कालिका प्रसाद सेमवाल

*पर्यावरण बचाये*


****************


आओ सब मिलकर वृक्ष लगाए,


वृक्षारोपण से धरती पर हरियाली लाये,


इस धरती पर बढ़ रहा प्रदूषण,


वृक्षारोपण करके प्रदूषण से मुक्ति पाये।


 


जल ध्वनि प्रदूषण चारों ओर फैला है,


सभी नदियों का जल हुआ कसैला,


प्रकृति को संरक्षण देना जरूरी है,


प्रकृति से रिस्ते -नाते मधुर बनाये।


 


आसमान में जहर घुल रहा,


हुआ प्रदूषित तन मन सारा,


मिट जाय प्रदूषण इस वसुन्धरा का,


पूरी धरा को स्वच्छ बनाए।


 


भारत मां की हम सन्ताने को,


आगे आकर आना ही होगा,


भारत माता को प्रदूषण से,


मुक्ति दिलाने ही होगी।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


रुपेश कुमार

✍🏻🌵✍🏻🎄✍🏻🌿✍🏻🎄✍🏻🌵✍🏻


 


पर्यावरण दिवस पर मेरी रचना ~


 


*------ जीना हैं तो पर्यावरण बचाना होगा -----*


 


जीवन मे जीना हैं तो ,


वृक्षारोपण जरूरी हैं ,


वृक्ष नहीं तो मानव जीवन का ,


अस्तित्व मिटना मजबूरी हैं ,


 


पर्यावरण संरक्षण के लिए ,


सबको जागरुक करना होगा ,


जीवन मे जीना हैं तो ,


आगें मिलकर आना होगा ,


 


जनसंख्या विस्फोटक स्थितियों से ,


स्वयं को बचाना होगा ,


अगर हम नहीं चेते तो ,


जीवन लेकर जाना होगा ,


 


पर्यावरण दिवस के अवसर पर ,


हम सभी को कसम खाना होगा ,


वायुमण्डल को बचाना होगा तो ,


हमें पेड़-पौधा लगाना होगा !


 


~ रुपेश कुमार©️


चैनपुर, सीवान, बिहार


 


✍🏻🌴✍🏻🌲✍🏻🌳✍🏻🌲✍🏻🌴✍🏻


डॉ. बीके शर्मा

है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद 


क्यों गिर पड़ा हो खड़ा 


संभल और कदम बढ़ा 


चल रही हवा मंद मंद 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


व्यर्थ है दौड़ना 


साथ किसी का छोड़ना 


ना बना तू अपनी पसंद 


रुक जरा ले चल संग 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 यह कैसा वेग है


 हवा से भी तेज है 


झुकना तेरा व्यर्थ है 


अभी तू समर्थ है


 पड ना मंद मंद


 है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 यह तो सत्य है 


भेदना लक्ष्य है 


छोड़ दे पच्छ है 


देख ले प्रत्यक्ष है 


नहीं तुझ पर प्रतिबंध 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 ना कोई मित्र है 


मनुष्य यह विचित्र है 


लक्ष्य चाहे दूर है 


तू ना मजबूर है 


दिल में तेरे जोश है


जोश में ही है आनंद 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद 


 


 


डॉ. बीके शर्मा


उच्चैन (भरतपुर )राजस्थान


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्राकृतिक दुरुपयोग ही,बना मनुज का काल।


चक्रबात जलप्रलय से,धरा हुई बेहाल।।


 


पर्यावरण शुद्ध करो, बनो प्रकृति के मित्र।


जीवन हो आनन्दमय, सुखी रहोगे मित्र।।


 


वृक्ष वंश कों नाश कर, नर कियो मरु प्रसार।


अतिवृष्टि या अनावृष्टि,सब नर कृत व्यवहार।।


 


अति भीषण सूरज हुओं, सह न सकै संसार।


ग्लेशियर पिघलने लगे,निशदिन हाहाकार।।


 


धूलधूसरित नभ हुओ,कैसे लेवे सांस।


वन्यजीव अब लुप्त हो,छोड़ें जीवन आस।।


 


नदियों के अस्तित्व मिट,मिटा धरा श्रृंगार।


जीवन दायिनी रेखा, भूल गई उपकार।।


 


विश्व पर्यावरण दिवस पर


🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🌸


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


आशा त्रिपाठी

पर्यावरण दिवस पर मेरी नव कविता।


 


जल,थल,नभ,वन,तरुवर,


दिव्यकोश है धरती के।


इन्हें बचाना धर्म हमारा,


देवत्व बोध है धरती के।।


 


