संजय जैन (मुम्बई)

*मिलन का वियोग*


विधा : गीत


 


इस अस्त व्यस्त से, 


भरे माहौल में।


पत्नी बच्चे आशा, 


लागाये बैठी है।


की कब आओगें,


अपने घर अब तुम।


अब तो आंखे भी,


थक गई है।


तुम्हारे आने का,


इंतजार करते करते।।


 


महीनों बीत गए है,


तुम्हे देखे बिना।


बच्चे भी हिड़ रहे है,


तुमसे मिले बिना।


की कब आएंगे पापा, 


हम सब से मिलने।


तभी मम्मी का मुरझाया, 


चेहरा खिल जाएगा।।


 


पिया का वियोग, 


क्या होता है।


यह पतिव्रता नारी,  


समझ सकती है।


अपनी तन्हाईयो का,


जिक्र किससे कहे।


जब पति ही दूर हो तो,


अपनी व्यथा किससे कहे।।


 


इस अस्त व्यस्त भरे माहौल से,


कैसे मिले हमे छुटकारा।


कोई तो बताये जिससे,


मिल सके अपने परिवार से।


सबके शिकवे शिकायते,


हम दूर सके इस माहौल में।


और हिल मिलकर अब,


जी सके उनके साथ हम।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


20/06/2020


निशा"अतुल्य"

योग 


20.6.2020


घनाक्षरी 


 


योग सब मिल करो


स्वस्थ तन मन रखो


मिलकर मुहिम ये


सब ही चलाइए।


 


करे साँस प्रश्वास जो


नाड़ी शुद्ध उसकी हो


कपालभाति कर के


स्वास्थ्य सब पाइए।


 


आसन भुजंग करो


पीठ दर्द दूर करो


मेरुदंड होए स्वस्थ 


लचीले हो जाइए।


 


भ्रामरी क्रिया महान


एकाग्रता देती दान


ओज आये चेहरे पे


सबको दिखाइए ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

बहिष्कार


                         ( कहानी )


 


अचानक अखबार में भारतीय सैनिकों पर चीन के हमले की खबर ने सबको आहत कर डाला।कल तक तो दोनों देशों के बीच सन्धि वार्ता और सेनाओं को पीछे हटाने की सार्थक बात चल रही थी और आज ये हृदय भेदक खबर-------।


मन क्रोध और नफरत की आग से भड़क उठा।


देशभर में विद्रोह और प्रदर्शन होने लगे।समवेत स्वर में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की माँगें उठने लगीं।


लोगों ने चीनी एप्प्स को मोबाइल से रिमूव करना स्टार्ट कर दिया।


सरकार ने रेलवे का करोड़ों का प्रोजेक्ट समाप्त कर दिया।


प्रधानमंत्री जी ने आपात बैठक की घोषणा की।आज देश चीन के विरोध में खड़ा था।


रमा बगीचे में पेड़ पौधों को पानी देते हुए इन सब बातों पर चिंतन-मनन कर ही रही थी कि उसी समय उसका दस साल का बेटा उसके पास आया और बोला----"मम्मी अब हमको चाइना मेड प्रोडक्टस् को यूज़ नहीं करना चाहिए न।"


आप ही तो कह रहीं थी पापा से।


रमा ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए" हाँ" में जवाब दिया ।


तो मम्मा हमारे घर में चाइनीज़ आइटम्स अभी तक रखे क्यों हैं?


आपको याद है एक बार आपने और पापा ने मुझे आज़ादी की कहानी सुनाई थी।


उसमें आपने असहयोग आंदोलन औऱ स्वदेशी आंदोलन की बातें बताई थीं ।


तब पूरे भारत ने कैसे विदेशी वस्त्रों और सामानों का बहिष्कार कर दिया था।


तभी राजीव भी वहाँ आ गए थे।वे मुस्कुराते हुए बोले-अरे भाई !आज कौनसी चर्चा हो रही है आजादी की।


पापा मै मम्मी को आज स्वदेशी आंदोलन की याद दिला रहा हूँ।


आप सभी चीन के प्रोडक्ट्स को यूज़ न करने की बात तो कर रहे हैं पर इसे लाइफ में अप्लाई कब करेंगे!!


मैं बहुत एक्साइटेड हूँ।


जैसे उस समय अंग्रेज़ों को मुँह की खानी पड़ी, आज चीन को नाक रगड़वानी है।


उसे स्वदेशी की ताकत दिखलानी है।


मै और रमन अपने बेटे की बातें सुन एकदूसरे का मुँह आश्चर्यजनक से देख रहे थे।


मन मैं कितनी प्रसन्नता थी बताया नहीं जा सकता।


तभी बाहर से उसके दोस्तों ने खेलने के लिए उसे आवाज़ लगाई तो अनुमति लेकर वह चला गया।


अब बारी हमारी थी।


राजीव ने प्रसन्न मुद्रा मैं कहा--रमा ये विचार हमारे मन में क्यों नहीं आया?


पर फिर भी, मैं आज बहुत खुश हूँ।


ये है हमारी आने वाली पीढ़ी!जो देश हित में सदैव तत्पर रहेगी।


तब बेटे के लौटने पर सबने मिलकर चीनी समान का विरोध करने की मुहिम घर से ही स्टार्ट कर दी।


घर के बाहर चीनी लाफिंग बुद्धा, फेंगशुई के अन्य आइटम्स को चादर बिछा पटकना शुरू किया और जमा कर उन्हें नष्ट कर दिया।


देखते ही देखते यह खबर आग की तरह शहर में फैल गई और एक नवीन आंदोलन की शरुआत हो गई।


आइए हम भी---- चीनी सामान को हटाएँ


                          औऱ स्वदेशी अपनाएँ।


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


भरत नायक "बाबूजी"

*"जाल विछाता व्याध है"* (दोहे)


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*स्वार्थ भरा जब सोच मेंं, कैसे हो सुविचार?


