राजेंद्र रायपुरी

😌😌 दोहे राजेंद्र के 😌😌


 


बहा पसीना पेट ही, 


                    भर सकता इंसान।


काला-पीला जो करे, 


                  वो बनता धनवान।


 


बुरे काम मत कीजिए, 


                  कहा मानिए आप।


वरना दाता आपकी, 


                    गरदन देगा नाप।


 


बुरा जगत में जो किया,


                   भुगता वो परिणाम।


बाली,रावण,कंस क्या,


                 और बहुत हैं नाम।


 


         ।। राजेंद्र रायपुरी।।


विवेक दुबे"निश्चल

20 जवानों के बलिदानो को व्यर्थ नही तुम जाने देना ।


अब भारत के अंदर चीनी समान नही तुम आने देना ।


दे सच्ची श्रद्धांजलि वीर अमर शहीदों को , 


 अब ड्रेगन को कोई मुनाफ़ा हमसे नही पाने देना ।


शपथ करे भारत माता की अपने सम्मानों की खातिर ,


ड्रेगन की कम्पनियों को अब और नही खाने देना ।


न लाएगा न बेचेंगा कुछ भी कोई हम में से ,


अब अपनो को ही हमको आगे आने देना ।


....विवेक दुबे"निश्चल"@...


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव

मुक्तक 


 


जब कवि की करुणा से आह निकलता है 


तब लोगों के मुंह से वाह 


निकलती है ।


समस्याएं कितनी ही कठिन क्यों न हो।


मिल बैठ कर सुलझाने से राह 


निकलता है। 


      डाॅ. सीमा श्रीवास्तव


सुनीता असीम

कौन है जो नशे में चूर नहीं।


चढ़ रहा अब किसे सुरूर नहीं।


*****


दिल तेरा धड़क रहा है जो।


इसमें मेरा कहीं कसूर नहीं।


*****


जो करे मां-बाप की सेवा।


पुत्र ऐसा मिले बेशऊर नहीं।


*****


कर लिया जो जतन बड़े मन से।


फिर तो दिल्ली है पास दूर नहीं।


*****


जो चमकती रहीं हरिक मौसम।


उन निगाहों में आज नूर नहीं।


******


सुनीता असीम


१६/६/२०२०


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे शब्दों में...........


 


मेरा भी मन कहता है, मैं भी एक ग़ज़ल लिखूं


विरह व्यथित हिय मेरा, आँखें मेरी सजल लिखूं


 


चाहता था मैं भी प्रिय, जीवन तेरे साथ बिताऊँ


हार गया तेरी हठ से, हो गया कैसे निबल लिखूं


 


ख्वाब सजाये थे मैंने, तुम होंगी मेरी बाहों में


ख्वाब मेरे ख्वाब रहे न, हो पाया मैं सफल लिखूं


 


प्यार प्रीति की हो बारिश, भीग जाये तन व मन


प्यासा है अन्तर्मन मेरा, हो गया मैं विफल लिखूं


 


अप्रितम पल जीवन के, सत्य यूं ही तूने गंवा दिये


हो पायेगा दीदार प्रिया, कैसे शब्दों में मिलन लिखूं।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुषमा दीक्षित शुक्ला

*एक खूबसूरत कहानी"


 


जाड़ों की गुनगुनी धूप जैसा ,


इस बेगानी सी दुनियां में ,


तुम्हारा वो अपनापन ।


 


यादों के गलीचे पर खड़े होकर ,


तुम्हारा रूठना मुस्कुराना ।


तुम्हें बस महसूस करना ,


 


सुनो!अब यही सुकून है मेरा ।


हमारे हर तरफ है जो ये ,


तुम्हारे प्यार का अनन्त पहरा ।


 


फिर किसी रोज लिखनी है,


अब एक अपनी कहानी ,


जिसके तुम राजा मैं रानी ।


 


जीवन मरण के फेर से दूर ,


उस कोरे अनन्त क्षितिज पर ,


तुमसे मिलना होगा अब मुझे ,


कभी भी जुदा न होने के लिए ,


 


फिर सदियों तलक 


याद रखी जायेगी,


एक खूबसूरत कहानी ,


जिसके तुम राजा मैं रानी ।


 


