डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

विषय:- 'कैसे विस्मृति कर दूँ मैं'


विधा- गीत 


 


 


कनक पुष्प सा रूप तुम्हारा 


         कैसे विस्मृति कर दूँ मैं, 


बातों में अमृत की धारा 


          कैसे विस्मृति कर दूँ मैं।...


 


कितना तुमसे अपनापन है


              कैसे तुझे बताऊँ मैं,


जीवन की अभिलाषा हो तुम


               कैसे तुझे सुनाऊँ मैं।


 


मन के तार बजायी हो तुम 


              कैसे विस्मृति कर दूँ मैं। 


 


सूरज चाँद सितारे सारे


         तेरे छवि को निरख रहे हैं,


पुष्प-कली और वन-उपवन 


      लज्जित तुझको परख रहे हैं,


 


मुझको हो तुम जगत् से न्यारा 


              कैसे विस्मृति कर दूँ मैं।


 


तेरे अधरों की स्निग्ध हँसी


            गुप-चुप नयनों की भाषा, 


छिपी हुई तुझमें हे प्रिय!


            मेरे जीवन की परिभाषा।


 


देते थे तुम मुझे सहारा 


              कैसे विस्मृति कर दूँ मैं।


 


इतना ही तुम मुझे बता दो


             तुमसे दूर रहूंगा कैसे, 


जीवन है प्रतिपल दु:खमय 


           उर का घाव भरूंगा कैसे।


 


तुम तो हो उर वासी हे प्रिय 


            कैसे विस्मृति कर दूँ मैं। 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


मो० नं० 9919886297


सुनीता असीम

दिल ये जलता सा अंगारा था कभी।


 


इक पड़ा जबसे शरारा था कभी।


 


****


 


खेल उल्फत का रहे थे खेलते।


 


बस वफ़ाओं से गुज़ारा था कभी।


 


****


 


खूबसूरत साथ साथी का मिला।


 


प्यार उसका बस हमारा था कभी।


 


****


 


दिल्लगी सी कर रही थी जिन्दगी।


 


सिर्फ यादों का सहारा था कभी।


 


****


 


हस रहे थे तब यहां हमपर सभी।


 


दिल रहा कितना बिचारा था कभी।


 


****


 


सुनीता असीम


 


15/6/2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सरयू-महिमा*(16/15,आल्हा-वीर छंद)


परम पवित्र यह सरिता सरयू,बहे अयोध्या उत्तर दिशि,


निर्मल नीर सदा रह इसका,सब जन करते रोज नहान।


साधु-संत चहुँ दिशि से आकर,करें आचमन,इसका पान,


करते दर्शन रघुवर जी का,प्रमुदित मन देकर सम्मान।


 


 घाट सभी जो सरयू-तट पर,सभी स्वच्छ-निर्मल रहते,


संत- भक्त जन,सब जन जाकर,सरयू-दर्शन लें अभिराम।


करके पूजन-अर्चन सब जन,नगर-भ्रमण का करें प्रयाण,


पुनि सब जाकर मंदिर-मंदिर,करें प्रार्थना प्रभु श्री राम।।


 


परम पवित्र यह अति रमणीया,नगरी नाम अयोध्या धाम,


सरयू-तट पर स्थित यह है,जन्म-भूमि यह रामलला।


चारो भ्राता-क्रीड़ा-नगरी,विमल-सुखद है आबो-हवा-


सरयू-जल की नित-प्रति डुबकी,करे नाश हर दर्द-बला।।


 


औषधि सम है सरयू-नीरा,विष्णु-अश्रु की यह जल-धार,


यह सरिता है पाप-विनाशन,इसका गौरव जगत महान।


आदि-काल से सतत प्रवाही,प्राण-दायिनी जीवन यह-


यह है सरिता रामलला की,करे विश्व का नित कल्याण।।


 


 


राम की पैड़ी सुंदर-अनुपम,सरयू-नीर बहे पुरजोर,


यहाँ सभी हैं रोज नहाते,यहीं पे करते हैं विश्राम।


शाम आरती मिलकर करते,भक्ति-भाव से चित-मन-गात-


पुनि सब जाकर करते पूजन,जन्म-भूमि प्रभु ललित-ललाम।।


                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

विचलित हो जाती जब 


बहती धारा अर्थ बदल 


जाते दुनियां में बन जाती नयी 


परभाषा कि धारा।।


 


अविराम निरंतर बहती 


धारा भटक जाती जब 


मकसद से विचलित 


बैचन बेसहारा आसरा किनारा 


खोजती बिचलित धारा।।


 


कभी कभी विचलित 


धारा भी बन जाती 


आशाओं, विश्वास कि धारा


विचलित धारा।।               


 


अलग, बिलग का अस्तित्व


असमंजस भाग्य ,भगवान सहारा


कर्म कर्तव्य कि चुनौती विचलित


धारा।।


 


नित्य ,निरंतर बहती धारा को


मोड़ता नया काल, समय


पराकम ,पुरुषार्थ                    


नई शुरुआत कि युग धारा 


विचलित धारा।।


 


विचलित धारा विलग अस्तित्व


अस्तमत कि चाहत धारा


कभी कभी नई चेतना अक्सर


काली छाया विचलित धारा।।


 


भय ,भ्रम ,संसय से 


विलग होती विचलित धरा


प्रकृति ,प्रबृति में नकारात्मक


विचलित धारा।।


 


प्रेम प्रसंग के अविरल 


प्रवाह में वियोग दुःख है


विचलित धारा ।।


 


जीवन के मतलब में परम्परा संस्कृति ,संस्कार का विमुख 


नए सिद्धान्त का विज्ञानं विचलित धारा।।


 


यादा कदा विचलित धारा


चैतन्य ,जागृति अवनि आकाश कि अवधारणा विचलित धारा।।


 


अविरल ,निरंतर धारा


दुनियां में ,परम्परा का मान गान


का शौर्य सूर्य, नव सूर्योदय पराक्रम कि कदाचित विचलित धारा।।


 


धाराओ का विचलित होना 


साहस, शक्ति ,सोच ,ज्ञान कि 


ताकत मोल ,मूल्य ,विचलित धारा।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


भरत नायक "बाबूजी"

*"रचनाकार"* (दोहे)


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*विधि ने सारी सृष्टि का, सृजन किया साकार।


अनुपम रचनाकार वह, जग रचना उपहार।।१।।


 


*प्रकृति सृजन करती स्वयं, कभी सँहारक खेल।


नग-वन-सरिता-सिंधु का, है अद्भुत यह मेल।।२।।


 


*कुंभकार के चाक पर, मृदा गहे ज्यों रूप।


करता रचनाकार भी, त्यों शुभ सृजन अनूप।।३।।


 


