कालिका प्रसाद सेमवाल

मां सरस्वती


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हे मां सरस्वती,


तू प्रज्ञामयी मां


चित्त में शुचिता भरो,


कर्म में सत्कर्म दो


बुद्धि में विवेक दो


व्यवहार में नम्रता दो।


 


हे मां सरस्वती


हम तिमिर से घिर रहे,


तुम हमें प्रकाश दो


भाव में अभिव्यक्ति दो


मां तुम विकास दो हमें।


 


हे मां सरस्वती


विनम्रता का दान दो


विचार में पवित्रता दो


व्यवहार में माधुर्य दो


मां हमें स्वाभिमान का दान दो।


 


हे मां सरस्वती


लेखनी में धार दो


चित्त में शुचिता भरो,


योग्य पुत्र बन सकें


ऐसा हमको वरदान दो।।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


प्रभुनाथ गुप्त 'विवश

'अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 2020' पर एक कविता


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'विश्व योग दिवस' पर आओ


       हम सीखें और सिखायें योग,


प्रारम्भिक शिक्षा केन्द्रों में भी 


        हम बच्चों को सिखायें योग।


 


भौतिक वादी युग में मानव


          अवसाद ग्रस्त हो जाता है,


किंचित पता नहीं है उसको 


       वह क्या खोता क्या पाता है। 


 


बहुत हुआ अब आपा-धापी 


      समझें और समझायें योग।.. 


 


कुछ दृश और अदृश रोगों से


       जीर्ण-शीर्ण तन हो जाता है, 


दूषित जल और खानपान से 


      अस्त-व्यस्त सब हो जाता है।


 


सूर्य, चन्द्रमा और धरा भी 


       दुनिया को समझायें योग।.. 


   


संयुक्त राष्ट्र का है ये कहना 


       'सेहत के लिए, घर में योग', 


प्रतिदिन के जीवन शैली में 


       सम्मिलित कर लें हम योग। 


 


संतों मुनियों की तपोभूमि से,


       दुनिया भर में फैलायें योग।..


 


आज अगर संकल्पित होकर


         जो हम करते रहें नित योग,


सदा रहेगा तन मन स्वस्थ 


        मिथ्या औषधि का उपयोग। 


 


वसुधैव कुटुम्बकम् के मूल में 


      हम घर-घर में पहुँचायें योग।.


 


मौलिक रचना- 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


प्रिया चारण  उदयपुर राजस्थान

योग


 


कष्टो से वियोग है योग


शान्त मन , स्वस्थ शरीर का प्रयोग है योग


आयुर्वेद का शोध है योग


 


आनन्दित मन 


दयावान आचरण


करुण हृदय, और 


सूर्यनमस्कार का प्रथम चरण है योग


 


वृक्षासन से कही आसन से


दूर करता हर रोग जीवन से 


 


नाड़ी तंत्र योग समझाए


ज्ञानिन्द्रियों को जगाए


जीवन में ऊर्जा लाए


आत्मा को शरीर से मिलाए


 


आदियोगी का आशीर्वाद आए


जो नित योग को अपने आचरण में लाए


 


 


प्रिया चारण 


उदयपुर राजस्थान


नूतन सिन्हा

पिता


न होती लोरियाँ पिता के पास


         वो होते है


मोटे तने और गहरी जड़ो वाला


एक विशाल वृक्ष और मॉ होती है


उस वृक्ष की छाया,जिसके नीचे बच्चे बनाते बिगाड्ते अपने घरौंदे 


 


रहता है पिता के पास


दो ऊँचे और मजबुत कंधे 


जिन पर चढ़ कर बच्चे देखते


सपने आसमान छूने की


 


रहता है पिता के पास


एक चौड़ा और गहरा सीना


रखता जिसमें जज़्बा 


रखता अपने सारे दुख


चेहरे पर जाड़े की धूप की तरह


फैली चिर मुस्कान के साथ


 


उसके दो मजबुत हाथ


छेनी और हथौड़ी की तरह


तराशते रहते है सपने दिन रात


सिर्फ़ और सिर्फ़ बच्चों के लिये


अपनी जरुरतो और अपने सपनों


को कर देता मुल्तवी 


 


पिता भूत,वर्तमान और भविष्य 


जीता है तीनों को साथ लेके


भूत की स्मृतियॉ


वर्तमान का संघर्ष 


और बच्चों में भविष्य 


 


पिता की उँगली पकड़ कर


चलना सिखते बच्चे 


पर भूल जाते एक दिन


इन रिश्तों की संवेदना


और तय किये गये


सड़क,पुल बीहड़ रास्तों का


उँगली पकड़ कर कठिन सफ़र


 


