डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*सोलहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


अहहिं असुर-सुर दूइ सुभावा।


दानव-देव भूतनहिं पावा ।।


    प्रबृति-निबृति नहिं जानहिं असुरा।


    कथन असत्य,चरित नहिं सुथरा।।


मानहिं जगत आश्रयइ हीना।


बिनु इस्वर जग मिथ्या-छीना।।


     स्त्री-पुरुष-मिलन जन भवहीं।


     काम-भोग-सुख लेवन अवहीं।।


अस जन मंद बुद्धि अपकारी।


जगत-बिनासक भ्रष्टाचारी।।


     दंभ-मान-मद-युक्त,न दाना।


     मिथ्यावादी जन अग्याना।।


यावद मृत्युहिं रत रस-भोगा।


बिषयइ भोग-अनंद-कुभोगा।।


     रहइ लछ्य बस तिन्हकर एका।


     काम-क्रोध-धन-लोभ अनेका।।


धन-संग्रह अरु चेष्टा-आसा।


करहिं इनहिं मा ते बिस्वासा।।


     मानहिं स्वयं सुखी-बलवाना।


      सिद्धि-प्राप्त ईस -भगवाना।।


बैभव-भोगी,रिपु जन-घालक।


बड़ धनवान,सकल कुल-पालक।।


     अपर न कोऊ मोंहि समाना।


     करब जग्य अरु देउब दाना।।


चित-मन-भ्रमित अइस अग्यानी।


असुर-सम्पदा-प्राप्त गुमानी।।


दोहा-मोह रूप के जाल महँ,फँसत जाँय अस लोग।


       सुनहु पार्थ ते जा गिरहिं,नरकइ-कुंड-कुभोग।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372 क्रमशः.......


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मयूराक्षी


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निश्छल नयन चंद ला चितवन


नेह पंथ की दिव्य क्रिया है।


जहाँ पुनीत नेह आमंत्रण


उसके पार्श्व में प्रेम प्रिया है। ।


 


गुम्फित अलकें तिलक भाल पर


लोल कपोल अरुणिमा युत हैं।


राहुल पांखुरि मदिर अधर शुचि


रसभीने पर-- पहुँच से च्युत है।।


 


भृकुटि कमाने लक्ष्य शोधती


ज्यों हरिद्रिका युत वपु आभित।


मोर पंख की ओट वारुणी


पूनौ द्युति नछ अति शेभित।।


 


गंगा जल सम पावन स्निग्धा


आरोह वयस्क काञ्चन बाला ।


नखशिख भरण सुहावना अंग- अंग


मा नौ गमकत मधुशाला।।


 


मयंकमुखी द्युति चंद्रकला सी


अधर प्रकंपित स्मित भावन ।


लहूलुहान काम शर करते,


रुप अनूप मनस सत पावन।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


डॉ निर्मला शर्मा    राजस्थान

🌝 चाँद 🌙🌙


 


चाँद आसमान मैं ही नहीं


जीवन मैं भी रहता है छाया


जन्म से ही देखती हूँ उसे


आसमान मैं तारों के बीच अलसाया


छोटी थी तो ख्वाहिश थी उसे पाने की


चन्दा मामा बनकर वो जीवन मैं आया


बड़ी होते होते चाँद का अलग ही अर्थ पाया


चाँद से मुखड़े वाली,


ईद का चाँद, चाँद निकलना


चाँद पर थूकना -------


ऐसे कई मुहावरे मुझसे आजीवन जुड़े रहे


खुशी हो या गम


या मन के हो कोई भी उदगार


मैं बाँट ही लेती थी चाँद से हर बार


मेरा दुख सुख का साथी


था वो मेरा बचपन का यार


चाँद वो अपना सा


जिसे सब करते हैं प्यार


✍️✍️डॉ निर्मला शर्मा


   🙏🏻 राजस्थान


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चांद..............


 


न जाने छिप गया, कई दिनों से चांद कहाँ मेरा।


नहीं खिल पाया है, सत्य का कमोद रूप चेहरा।।


 


घेर लिया उसको न जाने, किन मेघ मालाओं ने।


या फिर मोह लिया उसे, कहीं सुर बालाओं ने।।


 


बिना आलोक उसके न, मुझे कुछ भी सुहाता है।


हर पल मुझे तो उसका, बस सौंदर्य याद आता है।।


 


लगता हुआ चांद बेबफा, जिसकी प्रीति नहीं मुझसे।


उसे मालूम नहीं शायद, कितनी मुहब्बत है उससे।।


 


बिना उसके छाया रहता, अब दिन भी में अंधेरा।


वही तो है जिंदगी मेरी, वही जीवन का सवेरा।।


 


उस चांद में तो दाग है, पर बेदाग है चांद मेरा।


जब हो जाता दीदार तो, खिलता हृदय सुमन मेरा।।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


प्रखर दीक्षित फर्रूखाबाद

जय कन्हैयालाल की 


================


नंदलाल कन्हैया मधुसूदन गोपाल सांवरिया मनमोहन।


रसिया रसराज रसाल सखा यदुनंदन गोपिन जीवनधन।।


गोवर्धनधारी उपकारी , हितकारी प्रभू परात्म अखिल,


प्रभु होहु सहाय अमर्ष घने शरणागत अर्पण तन मन धन।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रूखाबाद


डॉ बीके शर्मा

:: *साथी ना मचल* ::


*****************


 


