भुवन बिष्ट
जन्म-1 जुलाई रानीखेत,उत्तराखंड
पता-रानीखेत उत्तराखंड
निरंतर प्रतिष्ठित पत्र /पत्रिकाओं में कविता, लेख कहानी लेखन, हिन्दी एंव आंचलिक भाषा कुमांऊनी में निरंतर लेखन एंव स्वतंत्र पत्रकारिता,लेखन।
विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा लेखन के लिए सम्मानित
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रचनाऐं
(रचना 1=वंदना)
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।
ज्ञानप्रदायनी, वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।....
तेरे आंचल में जो आता,
जीवन धन्य धन्य हो जाता।
ज्ञान प्रफुल्लित चहुँ दिशा में,
दीपक बनकर सदा फैलाता।
माँ कर दे राह मेरी आलोकित,
नमन मैं बारम्बार करूँ।
ज्ञानप्रदायनि वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।.........
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।
हंस सवारी मां कहलाती,
वाणी में भी है बसती।
सदमार्ग मिले हे मातेश्वरी,
जब जब वीणा है बजती।
वीणा की झंकार बजा दे,
ज्ञान का तरकश हे मां भर दे।
रज तेरे चरणों की बनूँ,
विनती मैं बारम्बार करूँ।
ज्ञानप्रदायनी वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे मां तेरा गुणगान करूँ।...
........भुवन बिष्ट
रचना 2= मानवता के दीप
हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं,
उदास चेहरों पर सदा मुस्कराहट लाते हैं।
हार मानकर बैठते जो कठिन राहों को देख,
हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं।
कर देते पग डगमग कभी उलझनें देखकर,
मन में साहस लेकर हम फिर भी मुस्कराते हैं।
मिल जाये साथ सभी का बन जायेगा कारंवा,
मिलकर आओ अब एकता की माला बनाते हैं।
लक्ष्य को पाने में सदा आती हैं कठिनाईयां,
साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं।
राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी,
सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं।
फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर,
दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं।
....भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
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(रचना 3 =भारत प्यारा )
मिलकर आओ जग में हम सब,
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।....
माँ भारती के सब भारतवासी ,
सदा सदा गुण गाते हैं।।
जब आजादी की अलख जगी,
वीरों ने प्राण गवाये थे।
यह मातृभूमि की रक्षा को,
वे बलिदानी कहलाये थे।।
पावन गणतंत्र यह अपना,
कर्तव्यों को भी निभाते हैं।.......
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....
मिलकर आओ जग में हम सब,
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।...
शीश हिमालय मुकुट बना,
सागर भी पाँव पखारे हैं।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
सुशोभित प्रांत ये प्यारे हैं।।
यह सर्व धर्म का राष्ट्र सदा,
हम पुष्प सभी एक उपवन में।
यहाँ एकता का दीप जले,
सदा हम सब के ही तन मन में।।
हम अपने राष्ट्र की रक्षा को,
अब एकता जग को दिखाते हैं।...
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....
मिलकर आओ जग में हम सब,
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।
सजी सुंदर धरा खलिहानों से,
पावन सरिता की धारा है।
परंपराओं का नित नित संगम,
सभ्यता को भी सवाँरा है।।
मातृभूमि की सेवा हम करते,
सदा तिरंगे का मान बढ़े।
रक्षा भारत भूमि की होवे तब,
जन जन का सम्मान बढ़े।।
मातृभूमि की चरण धूलि हम,
सदा ही शीश लगाते हैं।
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं...भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं ....
मिलकर आओ जग में हम सब,
भारत को श्रेष्ठ बनाते हैं।...
....... भुवन बिष्ट
रचना 4= खुशहाल धरा
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धरती को अपनी सजायें।
हम इसको खुशहाल बनायें।।
प्रदूषण सकंट है भारी ।
इसे हटायें करो तैयारी ।।
नदी वन पर्वत सब समाये।
मानव धरती से तब पाये।।
जय छतरी नीलाम्बर धारी।
बरसे मेघ प्रभु अवतारी।।
धरा की रक्षा सदा करेंगे।
धरती माँ सब कष्ट हरेंगे।।
धरती से जग में खुशहाली।
हर आँगन खुशियों की थाली।।
वन से सब जीवन पायेंगें ।
मिलकर हम इसे बचायेंगें ।।
वन उपवन से जग महकेगा।
जग सारा खुशहाल रहेगा।।
वृक्ष हमें प्राण वायु देते ।
हम से वह कुछ कभी न लेते।।
सब आओ अब वृक्ष लगायें।
धरा को अपनी हम सजायें।।
वन से भू सुंदरता पायी ।
मन के सब को है यह भायी।।
पशु पक्षी के ये हैं वासा ।
वन से ही सबको है आशा।।
वृक्ष मित्र सारे कहलायें।
आओ अब हम पेड़ बचायें।।
शुद्ध वायु वन से हम पायें ।
सभी वनों के गुण हम गायें ।।
वनों से धरा में हरियाली ।
जग में होवे तब खुशहाली।।
वन बचाने का प्रण लेंगे।
वृक्ष कभी काटने न देंगे।।
साफ वायु यदि अब है पाना।
हमें पेड़ों को है बचाना।।
मन में स्वच्छता अपनाना।
पहल करो सबको दिखलाना।।
वृक्षारोपण सभी करेंगें।
धरा प्रदूषण मुक्त करेंगें।।
शुद्ध वायु सबको है पाना।
मिलकर सब अब वृक्ष लगाना।।
............भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड )
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( रचना 5 = माँ)
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माँ का आंचल सारे जग में ,
सदा-सदा ही प्यारा है।
हर विपदा को तुमने सहकर,
कांटों की राहों पर चलकर।
हर पल जीवन संवारा है,
माँ का आंचल प्यारा है।।
ममतामयी करूणा की सागर,
वह ममता की छांव है।
गिरकर उठना और संभलना,
माँ ने ही सिखलाया है।
दृढ़ निश्चय से मिले सफलता,
माँ तुमने ही दिखलाया है।
आई विपदाऐं भी अनेकों,
किया सामना डटकर तुमने,
हर सुख अपना न्यौछावर कर,
जीवन यह संवारा माँ।
मानवता के धर्म कर्म को,
हर पल माँ ने सिखलाया।
सागर की लहरों को उसने,
किश्ती बनकर पार किया।
हर जन्म तेरा आंचल मैं पाऊं,
माँ तेरी छांव मैं पलूँ सदा।
ममतामयी करूणा की सागर,
करूं तेरा गुणगान सदा।
माँ की ममता के आगे तो,
कठिन डग यहां हारा है।
माँ का आंचल सारे जग में ,
सदा - सदा ही प्यारा है।
.......
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
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