सत्यप्रकाश पाण्डेय

नाथ तुमही आधार.......


 


तुमसा कोई नहीं जगत में


करूँ मैं जिससे प्यार


तुमसे ही जीवन ये पाया


नाथ तुमही आधार


 


पीकर के मद की हाला


हुआ बावरा स्वामी


आधा जीवन सो के बीता


जानो अंतर्यामी


अन्तर्मन से याद करूँ मैं


राधे कृष्ण सरकार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार


 


झूठे सांचे कर्म किये सब


उर की आग बुझाई


भौतिक सुख तो पाये मैंने


भूल गया यदुराई


संम्बंधों की परवाह नहीं


भूला जगत व्यवहार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार


 


ब्रिजठकुरानी मेरे माधव


दे दो आश्रय मुझको


चरण कमल का भौरा बनके


हृदय बसाऊं तुमको


सत्य किंकर तेरे द्वार का


श्रीयुगलरूप करतार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार।


 


श्री युगल चरनकमलेभ्यो नमो नमः👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😔 दो गज की दूरी 😔


 


दो गज की दूरी,


है यार मजबूरी,


जाने ये कब जाएगी।


आलिंगनबद्ध हो पाएॅ॑गे,


जीवन के सुख ले पाएॅ॑गे,


जाने वो रात,


कब आएगी।


 


बीत न जाए ये ज़िन्दगी,


यूॅ॑ ही।


डर यही सता रहा है।


"कोरोना" का ख़ौफ़ तो,


दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।


सच कहूॅ॑ तो,


अब दुनिया में,


वैवाहिक जीवन का भविष्य,


उज्जवल,


नज़र नहीं आ रहा है।


 


आ नहीं पाएॅ॑गे पास-पास।


मिट नहीं पाएगी,


मिलन की प्यास।


हर जोड़े की ज़िंदगी,


रेल की वो पटरी,


बनकर रह जाएगी,


जिस पर प्रेम की गाड़ी,


कभी नहीं चल पाएगी।


 


न आओ पास,


इच्छा होगी न पूरी,


दो गज की दूरी,


है यार मजबूरी।


 


   ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


 *"रक्षा करते उनकी भगवान"*


"पल-पल समझौता जीवन से,


यहाँ जब कर लेता इन्सान।


अच्छा बुरा कुछ नहीं जग में,


सभी कुछ लगता एक समान।।


टूटन-घुटन बढ़ी यहाँ मन में,


हो जाता फिर मन बेचैन।


समरसता की चाहत मन में,


यहाँ हरती पल-पल वो रैन।।


अर्थहीन न वो जग में यहाँ,


जो कर्मशील है-इन्सान।


सद्कर्मो संग जीवन जिनका,


रक्षा करता उनकी भगवान।।


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 06-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*8


मधुरालय के आसव जैसा,


जग में कोई पेय नहीं।


लिए मधुरता ,घुलनशील यह-


इंद्र-लोक मधुराई है।।


        मलयानिल सम शीतलता तो,


        है सुगंध चंदन जैसी।


        गंगा सम यह पावन सरिता-


        देता प्रिय तरलाई है।।


बहुत आस-विश्वास साथ ले,


पीता है पीनेवाला।


आँख शीघ्र खुल जाती उसकी-


जो रहती अलसाई है।।


       फिर होकर वह प्रमुदित मनसा,


       झट-पट बोझ उठाता है।


       करता कर्म वही वह निशि-दिन-


       जिसकी क़समें खाई है।।


यह आसव मधुरालय वाला,


परम तृप्ति उसको देता।


तृप्त हृदय-संतुष्ट मना ने-


जीवन-रीति निभाई है।।


        दिव्य चक्षु का खोल द्वार यह,


        अनुपम सत्ता दिखलाता।


         दर्शन पाकर तृप्त हृदय ने-


          प्रिय की अलख जगाई है।।


प्रेम तत्त्व है,प्रेम सार है,


दर्शन जीवन का अपने।


आसव अपना तत्त्व पिलाकर-


नेह की सीख सिखाई है।।


       आसव-हाला, भाई-बहना,


        मधुरालय है माँ इनकी।


        सुंदर तन-मन-देन उभय हैं-


         दुनिया चखे अघाई है।।


चखा नहीं है जिसने हाला,


आसव को भी चखा नहीं।


वह मतिमंद, हृदय का पत्थर-


उसकी डुबी कमाई है।।


       हृदय की ज्वाला शांत करे,


        प्रेम-दीप को जलने दे।


        आसव-तत्त्व वही अलबेला-


         व्यथित हृदय का भाई है।।


जग दुखियारा,रोवनहारा,


तीन-पाँच बस करता है।


पर जब गले उतारे हाला-


जाती जो भरमाई है।।


      खुशी मनाओ दुनियावालों,


      तेरी भाग्य में आसव है।


      आसव-हाला दर्द-निवारक-


       जिसको दुनिया पाई है।।


तू भी तो अति धन्य है मानव,


बड़े चाव से स्वाद लिया।


तूने इसकी महिमा जानी-


इसकी शान बढ़ाई है।।


     मधुरालय को गर्व है तुझपर,


     जो तुम इससे प्रेम किए।


     झूम-झूम मधुरालय कहता-


     मानव जग-गुरुताई है।।


                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ निर्मला शर्मा

सन्त कबीर


 