जिंदगी तो एक खिलौना


साथ ही ना मचल |


मुक्त मन का बोध ले 


साथ मेरे चल ||


 


रोकना कदम तू


आज अग्नीपथ पर |


कदमों में रफ्तार ले


खुद को दे वल ||


 


लक्ष्य तेरी मंजिल है 


तू तो जलजला है |


आंखों में नभ सारा 


पैरों में है थल ||


 


जो तेरे उर में 


ज्वाला सी प्रचंड है |


हौसले बुलंद तेरे


तू पहाड़ों सा आंचल ||


 


झकझोरता तूफान क्यों 


आज यहां तुझको |


मृत्यु ही वीरता है 


कर दे हलचल ||


 


हाथों मे बज्र ले 


आज तू फिर से |


ना सोच ना विचार 


ना हाथ मल ||


 


तू मनचला है 


और दिल जला है |


जिंदगी एक पहेली 


ना कोई हल ||


 


हाथों में पताका तेरे


पीछे एक दल |


जिंदगी तो एक खिलौना


 साथी ना मचल ||


 


 *डॉ बीके शर्मा* 


उच्चैन ( भरतपुर) राजस्थान


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जुबां तोल, मोल , बेमोल,अनमोल, बहारों के फूलों कि बारिश अल्फ़ाज़।    


               


तनहा इंसान का सफसोस हुजूम के कारवां कि जिंदगी का साथ अल्फाज़।।


 


वापस नही आते कभी जुबां से निकले अल्फ़ाज़ दोस्त, दृश्मन कि बुनियाद अल्फ़ाज़।


जंगो का मैदान मोहब्बत पैगाम जमीं आकाश कि गूंज आज,कल अलफ़ाज़।।


 


दिल के जज्बात ,हालत, हालात का मिजाज अल्फ़ाज़।


दिल में उतर जाते खंजर की तरह मासूम दिल कि अश्क, आशिकी ,सुरते हाल अल्फ़ाज़।।


 


 जिंदगी रौशन ,सल्तनत बीरान तारीखों के गवाह अल्फ़ाज़।


बेशकीमती दुआ ,


बद्दुआ, फरियाद, मुस्कान अलफ़ाज़।।


 


अल्फ़ाज़ों में गीता, कुरान इबादत जज्बे का ईमान।


खुदा भगवान के जुबाँ से निकले इंसानियत इंसान के अल्फ़ाज़।।


 


अल्फाज़ो के गुलदशतों से सजती महफ़िलों के सबाब बहार के अल्फ़ाज़।


रौशन समाँ कि रौशन रौशनी कि खुशबु का बेहतरीन अंदाज़ अल्फ़ाज़।।


 


कसीदों कि काश्तकारी


रिश्तों में दस्तकारी अल्फ़ाज़।


दिल में नश्तर कि तरह चुभते कभी, कभी दिल कि खुशियों का वाह वाह अल्फ़ाज़।।


 


नज़रों के इशारों, जुबाँ खामोश का अंदाज़ अल्फाज़।


हद ,हस्ती आबरू, बेआबरू कसूर ,बेकसुरवार गुनाह,बेगुनाह के अल्फ़ाज़।।


 


बदज़ुबां का अल्फ़ाज़ जहाँ परेशान ।


खूबसूरत अल्फाज नेक ,नियत कि जुबां जमाने के अमन कि नाज़ का अल्फ़ाज़।।


 


तारीफ़, गिला ,शिकवा ,


कि बाज़ीगरी का कमाल अल्फ़ाज़।


बेंजा उलझनों को दावत, जायज बदल देते हालात के अल्फ़ाज़।।


 


गीत ग़ज़ल फूलों कि बारिश ,शहद कानों में मिश्री घोलता अल्फ़ाज़।


अल्फाजों से बनता बिगड़ता रिश्ता खामोश जुबाँ ,निगाहों का जज्बे के जज्बात अल्फाज़।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

देना चरणों में स्थान.....


 


प्रेम पियासे नयन हमारे


दर्शन दो भगवान


हर पल तेरी बाट निहारें


दीन बंधु भगवान


 


पाप किये मैंने जीवन में


तुमको नाथ भुलाया


दूर करो पातक प्रभु मेरे


शरण आपकी आया


 


बंशीधर हे राधे रानी


हो भक्तों से अनुराग


मोह ममता त्याग के स्वामी


रसना पर कृष्ण राग


 


जीवन रक्षक श्याम हमारे


राधे प्रेरणा मन की


युगलरूप तुम बनो सहायक


हो आशा जीवन की


 


जो भी कर्म किये प्रभु मैंने


देना न उनपर ध्यान


सत्य नाथ सेवक है तेरा


देना चरणों में स्थान।


 


युगलरूपाय नमो नमः 👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर" श्री हंस"।बरेली।

*विषय।।।।चमक।।।।।*


*शीर्षक।।चमक ही चमक नहीं हमें रोशनी चाहिये।।।*


*विधा।।।।।मुक्तक माला।।।।*


 


*न 1 ।।।।।।मुक्तक*


 


वही अपनी संस्कार संस्कृति


यहाँ पुनः बुलाईये।


 


वही स्नेह प्रेम की भावना फिर


यहाँ लेकर आईये।।


 


हो उसी आदर आशीर्वाद का


यहाँ बोल बाला।


 


हमें चमक ही चमक नहीं


यहाँ रोशनी चाहिये।।


 


*न 2 ।मुक्तक।*


 


