कुमार कारनिक

********


    💐 *कबीर दोहे*💐


//१//


माया से जीवन रहे,


       नित दुख नवल समाय।


कथनी कबीर सन्त के, 


            वाणी अमर कहाय।।


//२//


पोखर प्रगटे सन्त जी,


              प्रखर सत्य के पूंज।


नीमा नीरू गोद लें,


             सरवस फैला गूंज।।


//३//


नाम जुलाहे का मिला,


             सब को राह बताय।


सतत सत्य को साधते,


           संत कबीर कहाय।।


 


       *कुमार🙏🏼कारनिक*


(💐संत शिरोमणि कबीर जयंती 


  की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏🏼)


                         ********


डॉ निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

"मनुष्य और प्रकृति के बीच बिगड़ता सन्तुलन"


            ---------------------------------------------------------


मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्ध आदिकाल से ही चला आ रहा है।कालांतर से ही मानव प्रकृति के सानिध्य में ही जीवन यापन करता रहा है।मानवीय विकास की धारा और संस्कृति तथा सभ्यता के उन्नयन की प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।अतः प्रकृति के साथ तालमेल को ही जीवन का सूत्र कहा गया है।


जैसे- जैसे मानव प्रकृति का आँचल छोड़कर भौतिकतावादी संस्कृति की ओर उन्मुख हुआ है ।वैसे- वैसे प्रकृति और मनुष्य के बीच का संतुलन बिगड़ने लगा है।मनुष्यों ने अपनी सुविधा एवं सरोकार के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है।उसकी इस मनमर्जी के फलस्वरूप महामारी और आपदाओं का ग्राफ अद्यतन बढ़ता ही जा रहा है।विश्व पर बढ़ते पर्यावरण संकट को देखकर संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रोग्राम के चीफ साइंटिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस के डायरेक्टर' जियान ल्यू' का कथन है कि-"मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन गड़बड़ा रहा है और इसमें सुधार नहीं किया गया, तो महामारियाँ और आपदाएँ बढ़ती जायेंगी।


अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए हमें सँभलना होगा।मानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हवा,पानी, भूमि, खाद्यान्न सभी की परम आवश्यकता है।परन्तु बढ़ते हुए प्रदूषण एवं घटते संसाधनों के कारण साल दर साल पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है।


पूरी दुनिया में भूजल का स्तर गिरता जा रहा है।साथ ही साथ जल के बढ़ते प्रदूषण के कारण पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है।भूमि पर हो रहे अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वर परत सिकुड़ती चली जा रही है।परिणामस्वरूप मानव के सामने खाद्यान्न की विकट समस्या उठ खड़ी हुई है।चारों ओर बढ़ते वायु प्रदूषण ने मानव को स्वच्छ वायु से महरूम कर दिया है।तदुपरांत भीविश्व भर के संभ्रात वर्ग के लोगों की मानसिकता में कोई अंतर दिखलाई नहीं पड़ता।उनकी उपभोगवादी प्रवृत्ति ने पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।


 


जंगलों के दोहन के प्रभाव-


---------------------------------


 


जब मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ प्रारम्भ की और स्वहित में जंगलों को उजाड़ना प्रारम्भ किया। तो ऐसी स्थितिसे जो संकट उपजा उसके परिणाम आज दुनियाभर के सामने स्वतः ही आ रहे हैं।


जंगलों की बेलगाम कटाई, शहरी क्षेत्रों का विस्तार, सड़क निर्माण के लिए जंगलों का विनाश तथा वन्यजीवों के शिकार की बढ़ती प्रवृत्ति ने मानव जीवन को वर्तमान में चुनौतीपूर्ण बना दिया।परिणामस्वरूप जंगली जानवरों ने मानव बस्तियों का रुख करना प्रारम्भ किया जिससे जानवरों द्वारा वायरस और बैक्टीरिया का मानव जीवन पर संक्रमण के रूप में घातक प्रभाव पड़ने लगा।जानवरों के लिए सामान्य वायरस मानव जीवन के लिए जानलेवा सिद्ध होते हैं।चेन्नई के प्रो.राजन पाटिल के अनुसार"स्वाइन फ्लू का सूअरों पर मामूली इंफेक्शन होता है लेकिन जब यह म्यूटेंट होकर इंसानों पर आता है तो जानलेवा सिद्ध होता है।मानव की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता भी इसका मुकाबला नहीं कर पाती।


 


वातावरण परिवर्तन के परिणाम एवं निवारण-


-------------------------------------------------------


दुनियाभर में इस समय कोविड- 19 और टिड्डियों की समस्या का असर दिखलाई दे रहा है।इस असर का मूलभूत कारण जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है।


मानवों के खान पान के तरीकों की वजह से जंगली जानवरों और मनुष्य के रिश्ते तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं।