पापापूरित जो हृदय, करता वह अपकार।।१।।


 


*मोल न जाने मान का, जिसका कहीं न मान।


देत फिरे सम्मान वह, पात्र-कुपात्र न जान।।२।।


 


*कहता फिरता शान से, पावन अपना काम।


धूर्त सुजन से छद्म-छल, करता फिरे तमाम।।३।।


 


*जाल बिछाता व्याध है, दाने का दे लोभ।


बचकर रहना चाल से, बाद न हो मन-क्षोभ।।४।।


 


*मातु-पिता को भी छले, कुटिल-कृतघ्न-कपूत।


घोर-घिनौनी नीच अति, कपटी की करतूत।।५।।


 


*भाषा-बोली-लेख को, अज्ञ करे बदरंग।


ज्ञान-युद्ध फिर भी करे, विज्ञ जनों के संग।।६।।


 


*चाहे कोई आम जन, या हो राजकुमार।


होता कौशल नष्ट है, अहंकार की धार।।७।।


 


*कर लेता है पारखी, हीरे की पहचान।


जान न पाये मूढ़ जन, तजता पाहन जान।।८।।


 


*छीन निवाला और का, भरो नहीं निज पेट।


पाप कमाई का सदा, होता मटियामेट।।९।।


 


*जिससे जो भी है लिया, सबको समझ उधार।


कर्ज चुकाकर रे मनुज! अपना जनम सुधार।।१०।।


****************************


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


****************************


एस के कपूर " श्री हंस*" *बरेली।*

*विषय ।।।।हिंद*


*शीर्षक।।।।यह हिंद की ललकार है।*


 


मैं भगवद गीता का गुण गान हूँ।


मैं राम राज्य की खान हूँ।।


135 करोड़ की शान हूँ मैं।


मैं हिन्द भारत देश महान हूँ।।


 


मेरा संस्कारों से ही रहा नाता है।


शांति संदेश ही मुझको भाता है।।


नहीं पहली गोली मैं चलाता हूँ।


तभी हिंद भारत महान कहलाता है।।


 


मैंने ये आज़ादी संघर्षों से पायी है।


बलिदानों से कीमत बहुत चुकाई है।।


स्वाधीनता का मोल खूब जानता हूँ।


पहचान हिंद भारत महान बनाई है।।


 


अखंडता संप्रभुता से वचन बद्ध हूँ।


सीमा रक्षा को सदा प्रतिबद्ध हूँ।।


पहले दोस्ती का मेरा हाथ होता है।


पर शत्रु को परास्त करने में सिद्ध हूँ।।


 


विविधता में एकता हमारा मन्त्र है।


श्रम कर्म धर्म ही हमारा एक यंत्र है।।


हमें अपने परिश्रम पर है बहुत नाज़।


यही मेरे हिंद भारत महान का तंत्र है।।


 


जय किसान जवान विज्ञान मेरा नारा है।


वेद पुराणों से भरा इतिहास हमारा है।।


गंगा जमुना पवित्र पुण्य माटी हमारी।


हिंद भारत महान का ऊपर सितारा है।।


 


गांधी गौतम बोस मेरे कई रूप हैं।


कलाम आजाद से रंगी यहाँ की धूप है।।


कण कण में गूंजती राम कृष्ण की वाणी।


हिंद भारत महान तभी शांति स्वरूप है।


 


कॅरोना,पाक,चीन दुश्मन भी मेरे अपार हैं।


विश्व शांति दूत भारत से करते तकरार हैं।।


पर जान लो मत कम आँकना मेरे देश को।


यह हिंद भारत महान की ललकार है।।


 


*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस*"


*बरेली।*


मोब। 9897071046


                      8218685464


कालिका प्रसाद सेमवाल

फूल तुम पर मैं बिखराऊं


********************


आओ मेरी प्रेयसी!जी भर मैं दुलराऊं।


तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,


तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,


तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,


देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,


तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,


लेकर छाया -चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,


 


आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊं।


चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजाती,


सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं,


उड़ -उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,


खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौंरों का गाना,


तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,


मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,


छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं,


 


तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,


उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,


बोल गयी थी कोमल कोमल कोमल भाषा,


देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,


तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,


तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।


 


दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊं।


वह चन्दन की गलियां जिसके नीचे छाया,


उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,


अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,


नत नयनों से देखा मन मन मैं मुस्काया,


दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,


जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,


आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊं।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


राजेंद्र रायपुरी

😌 नानी उसकी याद दिला दो 😌


 


सबको आफ़त में है डाला,   


                        कोरोना फैलाकर।


फिर भी देखो आॅ॑ख दिखाता,


                      वो सरहद पर आकर। 


नानी उसकी याद दिला दो, 


                        तोड़ यार सब रिश्ते।


बंद करो व्यापार चीन से, 


                       फिरे नाक वो घिसते।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हर अल्फ़ाज़ रेशमी आवाज़ मिश्री सी मिठास बयां करते हर शायर कलम की धार।।           


 


जज्बे, जज्बात बस इतना कहता जीओ हज़ारों साल हर कदमों की मुस्कुराहटों से दुनिआ मैं खुशियां हज़ार !!


 


बहारों की फ़िज़ाओं में गज़ब की कशिश हलचल वक्त भी ठहर कर दे रहा था गवाही !!              


 


अंदाज़ खास आगाज़ की आवाज़ खास मुस्कुराता चेहरा जहाँ की खुशियों जज्बा जज्बात मनु कायनात की मिज़ाज़।।


 


सूरज सुरूर पे ही था चाँद दस्तक दे रहा था नए कायनात की बान।।                


 


सागर की सांसों ,धड़कन, वजूद की मल्लिका रौनक सागर की गहराई से उठते तूफानों की परछाई ।।  


 


चाँद ,चांदनी की चमक का ही जलता चिराग हर शायर फनकार!!     