जल ही जीवन जल ही सब धन,


जल से ही है सृष्टि हरित।


जल से ही सुराभित वन उपवन,


मृदुल धार मधु बहे सरित।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध धरा का,


नव आभा नव प्रीत बहे।


प्रदूषित वायु,निर्जन उपवन,


धरा कहॉ ये कोढ़ सहे।। 


 


सजल चेतना जन जन मन मे,


अलख प्रकृति जगानी होगी।।


नही चेते यदि प्रकृति संरक्षण को,


विभत्स सभी की कहानी होगी।।


 


मृदुल महकती अनुपम बगियाँ,


दिव्य रश्मि पूरित अरूणांचल।


कल-कल छल-छ्ल शीतल सरिता


जल जीवों का है स्वर्गंचल।।


 


जल ,जंगल आधार प्रकृति के,


परिशुद्ध पवन आधार हमारे।


धरा सुशोभित हरियाली से।


पशु-पक्षी जन गण को प्यारे।।


 


स्वच्छ हरितिम हो धरा हमारी,


यह संकल्प उठाना है।


पर्यावरण के संरक्षण को


घर घर अलख जगाना है।।


 


देख दुर्दशा सुन्दर प्रकृति की,


हृदय मे उठ रहा गहन विषाद।


यही समय है यही प्रलय है।


राष्ट्र जागरण का हो शत नाद।।


 


प्राण वायु देती जन-जन को,


वन उपवन से पूरित धरती।।


सकल जगत की भूख मिटाती,


मूल्यवान औषध की धरती।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध हमारा,