अतः हमें अपने अनाज उगाने के तरीकों एवं खान पान की आदतों में आवश्यक रूप से बदलाव की महती आवश्यकता है।मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन की अवस्था में यदि सुधार नहीं किया गया तो महामारियों एवं आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती चली जायेगी।


पर्यावरण को बचाने के लिए सर्वप्रथम हमें पहल करते हुए प्लास्टिक का उपयोग बन्द करना होगा।प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है।प्लास्टिक के समुद्र में मिलने से समुद्र का खारापन निरन्तर बढ़ रहा है।यह समुद्र में एसिडिटी बढ़ाने का कार्य करता है।


दूसरी ओर वन्यप्राणियों पर होने वाले हमलों को रोकना होगा और जानवरों की अवैध तस्करी पर रोक लगानी होगी।


उत्पादन और खपत के के तौर तरीकों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार बदलना होगा।


इन्हीं सावधानियों के चलते हम प्रकृति और मनुष्य के बीच के सन्तुलन को बिगड़ने से बचा सकते हैं।यही सही समय है जब हमें चेतना है ताकि हम प्रकृति के सन्देशों को समझ सकें।स्वयं की देखभाल हेतु हमें प्रकृति की देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत मौलिक एवं अप्रकाशित निबंध रचना🙏🙏


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव                रायपुर

🌴पर्यावरण 🌴


 


पर्यावरण दूषित न हो 


 रहे हरा भरपूर।


मनभावन प्रकृति लगे


दुख भी होने दूर।। 


 


पर्यावरण के साथ में 


मत कीजे अन्याय। 


छोटी-छोटी गल्तियाँ


दुख देती हैं प्राय।। 


 


पर्यावरण की राह में 


लिये एक-एक पौध। 


हरा-भरा परिवेश हो


मिले सभी अवरोध।। 


 


पर्यावरण की उपेक्षा 


मत करिये नर-नार।


जीवन को संवारे यह


सुखी रहे संसार।। 


 


      डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


              रायपुर


कुमार🙏🏼कारनिक

***********


🌱🌳🌴🌞🌱🌳🌴🌲🌳🌴


*विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ*


 


         मानव कृत्यों का पर्यावरण पर प्रभाव


                        *आलेख*


                         *******


विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है,वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं।प्रकृति और पर्यावरण के छेड़छाड़ से प्राकृतिक संतुलन मे दोष पैदा होता है।और यही प्रदूषण कहलाता है।प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में जन्म लेकर प्रकृति को चिढ़ाता है।इसका दुष्प्रभाव के कारण अधिकांश जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत असर दिखने को मिलता है और विभिन्न प्रकार के बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम चक्र बिगड़ता है और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।प्रकृति के प्रदूषण से न शुद्ध वायु का मिलना, न शुद्ध जल का मिलना, न शुद्ध खाद्य पदार्थों का मिलना, न शांत वातावरण का मिलना।तथा इसके प्रभाव से न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है और सुखा,बाढ़,ओलावृष्टि देखने को मिलता है।


प्रकृति सुधार विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाने से हरियाली की मात्रा अधिक हो।सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों,आबादी वाले क्षेत्र खुले हों आर्थात् हरियाली से ओतप्रोत हो।कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।मानव जीवन में प्रकृति का बहुत महत्व है, प्रकृति से हम है और मानव जीवन है।


 


 


         *कुमार🙏🏼कारनिक*


             (०५/०६/२०२०)


🌱🌳🌴🌲💐🙏🏼🌱🌳🌴💐


***************


रूपा व्यास,

 


                   'पर्यावरण'


 


पर्यावरण को बचाना है,


पर्यावरण को बचाना है,


ये सब हमने ठाना है।।


 


वृक्षों को मत काटो तुम,


वृक्षों को मत काटो तुम,


वरना ये प्रकृति हो जाएगी सुन्न।।


 


प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,


प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,


'एक वृक्ष दस पुत्र समान '


यह शिक्षा धर्म ग्रंथों से आती।।


 


धरती माँ पुकारें बार-बार,


धरती माँ पुकारे बार-बार,


प्रकृति की रक्षा करो तुम हर बार।।


 


कभी भूकंप तो कभी महामारी,


कभी भूकंप तो कभी महामारी,


हम सब अपने अपने पर्यावरण के आभारी।।


 


मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,


मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,


ऐसे ही मृत न हो जाए हाथी बार-बार।


 


शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,


शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,


तो प्रदूषण कम हो,ये भी तो सोचना चाहिए।


 


कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,


कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,


आबादी के कारण मकान पे मकान खड़े किए जा रहे।।


 


हे!मानव अब तो संभल जा,


हे!मानव अब तो संभल जा,


पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।


पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।


              