   -


- राजाजीपुरम , लखनऊ,


---


सुषमा दीक्षित शुक्ला

तुम्हारे न होने के बाद भी,


 तुम्हारे होने का अहसास।


 शायद यही है वह अंतर्चेतना,


 जिसने मेरे भौतिक आकार को,


 अब तक धरती से बांधे रखा है।


 देह का मरना कहाँ मरना ,


भाव का अवसान ही तो मृत्यु है।


 शायद तुमको अब तक याद होगा, 


बहुत सी ख्वाहिशों के साथ,


 जी रही थी मगर अब चल पड़ी।


 जिस राह वह रास्ता अनंत है,


 कभी-कभी अपनी नादानियों पर,


 बहुत हंस लेने को दिल करता है,


 तो कभी सांस लेने को भी नहीं ।


 सच तो यह है कि हर फूल का,


 दिल भी तो छलनी छलनी है ।


अंत मेरे हाथ लगना है बस ,


वो हवा में लिखी अनकही बातें,


वो साथ साथ देखें अधूरे ख्वाब।


 अब कोई आहट कोई आवाज,


 कोई पुकार नहीं तुम्हारी !


अब किसी उम्मीद से नहीं देखती,


  घर के दरवाजे को मगर अब ,


खुद के भीतर ही तुम को पा लेना,


 बस यही जीत है मेरी ,


बस यही जीत है मेरी।


 



काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ. हरि नाथ मिश्र

-डॉ0हरि नाथ मिश्र


पिता का नाम-स्मृति शेष श्री पंडित जगदीश मिश्र।


माता का नाम-स्मृति शेष श्रीमती रेखा मिश्रा।


शिक्षा-एम0 ए0 अँगरेजी, पीएच0 डी0।


पूर्व विभागाध्यक्ष-अँगरेजी, का0 सु0 साकेत सनारकोत्तर महाविद्यालय,अयोध्या,उ0प्र0।


उपलब्धियाँ-सेवा-काल में डॉ0राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से अँगरेजी विषय में शोध करने वाले लगभग 25 शोधार्थियों के पर्यवेक्षण का कार्य।अँगरेजी विषय के पाठ्यक्रम सम्बंधी पुस्तकों का।लेखन।


प्रकाशित रचनाएँ-श्रीरामचरितबखान(अवधी में)


श्रीकृष्णचरितबखान(अवधी में)


गीता-सार(अवधी में)


एक झलक ज़िंदगी की(कविता-संग्रह)


धूप और छाँव(कविता-संग्रह)


इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर लिखी हुईं सैकड़ों कविताएँ।


वर्तमान पता-7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी, देवकाली रोड, फैज़ाबाद,अयोध्या।उ0प्र0।


संपर्क-9919446372


 


कविताये-1


नवभारत-संकल्प तो केवल इतना है,


सबका झंडा एक तिरंगा अपना है।


हुआ अभिन्न अंग कश्मीर पुनः भारत का-


अगस्त पाँच उन्नीस को,पूर्ण हुआ वो सपना है।।


                                 सबका झंडा एक...........।।


सबका है कश्मीर और कश्मीर के सब हैं,


हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, कश्मीरी अब हैं।


कर न सकेगी उन्हें अलग,अब कानूनी धारा-


नव निर्मित इतिहास का बस यह कहना है।।


                           सबका झंडा एक...............।।


पलट गया इतिहास सियासतदानों का,


बिगड़ गया जो खेल था सत्तर सालों का।


मिला पटल आज़ादी का उस माटी को-


स्वर्ग सरीखी अनुपम जिसकी रचना है।।


                       सबका झंडा एक..................।।


हुआ अंत अब हिंसावाद हिमायत का,


अलगाववाद की बेढब नीति रवायत का।


धरे रह गये ताख पे सब मंसूबे उनके-


जिनका लक्ष्य तो केवल ठगना है।।


                    सबका झंडा एक.....................।।


हुईं दुकानें बंद सभी धर्मान्धों की,


कट्टरपंथी ताकत कुत्सित धंधों की।


नयी दिशा अब मिलेगी सब नवयुवकों को-


करेंगे निज उत्थान स्वयं जो करना है।।


                 सबका झंडा एक..................।।


देश सुरक्षित रहेगा,संग कश्मीर भी,


बिगड़ेगी नापाक पाक तक़दीर भी।


होगा शीघ्र विनाश विरोधी ताक़त का-


नहीं बेढंगा दाँव कुटिल अब सहना है।।


                सबका झंडा एक...................।।


होगा पूर्ण विकास स्वर्ग सी घाटी का,


होगा अब आग़ाज़ नयी परिपाटी का।


पुनः खिलेगा पुष्प सुगंधित मानवता का-


भारत का जो रहा सदा से गहना है।।


      सबका झंडा एक तिरंगा अपना है।।


            डॉ. हरि नाथ मिश्र-9919446372


 