यह संकल्प करे प्रतिपल।


प्लास्टिक का प्रयोग न हो तो,


सुन्दर सुरक्षित होगा कल।।


✍आशा त्रिपाठी


      05-06-2020


मदन मोहन शर्मा 'सजल' - कोटा

आज पर्यावरण दिवस पर -


*"प्रकृति की दास्तां अपनी जुबानी"*


~~~~~~~~~~~~~~~~


बियावान कंकरीट जंगल


चारों ओर 


धुंआ ही धुंआ


साँस लेने में फेफड़ों को


मशक्कत करनी


पड़ रही थी


आसमान से अग्नि


बरस रही थी


कहीं कोई ठौर नहीं


न छाया का नामोनिशान,


प्यास के मारे


कंठ में कांटे चुभते


महसूस हो रहे थे,


ऐसा लग रहा था


प्राण अब निकलने ही वाले है,


दूर-दूर तक


न कोई पक्षी, न जानवर


न आदमी का ही


नामोनिशान।


 


हे ईश्वर 


अब क्या होगा, कैसे बचेगी जान?


निढाल होने ही जा रहा था


अचानक


एक बूढ़ी औरत


कृषकाय बदन


सारे शरीर पर फफोले


आंखे धंसी हुई


जीर्ण शीर्ण काया पर


जगह-जगह फ़टी हुई


सैंकड़ो पैबंद लगी साड़ी


जिससे अपनी लाज को


छुपाने में


भरसक प्रयासरत


होटों पर जमी पपडियां


कई-कई दिनों से


भूख प्यास से लड़ने का


आभास दे रही थी।


 


मैंने पूछा -


माता, तुम कौन हो?


किसने की तुम्हारी यह


दुर्दशा?


कौन है वह वहशी दरिंदा?


शून्य में अपलक निहारती


हुई अटक अटक कर


बोली-


क्या बताऊँ बेटा


*मैं प्रकृति हूँ*


मैंने अपना सब कुछ


प्राणी जगत को


सर्वस्व दिया,


मैंने अपना सारा खजाना


प्राणी जगत के लिये


खोल दिया,


और बदले में मानव ने मुझे यह सब दिया।


 


मुझे नोंचा, खसौटा,


मेरा दोहन किया,


मेरी हरियाली को 


वीरान जंगलों में बदल दिया,


मेरे वक्ष पर शोर करते


नाचते, फुदकते, दौड़ते,


किलकारियां करते,


चौकड़ियाँ भरते मेरी संतानों


जीव जंतुओं


पशु पक्षियों को आज का मानव


मार कर खा गया,


मेरी इस हालत का जिम्मेदार


सिर्फ और सिर्फ मानव है,


लेकिन उसे नही पता


कि उसकी जिंदगी


मेरे ही दम पर है,


मेरे ही दम पर है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल' - कोटा (राजस्थान)


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 

विश्व पर्यावरण दिवस ----पर्यावरण प्रदूषण प्राणी प्राण कि आफत ब्रह्ममाण्ड के दुश्मन।


 


 


नदियां ,झरने ,तालाब ,ताल तलइया सुख गए धरती बंजर हो रही रेगिस्तान।।                    


 


श्रोत जल का चला गया पातळ जल ही जीवन का जीवन दर्शन का सरेआम मजाक ।            


 


युद्ध होगा अब जल कि खातिर जल बिन तड़फ तड़फ कर निकलेगा प्राणी काप्राण।।      


 


जल जो अब भी है बचा हुआ है प्राणी के कचड़े से हुआ कबाड़।


 


ऋतुओं ने चाल बदल दी मौसम का बदल गया मिज़ाज ।।       


 


सर्दी में गर्मी ,गर्मी में सर्दी ,वर्षा मर्जी कि मालिक जब चाहे आ जाय ।।                          


 


प्रकिति के मित्र धरोहर प्राणी विलुप्त प्रायः दादा ,दादी कि कहानियो के ही पात्र पर्याय।।


 


बन ,उपवन ही जीवन पेड़ पौधे कट रहे चमन धरती के हो रहे बिरान ।।                            


 


हवा में घुली जहर साँसों में जहर आफत में है प्राणी प्राण ।      


 


ध्वनि प्रदुषण ,धुँआ प्रदूषण साँसत में है जान।          


 


पर्यावरण ,प्रदुषण बन गया बिभीषन नित्य ,प्रतिदिन निगल रहा शैने ,शैने ब्रह्माण्ड प्राणी का ज्ञान ,विज्ञानं।।


 


प्रतिदिन विश्व में कहीं न कहीं अवनि डोलती भय भूकंप का भयावह साम्राज्य।     


 


सुनामी ,तूफ़ान कि मार झेलता युग संसार।।                      


 


प्राणी, प्राण प्रकृति का संतुलन असंतुलित धरती का बढ़ रहा तापमान ।                     


 


ग्लेशियर पिघलते सागर तल कि ऊंचाई बढ़ती अँधेरा होता आकाश ।।


 


अँधा धुंध विकास कि होड़ में अँधा प्राणी जीवन के मित्र नदारत पर्वत हुए चट्टान ।                  


 


समय अब भी कुछ बाकी कुछ तो सोचो प्राणी प्रकृति का करो पुनर्निमाण।।                    


 


प्रदूषण के खर दूषण दानव को ना करने दो विनास ।           


 


प्रकृति कि मर्यादा के राम बनो, मधुबन के मधुसूदन, कालीदह का नटवर नागर कि मुरली कि बनो तान।।


 