बाँहें डाल कर


जब झूलते बच्चे 


और भरते किलकारियाँ 


पूरी कायनात सिमट आती है 


उसकी बाँहों में


इसी सुख पर वो


कर देता क़ुर्बान अपनी पूरी जिदंगी


 


वो बहाता अपना पसीना


तरह तरह का काम करके


      चाहे हो वह


ढोता बोझा या फिर फ़ैक्टरी 


दफ़्तर में करता वो काम


या हो फिर अफ़सर


बनता है बुनियाद का पत्थर 


जिस पर तामीर होते है


बच्चों के सपने


 


फिर भी पिता के पास


न होती बच्चों को बहलाने और


सुलाने के लिये लोरियाँ 


             नूतन सिन्हा


            21.06.2020


आशा त्रिपाठी

पिता की छत्रछाया में सभी गम भूल जाते है।


पिता के धैर्य की आभा हमेशा याद आते है।


पिता आकाश पूरा है, हृदय आधार है घर का।


पिता के स्नेह मे बच्चें सदा ही मुस्कुराते है।


✍आशा त्रिपाठी


Father's day पर मुक्तक


        डा.नीलम

*पिता हूँ मैं*


 


हाँ पिता हूँ मैं


देता हूँ बीज 


कोख ए जमीन को


सहेजता हूँ 


नेह सिंचन से


पनपता है वंश 


उऋण होता हूँ


पिताऋण से


पुत्र नहीं पुत्री पाकर


वंशबेल सी


बढ़ती जब बिटिया


18 साल            


मन बनिया बन


जून-जून जोड़-


घटा करता हूँ


सच मानो या ना मानो


पल पल युग-सा


जीता हूँ


दिखता हूँ बाहर से


शांत 


भीतर ही भीतर 


रोता हूँ


एक दिन ये


वंशबेल चढ़ जायेगी


ससुराल मुंडेरे


तभी............


देता हूँ संस्कार,


संस्कृति,सुज्ञान 


बनाता हूँ सशक्त,


देह और अर्थ से


के........


जाकर पर देश


ना कहे


काहे को बियाही बिदेस।


 


        डा.नीलम


रूपा व्यास,'परमाणु नगरी',रावतभाटा,

शीर्षक-पिता सुरक्षा कवच(कविता)


 


परिवार का सुरक्षा कवच होता है,पिता।


बच्चों की सारी अभिलाषा पूर्ण करता है,पिता।।


बाज़ार के सब खिलौनेअपने,जब साथ होता है, पिता।


वरना सारी दुनिया व राह सुनी जिनके न हो पिता।।


हर रिश्ते जिससे वो हैं, पिता।


परिवार की हर रस्म जिसके उपस्थित होने से पूरी हैं, वो हैं ,पिता।।


माता का सारा श्रृंगार जिससे वे हैं, पिता।


संतान का मित्र,निस्वार्थ हितैषी है,पिता।।


 


नाम-रूपा व्यास,'परमाणु नगरी',रावतभाटा, जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)


यह मेरी मौलिक रचना है।


                 -धन्यवाद-


शिवेन्द्र मिश्र 'शिव

एक सोरठा सादर निवेदित..


 


सोरठा:-


तन-मन देता वार, अपने सुत पर जो पिता।


हो जाता है भार, वृद्धावस्था में वही।।


शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'


 


 


 


कड़वा है पर सत्य है..


 


कुंडलिया छंद:-


 


मात-पिता व्याकुल बहुत,और हुए लाचार।


नही आजकल अब कहीं, बेटे श्रवण कुमार।।


बेटे श्रवण कुमार, करें अपनी मनमानी।


मिले न रोटी दाल, और ना सुत से पानी।


कहता 'शिव' दिव्यांग, दुखी हरदम वो रहता।


कभी स्वप्न में कष्ट, पिता-मां को जो देता।।


शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'


 


डॉ निर्मला शर्मा  दौसा राजस्थान

"मिटा कर रख देंगे तुझे चीन"


