संदेश की


पावन धारा सूख रही है


आओ मिलकर करें जागरण


गौ, गंगा व गीता को दे संरक्षण।


 


भगीरथ के तप से


गंगा धरती पर आई है


निर्मल जल की हम


मिलकर रक्षा का संकल्प लेते है।


 


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कालिका प्रसाद सेमवाल


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*4


उच्च शिखर गिरिराज हिमालय,


विंध्य-नीलगिरि गर्वीला।


सब गिरि मिलकर इसे सँवारें-


इसकी धवल उँचाई है।।


           पंछी के कलरव से पाया,


           इसने इक संगीत नया।


           चखते अमृत आसव इसका-


           बजती धुन शहनाई है।।


है ठहराव झील सा इसमें,


जोश सिंधु-उत्तुंग लहर।


सुख-सुक़ून देता आस्वादन-


प्रिय इसकी मधुराई है।।


         हुआ अवतरण देव-लोक का,


         इस पुनीत मधुरालय में।


         सुरा-सुंदरी-मेल अनूठा-


         अति अनुपम पहुनाई है।।


प्यालों की टक्कर लगती है,


वीणा की झंकार सदृश ।


साक़ी के कोमल हाथों की-


अति अनुपम नरमाई है।।


        रस-पराग-मकरंद पुष्प मिल,


         करते मधु-निर्माण प्रचुर।


         ऊपर से भवँरों की गुंजन-


          लगे परम सुखदाई है।।


प्रकृति-गीत-संगीत सुहानी,


परम कर्णप्रिय मन भाये।


रस विहीन अति खिन्न हृदय जन-


को मिलती तरुणाई है।।


              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                9919446372


डॉ निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस


गांजा, बीड़ी, मदिरापान 


सामाजिक अवनति का सामान


आदी होता मानव इनका


करै विविध पाने का सन्धान


व्यसन बुरा है इनका जाने


फिर भी बात नहीं वो माने


घर में राशन हुआ है खाली


बीड़ी, जर्दे की तड़प निराली


कोरोना ने बहुत रुलाया


बीड़ी, जर्दे को तरसाया


पाँच की पुड़िया पचास में लाया


छूटे न ये नशे का साया


खाँस -खाँस फेफड़े हैं फूले


शरीर खाता है हिचकोले


कैंसर को दावत देते हैं


नशे के आदी दम भरते हैं


न इनको परिवार की चिंता


दिनभर खड़े हैं जब यह मिलता


लगी है लाइन कड़ी धूप में


तपता सिर जेठ की दुपहर में


आस लगाए आँख गढ़ाये


मन बीड़ी को तरसा जाये


धुँए का उठता है जब छल्ला


स्वस्थ शरीर पर बोले वो हल्ला


करे तम्बाकू सबकी हानि


हालत जान करे नादानी


बन्द करो बीड़ी, जर्दा तुम


जिओ जिंदगी सभी स्वस्थ बन


व्यसन बुरा ये इसको त्यागो


समय विकट है अब तो जागो


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

चाहतों के लौ से शमा जल रही है ख़ास परवाने के इंतज़ार कर रही है।     


 


कशिश , यकीं ,ख्वाबों कि हकीकत के दिये में जल रही।।   


 


                 


 


 फर्क रोशन शमां चिरागों में क्या?


 


चिराग जहाँ का आफताब, महताब। रोशन शमां दिल कि मोहब्बत कि रौशनी जल रही है।।    


 


 


जलता हुआ चिराग हालात हवा तुफानो से लड़ता ।    


 


 


अपनी हद ,हस्ती ,मस्ती फानूस कि हिफाज़त का जहाँ में उजाला।।


 


शमां महफ़िलो कि नाज़ इश्क कि इबादत का नूर नज़र चमक।         


 


चिरागों से कभी खुद के आशियाने के जल जाने का डर। 


 


परवानो का आशिकी के रौशन शमा में जल जाना।।


 


शमा रौशन आग ,आग का दरिया डूबते जाना है । ख़ास ,खाक के काशमश में जल रही है।।


 


जलता चिराग 


जहाँ के अंधियारे का सूरज, चाँद उम्मीदों का उजाला।


 