सच से दूर हर बात में


नई सजावट आ गई है।


 


रिश्तों में नकली चमक सी


अब बनावट आ गई है।।


 


मन भेद मति भेद आज


बस गये हैं भीतर तक।


 


कैसे करें यकीं कि यकीन


में भी मिलावट आ गई है।।   


   


*न 3।मुक्तक।*


 


तुम्हारा चेहरा बनता कभी तेरी


पहचान नहीं है।


 


चमक दमक से मिलता किसी


को सम्मान नहीं है।।


 


लोग याद रखते हैं तुम्हारे दिल


व्यवहार को ही बस।


 


न जाने कितने सिकंदर दफन


कि नामों निशान नहीं है।।    


 


*न 4 । मुक्तक।*


 


जाने हम कहाँ से कहाँ 


अब आ गये हैं।


 


चमकती दौलत को हम


आज पा गये हैं।।


 


सोने के निवालों से अब


अरमान हो गए।


 


आधुनिकता में भावनायों


को ही खा गए हैं।।


 


*रचयिता।एस के कपूर" श्री*


*हंस"।बरेली।*


मो 9897071046


            8218685464


भरत नायक "बाबूजी"

*"जाना होगा छोड़"* (कुण्डलिया छंद)


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


★आया जो संसार में, जाना निश्चित जान।


मेहमान सब हैं यहाँ, चार दिनों का मान।।


चार दिनों का मान, गर्व कर मत इठलाना।


जिसका जैसा कर्म, सभी को है फल पाना।।


कह नायक करजोरि, जोड़ लो जितनी माया।


जाना होगा छोड़, यहाँ जो भी है आया।।


""""""""""'"'""""""""''""""""""""""""""''''''''''''"


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


"""""""""'""'''''"""""""""""''''''''''"""""""'""'''""''''


अविनाश सिंह

*कुछ तो परिवर्तन होना चाहिए*


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यूँही कुछ मन में आज ये ख्याल आया


देख संग्रहालय को एक सवाल आया


क्यों न इसका रूप ही बदल दिया जाए


इसमें रखें चीजों में ये जोड़ दिया जाए


 


क्या है संग्रहालय यह जानना जरूरी है


इसके मकसद को पहचानना जरूरी है


रखें जाते इसमें इतिहास के प्रमुख अंश


जो दिखाते है हमें अतीत के हमारे कर्म


 


कही राजा के तोप देखने को हैं मिलते


तो कही उनके पहनावें के वस्त्र मिलते


देख इनसब को मन में ये विचार आया


क्यों न किसी ने इसमें परिवर्तन लाया 


 


क्यों नही इसमें रेप के कपड़े रखे जाए


जो समाज को ये असली चेहरा दिखाए


क्यों नही इसमें वे पत्थर रख दिये जाए


जो हत्या के उद्देश्य से प्रयोग किये जाते


 


आखिर यह भी तो हमारा इतिहास ही हैं


जो इस समाज के लिए एक मिशाल हैं


लोगों को यह बात तो पता होना चाहिए


कितने कुकर्मी है लोग ये दिखना चाहिए


 


क्यों न खून से सने कपड़े रखे दिए जाते


आखिर यह भी लोगों के कर्म का फल है


क्यों न उसके अस्थियों को संजोया जाए


उसपे जो बीती है वो कहानी लिखी जाए


 


देख बंदूक हम अक्सर यह सोचने लगते


आखिर कैसे लड़ते होंगे यह पूछने लगते


फिर जब ये मासूम के कपड़े लोग देखेंगे


तो उसकी उम्रका सवाल तो जरूर पूछेंगे


 


असली मकसद संग्रहालय का पूरा होगा


इस पीड़ा को देख मन आग बबूला होगा


फिर कल किसी बेटी बहु का न रेप होगा


यही इस कविता का असली संदेश होगा


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


*लेखक*


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*10


छंद-ताल-सुर-लय को साधे,


भाव भरे स्पंदन से।


वाणी का यह प्रबल प्रणेता-


सच्ची यह कविताई है।।


      लेखक-साधक-चिंतक जिसने,


      दिया स्नेह भरपूर इसे।


      उसके गले उतर देवामृत-


      ने भी किया सगाई है।।


आसव-शक्ति-प्रदत्त लेखनी,


जब काग़ज़ पर चलती है।


चित्र-रेख अक्षुण्ण खींचती-


रहती जो अमिटाई है।।


      आसव है ये अमल-अनोखा,


       मन भावुक बहु करता है।


       मानव-मन को दे कवित्व यह-


       करता जन कुशलाई है।।


योग-क्षेम की धारा बहती,


यदि प्रभुत्व इसका होता।


धन्य लेखनी,कविता धन्या,


जो रस-धार बहाई है।।


     मधुरालय के आसव जैसा,


     नहीं पेय जग तीनों में।


     मधुर स्वाद,विश्वास है इसका-


     जो इसकी प्रभुताई है।।


जब-जब अक्षर की देवी पर,


हुआ कुठाराघात प्रबल।


आसव रूपी प्रखर कलम ने-


माता-लाज बचाई है।।


     अमिय पेय,यह आसव नेही,


     ओज-तेज-बल-बर्धक है।


      साहस और विवेक जगाता-


      होती नहीं हँसाई है।।


रचना धर्मी कलम साधते,


सैनिक अस्त्र-शस्त्र लेकर।


दाँव-पेंच-मर्मज्ञ सियासी-


विजय सभी ने पाई है।।


     शिथिल तरंगों ने गति पाई,


     भरी उमंगें चाहत में।


     बन प्रहरी की इसने रक्षा-


     जब दुनिया अलसाई है।।


मन-मंदिर का यही पुजारी,


रखे स्वच्छ नित मंदिर को।


कलुषित सोच न पलने देता-


सेव्य-भाव बहुताई है।।


      आसव नहीं है मदिरा कोई,


       आसव सोच अनूठी है।


       सोच ही रक्षक,सोच विनाशक-


       सोच बिगाड़-बनाई है।।


                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सोलहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