 तेरे नापाक इरादों को 


कर देंगे भू आधीन 


मिटा कर रख देंगे तुझको 


संभल जा ए चीन 


जब भी तूने हिंदुस्तान पर


 अपनी आँख गढ़ाई 


तूफानी भारतीय सेना ने 


तुझसे नाक रगड़वाई 


कूटनीति और धोखेबाजी में


 तू है बड़ा प्रवीण 


नहीं सधेगी मंशा तेरी


 टूटेंगे सपने रंगीन 


मुंह में राम बगल में छुरी 


रख तूने हमें छला है तू


 अपनी अब खैर मना ले


 चले न तेरी अब कला है


 हिंदी- चीनी भाई कहकर


 1962 में विश्वासघात किया


 मुँह की खाई रण में आखिर


 सेना ने संहार किया 


2020 में भी तू 


खेले खेल खिलौना है


 मित्र कहे मुख से पल भर में 


दागे पीछे गोला है 


चीनी बुखार चढ़ा है सबको 


पाक हो या नेपाल 


अपने मकड़जाल में लेकर 


लील जाएगा यह मक्कार


 धूर्त बड़ा तू बड़ा आततायी


 कुटिल , अधम, अन्यायी


 अभिमान तेरा टूटेगा 


संभल जा शामत तेरी आई 


 तेरे नापाक इरादों को


 कर देंगे हम मटियामेट 


मिटा कर रख देंगे तुझको 


संभल जा खेलना हमसे कोई खेल


 


 डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*योग-दिवस*


दिवस साधना का यही,योग-दिवस सुन भ्रात।


प्रथम कार्य बस योग ही,करना नित्य प्रभात।।


 


स्वस्थ रखे तन को यही,दे मन-शुद्ध विचार।


धन्य पतंजलि ऋषि रहे,किए जो आविष्कार।।


 


प्राणायाम व भष्तिका,सँग अनुलोम-विलोम।


भ्रमर-भ्रामरी साथ में,अतुल शक्ति रवि-सोम।।


 


सफल योग उद्गीत है,रखे कुशल मन-गात।


इसको करने से मिले,तत्क्षण रोग-निजात।।


 


ऋषि-मुनि-ज्ञानी-देव सब,सदा किए हैं योग।


कलि-युग औषधि बस यही,समझें इसे सुभोग।।


 


मूल-मंत्र बस योग है,यही है कष्ट-निदान।


करे योग को रोज जो,उसका हो कल्याण।।


 


आओ मिलकर सब करें,नित्य योग-अभ्यास।


भर देगा यह योग ही,जीवन में उल्लास।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


अतिवीर जैन पराग  मेरठ,

मेरे बाऊजी :- (पितृ दिवस पर )


बाऊजी के चरणों में रोज वंदना करता हूँ,


शीश अपना उनके चरणों में रखता हूँ.


रहते थे गम्भीर कम ही मुस्कराते थे,


आँखो से ही सब कुछ कह जाते थे.


 


सुबह उठ अपना पानदान फेलाते थे,


खाना लेकर ही ऑफीस को जाते थे.


रात को खाना कभी नहीँ खाते थे,


दिन छिपने पर ही घर में आते थे.


 


ऑफीस से आ रोज हमें पढ़ाते थे,


अँग्रेजी गणित अच्छे से समझाते थे.


डाट भी बड़ी जोर की लगाते थे,


सोने से पेहले हम उनके पेर दबाते थे.


 


दिखते थे कठोर पर कोमल ह्रदय थे,


माँगने वाले को खाली नहीँ लौटाते थे.


ना आये उधार वापस तो,कर्जदार 


पिछले जन्म का खुद को बताते थे.


 


समय के पाबंद थे, सुबह ही उठ जाते थे,


साइकल पर ही रोज ऑफीस जाते थे.


घर के सारे काम खुद ही निपटाते थे,महीने 


भर का राशन रविवार को ले आते थे.


 


मुशायरे शेरों शायरी के शौकीन,


कवि सम्मेलन सुनने जाते थे.


अँग्रेजी की ऐतिहासिक किताबें


पढ़ते थे,ज्ञान हमारा बढ़ाते थे.


 


रेडियो में रोज ख़बरे ही लगाते थे,


बिनाका गीत माला जोर से बजाते थे.


पुराने गानो के शौकीन,गीत गुनगुनाते थे, धार्मिक किताबें पढ़ते रोज मंदिर जाते थे.


 


मंदिर में पूजा करते रथ यात्रा में ले जाते थे,


बाजार में ले जा कपड़े खिलौने दिलाते थे. मेहनत,ईमानदारी,संघर्ष के मंत्र सीखा गये,


जिन्दगी भर आगे बढ़ने की राह बता गये.


 


ऐसे थे मेरे बाऊजी ,रोज याद आते हैं, बाऊजी के चरणों में रोज वंदना करता हूँ,


शीश अपना उनके चरणों में रखता हूँ.