जल सरक्षण ,बन सरक्षण का अलख का हो शंकनाद।।               


 


प्रदूषण के दानव से संरक्षित संवर्धित का हो संसार ।।


 


बृक्ष भी हो जैसे संतान, जल कि अविरल ,निर्मल धरा का बहे प्रवाह।


 


ऋतुएँ ,मौसम संतुलित हरियाली खुशहाली का ब्रह्माण्ड।।


 


       नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 


भरत नायक "बाबूजी

*"प्रकृतिऔर मानव"*


 (कुकुभ छंद गीत)


..................................


विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS , क्रमागत युगल पद तुकबंदी।


................................


*सुधा सरिस शुचि धार नदी की, आँसू बन क्यों बहती है?


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


दंश-गरल हर पर्यावरणी, बेबस होकर सहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।। 


 


*वृक्ष नहीं क्यों अब हरियाता? खगवृन्द नहीं क्यों गाता?


सोते सूखे अब झरनों के, क्यों नद में नीर न आता??


स्वर्ग बनूँ कैसे भूतल का, प्यासी वसुधा कहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*पड़ा अकल पर पत्थर क्यों है? क्यों मनमानी करता है?


जिम्मेदार कौन है इसका? नित्य प्रदूषण भरता है।।मिल भी विकास के नाम सदा, धूम्र उगलती रहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*कौन कहे अब पत्र-पुष्प को, शाखा-जड़ भी कटती है।


पूजित होते थे पेड़ कभी, अब तरु-छाती फटती है।।


हरियाली से खुशहाली है, सारी दुनिया कहती है।


सुनले चलने वाले पंथी,


प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*मानव से वन मानव वन से, उठो हरित भू करने को।


चिंतन करना होगा अब तो, जैविक चिंता हरने को।।


हुई राम की गंगा मैली, यमुना रोती रहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


..................................


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


..................................


डॉ.सरला सिंह स्निग्धा दिल्ली

" विश्वपर्यावरण दिवस "


 


काटते जंगल वे बनाते हैं,


कंकरीटों के फिर महल ।


दिलो दिमाग़ पर हावी है ,


धन दौलत की बस चाह।


रखना उन्हें सजाकर फिर


 दीवारों में ,छतों में ,फर्श में।


 रहते कभी थे एक घर मे ,


 चार भाई मिलकर के साथ ।


आज चार कमरों में आ गये ,


 बस एक माता पिता दो बच्चे।


 सबको पड़ी है दिखावट की ,


 चार जन तो चार कार चाहिए।


एक घर में चार जन हैं फिर ,


चार एसी भी लगा हो जरूर।


कहते हो बौद्धिक सब बेकार,


करे जब काम सभी बेबुनियाद।


फैक्टरियों की जग में भरमार ,


बमबारूदों का बढ़ता कारोबार।


मनाते विश्वपर्यावरणदिवस तुम,


कहो क्यो,ये तो निरा दिखावा ।


 


डॉ.सरला सिंह स्निग्धा


दिल्ली


जया मोहन प्रयागराज 

विश्व पर्यावरण दिवस पर मेरी एक कविता


आओ वृक्ष लगाये


पृथ्वी के बदरंग आंचल को


मिल कर हम सजाये


आओ।।।।


पेड़ हमारे जीवन दाता


हवा बिना जीव रह न पता


अपने जीवनदाता का हम


जीवन बचाये


आओ।।


धरा से पेड़ कट रहे


भू क्षरण का हम दंश झेल रहे


अपनी धरती माता को 


बंजर होने से बचाये


आओ।।। 


वृक्ष हमे फल जड़ी बूटी देते


ऑक्सीजन दे कार्बन पीते


काट काट कर पेड़ो को


धरती न वीरान बनाये


आओ।।


वो अमराई वो पुरवाई कहाँ मिलेगी 


शुद्ध वायु हमे कहाँ मिलेगी


ऐसे प्यारे साथी पर


हम न आरी चलवाये


आओ।।।


हमको ये संकल्प लेना है


वृक्ष के बदले वृक्ष देना है


धरती का सिंगार कर हम


हर्षित हो जाये


आओ।।।


एक पेड़ दस पेड़ बराबर


वेद पुराण ये कहते


धन धान्य समृद्धि से सबका


भंडार भरते


वन देवी के पुत्रों को हम सब शीश नवाये


 


आओ ।।।


स्वरचित


जयश्री श्रीवास्तव


जया मोहन


प्रयागराज 


5।6।2020


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश

विश्व पर्यावरण दिवस (05 जून) पर 


                   एक कविता 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


विषय:- "पर्यावरण की सुरक्षा हमारा संकल्प"


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


हम धरती का श्रृंगार करेंगे 


