नियमःहाइकु
नियम से ही
सुख की छाँह मिले
आराम मिले
नियम से ही
जीवन व्यवस्थित
अनु शासित
यदि करोगे
नियम का पालन
सुख पाओगे
परिवर्तन
जीवन का नियम
आये चमन
आशा जाकड़
9754969496
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नियमःहाइकु
नियम से ही
सुख की छाँह मिले
आराम मिले
नियम से ही
जीवन व्यवस्थित
अनु शासित
यदि करोगे
नियम का पालन
सुख पाओगे
परिवर्तन
जीवन का नियम
आये चमन
आशा जाकड़
9754969496
भावपूर्ण श्रद्धांजलि सुशान्त सिंह राजपूत
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
छिछोरा अचानक शान्त हो गया,
हमेशा के लिए सुशान्त सो गया।
वह निभाकर धोनी का किरदार,
हिन्दी सिनेमा में अमर हो गया।
पवित्र रिश्ता का वह सफ़रनामा,
हमारा प्यारा केदारनाथ खो गया।
वो राबता, पीके और काय पो छे,
ज़रा नच के दिखा अमर हो गया।
तुम धड़कते रहोगे दिलों में सदा,
सुन बेसुध अब 'विवश' हो गया।
मौलिक रचना -
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
मो० नं० 9919886297
" चमकता सितारा"
वो चमचमाता था फिल्मों का सितारा
असल जिंदगी में आज खुद से ही हारा
दवाब हैं ये कैसे ये कौनसी दुनिया है
ये कैसा हलाहल है कैसी मजबूरियाँ हैं
कितना दुर्लभ है ये मानवीय जीवन
की आत्महत्या मन कौनसी थी सीवन
तनाव की हालत में घिर कर क्यों ?
दम तोड रहे आखिर ये फ़िल्मी सितारे
जीवन में तनाव है रिश्तों का अथवा
स्टारडम की गलियों में खोई है जिजीविषा
कामयाबी के शिखर पर बैठ मुस्कुराने वाला
जीवन के पथ पर अनवरत चलने वाला
आज थककर अनन्त निंद्रा में सो गया है
वो सितारों सा चमकता व्यक्तित्व आज
दूसरी दुनिया की आरामगाह में सो गया है
पता न चला किसी को भी अब तक
भीड़ भरी दुनिया में वो कैसे अकेला हो गया
मुस्कुराते चेहरे के पीछे कितना दर्द था छुपा
सारी दुनिया के सामने ये यक्ष प्रश्न छोड़ गया
तनाव और अकेलेपन की गहराती खाई में
जीवन रूपी पतंग की डोर छूट गई उसके हाथ से
सुशांत था वो अपने नाम की तरह संस्कारी
आसमां को छुआ था उसने कदमों में जमीं थी सारी
मायानगरी में मिलती तो है सफलता टूटकर
नहीं मिलता तो कोई यहाँ सच्चा हमसफ़र
सह न पाए तुम वो कौनसी ऐसी बात थी
अंतिम समय सब छोड़े सब केवल मृत्यु साथ थी
जाते तो सभी हैं दुनिया से एक दिन
पर ऐसे न जाते अभी और अपनी कला तुम दिखलाते
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
*बेवजह की बातों में, वक्त क्यू गवॉते हो।*
हर एक श्वांस जीवन की, घट रही पल छिन,
कर्मयोगी की तरह जी ले, तू सहारे बिन।।
जिन्दगी स्वप्न है इसे तू आजमाओ ना,
है अटल सत्य यही, क्यू इसे भुलाते हो।।
*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*
मिल गया लक्ष्य तो ये कद बड़ा हो जायेगा।।
सत्य को साध कर तू ,आगे ही बढ़ जायेगा।
वक्त के साथ जरा चल के देख ले राही,
वक्त की ऐंठ मे निर्बल को, क्यू सताते हो।
*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*
जिन्दगी जंग है इस जंग सें लड़ना होगा।।
समय की रेत पर इतिहास को लिखना होगा।
पत्थरों से मधुर शीतल लहर भी आयेगी।
टूटना होगा भी और गिर के बिखरना होगा।।
दग्ध मन को ही सदा मीत क्यू बनाते हो।।
*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*
जिन्दगी आश है,विश्वास है, मधुमास भी है।
अपने सपनों के आसमान का एहसास भी है।
शक्ति-सामर्थ्य के सागर मे उतर-कर देखो,
समय की नाव के संग,लक्ष्य की ये प्यास भी है।
भाग्य के हाथ में किश्ती को क्यू थमाते हो।
*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*
वक्त है ईमान-धरम वक्त तो गुजरता है।
समय के आगे कहॉ कोई भी ठहरता है।
समय की कोख में जीवन के रत्न सारे है।
कर्मयोगी को ही ये अक्षयपात्र मिलता है।।
व्यर्थ की साधना में मन को क्यू रमाते हो।
*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*
✍🏻आशा त्रिपाठी
14-06-2020
रविवार
{सर्वाधिकार सुरक्षित}
विश्व रक्तदान दिवस पर कविता
=====================
रक्तदान के भावों को
शब्दों में बताना मुश्किल है
कुछ भाव रहे होंगे भावी के
भावों को बताना मुश्किल है।
दानों के दान रक्तदानी के
दावों को बताना मुश्किल है
रक्तदान से जीवन परिभाषा की
नई कहानी को बताना मुश्किल है।
कितनों के गम चले गये
महादान को समझाना मुश्किल है
मानव में यदि संवाद नहीं
तो सम्मान बनाना मुश्किल है।
यदि रक्तों से रक्त सम्बंध नहीं
तो क्या भाव बताना मुश्किल है
पुण्यदान काम न कर सके
जीवन ज्योति जलाना मुश्किल है।
रक्तदान के महा शिविरों में
बस पुण्य काम ही होते हैं,
मृत्यु को वरण करने वाले
तेरे ही रक्तों से जीते हैं।
मौलिक रचना:-
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
'विश्व रक्तदाता दिवस' 2020
एक गीत
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
सुरक्षित रक्त बचाये जीवन,
आओ सशक्त बनायें जीवन।
मानवता यह हम सबका है,
हम हँसें और हँसायें जीवन।
जब रक्तदान ही महादान है,
उपवन सा महकाये जीवन।
परोपकार ना इससे बढ़कर,
कर रक्तदान बचायें जीवन।
जीना उसी का सफल हुआ,
सबके लिए लगाये जीवन।
स्वस्थ व्यक्ति के रक्तदान से,
जन्म सफल बनाये जीवन।
मौलिक रचना-
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(स० अ०, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)
मो० नं० 9919886297
विश्व रक्त दान दिवस पर
कुण्डलियाँ
जाये बच यदि प्राण तो, करो रक्त का दान।
गुप्त रूप से ही करो, मत होने दो भान।
मत होने दो भान,खुशी आँखों में दे दो।
बुझती लौ में आज,कमी कोई न कुरेदो।
शपथ 'निरंतर' चाह,सदा सब मुख हरषाये।
मिले लहू का दान, खुशी से तब घर जाये।
अर्चना पाठक
निरंतर
चीन को चेतावनी
एक कविता
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
विषय:- 'देश के रक्षक'
हम देश के रक्षक हैं
हमसे ना टकराना तुम,
हम आज के भारत हैं
इसे भूल ना जाना तुम।.....
सेनाओं का हुंकार सुनों
डटी हुई नभ थल जल में,
ब्रम्होस, अग्नि, नाग, पृथ्वी
जो लक्ष्य भेदते हैं पल में।
भारत को प्राप्त महारथ है
खुद को ही समझाना तुम।.....
खड़ा हिमालय रक्षा में है
सागर कदमों को चूम रहा है,
देश के खातिर मर मिटने को
हर हिन्दुस्तानी झूम रहा है।
कतरा-कतरा संहारक है
दुश्मन को बतलाना तुम।.....
गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र राप्ती
कल-कल नदियाँ बहती हैं,
सबसे पहले यहाँ पहुँच कर
सूरज की किरणें कहती हैं।
है शस्य-श्यामल वीर भूमि
इसको ना आँख दिखाना तुम।...