 


सजी सवंरी सतरूपा मनु की


कायनात का इंतज़ार।।


 


चारों तरफ पानी ही पानी


जमीं का नहीं नामों निशाँ


सागर के तूफां में बस एक नांव।।


 


जहाँ के वजूद वज्म की


उम्मीद अरमान वक्त की


तेज रफ्तार ।।


 


मनु की सच्चाई का साथ


खूबसूरत मल्लिकाये मोहब्बत


की कायनात ।।


 


                          


 


बिटिया बहना फरिश्तों की नाज़ों की बहना गहना।। !


 


सागर की जान ,आरजू ,अरमान सच्चाई ,परछाई संग जमीं आसमान की उड़ान ।।           


 


हद हस्ती की पहचान ईमान !!


 


 सूरज सुरूर पे था चाँद ने दस्तक दिया सांसों धड़कन वजूद की मल्लिका रौनक जहाँ में खास।।


 


मोहब्बत कि बुनियाद का कायनात बँट गया आज 


टुकड़े हज़ार।।


 


नफरतों के दौर में इंसानी


रिश्तों में खत्म हो गयी मिठास।।


 


मनु की सच्चाई की परछाई सतरूपा भी है आज शर्मसार


क्यों जहाँ के बने बुनियाद।।


 


क्यों बनाई दुनियां जहाँ इंसान


ही एक दूजे की खिचता टांग


एक दूजे की लाशो की सीढ़ियों


पर छूना चाहता आसमान।।


 


जमी पर पैर नहीं हवा में


उड़ता मंजिल मकसद गुरुर


के जूनून का कायनात।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


सत्यप्रकाश पाण्डेय

क्यों गर्व करे तू प्राणी.....


 


क्यों गर्व करें तू प्राणी,यह दो पल की जिंदगानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


निर्धारित साँसों की पूंजी,


और आस नहीं कोई दूजी।


धन दौलत रह जायेगी तेरी,


क्यों करता है तेरा मेरी।।


 


यहां न बस चले किसी का, क्यों बनता अभिमानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


कड़वे बोल न बोल किसी से,


जो न पुरें कोई मरहम से।


सारा जगत मान तू अपना,


यहां न कोई पराया अपना।।


 


दो मुठ्ठी राख बनेगी तेरी,क्यों मति हुई बौरानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


दो दो आंसू बहायेंगे अपने,


दो गज कपड़े में लिपटेंगे सपने।


चार कदम तेरे साथ चलेंगे,


फिर तुझसे वे कभी न मिलेंगे।।


 


बारह दिन तुझे याद करेंगे,कहेंगे दुनियां है आनी जानी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


कुछ तो ऐसी करनी कर जा,


प्रीति हृदय में ऐसी भर जा।


मरकर सबका प्यारा बन जा,


सबके हिय का राजा बन जा।।


 


अलविदा होकर भी जग में,गूँजें तेरी ही वाणी।


यह काया है आनी जानी, रह जायेगी तेरी वाणी।।


 


 क्यों गर्व करें तू प्राणी,यह दो पल की जिंदगानी...


 


युगलरूपाय नमो नमः 👏👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


          *"अन्त"*


"ऐसा कर्म करे ये तन-मन,


मिटे जीवन का अंधेरा।


छाये न कोई गम की बदली,


पल-पल हो खुशियों का डेरा।।


संवारे जीवन पथ ऐसा,


फिर बन जाये जीवन माली।


महक जाये पग-पग फूलो से,


यहाँ टूटे न कोई डाली।।


छाये हरियाली जीवन में,


जग में ऐसा आये बसंत।भक्ति संग परोपकार में,


चाहे जब हो जीवन का अन्त।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःः


         20-06-2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः...*अठारहवाँ अध्याय*(गीता-सार)


जेहि बिधि मिलै परम सिधि अर्जुन।


तुमहिं बताउब मैं सो अब सुन।।


      निज-निज करम- धरम अनुसारा।


       जग ब्यापी प्रभु पूजहिं सारा ।।


परम सिद्धि तुरतइ मिलि जाई।


बिनु संदेह कृपा प्रभु पाई।।


     अपुन धरम बल रह गुन रहिता।।


     पर रह श्रेष्ठ,अपर गुन सहिता।।


जदि हो करम धरम अनुकूला।


मिलै न पाप नाहिं भव-सूला।।


     दोषयुक्त स्वाभाविक करमा।


     तजु न पार्थ नहिं होय अधरमा।।


जस रह अग्नि धूम्र लइ दोषा।


वस नहिं कर्म कोऊ निर्दोषा।।


      अनासक्त बुध,स्पृह रहिता।


इंद्रि-जीति सांख्य-बल सहिता।।


जे नर जग रह ताको मिलई।


नैष्यइ कर्म सिद्धि जे अहई।।


       सुद्ध सच्चिदानंद्घनस्यामा।


      पाव परम सिधि आतम धामा।।


सुचि बुधि जन एकांतइ बासी।


अल्पाहारी नाहिं निरासी।।


     दृढ़ बैराग-प्राप्त नर ध्यानी।


     रखैं नियंत्रन तन-मन-बानी।।


सात्विक भाव राखि हिय बस मा।


तजि सब्दादिक बिषय छिनहिं मा।।


    काम-क्रोध-बल औरु घमंडा।


    ममता रहित द्वेष करि खंडा।।


दोहा-सांत भाव जे जन अहहिं,अरु समभाव सुजोग।


        ब्रह्म सच्चिदानंदघन,अहहीं पावन जोग ।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                        9919446372 क्रमशः........