कविताये-2


*,बेफ़िक्र हो के ज़िंदगी जीना....*


बेफ़िक्र हो के ज़िंदगी जीना है अति भला,


गर रोड़ें आएँ राह में तो करना नहीं गिला।।


 


आए ग़मों का दौर तो न धैर्य छोड़ना,


खोना नहीं विवेक जंग से मुहँ न मोड़ना।


जीवन का है ये फ़लसफ़ा समझ लो दोस्तों-


जिसने जीया है इस तरह उसी को सब मिला।।


 


पर्वत-शिखर पे झूम के बादल हैं बरसते,


नदियों के जल-प्रवाह तो थामे नहीं थमते।


जिन शोखियों से शाख़ पे निकलतीं हैं कोपलें-


थमने न देना ऐसा कभी शोख़ सिल-सिला।।


 


क़ुदरत का ही कमाल है ये सारी क़ायनात,


होता कहीं पे दिन है तो रहती कहीं पे रात।


ग़ुम होते नहीं तारे चमका करे ये सूरज-


महके है पूरी वादी ये फूल जो खिला ।।


 


जब नाचता मयूर है सावन में झूम के,


कहते हैं होती वर्षा अति झूम-झूम के।


जो श्रम किया है तुमने वो फल अवश्य देगा-


मेहनतकशों के श्रम का मीठा है हर सिला।।


        गर रोड़ें आएँ राह में तो करना नहीं गिला।।


                      ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


 


कविताये-3


*कुछ दोहे*


सुरभित मधुरालय खुले,लंबी लगी कतार।


भूल गए सब मुदित मन,कोरोना का वार।।


 


चावल-आटा-दाल की,चिंता छोड़ जनाब।


जा पहुँचे मधु-द्वार पर,घर की दशा खराब।।


 


डंडा-सोटा-स्वाद ले,डटे रहे पुरजोर ।


बोतल बंद शराब ने,दिया प्रशासन झोर।।


 


बिना चुकाए दाम ही,राशन दे सरकार।


पुनः वसूले मूल्य वह,खोल जेब के द्वार।।


 


दिखीं बहुत सी देवियाँ, मय-मंदिर के द्वार।


वित्त लिए निज पर्स में,नारी-शक्ति अपार।।


 


अपनी भाग्य सराहते,दिखे सभी मधु-केंद्र।


क्या राजा,क्या रंक है,खड़े दिखे धर्मेंद्र।।


 


सीना ताने गर्व से,मुदित सुता अंगूर।


मानो यह कहती फिरे, मानव-मन लंगूर।।


 


पल-भर के सुख के लिए,घोर करे अपराध।


जीवन से खिलवाड़ कर,करे पाप निर्बाध।।


 


माना मानव सभ्य है,यह संस्कृति-आधार।


किंतु कभी विपरीत हो,खोए शुद्ध विचार।।


                ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


 


कविताये-4


*गीत*


काव्य-कुंज में कवि-मन कुहके,


हो सम्मोहित रसपान करे।


भाव-पुष्प जो विविध खिले हैं-


 उनपर नूतन नित गान करे।।


             काव्य-कुंज में..............।।


 


बिना भाव-चिंतन के कविता,


संभव क़लम नहीं करती है।


हृदय-सिंधु में भाव-उर्मि ही,


उठकर नित लेखन करती है।


कवि-मन हो अति हर्षित-प्रमुदित-


सृजन भी अतीव महान करे।।


             काव्य-कुंज में.........।।


 


ध्यानावस्थित होने पर ही,


नेत्र तीसरा भी खुलता है।


भावों का आवेग प्रखर हो,


मन-रस में ही आ घुलता है।


मधुर भाव अति शीघ्र उमड़ कर-


अक्षर-कृति का अवदान करे।।


              काव्य-कुंज में...........।।


भाव-तरंगें अति स्वतंत्र हों,


प्रबल उमड़तीं रहतीं पल-पल।


प्रखर भाव भी तब कवि-मन को,


देता सदा सहारा-संबल।


कवि भी तो तब हो सतर्क मन-


अति सक्षम गीत- विधान करे।।


                 काव्य-कुंज में.............।।


 


