शशि मित्तल "अमर"*

*मेरे पिता*


 


मैं उस बगिया का अंश हूँ


उस माली का वंश हूँ


जिन पर गौरवन्वित हूँ


वो हैं मेरे पिता।


 


व्यक्तित्व उनका देखा हमने


आसमान से ऊँचा


सभी को देते आदर भाव


न दिखाएं किसी को नीचा


सारे सुख घर में भर दिए


रहा न कुछ भी रीता


वो हैं मेरे..............


 


हमें सिखाया संस्कार,


और शान से रह कर जीना


रच गए हर कोने में


जैसे रचती है हीना


रामायण का पाठ सुनाते


और सुनाएं गीता


वो हैं मेरे............


 


ऊपर से कठोर लगते


अंदर से पूरे मोम


चले गये हमें छोड़ कर


रोता है रोम रोम


याद करूँ उस गोद को


जिसमें बचपन बीता


करूणा दया सिखाने वाले


वो ही थे मेरे पिता.....


 


*शशि मित्तल "अमर"*


*मौलिक एवं स्वरचित*


ऋचा मिश्रा रोली श्रावस्ती बलरामपुर उत्तर प्रदेश

पिता


 


पिता वृक्ष का जड़ है जिसपर,


 शाखाओं का भार लदा


पिता महल का वह बुनियाद है,


 जिसपर है ए मकान लदा


पिता रेल का वह इंजन है, 


जिससे डिब्बे चलते हैं


पिता के मेहनत से ही देखो,


परिवार ये पूरे पलते हैं


पिता ईश हैं, पिता मित्र हैं


पिता ही मेरे सबकुछ हैं


एक अच्छा संस्कार सिखाया


पिता जी मेरे गुरुवर हैं


मेरे संग बचपन में खेले


और बहुत ही प्यार दिया


गलत काम जो हुआ कभी भी


मार दिया व सुधार दिया


एक पिता क्या-क्या है करता


पिता बनोगे ! जानोगे


पिता ने तो इतना सब है किया


क्या उनका कहना मानोगे?


पिता की कीमत उनसे पूछो


जिनके पिता जी नही रहे


पिता न रूठे पिता न छूटे


ऋचा हाथ जोड़ कहे


             ✍ऋचा


       मिश्रा रोली


      श्रावस्ती बलरामपुर 


    उत्तर प्रदेश


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

---------पिता हमारे----


 


जब कही कभी परेशान हो जाता


ख्वाबो और ख्यालों यादो मन


के भावों पर छा जाते 


भटक जाऊं मूल्यों के जीवन


पथ से राह दिखाते ।।


 


पिता हमारे


भगवान मैं उनकी संतान।।


 


याद हमे है बचपन अपना


मैं उनके सपनो का संसार।


मेरी खुशियो कि खातिर जाने


कितने कष्ट उठाते ना थकते


ना हारते हर कदम नया उत्साह।


पिता हमारे भगवन मैं उनकी


संतान।।


 


जब तक रहते साथ जीवन सरल


सुगम कठिनाई का ना नाम।


जब कभी भी मन मस्तिष्क नज़रों से ओझल हो जाते जीवन राहो


में अँधेरा हो जाता दुर्गम जीवन 


हो जाता झट प्रत्यक्ष मन मंदिर


में प्रगट हो जाते जीवन के अंधेरो


में उजाले की दीप जला कर हो जाते अंतर्ध्यान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


मेरा सामर्थ उनका आर्शीवाद माद्री ताकत सम्बल उनका


आर्शीवाद ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी


संतान।।


 


पचपन में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया । जीवन के कुरु


क्षेत्र के कर्म, ज्ञान दीप जलाया


जीवन मूल्य ,मतलब सिद्धान्त


बताया हारना नहीं जीतना सिखाया जो भी उनकी पूंजी


जीवन कर दिया मुझ पर कुर्बान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


गिरना नहीं सम्भलना सिखाया


निति, नियत, ईमान दिया मर्म


मर्यादा दीया मूल्य मूल्यवा।


पिता हमारे भगवान् मैं उनकी


संतान।


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


 


फिर भी उनको लगता अब भी


मै बच्चा हूँ अबोध ।     


 