*गढ़ता रचनाकार है, नित-नित नव साहित्य।


सुखद सृजन के व्योम पर, चमके ज्यों आदित्य।।४।।


 


*समझ सृजन को साधना, रचता रचनाकार।


शुचिकर सुंदर सत्य शिव, सृजन सदा सुख सार।।५।।


 


*सृजन धर्म को पूजता, सच्चा रचनाकार।


करता सत्साहित्य से, संप्रेषण-संचार।।६।।


 


*शब्द पिरोकर भाव भर, कृति को दे आकार।


कालजयी कर सर्जना, रहे अमर कृतिकार।।७।।


 


*सृजक सृजन-आकार दे, उमड़-घुमड़ भर भाव।


झरे झरण झंकार से, सुर-लय-ताल बहाव।।८।।


 


*प्रेमिल-पावन भाव भर, कर्म करे कृतिकार।


पुष्प खिले मरुभूमि-भी, आये सुखद बहार।।९।।


 


*'हम' हो रचनाकार जब, 'मैं' से होता दूर। 


सृजन सहज सद्भाव से, रंग भरे भरपूर।।१०।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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एस के कपूर "श्री हंस* " *बरेली।*

*विषय।।कॅरोना संकट।।मजदूर व्यथा।।*


*शीर्षक।।।।चाहिये कोई उनको मरहम लगाने वाला।।*


 


क्या सोच कर वह हज़ारों मील


नंगे पांव चला होगा।


कितना दर्द उसके सीने के 


भीतर भरा होगा।।


सवेंदना शून्य रास्तों पर कैसे


बच्चों ने होगा कुछ खाया। 


जाने कब तक यह जख्म उसके


सीने में हरा होगा।।


 


प्रवासी से आज फिर से वह


स्वदेशी हो गया है।


लौट कर वापिस अपनी मिट्टी


फिर प्रवेशी हो गया है।।


कुछ जड़े कहीं तो कुछ कहीं


अब गई हैं बिखर सी।


अपनो के बीच भी लगता जैसे


परदेसी ही हो गया है।।


 


पाँव चल रहा था और पांव


जल रहा था।


अरमान टूट रहे थे और परिवार


कैसे पल रहा था।।


फूट रहे थे सब सपने और बिखर


रहा था संसार उसका।


मजदूर अपनी आँखों में आज  


खुद ही खल रहा था।।


 


जरूरत है उसको हमारे और 


अपनों के याद की।


फिर से जोड़ने तिनका तिनका


उन सपनों के साथ की।।


सरकार को भी आगे चल कर


उसका हाथ थामना होगा।


लगाने को मरहम उसके रिसते 


जख्मों पर प्यार के हाथ की।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "


*बरेली।*


मो।। 9897071046


                    8218685464


राजेंद्र रायपुरी

छप्पय छंद पर एक रचना - -


 


हरदम सोचा काम, 


                हुआ है किसका भाई। 


चाहे हो दसशीश, 


                या कि होवें रघुराई।


लाखों करो उपाय, 


               काम है रुक ही जाता।


होता वो ही यार, 


           भाग्य जो लिखा विधाता।


मानो कहना सच यही,


            भाग्य लिखा जो हो वही। 


मैं ही कहता ये नहीं, 


               संतों ने भी है कही।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मन बसिया मन में बसों,राखों मोर दुलार।


ब्रिजठकुरानी तुम बिना, कोई नहीं हमार।।


 


श्याम सलोने मन बसे,सह राधे सरकार।


युगलरूप आशीष ते,निश्चय बेड़ा पार।।


 


दिव्य अलौकिक रूप प्रभु, बंधन काटनहार।


मेरी सुध प्रभु लीजिए, जग जीवन आधार।।


 


युगलरूपाय नमो नमः👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


  *"भक्ति की देन"*


"रास्ते अलग-अलग देखो,


मगर मंज़िल तो एक है।


आस्थाएं अलग-अलग ये,


लेकिन- शक्ति तो एक है।।


देखे भक्त अलग-अलग वो,


लेकिन-भक्ति तो एक है।


रूप अलग-अलग जग में तो,


लेकिन-ईश्वर तो एक है।।


सोघता रहा मन बावरा,


कैसी-जग को देन है।


भक्त हो कर विभक्त ये जग,


क्या-ये भक्ति की देन है?"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 15-06-2020


अविनाश सिंह

हाइकु:-जीवन


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सफेद झूठ


काले सच का रंग


से रहो दूर।


 


डिप्रेशन हो


सबसे बात करो


यही उपाय।


 


पानी हो शांति 


बैठो परिवार में


करो विचार।


 


खुद में जीना


घुट घुट मरना


बाते करना।


 


समस्या बड़ी


हिम्मत नही हारो


उखाड़ फेंको।


 


खोज लो हल।


समस्या समाधान


दूर व्यधान।


 


व्यर्थ न कर


जिंदगी अनमोल


रास्ते को खोज।


 


जीवन त्याग


नही कोई विकल्प


बनो सबल।


 


हारों या जीतों


नही पड़ता फर्क


आगे को बढ़।


 


है घोर पाप


आत्मदाह करना


कायर होना।


 


करो प्रयास


मिलेगी सफलता


न हो उदास।


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*16


सब देवालय,सब ग्रंथालय,


जितने शिक्षा-सदन यहाँ।


सबके संचित ज्ञान-कोष की-


होती यहीं लिखाई है।।


      ज्ञान संग विज्ञान की शिक्षा,


      वैदिक शास्त्र,पुराणों की।


      मानव-मूल्यों की भी शिक्षा-


      इससे जग ने पाई है।।


औषधीय पद्धतियों का भी,


प्रतिपादक मधुरालय है।


रखे स्वस्थ यह जन-जन मन को-


नहीं वर्ण-टकराई है।।


     समतामूलक संस्कृति की यह,


     सदा सूचना देता है।


     यह मधुरालय इक प्रहरी इव-


     करता रात-जगाई है।।


विविध रूप-रँग-कला-केंद्र यह,


रखे बाँध इक धागे में।


शत्रु-भाव को कर अमान्य यह-


उपदेशक-समताई है।।


      अति विशिष्ट मधुरालय-आसव,


       विश्व-पटल का बन आसव।


       सातो सिंधु पार जा करता-


       अपनी पैठ-बिठाई है।।


भारतीय आदर्शों-मूल्यों,


की विदेश में शान बढ़ी।


श्वेत-श्याम की घृणित धारणा-


की जग करे खिंचाई है।।


      आसव है इक निर्मल-पावन,


      सोच-समझ मानव-मन की।


      मधुर सोच,रसभरी समझ ही-


      मन-रसाल-अमराई है।।


पावन आसव-सोच-पवित्रता,


मुदित मना करती नर्तन।


नृत्य-कला की बिबिध भंगिमा-


देख धरा लहराई है।।


आसव-असर-प्रभाव-पवित्रता,


पा पवित्र यह धरती हो।


मनसा-वाचा और कर्मणा-


जन-जन शुचिता छाई है।।


     पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण,


      मधुरालय की चर्चा है।


     गौरव-गरिमा मातृ-भूमि यह-


     जग-बगिया महकाई है।।


स्नेह-भाव,सम्मान-सुहृद गृह,


मधुरालय रुचिरालय है।


गरल कंठ जा अमृत होती-


शिवशंकर-चतुराई है।।


      सदा रहा मन कंपित अपना,


      कैसा आसव-स्वाद रहे?