कालिका प्रसाद सेमवाल

🎍🌷शुभ प्रभात🌷🎍


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प्यार ही धरोहर है


**************


प्यार अमूल्य धरोहर है


इसकी अनुभूति


किसी योग साधना


से कम नहीं है,


इसके रूप अनेक हैं


लेकिन


नाम एक है।


 


प्यार रिश्तों की धरोहर है


और इस धरोहर


को बनाये रखना


हमारी संस्कृति


एकता और अखंडता है ,


यह अनमोल है।


 


प्यार 


निर्झर झरनों की तरह


हमारे दिलों में


बहता रहे


यही जीवन की


सच्ची धरोहर है। में


 


प्यार


उस परम पिता परमात्मा


से करें


जिसने हमें 


जीवन दिया है,


इस धरा धाम पर


हमें प्रभु ही लाते हैं।


 


प्यार


उन बेसहारा


बच्चों से करें


जो अभाव का जीवन जी रहे हैं


जो कुपोषण के शिकार हैं


और जो अनाथ है


 


आओ


हम सब संकल्प लें


हम सभी के प्रति


प्यार का भाव रखेंगे


किसी के प्रति


गलत नज़रिया


नहीं रखेंगे,


तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।


*************************


कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

आज मैं चुप-चाप हूँ.....


 


हृदय के पोर में कसक सा भरा


तन - मन दोनों शिथिल सा परा


बादलों की उमड़-घुमड़ छाप हूँ,


              आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रात भी दिन सा जला


तम हृदय का हो भला


प्रेम निश्छल विह्वल आप हूँ,


          आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


विरह का अपना मजा है


मिलन का पल सजा है


सजल नयनों का छाप हूँ,


      आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रचना-दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


डॉ0 सुषमा कानपुर पिता कविता

पिता दिवस पर मेरी रचना


 


रहते थे खुशहाल पिता,


खाते रोटी दाल पिता।


नमक अगर ज्यादा हो जाये ,


लेते पानी डाल पिता।


सब को दूध पिलाते थे,


आंगन में बैठार पिता।


बजरंगी के भक्त बड़े,


गाते रघुवर गान पिता।


अम्मा जी तैयारी करती,


करते पूजा पाठ पिता।


भूत प्रेत जिसको भी आते,


देते उनको झार पिता।


बिच्छू जहर जिसे चढ़ जाता,


देते तुरत उतार पिता।


भर भर जेब पेहेटुआ लाते।


लाते कैथा आम पिता।


ढूढ ढूढ करके बनवाते।


बन करइल का साग पिता।


गाय भैस उनको थी प्यारी,


सेवा करते खूब पिता।


बाबा जी की दवा मिठाई,


लाते थे चुपचाप पिता।


ट्रेक्टर में बैठा करके,


ले जाते बाजार पिता।


गंगा जी बाल्हेस्वर बाबा,


ले जाते हर बार पिता।


कई बार विपदाएं आईं,


पर माने ना हार पिता।


हम बच्चों के करते थे,


हर सपना साकार पिता।


हम सबकी खुशहालीको,


किया बड़ा ही त्याग पिता।


अब तो केवल यादें बाकी,


उनसे मिले न पार पिता।


@


©®



16-6-19


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीलम मुकेश वर्मा

नीलम मुकेश वर्मा


पता:. झुंझुनू राजस्थान।


 


रचना :3


 


है अटल विश्वास हमको,निज कलम की धार पर।


और उससे भी अधिक,माँ शारदे के प्यार पर।।(1)


 


आजकल यूँ तो हमें आदत हुई है जीत की,


शौक से फ़िर भी मनाते,जश्न अपनी हार पर।(2)


 


नाम करने की रही, फ़ितरत सदा इंसान की,


चाहता है वाहवाही,तुच्छ से उपकार पर(3)


 


हसरतों की आड़ में,बदला नज़रिया सोच का,


भूल बैठे फ़र्ज को,नजरें टिकी अधिकार पर(4)


 


ख्वाहिशों को रास कब आता,ख़ज़ालत का क़फ़स,


टूटते अनुबन्ध कितने,बस इसी इक रार पर(5)


 


झाँक कर जो निज गिरेबाँ, में कभी देखें नहीं,


वो लगाते 'नील' पर,इल्ज़ाम किस आधार पर।(6)


 


                     नीलम मुकेश वर्मा


                    झुंझुनूं राजस्थान


 


रचना :/4


 


क्रूर जग की तपन मैं हरू किस लिए।


बन कलश शीत जल का झरूँ किस लिए।।(1)


 


धन पराया समझती है दुनियाँ मुझे,


दम्भ अपनों का फिर मैं भरूँ किस लिए।।(2)


 


जब घरों में सलामत नहीं दामिनी,


फिर क़दम फूँक कर मैं धरूँ किस लिए।(3)


 


दिन-दहाड़े सरेआम आखेट में,


मौत से पूर्व पल- पल मरूँ किस लिए।(4)


 


न्याय के नाम पर गर निराशा मिले,


तेल उम्मीद का फिर भरूँ किस लिए।।(5)


 


सच दफन हो जहाँ, झूठ फूले-फले, 


नाज़ ऐसे वतन पर करूँ किस लिए।(6)


 


स्वान नोचें अगर निर्भया की तरह,


जन्म लेने की जुर्रत करूँ किस लिए।(7)


                      नीलम मुकेश वर्मा


                     झुंझुनू राजस्थान


 


रचना :5


 


दर्प के जब शिखर पर खड़े हो गए।


यूँ लगा ईश से भी......बड़े हो गए।(1)


 


पानी बिजली मिले काम हर हाथ को


वायदे ये पुराने.......सड़े हो गए।(2)


 


बंद सन्दूक में गुप्त धन की कथा,


क़ायदे खोलने के....कड़े हो गए।(3)