इश्क कि इबादत में दिल रौशन शमां मोहब्बत का उजाला।


      


                                 आशिकी, हुस्न ,मोहब्बत के जूनून में जल जाना।।


 


रौशन चिराग जहाँ में अंधेरों से जंग के जज्बात ।     


 


खुदाई, इश्क ,इबादत कि शान जहाँ जज्बे के शुरुर में जलने का उजाला।।


 


कशमकश ,काश से बाहर निकल दिल में चिराग रोशन जलाइए।।


 


 चाहे हसरत कि इश्क मोहब्बत के रौशन शमां का परवाना बन जाईये ।


 


जिंदगी के मकसद मंजिल कि दोनों ही इबादत ।               


 


जिंदगी कि हकीकत में क़ोई तो चिराग जलाइए।।


 


 


जहाँ खुद के वजूद कि रौशन रौशनी जलाइए।।             


 


 


 नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

कालिका प्रसाद सेमवाल


 2-पिता का नाम-श्री गिरजा शंकर सेमवाल


3-शिक्षा-एम०ए०-भूगोल,शिक्षा शास्त्र, व्यक्तित्व परिष्कार, आपदा प्रबंधन, 


4-जन्म तिथि-24 जुलाय


5-पता-मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड पिनकोड 246171


6-सम्प्रति -व्याख्याता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रतूड़ा रूद्रप्रयाग


7-अब तक प्राप्त सम्मान


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(क) रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार -गोडफे फिलिप्स इंडिया लिमिटेड द्वारा 1992


( ख)शाश्वतामृत सम्मान-2008


हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा


(ग) साहित्य मनीषी सम्मान 2010हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा


(घ ) सारस्वत सम्मान 2007


(ड.) साहित्य भूषण सम्मान 2011हिमालय और हिन्दुस्तान द्वारा


(च)विद्यावाचस्पति साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी प्रतापगढ़ उ०प्र०2015


(छ) विद्यासागर विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ गांधी नगर भागलपुर बिहार 2016


(ज) मानस श्री मौन तीर्थ उज्जैन द्वारा2015


(झ) साहित्य महोपाध्याय 2017


( साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश)


(ट) कालीदास सम्मान 2015 कालीदास भू स्मारक समिति रूद्रप्रयाग


(ठ) उत्तराखंड गौरव


बिक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर बिहार


अन्य अनेक संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है।


8-प्रकाशित पुस्तक-रूद्रप्रयाग दर्शन


9-मोबाईल नम्बर -9410760663


10-ईमेल आईं डी


kalikapsemwal@gmail.com


11-स्थाई पता-


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


 


मुझको मत ठुकराना प्रिये


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जीवन की मादक घड़ियों में,


मुझको मत ठुकराना प्रिये,


 


नव ऊषा लेकर आएगी,


जब मधुमय जीवन लाली,


कुहू- कुहू कर बोलेगी,


जब कोयलिया काली -काली।


नव रस से भर जाएगी,


जब बसन्त की डाली -डाली,


लहरेगी किसलय-किसलय,


पावन यौवन की हरियाली,


ऐसी मधुमय घड़ियों में,


तुम विरह गीत न गाना प्रिये।


 


छोटी -छोटी मन -रंजन,


और हरी -हरी द्रुम लतिकाएँ,


प्रातः मोती के चमकीले कण,


सलाज से भर लाएँ,


मादक यौवन में जब भौंरे


उन पर गुन-गुन कर खाएँ।


लहर -छहर कर प्रकृति विचरती,


हो जब कोमल रचनाएं,


तब ऐसी मधुमय में,


पल भर तुम मुस्काना प्रिये,


 


चूम धरा जब हंसती हो,


नटखट बदली सावन वाली।


नाचें मयूरी देख घटाएँ,


अम्बर में घिरती काली,


पी-पी के स्वर में चातक ,


जब दे उंडेल स्वर की प्याली,


ऐसी सुखदायी घड़ियों में पास तनिक तुम आना प्रिये।।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


 


 


