डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सोलहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


दैवी-असुरी सम्पति जे जन।


उनहिं क अबहिं बताउब लच्छन।।


      सुनु हे अर्जुन,कह भगवाना।


       चित-मन महँ रखि मोर धियाना।।


योगइ ग्यान ब्यवस्थित जे जन।


रहँ रत भजन सच्चिदानंदघन।।


      सुचि हिय इंद्री -दमनय- दाना।


       पठन व पाठन बेद-गियाना।।


करहिं तपस्या पालन धर्मा।


सहत कष्ट तन अरु निज कर्मा।।


     क्रोध व हिंसा,लोभ बिहीना।


     कर्तापन- अभिमानइ हीना।।


चित चंचलता,चेष्टा-भावा।


निंदा-भावा सदा अभावा।।


     सदा सत्य,पर प्रिय रह बचना।


     अस जन-चरित जाय नहिं बरना।।


धीरज-तेज-छिमा,चित-सुद्धी।


सत्रुन्ह सँग रह मित्रय बुद्धी।।


      नहिं अभिमान पुज्यता-भावा।


       दैवी सम्पति जनहिं सुभावा।।


बचन कठोर,क्रोध,अग्याना।


असुर सम्पदा जनहिं निसाना।।


      मद-घमंड-पाखंडय लच्छन।


      असुर सम्पदा जन नहिं सज्जन।।


दैव सम्पदा प्राप्त असोका।


अर्जुन, करउ न तुम्ह कछु सोका।।


दोहा-मुक्ति-प्राप्ति के हेतुहीं,दैव सम्पदा होय।


        असुर -सम्पदा -प्राप्त जन,बंधन-मोह न खोय।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372 क्रमशः........


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तक 


( सभी मित्रों को सादर समर्पित )


शीर्षक - सफर


 


*मुक्तक *


 


(कन्नौजी रस रंग)


 


जहु जीवन अगम पंथ दुष्कर, पग-पग अड़चन संघर्ष घने।


अनमोल सफर द्वै सांसन को, नित स्वयं सैं प्रियवर युद्ध ठने।।


नाय जानै कबै हा!सांझ ढलै, अपने संगी है श्मसान तलक,


बिरथा अपनी नहिं तानौ प्रखर, प्रभु की बिगरी न बनाए बने।।


 


अर्कमण्य प्रमाद विषय विष सम , न अकारथ जीवन करौ सखे।


काय बोझ बनौ परमार्थ करौ, थोरे मँह यापन करौ सखे।।


अनमोल जू मानव जीवन सत, देवन कौं दुर्लभ करम योनि,


दया भगति पुरुषार्थ प्रखर, सुमिरन हरि हिय पावन करौ सखे।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी

शीर्षक-:- 'पूनम का चाँद'


                             एक कविता 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


 


 


ओ प्रिय


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम 


जूही की कली हो 


या खिलता गुलाब हो तुम। 


 


ओ प्रिय


नीहार में नहायी सी तुम


कपोल पंखुड़ी कमल सा 


टपकने को आतुर अधर 


व्याकुल उर का उच्छ्वास हो तुम


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


ओ प्रिय 


मेघ वर्णी सन्ध्या हो या 


स्वर्णिम उषा हो तुम 


देवांगना हो कोई या 


चाँदनी शरद की हो 


सुधा बनकर बुझाती प्यास हो तुम 


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


अकथ कथा सी तुम जैसे 


करते हैं मौन-सम्भाषण 


निर्निमेष नयन तेरे


करती विचरण स्वच्छन्द उपवन में


मेरे उरांगन में, अनन्त कल्पना में 


और काव्य में करती वास हो तुम  


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)


शिवानी मिश्रा (प्रयागराज)

काश(कविता)


 


काश! एक ऐसा जहाँ होता,


न कोई हिन्दू ,न कोई मुसलमान होता,


लोग जीते सिर्फ मानवता के लिये,


बस भाईचारा ही उनका धर्म होता,


विवाद न होता भाषा का,


न द्वंद होता संस्कृति का,


बस प्रेम ही उद्देश्य होता मानव का


मानव जीता सिर्फ मानव के लिये,


न होता हिंसा का माहौल,


न होता राज बेईमानी का,


स्वर्ग सा सुन्दर जीवन होता,


बस एक सहायता ही सबका धर्म होता।


 


शिवानी मिश्रा


(प्रयागराज)


रवि रश्मि 'अनुभूति

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


 


    🙏🙏


 


  दिगपाल छंद 


÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷


यह एक सममात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । हर चरण में बारह - बारह के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं । इसके दो चरणों का तुकांत मिलना अनिवार्य है । चरणांत दो गुरु मात्राएँ हों तो शोभनीय है । 


 


   बिटिया 


***********


प्यारी बिटिया देखो , मन को बहलाती है । 


किलकारी भर - भर वह , सभी को लुभाती है ।


बिटिया का मुझे मिला , प्यार अमृत जैसा । 


सब दुख मिट जाते हैं , मिलता दुलार ऐसा ।


 


वारि - वारि जाऊँ मैं , निहाल किया इसी ने 


हँसी से अपनी सुनो , दिया घर भर इसी ने 


प्यारी सी यह नन्ही , बस प्यार लुटाती है 


खिलखिल कर हर पल तो , दुख सदा मिटाती है ।


 


ठुमक - ठुमक कर चलना , मन को तो भाता है ।


मेरी लाडली यही , मुझको परचाती है ।


साया हूँ मैं इसका , यह मेरी थाती है ।


मेरे आँचल में आ , मुझे ही छकाती है ।


 