पल प्रहर दिन रात मेरी सुख दुःख की चिन्ता 


करते निवारण का पराक्रम का


धन्य ,धरोहर ,ध्यान 


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


चाहे जिस जाती ,धर्म ,प्राणी का


होऊं प्राण उनके ही बीज का बृक्ष बनु माँ के कोख में पलु ।


माँ की ममता के आँचल का वात्सल्य माँ भारती के आँगन


की किलकारी पुत्र मैं आज्ञाकारी


श्रवण,राम ,पशुराम ।


उनके चरणों की धूलि मेरे मस्तक


का अभिमान ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


उनकी साँसे उनकी धड़कन का


मेरा प्राण दम निकले मेरा पितृ 


भक्ति में गर अवसर आ जाये


उनकी खातिर दे दूँ उनका ही


अपना प्राण।।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पितृ-दिवस*


जीवन-दाता जनक है,जैसे ब्रह्मा सृष्टि।


करे पिता-सम्मान जो,उसकी अनुपम दृष्टि।।


 


पिता देव के तुल्य है,इसका हो सम्मान।


इसका ही अपमान तो,कुल का है अपमान।।


 


चाल-चलन,शिक्षा-हुनर,सब सुख जो संसार।


चाहे देना हर पिता,सह कर कष्ट अपार ।।


 


पिता रहे चाहे जहाँ, रखे बराबर ध्यान।


सुख-सुविधा परिवार की,करे सदा कल्याण।।


 


पिता-पुत्र,पुत्री-पिता,जग संबंध अनूप।


राजा दशरथ राम का,जनक-जानकी भूप।।


 


कभी तिरस्कृत मत करें,वृद्ध पिता को लोग।


बड़े भाग्य जग पितु मिले,बने सुखद संयोग।।


 


यही सनातन रीति है,पितु है देव समान।


पिता के कंधे पर रहे,कुल-उन्नति-उत्थान।।


 


पितृ-दिवस का है यही,बस उद्देश्य महान।


हर जन के हिय में बसे,पिता-भाव-सम्मान।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

* योग दिवस *


पतंजलि के योगसूत्र से 


योग का प्रादुर्भाव हुआ 


विश्व शांति अध्यात्म की 


धारा में इसका प्रभाव हुआ 


आयुर्वेद की आत्मा है यह 


योग बड़ा कल्याणकारी


 तन-मन रहे स्वस्थ मानव का


 योग बड़ा हितकारी


 तन के प्रतिरक्षा तंत्र की


 औषधि सर्वरोगहारी


 योग ध्यान आसन सब विधियां


 स्वास्थ्य के लिए मंगलकारी 


योगाभ्यास करें प्रतिदिन


 तो आयुष्मान बने हम


 बढे शारीरिक मानसिक दक्षता


 प्रसन्न चित्त रहें हम


 भारत बना विश्व गुरु सबको


 योग की ओर बढ़ाया


 संपूर्ण विश्व ने इक्कीस जून को 


योग दिवस है मनाया


 योग विरासत है भारत की


 पाँच हज़ार साल पुरानी


 समृद्ध सफल है अपनी संस्कृति


 अब पूरी दुनिया जानी


 मानव चेतना और मानवता का 


देता सबको संदेश


 योग करें मिलकर सारा जग


 रहे ना तन में कोई क्लेश


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


       *"योग"*


"नित योग करने से ही,


निर्मल होता-


तन-मन।


निर्मल तन-मन से ही,


होती भक्ति-


प्रभु बसते मन।


मन बसे प्रभु भक्ति जो,


सार्थक होता-


ये जीवन।


योग करें निरोगी बने,


तन-मन बन जाये-


दर्पण।


विकार नहीं जीवन में,


सत्य-पथ पर-


सबका मिलता समर्थन।


नित योग करने से ही,


निर्मल होता-


तन-मन।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 21-06-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल

पितृ दिवस पर विशेष


*****************


*पिता जीवन का आधार है*


********************


पिता परिवार का आधार होता है,


पिता ही परिवार की पहचान है,


पिता ही बच्चे को चलना सीखाता है,


पिता ही बच्चे का ज्ञान दाता होता है।


 