भक्ति काल के कवि कहो, या कहो कोई उन्हें सन्त


वाणी के धनी बड़े वे निर्गुण धारा के प्रतिनिधि सन्त


उनकी साखी साक्ष्य है मानव जीवन का सार


कहते हैं सन्त कबीर जी सबके मन बसा खुदाय


सबद , रमैनी , साखी में बोली बोले कबीर


ना काहू से दोस्ती मैं हुआ रामनाम में लीन 


पंचमेल की खिचड़ी से भाषा का रूप बनाय


चला कबीरा मार्ग पर धर्म सम्प्रदाय छिटकाय


एक ही ईश्वर जो जपै मिले उसे सुखधाम


जाति का कोई मोल नहीं कर्म ही करते न्याय


माया तो है महाठगिनी मानव का ज्ञान हर लेय


आत्मा परमात्मा की गूढ़ मति पावन मन में होय


पंचतत्व की काया का कहा करै अभिमान


देह छोड़ हंसा उडै पंचतत्व में विलीन हो जाय


ना जाति है साधु की न उसका कोई धर्म


मन्दिर, मस्जिद में न फिरूँ करूँ न कोई अधर्म


मानव मात्र की सेवा ही सबसे बड़ा सत्कर्म


चले जो इसके मार्ग पर बढ़े उसी के सुकर्म


मुख मेरा ले राम नाम हृदय भटकता जाए


माला का औचित्य क्या जब मन ही बस में नाय


सन्त कबीर की वाणी ने ऐसा किया कमाल


कीर्तन की निर्झरणी बही दिए विकार निकाल


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


रत्ना वर्मा 

शुक्रवार


नमन मंच काव्य रंगोली ... अभिनन्दन वंदन प्रणाम संग


  सभी को सुप्रभात ....सम्मानीय मित्रों आज


  विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 


    एवं बधाईयाँ .....आप सभी को ।


 मेरी कलम से .....


 मैं देख रहीं हूँ उन वृक्षों को जो हमारे साथ साथ 


चल रहें हैं। पर कुछ डरे - डरे से और पत्तियाँ  


कुछ सहमी-सहमी- कुंभलाई सी ।


     मैंने पूछा क्या हुआ?


 वे धीरे से बोलें ज़रा और पास आओ ....मैं उनके पास 


गई - उनकी धडकनें बहुत तेज थीं,जो मुझे साफ सुनाई 


पड़ रही थी । मैनें हल्के- फुल्के हाथों से उन्हें सहलाया ।


उनके सब्र के बांध फूट पड़े और वे बिलख - बिलख कर 


कह उठे ......" मेरा दर्द बाँटो , मुझे न काटो" - हे मानव 


मैं ही तो हूं, जो तुम्हें जीवन देता हूँ ।


 मैं देख रही थी - उन वृक्षों को, महसूस कर रही थी 


उनके करूण वेदना को । मुझसे रहा न गया - झट


उनसे लिपट गयी, उनको गले लगाया , उनकी सांसे 


मेरी गर्म सासों से मिलकर मुझे बहुत सुकून दे रहे थे। 


शायद उन्हें भी मेरी हरकतें अच्छी लग रही थी.......


       जय हिंद जय भारत!!


 


रत्ना वर्मा 


 स्वरचित मौलिक रचना


 धनबाद -झारखंड


सीमा शुक्ला अयोध्या।

कमजोर कहां हो तुम नारी?


 


तुम भरती हो नभ में उड़ान,


संचालित करती रेल यान,


घर की थामें हो तुम कमान,


हर गुण है तुममें विद्दमान


जीवित करती हो सत्यवान,


ममता का गुण सबसे महान।


 


तुम नया जन्म ले लेती हो


जब बन जाती हो महतारी


कमजोर कहां हो तुम नारी।


 


मन प्रेम छलकता सागर है,


अंतस करुणा की गागर है।


अमृत रसधार बहे आंचल,


हर पीड़ा सहती हो अविचल।


जीवन में अनुपम धीर भरा।


है नयन नेह का नीर भरा।


 


तुम देहरी का जलता दीपक


घर घर में तुमसे उजियारी।


कमजोर कहां हो तुम नारी?


 


मन में नित भाव समर्पण है।


हर रूप प्रेम का दर्पण है।


प्रियतम की संग सहचरी हो


मां रूप बाल की प्रहरी हो।


मन क्षमा दया उर त्याग लिए,


प्रति पल जीती अनुराग लिए।


 


तुम ईश्वर की सुंदर रचना


यह सृष्टि सृजन तुमसे जारी


कमजोर कहां हो तुम नारी?