दैवी-असुरी सम्पति जे जन।


उनहिं क अबहिं बताउब लच्छन।।


      सुनु हे अर्जुन,कह भगवाना।


       चित-मन महँ रखि मोर धियाना।।


योगइ ग्यान ब्यवस्थित जे जन।


रहँ रत भजन सच्चिदानंदघन।।


      सुचि हिय इंद्री -दमनय- दाना।


       पठन व पाठन बेद-गियाना।।


करहिं तपस्या पालन धर्मा।


सहत कष्ट तन अरु निज कर्मा।।


     क्रोध व हिंसा,लोभ बिहीना।


     कर्तापन- अभिमानइ हीना।।


चित चंचलता,चेष्टा-भावा।


निंदा-भावा सदा अभावा।।


     सदा सत्य,पर प्रिय रह बचना।


     अस जन-चरित जाय नहिं बरना।।


धीरज-तेज-छिमा,चित-सुद्धी।


सत्रुन्ह सँग रह मित्रय बुद्धी।।


      नहिं अभिमान पुज्यता-भावा।


       दैवी सम्पति जनहिं सुभावा।।


बचन कठोर,क्रोध,अग्याना।


असुर सम्पदा जनहिं निसाना।।


      मद-घमंड-पाखंडय लच्छन।


      असुर सम्पदा जन नहिं सज्जन।।


दैव सम्पदा प्राप्त असोका।


अर्जुन, करउ न तुम्ह कछु सोका।।


दोहा-मुक्ति-प्राप्ति के हेतुहीं,दैव सम्पदा होय।


        असुर -सम्पदा -प्राप्त जन,बंधन-मोह न खोय।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372 क्रमशः........


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तक 


( सभी मित्रों को सादर समर्पित )


शीर्षक - सफर


 


*मुक्तक *


 


(कन्नौजी रस रंग)


 


जहु जीवन अगम पंथ दुष्कर, पग-पग अड़चन संघर्ष घने।


अनमोल सफर द्वै सांसन को, नित स्वयं सैं प्रियवर युद्ध ठने।।


नाय जानै कबै हा!सांझ ढलै, अपने संगी है श्मसान तलक,


बिरथा अपनी नहिं तानौ प्रखर, प्रभु की बिगरी न बनाए बने।।


 


अर्कमण्य प्रमाद विषय विष सम , न अकारथ जीवन करौ सखे।


काय बोझ बनौ परमार्थ करौ, थोरे मँह यापन करौ सखे।।


अनमोल जू मानव जीवन सत, देवन कौं दुर्लभ करम योनि,


दया भगति पुरुषार्थ प्रखर, सुमिरन हरि हिय पावन करौ सखे।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी

शीर्षक-:- 'पूनम का चाँद'


                             एक कविता 


""""""""""""""""""""""""""""""""""""""


 


 


 


ओ प्रिय


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम 


जूही की कली हो 


या खिलता गुलाब हो तुम। 


 


ओ प्रिय


नीहार में नहायी सी तुम


कपोल पंखुड़ी कमल सा 


टपकने को आतुर अधर 


व्याकुल उर का उच्छ्वास हो तुम


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


ओ प्रिय 


मेघ वर्णी सन्ध्या हो या 


स्वर्णिम उषा हो तुम 


देवांगना हो कोई या 


चाँदनी शरद की हो 


सुधा बनकर बुझाती प्यास हो तुम 


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


अकथ कथा सी तुम जैसे 


करते हैं मौन-सम्भाषण 


निर्निमेष नयन तेरे


करती विचरण स्वच्छन्द उपवन में


मेरे उरांगन में, अनन्त कल्पना में 


और काव्य में करती वास हो तुम  


जलता दिया हो 


या पूनम का चाँद हो तुम। 


 


रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' गोरखपुरी


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)


शिवानी मिश्रा (प्रयागराज)

काश(कविता)


 


काश! एक ऐसा जहाँ होता,


न कोई हिन्दू ,न कोई मुसलमान होता,


लोग जीते सिर्फ मानवता के लिये,


बस भाईचारा ही उनका धर्म होता,


विवाद न होता भाषा का,


न द्वंद होता संस्कृति का,


बस प्रेम ही उद्देश्य होता मानव का


मानव जीता सिर्फ मानव के लिये,


न होता हिंसा का माहौल,


न होता राज बेईमानी का,


स्वर्ग सा सुन्दर जीवन होता,


बस एक सहायता ही सबका धर्म होता।


 


शिवानी मिश्रा


(प्रयागराज)


रवि रश्मि 'अनुभूति

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


 


    🙏🙏


 


  दिगपाल छंद 


÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷


यह एक सममात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । हर चरण में बारह - बारह के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं । इसके दो चरणों का तुकांत मिलना अनिवार्य है । चरणांत दो गुरु मात्राएँ हों तो शोभनीय है । 