कविता कैसे बनाऊं


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मैं अपनी कविता के लिए


तलाश रहा हूं,


शब्दों को बनाने वाले


अक्षर रेखाएं, मात्राएं


ताकि उनमें भर सकूं


जीवंतता, जिजीविषा


मैं अपनी कविता में


किसान की पीड़ा


गरीब मजदूर का दर्द


पहाड़ में खाली होते गांवो


सभी की करुण कथा


शामिल कराना चाहता हूं,


शब्दों को चुन-चुन कर


एक लतिका बनाना चाहता हूं,


आज प्रगति के नाम पर


जीवन कितना ऊबाऊ है


मैं अपनी कविता के माध्यम से


नव चेतना भरना चाहता हूं,


जीवन क्या है


अपनी कविता में शामिल कराना चाहता हूं।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


 


जीवन में दुत्कार बहुत है


*******************


द्वार तुम्हारे आया हूँ प्रिय,


जीवन में दुत्कार बहुत है।


 


जीवन का मधु हर्ष बनो तुम,


जीवन का नव वर्ष बनो तुम,


तुम कलियों सी खिल खिल जाओ,


चंदा किरणों -सी मुसकाओं,


रखना याद मुझे तुम रागिन,


अंतिम यह फरियाद सुहागिन।


 


कैसे अपना दिल बहलाऊँ


इस दिल पर भार बहुत है।


 


देखो यह नटखट पन छोड़ो,


मुझसे प्रेयसी, तुम मुँह मत मोड़ों,


आओ गृह की ओर चलें हम,


जग बन्धन को तोड़ चले हम,


तुमको पाकर धन्य बनूंगा,


प्यार -प्रीति में नित्य सुनूँगा।


 


तेरे हित में मुझको अब मरना है,


जीवन में अंगार बहुत है।


 


संध्या की यह मधुमय बेला,


रह जाता हूँ यहाँ अकेला,


सूरज की किरणों का मेला,


रचता है जीवन से खेला,


अपना तन-मन भार बनाकर,


चल पड़ता गृह, हार मनाकर।


 


कल समझौता होगा प्रिय,


जीवन में मनुहार बहुत है।


 


दुनिया कल यदि बोल सकेगी,


प्यार हमारा तोल सकेगी,


स्वत्व नहीं है उसको इतना,


कर ले बर्बरता हो जितना,


उसको क्या अधिकार यहां है,


कि रच दे विरह कि प्यार जहां है।


 


प्यार नयन की भाषा


यह इजहार बहुत है।


 


नव प्रभात की नूतन लाली,


रंग जाती है धरती थाली,


भौंरों के जब झुण्ड मनोहर,


गुंजित करते कुसुम -सरोवर ,


मथनी उर को मेरी हारें,


हाय, न क्यों तुम मुझे दुलारे।


 


कैसे तुमको राग सुनाऊं,


जीवन-तार बहुत है।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


 


 


🎍🌷शुभ प्रभात🌷🎍


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प्यार ही धरोहर है


**************


प्यार अमूल्य धरोहर है


इसकी अनुभूति


किसी योग साधना


से कम नहीं है,


इसके रूप अनेक हैं


लेकिन


नाम एक है।


 


प्यार रिश्तों की धरोहर है


और इस धरोहर


को बनाये रखना


हमारी संस्कृति


एकता और अखंडता है ,


यह अनमोल है।


 


प्यार 


निर्झर झरनों की तरह


हमारे दिलों में


बहता रहे


यही जीवन की


सच्ची धरोहर है। में


 


प्यार


उस परम पिता परमात्मा


से करें


जिसने हमें 


जीवन दिया है,


इस धरा धाम पर


हमें प्रभु ही लाते हैं।


 


प्यार


उन बेसहारा


बच्चों से करें


जो अभाव का जीवन जी रहे हैं


जो कुपोषण के शिकार हैं


और जो अनाथ है


 


आओ


हम सब संकल्प लें


हम सभी के प्रति


प्यार का भाव रखेंगे


किसी के प्रति


गलत नज़रिया


नहीं रखेंगे,


तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।


*************************


कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


 


 


*आपक स्नेह पत्र*


*******************


*आपका स्नेह पत्र*


*जब तुम्हारा पढ़ा,*


*हृदय द्रवित हो गया*


*अश्रु धार आ गई।*


 