नाम-रूपा व्यास,


,'परमाणु नगरी' रावतभाटा,जिला-चित्तौड़गढ़ (राजस्थान),पिनकोड-323307


 


                 


                  


 


 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश

विश्व पर्यावरण दिवस पर एक कविता प्रस्तुत है :-


 


आया है मानसून सुहाना 


खड़ी जून के भावों में 


एक एक वृक्ष सभी लगा दें


तो सुन्दर होगा राहों में।


 


आज प्रकृति जो कूपित है


मानव के कुटिल चालों से


पर्यावरण को दूषित कर रहा


निजी स्वार्थ के विकरालों से।


 


जल, थल, नभ को करें सुरक्षित


भौतिकवादी जंजालों से


दिव्यता से भरी धरा है


अनुपम बगियों के घुघुरालों से।


 


युद्धों का आगाज सदा 


करते हरबा हथियारों से


धरा नहीं न मानव होगा


तो क्या करोगे चौबारों से।


 


जीवन साँस तभी तक है


जब प्रकृति दे रहा ममत्व हमें


पर्यावरण का होगा दोहन


तो संकट का घेरेगा घनत्व हमें।


 


जब जब प्रकृति का हुआ दोहन


मानव अस्तित्व पर घिरा संकट धरा पर


यदि अब प्रकृति को समझा नहीं गया


कोरोना सा संकट हरबार होगा धरा पर।


 


    मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


सुनीता असीम

अनसुनी इक पुकार थे हम तो।


दुश्मनों में शुमार थे हम तो।


***


वो ही कीमत नहीं समझ पाया।


रूह से शानदार थे हम तो।


***


दिल में रक्खी भड़ास थी कितनी।


इक भरा सा गुबार थे हम तो।


***


बेजुबानी बनी बयानी जब।


प्यार का फिर उतार थे हम तो‌।


***


फूल बंजर पे भी खिला होता।


यार दिल से बहार थे हम तो।


***


सुनीता असीम


५/६/२०२०


स्नेह लता "नीर" रुड़की

दोहे


*****


1


 कुमुदबन्धु को देख कर,खिले कुमुद- तालाब।


धवल दूधिया चाँदनी,नयन- सजन के ख्वाब।।


2


आज शर्म से जा छुपे,सभी बिलों में व्याल ।


अतिशय विषधर हो गया,मनुज ओढ़ कर खाल।।


3


अर्णव बनने के लिए ,बहती सरि दिन -रात।


अकर्मण्य नर आलसी,कब होते विख्यात।।


4


 कंचन की है मुद्रिका,माणिक जड़ी अमोल।


निरख रूपसी रूप निज,बैठी करे किलोल।।


5


बने कामिनी भामिनी,बने काल का गाल।


कामी, कपटी कापुरुष ,डाले जब छल- जाल।।


6


ज्ञान-विभा -विग्रह का,करो पुण्य नित काज।


तमस मिटे अज्ञान का,शिक्षित बने समाज।।


7


सकल सृष्टि है आपसे,आप सृष्टि के अक्ष।


हरि विपदा हर लीजिए,विनती करें समक्ष।।


8


दिनकर ने दर्शन दिए ,बीत गयी है रात।


कंचनमय धरती हुई,सुखमय हुआ विभात।


9


एक अम्बुजा रागिनी,कर्णप्रिया है खास।


एक सरोवर में खिले,एक विष्णु के पास।


10


करके कर्म महान नर,बन जाता महनीय।


देव तुल्य दर्ज़ा मिले,सदा रहे नमनीय।।


सीमा शुक्ला अयोध्या

बंजर धरती पर फिर से हरियाली लाएं


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


कटे कोटि तरु कानन में अब छांव कहां?


पीपल बरगद वाला है अब गांव कहां?


वीरानी बगिया में फिर से वृक्ष लगाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


सूखे हैं खलियान नहीं खेती से आशा।


डूबा कर्ज किसान नित्य है घोर निराशा।


घन में घेरे घटा चलो सावन बरसाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


शुद्ध हवा हो नीर धरा सबको बतलाएं।


इस विपदा में एक दूजे का साथ निभाएं।


सभी लगाएं वृक्ष चलो सबको समझाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 



डॉ०निधि,अकबरपुर अम्बेडकरनगर

## पर्यावरण पर दोहे##* 


*###################*


 


तरुवर खूब लगाइये,जो जीवन प्रमाण । 


शुचि निसदिन प्रकृति रखे,देता सबको प्राण।। 


 


नदिया कानन गिरि सभी,हैं प्रकृति उपहार।


मौसम हैं इनसे सभी ,नित कर इनको प्यार।। 


 


समस्त वाहनों की ध्वनि, भी करती प्रदूषण। 


सम्भव हो तो मत करो,बचा लो पर्यावरण।। 


 