 


युग से इतिहास लिखा तुमने


वीरों को नित्य जनां तुमने।


नित नीर बहाना छोड़ो तुम


अन्याय भुलाना छोड़ो तुम


तुम उमा,रमा हो ब्राम्हणी,


तुम झांसी वाली हो रानी।


 


शमशीर उठा संहार करो


डाले कुदृष्टि जो व्यभिचारी


कमजोर कहां हो तुम नारी?


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


सीमा शुक्ला अयोध्या।

है कौन हुआ मानव जग में


जो जन्म लिया पाकर राहे।


 


जीवन में लाखों हो मुश्किल


हो मिलों दूर खड़ी मंजिल,


विचलित क्यों कर हालातों से,


हारों मत निज जज़्बातों से।


तू मानव है मजबूर नहीं


निज हार कभी मंजूर नहीं।


 


तू चलता चल मंजिल तेरी,


आगे फैलाए हैं बाहें।


है कौन हुआ मानव जग में,


जो जन्म लिया पाकर राहें।


 


क्या हुआ स्वप्न जो टूटा तो


कोई अपना गर रूठा तो


बहती जीवन की धारा हैं


कुछ मीठा कुछ जल खारा है


सूरज डूबे जब हो रातें,


हम तारों से करते बातें।


 


हैं कौन हुआ ऐसा जग में,


जिसकी पूरी हो हर चाहें।


है कौन हुआ मानव जग में


जो जन्म लिया पाकर राहें।


 


मानव तन जग में तू पाया,


कुछ करने की खातिर आया।


क्योंकर तू कहता व्यथा फिरे,


क्यों जीवन करता वृथा फिरे


गर अंतर्मन विश्वास जगे


पतझड़ में उपवन फूल खिलें।


 


जल धारा बहती जाती है,


खुद ही पा जाती है राहें।


है कौन हुआ मानव जग में,


जो जन्म लिया पाकर राहें।


 


सीमा शुक्ला अयोध्या।


आचार्य गोपाल जी

धरती की गुहार


 


सभी से धरती करे गुहार


हृदय के कष्ट मिटाओ यार 


मन में कुछ तो करो विचार  


छोड़ो करना तुम अत्याचार


विपट बिलखते मेरे द्वार 


मत कर तरु पर तू वार


पादप पावन करे संसार


तुम तरु लगाओ घरवार


पर्यावरण से कर तू प्यार 


स्वच्छ बनाओ तुम ये संसार


देख अपनी करनी का भार


रोगों का यहां फैला है अंबार


मेरी व्यथा ना समझे संसार 


करनी फल पाता हर बार


कब बदलेगा तु व्यवहार


संभल जरा अब नर-नार


दिवस मनाने ना हो उद्धार


पेड़ लगाओ हर दिन यार


 


आचार्य गोपाल जी 


          उर्फ 


आजाद अकेला बरबीघा वाले 


प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रूपा व्यास

श्रीमती रूपा व्यास


जन्म-5 जनवरी


शिक्षा-एम.ए(हिंदी साहित्य),बी.एड


विधा-कविता,गीत,लेख आदि।


प्रकाशन-राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं एवम् संकलनों में सहभागिता


सम्मान-"चंद्रदेव पुरस्कार"राजस्थान साहित्य अकादमी(राजस्थान),राज.स्तर.निबंध प्रतियोगिता में "प्रथम",भू. पू.उप राष्ट्रपति श्री भैरू सिंह शेखावत जी द्वारा,एवम् राज.स्तर. निबंध प्रतियोगिता में 25 प्रथम,15 द्वितीय एवम् 10 बार तृतीय स्थान प्राप्त।


सम्प्रति-शिक्षिका(सेंट पॉल सेकंडरी स्कूल,रावतभाटा)


संपर्क-व्यास जनरल स्टोर, दुकान न.7,न्यू मार्केट,रावतभाटा,जिला-चित्तोड़गढ़,323307(राजस्थान)


Email-rupa1988rbt@gmail.com


मोबाईल-9461287867,9829673998


 


कविता - 1


            - समाज-


व्यक्ति -व्यक्ति से बनता परिवार,


परिवार से बना समाज का व्यवहार।


यहीं से सीखते हैं हम जात-पाँत,


नहीं है और किसी तीसरे का हाथ।


इसी समाज में हैं मंदिर-मज्जिद,


त्योहारों पर समाज होता सुसज्जित।


परिवार,समाज से बनी ये दुनिया,


मन एक-एक,जन का जब है मिला।


स्वस्थ समाज का स्वस्थ है मन,


देश हित समर्पित,तन,मन,धन।


चहूं ओर फैला आज भष्टाचार,


हिंसा ही हिंसा, नहीं ध्यानाचार।


देश का अन्नदाता,गरीबी से ग्रस्त,


दूसरा बस अपने में व्यस्त।


उन्नति को पा रहा तकनीकी ज्ञान,


ज़रूरी है संग-संग ,संस्कृति की शान।।


                 