*बात मन में लगी पीर अर में जगी*


*नींद बैरिन हुई, दूर मुझसे बड़ी,*


*सांझ मन में ललाती उछलती गई*


*दीप की लौ जिया को मसलती गई*


*स्वपन मेरे नयन में झलकते रहे*


*अश्रु जाने अंजाने लुढ़कते रहे।*


 


*चांद नभ में चला, प्यार तन में जला,*


*स्वपन साधे गगन मौन सोने लगा।*


 


*कर्म मैंने यहां एक ऐसा किया*


*हाय , पूछे बिना जो लुटाया जिया,*


*किन्तु मन में सफल एक आशा जगी*


*फूल मैंने चुना, शूल तुम पर लगें,*


*सिन्धु थाहा अमर कूल मेरा रहे।*


 


*साधना के लिए लौ लगाया मगर,*


*कल्पना का सपन आज रोने लगे।*


 


*कठिन भाव जागे गया कल सयन को*


*उमड़ती रही आंसुओ की रवानी*


*दिया दर्द तुमने बुझाते न बुझता*


*कहां कब रूकेगा नयनों में ये धारा,*


*तुम्हारे लिए दीप के हर किरण में*


*जलेगी हमारी शलभ सी जवानी।*


 


*बहुत है उदासी मिलन चाहता हूं,*


*मगर आज तुमको कहां प्राण पाऊं।*


 


*प्रिये ,शाम के दीप को जब जलाना*


*ज़रा याद करना विवश यह कहानी,*


*नहीं जल सकी हैं उमर की शमाएं*


*किरण में लिपटता शलभ कर नादानी,*


*पुनः याद करना मुझे तुम विरागिनी,*


*अभागा पथिक हूं नयन में है पानी।*


 