हम सब उससे प्यार करेंगे 


कितना कुछ देती है हमको 


उसके प्रति आभार करेंगे।.... 


 


प्रदूषण मुक्त हो पर्यावरण 


अनुकूल बनायें वातावरण 


पानी है तो प्राणी हैं समझो 


हम पानी का सत्कार करेंगे।....... 


 


हम पेड़ों का संसार बसायें,


नदियों को कचरा मुक्त बनायें 


ताल-पोखरे को गहराई देकर 


हम जीवों पर उपकार करेंगे।......


 


वैसे भी मानव पर उपकारी है 


अब कठिन परीक्षा की बारी है 


पुरखों की युगीन तपस्या को 


मिलकर हम साकार करेंगे।....


 


हो कल-कल नदियों का बहना 


परहित में बगियों का फलना 


पर्वत पर हिमखण्डों का जमना 


हो संकल्पित पुनरुद्धार करेंगे।....


 


जनसंख्या को करें नियंत्रित 


हो जायें हम सब संकल्पित 


प्रदूषण रहित नीर पवन हो 


परस्पर हम सहकार करेंगे।......


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


बिजया लक्ष्मी

*पर्यावरण*


आओ बच्चों पेंड़ लगाओं


मिलजुल कर के साथ मे,


स्वच्छ -भारत , सुंदर भारत


रहे स्वच्छ परिवार मे!


 


वायु प्रदुषण बढ़ता है,


पेड़ों के आभाव मे,


शुद्ध - शुद्ध हवाएँ आती,


पेड़ों के बागान से,


जल -प्रदुषण होता है ,


गंदगी के वास्ते ,


स्वच्छ -भारत , सुन्दर - भारत ,


रहे स्वच्छ परिवार मे!


 


इस धरती की सुंदर छाया,


पेड़ों से ही बनी हुई,


मधुर-मधुर. ये मंद हवाएँ,


अमृत बनके चली हुई ,


आओ बच्चें इस उपवन मे,


पेड़ों का एक बाग लगाएँ,


स्वच्छ -,भारत सुदंर भारत


रहे स्वच्छ. परिवार. में!


 


पेड़ों से मिलता है हमको,


फल -फूल और औषधी,


मत खेलों खिलवाड़ हमेशा,


प्रकृति के बागान से,


हरा भरा हरियाली है,


देश की निशानि है ,


स्वच्छ भारत सुंदर भारत 


रहे स्वच्छ परिवार मे!


      बिजया लक्ष्मी


प्रज्ञा जैमिनी 

पर्यावरण दिवस पर आधारित


     प्रकृति 


 


प्रकृति ने ली जब अंगड़ाई


वसुधा नववधू- सी शरमाई


सूरज की सुनहरी किरण ने


उसकी सुंदर माँग सजाई


 


सजाई फूलों से अपनी वेणी


रंग-बिरंगी हरियाली साड़ी पहनी 


सदाचार, स्नेह के गहनो से विभूषित 


दिखती समर्पित कोमलांगी ज़हनी 


 


वन-उपवन,प्राणी सभी हुए 


पुलकित देख उसका श्रृंगार


कलह द्वेष के पाषाण हृदय पर


किया उसने प्रेम से प्रहार 


 


मधुमास में शुष्क मन में 


लगता प्रेम संगीत बहने


महकी-महकी रातरानी की कहानी 


प्रेम धुन लगते हैं सभी कहने 


 


वसंत ऋतु का रूप अनूप देख 


चहचहाए पक्षी- पशु पेड़ों पर झूल


सुन कोयल-सी मीठी बोली 


निराशा, शत्रुता,विपदाएँ गए सब भूल


 


वसुधा की हरितिमा से ही छाई


सबके हृदयों पर मधुर मुस्कान 


हरित वृक्ष काटकर मत करो तुम 


इस सृष्टि का अवसान


प्रज्ञा जैमिनी 


यशवंत"यश"सूर्यवंशी

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷


       भिलाई दुर्ग छग


 


 


कबीर जयंती की हार्दिक बधाई


 


 


मूड़ मुड़ाए हरि मिले,सकल लेय मुड़ाय।


बार-बार के मूड़ते, भेंड़ सरग नहि जाय।।


                     कबीर


 


🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃


 


 


🥀विश्व पर्यावरण दिवस🥀


 


 


विधा मनहरण घनाक्षरी छंद


 


 


 


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳


लोग पेंड़ काट कर,जड़ धड़ बाँटकर।


कानन विरान किये,जंगल हलाल से।।


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳


सुख गई हरियाली, टूट गई खुशहाली।


अलग-थलग हुए, माता-पिता लाल से।।


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳


खुद ही तो काट डाले,पैर में लगा के ताले।


शिकारी शिकार बने, अपने ही जाल से।।


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳


मानता था यमराज, तरु काट बड़ा नाज।


पेड़ यश जान बचा,चंद साँस काल से।।


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳


 


 


 


🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷


       भिलाई दुर्ग छग


दीपक कुमार "पंकज"

##प्रकृति के #हनन पर मेरे लेखन✍️


द्वारा प्रस्तुतिकरण!!


##HINDI__##POETRY!!!!


 