 


   बिटिया 


***********


प्यारी बिटिया देखो , मन को बहलाती है । 


किलकारी भर - भर वह , सभी को लुभाती है ।


बिटिया का मुझे मिला , प्यार अमृत जैसा । 


सब दुख मिट जाते हैं , मिलता दुलार ऐसा ।


 


वारि - वारि जाऊँ मैं , निहाल किया इसी ने 


हँसी से अपनी सुनो , दिया घर भर इसी ने 


प्यारी सी यह नन्ही , बस प्यार लुटाती है 


खिलखिल कर हर पल तो , दुख सदा मिटाती है ।


 


ठुमक - ठुमक कर चलना , मन को तो भाता है ।


मेरी लाडली यही , मुझको परचाती है ।


साया हूँ मैं इसका , यह मेरी थाती है ।


मेरे आँचल में आ , मुझे ही छकाती है ।


 


पायल की रुनझुन तो , मन को ही मोहे है ।


मेरा प्यार छुप गया , बार - बार टोहे है 


नूर - ए - नजर है वह , आँखों का तारा है ।


इस पर तो मैंने अब , हर सुख ही वारा है । 


££££££££££££££££££££££££££££


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


8.6.2020 , 10:26 एएम पर रचित ।


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🙏🙏समी


सुनीता असीम

इश्क की मदिरा पिलाते जाइए।


हुस्न को आशिक बनाते जाइए।


***


जिन्दगी जब है हमारी चार दिन।


क्यूं भला इसको गंवाते जाइए।


***


जिन्दगी की है डगर मुश्किल बढ़ी।


मुश्किलों को बस हराते जाइए।


***


इक हसीना शोख सी है ज़िन्दगी।


लाड़ इसके सब लड़ाते जाइए।


***


चीज कैसी बेमुरव्वत इश्क ये।


रूठते औ बस मनाते जाइए।


***


सुनीता असीम


८/६/२०२०


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तक 


( सभी मित्रों को सादर समर्पित )


शीर्षक - सफर


 


*मुक्तक *


 


(कन्नौजी रस रंग)


 


जहु जीवन अगम पंथ दुष्कर, पग-पग अड़चन संघर्ष घने।


अनमोल सफर द्वै सांसन को, नित स्वयं सैं प्रियवर युद्ध ठने।।


नाय जानै कबै हा!सांझ ढलै, अपने संगी है श्मसान तलक,


बिरथा अपनी नहिं तानौ प्रखर, प्रभु की बिगरी न बनाए बने।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम समझो नयनों की भाषा..


 


यौवन दहलीज पर पैर रखा


तब से मेरे मन में आशा


जीवन सहचरी बनो हमारी


तुम समझो नयनों की भाषा


 


इठलाई सी रहो तुम हरदम


नहीं प्यार मोहब्बत जानी


तुझे बना के रहेंगे अपना


सनम सत्य ने मन में ठानी


पर जब भी आया पास तेरे


काल्पनिक ही लगी अभिलाषा


किसे हिय की मैं बात बताऊं


तुम समझो नयनों की भाषा


 


प्रिय नहीं दिखावा प्रेम मेरा


सजनी किया जिसका उपहास


पूर्ण समर्पित करूं ये जीवन


तुम्ही खुशी तुम्ही हो हास


समझ न पाई मेरी भावना


कैसे जिगर को दूँ दिलाशा


असमर्थ हूं भाव प्रकट करूं न


तुम समझो नयनों की भाषा।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राम सनेही ओझा वाराणसी /मुंबई

मेरे द्वारा रचित काव्य संग्रह :


" पुष्करान्जली " ,जो अप्रकाशित है , से एक दोहावलि :


" राम सनेही के दोहरे "


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राधे ~ राधे बोल के ,


जय श्री कृष्णा बोल !


राधे रमण के सामने , ॥१॥


मन की आपा खोल !!


सनेही ----मन की आपा खोल----


 


राधा ~ राधा बोलते जब ,


धारा ~ धारा होई जाय !


जाप निरंतर जो करै~घर , ॥२॥


सुख ~ समृद्धि सोई पाये !!


सनेही---सुख समृद्धि सोई पाये---


 


राधा ~ रानी कृष्ण ~ प्रिया ,


बरसाने~ गांव की गोरी !


राधा~श्याम निहारती जैसे ,॥३॥


तीक-वेऽ ,चांद~चकोरी !!


सनेही---यीक-वेऽ,चांद~चकोरी--


 


राधा ~ कृष्णा सब कहै , ॥४॥


कुब्जा ~ कृष्ण न कोई ! ॥


इकबार जो कुब्जा~कृष्ण कहै, 


जन्म~जनम सुख होई !!


सनेही---जन्म~जनम सुख होई--


 


रास ~ रचायें~गोपियाँ , 


वृंदा ~ वन हर ~ रात !


महा~रास मेंऽ कृष्ण दिखें॥५॥


हर~गोपियन के साथ !!


सनेही---हर गोपियन के साथ---


 


मुरली~धुन सुन~राधिका ,


अपना सुध ~ बुध खोई !


राधा ~ रानी ~ श्याम से , ॥६॥


मधुर ~ मिलन ~ संयोई !!


सनेही---मधुर ~ मिलन संयोई---


 


श्याम~अधर रस~पान कर ,


मुरली~प्रेम~धुन~गायेऽ !


राधा प्यारी , जल मरी , ॥७॥ 


मुरूली~सौतन बन जाये !!