कविता - 2


समाचार पत्र


देते हैं हर क्षेत्र का ज्ञान


समाचार पत्र करते हैं


अपनी ओर आकृष्ट हमारा ध्यान।


जिससे मिलती है जानकारी हमें देश-विदेश की।


कर जातें हैं कभी हमारे विचार नकारात्मक,


तो पलड़ा भारी है विचारों का सकारात्मक।


मिलती है जिससे नैतिक शिक्षा


कई सीखों से प्राप्त होती है सुरक्षा।


कहीं पढ़ जाते हैं हम प्रेम कहानी, तो का


तो कई बातें हैं बहुत पुरानी।


चमत्कारी स्वरूप प्रगटा है फैशन,


नहीं है हमें किसी विषय की टेंशन।


मिल रहा है नित व्यवहारिक ज्ञान,


इसीलिये नहीं भटक रहा हमारा ध्यान।


इसमें छपती हैं कई प्रतियोगिताएँ,


और हम पा जाते कई योग्यताएँ।


विभिन्न परीक्षाओं के लिये है महत्वपूर्ण,


जानकारी-पुरस्कारों से हैं परिपूर्ण।


इसीलिये है ये ज्ञान वर्धक,हर बुरी बात के हैं


समाचार-पत्र विरोधक।।


 


कविता - 3


              - आँसू-


जब-जब दो प्यार करने वाले छूटे,


तब मेरी आँख से आँसू टप-टप फूटे।


क्यों किसी को किसी से प्यार हो जाता है,


क्या कभी मिलकर बिछड़ जाए


इसीलिए उनका मिलन हो पाता है।


जब अलग होना ही उनका नसीब है,


फिर क्यों पलों के लिये वो करीब हैं।


रिश्ते क्यों मजबूरी बन जाते हैं?


क्यों प्यार करने की कमजोरी होते हैं?


अश्रुओं को दूसरों से छिपाएँ कैसे?


तुम्हारे बिन जीवन बिताएँ कैसे?


हे ईश्वर!तू ऐसा क्यों करता है?


पहले मिलाऐ फिर दूर रहने को भी कहता है।


आज जाना प्यार क्या होता है?


जब अन्य को बिछड़ते हुये देख


मेरा दिल रोता है।।


 


     कविता - 4          


     - भष्टाचार-


आज हर क्षेत्र-स्थिति, परिस्थिति में भष्टाचार हो रहा है।


चलते-फिरते, उठते-बैठते,सोते-जागते,खाते-पीते,


बैठे ठाले अर्थात हर कोंण,आयाम-स्तिथि में भष्टाचार गाजर-घास की तरह फैल रहा है।


पल्लवित, पुष्पित भष्टाचार पर 'भष्टाचार पुराण' लिखा जा सकता है।


भष्टाचार का अर्थ आचरण से गिरा हुआ बताया जा सकता है।।


वहीं किसी अनुचित लाभ के लिए नियम विरुद्ध कार्य करना या कराना भी 'भष्टाचार' कहलाता है।


भष्टाचार से लोगों की सीरत हो जाती हो जाती कुरूप।


भष्टाचार का सामना करने के लिए पहले समाज के नियमों का पालन करने के लिए परिवार-विद्यालय में संस्कार दिये जाने चाहिए।


प्रशासन को स्वयं शुद्ध रहकर नियमों का कठोरता से पालन करना चाहिए।।


           


कविता - 5


 - मज़दूरों का सम्मान - 


एक मई अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस आता।


इस दिन को लेबर डे,मई दिवस,


श्रमिक व मज़दूर दिवस भी कहा जाता।


यह दिन श्रमिकों को समर्पित,


सभी को रूपा का श्रद्धा सुमन अर्पित।


मज़दूरों की उपलब्धियों को सलाम,


हम सब का स्वीकारें शुक्रिया कलाम।


मज़दूरों के सम्मान ,उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में ,


आज का दिन व हर दिन उनके कर्तव्य पालन में।


इस दिन दुनिया में छुट्टी होती,


तथा रैली-सभाओं का आयोजन मज़दूर संघ करती।।


   


 


 


 


डॉ निर्मला शर्मा

पर्यावरण दिवस 


 


पर्यावरण के साये में रहने वाले मनुष्य ने 


पर्यावरण का ही विनाश कर डाला 


हरितिमा से अच्छादिन वन सम्पदा को 


स्वंय के लालच की भट्टी में झौंक डाला 


वनौषधियों का भंडार थी हमारी पर्वतमालाएँ


मानव ने खनन कर अवैध उन्हें बिल्कुल उजाड़ डाला 


कभी बहती थी कल - कल नदियाँ उन वनों में


बजरी खनन की अवैध बानगी ने 


उन्हें बियावान जंगल में बदल डाला 


पहाडों में कभी बहते थे झर - झर झरने


मानव के दिए अब जख्म रह गए वो कभी न भरने


वन्य जीव कर रहे शहरों की ओर पलायन


मानव के अतिक्रमण ने लूट लिया उनका आँगन


सिसकती है धरती उजड़ते है जब वन 


कहाँ है वो संस्कृति कहाँ है वो उपवन 


विचरते थे वन में सभी वन्य जीव पावन 


पर्यावरण को सदैव हमने शिरोधार्य माना


सभी जीवों का जीवन है आवश्यक ये जाना


तो अब क्यूँ ये मानव बना आततायी?


