सत्यप्रकाश पाण्डेय

पिता


 


पिता आधार जगत का,


पिता स्वयं संसार।


पितृ हृदय की महानता,


अनुपम और अपार।।


 


पिता शीश का छत्र है,


पिता कष्ट में छांव।


अकथनीय उपकार है,


अवर्चनीय प्रभाव।।


 


पिता ब्रह्म के रूप है,


पिता स्वयं भगवान।


पिता से संसार मिला,


मिला पिता से ज्ञान।।


 


स्व रक्त मांस मज्जा से,


निर्मित कीन्ही देह।


सन्तति हित तन त्याग दें,


नहीं जरा संदेह।।


 


अर्पित है जीवन जनक,


रखना सदा दुलार।


अमित कोष वात्सल्य के,


तव चरणों संसार।।


 


पितृ चरनकमलेभ्यो नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


दयानन्द त्रिपाठी

पिता दिवस पर एक कविता प्रस्तुत है आशा है आशिवार्द मिलेगा....


 


मैं बबूरे पेड़ के नीचे खड़ा था


तब पिता की याद कौंध आयी हमें


देख ये कैसी बिडम्बना है यहाँ


चिंड़िया और चिड़ा बैठे मिले हैं यहाँ।


 


शूल सारे जीवन में पड़े हैं


बिन पिता के प्रतिपल खड़े हैं


मेरे स्वप्नों के फूल खिलाने में लगे


बिस्तर पर हों मेरे हीत साधने लगे।


 


पिता कल्पना को साकार देता है


जीवन कंटकों को टाल देता है


जो मृदुल फूलों को पथ में 


बिछा बिन कांटो के डाल देता है।


 


कल्पना के हाथों की माया


पिता के भावना की छाया


मन मेरा डगमगता है जब


मझधार से उबार देता है तब।


 


ठिठुरन भरे रात दिन वृष्टि हो सदा 


हो कड़कती धूप में बन छाया सदा


शब्द के अर्थ अब निकलते हैं भले


खुद पिता बन भाव पिता के हैं मिले।


 


हैं कठिन तप योग सा पिता के भाव


भीड़ में सबकुछ हैं पर है तेरा अभाव


कठिन योग जैसे कर है देता है निरोग


पथ के कंटको को हर कर देता है सुयोग।


 


दिवंगत हो चिरनिंद्रा में चले गये


पर तेरे आशीष हैं सदा मेरे लिए


भीड़-भरी इस दुनिया में तेरी यादों से


रो पड़ा हूँ अकेला मैं खड़ा तेरे लिए।


 


रचना दयानन्द त्रिपाठी


 महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


विवेक दुबे"निश्चल"

देता रहा जो छाँव उम्र सारी ।


सहता रहा जो धूप खुद सारी ।


 


वो अपनी साँझ के झुरमुट में सुस्ता रहा है ।


वो देखो फिर भी कितना मुस्कुरा रहा है ।


 


बांटकर जीवन जीवन थमता जा रहा है ।


नियति के आँचल में प्यासा ही जा रहा है ।


 


पीकर दर्द के आँसू पिता मुस्कुरा रहा है ।


आज फिर समय समय को दोहरा रहा है ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@...


भरत नायक "बाबूजी

*" पिता "* (दोहे)


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*भीतर से मीठे-नरम, ऊपर लगें कठोर।


श्रीफल सम होते पिता, लेते सदा हिलोर।।१।।


 


*परिजन पालक हैं पिता, खुशियों के आगार।


उद्धारक परिवार के, होते खेवनहार।।२।।


 


*साथ रहें शासित रखें, पितु होते हैं खास।


आँगन में परिवार के, हरपल करें उजास।।३।।


 


*जो आश्रय-फल-छाँव दे, अक्षय वट सम जान।


कुल पालक होेते पिता, सबका रखते ध्यान।।४।।


 


*सहनशीलता के सदा, पितु होते प्रतिमान।


शिशु को जो सन्मार्ग की, करवाते पहचान।।५।।


 


*अपनों का हित सोचते, तजकर सारे स्वार्थ।


बगिया के माली-पिता, करते हैं परमार्थ।।६।।


 


*गूढ़-गहन-गंभीर अति, होता पितु का रूप।


कोर-कपट से दूर वे, होते अतुल-अनूप।।७।।


 


*संबल होते हैं सदा, पितु आनंद-निधान।


पाते पिता-प्रताप से, परिजन प्रेम-प्रतान।।८।।


 