पायल की रुनझुन तो , मन को ही मोहे है ।


मेरा प्यार छुप गया , बार - बार टोहे है 


नूर - ए - नजर है वह , आँखों का तारा है ।


इस पर तो मैंने अब , हर सुख ही वारा है । 


££££££££££££££££££££££££££££


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


8.6.2020 , 10:26 एएम पर रचित ।


€€€€€€€€€€€€€€€€


🙏🙏समी


सुनीता असीम

इश्क की मदिरा पिलाते जाइए।


हुस्न को आशिक बनाते जाइए।


***


जिन्दगी जब है हमारी चार दिन।


क्यूं भला इसको गंवाते जाइए।


***


जिन्दगी की है डगर मुश्किल बढ़ी।


मुश्किलों को बस हराते जाइए।


***


इक हसीना शोख सी है ज़िन्दगी।


लाड़ इसके सब लड़ाते जाइए।


***


चीज कैसी बेमुरव्वत इश्क ये।


रूठते औ बस मनाते जाइए।


***


सुनीता असीम


८/६/२०२०


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तक 


( सभी मित्रों को सादर समर्पित )


शीर्षक - सफर


 


*मुक्तक *


 


(कन्नौजी रस रंग)


 


जहु जीवन अगम पंथ दुष्कर, पग-पग अड़चन संघर्ष घने।


अनमोल सफर द्वै सांसन को, नित स्वयं सैं प्रियवर युद्ध ठने।।


नाय जानै कबै हा!सांझ ढलै, अपने संगी है श्मसान तलक,


बिरथा अपनी नहिं तानौ प्रखर, प्रभु की बिगरी न बनाए बने।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम समझो नयनों की भाषा..


 


यौवन दहलीज पर पैर रखा


तब से मेरे मन में आशा


जीवन सहचरी बनो हमारी


तुम समझो नयनों की भाषा


 


इठलाई सी रहो तुम हरदम


नहीं प्यार मोहब्बत जानी


तुझे बना के रहेंगे अपना


सनम सत्य ने मन में ठानी


पर जब भी आया पास तेरे


काल्पनिक ही लगी अभिलाषा


किसे हिय की मैं बात बताऊं


तुम समझो नयनों की भाषा


 


प्रिय नहीं दिखावा प्रेम मेरा


सजनी किया जिसका उपहास


पूर्ण समर्पित करूं ये जीवन


तुम्ही खुशी तुम्ही हो हास


समझ न पाई मेरी भावना


कैसे जिगर को दूँ दिलाशा


असमर्थ हूं भाव प्रकट करूं न


तुम समझो नयनों की भाषा।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राम सनेही ओझा वाराणसी /मुंबई

मेरे द्वारा रचित काव्य संग्रह :


" पुष्करान्जली " ,जो अप्रकाशित है , से एक दोहावलि :


" राम सनेही के दोहरे "


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°


राधे ~ राधे बोल के ,


जय श्री कृष्णा बोल !


राधे रमण के सामने , ॥१॥


मन की आपा खोल !!


सनेही ----मन की आपा खोल----


 


राधा ~ राधा बोलते जब ,


धारा ~ धारा होई जाय !


जाप निरंतर जो करै~घर , ॥२॥


सुख ~ समृद्धि सोई पाये !!


सनेही---सुख समृद्धि सोई पाये---


 


राधा ~ रानी कृष्ण ~ प्रिया ,


बरसाने~ गांव की गोरी !


राधा~श्याम निहारती जैसे ,॥३॥


तीक-वेऽ ,चांद~चकोरी !!


सनेही---यीक-वेऽ,चांद~चकोरी--


 


राधा ~ कृष्णा सब कहै , ॥४॥


कुब्जा ~ कृष्ण न कोई ! ॥


इकबार जो कुब्जा~कृष्ण कहै, 


जन्म~जनम सुख होई !!


सनेही---जन्म~जनम सुख होई--


 


रास ~ रचायें~गोपियाँ , 


वृंदा ~ वन हर ~ रात !


महा~रास मेंऽ कृष्ण दिखें॥५॥


हर~गोपियन के साथ !!


सनेही---हर गोपियन के साथ---


 


मुरली~धुन सुन~राधिका ,


अपना सुध ~ बुध खोई !


राधा ~ रानी ~ श्याम से , ॥६॥


मधुर ~ मिलन ~ संयोई !!


सनेही---मधुर ~ मिलन संयोई---


 


श्याम~अधर रस~पान कर ,


मुरली~प्रेम~धुन~गायेऽ !


राधा प्यारी , जल मरी , ॥७॥ 


मुरूली~सौतन बन जाये !!


सनेही--मुरूली सौतन बन जाये--


 


ऋषि ~ मुनि गोपी भयो ,


आयो गोकुल ~ ब्रज गांव !


प्रेम ' कृष्ण ' पर , वर्षाने , ॥८॥


ध्यायो ~ वृंदावन ~ छांव !!


सनेही---ध्यायो~वृंदावन~छांव---


 


कहे राधिका~सुनो~कन्हैया ,


हमका जिन ~ तरसाओ !


बीत न जाए सावन हमरी ,॥९॥


अबतो ~ रंग ~ वर्षाऽवो !!


सनेही---अबतो ~ रंग वर्षाऽवो---


 


रंग ~ बिरंगे~हरे~गुलाबी , ॥९॥


मोहन~ब्रज ~ फाग, मचायो !


इत~उत ,भागेऽ राधे~मोहन ,


सखिअन ~ मिल रंग वर्षायो !!