पिता से ही बच्चों की मुस्किल आसान होती है,


पिता से ही बच्चों की पहचान होती है,


पिता वट वृक्ष जैसा होता है,


पिता की छाया में परिवार पलता है।


 


पिता ही परिवार के लिए रात दिन एक करता है,


पिता ही बच्चों में चेतना भरता है,


पिता परिवार का उजाला होता है,


पिता ही परिवार की जिम्मेदारी उठाता है।


 


पिता बच्चों की प्यास होती है,


पिता परिवार की आस होती है,


पिता की महिमा गाई नहीं जा सकती है,


पिता नूर नहीं कोहिनूर होता है।


 


पिता बच्चों की हर मांग पूरी करता है,


पिता है तो हर सपने पूरे होते है,


पिता बच्चों को संस्कार देता है,


पिता परिवार को पहचान देता है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई

आज पिता दिवस पर मेरी रचना आप सभी के लिए प्रस्तुत है।


 


*पिता क्या होते है*


विधा: कविता


 


अंदर ही अंदर घुटता है।


पर ख्यासे पूरा करता है।


दिखता ऊपर से कठोर।


पर दिलसे नरम होता है।


ऐसा एक पिता होता है।।


 


कितना वो संघर्ष है करता।


पर उफ किसीसे नहीं करता।


लड़ता है खुद जंग हमेशा।


पर शामिल किसीको नहीं करता।


जीत पर सबको खुश करता है।


हार किसी से शेयर न करता।


ये एक पिता ही कर सकता।।


 


खुद रहे दुखी पर,  


घरवालों को खुश रखता है।


छोटी बड़ी हर ख्यासे,  


घरवालों की पूरी करता है।


फिर भी बीबी बच्चो की, 


सदैव बाते वो सुनता है।


कभी रुठ जाते मां बाप,  


तो कभी पत्नी रूठ जाती है।


इसलिए दोनों के बीच में,


बिना वजह वो पिसता है।


इतना सहन शील इंसान, 


एक पिता ही हो सकता है।।


 


समझ न सके उसे कोई।


इसलिए वो अंदर ही अंदर।


स्नेह प्यार को तरसता है।


पर पिता को ये सब, 


अब कहाँ पर मिलता है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


21/06/2020


एस के कपूर  श्री हंस बरेली

*विषय।।।।।।।योग।।।।।।।।।।।*


*शीर्षक।।।।विश्व योग दिवस।।21जून।।।।।योग भगाये रोग।।*


*।।।।।।।।।।मुक्तक।।माला।।।।*


 


योग से बनता है मानव


शरीर स्वस्थ आकार।


योग एक है जीवन की


पद्धति स्वास्थ्य का आधार।।


योग से निर्मित होता तन मन


और मस्तिष्क भी सुदृढ़।


तभी तो हम कर सकते हैं


हर जीवन स्वप्न साकार।।


 


भोग नहीं योग आज की बन


गया एक जरूरत है।   


रोग प्रतिरोधक क्षमता से ही


जीवन बचने की सूरत है।।


पांच वर्ष सम्पूर्ण विश्व को ही


भारत ने दिखाया था रास्ता।


आज तो पूरी दुनिया में भारत


बन गया योग की एक मूरत है।।


 


नित प्रति दिन व्यायाम ही तो


योग का एक रूप है।


व्यावस्तिथ हो जाती आपकी


दिनचर्या बदलता स्वरूप है।।


निरोगी कायाआर्थिक स्थिति


भी होती है योग से सुदृढ़।


योग तो सारांश में तन मन की


सुंदरता का ही प्रतिरूप है।।


 


एस के कपूर  हंस।।।।बरेली।।।।।।।।*


दिनांक।।21।।06।।2020


मोब 9897071046।।।।


8218685464।।।।।।।।।।


संजय जैन (मुम्बई

*आत्महत्या*


विधा : कविता


 


कुछ अपने और कुछ सपने,


हमे मजबूर कर देते है।


आत्महत्या जैसा घिनोना, 


 पाप करने को।


और जीवन को मिटा देते है,


कायरो की तरह से।


पर छोड़ जाते है माँबाप को,


मुर्दो की तरह जीने को।।


 