*पावन-परिमल-प्रेरणा, अद्भुत अनुकरणीय।


पितु अनुपम आदर्श बन, होते हैं नमनीय।।९।।


      


*जागृत जानो विश्व में, पिता परम भगवान।


सागर नेह-दुलार के, रखना उनका मान।।१०।।


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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निशा"अतुल्य"

पिता महान


21.6.2020 


❤️😘❤️


 


पिता जीवन का आधार


वट वृक्ष सरीखा छाँयावान


काँधे पर चढ जिसके 


छू लिया था आसमान ।


 


जीवन की खुशियाँ तुमसे है


छाँव हमारी तुमसे है 


रहते हम निश्चिंत सदा ही


पाया जीवन तुमसे है ।


 


कर्मपथ पर चलते जाना


सीखा पिता से ही जान


कर्तव्यनिष्ठ और सत्य वदम


क्यों होता जीवन में महान ।


 


खुली आँखों के थे जो सपने


किया पिता ने पूरा हर काम


बिन इच्छा के सब कुछ पाया


ऐसे हैं हमारे पिता महान ।


 


मन कहीं जो भटका लगता


राह दिखाते वो आसान


काम सभी निर्विघ्न होते पूरे


पा पिता का आशिर्वाद ।


 


खेल खिलौने सीख है उनकी


जीवन पथ पर रखे संभाल


साथ हमारे सदा रहेंगे 


जीवन की ये बन पहचान ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


 


 


दुर्गा प्रसाद नाग

✍️✍️ आज का 


🌹🌹🌹(गीत)🌹🌹🌹


_____________________


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।


 


एक दीपक जलाऊं तेरे पथ में मै,


मेरे उर में दिया तुम जलाओ प्रिया।।


_____________________


जाने क्या हो गया है मुझे आज कल,


याद में खुद तुम्हारी भटकने लगा।


 


लोग कहते थे गिरकर संभल जाऊंगा,


पर मुझे लग रहा, मै बिगड़ने लगा।।


 


मैने सोचा था गागर में सागर भरूं,


खुद ही सागर में गोते लगाने लगा।


 


मेरे वैरागी मन में कहां से प्रिया,


आज अनुराग फिर से उमड़ने लगा।।


 


बनके इक रोशनी इस दीवाली में तुम,


मेरे आंगन में इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग में तुम सजाओ प्रिया।।


_____________________


खुद गुनहगार हूं मैं तुम्हारा प्रिया,


जो तेरे भाव को कुछ समझ न सका।


 


तुमने मेरे लिए क्या नहीं कुछ किया,


तेरी खातिर किसी से उलझ न सका।।


 


मै मृदा का दिया, तुम हो बाती प्रिया,


तेरे संग में रहा और जल न सका।


 


तुम जली रात भर नाम मेरा हुआ,


खुद ही अपने तिमिर से निकल न सका।।


 


अपने दिल को सजाया तेरी याद में,


आओ आओ तुम इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।।


_____________________


 


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


(काव्य-रंगोली पत्रिका में प्रकाशित)


................ दुर्गा प्रसाद नाग


                     नकहा- खीरी


        मोo- 9839967711


कवि कमलेश सोनी

योग दिवस काव्य रंगोली परिवार को ,,,,,,,शव्द सुमन कमलेश के ,,समर्पित,,,21,6,2020


योग का जो उपयोग होगा भली भांति मित्र


         रोग धराशायी होगा आप भी चिरायु हों ।।


वायु के प्रकोप का ना व्यवधान आये कभी


         विधि के विधान बीच आप भी शतायु हों ।।


दर्द में भी सब एक दूजे के हों हमदर्द


         दुःख दर्द दूर हो के सभी दीर्घायु हों ।।


कमलेश सुधामयी वसुधा का हो सुधार 


          पूर्ण हो अपूर्ण आय सम्पूर्ण आयु हो ।।


         कवि कमलेशसोनी 9794493606


राजेंद्र रायपुरी

😊 विश्व योग दिवस पर विशेष 😊


 


स्वस्थ रहने का न खाना 


                मात्र ही आधार होता।


सच कहूॅ॑ तो योग आसन


                भी ज़रूरी यार होता।


जो करे ना योगासन 


            और खाता खूब हर दिन, 


स्वास्थ्य के उसके हमेशा


                  यार बंटाधार होता।


 


            ।।‌राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तेरे आने से...…..........