मौलिक रचना -
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
महराजगंज, उ० प्र०
मो० नं० 9919886297
लक्ष्मी बाई बन मनू जब,
पग धरणि पर धर दिया ।
मानो स्वयं ही दुर्गमा ने ,
जन्म धरती पर लिया ।
सुघड़ता मे लक्ष्मि जैसा,
रूप प्रभु ने था दिया ।
शौर्य ,साहस शक्ति से ,
माँ शक्ति ने सजा दिया ।
मां भारती की भक्ति हित ,
थे प्राण अर्पण कर दिया ।
ये वीरता की अमिट गाथा ,
को नया दर्पण दिया ।
नारी शक्ति अटल योद्धा ,
की अमर मिसाल वह ।
क्रांति देवी रूप में थीं ,
शत्रुओं का काल वह ।
निर्बल नहीं नारी कभी ,
संदेश दुनिया को दिया ।
गौरव बढ़ाकर देश का ,
यह विश्व में साबित किया ।
पिता का नाम: श्री अरूण कुमार श्रीवास्तव
माता का नामः श्रीमती गीता श्रीवास्तव
पति का नाम: श्री अरुण कुमार अस्थाना
जन्मतिथिः- 07.12.1973
जन्म स्थानः आलमनगर रोड ,बावली चैकी लखनऊ
सम्पादकीय कार्यः पृष्ठभूमि, उपभोक्ता क्रान्ति, अनमोल एक्सप्रेस पब्लिक पाॅवर न्यूज़ वेबपोर्टल में आर्टिकल राइटर।
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनः उत्तर प्रदेश मासिक, नया दौर उर्दू मासिक,बालवाणी हिन्दी संस्थान की पत्रिका, पत्रिका, अवधवाणी, पताहर सू0एवं0 जनसम्पर्क विभाग स्मारिका ,राहत टाइम्स, पृष्ठभूमि एवं साहित्यगंधा, अपरिहार्य, नूतन कहानियां, संकल्प, जनहित जागरण, ककसाड़ व विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशन, आकाशवाणी लखनऊ में युववाणी, कुम्भ दिग्दर्शिता 2019, कार्यक्रम में काव्य पाठ किया रेडियों में सम सामयिक परिचर्चा एवं वार्ता रेडियो से श्रमिक जगत कार्यक्रम में कहानियों का प्रसारण आदि।
-‘पृष्ठभूमि’ पाक्षिक पत्र में लेखनकार्य ।
-साप्ताहिक समाचार पत्र ‘शान्तिस्रोत’ की सम्पादकव 2010से निरन्तर प्रकाशन।
-‘अनमोल एक्सप्रेस’ सा0 समाचार पत्र मेंलगभग 5वर्षसेजुड़ीहूं।
-कई पत्र -पत्रिकाओं में सम्पादन का कार्यकिया।
-पब्लिक पाॅवर न्यूज़ वेबपोर्टल पर आर्टिकलराइटर के रूप में कार्यरत्।
-कई मंचांे पर राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ ।
-राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ
-दूरदर्शन द्वारा प्रसारित वन्समोर कार्यक्रम में काव्य पाठ।
-दूरदर्शन वाराणसी में काव्यपाठ।
-प्रतापगढ़ में सम्मानित
-लखीमपुर में साहित्य भूषण से सम्मानित
-लक्ष्य सांहित्य एवं संस्कृति संस्था द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक मेला2019 में सम्मानित ।
-कवितालोक संस्था द्वारा सम्मानित ।
नव सहानुभूति संस्था द्वारा सम्मानित।
- कवि कुम्भ दिल्ली में सम्मानित
-जी0डी फाउन्डेशन द्वारा राजस्थान में सम्मानित
-महिला मोर्चा मंच द्वारा सन् 2020 में महिला दिवस, मुम्बई में साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित।
-सन् 2020 निशंक सम्मान से सण्डीला में सम्माानित
-गोंडा में सन् 2020 साहित्य सेवा सम्मान से सम्मानित
शिक्षा- एम.ए. हिन्दी एवं समाजशास्त्र
-पोस्टगे्रजुएट डिप्लोमा इन मासकम्युनिकेशन, राजर्षि टण्डन मुक्त वि.वि. से किया ।
-मास्टर आॅफ जर्नलिज्म राजर्षिटण्डन मुक्त वि0वि0किया।
- एडवान्स डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन यूपीटेक लखनऊ से किया
-आई. आई. टी. राजाजीपुरम् से डी.टी.पी. किया ।
-पोस्ट गे्रजुएट डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन, राजर्षि टण्डन मुक्त वि.वि. से किया ।
-मास्टर आॅफ जर्नलिज्म राजर्षि टण्डनमुक्त वि0वि0 किया।
पुरस्कार व उपलब्धियां
-तुलसी शोध संस्थान द्वारा तुलसी गोष्ठी सम्मान रत्नावली दिया गया।कई संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र
-राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ व प्रशस्ति पत्र
अपने बारे में-विद्यालय के दिनों से ही मुझे बुद्धिजीवियों के बीच में रहना पसन्द रहा है। प्रारम्भ से ही कविता लिखने में रुचि रही है। संगीत में विशेष रुचि रही है। विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में निरन्तर भागेदारी रही। 10 वर्षों तक कई मंचों पर कार्यक्रम किया। वर्तमान में मुझे गद्य व पद्य दोनांे में लिखना रुचि कर लगता है। परिणामतः मुझे कहानी व कविताएं लिखना बहुत अच्छा लगता है। यह मेरी आत्मगत प्रवृत्ति है। मेरी आत्मीयता कविताओं में ज्यादा रही है।
प्रकाशित पुस्तक - उस पार तक, कवित संग्रह व सपनों सी ये धूप।
पता: 356/24 आलमनगर रोड बावली चैकी लखनऊ 226017 मो.ः9307197756, 8934884441
कविताये- 1
मिलती इतराती ये सदियां
चिड़िया पोखर झरने नदियां
मिलती इतराती ये सदियां
आओ फिर इक पर्व मनाएं
पर्यावरण को फिर बचाएं
रोपेे घर नया इक पौधा
फर-फर गौरैया का कौधा
बुलबुल का यूं चोंच लड़ाना
फूस-फूस घोसला बनाना
छप्पर तले घरौंदा होगा
थोड़ा-थोड़ा दाना होगा
सुबह नहा चिड़िया रानी
निमवा तले करंे नादानी
ताल -तलैया हर हरियाली
सरसों की फर बाली बाली
पंखों सी आशा फैंलायें
घिरती घटा घटाएं छायें
कविताये- 2
समझ न आया
निःसंदेह तुम्हंे है जब चाहा
मन भर के समझ न आया
सांझ ढले जब सूरज उतरा
सब पर पहरा होता होता
दिन धूमिल जब हो जाता है
मन न जाने उतराता है।
सावन आंगन तेरा दर्पण,
अन्र्तवेदो का वो अर्पण।
नयनों का वो आलिंगन,
नयन भरे करता क्रंदन।
भीगी पलके तुझको सोचंे,
तेरी हर खामोशी नोचें।
हृदय तंत्र का टुकड़ा होना,
टूटे बादल जैसा रोना ।
कविताये- 3
खूब चलाना साथियों
जीवन के इस पर्चे पर,
खूब सजाना साथियों।
नीर भरी है, ये कलम