सुविधाओं की चाह में पर्यावरण को आग लगाई


काटता है पेड़, मारता है पशु-पक्षी निर्दयता से


तब भी रहता है असन्तुष्ट रहता नहीं सदाशयता से


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


विष्णु असावा                    बिल्सी ( बदायूँ

221 2122 221 2122


 


मैं मुस्कुरा रहा हूँ दिल मेरा रो रहा है


पूछो न साथ मेरे क्या क्या ये हो रहा है


 


किस मोड़ पर खड़ी है तकदीर तू बता दे 


जो भी था पास धीरे धीरे से खो रहा है


 


बरसात भी न होगी सावन में अब तो ऐसे


ज्यों आँसू आज मेरा मुखड़ा भिगो रहा है


 


पहले बिछा के रखता था फूल रास्तों में


कोई तो बात है अब काँटे वो बो रहा है


 


वो बेवफा नहीं है मैं जानता हूँ उसको


मेरा गुमान मेरी कश्ती डुबो रहा है


 


मिलना कभी बिछड़ना है प्यार का चलन ये


मत रोको विष्णु इसको जो भी ये हो रहा है


 


                     विष्णु असावा


                   बिल्सी ( बदायूँ )


अंकिता जैन अवनी

"परवाह कौन करता है"


छोटी-छोटी बच्चीयाॅ,


घरों में बर्तन मांजती है।


छोटे-छोटे बच्चे,


दुकानों पर काम करते हैं,


हर रोज एक नन्हा फरिश्ता,


सड़क पर कचरा बीनता है,


पर अफसोस इनकी परवाह कौन करता है।


देश का भविष्य,


नित्य बोझा ढ़ोता है,


जुआरी, सटोरियों की संगत में,


एक मासूम बिगड़ता है।


गंदे माहौल में रहने से,


इन बच्चों का स्वास्थ्य निरंतर गिरता है,


पर अफसोस इनकी परवाह कौन करता है।


फूल जैसे बच्चे खाना कम,


गालियॉ ज्यादा खाते हैं,


कुछ ऐसे लोग भी हैं,


जो इनका फायदा भी उठाते हैं,


रोज इनका शोषण होता है,


हर रोज एक नया दर्द इन्हें मिलता है,


पर अफसोस इनकी परवाह कौन करता है।


 


अंकिता जैन अवनी


लेखिका/कवयित्री


अशोकनगर मप्र


कुमार कारनिक

********


    💐 *कबीर दोहे*💐


//१//


माया से जीवन रहे,


       नित दुख नवल समाय।


कथनी कबीर सन्त के, 


            वाणी अमर कहाय।।


//२//


पोखर प्रगटे सन्त जी,


              प्रखर सत्य के पूंज।


नीमा नीरू गोद लें,


             सरवस फैला गूंज।।


//३//


नाम जुलाहे का मिला,


             सब को राह बताय।


सतत सत्य को साधते,


           संत कबीर कहाय।।


 


       *कुमार🙏🏼कारनिक*


(💐संत शिरोमणि कबीर जयंती 


  की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏🏼)


                         ********


डॉ निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

"मनुष्य और प्रकृति के बीच बिगड़ता सन्तुलन"


            ---------------------------------------------------------


मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्ध आदिकाल से ही चला आ रहा है।कालांतर से ही मानव प्रकृति के सानिध्य में ही जीवन यापन करता रहा है।मानवीय विकास की धारा और संस्कृति तथा सभ्यता के उन्नयन की प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।अतः प्रकृति के साथ तालमेल को ही जीवन का सूत्र कहा गया है।


जैसे- जैसे मानव प्रकृति का आँचल छोड़कर भौतिकतावादी संस्कृति की ओर उन्मुख हुआ है ।वैसे- वैसे प्रकृति और मनुष्य के बीच का संतुलन बिगड़ने लगा है।मनुष्यों ने अपनी सुविधा एवं सरोकार के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है।उसकी इस मनमर्जी के फलस्वरूप महामारी और आपदाओं का ग्राफ अद्यतन बढ़ता ही जा रहा है।विश्व पर बढ़ते पर्यावरण संकट को देखकर संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रोग्राम के चीफ साइंटिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस के डायरेक्टर' जियान ल्यू' का कथन है कि-"मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन गड़बड़ा रहा है और इसमें सुधार नहीं किया गया, तो महामारियाँ और आपदाएँ बढ़ती जायेंगी।


अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए हमें सँभलना होगा।मानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हवा,पानी, भूमि, खाद्यान्न सभी की परम आवश्यकता है।परन्तु बढ़ते हुए प्रदूषण एवं घटते संसाधनों के कारण साल दर साल पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है।


पूरी दुनिया में भूजल का स्तर गिरता जा रहा है।साथ ही साथ जल के बढ़ते प्रदूषण के कारण पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है।भूमि पर हो रहे अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वर परत सिकुड़ती चली जा रही है।परिणामस्वरूप मानव के सामने खाद्यान्न की विकट समस्या उठ खड़ी हुई है।चारों ओर बढ़ते वायु प्रदूषण ने मानव को स्वच्छ वायु से महरूम कर दिया है।तदुपरांत भीविश्व भर के संभ्रात वर्ग के लोगों की मानसिकता में कोई अंतर दिखलाई नहीं पड़ता।उनकी उपभोगवादी प्रवृत्ति ने पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।