 


नीर दुर्लभ हुआ, मय भरी मटकियाँ,


चख, युवा-बाल, सब बेवड़े हो गए।(4)


 


संत बगुला भगत बन करें मौज तब,


धर्म के अनगिनत जब धड़े हो गए।(5)


 


तैश में ताल ठोकी, बजे गाल क्यों,


जब जमाने किसी से लड़े हो गए।(6)


 


ख्याति जिनकी रही सिंध के नाम से,


'नील' घोड़े वो' घटकर घड़े हो गए।(7)


 



 झुंझुनूं राजस्थान


 


 


 


 


श्रीकांत त्रिवेदी

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योग पर कुछ दोहे


💥💥💥💥💥


 


करे चित्त की वृत्ति का, है निरोध ये योग।


दृष्टा को निज रूप में , स्थित कर दे योग ।।


 


आठ अंग हैं योग के , पातंजलि अनुसार।


सबकी महिमा एक सी, ज्ञानी कहें विचार।।


 


प्रथम पंच 'यम' हैं यहां, सत्य,अहिंसा,संग।


ब्रह्मचर्य , अस्तेय भी , अपरिग्रह के संग ।।


 


'नियम' पांच भी अंग है, शौच और संतोष।


स्वाध्याय कर ,तप करें, ईश शरण मंतोष।।


 


अब तृतीय जो अंग है,उसका"आसन" नाम।


हो जाए जब सिद्घ तो, पूर्ण सभी हों काम ।।


 


चौथा तीन प्रकार के , " प्राणायाम" महान ।


सांस सांस जब सिद्ध हो,योग बने आसान।।


 


पंचम  " प्रत्याहार" है ,  करें विषय सब दूर ।


इन्द्रिय सब निज चित्त वश,अंकुश हो भरपूर


 


षष्ठम अंग है " धारणा" कठिन बहुत ये काम।


मन को स्थिर कीजिए, हर पल आठों याम ।।


 


सप्तम अंग जो "ध्यान" है, चित्त लगे इक तार।


जो योगी का ध्येय हो , उस पर सब निस्सार ।।


 


इन सातों को साधिए, अष्टम मिले "समाधि"।


मोक्ष और कैवल्य दे, हर कर हर भव व्याधि।।


 


परम शक्ति को नमन है,दे हम सब को ज्ञान।


होकर  योग  प्रवीण  हो , आर्यावर्त महान ।।


 


योग दिवस है आज ये,सब के लिए विशेष।


सभी सुखी हों विश्व में , ये कामना अशेष ।।


श्रीकांत त्रिवेदी


💐


इन्दु झुनझुनवाला संपादक काव्य रंगोली

वो पिता कहलाता है ।


 


पर्दे पर नजर नही आता ,


पर उसका सहयोग हरपल ,


हर क्षण जीवन भर पुत्र


परोक्ष पाता है ,


तभी आगे बढने की, 


अपनी ख्वाहिश को


 साकार कर पाता है ।


 


खिलौनो की ,स्वप्न भरी दुनिया से ,


यथार्थ की धरती पर,


महलों के खूबसूरत ख्वाब सजा पाता है ।


 


परियों के किस्से सुन-सुनकर, 


हसरते मन मे लिए


यौवन की दहली पर 


परी सा साथी ढूँढ़ पाता है । 


 


भले ही निवाले 


हाथों से ना खिलाएं हो  ,


पर हर निवाले मे ,


उसकी मेहनत की 


खुशबू उसमे पाता है ।


 


संकोची स्वभाव, 


सिर पर हाथ ना फिरा पाया हो ,


पर उसके हर बोझ को 


अपने कांधे पर वो उठा पाता है ।


 


ठोकरों से बचाने की खातिर


नसीहते दे देकर ,कठोर ,बेदर्दी,


और ना जाने क्या क्या


 उपनाम वो पाता है ।


 


अपनो के 


प्यार की तलाश मे तरसता,


जीवन भर खुद रूखी सूखी खाकर


 भी सो पाता है ।


 


कठोर से चेहरे के पीछे ,


नाजुक सा दिल लिए,जमाने की मार से


 बचाने की कोशिश मे ,


खुद मात ही पाता है ।


 


फिर भी सारे गमो को सीने मे छुपाए ,


चुपचाप इन्दु 


 गहराती भींगी रातो मे भींग भींग पाता है ।


 


वो पिता कहलाता है ,,,वो पिता कहलाता है।


 



अमित शुक्ला बरेली

******FATHER'S DAY******


किस राह खो गए हो चलना सिखा के हमको।


बिन आपके लगे हैं सौ गम कहां के हमको।


 


सांसें हैं आपकी सब जीवन ही आपका है।


दिखते नहीं क्यों पापा दुनियां दिखा के हमको।


 


होने को हर कोई है पर आप तो नहीं हैं।


इक याद आती जाती हर दिन रुला के हमको।


 


हरगिज न जाने देते या साथ साथ चलते।


जो काश जाते पापा थोड़ा बता के हमको।


 


अनमोल इसलिए हैं क्योंकि हैं आपके हम।


लोग खरीद लेते बरना बोली लगा के हमको।


 


सच हो तो नहीं सकता लेकिन ये सोचते हैं।


कैसे हो अमित पूछो सीने से लगा के हमको।


Miss you papa😔


   @ अमित शुक्ला@


लक्ष्मी करियारे पिता कविता

पितृदिवस की अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं


ज़िंदगी की चिलचिलाती धूप में घने बरगद की शीतल छाँव..


आसमां जैसा ये तेरा साया दूर मुझसे सारे आभाव..


* बड़े नसीब तेरी गोद मिली


कभी हुआ न सामना काँटो से 


फूल ही फूल बिछे पाव..