खूब चलाना साथियों।
लिखेंगे हम उस दर्द को,
हृदय गार है साथियों।
लिखते-लिखते न घिसेगी,
खूब लिखेगी, साथियों।
चित्र भरे हैं कैनवास पे,
रचती रहेगी साथियों।
बोलो तुम लिखा मैं करूं,
जाग गयी है साथियों।
भूखे प्यासे सहमे मन की,
व्यथा कहेगी साथियों।
अत्याचार इस पीढ़ी का,
शब्द डसेगी साथियों।
मक्खन सी वो उतरेगी,
अलग दिखेगी साथियों।
प्रेम व्यथा की संगिनी,
प्रेमाकार है साथियों ।
कविताये- 4
बूंद
कैसी गहमा-गहमी है,
मां तेरा आकार बचे।
रक्त बूंद से सींचे जा,े
गर्भ गार की आह बच।े
उर में भरती प्रेम सुधा,
छाती भरती पेट है।
एक-एक फिर बूंद लगे
अमृत पर पराग झरा।
सीकर नयन सितारे से,
नयनों के गुलजारे से ।
बेटे को छाती से लगाया,
नीर भरे नयनो के पनारे
अम्मा कुठरी बैठी है,
जैसे पकीं अंगींठी है।
नीरव होता आंगन है ,
अम्मा का मन पावन है ।
कविताये- 5
अपना गांव
पनघट पर पनियारी छूटे,
छूटा मेरा अपना गांव।
चलते -चलते होंठ है सूख,े
कैसे मिले अब मेरा ठांव।
हाथ में गठरी ले सामान,
आखों से बह रहे हैं नीर।
काम धाम सब छूटा ऐसे,
रोये पेट भूख की पीर।
सन्नाटें ने लीला जिसको
सुख छीना दुःख है गंभीर
विश्व पड़ा अब संकट में
पाये प्राणी कैसे हो तीर ।
पड़ा पथिक कैसी ये विपदा,
धूप टेहता थकते पांव।
प्रेम पुजारी देश प्रजा सारी,
पहुंचा दे अब कोई गांव।
अलका अस्थाना
356/24 आलम नगर रोड बावली चैकी लखनऊ -226017
9307197756,8934884441
सेवा इंसान को बनाती महान
जग में सेवा करने वाले,
ही महान बन पाए हैं ।
मानो सेवा की खातिर ही ,
वह धरती पर आये हैं ।
मानव सेवा से बढकर ,
तो कोई कर्म नहीं है ।
मानवता से बढ़कर जग में,
कोई धर्म नहीं है ।
सेवा का है धर्म निराला ,
करो वतन की तुम सेवा ।
धरती मां की सेवा कर लो ,
करो गगन की तुम सेवा ।
कितने कंटक राह मिलें पर,
सेवा से घबराना ना।
यही कर्म है यही धर्म है ,
पीछे तुम हट जाना ना ।
मात पिता औ गुरु की सेवा,
सब संताप मिटाती है ।
सेवा बिन सारी पूजा भी ,
निष्फल ही हो जाती है ।
युगों युगों से गौ सेवा का ,
सुंदर नियम विधान रहा।
देव ,मनुज अरु मुनियों ने भी,
गौ सेवा को धर्म कहा ।
वृक्षों की सेवा से लेकर ,
पशुओं तक की सेवा को।
धर्म समझकर मीत निभाओ,
पा जाओगे मेवा को ।
सास ससुर और पति की सेवा,
सती सावित्री ने जब की।
काल देव भी कांप उठे तब ,
बदला विधि का नियम तभी ।
लक्ष्मण की सेवा से सीखो ,
सीखो श्रवण कुमार से ।
एकलव्य की सी गुरु सेवा ,
सीखो कुछ संसार से ।
सुषमा दिक्षित शुक्ला
रोम रोम में शिव हैं जिनके ,
विष पिया करते हैं ।
दुख दर्द जला क्या पाएगा ,
जो अंगारों से सजते हैं ।
मां सती बिछड़कर जब शिव से,
सन्ताप अग्नि में समा गई।
प्रायश्चित पूरा होते ही ,
फिर मिलन हुआ जब उमा हुई।
सागर मंथन का गरल पान ,
देवों को अमृत सौंप दिया ।
सोने की नगरी रावण को
खुद पर्वत पर्वत वास किया।
सारे जग को देखे वैभव ,
पर खुद वो भस्म रमाते हैं।
वो महाकाल,वो शिव शंकर,
वो भोलेनाथ कहाते हैं ।
सच्ची निष्ठा के बलबूते,
शिव शंकर का अनुराग मिले ।
फिर उनका तांडव क्रुद्ध रूप,
भोले भाले शिव में बदले ।
कुछ विधि का लिखा हुआ,
होता,कुछ कर्मो का फल होता ।
सब दुख भूलो शिव भक्त बनो,
वही है सबके परमपिता ।
रोम रोम में शिव है जिनके ,
विष वहीपिया करते हैं ।
दुख दर्द जला क्या पाएगा,
जो अंगारों से सजते हैं।
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
माता का नाम- श्रीमती उमादेवी पाण्डेय
पिता का नाम- स्व.श्री ब्रह्मानन्द पाण्डेय
जन्म तिथि - 05-10-1970
जन्मस्थान- ग्राम व पोस्ट -दरवाह,जनपद-मैनपुरी
शिक्षा- एम.ए. (अंग्रेजी,हिन्दी) बी.एड., पी-एच.डी.
लेखन विधा- गीत, ग़ज़ल,मुक्तक,व्यंग्य,छंद,हाइकु, लेख,
कहानी,उपन्यास,ब्लॉग,इंटरव्यू,समीक्षा आदि
प्रकाशित कृतियां-
आखिरी मुस्कान (सामाजिक उपन्यास)
बाँहों में आकाश ( सामाजिक उपन्यास)
मन की पाँखें (हाइकु संग्रह)
सम्पादित कृतियां-
शब्दाजंलि(अखिल भारतीय काव्य संकलन)
काव्यांजलि(माँ गंगा को समर्पित काव्य संग्रह)
सृजक (अंतरराष्ट्रीय काव्य संकलन)
काव्यकुल सृजन(कोरोना काव्य) ई बुक
सहयोगी संकलन-
मैनपुरी के साहित्य कार(सन्दर्भ ग्रन्थ)
अमर साधना( काव्य संकलन)
काव्य विविधा भाग 1( काव्य संकलन)
पीयूष(काव्य संकलन)
स्वागत नई सदी( अखिल भारतीय काव्य संकलन)
कुछ ऐसा हो( हाइकु संग्रह)
सदी के प्रथम दशक का हाइकु काव्य(हाइकु सन्दर्भ ग्रन्थ)
हाइकु विश्वकोश(हाइकु विश्व कोश सन्दर्भ ग्रन्थ)
सच बोलते शब्द(हाइकु संग्रह)
गा रहे हैं सगुन पंक्षी(काव्य संग्रह)
भारतीय साहित्यकार (हिन्दी साहित्य कोश,सन्दर्भ ग्रन्थ)
प्रयास ( हाइकु संग्रह)
आलेख समीक्षा-
* इदम इन्द्राय
*डॉ मित्र साहित्य अमृतम
*हिन्दी लघुकथा (प्रासंगिकता एवं प्रयोजन)
*डॉ मिथिलेश दीक्षित का हाइकु संसार आदि
महत्वपूर्ण ग्रन्थों में प्रकाशित
*कई महत्वपूर्ण ग्रन्थों की समीक्षा समय समय
पर पत्रिकाओं एवं वेवसाईट पर प्रकाशित
अन्य-
* यू के से प्रकाशित अंग्रजी लेखिका द्वारा रचित सुन्दर
काण्ड में सहयोग
* लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज मीडिया
डायरेक्टरी मीडिया कोश में सम्मलित
*आकाशवाणी एवं अन्य काव्य,भाषण आदि
प्रतियोगिताओं में निर्णायक,मुख्य अतिथि आदि की
भूमिका
उपसम्पादक-हरियाली दर्शन (मासिक)
* देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
*आकाशवाणी,एवं चैनल्स पर रचनाएँ प्रसारित
*यू ट्यूबपर चैनल
* कई वेबसाईट्स पर अनेकों रचनाएँ,समीक्षा
प्रकाशित