 


तेरे दर्शन पाकर मोद मनाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


पा करके तेरे दर्शन भगवन


हों जाएं प्रफुल्लित मेरे तन मन


मैं झूम झूमके तेरे गुण गाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


आदिव्याधि कट जाती सारी


जब दीखें तेरी सूरत प्यारी


जगदीश्वर तब मन में हरषाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


"तेरे आने से" संभला है जीवन


मुरलीधर सा और न कोई धन


हे नारायण मैं तेरे गुण गाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


बंशीधर हे जगजीवन ज्योती


सत्य हृदय के शोभित मोती


अदभुत छवि पर बलि बलि जाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ।


 


श्री श्यामाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"अपने बदल जाते है"*


"देवालय वही जग में यहाँ,


पुजारी बदल जाते है।


रास्तें वहीं जीवन के फिर,


कदम बदल जाते है।।


दुनियाँ वही साथी ये तो,


इन्सान बदल जाते है।


भक्ति वही जीवन में साथी,


यहाँ भक्त बदल जाते है।।


संजोए सपने जीवन में,


वो सपने बदल जाते है।


अपनो की दुनियाँ में देखो,


अपने बदल जाते है।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 21-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


ब्रह्महिं स्थित एकीभावा।


मुदित हृदय चित पुरुष सुभावा।।


     करै न सोकइ प्राप्ति-अप्राप्ती।


     लहहि परम सुख मम पराभक्ती।।


प्रबिसि मोंहि मा समुझइ मोंहीं।


बासुदेव बस सभ कछु होंहीं।।


      अनासक्त जन करमइ जोगी।


      पावैं मोर परम पद भोगी।।


सभ निज करम मोंहि करि अर्पन।


होइ परायन मनहिं समर्पन।।


      कर्म-योग कै लइ अवलंबन।


       धरहु मोंहि मा अर्जुन चित-मन।।


जीवन-मरन-कष्ट कटि जाई।


जदि मोरे मा चित्त लगाई।।


     बरना नष्ट-भ्रष्ट तुम्ह भयऊ।


     जदि मम बचन न मद बस सुनऊ।।


जदि घमंड बस जुधि नहिं करबो।


मिथ्या बस रनभुइँ ना जइबो।।


     छत्रीपनइ सुभाव हे अर्जुन।


     होइबो जुधिरत जबरन तुम्ह सुन।।


करबो सकल करम तुम्ह अबहीं।


पूर्ब बन्धनहिं परबस भवहीं।।


      निज माया के बलयी बूता।


      प्रभू नचावहिं सभ जग-भूता।।


दोहा-अस्तु,सुनहु हे भारतइ, प्रभू-सरन महँ जाउ।


        पाइ कृपा परमातमा, परमधाम-पद पाउ।।


सोरठा-तुमहिं दीन्ह हम ग्यान,गोपनीय जे अति अहहि।


          सुनु तू पार्थ सुजान,करउ जे तव इच्छा कहहि।।


दोहा-देखि सांत अति अर्जुनहिं, पुनः कहे भगवान।


        अहहु तुमहिं मो परम प्रिय,पुनि मैं कहब तु जान।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372 क्रमशः.......


कालिका प्रसाद सेमवाल

*गौ में है देवों का वास*


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गौ रक्षा के लिए


लेते हैं प्रभु सदा अवतार


गौ सेवा से नृप दलीप ने


पाई थी संतान।


 


गौ का गोबर भी तो


अति पवित्र है,


गौ चारण करने में रत थे


स्वयं श्रीकृष्ण भगवान।


 


गौ के दूध से ही 


श्रृंगी ऋषि ने खीर बनाई,


राजा दशरथ की किस्मत जगी


घर में जन्मे चार लाल।


 


गौ वध करने वाला


होता राक्षस अति क्रूर है,


जो गौ वध नहीं रोक पाई


वह कैसी सरकार है।


 


आओ गौ रक्षा का लें संकल्प


गौ माता है,गौ ही देवी है,


गौ में है देवों का वास


इसे बनाये हम राष्ट्र माता।।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ सुषमा सिंह कानपुर