कभी मुदित हो,कभी दुखित हो,


कवि-मन का भावालय बनता।


भाव-सिंधु का कर अवगाहन,


पवित्र भाव-देवालय बनता।


चिंतन-मनन-साधना के बल-


कवि मुक्ता-स्वर निर्माण करे।।


               काव्य-कुंज में..............।।


काव्य-कुंज की ले सुगंध वह,


गीतों को भी महकाता है।


पा प्रसाद सुर-देवी से वह,


भाव-सुरभि नित फैलाता है।


सृजन-भाव में डूब-डूब कर-


ज्ञान-सरित में नहान करे।।


             काव्य-कुंज में....…........।।


 


धन्य कलम तेरी भी कविवर,


रवि-सीमा को भी पार करे।


 अप्रत्याशित रेख पार कर,


लेखन-सुकर्म साकार करे।


अद्भुत रचना दे इस जग को-


सुर-देवी का सम्मान करे।।


          काव्य-कुंज में.............।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               


 


कविताये-5


भारत माता के वीर सपूतों,


अपनी धरती का कर लो नमन।


ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी-


कर लो टीका समझ इसको चंदन।।


                  ऐसी माटी तुम्हें.........।।


इसके उत्तर में गिरिवर हिमालय,


जो प्रहरी है इसका अहर्निश।


चाँदनी की धवलिमा लिए-


दक्षिणोदधि करे पाद-सिंचन।।


               ऐसी माटी तुम्हें............।।


इसकी प्राची दिशा में सुशोभित,


गारो-खासी-मेघालय-अरुणाचल।


इसके पश्चिम निरंतर प्रवाहित-


सिंधु सरिता व धारा अदन।।


              ऐसी माटी तुम्हें..............।।


शीष कश्मीर ऐसे सुशोभित,


स्वर्ग-नगरी हो जैसे अवनि पर।


गंगा-कावेरी-जल-उर्मियों से-


देवता नित करें आचमन।।


              ऐसी माटी तुम्हें.............।


पुष्प अगणित खिलें उपवनों में,


मृग कुलाँचे भरें नित वनों में।


वर्ष-पर्यंत ऋतुरागमन है-


लोरी गाये चतुर्दिक पवन।।


            ऐसी माटी तुम्हें...............।।


अपनी धरती का गौरव रामायण,


सारगर्भित वचन भगवद्गीता।


मार्ग-दर्शन कराएँ अजानें-


वेद-बाइबिल का अद्भुत मिलन।।


          ऐसी माटी तुम्हें.................।।


इसकी गोदी में खेले शिवाजी,


राणा-गाँधी-जवाहर-भगत सिंह।


चंद्रशेखर-अटल की ज़मीं ये-


बाल गंगा तिलक का वतन।।


   ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी,कर लो टीका समझ इसको चंदन.....भारत माता के वीर सपूतों.....।।


           ©


          


 


 


 


सम्राट की कविताएं

पर्वत जैसा काया है


मोम सा हृदय समाया है


इस दुनिया के भाग दौड़ ने


ये हकीकत बताया है


जिसको अपना माना है


वहीं सबसे बेगाना है


जीवन का मकसद है


चलना और चलते जाना है


ढूंढते रब को सब जगह लोग


और कहते सब मे समाया है


पर्वत जैसा काया है


मोम सा हृदय समाया है


दुःख सुख अपने साथी है


दुःख दूल्हा तो सुख बराती हैं


आँखों मे आंसू, होठों पर मुस्कान


कैसे दोहमत में फाँसा इंसान


मोह माया में भटकते लोग


लोभ लालच का बुरा रोग


और क्रोध सबके जेहन में


अंदर तक समाया है


पर्वत जैसा काया है


मोम सा हृदय समाया है।


 


सम्राट की कविताएं


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(पावस-आगमन16/14लावणी छंद)


थलचर-नभचर सब हैं व्याकुल,


कहीं न मिलती छाया है।


अब पुनि सबकी प्यास बुझाने-


रिम-झिम पावस आया है।।


 


खुशियों की सौगात लिए यह,


सबकी झोली भरता है।


करता नहीं निराश किसी को,


मगन-मुदित यह करता है।


जहाँ देखिए उछल-कूद है-


सबने जीवन पाया है।।रिम-झिम पावस....


 


बरखा रानी भरती रहती,


महि-आँचल जल बूँदों से।


पौध अंकुरित होने लगते,


पावस बदन पसीनों से।


हरी-हरी घासों ने देखो-


अब कैसा मुस्काया है।।रिम-झिम पावस......