 


जंगलों के दोहन के प्रभाव-


---------------------------------


 


जब मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ प्रारम्भ की और स्वहित में जंगलों को उजाड़ना प्रारम्भ किया। तो ऐसी स्थितिसे जो संकट उपजा उसके परिणाम आज दुनियाभर के सामने स्वतः ही आ रहे हैं।


जंगलों की बेलगाम कटाई, शहरी क्षेत्रों का विस्तार, सड़क निर्माण के लिए जंगलों का विनाश तथा वन्यजीवों के शिकार की बढ़ती प्रवृत्ति ने मानव जीवन को वर्तमान में चुनौतीपूर्ण बना दिया।परिणामस्वरूप जंगली जानवरों ने मानव बस्तियों का रुख करना प्रारम्भ किया जिससे जानवरों द्वारा वायरस और बैक्टीरिया का मानव जीवन पर संक्रमण के रूप में घातक प्रभाव पड़ने लगा।जानवरों के लिए सामान्य वायरस मानव जीवन के लिए जानलेवा सिद्ध होते हैं।चेन्नई के प्रो.राजन पाटिल के अनुसार"स्वाइन फ्लू का सूअरों पर मामूली इंफेक्शन होता है लेकिन जब यह म्यूटेंट होकर इंसानों पर आता है तो जानलेवा सिद्ध होता है।मानव की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता भी इसका मुकाबला नहीं कर पाती।


 


वातावरण परिवर्तन के परिणाम एवं निवारण-


-------------------------------------------------------


दुनियाभर में इस समय कोविड- 19 और टिड्डियों की समस्या का असर दिखलाई दे रहा है।इस असर का मूलभूत कारण जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है।


मानवों के खान पान के तरीकों की वजह से जंगली जानवरों और मनुष्य के रिश्ते तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं।


अतः हमें अपने अनाज उगाने के तरीकों एवं खान पान की आदतों में आवश्यक रूप से बदलाव की महती आवश्यकता है।मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन की अवस्था में यदि सुधार नहीं किया गया तो महामारियों एवं आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती चली जायेगी।


पर्यावरण को बचाने के लिए सर्वप्रथम हमें पहल करते हुए प्लास्टिक का उपयोग बन्द करना होगा।प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है।प्लास्टिक के समुद्र में मिलने से समुद्र का खारापन निरन्तर बढ़ रहा है।यह समुद्र में एसिडिटी बढ़ाने का कार्य करता है।


दूसरी ओर वन्यप्राणियों पर होने वाले हमलों को रोकना होगा और जानवरों की अवैध तस्करी पर रोक लगानी होगी।


उत्पादन और खपत के के तौर तरीकों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार बदलना होगा।


इन्हीं सावधानियों के चलते हम प्रकृति और मनुष्य के बीच के सन्तुलन को बिगड़ने से बचा सकते हैं।यही सही समय है जब हमें चेतना है ताकि हम प्रकृति के सन्देशों को समझ सकें।स्वयं की देखभाल हेतु हमें प्रकृति की देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत मौलिक एवं अप्रकाशित निबंध रचना🙏🙏


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव                रायपुर

🌴पर्यावरण 🌴


 


पर्यावरण दूषित न हो 


 रहे हरा भरपूर।


मनभावन प्रकृति लगे


दुख भी होने दूर।। 


 


पर्यावरण के साथ में 


मत कीजे अन्याय। 


छोटी-छोटी गल्तियाँ


दुख देती हैं प्राय।। 


 


पर्यावरण की राह में 


लिये एक-एक पौध। 


हरा-भरा परिवेश हो


मिले सभी अवरोध।। 


 


पर्यावरण की उपेक्षा 


मत करिये नर-नार।


जीवन को संवारे यह


सुखी रहे संसार।। 


 


      डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


              रायपुर


कुमार🙏🏼कारनिक

***********


🌱🌳🌴🌞🌱🌳🌴🌲🌳🌴


*विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ*


 


         मानव कृत्यों का पर्यावरण पर प्रभाव


                        *आलेख*


                         *******


विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है,वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं।प्रकृति और पर्यावरण के छेड़छाड़ से प्राकृतिक संतुलन मे दोष पैदा होता है।और यही प्रदूषण कहलाता है।प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में जन्म लेकर प्रकृति को चिढ़ाता है।इसका दुष्प्रभाव के कारण अधिकांश जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत असर दिखने को मिलता है और विभिन्न प्रकार के बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम चक्र बिगड़ता है और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।प्रकृति के प्रदूषण से न शुद्ध वायु का मिलना, न शुद्ध जल का मिलना, न शुद्ध खाद्य पदार्थों का मिलना, न शांत वातावरण का मिलना।तथा इसके प्रभाव से न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है और सुखा,बाढ़,ओलावृष्टि देखने को मिलता है।