 


स्वरचित 


अतिवीर जैन पराग 


मेरठ,


9456966722


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दिनांकः २१.०५.२०२०


दिवसः गुरुवार


विषयः योग


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा


शीर्षकः योगक्षेमं वहाम्यहम्


आज मनाएँ योग दिवस ,मिलें करें सब योग।


करें व्यायाम साथ में , स्वयं भगाएँ रोग।।१।।


 


योग न केवल साधना , नवसर्जन नव सोच। 


है समत्व की योजना , करें बिना संकोच।।२।। 


 


स्रोत योग ऊर्जस्विता , नव जागृति जयघोष। 


इन्द्रिय जेता नियन्ता , सदा मिटाए रोष।।३।।


 


योगक्षेमं वहाम्यहम् , निर्माणक विश्वास। 


राष्ट्र एकता सूत्र यह , देश भक्ति आभास।।४।। 


 


परहित नित सद्भावना , सत्कर्मी संदेश।


नीति रीति स्नेहिल पथी , योग बने परिवेश।।५।।


 


राष्ट्र धर्म प्रतिमान यह , ख़ुद में दृढ़ संकल्प।


तन मन धन सुख शान्ति का ,केवल योग विकल्प।।६।।


 


करें योग से मित्रता , शत्रुंजय संसार।


बने धीर नित साहसी , आत्मबली आचार।।७।।


 


रोग शोक संताप सब , मोह कपट से दूर। 


स्वाभिमान सम्मान जग, बने नहीं मज़बूर।।८।। 


 


योग नीति सह कर्म का , ध्यान राज सत्काम।


मुक्ति मार्ग संताप त्रय , जीवन धन्य सुनाम।।९।।


 


मानवता रक्षक सदा , साधन नैतिक राह। 


करें नियोजित योग से , भौतिकता हर चाह।।१०।।


 


करें सुखद योगात्म नित , पाएँ निज सौभाग्य।


करें नियंत्रण चपल मन , अभ्यासी वैराग्य।।११।। 


 


योगेश्वर सह पार्थ का , योगसूत्र है शक्ति।


योग राज हैं शिव स्वयं , पातंजलि अभिव्यक्ति।।१२।। 


 


जीतें हम गोलोक को , योगबली पुरुषार्थ।


शील त्याग गुण कर्म से , हरिवंदन परमार्थ।।१३।।


 


कवि निकुंज चंचल मनसि , फँसा मोह जंजाल। 


हेतु पाप मद शोक जग , बचें बनें खुशहाल।।१४।।


 


वर्धापन शुभकामना , विश्व भगाएँ रोग।


स्वागत विश्व योग दिवस , करें मिलें सब योग।।१५।। 


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


शशि मित्तल "अमर"*

*मेरे पिता*


 


मैं उस बगिया का अंश हूँ


उस माली का वंश हूँ


जिन पर गौरवन्वित हूँ


वो हैं मेरे पिता।


 


व्यक्तित्व उनका देखा हमने


आसमान से ऊँचा


सभी को देते आदर भाव


न दिखाएं किसी को नीचा


सारे सुख घर में भर दिए


रहा न कुछ भी रीता


वो हैं मेरे..............


 


हमें सिखाया संस्कार,


और शान से रह कर जीना


रच गए हर कोने में


जैसे रचती है हीना


रामायण का पाठ सुनाते


और सुनाएं गीता


वो हैं मेरे............


 


ऊपर से कठोर लगते


अंदर से पूरे मोम


चले गये हमें छोड़ कर


रोता है रोम रोम


याद करूँ उस गोद को


जिसमें बचपन बीता


करूणा दया सिखाने वाले


वो ही थे मेरे पिता.....


 


*शशि मित्तल "अमर"*


*मौलिक एवं स्वरचित*


ऋचा मिश्रा रोली श्रावस्ती बलरामपुर उत्तर प्रदेश

पिता


 


पिता वृक्ष का जड़ है जिसपर,


 शाखाओं का भार लदा


पिता महल का वह बुनियाद है,


 जिसपर है ए मकान लदा


पिता रेल का वह इंजन है, 


जिससे डिब्बे चलते हैं


पिता के मेहनत से ही देखो,


परिवार ये पूरे पलते हैं


पिता ईश हैं, पिता मित्र हैं


पिता ही मेरे सबकुछ हैं


एक अच्छा संस्कार सिखाया


पिता जी मेरे गुरुवर हैं


मेरे संग बचपन में खेले


और बहुत ही प्यार दिया


गलत काम जो हुआ कभी भी


मार दिया व सुधार दिया


एक पिता क्या-क्या है करता


पिता बनोगे ! जानोगे


पिता ने तो इतना सब है किया


क्या उनका कहना मानोगे?