सामाजिक गतिविधियां
*विभाग संयोजक-संस्कार भारती ,गाजियाबाद
*राष्ट्रीय अध्यक्ष-काव्यकुल संस्थान (पंजीकृत)
*राष्ट्रीय महासचिव-अखिल भारतीय साहित्य सदन दिल्ली
*जिला कोषाध्यक्ष-उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद गाजियाबाद
*जिला कार्यकारिणी सदस्य-उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक
संघ गाजियाबाद
*सम्मान एवं उपाधियां-
1 अवधेश चन्द्र बाल कवि सम्मान (मैनपुरी)
2- प्रमुख हिन्दी सेवी सम्मान (गाजियाबाद)
3- मैथिली शरण गुप्त सम्मान(मथुरा)
4- ब्रजरत्न सम्मान (मथुरा)
5- साहित्य कार सम्मान ( मैनपुरी)
6- पत्रकार शिरोमणि सम्मान(मैनपुरी)
7- पत्रकारिता सम्मान( आज कार्यालय मैनपुरी)
8- दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान(राष्ट्र भाषा स्वाभिमान न्यास भारत गाजियाबाद)
9- डॉ भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप सम्मान(दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली)
10-हाइकु मञ्जूषा रत्न सम्मान(छत्तीसगढ़)
11- सर्व भाषा सम्मान 2018(सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली)
12- संस्कार भारती गाजियाबाद द्वारा सम्मानित
13-डॉ सत्य भूषण वर्मा सम्मान( के बी हिंदी साहित्य समिति बदायूँ)
14-नेपाल भारत साहित्य रत्न सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, बीरगंज नेपाल)
15-नेपाल भारत साहित्य सेतु सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, नेपाल)
16-हैटोडा साहित्यिक सम्मान सम्मान( हैटोडा अकादमी हैटोंडा,नेपाल)
17-क्रांतिधरा अंतर्राष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान (2019) मेरठ
18-भगीरथ सम्मान (संस्कार भारती गाजियाबाद)
19-डॉ हेडगेवार सम्मान (गाजियाबाद)संस्कार भारती गाजियाबाद
20-राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान (अखिल भारतीय चिंतन साहित्य परिषद मैनपुरी)
21-अटल शब्द शिल्पी सम्मान 2018(काव्यकुल संस्थान पंजी.) गाजियाबाद
22- लक्ष्मी हरिभाऊ वाकणकर साहित्य सम्मान2019,संस्कार भारती गाजियाबाद
23एक्सीलेंस इन टीचिंग एन्ड लर्निंग एवार्ड 2019 गाज़ियाबाद
24-सारस्वत सम्मान(बरेली)2019
25-काव्य गौरव सम्मान 2020,अनन्त आकाश हिंदी साहित्य संसद वाराणसी
26-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान,काव्य रंगोली संस्था शहाजंहापुर 26अप्रेल 2020
27, सहभागिता सम्मान,काव्य रंगोली,9 अप्रेल
28-अभिनन्दनपत्र,26 अप्रेल,2020, माँशकुंतलादेवी साहित्य एवं कला संस्थान,अजमेर
29 - काव्यकला सम्मान-काव्य कला निखार साहित्य मंच,सीतापुर अप्रेल2020
30- अभिनन्दन पत्र , 10 अप्रेल 2020,माँशकुंतलादेवी साहित्य एवं कला संस्थान,अजमेर,
31-कोरोना वॉरियर्स समाज सेवा सम्मान,माँशीला देवी जनसेवा ट्रस्ट मथुरा, 2020
32- सम्मान पत्र-त्रिसुगन्धि साहित्य,कला,एवं संस्कृति संस्थान जोधपुर,राजस्थान
33-साहित्य साधना सम्मान-श्रेयस एवं नीला जहान वाटर फाउंडेशन लख़नऊ 20 मई 2020
34 साहित्य प्रशस्ति पत्र-काव्य संसद(साहित्य(समूह) 10 मई 2020
35-,भारत संचार सम्मान 2020,उच्च स्तरीय दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र गाजियाबाद,2फरवरी 2020
36,से44- राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास भारत के अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन में निरन्तर प्रशस्ति पत्र
आदि अनेकों सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र
*सह सम्पादक -हरियाली दर्शन (मासिक)
*सम्प्रति- प्रधानाचार्य
किसान आदर्श हायर सेकेंडरी स्कूल शाहपुर बम्हैटा गाजियाबाद
पता- 1323/भूतल सेक्टर 2 वेवसिटी गाजियाबाद
मोबाइल -9990650570
ईमेल -dr.rajeevpandey@yahoo.com
*वन्दन बारम्बार*
मात शारदा के चरणों में ,वंदन बारम्बार।
अल्प बुद्धि से कारक बनकुछ,कर पाऊं उद्धार।
मेरा नमन हजारों बार।
बुद्धि शून्य है रिक्त पटल है।
लिखने को ये मन विव्हल है।
तेरे दर पर ढूँढ़ रहा माँ ,
अब याचक बन इसका हल है।
सुप्त ह्रदय के तारों में कुछ,भरदो अब झनकार।
अवरुद्ध कंठ है शुष्क अधर।
घोर तमस के जंगल में घर।
आशा का मृग रहा खोजता
पर कस्तूरी मिले किधर।
ममता के आँचल से खोलो,कुंडलियों के द्वार।
सकल विश्व ढूँढे सुख भौतिक।
उसमें अदृश्य प्रेम अलौकिक।
नैराश्य भाव के सघन तिमिर में
प्रकट करो मुरलीधर यौगिक।
भोग विलासी मन में भर दो,करुणा का संसार।
स्वार्थ सिद्ध से युक्तआचरण।
उसमें खोया प्रेम व्याकरण।
नयनों की कह रही पुतलियां,
इनका कैसे हटे आवरण।
विकृतियों के घोर तिमिर में,दो रसमय संसार।
*आशा के दीप जलायें*
घोर तिमिर के इस जंगल में,मंगल गीत सुनायें।
आशा के दीप जलायें।
शक्ति पुंज का उदघाटन है।
अपनी क्षमता का मापन है।
संयम धैर्य पराक्रम देता,
काल दूत को ये ज्ञापन है।
अंतर्निहित शक्तियों को हम, ये विस्वास दिलायें।
आशा के दीप जलायें।
क्रंदन वन में प्रेम जागरण।
सम्बल पाये यथा आचरण।
अकुलाहट को भान कराये,
अनुभावों का मौन व्याकरण।
तीर्थधाम चौखट पर अपनी,नित अम्बर शीश झुकायें।
आशा के दीप जलायें।
प्रस्फुटन हो मौन शक्ति का।
नूतन जाग्रत नेह भक्ति का।
दूर क्षितिज तक खड़े शत्रु में
प्राकट्य हो उर आसक्ति का।
ज्योतिपुंज का देख प्रज्ज्वलन,रजनीकर भी सकुचायें।
आशा के दीप जलायें।
खड़गों से सर्वत्र विभाजन।
विवश भाव का है अनुपालन।
प्रेम अंकुरण ही वसुधा में,
प्रमुदित करते जीवन यापन।
दिव्य ज्योति के आल्हादन से,अन्तस का तमस मिटायें।