जल को सब जीवन कहै,जल को रखो शुद्ध। 


शारीरिक दुख दूर करे,लड़ता रोग विरुद्ध। 


 


साँस वायु से है मिली,देती जीवन दान।


मत कर इसको मलिन तू,मेरा कहना मान।। 


 


आहत कर पर्यावरण,मनुज करे अभिमान। 


एक दानव समझा गया, पावन इसका स्थान।। 


 


संक्रमण के काल में, जीवन नहि आसान। 


अनुशासित बन मनुज ने,निर्मल किया जहान। 


 


नदिया निर्मल हो बहे,स्वच्छ बहे बयार। 


आसमान को साफ देख, पंछी उड़त पंख पसार । ।


 


पावन वृक्ष,रवि ये धरा,जल,वायु अरु हिमकर।


पर्यावरण का रूप यह, स्वमेव ही ईश्वर ।।


 


*स्वरचित- डॉ०निधि,* 


*अकबरपुर अम्बेडकरनगर।*


डॉक्टर सुशीला सिंह

पर्यावरण 


यह प्रचंड धूप ,


चिपचिपाती गर्मी


अब सहन नहीं होती. 


 यह बे -मौसम बरसात, 


कभी अकाल की मार


 कड़ -कड़- कड़ गिरते ओले


 किसान की छाती में बम फोड़ते


 अब सहन नहीं होते ।।


 चिमनियों से निकलता धुआँ 


पॉलीथिन से पटी नालियाँ


 धरा को कर रही बंजर


 विषाक्त वातावरण  


अब सहन नहीं होता ।।


ए॰सी, फ्रिजों से उत्सर्जित जहरीली गैस 


 न्यूक्लियर बम


 कर रहे ओजोन परत का क्षरण


 मिलो ,कारखानों का विषाक्त कचरा   


बढ़ता वायु प्रदूषण


 अब सहन नहीं होता ।।


 शहरों के सीवर पाइप 


कर रहे भागीरथी को मैला


 विलासिता के लिए कटते वन


पिघलते ग्लेशियर   


गहराता जल संकट 


अब सहन नहीं होता ।।


अम्फान, निसर्ग जैसे भयंकर तूफान 


जीवन को करते अस्त-व्यस्त


 कोरोना जैसी महामारी 


से दुनिया त्रस्त 


किसी शत्रु की पलटन -सी चाह रही सृष्टि को निगलना 


मानव फिर भी निश्चिंत 


पाल रहा इच्छाएं अनंत  


क्षुब्ध प्रकृति का रौद्ररूप


अब सहन नहीं होता ¤¤¤¤¤


🙏🌲


रत्ना वर्मा

शुक्रवार /05 /06/2020


नमन अभिनन्दन वंदन प्रणाम संग 


              सभी को सुप्रभात ....आप सभी का


           दिन मंगलमय हो!!


पेश है चंद दोहे ......


 ऐसो लागत आज है,नांहि आपनो कोय ।


घर आँगन सब सुन हैं , नाहिं आपनो होय ।।


 


दम तोड़त रही सांसे, शीशा होवे चूर ।


आज की ख़बर अख़बार, देत हैं सुद मुर।।


 


जीना चाहत हैं सभी , पर कहूँ नहीं चैन ।


सवाल उठत रहा यही, सबका मन बेचैन।। 


    जय हिंद जय भारत!!


 


रत्ना वर्मा


 स्वरचित मौलिक रचना


 धनबाद- झारखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल

*पर्यावरण बचाये*


****************


आओ सब मिलकर वृक्ष लगाए,


वृक्षारोपण से धरती पर हरियाली लाये,


इस धरती पर बढ़ रहा प्रदूषण,


वृक्षारोपण करके प्रदूषण से मुक्ति पाये।


 


जल ध्वनि प्रदूषण चारों ओर फैला है,


सभी नदियों का जल हुआ कसैला,


प्रकृति को संरक्षण देना जरूरी है,


प्रकृति से रिस्ते -नाते मधुर बनाये।


 


आसमान में जहर घुल रहा,


हुआ प्रदूषित तन मन सारा,


मिट जाय प्रदूषण इस वसुन्धरा का,


पूरी धरा को स्वच्छ बनाए।


 


भारत मां की हम सन्ताने को,


आगे आकर आना ही होगा,


भारत माता को प्रदूषण से,


मुक्ति दिलाने ही होगी।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


रुपेश कुमार

✍🏻🌵✍🏻🎄✍🏻🌿✍🏻🎄✍🏻🌵✍🏻


 


पर्यावरण दिवस पर मेरी रचना ~


 


*------ जीना हैं तो पर्यावरण बचाना होगा -----*


 