प्रकृति सुधार विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाने से हरियाली की मात्रा अधिक हो।सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों,आबादी वाले क्षेत्र खुले हों आर्थात् हरियाली से ओतप्रोत हो।कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।मानव जीवन में प्रकृति का बहुत महत्व है, प्रकृति से हम है और मानव जीवन है।


 


 


         *कुमार🙏🏼कारनिक*


             (०५/०६/२०२०)


🌱🌳🌴🌲💐🙏🏼🌱🌳🌴💐


***************


रूपा व्यास,

 


                   'पर्यावरण'


 


पर्यावरण को बचाना है,


पर्यावरण को बचाना है,


ये सब हमने ठाना है।।


 


वृक्षों को मत काटो तुम,


वृक्षों को मत काटो तुम,


वरना ये प्रकृति हो जाएगी सुन्न।।


 


प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,


प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,


'एक वृक्ष दस पुत्र समान '


यह शिक्षा धर्म ग्रंथों से आती।।


 


धरती माँ पुकारें बार-बार,


धरती माँ पुकारे बार-बार,


प्रकृति की रक्षा करो तुम हर बार।।


 


कभी भूकंप तो कभी महामारी,


कभी भूकंप तो कभी महामारी,


हम सब अपने अपने पर्यावरण के आभारी।।


 


मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,


मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,


ऐसे ही मृत न हो जाए हाथी बार-बार।


 


शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,


शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,


तो प्रदूषण कम हो,ये भी तो सोचना चाहिए।


 


कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,


कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,


आबादी के कारण मकान पे मकान खड़े किए जा रहे।।


 


हे!मानव अब तो संभल जा,


हे!मानव अब तो संभल जा,


पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।


पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।


              


नाम-रूपा व्यास,


,'परमाणु नगरी' रावतभाटा,जिला-चित्तौड़गढ़ (राजस्थान),पिनकोड-323307


 


                 


                  


 


 


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज, उत्तर प्रदेश

विश्व पर्यावरण दिवस पर एक कविता प्रस्तुत है :-


 


आया है मानसून सुहाना 


खड़ी जून के भावों में 


एक एक वृक्ष सभी लगा दें


तो सुन्दर होगा राहों में।


 


आज प्रकृति जो कूपित है


मानव के कुटिल चालों से


पर्यावरण को दूषित कर रहा


निजी स्वार्थ के विकरालों से।


 


जल, थल, नभ को करें सुरक्षित


भौतिकवादी जंजालों से


दिव्यता से भरी धरा है


अनुपम बगियों के घुघुरालों से।


 


युद्धों का आगाज सदा 


करते हरबा हथियारों से


धरा नहीं न मानव होगा


तो क्या करोगे चौबारों से।


 


जीवन साँस तभी तक है


जब प्रकृति दे रहा ममत्व हमें


पर्यावरण का होगा दोहन


तो संकट का घेरेगा घनत्व हमें।


 


जब जब प्रकृति का हुआ दोहन


मानव अस्तित्व पर घिरा संकट धरा पर


यदि अब प्रकृति को समझा नहीं गया


कोरोना सा संकट हरबार होगा धरा पर।


 


    मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


सुनीता असीम

अनसुनी इक पुकार थे हम तो।


दुश्मनों में शुमार थे हम तो।


***


वो ही कीमत नहीं समझ पाया।


रूह से शानदार थे हम तो।


***


दिल में रक्खी भड़ास थी कितनी।


इक भरा सा गुबार थे हम तो।


***


बेजुबानी बनी बयानी जब।


प्यार का फिर उतार थे हम तो‌।


***


फूल बंजर पे भी खिला होता।


यार दिल से बहार थे हम तो।


***


सुनीता असीम


५/६/२०२०


स्नेह लता "नीर" रुड़की

दोहे


*****


1


 कुमुदबन्धु को देख कर,खिले कुमुद- तालाब।


धवल दूधिया चाँदनी,नयन- सजन के ख्वाब।।


2


आज शर्म से जा छुपे,सभी बिलों में व्याल ।


अतिशय विषधर हो गया,मनुज ओढ़ कर खाल।।


3


अर्णव बनने के लिए ,बहती सरि दिन -रात।


अकर्मण्य नर आलसी,कब होते विख्यात।।


4


 कंचन की है मुद्रिका,माणिक जड़ी अमोल।


निरख रूपसी रूप निज,बैठी करे किलोल।।


5


बने कामिनी भामिनी,बने काल का गाल।


कामी, कपटी कापुरुष ,डाले जब छल- जाल।।


6


ज्ञान-विभा -विग्रह का,करो पुण्य नित काज।


तमस मिटे अज्ञान का,शिक्षित बने समाज।।


7


सकल सृष्टि है आपसे,आप सृष्टि के अक्ष।


हरि विपदा हर लीजिए,विनती करें समक्ष।।


8


दिनकर ने दर्शन दिए ,बीत गयी है रात।


कंचनमय धरती हुई,सुखमय हुआ विभात।


9


एक अम्बुजा रागिनी,कर्णप्रिया है खास।


एक सरोवर में खिले,एक विष्णु के पास।


10


करके कर्म महान नर,बन जाता महनीय।


देव तुल्य दर्ज़ा मिले,सदा रहे नमनीय।।


सीमा शुक्ला अयोध्या

बंजर धरती पर फिर से हरियाली लाएं


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


कटे कोटि तरु कानन में अब छांव कहां?