जिंदगी नाम शोहरत के लिए,


ही जी जाती है क्या।


बिना नाम शौहरत के क्या,


इंसान जीते नहीं है।


हौसले बुलंद हो तो,


हर जंग जीत सकते है।


बड़े बड़े नामवीरो को,


धूल चटा सकते है।।


 


समय विपरीत है तो भी,


जीत का सेहरा बांध सकते है।


और लाखो की भीड़ में, 


अपनी पहचान बना सकते है।


माना कि लोग जलते है,


तेरी कामयाबी से।


इसलिए तुझे गिराने का,


निरंतर प्रयास करते है।।


 


छलकपटी से भरी पड़ी,


ये मायावी दुनियां है।


जहाँ कोई किसी का, 


सगा सबंधी नहीं है।


जिसे मिलता है मौका,


वो ही लूट लेता है।


और कामयाबी के लिए,


अपनो पर पैर रख देते है।।


 


इंसान ही मजबूर कर देते है,


आत्महत्या करने को।


फिर उसकी मृत्यु पर, 


घड़यली आंसू बहाते है।


और अपने कांटे को, 


हटाकर खुश होते है।।


 


जय जिनेंद्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


21/06/2020


मंजूषा श्रीवास्तव'मृदुल'

दिनांक २१/६/२०


योग दिवस 


*********


योग हरे चिंता सभी,काटे सकल कलेश |


तेज बढ़े स्फूर्ति हो,आलस रहे न लेश ||


 


तन मन मे उत्साह हो,छाये नव उल्लास |


रोग दोष सब दूर हों,छाये नहीं विषाद ||


 


योग शक्ति अभ्यास है ,ऐसा सरल उपाय |


नेत्र ज्योति बढ़ती रहे,यौवन कभी न जाय ||


 


काया कांति बनी रहे,कभी न रोग सताय |


प्राणायाम करो सदा,तो जीवन हर्षाय ||


 


मन उमंग बढ़ती रहे,जरा रहे अति दूर |


योगी युत जीवन जियो ,सुख पाओ भरपूर ||


 


योगा प्राणायाम में ,होती शक्ति अपार |


हो विरक्ति दुष्कर्म से,घटे पाप का भार ||


 


गीता में श्री कृष्ण ने ,दिया योग का ज्ञान |


अर्जुन के मन से मिटा ,तमस और अज्ञान ||


 


उत्तम साधन है यही,रखता हमें निरोग |


भक्ति शक्ति की राह का,सुंदर सफल प्रयोग ||


 


दर्शन ने भी योग को ,माना सबसे खास |


जो अपनाते योग को, होते नहीं उदास ||


 


गुरु पातञ्जलि ने दिया ,अनुपम अद्भुत ज्ञान |


इसको अपना कर मनुज,हो जाये बलवान ||


✍️मंजूषा श्रीवास्तव'मृदुल'


शिवांगी मिश्रा लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश

*21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस*


 


*देश में आज फैली हुई है बिमारी ।*


*योग के प्रयोग से हो रही तैयारी ।।*


 


करे साकारा ये जीवन सुखद आकार देता है ।


निकट यदि रोग जो आयें तो उनको मार देता है ।।


 


करें जो नित इसे नियमित तो दावा है मेरा सबसे ।


योग के सामने हर रोग हिम्मत हार देता है ।।


 


विश्व में मौत का ताण्डव करे वो रोग फैला है ।


कोई बाकी नहीं है देश जो संकट ना झेला है ।।


 


योग का ये दिवस कोई मात्र इक उत्सव नहीं भाई ।


बचाये रोग से ये योग का साधन अकेला है ।।


 


भरे ऊर्जा से जो हमको वो क्षमता योग रखता है ।


हो उलझा मन रहे खुशहाल समता योग रखता है ।।


शारीरिक हो समस्या या अशान्ति फैली हो मन में ।


रखे चैतन्य तन मन ऐसी ममता योग रखता है ।।


 


स्वरचित.....