*नयन सुला दो हृदय को जगा दो,*


*सपन बन तुम्हें ज़रा सा हंसाऊं।।*


~~~~~~`~`~~~~


*कालिका प्रसाद सेमवाल*


*मानस सदन अपर बाजार*


*रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*


*पिनकोड 246171*


 


 


 


 


डॉक्टर धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक' अल्मोड़ा, उत्तराखंड

श्रृंगार रस पर मेरी


कविता- मुरली मनोहर


विधा- दुर्मिल सवैया छंद।


 


सिर मोर किरीट मनोहर सी, छवि साँवरिया अति शोभित है।


घन बीच जु दामिनि दंत छटा, मुख बिंब सुचंद्र ‌ सुशोभित है।


सिर बाल घटा मुख में बिखरे, शुभ कानन कुंडल शोभित है।


अधराधर बाँसुरी धारण ज्यों, मुख पुष्प अली मन मोदित है।।


 


कटिबंध मनोहर पैजनि पाद, निहार रहे पथ श्याम हरी।


छवि श्यामल मोहन मोहक सी, पटपीत धरे गलमाल धरी। 


मधु सी मुसकान मनोहर है, हरि सुंदरता अति प्रेम भरी।


यमुना तट श्याम खड़े दरसे, मुरलीधर राधिक ध्यान धरी।।


 


 डॉक्टर धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक'


अल्मोड़ा, उत्तराखंड।


दीपक "कविबाबु" मुज०(बिहार

नमन मंच


दिनांक 30 मई 2020


विषय आंखें


 


तुम्हारे आंखों को इंतजार है किसी का


खबरदार! अगर कोई रोका तो


संकुचित विषम परिस्थिति में भावना को


कोमल कली सी खिलती अंतर्मन


इस जग में मेरा भी कोई अपना होता तो


 


मेरी आंखें कुछ निहार रही है


स्वप्न में तुम्हारी चित्र उतार रही है


रोती_ बिलखती तुम्हें पुकार रही है


खुद को खुद ही यह संवार रही है


 


मेरी आंखों से तुम्हारी आंखों तक


अनबुझी पहेली सी एक बातों तक


राहों में तुम्हारी राह देखकर


अपनी पलकों को भींगा रही है


 


उठता प्रश्न आंखों का कसूर कौन है?


अब इस जहां इन वादियों में


अनजान कातिल वह वेकसूर कौन है?


 


दीपक "कविबाबु"


मुज०(बिहार)


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मालिक तेरे हाथ में है जिंदगी की गाड़ी।


दुःख से रखो या सुख से मैं तो हूँ अनाड़ी।।


 


कामी बन घूम रहा हूं मैं तो जग में स्वामी।


मोह जाल में बंधकर भूला अंतर्यामी।।


 


दुर्गम पथ है जीवन के रहूँ न नाथ पिछाड़ी।


दुःख से रखो या सुख से मैं तो हूं अनाड़ी।।


 


सदा मंजिल की ओर बढूं हिय में तेरा नाम।


हार जीत की परवाह नहीं यदि मिलें सुखधाम।।


 


राधा कृष्ण के स्मरण की मिलती रहे दिहाड़ी।


दुःख से रखो या सुख से मैं तो हूं अनाड़ी।।


 


सत्य जीवन के हिय मर्म तुम्हीं हो नारायण।


हर सांस समर्पित कर मैं करूं नाथ परायण।।


 


मनमोहन की मूरत रहे सदा नयन अगाड़ी।


दुःख से रखो या सुख से मैं तो हूं अनाड़ी।।


 


श्रीकृष्णाय नमो नमः💐💐💐💐💐👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


माहेश्वरी विष्णु असावा              बिल्सी जिला बदायूँ

आज माहेश्वरी वंशोत्पत्ती दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं


 


उत्पत्ति का दिवस हमारा प्रभु ने हमें बनाया


हर उत्सव से बढ़कर हमने अपना पर्व मनाया


 


है महेश नवमी की तिथि ये हमें हर्ष है भारी


इसी दिवस से सींची प्रभु ने माहेश्वरी क्यारी


 


हैं सन्तान महेश्वर की महेश्वरी कहलाये


नगर-नगर और देश-देश में विश्व पटल पर छाये


 


इक्यावन सौ त्रेपनवाँ ये बर्ष लगा है आकर


गर्व से फूले नहीं समाते इस समाज को पाकर


 


शिवशंकर हैं जनक हमारे दक्ष सुता महतारी


इनके ही तो आशिष से ये फूल रही फुलवारी


 


बैसे हम भोले भाले सबका आदर करते हैं


आ जाये जब बात मान की नहीं कभी डरते हैं


 


सेवा त्याग अरु सदाचार का रस्ता हम अपनाते


हर बूड़े अरु बड़े वृद्ध को झुककर शीश नवाते


 


उनका जब आशीष मिले हम गद्-गद् हो जाते हैं