जीवन मे जीना हैं तो ,


वृक्षारोपण जरूरी हैं ,


वृक्ष नहीं तो मानव जीवन का ,


अस्तित्व मिटना मजबूरी हैं ,


 


पर्यावरण संरक्षण के लिए ,


सबको जागरुक करना होगा ,


जीवन मे जीना हैं तो ,


आगें मिलकर आना होगा ,


 


जनसंख्या विस्फोटक स्थितियों से ,


स्वयं को बचाना होगा ,


अगर हम नहीं चेते तो ,


जीवन लेकर जाना होगा ,


 


पर्यावरण दिवस के अवसर पर ,


हम सभी को कसम खाना होगा ,


वायुमण्डल को बचाना होगा तो ,


हमें पेड़-पौधा लगाना होगा !


 


~ रुपेश कुमार©️


चैनपुर, सीवान, बिहार


 


✍🏻🌴✍🏻🌲✍🏻🌳✍🏻🌲✍🏻🌴✍🏻


डॉ. बीके शर्मा

है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद 


क्यों गिर पड़ा हो खड़ा 


संभल और कदम बढ़ा 


चल रही हवा मंद मंद 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


व्यर्थ है दौड़ना 


साथ किसी का छोड़ना 


ना बना तू अपनी पसंद 


रुक जरा ले चल संग 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 यह कैसा वेग है


 हवा से भी तेज है 


झुकना तेरा व्यर्थ है 


अभी तू समर्थ है


 पड ना मंद मंद


 है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 यह तो सत्य है 


भेदना लक्ष्य है 


छोड़ दे पच्छ है 


देख ले प्रत्यक्ष है 


नहीं तुझ पर प्रतिबंध 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद


 


 ना कोई मित्र है 


मनुष्य यह विचित्र है 


लक्ष्य चाहे दूर है 


तू ना मजबूर है 


दिल में तेरे जोश है


जोश में ही है आनंद 


है दमखम 


तो कर अपना हौसला बुलंद 


 


 


डॉ. बीके शर्मा


उच्चैन (भरतपुर )राजस्थान


सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्राकृतिक दुरुपयोग ही,बना मनुज का काल।


चक्रबात जलप्रलय से,धरा हुई बेहाल।।


 


पर्यावरण शुद्ध करो, बनो प्रकृति के मित्र।


जीवन हो आनन्दमय, सुखी रहोगे मित्र।।


 


वृक्ष वंश कों नाश कर, नर कियो मरु प्रसार।


अतिवृष्टि या अनावृष्टि,सब नर कृत व्यवहार।।


 


अति भीषण सूरज हुओं, सह न सकै संसार।


ग्लेशियर पिघलने लगे,निशदिन हाहाकार।।


 


धूलधूसरित नभ हुओ,कैसे लेवे सांस।


वन्यजीव अब लुप्त हो,छोड़ें जीवन आस।।


 


नदियों के अस्तित्व मिट,मिटा धरा श्रृंगार।


जीवन दायिनी रेखा, भूल गई उपकार।।


 


विश्व पर्यावरण दिवस पर


🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🌸


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


आशा त्रिपाठी

पर्यावरण दिवस पर मेरी नव कविता।


 


जल,थल,नभ,वन,तरुवर,


दिव्यकोश है धरती के।


इन्हें बचाना धर्म हमारा,


देवत्व बोध है धरती के।।


 


जल ही जीवन जल ही सब धन,


जल से ही है सृष्टि हरित।


जल से ही सुराभित वन उपवन,


मृदुल धार मधु बहे सरित।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध धरा का,


नव आभा नव प्रीत बहे।


प्रदूषित वायु,निर्जन उपवन,


धरा कहॉ ये कोढ़ सहे।। 


 


सजल चेतना जन जन मन मे,


अलख प्रकृति जगानी होगी।।


नही चेते यदि प्रकृति संरक्षण को,


विभत्स सभी की कहानी होगी।।


 


मृदुल महकती अनुपम बगियाँ,


दिव्य रश्मि पूरित अरूणांचल।


कल-कल छल-छ्ल शीतल सरिता


जल जीवों का है स्वर्गंचल।।


 


जल ,जंगल आधार प्रकृति के,


परिशुद्ध पवन आधार हमारे।


धरा सुशोभित हरियाली से।


पशु-पक्षी जन गण को प्यारे।।


 


स्वच्छ हरितिम हो धरा हमारी,


यह संकल्प उठाना है।


पर्यावरण के संरक्षण को


घर घर अलख जगाना है।।


 


देख दुर्दशा सुन्दर प्रकृति की,


हृदय मे उठ रहा गहन विषाद।


यही समय है यही प्रलय है।


राष्ट्र जागरण का हो शत नाद।।


 


प्राण वायु देती जन-जन को,


वन उपवन से पूरित धरती।।


सकल जगत की भूख मिटाती,


मूल्यवान औषध की धरती।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध हमारा,