सनेही--मुरूली सौतन बन जाये--


 


ऋषि ~ मुनि गोपी भयो ,


आयो गोकुल ~ ब्रज गांव !


प्रेम ' कृष्ण ' पर , वर्षाने , ॥८॥


ध्यायो ~ वृंदावन ~ छांव !!


सनेही---ध्यायो~वृंदावन~छांव---


 


कहे राधिका~सुनो~कन्हैया ,


हमका जिन ~ तरसाओ !


बीत न जाए सावन हमरी ,॥९॥


अबतो ~ रंग ~ वर्षाऽवो !!


सनेही---अबतो ~ रंग वर्षाऽवो---


 


रंग ~ बिरंगे~हरे~गुलाबी , ॥९॥


मोहन~ब्रज ~ फाग, मचायो !


इत~उत ,भागेऽ राधे~मोहन ,


सखिअन ~ मिल रंग वर्षायो !!


सनेही---सखिअन~मिल रंग वर्षायो---


   ॥ ॐशांतिॐ ॥


सर्वाधिकार सुरक्षित, रचनाकार, राम सनेही ओझा, पूर्व वायु सेना अधिकारी, वाराणसी /मुंबई !


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार मीना विवेक जैन

मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


 


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रीतु प्रज्ञा 

रीतु प्रज्ञा (शिक्षिका)


उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय करजापट्टी


केवटी, दरभंगा


बिहार


माता:-श्रीमती मीना ठाकुर


पिता:-श्री सदानंद ठाकुर


पति:-अमल झा


शिक्षा:- एम.ए .(अर्थशास्त्र), डी.पी.ई


रूचि:-मैथिली और हिन्दी भाषा में कहानी,कविता, मुक्तक,हायकु, लघुकथा इत्यादि लेखन एवं अध्ययन


प्रकाशित पुस्तकें:-'यादें ', 'दिल के अल्फाज' ,' मेरी धरती, मेरा गाँव ' साझा काव्य संग्रह प्रकाशित


साहित्यिक उपलब्धि:- आनलाइन और आफलाइन कविता पाठ, आनलाइन और आफलाइन सम्मान पत्र प्राप्त ,आकाशवाणी दरभंगा से काव्य पाठ का प्रसारण, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित


 


चुप क्यों हो?


 


 


चुप क्यों हो माँ?


क्या विवशता है माँ?


करता है अन्याय सदा


इह लोक तुम्हारे साथ


करवा दिया जाता कभी


आत्मजा की भ्रूण हत्या


लगने दिया जाता नहीं 


अरमानों को पंख कभी !


सहती जाती व्यथा सभी


चुप क्यों हो माँ तब भी ?


प्रतिकार करो शक्ति स्वरूपा


सहमी रहती तेरी गुड़िया


देख दानवी क्रूर क्रिया


तपती राह है असहनीय


अस्तित्व रहा है असुरक्षित


अन्त किया जा रहा जीवन 


खिलाकर जहरीली पुड़िया


क्यों चुप हो माँ?


क्या शक्ति तुम्हारी


 हो गयी है नश्वर माँ?


माँ तुम्हीं हो महिषासुरमर्दिनी !


तुम्हीं हो रक्तबीज संहारिणी ।


सकल लोक कल्याणी


संतान रक्षार्थ कर


सदा सुख दायिनी


चुप क्यों हो माँ ?


वेदना के सागर से


अब तो निकलो माँ।


रहती असहाय गाय समान


सहती रहती सदा अपमान


बनी रह गयी हो कठपुतली


हुंकार भरो माँ !


खोलकर जुल्मों की पोटली


क्या तुम्हारा खुद पर


कुछ भी अधिकार नहीं 


सम्मान मिले समाज में


क्या तुम इसकी हकदार नहीं?


चुप क्यों हो माँ?


मुख अपना भी खोलो माँ !


कुछ तो तुम भी बोलो माँ ।


   


  रीतु प्रज्ञा


करजापट्टी , दरभंगा, बिहार


 


हाँ बस यही सच है 


 


मुश्किलें हैं


बारंबार राष्ट्र कह


धैर्य रख जन


तिमिर हरेंगे


शुभ प्रभात आएगी फिर


रवि लाऐंगे नव किरण


होकर रथ पर सवार


हाँ बस यही सच है।


ओतप्रोत निराश घड़ी है


नयनों में है अश्क


पग है विरान


दृष्टि पटल पर


अणगिनत है शूल


हिम्मत रख


स्वयं हिय पर


विकसित होंगे फूल


हाँ बस यही सच है।


अपने देते संग हैं


बाँकी सब माया रंग


सदा न रहते रवि लालिमा


फिर भी होती दूर


भयावह काली रजनी


मृत्यु है तो


जिन्दगी के हैं


सुहावना हसीन पल


हाँ बस यही सच है।


           रीतु प्रज्ञा


       करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:-पुस्तक


विधा:-हायकु


 


पुस्तकें प्यारी


सबसे अच्छी सखी


लगती न्यारी ।


 


संग सबके


मुँह न कभी फेरी


पढ चमके।


 


अमूल्य यह


तोहफा अनमोल


हर्षित तह ।


 


ज्ञान की गंगा


बहाती हरपल


करती चंगा।


 


पूजे सकल


पीकर सुधा रस


बढे अकल।


           रीतु प्रज्ञा


   करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:- व्यतिथ मन


 