*बाल गीत*


जब से यह कोरोना आया।


सारा जग है चक्कर खाया।


सबका बहुत बुरा है हाल।


सबके मन मे कई सवाल।


इसकी कोई नहीं दवाई।


बोल रहा था मुन्ना भाई।


घर में रक्खो सदा डेटॉल।


यह करता है खूब कमाल।


पानी मे फिटकरी घुला दो।


फिर उसमें डेटॉल मिला दो।


इसको इक बोतल में भरलो।


घर को सैनीटाइज करलो।


हाथों को धोकर कई बार।


बीमारी से पाओ पार।


रक्खो नहीं किसी से दूरी।


पर दो फुट डिस्टेंस जरूरी।


मुँह पर अपने मास्क लगाओ।


कोरोना को दूर भगाओ।


@


डॉ सुषमा सिंह


कानपुर


soni kumari pandey

जय सरस्वती मां


____________


शीर्षक: करो चीन का संपूर्ण बहिष्कार


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देशभर में जागा क्रोध है


लेना चीन से प्रतिशोध है


सीमा पर करे तकरार है


फिर हमसे करें व्यापार हैं


 


चीन का फन कुचलना होगा


 ड्रैगन पर वार करना होगा


अब मिलकर रण करना होगा


हम सबको प्रण करना होगा


 


अपनी शक्ति दिखानी होंगी


औकात भी बतानी होगी


इस बार विरोध में धार हो


 चाइना में हाहाकार हो


 


रफ्तार पर अब प्रहार करो


अब चीन का बहिष्कार करो


चरित्र में इसके पाप है


हरी घास में हरा सांप है


 


ना कोई धर्म ना ईमान है


शांति का दुश्मन शैतान है


समझो दो मुंहे की चाल को


और फैलते इसके जाल को


 


चार कदम है आगे आता


भगाने पर दो कदम जाता


दो कदम हड़प कर जाता है


ऐसे साम्राज्य बढ़ाता है


 


चमगादड़ खाने वाला है


वायरस फैलाने वाला है


खुली नहीं आंख दिखाता है


गलवान को अपना बताता है


 


शांति प्रिय है देश हमारा


वसुधैव कुटुंबकम है नारा


दुनिया को बुद्ध दिए हमने


शांति हेतु युद्ध किये हमने


 


भू माफिया है यह भिखारी


बुद्धि गई है इसकी मारी


चीन का काल अब आया है


 गलवान में मरने आया है


 


भारत से जो टकराता है


पूरा ही वो मिट जाता है


कभी भारत से बैर लेना 


प्राणो का मोह छोड़ देना


 


शेरों को जो उकसाओगे


तुम वहीं ढेर हो जाओगे


गलवान नहीं ले पाओगे


 बीजींग जरूर गंवाओगे।


         -soni kumari pandey


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*कसक*


कसक उठती हृदय में देख कर,मजलूम को बेघर,


हैं आए वो भी दुनिया में,अशुभ तक़दीर को लेकर।।


 


न खाने का ठिकाना है,न पानी का ठिकाना है,


मग़र गढ़ते नगर नित नव,खुले अंबर तले रहकर।।


 


हृदय पीड़ा से भर जाता,उन्हें जब भागता देखूँ,


ढूँढते निज ठिकाने को,ठिकाना ग़ैर को देकर।।


 


पसीना खुद बहाकर वो,बनाते ग़ैर की क़िस्मत,


जलाकर धूप में ख़ुद को,सजाएँ दूसरों के घर।।


 


ग़मों का दौर जब आता,सतत वो भागते-फिरते,


रखे निज शीष पर गठरी,जो रहती भाग्य नित बनकर।।


 


सभी ये राष्ट्र के गौरव,परिश्रम के पुजारी हैं,


इन्हीं का दर्द भी अपना,यही समझें सभी मिलकर।।


    


जरूरत प्रेम देने की,उन्हें सम्मान देने की,


प्रतिष्ठा है निहित इसमें,यही है राष्ट्र के हितकर।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


 *डॉ बीके शर्मा*  उच्चैन, भरतपुर ,राजस्थान

*एक चेहरा है* 


*************


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं |


रोज लिखता हूं गजल 


फिर दोस्तों को सुनाता हूं || -1


 


देख ली है सारी दुनिया 


मैंने उसकी आंखों में |


कहां छुपाया उसने मुझको


यह समझ नहीं मैं पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -2


 


वह मुझे अनजान सी 


जब कहीं शहर में मिल जाती है |


वह पास से गुजर जाती है 


मैं रोक ना उसको पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -3


 


इस कदर लोगों की नजर 


आ कर मुझ पर रुक जाती है |


लोगों का यह सीधा इशारा


देख सहम मैं जाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -4


 