      पर आसव ने हरी व्यग्रता-


      नीति अमल अपनाई है।।


नव प्रभात ले,नई चेतना,


सँग नव ज्योति सदा फैले।


प्रगतिशील नित नूतन चिंतन-


की आसव विमलाई है।।


      सदा भारती ज्ञान की देवी,


      से आसव की शान बढ़े।


      मधुरालय की दिव्य छटा लखि-


      माँ वाणी मुस्काई है।।


एक घूँट बस दे दे साक़ी-


आसव की सुधि आई है।।


                  © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


बासुदेव, हे अंतरजामी।


हे हृषिकेश जगत के स्वामी।।


      मोंहि बतावउ अंतर आई।


      बिच संन्यास-त्याग बिलगाई।।


काम्यइ कर्म-त्याग संन्यासा।


कछु बिदुजनहिं क अस बिस्वासा।।


      सकल कर्म-फल-त्यागइ त्यागा।


      अस मत कछु विद्वान सुभागा।।


सकलइ कर्म-दोष परिपुरना।


कछु विद्वान कहहिं अस बचना।।


      होंहिं करम अस त्यागन जोगा।


      जगि-तप-दानइ होंय सुजोगा।।


त्याग होय सुनु कुंति-कुमारा।


सत-रज-तम जग तीन प्रकारा।।


     जग्य-दान-तप त्याग न जोगू।


     करहिं सुद्ध बुधि जनहिं सुजोगू।।


चहिअ अस्तु,करन तप-दाना।


जग्य व कर्म श्रेष्ठ जे जाना।।


    बिनु आसक्ति औरु निष्कामा।


    अस मम उत्तम मत बलधामा।।


नियत कर्म कै त्याग न उत्तम।


त्याग मोह बस तामस मत मम।।


     सकल कर्म बस दुख कै कारन।


     त्यागहिं भय बस कर्म सधारन।।


राजस- त्याग होय अस त्यागा।


ब्यर्थ-निरर्थक औरु अभागा।।


दोहा-त्यागइ सात्विक पार्थ सुनु,अनासक्त-निष्काम।


        नियत कर्म करि सास्त्र बिधि,पाउ परम सुख-धाम।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372 क्रमशः.......


आशा जाकड़

नियमःहाइकु


 


नियम से ही


सुख की छाँह मिले


आराम मिले


 


नियम से ही


जीवन व्यवस्थित


अनु शासित


 


यदि करोगे


नियम का पालन


सुख पाओगे


 


परिवर्तन


जीवन का नियम


आये चमन


 


आशा जाकड़


9754969496


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'

भावपूर्ण श्रद्धांजलि सुशान्त सिंह राजपूत 


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छिछोरा अचानक शान्त हो गया,


हमेशा के लिए सुशान्त सो गया। 


 


वह निभाकर धोनी का किरदार, 


हिन्दी सिनेमा में अमर हो गया।


 


पवित्र रिश्ता का वह सफ़रनामा, 


हमारा प्यारा केदारनाथ खो गया। 


 


वो राबता, पीके और काय पो छे,


ज़रा नच के दिखा अमर हो गया।


 


तुम धड़कते रहोगे दिलों में सदा, 


सुन बेसुध अब 'विवश' हो गया। 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


मो० नं० 9919886297


डॉ निर्मला शर्मा

" चमकता सितारा"


वो चमचमाता था फिल्मों का सितारा


असल जिंदगी में आज खुद से ही हारा


दवाब हैं ये कैसे ये कौनसी दुनिया है


ये कैसा हलाहल है कैसी मजबूरियाँ हैं


कितना दुर्लभ है ये मानवीय जीवन 


की आत्महत्या मन कौनसी थी सीवन


तनाव की हालत में घिर कर क्यों ?


दम तोड रहे आखिर ये फ़िल्मी सितारे


जीवन में तनाव है रिश्तों का अथवा


स्टारडम की गलियों में खोई है जिजीविषा


कामयाबी के शिखर पर बैठ मुस्कुराने वाला


जीवन के पथ पर अनवरत चलने वाला


आज थककर अनन्त निंद्रा में सो गया है


वो सितारों सा चमकता व्यक्तित्व आज


दूसरी दुनिया की आरामगाह में सो गया है


पता न चला किसी को भी अब तक


भीड़ भरी दुनिया में वो कैसे अकेला हो गया


मुस्कुराते चेहरे के पीछे कितना दर्द था छुपा


सारी दुनिया के सामने ये यक्ष प्रश्न छोड़ गया


तनाव और अकेलेपन की गहराती खाई में


जीवन रूपी पतंग की डोर छूट गई उसके हाथ से


सुशांत था वो अपने नाम की तरह संस्कारी


आसमां को छुआ था उसने कदमों में जमीं थी सारी


मायानगरी में मिलती तो है सफलता टूटकर


नहीं मिलता तो कोई यहाँ सच्चा हमसफ़र


सह न पाए तुम वो कौनसी ऐसी बात थी


अंतिम समय सब छोड़े सब केवल मृत्यु साथ थी


जाते तो सभी हैं दुनिया से एक दिन


पर ऐसे न जाते अभी और अपनी कला तुम दिखलाते


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


आशा त्रिपाठी

*बेवजह की बातों में, वक्त क्यू गवॉते हो।*


 


हर एक श्वांस जीवन की, घट रही पल छिन,


कर्मयोगी की तरह जी ले, तू सहारे बिन।।


जिन्दगी स्वप्न है इसे तू आजमाओ ना,


है अटल सत्य यही, क्यू इसे भुलाते हो।।


*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*


मिल गया लक्ष्य तो ये कद बड़ा हो जायेगा।।


सत्य को साध कर तू ,आगे ही बढ़ जायेगा।


वक्त के साथ जरा चल के देख ले राही,


वक्त की ऐंठ मे निर्बल को, क्यू सताते हो।


*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*


जिन्दगी जंग है इस जंग सें लड़ना होगा।।


समय की रेत पर इतिहास को लिखना होगा।


पत्थरों से मधुर शीतल लहर भी आयेगी।


टूटना होगा भी और गिर के बिखरना होगा।।


दग्ध मन को ही सदा मीत क्यू बनाते हो।।


*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*


 