आशा के दीप जलायें।
*पुरानी यादें यार*
आओ कुछ ताजा कर ले, पुरानी यादें यार।
कागज की फिर तैर उठें, पानी पर पतवार।
घर चौबारे धमा चौकड़ी,लुका छिपी के खेल।
और रबड़ की गेंद बनाकर,पीठ पे जाते झेल।
टुकुर टुकुर जब टेसू देखे, सकुचायी झेंझी,
प्रेम की बाती जल जाती थी,बिन बाती बिन तेल।
रोम रोम पुलकित हो जाता,जो खेले नदिया पार।
आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।
आँखे तो बस देख रहीं है,बौर लगी अमियाँ,
कुछ तो खुद हम खा जाते ,कुछ छीनें छमियाँ।
बालसखा तो अक्सर कुढ़कर, चुगली कर आता,
सिट्टी पिट्टी जब गुम होती, गरियाती धनियां।
कान पकड़कर हम दोनों जब,करते थे मनुहार।
आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।
बरफ चूसने आ जाती थी,गलियों में टोली
चोरी चोरी अपने घर से, भर भर कर झोली।
कितनी बार पकड़ जाते थे,अक्सर दालानों में
जहाँ बैठकर चूस रही थी, मेरे संग भोली,
भूत प्रेम का भग जाता था,खा मम्मी की मार।
मम्मी की डंडी से भगता,चढ़ा प्रेम का ज्वार।
आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।
चढ़े टाँड़ पर खेत रखाने,मक्का की अड़ियां।
हाथों खिंची गुलेल देखकर,उड़ जाती चिडियाँ
उसी टांड़ पर जब रम जाता,कृष्ण राधिका रास,
कौए सूए देख खुश होते,मेरी गलबहियाँ।
बापू सोटा ले पिल जाते,सुनते नहीं पुकार।
आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।
पट्टी पर अंकित होते थे, सोने से अक्षर।
बारहखड़ी पहाड़ों में भी,थेअब्बल अक्सर।
लड़के और लड़कियोंके संग,इंटरवल में हम,
पीछे लगी नदी में कूदें,समझ तीर्थ पुष्कर।
लिए गुरुजी डंडाआयें,सुनकर चीख पुकार।
आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।
*हम उनको नमन करें*
पंचतत्व से निर्मित काया
सुन्दर तन मन जीवन पाया
रोम रोम है ऋणी तुम्हारा
रग रग में अस्तित्व समाया
वही सृजन के बीज आज तक, महक रहे हैं इस उपवन में।
हम उनको नमन करें।
जीवन की हर कला सिखायी,
दुनिया दारी भी समझायी,
कदम हमारे बहक गये तो,
आगे बढ़ उंगली पकड़ायी।
कठिन परीक्षा के जीवन में, बड़ी भूमिका संसोधन में।
हम उनको नमन करें।
कंधों पर सब नगर घुमाया,
मुश्किल पथ को सुगम बनाया
बालक मन ये रूठ न जाये
घोडा बनकर तभी खिलाया
डांट डपट के साथ साथ में,प्यार मिला था सम्बोधन में।
हम उनको नमन करें।
पीडाओं को हरने वाले,
सब जिद पूरी करने वाले,
इस जीवन के आलेखन में
रंग अनोखे भरने वाले,
हमें सिखाया बात बात में,चूक न हो जीवन यापन में।
हम उनको नमन करें।
पंचतत्व से निर्मित काया
सुन्दर तन मन जीवन पाया
रोम रोम है ऋणी तुम्हारा
रग रग में अस्तित्व समाया
वही सृजन के बीज आज तक, महक रहे हैं इस उपवन में।
हम उनको नमन करें।
जीवन की हर कला सिखायी,
दुनिया दारी भी समझायी,
कदम हमारे बहक गये तो,
आगे बढ़ उंगली पकड़ायी।
कठिन परीक्षा के जीवन में, बड़ी भूमिका संसोधन में।
हम उनको नमन करें।
कंधों पर सब नगर घुमाया,
मुश्किल पथ को सुगम बनाया
बालक मन ये रूठ न जाये
घोडा बनकर तभी खिलाया
डांट डपट के साथ साथ में,प्यार मिला था सम्बोधन में।
हम उनको नमन करें।
पीडाओं को हरने वाले,
सब जिद पूरी करने वाले,
इस जीवन के आलेखन में
रंग अनोखे भरने वाले,
हमें सिखाया बात बात में,चूक न हो जीवन यापन में।
हम उनको नमन करें।
*दोहे*
वृद्ध सिंह को देखकर,गीदड़ बदलें सोच,
सूर्यप्रभा को दे रहे,किरणों का उत्कोच।
कम्पन में पाये गये, प्रतिज्ञा के भी पाँव।
निष्ठा पर भारी पड़ा,शकुनी का हर दाँव।
चौसर पर जबसे लगा,नारी का व्यक्तित्व।
खतरे में ही आ गया, लज्जा का अस्तित्व।
सिंघासन पर हो गयी,आकांक्षा आरूढ़।
उसे बचा भी ना सका,विदुर ज्ञान भी गूढ़।
हठधर्मी ने लिख दिया,भीषणरण कुरुक्षेत्र।
अंधे देखें झांककर, संजय के ही नेत्र।
सौंगन्धो के वश हुए,कहीं शिखा अरु केश।
युग की जंघा तोड़कर, बदल दिये परिवेश।
डॉ राजीव पाण्डेय
1323/भूतल,सेक्टर-2
वेबसिटी, गाजियाबाद
उत्तर प्रदेश
मोबाइल-9990650570
ईमेल-kavidrrajeevpandey@gmail.com
प्रिया चारण
माता- निर्मला चारण
जन्म तिथि- 8 /7/1999
उम्र- 21
जन्म स्थान - नाथद्वारा राजसमंद राजस्थान
पता - कृष्णा कॉलोनी उपली ओडन नाथद्वारा
(राजसमंद) राजस्थान
स्थाई पता - गड़वाड़ा ,भीमल मावली, उदयपुर राजस्थान
छात्र- बी.एस.सी कृषि विज्ञान
रुचि- नृत्य ,कविता लेखन, सामाजिक कार्य
NCCकैडेट , STV सेवक
कुछ चंद शब्द आपके चरणों मे प्रस्तुत।
शीर्षक ~ फिर से सतयुग आएगा
फिर से सतयुग आएगा ,
भारत विश्व विजेता कहलाएगा ।।
कोरोना का कहर पडोसी देश बरसाएगा ।
जनता कर्फ्यू वायरस की चैन तोड़ जाएगा।
फिर से सत्ययुग आएगा,भारत...
तीसरा विश्व युद्ध "बायो वॉर" ही जाना जाएगा ।
संसार में हा हा कार मच जाएगा ।
एक वायरस लाशो के ढ़ेर लगाएगा ।
फिर से सतयुग आएगा,
भारत विश्व विजेता कहलाएगा ।।
भारत विश्व गुरु का ओहदा पाएगा ।
इटली लाशो से भर जाएगा ।
भारत की संस्कृति हर देश अपनाएगा ।
नमस्ते को अपने आचरण में लाएगा ।
फिर से सतयुग आएगा,
भारत विश्व विजेता कहलाएगा।
हर कोई अपने घरो में छिप जाएगा ,
झरोखे से नजरे फहराएगा ।
हिंदुस्तान फिर से हिन्दू संस्कृति अपनाएगा ।
राम मंदिर का कार्य चला है ,
राम राज्य भी आएगा ।
फिर से सतयुग आएगा ,
भारत विश्व विजेता कहलाएगा ।।
प्रिया चारण
शीर्षक- समंदर के शहजादे
हम समंदर के ,शहजादे
धरती पर भी फर्ज निभाते है ।
हम अरिहंत चक्र से, समंदर की गहराई नाप आते है।
हम क्षितिज से भी ,बाते साथ ही कर जाते है।
हम विक्रमादित्य सी दुनिया, समंदर के सीने पर बसाते हैं।