शिवांगी मिश्रा


लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सभल जाओ ,सुधर जाओ


नहीं तो देंगे तुमको चीर


विषधर तुम विष बीज 


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


फन कुचल देंगे तुम्हारी हस्ती


मिटा देंगे मानवता के दुश्मन दानव चीन धूर्त ,पाखंडी,मक्कार


तेरी दानवता मक्कारी का 


विश्व बंधू देगा जबाब गिन गिन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


सन् बासठ में धोखा दिया


छल छद्म की चाल चला


भूले नहीं हम तेरी कुटिल


कुटिलता को भारत हम सौम्य 


शालीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


मेरी बाज़ारों का तू बड़ा व्यपारी


तेरी हर उत्पाद का वहिष्कार करेंगे  


तेरा मर्दन मान करेंगे तुझसे


दो दो हाथ करेंगे लड़ेंगे तेरा


सत्या नाश करेंगे।


मिटा कर रख देंगें तुझे चीन।।


 


तू चालाक लोमड़ी दोस्ती


का स्वांग रचता पीठ में खंजर


भोकता ।                                


 


तेरी निति ,नियत, कायर


दुष्टों की तेरी हर कुटिल ,चाल,


जाल को काट देंगे तेरी औकात


का किनारा तीर।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तूने हमारे पड़ोसी नेपाल को


दुश्मनी की राह दिखाई है।


 


निगल जाएगा तू भोले भाले


नेपाल ,नेपाली को तेरी मंसा


नहीं जानता गर नेपाल। 


                


मिट जाएगा तेरे पाश में


नहीं रहेगा विश्व नक्शे में नेपाल


भोले भाले नेपाली को शायद


नहीं आभास।


 


पूरी नहीं होने देंगे तेरी कोइ चाल


चाहे जीतनी चाले चल ले, तेरा


होने वाला है बुरा हाल नीच।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू कितना दुष्ट दमनकारी अपने


ही लोगो का धेन्चौक पर करता


है संघार, तू विघटन कारी, तू


अत्याचारी ,होने वाला है तेरा


अब सर्वनाश ।                   


उछल कूद तू


चाहे जितना कर ले चीन


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू धमकी देता चेतावनी सुन ले


कान खोलकर तू है अब बेमोल कौड़ी का तीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


भारत के हर सैनिक की शहादत


का हिसाब करेंगे तेरे टुकड़े हज़ार


करेंगे नही बायेगा तू गिन गिन।


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


हर भारतवासी का खून है


खौला अपने हर शहीद जवान


का बदला एक एक पे बीस।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


ललकार सुन ले फुंकार तू अपनी


बंद कर देंगे तुझे हम कटपीस।


मिटाकर रख देंगे तुझे हम चीन।।


 


हम कायर कमजोर नहीं


हम तुझ जैसा धोखा और


फरेब नहीं ।


हम भारत का भारतवासी 


जो आँख दिखाए आँख


निकाले जो दे चुनौती


उसका काल बने सभल जाओं अब चीन।


मिटाकर रख देंगे हम चीन।।


 


कर तू आजमाइस जोर नहीं


पछतायेगा कही का ना तू


रह जाएगा होगा तू गमगीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे हम


चीन।।


 


प्रेम शांति का बुद्ध सिद्धांत


अहिंसा परमो धर्मः कि आवाज


अवतार से करता है तू रार


तेरी अब खैर नहीं तरसेगा


मरेगा बिन पानी के चीन।


मिटा कर रख देंगे हम


चीन।।


 


विश्व लड़ रहा जंग कोरोना से


तेरी ही शातिर खुराफात की


देंन जितना तू गिरता जाएगा


उतना तू पछतायेगा सभल नहीं


पायेगा चीन ।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

पिता


 


पिता आधार जगत का,


पिता स्वयं संसार।


पितृ हृदय की महानता,


अनुपम और अपार।।


 


पिता शीश का छत्र है,


पिता कष्ट में छांव।


अकथनीय उपकार है,


अवर्चनीय प्रभाव।।


 


पिता ब्रह्म के रूप है,


पिता स्वयं भगवान।


पिता से संसार मिला,


मिला पिता से ज्ञान।।


 


स्व रक्त मांस मज्जा से,


निर्मित कीन्ही देह।


सन्तति हित तन त्याग दें,


नहीं जरा संदेह।।


 


अर्पित है जीवन जनक,


रखना सदा दुलार।


अमित कोष वात्सल्य के,


तव चरणों संसार।।


 


पितृ चरनकमलेभ्यो नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


दयानन्द त्रिपाठी

पिता दिवस पर एक कविता प्रस्तुत है आशा है आशिवार्द मिलेगा....