पिता की कीमत उनसे पूछो


जिनके पिता जी नही रहे


पिता न रूठे पिता न छूटे


ऋचा हाथ जोड़ कहे


             ✍ऋचा


       मिश्रा रोली


      श्रावस्ती बलरामपुर 


    उत्तर प्रदेश


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

---------पिता हमारे----


 


जब कही कभी परेशान हो जाता


ख्वाबो और ख्यालों यादो मन


के भावों पर छा जाते 


भटक जाऊं मूल्यों के जीवन


पथ से राह दिखाते ।।


 


पिता हमारे


भगवान मैं उनकी संतान।।


 


याद हमे है बचपन अपना


मैं उनके सपनो का संसार।


मेरी खुशियो कि खातिर जाने


कितने कष्ट उठाते ना थकते


ना हारते हर कदम नया उत्साह।


पिता हमारे भगवन मैं उनकी


संतान।।


 


जब तक रहते साथ जीवन सरल


सुगम कठिनाई का ना नाम।


जब कभी भी मन मस्तिष्क नज़रों से ओझल हो जाते जीवन राहो


में अँधेरा हो जाता दुर्गम जीवन 


हो जाता झट प्रत्यक्ष मन मंदिर


में प्रगट हो जाते जीवन के अंधेरो


में उजाले की दीप जला कर हो जाते अंतर्ध्यान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


मेरा सामर्थ उनका आर्शीवाद माद्री ताकत सम्बल उनका


आर्शीवाद ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी


संतान।।


 


पचपन में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया । जीवन के कुरु


क्षेत्र के कर्म, ज्ञान दीप जलाया


जीवन मूल्य ,मतलब सिद्धान्त


बताया हारना नहीं जीतना सिखाया जो भी उनकी पूंजी


जीवन कर दिया मुझ पर कुर्बान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


गिरना नहीं सम्भलना सिखाया


निति, नियत, ईमान दिया मर्म


मर्यादा दीया मूल्य मूल्यवा।


पिता हमारे भगवान् मैं उनकी


संतान।


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


 


फिर भी उनको लगता अब भी


मै बच्चा हूँ अबोध ।     


 


पल प्रहर दिन रात मेरी सुख दुःख की चिन्ता 


करते निवारण का पराक्रम का


धन्य ,धरोहर ,ध्यान 


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


चाहे जिस जाती ,धर्म ,प्राणी का


होऊं प्राण उनके ही बीज का बृक्ष बनु माँ के कोख में पलु ।


माँ की ममता के आँचल का वात्सल्य माँ भारती के आँगन


की किलकारी पुत्र मैं आज्ञाकारी


श्रवण,राम ,पशुराम ।


उनके चरणों की धूलि मेरे मस्तक


का अभिमान ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


उनकी साँसे उनकी धड़कन का


मेरा प्राण दम निकले मेरा पितृ 


भक्ति में गर अवसर आ जाये


उनकी खातिर दे दूँ उनका ही


अपना प्राण।।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पितृ-दिवस*


जीवन-दाता जनक है,जैसे ब्रह्मा सृष्टि।


करे पिता-सम्मान जो,उसकी अनुपम दृष्टि।।


 


पिता देव के तुल्य है,इसका हो सम्मान।


इसका ही अपमान तो,कुल का है अपमान।।


 


चाल-चलन,शिक्षा-हुनर,सब सुख जो संसार।


चाहे देना हर पिता,सह कर कष्ट अपार ।।


 


पिता रहे चाहे जहाँ, रखे बराबर ध्यान।


सुख-सुविधा परिवार की,करे सदा कल्याण।।


 


पिता-पुत्र,पुत्री-पिता,जग संबंध अनूप।


राजा दशरथ राम का,जनक-जानकी भूप।।


 


कभी तिरस्कृत मत करें,वृद्ध पिता को लोग।


बड़े भाग्य जग पितु मिले,बने सुखद संयोग।।


 


यही सनातन रीति है,पितु है देव समान।


पिता के कंधे पर रहे,कुल-उन्नति-उत्थान।।


 


पितृ-दिवस का है यही,बस उद्देश्य महान।


हर जन के हिय में बसे,पिता-भाव-सम्मान।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