यह संकल्प करे प्रतिपल।


प्लास्टिक का प्रयोग न हो तो,


सुन्दर सुरक्षित होगा कल।।


✍आशा त्रिपाठी


      05-06-2020


मदन मोहन शर्मा 'सजल' - कोटा

आज पर्यावरण दिवस पर -


*"प्रकृति की दास्तां अपनी जुबानी"*


~~~~~~~~~~~~~~~~


बियावान कंकरीट जंगल


चारों ओर 


धुंआ ही धुंआ


साँस लेने में फेफड़ों को


मशक्कत करनी


पड़ रही थी


आसमान से अग्नि


बरस रही थी


कहीं कोई ठौर नहीं


न छाया का नामोनिशान,


प्यास के मारे


कंठ में कांटे चुभते


महसूस हो रहे थे,


ऐसा लग रहा था


प्राण अब निकलने ही वाले है,


दूर-दूर तक


न कोई पक्षी, न जानवर


न आदमी का ही


नामोनिशान।


 


हे ईश्वर 


अब क्या होगा, कैसे बचेगी जान?


निढाल होने ही जा रहा था


अचानक


एक बूढ़ी औरत


कृषकाय बदन


सारे शरीर पर फफोले


आंखे धंसी हुई


जीर्ण शीर्ण काया पर


जगह-जगह फ़टी हुई


सैंकड़ो पैबंद लगी साड़ी


जिससे अपनी लाज को


छुपाने में


भरसक प्रयासरत


होटों पर जमी पपडियां


कई-कई दिनों से


भूख प्यास से लड़ने का


आभास दे रही थी।


 


मैंने पूछा -


माता, तुम कौन हो?


किसने की तुम्हारी यह


दुर्दशा?


कौन है वह वहशी दरिंदा?


शून्य में अपलक निहारती


हुई अटक अटक कर


बोली-


क्या बताऊँ बेटा


*मैं प्रकृति हूँ*


मैंने अपना सब कुछ


प्राणी जगत को


सर्वस्व दिया,


मैंने अपना सारा खजाना


प्राणी जगत के लिये


खोल दिया,


और बदले में मानव ने मुझे यह सब दिया।


 


मुझे नोंचा, खसौटा,


मेरा दोहन किया,


मेरी हरियाली को 


वीरान जंगलों में बदल दिया,


मेरे वक्ष पर शोर करते


नाचते, फुदकते, दौड़ते,


किलकारियां करते,


चौकड़ियाँ भरते मेरी संतानों


जीव जंतुओं


पशु पक्षियों को आज का मानव


मार कर खा गया,


मेरी इस हालत का जिम्मेदार


सिर्फ और सिर्फ मानव है,


लेकिन उसे नही पता


कि उसकी जिंदगी


मेरे ही दम पर है,


मेरे ही दम पर है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल' - कोटा (राजस्थान)


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 

विश्व पर्यावरण दिवस ----पर्यावरण प्रदूषण प्राणी प्राण कि आफत ब्रह्ममाण्ड के दुश्मन।


 


 


नदियां ,झरने ,तालाब ,ताल तलइया सुख गए धरती बंजर हो रही रेगिस्तान।।                    


 


श्रोत जल का चला गया पातळ जल ही जीवन का जीवन दर्शन का सरेआम मजाक ।            


 


युद्ध होगा अब जल कि खातिर जल बिन तड़फ तड़फ कर निकलेगा प्राणी काप्राण।।      


 


जल जो अब भी है बचा हुआ है प्राणी के कचड़े से हुआ कबाड़।


 


ऋतुओं ने चाल बदल दी मौसम का बदल गया मिज़ाज ।।       


 


सर्दी में गर्मी ,गर्मी में सर्दी ,वर्षा मर्जी कि मालिक जब चाहे आ जाय ।।                          


 


प्रकिति के मित्र धरोहर प्राणी विलुप्त प्रायः दादा ,दादी कि कहानियो के ही पात्र पर्याय।।


 


बन ,उपवन ही जीवन पेड़ पौधे कट रहे चमन धरती के हो रहे बिरान ।।                            


 


हवा में घुली जहर साँसों में जहर आफत में है प्राणी प्राण ।      


 


ध्वनि प्रदुषण ,धुँआ प्रदूषण साँसत में है जान।          


 


पर्यावरण ,प्रदुषण बन गया बिभीषन नित्य ,प्रतिदिन निगल रहा शैने ,शैने ब्रह्माण्ड प्राणी का ज्ञान ,विज्ञानं।।


 


प्रतिदिन विश्व में कहीं न कहीं अवनि डोलती भय भूकंप का भयावह साम्राज्य।     


 


सुनामी ,तूफ़ान कि मार झेलता युग संसार।।                      


 


प्राणी, प्राण प्रकृति का संतुलन असंतुलित धरती का बढ़ रहा तापमान ।                     


 


ग्लेशियर पिघलते सागर तल कि ऊंचाई बढ़ती अँधेरा होता आकाश ।।


 