पीपल बरगद वाला है अब गांव कहां?


वीरानी बगिया में फिर से वृक्ष लगाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


सूखे हैं खलियान नहीं खेती से आशा।


डूबा कर्ज किसान नित्य है घोर निराशा।


घन में घेरे घटा चलो सावन बरसाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 


शुद्ध हवा हो नीर धरा सबको बतलाएं।


इस विपदा में एक दूजे का साथ निभाएं।


सभी लगाएं वृक्ष चलो सबको समझाएं।


फिर वसुधा पर रंग बिरंगे फूल खिलाएं।


 



डॉ०निधि,अकबरपुर अम्बेडकरनगर

## पर्यावरण पर दोहे##* 


*###################*


 


तरुवर खूब लगाइये,जो जीवन प्रमाण । 


शुचि निसदिन प्रकृति रखे,देता सबको प्राण।। 


 


नदिया कानन गिरि सभी,हैं प्रकृति उपहार।


मौसम हैं इनसे सभी ,नित कर इनको प्यार।। 


 


समस्त वाहनों की ध्वनि, भी करती प्रदूषण। 


सम्भव हो तो मत करो,बचा लो पर्यावरण।। 


 


जल को सब जीवन कहै,जल को रखो शुद्ध। 


शारीरिक दुख दूर करे,लड़ता रोग विरुद्ध। 


 


साँस वायु से है मिली,देती जीवन दान।


मत कर इसको मलिन तू,मेरा कहना मान।। 


 


आहत कर पर्यावरण,मनुज करे अभिमान। 


एक दानव समझा गया, पावन इसका स्थान।। 


 


संक्रमण के काल में, जीवन नहि आसान। 


अनुशासित बन मनुज ने,निर्मल किया जहान। 


 


नदिया निर्मल हो बहे,स्वच्छ बहे बयार। 


आसमान को साफ देख, पंछी उड़त पंख पसार । ।


 


पावन वृक्ष,रवि ये धरा,जल,वायु अरु हिमकर।


पर्यावरण का रूप यह, स्वमेव ही ईश्वर ।।


 


*स्वरचित- डॉ०निधि,* 


*अकबरपुर अम्बेडकरनगर।*


डॉक्टर सुशीला सिंह

पर्यावरण 


यह प्रचंड धूप ,


चिपचिपाती गर्मी


अब सहन नहीं होती. 


 यह बे -मौसम बरसात, 


कभी अकाल की मार


 कड़ -कड़- कड़ गिरते ओले


 किसान की छाती में बम फोड़ते


 अब सहन नहीं होते ।।


 चिमनियों से निकलता धुआँ 


पॉलीथिन से पटी नालियाँ


 धरा को कर रही बंजर


 विषाक्त वातावरण  


अब सहन नहीं होता ।।


ए॰सी, फ्रिजों से उत्सर्जित जहरीली गैस 


 न्यूक्लियर बम


 कर रहे ओजोन परत का क्षरण


 मिलो ,कारखानों का विषाक्त कचरा   


बढ़ता वायु प्रदूषण


 अब सहन नहीं होता ।।


 शहरों के सीवर पाइप 


कर रहे भागीरथी को मैला


 विलासिता के लिए कटते वन


पिघलते ग्लेशियर   


गहराता जल संकट 


अब सहन नहीं होता ।।


अम्फान, निसर्ग जैसे भयंकर तूफान 


जीवन को करते अस्त-व्यस्त


 कोरोना जैसी महामारी 


से दुनिया त्रस्त 


किसी शत्रु की पलटन -सी चाह रही सृष्टि को निगलना 


मानव फिर भी निश्चिंत 


पाल रहा इच्छाएं अनंत  


क्षुब्ध प्रकृति का रौद्ररूप


अब सहन नहीं होता ¤¤¤¤¤


🙏🌲


रत्ना वर्मा

शुक्रवार /05 /06/2020


नमन अभिनन्दन वंदन प्रणाम संग 


              सभी को सुप्रभात ....आप सभी का


           दिन मंगलमय हो!!


पेश है चंद दोहे ......


 ऐसो लागत आज है,नांहि आपनो कोय ।


घर आँगन सब सुन हैं , नाहिं आपनो होय ।।


 


दम तोड़त रही सांसे, शीशा होवे चूर ।


आज की ख़बर अख़बार, देत हैं सुद मुर।।


 


जीना चाहत हैं सभी , पर कहूँ नहीं चैन ।


सवाल उठत रहा यही, सबका मन बेचैन।। 


    जय हिंद जय भारत!!


 


रत्ना वर्मा


 स्वरचित मौलिक रचना


 धनबाद- झारखंड


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...