सनेही---सखिअन~मिल रंग वर्षायो---


   ॥ ॐशांतिॐ ॥


सर्वाधिकार सुरक्षित, रचनाकार, राम सनेही ओझा, पूर्व वायु सेना अधिकारी, वाराणसी /मुंबई !


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार मीना विवेक जैन

मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रीतु प्रज्ञा 

रीतु प्रज्ञा (शिक्षिका)


उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय करजापट्टी


केवटी, दरभंगा


बिहार


माता:-श्रीमती मीना ठाकुर


पिता:-श्री सदानंद ठाकुर


पति:-अमल झा


शिक्षा:- एम.ए .(अर्थशास्त्र), डी.पी.ई


रूचि:-मैथिली और हिन्दी भाषा में कहानी,कविता, मुक्तक,हायकु, लघुकथा इत्यादि लेखन एवं अध्ययन


प्रकाशित पुस्तकें:-'यादें ', 'दिल के अल्फाज' ,' मेरी धरती, मेरा गाँव ' साझा काव्य संग्रह प्रकाशित


साहित्यिक उपलब्धि:- आनलाइन और आफलाइन कविता पाठ, आनलाइन और आफलाइन सम्मान पत्र प्राप्त ,आकाशवाणी दरभंगा से काव्य पाठ का प्रसारण, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित


 


चुप क्यों हो?


 


 


चुप क्यों हो माँ?


क्या विवशता है माँ?


करता है अन्याय सदा


इह लोक तुम्हारे साथ


करवा दिया जाता कभी


आत्मजा की भ्रूण हत्या


लगने दिया जाता नहीं 


अरमानों को पंख कभी !


सहती जाती व्यथा सभी


चुप क्यों हो माँ तब भी ?


प्रतिकार करो शक्ति स्वरूपा


सहमी रहती तेरी गुड़िया


देख दानवी क्रूर क्रिया


तपती राह है असहनीय


अस्तित्व रहा है असुरक्षित


अन्त किया जा रहा जीवन 


खिलाकर जहरीली पुड़िया


क्यों चुप हो माँ?


क्या शक्ति तुम्हारी


 हो गयी है नश्वर माँ?


माँ तुम्हीं हो महिषासुरमर्दिनी !


तुम्हीं हो रक्तबीज संहारिणी ।


सकल लोक कल्याणी


संतान रक्षार्थ कर


सदा सुख दायिनी


चुप क्यों हो माँ ?


वेदना के सागर से


अब तो निकलो माँ।


रहती असहाय गाय समान


सहती रहती सदा अपमान


बनी रह गयी हो कठपुतली


हुंकार भरो माँ !


खोलकर जुल्मों की पोटली


क्या तुम्हारा खुद पर


कुछ भी अधिकार नहीं 


सम्मान मिले समाज में


क्या तुम इसकी हकदार नहीं?


चुप क्यों हो माँ?


मुख अपना भी खोलो माँ !


कुछ तो तुम भी बोलो माँ ।


   


  रीतु प्रज्ञा


करजापट्टी , दरभंगा, बिहार


 


हाँ बस यही सच है 


 


मुश्किलें हैं


बारंबार राष्ट्र कह


धैर्य रख जन


तिमिर हरेंगे


शुभ प्रभात आएगी फिर


रवि लाऐंगे नव किरण


होकर रथ पर सवार


हाँ बस यही सच है।


ओतप्रोत निराश घड़ी है


नयनों में है अश्क


पग है विरान


दृष्टि पटल पर


अणगिनत है शूल


हिम्मत रख


स्वयं हिय पर


विकसित होंगे फूल


हाँ बस यही सच है।


अपने देते संग हैं


बाँकी सब माया रंग


सदा न रहते रवि लालिमा


फिर भी होती दूर


भयावह काली रजनी


मृत्यु है तो


जिन्दगी के हैं


सुहावना हसीन पल


हाँ बस यही सच है।


           रीतु प्रज्ञा


       करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:-पुस्तक


विधा:-हायकु


 


पुस्तकें प्यारी


सबसे अच्छी सखी


लगती न्यारी ।


 


संग सबके


मुँह न कभी फेरी


पढ चमके।


 


अमूल्य यह


तोहफा अनमोल


हर्षित तह ।


 


ज्ञान की गंगा


बहाती हरपल


करती चंगा।


 


पूजे सकल


पीकर सुधा रस


बढे अकल।


           रीतु प्रज्ञा


   करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:- व्यतिथ मन


 


देख - देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन ,


दूर से ही संशय में पलपल कांपता है तन।


अपनों से अपनों का रिश्ता टूटा ,


विष का घड़ा ऐसा फूटा ।


 हर तरफ दिखता है भय का साया ,


प्रदेशों से भागकर बंधुजन ढूंढे गाँवों में सुकुन छाया।


खेतों में सूखे फसलें कृषक के राह ताकते हैं ,


विषम परिस्थिति से मजबूर हो न फसलें काटते हैं।


भूखी नजरें फरिश्ता को नयना अश्क लिए तलाशते हैं ,


अच्छे दिन के इंतज़ार में कुंठित होकर दुआ माँगते हैं।


दम तोड़ रही है जिन्दगानी इलाज के अभाव में


कैद में हो रही हैं बुलबुल वायरस के प्रभाव में


आनलाइन का आया है गजब निराला दौड़ ,


आर्थिक तंगी से जूझते लोग पकड़ इसकी डोर चाहे कौर।


देख -देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन,


दूर से ही संशय में पलपल काँपता है तन।


              रीतु प्रज्ञा


      करजापट्टी , दरभंगा


       संपर्क संख्या:-9973748861


 