आसमां जैसा ये तेरा साया...


* प्यार तेरा ये गहरा साया


संघर्षों की आँधियों में भी 


हौसलों की चलती नाव..


आसमां जैसा ये ये तेरा साया...


* बोले बिना ही समझे बातें मेरी 


मुझे दिया हर पल सुख का 


लिये मेरे दर्द घाव..


आसमां जैसा ये तेरा साया...


* दूर रहकर भी संग है मेरे 


तुम्ही ज़मीर जागीर पहचान 


मेरे एहसास यादों के गाँव..


आसमां जैसा ये तेरा साया...


जिंदगी की चिलचिलाती धूप में घने बरगद की शीतल छाँव..


आसमां जैसा ये तेरा साया दूर मुझसे सारे आभाव...


       📖🖋लक्ष्मी करियारे


( शिक्षिका लोक गायिका कवयित्री )


आत्मज - स्व श्री पी एल करियारे जी 


छातीसगढ़ जाँजगीर


राम कथा बलराज सिंह यादव धर्म एव अध्यात्म शिक्षक

सदगुन सुरगन अम्ब अदिति सी।


रघुबर भगति प्रेम परमिति सी।।


 ।श्रीरामचरितमानस।


  यह रामकथा सद्गुणरूपी देवताओं के उत्पन्न और पालन पोषण करने के लिए माता अदिति के समान है।यह रामकथा प्रभुश्री रामजी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा सी है।


।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।


  भावार्थः---


  श्रीमद्भागवत में सद्गुणों का विस्तृत वर्णन है।यथा,,,


सत्यं शौचं दया क्षान्तिस्त्यागः संतोष आर्जवम्।


शमो दमस्तपः साम्यम् तितिक्षोपरति:श्रुतं।।


ज्ञानम् विरक्ति:ऐश्वर्यम् शौर्यम् तेजो बलम् स्मृति:।


स्वातंत्रयम् कौशलं कान्ति:धैर्यमं आर्दमेव च।


प्रागलभ्यम प्रश्रयः शीलं सह ओजो बलम्भग:।। आदि।


  अदिति दक्षप्रजापति की पुत्री व कश्यप ऋषि की पत्नी तथा सूर्य,इन्द्रादिक देवताओं की माता हैं।जिस प्रकार अदिति से ही देवताओं की उत्पत्ति हुई, उसी प्रकार रामकथा से शुभ गुणों की उत्पत्ति हुई है।जिस प्रकार अदिति के पुत्र देवता दिव्य व अमर हैं उसी प्रकार प्रभुश्री रामजी की कथा से उत्पन्न सद्गुण भी दिव्य और अमर हैं।जिस प्रकार माता अदिति अपने देवपुत्रों के हित में सदैव तत्पर रहती हैं उसी प्रकार यह रामकथारूपी माता भी सद्गुणों को उत्पन्न करके उन्हें अपने भक्तों के हृदय में स्थिर रखकर उनकी कलिमल से रक्षा करती है।सद्गुणों का वास्तविक फल तो भगवान की प्रेमाभक्ति है।इसी कारण गो0जी ने रामकथा को प्रेम और परमार्थ का सारतत्व कहा है।यथा,,,


रामनाम प्रेम परमारथ को सार रे।


रामनाम तुलसी को जीवन आधार रे।।


 श्रीरामचरितमानस प्रभुश्री रामजी की रामकथा का एक श्रेष्ठ ग्रँथ है।इसीलिये इसे प्रेमाभक्ति प्रदान करने वाला अनुपम ग्रँथ कहा जाता है और साथ ही इसे प्रभुश्री रामजी का ग्रन्थावतार भी कहा गया है।संवत1631 में जिस दिन गो0जी ने इस अनुपम ग्रँथ श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी,उस दिन योग,लग्न,ग्रह,वार, तिथि आदि सभी परिस्थितियां लगभग वही थीं जो रामजन्म के समय में थीं।इसीलिए श्रीरामचरितमानस को प्रभुश्री रामजी का ग्रन्थावतार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है।


  भगवान शिव द्वारा रचित इस रामकथा का सभी देव,ऋषि,मुनि आदि प्रेमसहित गान करते हैं।यथा,,,


बार बार नारद मुनि आवहिं।


चरित पुनीत राम के गावहिं।।


नित नव चरित देखि मुनि जाहीं।


ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं।।


सुनि बिरंचि अतिशय सुख मानहिं।


पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं।।


सनकादिक नारदहि सराहहिं।जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं।।


जीवन्मुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।


जे हरि कथा न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान।।


।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।


।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


राजेश_कुमार_सिंह "श्रेयस

#कविता_के_फूल 38


#पदचिन्हों_को_पहचानों


 


इन पदचिन्हों को पहचानों,


पहचान बनाते है, पदचिन्ह l


जीवन में कितने विम्बित हो,


ये बतलाते हैं पदचिन्ह ll


 


पदचिन्ह नही, ये भाग्य हैं तेरे,


जीवन की दिशा बदलते हैं l


अनुगमन करो अनुश्रवण करो,


जीवन की दशा बदलते है ll


 


ये त्याग की गहरी छापे हैं,


ये कठिन तपस्या के प्रतिफल है l


ये ऊँची छलांग के संबल हैं,


ये अंतर्मन के आत्मिक बल हैं ll


 


इन पदचिन्हो के चांप सुनो,


ये चांप बहुत कुछ कहते हैं l


जीवन की दुर्गम यात्रा में,


ये साया बनकर के रहते हैं ll


 


पदचिन्हों का सम्मान करो,


ये हैं माथे के राजतिलक l


ये भाव पिता के दिल के हैं,


ये हैं सर्वोत्तम,सर्वोच्च फलक ll


 


#राजेश_कुमार_सिंह "श्रेयस"