 


मैं बबूरे पेड़ के नीचे खड़ा था


तब पिता की याद कौंध आयी हमें


देख ये कैसी बिडम्बना है यहाँ


चिंड़िया और चिड़ा बैठे मिले हैं यहाँ।


 


शूल सारे जीवन में पड़े हैं


बिन पिता के प्रतिपल खड़े हैं


मेरे स्वप्नों के फूल खिलाने में लगे


बिस्तर पर हों मेरे हीत साधने लगे।


 


पिता कल्पना को साकार देता है


जीवन कंटकों को टाल देता है


जो मृदुल फूलों को पथ में 


बिछा बिन कांटो के डाल देता है।


 


कल्पना के हाथों की माया


पिता के भावना की छाया


मन मेरा डगमगता है जब


मझधार से उबार देता है तब।


 


ठिठुरन भरे रात दिन वृष्टि हो सदा 


हो कड़कती धूप में बन छाया सदा


शब्द के अर्थ अब निकलते हैं भले


खुद पिता बन भाव पिता के हैं मिले।


 


हैं कठिन तप योग सा पिता के भाव


भीड़ में सबकुछ हैं पर है तेरा अभाव


कठिन योग जैसे कर है देता है निरोग


पथ के कंटको को हर कर देता है सुयोग।


 


दिवंगत हो चिरनिंद्रा में चले गये


पर तेरे आशीष हैं सदा मेरे लिए


भीड़-भरी इस दुनिया में तेरी यादों से


रो पड़ा हूँ अकेला मैं खड़ा तेरे लिए।


 


रचना दयानन्द त्रिपाठी


 महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


विवेक दुबे"निश्चल"

देता रहा जो छाँव उम्र सारी ।


सहता रहा जो धूप खुद सारी ।


 


वो अपनी साँझ के झुरमुट में सुस्ता रहा है ।


वो देखो फिर भी कितना मुस्कुरा रहा है ।


 


बांटकर जीवन जीवन थमता जा रहा है ।


नियति के आँचल में प्यासा ही जा रहा है ।


 


पीकर दर्द के आँसू पिता मुस्कुरा रहा है ।


आज फिर समय समय को दोहरा रहा है ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@...


भरत नायक "बाबूजी

*" पिता "* (दोहे)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


*भीतर से मीठे-नरम, ऊपर लगें कठोर।


श्रीफल सम होते पिता, लेते सदा हिलोर।।१।।


 


*परिजन पालक हैं पिता, खुशियों के आगार।


उद्धारक परिवार के, होते खेवनहार।।२।।


 


*साथ रहें शासित रखें, पितु होते हैं खास।


आँगन में परिवार के, हरपल करें उजास।।३।।


 


*जो आश्रय-फल-छाँव दे, अक्षय वट सम जान।


कुल पालक होेते पिता, सबका रखते ध्यान।।४।।


 


*सहनशीलता के सदा, पितु होते प्रतिमान।


शिशु को जो सन्मार्ग की, करवाते पहचान।।५।।


 


*अपनों का हित सोचते, तजकर सारे स्वार्थ।


बगिया के माली-पिता, करते हैं परमार्थ।।६।।


 


*गूढ़-गहन-गंभीर अति, होता पितु का रूप।


कोर-कपट से दूर वे, होते अतुल-अनूप।।७।।


 


*संबल होते हैं सदा, पितु आनंद-निधान।


पाते पिता-प्रताप से, परिजन प्रेम-प्रतान।।८।।


 


*पावन-परिमल-प्रेरणा, अद्भुत अनुकरणीय।


पितु अनुपम आदर्श बन, होते हैं नमनीय।।९।।


      


*जागृत जानो विश्व में, पिता परम भगवान।


सागर नेह-दुलार के, रखना उनका मान।।१०।।


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


निशा"अतुल्य"