विधा:-गीत


विषय:-माँ


शीर्षक:-माँ प्यार तुम्हारा


 


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा ।


मैं हूँ तेरी आँखों का तारा


जन्म दी कष्टों को सहकर सारा


ईश्वर से माँगी , सर्वत्र तीर्थ स्थल आचल फैलाकर


की पैरों पर खड़ा ,सहस्त्र रोड़े हटाकर


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


मिलता नहीं जब मुझे कहीं सहारा,


अपने तट मेरी नाव लगाती किनारा।


स्वार्थी रिश्तों से जुड़ती चली जाती ,


सिर्फ तू ही मुझे निस्वार्थ चित्त बसाती।


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


               


       करजापट्टी, दरभंगा,बीहार


 


 


मातृत्व ममता सम्मान 2020

निम्त प्रतिभागियों का चयन मातृत्व ममता सम्मान 2020 हेतु किया गया सभी को बहुत बहुत बधाई:-- इसके अलावा साझा संकलन में शामिल समस्त रचनाकारों को भी दिया जायेगा


 


प्रीति शर्मा असीम नालागढ़ हिमांचल प्रदेश


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज 


 रूपा व्यास रावत भाटा


 कुहू बैनर्जी लखीमपुर


निर्भयराम गुप्ता रायगढ़ छ.ग


भरत नायक "बाबूजी" रायगढ़(छ.ग.)


डॉ आशा त्रिपाठी जी जिला कार्यक्रमअधिकारी सहारनपुर 


डाँ. जितेन्द्र "जीत" भागड़कर बालाघाट,(म.प्र.


वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़


हेमलता त्रिपाठी गुड़िया लखनऊ


सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी


नीरजा'नीरू' लखनऊ


डॉ आशा शर्मा जयपुर 


नवोदित कवि मंगल शर्मा


रेखा जोशी


डॉ राजीव पाण्डेय


प्रतिभा गुप्ता भिलावां,


डॉ0 मृदुला शुक्ला "मृदु"


निर्भय गुप्ता रायगढ़(छ.ग.)


रीतु प्रज्ञा करजापट्टी,दरभंगा, बिहार


रागिनी उपलवार मुंबई


डॉ अपर्णा मिश्र बिलासपुर 


जय श्री तिवारी खंडवा म. प्र. 


रवि रश्मि 'अनुभूति '


अमित कुमार दवे,खड़गदा


कृष्णा देवी पाण्डे नेपालगंज


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक


अनीता मिश्रा सिद्धि।


सुदेश दीक्षित बैजनाथ ‌ हिप्र


ममता कानुनगो इंदौर


इंदु झुनझुनवाला बंगलोर


अरुणा अग्रवाल लोरमी छग


इला श्री जायसवाल नोयडा


आयुषी मालपानी खंडवा मप्र


अंजना कण्डवाल *'नैना'*


मनोज मधुर,रूपबास, राज0


डॉ सरिता शुक्ल लखनऊ 


ऋषभ शर्मा ग्वालियर,


अनुराग दीक्षित सम्भल 


डॉ चन्द्रदत्त शर्मा रोहतक


 राम नरेश पाल महगावी


कविमनीष कुमार तिवारी मनी टैंगो


डॉ राजमती पोखरना सुराना


रेनू द्विवेदी" लखनऊ


प्रभा पारीक भरूच , गुजरात


सौरभ पाण्डेय सुल्तानपुर


अनिल कुमार यादव"अनुराग"


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर, बुद्धि प्रकाश महावर "मन" विभा रानी श्रीवास्तव


सेन हॉजे(कैलिफोर्निया)


डाॅ बिपिन पाण्डेय रुड़की 


ज्योति पांडेय(अयोध्या)


स्नेहलता'नीर' रुड़की


प्रदीप बहराइची बहराइच, 


प्रदीप भट्ट


आशीष तिवारी निर्मल 


जिला रीवा मध्यप्रदेश 


अमिता शुक्ला गढ़ी-पुवायां शाहजहाँपुर


डॉ. कमल भारद्वाज अम्बाह, मुरैना, म. प्र. 


प्रिया चारण नाथद्वारा राजसमन्द राजस्थान 


देवराज शर्मा मूण्डवाड़ सीकर राजस्थान


राजेश शर्मा गोकुलपुरी दिल्ली 


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल"उड़ता"


डॉ अर्चना प्रकाश जी लखनऊ 


 


 


आज के सम्मानित रचनाकार रमेश चंद्र सेठ  

   (आशिक़ जौनपुरी)


पिता का नाम--स्व0 जय मंगल सेठ


जन्म तिथि--20जनवरी 1949


पता--ग्राम रामददपुर नेवादा


पो0--शीतला चौकिया


जनपद--जौनपुर (उ0प्र0)


पिन,--222001


मो0 नं0 9451717162


शिक्षा--स्नातक(कला)


रचनाएँ--यादें,इन्तिज़ार,एहसास,मैखाना,शबाब,आदि


शौक़,--ग़ज़ल,कविता, दोहे आदि लिखना व पढ़नातथा ग़ज़लें सुनना आदि


 