**आओ वृक्ष को बचा ले**


 


इस जग का कल्याण कर


प्रकृति पर एक एहसान कर


कांपती अब यह भू_,घरा


बचा ले इसकी वजूद को


उठा ले तू कुदाल को


अपने श्रम का दान कर


 


क्यों पेड़ों को तुम काट रहे हो


मौत को क्यूं तुम बांट रहे हो


मानव जाति के सीढ़ी को


आने वाले एक पीढ़ी को


उसपर अपना बस एक उपकार कर


अब मिलकर एक हुंकार भर


 


हर डाल को काटा गया


टुकड़ों में है बांटा गया


कुछ पौधों को रोप लो


मंडराते खतरे को रोक दो 


तुम्हें प्रकृति की हरियाली का वास्ता


चुन लो पौधारोपण का रास्ता


आ मिलकर एक व्यापार कर


अपने श्रम का दान कर


 


पौधारोपण की नारों से


जंगल के उस किनारों से


विश्व के करोड़ों लोगों की जुबान पर


अपनी उस ऊंची मकान पर


कुछ टहनियों को जोड़ दो


पर्यावरण को एक नई मोड़ दो


 


प्राणवायु अब जहर बन गई


तेरी ये कैसी नजर बन गई


तू प्रकृति का जंगल डूबा रहा


धरती को क्यूं श्मशान बना रहा


 आज एक प्रयास कर


अपने श्रम का दान कर


 


क्यूं पर्यावरण को रुला रहे हो?


दर्द उसका बढ़ा रहे हो


अपना एक फर्ज निभाओ ना


पेड़ _पौधे लगाओ ना


आओ अब वृक्ष को बचा लें


चल आज एक काम कर


अपने श्रम का दान कर 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


    ✒️दीपक कुमार "पंकज"


मुजफ्फरपुर (बिहार), हिंदी शिक्षक सह कलमकार✍️!!!!!!


"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*प्रकृति-प्रेम*


न फूलों का चमन उजड़े,शज़र उजड़े,न वन उजड़े।


न उजड़े आशियाँ पशु-पंछियों का-


हमें महफ़ूज़ रखना है ,जो बहता जल है नदियों का।।


          रहें महफ़ूज़ खुशबू से महकती वादियाँ अपनी,


          सुखी-समृद्ध खुशियों से चहकतीं घाटियाँ अपनी।


          रहें वो ग्लेशियर भी नित जो है जलस्रोत सदियों का


                                        हमें महफ़ूज़....


हवा जो प्राण रक्षक है,हमारी साँस में घुलती,


इशारे पे ही क़ुदरत के,सदा चारो तरफ बहती।


रखना इसे महफ़ूज़ उससे ,जो है मलबा गलियों का-


                               हमें महफ़ूज़....।।


        नहीं भाती छलावे-छद्म की भाषा इस कुदरत को,


       समझ आती महज़ इक प्यार की भाषा इस कुदरत को।


यही है ज्ञान का मख्तब,कल्पना-लोक कवियों का- 


                      हमें महफ़ूज़....।


नज़ारे सारे कुदरत के यहाँ संजीवनी जग की,


हिफ़ाज़त इनकी करने से हिफ़ाज़त होगी हम सबकी।


सदा कुदरत से होता है सुखी जीवन भी दुखियों का-


                   हमें महफ़ूज़....।।


     सितारे-चाँद-सूरज से रहे रौशन फ़लक प्रतिपल,


    न आये ज़लज़ला कोई,मिटाने ज़िन्दगी के पल।


  महज़ सपना यही रहता है,सूफ़ी-संत-मुनियों का-


                हमें महफ़ूज़....।।


जमीं का पेड़ जीवन है लता या पुष्प-वन-उपवन,


धरोहर हैं धरा की ये ,सभी पर्वत-चमन-गुलशन।


प्रकृति ही देवता समझो,प्रकृति ही देश परियों का-


               हमें महफ़ूज़...।।


   पहन गहना गुलों का ये ज़मीं महके तो बेहतर है,


  समय-सुर-ताल पे बादल यहाँ बरसे तो बेहतर है।


प्रदूषण मुक्त हो दुनिया,बने सुख-धाम छवियों का-


         हमें महफ़ूज़ रखना है....।।


               © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


कृष्णा पाण्डे                 नेपाल गंज, नेपाल

५ जून विश्व पर्यावरण दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं।


इसी अवसर पर कुछ पंक्तियां.....


🌳🌳🌳🌳🌳🌳🇳🇵


✍️५ जून है दोस्तों,


 पर्यावरण के नाम,


प्रदूषण से बचाने के लिए,


करते रहे कुछ काम।


######@@


दूषित वातावरण का,


चाहो अगर इलाज


नगरी नगरी किजिए,


वृक्षारोपण आज!


#####


अच्छी नहीं है दोस्तों,


इससे नोच खसोट,


कुडे कचरे गोबर से,


खाद बने कम्पोस्ट।


                   कृष्णा पाण्डे


                नेपाल गंज, नेपाल


सुषमा सिंह कानपुर 

"थोड़ी सी मेहनत"11


आज फिर ससुर जी ने जूट के दो थैलों में सब्जी खरीदी और साइकिल के दोनों हैंडल में टांग कर धीरे-धीरे साइकिल चलाते हुए घर पहुंचे।