 


हलधर परम मुदित हो-हो कर,


जाते खेत-सिवानों में।


निज थाती को सौंप अवनि को,


रहें उच्च अरमानों में।


झम-झम पड़तीं जल-बूँदों ने-


चित-मन को हर्षाया है।।रिम-झिम पावस......


 


गोरी पेंग बढ़ाकर झूले,


झूला-कजरी-योग भला।


पावस की मदमस्त फुहारें,


और बढ़ा दें विरह-बला।


निरख बदन निज भींगा-भींगा-


 गोरी-मन शरमाया है।।रिम-झिम पावस........


 


प्रकृति कामिनी महि की शोभा,


प्रेम-भाव-उल्लास भरे।


अति नूतन परिधान पहनकर,


 मन को नहीं निराश करे।


लगे सभी को पावस ने ही-


चादर हरी बिछाया है।।रिम-झिम पावस..........।।


           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


              9919446372


निशा"अतुल्य"

बरखा बहार आई


16.6.2020


मनहरण घनाक्षरी 


 


बरखा बहार आई 


खुशियाँ हजार लाई


सब रंग डूब कर 


बूंदों में नहाइए ।


 


पेड़ झूम झूम रहे


वायु में सुगंध बहे 


तपती धरा की तुम


प्यास तो बुझाइए।


 


अमवा की डार झूमी


कोयल की मीठी बोली


पपीहे ने राग गाया


सबको सुनाइए ।


 


बरखा की नन्ही बूंदे


टिप टिप गीत गाएं


लगती बड़ी ये भली 


मन झूम जाइए ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


अनिल गर्ग  कानपुर

*गधा और हम*


गधा पेड़ से बंधा था।


शैतान आया और उसे खोल गया।


गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा।


किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला। 


गधे की लाश देखकर मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी। 


किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।


गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।


बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरी कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।


लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।


इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ?


शैतान ने कहा, 'मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना जरूर।'


 


ध्यान रखें। कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी काम हम खुद कर देते हैं !


अनिल गर्ग 


कानपुर


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

" धर्म पथ पर रहो अग्रसर "


सदाचार 


के नियम 


का पालन करो 


होकर जीवन में ततपर


जीवन वही सफल जगत में


जो रहता है सदैव


धर्म पथ पर


कर्तव्य निभा


अग्रसर


 


प्राचीन


काल से


निज संस्कृति में


है ये मूल्य पुराने


आगन्तुक को देव मान हर्षावै


जीवन उसका रहे सुखद


कोई कष्ट नहीं


उसे कभी


सतावै


 


धर्म


के पथ


पर चलकर ही तो


मानव माया बन्धनों से छूट


जावै उस परमात्मा की


शरण मिले, मोक्ष 


द्वार खुल


जावै


 


धर्म


मार्ग है


थोड़ा दुष्कर परीक्षा


बहु भाँति की ले जावै


जो रहे अडिग अपने पथ


पर वह जीवन का


अपना लक्ष्य पाकर


सारे दुख


बिसरावै


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


प्रिया चारण , उदयपुर ,

प्रिया


में प्रिया बहुत प्रिय हूँ


कभी कृष्ण प्रिया ,कभी हरिप्रिया


हर ह्रदय में बसती हूँ


कभी काली रातो मे सिसकती हूँ


कभी दिन के उजाले में चमकती हुँ


कभी बीती बातो में उलझती हूँ


कभी मिसालों में खुदको परखती हूँ


कभी मिसाल बन मर निखरती हूँ


कभी सबके लिए खुदको खोती हूँ


कभी सबको खो कर खुदको पाती हूँ


कभी कविता बन लोगो के मन मे चल हूँ


कभी पिंजरे में ही सिमटती हूँ


कभी राधा सी प्रिय लगती हूँ


कभी खुदको मीरा सी लाचार लगती हूँ


कभी प्रिया सा प्रेम का गुलाब लगती हूँ


तो कभी क्रोधित काटो सी चुभती हूँ


नन्हा बच्चा दिल मे रखती हूँ, बात बात पर रो देती हूँ


ओरो का पता नही , जो भी हूँ जैसी भी हूँ खुदमे बेमिसाल हूँ


इतनी मुश्किलो के बाद भी आबाद हूँ


शायद में कमाल हूँ


में प्रिय प्रिया हूँ


 


प्रिया चारण ,


उदयपुर ,राजस्थान


भरत नायक "बाबूजी"