मिला राम को घर अपना ये खुशी भी कितनी न्यारी है।


सारी सृष्टि में ही अयोध्या हमको सबसे प्यारी है।।


राम टाट से मंदिर में अपने जाएंगे हर्ष हमें।


आज अयोध्या के बागों की खिली हरइक ही क्यारी है।।


जग के पालक जग के स्वामी रहे निराश्रित अवध नगर।


कब बनवास खतम होगा ये हमनें बाट निहारी है।।


बड़ा हर्ष है बड़ी खुशी है राम लला घर पाए हैं।


आज राम का घर बनने की आई देखो बारी है।।


बहुत सहा है कष्ट प्रभू नें अपनी ही नगरी रहकर।


जब कि उनकी ही सदियों से रही अयोध्या सारी है।।


             **************


 


अगर बेटी नहीं होती तो ये दुनियाँ कहाँ जाती।


बेटी न होती जग में तो फिर माँ कहाँ आती।।


जो सेवा करती बेटी ,बेटे वो कर ही नहीं सकते।


ये जलती घर में जैसे जल रही हो दीप में बाती।।


पिता को सबसे ज्यादा प्यार अपनी बेटी से होता।


पिता को अपनी बेटी की हरइक ही बात है भाती।।


जगत में कर रहीं क्या बेटियाँ ये सबने देखा है।


मगर लड़कों को इसपे आज भी कुछ शर्म ना आती।।


ज़माना लड़कियों से आज भी क्यूँ नफरत क्यूँ करता हसि।


दया क्यूँ लड़कियों पे आज भी सबको नहीं आती।।


        ****************


कभीं भीं तुम कोरोना से नहीं डरना मेरे भाई।


बड़ी ही होशियारी से ही कुछ करना मेरे भाई।।


न शीतल जल कभीं पीना गरम जल का करो सेवन।


हमेशा भीड़ से तुम दूर ही रहना मेरे भाई।।


बनाके दूरियाँ मीटर की रहना संक्रमित से तुम।


सदा तुम साँस इनसे दूर रह भरना मेरे भाई।।ज


लगे हैं सब दवाएं ढूढने में इस कोरोना की।


अभिन तो है बड़ा मुश्किल दवा मिलना मेरे भाई।।


हमेशा हाथ साबुन से धुलो बस ये तरीका है।


छुओ कुछ भी तो सेनीटाइजर मलना मेरे भाई।।


सफाई करने से इस रोग से छुटकारा पाओगे।


मिलाने को किसी से हाथ मत बढ़ना मेरे भाई।।


रहो आराम से बस ध्यान थोड़ा सा तो रखना है।


ज़रा "आशिक़" का भी तो मान लो कहना मेरे भाई।।


          *****************


 


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।


कुछ तो ज़ैरा दे दीजिए सरकार का भी साथ।।


विपदा बड़ी है देश में मिलकर भगाइये,


सब साथ मिलके राष्ट्र से इसको हटाइये,


जल्दी ही ये काट जायगी आई जो काली रात,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


दूरी बनाके रहिये एकदूसरे से बस,


दिल में न हो नफ़रत ज़ैरा सा दजिये तो हँस,


हम गर रहे नियम से तो जाएगा ये भी भाग,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


 बस मास्क लगा हाथ अपने धुल लिया करें,


साँसे भी दूर रहके ही बस भर लिया करें,


ये वाइरस है इसको समझिये नहीं ये श्राप,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


          *****************


आज सभी के मन में उठता केवल यही विचार है।


कन्याओं के ऊपर क्यूँकर इतना अत्याचार है।। 


फैशन इतना बढ़ा देश में अंकुश इसपर लगा नहीं।


आज के बच्चों में तो लगता बिल्कुल ना संस्कार है।।


आज बच्चियाँ नहीं सुरक्षित नारी ना भयमुक्त है।


लाख बने कानून मगर कुछ कर न सकी सरकार है।।


अत्याचार की बात न पूछो कहाँ तलक बतलाऊँ मैं।


सख़्त बनाया जाता तो क़ानून यहाँ हरबार है।।


आज सभ्यता और संस्कृति का कुछ हाल नहीं पूछो।


जिधर भी देखो उधर ही फैला मिलता ये ब्याभिचार है।।


रुकेगा कोई काम न रिश्वत देने मो तैयार रहो।


रोक नहीं रिश्वत खोरों पर खुला हुआ दरबार है।।


संस्कार जब तक न मिलेंगे कुछ ना सुधरेगा "आशिक़"।


बिना संस्कारों के कुछ भी कर लो सब बेकार है


          ******************


 


 


 


 


डा.नीलम

*अब के तुम ऐसे बरसना*


 


अब के तुम ऐसे बरसना


जैसे बरसे तपती धूप


अन्न धन को पकाकर जो


मिटाती है सबकी भूख


 


अब के तुम ऐसे बरसना जैसे टूटकर बरसे बदली


मुर्झाई बगिया में फिर से


मह मह चले पवन संदली


 


अब के तुम ऐसे बरसना जैसे कान्हा का बाँसुरी राग


लोक लाज तज गोपियाँ 


करने लगे वृंदावन में रास


 


अब के तुम ऐसे बरसना जैसे छलके मेह -समीर


मेरे वैरागी मन में भी


बहने लगे नेह का नीर


 


अबके तुम ऐसे बरसना 


जैसे जेठ- आषाढ़ की तपती धरा की तपन मिटाने


आसमान स्वयं धरती पे उतरे।


 