* योग दिवस *


पतंजलि के योगसूत्र से 


योग का प्रादुर्भाव हुआ 


विश्व शांति अध्यात्म की 


धारा में इसका प्रभाव हुआ 


आयुर्वेद की आत्मा है यह 


योग बड़ा कल्याणकारी


 तन-मन रहे स्वस्थ मानव का


 योग बड़ा हितकारी


 तन के प्रतिरक्षा तंत्र की


 औषधि सर्वरोगहारी


 योग ध्यान आसन सब विधियां


 स्वास्थ्य के लिए मंगलकारी 


योगाभ्यास करें प्रतिदिन


 तो आयुष्मान बने हम


 बढे शारीरिक मानसिक दक्षता


 प्रसन्न चित्त रहें हम


 भारत बना विश्व गुरु सबको


 योग की ओर बढ़ाया


 संपूर्ण विश्व ने इक्कीस जून को 


योग दिवस है मनाया


 योग विरासत है भारत की


 पाँच हज़ार साल पुरानी


 समृद्ध सफल है अपनी संस्कृति


 अब पूरी दुनिया जानी


 मानव चेतना और मानवता का 


देता सबको संदेश


 योग करें मिलकर सारा जग


 रहे ना तन में कोई क्लेश


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


       *"योग"*


"नित योग करने से ही,


निर्मल होता-


तन-मन।


निर्मल तन-मन से ही,


होती भक्ति-


प्रभु बसते मन।


मन बसे प्रभु भक्ति जो,


सार्थक होता-


ये जीवन।


योग करें निरोगी बने,


तन-मन बन जाये-


दर्पण।


विकार नहीं जीवन में,


सत्य-पथ पर-


सबका मिलता समर्थन।


नित योग करने से ही,


निर्मल होता-


तन-मन।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 21-06-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल

पितृ दिवस पर विशेष


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*पिता जीवन का आधार है*


********************


पिता परिवार का आधार होता है,


पिता ही परिवार की पहचान है,


पिता ही बच्चे को चलना सीखाता है,


पिता ही बच्चे का ज्ञान दाता होता है।


 


पिता से ही बच्चों की मुस्किल आसान होती है,


पिता से ही बच्चों की पहचान होती है,


पिता वट वृक्ष जैसा होता है,


पिता की छाया में परिवार पलता है।


 


पिता ही परिवार के लिए रात दिन एक करता है,


पिता ही बच्चों में चेतना भरता है,


पिता परिवार का उजाला होता है,


पिता ही परिवार की जिम्मेदारी उठाता है।


 


पिता बच्चों की प्यास होती है,


पिता परिवार की आस होती है,


पिता की महिमा गाई नहीं जा सकती है,


पिता नूर नहीं कोहिनूर होता है।


 


पिता बच्चों की हर मांग पूरी करता है,


पिता है तो हर सपने पूरे होते है,


पिता बच्चों को संस्कार देता है,


पिता परिवार को पहचान देता है।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


संजय जैन (मुम्बई

आज पिता दिवस पर मेरी रचना आप सभी के लिए प्रस्तुत है।


 


*पिता क्या होते है*


विधा: कविता


 


अंदर ही अंदर घुटता है।


पर ख्यासे पूरा करता है।


दिखता ऊपर से कठोर।


पर दिलसे नरम होता है।


ऐसा एक पिता होता है।।


 


कितना वो संघर्ष है करता।


पर उफ किसीसे नहीं करता।


लड़ता है खुद जंग हमेशा।


पर शामिल किसीको नहीं करता।


जीत पर सबको खुश करता है।


हार किसी से शेयर न करता।


ये एक पिता ही कर सकता।।


 


खुद रहे दुखी पर,  


घरवालों को खुश रखता है।


छोटी बड़ी हर ख्यासे,  


घरवालों की पूरी करता है।


फिर भी बीबी बच्चो की, 


सदैव बाते वो सुनता है।


कभी रुठ जाते मां बाप,  


तो कभी पत्नी रूठ जाती है।


इसलिए दोनों के बीच में,


बिना वजह वो पिसता है।


इतना सहन शील इंसान, 


एक पिता ही हो सकता है।।


 


समझ न सके उसे कोई।


इसलिए वो अंदर ही अंदर।


स्नेह प्यार को तरसता है।


पर पिता को ये सब, 


अब कहाँ पर मिलता है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


21/06/2020


एस के कपूर  श्री हंस बरेली

*विषय।।।।।।।योग।।।।।।।।।।।*


*शीर्षक।।।।विश्व योग दिवस।।21जून।।।।।योग भगाये रोग।।*


*।।।।।।।।।।मुक्तक।।माला।।।।*


 


योग से बनता है मानव


शरीर स्वस्थ आकार।


योग एक है जीवन की


पद्धति स्वास्थ्य का आधार।।


योग से निर्मित होता तन मन


और मस्तिष्क भी सुदृढ़।


तभी तो हम कर सकते हैं


हर जीवन स्वप्न साकार।।


 


