(आशिक़ जौनपुरी)
पिता का नाम--स्व0 जय मंगल सेठ
जन्म तिथि--20जनवरी 1949
पता--ग्राम रामददपुर नेवादा
पो0--शीतला चौकिया
जनपद--जौनपुर (उ0प्र0)
पिन,--222001
मो0 नं0 9451717162
शिक्षा--स्नातक(कला)
रचनाएँ--यादें,इन्तिज़ार,एहसास,मैखाना,शबाब,आदि
शौक़,--ग़ज़ल,कविता, दोहे आदि लिखना व पढ़नातथा ग़ज़लें सुनना आदि
मिला राम को घर अपना ये खुशी भी कितनी न्यारी है।
सारी सृष्टि में ही अयोध्या हमको सबसे प्यारी है।।
राम टाट से मंदिर में अपने जाएंगे हर्ष हमें।
आज अयोध्या के बागों की खिली हरइक ही क्यारी है।।
जग के पालक जग के स्वामी रहे निराश्रित अवध नगर।
कब बनवास खतम होगा ये हमनें बाट निहारी है।।
बड़ा हर्ष है बड़ी खुशी है राम लला घर पाए हैं।
आज राम का घर बनने की आई देखो बारी है।।
बहुत सहा है कष्ट प्रभू नें अपनी ही नगरी रहकर।
जब कि उनकी ही सदियों से रही अयोध्या सारी है।।
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अगर बेटी नहीं होती तो ये दुनियाँ कहाँ जाती।
बेटी न होती जग में तो फिर माँ कहाँ आती।।
जो सेवा करती बेटी ,बेटे वो कर ही नहीं सकते।
ये जलती घर में जैसे जल रही हो दीप में बाती।।
पिता को सबसे ज्यादा प्यार अपनी बेटी से होता।
पिता को अपनी बेटी की हरइक ही बात है भाती।।
जगत में कर रहीं क्या बेटियाँ ये सबने देखा है।
मगर लड़कों को इसपे आज भी कुछ शर्म ना आती।।
ज़माना लड़कियों से आज भी क्यूँ नफरत क्यूँ करता हसि।
दया क्यूँ लड़कियों पे आज भी सबको नहीं आती।।
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कभीं भीं तुम कोरोना से नहीं डरना मेरे भाई।
बड़ी ही होशियारी से ही कुछ करना मेरे भाई।।
न शीतल जल कभीं पीना गरम जल का करो सेवन।
हमेशा भीड़ से तुम दूर ही रहना मेरे भाई।।
बनाके दूरियाँ मीटर की रहना संक्रमित से तुम।
सदा तुम साँस इनसे दूर रह भरना मेरे भाई।।ज
लगे हैं सब दवाएं ढूढने में इस कोरोना की।
अभिन तो है बड़ा मुश्किल दवा मिलना मेरे भाई।।
हमेशा हाथ साबुन से धुलो बस ये तरीका है।
छुओ कुछ भी तो सेनीटाइजर मलना मेरे भाई।।
सफाई करने से इस रोग से छुटकारा पाओगे।
मिलाने को किसी से हाथ मत बढ़ना मेरे भाई।।
रहो आराम से बस ध्यान थोड़ा सा तो रखना है।
ज़रा "आशिक़" का भी तो मान लो कहना मेरे भाई।।
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आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।
कुछ तो ज़ैरा दे दीजिए सरकार का भी साथ।।
विपदा बड़ी है देश में मिलकर भगाइये,
सब साथ मिलके राष्ट्र से इसको हटाइये,
जल्दी ही ये काट जायगी आई जो काली रात,
आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।
दूरी बनाके रहिये एकदूसरे से बस,
दिल में न हो नफ़रत ज़ैरा सा दजिये तो हँस,
हम गर रहे नियम से तो जाएगा ये भी भाग,
आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।
बस मास्क लगा हाथ अपने धुल लिया करें,
साँसे भी दूर रहके ही बस भर लिया करें,
ये वाइरस है इसको समझिये नहीं ये श्राप,
आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।
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आज सभी के मन में उठता केवल यही विचार है।
कन्याओं के ऊपर क्यूँकर इतना अत्याचार है।।
फैशन इतना बढ़ा देश में अंकुश इसपर लगा नहीं।
आज के बच्चों में तो लगता बिल्कुल ना संस्कार है।।
आज बच्चियाँ नहीं सुरक्षित नारी ना भयमुक्त है।
लाख बने कानून मगर कुछ कर न सकी सरकार है।।
अत्याचार की बात न पूछो कहाँ तलक बतलाऊँ मैं।
सख़्त बनाया जाता तो क़ानून यहाँ हरबार है।।
आज सभ्यता और संस्कृति का कुछ हाल नहीं पूछो।
जिधर भी देखो उधर ही फैला मिलता ये ब्याभिचार है।।
रुकेगा कोई काम न रिश्वत देने मो तैयार रहो।
रोक नहीं रिश्वत खोरों पर खुला हुआ दरबार है।।
संस्कार जब तक न मिलेंगे कुछ ना सुधरेगा "आशिक़"।
बिना संस्कारों के कुछ भी कर लो सब बेकार है
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