हम 1 राज नेवल एन.सी.सी के कैडेट कहालाँते है।
जो हिन्द के कठिन समय में अपनी परवाह किये बिना ,,
कोरोना योद्धाओं के साथ कंधे से कंधा मिलते है।।
हम समंदर के शहजादे।
धरती पर भी फर्ज निभाते हैं
दुश्मन या कोरोना क्या हमे कफन पहनाएगा-2
हम तो खुद कफन का रंग शोख से चुन आते है।
हम तिरंगे के तीन रंगों से सफेद रंग चुन आते है।
हमे किसी ओर रंग की चाह नही,,
हम तो इसी पर जान लुटाते है
हम शहादत को गले लगाते है।
कफन को भी वर्दी समझ पहन जाते है।
तभी तो हम भारतीय नौसेना कहलाते है।
हम समंदर के शहजादे
धरती पर भी फर्ज निभाते है
"Ncc"के हम नन्हे कैडेट कमजोर न समझना हमे कोरोना
हम भी उसी पेड़ के पत्ते है,,
सोचो हम अगर मिलकर लड़ने आएंगे ,
तो कितना तुज पर कहर बरसाएंगे।
मोदी जी की अपील का अब परिणाम दिखलाएंगे।
हम समंदर के शहजादे
धरती पर फर्ज निभाएंगे।।
वक्त आया है चलो तुम भी आओ,
कंधो से कंधा मिलाओ ,कदमो से कदम मिलाओ,,,,
चलो पुलिस ,सफाईकर्मी ,बैंकर और
हर नागरिक के संम्मान में तिरंगा फहराते है।
हम समंदर के शहजादे ,
धरती पर भी फर्ज निभाते है ।।
प्रिया चारण
शीर्षक ~" में लिखने का शोक रखती हूँ "
में लिखने का शोख रखती हूँ ,,।
पर क्या? लिखूं , लिखने से डरती हूँ,,।
मैं अपने कुछ जज़्बात अपने अंदर ही रखती हूँ ।
ल मैं लिखने से डरती हूँ , पर अंदर ही अंदर ,
सबसे छिपकर छिपाकर इतिहास रचती हूँ ।
मैं लिखने का शोक रखती हूँ ,,।
पर क्या ?लिखूं लिखने से डरती हूँ ।
मैं हर रोज़ उडान तो भरती हूँ, पर ज़माने से डरती हूँ ,,,।
क्या कहेंगे लोग, यहाँ सबकी है ,यही सोच
इस सोच से हर शाम बिखरती हूँ ।।
में लिखने का शोख रखती हूँ,
पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ,,।।
मैं खुदको हार कर भी,
दुनिया को जीतने का शोख़ रखती हूँ ।
नन्ही चिड़िया सी हुँ , घोसले को खोने से डरती हूँ ,,,
फिर भी दाना लेने को हर सवेरे उडान भरती हूँ ।।
मैं लोखन का शोख़ रखती हूँ
पर क्या? लिखूं लिखने से डरती हूँ ।।
प्रिया चारण
शीर्षक ~ देश हित
देश हित मे कुछ करे ।।
चलो आओ थाली भी बजाले ,ताली भी बजा ले,
अब चिताए नही, कुछ होसलो के दिये जला ले,
चलो थोड़ा मुस्कुराकरा ले,
चलो मजहब को पीछे छोड़ ले ,
चलो एक बार इंसानियत का नाता जोड़ ले,
चलो अजान से लेकर मंदिर की घण्टी ,अपने घर मे बजा ले
चलो चर्च की मोमबत्ती से लेकर,
गुरिद्वारे का लंगर ,किसी गरीब के घर मे करादे,,
चलो सारि राजनीति से ऊपर उठ कर,
एक बार मोदी जी का साथ निभा ले ,,,
चलो इस बार कागज के टुकड़े छोड़
अपना देश और अपनी जान बचा ले,
चलो जय हिन्द केे नारे लगाते है।
हम भी भारत के चौकीदार बन जाते है ।
चलो देश के प्रति अपनी देश भक्ति दिखाते है।
चलो प्रकृति को स्वयं स्वच्छ होना का अवसर दे ,,
लॉकडौन का पालन स्वयं कर अपने परिजनों से करा लें,
चलो देश हित मे कुछ करे।
देश हित मे कुछ करे ।।
प्रिया चारण
शीर्षक ~ नारी करुणा का ज्ञान
नारी करुणा का ज्ञान, प्रेम का रसपान ।
नारी वीरता का जीता जागता प्रमाण ।
नारी विश्व विख्यात ज्ञान ।
नारी सहन शक्ति का परिणाम ।
नारी हर कार्य का विस्तार ।
नारी शक्ति का वर्चस्व है,अपार ।
नारी करुणा का ज्ञान, प्रेम का रसपान ।।
नारी दो कुलो को जोड़ती, प्रेम का धागा बन ,
परिवार के हर मोती को पिरोती,
पर आँख में आंसू आए तो ,
किसी कोने में अकेली ही, है रोती ,,,।
नारी करुणा का ज्ञान ,प्रेम का रसपान ।।
माँ ,बहन, बहू ,बेटी ,पत्नी सभी रिश्ते एक साथ
अपनी हर खुशी से सींचकर निभाती,, ।
पर न जाने क्यू सम्मान नही है,वो पाती,,,
जगत जाननी माँ अम्बे गौरी क्यू
सिर्फ नवरात्रि में ही पूजी जाती,,,
क्यों कन्या भ्रूण हत्या के समय
वो तस्वीर किसीको नजर नही आती।।
नारी करुणा का ज्ञान , प्रेम का रसपान ।।
*मत कहो मत करो कि आ "कॅरोना" मुझे मार।।।।।।।।।*
बाहर निकलने से पहले सोचो
जरा एक बात जरूरी।
क्या जिंदा रहने से भी ज्यादा
जरूरी है कोई मजबूरी।।
संक्रमण चरम पर और अभी
है बचना आवश्यक।
जाना यदि आवश्यक तो रहे
सदैव दो ग़ज़ की दूरी।।
धैर्य रखो कि देखते देखते यह
वक़्त भी निकल जायेगा।
छंट जायेगा अंधेरा और फिर से
वही उजियारा छायेगा।।
हर तरफ खोज जारी है मानवता
को बचाने के लिए।
हमारे कॅरोना योद्धायों का अथक
परिश्रम रंग लेकर आयेगा।।
कोई भी दुःख आता जीवन में कुछ
अलग सिखाने के लिये।
क्या हो रहा था धरती पर गलत ये
सब कुछ बताने के लिये।।
कुछ बदलाव होते बहुत जरूरी हर
संकट हमें बतलाता है।
बदलें देश समाज को ये बात जरूरी
हमें समझाने के लिये ।।
*रचयिता।एस के कपूर"श्री हंस"*
*बरेली।*
*मोब।।* 9897071046
8218685464
*"तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को"*
**************************
(लावणी छंद गीत)
**************************
विधान- १६,१४ मात्राओं के साथ ३० मात्रा प्रतिपद। पदांत लघु गुरु का कोई बंधन नहीं। युगल पद तुकबंदी।
**************************
●धरा कहे सरसा दो जल से, वासव! मम उर-अंतर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
नीर-दान दे आज सँवारो, मेरे तन-मन जर्जर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
●मेरा तप कब होगा पूरा? हे घनवाहन! बतलाना।
खंजर-दाघ-निदाघ भोंक अब, छलनी और न करवाना।।
व्याकुल होकर आज धरा है, करे पुकार पुरंदर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
●कृष्ण-मेघ बरसोगे कब तुम? मुझको कब सरसाओगे?
तृषित चराचर चित चिंतन को, बोलो कब हरसाओगे??