भोग नहीं योग आज की बन


गया एक जरूरत है।   


रोग प्रतिरोधक क्षमता से ही


जीवन बचने की सूरत है।।


पांच वर्ष सम्पूर्ण विश्व को ही


भारत ने दिखाया था रास्ता।


आज तो पूरी दुनिया में भारत


बन गया योग की एक मूरत है।।


 


नित प्रति दिन व्यायाम ही तो


योग का एक रूप है।


व्यावस्तिथ हो जाती आपकी


दिनचर्या बदलता स्वरूप है।।


निरोगी कायाआर्थिक स्थिति


भी होती है योग से सुदृढ़।


योग तो सारांश में तन मन की


सुंदरता का ही प्रतिरूप है।।


 


एस के कपूर  हंस।।।।बरेली।।।।।।।।*


दिनांक।।21।।06।।2020


मोब 9897071046।।।।


8218685464।।।।।।।।।।


संजय जैन (मुम्बई

*आत्महत्या*


विधा : कविता


 


कुछ अपने और कुछ सपने,


हमे मजबूर कर देते है।


आत्महत्या जैसा घिनोना, 


 पाप करने को।


और जीवन को मिटा देते है,


कायरो की तरह से।


पर छोड़ जाते है माँबाप को,


मुर्दो की तरह जीने को।।


 


जिंदगी नाम शोहरत के लिए,


ही जी जाती है क्या।


बिना नाम शौहरत के क्या,


इंसान जीते नहीं है।


हौसले बुलंद हो तो,


हर जंग जीत सकते है।


बड़े बड़े नामवीरो को,


धूल चटा सकते है।।


 


समय विपरीत है तो भी,


जीत का सेहरा बांध सकते है।


और लाखो की भीड़ में, 


अपनी पहचान बना सकते है।


माना कि लोग जलते है,


तेरी कामयाबी से।


इसलिए तुझे गिराने का,


निरंतर प्रयास करते है।।


 


छलकपटी से भरी पड़ी,


ये मायावी दुनियां है।


जहाँ कोई किसी का, 


सगा सबंधी नहीं है।


जिसे मिलता है मौका,


वो ही लूट लेता है।


और कामयाबी के लिए,


अपनो पर पैर रख देते है।।


 


इंसान ही मजबूर कर देते है,


आत्महत्या करने को।


फिर उसकी मृत्यु पर, 


घड़यली आंसू बहाते है।


और अपने कांटे को, 


हटाकर खुश होते है।।


 


जय जिनेंद्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


21/06/2020


मंजूषा श्रीवास्तव'मृदुल'

दिनांक २१/६/२०


योग दिवस 


*********


योग हरे चिंता सभी,काटे सकल कलेश |


तेज बढ़े स्फूर्ति हो,आलस रहे न लेश ||


 


तन मन मे उत्साह हो,छाये नव उल्लास |


रोग दोष सब दूर हों,छाये नहीं विषाद ||


 


योग शक्ति अभ्यास है ,ऐसा सरल उपाय |


नेत्र ज्योति बढ़ती रहे,यौवन कभी न जाय ||


 


काया कांति बनी रहे,कभी न रोग सताय |


प्राणायाम करो सदा,तो जीवन हर्षाय ||


 


मन उमंग बढ़ती रहे,जरा रहे अति दूर |


योगी युत जीवन जियो ,सुख पाओ भरपूर ||


 


योगा प्राणायाम में ,होती शक्ति अपार |


हो विरक्ति दुष्कर्म से,घटे पाप का भार ||


 


गीता में श्री कृष्ण ने ,दिया योग का ज्ञान |


अर्जुन के मन से मिटा ,तमस और अज्ञान ||


 


उत्तम साधन है यही,रखता हमें निरोग |


भक्ति शक्ति की राह का,सुंदर सफल प्रयोग ||


 


दर्शन ने भी योग को ,माना सबसे खास |


जो अपनाते योग को, होते नहीं उदास ||


 


गुरु पातञ्जलि ने दिया ,अनुपम अद्भुत ज्ञान |


इसको अपना कर मनुज,हो जाये बलवान ||


✍️मंजूषा श्रीवास्तव'मृदुल'


शिवांगी मिश्रा लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश

*21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस*


 


*देश में आज फैली हुई है बिमारी ।*


*योग के प्रयोग से हो रही तैयारी ।।*


 


करे साकारा ये जीवन सुखद आकार देता है ।


निकट यदि रोग जो आयें तो उनको मार देता है ।।


 