           डा.नीलम


सुनीता असीम

सुब्हा से शाम होती है काम करते करते।  


कुछ लोग थक रहे हैं आराम करते करते।


***


था शानदार मेरा भी नाम इस जहां में।


थकते नहीं इसे तुम बदनाम करते करते।


***


बचते रहे मुसीबत से हम यहां वहां से।


कटता रहा ये जीवन हे राम करते करते।


***


हमने शुरू किया था इक काम ज़िन्दगी में।


दुश्मन थके इसे तो नाकाम करते करते।


***


जज्बा नहीं भुलाया था इश्क का कभी भी।


गुमनाम हो गए इसको आम करते करते।


***


सुनीता असीम


६/६/२०२०


मदन मोहन शर्मा 'सजल'

विधाता छंद


मात्रा भार - 28


समांत - आद


पदांत - करते है


~~~~~~~~~


सुहाने ख्वाब के साए, दिले नौशाद करते हैं,


पुराने प्यार के लम्हे, मुझे आबाद करते हैं, 


 


नहीं कोई शिकायत है, नहीं कोई बगावत भी,


हमारे दिल को' समझाने, स्वयं संवाद करते हैं, 


 


मिले भी तो मुखातिब है, फलक के चांद तारों से,


नजर तीरों से घायल कर, सनम फरियाद करते हैं,


 


सुकूँ महसूस होता है, बनावट के तरीकों से,


परेशान दिल जवां गाफिल, मगर हम याद करते हैं, 


 


*'सजल'* बर्बाद है दुनियाँ, कठिन राहें कठिन मंजिल, 


दिले नादां सिफारिश पर, निरापद नाद करते हैं।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

केरल की घटना जिसमें हथिनी को फल में ही पटाखा खिलाकर हत्या की गयी जिसमें मानवता शर्मसार हो गयी । उस वेदना पर एक कविता प्रस्तुत करने का प्रयास आशा है आप सबका आशिवार्द मिलेगा:-


 


""""""""""""""""""""""""""""


मानवता को घोर पी गया,


शर्मसार हृदय द्रवित हो गया!


 


इन हत्याओं की कब परिणति होगी


जो खड़ी जून में जीवन की थी


माँ की ममता को घोंट दिया


भूख के बदले उदर में पटाखा फोड़ दिया।


 


क्या अब नरपिचाश ऐसा होगा


जीवों पर कुटिल घात करता होगा


क्यों माँ की ममता को कलंकित करता है


अपने जन्मों पर प्रश्नचिन्ह करना होगा।


 


वह दर्द से आँसुओं को पी गयी 


बहती नदी के नीर में चिरनिद्रा में सो गयी


तड़प कर अपने को विसर्जित कर दिया


आँखों में लिये गर्भस्थ सपने घुट खो गयी।


 


क्षमा करना सभी को हे! प्रकृति,


व्याकुल फफक कर रो पड़ा आँचल तेरा


जन्म से पहले ही अजन्मा सो गया


हत्या की नई परिभाषा गढ़ा पालक तेरा।


 


 


 मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

एक कविता... 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


विषय:- "असहिष्णुता.. संवेदनहीनता"


"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


 


मैं एक


दिये जलाया अनेक 


कुछ श्रद्धा का... कुछ भावना का और फिर.... 


माँग-पत्रों की लम्बी सूची 


स्वास्थ्य का...सम्पत्ति का 


समृद्धि का, यश का, भोग का 


विलास का... वैभव का।


अचानक सोचा 


अरे! ये क्या? 


अभी प्रकाश का.. ज्ञान का 


सत्य और अहिंसा का 


दीप जलाना शेष है। 


फिर... कुछ और जलाया 


और.... पुन: स्मृति में आया 


क्या यार... मैं भी.. 


कुछ और दिये जलाया 


कलबुर्गी के लिए... 


अख़लाक़ के लिए.. टीपू के लिए।


विस्मय से भर उठा 


व्यथित हुआ मन 


सोचते-सोचते थक गया 


मेरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी... 


परदादा.... की सहज स्मृति।.. 


पत्नी ने जोर से चिल्याया..... 


क्या राष्ट्र के नाम दीप जलाया?...


लक्ष्मीबाई, झलकारी, शिवाजी.. 


महात्मा गांधी का नाम 


याद आया?? 


क्या .. यही है.. असहिष्णुता...


हमारी संवेदनहीनता।..... 


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(जब सितारे चले)


रात के जब सितारे चले,


मेरे अरमान सारे चले।


रह गई बज़्म सुनी की सूनी-


मेरे मेहमान सारे चले।।रात के जब........


 


ढल गया चाँद प्यारा सलोना,


मिट गया आज जीवन-खिलौना।


आस टूटी की टूटी रही-


मेरे गमख़्वार सारे चले।।रात के जब........


 


थम गया सिलसिला हसरतों का,


हो गया ख़ात्मा महफिलों का।


प्यासे अरमान प्यासे रहे-


कहाँ सारे नज़ारे चले।।रात के जब.........


 


ऐ ख़ुदा!क्या तुझे है मिला,


तोड़कर ये मेरा हौसला?


मर गया मैं यहाँ जीते जी-


दिल के गुलज़ार सारे चले।।रात के जब..........


 


कोई दिखता नहीं है सहारा,


कैसे पाएगी क़श्ती किनारा?


हवाओं ने रुख अपना बदला-


लगता सारे सहारे चले।।रात के जब..........         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


काव्यकुल संस्थान


" *एक शाम गीत गज़लों के नाम"* 


 