देख - देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन ,


दूर से ही संशय में पलपल कांपता है तन।


अपनों से अपनों का रिश्ता टूटा ,


विष का घड़ा ऐसा फूटा ।


 हर तरफ दिखता है भय का साया ,


प्रदेशों से भागकर बंधुजन ढूंढे गाँवों में सुकुन छाया।


खेतों में सूखे फसलें कृषक के राह ताकते हैं ,


विषम परिस्थिति से मजबूर हो न फसलें काटते हैं।


भूखी नजरें फरिश्ता को नयना अश्क लिए तलाशते हैं ,


अच्छे दिन के इंतज़ार में कुंठित होकर दुआ माँगते हैं।


दम तोड़ रही है जिन्दगानी इलाज के अभाव में


कैद में हो रही हैं बुलबुल वायरस के प्रभाव में


आनलाइन का आया है गजब निराला दौड़ ,


आर्थिक तंगी से जूझते लोग पकड़ इसकी डोर चाहे कौर।


देख -देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन,


दूर से ही संशय में पलपल काँपता है तन।


              रीतु प्रज्ञा


      करजापट्टी , दरभंगा


       संपर्क संख्या:-9973748861


 


विधा:-गीत


विषय:-माँ


शीर्षक:-माँ प्यार तुम्हारा


 


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा ।


मैं हूँ तेरी आँखों का तारा


जन्म दी कष्टों को सहकर सारा


ईश्वर से माँगी , सर्वत्र तीर्थ स्थल आचल फैलाकर


की पैरों पर खड़ा ,सहस्त्र रोड़े हटाकर


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


मिलता नहीं जब मुझे कहीं सहारा,


अपने तट मेरी नाव लगाती किनारा।


स्वार्थी रिश्तों से जुड़ती चली जाती ,


सिर्फ तू ही मुझे निस्वार्थ चित्त बसाती।


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


               


       करजापट्टी, दरभंगा,बीहार


 


 


मातृत्व ममता सम्मान 2020

निम्त प्रतिभागियों का चयन मातृत्व ममता सम्मान 2020 हेतु किया गया सभी को बहुत बहुत बधाई:-- इसके अलावा साझा संकलन में शामिल समस्त रचनाकारों को भी दिया जायेगा


 


प्रीति शर्मा असीम नालागढ़ हिमांचल प्रदेश


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल महराजगंज 


 रूपा व्यास रावत भाटा


 कुहू बैनर्जी लखीमपुर


निर्भयराम गुप्ता रायगढ़ छ.ग


भरत नायक "बाबूजी" रायगढ़(छ.ग.)


डॉ आशा त्रिपाठी जी जिला कार्यक्रमअधिकारी सहारनपुर 


डाँ. जितेन्द्र "जीत" भागड़कर बालाघाट,(म.प्र.


वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़


हेमलता त्रिपाठी गुड़िया लखनऊ


सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी


नीरजा'नीरू' लखनऊ


डॉ आशा शर्मा जयपुर 


नवोदित कवि मंगल शर्मा


रेखा जोशी


डॉ राजीव पाण्डेय


प्रतिभा गुप्ता भिलावां,


डॉ0 मृदुला शुक्ला "मृदु"


निर्भय गुप्ता रायगढ़(छ.ग.)


रीतु प्रज्ञा करजापट्टी,दरभंगा, बिहार


रागिनी उपलवार मुंबई


डॉ अपर्णा मिश्र बिलासपुर 


जय श्री तिवारी खंडवा म. प्र. 


रवि रश्मि 'अनुभूति '


अमित कुमार दवे,खड़गदा


कृष्णा देवी पाण्डे नेपालगंज


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक


अनीता मिश्रा सिद्धि।


सुदेश दीक्षित बैजनाथ ‌ हिप्र


ममता कानुनगो इंदौर


इंदु झुनझुनवाला बंगलोर


अरुणा अग्रवाल लोरमी छग


इला श्री जायसवाल नोयडा


आयुषी मालपानी खंडवा मप्र


अंजना कण्डवाल *'नैना'*


मनोज मधुर,रूपबास, राज0


डॉ सरिता शुक्ल लखनऊ 


ऋषभ शर्मा ग्वालियर,


अनुराग दीक्षित सम्भल 


डॉ चन्द्रदत्त शर्मा रोहतक


 राम नरेश पाल महगावी


कविमनीष कुमार तिवारी मनी टैंगो


डॉ राजमती पोखरना सुराना


रेनू द्विवेदी" लखनऊ


प्रभा पारीक भरूच , गुजरात


सौरभ पाण्डेय सुल्तानपुर


अनिल कुमार यादव"अनुराग"


रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर, बुद्धि प्रकाश महावर "मन" विभा रानी श्रीवास्तव


सेन हॉजे(कैलिफोर्निया)


डाॅ बिपिन पाण्डेय रुड़की 


ज्योति पांडेय(अयोध्या)


स्नेहलता'नीर' रुड़की


प्रदीप बहराइची बहराइच, 


प्रदीप भट्ट


आशीष तिवारी निर्मल 


जिला रीवा मध्यप्रदेश 


अमिता शुक्ला गढ़ी-पुवायां शाहजहाँपुर


डॉ. कमल भारद्वाज अम्बाह, मुरैना, म. प्र. 