झलक उसकी तस्वीर बन


 आंखों में मेरे बस गई |


आज तक था मैं अकेला 


अब साथ उसको पाता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं 


खुद को भूल जाता हूं -5


 


इस तरह एक चांद को 


देखने की आदत बन गई |


जाग उठा प्रेम दिल में 


और खुद को मैं सताता हूं ||


एक चेहरा है जिसको देख मैं


 खुद को भूल जाता हूं -6


 


मिले ना दोस्त अगर तो 


यह ग़ज़ल खुद ही गुनगुनाता हूं |


एक चेहरा है जिसको देख मैं


 खुद को भूल जाता हूं ||- 7


 


 


 *डॉ बीके शर्मा* 


उच्चैन, भरतपुर ,राजस्थान


सुनीता असीम

चल बरसते बादलों का आज हम पीछा करें।


आसमाँ के पार से पानी वो बरसाया करें।


***


ग़म रहे हैं जिन्दगी का सिर्फ हिस्सा ही यहाँ।


आप बस रोकर या हसकर के इन्हें चुकता करें।


***


जिन्दगी की साजिशें हम तो कभी समझे नहीं।


सुख यहां थोड़े रहे दुख बारहा बरपा करें।


***


इक दिया रोशन करो फिर रोशनी भरपूर हो।


अब अंधेरों से नहीं हम आज समझौता करें।


***


इब्तिदा ए इश्क में घायल हुई है आशिकी।


बात करके यार की दिल को नहीं गन्दा करें।


***


सुनीता असीम


२०/६/२०२०


 


 


########


कमलेश सोनी

चाल वाज चीन ,कटता कितना महीनतीन तेरह तेइस का तिकड़म चला रहा है 


            अपने को गिनता है सर्व शक्तिमान तू ।।


अब तक सब धान बाइस के तौले तूने


             सावधान अब और हो जा बेईमान तू ।।


बोट भर के हो पर खोट कितनी है भरी


              गीला होगा लँगोट खूब ले पहिचान तू ।।


कमलेश नाक में नकेल तेरी डालेंगे अब


              मुँह पे मुसक्का बाँधूँगा ले मेरी मान तू ।।


रश्मि लता मिश्रा

गीतिका 


212 212 212 212


 


वीरता धीरता है दिखा चल दिए


माँ कहे लाड़ले सर कटा चल दिए।


 


जान तो देश खातिर सहेजे रहे


आ गया देख वक्त तो गवां चल दिए।


 


कौन है देख जो भारती से बड़ा


आज अपना लहू भी बहा चल दिये।


 


चीन के चार देखो गिरा के चले


नीति रण की यही तो निभा चल दिये।


 


नमन है वीर को वीरता को करें


देख नम आँख करके कहाँ चल दिये।


 


रश्मि लता मिश्रा


दयानन्द त्रिपाठी* महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

*यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ.....*


 


जीवन में आपाधापी है


संकट है मन पापी है।


 


बैठ घोर तम में सोचा करता हूँ


मन में द्वंद चलाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


शूल बड़े हैं जीवन की राहों में


कंटक हैं प्रतिपल बाहों में।


 


निर्मम छाया से टकराता हूँ


नयनों के मृदुल खारे जल से


पावन हो जाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


मैं अकिंचन जीवन पथ में 


प्राण निछावर करने आया हूँ।


 


बीते पलछिन को भुलाया करता हूँ


उर के घातों को समझाया करता हूँ।


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


 


*रचना - दयानन्द त्रिपाठी*


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


विवेक दुवे निश्चल

*वो शोहरतें पुरानी ।*


*वो दौलते कहानी ।*


*चाहतों की चाह में ,*


 *ये दुनियाँ दिवानी ।*


*हो सकीं न मुकम्मिल,*


*और कट गई जवानी ।*


*जिंदगी के सफ़र की ,*


*सबकी यही कहानी ।*


... *"निश्चल"@*.....