अँधा धुंध विकास कि होड़ में अँधा प्राणी जीवन के मित्र नदारत पर्वत हुए चट्टान ।                  


 


समय अब भी कुछ बाकी कुछ तो सोचो प्राणी प्रकृति का करो पुनर्निमाण।।                    


 


प्रदूषण के खर दूषण दानव को ना करने दो विनास ।           


 


प्रकृति कि मर्यादा के राम बनो, मधुबन के मधुसूदन, कालीदह का नटवर नागर कि मुरली कि बनो तान।।


 


जल सरक्षण ,बन सरक्षण का अलख का हो शंकनाद।।               


 


प्रदूषण के दानव से संरक्षित संवर्धित का हो संसार ।।


 


बृक्ष भी हो जैसे संतान, जल कि अविरल ,निर्मल धरा का बहे प्रवाह।


 


ऋतुएँ ,मौसम संतुलित हरियाली खुशहाली का ब्रह्माण्ड।।


 


       नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 


भरत नायक "बाबूजी

*"प्रकृतिऔर मानव"*


 (कुकुभ छंद गीत)


..................................


विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SS , क्रमागत युगल पद तुकबंदी।


................................


*सुधा सरिस शुचि धार नदी की, आँसू बन क्यों बहती है?


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


दंश-गरल हर पर्यावरणी, बेबस होकर सहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।। 


 


*वृक्ष नहीं क्यों अब हरियाता? खगवृन्द नहीं क्यों गाता?


सोते सूखे अब झरनों के, क्यों नद में नीर न आता??


स्वर्ग बनूँ कैसे भूतल का, प्यासी वसुधा कहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*पड़ा अकल पर पत्थर क्यों है? क्यों मनमानी करता है?


जिम्मेदार कौन है इसका? नित्य प्रदूषण भरता है।।मिल भी विकास के नाम सदा, धूम्र उगलती रहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*कौन कहे अब पत्र-पुष्प को, शाखा-जड़ भी कटती है।


पूजित होते थे पेड़ कभी, अब तरु-छाती फटती है।।


हरियाली से खुशहाली है, सारी दुनिया कहती है।


सुनले चलने वाले पंथी,


प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


 


*मानव से वन मानव वन से, उठो हरित भू करने को।


चिंतन करना होगा अब तो, जैविक चिंता हरने को।।


हुई राम की गंगा मैली, यमुना रोती रहती है।


सुनले चलने वाले पंथी, प्रकृति तुझे कुछ कहती है।।


..................................


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


..................................


डॉ.सरला सिंह स्निग्धा दिल्ली

" विश्वपर्यावरण दिवस "


 


काटते जंगल वे बनाते हैं,


कंकरीटों के फिर महल ।


दिलो दिमाग़ पर हावी है ,


धन दौलत की बस चाह।


रखना उन्हें सजाकर फिर


 दीवारों में ,छतों में ,फर्श में।


 रहते कभी थे एक घर मे ,


 चार भाई मिलकर के साथ ।


आज चार कमरों में आ गये ,


 बस एक माता पिता दो बच्चे।


 सबको पड़ी है दिखावट की ,


 चार जन तो चार कार चाहिए।


एक घर में चार जन हैं फिर ,


चार एसी भी लगा हो जरूर।


कहते हो बौद्धिक सब बेकार,


करे जब काम सभी बेबुनियाद।


फैक्टरियों की जग में भरमार ,


बमबारूदों का बढ़ता कारोबार।


मनाते विश्वपर्यावरणदिवस तुम,


कहो क्यो,ये तो निरा दिखावा ।


 


डॉ.सरला सिंह स्निग्धा


दिल्ली


जया मोहन प्रयागराज 

विश्व पर्यावरण दिवस पर मेरी एक कविता


आओ वृक्ष लगाये


पृथ्वी के बदरंग आंचल को


मिल कर हम सजाये


आओ।।।।


पेड़ हमारे जीवन दाता


हवा बिना जीव रह न पता


अपने जीवनदाता का हम


जीवन बचाये


आओ।।


धरा से पेड़ कट रहे


भू क्षरण का हम दंश झेल रहे


अपनी धरती माता को 


बंजर होने से बचाये


आओ।।। 


वृक्ष हमे फल जड़ी बूटी देते


ऑक्सीजन दे कार्बन पीते


काट काट कर पेड़ो को