थैलों कोटेबल पर रखकर कुर्सी पर बैठते हुए बोले,पानी ले आओ!


सासू जी पानी देने के बाद थैले की सब्जी का मुआयना करने लगी।


"कितनी बार कहा है जी!सब्जियाँ पॉलीथिन मे रखकर तब थैले में डाला करो पर तुम सुनो तब न,अब एक घण्टा सब्जियाँ अलग करने में लग जायेगा।


पर पॉलीथिन से निकालकर डलिया में रखने में भी तो टाइम लगता है!ससुर जी ने समझाते हुए कहा।


क्या टाइम लगता है?पॉलीथिन फाड़ी सब्जी डलिया में पलट कर डस्टबिन में डाल दी हो गया।अब ये एक एक अलग करो बैठकर।


पर् वो पॉलीथिन डस्टबिन के बाद कहाँ जाएगी कभी इस बारे में सोचा है?


कल एक गाय के पेट से 5 किलो पॉलीथिन निकाली गई है, इन सबके ज़िम्मेदार भी तो हम ही हैं ।वैसे भी दूध-ब्रेड,चाय -बिस्किट, तेल -मशाले आदि सब पॉलीथिन में ही तो लाते हैं, वो सब क्या कम है जो सब्जियाँ भी पॉलीथिन में लाई जाएं, जहाँ काम नही चल सकता वहां मज़बूरी है पर जब काम चल सकता है तो ऐसे ही ले आया।


इसी बहाने पर्यावरण संरक्षण में थोड़ा योगदान हो जाएगा।


हमारे साथ"थोड़ी सी मेहनत"कर लोगी तो पर्यावरण संरक्षण में तुम्हारा भी योगदान हो जाएगा।


"माँ जी आप रहने दीजिए मैं सब्जियाँ अलग कर लूंगी ,इसी बहाने पर्यावरण संरक्षण में थोड़ा योगदान हमारा भी हो जाएगा।"बहू ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा तो दोनों मुस्करा उठे ।


©®


डॉ सुषमा सिंह


कानपुर 


मौलिक व अप्रकाशित


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर।

घनाक्षरी


विषय पर्यावरण


 


नदिया तालाब सूखे


बारिश सावन रूठे


बेचारा किसान सोचे


करूं क्या मैं आज है।


 


सागर सुनामी आये


जंगल अनल छाये


धरती सिहर रही


किसे दूँ आवाज़ है।


 


दिवस मनाने आये


सबको दिखावा भाये


पादप लगाए नहीं


चित्र का रिवाज है।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर।


पवन कुमार, सीतापुर

कबीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐


 


गीत-आज ज़रूरत है कबीर की


 


  चाटुकारिता जिसे न आये


कविता मे केवल सच गाये।


झूठे आडम्बर को तजकर


ढाई आखर प्रेम सिखाये।।


 


चाहत है उस कलमवीर की।


आज ज़रूरत है कबीर की।।


 


जिसके संघर्षो की गाथा


हर युग को नव पाठ सिखाये।


तन के शुद्धिकरण से ज्यादा


जो निज मन को पाक बनाये।।


 


सच्चाई के शून्य धरातल पर


शब्दों का गढ़ गढ़ता हो।


वेद-शास्त्र के साथ-साथ में


लोगों की पीड़ा पढ़ता हो।।


 


तूफ़ाँ और बवंडर आये


अडिग हिमालय सा बन जाये।


निज प्राणो का मोह त्यागकर


जो सुल्तानों से टकराये।।


 


ऐसे विद्रोही फ़कीर की।


आज ज़रूरत है कबीर की।।


 


पीर सुनाये जो जन -जन की


पोल खोल दे काले धन की।


घटिया सोच सुना दे सबको


नेताओ के अंतर्मन की।।


 


घोर कालिमा में प्रकाश की


किरणों का आभास करा दे।


बंद नयन के खोल किवाड़े


एक पुण्य एहसास करा दे।।


 


दीपक-ज्योति स्वयं बन जाये


अँधियारे से आँख मिलाये।


जब तक स्नेह मिले बाती को 


जलकर वो प्रकाश फैलाये।।


 


सुख-दुख मे सम परमधीर की।


आज ज़रूरत है कबीर की।।


 


पवन कुमार, सीतापुर


विनय साग़र जायसवाल

गीत--प्रदूषण 


 


कोई प्रहरी काश लगा दे ,ऐसा भी प्रतिबंध ।


किसी ओर से बिखर न पाये ,धरती पर दुर्गंध ।।


 


दिया हमीं ने नागफनी या बबूल को अवसर 


क्यों बैठे हम शाँत रहे सोचा कभी न इस पर


कभी तो कारण खोजो आये कैसे यहाँ सुगंध ।।


किसी ओर से------


 


गुलमोहर कचनार पकडिया आम नीम पीपल


आज चलो हम निश्चय कर के बोयें छाँव शीतल


वातावरण न दूषित हो सब खायेंं यह सौगंध ।।


किसी और से -------


 


जीवन में यह मधुर कल्पना होगी तब साकार 


इक दूजे पर दोषारोपड़ छोड़े यह संसार 


जुड़े हुए हैं इक दूजे से सुख दुख के संबंध।।


किसी ओर से------


 


आज हमारे मन में है कितनी घोर निराशा 


तिमिर कुण्ड में डूब गई जीवन की हर आशा 


विश्वासों से टूट गये हैं अपने सब अनुबंध ।।


किसी ओर से--------


 


*साग़र* थे विज्ञान जगत में हम ही सबसे आगे


ज्ञान धरोहर संजो न पाये कितने रहे अभागे 


हमने कभी लिखा तो होता अपना यहाँ निबंध ।।