करो वृष्टि अब सृष्टि तृप्त हो, रच भू-गगन स्वयंबर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
●नित उजाड़ शृंगार धरा का, हरियाली को तरसेंगे।
बची रहेगी अटवी अपनी, बादल भी तब बरसेंगे।।
देखे मन मारे महि-मीरा, अपने अंबर-गिरधर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
●जीव जंतु नग नदियाँ घाटी, तरस रहे हैं पानी को।
प्रतिबंधित अब करनी होगी, मानव की मनमानी को।।
ताप नित्य बढ़ता है वैश्विक, ज्ञान गहो अब उर्वर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
●आये दिन यह मानसून भी, अब धोखा दे जाता है।
हाल हुआ है बद से बदतर, फाँसी कृषक लगाता है।।
त्राहिमाम भू कहती "नायक", पुकारती है ईश्वर को।
तपती धरती तपस्विनी सी, ताक रही है अंबर को।।
**************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
**************************
मेरे ख्वाबों में अक्सर ही, उसका लगता डेरा है।
मेरा ना होकर जाने क्यों, फिर भी लगता मेरा है।।
छुपा हुआ है दिल में या तो, आसपास ही लगता है,
नजर नहीं आता है छुप-छुप, वह ठग मुझको ठगता है,
मैं महसूस उसे करती हूं,हर पल इन्हीं हवाओं में,
मैं जगती हूं उसकी खातिर, शायद वह भी जगता है,
उसकी यादों ने चौतरफा, हर पल मुझको घेरा है।
मेरा ना होकर जाने क्यों, फिर भी लगता मेरा है।।
नैनों के रास्ते से होकर ,मेरे दिल में उतर गया,
खुशबू बनकर आसपास वो,जैसे मेरे बिखर गया
बाहों में भर लेती हूं मैं, हर पल उसे खयालों में,
सोच सोच कर मेरा चेहरा, कुंदन जैसा निखर गया,
इक पल भी उसको भूलूँ तो, दिन भी लगे अंधेरा है।
मेरा ना होकर जाने क्यों, फिर भी लगता मेरा है।।
अपनों से भी बढ़कर के वो, लगता है मुझको अपना,
सच से भी ज्यादा मुझको, भाता है यह उसका सपना,
हर दिन हर पल झुलसाती हूँ,मैं अपने इस तन मन को,
उसकी यादों की भट्टी में ,अच्छा लगता है तपना,
अपनी आभा को अपना लो,अब भी बहुत सवेरा है ।
मेरा ना होकर जाने क्यों, फिर भी लगता मेरा है।।
*गीत*(पावस)
होता बड़ा है दिलकश,बरसात का मौसम,
पायल की छमा-छम,लगे बरसात झमा-झम।।
माटी की सोंधी खुशबू, की बात क्या करें,
खुशबू के घर में जैसे,छा जाता है मातम।।
प्यासी धरा प्रफुल्लित, मर जातीं गर्मियाँ,
निरख प्रवाह जल का,किसान भूले ग़म।।
चारो तरफ़ हरीतिमा,छा जाती खुशनुमा,
धानी चुनर में धरती सज जाती चमाचम।।
संगीत-गीत पावस,लेता है दिल चुरा,
लगता है बजने मीठा,ये झींगुंरी सरगम।।
झूले से सज हैं जातीं,वृक्षों की टहनियाँ,
सब झूलते हैं झूला,गा कजरी मनोरम।।
मोरों के भाव नर्तन,लख मोहिनी अदा,
बादल पिघल के करते,सूखी धरा को नम।।
बैठी हुई निज कक्ष में,मायूस नायिका,
प्रियतम को दे संदेश,मेघों से हो विनम्र।।
बरसात पे ही होती,आश्रित ये जिंदगी,
पावस ही करती दाना,-पानी का उपक्रम।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
भूख दुनियां के क्या -क्या
रंग ,रूप,राह दिखती ।
कभी रुलाती कभी हंसाती
भूख रोटी कि जाने क्या क्या
दिन दिखती।।
भूख इंसान को जाने कौन से दर भटकाती।
भूख इंसान को ताकत का मशीहा ,कमजोर बनती।
भूख जिंदगी कि मंजिल मकसद बताती।।
भूख शौख भी ,भूख जिंदगी ,
भूख भय ,दहसत ,कहर, कोफ़्त
बन जाती।
शोहरत कि भूख इंसान को देवता,
शैतान बनती ।।
दौलत कि भूख इंसान को चोर,
बेईमान बनाती।
भूख रोटी कि जिंदगी कि सांसो
धड़कन के लिये जरुरी।
जूनून भी भूख चाहतो कि
मोहब्बत ,दुनियां, संसार हासिल का दीवाना गुरुरि।।
परवानो कि तड़फ इश्क के अश्क रुलाती हंसती।
आरजू कि मंजिल कि भूख
नज़रों के इंसान को अँधा बनती।।
सरहदों पे दिन रात मरता है
जवान वतन पे मर मिटने का
जज्बा भूख जागती।
मर जाता वतन पे ,कफ़न तिरंगे का ओढ़ भूख जवाँ के जज्बे को
अमर शहीद बनती।।
भूख आग है ,जिसकी लपटों में दुनियां जल जाती।
भूख भयंकर क्रांति कि ज्वाला,
भूख शांति का पैगाम सुनाती।।
भूख एक मशाल है दुनियां में
मिशाल बनती ।
पेट कि आग भूख है
ख्वाहिसों ,चाहतो का हद जुनूं
भूख है।।
भूख क्रोध, काल जागती
भूख भ्रम का भयंकर बनाती
भूख करुणा, दया का पात्र
बनती।। छुधा से भूख कि शुरुआत
भूख अग्नि है ,भूख चाहत जूनून है।
भूख मकसद कि महिमा का ज्वलित ,प्रज्वलित प्रवाह है ।।
भूख हुस्न ,इश्क कि इबादत ,
भूख जज्बात ,भूख कर्म है ,भूख धर्म है ,भूख काम ,भूख आम है,
प्राणी प्राण है।।
भूख गम ,ख़ुशी ,आसु ,मुस्कान
छुधा कि भूख मिटाने में प्राण प्राणी परेशान है।
छुधा कि भूख शांत होते ही
तमाम भूखो कि आग कि लपटों में झुलसता प्राणी प्राण है।।
भूख कि रोटी या मकसद कि भूख दोनों ही में प्राणी के प्राण है।
रोटी कि भूख जिंदगी ,मकसद कि भूख जूनून ,पागलपन ,दीवानापन जिंदगी की पहचान है।।
दोनों ही जिंदगी के लिये जरुरी
दोनों से ही मिलती प्राणी कि जिंदगी प्राण पहचान ।
दोनों में ही जिंदगी प्राणी प्राण की
आदि ,मध्य ,अनंत यात्रा का महाप्रयाण है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
एक कविता
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
विषय:- 'कलमकार'
राष्ट्र धर्म के पथ पर चलता
कर्तव्यनिष्ठ अडिग मैं रहता
सजग राष्ट्र का पहरेदार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।.....
कलम को हथियार बनाता
शब्दों में मारक क्षमता लाता
मैं समाज का जिम्मेदार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।........
इतिहास हमें है बतलाया
जब राष्ट्र पर संकट आया
तब-तब बना स्तम्भकार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।.......
पीड़ित होता शोषित-वंचित
श्रमिक सर्वहारा अपवंचित
कलम बनाता हथियार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।......
आतंकवाद व नस्लवाद से
भ्रष्टाचार व जातिवाद से
करता सबको खबरदार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।......
मानवता को पोषित करता
सर्वधर्म को पुष्पित करता
सर्व दृष्टि में असरदार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।.....
मैं समाज का चित्तवृत्ति हूँ
उसका संचित प्रतिबिम्ब हूँ
शिक्षित हूँ और सदाचार हूँ,
क्योंकि मैं कलमकार हूँ।....