धरती न वीरान बनाये


आओ।।


वो अमराई वो पुरवाई कहाँ मिलेगी 


शुद्ध वायु हमे कहाँ मिलेगी


ऐसे प्यारे साथी पर


हम न आरी चलवाये


आओ।।।


हमको ये संकल्प लेना है


वृक्ष के बदले वृक्ष देना है


धरती का सिंगार कर हम


हर्षित हो जाये


आओ।।।


एक पेड़ दस पेड़ बराबर


वेद पुराण ये कहते


धन धान्य समृद्धि से सबका


भंडार भरते


वन देवी के पुत्रों को हम सब शीश नवाये


 


आओ ।।।


स्वरचित


जयश्री श्रीवास्तव


जया मोहन


प्रयागराज 


5।6।2020


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश

विश्व पर्यावरण दिवस (05 जून) पर 


                   एक कविता 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


विषय:- "पर्यावरण की सुरक्षा हमारा संकल्प"


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


हम धरती का श्रृंगार करेंगे 


हम सब उससे प्यार करेंगे 


कितना कुछ देती है हमको 


उसके प्रति आभार करेंगे।.... 


 


प्रदूषण मुक्त हो पर्यावरण 


अनुकूल बनायें वातावरण 


पानी है तो प्राणी हैं समझो 


हम पानी का सत्कार करेंगे।....... 


 


हम पेड़ों का संसार बसायें,


नदियों को कचरा मुक्त बनायें 


ताल-पोखरे को गहराई देकर 


हम जीवों पर उपकार करेंगे।......


 


वैसे भी मानव पर उपकारी है 


अब कठिन परीक्षा की बारी है 


पुरखों की युगीन तपस्या को 


मिलकर हम साकार करेंगे।....


 


हो कल-कल नदियों का बहना 


परहित में बगियों का फलना 


पर्वत पर हिमखण्डों का जमना 


हो संकल्पित पुनरुद्धार करेंगे।....


 


जनसंख्या को करें नियंत्रित 


हो जायें हम सब संकल्पित 


प्रदूषण रहित नीर पवन हो 


परस्पर हम सहकार करेंगे।......


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


बिजया लक्ष्मी

*पर्यावरण*


आओ बच्चों पेंड़ लगाओं


मिलजुल कर के साथ मे,


स्वच्छ -भारत , सुंदर भारत


रहे स्वच्छ परिवार मे!


 


वायु प्रदुषण बढ़ता है,


पेड़ों के आभाव मे,


शुद्ध - शुद्ध हवाएँ आती,


पेड़ों के बागान से,


जल -प्रदुषण होता है ,


गंदगी के वास्ते ,


स्वच्छ -भारत , सुन्दर - भारत ,


रहे स्वच्छ परिवार मे!


 


इस धरती की सुंदर छाया,


पेड़ों से ही बनी हुई,


मधुर-मधुर. ये मंद हवाएँ,


अमृत बनके चली हुई ,


आओ बच्चें इस उपवन मे,


पेड़ों का एक बाग लगाएँ,


स्वच्छ -,भारत सुदंर भारत


रहे स्वच्छ. परिवार. में!


 


पेड़ों से मिलता है हमको,


फल -फूल और औषधी,


मत खेलों खिलवाड़ हमेशा,


प्रकृति के बागान से,


हरा भरा हरियाली है,


देश की निशानि है ,


स्वच्छ भारत सुंदर भारत 


रहे स्वच्छ परिवार मे!


      बिजया लक्ष्मी


प्रज्ञा जैमिनी 

पर्यावरण दिवस पर आधारित


     प्रकृति 


 


प्रकृति ने ली जब अंगड़ाई


वसुधा नववधू- सी शरमाई


सूरज की सुनहरी किरण ने


उसकी सुंदर माँग सजाई


 


सजाई फूलों से अपनी वेणी


रंग-बिरंगी हरियाली साड़ी पहनी 


सदाचार, स्नेह के गहनो से विभूषित 


दिखती समर्पित कोमलांगी ज़हनी 


 


वन-उपवन,प्राणी सभी हुए 


पुलकित देख उसका श्रृंगार


कलह द्वेष के पाषाण हृदय पर


किया उसने प्रेम से प्रहार 


 


मधुमास में शुष्क मन में 


लगता प्रेम संगीत बहने


महकी-महकी रातरानी की कहानी 


प्रेम धुन लगते हैं सभी कहने 


 


वसंत ऋतु का रूप अनूप देख 


चहचहाए पक्षी- पशु पेड़ों पर झूल


सुन कोयल-सी मीठी बोली 


निराशा, शत्रुता,विपदाएँ गए सब भूल


 


वसुधा की हरितिमा से ही छाई


सबके हृदयों पर मधुर मुस्कान 


हरित वृक्ष काटकर मत करो तुम 


इस सृष्टि का अवसान


प्रज्ञा जैमिनी 


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...