*"पाठशाला"* (कुण्डलिया छंद)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


●अपना जगत किताब है, मिलता इससे ज्ञान।


हरपल होता है यहाँ, नित-नव अनुसंधान।।


नित -नव अनुसंधान, पाठशाला है धरती।


सदा करे उपकार, बुद्धि की जड़ता हरती।।


कह नायक करजोरि, पूर्ण करना हर सपना।


कर लेना स्वीकार, हितैषी जो हो अपना।।


 


●धरती-अंबर से मिले, सीख हमें तो नित्य।


पर चमके जिज्ञासु का, परम ज्ञान-आदित्य।।


परम ज्ञान-आदित्य, भाग्य होता है उज्ज्वल।


सँवरे उसका आज, साथ आने वाला कल।।


कह नायक करजोरि, बुद्धि श्रद्धा से भरती।


विद्या हो शुचि ग्राह्य, पाठशाला है धरती।।


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


संदीप कुमार विश्नोई

जय माँ शारदे


उड़ान सवैया


 


लिखें नित नूतन छंद सदा , जब से गुरुदेव मनोज मिले हमें।


निखार रहे मम लेखन को , इनका शुभ प्रेम सरोज मिले हमें।


लिखें नित छंद नये हम जो , मन को निज साधन खोज मिले हमें। 


रचें नित भाव बना उर से , मन को फिर पावन ओज मिले हमें।


 


संदीप कुमार विश्नोई


गाँव दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


विनय साग़र जायसवाल

गीत---🧚‍♀


🌲


तेरी सुगंध को लालायित,हर सुमन यहाँ अकुलाता है ।


अधरों पर मेरे नाम प्रिये  ,तेरा जब-जब आ जाता है ।।


🌱


जब खिलते हैं सुधि के शतदल, जब उड़ता दृग-वन में आँचल


हर निशा अमावस की लगती, हर दिवस बजी दुख की साँकल 


यह प्रेमनगर का द्वार मुझे,कैसे परिदृश्य दिखाता है ।।


तेरी सुगंध को------


🦚


प्यासे चातक मन-अधरों पर ,पूनम भी किंचित खिली नहीं 


अंतस में ज्वाला भड़का कर ,फिर साँझ दिवस से मिली नहीं


रह-रह कर मेरे अंतर का,हर कमल पुष्प कुम्हलाता है ।।


तेरी सुगंध को------


🦜


आशायें अमरलता बनकर, वट यौवन भी डस जाती हैं


कुछ पता नहीं इच्छाओं का ,


किसको क्या स्वाद चखाती हैं


यह मलय पवन भी अब प्राय: , ज्वाला को और बढ़ाता है ।।


तेरी सुगंध को ----


🦃


घिर आये फिर नभ में बादल, फिर दूर बजी कोई पायल 


फिर कोई मेरे जैसा ही , हो जायेगा दुखिया घायल


यह सोच सोच कर अब मेरा ,पागल मन भी घबराता है ।।


तेरी सुगंध को -------


🐇


यह सावन आग लगाते हैं, व्याकुल मन को तड़पाते हैं


मेरे नव चेतन पर *साग़र*, सुधियों के चित्र बनाते हैं


यह सावन मुझको तड़पा कर,क्या जाने क्या सुख पाता है ।।


🦓


तेरी सुगंध को-------


अधरों पर मेरे--------


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी जब तुम्हे आजमाने लगे


ख़ुशी दामन छुड़ाने लगे।।


अश्कों को ना रोक पाओ अगर


आखों के रुलाने लगे।।


चाहत कि जिंदगी खफा होंके


दूर जाने लगे ।।


अंजाम का यकीं सताने लगे 


जुदाई के नगमें गुनगुनाने लगे।।


 