पितृ दिवस आशुकवि नीरज अवस्थी

आज पितृ दिवस के अवसर पर सभी पिताओ को समर्पित कुछ पंक्तियां--


 


धूप शीत बरसात झेल कर जिसने मुझको बड़ा किया।


मुझको दिया सहारा पाला निज पैरों पर खड़ा किया।


ह्र्दय पटल से पूज्य पिता की चरण वन्दना करता हूँ,


जिसने घोर गरीबी में मुझको ऍम ए तक पढ़ा दिया।


 


खेती और किसानी में जिसने जीवन को गला दिया।


भूखे प्यासे रहकर मुझको भोजन पानी खिला दिया।


अपने जीते जी नीरज को रचना सी पत्नी देकर,


मेरी खुशियों की खातिर जिसने सुख सुविधा भुला दिया।


 


जितना प्यार दिया था तुमने तब जाना जब आप गये।


कमी पिता की क्या होती है,तब जाना जब आप गये।


व्याह योग्य थी छोटी बहना जिम्मेदारी मुझ पर थी,


कैसे व्याह रचाये होंगे तब जाना जब आप गये।।


 


रिश्ते दारी खेती बाड़ी मेहमानों की आव भगत।


खटिया बिस्तर बर्तन कपड़ा कुर्सी मेजे और तखत।


घर के काम बजार व्यवस्था बैना भी व्यवहार किया,


कितना दर्द सहा था तुमने, तब जाना जब आप गये।।


मो.9919256950


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार भुवन बिष्ट

भुवन बिष्ट   


जन्म-1 जुलाई रानीखेत,उत्तराखंड 


पता-रानीखेत उत्तराखंड 


      निरंतर प्रतिष्ठित पत्र /पत्रिकाओं में कविता, लेख कहानी लेखन, हिन्दी एंव आंचलिक भाषा कुमांऊनी में निरंतर लेखन एंव स्वतंत्र पत्रकारिता,लेखन।


    विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा लेखन के लिए सम्मानित 


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                      रचनाऐं 


 


      (रचना 1=वंदना)


 


नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,


हे माँ तेरा गुणगान करूँ। 


    ज्ञानप्रदायनी, वीणावादनी,


     माँ तेरी जयकार करूँ।....


तेरे आंचल में जो आता,


जीवन धन्य धन्य हो जाता।


      ज्ञान प्रफुल्लित चहुँ दिशा में,


      दीपक बनकर सदा फैलाता।


माँ कर दे राह मेरी आलोकित,


नमन मैं बारम्बार करूँ।


        ज्ञानप्रदायनि वीणावादनी,


        माँ तेरी जयकार करूँ।.........


नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,


हे माँ तेरा गुणगान करूँ। 


        हंस सवारी मां कहलाती,


        वाणी में भी है बसती।


सदमार्ग मिले हे मातेश्वरी,


जब जब वीणा है बजती।


        वीणा की झंकार बजा दे,


        ज्ञान का तरकश हे मां भर दे।


रज तेरे चरणों की बनूँ,


विनती मैं बारम्बार करूँ।


        ज्ञानप्रदायनी वीणावादनी,


         माँ तेरी जयकार करूँ।


नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,


हे मां तेरा गुणगान करूँ।...


              ........भुवन बिष्ट 


 


 


        रचना 2= मानवता के दीप


 


हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं,


उदास चेहरों पर सदा मुस्कराहट लाते हैं।


 


हार मानकर  बैठते जो कठिन राहों को देख,


हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं।


 


कर देते पग डगमग कभी उलझनें देखकर,


मन में साहस लेकर हम फिर भी मुस्कराते हैं।


 


मिल जाये साथ सभी का बन जायेगा कारंवा,


मिलकर आओ अब एकता की माला बनाते हैं।


 


लक्ष्य को पाने में सदा आती हैं कठिनाईयां,


साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं।


 


राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी,


सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं।


 


फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर,


दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं।


                  ....भुवन बिष्ट


            रानीखेत (उत्तराखण्ड)


 


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    (रचना 3 =भारत प्यारा )


मिलकर आओ जग में हम सब, 


                    भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।....


माँ भारती के सब भारतवासी ,


                     सदा सदा गुण गाते हैं।।


जब आजादी की अलख जगी,


                   वीरों ने प्राण गवाये थे। 


यह मातृभूमि की रक्षा को,


                  वे बलिदानी कहलाये थे।। 


पावन गणतंत्र यह अपना, 


                 कर्तव्यों को भी निभाते हैं।.......


भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....


मिलकर आओ जग में हम सब, 


                    भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।...


शीश हिमालय मुकुट बना, 


                सागर भी पाँव पखारे हैं। 


कश्मीर से कन्याकुमारी तक,


               सुशोभित प्रांत ये प्यारे हैं।। 


यह सर्व धर्म का राष्ट्र सदा,


               हम पुष्प सभी एक उपवन में। 


यहाँ एकता का दीप जले, 


              सदा हम सब के ही तन मन में।। 


 हम अपने राष्ट्र की रक्षा को, 


             अब एकता जग को दिखाते हैं।...


भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....


मिलकर आओ जग में हम सब, 


                    भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।


सजी सुंदर धरा खलिहानों से, 


               पावन सरिता की धारा है। 


परंपराओं का नित नित संगम, 


               सभ्यता को भी सवाँरा है।। 


मातृभूमि की सेवा हम करते, 


               सदा तिरंगे का मान बढ़े। 


रक्षा भारत भूमि की होवे तब, 


             जन जन का सम्मान बढ़े।। 


मातृभूमि की चरण धूलि हम, 


            सदा ही शीश लगाते हैं। 


भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....


मिलकर आओ जग में हम सब, 


                    भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।... 