प्रेम प्यार के गीत खुशी में मद होकर गाते हैं


 


दीप जलाके लगाके चन्दन हम वन्दन करते हैं


शिवशंकर भगवान तुम्हारा अभिनन्दन करते हैं


 


जय महेश जय महेश्वरी का नारा प्रबल हुआ है


बनी रहे अनुकंपा सब पर प्रभु से यही दुआ है


 


शुभकामनाएं इन शब्दों के साथ-साथ स्वीकारो


सामाजिक बन्धू सब मिलकर अब दीपों को वारो


 


सबसे है अनुराग हमें हर कोई हमको प्यारा


भारत का हर प्राणी अपना भारत देश हमारा


 


🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🌹


 


           माहेश्वरी विष्णु असावा


             बिल्सी जिला बदायूँ


साहित्य समाचार

 


संस्कार भारती गाजियाबाद द्वारा ऑनलाइन अखिल भारतीय कविसम्मेलन विभाग संयोजक डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में किया गया जिसकी अध्यक्षता दिल्ली के जाने माने गीतकार श्री ओंकार त्रिपाठी ने की।


श्रीमती कल्पना कौशिक की माँ वाणी वंदना से कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। उसके बाद उनकी कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार रहीं


मैं समय हूँ तुम्हारा संभालो मुझे।


घट रहा हूँ मैं पलपल बचालो मुझे।


कविसम्मेलन के संयोजक डॉ राजीव पाण्डेय ने देश भक्ति से ओतप्रोत मुक्तक पढ़ा


नासूर मिटाया है फिर भी, प्रश्न अधूरा लगता है।


झंडा शासन अपने पर भी, जश्न अधूरा लगता है।


जब से हटी तीन सौ सत्तर,अन्तर्मन है खुश लेकिन,


पाक अधिकृत कश्मीर बिना,स्वप्न अधूरा लगता है।


पिलखुआ से श्री अशोक गोयल ने कोरोना विषय पर पढ़ा


कोरोना घातक है लेकिन घबराना तो ठीक नहीं, 


लापरवाही से यहाँ वहाँ पर आना जाना ठीक नहीं l


कवि सम्मेलन के अध्यक्ष श्री ओंकार त्रिपाठी ने विशुद्ध साहित्यिक गीत पढ़ते हुए कहा


जलधि में डूबने का नाम जीवन है। 


जलधि के ज्वार-भाटे मत गिनाकर तू।


युवा कवयित्री गार्गी कौशिक ने माँ विषय पर गीत में भाव व्यक्त किये


जब से तुझको देखा दिल मे प्यार पले।


तेरे आ जाने से दिल के द्वार खुले।


नोयडा के दीपक श्रीवास्तव की इन पंक्तियों पर काफी प्रशंसा मिली


जाने क्यों ढूंढे अनन्त को,


जब तक है प्राणों का बन्धन।


बड़ौत से सुरेन्द्र शर्मा 'उदय' की इन सारगर्भित पंक्तियों को काफी सराहना मिली


नदियाँ थी मेरी सूखकर तालाब हो गई।


आदमी की सोच ही खराब हो गई।


पिलखुआ से इंद्रपाल सिंह ने कहा


दूर है मंजिल अभी पर हौसला जाने न पाए ।


रात काली है ये माना ग़म कहीं छाने न पाए।


हैदराबाद से मंजू भारद्वाज की श्रृंगार में पढ़ा


प्रेम की हद पर एक लकीर खींच दी हमने,


उस हद से गुजरने की कोशिश न करना।


शामली के कवि पंडित राजीव भावज्ञ का मुक्तक की दो पंक्तियां दृष्टव्य हैं


 वाणी में अभिव्यक्ति का संसार है।


डूबते-मन के लिए पतवार है।।


गाजियाबाद के ग़ज़लकार श्री सुरेन्द्र शर्मा के शेर काफी सराहे गये।


हरिद्वार,मक्का,ननकाना जो जाते हैं जाएं वे


हमको तो बच्चों की आंख में सारे तीर्थ दीखें हैं।


संस्कार भारती मेरठ प्रांत के सह महामंत्री श्री चन्द्रभानु मिश्र, जिला संयोजक डॉ जयप्रकाश मिश्र, महासचिव डॉ अनिल वशिष्ठ, सह सचिव सोनम यादव, ममता राठौर,अतर सिंह प्रेमी, लोनी रीता जयहिंद,रचना वानिया, मेरठ, राजेश मंडार,बागपत,शशि त्यागी अमरोहा आदि कवियों के गीत ग़ज़ल छंदों ने कवि सम्मेलन में चार चाँद लगा दिए।


कवि सम्मेलन का संचालन अनुपमा पाण्डेय भारतीय और नन्द किशोर सिंह 'विद्रोही' ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ राजीव पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया।


प्रेषक


 डॉ राजीव पाण्डेय


विभाग संयोजक


संस्कार भारती गाजियाबाद