मन के मैल से जुबाँ लड़खड़ाने लगे।।


बैचैनी सताने लगे नीद आँख से 


जाने लगे।।


मोहब्बत जिंदगी कि ख्वाब में 


भी आने लगे।।


सामने पडा पैमाना भी हाथ आने


से कदराने लगे।।


हर हक़ीक़द दुनियां कि फरेब नज़र आने लगे।।


जिंदगी में अरमानो के चिराग


जलते बुझते नज़र आने लगे।।


मायूस जिंदगी में बेवफाई जुदाई


गम के साये डराने लगे।।


कौल का यकीन फ़साना लगे 


एक बार मुड़ कर पीछे देख लेना


दोस्त शायद मेरी वफ़ा ,दोस्ती


जिंदगी का यकीन हो बहाल


जिंदगी कि चाहत पास आने लगे।


तेरी चाहतों पे तेरा नाम लिख


दूंगा दोस्त पत्थर कि लकीर 


कि तरह पत्थर भी तेरी मोहब्बत कि आवाज़ लगाने लगे।।


तेरे अश्को के आँसू दोस्त् काबा


का आबे जमजम पतित पावनि गंगा तुझसे बेवस्फाई के सनम


वफ़ा कि सनद के लिये तेरे आसुओ मे तेरे गम के गुनाह 


धोते नहाने लगे।।


नादाँ कि आजमाइस अंजाम यही


खुद कि नज़रों में गिरे दोस्त तेरी


नज़रों में उठाने लगे।।


तेरे दिल कि उफ़ भी आह बन जायेगी तेरी जागती बैचैन रातें 


खुदा कि ठोकरों से घायल


तेरी मोहब्बतों कि कसम 


खाने लगे।।


मेरी जिंदगी तेरी मंजिल मकसद


चाहतों कि कारवाँ मंजिल तेरी    


चाहत खुशिआँ होली के रंगो की


फुहार दीवाली कि तरह जगमगाने लगे।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली।*

*मत हारो जिन्दगी से तुम कभी।।।*


 


*(अवसाद/तनाव/चिंता में प्राण*


*स्वयं लेने को रोकती मेरी एक*


*रचना/प्रत्येक युवा को समर्पित)*


 


मत हारो जिन्दगी से कि ये


प्रभु का वरदान होती है।


पूरे करने को कुछ सपने


वह अरमान होती है।।


मत छोड़ना मैदान तुम कभी


बीच मझधार में।


हार गये गर तुम मन से तो


फिर ये गुमनाम होती है।।


 


माना गम बहुत हैं इस जमाने


में पर तुम बिखरो नहीं।


गिरो उठो संभलो चलो और


फिर भी तुम निखरों यहीं।।


पूरे करने को देखो सपने पर


जुड़े भी रहो हकीकत से।


पर भाग कर तुम इस दौड़  


से मत खिसको कहीं।।


 


हर रंजोगम जिन्दगी से कभी


ऊपर नहीं है।


हार जायो तुम तो भी जिन्दगी


जीना दूभर नहीं है।।


मत रुखसत हो दुनिया से कभी


बेनाम निराश होकर।


जान लो संसार में कभी भी 


कोई सुपर नहीं है।।


 


तनाव में भी खुद जान ले लेना


कहलाती बस नादानी है।


सुख दुःख चलते साथ साथ बस


यही जीवन की रवानी है।।


यही जिंदगी की मांगऔर हमारी


है जिम्मेदारी भी।


गर सितारें हों गर्दिश में तो तुम


खुद लिखो नई कहानी है।।


 


चल कर धारा के विपरीत भी


तुम सच में ख्वाब बनो।


जिसकी रौनक खुद छा जाये


तुम वह शबाब बनो।।


असंभव शब्द में खुद ही छिपा है


सम्भव शब्द भी ।


ठान लो बस मन में कि तुम


एक हीरा नायाब बनो ।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब।। 9897071046


                    8218685464


राजेंद्र रायपुरी

🌴अहा प्रकृति है कितना देती🌴


 


अहा, प्रकृति है कितना देती,


  आओ इसका मान करें हम।


    तरुवर, सरिता और धरा के, 


      हर गुण का गुणगान करें हम।


 


इनसे ही तो जीवन चलता,


  ये ही तो हैं जीवन दाता। 


    संरक्षण है इनका करना,


      कहता हमसे यही विधाता।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

सुरभि धन में प्राण बसे है


गाय मानव की हितकारी


अदभुत उत्पाद पंचगव्य


जीवन कूं कल्याणकारी


 


पालन से गोपाल कहाऊं


अति प्यारों लागे ये नाम


दूध दही और माखन खा


मेरी देह बनी अभिराम


 


धन्य हो नर तेरा जीवन


करले गौ माता से प्यार


गौ ईश्वर का रुप दूसरा


ऐसा कहें स्वयं करतार।


 


गोपालाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमः....*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