जिन्दगी आश है,विश्वास है, मधुमास भी है।


अपने सपनों के आसमान का एहसास भी है।


शक्ति-सामर्थ्य के सागर मे उतर-कर देखो,


समय की नाव के संग,लक्ष्य की ये प्यास भी है।


भाग्य के हाथ में किश्ती को क्यू थमाते हो।


*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*


 


वक्त है ईमान-धरम वक्त तो गुजरता है।


समय के आगे कहॉ कोई भी ठहरता है।


समय की कोख में जीवन के रत्न सारे है।


कर्मयोगी को ही ये अक्षयपात्र मिलता है।।


व्यर्थ की साधना में मन को क्यू रमाते हो।


*बेवजह की बातों में वक्त क्यू गँवाते हो।।*


✍🏻आशा त्रिपाठी


     14-06-2020


      रविवार


{सर्वाधिकार सुरक्षित}


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता


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रक्तदान के भावों को


शब्दों में बताना मुश्किल है


कुछ भाव रहे होंगे भावी के


भावों को बताना मुश्किल है।


 


दानों के दान रक्तदानी के


दावों को बताना मुश्किल है


रक्तदान से जीवन परिभाषा की


नई कहानी को बताना मुश्किल है।


 


कितनों के गम चले गये


महादान को समझाना मुश्किल है


मानव में यदि संवाद नहीं


तो सम्मान बनाना मुश्किल है।


 


यदि रक्तों से रक्त सम्बंध नहीं


तो क्या भाव बताना मुश्किल है


पुण्यदान काम न कर सके


जीवन ज्योति जलाना मुश्किल है।


 


रक्तदान के महा शिविरों में


बस पुण्य काम ही होते हैं,


मृत्यु को वरण करने वाले


तेरे ही रक्तों से जीते हैं।


 


मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

'विश्व रक्तदाता दिवस' 2020


                                एक गीत 


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सुरक्षित रक्त बचाये जीवन,


आओ सशक्त बनायें जीवन।


 


मानवता यह हम सबका है,


हम हँसें और हँसायें जीवन।


 


जब रक्तदान ही महादान है,


उपवन सा महकाये जीवन। 


 


परोपकार ना इससे बढ़कर, 


कर रक्तदान बचायें जीवन। 


 


जीना उसी का सफल हुआ,


सबके लिए लगाये जीवन। 


 


स्वस्थ व्यक्ति के रक्तदान से,


जन्म सफल बनाये जीवन। 


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(स० अ०, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)


मो० नं० 9919886297


अर्चना पाठक निरंतर

विश्व रक्त दान दिवस पर


 


कुण्डलियाँ 


 


जाये बच यदि प्राण तो, करो रक्त का दान। 


गुप्त रूप से ही करो, मत होने दो भान। 


मत होने दो भान,खुशी आँखों में दे दो। 


बुझती लौ में आज,कमी कोई न कुरेदो। 


शपथ 'निरंतर' चाह,सदा सब मुख हरषाये। 


मिले लहू का दान, खुशी से तब घर जाये। 


 


अर्चना पाठक


निरंतर


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 

चीन को चेतावनी 


               एक कविता 


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विषय:- 'देश के रक्षक' 


 


 


हम देश के रक्षक हैं 


हमसे ना टकराना तुम, 


हम आज के भारत हैं


इसे भूल ना जाना तुम।..... 


 


सेनाओं का हुंकार सुनों 


डटी हुई नभ थल जल में, 


ब्रम्होस, अग्नि, नाग, पृथ्वी 


जो लक्ष्य भेदते हैं पल में।


 


भारत को प्राप्त महारथ है 


खुद को ही समझाना तुम।..... 


 


खड़ा हिमालय रक्षा में है 


सागर कदमों को चूम रहा है, 


देश के खातिर मर मिटने को 


हर हिन्दुस्तानी झूम रहा है। 


 


कतरा-कतरा संहारक है 


दुश्मन को बतलाना तुम।..... 


 


गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र राप्ती 


कल-कल नदियाँ बहती हैं, 


सबसे पहले यहाँ पहुँच कर 


सूरज की किरणें कहती हैं। 


 


है शस्य-श्यामल वीर भूमि 


इसको ना आँख दिखाना तुम।...


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


महराजगंज, उ० प्र० 


मो० नं० 9919886297


सुषमा दीक्षित शुक्ला

लक्ष्मी बाई बन मनू जब,


पग धरणि पर धर दिया ।


 


 मानो स्वयं ही दुर्गमा ने ,


जन्म धरती पर लिया ।


 


सुघड़ता मे लक्ष्मि जैसा,


रूप प्रभु ने था दिया ।


 


शौर्य ,साहस शक्ति से ,


माँ शक्ति ने सजा दिया ।


 


 मां भारती की भक्ति हित ,


थे प्राण अर्पण कर दिया ।


 


 ये वीरता की अमिट गाथा ,


को नया दर्पण दिया ।


 


 नारी शक्ति अटल योद्धा ,


 की अमर मिसाल वह ।


 


 क्रांति देवी रूप में थीं ,


 शत्रुओं का काल वह ।


 


 निर्बल नहीं नारी कभी ,


 संदेश दुनिया को दिया ।


 


गौरव बढ़ाकर देश का ,


यह विश्व में साबित किया ।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अलका अस्थाना

 



पिता का नाम: श्री अरूण कुमार श्रीवास्तव


माता का नामः श्रीमती गीता श्रीवास्तव


पति का  नाम: श्री अरुण कुमार अस्थाना


जन्मतिथिः- 07.12.1973


जन्म स्थानः आलमनगर रोड ,बावली चैकी लखनऊ


सम्पादकीय कार्यः पृष्ठभूमि, उपभोक्ता क्रान्ति, अनमोल एक्सप्रेस पब्लिक पाॅवर न्यूज़ वेबपोर्टल में आर्टिकल राइटर।


पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनः  उत्तर प्रदेश मासिक, नया दौर उर्दू मासिक,बालवाणी हिन्दी संस्थान की पत्रिका, पत्रिका, अवधवाणी, पताहर सू0एवं0 जनसम्पर्क विभाग स्मारिका ,राहत टाइम्स, पृष्ठभूमि एवं साहित्यगंधा, अपरिहार्य, नूतन कहानियां, संकल्प, जनहित जागरण, ककसाड़ व विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशन, आकाशवाणी लखनऊ में युववाणी, कुम्भ दिग्दर्शिता 2019, कार्यक्रम में काव्य पाठ किया रेडियों में सम सामयिक परिचर्चा एवं वार्ता रेडियो से श्रमिक जगत कार्यक्रम में कहानियों का प्रसारण आदि।