काव्यकुल संस्थान (पंजी.) के तत्वावधान में एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय काव्य आयोजन 'एक शाम गीत गज़लों के नाम' संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में किया गया। जिसमें भारत ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के नामचीन कवियों ने अपने गीत गज़लों से कविसम्मेलन को ऊंचाइयों तक पहुंचाया।


कविसम्मेलन की अध्यक्षता क्रांति धरा मेरठ से गीत गज़लों के सुप्रसिद्ध गीतकार,शायर कृष्ण कुमार "बेदिल" ने की। जिन्होंने अपना अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए उम्दा शेर पढ़े तो वाह अपने आप निकलने लगी-


ज़िन्दगी से भी तू मिला है क्या।


शाइरी का तुझे पता है क्या।


गुनगुनाने से होंठ जल जाएं,


शेर ऐसा कोई कहा है क्या ।


कविसम्मेलन का प्रारम्भ माँ वीणा की आराधना से हुआ । ये पंक्तियां माँ की आराधना में फिरोजाबाद से देश की अग्रिम पंक्ति के नवगीतकार डॉ रामसनेही लाल शर्मा "यायावर" ने पढ़ी-


तार वीणा के जब कसमसाने लगे।


पत्थरों के नगर गुनगुनाने लगे।


श्री यायावर ने अपने काव्यपाठ में कुछ इस प्रकार गुनगुनाया-


निष्क्रियता और विराग गया।


सोया था पौरुष जाग गया।


जिस दिन हमने डरना छोड़ा


डर हमसे डरकर भाग गया।


गीतों की शाम में रसराज श्रृंगार की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। दिल्ली से गीतों की गंगा बहायी ओंकार त्रिपाठी ने-


एक फूल ही नहीं दे दिया मधुवन का मधुमास तुम्हें। 


एक चन्द्रमा नहीं दे दिया पूरा ही आकाश तुम्हें।


फिर भी तुमको रही शिकायत,बोलो क्या उपचार करूँ।।


कार्यक्रम की मुख्यअतिथि सिडनी ऑस्ट्रेलिया से डॉ भावना कुँवर ने अपने मुक्तक के माध्यम से वर्तमान व्यवस्था को रेखांकित करते हुए कहा। 


क्यूँ सड़कों पर ...लगा मेला ...जरा कोई... बता देना


कहाँ ये जा ...रहे राही ...कोई मंज़िल... दिखा देना


बड़े भूखे, बड़े प्यासे सभी बेघर ये दिखते हैं


ना लो तस्वीर ही केवल इन्हें रोटी खिला देना।


सिडनी से ही कवि श्री प्रगीत कुँवर की इन पंक्तियों को काफी सराहना मिली-


कभी बन के घटा आयी कभी बनके धुआँ आयी 


बहुत दिन बाद फिर से दिल में उनकी दास्ताँ आयी ।


अपने गीतों से देश में अलग पहचान बनाने वाले चन्द्रभानु मिश्र ने रिश्तों पर सम्वेदना का गीत पढ़ा-


मेरे बेटे तुम्हें पता क्या कैसे कैसे तुम्हें पढ़ाया।


कहाँ नही मैं मन्नत मांगा किसे नहीं मैं शीश झुकाया।


वासिंगटन अमेरिका से डॉ प्राची चतुर्वेदी ने अपने काव्यपाठ में पढ़ा-


प्रियवर मैंने तुमको अपना सब कुछ माना है।


बसते हो गीतों में मेरे गीतों में नया तराना है।।


सिएटल अमेरिका से वरिष्ठ कवयित्री डॉ मीरा सिंह ने पावस ऋतु वर्णन इस प्रकार किया-


बरसात की बौछार से ,भींगे सभी के पंख हैं।


पंछी शिथिल तरू डाल पर,बैठे हुए आज मौन हैं।


कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक डॉ राजीव पाण्डेय ने वर्तमान में आई रिश्तों की गिरावट पर एक गीत के माध्यम से गुनगुनाया-


अंग्रेजी संस्कृति ने जब से घर में पैर पसारे।


मात्र शब्द दो अंकल आंटी खा गये रिश्ते सारे।


दादी माँ के कहानी किस्से झेल रहे प्रतिबंध।


प्रेम की फैले कैसे गन्ध।


भगवान राम की नगरी अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने एक ग़ज़ल पढ़कर वाहवाही लूटी।


काव्यकुल संस्थान द्वारा आयोजित डिजिटल काव्य समारोह 'एक शाम गीत गज़लों के नाम' के सफल आयोजन पर संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने सभी का आभार प्रकट किया।


प्रतिभा स्मृति दादी माँ सम्मान 2020

काव्य रंगोली के अति विशिष्ट सम्मान काव्य रंगोली प्रतिभा स्मृति दादी माँ सम्मान 2020


काव्यरंगोली प्रतिभा मेमोरियल ग्रेंड मदर अवार्ड 2020


विश्व स्तर पर सिर्फ 5 ओल्ड एज शिक्षा साहित्य समाज स्वास्थ्य विकलांग कल्याण हेतु कार्य करने वाली महिलाओं को प्रदान किया जा रहा है।


पुरस्कार वितरण 28 जून 2020 को होना है, लाकडाउन के चलते आगे के कार्यक्रम में या डाक द्वारा सम्मान भेज दिया जायेगा


पुरस्कार संयोजक


 


श्री सुरेन्द्रपाल मिश्र जी 


पूर्व निदेशक 


मो0 99586 91078


आशुकवि नीरज अवस्थी


मो0 9919256950


 


1-श्री मती जया मोहन 


निवर्तमान सहायक सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद प्रयागराज उत्तर प्रदेश


 


2-आदरणीया रश्मि अग्रवाल जी नजीबाबाद उ0प्र0 माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी द्वारा अवार्डेड


 


 


3-डॉ श्रीमती कमल वर्मा जी इंचार्ज रिम्स मेडिकल कालेज रायपुर छग 


 


 