करें जो नित इसे नियमित तो दावा है मेरा सबसे ।


योग के सामने हर रोग हिम्मत हार देता है ।।


 


विश्व में मौत का ताण्डव करे वो रोग फैला है ।


कोई बाकी नहीं है देश जो संकट ना झेला है ।।


 


योग का ये दिवस कोई मात्र इक उत्सव नहीं भाई ।


बचाये रोग से ये योग का साधन अकेला है ।।


 


भरे ऊर्जा से जो हमको वो क्षमता योग रखता है ।


हो उलझा मन रहे खुशहाल समता योग रखता है ।।


शारीरिक हो समस्या या अशान्ति फैली हो मन में ।


रखे चैतन्य तन मन ऐसी ममता योग रखता है ।।


 


स्वरचित.....


शिवांगी मिश्रा


लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

सभल जाओ ,सुधर जाओ


नहीं तो देंगे तुमको चीर


विषधर तुम विष बीज 


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


फन कुचल देंगे तुम्हारी हस्ती


मिटा देंगे मानवता के दुश्मन दानव चीन धूर्त ,पाखंडी,मक्कार


तेरी दानवता मक्कारी का 


विश्व बंधू देगा जबाब गिन गिन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


सन् बासठ में धोखा दिया


छल छद्म की चाल चला


भूले नहीं हम तेरी कुटिल


कुटिलता को भारत हम सौम्य 


शालीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


मेरी बाज़ारों का तू बड़ा व्यपारी


तेरी हर उत्पाद का वहिष्कार करेंगे  


तेरा मर्दन मान करेंगे तुझसे


दो दो हाथ करेंगे लड़ेंगे तेरा


सत्या नाश करेंगे।


मिटा कर रख देंगें तुझे चीन।।


 


तू चालाक लोमड़ी दोस्ती


का स्वांग रचता पीठ में खंजर


भोकता ।                                


 


तेरी निति ,नियत, कायर


दुष्टों की तेरी हर कुटिल ,चाल,


जाल को काट देंगे तेरी औकात


का किनारा तीर।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तूने हमारे पड़ोसी नेपाल को


दुश्मनी की राह दिखाई है।


 


निगल जाएगा तू भोले भाले


नेपाल ,नेपाली को तेरी मंसा


नहीं जानता गर नेपाल। 


                


मिट जाएगा तेरे पाश में


नहीं रहेगा विश्व नक्शे में नेपाल


भोले भाले नेपाली को शायद


नहीं आभास।


 


पूरी नहीं होने देंगे तेरी कोइ चाल


चाहे जीतनी चाले चल ले, तेरा


होने वाला है बुरा हाल नीच।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू कितना दुष्ट दमनकारी अपने


ही लोगो का धेन्चौक पर करता


है संघार, तू विघटन कारी, तू


अत्याचारी ,होने वाला है तेरा


अब सर्वनाश ।                   


उछल कूद तू


चाहे जितना कर ले चीन


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


तू धमकी देता चेतावनी सुन ले


कान खोलकर तू है अब बेमोल कौड़ी का तीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


भारत के हर सैनिक की शहादत


का हिसाब करेंगे तेरे टुकड़े हज़ार


करेंगे नही बायेगा तू गिन गिन।


मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।


 


हर भारतवासी का खून है


खौला अपने हर शहीद जवान


का बदला एक एक पे बीस।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


ललकार सुन ले फुंकार तू अपनी


बंद कर देंगे तुझे हम कटपीस।


मिटाकर रख देंगे तुझे हम चीन।।


 


हम कायर कमजोर नहीं


हम तुझ जैसा धोखा और


फरेब नहीं ।


हम भारत का भारतवासी 


जो आँख दिखाए आँख


निकाले जो दे चुनौती


उसका काल बने सभल जाओं अब चीन।


मिटाकर रख देंगे हम चीन।।


 


कर तू आजमाइस जोर नहीं


पछतायेगा कही का ना तू


रह जाएगा होगा तू गमगीन।


मिटा कर रख देंगे तुझे हम


चीन।।


 


प्रेम शांति का बुद्ध सिद्धांत


अहिंसा परमो धर्मः कि आवाज


अवतार से करता है तू रार


तेरी अब खैर नहीं तरसेगा


मरेगा बिन पानी के चीन।


मिटा कर रख देंगे हम


चीन।।


 


विश्व लड़ रहा जंग कोरोना से


तेरी ही शातिर खुराफात की


देंन जितना तू गिरता जाएगा


उतना तू पछतायेगा सभल नहीं


पायेगा चीन ।


मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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