-‘पृष्ठभूमि’ पाक्षिक पत्र में लेखनकार्य ।


-साप्ताहिक समाचार पत्र ‘शान्तिस्रोत’ की सम्पादकव  2010से निरन्तर प्रकाशन।


-‘अनमोल एक्सप्रेस’ सा0 समाचार पत्र मेंलगभग 5वर्षसेजुड़ीहूं।


-कई पत्र -पत्रिकाओं में सम्पादन का कार्यकिया।


-पब्लिक पाॅवर न्यूज़ वेबपोर्टल पर आर्टिकलराइटर के रूप में कार्यरत्।


-कई मंचांे पर राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ ।


-राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ


-दूरदर्शन द्वारा प्रसारित वन्समोर कार्यक्रम में काव्य पाठ।


-दूरदर्शन वाराणसी में काव्यपाठ।


-प्रतापगढ़ में सम्मानित


-लखीमपुर में साहित्य भूषण से सम्मानित


-लक्ष्य सांहित्य एवं संस्कृति संस्था द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक मेला2019 में सम्मानित ।


-कवितालोक संस्था द्वारा सम्मानित ।


नव सहानुभूति संस्था द्वारा सम्मानित।


- कवि कुम्भ दिल्ली में सम्मानित


-जी0डी फाउन्डेशन द्वारा राजस्थान में सम्मानित


-महिला मोर्चा मंच द्वारा सन् 2020 में महिला दिवस, मुम्बई में साहित्य गौरव  सम्मान से सम्मानित।


-सन् 2020 निशंक सम्मान से सण्डीला में सम्माानित


-गोंडा में सन् 2020 साहित्य सेवा सम्मान से सम्मानित


शिक्षा- एम.ए. हिन्दी एवं समाजशास्त्र


-पोस्टगे्रजुएट डिप्लोमा इन मासकम्युनिकेशन, राजर्षि टण्डन मुक्त वि.वि. से किया ।


-मास्टर आॅफ जर्नलिज्म राजर्षिटण्डन मुक्त वि0वि0किया।


-  एडवान्स डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन यूपीटेक लखनऊ से किया


-आई. आई. टी. राजाजीपुरम्  से डी.टी.पी. किया ।


-पोस्ट गे्रजुएट डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन, राजर्षि टण्डन मुक्त वि.वि. से किया ।


-मास्टर आॅफ जर्नलिज्म राजर्षि टण्डनमुक्त वि0वि0 किया।


पुरस्कार व उपलब्धियां


-तुलसी शोध संस्थान द्वारा तुलसी गोष्ठी सम्मान रत्नावली दिया गया।कई संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र


-राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ व प्रशस्ति पत्र


अपने बारे में-विद्यालय के दिनों से ही मुझे बुद्धिजीवियों के बीच में रहना पसन्द रहा है। प्रारम्भ से ही कविता लिखने में रुचि रही है। संगीत में विशेष रुचि रही है। विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में निरन्तर भागेदारी रही। 10 वर्षों तक कई मंचों पर कार्यक्रम किया। वर्तमान में मुझे गद्य व पद्य दोनांे में लिखना रुचि कर लगता है। परिणामतः मुझे कहानी व कविताएं लिखना बहुत अच्छा लगता है। यह मेरी आत्मगत प्रवृत्ति है। मेरी आत्मीयता कविताओं में ज्यादा रही है।


प्रकाशित पुस्तक - उस पार तक, कवित संग्रह व सपनों सी ये धूप।


पता: 356/24 आलमनगर रोड बावली चैकी लखनऊ 226017 मो.ः9307197756, 8934884441


 


कविताये- 1


 


मिलती इतराती ये सदियां


 


चिड़िया पोखर झरने नदियां


मिलती इतराती ये सदियां


आओ फिर इक पर्व मनाएं


पर्यावरण को फिर बचाएं


 


रोपेे घर नया इक पौधा


फर-फर गौरैया का कौधा


बुलबुल का यूं चोंच लड़ाना


फूस-फूस घोसला बनाना


 


छप्पर तले घरौंदा होगा


थोड़ा-थोड़ा दाना होगा


सुबह नहा चिड़िया रानी


निमवा तले करंे नादानी


 


ताल -तलैया हर हरियाली


सरसों की फर बाली बाली


पंखों सी  आशा फैंलायें


घिरती घटा घटाएं छायें


 


 


कविताये- 2


समझ न आया


 


निःसंदेह तुम्हंे है जब चाहा


मन भर के समझ न आया


 


सांझ ढले जब सूरज उतरा


सब पर पहरा होता होता


दिन धूमिल जब हो जाता है


मन न जाने उतराता है।


 


सावन आंगन तेरा दर्पण,


अन्र्तवेदो का वो अर्पण।


नयनों का वो आलिंगन,


नयन भरे करता क्रंदन।


 


भीगी पलके तुझको सोचंे,


तेरी हर खामोशी नोचें।


हृदय तंत्र का टुकड़ा होना,


टूटे बादल जैसा रोना ।


 


 


कविताये- 3


 


खूब चलाना साथियों


 


जीवन के इस पर्चे पर,


खूब सजाना साथियों।


नीर भरी है, ये कलम


खूब चलाना साथियों।


 


लिखेंगे हम उस दर्द को,


हृदय गार है साथियों।


लिखते-लिखते न घिसेगी,


खूब लिखेगी, साथियों।


 


चित्र भरे हैं कैनवास पे,


रचती रहेगी साथियों।


बोलो तुम लिखा मैं करूं,


जाग गयी है साथियों।


 


भूखे प्यासे सहमे मन की,


व्यथा कहेगी साथियों।


अत्याचार इस पीढ़ी का,


शब्द डसेगी साथियों।


 


मक्खन सी वो उतरेगी,


अलग दिखेगी साथियों।


प्रेम व्यथा की संगिनी,


प्रेमाकार है साथियों ।


 


 


कविताये- 4


बूंद


 


कैसी गहमा-गहमी है,


मां तेरा आकार बचे।


रक्त बूंद से सींचे जा,े


गर्भ गार की आह बच।े


 


उर में भरती प्रेम सुधा,


छाती भरती पेट है।


एक-एक फिर बूंद लगे


अमृत पर पराग झरा।


 


सीकर नयन सितारे से,


नयनों के गुलजारे से ।


बेटे को छाती से लगाया,


नीर भरे नयनो के पनारे


 


अम्मा कुठरी बैठी है,


जैसे पकीं अंगींठी है।


नीरव होता आंगन है ,


अम्मा का मन पावन है ।


 


 


कविताये- 5


 


अपना गांव


 


पनघट पर पनियारी छूटे,


छूटा मेरा अपना गांव।


चलते -चलते होंठ है सूख,े


कैसे मिले अब मेरा ठांव।


 