                      ....... भुवन बिष्ट 


 


        रचना 4= खुशहाल धरा 


==================== ====


 


धरती को अपनी सजायें। 


हम इसको खुशहाल बनायें।। 


प्रदूषण सकंट है भारी । 


इसे हटायें करो तैयारी ।। 


        


नदी वन पर्वत सब समाये। 


मानव धरती से तब पाये।। 


जय छतरी नीलाम्बर धारी। 


बरसे मेघ प्रभु अवतारी।। 


 


धरा की रक्षा सदा करेंगे। 


धरती माँ सब कष्ट हरेंगे।।


धरती से जग में खुशहाली। 


हर आँगन खुशियों की थाली।। 


 


वन से सब जीवन पायेंगें ।


मिलकर हम इसे बचायेंगें ।।


वन उपवन से जग महकेगा। 


जग सारा खुशहाल रहेगा।। 


 


वृक्ष हमें प्राण वायु देते ।


हम से वह कुछ कभी न लेते।। 


सब आओ अब वृक्ष लगायें।


धरा को अपनी हम सजायें।। 


 


वन से भू सुंदरता पायी ।


मन के सब को है यह भायी।। 


पशु पक्षी के ये हैं वासा ।


वन से ही सबको है आशा।। 


 


वृक्ष मित्र सारे कहलायें। 


आओ अब हम पेड़ बचायें।। 


शुद्ध वायु वन से हम पायें ।


सभी वनों के गुण हम गायें ।।


 


वनों से धरा में हरियाली ।


जग में होवे तब खुशहाली।।


वन बचाने का प्रण लेंगे।


वृक्ष कभी काटने न देंगे।। 


 


 


साफ वायु यदि अब है पाना। 


हमें पेड़ों को है बचाना।। 


मन में स्वच्छता अपनाना। 


पहल करो सबको दिखलाना।। 


 


वृक्षारोपण सभी करेंगें। 


धरा प्रदूषण मुक्त करेंगें।। 


शुद्ध वायु सबको है पाना। 


मिलकर सब अब वृक्ष लगाना।। 


                ............भुवन बिष्ट 


                रानीखेत (उत्तराखंड )


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    ( रचना 5 = माँ)


==================


माँ का आंचल सारे जग में ,


              सदा-सदा ही प्यारा है।


हर विपदा को तुमने सहकर,


            कांटों की राहों पर चलकर।


हर पल जीवन संवारा है,


            माँ का आंचल प्यारा है।।


ममतामयी करूणा की सागर,


              वह ममता की छांव है।


गिरकर उठना और संभलना,


               माँ ने ही सिखलाया है।


दृढ़ निश्चय से मिले सफलता,


               माँ तुमने ही दिखलाया है।


आई विपदाऐं भी अनेकों, 


               किया सामना डटकर तुमने,


हर सुख अपना न्यौछावर कर,


                जीवन यह संवारा माँ।


मानवता के धर्म कर्म को,


                हर पल माँ ने सिखलाया।


सागर की लहरों को उसने,


                किश्ती बनकर पार किया।


हर जन्म तेरा आंचल मैं पाऊं,


                माँ तेरी छांव मैं पलूँ सदा।


ममतामयी करूणा की सागर,


                करूं तेरा गुणगान सदा।


माँ की ममता के आगे तो,


                  कठिन डग यहां हारा है।


माँ का आंचल सारे जग में ,


                 सदा - सदा ही प्यारा है।


             .......


             रानीखेत (उत्तराखण्ड)


=================


 


💐💐💐💐💐


 


नीलू सक्सेना देवास

🌹🙏🌹पिता🌹🙏🌹


 


 


पिता अपनी इच्छाओं और 


शौक का दहन है ।


पिता है तो हमारा जीवन है ।


पिता से ही जीवन के हर साजऔर खिलौने हैं


वरना यह सब बौने है ।


 


 


पिता का अहसान हम चुका सकते नहीं ।


क्योंकि पिता सर्वस्व लुटा कर भी कुछ मांगता नहीं ।


जीवन एक यज्ञ है, पिता की इच्छाएं उसमें समिधा हैं।


और बिना समिधा के यज्ञ कहां पूरा होता है ।


 


जिनके सर पर पिता का हाथ है,


मानो उनके सर पर सरताज है


दुनिया में कोई कलम ऐसी नहीं,


जो पिता के गुणों का वर्णन कर सकती नहीं ।


      


 


             🌹🙏नीलू सक्सेना🙏🌹


सुषमा दीक्षित शुक्ला

,


नश्वर है हर वस्तु यहाँ की  


 प्यार अमर है बापू का । 


  


कोई साथ नही देता है , 


 सँग अमर है बापू का ।


 


साथ साथ चलते हैं बापू ,


जायें अगर कही भी हम ।


 


थकने पर हिम्मत बंधवाते ,


टूटें अगर कहीँ भी हम ।


 


सती ,वीरबाला तुम बनना ,


 यही सन्देशा बापू का ।


 


गिरकर उठना ,खोकर पाना ,


 कथन हमेशा बापू का ।


 


नश्वर है हर वस्तु यहाँ की ,


प्यार अमर है बापू का ।


 


जीवन का संघर्ष कठिन हो ,


 अगर ख्याल ना राखें बापू ।


 


किस से मन की व्यथा सुनाऊँ ,


  अगर हाल ना भाँपें बापू ।


 


उनका लहू भरा जो मुझमें ,


क्षमतावान बनाता मुझको ।


 


कष्टों मे भी हंसकर जीना ,


उनका ध्यान दिलाता मुझको ।


 


अपना धरम कभी ना भूली , 


यही असर है बापू का ।


 


नश्वर है हर वस्तु यहाँ की ,


प्यार अमर है बापू का ।


 


 सुषमा दीक्षित शुक्ला


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