मौलिक रचना -
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
महराजगंज, उ० प्र०
मो० नं० 9919886297
ख्वाब,
जो आँखों मे आता है
सोने के बाद,
इसके बहुत सारे प्रकार होते हैं
जैसे मीठे ख्वाब, कडवे ख्वाब, स्वादिष्ट ख्वाब, नमकीन ख्वाब, डरावने ख्वाब, मनभावन ख्वाब, इत्यादि।
पर सभी प्रकार के ख्वाबों में एक चीज समान होती है
और वो ये की इनको सोने के बाद ही देखा जा सकता है।
पर इस ब्रह्मांड में कुछ ऐसे भी विचित्र प्राणी होते हैं
जो बिना सोए ख्वाबों की दुनिया मे चले जाते हैं
ऐसे विचित्र प्राणियों को
मूल रूप से आशिक कहा जाता है
जिनको इस दुनियां के मोह माया से कोई मतलब नहीं होता।
वैसे इनको मतलब तो और भी किसी चीज से नहीं होता।
ये प्राणी लगभग 15 से 30 साल की उम्र तक ही ज्यादातर पाए जाते हैं।
ये प्राणी धर्म, मजहब, सम्प्रदाय, और जाति का भेद न कर के
सबको एक समान ही देखते हैं।
अगर यू कहा जाए कि ये किसी को नहीं देखते तो भी अनुचित नही माना जाना चाहिए।
इन प्राणियों की खास निसानी ये है कि समाज के लोग इनको नकारा,निक्कमा,बेकार,आवारा,लोफर, समझते हैं।
इनकी एक अलग ही बिरादरी होती है।
जिसमे इनको बहुत सम्मान की नजर से देखा जाता है।
इन प्राणियों के कुछ खास गुण भी होते हैं जो इस प्रकार है।
ये बिना किसी काम के बैठे बैठे किसी की ख्वाबों में खोए आराम से दिन गुजार सकते हैं।
इनका सबसे बड़ा और एकलौता ख्वाब होता है
अपनी महबूब की आँखों, बाहों, केसों में सदा रहने की।
खैर ऐसे प्राणी भी आज के इस सोसल मीडिया के जमाने मे धीरे धीरे विलुप्त हो रहे हैं।
और उसका कारण है सोशल मीडिया,
क्योंकि हर समय लोगों को लोगों के बारे में जानने की इक्षा रहती है
जिससे लोग झूठ भी बोलने लगे हैं
और लोगों के व्योहार में तो असमान्य बदलाव आया है।
इस बदलाव से ख्वाब पर बहुत बुरा असर हुआ है
और आज कल लोग ख्वाब देखना कम और वीडियो चैट ज्यादा करने लगे हैं।
अब इस दौर में कोई ख्वाब की बात करता है तो मुझे ये याद आता है।
मोबाइलों के दौर में ख्वाब की बात करते हो सम्राट,
नशे में हो या यहाँ की आबो हवा से कोसों दूर हो।।
©️सम्राट की कविताएं
बचपन -
चढ्ढी पे गंजी एक पैर चप्पलें नहीं।
धूप लू बयार हो कुछ भी खलें नहीं।
बालू में जलें पैर तो उपचार था गजब।
दौड़ो, खड़े हो घास पर तो पग जलें नहीं।।
सुनकर कड़क नगाड़े की घर से निकल गए।
नौटंकी देखने को हो के बेअकल गए।
अाया मजा तो रात बैठ देखते रहे।
लौटे तो डर से देह के कलपुर्जे हिल गए।।
सोंचा ये दांँव पेंच गाय खोल चल पड़े।
उसको चराने घात लगा कर निकल पड़े।
गाय पड़ी खेत में हम नींद में गाफिल।
मारे पिताजी लात मेंड से फिसल पड़े।।
गेहूंँ कभी नसीब जाग जाए खाइए।
जौ सात माह डाल पेट में पचाइए।
बाकी तो श्यामरंग की बजड़ी बहार थी।
रोटी से ऊब भात या खिचड़ी बनाइए।।
आए कोई मेहमान तो मिलती थी मिठाई।
वरना तो रोज होती थी गुड़ की ही खवाई।
भेली से बड़ा प्यार था थी जानेमन वही।
मांँगे नहीं मिलती थी तो जाती थी चुराई।।
घर में था अन्धकार छोंड़ि हाथ डाल के।
हम हो गए मगन बड़ी भेेली निकाल के।
मालुम नहीं था झाड़ू वहीं माँ लगा रही।
खांँसी तो भाग हम चले भेली उछाल के।।
स्कूल में पढ़ाई कम थी मार अधिक थी।
सिर पे सरस्वती मेरे सवार अधिक थी।
संस्कृत के शब्दरूप में जरा सी गड़बड़ी।
तो चार छड़ी एक साथ धार अधिक थी।।
चारे को बाल खेत का भी काम किए हैं।
सोकर उठे तो खेत में विश्राम किए हैं।
आए नहाए खाए फिर स्कूल पहुंँचकर।
गुरुवर इनाम छड़ी से तमाम दिए हैं।।
घर आने पर ट्यूशन की क्लास लेते पिता जी।
खुद लेटते पैताने जगह देते पिता जी।
पूछे जो उसमें एक का जवाब न दिया।
तो जोड़ा लात तान हचक देते पिताजी।।
पुरखे मनुज के कीस थे साबित गलत हुआ।
थे डार्विन खबीस तो साबित गलत हुआ।
हमको दुलत्तियों से यही ज्ञान मिला है।
शायद गधे थे कपि थे ये साबित गलत हुआ।
बचपन जो गया बीत अगर लौट आयेगा।
फिर से पढ़ो लिखो यही पैग़ाम लाएगा।
पर जो चलाते थे पिताजी लात औ जूते।
उसको बताओ अा के किसका बाप खाएगा।।
" आपसी सहयोग "
इंसान अकेला रहकर समग्र कार्य नहीं कर सकता
कहावत है न-अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
जीवन में आपसी सहयोग अत्यंत जरूरी है वैसे ही जैसे
अनेक फूलों को धागे में चुनें तो माला बनती है
परस्पर होता है सहयोग तो मुश्किलें आसान होती हैं
फिर जो चाहे सभी तो मरुधरा में भी नदियाँ बहती हैं
इंसान अगर मिल जाये तो आसमान भी छोटा है
जीवन में आता हर क्षण खुशियों का स्त्रोता है
सहयोग रहे सबका तो हर मुश्किल आसान है
सागर, पर्वत भी फिर उसके लिए लांघना आसान है
मिले देव-दानव जब तो मिलकर किया सागर मंथन
निकली अमूल्य वस्तुएँ मंथन से संसार के लिए चिरन्तन
एक- एक सैनिक जब मिलता सैन्य टुकड़ी बन जाए
सीमा पर आपस में मिल दुश्मन के छक्के छुड़ाएँ
मिलता जब सहयोग तो एक औऱ एक ग्यारह बन जायें
सब मिल नए समाज की नींव रख रामराज ले आयें
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
*कृष्ण नगरी मथुरा पर हाइकु*
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*इस हाइकु के माध्यम से आप सम्पूर्ण मथुरा के दर्शन कर लेंगे*
कृष्ण की बंसी
गोपियां मंत्रमुग्ध
नाचे ठुमुक।
राधे के कृष्ण
बजाते है बाँसुरी
मथुरा खुश।
यशोदा लल्ला
करे माखन चोरी
नंद के गाँव।
गोकुल धाम
कृष्ण का बाल्यकाल
रमण रेती।
गोपियां रूठी
बंसी के तान सुन
करे विलाप।
प्रेम का स्थल
वृंदावन नगर
मन विभोर।
कृष्ण के मित्र
सुदामा भद्र भोज
रहे अभिन्न।
ब्रज की होली
गुलाल और फूल
मन प्रफुल्ल।
मिश्री के भोग
बरसाने की राधा
दिल को भाता।
गिरिराज जी
करते परिक्रमा
मिले महिमा।
नंद के लाल
बसे मथुरा धाम
रास रचाये।
स्वर्ग नगरी
मथुरा वृंदावन
करो दर्शन।
जो नही देखा
बरसाना की होली
खाली है झोली।
असली होली
है लट्ठमार होली
मन को भाये।
जो ब्रज आये
खाली हाथ न जाए
प्रेम ले जाए।
फूलों की होली
लड्डू गोपाल संग
मन प्रसन्न।
*अविनाश सिंह*
*लेखक*
जीवन जीने का सलीका
सुबह माँ की मीठी आवाज़ से
सुप्रभात हो सूर्य नमस्कार से
फिर एक सुबह का भ्रमण हो
जिसमे चारो दिशाओ का गमन हो
मंदिर में प्रातः काल नित् जाऊ
मस्जिद पर भी दुआ माँग आऊ
गुरुद्वारे का लंगर भी चख आऊ
चर्च की मोमबत्ती से जीवन जग मगाऊ
अपनी सोच को उच्च कोटि का बतलाऊ
पर आचरण में तनिक भी अभिमान न दिखलाऊ
अपनी माँ के चरणों मे जन्नत तलाशता
अपने काम पर हर रोज़ निकल जाऊ
बुजुर्गों से आशीर्वाद पाता,
में अपने वतन को न्योछावर हो जाऊ
ना कुबेर का खजाना बनाऊ
न नेता का ठिकाना बनाऊ
जितना मिले उसमे खुशी से जीवन बिताऊँ
सीधा सरल जीवन जीने का सलीका
में सबको बतलाऊँ
प्रिया चारण
उदयपुर राजस्थान
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...