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बासुरी बेसुरी हो गयी ,पंखुड़ी गुलाब कि कटीली हो गयी ।      


सुर बेसुरा हो गया ,साज सब सजा हो गयी ।।                    


गीत ,ग़ज़ल , संगीत उबाऊ हो गयी । इंसान बेजार ,जिंदगी बंजर हो गयी।।                         


 


जिन्दा है रिश्तों कि बेवफाई हो गयी।


कहर का करिश्मा रिश्ते, नाते जहाँ ,जमाना हो गया बेगाना ।


पास नहीं क़ोई आता जिस्म को हाथ नहीं क़ोई लगाता । 


 


पैदाइश बेकार हो गयी जिंदगी जान कि बेजान हो गयी।।       


 


खौफ है ख़ास का ही खास से मिट जाना। तन्हाई कि परछाई मौत से बड़ी हो गयी । इंसा ,इंसा का कातिल कभी हथियार कि धार से कभी जबान कि तलवार से करता एक दूजे का कत्ल ।                            


इंसा दो धार हो गया जिंदगी जज्बात कि मार हो गयी।।


जिन्दा जिस्म से क़ोई रिश्ता नहीं निभाता।                                  


रिश्तों का मिज़ाज़ बदल गया है रिश्तों का समाज बदल गया है। इंसान खुद का जिन्दा लाश ढो रहा है, जिंदगी बोझ बन गयी है।।


 


कितना बदल गया है इंशा,और क्या बदलना है बाकी ।     


 


इंसान बदलने का रियाज कर् रहा है। दिलों के दरमियां प्यार ,मोहब्बत का एहसास अभी बाक़ी। 


 


मिलने जुलने का रस्म ,रिवाज हुआ ख़ाक । एहसास ही रह गया बाक़ी 


व्यवहार हुआ साफ़। 


इंसा फड़फड़ा रहा निन्दगी जंजाल बन गयी है।।


 


एहसास अजीब जज्बा इंसा हैरान परेशान है । बदल रहे मिज़ाज़अब शक्लों के बदल गए शाक ।     


इंसा ताकत कि साक कि तलाश में भटकता। बैठ रहा शाक कि ख़ाक पर यकीन एतबार लूट रहा है।  


 


इंसान का मौजू बदल गया जिंदगी मायने ढूढ़ती है।।


                            


 


खौफ मंडरा रहा है ,इंसान इधर उधर भाग रहा है।   


 


शहर छोड़ कर गांव में आया ,गावँ छोड़ कर अब जाना किधर है। इंसा मझधार में फंस गया है जिंदगी तूफ़ान में जनजाल बन गयी है।।


 


कायनात भी खामोश गवाही दे रही है जहाँ में इंसा कि तबाही देख रही है ।                      


जन्नत ,दोजख दोनों ही जहाँ में इंसान के करम का करिश्मा कह रही है। चमन में बहार बागों में फलों से लदे डाल । सुबह भौरों का फूलों कलियों कि गली में गुंजन गान ।            


कोयल कि कु कु मुर्गे कि बान कहानी लग रही है। दहसत में है इंसा जिंदगी खुद के जाल में फंस गयी है।   


 


सुबह सूरज कि लाली कि चमक दमक दब रही है।                


 


कागा ,श्वान ही दीखते है आम जहाँ में रौनक कि सुबह शाम।


 


च्मगाधड़ कि मार पड़ रही है। इंसान है घायल जिंदगी कराह रही है।।


                                                                            शेर हुये ढेर अब गीदड़ ही शेर बहुत है शोर।   


 


जिंदगी थम गयी है सांस धड़कन की जिंदगी कट रही है। 


 


फिजाओ कि हवाओ में है जहर जहर ही जान बन गयी है।    


 


इंसान हो गया जहरीला जिंदगी ठहर गयी है ।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


निशा"अतुल्य"

*राधिका*


31.5.2020


 


राधिका तूने सृष्टि रचाई 


सृष्टि रचाई तूने तेरे मन भाई ...2


सृष्टि रचा के तू मेरे मन भाई 


राधिका तूने सृष्टि रचाई 


 


सुन्दर चाँद तारे,धरती निहारें


सूरज की बिंदिया झलकारे


फिर हो सब के आधीन,मेरे मन भाई


राधिका तूने सृष्टि रचाई ....


 


अन्न उपजाती फूलती फलती


धीर गम्भीर तुम हो पृथ्वी सी


पालन किया तूने,मेरे मन भाई 


राधिका तूने सृष्टि रचाई ....


 


निर्मल जल बन बहती रहती 


कभी यमुना सी कभी गंगा सी


प्यास बुझाई तूने मेरे मन भाई


राधिका तूने सृष्टि रचाई ....


 


प्राण वायु सी बन कर बहती 


निर्मल चित तन सुन्दर करती 