प्रिया चारण नाथद्वारा राजसमन्द राजस्थान 


देवराज शर्मा मूण्डवाड़ सीकर राजस्थान


राजेश शर्मा गोकुलपुरी दिल्ली 


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल"उड़ता"


डॉ अर्चना प्रकाश जी लखनऊ 


 


 


आज के सम्मानित रचनाकार रमेश चंद्र सेठ  

   (आशिक़ जौनपुरी)


पिता का नाम--स्व0 जय मंगल सेठ


जन्म तिथि--20जनवरी 1949


पता--ग्राम रामददपुर नेवादा


पो0--शीतला चौकिया


जनपद--जौनपुर (उ0प्र0)


पिन,--222001


मो0 नं0 9451717162


शिक्षा--स्नातक(कला)


रचनाएँ--यादें,इन्तिज़ार,एहसास,मैखाना,शबाब,आदि


शौक़,--ग़ज़ल,कविता, दोहे आदि लिखना व पढ़नातथा ग़ज़लें सुनना आदि


 


मिला राम को घर अपना ये खुशी भी कितनी न्यारी है।


सारी सृष्टि में ही अयोध्या हमको सबसे प्यारी है।।


राम टाट से मंदिर में अपने जाएंगे हर्ष हमें।


आज अयोध्या के बागों की खिली हरइक ही क्यारी है।।


जग के पालक जग के स्वामी रहे निराश्रित अवध नगर।


कब बनवास खतम होगा ये हमनें बाट निहारी है।।


बड़ा हर्ष है बड़ी खुशी है राम लला घर पाए हैं।


आज राम का घर बनने की आई देखो बारी है।।


बहुत सहा है कष्ट प्रभू नें अपनी ही नगरी रहकर।


जब कि उनकी ही सदियों से रही अयोध्या सारी है।।


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अगर बेटी नहीं होती तो ये दुनियाँ कहाँ जाती।


बेटी न होती जग में तो फिर माँ कहाँ आती।।


जो सेवा करती बेटी ,बेटे वो कर ही नहीं सकते।


ये जलती घर में जैसे जल रही हो दीप में बाती।।


पिता को सबसे ज्यादा प्यार अपनी बेटी से होता।


पिता को अपनी बेटी की हरइक ही बात है भाती।।


जगत में कर रहीं क्या बेटियाँ ये सबने देखा है।


मगर लड़कों को इसपे आज भी कुछ शर्म ना आती।।


ज़माना लड़कियों से आज भी क्यूँ नफरत क्यूँ करता हसि।


दया क्यूँ लड़कियों पे आज भी सबको नहीं आती।।


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कभीं भीं तुम कोरोना से नहीं डरना मेरे भाई।


बड़ी ही होशियारी से ही कुछ करना मेरे भाई।।


न शीतल जल कभीं पीना गरम जल का करो सेवन।


हमेशा भीड़ से तुम दूर ही रहना मेरे भाई।।


बनाके दूरियाँ मीटर की रहना संक्रमित से तुम।


सदा तुम साँस इनसे दूर रह भरना मेरे भाई।।ज


लगे हैं सब दवाएं ढूढने में इस कोरोना की।


अभिन तो है बड़ा मुश्किल दवा मिलना मेरे भाई।।


हमेशा हाथ साबुन से धुलो बस ये तरीका है।


छुओ कुछ भी तो सेनीटाइजर मलना मेरे भाई।।


सफाई करने से इस रोग से छुटकारा पाओगे।


मिलाने को किसी से हाथ मत बढ़ना मेरे भाई।।


रहो आराम से बस ध्यान थोड़ा सा तो रखना है।


ज़रा "आशिक़" का भी तो मान लो कहना मेरे भाई।।


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आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।


कुछ तो ज़ैरा दे दीजिए सरकार का भी साथ।।


विपदा बड़ी है देश में मिलकर भगाइये,


सब साथ मिलके राष्ट्र से इसको हटाइये,


जल्दी ही ये काट जायगी आई जो काली रात,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


दूरी बनाके रहिये एकदूसरे से बस,


दिल में न हो नफ़रत ज़ैरा सा दजिये तो हँस,


हम गर रहे नियम से तो जाएगा ये भी भाग,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


 बस मास्क लगा हाथ अपने धुल लिया करें,


साँसे भी दूर रहके ही बस भर लिया करें,


ये वाइरस है इसको समझिये नहीं ये श्राप,


आया कोरोना देखिये घबराइए न आप।।


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आज सभी के मन में उठता केवल यही विचार है।


कन्याओं के ऊपर क्यूँकर इतना अत्याचार है।। 


फैशन इतना बढ़ा देश में अंकुश इसपर लगा नहीं।


आज के बच्चों में तो लगता बिल्कुल ना संस्कार है।।


आज बच्चियाँ नहीं सुरक्षित नारी ना भयमुक्त है।


लाख बने कानून मगर कुछ कर न सकी सरकार है।।


अत्याचार की बात न पूछो कहाँ तलक बतलाऊँ मैं।


सख़्त बनाया जाता तो क़ानून यहाँ हरबार है।।


आज सभ्यता और संस्कृति का कुछ हाल नहीं पूछो।


जिधर भी देखो उधर ही फैला मिलता ये ब्याभिचार है।।


रुकेगा कोई काम न रिश्वत देने मो तैयार रहो।


रोक नहीं रिश्वत खोरों पर खुला हुआ दरबार है।।


संस्कार जब तक न मिलेंगे कुछ ना सुधरेगा "आशिक़"।


बिना संस्कारों के कुछ भी कर लो सब बेकार है


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