ग्यानवान-त्यागी नर सोई।


सुद्ध सात्विकी जग रह जोई।।


     नहिं आसक्त कर्म, हितकारी।


      अस जन सँग न द्वेष,अपकारी।।


होवहि त्याग कर्म-फल त्यागा।


जग नहिं संभव सभ परित्यागा।।


     भला-बुरा वा जे जग मध्यम।


      तीन प्रकार होय फल सिद्धम।।


मिलै अवसि इन्हमहँ कोउ एका।


पुरुष सकामिहिं कर्मइ जेका।।


    त्यागी-कर्म होय निष्कामा।


     मिलै न फल कोऊ बुधि धामा।।


कारन पाँच साँख्य अनुसारा।


करमहिं सिद्धि हेतु सुनु सारा।।


    कर्ता-चेष्टा-करण-अधारा।


    दैव हेतु अहँ पाँच प्रकारा।।


कर्म सास्त्र-गत वा बिपरीता।


होंवहिं कारन पाँच सहीता।।


     जे आत्मा कहँ मानै कर्त्ता।


      ऊ दुरमति-मतिमंद न बुझता।।


मैं नहिं कर्त्ता जासुहिं भावा।


कबहुँ न अस जन पाप बँधावा।।


     ग्याता-ग्यान-ग्येय तिन प्रेरक।


     कर्म-प्रबृत्ति कै तीनिउँ देयक।।


कर्त्ता-करण-क्रिया के जोगा।


बनै कर्म कै पार्थ सुजोगा।।


दोहा-ग्यान-कर्म-कर्त्ता-गुनहिं,अहहिं ये तीन प्रकार।


       कहे कृष्न सुनु पार्थ तुम्ह,साँख्य-सास्त्र अनुसार।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372 क्रमशः......


अविनाश सिंह

🌱 *हाइकु हाइकु*🌱


*---------------------*


 


जनता माँग


सरकारी आवास


बदहवास।


 


मोर के पंख


हर धर्म समान


तभी महान।


 


बढ़े या घटे


नही कोरोना डरे


लोकडॉउन।


 


कोरोना जंग


हारी है सरकार


व्यर्थ प्रयास।


 


शांत प्रकृति


दे रही है संदेश


ध्यान से देख।


 


कोरोना काल


हर लोग बेहाल


प्रकृति मौन।


 


गरीब जन


तलाशे सुखी रोटी


कच्ची न पक्की।


 


योद्धा सम्मान


बिकते सरेआम


खरीदे यार।


 


मास्क पहनो


है कोरोना इलाज 


घर में रहो।


 


ऐसी बीमारी 


बनी है महामारी


करे लाचार।


 


कोरोना नाम


करें चैन हराम


है गुमनाम।


 


चीन से आया


अजूबा वायरस


देश को खाया।


 


पाँव के छाले


नही दिखने वाले


खोजे निवाले।


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद

*जरा सोचिए......*


 


 मुहब्बत में बेचैनी होती है ।


तन्हाई कि स्याह रात होती है


शंका का बाजार गर्म और


यकीन जर्जर होता है


सैकड़ों आंखे निगेहबानी पर


उम्मीदों का खेत बंजर होता है


जिसे चाहा वो मिला नहीं


जो है वो पास नहीं


और जो पास वो अपना नहीं


क्या यही प्यार की तिजारत??


 *जरा सोचिए......* 


 


*प्रखर दीक्षित*


*फर्रुखाबाद*


विनय साग़र जायसवाल

गीतिका (हिन्दी में)


 


तुमने जो निशिदिन आँखों में आकर अनुराग बसाये हैं 


हम रंग बिरंगे फूल सभी उर-उपवन के भर लाये हैं


 


हर एक निशा में भर दूँगा सूरज की अरुणिम लाली को 


बाँहों में आकर तो देखो कितने आलोक समाये हैं


 


प्रिय साथ तुम्हारा मिलने से हर रस्ता ही आसान हुआ


हम विहगों जैसा पंखों में अपने विश्वास जगाये हैं 


 


जब -जब पूनम की रातों में तुझसे मिलने की हूक उठी


तेरे स्वागत में तब हमने अगणित उर-दीप जलाये हैं 


 


दिन रात छलकते हैं दृग में तेरे यौवन के मस्त कलश 


तू प्यास बुझा दे अंतस की जन्मों से आस लगाये हैं 


 


कैसी मधुशाला क्या हाला तेरे मदमाते नयनों से 


हम पी पीकर मदमस्त हुये अग -जग सब कुछ बिसराये हैं 


 


उस पल क्या मन पर बीत गयी मत पूछो *साग़र* तुम हमसे


तुमने जब जब व्याकुल रातों में गीत विरह के गाये हैं 


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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