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मां तुम जीवन का आधार हो*


********************


माँ परिवार की आत्मा होती है,


माँ आदिशक्ति माया होती है,


माँ घर की आरती होती है,


माँ जीवन की आस होती है,


माँ ही घर का प्रकाश होती है,


माँ गंगा सी पावन होती है,


माँ वृक्षों में पीपल सी होती है,


माँ देवियों में गायत्री होती है,


माँ फलों में श्रीफल होती है,


माँ शहद सी मीठी होती है,


माँ ममता का प्याला होती है,


माँ ऋतुराज वसंत होती है,


माँ ईद दिवाली और होली होती है,


माँआन ,बान ,शान होती है,


माँ रामायण वेद पुराण होती है,


माँ वीणा की झंकार होती है,


माँ जीवन का मधुमास होती है,


माँ तन, मन, धन होती है,


माँ ईश्वर की अनुपम कृति होती है,


माँ ही इस जहां में हमें लाईं है,


माँ ही जीवन का आधार होती है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज

विषयः चित्राधारित


दिनांकः २०.०६.२०२०


दिवसः शनिवार


छन्दः मात्रिक( दोहा)


विधाःस्वैच्छिक 


शीर्षकः कटा आम का पेड़


 


मानवीय संवेदना , मरी आज संसार । 


ठूठ बना यह पेड़ भी , परहित में फलदार।।१।।


 


भौतिक लिप्सा है बला , क्षत विक्षत वन वृक्ष।


व्यर्थ सभी बिन प्रकृति है, जीतो या अंतरिक्ष।।२।।


 


देखो धीरज भाव मन , कटा आम का पेड़।


जीवन हन्ता जो मनुज , फलता पड़ा अधेड़।।३।।


 


साहस पावन तरु कटा , माना नहीं है हार।


गज़ब हौंसला आपदा , सीख मनुज उपहार।।४।।


 


व्यथा कथा संत्रास की , सहता पेड़ रसाल।


लक्ष्य मात्र वश जिंदगी , मानव हो खुशहाल।।५।।


 


जन्म मरण संसार का , चलती जीवन रीति।


जो जीए परमार्थ में , बाँटे मधुरिम प्रीति।।६।।


 


पलभर की ये जिंदगी , पाओ यश कर दान।


सुख समझो सेवा वतन,खुशियाँ मुख मुस्कान।।७।।


 


डिप्रेशन जीवन्त बन , बाधक नित उत्कर्ष। 


कठिनाई दुर्गम समझ , जीवन है संघर्ष।।८।।


 


पथ प्रदर्शक आपदा , देती साहस राह।


धीरज सह विश्वास मन , पूरण होती चाह।।९।।


 


नव पल्लव नव आश का , फल रसाल संदेश।


जीओ जबतक जिंदगी , परहित यश परिवेश।।१०।।


 


सुख दुख जीवन सरित् का,समझो तुम दो तीर।


जलकर पाता चमक को , स्वर्ण मौन गंभीर।।११।।


 


कवि निकुंज प्रमुदित हृदय,कटा पेड़ आचार।


बिना सिसक अरु रोष का, फल देता संसार।।१२।।


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नई दिल्ली


सन्दीप मिश्र सरस* बिसवाँ सीतापुर

( *21 जून को विश्व योग दिवस को समर्पित*)


पंचइंद्रियाँ जिह्या, आंखें, कान, त्वचा औ नस्या है।


चित्तवृत्ति को साध न पाना सबसे बड़ी समस्या है। 


योग वही जो मानव मन को भोग वासना मुक्त बना दे, 


योग साधना ही जीवन की सबसे शुद्ध तपस्या है।


 


*सन्दीप मिश्र सरस*


बिसवाँ सीतापुर


संजय जैन (मुम्बई)

*मिलन का वियोग*


विधा : गीत


 


इस अस्त व्यस्त से, 


भरे माहौल में।


पत्नी बच्चे आशा, 


लागाये बैठी है।


की कब आओगें,


अपने घर अब तुम।


अब तो आंखे भी,


थक गई है।


तुम्हारे आने का,


इंतजार करते करते।।


 


महीनों बीत गए है,


तुम्हे देखे बिना।


बच्चे भी हिड़ रहे है,


तुमसे मिले बिना।


की कब आएंगे पापा, 


हम सब से मिलने।


तभी मम्मी का मुरझाया, 


चेहरा खिल जाएगा।।


 


पिया का वियोग, 


क्या होता है।


यह पतिव्रता नारी,  


समझ सकती है।


अपनी तन्हाईयो का,


जिक्र किससे कहे।


जब पति ही दूर हो तो,


अपनी व्यथा किससे कहे।।


 


इस अस्त व्यस्त भरे माहौल से,


कैसे मिले हमे छुटकारा।


कोई तो बताये जिससे,


मिल सके अपने परिवार से।


सबके शिकवे शिकायते,


हम दूर सके इस माहौल में।


और हिल मिलकर अब,


जी सके उनके साथ हम।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


20/06/2020


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