4 डॉ अरुणा तिवारी जी माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी द्वारा अवार्डेड खण्डवा म0प्र0


 


5- श्रीमती शोभा त्रिपाठी जी बिलासपुर छग


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मिटने लगें दूरियां,.........


 


कैसे करें हम


दर्दे बयां


जो अपनों से मिला


पलक पांवड़े


बिछाये जिनके लिए


उन्ही ने हमें छला


लगे रहे उन्हें


मनाने हम


ता जिंदगी


वो दूरियां बढाते गये


न दी खुशी


दे रहे बन्दगी


निराली है तेरी बनाई


यह दुनियां


मेरे स्वामी


खेल खिलाते


बनाते किसी को मिटाते


जानी न जानी


बस अब न सह पाऊंगा


निर्ममता


अपनों की


कोई तो बताओ राह


मिटने लगें दूरियां


सपनों की।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सफर जिंदगी गम ख़ुशी का मेला। लम्हा ,लम्हा रंग बदलती दुनियां में नियत, ईमान का धोखा जिंदगी।।        


 


कभी हालात का मारा हालत का झमेला जिंदगी।                          


 


मौसम का मिज़ाज़ कभी तपती जेठ कि दोपहर कि गर्मी जिंदगी।


 


कभी वरिस में भीगती ,सर्द कि खामोश हवाओ तूफ़ान से जूझती जिंदगी।।


   


                          


कभी मौका कभी मौके पे धोखा जिंदगी सच झूठ के बीच!


 


रिश्तों कि परस्तीस कि तमन्ना जिंदगी।।         


 


मकसद के सफर पर चलती जिंदगी रिश्तों का मिलना बिछड़ना जिंदगी।।                            


 


हर रिश्तों का मकसद कि मंजिल पे अलविदा ।        


 


अपनी चाल चलती जिंदगी।।


 


कभी अनजान तुफानो में उलझ जाती । जिंदगी जंगो का मैदान लड़ती कभी गुरुर के जंग कि जिंदगी।           


 


जूनून के जंगो में पाती खोती सुरूर के जंगो का नशा शराब सबाब जिंदगी ।।                     


 


जिंदगी एक पहेली इंसा कि तमन्नाओ का अपसाना।


 


मझधार कि किश्ती कभी कशमकश का किनारा कभी काश कि चाहत में का गुजरना जिंदगी।।


 


नशेमन का नशा है जिंदगी नशे हद कि गुमां।                      


 


इश्क के इंतज़ार इज़हार का पागल दीवाना जिंदगी।     


         


 


कभी फरेब कि जलती शमां का परवाना।।


 


 मोहब्बत में लूट जाना खाली हाथ आना खली हाथ जाना जिंदगी।।                           


 


तक़दीर तदवीर का नज़राना जिंदगी ।।                      


 


 


इल्तज़ा ,ख्वाब का सफर सुहाना जिंदगी।।


 


अरमानो का अंदाज़ इबादत का ईमान नज़राना जिंदगी।।


 


फ़र्ज़ कि फक्र आरजू ,हुनर ,इल्म इलाही जिंदगी ।                  


जीने का जिंदगी हकीकत बहना।। 


 


 नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


निशा"अतुल्य"

रूप तुम्हारा


6.6.2020


 


नैनो में है रूप तुम्हारा


मुझको कुछ न भाता है 


कान्हा अब तो दर्शन दे दो


मन मेरा अकुलाता है ।


 


मोहनी मूरत सांवली सूरत


पीतांबरी अति प्यारी है 


अधरों पर जो मुरली साजे


छवि लगती अति न्यारी है ।


 


मोर मुकुट सिर सोहे तेरे


गले वैजंती माला है


सँग तेरे जब गैया चलती


दृश्य अज्जब निराला है ।


 


राधा जी सँग रास रचाओ


गोपी सँग सारे ग्वाला है


देख रही हैं तुम को ही वो


हर ग्वाला लगता कान्हा है ।


 


रूप अलौकिक हृदय बसे है


सांवरी सूरत वाला है 


कान्हा मुझको दर्श दिखा दो 


मन तुम को चाहने वाला है ।


 


मुझको अब तुम भव से तारो


जीवन कष्टों वाला है 


एक तेरे ही नाम में सुख है


अब इसको हमने जाना हैं ।


 


रूप तुम्हारा नैन बसे है


नाम अमृत का प्याला है


पकड़ लिया है नाम तुम्हारा


उस पार मुझको जाना है ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

नाथ तुमही आधार.......


 


तुमसा कोई नहीं जगत में


करूँ मैं जिससे प्यार


तुमसे ही जीवन ये पाया


नाथ तुमही आधार


 


पीकर के मद की हाला


हुआ बावरा स्वामी


आधा जीवन सो के बीता


जानो अंतर्यामी


अन्तर्मन से याद करूँ मैं


राधे कृष्ण सरकार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार


 


झूठे सांचे कर्म किये सब


उर की आग बुझाई


भौतिक सुख तो पाये मैंने


भूल गया यदुराई


संम्बंधों की परवाह नहीं


भूला जगत व्यवहार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार


 


ब्रिजठकुरानी मेरे माधव


दे दो आश्रय मुझको


चरण कमल का भौरा बनके


हृदय बसाऊं तुमको


सत्य किंकर तेरे द्वार का


श्रीयुगलरूप करतार


तुमसे ही ये जीवन पाया


नाथ तुमही आधार।


 


श्री युगल चरनकमलेभ्यो नमो नमः👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...