पिता महान


21.6.2020 


❤️😘❤️


 


पिता जीवन का आधार


वट वृक्ष सरीखा छाँयावान


काँधे पर चढ जिसके 


छू लिया था आसमान ।


 


जीवन की खुशियाँ तुमसे है


छाँव हमारी तुमसे है 


रहते हम निश्चिंत सदा ही


पाया जीवन तुमसे है ।


 


कर्मपथ पर चलते जाना


सीखा पिता से ही जान


कर्तव्यनिष्ठ और सत्य वदम


क्यों होता जीवन में महान ।


 


खुली आँखों के थे जो सपने


किया पिता ने पूरा हर काम


बिन इच्छा के सब कुछ पाया


ऐसे हैं हमारे पिता महान ।


 


मन कहीं जो भटका लगता


राह दिखाते वो आसान


काम सभी निर्विघ्न होते पूरे


पा पिता का आशिर्वाद ।


 


खेल खिलौने सीख है उनकी


जीवन पथ पर रखे संभाल


साथ हमारे सदा रहेंगे 


जीवन की ये बन पहचान ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


 


 


दुर्गा प्रसाद नाग

✍️✍️ आज का 


🌹🌹🌹(गीत)🌹🌹🌹


_____________________


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।


 


एक दीपक जलाऊं तेरे पथ में मै,


मेरे उर में दिया तुम जलाओ प्रिया।।


_____________________


जाने क्या हो गया है मुझे आज कल,


याद में खुद तुम्हारी भटकने लगा।


 


लोग कहते थे गिरकर संभल जाऊंगा,


पर मुझे लग रहा, मै बिगड़ने लगा।।


 


मैने सोचा था गागर में सागर भरूं,


खुद ही सागर में गोते लगाने लगा।


 


मेरे वैरागी मन में कहां से प्रिया,


आज अनुराग फिर से उमड़ने लगा।।


 


बनके इक रोशनी इस दीवाली में तुम,


मेरे आंगन में इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग में तुम सजाओ प्रिया।।


_____________________


खुद गुनहगार हूं मैं तुम्हारा प्रिया,


जो तेरे भाव को कुछ समझ न सका।


 


तुमने मेरे लिए क्या नहीं कुछ किया,


तेरी खातिर किसी से उलझ न सका।।


 


मै मृदा का दिया, तुम हो बाती प्रिया,


तेरे संग में रहा और जल न सका।


 


तुम जली रात भर नाम मेरा हुआ,


खुद ही अपने तिमिर से निकल न सका।।


 


अपने दिल को सजाया तेरी याद में,


आओ आओ तुम इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।।


_____________________


 


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


(काव्य-रंगोली पत्रिका में प्रकाशित)


................ दुर्गा प्रसाद नाग


                     नकहा- खीरी


        मोo- 9839967711


कवि कमलेश सोनी

योग दिवस काव्य रंगोली परिवार को ,,,,,,,शव्द सुमन कमलेश के ,,समर्पित,,,21,6,2020


योग का जो उपयोग होगा भली भांति मित्र


         रोग धराशायी होगा आप भी चिरायु हों ।।


वायु के प्रकोप का ना व्यवधान आये कभी


         विधि के विधान बीच आप भी शतायु हों ।।


दर्द में भी सब एक दूजे के हों हमदर्द


         दुःख दर्द दूर हो के सभी दीर्घायु हों ।।


कमलेश सुधामयी वसुधा का हो सुधार 


          पूर्ण हो अपूर्ण आय सम्पूर्ण आयु हो ।।


         कवि कमलेशसोनी 9794493606


राजेंद्र रायपुरी

😊 विश्व योग दिवस पर विशेष 😊


 


स्वस्थ रहने का न खाना 


                मात्र ही आधार होता।


सच कहूॅ॑ तो योग आसन


                भी ज़रूरी यार होता।


जो करे ना योगासन 


            और खाता खूब हर दिन, 


स्वास्थ्य के उसके हमेशा


                  यार बंटाधार होता।


 


            ।।‌राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तेरे आने से...…..........