हाथ में गठरी ले सामान,


आखों से बह रहे हैं नीर।


काम धाम सब छूटा ऐसे,


रोये पेट भूख की पीर।


 


सन्नाटें ने लीला जिसको


सुख छीना दुःख है गंभीर


विश्व पड़ा अब संकट में


पाये प्राणी कैसे हो तीर ।


 


पड़ा पथिक कैसी ये विपदा,


धूप टेहता थकते पांव।


प्रेम पुजारी देश प्रजा सारी,


पहुंचा दे अब कोई गांव।


 


अलका अस्थाना


356/24 आलम नगर रोड बावली चैकी लखनऊ -226017


9307197756,8934884441


 


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला

सेवा इंसान को बनाती महान


 


जग में सेवा करने वाले, 


ही महान बन पाए हैं ।


मानो सेवा की खातिर ही ,


वह धरती पर आये हैं ।


मानव सेवा से बढकर ,


तो कोई कर्म नहीं है ।


मानवता से बढ़कर जग में, 


कोई धर्म नहीं है ।


सेवा का है धर्म निराला ,


करो वतन की तुम सेवा ।


धरती मां की सेवा कर लो ,


करो गगन की तुम सेवा ।


 कितने कंटक राह मिलें पर,


 सेवा से घबराना ना।


 यही कर्म है यही धर्म है ,


पीछे तुम हट जाना ना ।


मात पिता औ गुरु की सेवा,


 सब संताप मिटाती है ।


सेवा बिन सारी पूजा भी ,


निष्फल ही हो जाती है ।


युगों युगों से गौ सेवा का ,


सुंदर नियम विधान रहा।


 देव ,मनुज अरु मुनियों ने भी, 


गौ सेवा को धर्म कहा ।


वृक्षों की सेवा से लेकर ,


 पशुओं तक की सेवा को।


 धर्म समझकर मीत निभाओ,


 पा जाओगे मेवा को ।


सास ससुर और पति की सेवा,


सती सावित्री ने जब की।


काल देव भी कांप उठे तब ,


बदला विधि का नियम तभी ।


लक्ष्मण की सेवा से सीखो ,


सीखो श्रवण कुमार से ।


एकलव्य की सी गुरु सेवा ,


सीखो कुछ संसार से ।


 


सुषमा दिक्षित शुक्ला


सुषमा दिक्षित शुक्ला

रोम रोम में शिव हैं जिनके ,


विष पिया करते हैं ।


 


दुख दर्द जला क्या पाएगा ,


जो अंगारों से सजते हैं ।


 


मां सती बिछड़कर जब शिव से,


 सन्ताप अग्नि में समा गई।


 


 प्रायश्चित पूरा होते ही ,


फिर मिलन हुआ जब उमा हुई।


 


सागर मंथन का गरल पान ,


देवों को अमृत सौंप दिया ।


 


सोने की नगरी रावण को 


खुद पर्वत पर्वत वास किया।


 


 सारे जग को देखे वैभव ,


पर खुद वो भस्म रमाते हैं।


 


वो महाकाल,वो शिव शंकर,


 वो भोलेनाथ कहाते हैं ।


 


सच्ची निष्ठा के बलबूते,


 शिव शंकर का अनुराग मिले ।


 


फिर उनका तांडव क्रुद्ध रूप,


 भोले भाले शिव में बदले ।


 


कुछ विधि का लिखा हुआ,


 होता,कुछ कर्मो का फल होता ।


 


सब दुख भूलो शिव भक्त बनो,


 वही है सबके परमपिता ।


 


रोम रोम में शिव है जिनके ,


 विष वहीपिया करते हैं ।


 


दुख दर्द जला क्या पाएगा,


 जो अंगारों से सजते हैं।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ राजीव पांडेय

डॉ राजीव कुमार पाण्डेय


माता का नाम- श्रीमती उमादेवी पाण्डेय


पिता का नाम- स्व.श्री ब्रह्मानन्द पाण्डेय


जन्म तिथि - 05-10-1970


जन्मस्थान- ग्राम व पोस्ट -दरवाह,जनपद-मैनपुरी


शिक्षा- एम.ए. (अंग्रेजी,हिन्दी) बी.एड., पी-एच.डी.


लेखन विधा- गीत, ग़ज़ल,मुक्तक,व्यंग्य,छंद,हाइकु, लेख,


                  कहानी,उपन्यास,ब्लॉग,इंटरव्यू,समीक्षा आदि


प्रकाशित कृतियां-


                     आखिरी मुस्कान (सामाजिक उपन्यास)


                     बाँहों में आकाश ( सामाजिक उपन्यास)


                     मन की पाँखें (हाइकु संग्रह)


 सम्पादित कृतियां-


                  शब्दाजंलि(अखिल भारतीय काव्य संकलन)


                  काव्यांजलि(माँ गंगा को समर्पित काव्य संग्रह)


                  सृजक (अंतरराष्ट्रीय काव्य संकलन)


                  काव्यकुल सृजन(कोरोना काव्य) ई बुक


सहयोगी संकलन-


      मैनपुरी के साहित्य कार(सन्दर्भ ग्रन्थ)


      अमर साधना( काव्य संकलन)


      काव्य विविधा भाग 1( काव्य संकलन)


      पीयूष(काव्य संकलन)


      स्वागत नई सदी( अखिल भारतीय काव्य संकलन)


       कुछ ऐसा हो( हाइकु संग्रह)


      सदी के प्रथम दशक का हाइकु काव्य(हाइकु सन्दर्भ ग्रन्थ)


      हाइकु विश्वकोश(हाइकु विश्व कोश सन्दर्भ ग्रन्थ)


      सच बोलते शब्द(हाइकु संग्रह)


      गा रहे हैं सगुन पंक्षी(काव्य संग्रह)


      भारतीय साहित्यकार (हिन्दी साहित्य कोश,सन्दर्भ ग्रन्थ)


      प्रयास ( हाइकु संग्रह)


आलेख समीक्षा-


                * इदम इन्द्राय


                 *डॉ मित्र साहित्य अमृतम


                 *हिन्दी लघुकथा (प्रासंगिकता एवं प्रयोजन)


                 *डॉ मिथिलेश दीक्षित का हाइकु संसार आदि


                  महत्वपूर्ण ग्रन्थों में प्रकाशित


                  *कई महत्वपूर्ण ग्रन्थों की समीक्षा समय समय


                   पर पत्रिकाओं एवं वेवसाईट पर प्रकाशित


 अन्य-


       * यू के से प्रकाशित अंग्रजी लेखिका द्वारा रचित सुन्दर       


          काण्ड में सहयोग


      * लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज मीडिया 


         डायरेक्टरी मीडिया कोश में सम्मलित   


        *आकाशवाणी एवं अन्य काव्य,भाषण आदि   


         प्रतियोगिताओं में निर्णायक,मुख्य अतिथि आदि की 


         भूमिका


 उपसम्पादक-हरियाली दर्शन (मासिक)


       * देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित


        *आकाशवाणी,एवं चैनल्स पर रचनाएँ प्रसारित  


        *यू ट्यूबपर चैनल


       * कई वेबसाईट्स पर अनेकों रचनाएँ,समीक्षा   


          प्रकाशित


 


सामाजिक गतिविधियां


*विभाग संयोजक-संस्कार भारती ,गाजियाबाद


*राष्ट्रीय अध्यक्ष-काव्यकुल संस्थान (पंजीकृत)


*राष्ट्रीय महासचिव-अखिल भारतीय साहित्य सदन दिल्ली


*जिला कोषाध्यक्ष-उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद गाजियाबाद


*जिला कार्यकारिणी सदस्य-उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक 


 संघ गाजियाबाद


*सम्मान एवं उपाधियां-


1 अवधेश चन्द्र बाल कवि सम्मान (मैनपुरी)


2-  प्रमुख हिन्दी सेवी सम्मान (गाजियाबाद)


3- मैथिली शरण गुप्त सम्मान(मथुरा)


4- ब्रजरत्न सम्मान (मथुरा)


5- साहित्य कार सम्मान ( मैनपुरी)


6- पत्रकार शिरोमणि सम्मान(मैनपुरी)


7- पत्रकारिता सम्मान( आज कार्यालय मैनपुरी)


8- दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान(राष्ट्र भाषा स्वाभिमान न्यास भारत गाजियाबाद)


9- डॉ भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप सम्मान(दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली)


10-हाइकु मञ्जूषा रत्न सम्मान(छत्तीसगढ़)


11- सर्व भाषा सम्मान  2018(सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली)


12- संस्कार भारती गाजियाबाद द्वारा सम्मानित


13-डॉ सत्य भूषण वर्मा सम्मान( के बी हिंदी साहित्य समिति बदायूँ)


14-नेपाल भारत साहित्य रत्न सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, बीरगंज नेपाल)


15-नेपाल भारत साहित्य सेतु सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, नेपाल)


16-हैटोडा साहित्यिक सम्मान सम्मान( हैटोडा  अकादमी हैटोंडा,नेपाल)


17-क्रांतिधरा अंतर्राष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान (2019) मेरठ


18-भगीरथ सम्मान (संस्कार भारती गाजियाबाद)


19-डॉ हेडगेवार सम्मान (गाजियाबाद)संस्कार भारती गाजियाबाद


20-राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान (अखिल भारतीय चिंतन साहित्य परिषद मैनपुरी)


21-अटल शब्द शिल्पी सम्मान 2018(काव्यकुल संस्थान पंजी.) गाजियाबाद


22- लक्ष्मी हरिभाऊ वाकणकर साहित्य सम्मान2019,संस्कार भारती गाजियाबाद


23एक्सीलेंस इन टीचिंग एन्ड लर्निंग एवार्ड 2019 गाज़ियाबाद


24-सारस्वत सम्मान(बरेली)2019


25-काव्य गौरव सम्मान 2020,अनन्त आकाश हिंदी साहित्य संसद वाराणसी


26-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान,काव्य रंगोली संस्था शहाजंहापुर 26अप्रेल 2020


27, सहभागिता सम्मान,काव्य रंगोली,9 अप्रेल


28-अभिनन्दनपत्र,26 अप्रेल,2020, माँशकुंतलादेवी साहित्य एवं कला संस्थान,अजमेर


29 - काव्यकला सम्मान-काव्य कला निखार साहित्य मंच,सीतापुर अप्रेल2020 


30- अभिनन्दन पत्र , 10 अप्रेल 2020,माँशकुंतलादेवी साहित्य एवं कला संस्थान,अजमेर,


31-कोरोना वॉरियर्स समाज सेवा सम्मान,माँशीला देवी जनसेवा ट्रस्ट मथुरा, 2020


32- सम्मान पत्र-त्रिसुगन्धि साहित्य,कला,एवं संस्कृति संस्थान जोधपुर,राजस्थान


33-साहित्य साधना सम्मान-श्रेयस एवं नीला जहान वाटर फाउंडेशन लख़नऊ 20 मई 2020


34 साहित्य प्रशस्ति पत्र-काव्य संसद(साहित्य(समूह) 10 मई 2020


35-,भारत संचार सम्मान 2020,उच्च स्तरीय दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र गाजियाबाद,2फरवरी 2020


36,से44- राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास भारत के अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन में निरन्तर प्रशस्ति पत्र


आदि अनेकों सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र


*सह सम्पादक -हरियाली दर्शन (मासिक)


*सम्प्रति- प्रधानाचार्य


किसान आदर्श हायर सेकेंडरी स्कूल शाहपुर बम्हैटा गाजियाबाद


पता- 1323/भूतल सेक्टर 2 वेवसिटी गाजियाबाद


मोबाइल -9990650570


ईमेल -dr.rajeevpandey@yahoo.com


 


*वन्दन बारम्बार* 


 


मात शारदा के चरणों में ,वंदन बारम्बार।


अल्प बुद्धि से कारक बनकुछ,कर पाऊं उद्धार।


मेरा नमन हजारों बार।


बुद्धि शून्य है रिक्त पटल है।


लिखने को ये मन विव्हल है।


 तेरे दर पर ढूँढ़ रहा माँ ,


अब याचक बन इसका हल है।


सुप्त ह्रदय के तारों में कुछ,भरदो अब झनकार।


अवरुद्ध कंठ है शुष्क अधर।


घोर तमस के जंगल में घर।


आशा का मृग रहा खोजता


पर कस्तूरी मिले किधर।


ममता के आँचल से खोलो,कुंडलियों के द्वार।


सकल विश्व ढूँढे सुख भौतिक।


उसमें अदृश्य प्रेम अलौकिक।


नैराश्य भाव के सघन तिमिर में


प्रकट करो मुरलीधर यौगिक।


भोग विलासी मन में भर दो,करुणा का संसार।


स्वार्थ सिद्ध से युक्तआचरण।


उसमें खोया प्रेम व्याकरण।


नयनों की कह रही पुतलियां,


इनका कैसे हटे आवरण।


विकृतियों के घोर तिमिर में,दो रसमय संसार।


 


 


 


 *आशा के दीप जलायें* 


 


घोर तिमिर के इस जंगल में,मंगल गीत सुनायें।


आशा के दीप जलायें।


शक्ति पुंज का उदघाटन है।


अपनी क्षमता का मापन है।


संयम धैर्य पराक्रम देता,


काल दूत को ये ज्ञापन है।


अंतर्निहित शक्तियों को हम, ये विस्वास दिलायें।


आशा के दीप जलायें।


 