किसी ओर से -------


कोई प्रहरी----------


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


16/3/2002


निशा"अतुल्य"

विश्व पर्यावरण दिवस


5.6.2020


 


शुद्ध वायु नही आज


जल संकट महान


मुक्ति मिले कैसे बोलो


सोच ये जगाइए


 


दोहन कहीं न हो


प्रकृति विक्षोभ न हो


संरक्षित मिल करें 


प्रयत्न बढ़ाइए ।


 


संकट ये टले तभी 


जब वर्षा होए घनी


हरी भरी धरा रहे


वृक्ष ही लगाइए ।


 


वृक्षारोपण करना


नेह धरा से रखना


पर्यावरण दिवस


सब ही मनाइए ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


शिवानन्द चौबे

पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर समर्पित।।


....................................


ना छेड़ मनुज तु प्रकृति को


अस्तित्व तेरा मिट जाएगा


श्रृंगार धरा के वृक्ष है ये


जीवन संकट बढ़ जाएगा 


-------------------------


सूनी सूनी बस्ती होगी


सूना सूना ये जग होगा


वीरान गली हर घर होगा


त्राहि त्राहि मच जाएगा 


------------------------


धीरे धीरे वन खत्म हूए


सब पेड़ यूं कटते जाते है


विकट परिस्थिति होगी जब


आक्सीजन रह न जाएगा


-----------------------------


हरी भरी धरती होगी जब


हरियाली खुशियाँ होगी


आज सभी संकल्प ले हम


एक एक पौधे को लगायेंगे


-------------------------------


इस पर्यावरण दिवस पे सबसे


शिवम् यही आह्वान रहे


धरती मां के अस्तित्व को हम


फिर से यूँ हरा बनायेंगे !!


--------------------------------


शिवानन्द चौबे ( कुमार चौबे )


भदोही उत्तर प्रदेश


एस के कपूर "श्री हंस'"* *बरेली

*विषय।।पर्यावरण सरंक्षण।।।।।*


*शीर्षक।।प्रकृति जीवन दायनी है।*


*दिनाँक।।05।।06।।।2020।।।।*


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस।*


 


नदी ताल में कम हो रहा जल


और हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं।


ग्लेशियर पिघल रहे और समुन्द्र


तल यूँ ही बढ़ते ही जा रहे हैं।।


काट कर सारे वन कंक्रीट के कई


जंगल बसा दिये विकास ने।


अनायस ही विनाश की ओर कदम


दुनिया के चले ही जा रहे हैं ।।


 


पॉलीथिन के ढेर पर बैठ कर हम


पॉलीथिन हटाओ का नारा दे रहे हैं।


प्रकृति का शोषण कर के सुनामी


भूकंप का अभिशाप ले रहे हैं।।


पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है दिन रात


हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण।


भूस्खलन,भीषणगर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि


की नाव बदले में आज हम खे रहे हैं।।


 


ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन


अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम है।


वृक्षों की कटाई बन गया आजकल


विकास प्रगति का दूसरा नाम है।।


हरियाली को समाप्त करने की बहुत


बडी कीमत चुका रही है ये दुनिया।


इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित


असुंतलन आज हो गया आम है।।


 


सोचें क्या दे कर जायेंगे हम अपनी 


अगली पीढ़ी को विरासत में ।


शुद्ध जल और वायु को ही कैद कर


दिया है जीवन शैली की हिरासत में।।


जानता नहीं आदमी कि कुल्हाड़ी


पेड पर नहीं पाँव पर चल रही है।


प्रकृति नहीं सम्पूर्ण मानवता ही नष्ट


हो जायेगी इस दानवता सी हिफाज़त में।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस'"*


*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


मोब 9897071046।।।।।।।।।।।।।।


8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

रखना मातु दुलारि.......


 


राधा तेरी मोहिनी,मोहे सकल जहान।


किए बस में त्रिलोकपति,जगतनाथ भगवान।।


 


मेरी जीवन नाव भी,माते तेरे हाथ।


दुख से रखो या सुख से,निशदिन चाहूं साथ।।


 


अदभुत शक्ति तुम्हारी, भजते है घन श्याम।


सत्य शरण माँ आपकी, हृदय बसो अविराम।।


 


नमनीय अभिनन्दनीय,हे राधे सुकुमारि।


कृपा दृष्टि रखना सदा,रखना मातु दुलारि।।


 


 


बृषभानु दुलारी की जय🌹🌹🙏🙏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...