 


तेरे दर्शन पाकर मोद मनाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


पा करके तेरे दर्शन भगवन


हों जाएं प्रफुल्लित मेरे तन मन


मैं झूम झूमके तेरे गुण गाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


आदिव्याधि कट जाती सारी


जब दीखें तेरी सूरत प्यारी


जगदीश्वर तब मन में हरषाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


"तेरे आने से" संभला है जीवन


मुरलीधर सा और न कोई धन


हे नारायण मैं तेरे गुण गाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ


 


बंशीधर हे जगजीवन ज्योती


सत्य हृदय के शोभित मोती


अदभुत छवि पर बलि बलि जाऊँ


पल भर भी तुम्हें भूल न पाऊँ।


 


श्री श्यामाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹👏👏👏👏👏


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


    *"अपने बदल जाते है"*


"देवालय वही जग में यहाँ,


पुजारी बदल जाते है।


रास्तें वहीं जीवन के फिर,


कदम बदल जाते है।।


दुनियाँ वही साथी ये तो,


इन्सान बदल जाते है।


भक्ति वही जीवन में साथी,


यहाँ भक्त बदल जाते है।।


संजोए सपने जीवन में,


वो सपने बदल जाते है।


अपनो की दुनियाँ में देखो,


अपने बदल जाते है।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 21-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


ब्रह्महिं स्थित एकीभावा।


मुदित हृदय चित पुरुष सुभावा।।


     करै न सोकइ प्राप्ति-अप्राप्ती।


     लहहि परम सुख मम पराभक्ती।।


प्रबिसि मोंहि मा समुझइ मोंहीं।


बासुदेव बस सभ कछु होंहीं।।


      अनासक्त जन करमइ जोगी।


      पावैं मोर परम पद भोगी।।


सभ निज करम मोंहि करि अर्पन।


होइ परायन मनहिं समर्पन।।


      कर्म-योग कै लइ अवलंबन।


       धरहु मोंहि मा अर्जुन चित-मन।।


जीवन-मरन-कष्ट कटि जाई।


जदि मोरे मा चित्त लगाई।।


     बरना नष्ट-भ्रष्ट तुम्ह भयऊ।


     जदि मम बचन न मद बस सुनऊ।।


जदि घमंड बस जुधि नहिं करबो।


मिथ्या बस रनभुइँ ना जइबो।।


     छत्रीपनइ सुभाव हे अर्जुन।


     होइबो जुधिरत जबरन तुम्ह सुन।।


करबो सकल करम तुम्ह अबहीं।


पूर्ब बन्धनहिं परबस भवहीं।।


      निज माया के बलयी बूता।


      प्रभू नचावहिं सभ जग-भूता।।


दोहा-अस्तु,सुनहु हे भारतइ, प्रभू-सरन महँ जाउ।


        पाइ कृपा परमातमा, परमधाम-पद पाउ।।


सोरठा-तुमहिं दीन्ह हम ग्यान,गोपनीय जे अति अहहि।


          सुनु तू पार्थ सुजान,करउ जे तव इच्छा कहहि।।


दोहा-देखि सांत अति अर्जुनहिं, पुनः कहे भगवान।


        अहहु तुमहिं मो परम प्रिय,पुनि मैं कहब तु जान।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372 क्रमशः.......


कालिका प्रसाद सेमवाल

*गौ में है देवों का वास*


********************


गौ रक्षा के लिए


लेते हैं प्रभु सदा अवतार


गौ सेवा से नृप दलीप ने


पाई थी संतान।


 


गौ का गोबर भी तो


अति पवित्र है,


गौ चारण करने में रत थे


स्वयं श्रीकृष्ण भगवान।


 


गौ के दूध से ही 


श्रृंगी ऋषि ने खीर बनाई,


राजा दशरथ की किस्मत जगी


घर में जन्मे चार लाल।


 


गौ वध करने वाला


होता राक्षस अति क्रूर है,


जो गौ वध नहीं रोक पाई


वह कैसी सरकार है।


 


आओ गौ रक्षा का लें संकल्प


गौ माता है,गौ ही देवी है,


गौ में है देवों का वास


इसे बनाये हम राष्ट्र माता।।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...