क्रंदन वन में प्रेम जागरण।


सम्बल पाये यथा आचरण।


अकुलाहट को भान कराये,


अनुभावों का मौन व्याकरण।


तीर्थधाम चौखट पर अपनी,नित अम्बर शीश झुकायें।


आशा के दीप जलायें।


 


प्रस्फुटन हो मौन शक्ति का।


नूतन जाग्रत नेह भक्ति का।


दूर क्षितिज तक खड़े शत्रु में


प्राकट्य हो उर आसक्ति का।


ज्योतिपुंज का देख प्रज्ज्वलन,रजनीकर भी सकुचायें।


आशा के दीप जलायें।


 


खड़गों से सर्वत्र विभाजन।


विवश भाव का है अनुपालन।


प्रेम अंकुरण ही वसुधा में,


प्रमुदित करते जीवन यापन।


दिव्य ज्योति के आल्हादन से,अन्तस का तमस मिटायें।


आशा के दीप जलायें।


 


 


*पुरानी यादें यार* 


 


आओ कुछ ताजा कर ले, पुरानी यादें यार।


कागज की फिर तैर उठें, पानी पर पतवार।


 


घर चौबारे धमा चौकड़ी,लुका छिपी के खेल।


और रबड़ की गेंद बनाकर,पीठ पे जाते झेल।


टुकुर टुकुर जब टेसू देखे, सकुचायी झेंझी,


प्रेम की बाती जल जाती थी,बिन बाती बिन तेल।


रोम रोम पुलकित हो जाता,जो खेले नदिया पार।


आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।


 


आँखे तो बस देख रहीं है,बौर लगी अमियाँ,


कुछ तो खुद हम खा जाते ,कुछ छीनें छमियाँ।


बालसखा तो अक्सर कुढ़कर, चुगली कर आता,


सिट्टी पिट्टी जब गुम होती, गरियाती धनियां।


कान पकड़कर हम दोनों जब,करते थे मनुहार।


आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।


 


बरफ चूसने आ जाती थी,गलियों में टोली


चोरी चोरी अपने घर से, भर भर कर झोली।


कितनी बार पकड़ जाते थे,अक्सर दालानों में


जहाँ बैठकर चूस रही थी, मेरे संग भोली,


भूत प्रेम का भग जाता था,खा मम्मी की मार।


मम्मी की डंडी से भगता,चढ़ा प्रेम का ज्वार।


आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।


 


चढ़े टाँड़ पर खेत रखाने,मक्का की अड़ियां।


हाथों खिंची गुलेल देखकर,उड़ जाती चिडियाँ


उसी टांड़ पर जब रम जाता,कृष्ण राधिका रास,


कौए सूए देख खुश होते,मेरी गलबहियाँ।


बापू सोटा ले पिल जाते,सुनते नहीं पुकार।


आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।


 


पट्टी पर अंकित होते थे, सोने से अक्षर।


बारहखड़ी पहाड़ों में भी,थेअब्बल अक्सर।


लड़के और लड़कियोंके संग,इंटरवल में हम,


पीछे लगी नदी में कूदें,समझ तीर्थ पुष्कर।


लिए गुरुजी डंडाआयें,सुनकर चीख पुकार।


आओ कुछ ताजा करलें पुरानी यादें यार।


 


 *हम उनको नमन करें* 


 


पंचतत्व से निर्मित काया


सुन्दर तन मन जीवन पाया


रोम रोम है ऋणी तुम्हारा


रग रग में अस्तित्व समाया


वही सृजन के बीज आज तक, महक रहे हैं इस उपवन में।


हम उनको नमन करें।


 


जीवन की हर कला सिखायी,


दुनिया दारी भी समझायी,


कदम हमारे बहक गये तो,


आगे बढ़ उंगली पकड़ायी।


कठिन परीक्षा के जीवन में, बड़ी भूमिका संसोधन में।


हम उनको नमन करें।


 


कंधों पर सब नगर घुमाया,


मुश्किल पथ को सुगम बनाया


बालक मन ये रूठ न जाये


घोडा बनकर तभी खिलाया


डांट डपट के साथ साथ में,प्यार मिला था सम्बोधन में।


हम उनको नमन करें।


 


पीडाओं को हरने वाले,


सब जिद पूरी करने वाले,


इस जीवन के आलेखन में


रंग अनोखे भरने वाले,


हमें सिखाया बात बात में,चूक न हो जीवन यापन में।


हम उनको नमन करें।


 


पंचतत्व से निर्मित काया


सुन्दर तन मन जीवन पाया


रोम रोम है ऋणी तुम्हारा


रग रग में अस्तित्व समाया


वही सृजन के बीज आज तक, महक रहे हैं इस उपवन में।


हम उनको नमन करें।


 


जीवन की हर कला सिखायी,


दुनिया दारी भी समझायी,


कदम हमारे बहक गये तो,


आगे बढ़ उंगली पकड़ायी।


कठिन परीक्षा के जीवन में, बड़ी भूमिका संसोधन में।


हम उनको नमन करें।


 


कंधों पर सब नगर घुमाया,


मुश्किल पथ को सुगम बनाया


बालक मन ये रूठ न जाये


घोडा बनकर तभी खिलाया


डांट डपट के साथ साथ में,प्यार मिला था सम्बोधन में।


हम उनको नमन करें।


 


पीडाओं को हरने वाले,


सब जिद पूरी करने वाले,


इस जीवन के आलेखन में


रंग अनोखे भरने वाले,


हमें सिखाया बात बात में,चूक न हो जीवन यापन में।


हम उनको नमन करें।


 


 


 *दोहे* 


वृद्ध सिंह को देखकर,गीदड़ बदलें सोच,


सूर्यप्रभा को दे रहे,किरणों का उत्कोच।


 


कम्पन में पाये गये, प्रतिज्ञा के भी पाँव।


निष्ठा पर भारी पड़ा,शकुनी का हर दाँव।


 


चौसर पर जबसे लगा,नारी का व्यक्तित्व।


खतरे में ही आ गया, लज्जा का अस्तित्व।


 


सिंघासन पर हो गयी,आकांक्षा आरूढ़।


उसे बचा भी ना सका,विदुर ज्ञान भी गूढ़।


 


हठधर्मी ने लिख दिया,भीषणरण कुरुक्षेत्र।


अंधे देखें झांककर, संजय के ही नेत्र।


 


सौंगन्धो के वश हुए,कहीं शिखा अरु केश।


युग की जंघा तोड़कर, बदल दिये परिवेश।


 


 


डॉ राजीव पाण्डेय


1323/भूतल,सेक्टर-2


वेबसिटी, गाजियाबाद


उत्तर प्रदेश


मोबाइल-9990650570


ईमेल-kavidrrajeevpandey@gmail.com


 


 


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