जीवन प्राण दिया तूने, मेरे मन भाई


राधिका तूने सृष्टि रचाई ....


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


डॉ हरिनाथ मिश्र

एक प्रयास 


क़ुदरत का है कमाल या इंसान का फ़ितूर।


होता है प्यार कैसा बता दो मेरे हुज़ूर??


          मत तोड़ना कली को चटका के मेरे यार।


          है क़ाबिले दीदार कोमल कली का नूर।।


जीवन का रंग बसंती हो जाए तो बेहतर।


इसकी ही है जरूरत यही मुल्क़-ए-ग़ुरूर।।


         होता नहीं हासिल है कुछ,आँसू बहाने से फ़क़त।


         जंग-ए-आज़ादी का बस है त्याग ही दस्तूर।।


माली बग़ैर गुलशन तो रहता नहीं है खाली.


डूबा हुआ ये सूरज निकलेगा फिर जरूर।।


         कहता है छोटा दीपक सुन लो ऐ आफ़ताब।


         रहता मेरा है क़ायम बदली में भी सुरूर।।


देके ज़रा सा ध्यान अब तो सुन लो नामदार।


चहिए अमन व चैन को बस एकता भरपूर।।


                           ©डॉ. हरि नाथ मिश्र


                              9919446372


संजय जैन (मुम्बई

*रात हो या सवेरा*


विधा: कविता


 


दर्द की रात हो या, 


सुख का सवेरा हो...।


सब गंवारा है मुझे, 


साथ बस तेरा हो...।


प्यार कोई चीज नहीं,


जो खरीदा जा सके।


ये तो दिलो का,


दिलो से मिलन है।।


 


प्यार कोई मुकद्दर नहीं,


जिसे तक़दीर पे छोड़ा जाए।


प्यार यकीन है भरोसा है,


जो हर किसी पर नहीं होता।


मोहब्बत इतनी आसान नहीं,


जो किसी से भी की जाएं।


ये तो वो है जिस पर,


दिल आ जाएं।।


 


चूमने को तेरा हाथ,


जो में तेरी ओर बढ़ा।


दिलमें एक हलचल सी,


मानो मचलने लगी।


क्या पता था आज,


की क्या होने वाला हैं।


ये तो अच्छा हुआ,


कि कोई आ गया।।


 


वरना दो किनारों का,


आज संगम हो जाता।


और मोहब्बत करने का,


अन्जाम सभी को दिखता।


दर्द का इलाज यारो,


दर्द ही होता है।


जो दर्द को सह जाते है,


वो ही मोहब्बत कर पाते है।।


 


पता नहीं लोग मोहब्बत को,


क्या नाम देते हैं…।


हम तो तेरे नाम को ही,


मोहब्बत कहते हैं…।


हर उलझन के अंदर ही,


उलझन का हल मिलता है।


कोशिश करने से ही,


सुंदर कल मिलता है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


31/05/2020


डॉ निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

"मन ठहरा मन बहता"


मन की गति न जाने कोई


जो जाने सो योगी होई


मन्थर चले पवन ज्यों बहती


मन भी उड़े संग ज्यों तितली


मन पर चले न कोई शासन


ध्यान, योग लाये अनुशासन


मन बहता सरिता सम पल-पल


ठहरे तो बन जाये जड़ सम


चंचल, चपल है मन अभिमानी


कसै डोर तो बने वो ज्ञानी


इत -उत उडै फिरै भँवरा सा


एक पल ठहर होए पगला सा


बहता मन प्रतिपल सुख बाँटे


ठहरा मन देखे न आगे


बहता मन स्वच्छन्द विचरता


ठहरे मन प्रभु भजन मैं रमता


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--दो काफ़ियों में


 


अगरचे इक घड़ी को मेरी यह तदबीर सो जाती 


किसी की ज़ुल्फ़ ही मेरे लिए ज़ंजीर हो जाती 


 


कहीं भी चैन से रहने नहीं देती है यह ज़ालिम


ये तेरी याद जो हर दिन नई इक पीर बो जाती


 


हमारे प्यार का छप्पर कभी यह गिर नहीं पाता 


निगाह-ए-यार गर  बनकर खड़ी शहतीर हो जाती 


 


ये आहों की नदी बहने न दी आँखों से यूँ हमने 


क़िताब-ए-दिल पे यह लिक्खी हुई तहरीर धो जाती 


 


किसी के हुस्न की रानाइयों में यूँ नहीं डूबे 


यही था डर हमें तेरी कहीं तस्वीर खो जाती


 


हमीं ने तोड़ दी तक़दीर की ज़ंजीर ऐ- *साग़र*


वगरना उम्र भर  इंसान की तदबीर सो जाती 


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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